दुष्कर्मियों को सजा

उस लड़की की हिम्मत को अब सराहा जाने लगा है, क्योंकि वह निडरता की ऐसी मिसाल बन गई, जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली रीना (बदला हुआ नाम) दबंग प्रवृत्ति के युवाओं की दरिंदगी का शिकार हुई थी. प्यार करने वालों को सजा देने के मामले में बदनाम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले की सरजमीं पर उसे 7 हैवानों ने सामूहिक रूप से अपनी हवस का शिकार बनाया था. विरोध करने पर उस के साथ दरिंदगी की गई.

चुप बैठने के बजाय दरिंदगी की शिकार रीना ने सामाजिक शर्म को किनारे रख कर उन्हें सजा दिलाने की ठान ली. लाख तिरस्कार, दबाव, लालच व धमकियों के बावजूद उस ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी लड़ाई लड़ती रही. नतीजतन हैवानियत करने वाले छटपटा कर रह गए. किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक दिन मामूली लड़की निडरता से लड़ाई लड़ कर हैवानियत का खेल खेलने वालों को सजा दिला देगी.

मुजफ्फरनगर की जिला अदालत ने बहुचर्चित गैंगरेप कांड में 31 जुलाई, 2017 को दोपहर 7 युवाओं अब्दुल, राशिद, वासिफ, सोमान, मोनू, राहुल व सलाऊ को उम्रकैद और जुरमाने की सजा सुनाई. इन लोगों ने एक लड़की के साथ न केवल सामूहिक गैंगरेप किया था, बल्कि मोबाइल से उस का एमएमएस भी बना कर वायरल कर दिया था. उन की हनक, हैवानियत और गरीब लड़की की इज्जत को खिलौना समझने की भूल ने उन्हें इस मुकाम पर पहुंचा दिया.

किसी ने पीडि़त लड़की को डरायाधमकाया तो किसी ने उस की लूटी अस्मत को दौलत के तराजू में तौला. पर उन के सारे पैंतरों और दबंगता को उस मामूली लड़की ने चकनाचूर कर दिया. रीना की हिम्मत के सामने उन की सभी कोशिशें व करतूत जवाब दे गईं.

मुजफ्फरनगर के एक गांव की रहने वाली रीना रोंगटे खड़े कर देने वाली हैवानियत से रूबरू हुई. उस के परिवार की माली हालत अच्छी नहीं थी. पिता मजदूरी कर के तथा 2 भैसों को पाल कर किसी तरह परिवार का गुजारा करते थे. रीना खुद शाहपुर कस्बे में एक चिकित्सक के क्लिनिक पर रिसैप्शनिस्ट की नौकरी करती थी. वहीं काम करने वाले एक युवक से उस की दोस्ती हो गई.

17 अगस्त, 2013 को वह अपने दोस्त के साथ बाइक पर सवार हो कर रेस्टोरैंट में खाना खाने के लिए बेगराजपुर जा रही थी. बसधाड़ा गांव के जंगल में वे एक ट्यूबवेल पर रुक कर पानी पीने लगे. इसी बीच 3 युवक वहां पहुंच गए. उन की नजर में इस तरह एक लड़की का किसी लड़के से मिलना गुनाह था.

यह बात अलग थी कि समाज की इस कथित ठेकेदारी की आड़ में उन की खुद की घिनौनी मानसिकता जिम्मेदार थी. उन्होंने रीना के दोस्त के साथ मारपीट की, साथ ही अपने कुछ अन्य साथियों को भी बुला लिया. सभी ने मारपीट कर के रीना के दोस्त को जान से मारने की धमकी देते हुए वहां से भगा दिया और रीना को पीटते हुए खींच कर खेत में ले गए.

society

इस के बाद उन सभी लड़कों ने रीना को अपनी हवस का शिकार बनाया. विरोध करने पर उस के साथ मारपीट कर के गालियां दी गईं. एक आरोपी ने ब्लैकमेल करने के लिए मोबाइल से उस की वीडियो भी बना ली, साथ ही धमकी दी कि जब भी बुलाएं आ जाना और अगर पुलिस में जाने की सोची तो उसे बदनाम कर दिया जाएगा.

रीना रोईगिड़गिडाई, पर उन हैवानों पर इस का कोई असर नहीं हुआ. बदनामी के डर से रीना इस घटना के बाद चुप रही. न परिवार को बताया और न ही पुलिस को. अलबत्ता वह घुटन भरी जिंदगी जीती रही. हालात और मजबूरी के आगे परेशान हो कर उस ने गांव छोड़ दिया और गुड़गांव जा कर नौकरी करने लगी.

हैवानियत करने वाले रीना को अपनी मौजमस्ती का साधन बनाना चाहते थे. लेकिन अब वह उन से दूर चली गई थी. इस पर उसे सबक सिखाने के लिए उन्होंने 10 महीने बाद जून, 2014 में वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल कर दी. इस से हड़कंप मच गया. रीना का चेहरा और युवकों की करतूत साफ झलक रही थी. सभी की पहचान से मामला तूल पकड़ गया.

वीडियो क्लिप रोंगटे खड़े कर देने वाली थी. पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू की और रीना को खोज निकाला. इस के बाद रीना ने 24 जून, 2014 को सातों आरोपियों के खिलाफ थाने में तहरीर दे दी. मामला गंभीर था. पुलिस ने गैंगरेप और आईटी एक्ट की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया. आरोपी दूसरे संप्रदाय के थे. इस से इलाके में तनाव भी बढ़ा, लेकिन पुलिस ने सभी को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

पहचान उजागर होने से रीना की जिंदगी दोजख बन गई. समाज ने भी अपनी परंपरागत मानसिकता के चलते उस पर उल्टीसीधी टिप्पणियां कर के अपना रोल बखूबी निभाया. ऐसे लोगों की भी कमी नहीं थी, जो आरोपियों के इस दुष्कर्म पर यह कह कर परदा डालने की कोशिश कर रहे थे कि अगर रीना दोस्त के साथ उस रास्ते से नहीं जाती तो ऐसी नौबत ही नहीं आती.

कई तरह के लांछन लगाए गए. जिल्लत और तोहमतों से रीना का बेहद करीबी रिश्ता बन गया. तोहमत लगाने वाले लोग ज्यादा थे, जो हर मामले में लडकियों की ही गलती निकालने की मानसिकता का शिकार होते हैं. लेकिन इन सब बातों ने रीना को और भी मजबूत बना दिया था. उस ने इंसाफ की लड़ाई लड़ने की ठान ली.

आरोपियों को सजा दिलाना ही उस की जिंदगी का मकसद बन गया. वक्त बीतता रहा. एक साल बाद 7 में से 6 आरोपियों को जमानत मिल गई. आरोपियों के खिलाफ सबूत मजबूत थे. उन्हें सजा का डर था, लिहाजा वे समझौता करना चाहते थे. रीना द्वारा अदालत में बयान बदलने से पूरा केस उलट सकता था. उन की तरफ से दबाव बनाया जाने लगा.

तरहतरह के लालच दिए गए, लेकिन रीना और उसके मातापिता ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. रीना एक असहनीय दर्द से गुजर रही थी. वह रातों को जाग कर रोती थी. उस का दुख कम हो, इसलिए घर वाले उस की गृहस्थी बसा देना चाहते थे. खतौली कस्बे के नजदीक का रहने वाला एक युवक उस का हाथ थामने को तैयार हो गया. फलस्वरूप दोनों का विवाह हो गया.

एक साल तो रीना का ठीक बीता, लेकिन घटना की परछाईं और वक्त ने खुशियों को उस का दुश्मन बना दिया. आरोपियों के पैरोकार रीना की ससुराल तक पहुंच गए. रीना बताती है कि उन्होंने उस के पति को 25 लाख रुपए देने का लालच तक दे डाला. लालच में आ कर पति व ससुराल वालों ने रंग बदल लिया और उस से बयान बदलने को कहने लगे.

उन का तर्क था कि अब उस की शादी हो गई है, इसलिए ऐसी सभी बातों को बीता हुआ कल मान कर भूल जाना चाहिए, वरना बदनामी के सिवा कुछ हाथ नहीं लगेगा. रीना ससुराल वालों के बदले रवैये पर हैरान थी. आरोपी पैसे देने और माफी मांगने को तैयार थे. लेकिन रीना ने किसी की नहीं मानी.

इस मुद्दे पर परिवार में कलह रहने लगी. कई महीनों तक भी जब उस ने ससुराल वालों की बात नहीं मानी तो उसे फरमान सुना दिया गया कि या तो वह बयान बदल कर आरोपियों को बचाने में मदद करे या फिर रिश्ता खत्म कर ले. रीना समझ चुकी थी कि ससुराल में उस का साथ देने वाला कोई नहीं है. यह शर्मनाक हकीकत भी थी कि एक पति जिस ने उसे उम्र भर साथ निभाने का वचन दिया था, वह इंसाफ की डगर पर उस का साथ देने के बजाय उसे कमजोर कर रहा था.

society

रीना ने जितनी जिल्लत झेली, उतनी ही वह मजबूत होती गई. रीना ने भी ठान लिया कि वह दुराचारियों को कभी माफ नहीं करेगी. लिहाजा उस ने किसी अनहोनी की आशंका के भय से ससुराल से ही रिश्ता खत्म करने का फैसला कर लिया. ससुराल छोड़ कर आपसी सहमति से पतिपत्नी दोनों अलग हो गए. इस चर्चित कांड में मुकदमे के विचेनाधिकारी सबइंसपेक्टर अजयपाल गौतम ने विवेचना कर के सबूतों सहित अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया. अदालत में मामले की सुनवाई शुरू हुई. रीना ने पूरा घटनाक्रम अदालत में बयान किया.

अभियोजन पक्ष की तरफ से सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता कय्यूम अली ने इसे गंभीर अपराध बताया, जबकि बचाव पक्ष के वकीलों ने आरोपियों के कैरियर, उम्र व भविष्य की दलीलें दे कर कम से कम सजा की मांग की. अदालत में आरोपियों द्वारा सुनाई गई शर्मिंदा कर देने वाली वीडियो क्लिप को भी देखा गया. उस से उन की वहशत सामने आ गई. अदालत ने वीडियो को अहम सबूत माना.

आरोप तय होने के बाद आखिर 31 जुलाई को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजेश भारद्वाज ने सातों आरोपियों को दोषी करार दिया और उन्हें भादंवि धारा 376 (जी) में उम्रकैद व 10-10 हजार रुपए जुरमाना व आईटी एक्ट में 3 साल का करावास व 25-25 हजार रुपए जुरमाने की सजा सुनाई. आरोपियों में सोमान को छोड़ कर सभी अविवाहित थे. सजा के बाद जब आरोपियों को जेल ले जाया गया तो वे मुंह छिपाते नजर आए.

अदालत का फैसला आने के बाद रीना कहती है, ‘मैं उस दिन को कभी नहीं भूल सकती. हैवानों को कभी माफ नहीं किया जा सकता. सजा से दूसरे वहशियों को सीख मिलेगी, ताकि फिर कोई किसी लड़की के साथ ऐसा न कर सके.’

रीना के मातापिता कहते हैं, ‘हम ने बेटी की अस्मत के सामने समझौता नहीं किया. हमें न्याय की पूरी उम्मीद थी.’ हैवानियत करने वाले शायद अपने गुनाह से बच भी जाते, लेकिन अपराध के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली रीना की हिम्मत वाकई काबिलेतारीफ है. उस की हिम्मत ने ही उन्हें उन के गुनाह की सजा दिलाई.

कैसे थमे बलात्कार

‘मैं एक घर से काम करके लौट रही थी. पराग चैराहे से थोडा आगे मंदिर के आगे पहुंची तो सामने से कार में सवार 4 लडके आये. उन लोगों ने मेरा मुंह बंद करके मुझे जबरदस्ती कार में चढा लिया. मुझे गाडी की पिछली सीट की गद्दी के नीचे लिटा दिया. मैने शोर मचाया तो उन लोगों ने जोर से बाजा बजा दिया. उनमें से एक गाडी चलाने लगा और 2 लडको ने मेरे साथ जोर जबरदस्ती करनी शुरू कर दी.

मुझे धमकी देकर कहा कि रोओगी तो गोली मार देगे. मैने जब उन से कहा कि भैया मुझे छोड दो तो उन लोगों ने मुझे और मारा. मेरे पैर में लाइटर से जलाया और बट से कमर पर मारा. उनमें से 3 लडको ने मेरे साथ उस समय गलत काम किया.’ 2 मई 2005 को उत्तर प्रदेश की राजधनी लखनऊ में घटी इस घटना को आशियाना बलात्कार कांड के नाम से जाना जाता है. इस लडकी को शाम के 6 बजे अगवा किया गया था और रात के 11 बजे हाथ में 20 रूपया देकर घायल अवस्था में सडक पर छोड कर युवक भाग गये.

लडकी गरीब परिवार की थी. घरों में मेहनत मजदूरी करके काम चलाती थी. उसके पिता रिक्शा चलाकर अपना परिवार चलाते थे. लडकी किसी तरह उस रात पहले घर फिर पिता के साथ थाने पहुंची, पुलिस ने मुकदमा लिखा. 6 आरोपियों को पुलिस ने पकडा, जिनमें से 4 खुद को नाबालिग बताने लगे. मुख्य आरोपी गौरव शुक्ला लखनऊ के एक बाहुबलि नेता का भतीजा था. बहुत सारी अदालतीय लडाई के बाद अदालत में यह साबित हो गया कि गौरव शुक्ला बालिग था.

5 सितम्बर 2005 को बालिग आरोपी अमन बक्शी और भारतेन्दु मिश्रा को सेशन कोर्ट ने 10 साल की सजा और 10-10 हजार रूपये जुर्माना की सजा दी. इस कांड में शामिल दो आरापियों आसिफ सिद्दकी और सौरभ जैन जमानत पर छूट कर बाहर आये. एक दुर्घटना में दोनो की मौत हो गई. एक आरोपी फैजान को अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई. गौरव शुक्ला ने पूरे मामले को भटकाने के जितने प्रयास कर सकता था किया. अदालत ने उसे 10 साल की सजा और 20 हजार रूपये का जुर्माना सुनाया. फास्ट ट्रैक अदालत के बाद यह मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जायेगा. न्याय का मूल सिद्वान्त है कि न्याय होना ही नहीं चाहिये न्याय होते दिखना भी चाहिये.

अदालत में पेशी पर जब भी गौरव शुक्ला आता था हमेशा सफेद लकदक कपडों में ही रहता था. उसको जेल में हर सुविध मिले इसके लिये पूरे गठजोड होते रहे. सजा सुनाये जाने के बाद भी उसे विशेष सुविध हासिल थी. यह राजनीतिक और नौकरशाही के गठजोड के बिना संभव नहीं हो सकती.

