टीकाकरण और जांच में उत्तर प्रदेश ने पकड़ी रफ्तार

लखनऊ . उत्तर प्रदेश के जनपदों में कराए गए सीरो सर्वे के शुरुवाती नतीजे सकारात्मक आए हैं. प्रदेश में कराए गए सीरो सर्वे के शुरुआती नतीजों के मुताबिक सर्वेक्षण में लोगों में हाई लेवल एंटीबॉडी की पुष्टि हुई है. बता दें कि प्रदेश में चार जून से सभी जनपदों में सीरों सर्वे को शुरू किया गया था  सीरो सर्वे प्रदेश के सभी 75 जिलों में किया गया. सर्वे के जरिए किस जिले के किस क्षेत्र में कोरोना का कितना संक्रमण फैला और आबादी का कितना हिस्सा संक्रमित हुआ इसकी पड़ताल इस सर्वे से की गई. इसके साथ ही इस सर्वे के जरिए कितने लोगों में कोरोना से लड़ने के लिए एंटीबाडी बन चुकी है इसकी जानकारी एकत्र की गई है. ऐसे में सीरो सर्वे के शुरुवाती नतीजे सकारात्मक आना प्रदेशवासियों के लिए राहत भरी खबर है.

टीकाकरण और जांच में रफ्तार पकड़ते हुए नए वेरिएंट डेल्टा प्लस की जांच को अनिवार्य करते हुए युद्धस्तर पर कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के लिए जमीनी स्तर पर तैयारियों को अंतिम रूप प्रदेश में दिया जा रहा है. प्रदेश में एक्टिव केस की संख्या में कमी होने की बावजूद भी प्रदेश में ट्रिपल-टी की रणनीति पर कार्य किया जा रहा है. प्रदेश में संक्रमण दर 0.1 प्रतिशत से भी कम स्तर पर आ चुकी है, जबकि रिकवरी रेट 98.5 प्रतिशत पहुंच गया है. बता दें कि ज्यादातर जिलों में संक्रमण के नए केस इकाई की संख्या  में दर्ज किए जा रहे हैं, तो 50-52 से अधिक जिलों में 50 से कम एक्टिव केस ही रह गए हैं. प्रदेश में अब कुल एक्टिव केस की संख्या 3,423 है.

पिछले 24 घंटों में एक ओर जहां दो लाख 69 हजार 272 सैम्पल की जांच की गई, वहीं मात्र 226 नए पॉजिटिव केस सामने आए. उत्तर प्रदेश में अब तक 05 करोड़ 65 लाख 40 हज़ार 503 कोविड टेस्ट किए जा चुके हैं. प्रदेश में अब तक कुल 16 लाख 79 हजार 416 प्रदेशवासी कोरोना से लड़ाई जीत कर स्वस्थ हो चुके हैं.

सितंबर में हुआ था सीरो सर्वे

कोरोना की पहली लहर के दौरान पिछले साल सितंबर में 11 जिलों में सीरो सर्वे कराया गया था. यह सर्वे लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, गोरखपुर, आगरा, प्रयागराज, गाजियाबाद, मेरठ, कौशांबी, बागपत व मुरादाबाद में हुआ था.

मिशन जून के तहत निर्धारित समय से पाया यूपी ने लक्ष्य

मिशन जून के तहत एक माह में एक करोड़ प्रदेशवासियों के टीकाकरण के निर्धारित लक्ष्य को यूपी सरकार ने 24 जून को ही प्राप्त कर लिए. निशुल्क टीकाकरण अभियान के तहत प्रदेश में अब  प्रतिदिन सात लाख से अधिक डोज दी जा रही हैं. अब तक 02 करोड़ 90 लाख से अधिक वैक्सीन डोज लगाए जा चुके हैं. करीब 42 लाख लोगों ने टीके के दोनों डोज प्राप्त कर लिए हैं. एक जुलाई से हर दिन न्यूनतम 10 लाख लोगों को टीका-कवर देने का लक्ष्य यूपी सरकार ने निर्धारित किया है. विकास खंडों को क्लस्टर में बांटकर वैक्सीनेशन की नीति के अच्छे परिणाम प्रदेश में देखने को मिले हैं. पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर यह एक तिहाई विकास खंडों में लागू है  अब सरकार जल्द ही एक जुलाई से इसे पूरे प्रदेश में लागू करेगी.

