एक युवा साधारण से दर्जी के यहां काम करने वाला, दिल्ली सहित कई शहरों में जा कर बीसियों लड़कियों और कुछ लड़कों का बलात्कार कर पाए यह घिनौनी हरकत न केवल डरा देने वाली है, इस समाज के अन्याय को सहने की गलत आदत की पुष्टि भी करती है. वह युवक तो अब कहता है कि उस ने 400-500 लड़कियों से जबरदस्ती की है पर पुलिस उस की निशानदेही पर केवल 15-20 तक पहुंच पाई है, क्योंकि वह युवक अनजान लड़कियों को पकड़ता था, उन्हें अकेले में ले जा कर दुराचार करता और छोड़ देता था. उसे खुद नहीं मालूम कि वे कहां रहती थीं.

इन लड़कियों के मातापिताओं ने मुंह सी रखे थे, यह ज्यादा भयावह है. इस तरह के दुर्जन होते हैं, इस का अंदाजा है पर उन के सताए लोग आज भी कानून व्यवस्था व सामाजिक मान्यताओं से इतना ज्यादा डरते हैं कि वे यातना का दुख सह लेते हैं पर हुए अपराध की सूचना नहीं देते.

आमतौर पर जेब कतरी जाए, चेन खींच ली जाए, घर में चोरी हो जाए, तो लोग तुरंत पुलिस तक पहुंच जाते हैं पर सैकड़ों मातापिता अपनी बच्चियों के साथ हुई बलात्कार की घटना की शिकायत पुलिस में यह सोच न करें कि कहीं उन की इज्जत पर बट्टा न लग जाए, यह सरकार की नाक काटने के बराबर है. यह कैसी सरकार है जिस ने इस सीरियल अपराध पर मुंह सी रखा है और जो सफाई मिल रही है वह छोटे इंस्पैक्टरों से मिल रही है.

साफ है हमारे यहां सरकारें राज करने आती हैं, राज चलाने नहीं. नेता चुनाव लड़ कर, जीत कर पद का लाभ उठाना चाहते हैं, कर्तव्य पूरा नहीं करना चाहते. यदि जनता को नेताओं व पुलिस पर भरोसा होता तो इन पीडि़तों में से आधे तो अपने क्षेत्र के नेताओं से मिलते और व्यथा सुनाते. लगता है आम आदमी को पूरा एहसास है कि सरकार तो क्या सरकार का सांसद, विधायक, पार्षद, सरपंच, पंच सब इस तरह राजनीति के स्विमिंग पूल में नहाने में व्यस्त हैं कि जनता की समस्याओं से कोई लेनादेना नहीं और उन के दरवाजे खटखटाने से कोई लाभ नहीं.

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