प्रदेश की राजनीति और नौकरशाही को मुंह चिढाने वाली यह घटना बताती है कि पीडित लडकी और उसके परिवार के साथ मीडिया, अदालत और महिला संगठनों का जोर नहीं होता, तो यह मामला कब का दबा दिया जाता. कई बार पीडित परिवार को केस वापस लेने के लिये लालच और धमकी दी गई. इससे पता चलता है कि हमारे देश में समाज बलात्कार के मामले में आज भी पीडित के बजाय दोषी के साथ खडा होता है. क्या इन परिवारों का समाज ने कोई बायकाट किया ?

हत्यारी मां ने किया बेटी का कत्ल

24 वर्षीय प्रमोद यादव उत्तर प्रदेश के जिला संतकबीर नगर के गांव बगहिया का रहने वाला था. 4 भाई और 3 बहनों में वह सब से बड़ा था. उस के पिता के पास मात्र 4 बीघा खेती की जमीन थी, उस से बमुश्किल घर का गुजारा हो पाता था.

प्रमोद के गांव के कई लोग दिल्ली में रहते थे, जो उस के दोस्त भी थे. दिल्ली जाने के बाद उन लोगों के घर के आर्थिक हालात सुधर गए थे. इसलिए प्रमोद ने भी सोचा कि वह भी गांव के दोस्तों के साथ दिल्ली जा कर कोई काम देख लेगा.

एक बार होली के त्यौहार पर जब उस के यारदोस्त दिल्ली से गांव लौटे तो प्रमोद ने उन्हें अपने मन की बात बताई और त्यौहार के बाद वह भी उन के साथ दिल्ली चला गया. उस के यारदोस्त पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर क्षेत्र में रहते थे. वह भी उन के साथ रहने लगा. उन के सहयोग से वह नौकरी तलाशने लगा.

थोड़ी कोशिश के बाद गाजीपुर में ही स्थित अमरनाथ की पशु आहार की दुकान पर उस की नौकरी लग गई. नौकरी लगने के बाद भी वह गांव के 3 दोस्तों के साथ एक ही कमरे में रहता रहा. खानेपीने का खर्चा सभी आपस में मिल कर उठाते थे.

प्रमोद 2-3 महीने बाद 4-5 दिन की छुट्टी ले कर अपने गांव जाता रहता था. गांव में खर्च के बाद जो पैसे बचते, वह अपने मांबाप को दे आता. पास के गांव बगहिया के पड़ोसी रतिपाल से प्रमोद की अच्छी दोस्ती थी. सन 2004 के मई महीने में रतिपाल के भाई की शादी थी. उस ने प्रमोद को भाई की शादी में शामिल होने का निमंत्रण दिया. तब प्रमोद 5 दिन की छुट्टी ले कर शादी में शामिल होने के लिए दिल्ली से चला गया था.

शादी समारोह में ही प्रमोद की मुलाकात मुन्नी से हुई. मुन्नी संतकबीर नगर के गांव भसेल की रहने वाली थी. मुन्नी 3 बच्चों में मंझले नंबर की थी. पहली ही मुलाकात में प्रमोद मुन्नी का दीवाना हो गया. बातचीत के दौरान ही दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए.

शादी कार्यक्रम के बाद प्रमोद अपने गांव चला गया पर मुन्नी 4 दिनों तक रतिपाल के यहां रही. प्रमोद भी जब तक अपने घर रहा, मुन्नी से फोन पर बात करता रहता था. फोन पर ही दोनों ने प्यार का इजहार कर दिया था.

पांचवें दिन मुन्नी अपने परिवार के साथ भसेल चली गई. उसी दिन प्रमोद भी दिल्ली चला आया. दोनों की फोन पर बातचीत होती रहती थी. रात को दोनों काफीकाफी देर तक अपने प्यार की बातें करते रहते थे. यहां तक कि दोनों ने शादी तक करने का वादा भी कर लिया.

मुन्नी की मां रामवती को भी इस बात का शक हो गया कि आखिर मुन्नी घंटोंघंटों तक किस से बातें करती है. एक दिन उस ने पूछ ही लिया, ‘‘बेटी, जब से तुम शादी से लौट कर आई हो, तुम्हारे हावभाव बदल गए हैं. जब देखो कानों में फोन लगाए रहती हो. क्या है यह सब?’’

मुन्नी जानती थी मां की बगैर रजामंदी के प्रमोद का विवाह उस के साथ नहीं हो सकता, इसलिए उस ने मां को अपने प्यार की सच्चाई बताना उचित समझा. इस के बाद उस ने मां को सारी बात बता दी.

बेटी की बात सुन कर रामवती पहले तो नाराज हुई, फिर मुन्नी की बातों से उसे लग रहा था कि वे दोनों एकदूसरे को चाहते हैं और लड़का सजातीय है तो वह मन ही मन खुश हुई.

रामवती न तो प्रमोद को जानती थी और न ही उसे उस के घरबार के बारे में जानकारी थी. बिना कोई छानबीन किए बेटी की शादी उस के साथ करना समझदारी वाली बात नहीं थी, इसलिए रामवती ने मुन्नी से कहा, ‘‘बेटा, जब तक हम प्रमोद के बारे में छानबीन न कर लें, तब तक तुम उस से फोन पर ज्यादा बातें न करो.’’

मगर मुन्नी पर तो प्यार का भूत सवार था. उस ने मां की सलाह को गंभीरता से नहीं लिया और वह चोरीछिपे उस से फोन पर बातें करती रही.

एक दिन मुन्नी से रामवती ने कह दिया कि वह फोन कर के प्रमोद को यहां बुला ले, ताकि उस से कुछ बात की जा सके.

मां की यह बात सुन कर मुन्नी मारे खुशी के बल्लियों उछल पड़ी. उस ने प्रमोद को फोन कर के मां से मिलने के लिए अपने गांव बुला लिया. रामवती ने प्रमोद से विस्तार से बात की. उस से की गई बातचीत से रामवती को भरोसा हो गया कि वह मुन्नी को हर तरह से खुश रखेगा. बेटी की खुशी को देखते हुए रामवती ने भी उन के प्यार को हरी झंडी दे दी.

मां से हरी झंडी मिलने के बाद प्रमोद और मुन्नी ने आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली. इस के बाद वह मुन्नी को अपने गांव ले गया. मुन्नी को 2-4 महीने गांव में मांबाप के पास छोड़ने के बाद वह उसे दिल्ली ले आया. और गाजीपुर के ही रामअवतार के मकान में किराए का कमरा ले कर वह रहने लगा.

रामअवतार के उस मकान के भूतल पर कुछ दुकानें बनी थीं और पहली मंजिल पर 4 कमरे बने थे. उन में से एक कमरे में प्रमोद और 3 कमरों में दूसरे किराएदार रहते थे. मुन्नी प्रमोद के साथ पूरी तरह से खुश थी.

समय अपनी गति से गुजरता गया और एकएक कर वह 3 बच्चों की मां बन गई, जिस में 2 बेटे और एक बेटी काजल थी. बच्चे बड़े हुए तो उन का दाखिला पास के ही सरकारी स्कूल में करा दिया.

प्रमोद अपनी दुकान पर सुबह 6 बजे चला जाता और दोपहर के 2 बजे जब दुकान बंद हो जाती तो वह घर आ जाता था. दोपहर 2 बजे के बाद प्रमोद घर पर ही रहता. प्रमोद चाहता था कि उसे ऐसा कोई पार्टटाइम काम मिल जाए, जो वह 2 बजे के बाद कर सके. इस बारे में उस ने अपने दोस्तों के अलावा मकान मालिक से भी कह रखा था.

एक दिन मकान मालिक रामअवतार ने उस से कहा, ‘‘प्रमोद, तुम जो पार्टटाइम काम की बात कह रहे हो, मेरे पास इस का उपाय है. उपाय यह है कि मैं अपनी दुकान में जनरल स्टोर की दुकान खुलवा दूंगा. 2 बजे से रात 10 बजे तक तुम संभालना. इस के बदले में तुम्हारा मकान का किराया नहीं लिया जाएगा. तुम यहां बिलकुल फ्री में रहना. अगर तुम्हें यह मंजूर है तब तो मैं दुकान में पैसे लगाऊं.’’

दुकान से मिलने वाली सैलरी से प्रमोद का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो रहा था, इसलिए उस ने रामअवतार से हां कह दी. रामअवतार ने अपनी दुकान में अच्छेखासे पैसे लगा कर जनरल स्टोर खुलवा दिया. दोपहर 2 बजे से रात 10 बजे तक प्रमोद ही उस जनरल स्टोर को संभालता था.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि 13 दिसंबर, 2017 की रात होते ही प्रमोद की 7 साल की बेटी काजल अचानक लापता हो गई. काफी ढूंढने के बाद भी जब काजल नहीं मिली तो प्रमोद ने पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन कर के बेटी के गायब होने की सूचना दे दी.

सूचना पा कर पीसीआर वैन प्रमोद के यहां पहुंच गई. मामला गाजीपुर थानाक्षेत्र का था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम की सूचना पा कर एसआई सोनू, एएसआई यशपाल प्रमोद के यहां पहुंच गए. पुलिस ने प्रमोद और उस की पत्नी मुन्नी से बात की. उसी दौरान थानाप्रभारी अमर सिंह भी एसआई नीरज के साथ प्रमोद के कमरे पर पहुंच गए.

प्रमोद की पत्नी मुन्नी ने यही बताया कि शाम के समय वह घर के बाहर ही खेल रही थी, तभी अचानक गायब हो गई. इस के बाद पुलिस ने रात में ही काजल को ढूंढना शुरू कर दिया. टौर्च की रोशनी में पुलिस वाले डीडीए कौंप्लेक्स के नजदीक के खाली पड़े प्लाटों के आसपास के सुनसान वाले इलाकों, गड्ढों, झाडि़यों आदि में काजल को तलाशते रहे, लेकिन वह वहां कहीं नहीं मिली तो थानाप्रभारी वापस प्रमोद के कमरे पर आ गए.

society

मकान का निरीक्षण करने के दौरान ही प्रमोद से थानाप्रभारी ने पूछा, ‘‘छत पर क्या है?’’

‘‘कुछ नहीं है, खुली छत है. वहां कोई नहीं जाता.’’ प्रमोद ने बताया.

थानाप्रभारी ने पास खड़े एसआई नीरज कुमार से कहा, ‘‘जरा ऊपर छत पर जा कर देखो.’’

एसआई नीरज कुमार ने टौर्च की रोशनी में पूरी छत छान मारी, पर वहां कोई भी संदिग्ध चीज नहीं मिली. पर पड़ोसी की छत पर उन्हें एक लड़की की रक्तरंजित लाश मिली. यह बात उन्होंने थानाप्रभारी को बताई तो वह भी छत पर पहुंच गए.

प्रमोद और उस की पत्नी को ले कर थानाप्रभारी अमर सिंह भी छत पर पहुंच गए. बच्ची की लाश देखते ही मुन्नी जोर से चीखी. इस के बाद वह बेहोश हो गई.

प्रमोद ने लाश की पहचान अपनी 7 वर्षीय बेटी काजल के रूप में की. पुलिस ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया. फिर जरूरी काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और प्रमोद की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

पुलिस के पूछने पर प्रमोद ने किसी से दुश्मनी आदि होने की बात भी नकार दी. पुलिस यही मान कर चल रही थी कि किसी ने इस बच्ची के साथ दुष्कर्म करने के बाद उस की हत्या कर दी होगी. पर यह बात डाक्टरी जांच के बाद पता लग सकती थी.

हत्या के इस केस को सुलझाने के लिए डीसीपी रामवीर सिंह ने थानाप्रभारी अमर सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में एसआई नीरज कुमार, सोनू सिंह, एएसआई यशपाल आदि को शामिल किया गया.

थानाप्रभारी ने पूछताछ के लिए मकान मालिक को भी थाने बुला लिया. उस के यहां रहने वाले सभी किराएदारों को भी बुला कर पूछताछ की लेकिन सभी ने इस मामले में अनभिज्ञता व्यक्त की. पड़ोस में रहने वाला सुधीर नाम का एक किराएदार फरार था. पता चला कि वह बिहार के दरभंगा का रहने वाला है. करीब 2 साल से वह डीडीए कौंप्लेक्स स्थित प्लाईवुड फैक्ट्री में नौकरी कर रहा है.

अन्य किराएदारों ने बताया कि काजल के गायब होने के बाद से सुधीर गायब है. इस बात से पुलिस के शक की सुई सुधीर की तरफ मुड़ गई.

सुधीर जिस फैक्ट्री में काम करता था, वहां से पुलिस ने उस का फोटो और मोबाइल नंबर हासिल कर लिया. इस के बाद पुलिस ने सुधीर, मुन्नी और प्रमोद के फोन नंबर की कालडिटेल्स निकलवाई तो कालडिटेल्स में चौंकाने वाली जानकारी मिली. पता चला कि मुन्नी और सुधीर की रोजाना ही लंबीलंबी बातें होती थीं. केवल घटना वाली रात 9 बजे के करीब दोनों की बात नाममात्र ही हुई थी.

थानाप्रभारी अमर सिंह ने सुधीर का नंबर मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. तब उन्होंने उसे सर्विलांस पर लगवा दिया. इस के बाद वह प्रमोद के घर गए. उस समय प्रमोद और उस की पत्नी दोनों ही कमरे पर मिल गए. उन्होंने प्रमोद से पूछा, ‘‘क्या आप सुधीर नाम के किसी आदमी को जानते हैं?’’

‘‘जी, सुधीर को बस इतना ही जानता हूं कि वह पड़ोस में रहता है और मेरे पास दुकान पर वह कुछ सामान खरीदने आता रहता था. उस से ज्यादा मैं उस के बारे में कुछ नहीं जानता.’’ उस ने कहा.

प्रमोद से बात करते हुए थानाप्रभारी मुन्नी पर नजर रखे हुए थे. उन्होंने मुन्नी के चेहरे के भाव पढ़ लिए थे. पर वह उस से कुछ नहीं बोले. प्रमोद से बात कर के वह थाने लौट आए.

कुछ समय के बाद ही थानाप्रभारी अमर सिंह को सर्विलांस सेल से सूचना मिली कि सुधीर के फोन की लोकेशन गाजीपुर थाना क्षेत्र में ही है. थानाप्रभारी ने एसआई नीरज और सोनू को सुधीर को गिरफ्तार करने की जिम्मेदारी सौंप दी.

एसआई नीरज और सोनू ने प्लाईवुड फैक्ट्री से एक ऐसे कर्मचारी को साथ लिया जो सुधीर को पहचानता था. इस के बाद वह गाजीपुर बसस्टैंड पर पहुंच गए, क्योंकि सुधीर के फोन की लोकेशन वहीं की आ रही थी. साथ गए व्यक्ति की शिनाख्त पर पुलिस ने सुधीर को बसस्टैंड से गिरफ्तार कर लिया. वहां से वह बिहार भागने की फिराक में था.

