अवैध संबंध में विधवा ने किया एक का कत्ल, दो साल से चल रहा था रिलेशन

एक बच्चे की मां अंजलि ने विधवा होने के बाद मौसी के पति साजिद और स्कूल के गार्ड देवीलाल से अवैध संबंध बना लिए थे. आखिर ऐसी क्या वजह रही जो अंजलि को साजिद के साथ मिल कर देवीलाल की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा…    

सुबह का वक्त था. उत्तरपूर्वी दिल्ली की दिलशाद कालोनी में रहने वाले संजीव शर्मा चाय की चुस्कियां लेते हुए अखबार पढ़  रहे थे, तभी उन के पड़ोसी नदीम ने उन्हें खबर दी कि उन के स्कूल का गेट खुला हुआ है और अंदर पुकारने पर गार्ड देवीलाल भी जवाब नहीं दे रहा है. संजीव शर्मा का एच-432, ओल्ड सीमापुरी में बाल कौन्वेंट स्कूल था. देवीलाल उन के स्कूल में रात का सुरक्षागार्ड था. शर्माजी ने रहने के लिए उसे स्कूल में ही एक कमरा दे दिया था

नदीम की बात सुन कर संजीव कुमार शर्मा उस के साथ अपने स्कूल की तरफ निकल गए. संजीव शर्मा जब अपने स्कूल में देवीलाल के कमरे में गए तो वहां लहूलुहान हालत में देवीलाल की लाश पड़ी थी. उस के सिर तथा दोनों हाथों से खून निकल रहा था. यह खौफनाक मंजर देख कर संजीव कुमार शर्मा और नदीम के होश फाख्ता हो गए. संजीव शर्मा ने उसी समय 100 नंबर पर फोन कर के वारदात की सूचना पुलिस को दे दी. यह इलाका चूंकि सीमापुरी थानाक्षेत्र में आता है, इसलिए थाना सीमापुरी के एसआई आनंद कुमार और एसआई सौरभ घटनास्थल एच-432, ओल्ड सीमापुरी पहुंच गए. तब तक वहां आसपास रहने वाले कई लोग पहुंच चुके थे

पुलिस ने एक फोल्डिंग पलंग पर पड़ी सिक्योरिटी गार्ड देवीलाल की लाश का निरीक्षण किया तो उस के सिर पर चोट थी. ऐसा लग रहा था जैसे उस के सिर पर कोई भारी चीज मारी गई हो. इस के अलावा उस की दोनों कलाइयां कटी मिलीं. बिस्तर के अलावा फर्श पर भी खून ही खून फैला हुआ था. कमरे में रखी दोनों अलमारियां खुली हुई थीं. काफी सामान फर्श पर बिखरा हुआ था. हालात देख कर लूट की संभावना भी नजर आ रही थी.

इसी कमरे की मेज पर शराब की एक बोतल 2 गिलास तथा बचा हुआ खाना भी मौजूद था. एसआई सौरभ ने यह सूचना थानाप्रभारी संजीव गौतम को दे दी. हत्याकांड की सूचना पा कर थानाप्रभारी संजीव गौतम पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचेघटनास्थल का मौकामुआयना करने के बाद थानाप्रभारी इस नतीजे पर पहुंचे कि हत्यारा स्कूल में मित्रवत दाखिल हुआ था और उस ने मृतक के साथ शराब भी पी थी. इसलिए उस की हत्या में उस का कोई नजदीकी ही शामिल हो सकता है. खुली अलमारी और बिखरा सामान लूट की तरफ इशारा कर रहा था.

स्कूल मालिक संजीव शर्मा ने बताया कि देवीलाल जम्मू का रहने वाला था. पिछले 2 साल से वह उन के स्कूल में रात को सिक्योरिटी गार्ड के रूप में काम कर रहा था. थानाप्रभारी ने मौके पर क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम बुला कर गिलास तथा शराब की खाली बोतल से फिंगरप्रिंट्स उठवा लिए. मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए जीटीबी अस्पताल भेज दिया. फिर स्कूल मालिक संजीव शर्मा की तहरीर पर गार्ड देवीलाल उर्फ दीनदयाल की हत्या का मामला दर्ज करवा दिया.

थानाप्रभारी संजीव गौतम ने इस केस की तफ्तीश इंसपेक्टर (इनवैस्टीगेशन) जे.के. सिंह को सौंप दी. उन्होंने डीसीपी नूपुर प्रसाद, एसीपी रामसिंह को भी घटना के बारे में अवगत करा दिया.डीसीपी नूपुर प्रसाद ने इस हत्याकांड का खुलासा करने के लिए एसीपी रामसिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में आईपीएस हर्ष इंदोरा, थानाप्रभारी संजीव गौतम, अतिरिक्त थानाप्रभारी अरुण कुमार, इंसपेक्टर (इनवैस्टीगेशन) जे.के. सिंह, स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर हीरालाल, एसआई मीना चौहान, एएसआई आनंद, कांस्टेबल प्रियंका, वीरेंद्र, संजीव आदि शामिल थे.

टीम ने जांच शुरू की और स्कूल के प्रिंसिपल तथा मालिक संजीव कुमार शर्मा से मृतक गार्ड देवीलाल की गतिविधियों के बारे में विस्तार से पूछताछ की तो उन्होंने बता दिया कि गार्ड देवीलाल सीमापुरी की ही एक ट्रैवल एजेंसी में पिछले 20 सालों से गार्ड की नौकरी कर रहा था. इस के बीवीबच्चे जम्मू के गांव गुडि़याल में रहते हैं. पिछले 2 सालों से वह उन के स्कूल में नौकरी कर रहा था. चूंकि उस की ड्यूटी रात की थी, इसलिए उन्होंने रहने के लिए स्कूल में ही उसे एक कमरा दे दिया था.

संजीव शर्मा से बात करने के बाद पुलिस ने स्कूल के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को भी खंगाला. मगर उस से पुलिस को कोई भी सुराग नहीं मिला. क्योंकि स्कूल में लगे सीसीटीवी कैमरे केवल दिन के वक्त चालू रहते थे. शाम होने पर उन्हें बंद कर दिया जाता था. कहीं से कोई सुराग मिलने पर पुलिस ने मृतक के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स का अध्ययन किया गया तो पुलिस की निगाहें मृतक के फोन पर आई अंतिम काल पर अटक गईं. उस नंबर पर गार्ड की पहले भी बातें हुई थीं और 3 मार्च, 2018 की रात साढ़े 10 बजे लोकेशन उस फोन नंबर की घटनास्थल पर ही थी

जांच में वह फोन नंबर सीमापुरी की ही रहने वाली महिला अंजलि का निकला. पुलिस ने अंजलि के फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में भी एक फोन नंबर ऐसा मिला, जिस की लोकेशन घटना वाली रात को अंजलि के साथ घटनास्थल की थी. इतनी जांच के बाद पुलिस टीम को केस के खुलासे के आसार नजर आने लगे.

पुलिस टीम सीमापुरी में स्थित अंजलि के घर पहुंच गई. पुलिस को देख कर अंजलि एकदम से घबरा गई. इंसपेक्टर जे.के. सिंह ने अंजलि से पूछा, ‘‘तुम गार्ड देवीलाल को कैसे जानती हो?’’

‘‘मेरा बेटा उसी स्कूल में पढ़ता है, जहां देवीलाल गार्ड था, इसलिए कभीकभी उस से मुलाकात होती रहती थी. इस से ज्यादा मैं देवीलाल के बारे में कुछ नहीं जानती.’’ अंजलि ने बताया.

इंसपेक्टर जे.के. सिंह को लगा कि अंजलि सच्चाई को छिपाने की कोशिश कर रही है, क्योंकि उन के पास अंजलि और देवीलाल के बीच अकसर होने वाली बातचीत का सबूत मौजूद था. इसलिए वह पूछताछ के लिए उसे थाने ले आए. थाने में उन्होंने अंजलि से पूछा, ‘‘3 मार्च की रात साढे़ 10 बजे तुम देवीलाल के कमरे में क्या करने गई थी?’’

यह सवाल सुनते ही अंजलि की बोलती बंद हो गई. कुछ देर की चुप्पी के बाद उस ने जो कुछ बताया, उस से देवीलाल की हत्या की गुत्थी परतदरपरत खुलती चली गई. उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने अपने दूसरे प्रेमी साजिद उर्फ शेरू के साथ मिल कर देवीलाल की हत्या की थी. देवीलाल की हत्या क्यों की गई, इसे जानने के लिए 2 साल पीछे के घटनाक्रम पर नजर दौड़ानी होगी, जो इस प्रकार है

40 वर्षीय देवीलाल पिछले 20 सालों से पुरानी सीमापुरी में जयवीर ट्रैवल एजेंसी में नौकरी करता था. लेकिन वहां पगार कम होने के कारण उस के घर की आर्थिक जरूरतें पूरी नहीं हो पाती थीं. चूंकि ट्रैवल एजेंसी में उस का काम दिन में होता था, इसलिए रात के समय खाली होने के कारण वह संजीव कुमार शर्मा के स्कूल में गार्ड के रूप में नौकरी करने लगा. संजीव शर्मा ने उसे रहने के लिए स्कूल में ही एक कमरा भी दे दिया था.

देवीलाल का साल में एक बार ही घर जाना होता था. बाकी समय उस का समय दिल्ली में गुजरता था. चूंकि उस की पत्नी प्रमिला जम्मू में ही रहती थी, इसलिए वह बाजारू औरतों के संपर्क में रहता था. 2 जगहों पर काम करने के कारण थोड़े ही समय में उस के पास काफी रुपए इकट्ठे हो गए थे. वह अपने सभी रुपए अपने अंडरवियर में बनी जेब में रखता था. अंजलि की शादी करीब 8 साल पहले सुरेंद्र के साथ हुई थी. शादी की शुरुआत में तो अंजलि सुरेंद्र के साथ बहुत खुश थी. बाद में वह एक बेटे की मां बनी, जिस का नाम कपिल रखा. सुरेंद्र प्राइवेट नौकरी करता था. उसी से वह अपने परिवार का पालनपोषण कर रहा था

अंजलि की यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकी. बीमारी की वजह से सुरेंद्र की नौकरी छूट गई. इस से परिवार में आर्थिक समस्या खड़ी हो गई. अंजलि के पास जो थोड़ेबहुत पैसे जमा थे, वह भी सुरेंद्र की बीमारी पर खर्च हो गए थे. अंजलि ने सुरेंद्र को बचाने की जीतोड़ कोशिश की लेकिन एक दिन उस की मौत हो गई. पति की मौत से अंजलि की आंखों में अंधेरा छा गया. जैसेतैसे कर उस ने पति का दाहसंस्कार किया, फिर जीविका चलाने के लिए सीमापुरी की एक कैटरिंग शौप में नौकरी करने लगी. वहां से उसे जितनी पगार मिलती थी, उस से बड़ी मुश्किल से मांबेटे का गुजारा होता था.

2 साल पहले उस ने बेटे कपिल का एडमिशन ओल्ड सीमापुरी में स्थित बाल कौनवेंट स्कूल में नर्सरी कक्षा में करवाया. यह स्कूल ओल्ड सीमापुरी का एक नामचीन प्राइवेट स्कूल है. वह रोजाना सुबह बेटे को स्कूल छोड़ने जाती थी और छुट्टी के समय उसे स्कूल से लेने पहुंच जाती थी. बच्चे की छुट्टी होने तक वह अन्य मांओं की तरह गेट पर खड़ी हो कर बेटे का इंतजार करती थी.

हालांकि अंजलि एक विधवा थी, लेकिन उस के सौंदर्य में आज भी कशिश बरकरार थी. गरीबी का अभिशाप भी उस के खूबसूरत चेहरे का रंग फीका नहीं कर पाया था. उस के हुस्न का आलम यह था कि वह जिधर भी निकलती, युवकों की प्यासी निगाहें चोरीचोरी उस के रूप का रसपान करने, उस के हसीन चेहरे पर टिक जातीं. एक दिन शाम के समय जब स्कूल का गार्ड देवीलाल गेट पर ड्यूटी दे रहा था, तभी अचानक उस की निगाह अंजलि पर पड़ी. अंजलि को देख कर उस की आंखें चमक उठीं. वह उस पर डोरे डालने की योजनाएं बनाने लगा.

गार्ड देवीलाल उस के बेटे कपिल का विशेष ध्यान रखने लगा. वह कपिल को चौकलेट, टौफी आदि दे कर उस का करीबी बन गया. अंजलि ने देखा कि देवीलाल कपिल को खूब प्यार करता है तो वह घर से उस के लिए कुछ न कुछ खाने की चीज बना कर लाने लगी. इस तरह दोनों ही एकदूसरे को चाहने लगे. अंजलि को जब कभी पैसों की जरूरत होती तो वह उस की मदद भी कर देता. गार्ड की सहानुभूति पा कर अंजलि उस की दोस्त बन गई. अपने मोबाइल नंबर तो वे पहले ही एकदूसरे को दे चुके थे, जिस से वह बातचीत करते रहते थे.

देवीलाल ने जब देखा कि खूबसूरत अंजलि पूरी तरह शीशे में उतर गई है तो वह रात के समय उसे स्कूल में बुलाने लगा. अंजलि के आने पर वह उस के साथ महंगी शराब पीता. अंजलि भी उस के साथ शराब पीती फिर दोनों अपनी हसरतें पूरी करते थे. अंजलि को जब भी पैसों की जरूरत होती, देवीलाल अपने अंडरवियर की जेब से निकाल कर उसे दे देता था. अंजलि उस के पास इतने सारे रुपए देख कर बेहद प्रभावित हो गई थी, इसलिए वह देवीलाल को हर तरह से खुश रखने की कोशिश करती थी

धीरेधीरे उस का देवीलाल के पास आनाजाना इतना बढ़ गया कि आसपड़ोस के लोगों को भी उस के अवैध संबंधों की जानकारी हो गई. लेकिन अंजलि और देवीलाल को इस से कोई फर्क नहीं पड़ा. देवीलाल को जब भी मौका मिलता, वह अंजलि को अपने कमरे में बुला कर अपनी हसरतें पूरी कर लेता.

अंजलि की मौसी मधु का पति साजिद उस का हालचाल पूछने उस के पास आता रहता था. दोनों सालों से एकदूसरे को जानते थे. अंजलि के पति की मौत के बाद साजिद ने ही अंजलि को सहारा दिया था. साजिद भी अंजलि के हुस्न पर लट्टू था. साजिद के साथ भी अंजलि के शारीरिक संबंध थे. वह कईकई दिन अंजलि के यहां रुक जाता था. इस कारण उस के और मधु के संबंधों में भी खटास चुकी थी. साजिद ड्राइवर था, हरियाणा से करनाल बाइपास की ओर आने वाले यात्रियों को अपनी इनोवा कार में ढोया करता था

साजिद को जब अंजलि और गार्ड देवीलाल के संबंधों की जानकारी हुई तो वह इस का विरोध करने लगा. चूंकि अंजलि पर गार्ड देवीलाल खुल कर खर्च करता था, इसलिए वह उसे छोड़ना नहीं चाहती थी. वह साजिद को किसी तरह समझा देती फिर मौका मिलते ही देवीलाल से मिलने स्कूल में बने उस के कमरे में चली जाती थी. किसी तरह साजिद को यह बात पता चल ही जाती थी, तब उस ने अंजलि पर देवीलाल से रिश्ता तोड़ देने का दबाव बनाया

अंजलि के दिमाग में एक शैतानी योजना ने जन्म ले लिया. साजिद की इनोवा कार खराब थी. कार ठीक कराने के लिए उस के पास पैसे तक नहीं थे, इसलिए वह खाली बैठा थातब अंजलि ने साजिद को बताया कि देवीलाल के पास काफी रुपए रहते हैं. अगर दोनों मिल कर उस का काम तमाम कर दें तो उस के रुपयों पर आसानी से हाथ साफ किया जा सकता है.

साजिद तो देवीलाल से पहले से ही खार खाए बैठा था. लालच में वह उस की हत्या करने के लिए राजी हो गया. अब दोनों अपनी इस योजना को अंजाम देने के लिए अवसर की तलाश में रहने लगे. 3 मार्च, 2018 की रात देवीलाल का मूड बना तो उस ने उसी समय अंजलि को फोन कर दियाइस से पहले उस ने व्हिस्की की बोतल और खाना पैक करवा लिया. रात के 10 बजे उस ने अपनी प्रेमिका अंजलि को फोन कर के स्कूल में पहुंचने के लिए कहा तो अंजलि और साजिद की आंखें खुशी से चमकने लगीं.

अंजलि ने पहले तो शृंगार किया. होंठों पर सुर्ख लिपस्टिक लगाई, फिर साजिद की बुलेट मोटरसाइकिल पर बैठ कर कौन्वेंट स्कूल के नजदीक पहुंचा. अंजलि जिस समय स्कूल में पहुंची, रात के 10 बज रहे थे. देवीलाल की निगाहें केवल अंजलि पर पड़ीं तो वह उसे टकटकी लगाए देखता रह गया. उसे अंजलि इतनी सुंदर पहले कभी नहीं लगी थी. अंजलि के अंदर आने पर उस ने बांहों में भर कर चूमा फिर अपने कमरे पर बिछी चारपाई पर ले गया. तभी अंजलि ने उस से कोल्डड्रिंक लाने की फरमाइश की.

देवीलाल कोल्डड्रिंक लाने स्कूल से बाहर गया, तभी मौका मिलते ही अंजलि ने फोन कर के साजिद को अंदर बुलाया और छिप जाने के लिए कह दिया. देवीलाल के आने के बाद अंजलि व्हिस्की में कोल्डड्रिंक मिला कर उसे शराब पिलाने लगी. देवीलाल ने अंजलि के लिए भी पैग बना लिया. अंजलि भी शराब की शौकीन थी, लेकिन उस दिन उस ने स्वयं तो कम पी लेकिन देवीलाल को अधिक पिला कर मदहोश कर दिया. जब अंजलि ने देवीलाल को बेसुध देखा तो उस ने साजिद को इशारा कर बुला लिया

अंजलि ने उस से देवीलाल का काम तमाम करने के लिए कहा. फिर साजिद ने देवीलाल के सिर पर लोहे की रौड का भरपूर वार कर उस का काम तमाम कर दिया. इस के बाद साजिद और अंजलि ने देवीलाल के अंडरवियर में रखे लगभग 60 हजार रुपए तथा मोबाइल फोन ले लिया. जब दोनों वहां से जाने लगे तो अंजलि को शक हुआ कि कहीं देवीलाल बच जाए. अगर वह बच गया तो वह इस मामले में फंस जाएगी, इसलिए अंजलि ने साजिद को उस की कलाई की नसें काटने के लिए कहा

यह सुन कर साजिद ने अपने साथ लाए पेपर कटर से देवीलाल के दोनों हाथों की नसें काट दीं, जिस से उस का खून बह गया. देवीलाल की हत्या करने के बाद दोनों शातिर इत्मीनान से अपने घर लौट गए. अंजलि की निशानदेही पर पुलिस ने उस के पहले प्रेमी साजिद को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों की निशानदेही पर देवीलाल से लूटे गए रुपए, 3 मोबाइल फोन, मोटरसाइकिल तथा हत्या में प्रयुक्त रौड, पेपर कटर बरामद कर लिया. पुलिस ने दोनों को 7 मार्च को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

     – इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है

एक शादीशुदा ने बनाएं समलैंगिक संबंध, पति को किया दरकिनार

बैडमिंटन खेलतेखेलते दीपा शादीशुदा और अपनी से दोगुनी उम्र के बबलू से इस कदर प्यार करने लगी कि अपने घर वालों की खिलाफत के बावजूद भी, उस ने बबलू से शादी कर ली. बाद में सुमन नाम की एक महिला के साथ बनी नजदीकी ने दीपा को समलैंगिक संबंधों तक पहुंचा दिया, फिर… 

‘‘मम्मी मैं जानता हूं कि आप को मेरी एक बात बुरी लग सकती है. वो यह कि सुमन आंटी जो आप की सहेली हैं, उन का यहां आना मुझे अच्छा नहीं लगता. और तो और मेरे दोस्त तक कहते हैं कि वह पूरी तरह से गुंडी लगती हैं.’’ बेटे यशराज की यह बात सुन कर मां दीपा उसे देखती ही रह गई. दीपा बेटे को समझाते हुए बोली, ‘‘बेटा सुमन आंटी अपने गांव की प्रधान है वह ठेकेदारी भी करती है. वह आदमियों की तरह कपड़े पहनती है, उन की तरह से काम करती है इसलिए वह ऐसी दिखती है. वैसे एक बात बताऊं कि वह स्वभाव से अच्छी है.’’

मां और बेटे के बीच जब यह बहस हो रही थी तो वहीं कमरे में दीपा का पति बबलू भी बैठा था. उस से जब चुप नहीं रहा गया तो वह बीच में बोल उठा,‘‘दीपा, यश को जो लगा, उस ने कह दिया. उस की बात अपनी जगह सही है. मैं भी तुम्हें यही समझाने की कोशिश करता रहता हूं लेकिन तुम मेरी बात मानने को ही तैयार नहीं होती हो.’’

‘‘यश बच्चा है. उसे हमारे कामधंधे आदि की समझ नहीं है. पर आप समझदार हैं. आप को यह तो पता ही है कि सुमन ने हमारे एनजीओ में कितनी मदद की है.’’ दीपा ने पति को समझाने की कोशिश करते हुए कहा. ‘‘मदद की है तो क्या हुआ? क्या वह अपना हिस्सा नहीं लेती है? और 8 महीने पहले उस ने हम से जो साढ़े 3 लाख रुपए लिए थे. अभी तक नहीं लौटाए.’’ पति बोला. मां और बेटे के बीच छिड़ी बहस में अब पति पूरी तरह शामिल हो गया था. ‘‘बच्चों के सामने ऐसी बातें करना जरूरी है क्या?’’ दीपा गुस्से में बोली.

‘‘यह बात तुम क्यों नहीं समझती. मैं कब से तुम्हें समझाता रहा हूं कि सुमन से दूरी बना लो.’’ बबलू सिंह ने कहा तो दीपा गुस्से में मुंह बना कर दूसरे कमरे में चली गई. बबलू ने भी दीपा को उस समय मनाने की कोशिश नहीं की. क्योंकि वह जानता था कि 2-4 घंटे में वह नारमल हो जाएगी. बबलू सिंह उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर के इस्माइलगंज में रहता था. कुछ समय पहले तक इस्माइलगंज एक गांव का हिस्सा होता था. लेकिन शहर का विकास होने के बाद अब वह भी शहर का हिस्सा हो गया है. बबलू सिंह ठेकेदारी का काम करता था. इस से उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी इसलिए वह आर्थिकरूप से मजबूत था

उस की शादी निर्मला नामक एक महिला से हो चुकी थी. शादी के 15 साल बाद भी निर्मला मां नहीं बन सकी थी. इस वजह से वह अकसर तनाव में रहती थी. बबलू सिंह को बैडमिंटन खेलने का शौक था. उसी दौरान उस की मुलाकात लखनऊ के ही खजुहा रकाबगंज मोहल्ले में रहने वाली दीपा से हुई थी. वह भी बैडमिंटन खेलती थी. दीपा बहुत सुंदर थी. जब वह बनठन कर निकलती थी तो किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी. बैडमिंटन खेलतेखेलते दोनों अच्छे दोस्त बन गए. 40 साल का बबलू उस के आकर्षण में ऐसा बंधा कि शादीशुदा होने के बावजूद खुद को संभाल न सका. दीपा उस समय 20 साल की थी. बबलू की बातों और हावभाव से वह भी प्रभावित हो गई. लिहाजा दोनों के बीच प्रेमसंबंध हो गए. उन के बीच प्यार इतना बढ़ गया कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया.

