राहुल गांधी ने कांग्रेस पर खासी पकड़ बना ली है. गुजरात के चुनावों में जीत तो नहीं मिली पर हार अपमानजनक न थी. राजस्थान के उपचुनावों में कांग्रेस को मिली भारी सफलता ने राहुल में विश्वास की गोली का काम किया है.
जब राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने थे तो आम जनता या कांग्रेसियों को आपत्तियां होतीं, तो बात कुछ गंभीर होती पर यहां तो सारी आपत्तियां भारतीय जनता पार्टी को थीं जो कुछ अजीब लग रहा है. यह तो ठीक है कि हिंदू धर्म की खराब परंपराओं को निभाने में दक्ष भाजपा हर दूसरे के निजी मामले में टांग अड़ाने का मौलिक हक रखती है पर चोरचोर मौसेरे भाई होते हैं और एकदूसरे को तो बख्शते ही हैं.
भाजपा आज देश की बड़ी नहीं, बल्कि बहुत बड़ी पार्टी है, उसे कांग्रेस जैसी छोटी पार्टी से डर नहीं लगना चाहिए और उसे अपने हिसाब से जीने का हक देना चाहिए पर आदत से मजबूर महान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ले कर झुमरीतलैया की कच्ची बस्ती के मंदिर के पुजारी तक राहुल पर कमैंट करते रहे हैं व लोकतंत्र की हत्या होने का बेजा राग अलापते रहे हैं.
कांग्रेस जेबी पार्टी है, इस में शक नहीं है पर यह फिर भी लोगों को उसी तरह मान्य है जैसे 15वीं शताब्दी के मामलों को सिर पर उठाए चल रही भारतीय जनता पार्टी मान्य है. जब आप के चेहरे पर खुद कालिख पुती हो तो दूसरे के चेहरे के निशान दिखाना बड़प्पन नहीं, खीझ जाहिर करता है.
राहुल गांधी से भाजपा भयभीत रही है, यह सच है. वर्ष 2014 से पहले भाजपाइयों का आक्रमण सोनिया गांधी या मनमोहन सिंह पर इतना नहीं था जितना राहुल गांधी पर था. शायद उन की रणनीति थी कि यदि राहुल गांधी को लगातार निशाने पर रखा जाएगा तो वे घबरा कर मैदान छोड़ देंगे. अफसोस यह है कि हिंदू समाज सुधारकों की तरह राहुल गांधी भी कट्टरपंथियों का मुकाबला करते रहे.
पार्टियों में लोकतंत्र एक आदर्श व्यवस्था है पर दुनियाभर में इस के नुकसान भी हुए हैं. आज अमेरिका में इस आंतरिक लोकतंत्र के कारण न डैमोक्रेटिक पार्टी में, न रिपब्लिकन पार्टी में सही नेतृत्व है. इंगलैंड की कंजर्वेटिव पार्टी व लेबर पार्टी दोनों, नेताओं के अभाव से ग्रस्त हैं. फ्रांस के नएनवेले राष्ट्रपति को अपनी नईनवेली पार्टी से काम चलाना पड़ रहा है. जरमनी की चांसलर एंजेला मर्केल की धाक यूरोप व अमेरिका की राजधानियों में तो है पर वोटरों के दिलों में नहीं.
परिवारवाद आदर्श नहीं है पर इस के पर्याय शायद कम हैं. राजनीतिक माहौल में पले युवा सफल नेता बन जाते हैं क्योंकि उन के सैकड़ों से संबंध होते हैं. भारतीय जनता पार्टी में दूसरीतीसरी पीढ़ी के दसियों नेता ऐसे हैं जिन के पुरखे राजनीति में थे और राजनीति ही उन का मुख्य व्यवसाय है. लोकतंत्र परिवारों के सही लोगों को मान्यता देता है और उन पर आपत्ति करना निरर्थक सा है क्योंकि जब भी परिवार नहीं होता, ‘टीना’ फैक्टर यानी ‘देयर इज नो अल्टरनेटिव’ दिखने लगता है.
भारतीय जनता पार्टी की परेशानी यह है कि उस के पास आज नरेंद्र मोदी का पर्याय नहीं है जबकि कांग्रेस के पास राहुल गांधी जैसा पर्याय है.