सुधीर को थाने ला कर पूछताछ की तो वह पहले इधरउधर की बातें करता रहा. फिर सख्ती करने पर उस ने सच्चाई बता दी. उस ने बताया कि काजल की हत्या में उस के साथ काजल की मां मुन्नी भी शामिल थी.

मासूम बेटी की हत्या में मां के शामिल होने की बात सुन कर पुलिस भी चौंक गई. फिर सुधीर ने उस बच्ची की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली-

प्रमोद सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक व्यस्त रहता था. काम के चक्कर में वह पत्नी को भी समय नहीं दे पाता था. लगातार 16 घंटे काम कर के वह थक कर जल्द ही सो जाता था. ऐसे में पड़ोस में रहने वाले सुधीर नाम के युवक से मुन्नी के अवैध संबंध हो गए.

दरअसल, पति की मरजी के बगैर मुन्नी ने डीडीए कौंप्लेक्स स्थित प्लाईवुड फैक्ट्री में नौकरी कर ली थी. उसी प्लाईवुड फैक्ट्री में सुधीर भी नौकरी करता था. साथसाथ काम करने पर उस की सुधीर से दोस्ती हो गई थी. 23 साल का सुधीर अविवाहित था. दोनों एकदूसरे को चाहने लगे. इसी बीच उन के बीच अवैध संबंध भी बन गए.

मुन्नी के नौकरी पर चले जाने पर घर अस्तव्यस्त रहता था और बच्चों की देखभाल भी ठीक से नहीं हो पाती थी. तब प्रमोद ने दबाव डाल कर पत्नी की नौकरी छुड़वा दी. उस ने वहां 3 माह नौकरी की थी.

नौकरी छूटने के बाद भी मुन्नी के सुधीर से संबंध कायम रहे. उस की फोन पर बातचीत होती रहती थी. पति तो रात 10 बजे तक दुकान पर रहता था, इसलिए जब मुन्नी का मन होता, वह सुधीर को अपने कमरे पर बुला लेती.

10 दिसंबर, 2017 को मुन्नी और सुधीर को आपत्तिजनक स्थिति में उस की बेटी काजल ने देख लिया था. काजल को देख कर दोनों अलग हो गए. दोनों ने काजल को पैसे, कपड़े, खिलौनों आदि का लालच दे कर कहा कि उस ने जो कुछ देखा है, वह किसी को नहीं बताए.

काजल उस समय तो चुप रही, पर उस के बाद उस ने अपनी मम्मी से कह दिया कि उस की गंदी हरकत वह पापा को जरूर बताएगी. काजल के जवाब से मुन्नी घबरा गई. मुन्नी को डर लगने लगा कि काजल की वजह से वह पति की नजरों में गिर जाएगी.

साथ ही बदनामी भी होगी, इसलिए उस ने सुधीर को फोन कर के कह दिया कि काजल बात नहीं मान रही, उसे ठिकाने लगा दो, ऐसा नहीं हुआ तो मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी.

इस के बाद मुन्नी ने काजल की हत्या की योजना तैयार की. 13 दिसंबर, 2017 की रात 8 बजे के करीब पड़ोसी लालमन के कमरे में काजल टीवी देख रही थी. मुन्नी ने इशारे से काजल को बुलाया. उसे कोई अच्छी चीज दिखाने की बात कह कर वह उसे छत पर ले गई.

सुधीर चाकू लिए छत पर पहले से बैठा था. छत के किनारे पर मुन्नी ने काजल का मुंह दबा कर पटका और सुधीर ने चाकू से उस बच्ची का गला रेत दिया. कुछ ही देर में काजल की मौत हो गई.

दोनों ने मिल कर पड़ोस की छत पर लाश फेंक दी और जिस जगह उन्होंने काजल का गला रेता था, वहां पड़े खून के ऊपर उन्होंने बोरी डाल दी, ताकि खून किसी को न दिखे.

उन की योजना रात के अंधेरे में लाश को बोरी में भर कर ठिकाने लगाने की थी. पर वह लाश ठिकाने तो नहीं लगा सके, पुलिस के हत्थे जरूर चढ़ गए. इस के बाद पुलिस ने मुन्नी को भी गिरफ्तार कर लिया. सुधीर की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया.

पुलिस ने 15 दिसंबर को दोनों को कड़कड़डूमा कोर्ट में मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर जेल भेज दिया.

फर्जी फाइनैंस कंपनियों से रहें सावधान

मथुरा, उत्तर प्रदेश का रहने वाला विश्वेंद्र सिंह पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश करतेकरते थक चुका था. आखिरकार उस ने हार मान कर अपना खुद का कारोबार शुरू करने की ठानी.

इस के लिए विश्वेंद्र सिंह को पैसों की जरूरत थी. इस वजह से उस ने कई बैंकों से लोन लेने के लिए बातचीत की. लेकिन उसे वहां भी निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि इस के लिए उसे बैंक में सिक्योरिटी के रूप में अचल संपत्ति या गारंटर की जरूरत थी, लेकिन उस की बेरोजगारी के चलते कोई भी उस का गारंटर बनने को तैयार नहीं था.

एक दिन विश्वेंद्र सिंह की अखबार पढ़ते हुए उस में छपे एक इश्तिहार पर नजर पड़ी. ‘गारैंटैड लोन, वह भी मात्र 2 घंटे में. नो फाइल चार्ज. नो गारंटर. खर्चा लोन पास होने के बाद.’

इसी तरह का एक इश्तिहार और था, जिस में मार्कशीट पर किसी भी कारोबार के लिए लोन देने की बात लिखी थी.

विश्वेंद्र सिंह को इसी तरह के तमाम इश्तिहार उस अखबार में दिखाई पड़े, जिन में 10 लाख से ले कर करोड़ रुपए तक लोन देने की बात की गई थी. उस ने उस अखबार में दी गई मेरठ की एक फाइनैंस कंपनी, जिस का नाम सिक्योर इंडिया सर्विसेज लिमिटेड और पता अबू प्लाजा लेन का था, को फोन किया.

वहां से फोन रिसीव करने वाले शख्स ने उसे बहुत आसान शर्तों पर लोन देने की बात कही. इस के लिए विश्वेंद्र सिंह को मेरठ बुलाया गया.

crime

विश्वेंद्र सिंह जब उस लोन कंपनी के दफ्तर में पहुंचा, तो उस से पहले से बताए गए डौक्यूमैंट की फोटोकौपी व उस का फोटो जमा करवा कर 5 लाख रुपए के लोन की फाइल तैयार की गई और उस लोन की कुल रकम की सिक्योरिटी मनी के रूप में उस से 30 हजार रुपए मांगे गए.

इस पर विश्वेंद्र सिंह चौंका और बोला कि इश्तिहार में तो किसी भी तरह की गारंटी या प्रोसैसिंग फीस लेने की बात नहीं की गई थी, तो फिर यह कैसी गारंटी मनी?

इस पर उस लोन कंपनी की तरफ से कहा गया कि वे उसे 5 लाख रुपए बिना किसी गारंटर के दे रहे हैं और वह 30 हजार रुपए सिक्योरिटी मनी के रूप में नहीं दे सकता.

इस के बाद विश्वेंद्र सिंह 30 हजार रुपए देने को तैयार हो गया और उस ने उस कंपनी के खाते में 10 हजार रुपए जमा करा दिए और बाकी के पैसे उस ने नकद जमा किए. इस के एवज में उसे बिना कंपनी का नामपता लिखी एक रसीद थमा दी गई.

इस के बाद सादा कागज पर एक एग्रीमैंट करवाया गया, जिस में यह लिखा गया था कि स्थानीय तहसीलदार से जांच कराने के बाद ही उसे लोन देने की बात की गई थी.

उस एग्रीमैंट में यह भी लिखा था कि तहसीलदार की रिपोर्ट अगर उस के पक्ष में होगी, तभी यह लोन दिया जाएगा.

इस एग्रीमैंट के बाद विश्वेंद्र सिंह घर चला आया और वह लोन की रकम मिलने का इंतजार करता रहा, लेकिन जब 3 महीने बीत जाने पर भी कंपनी के लोगों ने उस से संपर्क नहीं किया, तो वह सीधे कंपनी के दफ्तर गया और लोन न मिलने की बात कही.

इस पर कंपनी की तरफ से उसे यह कहा गया कि तहसीलदार ने उस के पक्ष में रिपोर्ट नहीं लगाई है, इसलिए अब उसे लोन नहीं दिया जा सकता है.

जब विश्वेंद्र सिंह ने तहसीलदार की रिपोर्ट देखने के लिए मांगी, तो उसे यह कर मना कर दिया गया कि यह गोपनीय रिपोर्ट होती है. हम इसे नहीं दिखा सकते.

इस के बाद विश्वेंद्र सिंह ने सिक्योरिटी मनी के अपने 30 हजार रुपए वापस मांगे, तो उसे भी कंपनी ने यह कर मना कर दिया वह रकम वापस नहीं की जा सकती है.

इस तरह की फर्जी लोन कंपनियों से ठगे जाने का मामला सिर्फ बेरोजगार विश्वेंद्र सिंह का नहीं है, बल्कि हर रोज आसान तरीके से ऐसे लोन लेने के चक्कर में हजारों बेरोजगार ठगी के शिकार होते हैं.

ऐसे पहचानें फर्जी कंपनी

आसान शर्तों पर लोन देने का झांसा देने वाली इश्तिहार कंपनियां ज्यादातर मामलों में फर्जी ही होती हैं, जो भोलेभाले बेरोजगार लोगों को लोन देने के नाम पर शिकार बनाती हैं.

ऐसे में अगर आप को आसान शर्तों पर लोन देने का दावा करता कोई इश्तिहार दिख जाए, तो यह समझ लेना चाहिए कि यह महज ठगी करने वाली कंपनी ही होगी, क्योंकि कोई भी कंपनी बिना अपने रुपए की वापसी की गारंटी जांच की पड़ताल किए किसी को भी लोन नहीं देती है.

crime

फर्जी लोन कंपनियों की पहचान के मसले पर पंजाब नैशनल बैंक में मार्केटिंग अफसर अभिषेक पांडेय का कहना है कि कोई भी फाइनैंस कंपनी शुरू करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक, सेबी व सिडबी जैसे वित्तीय संस्थानों से लाइसैंस लेना पड़ता है.

ये संस्थाएं लाइसैंस देने के पहले खुलने वाली फाइनैंस कंपनी की कई तरीके से जांचपड़ताल करती हैं.

मानकों पर खरी पाए जाने पर उस कंपनी के लोन कैटीगरी को तय किया जाता है कि वह किस तरह का लोन देना चाहती है. इस में  घर का लोन, गाड़ी के लिए लोन, कारोबार वगैरह की अलगअलग कैटीगरी तय की जाती है.

अभिषेक पांडेय के मुताबिक, कोई भी लोन देने वाली कंपनी एक फीसदी  सालाना के न्यूनतम ब्याज पर कर्ज दे कर नहीं चलाई जा सकती है, वह भी कर्ज वापसी के लिए बिना किसी छानबीन व गारंटी के तो यह एकदम मुश्किल है. अगर कोई कंपनी इस तरह के लोन देने का दावा करती है, तो वह धोखाधड़ी व ठगी के मकसद से ही ऐसा कर रही होती है.

इन से ही लें लोन

अगर आप बेरोजगार हैं और किसी तरह का लोन लेना चाहते हैं, तो इस के लिए बैंक व फाइनैंस कंपनी से ही आप का लोन लेना ज्यादा अच्छा होता है.

एक वित्तीय सलाहकार मनमोहन श्रीवास्तव के मुताबिक, लोन देने के पहले बैंकों द्वारा लोन लेने वाले के पते की छानबीन कर पूरी गारंटी के साथ ही लोन दिया जाता है.

बैंक द्वारा लोन के लिए सरकार व भारतीय रिजर्व बैंक की गाइडलाइन के मुताबिक ही फीस ली जाती है. अगर आप किसी कारोबार के लिए लोन ले रहे हैं, तो बैंक उस के लिए उस कारोबार का प्रोजैक्ट मांगता है. उस प्रोजैक्ट रिपोर्ट के संतुष्ट होने के बाद ही लोन देने की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाती है.

मनमोहन श्रीवास्तव का आगे कहना है कि बैंक द्वारा जो ब्याज की रकम ली जाती है, वह इश्तिहारी लोन कंपनियों के बजाय ज्यादा तो होती है, लेकिन यह भारतीय रिजर्व बैंक की गाइडलाइन के मुताबिक ही तय होती है, जिस में धोखाधड़ी का कोई डर नहीं होता है.

उन का कहना है कि अगर अखबारों में आसान शर्तों पर लोन देने के इश्तिहार दिखाई दें, तो उस पर ध्यान न दे कर बैंकों से लोन लेने की कोशिश करें. इस लोन को हासिल करने में भले ही समय लगे, लेकिन इस में आप की जेब का पैसा डूबने का डर नहीं रहता है.

बहनों से छेड़छाड़, भाइयों की मुसीबत

साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाला राजा नामक नौजवान दिल्ली से लगे नोएडा के एक कार गैराज में नौकरी करता था. उसे घायल हालत में अस्पताल में भरती कराया गया. 3 दिन जिंदगी और मौत से जूझने के बाद राजा की सांसों की डोर हमेशा के लिए टूट गई. वह मारपीट में बुरी तरह से घायल हुआ था. उस के सिर व बदन के दूसरे हिस्सों पर चोटों के निशान थे. उस की मौत ने न सिर्फ उस के परिवार, बल्कि उस के जानकारों को भी हिला कर रख दिया. राजा की गलती महज इतनी थी कि वह अपनी बहन के साथ आएदिन होने वाली छेड़छाड़ का विरोध करता था. किसी ने सोचा भी नहीं था कि विरोध करने पर मनचला अपने साथियों के साथ उसे इस तरह निशाना बना लेगा.

एक भाई के लिए यह जरूरी भी हो जाता है कि जब कोई सिरफिरा शोहदा उस की बहन को छेड़े, तो वह विरोध करे, लेकिन मनचलों के हौसले बुलंद होते हैं. उन्हें लगता है कि ऐसे विरोध से उन की तौहीन हो गई है और वे सीनाजोरी कर के मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं.

दरअसल, राजा की बहन को एक शोहदा वसीम अकसर ही परेशान किया करता था. मौका लगने पर छेड़छाड़ और फब्तियां कसता था. राजा ने इस बात का कई बार विरोध किया, लेकिन उस की हरकतें बंद नहीं हुईं.

एक दिन वसीम ने अपने साथियों के साथ मिल कर राजा की जम कर पिटाई कर दी. गंभीर चोटों के बाद उस की मौत हो गई.

पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. कानून ने अपना काम किया, लेकिन बात सिर्फ इतने पर खत्म नहीं हो जाती. सवाल है कि किसी सभ्य समाज में क्या एक भाई को यह सब सहना चाहिए?

समाज में इस तरह की वारदातों में इजाफा हो रहा है. हर छोटेबड़े शहर में शोहदे हैं. हर मिनट कोई लड़की आहत हो कर खून का घूंट पी रही होती है और शोहदे कौलर तान कर निकल जाते हैं. विरोध करने पर सिरफुटौव्वल होती है.

बहन के साथ होने वाली छेड़छाड़ के विरोध की कीमत चुकाने वाला राजा कोई एक अकेला नौजवान नहीं था. उत्तर प्रदेश के बरेली में तो बहन से छेड़छाड़ करने पर दबंगों ने एक भाई की सरेआम हत्या कर दी.

दरअसल, संजय नगर इलाके में एक लड़की सावित्री घर के बाहर खड़े हो कर अपने भाई नन्हे से बात कर रही थी. इसी बीच मोटरसाइकिल सवार एक लड़के ने उसे हलकी टक्कर मार दी.

सावित्री ने विरोध किया, तो उस ने दबंगई दिखा कर छेड़छाड़ कर दी. गुस्से में आए भाई ने उस लड़के को पीट दिया.

वह लड़का तब तो चला गया, लेकिन कुछ देर बाद वह अपने दोस्तों के साथ आया और भाई से मारपीट कर दी. उन्होंने उस के सिर पर फरसे से वार किए. तेज वार से नन्हे लहूलुहान हो कर गिर गया और उस की मौत हो गई.

मामला किसी छोटी जाति की लड़की का हो, तो दबंग उस पर अपना हक समझते हैं कि वह बिना नानुकर किए उन की बात मान ले.

सुलतानपुर का मामला कुछ ऐसा ही है. कादीपुर कोतवाली क्षेत्र में पिछड़ी जाति के निषाद की बेटी रीना (बदला नाम) खेत पर गई थी, तभी 3 दबंगों ने छेड़छाड़ करते हुए उसे दबोच लिया.

इसी बीच रीना का भाई उधर पहुंच गया. बहन की चीखपुकार सुन कर उस की आबरू बचाने के लिए वह दबंगों से भिड़ गया. उन्होंने उसे मारपीट कर अधमरा कर दिया. बाद में अस्पताल में उस की मौत हो गई.

गांवदेहात में कमजोर लोगों की बहूबेटियों पर दबंगों की गंदी नजरें मंडराती हैं, यह किसी से छिपा नहीं है. विरोध करने पर उन्हें तरहतरह से सताया जाता है.

हापुड़ के हरसांव गांव का रहने वाला एक लड़का अपनी बहन के साथ जा रहा था, तभी रास्ते में एक मनचले ने उस की बहन का हाथ पकड़ लिया. भाई ने विरोध किया, तो उस के साथ मारपीट कर मनचला मौके से फरार हो गया.

छेड़छाड़ करने वाले सड़कों, महल्लों से ले कर स्कूलकालेजों के बाहर तक मंडराते हैं. गाजियाबाद शहर के एक कालेज के बाहर 10वीं जमात की एक छात्रा के साथ मनचले अकसर छेड़छाड़ किया करते थे. उस ने इस की शिकायत अपने भाई से की.

एक दिन उस छात्रा का भाई छुट्टी के वक्त पहुंच गया. मनचलों ने वही हरकत दोहराई, तो भाई ने विरोध किया. मनचलों को यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने भाई को दौड़ादौड़ा कर इतना पीटा कि उसे आईसीयू में भरती कराना पड़ा. हालांकि बाद में पुलिस ने मनचलों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

इसी तरह कानपुर शहर में एक वारदात हुई. 12वीं जमात की एक छात्रा के साथ एक मनचला अकसर छेड़खानी किया करता था. एक दिन वह घर से कोचिंग क्लास के लिए निकली, तो मनचले ने रास्ता घेर कर उसे रोक लिया और उसे जबरन मोटरसाइकिल पर बैठाने की कोशिश की.

घर पहुंच कर उस लड़की ने अपने भाई को जानकारी दी. गुस्साया भाई अपने एक दोस्त के साथ मनचले के घर शिकायत करने पहुंचा. मनचले ने उलटा उन पर हमला बोल दिया. बैल्ट व डंडों से पीट कर उन दोनों को घायल कर दिया.

मेरठ शहर के सदर इलाके में भी एक नौजवान को अपनी बहन के साथ हुई छेड़छाड़ का विरोध करना भारी पड़ गया. हुआ यों कि एक लड़की अपने घर के बाहर खड़ी थी. इसी दौरान 2 दोस्तों के साथ जा रहे एक लड़के ने लड़की पर फब्तियां कसीं और उस का मोबाइल नंबर पूछा.

इसी बीच घर से बाहर निकले भाई ने उन लड़कों की इस हरकत का विरोध किया, तो उन्होंने उस के साथ मारपीट कर दी. मौके पर खड़ी भीड़ तमाशा देखती रही. पुलिस के पहुंचने तक हमलावर फरार हो गए.

छेड़छाड़ करने वाले ज्यादातर मनचले इस सोच के मारे होते हैं कि वे कुछ भी हासिल कर सकते हैं. जो लड़की के पक्ष में आता है, उसे गुंडई कर के सबक भी सिखाते हैं. ऐसे मनचले लड़कियों को गंदे इशारे करते हैं, उन्हें छू कर निकलते हैं, वासना भरी नजरों से घूरते हैं और सीटी बजाते हैं.

अमूमन हर रोज ऐसी हरकतों को सहा जाता है. जब कोई भाई अपनी बहन को छेड़छाड़ से बचाने की कोशिश करता है, तो उसे बहुतकुछ सहना पड़ता है. मामला मारपीट और पुलिस तक जाए, तो समाज कई बार लड़की को ही गलत नजर से देखता है. उस का घर से निकलना तक बंद हो जाता है. मनचलों को कानून का डर नहीं होता. छेड़छाड़ के मामले में शायद ही कभी किसी को सजा हुई हो.

वकील सुदेश त्यागी बताते हैं कि पुलिस ऐसे मामलों में छेड़छाड़ करने वालों के खिलाफ धारा-294 के तहत कार्यवाही करती है. इस में ज्यादा से ज्यादा 3 महीने की सजा या जुर्माने का प्रावधान है. ऐसे में अपराध अदालत के सामने साबित भी करना होता है.

समाज में बढ़ती छेड़छाड़ की बीमारी से उन भाइयों की हालत का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है, जो अपनी बहन की आबरू को ले कर फिक्रमंद रहते हैं. वे गलत हरकत का विरोध करते हैं, तो उन्हें तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है, रंजिशें पनपती हैं और हत्याएं तक हो जाती हैं.

पुलिस अफसर नरेंद्र प्रताप कहते हैं कि इस तरह के मामलों में तुरंत पुलिस को सूचित करना चाहिए. औरतों के लिए अलग से भी हैल्पलाइन नंबर हैं. उन पर भी सूचना दी जा सकती है.

दुखी हो कर बने कातिल

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले का रहने वाला संतराम भी ऐसा ही एक भाई है, जिसे छेड़छाड़ से तंग आ कर हत्या तक करनी पड़ गई. दरअसल, राजीव नामक दबंग लड़का संतराम की बहन पर बुरी नजर रखता था. वह अकसर उस के साथ छेड़छाड़ करता था. बारबार समझाने पर भी जब वह नहीं माना, तो संतराम ने दूसरा रास्ता अख्तियार कर लिया.

एक दिन संतराम ने अपने साथी के साथ मिल कर राजीव को बुलाया. पहले उसे शराब पिलाई, फिर डंडे से सिर पर वार कर के उस की हत्या कर दी. तफतीश में मामला खुला, तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

हरियाणा के करनाल शहर का मामला भी कुछ ऐसा ही रहा. 5 नौजवानों ने चाकुओं से गोद कर बसस्टैंड इलाके में एक लड़के विजय राणा की हत्या कर दी. गिरफ्तारी के बाद पता चला कि विजय राणा आरोपियों में से एक की बहन के साथ छेड़छाड़ व पीछा किया करता था. इसी बात से गुस्साए भाई ने अपने साथियों के साथ मिल कर उस की हत्या कर डाली.

शराबबंदी को ठेंगा दिखाता नाजायज मतलबी बंधन

प्रदेश में शराबबंदी के बावजूद शराब माफिया, अपराधियों और पुलिस वालों के बीच अनोखा महागठबंधन तैयार हो गया है और वह शराबबंदी कानून को ठेंगा दिखा रहा है. इस की एक छोटी सी बानगी 11 अक्तूबर, 2017 को देखने को मिली, जब अरवल पुलिस ने शराब का एक कंसाइनमैंट पकड़ा. मामले की जांच के लिए केस को आर्थिक अपराध इकाई यानी ईओयू को सौंप दिया गया. ईओयू ने अपना काम शुरू किया. उसे सूचना मिली थी कि 12 अक्तूबर को उसी कंसाइनमैंट की डिलीवरी सीतामढ़ी में होने वाली है. पुलिस ने छापा मारने की तैयारी की. सीतामढ़ी पुलिस को अलर्ट रहने को कहा गया.

इसी बीच रून्नीसैदपुर थाने के दारोगा अवनी भूषण सिंह ने शराब माफिया अजीत राय के मोबाइल फोन पर मैसेज भेजा, ‘अभी रेड होगी.’

उस के बाद दारोगा साहब ने फोन कर के अजीत राय को सावधान रहने की हिदायत भी दी.

अजीत राय पर शराबबंदी कानून तोड़ने समेत हत्या, रंगदारी वसूलने समेत कई केस पहले ही दर्ज हैं. तकरीबन आधा दर्जन मामलों में वह चार्जशीट किया जा चुका है.

दारोगा अवनी भूषण सिंह को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि वह पहले से ही ईओयू के रडार पर है.

crime

शराब माफिया को छापामारी की सूचना देने के कुछ ही देर बाद साल 2009 बैच के दारोगा अवनी भूषण सिंह समेत शराब माफिया को दबोच लिया गया.

बिहार में यह इस तरह का पहला मामला है जब ईओयू ने शराब माफिया और पुलिस के गिरोह का भंडाफोड़ किया है.

11 अक्तूबर को ही अरवल जिले के कलेर थाने के थानेदार को शराब के एक कंसाइनमैंट की जानकारी मिली. रात के 8 बज कर 35 मिनट पर थानेदार ने पुलिस टीम के साथ पटनाऔरंगाबाद हाईवे-98 पर एक मिनी ट्रक को रोका.

हरियाणा के रजिस्टे्रशन नंबर वाले उस ट्रक में शराब की 4320 बोतलें लदी हुई थीं. ट्रक पर सवार कुलदीप सिंह और केशव देव को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्होंने बताया कि शराब से लदे इस मिनी ट्रक को हाजीपुर में डिलीवरी देनी थी.

ईओयू की टीम ट्रक के साथ हाजीपुर पहुंची. हाजीपुर पहुंचने के बाद शराब माफिया ने ट्रक को मुजफ्फरपुर चलने को कहा. मुजफ्फरपुर से पहले ही तुर्की ब्लौक के पास एक स्कौर्पियो गाड़ी ने ट्रक को रुकने के लिए कहा. ट्रक के रुकते ही उस में सवार ईओयू की टीम ने स्कौर्पियो में सवार 5 लोगों को दबोच लिया.

गिरफ्तार लोगों के नाम अजीत कुमार, अजय कुमार, सुजीत कुमार, संजीव कुमार और सुरेंद्र कुमार सिंह है. सुरेंद्र दिल्ली का रहने वाला है.

बिहार में शराबबंदी के बाद भी शराब का चोरीछिपे  गैरकानूनी धंधा चल रहा है. जो शराब पीना चाहता है, उस के घर पर शराब की डिलीवरी हो रही है. 500 रुपए की कीमत वाली शराब की बोतल के लिए पियक्कड़ों को डेढ़ से 2 हजार रुपए तक चुकाने पड़ते है. पुलिस ने अब तक शराब के जिन धंधेबाजों को पकड़ा है, उन लोगों ने कबूल किया है कि झारखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा से शराब बिहार पहुंचती रही है.

शराबबंदी कानून को ठेंगा दिखा कर अपना गैरकानूनी धंधा चलाने के लिए शराब माफिया हर तरह की तिकड़म लड़ा रहे हैं. जब शराब से लदे बड़े ट्रकों को पुलिस ने पकड़ना शुरू किया तो छोटी गाडि़यों में शराब की खेप लाने का काम शुरू कर दिया गया. मिनी ट्रक, कारें, आटोरिकशा यहां तक कि स्कूटी में भर कर भी शराब ढोई जाने लगी है.

पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक, शराब की खेप को बिहार की सीमा के बाहर बड़े पैमाने पर जमा कर के रखा गया है. वहीं से डिमांड के हिसाब से शराब की खेप की होम डिलीवरी की जा रही है.

पहले गोपालगंज जिले के रास्ते गैरकानूनी तरीके से शराब बिहार की सीमा में घुसाई जा रही थी. उस रूट पर जब पुलिस की धरपकड़ तेज हो गई

तो अब अरवलजहानाबाद रूट को शराब माफिया ने अपना सेफ जोन बना लिया है.पुलिस की आंखों में धूल झोंकने के लिए शराब की खेप को इधरउधर घुमाने के बाद तय अड्डे तक पहुंचाया जाता है. पुलिस की मिलीभगत के बगैर माफिया का काम आसान नहीं हो सकता है.

भोजपुर के एक शराब माफिया को गिरफ्तार करने के बाद जब ईओयू ने उस से पूछताछ की तो उस ने हैरान करने वाली बातें बताईं. उस ने बताया कि पटना से शराब की खेप को वह अपनी बोलेरो गाड़ी में रखता और पटना से भोजपुर के बीच पड़ने वाले हर पुलिस थाने में चढ़ावा चढ़ाता चला जाता था.

एक खेप ले जाने पर उसे थानों में तकरीबन 20 से 25 हजार रुपए चढ़ाने पड़ते थे और एक खेप से उस की कमाई 2 लाख रुपए से ज्यादा की हो जाती थी.

शराब की खेप के तय जगह पर पहुंचने के बाद तुरंत उस की डिलीवरी नहीं की जाती है. इस के लिए 10-15 घंटों का समय लगता है. खेप के पहुंचने के बाद धंधेबाज रेकी करते हैं. वे दूर रह कर उस पर नजर रखते हैं.

हर तरह से निश्चिंत होने के बाद ही शराब की खेप को ठिकाने लगाने का काम शुरू किया जाता है. अगर लोकल पुलिस को दानदक्षिणा दे दी गई होती है तो बेरोकटोक डिलीवरी हो जाती है.