दीपा के घर वालों ने उसे बबलू से विवाह करने की इजाजत नहीं दी. इस की एक वजह यह थी कि एक तो बबलू दूसरी बिरादरी का था और दूसरे बबलू पहले से शादीशुदा था. लेकिन दीपा उस की दूसरी पत्नी बनने को तैयार थी. पति द्वारा दूसरी शादी करने की बात सुन कर निर्मला नाराज हुई लेकिन बबलू ने उसे यह कह कर राजी कर लिया कि तुम्हारे मां बनने की वजह से दूसरी शादी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. पति की दलीलों के आगे निर्मला को चुप होना पड़ा क्योंकि शादी के 15 साल बाद भी उस की कोख नहीं भरी थी. लिहाजा न चाहते हुए भी उस ने पति को शौतन लाने की सहमति दे दी.

घरवालों के विरोध को नजरअंदाज करते हुए दीपा ने अपनी उम्र से दोगुने बबलू से शादी कर ली और वह उस की पहली पत्नी निर्मला के साथ ही रहने लगी. करीब एक साल बाद दीपा ने एक बेटे को जन्म दिया जिस का नाम यशराज रखा गया. बेटा पैदा होने के बाद घर के सभी लोग बहुत खुश हुए. अगले साल दीपा एक और बेटे की मां बनी. उस का नाम युवराज रखा. इस के बाद तो बबलू दीपा का खास ध्यान रखने लगा. बहरहाल दीपा बबलू के साथ बहुत खुश थी.

दोनों बच्चे बड़े हुए तो स्कूल में उन का दाखिला करा दिया. अब यशराज जार्ज इंटर कालेज में कक्षा 9 में पढ़ रहा था और युवराज सेंट्रल एकेडमी में कक्षा 7 में. दीपा भी 35 साल की हो चुकी थी और बबलू 55 का. उम्र बढ़ने की वजह से वह दीपा का उतना ध्यान नहीं रख पाता था. ऊपर से वह शराब भी पीने लगा. इन्हीं सब बातों को देखने के बाद दीपा को महसूस होने लगा था कि बबलू से शादी कर के उस ने बड़ी गलती की थी. लेकिन अब पछताने से क्या फायदा. जो होना था हो चुका.

बबलू का 2 मंजिला मकान था. पहली मंजिल पर बबलू की पहली पत्नी निर्मला अपने देवरदेवरानी और ससुर के साथ रहती थी. नीचे के कमरों में दीपा अपने बच्चों के साथ रहती थी. उन के घर से बाहर निकलने के भी 2 रास्ते थे. दीपा का बबलू के परिवार के बाकी लोगों से कम ही मिलनाजुलना  होता था. वह उन से बातचीत भी कम करती थी. बबलू को शराब की लत हो जाने की वजह से उस की ठेकेदारी का काम भी लगभग बंद सा हो गया था. तब उस ने कुछ टैंपो खरीद कर किराए पर चलवाने शुरू कर दिए थे. उन से होने वाली कमाई से घर का खर्च चल रहा था.

शुरू से ही ऊंचे खयालों और सपनों में जीने वाली दीपा को अब अपनी जिंदगी बोरियत भरी लगने लगी थी. खुद को व्यस्त रखने के लिए दीपा ने सन 2006 में ओम जागृति सेवा संस्थान के नाम से एक एनजीओ बना लिया. उधर बबलू का जुड़ाव भी समाजवादी पार्टी से हो गया. अपने संपर्कों की बदौलत उस ने एनजीओ को कई प्रोजेक्ट दिलवाए. इसी बीच सन 2008 में दीपा की मुलाकात सुमन सिंह नामक महिला से हुई. सुमन सिंह गोंडा करनैलगंज के कटरा शाहबाजपुर गांव की रहने वाली थी. वह थी तो महिला लेकिन उस की सारी हरकतें पुरुषों वाली थीं. पैंटशर्ट पहनती और बायकट बाल रखती थी. सुमन निर्माणकार्य की ठेकेदारी का काम करती थी. उस ने दीपा के एनजीओ में काम करने की इच्छा जताई. दीपा को इस पर कोई एतराज था. लिहाजा वह एनजीओ में काम करने लगी

सुमन एक तेजतर्रार महिला थी. अपने संबंधों से उस ने एनजीओ को कई प्रोजेक्ट भी दिलवाए. तब दीपा ने उसे अपनी संस्था का सदस्य बना दिया. इतना ही नहीं वह संस्था की ओर से सुमन को उस के कार्य की एवज में पैसे भी देने लगी. कुछ ही दिनों में सुमन के दीपा से पारिवारिक संबंध बन गए. दीपा को ज्यादा से ज्यादा बनठन कर रहने और सजनेसंवरने का शौक था. वह हमेशा बनठन कर और ज्वैलरी पहने रहती थी. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी उस में गजब का आकर्षण था. उसे देख कर कोई भी उस की ओर आकर्षित हो सकता था. एनजीओ में काम करने की वजह से सुमन दीपा को अकसर अपने साथ ही रखती थी. दीपा इसे सुमन की दोस्ती समझ रही थी पर सुमन पुरुष की तरह ही दीपा को प्यार करने लगी थी.

एक बार जब सुमन दीपा को प्यार भरी नजरों से देख रही थी तो दीपा ने पूछा, ‘‘ऐसे क्या देख रही हो? मैं भी तुम्हारी तरह एक महिला हूं. तुम मुझे इस तरह निहार रही हो जैसे कोई प्रेमी प्रेमिका को देख रहा हो.’’

‘‘दीपा, तुम मुझे अपना प्रेमी ही समझो. मैं सच में तुम्हें बहुत प्यार करने लगी हूं.’’ सुमन ने मन में दबी बातें उस के सामने रख दीं. सुमन की बातें सुनते ही वह चौंकते हुए बोली, ‘‘यह तुम कैसी बातें कर रही हो? कहीं 2 लड़कियां आपस में प्रेमीप्रेमिका हो सकती हैं?’’

 ‘‘दीपा, मैं लड़की जरूर हूं पर मेरे अंदर कभीकभी लड़के सा बदलाव महसूस होता है. मैं सबकुछ लड़कों की तरह करना चाहती हूं. प्यार और दोस्ती सबकुछ. इसीलिए तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मैं तुम से शादी भी करना चाहती हूं.’’

‘‘मैं पहले से शादीशुदा हूं. मेरे पति और बच्चे हैं.’’ दीपा ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘मैं तुम्हें पति और बच्चों से अलग थोड़े कर रही हूं. हम दोस्त और पतिपत्नी दोनों की तरह रह सकते हैं. सब से अच्छी बात तो यह है कि हमारे ऊपर कोई शक भी नहीं करेगा. दीपा, मैं सच कह रही हूं कि मुझे तुम्हारे करीब रहना अच्छा लगता है.’’

‘‘ठीक है बाबा, पर कभी यह बातें किसी और से मत कहना.’’ दीपा ने सुमन से अपना पीछा छुड़ाने के अंदाज में कहा.

 ‘‘दीपा, मेरी इच्छा है कि तुम मुझे सुमन नहीं छोटू के नाम से पुकारा करो.’’

‘‘समझ गई, आज से तुम मेरे लिए सुमन नहीं छोटू हो.’’ इतना कह कर सुमन और दीपा करीब आ गए. दोनों के बीच आत्मीय संबंध बन गए थे. सुमन ने रिश्ते को मजबूत करने के लिए एक दिन दीपा के साथ मंदिर जा कर शादी भी कर ली. सुमन के करीब आने से दीपा के जीवन को भी नई उमंग महसूस होने लगी थी कि कोई तो है जो उसे इतना प्यार कर रही है. इस के बाद सुमन एक प्रेमी की तरह उस का खयाल रखने लगी थी. समय गुजरने लगा. दीपा के पति और परिवार को इस बात की कोई भनक नहीं थी. वह सुमन को उस की सहेली ही समझ रहे थे. एनजीओ के काम के कारण सुमन अकसर ही दीपा के साथ उस के घर पर ही रुक जाती थी. 

सुमन को भी शराब पीने का शौक था. बबलू भी शराब पीता था. कभीकभी सुमन बबलू के साथ ही पीने बैठ जाती थी. जिस से सुमन और बबलू की दोस्ती हो गई. सुमन के लिए उस के यहां रुकना और ज्यादा आसान हो गया था. उस के रुकने पर बबलू भी कोई एतराज नहीं करता था. वह भी उसे छोटू कहने लगा. साल 2010 में उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हुए तो सुमन ने अपने गांव कटरा शाहबाजपुर से ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ा. सुमन सिंह का भाई विनय सिंह करनैलगंज थाने का हिस्ट्रीशीटर बदमाश था. उस के पिता अवधराज सिंह के खिलाफ भी कई आपराधिक मुकदमे करनैलगंज थाने में दर्ज थे. दोनों बापबेटों की दबंगई का गांव में खासा प्रभाव था. जिस के चलते सुमन ग्रामप्रधान का चुनाव जीत गई. उस ने गोंडा के पूर्व विधायक अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भैया की बहन सरोज सिंह को भारी मतों से हराया.

ग्राम प्रधान बनने के बाद सुमन सिंह सीतापुर रोड पर बनी हिमगिरी में फ्लैट ले कर रहने लगी. सन 2010 में प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद उस ने अपने संबंधों की बदौलत फिर से ठेकेदारी शुरू कर दी. अपनी सुरक्षा के लिए वह .32 एमएम की लाइसैंसी रिवाल्वर भी साथ रखने लगी. उस की और दीपा की दोस्ती अब और गहरी होने लगी थी. सुमन किसी न किसी बहाने से दीपा के पास ही रुक जाती थी. ऐसे में दीपा और सुमन एक साथ ही रात गुजारती थीं. यह सब बातें धीरेधीरे बबलू और उस के बच्चों को भी पता चलने लगी थीं. तभी तो उन्हें सुमन का उन के यहां आना अच्छा नहीं लगता था. 

सुमन महीने में 20-25 दिन दीपा के घर पर रुकती थी. शनिवार और रविवार को वह दीपा को अपने साथ हिमगिरी कालोनी ले जाती थी. दीपा को सुमन के साथ रहना कुछ दिनों तक तो अच्छा लगा, लेकिन अब वह सुमन से उकता गई थी. एक बार सुमन ने दीपा से किसी काम के लिए साढ़े 3 लाख रुपए उधार लिए थे. तयशुदा वक्त गुजर जाने के बाद भी सुमन ने पैसे नहीं लौटाए तो दीपा ने उस से तकादा करना शुरू कर दिया. तकादा करना सुमन को अच्छा नहीं लगता था. इसलिए दीपा जब कभी उस से पैसे मांगती तो सुमन उस से लड़ाईझगड़ा कर बैठी थी. 27 जनवरी, 2014 की देर रात करीब 9 बजे सुमन दीपा के घर अंगुली में अपना रिवाल्वर घुमाते हुए पहुंची. दीपा और बबलू में सुमन को ले कर सुबह ही बातचीत हो चुकी थी. अचानक उस के धमकने से वे लोग पशोपेश में पड़ गए.

‘‘क्या बात है छोटू आज तो बिलकुल माफिया अंदाज में दिख रहे हो.’’ दीपा बोली.

इस के पहले कि सुमन कुछ कहती. बबलू ने पूछ लिया, ‘‘छोटू अकेले ही आए हो क्या?’’

‘‘नहीं, भतीजा विपिन और उस का दोस्त शिवम मुझे छोड़ कर गए हैं. कई दिनों से दीपा के हाथ का बना खाना नहीं खाया था. उस की याद आई तो चली आई.’’

सुमन और बबलू बातें करने लगे तो दीपा किचन में चली गई. सुमन ने भी फटाफट बबलू से बातें खत्म कीं और दीपा के पीछे किचन में पहुंच कर उसे पीछे से अपनी बांहों में भर लिया. पति और बच्चोें की बातें सुन कर दीपा का मूड सुबह से ही खराब था. वह सुमन को झिड़कते हुए बोली, ‘‘छोटू ऐसे मत किया करो. अब बच्चे बड़े हो गए हैं. यह सब उन को बुरा लगता है.’’

उस समय सुमन नशे में थी. उसे दीपा की बात समझ नहीं आई. उसे लगा कि दीपा उस से बेरुखी दिखा रही है. वह बोली, ‘‘दीपा, तुम अपने पति और बच्चों के बहाने मुझ से दूर जाना चाहती हो. मैं तुम्हारी बातें सब समझती हूं.’’ दीपा और सुमन के बीच बहस बढ़ चुकी थी दोनों की आवाज सुन कर बबलू भी किचन में पहुंच गया. लड़ाई आगे बढ़े इस के लिए बबलू सिंह ने सुमन को रोका और उसे ले कर ऊपर के कमरे में चला गया. वहां दोनों ने शराब पीनी शुरू कर दी. शराब के नशे में खाने के समय सुमन ने दीपा को फिर से बुरा भला कहा.

दीपा को भी लगा कि शराब के नशे में सुमन घर पर रुक कर हंगामा करेगी. उस की तेज आवाज पड़ोसी भी सुनेंगे जिस से घर की बेइज्जती होगी इसलिए उस ने उसे अपने यहां रुकने के लिए मना लिया. बबलू सिंह ऊपर के कमरे में सोने चला गया. दीपा के कहने के बाद भी सुमन उस रात वहां से नहीं गई बल्कि वहीं दूसरे कमरे में जा कर सो गई. 28 जनवरी, 2014 की सुबह दीपा के बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे. वह उन के लिए नाश्ता तैयार कर रही थी. तभी किचन में सुमन पहुंच गई. वह उस समय भी नशे की अवस्था में ही थी. उस ने दीपा से कहा, ‘‘मुझ से बेरुखी की वजह बताओ इस के बाद ही परांठे बनाने दूंगी.’’

‘‘सुमन, अभी बच्चों को स्कूल जाना है नाश्ता बनाने दो. बाद में बात करेंगे.’’ पहली बार दीपा ने छोटू के बजाय सुमन कहा था.

‘‘तुम ऐसे नहीं मानोगी.’’ कह कर सुमन ने हाथ में लिया रिवाल्वर ऊपर किया और किचन की छत पर गोली चला दी. गोली चलते ही दीपा डर गई. वह बोली, ‘‘सुमन होश में आओ.’’ इस के बाद वह उसे रोकने के लिए उस की ओर बढ़ी. सुमन उस समय गुस्से में उबल रही थी. उस ने उसी समय दीपा के सीने पर गोली चला दी. गोली चलते ही दीपा वहीं गिर पड़ी. गोली की आवाज सुन कर बच्चे किचन की तरफ आए. उन्होंने मां को फर्श पर गिरा देखा तो वे रोने लगे. बबलू उस समय ऊपर के कमरे में था. बच्चों की आवाज सुन कर वो और उस की पहली पत्नी निर्मला भी नीचे आ गए. निर्मला सुमन से बोली, ‘‘क्या किया तुम ने?’’

‘‘कुछ नहीं यह गिर पड़ी है. इसे कुछ चोट लग गई है.’’ सुमन ने जवाब दिया. निर्मला ने दीपा की तरफ देखा तो उस के पेट से खून बहता देख वह सुमन पर चिल्ला कर बोली, ‘‘छोटू तुम ने इसे मार दिया.’’ दीपा की हालत देख कर बबलू के आंसू निकल पड़े. उस ने पत्नी को हिलाडुला कर देखा. लेकिन उन की सांसें तो बंद हो चुकी थीं. वह रोते हुए बोला, ‘‘छोटू, यह तुम ने क्या कर दिया.’’ वह दीपा को कार से तुरंत राममनोहर लोहिया अस्पताल ले गया जहां डाक्टरों ने दीपा को मृत घोषित कर दिया. चूंकि घर वालों के बीच सुमन घिर चुकी थी. इसलिए उस ने फोन कर के अपने भतीजे विपिन सिंह और उस के साथी शिवम मिश्रा को वहीं बुला लिया. तभी सुमन ने अपना रिवाल्वर विपिन सिंह को दे दिया. विपिन ने रिवाल्वर से बबलू के घरवालों को धमकाने की कोशिश की लेकिन जब घरवाले उलटे उन पर हावी होने लगे वे दोनों वहां से भाग गए

तब अपनी सुरक्षा के लिए सुमन ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया. बबलू के भाई बलू सिंह ने गाजीपुर थाने फोन कर के दीपा की हत्या की खबर दे दी. घटना की जानकारी पाते ही थानाप्रभारी नोवेंद्र सिंह सिरोही, एसएसआई रामराज कुशवाहा, सीटीडी प्रभारी सबइंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह, रूपा यादव, ब्रजमोहन सिंह के साथ मौके पर पहुंच गए. हत्या की सूचना पाते ही एसएसपी लखनऊ प्रवीण कुमार, एसपी(ट्रांसगोमती) हबीबुल हसन और सीओ गाजीपुर विशाल पांडेय भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

बबलू के घर पहुंच कर पुलिस ने दरवाजा खुलवा कर सब से पहले सुमन को हिरासत में लिया. उस के बाद राममनोहर लोहिया अस्पताल पहुंच कर दीपा की लाश कब्जे में ले कर उसे पोस्टमार्टम हाउस भेज दियापुलिस ने थाने ला कर सुमन से पूछताछ की तो उस ने सच्चाई उगल दी. इस के बाद कांस्टेबल अरुण कुमार सिंह, शमशाद, भूपेंद्र वर्मा, राजेश यादव, ऊषा वर्मा और अनीता सिंह की टीम ने विपिन को भी गिरफ्तार कर लिया. उन से हत्या में प्रयोग की गई रिवाल्वर और सुमन की अल्टो कार नंबर यूपी32 बीएल6080 बरामद कर ली. जिस से ये दोनों फरार हुए थे.

देवरिया जिले के भटनी कस्बे का रहने वाला शिवम गणतंत्र दिवस की परेड देखने लखनऊ आया था. वह एक होनहार युवक था. लखनऊ घूमने के लिए विपिन ने उसे 1-2 दिन और रुकने के लिए कहा. उसे क्या पता था कि यहां रुकने पर उसे जेल जाना पड़ जाएगा. दोनों अभियुक्तों के खिलाफ पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 506 के तहत मामला दर्ज कर के उन्हें 29 जनवरी, 2014 को मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर जेल भेज दियाजेल जाने से पहले सुमन अपने किए पर पछता रही थी. उस ने पुलिस से कहा कि वह दीपा से बहुत प्यार करती थी. गुस्से में उस का कत्ल हो गया. सुमन के साथ जेल गए शिवम को लखनऊ में रुकने का पछतावा हो रहा था.

अपराध किसी तूफान की तरह होता है. वह अपने साथ उन लोगों को भी तबाह कर देता है जो उस से जुड़े नहीं होते हैं. दीपा और सुमन के गुस्से के तूफान में शिवम के साथ विपिन और दीपा का परिवार खास कर उस के 2 छोटेछोटे बच्चे प्रभावित हुए हैं. सुमन का भतीजा विपिन भागने में सफल रहा. कथा लिखे जाने तक उस की तलाश जारी थी.

   कथा पुलिस सूत्रों और मोहल्ले वालों से की गई बातचीत के आधार पर

– फोटो काल्पनिक है घटना से संबंधित नहीं है

आशिकी में एक प्रेमिका क्यों बनीं कातिल

मुकेश ने खेत में देखा तो हैरान रह गया. वहां भारी मात्रा में खून फैला हुआ था. यह देखते ही वह वहां से तुरंत उल्टे पैर भागा और सीधे  गांव के मास्टर हरिराम के घर पहुंचा.

मास्टर हरिराम ने जब यह बात सुनी तो वह भी हैरान रह गए. उन्होंने फोन कर के गांव के पूर्व सरपंच लाखन सिंह ठाकुर को भी बुला लिया. तीनों उसी जगह पर पहुंचे तो जहां खून पड़ा था, वहां घसीटने के भी निशान थे. उसी घसीटती हुई फसल का पीछा करते करते वह 100-200 मीटर भी नहीं पहुंचे थे कि तीनों के कदम ठहर गए. क्योंकि उन के सामने औंधे मुंह एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी.

वह जिस व्यक्ति की लाश थी, उसे पूर्व सरपंच लाखन सिंह ठाकुर जानते थे. लाश गांव की ही मौजूदा सरपंच फूलबाई कुशवाह के बेटे विशाल कुशवाहा की थी. पूर्व सरपंच ने देरी न करते हुए बैरसिया थाने के एसएचओ नरेंद्र कुलस्ते को फोन कर के सूचना दे दी.

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के देहात क्षेत्र में स्थित बैरसिया थाना है. इस में गांव दामखेड़ा पड़ता है. यह गांव थाने से करीब 15-16 किलोमीटर दूर है. इसी गांव में मास्टर हरिनारायण सक्सेना भी रहते हैं. उन्हें पूरा गांव मास्साब के नाम से ही जानता है. उन के ही खेत में एक टपरा है, जिस में उन का बेलदार मुकेश रहता था.

वह 10 मार्च की सुबह जल्दी उठा. क्योंकि उस दिन अमावस्या थी, इसलिए उसे गांव में स्थित हनुमान मंदिर में जल चढ़ाने जाना था. वह उठा और मंदिर में सुबह लगभग 7 बजे चला गया. मंदिर में जल चढ़ा कर वह आ रहा था, तब उसे दूर से मास्साब के खेत में लगी फसल का कुछ हिस्सा बिखरा नजर आया.

मुकेश को लगा कि कोई फसल काट ले गया है. इसलिए वह तुरंत तेज कदमों से वहां पहुंचा था.

एएसपी डा. नीरज चौरसिया

लाश मिलने की सूचना पाते ही एसएचओ तुरंत घटनास्थल के लिए निकल पड़े. रास्ते में ही एसएचओ ने एसपी प्रमोद कुमार सिन्हा, एएसपी डा. नीरज चौरसिया और प्रभारी एसडीओपी मंजू चौहान को यह जानकारी साझा कर दी.

एसडीओपी मंजू चौहान

एसएचओ नरेंद्र कुलस्ते मौके पर जा रहे थे, तभी उन के पास बैरसिया के एसडीओपी आनंद कलादगी की भी काल आ गई. वह भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी हैं और इस वक्त बैरसिया (देहात) में एसडीओपी का चार्ज देख रहे थे. हालांकि जब यह घटना हुई तो वह अवकाश पर पुश्तैनी गांव कर्नाटक गए हुए थे. एसएचओ ने उन्हें सारी जानकारी दे दी. शव पड़े होने की जानकारी देते हुए एसएचओ ने बताया कि वह मौके पर पहुंच रहे हैं.

इस के बाद घटनास्थल पर फिंगरप्रिंट के अधिकारियों और डौग स्क्वायड को भी बुला लिया था. इस के अलावा उन्होंने लललिया चौकी के प्रभारी एसआई शंभू सिंह सेंगर और थाने में तैनात एसआई रिंकू जाटव को भी मौके पर बुला लिया.

ये 2 बातें मौके पर हो चुकी थीं तय

थानाप्रभारी नरेंद्र कुलस्ते हरिनारायण सक्सेना के खेत पर पहुंचते, उस से पहले ही उन्हें गोलू साहू के खेत पर भारी भीड़ नजर आई. उन्होंने वहां मौजूद भीड़ को नगर रक्षा समिति के सदस्य इजरायल की मदद से हटाया.

उस के बाद शव और जहां खून फैला था, उस जगह को सुरक्षित कराया. वहां धीरेधीरे कर के सारे अफसर आना शुरू हो गए. खबर मीडिया तक पहुंच गई थी तो पत्रकारों का भी वहां जुटना शुरू हो गया.