योगी सरकार ने शिल्पियों के हुनर दी अंतर्राष्ट्रीय पहचान

वाराणसी. योगी  सरकार ने देश के शिल्पियों के हुनर को जीआई उत्पाद के रूप में विश्व में पहचान दिलाई है. जिससे  कोरोना काल में भी जीआई उत्पादों पर लोगों का भरोसा रहा और  मांग बनी  रही. लॉकडाउन में जब दुकानें बंद रही तब भी इस उत्पाद की  बिक्री देश और विदेशों  में ऑनलाइन  माध्यम से होती रही. वाराणसी के एक उद्यमी ने योगी सरकार के स्टार्टअप योजना का लाभ उठाते हुए कोविड काल में जीआई उत्पादों का लाखों का क़ारोबार कर लिया है. आप को जानकर ताज़्जुब होगा की ये कोराबार सिर्फ़ ऑनलाइन हुआ है. प्रतीक बी सिंह नाम के इस युवा उद्यमी के वेब साइट पर सिर्फ जीआई उत्पाद ही बिकते है. लेकिन अब प्रतीक ने कुछ ओडीओपी उत्पादों को भी ऑनलाइन प्लेटफार्म देना शुरू किया  है.

आईएएस बनने की चाह रखने वाले इस युवा को स्टार्टअप योजना ने आसमान में उड़ने की राह दिखा दी है. अब प्रतीक उन हुनरमंद लोगों को भी प्लेटफार्म दे रहे हैं, जिन्होंने अपने हुनर का लोहा पूरी दुनिया से  मनवाया है. 370 जीआई उत्पादों में से देश के 299 जीआई उत्पादों (जिनमे से  उत्तर प्रदेश से अकेले 27 जीआई उत्पाद है)  को एक जग़ह शॉपिंगकार्ट 24 नामक इ -कॉमर्स की साईट पर लाकर भारत के हस्तकला शिल्पियों की  हुनर को पूरे विश्व में पहुँचा रहे है. खाने, सजाने, संगीत, खिलौने, पहनने से लेकर हर रोज़ इस्तेमाल होने वाली जीआई  उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री देश और विदेशो में खूब हो रही है. वाराणसी का लकड़ी का ख़िलौना, बनारसी साड़ी, गुलाबी मीनाकारी , पंजादारी, ज़री जरदोजी , सिद्धार्थ नगर का काला नमक चावल, गोरखपुर का टेराकोटा, गाज़ीपुर की वाल हैंगिंग आदि उत्पादों की अमेरिका समेत कई देशों में भारी मांग है. जीआई उत्पाद की ख़ास बात ये होती  कि ये सभी उत्पाद हैंडलूम व हैंडीक्राफ्ट उत्पाद होते हैं.

प्रतीक ने बताया कि उन्होंने 2016 में  अपनी स्टार्टअप कंपनी शुरु की थी. उसके बाद जीआई उत्पादों को धीरे-धीरे ऑनलाइन प्लेटफार्म पर लाना शुरू किया. कोरोना काल में लॉकडाउन ने जब दुकानें खुलना बंद हुई तो प्रतीक ने ऑनलाइन बाज़ार का दरवाजा दुनिया के लिए खोल दिया. प्रतीक अप्रैल से अब तक करीब 7 लाख का जीआई उत्पाद देश और विदेशों  में बेच चुके हैं. प्रतीक ने बताया कि पहले  काशी के जीआई टैगिंग प्राप्त उत्पादों को ऑनलाइन बेचना शुरू किया. फिर वो यूपी के 27 प्रोडक्ट्स को ऑनलाइन  प्लेटफार्म पर लेकर आए. इनकी कंपनी से  डिपार्टमेंट ऑफ़ प्रमोशन ऑफ़ इंडस्ट्रीज़ एंड इंटरनल ट्रेड( DPIIT ) से  मान्यता प्राप्त है. जिससे ई-कॉमर्स में मदद मिलती  है. अपने कस्टमर के लिए ये कंपनी हुनरमंद कलाकारों के लाइव प्रदर्शन भी करवाती है. जिसे बाद में सोशल मीडिया के माध्यम से उनकी कला को और लोगों तक पहुंचने में भी मदद मिलती है. शिल्पियों को ट्रिपल “ई” एजुकेट ,एम्पॉवर,एनरिच  के फॉर्मूले से समृद्ध  करते है. जीआई ( जियोग्राफिकल  इंडिकेशन) जीआई उत्पाद यानी भौगोलिक संकेतक या जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऐसे उत्पादों होते है  जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है. इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है. इस तरह का संबोधन उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का एहसास देता है.