पिछले दिनों अरवलपटना से सटे दानापुर ब्लौक में जब शराब से लदा एक ट्रक पहुंचा तो उसे लेने के लिए कोई भी नहीं पहुंचा. धंधेबाजों को पता चल गया था कि ईओयू ने शराब की खेप को पकड़ने के लिए वहां पहले से ही जाल बिछा रखा था. तकरीबन 12 घंटे के बाद शराब के धंधेबाज जब पूरी तरह से निश्चिंत हो गए कि अब कोई खतरा नहीं है तो वे गाड़ी के पास पहुंचे. पर इतनी सावधानी बरतने के बाद भी वे ईओयू के जाल में फंस गए, क्योंकि ईओयू ने अपनी टीम को बदल दिया था.

पिछले साल 1 अप्रैल से बिहार को पूरी तरह से ‘ड्राई स्टेट’ बनने के बाद ही राज्य के सीमा पार के इलाकों में शराब के कई बाजार सज चुके थे.

crime

बिहार से सटे नेपाल के इलाकों में तो शराब का धंधा कई गुना बढ़ चुका है, वहीं बिहार से सटे झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल वगैरह राज्यों के बौर्डर पर भी शराब का धंधा फलफूल रहा है.

शराबबंदी के बाद ही कई रिटायर्ड सरकारी अफसरों ने कहा था कि सरकार का यह फैसला तभी कामयाब होगा जब सरकारी अफसर और मुलाजिम पूरी ईमानदारी से सरकार का साथ देंगे. ज्यादातर राज्यों में सरकारी अफसरों और जनता की मदद नहीं मिलने की वजह से शराबबंदी नाकाम साबित हुई है.

रिटायर्ड मुख्य सचिव वीएस दुबे कई मौके पर कहते रहे हैं कि शराब पर पूरी तरह से रोक लगाना सरकार का काफी अच्छा फैसला है. पर यह तभी कामयाब हो सकेगी, जब पुलिस दारोगा और आबकारी दारोगा पर पूरी तरह जवाबदेही डाली जाएगी. गैरकानूनी शराब की तस्करी को रोकने के लिए पड़ोसी राज्यों की सीमा पर ठोस निगरानी तंत्र बनाने होंगे.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पता था कि उन के शराबबंदी के फैसले को सब से ज्यादा खतरा पुलिस से ही है, इसलिए उन्होंने हर थाने के थानेदारों से लिखित शपथपत्र ले लिया था कि उन के इलाके में चोरीछिपे शराब बिकते, खरीदते या पीते पाई जाती है तो सीधे थानेदार ही जवाबदेह होंगे.

इस के बावजूद भी पुलिस के कई लोग शराब माफिया और दूसरे अपराधियों के साथ मिल कर शराबबंदी कानून को तोड़ने में लगे हुए हैं.

देशी शराब है सब से बड़ी सिरदर्द

बिहार में शराबबंदी के बाद चोरीछिपे गैरकानूनी तरीके से देशी शराब बनाने और बेचने पर रोक लगाना सरकार के लिए हमेशा मुश्किल रहा है. पिछले अगस्त महीने में गोपालगंज जिले के खजूरबन्नी गांव में देशी शराब पीने की वजह से 17 लोगों की मौत हो गई थी.

शराब पर पाबंदी के बाद भी कोई तगड़ा नैटवर्क है, जो यह जहर बांट रहा है और कानून की धज्जियां उड़ा रहा है. इस गैरकानूनी काम को करने वालों की पीठ पर या तो किसी बड़े नेता का हाथ है या पुलिस के अफसरों मुलाजिमों की मिलीभगत है.

महुआ की चुलाई दारू को बनाने के लिए महुआ और गुड़ को मिला कर सड़ाया जाता है. उसे खुले आकाश के नीचे 2-3 दिनों तक रखा जाता है. उस के बाद से उस में बदबू आनी शुरू हो जाती है. उसे चूल्हे पर रख कर खौलाया जाता है. इस दौरान उस की भाप को ढक कर दूसरे बरतन में चुलाई यानी टपकाई जाती है. वही महुआ दारू का रूप ले लेता है. उस में ज्यादा नशा पैदा करने के लिए नौसादर मिला दिया जाता है. ज्यादा नौसादर मिला देने से महुआ की शराब अकसर जहरीली हो जाती है. वहीं देशी दारू बनाने के लिए चावल और गन्ने के छोआ को मिला कर 3-4 दिनों तक फूलनेसड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है. जब उस में सड़न और बदबू पैदा हो जाती है, तो उसे गरम कर के छान लिया जाता है. उस के बाद उस में स्पिरिट मिला कर देशी दारू बना दी जाती है.

बिहार के उत्पाद मंत्री विजेंद्र यादव कहते हैं कि कुछ लोग शराबबंदी को नाकाम करने में लगे हुए हैं. पर इसे कामयाब बनाने के लिए गांवगांव में शराब के खिलाफ लोगों को जागरूक करने की मुहिम चलाई जा रही है.

ठगी का गिफ्ट : ऐसे फोन से रहें सावधान

आशा घर के कामकाज निपटा कर आराम करने के लिए बैडरूम की ओर जा रही थी, तभी उस के सेलफोन की घंटी बज उठी. उस ने काल रिसीव कर जैसे ही ‘हैलो’ कहा, दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘मुबारक हो जी, आप बनी हैं सर्वश्रेष्ठ विजेता.’’

यह सुन कर आशा ने हैरानी से पूछा, ‘‘सर्वश्रेष्ठ विजेता, किस चीज की?’’

जवाब में दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘मैडम, पिछले दिनों हमारी कंपनी की ओर से कुछ सवाल पूछे गए थे. आप ने उन सभी सवालों के जवाब एकदम सही दिए थे, इसलिए आप विजेता बनी हैं.’’

फिर तो आशा खुश हो कर बोली, ‘‘थैंक्यू सर, थैंक्यू वेरी मच.’’

आशा कुछ और कहती, दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘मैडम, आप को हमारी कंपनी की ओर से एक शानदार गिफ्ट दिया जाएगा. वह भी कोई ऐसावैसा नहीं, बल्कि बहुत ज्यादा कीमती. आप जानना चाहेंगी उस गिफ्ट की कीमत?’’

आशा ही क्या, कोई भी होता, वह हां कह देता. आशा ने भी तुरंत हां कर दिया. इस के बाद फोन करने वाले ने बताया कि उसे दिए जाने वाले गिफ्ट की कीमत करोड़ों में है. गिफ्ट की कीमत सुनते ही आशा के मुंह से ‘अरे वाह, करोड़ों का गिफ्ट’ निकल गया.

करोड़ों की कीमत के गिफ्ट की बात सुन कर आशा कुछ सोच ही रही थी कि फोन करने वाले ने उस का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए कहा, ‘‘मैडम, आप जानती ही होंगी कि विदेश से आए गिफ्ट को पाने के लिए कस्टम और इनकम टैक्स विभाग को टैक्स देना होता है. करोड़ों की कीमत वाले इस गिफ्ट को पाने के लिए भी आप को भी कस्टम ड्यूटी आदि जमा करानी होगी. यह सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही आप को गिफ्ट भेजा जाएगा.’’

बात करोड़ों रुपए के गिफ्ट की थी, इसलिए उस की बातों पर विश्वास कर के उस के द्वारा बताए गए बैंक खाते में आशा ने अलगअलग तारीखों पर करीब 3 लाख रुपए जमा करा दिए. काफी दिन बीत जाने के बाद भी जब कोई गिफ्ट नहीं आया तो आशा का माथा ठनका. उसे लगा कि उस के साथ ठगी हुई है.

उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के सुंदरपुर नेवादा की रहने वाली आशा एक समृद्ध परिवार की महिला थी. उस के पति उम्मेद सिंह सरकारी नौकरी में थे. उन के 2 बेटे हैं, जो दूसरे शहर में रह कर उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं. उस का अपना आलीशान मकान है, जिस में 4-5 किराएदार भी रहते हैं. इस तरह महीने की एक मोटी रकम उसे किराए से मिल जाती है.

crime

लेकिन इस घटना के बाद उस की नींद उड़ चुकी थी. उस ने कुछ दिनों तक यह बात अपने पति से छिपाए रखी. थोड़ेबहुत पैसों की बात होती तो शायद वह पति से छिपाए भी रखती, पर बात मोटी रकम की थी, इसलिए अपने साथ हुई ठगी की बात पति को बतानी ही पड़ी.

उम्मेद सिंह ने पत्नी की बेवकूफी पर पहले उसे डांटाफटकारा, उस के बाद उन्होंने घटना की सूचना पुलिस को देना उचित समझा. इस के बाद वह एसएसपी नितिन तिवारी से मिले और पत्नी के साथ हुई ठगी की बात विस्तार से बता बताई.

वह जहां रहते थे, वह इलाका थाना भेलूपुर के अंतर्गत आता था, इसलिए एसएसपी ने भेलूपुर के थानाप्रभारी को आशा के साथ हुई ठगी की रिपोर्ट दर्ज करने के निर्देश दिए. थानाप्रभारी ने आशा की तहरीर पर अज्ञात ठगों के खिलाफ भादंवि की धारा 419, 420, 467, 468, 471 व 66 आईटी एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. यह बात 22 मार्च, 2017 की है.

पिछले कुछ दिनों से वाराणसी जिले में इस तरह की कई घटनाएं हो चुकी थीं. पुलिस एक मामले को सुलझा नहीं पा रही थी कि दूसरा मामला हो जाता था. आशा से बड़ी रकम ठगी गई थी. इन मामलों को गंभीरता से लेते हुए एसएसपी नितिन तिवारी ने जिले के पुलिस अधिकारियों की एक मीटिंग बुला कर सभी को इस तरह की ठगी करने वालों का पता लगाने के निर्देश दिए.

आशा के साथ हुई ठगी वाले मामले की जांच के लिए भेलूपुरा के थानाप्रभारी के नेतृत्व में एसएसपी ने जो पुलिस टीम बनाई थी, उस ने उस एकाउंट नंबर को आधार बनाते हुए जांच शुरू कर दी, जिस में आशा ने पैसे जमा कराए थे, साथ ही उस फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई, जिस से आशा को फोन किया गया था.

एसएसपी ने क्राइम ब्रांच और सर्विलांस सैल को भी इस मामले की जांच में लगा दिया था. एसएसपी जांच टीम के संपर्क में रह कर पलपल की रिपोर्ट ले रहे थे और समयसमय पर उचित दिशानिर्देश भी दे रहे थे. इस का नतीजा यह निकला कि पुलिस ने जालसाजों का पता लगा लिया.

इस के बाद पुलिस ने अलगअलग शहरों से 5 जालसाजों को उन के घरों से उठा लिया. जो लोग हिरासत में लिए गए थे, उन में दिल्ली के मसूदपुर का रहने वाला आशीष जानसन, फिरोजाबाद, उत्तर प्रदेश के रसूलपुर गांव का रहने वाला बहादुर सिंह, ग्वालियर के आदर्शनगर का रहने वाला संतोष शर्मा एवं सुरेश तोमर आदि थे.

इन सभी से पूछताछ की गई तो उन्होंने न केवल अपना अपराध स्वीकार कर लिया, बल्कि पुलिस को जालसाजी के तौरतरीके के बारे में भी विस्तार से बताया. उन्होंने बताया कि उन का अपना एक गिरोह है.

गिरोह का सरगना और खास सदस्य फेसबुक, वाट्सऐप, ईमेल जैसे सोशल मीडिया के अन्य माध्यमों के जरिए लोगों से पहले जुड़ते हैं. जिस व्यक्ति को शिकार बनाना होता है, उस से दोस्ती कर के उसे विश्वास में लेते हैं. सोशल मीडिया के माध्यम से दोस्ती करने के बाद उस व्यक्ति का मोबाइल नंबर हासिल कर के उसे ईमेल द्वारा या फोन कर के गिफ्ट या बड़ी रकम जीतने की जानकारी दी जाती थी.

करोड़ों का गिफ्ट या इनाम मिलने के लालच में वह उस व्यक्ति से टैक्स आदि के नाम पर मोटी रकम एकाउंट में जमा करवा लेता है. आशीष ने पुलिस को बताया कि वह लोगों को सोशल मीडिया पर मदद के नाम पर भी ठगने का काम करता था. बच्चों और महिलाओं की मार्मिक फोटो का सहारा ले कर उन्हें किसी आपदा या बीमारी का शिकार बता कर उन के नाम पर रुपए ऐंठता था.

गिरफ्तार आरोपियों के पास से कई बैंक खातों की पासबुकें, चैकबुकें, अलगअलग फोटो से बनाए गए फरजी पैनकार्ड, मोबाइल और सिमकार्ड समेत अन्य सामान बरामद हुए हैं. पकड़े गए पांचों आरोपियों के बैंक खातों की जांच कराने पर पुलिस को पता चला कि वे अब तक करीब ढाई करोड़ रुपए से अधिक की ठगी कर चुके हैं.

सभी बैंक खातों को सीज करने के साथ पुलिस सभी के पारिवारिक सदस्यों के बैंक एकाउंटों की भी जांच कर रही है, ताकि यह पता चल सके कि उन के मामले में पारिवारिक सदस्यों की क्या भूमिका हो सकती है.

जालसाजों ने बताया कि किसी भी शिकार को फांसने से पहले वह उस की लोकेशन ले कर उस की रेकी करते थे, ताकि उस के रहनसहन से ले कर उस की आर्थिक स्थिति का भी पता लग सके. ऐसे ही उन्होंने आशा की भी रेकी की थी. आशा से पहले इस गिरोह ने वाराणसी सहित देश के कई शहरों में अब तक सैकड़ों लोगों को अपने झांसे में ले कर उन से लाखों रुपए ठगे हैं. उन्होंने बताया कि उन का नेटवर्क देश भर में फैला है.

ठगों के गिरफ्तार होने पर डीआईजी (वाराणसी जोन) ने पुलिस टीम की सराहना करते हुए 12 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की है. एसएसपी ने भी टीम को 5 हजार रुपए का इनाम दिया है.

उन्होंने टीम में शामिल एसआई सुबोध कुमार तोमर, पंकज कुमार शाही, इमरान खान, सिपाही श्यामलाल गुप्ता, सर्विलांस सेल के भीष्म प्रताप सिंह, सुनील चौहान, हिमांशु शुक्ला, पंकज सिंह, अखिलेश सिंह की पीठ भी थपथपाई है.

पकडे़ गए पांचों आरोपियों से विस्तार से पूछताछ कर उन्हें सक्षम न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. पुलिस इस गिरोह के सरगना नाइजीरियन ओबाका को गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही है. कथा लिखे जाने तक उस की गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी.

