पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, जिन्होंने जिंदगी का अधिकांश हिस्सा कांग्रेस के साथ गुजारा है, अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गोद में जा बैठने की तैयारी करते लगते हैं. उन्होंने संघ प्रमुख मोहन भागवत के निमंत्रण पर नागपुर जा कर स्वयंसेवकों को पाठ पढ़ाया. यह पाठ कांग्रेसी नहीं था. गनीमत यह रही कि उन्होंने न निकर पहनी, न ही काली टोपी लगाई. यह बात दूसरी है कि उन की इस तरह की फोटो संघभक्तों ने जारी कर दी. प्रणब मुखर्जी की बेटी ने पिता को इस तरह की चेतावनी पहले ही दे दी थी.
निकर पहनने के अलावा प्रणब मुखर्जी ने वह सबकुछ कर डाला जो नरेंद्र मोदी या लालकृष्ण आडवाणी नागपुर के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय में करते हैं. संघ संस्थापक केशव बालीराम हेडगेवार को श्रद्धांजलि दे डाली, संघ की सभा में खड़े हो कर ओमवादन कर डाला, मोहन भागवत का भाषण सुन डाला, स्वयंसेवकों की परेड देखी.
प्रणब मुखर्जी ब्राह्मण होने के नाते अगर यह कर रहे हैं तो कोई आश्चर्य नहीं है. हमारे देश का लगभग हर सवर्ण इस बात से सहमत है कि वर्णव्यवस्था उचित है, मुसलिमों का तुष्टीकरण नहीं होना चाहिए, भारत विश्वगुरु है, भारत के साथ भेदभाव हुआ है वरना वह अमेरिका की भांति अमीर और समृद्ध होता, हमारा ज्ञानविज्ञान सदियों पुराना है, हमारे देवीदेवता नैतिकता, सहृदयता, समभाव के प्रवर्तक रहे हैं, हमारा प्राचीन स्वर्णिम रहा है और आज यदि हम ग्रंथों को आंख मूंद कर मानें तो अवश्य फिर से विश्व के अग्रणी देश बन जाएंगे.
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत में राष्ट्र, राष्ट्रीयता व देशभक्ति का भाव यूरोप से सदियों पुराना है और उसे ही वसुधैव कुटुंबकम कहते हैं. वे यह भूल गए, जैसे सारे हिंदुत्ववादी भूल जाते हैं कि रामायण और महाभारतकाल से पहले भी दस्युओं को अलग, नीचा और संहार के योग्य माना जाता रहा है. आज उन दस्युओं की संतानें कौन हैं, पता नहीं, पर देवताओं की संतानों का हक जमाने वाला समाज का एक हिस्सा अपना पुश्तैनी अधिकार समझता है और रखता है.
संघ के कार्यक्रम में बहुवाद और विभिन्नताओं को स्वीकार करने की कोई जगह नहीं है और प्रणब मुखर्जी इस का उपदेश दे कर अगर यह समझें कि उन्होंने स्वयंसेवकों का विचारपरिवर्तन कर दिया, तो यह नितांत गलतफहमी है.
सहिष्णुता हमारी संस्कृति का हिस्सा है, यह कहना भी निरर्थक है क्योंकि हमारी संस्कृति ऊंचनीच को थोपने वाली वर्णव्यवस्था पर टिकी है जिस में हम किसी निम्नवर्ग वाले को अगर ऊंचे स्थान पर बैठाते हैं तो केवल स्वार्थवश या जब उस से हार जाते हैं.
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि हमारे देश में किसी पर कोई मत लादने की कोशिश की गई तो वह निरर्थक होगी. यह थोथी बात है जो मोहन भागवत को कतई मंजूर नहीं है. वे देश में पौराणिक राज ही चाहते हैं और जो उस के अंतर्गत नहीं आते या उसे नहीं मानते वे संघ की नजर में दूसरे दर्जे के नागरिक हैं या धर्मद्रोही हैं.
प्रणब मुखर्जी ने संघ के कार्यक्रम में क्यों हिस्सा लिया, यह रहस्य रहेगा.