कोरोना काल में कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं का ‘सहारा’ बनी योगी सरकार

लखनऊ . मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर यूपी में कुपोषण के खात्मे के लिए पोषण अभियान चलाया जा रहा है. इस अभियान में कुपोषितों को पोषण युक्त आहार मिल रहा है. वहीं, गांवों में काम कर रही स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को रोजगार भी मिला है. कोरोना काल में भी कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं का ‘सहारा’ योगी सरकार बनी है.

सीएम योगी के निर्देश पर प्रदेश से कुपोषण के खात्मे के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत संचालित स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं भी जुटी हैं. प्रदेश के 75 जिलों के सभी विकास खंडों में 63,000 स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं द्वारा कोटेदार के यहां से ड्राई राशन, गेहूं, चावल और नाफेड से मिले चना, दाल, एडिबले आयल का उठान कर उसकी पैकिंग की जा रही है. छह माह से तीन वर्ष तक के बच्चों, तीन से छह साल तक के बच्चों, गर्भवती एवं धात्री महिलाओं, अति कुपोषित बच्चों और किशोरी बालिकाओं के कुल 1,47,99,150 लाभार्थियों के लिए 1,64,714 आंगनबाड़ी केन्द्रों से ड्राई राशन वितरित किया जा रहा है. सरकार की ओर से शुरू की गई ड्राई राशन परियोजना से करीब 6,30,000 महिलाओं को रोजगार भी मिला है.

राज्य सरकार कोरोना काल में भी कुपोषण की शिकार मां, बच्चे और लड़कियों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रही है. बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग को इसके लिए सरकार ने महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है. प्रदेश में आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों और स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को फील्ड में कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं को पोषक आहार वितरण में लगाया गया है. पोषण का लाभार्थियों को वितरण के लिए ऑनलाइन मॉनीटरिंग भी की जा रही है.

3060 महिलाओं को और मिलेगा रोजगार, आय में होगी वृद्धि

रेसिपी बेस्ट टेक होम राशन के लिए प्रदेश के 43 जिलों के 204 विकास खंडों में उत्पादन ईकाई की स्थापना कर 15 से 20 महिलाओं द्वारा रेसिपी तैयार कर आंगनबाड़ी केंद्रों में वितरित किया जाना है. प्रथम चरण में फतेहपुर के विकास खंड मलवां और उन्नाव के विकास खंड बीघापुर में उत्पादन ईकाई की स्थापना की गई है. शेष 202 विकास खंडों में भी जल्द उत्पादन ईकाई की स्थापना होने वाली है. हर ईकाई में 15 से 20 महिलाएं काम करेंगी, जिससे करीब 3060 महिलाओं को रोजगार मिलेगा और उनकी आय में वृद्धि होगी.