दूसरी ओर 7 जून, 2017 को वाराणसी जिला न्यायालय के विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण) श्री महंतलाल की अदालत ने बीएचयू की डा. नूतन सिंह से फेसबुक पर दोस्ती के बाद 10 लाख रुपए की ठगी के मामले में अंतरराष्ट्रीय गिरोह से जुड़े दिल्ली निवासी आरोपी आशीष जानसन की जमानत खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने 10 लाख रुपए की धोखाधड़ी की है. ठगी की इस वारदात में विदेशी आरोपी ओबाका भी शामिल है. इस की विवेचना जारी है. ऐसे में जमानत दिए जाने से विवेचना प्रभावित होगी.

वाराणसी पुलिस के हाथ लगे ठग कोई मामूली ठग नहीं हैं. इन का नेटवर्क अंतरराष्ट्रीय स्तर तक फैला हुआ है, जो लोगों को ठगने के लिए अंतरराष्ट्रीय काल का सहारा ले कर पहले दोस्ती करते हैं. उस के बाद बीमारी आदि के नाम पर मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाने की बात कर के पैसे वसूलते हैं. इन के झांसे में कम पढ़ेलिखे लोग ही नहीं, बल्कि समाज के प्रबुद्ध लोग जैसे कि डाक्टर, इंजीनियर आदि भी फंस जाते हैं.

वाराणसी के सुंदरपुर की रहने वाली डा. नूतन सिंह भी बड़ी आसानी से इन के झांसे में फंस गई थीं. उन्हें अंतरराष्ट्रीय काल के जरिए नाइजीरिया निवासी पीसीएस ओबाका ने पहले फेसबुक के माध्यम से दोस्ती की. उस ने डा. नूतन सिंह से संपर्क कर के पत्नी के लिए दवा लिखवाई.

2 महीने बाद उस ने नूतन से कहा कि उस की पत्नी को उन की बताई दवा से बहुत फायदा हुआ है. उस के द्वारा प्रशंसा किए जाने से डा. नूतन को भी न केवल गर्व महसूस हुआ, बल्कि वह उस से फेसबुक और वाट्सऐप के माध्यम से बातें करने लगीं.

इस के बाद डा. नूतन सिंह को अपने जाल में फांस कर उस ने एक बार फिर उन का धन्यवाद दिया. उस ने उन्हें एक बड़ा गिफ्ट देने की पेशकश की, जिसे लेने के लिए नूतन सिंह ने हां कह दिया. फिर बात को आगे बढ़ाते हुए ओबाका ने कहा, ‘‘मैडम, आप को तो पता ही होगा कि विदेशों से सामान मंगाने के लिए कुछ आवश्यक काररवाई पूरी करनी होती है. इसलिए बड़ा गिफ्ट प्राप्त करने से पहले आप को उस का टैक्स आदि अदा करना पड़ेगा.’’

इस के लिए ओबाका ने दिल्ली निवासी अपने साथी आशीष जानसन का एकाउंट नंबर दे दिया. इसी के साथ ओबाका ने डा. नूतन सिंह को पूरी तरह से विश्वास में लेते हुए आशीष जानसन के अलगअलग खातों में लगभग 10 लाख रुपए जमा करवा लिए. बाद में डा. नूतन को जो गिफ्ट पैकेट भेजा गया, उस में कपड़े निकले. जिस की शिकायत उन्होंने पुलिस से की थी.

इस तरह नाइजीरियन पीसीएस ओबाका भारत में रहने वाले अपने दोस्तों के साथ मिल कर ठगी की घटनाओं को अंजाम दे रहा था. कथा लिखे जाने तक ओबाका गिरफ्तार नहीं हो सका था.

– कथा पुलिस व मीडिया सूत्रों पर आधारित

विकट की वासना का ऐसा था खूनी अंजाम

15 मार्च, 2017 की सुबह गोवा के पणजी से करीब 80 किलोमीटर दूर थाना काणकोण पुलिस को किसी ने सूचना दी कि आगोंद और देववांग स्थित कडेंला के जंगल में एक विदेशी युवती का शव पड़ा है. सूचना मिलते ही थाना काणकोण में ड्यूटी पर तैनात इंसपेक्टर फिलोमेनो कोस्ता कुछ सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश की स्थिति देख कर ही लग रहा था कि दुष्कर्म के बाद युवती की हत्या की गई है. मृतका के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था. उस की हत्या भी बड़ी बेरहमी से की गई थी. शिनाख्त न हो सके, इस के लिए हत्यारे ने मृतका का चेहरा किसी नुकीली चीज से बिगाड़ दिया था.

इंसपेक्टर फिलोमेनो कोस्ता ने इस घटना की जानकारी अधिकारियों को दे दी थी. यही वजह थी कि वह लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर के लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश कर रहे थे, तभी गोवा के पुलिस उपायुक्त संभी नावरिश के साथ थाना काणकोण के थानाप्रभारी उत्तम राऊत और देसाई भी फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए. फोरैंसिक टीम का काम निपट गया तो सभी ने एक बार फिर घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया.

घटनास्थल पर बीयर की एक टूटी बोतल के अलावा ऐसी कोई भी चीज नहीं मिली थी, जिस से मृतका या हत्यारे के बारे में कुछ पता चलता. उस टूटी हुई बीयर की बोतल में खून लगा था, इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि युवती की हत्या करने के बाद इसी बोतल से उस का चेहरा बिगाड़ा गया था.

घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर के पुलिस लाश को पोस्टमार्टम के लिए गोवा स्थित मैडिकल कालेज भिजवा दिया गया.

घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद थाने लौट कर पुलिस ने विदेशी युवती की हत्या का मामला दर्ज कर लिया और हत्यारे तक पहुंचने के बारे में विचार करने लगी. लेकिन हत्यारे तक तभी पहुंचा जा सकता था, जब उस युवती के बारे में कुछ पता चलता.

विदेशी युवती की लाश का पोस्टमार्टम 2 डाक्टरों के पैनल ने किया. पुलिस का अनुमान था कि मृतका की हत्या और उस के साथ की गई जबरदस्ती में एक से अधिक लोग शामिल रहे होंगे. लेकिन पुलिस का यह अनुमान गलत निकला, क्योंकि पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों और फोरैंसिक टीम की रिपोर्ट के अनुसार, दुष्कर्म और हत्या एक ही आदमी ने की थी. लेकिन वह क्रूरता की सारी हदें पार कर गया था.

विदेशी युवती की हत्या का मामला था, इसलिए पुलिस ने इस मामले को काफी गंभीरता से ही नहीं लिया, बल्कि मामले की जांच में तेजी से जुट भी गई. इस मामले पर पुलिस उपायुक्त संभी नावरिश नजर ही नहीं रखे हुए थे, बल्कि जांच की बागडोर भी खुद ही संभाले हुए थे. उन्होंने थानाप्रभारी उत्तम राऊत और अन्य अधिकारियों के साथ बैठक कर जांच की रूपरेखा तैयार की और सभी को विदेशी युवती के बारे में पता लगाने के लिए लगा दिया.

संयोग से युवती के बारे में पता चलने में ज्यादा देर नहीं लगी. पुलिस वालों ने जब समुद्र किनारे आनंद ले रहे विदेशी पर्यटकों से लाश की फोटो दिखा कर पूछताछ की तो कलाई पर बने टैटू को देख कर उस के दोस्तों ने उस की पहचान डेनियल मैकलागलिन के रूप में की. पता चला कि आयरलैंड से होली का त्यौहार मनाने गोवा आई डेनियल मैकलागलिन करीब 18 घंटे से गायब है.

डेनियल मैकलागलिन की हत्या हो चुकी है, यह जान कर उस के दोस्त परेशान हो उठे. जैसे ही डेनियल की हत्या की खबर गोवा में फैली, थोड़ी ही देर में थाना काणकोण के सामने विदेशी पर्यटकों की भीड़ लग गई. इस भीड़ में विदेशी पत्रकार भी थे. विदेशी पर्यटकों की नाराजगी को देखते हुए संभी नावरिश ने आश्वासन दिया कि वह जल्द से जल्द हत्यारे को गिरफ्तार कर लेंगे.

इस के बाद कुछ पर्यटक मोमबत्ती और फूलों का गुलदस्ता ले कर डेनियल को श्रद्धांजलि देने घटनास्थल पर भी गए. डेनियल के बारे में पूरी जानकारी मिल गई तो पुलिस ने उस की हत्या की जानकारी उस के घर वालों को दे दी थी. सूचना मिलते ही उस के घर वाले गोवा आ गए और उस की शिनाख्त कर दी.

घर वालों के आने से पुलिस पर हत्यारे की गिरफ्तारी का दबाव बढ़ गया था. पुलिस का मानना था कि डेनियल की हत्या किसी अपराधी प्रवृत्ति के ही युवक ने की है, इसलिए पुलिस ऐसे युवकों के बारे में पता लगाने लगी. कुछ युवकों को थाने बुला कर पूछताछ भी की गई, लेकिन कुछ पता नहीं चला.

हत्या के इस मामले में इंसपेक्टर फिलोमेनो कोस्ता कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहे थे. इसलिए पुलिस अधिकारियों ने उन्हें ही इस मामले की जांच सौंप दी. सहयोगियों की मदद से वह उन युवकों के बारे में पता कर रहे थे, जिन की गतिविधियां विदेशी पर्यटकों के बीच संदिग्ध थीं. काफी कोशिश के बाद भी जब वह हत्यारे तक नहीं पहुंच सके तो उन्होंने गोवा और काणकोण के समुद्री किनारे पर बने पबों और रेस्टोरेंटों में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर देखी.

उन की यह तकनीक सफल रही और एक फुटेज में उन्हें डेनियल एक युवक के साथ जाती दिखाई दे गई. उस युवक को वह पहचानते थे. उस का नाम विकट भगत था और वह गोवा का शातिर अपराधी था. उस के जिला बदर का मामला जिलाधिकारी के पास विचाराधीन था.

विकट भगत एक शातिर अपराधी था, इसलिए पुलिस को उस तक पहुंचने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई. उसे उस समय गिरफ्तार कर लिया गया, जब वह मुंबई जाने की तैयारी कर रहा था. गिरफ्तारी के बाद पुलिस अधिकारियों ने जब उस से विस्तार से पूछताछ की तो डेनियल की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

गोवा का समुद्री किनारा विदेशी पर्यटकों को काफी आकर्षित करता है. इस की एक वजह यह भी है कि वहां कोकेन, चरस और एलएसडी जैसी नशे की चीजें आसानी से मिल जाती हैं. शाम होते ही यहां रेव पार्टियां शुरू हो जाती हैं, जो गोवा के वातावरण में रंगीनियां और मदहोशियां घोलती हैं.

इस बात का फायदा यहां के अपराधी प्रवृत्ति के लोग खूब उठाते हैं. अपराधी प्रवृत्ति के लोग विदेशियों की कमजोरी पकड़ कर उन्हें उन के पसंद की चीज उपलब्ध करा कर उन से दोस्ती गांठ लेते हैं. इस के बाद मौका मिलते ही इस का फायदा उठाने से नहीं चूकते. इस में सब से ज्यादा फंसती हैं विदेशी महिलाएं. वे ऐसे लोगों के झांसे में जल्दी आ जाती हैं.

जाल में फंसते ही ये शातिर लोग उन की कमजोरी का पूरा फायदा उठाते हैं. कभीकभी ऐसी महिलाओं को जान भी गंवानी पड़ती है. डेनियल का भी ऐसा ही मामला था. इस के पहले भी इंग्लैंड की रहने वाली 14 साल की स्कारलेट की हत्या हो चुकी थी.

डेनियल का हत्यारा 23 वर्षीय विकट भगत भी ऐसा ही शातिर अपराधी था. वह गोवा की पणजी तहसील के थाना काणकोण का रहने वाला था. स्वस्थ और सुंदर विकट के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, जिस की वजह से वह ज्यादा पढ़लिख नहीं सका. पिता के पास थोड़ी जमीन थी, उसी पर खेती कर के वह किसी तरह परिवार को पाल रहे थे. जिम्मेदारियों को निभाने के चक्कर में वह बेटे पर ज्यादा ध्यान नहीं दे सके, जिस की वजह से वह आवारा ही नहीं, अपराधी भी बन गया.

अभावग्रस्त और आवारा दोस्तों के साथ रहने की वजह से 13 साल की उम्र में ही विकट अपराध की राह पर चल पड़ा था. अपने कुछ आवारा दोस्तों के साथ वह पूरा दिन गोवा और काणकोण के समुद्री किनारों पर घूमता रहता और विदेशी पर्यटकों की पसंद की चीजें यानी चरस, गांजा, कोकेन, एलएसडी जैसे मादक पदार्थ उपलब्ध कराता.

ऐसे में ही मौका मिलने पर कभीकभी विकट विदेशी पर्यटकों का सामान भी उड़ा देता. उस सामान को बेच कर वह दोस्तों के साथ मौजमजा करता. जैसेजैसे उस की उम्र बढ़ती गई, वैसेवैसे वह शातिर होता गया. वह पढ़ालिखा भले कम था, लेकिन गोवा के माहौल में रहने की वजह से अंगरेजी अच्छी बोल लेता था.

18 साल का होतेहोते विकट शातिर अपराधी बन गया था. अब वह बड़ी आसानी से गोवा आने वाले विदेशी पर्यटकों के बीच अपनी पैठ बना कर अपने वाकचातुर्य से उन का विश्वास जीत लेता था. इस के बाद मौका मिलते ही वह उन के साथ विश्वासघात करने से नहीं चूकता था.

मार्च, 2014 में पहली बार काणकोण पुलिस ने विकट भगत को उस समय गिरफ्तार किया था, जब वह किसी विदेशी पर्यटक के सामान पर हाथ साफ कर रहा था. पूछताछ में उस ने विदेशी पर्यटकों के साथ किए गए बीसों अपराध स्वीकार किए थे. लेकिन ठोस सबूत न होने की वजह से वह अदालत से जल्दी ही बरी हो गया था.

28 वर्षीया डेनियल मेकलागालिन और विकट भगत की मुलाकात नवंबर, 2015 में गोवा में हुई थी. उस समय डेनियल अपने कुछ दोस्तों के साथ गोवा घूमने आई थी. तब गाइड बन कर विकट ने उसे गोवा ही नहीं घुमाया था, बल्कि उस की हर तरह से मदद भी की थी. यही वजह थी कि डेनियल की विकट से गहरी दोस्ती हो गई थी.

जब तक डेनियल गोवा में रही, विकट उस की सेवा में लगा रहा. अपने सेवाभाव से उस ने डेनियल को इस तरह प्रभावित किया कि अपने देश लौट कर भी वह उसे भुला नहीं सकी. खूबसूरत डेनियल मैकलागलिन आयरलैंड की रहने वाली थी. वहां वह एक बार में काम करती थी. जितनी वह तन की गोरी थी, उतनी ही वह मन की भी सुंदर थी.