उसी समय वहां सरपंच फूलबाई कुशवाहा के पति रमेश कुशवाहा भी कुछ लोगों के साथ पहुंच गए. अपने 25 वर्षीय बेटे विशाल कुशवाहा की लाश देख कर वह फूटफूट कर रोने लगे. उस की कुछ महीने पहले ही शादी भी हुई थी. वह नौजवान और हैंडसम युवक था. इस के अलावा सरपंच का बेटा होने के कारण उस का गांव में जलवा था.

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मृतक विशाल कुशवाहा

वह गांव में उगने वाली फसल को अपने लोडिंग वाहन में लोड कर के विदिशा जिले में लगने वाली मंडी में बेचने जाया करता था. जिस ग्रामीण को फसल उसे देनी होती थी, वह उसे पहले बता दिया करता था. इस कारण गांव के कई घरों में विशाल कुशवाहा का सीधा संपर्क था.

सबूत जुटाने में जुटे एसएचओ समेत तीनों अफसर नरेंद्र कुलस्ते, रिंकू जाटव और शंभू सिंह सेंगर मौके पर ही रणनीतियां बना रहे थे. इस दौरान हर स्तर का अफसर मौके पर आ कर एक नया टास्क टीम को दे कर जा रहा था.

एसएचओ मृतक विशाल कुशवाहा के शरीर में आए घावों को देख चुके थे. उस के बाएं कान के ऊपर भारी वस्तु से किए गए प्रहार के कारण सिर के भीतर दबा हिस्सा दिख रहा था. इस के अलावा सिर के पीछे और माथे पर धारदार हथियार के वार थे.

यह सभी अलगअलग तरह के थे. इसलिए यह तो साफ हो गया था कि उस की कई लोगों ने मिल कर हत्या की है. गरदन रेती गई थी, वह भी पेशेवर तरीके से. यानी यह भी साफ हो गया था कि वारदात करने वाला पेशेवर अपराधी है. गले को जिस जगह धारदार हथियार से रेता गया था, उस नाजुक जगह की जानकारी हर कोई नहीं रखता.

गांव से भागी महिला और उस के पति पर गया शक

घटनास्थल की बारबार तफ्तीश करने और विशाल कुशवाहा के कपड़ों की तलाशी लेने के बाद एसएचओ को सरकारी अस्पताल के 4 कंडोम मिले, इसलिए यह भी यकीन हो गया कि मामला अवैध संबंध से जुड़ा हो सकता है.

तभी एसएचओ का दिमाग ठनका और उन्होंने वहां मौजूद विशाल कुशवाहा के छोटे भाई मिथुन कुशवाहा से बातचीत शुरू की. क्योंकि वह उस वक्त होश में था.

उस ने बताया कि वह 2 भाई और 3 बहनें हैं, जिस में एक बहन की शादी हो गई है. मिथुन कुशवाहा से बातचीत में पता चला कि उन के गांव में चाची चली गई थी. वह गांव के दबंग अर्जुन कुशवाहा के साथ गई थी. उस से जरूर कुछ महीनों पहले विवाद की स्थिति बनी थी. लेकिन चाची और अर्जुन कुशवाहा घर छोड़ कर दूसरे गांव में रहने चले गए थे.

पुलिस ने उस की लोकेशन खंगाली तो वह संदेह के दायरे से बाहर हो गया. फिर आखिरी वक्त में कौन उस के साथ था, वह पता लगाया गया. तब मालूम हुआ कि गांव में रहने वाला बबलू कुशवाहा मृतक के पास आखिरी वक्त में था.

वह विशाल कुशवाहा की फसल और अपनी गाजर बेचने विदिशा गया हुआ था. उसे पुलिस ने काल करने की बजाय ग्रामीणों से काल लगा कर मौके पर बुलाया. उस को सीधे थाने ले जाया गया, जहां उस से पूछताछ अलग से की गई.

पड़ताल में मालूम हुआ कि बबलू कुशवाहा और विशाल कुशवाहा साथ में थे. जिस दिन लाश मिली, उस से एक दिन पहले रात 11 बजे लोडिंग वाहन उस के हवाले कर के वह चला गया था. लोडिंग वाहन में ही बबलू कुशवाहा को नींद की झपकी लग गई. बबलू कुशवाहा की नींद रात लगभग एक बजे खुली तो उस ने कई बार विशाल को फोन किया.

जब विशाल ने फोन नहीं उठाया तो बबलू ने उस के पापा रमेश कुशवाहा को फोन लगा कर बताया. उस ने बताया कि विशाल कुशवाहा ने सब्जी लोडिंग आटो में लोड कर ली थी. वह सुबह तक मंडी नहीं पहुंचाई तो खराब हो जाएगी. इस कारण रमेश कुशवाहा ने बबलू कुशवाहा के साथ दूसरे को भेज दिया.

यह बात पता चलने के बाद पुलिस ने बबलू कुशवाहा के अलावा विशाल कुशवाहा के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकालने का काम शुरू कर दिया.

प्रेमिका के कांफिडेंस को देख कर थानाप्रभारी का हौसला हुआ पस्त

एसएचओ ने मिथुन कुशवाहा से पूछा, ”तुम्हारे भाई के किसी महिला से संबंध थे?’’

यह सुन कर वह बोला, ”हां, कुछ साल पहले तक उस के नीतू शाक्य के साथ रिश्ते थे. दोनों शादी भी करना चाहते थे. लेकिन पिता दूसरी जाति होने के कारण इस रिश्ते को अपनाने के लिए तैयार नहीं थे.’’

यह पता चलने के बाद उन्होंने विशाल कुशवाहा का रिश्ता विदिशा जिले के गंजबासौदा में स्थित गांव सलोई में रहने वाली हरीबाई से तय कर दिया गया. यह पता चलने के बाद नीतू शाक्य ने विशाल को फोन भी किया था. उस ने कहा था कि वह शादी करेगा तो अच्छा नहीं होगा.

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आरोपी नीतू शाक्य

इस धमकी को घर वालों ने नजरअंदाज कर के शादी कर दी थीं. यह सुनने के बाद एसएचओ ने देर नहीं की और वह महिला कांस्टेबल शीला दांगी के साथ नीतू शाक्य के घर पहुंच गए और पूछताछ के लिए उसे थाने ले आए.

सरपंच के बेटे का दोस्त थाने पहुंच कर क्यों गिड़गिड़ाया

अब एसएचओ के सामने इस अंधे कत्ल को सुलझाने के लिए कई रास्ते थे. वह किन रास्तों पर जाएं, तय नहीं कर पा रहे थे. क्योंकि उन के सामने दामखेड़ा गांव के दबंग अर्जुन कुशवाहा की कहानी थी तो वहीं बबलू कुशवाहा भी था, जो घटना से कुछ देर पहले तक मृतक के साथ था. तीसरी नीतू शाक्य जो कुछ महीने पहले तक मृतक विशाल कुशवाहा की प्रेमिका थी.

इन सभी बातों के बीच एसएचओ ने मौके पर मिले कंडोमों के आधार पर तय किया कि वह नीतू शाक्य को फोकस करेंगे. इसी बीच उन्हें विशाल कुशवाहा के मोबाइल की काल डिटेल्स भी मिल गई. जांच में पता चला कि मृतक की आखिरी बातचीत अजय नामदेव के साथ हुई थी. वह विदिशा जिले का रहने वाला था.

पुलिस ने उसे भी पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. उस ने बताया कि यह सिम उस ने खरीद कर विशाल कुशवाहा को दी जरूर थी, लेकिन इस का इस्तेमाल वह नहीं करता था.

इस के बाद पुलिस ने अजय नामदेव के ही मोबाइल में हो रहे एक अन्य नंबर से बातचीत वाले को तलब किया. क्योंकि उस ने अजय नामदेव को उसी दिन कई बार फोन लगाया था.

उस का नाम आमीन मंसूरी था, जो दामखेड़ा गांव के नजदीक दूसरे गांव बबचिया का रहने वाला था. उस से पूछताछ का जिम्मा ललरिया चौकी में बैठे एसआई शंभु सिंह सेंगर को दिया गया. इधर, नीतू शाक्य पुलिस को कोई सहयोग नहीं कर रही थी. कई बार पुलिस पूछताछ की नाव गोते खा कर पलट रही थी.

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थाने में एकमात्र महिला कांस्टेबल नीतू शाक्य से पूछताछ करने में कमजोर साबित हो रही थी. उधर, आमीन मंसूरी ने भी कम परेशान नहीं किया. उस के रिश्तेदार भी हत्याकांड में उसे घेरे जाने का पता चलने पर एकएक कर के थाने के बाहर जमा होने लगे. इस के बावजूद एसआई शंभु सिंह सेंगर की टीम ने सख्ती बरती तो वह टूट गया.

उस ने हत्याकांड को करना कुबूल लिया, जिस में नीतू शाक्य की सीधी भूमिका थी. उस ने यह भी बताया कि वह हत्या करने के लिए राजी नहीं था. लेकिन नीतू शाक्य ने उस को प्यार का हवाला दे कर हत्या करने के लिए मजबूर कर दिया था.

शारीरिक संबंध बनाने से पहले नीतू ने रखी थी कौन सी शर्त

आमीन मंसूरी (18 वर्ष) द्वारा गुनाह कुबूल कर लेने के बाद नीतू ने भी रट्टू तोते की तरह सारी कहानी बयां कर दी. उस ने बताया कि वह विशाल कुशवाहा की बेवफाई से काफी आहत हो गई थी. इसलिए उस ने तय कर लिया था कि वह उस की हत्या करेगी.

आरोपी आमीन मंसूरी

इस के लिए उस ने गांव के ही कई युवकों के साथ दोस्ती भी की थी. उन के साथ रिश्ते बनाने से पहले यह शर्त थी कि उन्हें विशाल कुशवाहा को निपटाना होगा.

नीतू से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने एकएक कर के सभी युवकों को थाने बुलाया. पता चला कि आमीन मंसूरी मटनचिकन की दुकान में काम भी करता था. उस के साथ 3 महीने पहले ही नीतू शाक्य ने दोस्ती की थी. एसएचओ इस बात को ले कर परेशान थे कि उस के पास विशाल कुशवाहा के दोस्त अजय नामदेव की मोबाइल सिम कैसे मिली. तब उस ने बताया कि वह मोबाइल और सिम उस को विशाल कुशवाहा ने ही खरीद कर बातचीत करने के लिए दी थी. शादी से पहले उसी मोबाइल के जरिए बातचीत होती थी.

हत्याकांड को अंजाम देने के लिए नीतू शाक्य ने विशाल कुशवाहा को फोन लगा कर हनुमान मंदिर के पास बुलाया था. लेकिन उस दिन घर में उस की मौसी आ गई थी. इस कारण वह रात 11 बजे उस के पास पहुंची थी. हालांकि इस से पहले 9 बजे मुलाकात होनी थी.

मर्डर करने के बाद लाश क्यों जलाना चाहती थी नीतू

उधर, आमीन मंसूरी ने बताया कि हत्याकांड में उस का दोस्त मनोज वंशकार भी शामिल था. 20 वर्षीय मनोज बबचिया गांव का रहने वाला था. लेकिन भोपाल के कोलार रोड स्थित ललिता नगर में रहने वाले भाई बलराम वंशकार और भाभी सुनीता वंशकार के साथ वह रहता था.

आरोपी मनोज वंशकार

आमीन मंसूरी ने बताया कि उस ने हत्या तो नहीं की थी, लेकिन उस की बाइक से वह मौके पर पहुंचा था. वह यह जानता था कि मैं अपनी प्रेमिका नीतू शाक्य के दुश्मन को मारने वाला हूं.

आमीन मंसूरी की कहानी और नीतू शाक्य की पटकथा मेल खाने लगी. यह देख कर पुलिस ने नीतू शाक्य को संदेही मान कर हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इधर, बैरसिया स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में हुए विशाल कुशवाहा के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ चुकी थी.

रिपोर्ट में आईं इन चोटों को ले कर नीतू शाक्य ने राज उजागर किया. उस ने बताया कि उसे पता था कि मृतक के साथ बबलू कुशवाहा है, इसलिए उसे अकेले नीतू ने बुलाया था.

विशाल को लगा कि आज वह एक बार फिर पुरानी यादों को नीतू के साथ शारीरिक संबंध बना कर ताजा करेगा. इस कारण वह अपने साथ 4 कंडोम ले कर पहुंचा था. वह नीतू को देख कर अपने अरमानों को रोक नहीं पा रहा था. विशाल यह नहीं जानता था कि नीतू आज प्रेमिका नहीं, बल्कि बदला लेने वाली दुश्मन है.

वह योजना के तहत पीछे की तरफ जा रही थी. जबकि विशाल उसे आलिंगन करने के लिए बढ़ रहा था. तभी नीतू ने विरोध करते हुए बोला कि वह उस का फोन क्यों नहीं उठाता. विशाल बोला कि अब वह शादीशुदा है. पत्नी को पता चलता है तो घर में बवाल होता है.

यह बोलते हुए वह नीतू को दबोचने के लिए आगे बढ़ा. लेकिन नीतू पीछे हुई, तभी उस के पैर से पत्थर टकराया जो उस ने कब उठाया, यह विशाल समझ ही नहीं पाया. विशाल ने जैसे ही कमर के पीछे से दोनों हाथ डाल कर दबोचना चाहा. तभी उस ने विशाल के कान के बाएं तरफ जोरदार पत्थर का वार किया.

लाश को छिपाने में दोस्त ने क्यों नहीं की मदद

विशाल कुशवाहा को जैसे ही बाएं कान की तरफ पत्थर लगा तो वह चीख पड़ा. उसी वक्त पीछे से आ कर आमीन मंसूरी ने छुरी से विशाल के सिर पर वार किया और उसे दबोच लिया. यह देख कर वह समझ गया कि उस के साथ क्या होने वाला है. उस ने तुरंत ही मास्टर हरिनारायण सक्सेना के खेत में रहने वाले बेलदार को नाम ले कर बचाने के लिए पुकारा.

उस की आवाज सुन कर नीतू बोली, ”आमीन, इस का मुंह बंद करो नहीं तो पूरे गांव वाले जाग जाएंगे.’’

यह बोलने के साथ ही उस ने अपना दुपट्टा भी उसे दिया. दुपट्टे से आमीन मंसूरी ने उस का मुंह बंद किया और चाकू से विशाल कुशवाहा का गला रेत दिया. इस काम में आमीन मंसूरी काफी एक्सपर्ट था. क्योंकि वह मीट की दुकान में काम करता था.

गला रेतने के बाद खून का फव्वारा छूट पड़ा था. इसलिए खेत में चारों तरफ खून ही खून फैल गया. फिर तय किया गया कि उसे दूसरी जगह ले जा कर जला देते हैं, ताकि उस का शव पहचान में नहीं आ सके.

सिरहाने की तरफ से आमीन मंसूरी ने पकड़ा. वहीं पैर की तरफ से नीतू शाक्य पकड़ कर खींचने लगी, लेकिन मरने के बाद विशाल का शरीर भारी हो गया था.

बदले की आग जब शांत हुई तो नीतू खून से सने विशाल को देख कर घबरा गई. लाश खींचने के दौरान मृतक की पैंट नीतू के हाथों में खिंच आई और वह गिर गई.

यह देख कर आमीन ने अपने दोस्त मनोज वंशकार को बुलाया. आमीन ने उस से कहा कि वह लाश को घसीटने में मदद करे, ताकि उसे जला कर उस की पहचान मिटा सकें. लेकिन ऐसा करने के लिए मनोज वंशकार राजी नहीं हुआ.

नतीजतन दोनों गोलू कुशवाहा के खेत तक ही लाश को ले जा सके. उसे वहीं पटक कर तीनों मौके से भाग गए.

सारी रात कैसे मिटाए सबूत

नीतू शाक्य की योजना यह थी कि विशाल कुशवाहा की हत्या में उस का दोस्त अजय नामदेव फंसे. इसलिए उस के नाम पर खरीदे गए मोबाइल और सिम का इस्तेमाल नीतू ने किया था. लेकिन सब कुछ उलटा हो गया तो रणनीतियां बदली जाने लगीं.

हत्याकांड के बाद आरोपी आमीन मंसूरी मृतक का मोबाइल और पर्स ले कर भाग गया. ताकि लाश देखने के बाद पुलिस को यह लगे कि उस की लूट के इरादे से हत्या की गई है. आमीन मंसूरी ने बबचिया गांव के नाले में उस का मोबाइल फेंक दिया.

खून से सना दुपट्टा और कपड़े उतार कर नीतू शाक्य ने घर की छत पर एक कोने में छिपा दिए. उन्हें अगले दिन जलाने की योजना थी. लेकिन उस से पहले ही पुलिस उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई थी.

पुलिस ने पहले आमीन मंसूरी और उस की प्रेमिका नीतू शाक्य को गिरफ्तार किया. उस के अगले दिन मनोज वंशकार को भी हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने हत्याकांड में इस्तेमाल की गई मनोज वंशकार की बाइक भी जब्त कर ली. नीतू शाक्य ने मोबाइल की सिम तोड़ दी थी. लेकिन अजय नामदेव के नाम पर खरीदा गया मोबाइल उस के घर से बरामद किया गया.

पुलिस ने हत्या करने और सबूत मिटाने का मामला दर्ज करने के बाद आम्र्स एक्ट, लूट, साजिश रचने समेत कई अन्य धाराएं भी बढ़ा दीं. आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

-फोटो घटना से जुड़ी नहीं है यह एक काल्पनिक फोटो है

पैसो के लिए भाई बना दरिंदा, ढाई करोड़ रुपए के लिए की हत्या

सरदार अमरजीत की करोड़ों की दौलत हथियाने के लिए रोहित चोपड़ा और स्वर्ण सिंह ने ऐसा षडयंत्र रचा था कि अगर वे अपनी योजना में सफल हो जाते तो आज उन की जगह अमरजीत (मृतक) के बेटे सलाखों के पीछे होते.  

सुबह के नाश्ते पर आने की कोई बात ही नहीं थी. लेकिन दोपहर का खाना खाने से पहले ज्ञान कौर काफी देर तक अपने पति अमरजीत सिंह की राह देखती रहीं. धीरेधीरे 3 बज गया और अमरजीत सिंह घर नहीं आए तो उन्हें थोड़ी चिंता हुई. यह स्वभाविक भी था. वह सोचने लगीं, सरदारजी ने रात में आने की बात की थी, सुबह भी नहीं आए तो कोई बात नहीं थी. अब वह खाना खाने भी नहीं आए, जबकि वह खाना समय पर ही खाते थे. आज वह बिना बताए कहां चले गए? कहीं कोई जमीन तो देखने नहीं चले गए या फिर किसी जमीन के कागज बनवाने तो नहीं चले गए? काम में फंसे होने की वजह से बता नहीं पाए होंगे.

ज्ञान कौर ने 3-4 बार अमरजीत सिंह के मोबाइल पर फोन किया था, लेकिन संपर्क नहीं हो सका था. तरहतरह की बातें सोचते हुए ज्ञान कौर ने खाना खाया और आराम करने के लिए लेट गईं. सरदारजी के बारे में ही सोचते हुए वह सो गईं तो शाम को उठीं. उस समय भी सरदार अमरजीत सिंह घर नहीं लौटे थे. शाम को ही नहीं, रात बीत गई और सरदारजी लौट कर नहीं आएकई बार ज्ञान कौर के मन में आया कि सरदारजी के घर आने की बात वह अपने बड़े बेटे गुरचरण सिंह को बता दें. लेकिन उन के मन में आता कि बच्चे बेवजह ही परेशान होंगे. सरदारजी कोई बच्चे तो हैं नहीं कि गायब हो जाएंगे. 70 साल के स्वस्थ और समझदार आदमी हैं. वह ऐसे हैं कि खुद ही दूसरों को गायब कर दें, उन्हें कौन गायब करेगा?

इसी उहापोह और असमंजस की स्थिति में ज्ञान कौर का वह दिन भी बीत गया. जब दूसरी रात भी सरदार अमरजीत सिंह घर नहीं लौटे तो ज्ञान कौर ने परेशान हो कर अगली सुबह यानी 27 अगस्त, 2013 को गांव में रह रहे अपने बड़े बेटे गुरचरण सिंह के पास खबर भेजने के साथ बाघा बार्डर पर ड्यूटी कर रहे छोटे बेटे गुरदीप सिंह को भी फोन द्वारा सरदार अमरजीत सिंह के 2 दिनों से घर आने की सूचना दे दीगुरदीप सिंह भारतीय सेना की 69 आर्म्स बटालियन में सिपाही था. इन दिनों वह बाघा बार्डर पर तैनात था. मां से पिता के 2 दिनों से घर आने की जानकारी मिलते ही गुरदीप सिंह छुट्टी ले कर गांव आया और सब से पहले भाई को साथ ले कर थाना सदर जा कर अपने पिता के गायब होने की सूचना दे कर गुमशुदगी दर्ज करा दी. इस के बाद दोनों भाई पिता की तलाश में जुट गए.

सरदार अमरजीत सिंह लुधियाना के थाना सदर के अंतर्गत आने वाले गांव झांदे में रहते थे. काफी और उपजाऊ जमीन होने की वजह से गांव में उन की गिनती बड़े जमीनदारों में होती थी. गांव के बीचोबीच उन की महलनुमा शानदार कोठी थी, जिस में वह पत्नी ज्ञान कौर और 2 बेटों गुरचरण सिंह और गुरदीप सिंह के साथ रहते थे. दोनों बेटे पढ़ाई के साथसाथ खेती में भी बाप का हाथ बंटाते थे. बड़ा बेटा गुरचरण सिंह पढ़ाई पूरी कर के जमीनों की देखभाल करने लगा तो छोटा गुरदीप सिंह भारतीय सेना में भर्ती हो गया. गुरचरण सिंह और गुरदीप सिंह कामधाम से लग गए तो सरदार अमरजीत सिंह ने उन की शादियां कर दीं. उन की भी अपनी संतानें हो गई थीं. इस तरह उन का भरापूरा खुशहाल परिवार हो गया था.

वैसे भी धनदौलत की उन के पास कोई कमी नहीं थी, लेकिन जब देहातों का शहरीकरण होने लगा तो उन्होंने अपनी काफी जमीनें करोड़ो रुपए में बेच कर इस के बदले बरनाला में उन्होंने दोगुनी जमीन खरीद कर बटाई पर दे दी. बाकी पैसों से उन्होंने प्रौपर्टी डीलर का काम शुरू कर दिया. अमरजीत की जमीनों, मंडियों और आढ़त आदि का सारा काम बड़ा बेटा गुरचरण सिंह देखता था. जबकि अमरजीत सिंह अपने प्रौपर्टी डीलर वाले काम में व्यस्त रहते थे. इस के लिए उन्होंने गांव के बाहर लगभग 5 सौ वर्गगज में एक आलीशान औफिस और कोठी बनवा रखी थी. वह अपनी पत्नी ज्ञान कौर के साथ उसी में रहते थे, जबकि परिवार के अन्य लोग गांव वाली कोठी में रहते थे.

अमरजीत सिंह का इधर ढाई, 3 सालों से बगल के गांव थरीके के रहने वाले स्वर्ण सिंह के साथ कुछ ज्यादा ही उठनाबैठना था. वैसे तो स्वर्ण सिंह मोगा का रहने वाला था, लेकिन उस ने और उस के भाई गुरचरन सिंह ने मोगा की सारी जमीन बेच कर उत्तर प्रदेश के पृथ्वीपुर में काफी जमीन खरीद ली थी. जिस की देखभाल गुरचरन सिंह भाई स्वर्ण सिंह के साले कुलविंदर सिंह के साथ करता था. जबकि स्वर्ण सिंह थरीके में रहते हुए प्रौपर्टी का काम करता था. ऐसे में जब उसे पता चला कि झांदे गांव के रहने वाले अमरजीत सिंह का प्रौपर्टी का बड़ा काम है तो वह उन के पास भी आनेजाने लगा. उस ने उन से 3-4 प्लाटों के सौदे भी करवाए, जिन से उन्हें अच्छाखासा लाभ मिला.

