अमेरिका के खब्ती नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चीन को विश्वपटल पर एशियाई आर्थिक साम्राज्य बनाने का आमंत्रण दे रहे हैं. 12वीं सदी में चीन के पड़ोसी मंगोलिया के मंगोलों ने यूरोप के बड़े हिस्से पर राज किया था. अब चीन यही बात दोहरा रहा है. उस ने अपने बंदरगाह भीवू से 8,000 मील का सफर कर, सामान से लदी ट्रेन को लंदन 18 दिनों में पहुंचा कर दर्शा दिया है कि यूरोप चीन के लिए दूर नहीं है. चीन की आर्थिक विकास की दर अब पहले की तरह 12-13 प्रतिशत नहीं है पर ऊंचे स्तर पर 6-7 प्रतिशत की दर भी कम नहीं है क्योंकि यूरोप और अमेरिका में विकास दर 1-2 प्रतिशत है और आर्थिक विकास में प्रति व्यक्ति आय का चीनियों का यूरोपीयों से फासला भी कम होता जा रहा है.

चीन की उन्नति के पीछे उस का इतिहास और परंपराएं भी हैं. चीन हमेशा नई चीजें खोजता रहा है. अंगरेजों ने उसे गुलाम बनाने की कोशिश की और वे बीजिंग तक पहुंच गए पर वे व्यापार का हक पाने से ज्यादा कुछ न कर पाए. चीन मंगोलों से हारा, जापान से हारा पर पश्चिमी देश उस पर हावी न हो पाए क्योंकि चीन में कर्मठता व नई सोच की कमी नहीं रही.

चीन ने नई तकनीक को बखूबी समझा और धार्मिक पचड़ों में न पड़ कर विकास की राह पर चला. आज हालत यह है कि भारतीय युवा अमेरिका और यूरोप जा रहे हैं जबकि चीनी अब चीन लौट रहे हैं.

चीन की प्रगति उस तरह की है कि मूर्ख के हाथों में फंसा अमेरिका जल्दी ही उस से पिछड़ जाए और चीन ही विश्व का नेता बन जाए तो बड़ी बात नहीं. यूरोप को एहसास होने लगा है कि यदि रूस ने एक बार फिर यूरोप पर आक्रमण  किया तो उसे अब अमेरिका नहीं, चीन का मुंह देखना होगा क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप और रूसियों की तो चुनावों से पहले ही सांठगांठ शुरू हो गई थी.

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