देश में बेरोजगारी का हाल यह है कि महाराष्ट्र में 8,000 कौंस्टेबलों की भरती के लिए 12,00,000 अर्जियां आई हैं. सरकार तो चाहती थी कि उन का एग्जाम भी औनलाइन हो जिस में इन अधपढ़े नौजवानों को किसी साइबर कैफे में जा कर सैकड़ों घंटे और सैकड़ों रुपए बरबाद करने ही थे और सरकार के पास मनमाने ढंग से फैसले करने का हक रहता. हो सकता है अब कागजपैन पर ही कौंस्टेबलों का एग्जाम हो.
कौंस्टेबलों का वेतन कोई ज्यादा नहीं होता. काम के घंटे बहुत ज्यादा होते हैं. वर्षों तक अफसरों की चाकरी करनी पड़ती है. रहने की सुविधा बहुत ही घटिया होती है, पर फिर भी नौकरी लग जाने पर रोब भी रहता है और ऊपरी कमाई भी होती है, इसीलिए 12 लाख दांव लगा रहे हैं.
इस तरह की भरतियों में सरकारी आदमियों की खूब मौज होती है. अर्जी देने वालों को लूटने का सिलसिला चालू हो जाता है. तरहतरह के सर्टिफिकेट औनलाइन एप्लीकेशन के साथ लगवाए जाते हैं जिन्हें जमा करने में खर्च होता है. जो रिजर्व कोटों से होते हैं उन्हें एससी, ओबीसी का सर्टिफिकेट बनवा कर लाने के लिए चक्कर काटने पड़ते हैं.
अर्जी ढंग से गई या नहीं, यह पता करना भी मुश्किल होता है. उस के बाद एकदम चुप्पी छा जाती है. महीनों पता ही नहीं चलता कि इन भरतियों का क्या हुआ. जिस ने अर्जी दी, वह आराम से बैठ कर सपने देखने लगता है जबकि उसे यह मालूम ही नहीं होता कि औनलाइन गड़बडि़यों का धंधा अलग चालू हो गया है.