उन्होंने स्वर्ण सिंह का पूरा कमीशन तो दिया ही, लेकिन इस के बाद से उन्हें उस पर पूरा भरोसा हो गया था. साथसाथ खानापीना होने लगा तो दोनों में मित्रता भी हो गई. इस के बाद अमरजीत सिंह का कोर्टकचहरी जा कर कागजात बनवाने और प्लाट वगैरह दिखाने का ज्यादातर काम स्वर्ण सिंह ही करने लगा. उसी बीच स्वर्ण सिंह ने अमरजीत सिंह की मुलाकात अमित कुमार से करवाई. अमित ने उन्हें बताया था कि वह गोल्ड मैडलिस्ट वकील है. लेकिन वह वकालत कर के प्रौपर्टी का बड़ा काम करता था. वह छोटेमोटे नहीं, बड़े सौदे करता और करवाता था.अमित कुमार ने अमरजीत सिंह से इस तरह बातें की थीं कि वह उस से काफी प्रभावित हुए थे. इस के बाद अमित कुमार ने अमरजीत सिंह को 2-3 प्लाट भी खरीदवाए थे, जिन्हें बेच कर अमरजीत सिंह ने अच्छाखासा लाभ कमाया था.

स्वर्ण सिंह की ही तरह अमरजीत सिंह अमित कुमार पर भी विश्वास करने लगे थे. इस के बाद अमित कुमार ने अमरजीत सिंह के साथ मिल कर करीब ढाई करोड़ रुपए का एक सौदा किया, जिस के लिए उन्होंने 50-50 लाख रुपए का 2 बार में भुगतान किया था. इस सौदे में स्वर्ण सिंह गवाह था. लेकिन इतने बड़े सौदे की अमरजीत सिंह के घर के किसी भी सदस्य को कोई जानकारी नहीं थी. बहरहाल, अमरजीत सिंह के गायब होने के बाद उन के दोनों बेटे, गुरदीप सिंह और गुरचरण सिंह हर संभावित जगह पर उन की तलाश करते रहे. लेकिन उन का कहीं पता नहीं चल रहा था. ऐसे में ही किसी दिन उन की मुलाकात गांव के ही कृपाल सिंह से हुई तो उस ने उन्हें बताया कि जिस दिन से सरदार जी गायब हैं, उस दिन सुबह वह खेतों पर जा रहा था तो उस ने उन्हें स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर के साथ देखा था.

उस समय वह काफी नशे में लग रहे थे. उस के पूछने पर सुखमीत कौर ने बताया था कि वे सरदारजी को अपने भाई की जमीन दिखाने यूपी ले जा रहे हैं. उस समय वे लोग ब्रह्मकुमारी सदन के मोड़ पर खड़े थे. कुछ देर बाद एक इंडिका कार आई तो सभी उस में सवार हो कर चले गए थे. कृपाल सिंह से मिली जानकारी चौंकाने वाली थी, क्योंकि पिता के स्वर्ण सिंह के साथ जाने की बात उन्हें बिलकुल पता नहीं थी. स्वर्ण सिंह ने भी यह बात नहीं बताई थी. इस के अलावा अमरजीत सिंह के औफिस से ढाई करोड़ रुपए की जमीन के सौदे के कागजात भी मिल गए थे, जिन्हें देख कर दोनों भाइयों ने अंदाजा लगाया कि कहीं इसी ढाई करोड़ रुपए की जमीन के लिए तो उन के पिता का अपहरण नहीं किया गया.

 इस के बाद गुरचरण सिंह और गुरदीप सिंह को लगा कि अब समय बेकार करना ठीक नहीं है. दोनों भाई थाना सदर के थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ से मिले और उन्हें पूरी बात बताई. चूंकि अमरजीत सिंह ग्रेवाल बड़े और जानेमाने आदमी थे, सो अमनदीप सिंह बराड़ ने गुरदीप सिंह के बयान के आधार पर ही अमरजीत सिंह के मामले को अपराध संख्या 124/2013 पर भादंवि की धारा 364-120बी के तहत दर्ज कर मामले की सूचना उच्चाधिकारियों को दे कर खुद ही इस की जांच शुरू कर दी. थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ ने स्वर्ण सिंह और उस की तलाश के लिए एक टीम बनाई, जिस में एएसआई रामपाल सिंह, दविंदर सिंह, मुख्तियार सिंह, हेडकांस्टेबल कुलवंत सिंह, हरपाल सिंह, सुखविंदर सिंह और तलविंदर सिंह को शामिल किया.

अगले ही दिन इस पुलिस टीम ने मुखबिरों की सूचना पर लुधियाना के बाहरी क्षेत्र से स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर को कार सहित गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर इन से पूछताछ की जाने लगी तो इन्होेंने अमरजीत सिंह के साथ यूपी जाने की बात से साफ मना कर दिया. उन का कहना था कि उन्होंने अमरजीत सिंह को जगराओं के निकट एक जमीन दिखा कर उन के घर छोड़ दिया था. पुलिस टीम ने लाख कोशिश की, लेकिन वे अपने बयान पर अड़े रहे. इधर थाना पुलिस पूछताछ में लगी थी तो दूसरी ओर गुरदीप सिंह जीटी रोड स्थित शंभू बार्डर के टोल टैक्स नाका से सीसीटीवी की फुटेज ले आया. थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ ने वह फुटेज देखी तो उस में स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि 25 अगस्त की सुबह 9 बजे के आसपास इंडिका कार, जिस का नंबर पीबी19-2277 था.

उस की अगली सीट पर नशे की हालत में अमरजीत सिंह बैठे थे. ड्राइवर की सीट पर स्वर्ण सिंह बैठा था और पीछे की सीट पर सुखमीत कौर बैठी थी. अगले दिन यानी 26 अगस्त की शाम को वही गाड़ी लौटी थी, लेकिन उस में अमरजीत सिंह नहीं थे.फुटेज देख कर स्वर्ण सिंह कुछ कहने लायक नहीं रह गया था. फिर भी उस ने बात को घुमाने की कोशिश की. उस ने कहा कि कुछ जमीन अंबाला के पास थी. सरदारजी ने कहा था कि जब यहां तक आए हैं तो लगे हाथ उसे भी देख लेते हैं. उसे देखने के लिए वे अंबाला चले गए थे. लेकिन स्वर्ण सिंह का यह बहाना भी नहीं चला और अंत में उसे अपना अपराध स्वीकार करना पड़ा

स्वर्ण सिंह ने बताया था कि अमरजीत की हत्या कर के उन की लाश को उन लोगों ने नहर में फेंक दी थी. स्वर्ण सिंह के बताए अनुसार, इस हत्याकांड में 5 लोग शामिल थे, एक तो वह स्वयं था, दूसरा उस का भाई गुरचरन सिंह, तीसरा साला कुलविंदर सिंह, चौथा पत्नी सुखमीत कौर और पांचवां था अमित कुमार उर्फ रोहित कुमार.स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर पुलिस गिरफ्त में थे. उन के बयान के बाद पुलिस ने इस मुकदमे में धारा 364-120बी के साथ 302-201बी, 25-54-59 आर्म्स एक्ट जोड़ कर स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर को ड्यूटी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें विस्तृत पूछताछ के लिए 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान ही उन की निशानदेही पर उत्तर प्रदेश के पृथ्वीपुर से उस के भाई गुरचरन सिंह और साले कुलविंदर सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर के साथ गुरचरन सिंह एवं कुलविंदर सिंह को अदालत में पेश कर के लाश एवं सुबूत जुटाने के लिए 9 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान ही अभियुक्तों की निशानदेही पर पंजाब पुलिस ने यूपी पुलिस की मदद से उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद के निकट रामगंगा नदी में जाल डाल कर मृतक अमरजीत सिंह की लाश की तलाश के लिए मीरजापुर से जलालाबाद तक जाल डाला. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी लाश बरामद नहीं हो सकी. पुलिस ने गिरफ्तार अभियुक्तों की निशानदेही पर इस हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त अमित कुमार उर्फ विजय उर्फ रोहित चोपड़ा की तलाश में कई जगह छापे मारे, लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं लगा. इस बीच पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त कार, डंडा, 32 और 315 बोर के 2 रिवाल्वर के साथ 10 लाख रुपए नकद बरामद कर लिए थे.

रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने चारों अभियुक्तों स्वर्ण सिंह, उस की पत्नी सुखमीत कौर, उस के भाई गुरचरन सिंह और साले कुलविंदर सिंह को एक बार फिर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जिला जेल भेज दिया गया. गिरफ्तार चारों अभियुक्तों से की गई पूछताछ में अमरजीत सिंह की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह ठगी, बेईमानी, ईर्ष्या और उच्च महत्त्वाकांक्षा की पृष्ठभूमि पर तैयार की गई थी. सही बात तो यह थी कि इस हत्याकांड की पृष्ठभूमि काफी पहले ही तैयार कर ली गई थी. अगर हत्यारे अपनी योजनानुसार अपने इरादों में सफल हो जाते तो उन की जगह मृतक के दोनों बेटे पिता की हत्या के आरोप में जेल की हवा खा रहे होते और अभियुक्त उन की प्रौपर्टी पर ऐश कर रहे होते.

अभियुक्त स्वर्ण सिंह और उस का साला कुलविंदर सिंह शुरू से जमीनजायदाद के फर्जी काम करते आ रहे थे. पर ज्यादा पढ़ेलिखे न होने की वजह से वे छोटीमोटी ठगी तक ही सीमित थे. लेकिन रोहित कुमार यानी अमित कुमार से मिलने के बाद उन के पर निकल आए थे. उसी के कहने पर वे किसी बड़े काम की तलाश में लग गए थे. इसी तलाश में अमरजीत सिंह पर उन की नजर जम गई थी. इस पूरे खेल का मास्टरमाइंड अमित कुमार उर्फ विजय कुमार उर्फ रोहित कुमार था, जिस का असली नाम रोहित चोपड़ा था. वह लुधियाना के घुमार मंडी के सिविल लाइन के रहने वाले दर्शन चोपड़ा के तीन बेटों में सब से छोटा था. लगभग 7 साल पहले उस की शादी इंदू से हुई थी, जिस से उसे 5 साल की एक बेटी थी.

रोहित बचपन से ही अति महत्त्वाकांक्षी, शातिर दिमाग था. एलएलबी करने के बाद तो उस का दिमाग शैतानी करामातों का घर बन गया था. वह रातदिन अपराध करने और उस से बचने के उपाय सोचता रहता था. स्वर्ण सिंह से मिलने के बाद जब उसे अमरजीत सिंह की दौलत, जमीनजायदाद और पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में पता चला तो वह स्वर्ण सिंह के साथ मिल कर उन की प्रौपर्टी और रुपए हथियाने के मंसूबे बनाने लगा. एक तरह से स्वर्ण सिंह रोहित चोपड़ा के लिए मुखबिर का काम करता था. रोहित को जब स्वर्ण से पता चला कि अमरजीत सिंह बेटों से ज्यादा वास्ता नहीं रखता तो उसे अपना काम आसान होता नजर आया. स्वर्ण सिंह ने उसे बताया था कि एक बेटा भारतीय सेना में है तो दूसरा जमीनों की देखभाल करता है.

इस के बाद रोहित कुमार ने अमरजीत सिंह का माल हथियाने की जो योजना बनाई, उस के अनुसार सब से पहले उन की ओर से डिप्टी कलेक्टर को एक पत्र लिखवाया गया. जिस में उस ने लिखवाया था किमेरे दोनों बेटे गुरदीप सिंह और गुरचरण सिंह मेरे कहने में नहीं हैं. वे मेरी जमीनजायदाद हड़पने के चक्कर में मेरी हत्या करना चाहते हैं.’ अमरजीत सिंह शराब पीने के आदी थे और अभियुक्तों पर पूरा विश्वास करते थे. यही वजह थी कि शराब पीने के बाद वह उन के कहने पर किसी भी कागज पर हस्ताक्षर कर देते थे. डिप्टी कलेक्टर के नाम पत्र लिखवाने के बाद उन्होंने अमरजीत सिंह की हत्या की योजना बना डाली थी. लेकिन समस्या यह थी कि अमरजीत सिंह के पास अपना लाइसेंसी हथियार था. जरा भी संदेह या चूक होने पर उन लोगों की जान जा सकती थी. इसलिए वे मौके की तलाश में रहने लगे.

मई के अंतिम सप्ताह में उन्हें मौका मिला. अमरजीत सिंह अपने किसी मिलने वाले की जमीन के झगड़े का फैसला कराने सिंधवा वेट, जगराओं गए हुए थे. घर में भी उन्होंने यही बताया था. रोहित कुमार ने सोचा कि अगर बाहर से ही अमरजीत सिंह को कहीं ले जा कर हत्या कर दी जाए तो किसी को उस पर संदेह नहीं होगा. उस ने स्वर्ण सिंह से सलाह कर के अमरजीत सिंह को फोन किया, ‘‘जमीन का एक बढि़या टुकड़ा बिक रहा है. अगर आप देखना चाहें तो मैं आप के पास आऊं.’’  लेकिन अमरजीत सिंह ने जाने से मना कर दिया. इस तरह रोहित कुमार और स्वर्ण सिंह की यह योजना फेल हो गई. वे एक बार फिर मौका ढूंढने लगे. इसी बीच उन्होंने अमरजीत को ढाई करोड़ रुपए में एक जमीन खरीदवा दी. इस की फर्जी रजिस्ट्री भी उन्होंने करा दी. इस में भी गवाह स्वर्ण सिंह था. पार्टी को पैसे देने के नाम पर उन्होंने उन से 50-50 लाख कर के 1 करोड़ रुपए भी ले लिए.

 किसी भी जमीन की रजिस्ट्री करवाने के बाद उस का दाखिलखारिज कराना जरूरी होता है. उसी के बाद खरीदार निश्चिंत हो जाता है कि उस जमीन पर किसी तरह का विवाद नहीं है. अमरजीत सिंह द्वारा खरीदी गई जमीन के दाखिलखारिज का समय आया तो स्वर्ण सिंह और रोहित कुमार को चिंता हुई, क्योंकि उस जमीन के सारे कागजात फर्जी थे. जब जमीन ही नहीं थी तो कैसी रजिस्ट्री और कैसा दाखिलखारिज. पोल खुलने के डर से रोहित कुमार और स्वर्ण सिंह परेशान थे. ऐसे में अमरजीत सिंह की हत्या करना और जरूरी हो गया था. क्योंकि सच्चाई का पता चलने पर अमरजीत सिंह उन्हें छोड़ने वाला नहीं था.

दाखिलखारिज के लिए 10-12 दिन बाकी रह गए तो वे अमरजीत सिंह को सस्ते में जमीन दिलाने की बात कह कर खरीदने के लिए उकसाने लगे. स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर ने अमरजीत सिंह को बताया कि उस के भाई कुलविंदर सिंह की पृथ्वीपुर में काफी जमीन है, जिसे वह बेचना चाहता है. उसे पैसों की सख्त जरूरत है, इसलिए वह कुछ सस्ते में दे देगा. उसी जमीन के बारे में बातचीत करने के लिए 24 अगस्त की रात स्वर्ण सिंह अमरजीत सिंह के औफिस में ही रुक गया. देर रात तक वे शराब पीते रहे. स्वर्ण सिंह अमरजीत सिंह को अधिक शराब पिला कर पृथ्वीपुर चल कर जमीन देखने के लिए राजी करता रहा. जब अमरजीत सिंह चलने के लिए तैयार हो गए तो सुबह के लगभग साढ़े 5 बजे अपने घर थरीके जा कर वह अपनी सफेद रंग की इंडिका कार ले आया, जिस का नंबर पीबी 19 -2277 था. उस के साथ उस की पत्नी सुखमीत कौर भी थी.

स्वर्ण सिंह ने कार ब्रह्मकुमारी शांति सदन के मोड़ पर खड़ी कर दी और अमरजीत सिंह के औफिस जा कर बोला, ‘‘भाईजी चलो, गाड़ी गई है.’’ नशे में धुत अमरजीत सिंह सोचनेसमझने की स्थिति में नहीं थे. वह उठे और जा कर कार में बैठ गए. उसी समय गांव के कृपाल सिंह ने उन्हें इंडिका कार में स्वर्ण सिंह के साथ जाते देख लिया था. अंबालादिल्ली होते हुए वे पृथ्वीपुर पहुंचे. वहां स्वर्ण सिंह के भाई गुरचरण सिंह और साले कुलविंदर सिंह ने अमरजीत सिंह का स्वागत बोतल खोल कर किया. शराब पीतेपीते ही शाम हो गई. अब तक अमरजीत सिंह खूब नशे में हो चुके थे. उन से उठा तक नहीं जा रहा था. उसी स्थिति में उन्होंने उन्हें वहीं कमरे में गिरा दिया और सब मिल कर पीटने लगे. वहीं लकड़ी का एक मोटा डंडा पड़ा था. स्वर्ण सिंह उसे उठा कर अमरजीत सिंह की गरदन और सिर पर वार करने लगा. उसी की मार से अमरजीत की गरदन टूट कर एक ओर लुढ़क गई और उन के प्राणपखेरू उड़ गए. 

जब उन लोगों ने देखा कि अमरजीत का खेल खत्म हो गया है तो उन्होंने लाश को कार में डाला और उसे ठिकाने लगाने के लिए चल पड़े. रामगंगा नदी के पुल पर जा कर उन्होंने अमरजीत सिंह की लाश को नदी में फेंक दिया. इस के बाद गुरचरन और कुलविंदर पृथ्वीपुर लौट गए तो स्वर्ण सिंह पत्नी सुखमीत कौर के साथ लुधियाना गया.

  पुलिस ने स्वर्ण सिंह, सुखमीत कौर, गुरचरन सिंह और कुलविंदर सिंह को तो जेल भेज दिया, लेकिन अमित कुमार उर्फ रोहित कुमार पुलिस के हाथ नहीं लगा था. 15 दिसंबर, 2013 को इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई थी. कथा लिखे जाने तक अमरजीत सिंह की लाश बरामद नहीं हो सकी थी.

इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है

जब एक पत्नी को अपने सुहाग की करनी पड़ी हत्या

नीरज को घर से गए 24 घंटे से भी ज्यादा हो गए और उस का कुछ पता नहीं चला तो उस की पत्नी रूबी ने थाना पंतनगर जा कर उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. इस के बाद उस के घर से गायब होने की जानकारी अपने सभी नातेरिश्तेदारों को देने के साथसाथ ससुराल वालों को भी दे दी थी.

नीरज के इस तरह अचानक गायब हो जाने की सूचना से उस के घर में कोहराम मच गया. नीरज के गायब होने की जानकारी उस के मामा को हुई तो वह भी परेशान हो उठे. उस समय वह गांव में थे. उन्होंने अपने बहनोई यानी नीरज के पिता रघुनाथ ठाकुर एवं उस के बड़े भाई को साथ लिया और महानगर मुंबई आ गए.

नीरज की पत्नी रूबी ने उन लोगों को बताया कि उस दिन वह घर से 250 रुपए ले कर निकले तो लौट कर नहीं आए. जब उन्हें गए 24 घंटे से भी ज्यादा हो गए तो उस का धैर्य जवाब देने लगा. उस ने थाना पंतनगर जा कर उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी और सभी को उन के घर न आने की जानकारी दे दी.

नीरज के इस तरह अचानक गायब हो जाने से उस के पिता रघुनाथ ठाकुर, बड़ा भाई और मामा रमाशंकर चौधरी परेशान हो उठे. सभी लोग मिल कर अपने तरीके से नीरज की तलाश करने लगे.

वे मुंबई में रहने वाले अपने सभी नातेरिश्तेदारों के यहां तो गए ही, उन अस्पतालों में भी गए, जहां ऐक्सीडैंट के बाद लोगों को इलाज के लिए ले जाया जाता है. आसपास के पुलिस थानों में भी पता किया, लेकिन उस का कहीं कुछ पता नहीं चला. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर नीरज बिना कुछ बताए क्यों और कहां चला गया.

बेटे के अचानक गायब होने की चिंता और भागदौड़ में पिता रघुनाथ ठाकुर बीमार पड़ गए. एक दिन सभी लोग नीरज के बारे में ही चर्चा कर रहे थे, तभी रूबी ने अपने मामा ससुर रमाशंकर चौधरी से कहा, ‘‘परसों आधी रात को जब मैं शौचालय गई थी तो मुझे लगा कि वह शौचालय के गड्ढे से कह रहे हैं कि ‘रूबी मैं यहां हूं…’ उन की आवाज सुन कर मैं चौंकी.’’

मैं शौचालय के गड्ढे के पास यह सोच कर गई कि शायद वह आवाज दोबारा आए. लेकिन आवाज दोबारा नहीं आई. थोड़ी देर मैं वहां खड़ी रही, उस के बाद मुझे लगा कि शायद मुझे वहम हुआ है. मैं कमरे में आ गई.’’

अंधविश्वासों पर विश्वास करने वाले नीरज के मामा रमाशंकर चौधरी ने अपनी मौत का सच बताने वाली तमाम प्रेत आत्माओं के किस्से सुन रखे थे, इसलिए उन्हें लगा कि अपनी मौत का सच बताने के लिए नीरज की आत्मा भटक रही है. कहीं वह शौचालय के गड्ढे में तो गिर कर नहीं मर गया.

सुबह उठ कर वह शौचालय के गड्ढे के ऊपर रखे ढक्कन को देख रहे थे, तभी शौचालय की साफ सफाई करने वाला प्रशांत उर्फ ननकी फिनायल की बोतल ले कर आया और उस के आसपास फिनायल डालने लगा. उन्होंने पूछा, ‘‘भई यहां फिनायल क्यों डाल रहा है?’’

‘‘आज यहां से कुछ अजीब सी बदबू आ रही है. इसलिए सोचा कि फिनायल डाल दूंगा तो बदबू खत्म हो जाएगी.’’ प्रशांत ने कहा.

प्रशांत की इस बात से रमाशंकर को लगा कि कहीं सचमुच तो नहीं नीरज इस गड्ढे में गिर गया. शायद इसी वजह से बदबू आ रही है. वह तुरंत शौचालय के गड्ढे के ढक्कन के पास पहुंच गए. उसे हटाने के लिए उन्होंने उस पर जोर से लात मारी तो संयोग से वह टूट गया.

ढक्कन के टूटते ही उस में से इतनी तेज दुर्गंध आई कि रमाशंकर चौधरी को चक्कर सा आ गया. 5 मिनट के बाद उन्होंने अपनी नाक पर कपड़ा रख कर उस गड्ढे के अंदर झांका तो उन्हें सफेद कपड़े में लिपटी कोई भारी चीज दिखाई दी. उसे देख कर उन्हें यही लगा, यह भारी चीज किसी की लाश है. उन्होंने यह बात रूबी को बताने के साथसाथ शौचालय के संचालक नरेनभाई सोलंकी को भी बता दी. यह 27 मार्च, 2014 की बात थी.

इस के बाद रमाशंकर चौधरी सीधे थाना पंतनगर जा पहुंचे. उन्होंने पूरी बात ड्यूटी पर तैनात सबइंसपेक्टर देवेंद्र ओव्हाल को बताई तो उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी अपने अधिकारियों को दे दी.