सरकार के लगातार प्रयासों से कुपोषण में आ रही कमी

योगी सरकार ने कोरोना काल में कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं को पोषण युक्त आहार पहुंचाने के लिए हाल ही में तीन महीने की राशि जारी की है. कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं को अनाज, दाल, घी और दूध पाउडर बांटा जाता है. सरकार के लगातार किए जा रहे प्रयासों से गांवों में लगातार कुपोषण में कमी आ रही है.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी सराहा ‘यूपी मॉडल’

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण से लोगों तथा बच्चों को बचाने और कोरोना महामारी पर अंकुश लगाने के लिए प्रदेश की सरकार ने जो मॉडल अपनाया है उसका अब बॉम्बे हाईकोर्ट भी कायल हो गया हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) और देश का नीति आयोग कोविड प्रबंधन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के ‘यूपी मॉडल’ की तारीफ कर चुका है. आयोग ने यूपी के इस मॉडल को अन्य राज्यों के लिए नज़ीर बताया है. वही बॉम्बे हाईकोर्ट ने यूपी मॉडल के तहत बच्चों को कोरोना से बचाने के लिए किए गए प्रबंधों का जिक्र करते हुए वहां की सरकार से यह पूछा है कि महाराष्ट्र सरकार यहां ऐसा करने पर विचार क्यों नहीं करती?

यूपी सरकार ने कोरोना संक्रमण से बच्चों का बचाव करने के लिये सूबे के हर बड़े शहर में 50 से 100 बेड के पीडियाट्रिक बेड (पीआईसीयू) बनाने का फैसला किया है. यूपी सरकार के इस फैसले को डॉक्टर बच्चों के लिये वरदान बता रहे हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बच्चों को बीमारी से बचाने को लेकर हमेशा ही बेहद गंभीर रहे हैं. इंसेफेलाइटिस जैसी जानलेवा बीमारी से बच्चों को बचाने के लिए उन्होंने इस बीमारी के खात्मे को लेकर जो अभियान चलाया उससे समूचा पूर्वांचल वाकिफ हैं.

इसी क्रम में जब मुख्यमंत्री कोरोना संक्रमण से लोगों को बचाने के लिए ट्रिपल टी यानि ट्रेस, टेस्ट और ट्रीट की रणनीति तैयार करा रहे थे, तब ही उन्होंने कोरोना संक्रमण से बच्चों को बचाने के लिए चिकित्सा विशेषज्ञों को अलग से एक योजना तैयार करने का निर्देश दिया. जिसके तहत ही चिकित्सा विशेषज्ञों ने उन्हें बताया कि कोरोना संक्रमण से बच्चों बचाने और उनका इलाज करने के लिए हर जिले में आईसीयू की तर्ज पर सभी संसाधनों से युक्त पीडियाट्रिक बेड की व्यवस्था अस्पताल में की जाए. चिकित्सा विशेषज्ञों की इस सलाह पर मुख्यमंत्री ने सूबे के सभी बड़े शहरों में 50 से 100 बेड के पीडियाट्रिक बेड (पीआईसीयू) बनाने के निर्देश दिये हैं. यह बेड विशेषकर एक महीने से ऊपर के बच्चों के लिए होंगे. इनका साइज छोटा होगा और साइडों में रेलिंग लगी होगी. गंभीर संक्रमित बच्चों को इसी पर इलाज और ऑक्सीजन की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी.

सूबे में बच्चों के इलाज में कोई कमी न आए इसके लिए सभी जिलों को अलर्ट मोड पर रहने के लिये कहा गया है. इसके तहत ही मुख्यमंत्री अधिकारियों को बच्चों के इन अस्पतालों के लिए मैन पावर बढ़ाने के भी आदेश दिये हैं. मुख्यमंत्री ने कहा है कि जरूरत पड़े तो इसके लिए एक्स सर्विसमैन, रिटायर लोगों की सेवाएं ली जाएं. मेडिकल की शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों को ट्रेनिंग देकर उनसे फोन की सेवाएं ले सकते हैं. लखनऊ में डफरिन अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सलमान खान ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से तत्काल सभी बड़े शहरों में 50 से 100 पीडियाट्रिक बेड बनाने के निर्णय को बच्चों के इलाज में कारगर बताया है. उन्होंने बताया कि एक महीने से ऊपर के बच्चों के लिए पीआईसीयू (पेडरिएटिक इनटेन्सिव केयर यूनिट), एक महीने के नीचे के बच्चों के उपचार के लिये एनआईसीयू (नियोनेटल इनटेन्सिव केयर यूनिट) और महिला अस्पताल में जन्म लेने वाले बच्चों के लिये एसएनसीयू (ए सिक न्यू बार्न केयर यूनिट) बेड होते हैं. जिनमें बच्चों को तत्काल इलाज देने की सभी सुविधाएं होती हैं.

