जुलाई 2018 के दूसरे पखवाड़े की  शुरुआत में राजस्थान में  वसुंधरा राजे सरकार ने 2 दिनों तक राज्य में इंटरनैट सेवाएं 20 घंटे तक बंद रखीं. चालू वर्ष के शुरुआती 7 महीने में ही राजस्थान में इंटरनैट पर यह पाबंदी 9वीं बार लगाई गई थी. राज्य में ऐसा पहली बार हुआ जब सिर्फ किसी परीक्षा के लिए पूरे प्रदेश में साइबर कर्फ्यू लगा दिया गया. राजस्थान में पुलिस कौंस्टेबल भरती की 4 घंटे की लिखित परीक्षा का आयोजन था, जिस में नकल की रोकथाम के लिए पूरे प्रदेश में इटरनैट इमरजैंसी लगा दी गई.

डिजिटल इंडिया के गूंजते नारे के बीच राजस्थान सरकार ने ऐसा कारनामा कर दिखाया जिस के कारण 20 घंटे इंटरनैट नहीं चलने से 15 हजार से ज्यादा रेल टिकटों की औनलाइन बुकिंग नहीं हुई, 4,500 से ज्यादा ई चालान नहीं हुए, बिजली कंपनियों में 10 लाख रुपए की औनलाइन बिलिंग नहीं हुई और 30 करोड़ रुपए के मोबाइल ट्रांजैक्शंस प्रभावित हुए. सब से गंभीर बात यह रही कि इंटरनैट के रूप में आम जनता को जो ताकत मिली है, वह ताकत एक आदेश से एक झटके में निलंबित हो गई. जीएसटी के ई वे बिल नहीं निकले. जिस फाइलिंग को देर से करने पर फाइन लगता है, वह इस दौरान चालू रहा.

राजस्थान में नैटबंदी जारी थी तो केंद्र सरकार दूसरे झमेलों को ले कर चिंतित थी. उस की चिंता के केंद्र में आम लोगों की सोशल मीडिया पर की जाने वाली और उसे चुभने वाली टीकाटिप्पणियां थीं. साथ में सीमापार से आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली हरकतों में इंटरनैट के इस्तेमाल ने उस की चिंता बढ़ा रखी है.

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