इस के बाद वह अपने साथ हेडकांस्टेबल चंद्रकांत गोरे, किशनराव नावडकर, प्रशांत शिर्के, कांस्टेबल संतोष गुरुव और पंकज भोसले को साथ ले कर सहकारनगर मार्केट स्थित न्यू सुविधा सुलभ शौचालय पहुंच गए.

पुलिस टीम के घटनास्थल तक पहुंचने तक वहां काफी भीड़ लग चुकी थी. सबइंस्पेक्टर देवेंद्र ओव्हाल ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्हें भी लगा कि गड्ढे में पड़ी चीज लाश ही है तो उन्होंने उसे निकलवाले के लिए फायरब्रिगेड के कर्मचारियों को बुला लिया.

फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों ने जब सफेद चादर में लिपटी उस चीज को निकाला तो वह सचमुच लाश थी. लाश इस तरह सड़ चुकी थी कि उस की शिनाख्त नहीं हो सकती थी.

लेकिन लाश के हाथ में जो घड़ी बंधी थी, उसे देख कर रमाशंकर चौधरी और रूबी ने बताया कि यह घड़ी तो नीरज ठाकुर की है. नीरज कई दिनों से गायब था, इस से साफ हो गया कि वह लाश नीरज की ही थी.

सबइंस्पेक्टर देवेंद्र ओव्हाल अपने साथी पुलिसकर्मियों के साथ लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर रहे थे कि शौचालय के गड्ढे में लाश मिलने की सूचना पा कर परिमंडल-6 के एडिशनल पुलिस कमिश्नर महेश धुर्ये, असिस्टैंट पुलिस कमिश्नर विलास पाटिल, सीनियर इंसपेक्टर निर्मल, इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर, असिस्टैंट इंसपेक्टर सकपाल और प्रदीप दुपट्टे भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने सरसरी नजर से घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर के घटना की जांच की जिम्मेदारी सीनियर इंसपेक्टर निर्मल को सौंप दी.

सीनियर इंसपेक्टर निर्मल ने सहकर्मियों की मदद से घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए घाटकोपर स्थित राजावाड़ी अस्पताल भिजवा दिया.

इस के बाद थाने लौट कर सीनियर इंसपेक्टर निर्मल ने इस मामले की जांच इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर को सौंप दी. इस के बाद जितेंद्र आगरकर ने उन के निर्देशन में जांच की जो रूपरेखा तैयार की, उसी के अनुरूप जांच शुरू कर दी गई.

सब से पहले तो उन्होंने मृतक नीरज ठाकुर के घर वालों के साथसाथ न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के संचालक नरेनभाई सोलंकी को भी पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

नीरज के घर वालों तथा न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के संचालक नरेनभाई सोलंकी ने जो बताया, जांच अधिकारी इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर को मृतक की पत्नी रूबी पर संदेह हुआ. उन्होंने उस पर नजर रखनी शुरू कर दी. उन्होंने देखा कि पति की मौत के बाद किसी औरत के चेहरे पर जो दुख और परेशानी दिखाई देती है, रूबी के चेहरे पर वैसा कुछ भी नहीं था.

इसी से उन्हें आशंका हुई कि किसी न किसी रूप में रूबी अपने पति की हत्या के मामले में जरूर जुड़ी है. लेकिन इतने भर से उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता था. इसलिए वह उस के खिलाफ ठोस सुबूत जुटाने लगे.

सुबूत जुटाने के लिए उन्होंने रूबी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाने के साथ न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के आसपास रहने वालों से गुपचुप तरीके से पूछताछ की तो उन्हें रूबी के खिलाफ ऐसे तमाम सुबूत मिल गए, जो उसे थाने तक ले जाने के लिए पर्याप्त थे.

लोगों ने बताया था कि रूबी और नीरज के बीच अकसर लड़ाई झगड़ा होता रहता था. यह लड़ाई झगड़ा शौचालय पर ही काम करने वाले संतोष झा को ले कर होता था. क्योंकि रूबी के उस से अवैध संबंध थे.

इस के बाद इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर ने न्यू सुविधा सुलभ शौचालय पर काम करने वाले प्रशांत कुमार चौधरी और मृतक नीरज ठाकुर की पत्नी रूबी को एक बार फिर पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

इस बार दोनों काफी डरे हुए थे, इसलिए थाने आते ही उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. रूबी ने बताया कि उसी ने प्रेमी संतोष झा के साथ मिल कर नीरज की हत्या की थी. हत्या में प्रशांत ने भी उस की मदद की थी. इस के बाद रूबी और प्रशांत ने नीरज की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

35 वर्षीय नीरज ठाकुर मूलरूप से बिहार के जिला मुजफ्फरपुर के थाना सफरा का रहने वाला था. उस के परिवार में मातापिता, एक बड़ा भाई और एक बहन थी. उम्र होने पर सभी बहनभाइयों की शादी हो गई. नीरज 3 बच्चों का पिता भी बन गया. इस परिवार का गुजरबसर खेती से होता था.

जमीन ज्यादा नहीं थी, इसलिए परिवार बढ़ा तो गुजरबसर में परेशानी होने लगी. बड़ा भाई पिता रघुनाथ ठाकुर के साथ खेती कराता था, इसलिए नीरज ने सोचा कि वह घर छोड़ कर किसी शहर चला जाए, जहां वह चार पैसे कमा सके.

घर वालों को भला इस बात पर क्या ऐतराज हो सकता था. उन्होंने हामी भर दी तो 5 साल पहले घर वालों का आशीर्वाद ले कर नीरज नौकरी की तलाश में महानगर मुंबई पहुंच गया. वहां सांताक्रुज ईस्ट गोलीवार में उस के मामा रमाशंकर चौधरी रहते थे. उन का अपना स्वयं का व्यवसाय था. वह मामा के साथ रह कर छोटेमोटे काम करने लगा.

कुछ दिनों बाद उस की मुलाकात न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के संचालक नरेनभाई सोलंकी से हुई तो घाटकोपर, थाना पंतनगर के सहकार नगर मार्केट स्थित न्यू सुविधा सुलभ शौचालय की उन्होंने जिम्मेदारी उसे सौंप दी. आधुनिक रूप से बना यह शौचालय काफी बड़ा था. उसी के टैरेस पर कर्मचारियों के रहने के लिए कई कमरे बने थे, उन्हीं में से एक कमरा नीरज ठाकुर को भी मिल गया.

न्यू सुविधा सुलभ शौचालय से नीरज को ठीकठाक आमदनी हो जाती थी. जब उसे लगा कि वह शौचालय की आमदनी से परिवार की जिम्मेदारी उठा सकता है तो गांव जा कर वह पत्नी रूबी और बच्चों को भी ले आया. क्योंकि वह बच्चों को पढ़ालिखा कर उन का भविष्य सुधारना चाहता था.

नीरज परिवार के साथ न्यू सुविधा सुलभ शौचालय के टैरेस पर बने कमरे में आराम से रह रहा था. जिंदगी आराम से गुजर रही थी. लेकिन जैसे ही उस की जिंदगी में उस का दोस्त संतोष झा दाखिल हुआ, उस की सारी खुशियों में ग्रहण लग गया.

संतोष झा उसी के गांव का रहने वाला उस का बचपन का दोस्त था. वह मुंबई आया तो उस ने उसे अपने पास ही रख लिया. गांव का और दोस्त होने की वजह से संतोष नीरज के कमरे पर भी आताजाता था. वह उस की पत्नी रूबी को भाभी कहता था. इसी रिश्ते की वजह से दोनों में हंसीमजाक भी होता रहता था.

इसी हंसीमजाक में पत्नी बच्चों से दूर रह रहा संतोष धीरे धीरे रूबी की ओर आकर्षित होने लगा. मन की बात उस के हावभाव से जाहिर होने लगी तो रूबी को भांपते देर नहीं लगी कि उस के मन में क्या है. उसे अपनी ओर आकर्षित होते देख रूबी भी उस की ओर खिंचने लगी. इस से संतोष का साहस बढ़ा और वह कुछ ज्यादा ही रूबी के कमरे पर आनेजाने लगा.

घंटों बैठा संतोष रूबी से मीठीमीठी बातें करता रहता. रूबी को उस के मन की बात पता ही थी, इसलिए वह उस से बातें भी वैसी ही करती थी.

संतोष की ओर रूबी के आकर्षित होने की सब से बड़ी वजह यह थी कि नीरज जब से उसे मुंबई लाया था, उसी छोटे से कमरे में कैद कर दिया था. उस की दुनिया उसी छोटे से कमरे में कैद हो कर रह गई थी.

नीरज अपने काम में ही व्यस्त रहता था, ऐसे में उस का कोई मिलने जुलने वाला था तो सिर्फ संतोष. वही उस के सुखदुख का भी खयाल रखता था और जरूरतें भी पूरी करता था. क्योंकि नीरज के पास उस के लिए समय ही नहीं होता था. संतोष ही उस के बेचैन मन को थोड़ा सुकून पहुंचाता था.

संतोष शादीशुदा ही नहीं था, बल्कि उस के बच्चे भी थे. उसे नारी मन की अच्छी खासी जानकारी थी. अपनी इसी जानकारी का फायदा उठाते हुए वह जल्दी ही रूबी के बेचैन मन को सुकून पहुंचाते पहुंचाते तन को भी सुकून पहुंचाने लगा.

रूबी को उस ने जो प्यार दिया, वह उस की दीवानी हो गई. अब उसे नीरज के बजाय संतोष से ज्यादा सुख और आनंद मिलने लगा, इसलिए वह नीरज को भूलती चली गई.

मर्यादा की कडि़यां बिखर चुकी थीं. दोनों को जब भी मौका मिलता, अपने अपने अरमान पूरे कर लेते. इस तरह नीरज की पीठ पीछे दोनों मौजमस्ती करते रहे. लेकिन पाप का घड़ा भरता है तो छलक ही उठता है. उसी तरह जब संतोष और रूबी ने हदें पार कर दीं तो एक दिन नीरज की नजर उन पर पड़ गई. उस ने दोनों को रंगरलियां मनाते अपनी आंखों से देख लिया.

नीरज ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सात जन्मों तक रिश्ता निभाने का वादा करने वाली पत्नी एक जन्म भी रिश्ता नहीं निभा पाएगी. संतोष तो निकल भागा था, रूबी फंस गई. नीरज ने उस की जम कर पिटाई की. पत्नी की इस बेवफाई से वह अंदर तक टूट गया. बेवफा पत्नी से उसे नफरत हो गई.

इस के बाद घर में कलह रहने लगी. नीरज ने रूबी का जीना मुहाल कर दिया. रोजरोज की मारपीट और लड़ाई झगड़े से तो रूबी परेशान थी ही, आसपड़ोस में उस की बदनामी भी हो रही थी. वह इस सब से तंग आ गई तो इस से निजात पाने के बारे में सोचने लगी. उसे लगा, इस सब से उसे तभी निजात मिलेगी, जब नीरज न रहे. फिर क्या था, ठिकाने लगाने की उस ने साजिश रच डाली.

अपनी इस साजिश में रूबी ने अपने ही शौचालय पर काम करने वाले प्रशांत चौधरी को यह कह कर शामिल कर लिया कि नीरज ठाकुर के न रहने पर वह न्यू सुविधा सुलभ शौचालय को चलाने की जिम्मेदारी उसे दिलवा देगी. इस के अलावा वह उसे 50 हजार रुपए नकद भी देगी.

न्यू सुविधा सुलभ शौचालय चलाने की जिम्मेदारी  और 50 हजार रुपए के लालच में प्रशांत नीरज की हत्या में साथ देने को तैयार हो गया. इस तरह रूबी ने अपने सुहाग का सौदा कर डाला.

10 मार्च, 2014 की शाम नीरज ठाकुर ढाई सौ रुपए ले कर किसी काम से 2 दिनों के लिए बाहर चला गया. 12 मार्च की रात में लौटा तो पहले से रची गई साजिश के अनुसार शौचालय के टैरेस पर गहरी नींद सो रहे नीरज के दोनों पैरों को प्रशांत ने कस कर पकड़ लिया तो संतोष उस की छाती पर बैठ गया.

नीरज अपने बचाव के लिए कुछ कर पाता, उस के पहले ही रूबी ने सब्जी काटने वाले चाकू से उस का गला रेत दिया. कुछ देर छटपटा कर नीरज मर गया तो तीनों ने उस की लाश को सफेद चादर में पलेट कर टैरेस से नीचे फेंक दिया. इस के बाद तीनों नीचे आए और शौचालय के गड्ढे का ढक्कन खोल कर लाश उसी में डाल दी. इस के बाद ढक्कन को फिर से बंद कर दिया गया.

नीरज की हत्या कर के संतोष डोभीवली चला गया तो प्रशांत और रूबी अपने अपने कमरे पर चले गए. रूबी ने अपना अपराध छिपाने के लिए अगले दिन थाना पंतनगर जा कर पति की गुमशुदगी भी दर्ज करा दी. लेकिन पुलिस की पैनी नजरों से वह बच नहीं सकी और पकड़ी गई.

रूबी से नीरज की हत्या की पूरी कहानी सुनने के बाद इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर संतोष झा को गिरफ्तार करने पहुंचे तो पता चला वह अपने गांव भाग गया है. एक पुलिस टीम तुरंत उस के गांव के लिए रवाना हो गई. संयोग से वह गांव में मिल गया. पुलिस उसे गिरफ्तार कर के मुंबई ले आई. मुंबई आने पर उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर ने रूबी, संतोष झा और प्रशांत चौधरी से पूछताछ के बाद भादंवि की धारा 302, 202 के तहत मुकदमा दर्ज कर तीनों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें आर्थर रोड जेल भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अपना प्यार पाने के लिए एक मां बनीं हत्यारी, बेटे का कराया कत्ल

पति की मौत के बाद आरफा बेगम की जिंदगी पटरी पर लौटने लगी थी. शादीशुदा बेटे मोहम्मद नदीम (30 वर्ष) ने भी पूरी तरह अब्बू का बिजनैस संभाल लिया था. लेकिन इसी दौरान ऐसा क्या हुआ कि आरफा बेगम अपने इकलौते बेटे नदीम की कातिल बन गई? उस ने 25 लाख की सुपारी दे कर आंखों के तारे, राजदुलारे की क्रूरता से हत्या करा दी.

19 जुलाई, 2024 को एसएचओ अवनीश कुमार सिंह को एक मुखबिर से पता चला कि सलीम उन्नाव स्टेशन पर मौजूद है. चूंकि सूचना अतिमहत्त्वपूर्ण थी, इसलिए अवनीश कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ उन्नाव स्टेशन पहुंचे और मुखबिर की निशानदेही पर टीम ने सलीम को दबोच लिया. उस समय वह स्टेशन के बाहर किसी व्यक्ति के आने का इंतजार कर रहा था. सलीम को थाना अजगैन लाया गया. यहां पुलिस टीम ने उस से नदीम की हत्या के बारे में पूछताछ की तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब उस से सख्ती की गई तो उस ने नदीम की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. 

उस ने बताया कि कानपुर निवासी कपड़ा कारोबारी मोहम्मद नदीम की हत्या उस ने ही पैसों के लालच में चाकू से गोद कर की थी तथा शव को कुएं में फेंक दिया था. उस ने यह भी बताया कि हत्या की साजिश नदीम की मां आरफा बेगम व उस के आशिक हासम अली निवासी कोडरा पसन नगर, थाना किशनगंज जिला अजमेर (राजस्थान) ने रची थी. उन्होंने ही नदीम की हत्या की सुपारी 25 लाख रुपए में उसे दी थी. 15 लाख रुपए उसे नकद दिया था. शेष रुपए काम तमाम होने के बाद देने का वादा किया था. शेष रुपए ही वह लेने आया था, लेकिन पकड़ा गया. इस के बाद सलीम ने हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल (चाकू) भी बरामद करा दिया, जिसे उस ने मांस तिराहे के पास पन्नी में लपेट कर छिपा दिया था. 

सलीम को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस टीम ने नाटकीय ढंग से आरफा बेगम व उस के आशिक हासम अली को भी गिरफ्तार कर लिया. उन दोनों ने जब सलीम को हवालात में देखा तो समझ गए कि अब झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं. अत: उन दोनों ने भी सहज में ही नदीम की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह ने नदीम की हत्या का परदाफाश करने तथा कातिलों को पकडऩे की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र ने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता कर नदीम की हत्या का खुलासा किया. 

पुलिस ने भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत सलीम, हासम अली तथा आरफा बेगम को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में एक ऐसी मां की कहानी सामने आई, जिस ने देहसुख के लिए अपने जवान बेटे को ही सुपारी दे कर कफन में लपेट दिया. कानपुर महानगर के अनवरगंज थाने के अंतर्गत एक मोहल्ला है-इफ्तखाराबाद. मुसलिम बाहुल्य इस मोहल्ले में ज्यादातर लोग व्यापार करते हैं. कोई कपड़े का व्यापार तो कोई लकड़ी का. कोई चमड़े का तो कोई मांसमछली का व्यापार करता है. घनी आबादी वाले इसी मोहल्ले में मोहम्मद नईम सपरिवार रहते थे. 

अलहम्द रेजीडेंसी में उन का निजी मकान था. उन के परिवार में पत्नी आरफा बेगम के अलावा एक बेटी आलिया तथा बेटा मोहम्मद नदीम था. मोहम्मद नईम रेडीमेड कपड़ा कारोबारी थे. अनवरगंज में उन की दुकान थी. बड़ी बेटी आलिया का वह निकाह कर चुके थे. मोहम्मद नदीम उन का इकलौता बेटा था. इसलिए वह सभी का दुलारा था. नदीम बचपन से ही तेज दिमाग था. वह जिद्ïदी व हठी भी था. उस के जिद्ïदी स्वभाव के कारण उस की अम्मी आरफा बेगम परेशान रहती थी. वह शौहर को उलाहना भी देती कि उन्होंने नदीम को बिगाड़ दिया है. 

नदीम का मन पढ़ाई में कम और गिल्लीडंडा खेलने में ज्यादा लगा रहता था. इस से नईम चिंतित रहते थे. जैसेतैसे नदीम ने 10वीं तक पढ़ाई की. फिर उस का मन पढ़ाई से उचट गया. नदीम कहीं गलत संगत में न पड़ जाए, इसलिए नईम ने उसे अपने कपड़ा व्यवसाय में लगा लिया. नदीम अब अब्बू के साथ कपड़े की दुकान पर जाता और दुकानदारी के गुर सीखता. मोहम्मद नदीम अब तक जवान हो चुका था और दुकान भी संभालने लगा था. इसलिए मोहम्मद नईम ने जुलाई, 2020 में उस का विवाह जीनत फातिमा नाम की लड़की से कर दिया.

जीनत फातिमा के अब्बू मोहम्मद कासिम बाकरगंज (बाबूपुरवा) कानपुर में रहते थे. बाकरगंज बाजार में उन की भी कपड़े की दुकान थी. अच्छा घरवर पा कर जीनत फातिमा भी खुश थी. घर में किसी चीज की कमी न थी और बेहद चाहने वाला शौहर मिला था. हंसीखुशी से दिन बीतते अभी एक साल ही बीता था कि नईम ऐसे बीमार पड़े कि उन्होंने खाट पकड़ ली. नदीम ने उन का कई डाक्टरों से इलाज कराया, लेकिन वह बच न पाए. आखिर उन्होंने दम तोड़ ही दिया. 

शौहर की मौत पर आरफा बेगम ने खूब आंसू बहाए. किसी तरह नदीम ने मां को संभाला. ताहिर ने भी बहन को समााया. तब कहीं जाकर वह सामान्य हुई. अब्बू के जाने का नदीम को भी बड़ा सदमा पहुंचा. उस ने अब्बू के गुजर जाने के बाद नदीम ने दुकान और घर चलाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली. बीवी ने भी उस का साथ दिया.

आरफा बेगम की तन्हाइयां कैसे हुईं दूर

कहते हैं वक्त बड़े से बड़ा घाव भर देता है. आरफा बेगम भी पति की मौत का गम भूल चुकी थी. बेटाबहू अपनी जिंदगी जी रहे थे और वह तन्हाइयों में जी रही थी. अकेलापन उसे बहुत खलता था. उन्हीं दिनों एक रोज हासम अली आरफा बेगम के घर आया. वह उस के मरहूम शौहर नईम का दोस्त व रिश्तेदार था. पहले भी वह घर आ चुका था. हासम अली, अजमेर (राजस्थान) शहर के कोडरा पसन नगर का रहने वाला था. वह कपड़ा व्यापारी था. दोनों में जानपहचान पहले से थी. इसलिए आरफा बेगम ने उस की खूब मेहमाननवाजी की. हासम अली ने दोस्त के गुजर जाने का दुख जताया और आरफा बेगम को धैर्य बंधाया. इस के बाद उस का वहां आनाजाना बढ़ गया.

आरफा बेगम के घर आतेजाते दोनों के बीच नजदीकियां बढऩे लगीं. उन के बीच छेड़छाड़ और हंसीमजाक भी होने लगी. दोनों तन्हा जिंदगी जी रहे थे. इसलिए दोनों को ही साथी चाहिए था. सो एक रात जब बेटाबहू सो गए, तब हासम अली आरफा बेगम के कमरे में पहुंचा और उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया. आरफा बेगम भी फिसल गई. फिर दोनों ने ही अपनी हसरतें पूरी कीं. उन के बीच नाजायज रिश्ता बना तो उस का दायरा बढ़ता ही गया. अधेड़ उम्र की बेवा आरफा बेगम के जीवन में अब बहार आ गई थी. वह हासम अली पर दिलोजान से फिदा हो गई थी. हासम भी उस का दीवाना था. हासम अली अब होटल में भी रुकने लगा था. आरफा को वह होटल में ही बुला लेता था. 

उधर नदीम की बीवी जीनत फातिमा ने अनुभव किया कि जब से हासम अली घर आने लगा, तब से सासू मां की चालढाल में बदलाव आ गया है. क्योंकि अब वह सजसंवर कर रहने लगी थी और चेहरा खिलाखिला सा रहने लगा था. एक रात जीनत फातिमा बाथरूम जाने को उठी तो उस ने सासू आरफा बेगम के कमरे से अजीब सी आवाजें सुनीं. वह कमरे के अंदर तो नहीं गई, लेकिन समझ गई कि सासूमां हासम अली के साथ मौजमस्ती में डूबी हुई है. अब वह सासू की चालढाल व संजनेसंवरने का मकसद समझ चुकी थी.

सुबह नाश्ते के समय जीनत फातिमा ने नाजायज रिश्तों की बात शौहर नदीम को बताई तो वह नाराज होते हुए बोला, ”जीनत, तुम उन दोनों की उम्र का लिहाज करो. हमारी मां को बदनाम करोगी तो मैं सहन नहीं करूंगा. तुम अपनी गलती सुधारो.’’ नदीम ने बीवी की बातों पर यकीन नहीं किया और उसे फटकार लगाई तो वह रूठ कर मायके चली गई. कुछ दिन बाद मिन्नतें कर नदीम उसे वापस घर लाया. उस के बाद उस ने चुप्पी साध ली. 

इधर आरफा बेगम हासम अली की मोहब्बत में इतनी अंधी हो गई थी कि उस ने दुकानमकान बेच कर हासम अली के साथ रहने का फैसला कर लिया. उस ने इस बाबत हासम अली से बात की तो वह उसे अपने साथ अजमेर ले जाने को राजी हो गया. वह तो चाहता ही था कि आरफा बेगम सदैव उस के साथ रहे.