बच्चों के इलाज को लेकर यूपी के इस मॉडल का खबर अखबारों में छपी. जिसका बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी की खंडपीठ ने संज्ञान लिया. और बीते दिनों  इन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने कहा कि यूपी में कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों को खतरा होने की आशंका के चलते एक अस्पताल सिर्फ बच्चों के लिए आरक्षित रखा गया है. महाराष्ट्र सरकार यहां ऐसा करने पर विचार क्यों नहीं करती. महाराष्ट्र में दस साल की उम्र के दस हजार बच्चे कोरोना का शिकार हुए हैं. जिसे लेकर हो रही सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने यह महाराष्ट्र सरकार से यह सवाल पूछा हैं.

जाहिर है कि हर अच्छे कार्य की सराहना होती हैं और कोरोना से बच्चों को बचाने तथा उनके इलाज करने की जो व्यवस्था यूपी सरकार कर रही है, उसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने उचित माना और उसका जिक्र किया. ठीक इसी तरह से विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और नीति आयोग ने भी कोविड प्रबंधन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के ‘यूपी मॉडल’ की जमकर तारीफ की है. इस दोनों की संस्थाओं ने कोरोना मरीजों का पता लगाने और संक्रमण का फैलाव रोकने के किए उन्हें होम आइसोलेट करने को लेकर चलाए गए ट्रिपल टी (ट्रेस, टेस्ट और ट्रीट) के महाअभियान और यूपी के ऑक्सीजन ट्रांसपोर्ट ट्रैकिंग सिस्टम की खुल कर सराहना की. नीति आयोग ने तो यूपी के इस मॉडल को अन्य राज्यों के लिए भी नज़ीर बताया है. यह पहला मौका है जब डब्लूएचओ और नीति आयोग ने कोविड प्रबंधन के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की देखरेख में तैयार कराए गए यूपी मॉडल की सराहना की है. और उसके बाद अब बॉम्बे हाईकोर्ट बच्चों का इलाज करने को लेकर यूपी मॉडल’  का कायल हुआ है.

ब्लैक फंगस से निपटने को योगी सरकार ने कसी कमर

लखनऊ . उत्तर प्रदेश में कोविड संक्रमण की धीमी होती रफ्तार के बीच पैर-पसारते ब्लैक फंगस नाम की बीमारी से बचाव की तैयारी सरकार ने शुरू कर दी है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर एसजीपीजीआई, लखनऊ में ब्लैक फंगस के मरीजों के उपचार की दिशा तय करने के लिए 12 सदस्यीय वरिष्ठ चिकित्सकों की टीम गठित कर दी गई है. इस टीम से अन्य चिकित्सक मार्गदर्शन भी ले सकेंगे.

एसजीपीजीआई के निदेशक डॉ. आरके धीमन की अध्यक्षता में विशेष टीम ने प्रदेश के विभिन्न सरकारी व निजी मेडिकल कॉलेजों, अस्पतालों के डॉक्टरों को इलाज के बारे में प्रशिक्षण दिया. ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यशाला में डॉक्टरों को ब्लैक फंगस के रोगियों की पहचान, इलाज, सावधानियों आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई.

इंतजाम में देरी नहीं: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में ब्लैक फंगस की स्थिति की जानकारी लेते हुए इस मामले में ‘प्रो-एक्टिव’ रहने के निर्देश दिए है. सीएम योगी ने कहा कि विशेषज्ञों के मुताबिक कोविड से उपचारित मरीजों खासकर अनियंत्रित मधुमेह की समस्या से जूझ रहे लोगों में ब्लैक फंगस की समस्या देखने मे आई है. उन्होंने स्वास्थ्य विभाग और चिकित्सा शिक्षा विभाग को निर्देश दिए कि विशेषज्ञों के परामर्श के अनुसार इसके उपचार में उपयोगी दवाओं की उपलब्धता तत्काल सुनिश्चित कराई जाए. उन्होंने कहा है कि लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए आवश्यक गाइडलाइन जारी कर दी जाएं. सभी जिलों के जिला अस्पतालों में इसके उपचार की सुविधा दी जाए.

