देश में अब 2 काफी बड़ी पार्टियां तो रहेंगी ही, यह गुजरात के और राजस्थान व मध्य प्रदेश के उपचुनावों ने साबित कर दिया है. भारतीय जनता पार्टी का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना तो अब साकार होता नजर नहीं आ रहा. राजस्थान में 3 उपचुनाव सीटें भाजपा से छीन लेने के बाद मध्य प्रदेश में 2 सीटों पर अपना कब्जा बरकरार रखते हुए कांग्रेस ने जता दिया है कि उस के पैर कमजोर हैं पर कटे नहीं हैं.

भारतीय जनता पार्टी 2014 में आंधीतूफान की तरह आई और लोगों ने सोचा कि बदलाव का दौर शुरू होगा. कुछ बदला तो पर यह बदला लेने की नीयत का था. भारतीय जनता पार्टी दूसरे धर्मों, दूसरी जातियों, दूसरी सोच वालों से सैकड़ों सालों का बदला लेने पर उतारू हो गई. नोटबंदी के नाम पर नोट तक बदल डाले. जीएसटी से टैक्स जमा करने का तरीका बदल डाला. पर यह बदलाव नए की ओर नहीं और बहुत पुराने की ओर का था.

भारतीय जनता पार्टी से जिस सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त देश की उम्मीद थी वह नहीं आया. उस की जगह आ गया गलीगली में पेशवाई युग का कहर और तुगलकी युग का मनमरजी राज. जनता को अच्छे दिन तो मिले नहीं हां पर जो पहले से अच्छे थे उन की पौबारह दिखने लगी. न खाऊंगा न खाने दूंगा का झूठ दिखने लगा. गौरक्षा के नाम पर गुंडई बढ़ गई और इस का शिकार दलित और औरतें होने लगी हैं.

चुनाव किसी सरकार के अच्छे या खराब होने की निशानी नहीं है पर इन के कारण बहुत सी मनमानियां रुकती हैं. जब से उपचुनावों और राज्य सरकारों का दौर शुरू हुआ है, भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के तेवर ढीले पड़े हैं. उस की सरकार भारीभरकम वादों के बावजूद कोई किला फतह नहीं कर पा रही है. जनता का रुख भी मिलाजुला है.

सरकारें लड़खड़ाती हों तो भी कैसे भी दौर में चलती ही रहती हैं. राजाओं के दौर में भी एक कमजोर राजा की सरकार भी चल ही जाती थी क्योंकि जनता खुद चाहती है कि कोई आका बना रहे, कोई सारे सिस्टम को संभाले रखे. भारतीय जनता पार्टी तो आज भी करोड़ों लोगों की मनचाही पार्टी है चाहे इस के पीछे जातीय स्वार्थ क्यों न हों. कांग्रेस व राज्यों की दूसरी पार्टियां आज भी भारतीय जनता पार्टी जैसा कैडर नहीं बना पा रहीं और उन का छिपा ढांचा भाजपाई सा ही है. जहां सत्ता में हैं वे वहां भी हर घर न्याय नहीं दे पा रहीं, न कांग्रेस के राज्यों में न कहीं और गैरभाजपाई राज्यों से ज्यादा सुखचैन है.

जहां भी कांग्रेस जीती है और भाजपा हारी है वहां बदलाव लाने की इच्छा पर वोट नहीं पड़े. बस अपना गुस्सा दिखाने के लिए वोट पड़े हैं. यह अच्छा ही है. भारत को चीन की तरह का शी जिनपिंग भी नहीं चाहिए जो सदासदा के लिए सत्ता में बने रहने की तैयारी कर रहा है.

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