एक रोज आरफा बेगम ने दुकानमकान बेचने की चर्चा बेटे नदीम से की तो वह मां पर भड़क उठा. उस ने साफ कह दिया कि वह पैतृक संपत्ति बेच कर दूसरे शहर बसने नहीं जाएगा. उस ने यह भी कहा कि वह किसी के बहकावे में न आए, वरना कुछ भी हो सकता है. इस के बाद तो आए दिन मांबेटे के बीच संपत्ति बेचने को ले कर झगड़ा होने लगा. कभीकभी तो झगड़ा इतना बड़ जाता कि नदीम घर के बजाय दुकान पर सोने चला जाता. 

आरफा बेगम जब समझ गई कि नदीम दुकानमकान नहीं बेचने देगा और वह उस के प्यार में भी बाधा बन सकता है तो उस ने उसे अपने आशिक हासम अली के साथ मिल कर इकलौते बेटे को ही रास्ते से हटाने का निश्चय किया. आरफा बेगम ने इस बाबत हासम से बात की तो वह राजी हो गया. उस ने आरफा से कहा, ”तुम रकम तैयार करो. हम सुपारी किलर को सुपारी दे कर नदीम को रास्ते से हटवा देंगे. इस की किसी को कानोकान खबर भी न होगी.’’

हासम अली की जानपहचान सुपारी किलर मोहम्मद सलीम से थी. वह अजमेर नवल नगर मोहल्ला लौंगिया का रहने वाला था. हासम अली ने सलीम से बात की और नदीम की हत्या की सुपारी 25 लाख में दे दी. सुपारी देने की बात हासम अली ने आरफा बेगम को बताई. आरफा बेगम ने तब अपने इकलौते बेटे को मरवाने के लिए 25 लाख रुपया हासम अली को दे दिए. इस रकम में से 15 लाख रुपया हासम अली ने सलीम को दे दिए. शेष काम होने के बाद देने को कहा. 

रकम मिलने के बाद सलीम 3 जून, 2024 को कानपुर शहर आ गया. वह परेड के एक साधारण होटल में रुका. सुपारी किलर के पहुंचने की जानकारी तथा उस का मोबाइल नंबर हासम अली ने आरफा बेगम को बता दिया. 4 जून, 2024 की दोपहर आरफा बेगम ने बेटे नदीम से कहा कि एक रिश्तेदार बाहर से आए हैं. वह परेड पर हैं. उन्हें शहर घुमा दो. नदीम ने पहले तो नानुकुर की फिर मान गया. उस की बीवी जीनत फातिमा एक सप्ताह से मायके में थी, सो वह निश्चिंत था. नदीम तैयार हुआ फिर अपनी बाइक से परेड के लिए निकल पड़ा. जाने से पहले उस ने मां से रिश्तेदार का फोन नंबर ले लिया था. वह कोई रिश्तेदार नहीं, बल्कि उस की मौत बन कर आया सलीम था.

परेड चौराहा पर पहुंच कर उस ने रिश्तेदार को काल की तो वह चौराहे पर ही मिल गया. दोनों में बातचीत हुई फिर सलीम ने कहा, ”मुझे देवा शरीफ ले चलो. वहां जाने की बड़ी इच्छा है. तुम पेट्रोल की चिंता मत करो.’’ इस के बाद लखनऊ होते हुए शाम को वह देवा शरीफ पहुंच गए. वहां दोनों घूमेफिरे, फिर वापस कानपुर को चल पड़े.  लखनऊ पहुंचने तक रात के 10 बज गए थे. यहां दोनों ने खाना खाया. फिर कानपुर की ओर निकल पड़े. इस बीच दोनों खूब हिल मिल गए थे. रात 11 बजे के लगभग सलीम व नदीम दरबारी खेड़ा गांव पहुंचे. यह गांव उन्नाव जिले के अजगैन थाना अंतर्गत आता है. हाइवे रोड किनारे एक वीरान मंदिर था. मंदिर के पास ही एक कुआं था.

समीप सलीम ने बाथरूम (पेशाब) के बहाने बाइक रुकवा दी. सलीम बाथरूम करने चला गया और नदीम बाइक की सीट पर बैठ कर मोबाइल देखने लगा. उचित मौका देख कर सलीम ने चाकू निकाला और पीछे से नदीम के सिर पर चाकू से 2 प्रहार किए. नदीम जख्मी हो कर जमीन पर गिर पड़ा. इस के बाद सलीम ने उस के गले व गरदन पर चाकू के प्रहार कर उसे मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद शव कुएं में फेंक दिया. फिर बाइक कुएं पर ही छोड़ कर फरार हो गया. चाकू को उस ने फरार होते समय मांस फैक्ट्री तिराहे के पास फेंक दिया था. 

सचमुच कुएं में पानी पर एक लाश उतरा रही थी. इस के बाद तो जिस ने भी यह बात सुनी, वह मंदिर के पास स्थित उस कुएं की तरफ चल दिया. कुछ ही देर में सैकड़ों की भीड़ वहां जमा हो गई. इसी बीच किसी व्यक्ति ने फोन के जरिए कुएं में लाश पड़ी होने की सूचना थाना अजगैन पुलिस को दे दी. यह बात 5 जून, 2024 की सुबह की थी.

सूचना पाते ही एसएचओ अवनीश कुमार सिंह पुलिस बल के साथ घटना स्थल की तरफ रवाना हो गए. रवाना होने से पूर्व उन्होने प्राप्त सूचना से पुलिस अधिकारियों को भी अवगत करा दिया था. कुछ देर बाद ही अवनीश कुमार सिंह घटनास्थल पहुंच गए. वह भीड़ को परे हटाते कुएं के पास पहुंचे और झांक कर देखा तो सच में कुएं में किसी युवक की लाश उतरा रही थी. कुएं के पास खून फैला था और एक बाइक खड़ी थी. एसएचओ ने अनुमान लगाया कि बाइक या तो मृतक की है या फिर कातिल की होगी. 

चूंकि बाइक के नंबरों से उस के मालिक का पता चल सकता था. अत: उन्होंने आरटीओ औफिस से उस नंबर के संबंध में जानकारी जुटाई. इस जांच में पता चला कि उक्त बाइक का रजिस्ट्रैशन मोहम्मद नदीम निवासी अलहम्द रेजीडेंसी इफ्तखाराबाद थाना अनवरगंज, कानपुर नगर के नाम है. रजिस्ट्रैशन से बाइक के बारे में तो पता चल गया, लेकिन कुएं में उतराती लाश नदीम की है या किसी और की, बिना शिनाख्त के कहना मुश्किल था. 

इस के बाद पुलिस ने कुएं से लाश बाहर निकलवाई. वहां मौजूद उस युवक की लाश की कोई शिनाख्त नहीं कर सका. पुलिस ने शिनाख्त के लिए नदीम के घर वालों को बुलवा लिया. शव देख कर एक अधेड़ उम्र की महिला फूटफूट कर रोने लगी. उस ने अपना नाम आरफा बेगम बताया और कहा कि यह लाश उस के इकलौते बेटे मोहम्मद नदीम की है. घर वालों ने बताया कि कुछ दिनों पहले ही आरफा बेगम के पति की मृत्यु हुई और अब इकलौता बेटा भी चला गया.

इस के बाद एसएचओ अवनीश सिंह ने शव का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. उस की हत्या चाकू से गोद कर की गई थी. उस के सिर व गरदन पर गहरे जख्म थे. उस का मोबाइल फोन व पर्स गायब था. यह सामान या तो कुएं में गिर गया था या फिर कातिल अपने साथ ले गए.

किस ने की नदीम की हत्या

कुछ ही देर में एडिशनल एसपी उन्नाव (दक्षिणी) प्रेमचंद्र तथा सीओ (हसनगंज) संतोष कुमार सिंह भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने जहां साक्ष्य जुटाए, वहीं पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र ने मौके पर मौजूद मृतक की मां आरफा बेगम व मामा ताहिर से पूछताछ की. आरफा बेगम ने बताया कि मोहम्मद नदीम घर से दुकान जाने के लिए कल 2 बजे बाइक से निकला था. जब वह रात 10 बजे तक घर नहीं पहुंचा तो उस ने उस के मोबाइल फोन पर काल की, लेकिन उस का फोन बंद था. आज उस की लाश मिल गई.

पूछताछ में पता चला कि नदीम रेडीमेड कपड़ों का कारोबारी था. अनवरगंज में उस की अपनी दुकान है. वह बेहद सीधा था. किसी से लड़ताझगड़ता नहीं था. उस की न तो किसी से दुश्मनी थी और न ही लेनदेन का झगड़ा था. पूछताछ के बाद पुलिस ने नदीम के शव को पोस्टमार्टम हेतु उन्नाव के जिला अस्पताल भेज दिया. वापस थाने आ कर मृतक के मामा ताहिर की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र के निर्देश पर एसएचओ अवनीश कुमार सिंह ने इस ब्लाइंड मर्डर की जांच बड़ी बारीकी से शुरू की. उन्होंने सब से पहले एक बार फिर घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. इस के बाद उन्होंने मृतक नदीम की मां आरफा बेगम व मामा ताहिर से पूछताछ कर उन के बयान दर्ज किए.

लाश उन्नाव जिले के गांव दरबारी खेड़ा के पास मिली थी, इसलिए एसएचओ अवनीश कुमार सिंह ने दरबारी खेड़ा व उसके आसपास के गांवों के कई अपराधी किस्म के लोगों को हिरासत में लिया तथा उन से सख्ती से पूछताछ की, लेकिन नदीम की हत्या का सुराग न लगा. इस के अलावा मुखबिर भी कोई खास जानकारी नहीं जुटा पा रहे थे. अब तक एक महीना से ज्यादा का समय गुजर गया था, लेकिन वह नदीम के हत्यारों के बारे में कोई सुराग नहीं मिल पा रहा था. पुलिस अधिकारी भी जांच टीम पर दबाव बना रहे थे. नदीम की मां आरफा बेगम व मामा ताहिर भी जबतब थाने आ जाते और जवाबसवाल करते.

एक रोज एसएचओ अवनीश कुमार सिंह अपने सहयोगियों के साथ नदीम की हत्या के संबंध में विचारविमर्श कर रहे थे, तभी एक युवती ने उन के कक्ष में प्रवेश किया. वह मुसलिम समुदाय की लग रही थी. एसएचओ अवनीश कुमार सिंह ने सहयोगियों को बाहर जाने का इशारा करने के बाद उस युवती को कुरसी पर बैठने को कहा. वह फिर बोले, ”मोहतरमा, आप अपने बारे में बता कर अपनी समस्या बताएं, ताकि हम आप का सहयोग कर सकें.’’

उस युवती ने दाएंबाएं नजर घुमाई फिर बोली, ”हुजूर, मेरा नाम जीनत फातिमा है. मैं मरहूम नदीम की बीवी हूं. छिपतेछिपाते किसी तरह थाने आई हूं. मैं आप को एक ऐसा राज बताने आई हूं, जिस पर शायद आप को यकीन ही न हो.’’

”कैसा राज?’’ इंसपेक्टर अवनीश ने पूछा. 

”यही कि मेरे शौहर की हत्या का राज मेरी सास आरफा बेगम के पेट में छिपा है. मुझे शक है कि उन्होंने ही कोई योजना बना कर मेरे शौहर को मरवाया है.’’

इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह ने एक सरसरी निगाह जीनत फातिमा पर डाली, फिर बोले, ”न जानें क्यों मुझे तुम्हारी बातों पर यकीन नहीं हो रहा है. भला एक मां अपने एकलौते बेटे का कत्ल क्यों कराएगी? फिर भी मैं तुम्हारे शक का कारण जानना चाहता हूं.’’

हुजूर, शक का पहला कारण यह है कि आरफा बेगम मकान व दुकान बेचना चाहती थी, लेकिन मेरे पति इस का विरोध कर रहे थे. इस को ले कर मांबेटे में तकरार होती थी. शक का दूसरा कारण आरफा बेगम की यारी. यानी उस के नाजायज संबंध अजमेर निवासी एक रिश्तेदार से हैं. वह मकानदुकान बेच कर उस के साथ रहना चाहती थी. लेकिन मेरे पति विरोध करते थे. मुझे शक है कि इसी विरोध के चलते सासू अम्मी ने उन का काम तमाम करा दिया.’’

इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह सोच में पड़ गए, ”क्या एक मां इतनी बेरहम हो सकती है कि देहसुख के लिए जवान बेटे का कत्ल करा दे?’’

इस के बाद अवनीश कुमार सिंह ने एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र से मुलाकात की और उन्हें पूरी बात बताई. शक के आधार पर उन्होंने इस ब्लाइंड मर्डर को खोलने का आदेश दिया. यही नहीं उन्होंने एक पुलिस टीम का गठन भी कर दिया. इस टीम में इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह, इंसपेक्टर (क्राइम ब्रांच) राम नारायण, हैडकांस्टेबल राधेश्याम, कांस्टेबल पवन, अर्पित, सूरजपाल, अरुण कुमार, तथा महिला कांस्टेबल विमल को शामिल किया गया. टीम की बागडोर सीओ (हसनगंज) संतोष कुमार सिंह को सौंपी गई. 

पुलिस टीम ने शक के आधार पर मृतक की मां मोहम्मद आरफा बेगम की निगरानी शुरू कर दी. यही नहीं, आरफा बेगम व मृतक नदीम के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स रिपोर्ट निकलवाई. आरफा बेगम की काल डिटेल्स में कोई संदिग्ध नंबर नहीं मिला. वह किसी बाहरी व्यक्ति से बात नहीं करती थी. घटना वाले दिन भी उस ने किसी से बात नहीं की थी. रात 10 बजे उस ने नदीम को फोन किया था. 

लेकिन नदीम के मोबाइल फोन नंबर की काल डिटेल्स में टीम को एक संदिग्ध नंबर मिला. इस नंबर पर नदीम ने 4 जून, 2024 को बात की थी. इस संदिग्ध नंबर की पुलिस टीम ने जानकारी जुटाई तो पता चला यह नंबर सलीम पुत्र सिद्ïदीकी निवासी गली न 15 नवल नगर मोहल्ला लौंगिया थाना गंज, जिला अजमेर (राजस्थान) के नाम दर्ज है. संदिग्ध व्यक्ति सलीम पुलिस की रडार पर आया तो टीम उस की टोह में अजमेर जा पहुंची. टीम ने लौंगिया बस्ती में सलीम के घर दबिश दी, लेकिन वह घर से फरार था. पता चला कि वह किसी काम से उत्तर प्रदेश गया है. 

पुलिस टीम तब हाथ मलते हुए वापस लौट आई, लेकिन टीम हाथ पर हाथ रख कर नहीं बैठी. टीम ने खबरियों का जाल बिछा दिया और स्वयं भी टोह में लग गई. टीम ने उन्नाव के बस अड्ïडा व रेलवे स्टेशन पर निगरानी बढ़ा दी. 

इधर सुबह दरबारी खेड़ा के कुछ लोग खेतों की तरफ गए तो उन्होंने कुएं में उतराती लाश देखी. उन्होंने थाना अजगैन पुलिस को सूचना दी. 21 जुलाई, 2024 को पुलिस ने आरोपी आरफा बेगम, मोहम्मद सलीम व हासम अली को उन्नाव कोर्ट में पेश किया, जहां से उन को जिला जेल भेज दिया गया. 

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

महिलाओं की शबाब पार्टी क्या रंग लाई

Women in hukka-baar : अगस्त माह के अंतिम हफ्ते में एक दिन दिल्ली के राजगढ़ एक्सटेंशन के रहने वाले मनु अग्निहोत्री के मोबाइल फोन की घंटी बजी. फोन रश्मि का था. उस ने अपनी खनकती आवाज में पूछा, ‘‘सर जी, काम कब से शुरू करवा रहे हो?’’

‘‘उम्मीद है अगले हफ्ते से… और सुन तुम्हें कितनी बार कहा है इस नंबर पर फोन मत किया कर.’’ मनु डपटते हुए बोला.

‘‘क्या करूं, मजबूरी में करना पड़ा. कोई काम नहीं है. कर्ज भी बहुत हो गया है.’’ रश्मि बोली.

‘‘ठीक है, ठीक है. तुम्हारे संपर्क में कितनी और लड़कियां हैं?’’ मनु ने पूछा.

‘‘10-12 तो हो ही जाएंगी.’’

‘‘सब को तैयार कर लो. अगले हफ्ते से रेस्टोरेंट और बार खुलने वाले हैं. मैं ने पता कर लिया है.’’ मनु बोला.

‘‘वही पहले वाला काम करना है?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘हांहां, वही. डांसिंग का है, साथ में थोड़ी शराब भी परोस देना. नशेडि़यों का दिल बहला देना.’’

‘‘उस से अधिक कुछ और नहीं न! कितने पैसे मिल जाएंगे?’’ रश्मि तपाक से पूछ बैठी.

‘‘तुम सवाल बहुत करती हो. अभी तो मैं इंतजाम में लगा हुआ हूं.’’ मनु ने समझाया.

‘‘फिर भी कुछ तो बताओ, तभी तो लड़कियों को तैयार रखूंगी.’’

‘‘सभी फ्रैश होनी चाहिए. एकदम से झकास. लेटेस्ट मौडल की. पढ़ीलिखी दिखने वाली. समझ गई न.’’ मनु बोला.

‘‘मेरे पास अभी एक से बढ़ कर  एक मौडल हैं, उन के सामने हीरोइनें और प्रोफैशनल मौडल फेल हो जाएंगी.’’ रश्मि चहकती हुई बोली.

‘‘चल, चल. अब फोन बंद कर, लगता है किसी क्लाइंट का फोन आ रहा है. बाद में बात करता हूं.’’ यह कहते हुए मनु ने आने वाले काल का फोन रिसीव कर लिया.

‘‘हैलो कौन?… अरे तुम. मैं तुम्हारे फोन का ही इंतजार कर रहा था. तुम ने नया नंबर ले लिया क्या? बताओ कुछ इंतजाम हुआ.’’ मनु ने जिज्ञासा से पूछा.

‘‘हां, हो गया है, लेकिन सौरी यार पहाड़गंज या कनाट प्लेस में नहीं हो पाया.’’ फोन करने वाला मनु का खास दोस्त था. उस के भरोसे मनु के कई कामधंधे चलते थे. वह जिस काम में लगता था, उसे पूरा कर के ही दम लेता था. उसे मनु ने एक ऐसा रेस्टोरेंट रेंट पर लेने का काम सौंपा था, जहां वह पार्टियां आर्गनाइज कर सके. उसी बारे में उस के दोस्त ने फोन किया था.

मनु ने उस से उत्सुकता से पूछा, ‘‘तो कहां इंतजाम किया है?’’

‘‘शाहदरा के पास कृष्णा नगर में. अच्छा रेस्टोरेंट है… और हम लोगों के काम के हिसाब से सेफ भी.’’ मनु को बताया.

‘‘नाम क्या है? लोकेशन कैसी है? …आसपास का माहौल किस तरह का है? ‘‘द टाउंस कैफे नाम का रेस्टोरेंट मंदिर मार्ग पर लाल क्वार्टर में स्थित है. वहीं पर फर्स्ट फ्लोर पर अपना काम चलेगा. वहां सब कुछ सही है. लेकिन एक ही समस्या है कि उस के पास अभी पूरे कागज नहीं है.’’

‘‘तो कैसे होगा?’’ मनु ने पूछा.

‘‘अरे वह सब तो उस के मालिक का मसला है, हमें क्या? हमें रेंट देना है.’’ दोस्त के कहने पर मनु ने आगे के अपने इंतजाम के बारे में जानकारी दी. बातोंबातों में लड़कियों के बारे में भी थोड़ी बातें बता दीं.

‘‘तू तो इस का बड़ा खिलाड़ी है. तो फिर बुकिंग शुरू कर दूं?’’ कहते हुए मनु का दोस्त हंसने लगा.

मनु के धंधे में जितने भी लोग जुड़े हुए थे, उन से मनु के दोस्त की तरह ही संबंध रहते थे. मुन्ना भी उस के खास दोस्तों में से एक था.

एक दिन मुन्ना दिल्ली के कनाट प्लेस में स्थित एक छोटे से रेस्टोरेंट में अपने दोस्त अमित के साथ डिनर कर रहा था. अमित केरल का रहने वाला था. वह किसी काम से दिल्ली आया था. उसी दौरान अमित ने उस से कहा, ‘‘यार, मुझे मिनिस्ट्री से एक प्रोजैक्ट पास कराना है.’’

मुन्ना ने उसे आश्वासन दिया था, ‘‘तू चिंता क्यों कर रहा है, हो जाएगा. क्योंकि मिनिस्ट्री में मेरी अच्छी जानपहचान है. मैं तेरा काम करा दूंगा.’’ मुन्ना ने भरोसा दिया.

‘‘जितनी जल्द हो सके, करा दे. वैसे एक बात बताऊं, जिस अधिकारी के हाथ में मेरा काम है, वह अय्याश किस्म का है. इसलिए उस के लिए शराब के साथसाथ कुछ और शबाब का इंतजाम भी करना होगा.’’

‘‘अभी तेरे सामने बात करता हूं.’’ यह कहते हुए मुन्ना ने बाएं हाथ से टेबल पर रखे अपने मोबाइल से एक नंबर पर काल लगाई. वह नंबर मनु का था.

काल रिसीव होने के बाद तुरंत स्पीकर औन कर दिया.  बोला, ‘‘हैलो मुन्ना भाई, कैसे हो?’’

उधर से आवाज आई, ‘‘अरे भाई तुम्हें मैं ने कितनी बार समझाया है स्पीकर औन कर बातें मत किया करो.’’

‘‘सौरी यार, दरअसल खाना खा रहा था.’’ इसी के साथ मुन्ना ने स्पीकर बंद किया और बाएं हाथ से ही फोन को कान से लगा लिया.

‘‘अरे मैं पूछ रहा था कि तुम्हारा बार में पार्टी वाला काम शुरू हुआ या नहीं?’’

‘‘बस, एक दिन और इंतजार कर लो.’’

‘‘एक क्लाइंट से एडवांस ले लूं. हम 3 लोग रहेंगे. बाकी सब ठीक है न.’’ मुन्ना बोला.

‘‘उसे रेडी कर ले. बाकी बाद में बात करता हूं.’’ मनु ने कहा.

मनु की तरफ से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद मुन्ना अमित को देख कर बोला, ‘‘लीजिए, मैं ने आधे मिनट में इंतजाम कर दिया, और बोलो.’’

सब कुछ सही चलने लगा. उस ने बर्थडे पार्टी के नाम पर ग्राहकों को हुक्का, शराब और डांस के नाम पर बुलाना शुरू कर दिया था. बार में कुछ लड़कियों को देह दिखाने वाली ड्रैस पहना कर शराब परोसने के लिए लगा दिया गया था, जबकि कुछ लड़कियां म्यूजिक की धुन पर डांस करती थीं.

इस के लिए बाकायदा डांसिंग फ्लोर बनाई थी. चारों तरफ से डांसर पर रंगीन रोशनियां बरस रही थीं, उस में लड़कियों के उभार, सुडौल जांघें, चिकनी कमर, अधखुली पीठ,

सपाट पेट की नाभि की झलक दिख जाती थी. एकदो लड़कियों ने नाभि पर झुमकेनुमा जेवर लटका रखे थे. लड़कियां बीचबीच में उस की ओर अंगुली से अश्लील इशारे कर शराब पी रहे ग्राहकों को बुला लेती थीं.

2 सितंबर, 2021 को भी सामने की दीवार पर बड़ेबड़े उभरे सुनहरे अक्षरों में ‘हैप्पी बर्थडे’ लिखा हुआ था, लेकिन जन्मदिन किस का था, पता नहीं. कहीं किसी भी टेबल पर केक काटे जाने का नामोनिशान भी नहीं था. उस की जगह हुक्के जरूर रखे थे. टेबल के चारों ओर 2-3 की संख्या मे बैठे ग्राहक हुक्के की पाइप एकदूसरे के साथ शेयर कर रहे थे.