प्लास्टिक सर्जन डॉ. सुबोध कुमार सिंह बताते हैं कि म्यूकर माइकोसिस अथवा ब्लैक फंगस, चेहरे, नाक, साइनस, आंख और दिमाग में फैलकर उसको नष्ट कर देती है. इससे आँख सहित चेहरे का बड़ा भाग नष्ट हो जाता है और जान जाने का भी खतरा रहता है. इसके लक्षण दिखते ही तत्काल उचित चिकित्सकीय परामर्श लेना बेहतर है. लापरवाही भारी पड़ सकती है.

इन मरीजों को बरतनी होगी खास सावधानी:

1- कोविड इलाज के दौरान जिन मरीजों को स्टेरॉयड दवा जैसे, डेक्सामिथाजोन, मिथाइल प्रेड्निसोलोन इत्यादि दी गई हो.

2- कोविड मरीज को इलाज के दौरान ऑक्सीजन पर रखना पड़ा हो या आईसीयू में रखना पड़ा हो.

3.डायबिटीज का अच्छा नियंत्रण ना हो.

4.कैंसर, किडनी ट्रांसप्लांट इत्यादि के लिए दवा चल रही हो.

यह लक्षण दिखें तो तुरंत लें डॉक्टरी सलाह:-

1.बुखार आ रहा हो, सर दर्द हो रहा हो, खांसी हो, सांस फूल रही हो.

2. नाक बंद हो. नाक में म्यूकस के साथ खून आ रहा हो.

3. आँख में दर्द हो. आँख फूल जाए, एक वस्तु दो दिख रही हो या दिखना बंद हो जाए.

4. चेहरे में एक तरफ दर्द हो , सूजन हो या सुन्न हो (छूने पर छूने का अहसास ना हो)

5. दाँत में दर्द हो, दांत हिलने लगें, चबाने में दर्द हो.

6. उल्टी में या खांसने पर बलगम में खून आये.

क्या करें :-

कोई भी लक्षण होने पर तत्काल सरकारी अस्पताल में या किसी अन्य विशेषज्ञ डॉक्टर से तत्काल परामर्श करें. नाक, कान, गले, आँख, मेडिसिन, चेस्ट या प्लास्टिक सर्जरी विशेषज्ञ से संपर्क कर तुरंत इलाज शुरू करें.

बरतें यह सावधानियां :-

  1. स्वयं या किसी गैर विशेषज्ञ डॉक्टर के, दोस्त मित्र या रिश्तेदार की सलाह पर स्टेरॉयड दवा कतई शुरू ना करें.

2. लक्षण के पहले 05 से 07 दिनों में स्टेरॉयड देने से दुष्परिणाम होते हैं. बीमारी शुरू होते ही स्टेरॉयड शुरू ना करें.

इससे बीमारी बढ़ जाती है.

3. स्टेरॉयड का प्रयोग विशेषज्ञ डॉक्टर कुछ ही मरीजों को केवल 05-10 दिनों के लिए देते हैं, वह भी बीमारी शुरू होने के 05-07 दिनों बाद केवल गंभीर मरीजों को. इसके पहले बहुत सी जांच आवश्यक है.

4. इलाज शुरू होने पर डॉक्टर से पूछें कि इन दवाओं में स्टेरॉयड तो नहीं है. अगर है, तो ये दवाएं मुझे क्यों दी जा रही हैं?

5. स्टेरॉयड शुरू होने पर विशेषज्ञ डॉक्टर के नियमित संपर्क में रहें.

6. घर पर अगर ऑक्सीजन लगाया जा रहा है तो उसकी बोतल में उबाल कर ठंडा किया हुआ पानी डालें या नार्मल सलाइन डालें. बेहतर हो अस्पताल में भर्ती हों.

