आजादी के 70 वर्षों बाद आज भी दलित समुदाय जातिगत भेदभाव के खिलाफ न्याय पाने के लिए आक्रोशित है. अनुसूचित जाति, जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम को ले कर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में दलित और आदिवासी संगठनों का गुस्सा पहली बार व्यापक स्तर पर सामने आया.

2 अप्रैल को आयोजित किया गया भारत बंद हिंसा में बदल गया. देशभर में प्रदर्शन हुए. इस दौरान उत्तर भारत के कई राज्यों में हुए उपद्रवों के दौरान एक दर्जन लोगों की जानें चली गईं और करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ. राज्यों में फैली हिंसा पर काबू पाने के लिए सुरक्षा बल तैनात किए गए.

दलितों के इस आंदोलन के विरोध में दूसरी जातियां अब आरक्षण के विरोध में आंदोलन की तैयारी में हैं. ऐसे में दलितों, पिछड़ों और सवर्णों के बीच मौजूदा दरारें और चौड़ी दिखने लगी हैं.

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दरअसल, महाराष्ट्र में शिक्षा विभाग के स्टोरकीपर ने राज्य के तकनीकी शिक्षा निदेशक सुभाष काशीनाथ महाजन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. शिकायत में आरोप लगाया गया था कि महाजन ने अपने मातहत 2 अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही किए जाने पर रोक लगा दी, जिन्होंने उस की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में जातिसूचक टिप्पणी की थी.

पुलिस ने जब दोनों अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए उन के वरिष्ठ अधिकारी महाजन से इजाजत मांगी तो वह नहीं दी गई. इस पर पुलिस ने महाजन पर भी केस दर्र्ज कर लिया.

5 मई, 2017 को काशीनाथ महाजन एफआईआर खारिज कराने कोर्ट पहुंचे पर हाईकोर्ट ने उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया. बाद में महाजन ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

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