बीचबीच में शराब परोसने वाली लड़कियां वहां से गुजर जाती थीं. कुछ समय बाद कुछ ग्राहक भी डांसिंग फ्लोर पर पहुंच चुके थे. उन के आते ही एक लड़की ने अपनी मादक अदा से नाचना शुरू कर दिया था.

एक ग्राहक उस की कमर में हाथ डालने वाला ही था कि दूसरी लड़की ने उस का हाथ पकड़ कर प्यार से अपने चारों ओर घुमा लिया. कुल मिला कर पूरा दृश्य किसी 80-90 के दशक की फिल्मों जैसा ही दिख रहा था.

इस पार्टी की बात यहीं खत्म नहीं हुई. इस की भनक कृष्णानगर थाने के ड्यूटी औफिसर एसआई इमरोज को भी लग गई थी. उन्हें पता चला कि लाल क्वार्टर मार्केट में कुछ लड़के और लड़कियां शराब की पार्टी कर रहे हैं.

ड्यूटी औफिसर ने यह जानकारी थानाप्रभारी रजनीश कुमार को दी. चूंकि मामला गंभीर था, इसलिए थानाप्रभारी ने एसीपी डा. चंद्रप्रकाश को भी इस से अवगत करा दिया.

इस के बाद थानाप्रभारी रजनीश कुमार एसआई नरेश कुमार, जयदीप, अरुण भाटी आदि के साथ रेस्टोरेंट पहुंच गए. उन्होंने देखा कि रेस्टारेंट के फर्स्ट फ्लोर पर कुछ लड़केलड़कियां एक साथ बैठे थे. एक बार काउंटर लगा था. कुछ लोग शराब पी रहे थे. टेबलों पर हुक्के भी रखे हुए थे. और लोग उस की पाईप से कश लगा रहे थे.

कुछ लोगों से पूछने पर उन्होंने बताया कि वे पार्टी सेलिब्रेट करने आए थे. वे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे थे. लेकिन डांस करती लड़कियां, हुक्के और शराब कुछ और ही कहानी बयां कर रही थीं.

इस के बाद रेस्टोरेंट में पुलिस टीम ने छापेमारी कर दी. छापेमारी में अवैध रूप से शराब व हुक्के की पार्टी का गंभीर मामला सामने आया. पुलिस ने मौके से हुक्के और शराब की बोतलें बरामद कीं.

साथ ही संचालक और कर्मचारियों के साथ ही मौके पर मौजूद कुल 32 लोगों को गिरफ्तार कर लिया, जिन में 8 लड़कियां थीं. पुलिस सभी को थाने ले आई. उन से की गई पूछताछ में पता चला कि संचालक मनु अग्निहोत्री ने पार्टी दी थी, जिस में कर्मचारी और उस के जानकार शामिल हुए थे.

पुलिस ने वहां से भारी मात्रा में शराब की बोतलें, हुक्के आदि बरामद किए. इस की सूचना पुलिस को रात के 2 बजे मिली थी. इन में से कोई भी कोरोना नियमों का पालन नहीं कर रहा था. किसी के चेहरे पर मास्क नहीं था. पुलिस के अनुसार, संचालक मनु से शराब परोसने, हुक्का बार चलाने का लाइसैंस और देर रात तक पार्टी का अनुमति पत्र दिखाने को कहा गया तो उस के पास ये दस्तावेज नहीं थे.

इस के बाद पुलिस ने रेस्तरां में मौजूद सभी लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 188, 269, 270, 285 के तहत गिरफ्तार कर सभी 32 लोगों के कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. बताया जाता है कि मनु अग्निहोत्री के दिल्ली के पहाड़गंज और कनाट प्लेस में कई रेस्तरां हैं.

पति ने की जबरदस्ती तो पत्नी ने कर दी हत्या

पति पत्नी के संबंध में जहां सेक्स का हौआ हावी हो गया, वह घर तो टूटन की कगार पर खड़ा ही मानो. वैसे, एकदूसरे की भावनाओं को समझते हुए, आपसी सहमति से सेक्स संबंध बनाया जाए तो कारगर रहता है नहीं तो लड़ाई झगड़ा होना लाजिम है. पर सेक्स के लिए पत्नी को प्रताड़ित करना और बदतमीजी से बोलना व बच्चों के सामने उसे बेइज्जत करना आम घरों की समस्या से रूबरू कराता है. वाकई यह हमारी घिनौनी सोच का ही नतीजा है.

कोलकाता में भी एक ऐसी घटना सामने आई है, जिस में पत्नी ने पति द्वारा तंग करने पर उस की हत्या करने में जरा भी गुरेज नहीं किया.

पश्चिम बंगाल के कोलकाता में अपने पति की हत्या करने वाली अनिंदिता पौल डे ने पुलिस को इस के पीछे की अहम वजह बताई. हालांकि वह बारबार अपना बयान बदलती नजर आई. कहीं न कहीं वह अपने पति से आजिज आ चुकी थी, तभी उस ने अपने पति की हत्या करने जैसा कठोर कदम उठाया.

यह दंपती न्यू टाउन इलाके में रहता था. अनिंदिता पौल डे ने बताया कि उस का पति पेशे से वकील था. वह आए दिन उस का यौन उत्पीडन करता था.

अनिंदिता ने आगे बताया कि पिछले हफ्ते मैडिकल सलाह के खिलाफ जा कर उस के पति ने उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की जिस से गुस्से में आ कर अनिंदिता ने पति रजत डे की हत्या कर दी.

हालांकि मामला संगीन है. मामले की जांच कर रहे एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि महिला ने दावा किया है कि उस का पति जिस्मानी और दिमागी तौर पर उसे परेशान किया करता था. इस वजह से दोनों के बीच दूरियां पैदा हो गईं. इसी तरह की एक अजीबोगरीब हरकत पर अनिंदिता ने अपने पति की हत्या कर दी.

पुलिस जांच कर रही है कि यह हत्या अनिंदिता ने अकेले ही की थी या फिर किसी ने उस की मदद की थी.

अनिंदिता के वकील चंद्रशेखर बाग ने बताया कि अनिंदिता के पति ने उस का यौन शोषण किया था. 2 महीने पहले उन की फैलोपियन ट्यूब की सर्जरी हुई थी. इस के बाद डाक्टरों ने आराम करने की सलाह दी थी लेकिन रजत ने अनिंदिता के साथ जबरदस्ती की थी.

यह तो पति को भी सोचना चाहिए कि पत्नी की परेशानी क्या है पर इस ओर उस ने जरा भी ध्यान नहीं दिया और जबरदस्ती पर उतर आया. उस ने अपनी पत्नी की जरा भी नहीं सुनी और अपनी मनमानी करने लगा. जब बात हद से गुजर गई तो उस ने अपने पति की हत्या कर दी.

मामला चाहे जो हो पत्नी ने अपने हाथों को खून से सन ही लिया है. इस हत्या का अनिंदिता की जिंदगी पर कैसा असर पड़ेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा. लेकिन सोचने वाली बात यह भी है मर्दऔरत को एकसाथ रखने वाला प्यार जानलेवा कैसे बन गया? क्या इस के पीछे मर्दवादी सोच है, जो पति के लिए पत्नी रात में दिल बहलाने का खिलौना भर है, चाहे वह किसी बीमारी के चलते सेक्स करने से परहेज करना चाहती हो?

जब एक बेटे की मां ने 10 साल छोटे लड़के से लड़ाया इश्क

कुछ औरतें दिखती सीधी हैं लेकिन शराफत का चोला ओढ़ कर वह अंदर ही अंदर गुल खिलाती रहती हैं. एक बेटे की मां कमलप्रीत भी ऐसी ही थी पर जब तभी उस की सच्चाई सामने आई तो तब तक उस का घर उजड़ चुका था

19मार्च, 2018 की सुबह कमलप्रीत कौर अपने पति हरजिंदर सिंह से यह कहते हुए घर से निकली थी कि उस के मायके में किसी की तबीयत खराब है, इसलिए वह राहुल को ले कर वहां जा रही है. पत्नी की यह बात सुन कर हरजिंदर ने कहा, ‘‘ठीक है, हो आओ. ज्यादा परेशानी वाली बात हो तो तुम मुझे फोन कर देना. मैं भी पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘हां, तुम्हारी जरूरत हुई तो फोन कर दूंगी और कोई ज्यादा चिंता वाली बात नहीं हुई तो 2 दिन में वापस लौट आऊंगी.’’ कमलप्रीत बोली. मूलरूप से पंजाब के जिला पटियाला के गांव बल्लोपुर की रहने वाली थी कमलप्रीत. करीब 12 साल पहले जब वह 19 बरस की थी, तब उस की शादी हरियाणा के गांव गणौली के रहने वाले हरजिंदर सिंह से हुई थी. यह गांव जिला अंबाला की तहसील नारायणगढ़ के तहत आता है.

शादी के ठीक एक साल बाद कमलप्रीत ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम राहुल रखा गया. इन दिनों वह गांव के सरकारी स्कूल में 5वीं कक्षा में पढ़ रहा था. हरजिंदर का अपना खेतीबाड़ी का काम था, जिस में वह काफी व्यस्त रहता था. कमलप्रीत घर पर रहते हुए चौकेचूल्हे से ले कर सब काम संभाले हुए थी. जो भी था, सब बड़े अच्छे से चल रहा था. पतिपत्नी में खूब प्यार था. दोनों में अच्छी अंडरस्टैंडिंग भी थी. दोनों अपने बच्चों का भी सलीके से ध्यान रखे हुए थे. काफी दिनों से राहुल पिता से कहीं घुमा लाने की जिद कर रहा था तो पिता ने उस से पक्का वादा किया था कि वह उस के इम्तिहान खत्म होने के बाद उसे 2 दिन के लिए घुमाने शिमला ले चलेगा.

मगर पेपर खत्म होने के अगले रोज ही उसे अपनी मां के साथ नानी के यहां जाना पड़ गया. पत्नी के मायके जाने वाली बात पर हरजिंदर को कोई परेशानी वाली बात नहीं थी. पति की निगाह में कमलप्रीत एक सुलझी हुई मेहनती औरत थी, जो ससुराल के साथसाथ अपने मायके वालों का भी पूरा ध्यान रखती थी. 

सुखदुख में वह अपने अन्य रिश्तेदारों के यहां भी अकेली आयाजाया करती थी. कुल मिला कर बात यह थी कि हरजिंदर को पत्नी की तरफ से कोई चिंता नहीं थी. इसलिए जब वह 19 मार्च को बेटे के साथ मायके के लिए घर से अकेली निकली तो हरजिंदर ने कोई चिंता नहीं की. उसी रोज शाम के समय हरजिंदर ने पत्नी को यूं ही रूटीन में फोन कर के पूछा, ‘‘हां कमल, पहुंचने में कोई परेशानी तो नहीं हुई? बल्लोपुर पहुंच कर तुम ने फोन भी नहीं किया?’’

‘‘हांहांवो ऐसा है कि अभी मैं बल्लोपुर नहीं पहुंच पाई.’’ कमलप्रीत बोली तो उस की आवाज में हकलाहट थी. पत्नी की ऐसी आवाज सुन कर हरजिंदर को थोड़ी घबराहट होने लगी. उस ने पूछा, ‘‘बल्लोपुर नहीं पहुंची तो फिर कहां हो?’’

‘‘अभी मैं शहजादपुर में हूं. किसी जरूरी काम से मुझे यहां रुकना पड़ गया.’’ कमलप्रीत ने पहले वाले लहजे में ही जवाब दिया. ‘‘शहजादपुर में ऐसा क्या काम पड़ गया तुम्हें? वहां तुम किस के यहां रुकी हो? सब ठीक तो है ? बताओ, कोई परेशानी हो तो मैं भी जाऊं क्या?’’

‘‘सब ठीक है, घबराने वाली कोई बात नहीं है. अच्छा, मैं फ्री हो कर अभी कुछ देर बाद फोन करती हूं. तब सब कुछ विस्तार से भी बता दूंगी.’’ कहने के साथ ही कमलप्रीत की ओर काल डिसकनेक्ट कर दी गई. लेकिन हरजिंदर की घबराहट बढ़ गई थी. उस ने कमलप्रीत का नंबर फिर से मिला दिया. पर अब उस का फोन स्विच्ड औफ हो चुका था.

अचानक यह सब होने पर हरजिंदर का फिक्रमंद हो जाना लाजिमी था. कुछ नहीं सूझा तो उस ने उसी समय अपनी ससुराल के लैंडलाइन नंबर पर फोन किया. यहां से उसे जो जानकारी मिली, उस से उस के पैरों तले की जमीन सरक गई. ससुराल से उसे बताया गया कि यहां तो घर में कोई बीमार नहीं है और न ही कमलप्रीत के वहां आने की किसी को कोई जानकारी थी.

अब हरजिंदर के लिए एक मिनट भी रुके रहना संभव नहीं था. उस ने अपनी मोटरसाइकिल उठाई और शहजादपुर की ओर रवाना हो गया. रास्ते भर वह कमलप्रीत को फोन भी मिलाता रहा था, पर हर बार उसे फोन के स्विच्ड औफ होने की ही जानकारी मिलती रही. आखिर वह शहजादपुर जा पहुंचा. पत्नी और बच्चे की तलाश में उस ने उस गांव का चप्पाचप्पा छान मारा मगर पत्नी और बेटे राहुल के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. वहां से वह मोटरसाइकिल से ही अपनी ससुराल बल्लोपुर चला गया. कमलप्रीत को ले कर वहां भी सब परेशान हो रहे थे.

इस के बाद तो हरजिंदर सिंह और उस की ससुराल वालों ने कमलप्रीत राहुल की जैसे युद्धस्तर पर तलाश शुरू कर दी. मगर कहीं भी दोनों मांबेटे के बारे में जानकारी हाथ नहीं लगी

19 मार्च, 2018 का दिन तो गुजर ही गया था, पूरी रात भी निकल गई. 20 मार्च को भी दोपहर तक तलाश करते रहने के बाद सभी निराश हो गए तो हरजिंदर शहजादपुर थाने पहुंच गया. थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह को उस ने पत्नी और बेटे के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जानकारी दे दी. थानाप्रभारी ने कमलप्रीत और उस के बेटे राहुल की गुमशुदगी दर्ज कर ली. पुलिस ने अपने स्तर से दोनों मांबेटे को ढूंढने की काररवाई शुरू कर दी.

देखतेदेखते इस बात को एक सप्ताह गुजर गया, मगर पुलिस भी इस मामले में कुछ कर पाने में असफल रहीबात 26 मार्च, 2018 की थी. थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह उस वक्त अपने औफिस में थे. तभी एक अधेड़ उम्र के शख्स ने उन के सामने कर दोनों हाथ जोड़ते हुए दयनीय भाव से कहा, ‘‘सर, मेरा नाम ओमप्रकाश है और मैं यमुनानगर में रहता हूं.’’

 ‘‘जी हां, कहिए.’’ शैलेंद्र सिंह बोले. ‘‘अब क्या कहूं सर, एक भारी मुसीबत आन पड़ी है हमारे परिवार पर.’’  ‘‘हांहां बताइए, क्या परेशानी है?’’ थानाप्रभारी ने कहा.

‘‘सर, मेरा एक भांजा है नीटू. उम्र उस की करीब 21 साल है. किसी बात पर उस का एक औरत से झगड़ा हुआ और हाथापाई में वह औरत मर गई. उस ने उस की लाश को कहीं ले जा कर दफन कर दिया. जब इस की जानकारी मुझे हुई तो हम ने उसे समझाया कि गलती हो जाने पर कानून से आंखमिचौली खेलने के बजाय पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना ही बेहतर होगा.’’ ओमप्रकाश ने बताया.

इस पर एकबारगी तो शैलेंद्र सिंह चौंके. फिर खुद को संभालने का प्रयास करते हुए बोले, ‘‘मतलब यह कि आप के भांजे ने किसी की जान ली, फिर उस की लाश भी ठिकाने लगा दी. अब सरेंडर का प्रस्ताव लेकर आए हो. तो यह भी बता दो कि किन शर्तों पर सरेंडर करवाओगे?’’

‘‘कोई शर्त नहीं सर. लड़का आप के सामने तो अपना अपराध कबूलेगा ही, अदालत में भी ठीक ऐसा ही बयान देगा. भले उसे कितनी भी सजा क्यों हो जाए. बस आप से हमें सिर्फ इतना सहयोग चाहिए कि थाने में उस पर ज्यादा सख्ती हो.’’ ओमप्रकाश ने कहा.

‘‘देखो, अगर वह हमें सहयोग करते हुए सच्चाई बयान करता रहेगा तो हमें क्या जरूरत पड़ी है उस से सख्ती से पेश आने की. जाओ, लड़के को ला कर पेश कर दो. यदि वह सच्चा है तो यहां उस से किसी तरह की ज्यादती नहीं होगी.’’

 ‘‘ठीक है सर, मैं समझ गया. लड़का थाने के बाहर ही खड़ा है. मैं अभी उसे ला कर आप के सामने पेश करता हूं.’’ कहने के साथ ही ओमप्रकाश बाहर गया और थोड़ी ही देर में एक लड़के को ले कर थाने में गया.

 ‘‘यही है मेरा भांजा नीटू, सर.’’ उस ने बताया. जिस वक्त ओमप्रकाश नीटू को ले कर थानाप्रभारी के औफिस में पहुंचा था, पुलिस वाले बगल वाले कमरे में एक अभियुक्त से गहन पूछताछ कर रहे थे. जरा सी देर में वहां से चीखचिल्लाहट की भयावह आवाजें आने लगी थीं

ये आवाजें सुन कर नीटू थरथर कांपने लगा. फिर वह दबी सी आवाज में ओमप्रकाश से बोला, ‘‘मामा, ये लोग मेरा भी क्या ऐसा ही हाल करेंगे?’’

‘‘नहीं करेंगे बेटा, मैं ने एसएचओ साहब से सारी बात कर ली है. फिर जब तुम एकदम सच्चाई बयान कर ही रहे हो तो फिर डर कैसा?’’ ओमप्रकाश ने समझाया. ‘‘यही तो डर है मामा, मैं ने आप को भी पूरी सच्चाई नहीं बताई. दरअसल, मैं ने औरत के साथसाथ उस के बेटे का भी मर्डर कर दिया है और दोनों की लाशें एक साथ दफनाई हैं.’’

नीटू की यह बात थानाप्रभारी के कानों तक भी पहुंच गई थी. उन्होंने नीटू को खा जाने वाली नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘मुझे पहले ही से शक था कि तुम्हारे अपराध का संबंध गणौली की कमलप्रीत और उस के बच्चे की गुमशुदगी से हैअब तुम्हारे लिए बेहतर यही है कि तुम अपने घिनौने अपराध की सच्ची दास्तान अपने मामा को बता दो, वरना दूसरे तरीके से सच्चाई उगलवानी भी आती है.’’

थानाप्रभारी के इतना कहते ही ओमप्रकाश नीटू को ले कर एक दूसरे कमरे में ले गया. इस के बाद नीटू ने अपने अपराध की पूरी कहानी मामा को बता दी. नीटू के बताने के बाद ओमप्रकाश ने सारी कहानी थानाप्रभारी को बता दी. थानाप्रभारी ने ओमप्रकाश के बयान दर्ज करने के बाद उसे घर भेज दिया फिर नीटू को गिरफ्तार कर उसे अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस से व्यापक पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने जो कुछ पुलिस को बताया, उस से अपराध की एक सनसनीखेज कहानी कुछ इस तरह सामने आई

करीब एक साल पहले की बात है. अपनी रिश्तेदारी के एक शादी समारोह में शामिल होने के लिए कमलप्रीत अकेली नारायणगढ़ के बड़ागांव गई थी. वहां जब वह नाचने लगी तो एक लड़के ने भी उस का खूब साथ दिया. उस ने बहुत अच्छा डांस किया था

इस डांस के बाद भी दोनों एक साथ बैठ कर बतियाते रहे. लड़के ने अपना नाम सुमित उर्फ नीटू कहते हुए बताया कि यों तो वह शहजादपुर का रहने वाला है, मगर बड़ागांव में किराए का कमरा ले कर एक कंप्टीशन की तैयारी कर रहा है.

कमलप्रीत उस की बातों से तो प्रभावित हो ही रही थी, उस का सेवाभाव भी उसे खूब पसंद आया. कमलप्रीत तो थकहार कर एक जगह बैठ गई थी, पार्टी में खाने की जिस चीज का भी उस ने जिक्र किया, वह ला कर उसे वहीं बैठी को खिलाता रहाइसी तरह काफी रात गुजर जाने पर कमलप्रीत को नींद सताने लगी. नीटू ने सुझाव दिया कि वह उसे अपने कमरे पर छोड़ आता है, जहां वह बिना किसी शोरशराबे के आराम से सो सकती है. थोड़ी झिझक के बाद वह मान गई. अब तक नीटू को भी नींद आने लगी थी. अत: कमरे में चारपाई पर कमलप्रीत को सुलाने के बाद वह खुद भी जमीन पर दरी बिछा कर सो गया.

आगे का सिलसिला शायद इन के वश में नहीं था. रात के जाने किस पहर में दोनों की एक साथ आंखें खुलीं और बिना आगेपीछे की सोचे, दोनों एकदूसरे में समा गए. कमलप्रीत से नीटू 10 साल छोटा था, अत: उस मिलन के बाद कमलप्रीत उस की दीवानी हो गई. इस के बाद यही सिलसिला चल निकला. दोनों किसी न किसी तरीके से, कहीं न कहीं मौजमस्ती करने का तरीका निकाल लेते.

देखतेदेखते एक बरस गुजर गया. अब कमलप्रीत ने नीटू से यह कहना शुरू कर दिया था कि वह अपने पति को तलाक दे कर उस से शादी कर लेगी. मौजमस्ती तक तो ठीक था, कमलप्रीत की इस बात ने उसे नीटू को परेशान कर डाला. नीटू ने इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए आखिर मन ही मन यह निर्णय लिया कि वह कमलप्रीत को अच्छी तरह से समझाएगा. फिर भी न मानी तो वह उस का खून कर देगा. इस के लिए उस ने एक चाकू भी खरीद कर रख लिया था.

19 मार्च, 2018 की सुबह कमलप्रीत उस के यहां आ धमकी. उस के साथ एक लड़का था, जिसे उस ने अपना बेटा बताया. आते ही उस ने कहा कि वह अपने पति को हमेशा के लिए छोड़ आई है. आगे वह उस से शादी कर के अपने लड़के सहित उसी के साथ रहेगी. नीटू ने उसे समझाने की कोशिश की. लगातार समझातेसमझाते पूरा दिन और सारी रात भी निकल गई. मगर वह अपनी जिद पर अड़ी रही तो 20 मार्च को नीटू ने चाकू से कमलप्रीत की हत्या कर दी

यह देख कर उस का लड़का राहुल सहम गया. मगर वह इस मर्डर का चश्मदीद गवाह बन सकता था. इसलिए नीटू ने चाकू से उस का भी गला रेत दिया. दोनों लाशों को कमरे में छिपा कर नीटू अमृतसर चला गया. वहां गोल्डन टेंपल में उस ने वाहेगुरु से अपने इस गुनाह की माफी मांगी. रात में वापस कर बड़ागांव के पास से गुजर रही बेगना नदी की तलहटी में दोनों लाशों को दफन कर आया. इस के बाद वह अपने मामा के पास यमुनानगर चला गया, जिन्होंने उसे पुलिस के सामने सरेंडर करने का सुझाव दिया था.