खूबसूरत डेनियल को गरीबों के प्रति काफी लगाव था. उस से गरीबों का दुख देखा नहीं जाता था. यही वजह थी कि वह अपनी कमाई का एक हिस्सा गरीबों में दान करती थी. यह बात वहां के अखबारों से सामने आई है.

भारत घूम कर डेनियल अपने देश लौट गई, लेकिन उस का दिल गोवा में ही रह गया था. अपने देश पहुंच कर भी वह गोवा के मनोहारी दृश्यों और समुद्री किनारों को नहीं भूल पाई थी. इस के अलावा विकट भी उस का गहरा दोस्त बन गया था. दोनों फेसबुक और वाट्सऐप पर घंटों चैटिंग करते थे.

3 फरवरी, 2017 को डेनियल एक बार फिर टूरिस्ट वीजा पर अपने दोस्तों के साथ गोवा आई. गोवा आने की सूचना उस ने विकट को पहले ही दे दी थी, इसलिए उस के गोवा पहुंचते ही विकट उस से मिलने पहुंच गया. उस के आने से विकट काफी खुश था.

इस के बाद दोनों गोवा की कई रंगीन रेव पार्टियों में शामिल हुए. डेनियल विकट के साथ घंटों घूमतीफिरती और बातें करती. इस का विकट ने कुछ अलग ही अर्थ निकाला. उसे लगा कि डेनियल उसे प्यार करने लगी है. उस का सोचना था कि विदेशी औरतें दिलफेंक और खुले विचारों की होती हैं. वे सैक्स में किसी तरह का परहेज नहीं करतीं. उस ने डेनियल को भी इसी तरह की समझा.

जबकि डेनियल ऐसी नहीं थी. फिर भी वह डेनियल के पीछे पड़ गया. वह डेनियल को सैक्स के लिए राजी कर पाता, उस के पहले ही होली का त्यौहार आ गया. डेनियल ने भी दोस्तों के साथ होली खेली. उस ने थोड़ी भांग भी खा ली थी. होली खेल कर देह पर लगा रंग समुद्र के पानी में साफ कर रही थी, तभी उसे विकट भगत अपने 4-5 दोस्तों के साथ आता दिखाई दे गया. विकट ने भी डेनियल को देख लिया था. उस समय डेनियल ऐसे कपड़ों में थी कि विकट की नजर उस की देह पर चिपक कर रह गई.

डेनियल को उस स्थिति में देख कर विकट की हवस जाग उठी. मन में तूफान उठा तो वह दोस्तों को भेज कर खुद डेनियल के पास पहुंच गया. उसे देख कर डेनियल पानी से बाहर आ गई. लेकिन उस के बालों से अभी भी पानी टपक रहा था, साथ ही उस के कपड़े भी भीग कर शरीर से चिपके थे, जो विकट के मन में दबी वासना को भड़का रहे थे.

पानी से बाहर आने के बाद डेनियल विकट से बातें करते हुए समुद्र के किनारे धूप में टहलती रही. विकट के मन में क्या चल रहा है, डेनियल को इस बात का आभास नहीं हो सका. उस के कपड़े सूख गए तो वह विकट के साथ जा कर एक रेस्टोरेंट में बैठ गई. खाना खाते हुए वह विकट से बातें करती रही. बातें करते हुए विकट ने डेनियल को एक नई जगह दिखाने को कहा तो वह उस के साथ चलने को राजी हो गई.

इस के बाद वह डेनियल को अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर कडेंला के जंगल की ओर चल पड़ा. जंगल में सुनसान जगह पर मोटरसाइकिल रोक कर उस ने डेनियल से शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा जाहिर की तो वह राजी नहीं हुई. यही नहीं, उस ने विकट को आड़े हाथों लेते हुए खूब खरीखोटी भी सुनाई. उस का कहना था कि  वह उस का दोस्त है, इसलिए उसे दोस्त के बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए.

लेकिन वासना की आग में अंधे विकट भगत पर डेनियल की बातों का कोई असर नहीं हुआ. वह उस के साथ जबरदस्ती करने लगा. डेनियल ने उस का जम कर विरोध किया. अपने मकसद में कामयाब होते न देख विकट को गुस्सा आ गया. वह डेनियल के साथ मारपीट करने लगा. डेनियल भी उस से भिड़ गई, जिस से विकट को भी चोटें आईं.

आसानी से काबू में आते न देख विकट ने डेनियल का गला पकड़ कर दबा दिया. डेनियल बेहोश कर गिर पड़ी तो विकट ने उस के सारे कपड़े उतार कर अपनी वासना की आग ठंडी की.

डेनियल के साथ जी भर कर मनमानी करने के बाद उसे लगा कि होश में आने के बाद यह उसे पकड़ा सकती है तो उस ने उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस की पहचान न हो सके, उस ने साथ लाई बीयर की बोतल को तोड़ कर उस का चेहरा बिगाड़ दिया. इस के बाद उस का सारा सामान ले कर वापस आ गया. पुलिस ने हत्या के इस मामले को मात्र 36 घंटे में सुलझा लिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे गोवा के मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. आगे की जांच इंसपेक्टर फिलोमेनो कोस्ता कर रहे थे.

जेठानी की आशिकी

उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के रहने वाले शिवराज सिंह और देशराज सिंह में काफी प्यार था. दोनों भाई मकान बनवाने का ठेका लेते थे. उन का संयुक्त परिवार था. देशराज अविवाहित और शिवराज शादीशुदा. शादी के बाद शिवराज की पत्नी प्रियंका ने एक बेटी को जन्म दिया. जिस का नाम सुजाता रखा गया.

देशराज की अपनी भाभी प्रियंका से खूब पटती थी. देवरभाभी में हलकीफुलकी मजाक भी होती रहती थी. भाभी होने के नाते प्रियंका उस की बातों का बुरा भी नहीं मानती थी. शिवराज सीधासादा था, जबकि देशराज तेजतर्रार और दबंग था. वह बनठन कर रहता था, इसलिए प्रियंका को अच्छा लगता था. प्रियंका को जब कभी बाजार या और कहीं जाना होता तो वह अपने साथ देशराज को ही ले जाती थी.

देवरभाभी के इस तरह साथ रहने से कभीकभी शिवराज को शक होता तो मजाकिया लहजे में वह कह देती, ‘‘बड़े ईर्ष्यालु हो तुम. छोटे भाई की खुशी बरदाश्त नहीं होती? अरे, जैसे वह तुम्हारा छोटा भाई है, वैसे ही मेरा भी छोटा भाई है.’’

शिवराज सोचता कि शायद प्रियंका सही कह रही है. उसे क्या पता था कि उस का यह विश्वास आगे चल कर कोई बड़ी मुसीबत बन जाएगा.

देशराज का भाभी के प्रति झुकाव दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था. इस बात को प्रियंका महसूस कर रही थी. भाभी को लुभाने के लिए देशराज आए दिन उस की पसंद की खानेपीने की चीजें और उपहार भी लाने लगा.

प्रियंका ने मना किया तो देशराज ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘भाभी ये तो मामूली बातें हैं, मैं तो तुम्हारे लिए जान भी दे सकता हूं. किसी दिन कह कर तो देखो.’’

इस पर प्रियंका ने उसे चौंक कर देखा. तभी देशराज ने ठंडी आह भरते हुए कहा, ‘‘भाभी क्या कहूं, तुम तो मेरी ओर ध्यान ही नहीं देती हो.’’

‘‘अरे मेरे ऊपर तुम यह कैसा इलजाम लगा रहे हो. देखो मैं तुम्हें खाना बना कर देती हूं, तुम्हारे कपड़े धोती हूं, अब और क्या चाहिए तुम्हें.’’

देशराज ने प्रियंका के पास आ कर उस का हाथ पकड़ लिया. उस के द्वारा अकेले में हाथ पकड़ने से प्रियंका सिहर उठी. वह अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो? क्या चाहते हो?’’

‘‘भाभी, तुम्हारी चंचलता और खूबसूरती ने मुझे बेचैन कर रखा है. मैं तुम्हारे करीब आना चाहता हूं.’’

‘‘देखो देशराज, अब तुम जाओ. मुझे घर के और भी काम करने हैं.’’

‘‘मैं जा तो रहा हूं लेकिन सीधेसीधे पूछना चाहता हूं कि तुम मुझ से प्यार करती हो या नहीं?’’

देशराज वहां से चला तो गया, लेकिन उस की बातों और अहसासों ने प्रियंका को सोचने के लिए मजबूर कर दिया. देशराज ने भी जज्बातों में आ कर प्रियंका को अपने प्यार का अहसास करा दिया था, लेकिन बाद में उसे इस बात का डर लगा था कि कहीं भाभी यह बात भैया से न कह दे.

रात को प्रियंका और देशराज अपनेअपने कमरे में सोने के लिए चले गए लेकिन दोनों की ही आंखों में नींद नहीं थी. देशराज को डर सता रहा था तो प्रियंका के दिमाग में देवर की कही बातें घूम रही थीं. लेटे ही लेटे वह पति की तुलना देवर से करने लगी. उस का पति शिवराज काम से थकामांदा घर लौटता और खाना खा कर जल्दी ही खर्राटे लेने लगता. उस की तरफ अब वह पहले की तरह बहुत ध्यान नहीं दे रहा था.

अकसर भाभी से चुहलबाजी करने वाला देशराज अगले दिन उस से नजरें नहीं मिला पा रहा था. इस बात को प्रियंका महसूस भी कर रही थी. शिवराज के जाने के बाद देशराज भी जाने लगा तो प्रियंका ने कहा, ‘‘तुम रुको देशराज, आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है, तुम मेरे साथ डाक्टर के यहां चलना.’’

‘‘भाभी, आज मुझे भी जल्दी जाना है, इसलिए तुम अकेली ही चली जाओ,’’ कह कर देशराज जब घर से निकलने लगा तो प्रियंका उस का हाथ पकड़ कर कमरे में ले आई. देशराज डर रहा था कि भाभी अकेले में अब उसे डांटेगी. उस ने अपना चेहरा नीचे कर रखा था. प्रियंका बोली, ‘‘कल तुम बड़ीबड़ी बातें कर रहे थे, लेकिन तुम तो बहुत डरपोक निकले. प्यार करने वाले अंजाम की चिंता नहीं करते.’’

यह सुन कर देशराज का डर थोड़ा कम हुआ. वह अचंभे से भाभी की तरफ देखने लगा. प्रियंका आगे बोली, ‘‘देशराज, तुम्हारी बातों ने मेरे ऊपर ऐसा असर किया है कि रात भर मैं तुम्हारे ही खयालों में बेचैन रही. मुझे भी तुम से प्यार हो गया है. लेकिन मेरे सामने एक समस्या है. मैं शादीशुदा हूं, इसलिए इस बात से डर रही हूं कि अगर तुम्हारे भैया को पता चल गया तो क्या होगा? वह तो मुझे घर से ही निकाल देंगे.’’

‘‘भाभी, मैं हूं न. मेरे होते हुए तुम्हें कोई कुछ नहीं कह सकता.’’ देशराज ने उसे विश्वास दिलाते हुए कहा तो प्रियंका ने उस के भरेपूरे जिस्म को गौर से देखा और सीने से लग गई. देशराज ने भी उसे अपनी मजबूत बांहों में भर लिया. उन के कदम गुनाह की तरफ बढ़ गए और उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

उस दिन के बाद सब कुछ बदल गया. शिवराज के काम पर जाने के बाद देशराज किसी न किसी बहाने घर पर रुक जाता और भाभी के साथ मौजमस्ती करता.

देशराज अकसर घर में भाभी के साथ रहने लगा तो पड़ोसियों को शक होने लगा. सब सोचने लगे कि दाल में कुछ काला जरूर है.

गलत काम की खबरें जल्दी फैलती हैं, इसलिए मोहल्ले भर में यह खबर फैल गई कि प्रियंका का अपने देवर के साथ चक्कर चल रहा है. मगर शिवराज को इस बात की भनक तक न लगी. वह तो कमाई में ही लगा रहता था.

एक दिन एक शुभचिंतक ने शिवराज से कहा, ‘‘शिवराज, तुम कभी अपने घर की तरफ भी ध्यान दे दिया करो. तुम्हें पता नहीं कि तुम्हारे घर में क्या चल रहा है? अब बेहतर यही होगा कि तुम देशराज की शादी कर दो.’’

यह सुन कर शिवराज सन्न रह गया. वह अपने भाई को सीधासादा समझता था. और तो और देशराज उस के सामने ऊंची आवाज में बात तक नहीं करता था. एक बार तो उसे भाई के बारे में कही बात पर विश्वास नहीं हुआ.

वह घर पहुंचा तो देशराज घर पर ही मिला. छूटते ही उस ने कहा, ‘‘दिनभर घर में चारपाई तोड़ना अच्छा लगता है क्या? कल से मेरे साथ ही काम पर चलना. चार पैसे कमाएगा तो तेरी शादी में ही काम आएंगे. मैं तेरी जल्दी ही शादी कराना चाहता हूं.’’

पति के मुंह से देवर की शादी की बात सुन कर प्रियंका को कुछ खटका सा हुआ. लेकिन वह बोली कुछ नहीं. उधर शिवराज ने पत्नी से कुछ कहने के बजाए नजर रखने लगा. प्रियंका को इस बात का अहसास हो गया तो उस ने भी देवर से मिलने में एहतियात बरतनी शुरू कर दी.

रात को पति के सो जाने के बाद वह देशराज के पास आ जाती और मौजमस्ती करती. देशराज अपनी सारी कमाई प्रियंका के हाथ पर ही रखता था. शिवराज भाई के लिए अच्छा रिश्ता देखने लगा.

एक दिन प्रियंका ने देशराज से कहा, ‘‘जल्दी ही तुम्हारी शादी हो जाएगी, तब तुम मुझे भूल जाओगे?’’

‘‘यह कैसी बातें कर रही हो भाभी? मेरी शादी भले ही हो जाए, लेकिन तुम से मैं वादा करता हूं कि मैं हमेशा तुम्हारा ही रहूंगा.’’

उसी बीच देशराज की शादी के लिए जिला मैनपुरी के गांव चितायन से एक रिश्ता आया. चितायन के रहने वाले रामअवतार ने अपनी सब से छोटी बेटी राजकुमारी की शादी देशराज से करने की बात शिवराज से की. राजकुमारी हाईस्कूल पास कर चुकी थी. शिवराज को रिश्ता पसंद आया और दोनों तरफ से बात होने के बाद निश्चित तिथि पर राजकुमारी और देशराज की शादी हो गई. यह वर्ष 2007 की बात है.

