हिंदी फिल्मों में समाज से जुड़े मुद्दों पर अपनी बात कहने की परंपरा रही है. इस कड़ी में आयुष्मान खुराना की फिल्मों को रखा जा सकता है, जिन में हमेशा ही किसी न किसी सामाजिक मुद्दे को उठाया जाता है, फिर चाहे उन की फिल्म ‘बाला’ हो या फिर ‘विकी डोनर’. इन दोनों ही फिल्मों में मर्दों के गंजेपन और बच्चे न हो पाने की समस्या पर रोशनी डाली गई है, जिन पर लोग अकसर ही बात करने से बचते हैं.
इसी लिस्ट में आयुष्मान खुराना की नई फिल्म ‘डाक्टर जी’ को रखा जा सकता है, जिस में वे अपने भाई की तरह और्थोपैडिक डाक्टर बनना चाहते हैं, लेकिन जब रैंक कम आती है तो उन्हें मजबूरी में गायनेकोलौजी ब्रांच लेनी पड़ती है. मतलब एक ऐसा डाक्टर, जो औरतों से जुड़ी बीमारियों का इलाज करता है.
पर क्या भारत जैसे देश में जहां औरतों को परदे में छिपा कर रखने को बढ़ावा दिया जाता है, वहां कोई मर्द डाक्टर उन के अंदरूनी अंगों की जांच कर सकता है? बड़े शहरों में शायद ऐसा मुमकिन हो, लेकिन गांवदेहात में तो यह अभी दूर की कौड़ी है.
फिल्म ‘डाक्टर जी’ के एक सीन से इस बात को समझते हैं. डाक्टर बने आयुष्मान खुराना चैकअप के लिए एक औरत से कपड़े ऊपर करने को कहते हैं, पर इतना सुनते ही वह औरत चिल्लाने लगती है. चीखपुकार सुन कर उस औरत का पति वहां आ जाता है और आयुष्मान खुराना को पीटने लगता है.
इसी सिलसिले में गायनेकोलौजिस्ट के तौर पर प्रैक्टिस करने वाले इंडियन मैडिकल एसोसिएशन के ईस्ट दिल्ली ब्रांच के अध्यक्ष डाक्टर कुमार गांधी ने ‘नवभारत गोल्ड’ को दिए एक इंटरव्यू में बताया था, ‘वैसे तो इस पेशे में बहुत इज्जत मिलती है, लेकिन कभीकभार ऐसे वाकिए हो जाते हैं, जो नहीं होने चाहिए. कई बार हमें न चाहते हुए भी औरत से उन मुद्दों पर बात करनी पड़ती है, जिन के बारे में वह सब से बात नहीं करती. उस दौरान हम मरीज के कंफर्ट का बहुत ध्यान रखते हैं.’
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