4 वर्ष पहले 15 अगस्त, 2014 को दिल्ली के लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी उद्घोषणा से लोगों को एकबारगी चौंका दिया था. सब के चहरे पर मुसकान थी, नारा था ‘मेरा खाता भाग्य विधाता.’ लोगों में आशा की किरण हिलोरें लेने लगी थी, 15  नहीं, तो 5 लाख रुपए तो मिल ही जाएंगे. जितने मुंह उतनी बातें होती थीं. केंद्र सरकार ने 28 अगस्त, 2014 को आधिकारिक तौर पर प्रधानमंत्री जनधन योजना के नाम से इस योजना का शुभारंभ कर दिया.

देखते ही देखते 5 सप्ताह के अंदर ही 5 करोड़ से अधिक खाते खोले जा चुके थे. इस बीच, खाते खोलने में जो अड़चनें आईं उन को दूर करने के लिए नियमों में ढिलाई दी गई, दस्तावेजों से समझौता किया गया. परिणामस्वरूप, अक्तूबर 2017 में वित्तीय सेवा विभाग के जारी आंकड़ों के अनुसार, 30.60 करोड़ लोगों ने इस योजना के तहत अपने खाते खुलवाए हैं और इन खातों में कुल 67,687.72 करोड़ रुपए जमा किए जा चुके हैं. वास्तव में गरीबों के लिए यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, इस में दोराय नहीं. उन के नाम एक खाता तो हो गया वरना वे महीनों बैंकों के चक्कर लगाते रहते थे खाता खुलवाने के लिए, फिर भी कागजी कार्यवाही पूरी नहीं कर पाते थे और फिर थकहार कर घर बैठ जाते थे.

अब सही बात यह है कि खाता खुल गया तो बैंकों ने उन की गाढ़ी कमाई पर कैंची चलाना चालू कर दिया है. मैसेज, आहरण, बचत खाते में निर्धारित जमा से कम की राशि आदि और न जाने कितने नियमों का हवाला बैंक वाले आएदिन इन खाताधारकों को देते रहते हैं और उन के खातों में जमा रुपयों पर कैंची चलाते रहते हैं. बैंकों की मनमानी आज गरीब व्यक्ति साहूकारों व सूदखोरों से कहीं ज्यादा, अपने बैंकों से पीडि़त है. ब्याज तो कम है लेकिन बैंकों का मासिक चार्ज बहुत ज्यादा है. अब मजदूरगरीब जाए तो कहां जाए. सूदखोरों से मुक्ति के लिए तो वह न्यायालय का दरवाजा खटखटा लेता था किंतु बैंकों की मनमानी लूट ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा. सरकार का शासकीय आदेश जीरो बैलेंस, निशुल्क रुपे कार्ड के नारे आदि धरे के धरे रह गए, जैसे भजनों से मिलने वाला सुख, शांति व समृद्धि. जनधन खाते के कुछ खातेदार ऐसे हैं जो 1,000-500 तो दूर, 100-200 रुपए भी जमा नहीं कर पा रहे हैं.

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