प्रदेश सरकार जिस तरह से धार्मिक प्रपंच का सहारा ले रही है, उस से बुनियादी मुद्दे पूरी तरह से हाशिए पर चले गए हैं. अयोध्या में दीवाली पूजन, चित्रकूट में मंदाकिनी नदी की आरती, आगरा में ताजमहल का विवाद, कांवड़ यात्रा पर फूल वर्षा, धार्मिक शहरों को प्रमुख पर्यटन क्षेत्र के रूप में प्रचार करना और मुख्यमंत्री के सरकारी आवास को गंगा जल से पवित्र कराना कुछ ऐसे प्रपंच हैं, जिन का प्रचार ज्यादा हो रहा है. सरकार बुनियादी मुद्दों पर भी केवल बातें ही कर रही है, पर विकास की किसी योजना को ले कर ठोस काम नहीं कर रही है.

अगर अयोध्या की बात करें, तो वहां के खर्च के संबंध में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि अयोध्या का खर्च संतमहात्माओं ने किया. सरकार ने कोई खर्च नहीं किया.

यह बात किसी के गले उतरने वाली नहीं है. अयोध्या में दीवाली की तैयारी एक हफ्ता पहले से राजधानी लखनऊ के अफसर अपनी निगरानी में करा रहे थे. अखबारों में जो बड़ेबड़े इश्तिहार छपे थे, उन का खर्चा क्या किसी संतमहात्मा ने दिया था?

किसी भी शहर में सड़क, बिजली, पानी का इंतजाम करना ही वहां का विकास करना नहीं होता है, बल्कि लोगों को रोजगार मिले, बेरोजगारी कम हो, लोग कामधंधे में लगें, इस से ही समाज में अमनचैन आता है. सड़कें कितनी ही अच्छी बन जाएं, अगर रोजगार नहीं होगा तो लोग अपराध करेंगे. अयोध्या का सच दीवाली के दिन नहीं दिखा. आयोजन की भव्य चकाचौंध में वह सच कहीं खो गया था.

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अयोध्या की दीवाली का कड़वा सच अगली सुबह तब दिखा, जब बच्चे घर में सब्जी बनाने के लिए जलाए गए दीयों में बचे तेल को एक जगह इकट्ठा कर रहे थे.

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