Indian Constitution: देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 अप्रैल को ‘अंबेडकर जयंती’ के मौके पर डाक्टर भीमराव अंबेडकर की जिस मूर्ति की पूजा कर रहे थे, उस पर फूलमाला चढ़ा रहे थे, उस मूर्ति के हाथ में संविधान है. इस का मतलब यह होता है कि अंबेडकर के साथसाथ हम संविधान की भी पूजा कर रहे हैं.
नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद जब पहली बार संसद में जा रहे थे, तो संसद की सीढि़यों के सामने लेट कर नतमस्तक हुए थे. इस के बाद संविधान के प्रति अपनी आस्था को दिखाने के लिए ‘संविधान दिवस’ भी मनाना शुरू किया.
साल 2024 के लोकसभा चुनाव के जब नतीजे आए, तो यह साफ संकेत मिल गया था कि संविधान के मुद्दे पर ही भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था. इस के बाद भाजपा संविधान और डाक्टर अंबेडकर को
ले कर सचेत हो गई.
11 जनवरी से 26 जनवरी के बीच ‘संविधान गौरव अभियान’ चलाया गया.
‘अंबेडकर जयंती’ पर इसी रणनीति के तहत भाजपा बड़ी संख्या में कार्यक्रम करा रही है. सवाल उठता है कि क्या केवल पूजा और सम्मान से बात बन जाएगी?
डाक्टर भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि भले ही संविधान कितना ही अच्छा हो, उसे लागू करने वाले लोग अच्छे नहीं हैं, तो वह भी बुरा साबित हो सकता है. अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला न केवल तमिलनाडु, बल्कि सभी राज्यों के लिए एक संवैधानिक चेतावनी भी है कि राज्यपालों को लोकतंत्र के पहरेदार की भूमिका में रहना चाहिए.
केंद्र सरकार को डाक्टर अंबेडकर की पूजा करने से बेहतर है कि वह उन के बनाए संविधान पर चले. आज संविधान और डाक्टर अंबेडकर जैसी ही हालत में महिलाएं भी पहुंच गई हैं. वैसे तो उन को लक्ष्मी बता कर पूजा जाता है, लेकिन अधिकार उन को नहीं दिए जाते हैं. संविधान ने लड़कियों को पिता की संपत्ति में बराबर का हक दिया है.
देश के कितने परिवारों ने अपने घर की महिलाओं को यह हक दिया? क्या सरकार ने कोई पहल की?
आज भी लड़कियों को पिता की संपत्ति अधिकार नहीं दिया जाता है. घर की मालकिन उस को कहा जाता है, पर मकान और बिजनैस पर नाम पुरुष के अधिकार में होता है स्टैंप डयूटी बचाने के लिए महिला के नाम रजिस्ट्री भले हो जाए, पर जमीन और मकान पर असल अधिकार आदमी का ही होता है.
जिस तरह से लक्ष्मी के रूप में औरतों को पूजा जाता है, उसी तरह से अंबेडकर और संविधान की पूजा तो होती है, लेकिन उस के बताए रास्ते पर चलते नहीं हैं.
समाज में दलितों की हालत अभी भी बहुत सोचने वाली है. उन को घोड़ी पर चढ़ने से रोका जाता है. मूंछें नहीं रखने दी जाती हैं. बारबार ‘मनुस्मृति’ का हवाला दिया जाता है. दलित इस समाज का हिस्सा नहीं हैं, यह जताने की कोशिश होती है. वह अंबेडकर की पूजा कर सकते हैं, लेकिन मंदिर में मूर्ति की पूजा करने से रोका जाता है.
इतना ही नहीं, दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामलों में भाजपा शासित राज्य उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार सब से ऊपर है. अनुसूचित जाति के खिलाफ साल 2022 में अत्याचार के सभी मामलों में से तकरीबन 97.7 फीसदी मामले 13 राज्यों में दर्ज किए गए, जिन में उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में सब से ज्यादा अपराध दर्ज किए गए.
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत नवीनतम सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, अनुसूचित जनजाति (एसटी) के खिलाफ ज्यादातर अत्याचार भी इन 13 राज्यों में केंद्रित थे, जहां साल 2022 में सभी मामलों में से 98.91 फीसदी मामले इन 13 राज्यों में से सामने आए.
उत्तर प्रदेश, राजस्थान, और मध्य प्रदेश में सब से ज्यादा मामले सामने आए.
अनुसूचित जाति (एससी) के खिलाफ कानून के तहत साल 2022 में दर्ज किए गए 51,656 मामलों में से उत्तर प्रदेश में 12,287 के साथ कुल मामलों का 23.78 फीसदी हिस्सा था. इस के बाद राजस्थान में 8,651 (16.75 फीसदी) और मध्य प्रदेश में 7,732 (14.97 फीसदी) थे.
अनुसूचित जाति के खिलाफ अत्याचार के मामलों की ज्यादा संख्या वाले अन्य राज्यों में बिहार 6,799 (13.16 फीसदी), ओडिशा 3,576 (6.93 फीसदी) और महाराष्ट्र 2,706 (5.24 फीसदी) थे. इन 6 राज्यों में
कुल मामलों का तकरीबन 81 फीसदी हिस्सा है.
साल 2022 के दौरान भारतीय दंड संहिता के साथसाथ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत पंजीकृत अनुसूचित जाति के सदस्यों के खिलाफ अत्याचार के अपराधों से संबंधित कुल मामलों (52,866) में से 97.7 फीसदी (51,656) मामले 13 राज्यों में हैं.
इसी तरह एसटी के खिलाफ अत्याचार के ज्यादातर मामले 13 राज्यों में केंद्रित थे. इस के तहत दर्ज 9,735 मामलों में से मध्य प्रदेश में सब से ज्यादातर 2,979 (30.61 फीसदी) मामले दर्ज किए गए.
राजस्थान में 2,498 (25.66 फीसदी) के साथ दूसरे सब से ज्यादा मामले थे, जबकि ओडिशा में 773 (7.94 फीसदी) दर्ज किए गए. ज्यादा संख्या में मामलों वाले अन्य राज्यों में 691 (7.10 फीसदी) के साथ महाराष्ट्र और 499 (5.13 फीसदी) के साथ आंध्र प्रदेश भी शामिल हैं.
कोर्ट से ले कर अपराध के आंकड़े तक बता रहे हैं कि कानून और संविधान का कितना पालन हो रहा है. ऐसे में केवल दिखावे के लिए डाक्टर अंबेडकर की मूर्ति पूजा से बदलाव नहीं आएगा.
देश में बदलाव तब आएगा जब दलित हो या औरतें उन को सही तरह से हक दिए जाएं. घरों में लड़कियों को आज भी खराब स्कूल में पढ़ने भेजा जाता है. उन के कैरियर को बढ़ाने के लिए पैसे खर्च करते समय घर वाले कई बार सोचते हैं.
शादीब्याह के मसलों में भी लड़कियों के हक न के बराबर हैं. औरत कितने बच्चे पैदा करेगी, यह तय करने का काम मर्द करता है. संविधान महिलाओं को पूरी आजादी देता है. समाज अभी भी छोटी सोच का परिचय देता है.
संविधान निर्माता डाक्टर भीमराव अंबेडकर को सच्ची श्रद्वांजलि वह होगी, जब सरकार उन के बनाए संविधान पर चले. उन की मूर्ति पर फूल चढ़ाने से कोई फायदा नहीं होने वाला है.