बच्चों के मिड डे मील में नमक-रोटी

जी हां, मिर्जापुर के सरकारी स्कूलों का इस वक्त यही हाल है. शायद ये कोई अचरज की बात नहीं होगी, क्योंकि सरकारी स्कूल के शिक्षक शायद ऐसे ही गरीब बच्चों का पेट काटकर अपने बच्चों को अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ाते हैं. बच्चों को मीड डे मील में मिलती है नमक-रोटी. इस खबर ने सरकारी स्कूलों की पोल खोल दी हैं.

एक प्रिंट के पत्रकार को जब ये पता चला कि मिर्जापुर के एक सरकारी स्कूल में बच्चों को नमक-रोटी दी जाती है तब उसने तुरन्त इस बात की सच्चाई को पता लगाने के लिए उस स्कूल का जायजा लिया और आखिरकार वही हुआ बच्चे नमक-रोटी खा रहे थें. मीरजापुर के जमालपुर प्रखंड का शिऊर प्राइमरी स्कूल दो तरफ से पहाड़ियों से घिरा है. अहरौरा से स्कूल की दूरी करीब चार किमी है.स्कूल तक पहुंचने का रास्ता बहुत ही दिक्कतों भरा है. जरा सोचिए कि जिस स्कूल का रास्ता इतना दुर्गम है उस स्कूल में कुछ गरीब बच्चे सिर्फ इसलिए आते हैं कि पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें खाना भी मिल जाएगा लेकिन खाने का पैसा तो यहां शिक्षक हजम कर जाते हैं.

यहां कि पड़ताल के बाद पता चला कि यहां दो रसोइयां हैं रुक्मणी देवी और ममता. दोनों से बात करने पर पता चला कि स्कूल का ताला खोलने से लेकर बच्चों का खाना खिलाने तक का जिम्मा इन्हीं का है. उन्होंने बताया कि बच्चों को नमक-रोटी खिलाने की कहानी आज की नहीं बल्कि कई दिनों की है. उन्हें सामान ही नहीं मिलता कि वो बच्चों को अच्छा खाना खिला सकें और सिर्फ नमक-रोटी ही नहीं. कई बार तो बच्चों को चावल नमक भी दिया गया है जबकि सरकार ने इन सरकारी स्कूलों को मिड डे मील में खाना खिलाने की पूरी व्यवस्था की है. एक चार्ट बनाया है कि बच्चों को कब क्या देना है. लेकिन इस स्कूल के हालात तो कुछ और ही बयां कर रहे हैं.

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वहां पर बच्चों को एक दिन दूध भी दिया जाता है, लेकिन 95 बच्चों में मात्र 2 किग्रा ही दूध आता है और बच्चों को ऐसे दिया जाता है जैसे ऊंट के मुंह में जीरा दिया जा रहा हो. इतना ही नहीं अगर पढ़ाई की बात करें तो कुछ शिक्षिका ऐसी हैं जो सिर्फ वेतन लेने के लिए ही स्कूल में जाती हैं और बच्चों को पढ़ाई के नाम पर कुछ भी नहीं पढ़ाती. इस बात को लेकर पहले भी काफी बवाल हुआ है लेकिन स्थिति ज्यों कि त्यों बनी हुई है और आज भी सिर्फ वेतन लेने ही आती हैं मोहतरमा. वहां पर पढ़ाई के मामले में शायद ही किसी बच्चे को कुछ आता हो.

अब बात यही निकलकर सामने आती है कि बच्चों के भविष्य का क्या? इन स्कूलों को सरकार, बच्चों की पढ़ाई और खाने के लिए पैसा देती है लेकिन वो पैसा शायद स्कूल तक पहुंचता ही नहीं या फिर तो नेता या फिर तो शिक्षक उन पैसों को हजम कर जाते हैं. कुल मिलाकर निष्कर्ष यही सामने आता है कि बच्चों का भविष्य खतरे में है और खाने का जो हाल है वो तो बहुत ही बुरा है. सरकार को जल्द ही इस पर कोई एक्शन लेना होगा नहीं तो आने वाले दिनों में सरकारी स्कूलों के हाल और भी बद्तर हो जाएंगे.

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एडिट बाय- निशा राय

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