पुलिस ने उस की निशानदेही पर केवल चाकू बरामद किया बल्कि दोनों लाशें भी खोज लीं, जो जरूरी काररवाई के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. कस्टडी रिमांड की समाप्ति पर नीटू को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में अंबाला की केंद्रीय जेल भेज दिया गया था.

   — कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

—— फोटो रीयल घटना पर आधारित नहीं है ये एक डेमो फोटो है

जब एक पति ने अपनी पत्नी की जिंदगी की वैल्यू रखी पौने 6 करोड़

Love Crime ‘‘मम्मी, मैं जानता हूं कि आप को मेरी एक बात बुरी लग सकती है. वो यह कि सुमन आंटी जो आप की सहेली  हैं, उन का यहां आना मुझे अच्छा नहीं लगता और तो और मेरे दोस्त तक कहते हैं कि वह पूरी तरह से गुंडी लगती हैं.’’ बेटे यशराज की यह बात सुन कर मां दीपा उसे देखती ही रह गई.

दीपा बेटे को समझाते हुए बोली, ‘‘बेटा, सुमन आंटी अपने गांव की प्रधान है. वह ठेकेदारी भी करती है. वह आदमियों की तरह कपड़े पहनती है, उन की तरह से काम करती है इसलिए वह ऐसी दिखती है. वैसे एक बात बताऊं कि वह स्वभाव से अच्छी है.’’

मां और बेटे के बीच जब यह बहस हो रही थी तो वहीं कमरे में दीपा का पति बबलू भी बैठा था. उस से जब चुप नहीं रहा गया तो वह बीच में बोल उठा,‘‘दीपा, यश को जो लगा, उस ने कह दिया. उस की बात अपनी जगह सही है. मैं भी तुम्हें यही समझाने की कोशिश करता रहता हूं लेकिन तुम मेरी बात मानने को ही तैयार नहीं होती हो.’’

‘‘यश बच्चा है. उसे हमारे कामधंधे आदि की समझ नहीं है. पर आप समझदार हैं. आप को यह तो पता ही है कि सुमन ने हमारे एनजीओ में कितनी मदद की है.’’ दीपा ने पति को समझाने की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘मदद की है तो क्या हुआ? क्या वह अपना हिस्सा नहीं लेती है और 8 महीने पहले उस ने हम से जो साढ़े 3 लाख रुपए लिए थे. अभी तक नहीं लौटाए.’’ पति बोला.

मां और बेटे के बीच छिड़ी बहस में अब पति पूरी तरह शामिल हो गया था.

‘‘बच्चों के सामने ऐसी बातें करना जरूरी है क्या?’’ दीपा गुस्से में बोली.

‘‘यह बात तुम क्यों नहीं समझती. मैं कब से तुम्हें समझाता आ रहा हूं कि सुमन से दूरी बना लो.’’ बबलू सिंह ने कहा तो दीपा गुस्से में मुंह बना कर दूसरे कमरे में चली गई. बबलू ने भी दीपा को उस समय मनाने की कोशिश नहीं की. क्योंकि वह जानता था कि 2-4 घंटे में वह नार्मल हो जाएगी.

बबलू सिंह उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर के इस्माइलगंज में रहता था. कुछ समय पहले तक इस्माइलगंज एक गांव का हिस्सा होता था. लेकिन शहर का विकास होने के बाद अब वह भी शहर का हिस्सा हो गया है. बबलू सिंह ठेकेदारी का काम करता था. इस से उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी इसलिए वह आर्थिकरूप से मजबूत था.

उस की शादी निर्मला नामक एक महिला से हो चुकी थी. शादी के 15 साल बाद भी निर्मला मां नहीं बन सकी थी. इस वजह से वह अकसर तनाव में रहती थी. बबलू सिंह को बैडमिंटन खेलने का शौक था. उसी दौरान उस की मुलाकात लखनऊ के ही खजुहा रकाबगंज मोहल्ले में रहने वाली दीपा से हुई थी. वह भी बैडमिंटन खेलती थी. दीपा बहुत सुंदर थी. जब वह बनठन कर निकलती थी तो किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी.

बैडमिंटन खेलतेखेलते दोनों अच्छे दोस्त बन गए. 40 साल का बबलू उस के आकर्षण में ऐसा बंधा कि शादीशुदा होने के बावजूद खुद को संभाल न सका. दीपा उस समय 20 साल की थी. बबलू की बातों और हावभाव से वह भी प्रभावित हो गई. लिहाजा दोनों के बीच प्रेमसंबंध हो गए. उन के बीच प्यार इतना बढ़ गया कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया.

दीपा के घर वालों ने उसे बबलू से विवाह करने की इजाजत नहीं दी. इस की एक वजह यह थी कि एक तो बबलू दूसरी बिरादरी का था और दूसरे बबलू पहले से शादीशुदा था. लेकिन दीपा उस की दूसरी पत्नी बनने को तैयार थी. पति द्वारा दूसरी शादी करने की बात सुन कर निर्मला नाराज हुई लेकिन बबलू ने उसे यह कह कर राजी कर लिया कि तुम्हारे मां न बनने की वजह से दूसरी शादी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. पति की दलीलों के आगे निर्मला को चुप होना पड़ा क्योंकि शादी के 15 साल बाद भी उस की कोख नहीं भरी थी. लिहाजा न चाहते हुए भी उस ने पति को सौतन लाने की सहमति दे दी.

घरवालों के विरोध को नजरअंदाज करते हुए दीपा ने अपनी उम्र से दोगुने बबलू से शादी कर ली और वह उस की पहली पत्नी निर्मला के साथ ही रहने लगी. करीब एक साल बाद दीपा ने एक बेटे को जन्म दिया जिस का नाम यशराज रखा गया. बेटा पैदा होने के बाद घर के सभी लोग बहुत खुश हुए. अगले साल दीपा एक और बेटे की मां बनी. उस का नाम युवराज रखा. इस के बाद तो बबलू दीपा का खास ध्यान रखने लगा. बहरहाल दीपा बबलू के साथ बहुत खुश थी.

दोनों बच्चे बड़े हुए तो स्कूल में उन का दाखिला करा दिया. अब यशराज जार्ज इंटर कालेज में कक्षा 9 में पढ़ रहा था और युवराज सेंट्रल एकेडमी में कक्षा 7 में. दीपा भी 35 साल की हो चुकी थी और बबलू 55 का. उम्र बढ़ने की वजह से वह दीपा का उतना ध्यान नहीं रख पाता था. ऊपर से वह शराब भी पीने लगा. इन्हीं सब बातों को देखने के बाद दीपा को महसूस होने लगा था कि बबलू से शादी कर के उस ने बड़ी गलती की थी. लेकिन अब पछताने से क्या फायदा. जो होना था हो चुका.

बबलू का 2 मंजिला मकान था. पहली मंजिल पर बबलू की पहली पत्नी निर्मला अपने देवरदेवरानी और ससुर के साथ रहती थी. नीचे के कमरों में दीपा अपने बच्चों के साथ रहती थी. उन के घर से बाहर निकलने के भी 2 रास्ते थे. दीपा का बबलू के परिवार के बाकी लोगों से कम ही मिलना जुलना होता था. वह उन से बातचीत भी कम करती थी.

बबलू को शराब की लत हो जाने की वजह से उस की ठेकेदारी का काम भी लगभग बंद सा हो गया था. तब उस ने कुछ टैंपो खरीद कर किराए पर चलवाने शुरू कर दिए थे. उन से होने वाली कमाई से घर का खर्च चल रहा था.

शुरू से ही ऊंचे खयालों और सपनों में जीने वाली दीपा को अब अपनी जिंदगी बोरियत भरी लगने लगी थी. खुद को व्यस्त रखने के लिए दीपा ने सन 2006 में ओम जागृति सेवा संस्थान के नाम से एक एनजीओ बना लिया. उधर बबलू का जुड़ाव भी समाजवादी पार्टी से हो गया. अपने संपर्कों की बदौलत उस ने एनजीओ को कई प्रोजेक्ट दिलवाए.

इसी बीच सन 2008 में दीपा की मुलाकात सुमन सिंह नामक महिला से हुई. सुमन सिंह गोंडा करनैलगंज के कटरा शाहबाजपुर गांव की रहने वाली थी. वह थी तो महिला लेकिन उस की सारी हरकतें पुरुषों वाली थीं. पैंटशर्ट पहनती और बायकट बाल रखती थी. सुमन निर्माणकार्य की ठेकेदारी का काम करती थी. उस ने दीपा के एनजीओ में काम करने की इच्छा जताई. दीपा को इस पर कोई एतराज न था. लिहाजा वह एनजीओ में काम करने लगी.

सुमन एक तेजतर्रार महिला थी. अपने संबंधों से उस ने एनजीओ को कई प्रोजेक्ट भी दिलवाए. तब दीपा ने उसे अपनी संस्था का सदस्य बना दिया. इतना ही नहीं वह संस्था की ओर से सुमन को उस के कार्य की एवज में पैसे भी देने लगी. कुछ ही दिनों में सुमन के दीपा से पारिवारिक संबंध बन गए.

दीपा को ज्यादा से ज्यादा बनठन कर रहने और सजनेसंवरने का शौक था. वह हमेशा बनठन कर और ज्वैलरी पहने रहती थी. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी उस में गजब का आकर्षण था. उसे देख कर कोई भी उस की ओर आकर्षित हो सकता था. एनजीओ में काम करने की वजह से सुमन दीपा को अकसर अपने साथ ही रखती थी. दीपा इसे सुमन की दोस्ती समझ रही थी पर सुमन पुरुष की तरह ही दीपा को प्यार करने लगी थी.

एक बार जब सुमन दीपा को प्यार भरी नजरों से देख रही थी तो दीपा ने पूछा, ‘‘ऐसे क्या देख रही हो? मैं भी तुम्हारी तरह एक महिला हूं. तुम मुझे इस तरह निहार रही हो जैसे कोई प्रेमी प्रेमिका को देख रहा हो.’’

‘‘दीपा, तुम मुझे अपना प्रेमी ही समझो. मैं सच में तुम्हें बहुत प्यार करने लगी हूं.’’ सुमन ने मन में दबी बातें उस के सामने रख दीं.

सुमन की बातें सुनते ही वह चौंकते हुए बोली, ‘‘यह तुम कैसी बातें कर रही हो? कहीं 2 लड़कियां आपस में प्रेमीप्रेमिका हो सकती हैं?’’

‘‘दीपा, मैं लड़की जरूर हूं पर मेरे अंदर कभीकभी लड़के सा बदलाव महसूस होता है. मैं सबकुछ लड़कों की तरह करना चाहती हूं. प्यार और दोस्ती सबकुछ. इसीलिए तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मैं तुम से शादी भी करना चाहती हूं.’’

‘‘मैं पहले से शादीशुदा हूं. मेरे पति और बच्चे हैं.’’ दीपा ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘मैं तुम्हें पति और बच्चों से अलग थोड़े न कर रही हूं. हम दोस्त और पतिपत्नी दोनों की तरह रह सकते हैं. सब से अच्छी बात तो यह है कि हमारे ऊपर कोई शक भी नहीं करेगा. दीपा, मैं सच कह रही हूं कि मुझे तुम्हारे करीब रहना अच्छा लगता है.’’

‘‘ठीक है बाबा, पर कभी यह बातें किसी और से मत कहना.’’ दीपा ने सुमन से अपना पीछा छुड़ाने के अंदाज में कहा.

‘‘दीपा, मेरी इच्छा है कि तुम मुझे सुमन नहीं छोटू के नाम से पुकारा करो.’’

‘‘समझ गई, आज से तुम मेरे लिए सुमन नहीं छोटू हो.’’ इतना कह कर सुमन और दीपा करीब आ गए. दोनों के बीच आत्मीय संबंध बन गए थे. सुमन ने रिश्ते को मजबूत करने के लिए एक दिन दीपा के साथ मंदिर जा कर शादी भी कर ली. सुमन के करीब आने से दीपा के जीवन को भी नई उमंग महसूस होने लगी थी कि कोई तो है जो उसे इतना प्यार कर रही है.

इस के बाद सुमन एक प्रेमी की तरह उस का खयाल रखने लगी थी. समय गुजरने लगा. दीपा के पति और परिवार को इस बात की कोई भनक नहीं थी. वह सुमन को उस की सहेली ही समझ रहे थे. एनजीओ के काम के कारण सुमन अकसर ही दीपा के साथ उस के घर पर ही रुक जाती थी.

सुमन को भी शराब पीने का शौक था. बबलू भी शराब पीता था. कभीकभी सुमन बबलू के साथ ही पीने बैठ जाती थी. जिस से सुमन और बबलू की दोस्ती हो गई. सुमन के लिए उस के यहां रुकना और ज्यादा आसान हो गया था. उस के रुकने पर बबलू भी कोई एतराज नहीं करता था. वह भी उसे छोटू कहने लगा.

साल 2010 में उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हुए तो सुमन ने अपने गांव कटरा शाहबाजपुर से ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ा. सुमन सिंह का भाई विनय सिंह करनैलगंज थाने का हिस्ट्रीशीटर बदमाश था. उस के पिता अवधराज सिंह के खिलाफ भी कई आपराधिक मुकदमे करनैलगंज थाने में दर्ज थे. दोनों बापबेटों की दबंगई का गांव में खासा प्रभाव था. जिस के चलते सुमन ग्रामप्रधान का चुनाव जीत गई. उस ने गोंडा के पूर्व विधायक अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भैया की बहन सरोज सिंह को भारी मतों से हराया.

ग्राम प्रधान बनने के बाद सुमन सिंह सीतापुर रोड पर बनी हिमगिरी में फ्लैट ले कर रहने लगी. सन 2010 में प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद उस ने अपने संबंधों की बदौलत फिर से ठेकेदारी शुरू कर दी. अपनी सुरक्षा के लिए वह 32 एमएम की लाइसैंसी रिवाल्वर भी साथ रखने लगी. उस की और दीपा की दोस्ती अब और गहरी होने लगी थी. सुमन किसी न किसी बहाने से दीपा के पास ही रुक जाती थी.

ऐसे में दीपा और सुमन एक साथ ही रात गुजारती थीं. यह सब बातें धीरेधीरे बबलू और उस के बच्चों को भी पता चलने लगी थीं. तभी तो उन्हें सुमन का उन के यहां आना अच्छा नहीं लगता था.

सुमन महीने में 20-25 दिन दीपा के घर पर रुकती थी. शनिवार और रविवार को वह दीपा को अपने साथ हिमगिरी कालोनी ले जाती थी. दीपा को सुमन के साथ रहना कुछ दिनों तक तो अच्छा लगा, लेकिन अब वह सुमन से उकता गई थी.

एक बार सुमन ने दीपा से किसी काम के लिए साढ़े 3 लाख रुपए उधार लिए थे. तयशुदा वक्त गुजर जाने के बाद भी सुमन ने पैसे नहीं लौटाए तो दीपा ने उस से तकादा करना शुरू कर दिया. तकादा करना सुमन को अच्छा नहीं लगता था. इसलिए दीपा जब कभी उस से पैसे मांगती तो सुमन उस से लड़ाईझगड़ा कर बैठी थी.

27 जनवरी, 2014 की देर रात करीब 9 बजे सुमन दीपा के घर अंगुली में अपना रिवाल्वर घुमाते हुए पहुंची. दीपा और बबलू में सुमन को ले कर सुबह ही बातचीत हो चुकी थी. अचानक उस के आ धमकने से वे लोग पशोपेश में पड़ गए.

‘‘क्या बात है छोटू आज तो बिलकुल माफिया अंदाज में दिख रहे हो.’’ दीपा बोली.

इस के पहले कि सुमन कुछ कहती. बबलू ने पूछ लिया, ‘‘छोटू अकेले ही आए हो क्या?’’

‘‘नहीं, भतीजा विपिन और उस का दोस्त शिवम मुझे छोड़ कर गए हैं. कई दिनों से दीपा के हाथ का बना खाना नहीं खाया था. उस की याद आई तो चली आई.’’

सुमन और बबलू बातें करने लगे तो दीपा किचन में चली गई. सुमन ने भी फटाफट बबलू से बातें खत्म कीं और दीपा के पीछे किचन में पहुंच कर उसे पीछे से अपनी बांहों में भर लिया. पति और बच्चोें की बातें सुन कर दीपा का मूड सुबह से ही खराब था. वह सुमन को झिड़कते हुए बोली, ‘‘छोटू ऐसे मत किया करो. अब बच्चे बड़े हो गए हैं. यह सब उन को बुरा लगता है.’’

उस समय सुमन नशे में थी. उसे दीपा की बात समझ नहीं आई. उसे लगा कि दीपा उस से बेरुखी दिखा रही है. वह बोली, ‘‘दीपा, तुम अपने पति और बच्चों के बहाने मुझ से दूर जाना चाहती हो. मैं तुम्हारी बातें सब समझती हूं.’’

दीपा और सुमन के बीच बहस बढ़ चुकी थी दोनों की आवाज सुन कर बबलू भी किचन में पहुंच गया. लड़ाई आगे न बढ़े इस के लिए बबलू सिंह ने सुमन को रोका और उसे ले कर ऊपर के कमरे में चला गया. वहां दोनों ने शराब पीनी शुरू कर दी. शराब के नशे में खाने के समय सुमन ने दीपा को फिर से बुरा भला कहा.

दीपा को भी लगा कि शराब के नशे में सुमन घर पर रुक कर हंगामा करेगी. उस की तेज आवाज पड़ोसी भी सुनेंगे जिस से घर की बेइज्जती होगी इसलिए उस ने उसे अपने यहां रुकने के लिए मना लिया. बबलू सिंह ऊपर के कमरे में सोने चला गया. दीपा के कहने के बाद भी सुमन उस रात वहां से नहीं गई बल्कि वहीं दूसरे कमरे में जा कर सो गई.

28 जनवरी, 2014 की सुबह दीपा के बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे. वह उन के लिए नाश्ता तैयार कर रही थी. तभी किचन में सुमन पहुंच गई. वह उस समय भी नशे की अवस्था में ही थी. उस ने दीपा से कहा, ‘‘मुझ से बेरुखी की वजह बताओ इस के बाद ही परांठे बनाने दूंगी.’’

‘‘सुमन, अभी बच्चों को स्कूल जाना है नाश्ता बनाने दो. बाद में बात करेंगे.’’ पहली बार दीपा ने छोटू के बजाय सुमन कहा था.

‘‘तुम ऐसे नहीं मानोगी.’’ कह कर सुमन ने हाथ में लिया रिवाल्वर ऊपर किया और किचन की छत पर गोली चला दी.

गोली चलते ही दीपा डर गई. वह बोली, ‘‘सुमन होश में आओ.’’ इस के बाद वह उसे रोकने के लिए उस की ओर बढ़ी. सुमन उस समय गुस्से में उबल रही थी. उस ने उसी समय दीपा के सीने पर गोली चला दी. गोली चलते ही दीपा वहीं गिर पड़ी. गोली की आवाज सुन कर बच्चे किचन की तरफ आए. उन्होंने मां को फर्श पर गिरा देखा तो वे रोने लगे. बबलू उस समय ऊपर के कमरे में था. बच्चों की आवाज सुन कर वो और उस की पहली पत्नी निर्मला भी नीचे आ गए. निर्मला सुमन से बोली, ‘‘क्या किया तुम ने?’’

‘‘कुछ नहीं यह गिर पड़ी है. इसे कुछ चोट लग गई है.’’ सुमन ने जवाब दिया.

निर्मला ने दीपा की तरफ देखा तो उस के पेट से खून बहता देख वह सुमन पर चिल्ला कर बोली, ‘‘छोटू तुम ने इसे मार दिया.’’

दीपा की हालत देख कर बबलू के आंसू निकल पड़े. उस ने पत्नी को हिलाडुला कर देखा. लेकिन उन की सांसें तो बंद हो चुकी थीं. वह रोते हुए बोला, ‘‘छोटू, यह तुम ने क्या कर दिया.’’ वह दीपा को कार से तुरंत राममनोहर लोहिया अस्पताल ले गया जहां डाक्टरों ने दीपा को मृत घोषित कर दिया.

चूंकि घर वालों के बीच सुमन घिर चुकी थी. इसलिए उस ने फोन कर के अपने भतीजे विपिन सिंह और उस के साथी शिवम मिश्रा को वहीं बुला लिया. तभी सुमन ने अपना रिवाल्वर विपिन सिंह को दे दिया. विपिन ने रिवाल्वर से बबलू के घरवालों को धमकाने की कोशिश की लेकिन जब घरवाले उलटे उन पर हावी होने लगे वे दोनों वहां से भाग गए.

तब अपनी सुरक्षा के लिए सुमन ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया. बबलू के भाई बलू सिंह ने गाजीपुर थाने फोन कर के दीपा की हत्या की खबर दे दी. घटना की जानकारी पाते ही थानाप्रभारी नोवेंद्र सिंह सिरोही, एसएसआई रामराज कुशवाहा, सीटीडी प्रभारी सबइंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह, रूपा यादव, ब्रजमोहन सिंह के साथ मौके पर पहुंच गए.

हत्या की सूचना पाते ही एसएसपी लखनऊ प्रवीण कुमार, एसपी (ट्रांसगोमती) हबीबुल हसन और सीओ गाजीपुर विशाल पांडेय भी घटनास्थल पर पहुंच गए. बबलू के घर पहुंच कर पुलिस ने दरवाजा खुलवा कर सब से पहले सुमन को हिरासत में लिया. उस के बाद राममनोहर लोहिया अस्पताल पहुंच कर दीपा की लाश कब्जे में ले कर उसे पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया.

पुलिस ने थाने ला कर सुमन से पूछताछ की तो उस ने सच्चाई उगल दी. इस के बाद कांस्टेबल अरुण कुमार सिंह, शमशाद, भूपेंद्र वर्मा, राजेश यादव, ऊषा वर्मा और अनीता सिंह की टीम ने विपिन को भी गिरफ्तार कर लिया. उन से हत्या में प्रयोग की गई रिवाल्वर और सुमन की अल्टो कार नंबर यूपी32 बीएल6080 बरामद कर ली. जिस से ये दोनों फरार हुए थे.

देवरिया जिले के भटनी कस्बे का रहने वाला शिवम गणतंत्र दिवस की परेड देखने लखनऊ आया था. वह एक होनहार युवक था. लखनऊ घूमने के लिए विपिन ने उसे 1-2 दिन और रुकने के लिए कहा. उसे क्या पता था कि यहां रुकने पर उसे जेल जाना पड़ जाएगा. दोनों अभियुक्तों के खिलाफ पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 506 के तहत मामला दर्ज कर के उन्हें 29 जनवरी, 2014 को मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर जेल भेज दिया.

जेल जाने से पहले सुमन अपने किए पर पछता रही थी. उस ने पुलिस से कहा कि वह दीपा से बहुत प्यार करती थी. गुस्से में उस का कत्ल हो गया. सुमन के साथ जेल गए शिवम को लखनऊ में रुकने का पछतावा हो रहा था.

अपराध किसी तूफान की तरह होता है. वह अपने साथ उन लोगों को भी तबाह कर देता है जो उस से जुड़े नहीं होते हैं. दीपा और सुमन के गुस्से के तूफान में शिवम के साथ विपिन और दीपा का परिवार खास कर उस के 2 छोटेछोटे बच्चे प्रभावित हुए हैं. सुमन का भतीजा विपिन भागने में सफल रहा. कथा लिखे जाने तक उस की तलाश जारी थी.

— कथा पुलिस सूत्रों और मोहल्ले वालों से की गई बातचीत के आधार पर

फोटो डेमों के तौर पर यूज की गई है असल फोटो का प्रयोग नहीं किया गया है

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