भारतीय जनता पार्टी ने पीपुल्स डैमोक्रैटिक पार्टी को धता बता कर जम्मूकश्मीर की साझा सरकार आखिर गिरा दी है. महबूबा मुफ्ती और नरेंद्र मोदी दोनों श्रीनगर की सरकार को चलाने में घुटन महसूस कर रहे थे और यह टूट काफी दिनों से दिख रही थी. सरकार चलाना वैसे भी इस इलाके में आसान नहीं क्योंकि मुसलिम बहुमत वाला यह राज्य हिंदू भारत से अपनापन जोड़ नहीं पाया है और आम जनता अपनी धार्मिक मनमानी के लिए लगातार कुरबानियां देने को तैयार है.
अब लगता है कि भाजपा इस सुलगती आंच पर पैट्रोल डाल कर 2019 की खीर पकाना चाहती है. देशभर में हिंदूमुसलिम तनाव पैदा करने में भाजपा के कट्टर नेताओं को कश्मीर की साझा सरकार मानसिक स्पीड ब्रेकर नजर आ रही थी. अब कश्मीर में मनमाने काम कर के केंद्र सरकार यह जता सकेगी कि देखो, हम ने कश्मीर को कैसे काबू में रख रखा है और 2019 में हमें ही वोट दो ताकि जो कट्टर हिंदू धर्म को न माने उसे भी वही देखना पड़े जो कश्मीरी देख रहे हैं.
भाजपा ने 2014 के बाद सोचा था कि उस का एकछत्र राज आ गया है और अलग धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के लोग अपनेआप नए चक्रवर्ती सम्राट के अश्वमेध घोड़े के आगे स्वयं को सुपुर्द कर देंगे. कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान में चुनाव व उपचुनावों में मिली हार ने साबित कर दिया है कि पौराणिक सरकार को बनाए रखने के लिए महाभारत का युद्ध तो लगातार जारी रखना पड़ेगा. जम्मूकश्मीर सरकार की बलि इसी कोशिश का पहला अनुष्ठान है.
अगर नरेंद्र मोदी और महबूबा मुफ्ती लेनेदेने की नीति में विश्वास रखते तो कोई कारण नहीं कि कश्मीर की जनता को मनाया नहीं जा सकता था. मुसलिम देश होने के कारण ही पाकिस्तान किसी का आदर्श नहीं बन जाता. बंगलादेश ने अपनी बंगाली संस्कृति को इसलामाबाद की मुसलिम सरकार से ज्यादा प्राथमिकता दी थी. पाकिस्तान को खुद सिंध, ब्लूचिस्तान और कई छोटे इलाकों को बांधे रखने में दिक्कत होती रहती है. सिर्फ धर्म के कारण कश्मीरी जनता भारत से विद्रोह नहीं कर सकती. जो गुस्सा कश्मीरियों को है उसे नरेंद्र मोदी को सुलझाने का अनूठा मौका मिला था जो उन्होंने गंवा दिया है.
अब कश्मीर तो जल ही सकता है, उस की आग का फायदा देशभर में हिंदूमुसलिम तनाव फैलाने में करा जाए तो आश्चर्य न होगा. विपक्षी दलों को ऐसी हालत में मुसलिम अल्पसंख्यकों का साथ देना होगा और भाजपा फिर उन पर हिंदू विरोधी आरोप जड़ कर 2019 में वोट बटोर सकती है. न देश की जनता के पास, न विपक्षी दलों के पास ऐसी किसी नीति का कोई ठोस बचाव है. वे यही उम्मीद कर सकते हैं कि अपने खुद के आर्थिक विकास में व्यस्त जनता के पास निरर्थक हिंदूमुसलिम विवाद में उलझने का समय और शक्ति नहीं होगी.