शादी के बाद राजकुमारी ससुराल आ गई, लेकिन सुहागरात को खुशी की बजाय उस की आंखों से आंसू ही बहे. हुआ यह कि सुहागसेज पर बैठी राजकुमारी पति के कमरे में आने का इंतजार करती रही, लेकिन देशराज अपनी नईनवेली दुलहन के पास पहुंचा नहीं. सुबह 4-5 बजे राजकुमारी की नींद टूटी तो भी उसे कमरे में पति दिखाई न दिया. उसी दौरान उसे जेठानी के कमरे से पति और जेठानी की हंसीठिठोली की आवाज सुनाई दी.

राजकुमारी भी कोई नादान नहीं थी. वह समझ गई कि पति का भाभी के साथ चक्कर है. तभी तो सुहागरात को भी पत्नी के बजाय वह भाभी के साथ मौजमस्ती कर रहा है. थोड़ी देर बाद देशराज जब अपने कमरे में पहुंचा तो उस ने पत्नी को सुबकते हुए देखा. वह बोला, ‘‘तुम रो रही हो? क्या हुआ?’’

‘‘तुम यह बताओ कि रात भर कहां थे?’’ राजकुमारी ने पूछा.

‘‘मैं यहीं भाभी से बातें कर रहा था. जब मैं कमरे में आया तो तुम सो रही थी. मैं ने सोचा कि तुम थक गई होगी, इसलिए जगाया नहीं.’’ कह कर देशराज ने तौलिया उठाई और गुसलखाने में घुस गया.

राजकुमारी को पति का रवैया कुछ अजीब सा लगा. वह पति से बहस कर के बात को बढ़ाना नहीं चाहती थी, इसलिए उस ने खुद को समझाया और मन को शांत किया. दिन धीरेधीरे गुजरा. घर पर जो नजदीकी मेहमान थे, वे भी घर से विदा हो गए.

शाम का खाना खा कर राजकुमारी अपने कमरे में थी, तभी प्रियंका और देशराज भी वहां पहुंच गए. प्रियंका देर तक राजकुमारी के पास बैठी रही. आखिर तंग आ कर राजकुमारी ने कहा, ‘‘भाभी मुझे नींद आ रही है.’’

राजकुमारी 4 दिनों तक ससुराल में रही. इन 4 दिनों में उस ने महसूस किया कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. फिर पिता उसे विदा करा कर ले गए.

मायके आने पर उस ने मां को जब सारी बात बताई तो मां ने कहा, ‘‘बेटा, तुझे कुछ वहम हो गया है. देवरभाभी में प्यार होना कोई हैरानी की बात नहीं है. तू एक समझदार और पढ़ीलिखी लड़की है. अपने परिवार को बिखरने न देना.’’

कुछ दिनों बाद वह पति के साथ फिर ससुराल आ गई. इस बार उस ने तय किया कि वह सच्चाई का पता लगा कर रहेगी. इसलिए उस ने पति और जेठानी पर नजर रखनी शुरू कर दी. काम से आने के बाद देशराज सीधा भाभी के कमरे में जाता और सारी कमाई उस के हाथ पर रख देता था.

राजकुमारी को यह सब अच्छा नहीं लगा. उस ने पति से कहा, ‘‘तुम्हारी कमाई पर मेरा हक है, किसी और का नहीं. अब जो भी कमा कर लाओगे मुझे देना, किसी और को नहीं.’’

प्रियंका ने देवरानी की यह बात सुन ली थी. लेकिन कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई.

‘‘लेकिन भाभी क्या सोचेंगी?’’ देशराज ने कहा.

‘‘वह जो भी सोचती हैं, सोचती रहें. हमारा परिवार बढ़ेगा, खर्चे बढ़ेंगे तो हम किस से मांगेंगे?’’

प्रियंका समझ गई कि राजकुमारी तेज दिमाग की है. उस के सामने उस की दाल अब नहीं गलेगी. इसलिए उस ने देशराज को समझा दिया कि अब मिलने में होशियारी बरती जाए.

राजकुमारी अब काफी सतर्क हो गई थी. जिस से देशराज और प्रियंका परेशान से रहने लगे. घर में भी तनाव रहने लगा. देशराज गुस्से में कभीकभी राजकुमारी की पिटाई करने लगा.

राजकुमारी गर्भवती हो गई तो देशराज और प्रियंका को मिलने का मौका मिल गया. लेकिन राजकुमारी ने पति और जेठानी को रंगेहाथों पकड़ लिया. पोल खुलने पर देशराज और प्रियंका के होश उड़ गए. देशराज ने पत्नी से माफी मांगी और उसे भरोसा दिलाया कि आइंदा ऐसी गलती नहीं होगी.

प्रियंका ने भी उस से अनुरोध किया कि यह बात वह किसी को न बताए. राजकुमारी का शक सही साबित हुआ. उस समय समझदारी दिखाते हुए उस ने कोई शोरशराबा नहीं किया, शाम को शिवराज घर लौटा तो उस ने उस से कहा, ‘‘जेठजी, मैं अब इस घर में नहीं रह सकती. आप हमें अलग कर दें.’’

‘‘यह क्या कह रही हो तुम, यहां तुम्हें कोई परेशानी है?’’ शिवराज ने कहा तो राजकुमारी बोली, ‘‘आप को तो पता नहीं कि घर में क्या हो रहा है? पर जो मैं देख रही हूं, उस का अंजाम अच्छा नहीं हो सकता. इसलिए मैं अलग होना चाहती हूं.’’

शिवराज राजकुमारी का इशारा समझ गया. इस के बाद उस ने घर का बंटवारा कर दिया. राजकुमारी ने राहत की सांस ली. उस ने सोचा कि अब देशराज का भाभी के पास आनाजाना बंद हो जाएगा. उस के पेट में पल रहा बच्चा 8 महीने का हो चुका था. ऐसे में राजकुमारी को देखभाल की ज्यादा जरूरत थी, लेकिन ससुराल में अब वह अकेली थी. घर के काम करने में उसे परेशानी हुई तो वह मायके चली गई. उस ने पति और जेठानी के अवैध संबंधों की बात मां से भी बता दी.

मां ने उसे फिर समझाया कि वह देशराज को समझाए. लेकिन राजकुमारी के मन में जेठानी के प्रति नफरत भर चुकी थी.

राजकुमारी ने मायके में ही बेटे को जन्म दिया. वहां कुछ दिन रहने के बाद वह ससुराल चली आई. वह बड़ी जेठानी अविता से मिली और उन्हें प्रियंका की बदचलनी की बात बताई. अविता ने भी प्रियंका को काफी समझाया, लेकिन उस ने देशराज से मिलना बंद नहीं किया.

राजकुमारी धीरेधीरे निराश होने लगी. अपने वैवाहिक जीवन में उस ने जिस सुख की कल्पना की थी, वह पति और जेठानी की वासना की ज्वालामुखी में खाक हो चुका था. न तो उसे अपने मायके से कोई राहत मिल रही थी और न ही ससुराल से. देशराज भाभी के खिलाफ एक शब्द सुनने को तैयार नहीं था. नतीजतन आए दिन घर में झगड़ा होने लगा. रोजाना के झगड़े को देख कर मोहल्ले के लोग यही सोचने लगे कि राजकुमारी एक तेजतर्रार और लड़ाकू औरत है.

आखिर एक दिन राजकुमारी ने तय किया कि वह पति को प्यार से समझाने की कोशिश करेगी. उस दिन उस ने अपने पति की पसंद का खाना बनाया. शाम को जब देशराज घर लौटा तो उस ने कहा, ‘‘हाथमुंह धो लो और खाना खा लो. आज मुझे तुम से कुछ बात करनी है.’’

देशराज गुसलखाने में घुस गया. नहाधो कर बाहर आते ही बोला, ‘‘मैं आज खाना नहीं खाऊंगा. मुझे कहीं जाना है.’’

‘‘लेकिन तुम ने यह बात मुझे सुबह तो बताई नहीं. मैं ने जब खाना बना लिया तो तुम खाने से मना कर रहे हो.’’

‘‘बनाया है तो तुम्हीं खा लो.’’ कह कर देशराज घर से बाहर निकल गया. पति की इस उपेक्षा ने राजकुमारी को तोड़ कर रख दिया. वह देर तक रोती रही.

देशराज रात भर घर से बाहर रहा. राजकुमारी चारपाई पर पड़ी करवटें बदतली रही और रोती रही. उसे अपनी बेचारगी का अहसास भी हो रहा था. उसी दौरान दरवाजे पर दस्तक हुई. उस ने कुंडी खोली तो सामने पति खड़ा था. उसे देखते ही वह बोली, ‘‘रात भर भाभी के पास रहे होगे?’’

‘‘हां, मैं वहीं था. अब बता तू क्या कर लेगी मेरा.’’ देशराज ने गुस्से में कहा.

कड़वा सच सुन कर राजकुमारी कुछ न बोली, क्योंकि अगर वह कुछ कहती तो देशराज उस की पिटाई कर देता. दोपहर के समय वह बड़ी जेठानी अविता के घर गई तो उसे पता चला कि दोनों जेठ अवधेश और शिवराज पड़ोस के किसी गांव गए हुए थे.

राजकुमारी की समझ में आ गया कि भाई की गैरमौजूदगी में देशराज रात भर भाभी के साथ रहा होगा. यह जान कर उस का खून खौलने लगा. तभी उसे एक झटका और लगा, जब अविता ने बताया कि प्रियंका गर्भवती है.

राजकुमारी को अब पक्का यकीन हो गया कि प्रियंका के गर्भ में देशराज का ही बच्चा है. यह बात उसे बरछी की तरह चुभी. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि अब उसे कुछ नहीं सहना, चाहे इस के लिए उसे कितनी ही बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े और मन ही मन उस ने एक योजना बना ली.

अपनी योजना को साकार करने के लिए प्रियंका का विश्वास हासिल करना जरूरी था. अत: एक दिन वह प्रियंका के घर जा पहुंची. उसे देख कर प्रियंका चौंकी. उस ने पूछा, ‘‘तुम यहां कैसे?’’

‘‘अरे दीदी मुझे पता चला कि तुम्हें बच्चा होने वाला है तो सोचा कि तुम्हारी कुछ मदद कर दिया करूं.’’

प्रियंका को राजकुमारी के इस व्यवहार पर हैरानी हुई. वह बोली, ‘‘तुम परेशान मत हो. सब ठीक है, तुम मेरी छोटी बहन की तरह हो. मैं तो पहले ही कहती थी कि तुम्हें गुस्सा नहीं करना चाहिए.’’

‘‘हां दीदी, मैं ही गलत थी. बेकार ही अलग हो गई. हम साथसाथ रहते तो अच्छा होता. खैर अब अलग तो हो ही गए हैं, पर आपस में मिलजुल कर रहने में हर्ज ही क्या है.’’ कह कर राजकुमारी ने खूनी नजरों से प्रियंका को देखा. राजकुमारी वहां थोड़ी देर बैठ कर चली गई.

10 जुलाई, 2013 को गांव में एक गमी हो गई. अवधेश और शिवराज वहीं गए हुए थे. देशराज काम पर गया हुआ था. उसी समय राजकुमारी प्रियंका के घर गई और बातों ही बातों में वह उसे अपने घर बुला लाई. वह प्रियंका से बातें करने लगी. प्रियंका राजकुमारी के मन से अनजान थी. उसे मौत की दस्तक भी सुनाई नहीं दी. बातें करतेकरते उस ने पास रखी कुल्हाड़ी उठाई और प्रियंका के सिर पर दे मारी.

सिर पर कुल्हाड़ी का वार होते ही प्रियंका लुढ़क गई. सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. कुछ देर तड़पने के बाद प्रियंका का शरीर शांत हो गया. राजकुमारी को जब विश्वास हो गया कि वह मर चुकी है तो उसे तसल्ली हुई. फिर सारे कमरे को लीप कर खून के निशान मिटा दिए.

शाम के समय देशराज घर लौटा तो उस ने कहा, ‘‘बेटा ऊपर है, उसे जगाओ मैं खाना वहीं लाती हूं. देशराज चुपचाप ऊपर चला गया. राजकुमारी भी वहीं खाना ले कर पहुंच गई. खाना खाने के बाद वह सोने की तैयारी करने लगे, तभी शिवराज ने आवाज दी. राजकुमारी ने दरवाजा खोला. शिवराज ने पूछा, ‘‘यहां प्रियंका आई है क्या?’’

‘‘नहीं, वह तो शाम को थैले में कपड़े डाल कर कहीं जा रही थीं.’’ राजकुमारी की बात सुन कर शिवराज परेशान हो गया कि बेटी को घर में छोड़ कर वह कहां चली गई? ऐसे तो कहीं नहीं जाती थी. उस ने उसी समय अपनी ससुराल फोन किया. पता चला कि वहां भी नहीं पहुंची थी.

रात में कुछ नहीं हो सकता, यह सोच कर शिवराज घर चला गया. पूरी रात चिंता में कटी. लेकिन सुबह उठते ही गांव में होहल्ला हो गया. शिवराज के घर से कुछ दूरी पर गड्ढे में एक औरत के पैर दिखाई दे रहे थे. शिवराज का दिल धड़कने लगा, कहीं प्रियंका तो नहीं… देशराज भी वहां पहुंचा. तब तक किसी ने पुलिस को फोन कर दिया था.

कुछ ही देर में थाना किशनी के थानाप्रभारी भूपेंद्र शर्मा पुलिस टीम के साथ वहां पहुंचे. कुछ ही देर में पुलिस क्षेत्राधिकारी रामानंद कुशवाहा भी वहां पहुंच गए. पुलिस के आदेश पर गड्ढे की मिट्टी हटाई गई तो उस में प्रियंका की लाश निकली. बीवी की लाश देख कर शिवराज दहाड़े मार कर रोने लगा और देशराज डरासहमा एक ओर जा खड़ा हुआ.

 

देशराज ने कुछ सोचा और घर की तरफ गया. लेकिन घर से राजकुमारी गायब थी. अब उस की समझ में सब कुछ आ गया. वह वापस शिवराज के पास आ गया और उसे बताया कि राजकुमारी गायब है. पुलिस ने शिवराज से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस की पत्नी की हत्या उस के छोटे भाई की बीवी राजकुमारी ने की है और वह फरार हो गई है.

पुलिस देशराज के घर पहुंची. वहां ताला लगा हुआ था. वहां खून के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. लाश की शिनाख्त हो चुकी थी. पुलिस ने आवश्यक काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. दोनों भाइयों को पुलिस पूछताछ के लिए थाने ले आई. इस बीच प्रियंका का पिता वीरेंद्र भी थाने आ पहुंचा. उस ने भादंवि की धारा 302, 316, 201 के तहत राजकुमारी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

 

पुलिस ने तफ्तीश की तो पता चला कि देशराज और प्रियंका के बीच लंबे समय से अवैध संबंध थे. लेकिन यह बात गले नहीं उतर रही थी कि अकेली औरत हत्या कर के प्रियंका को गड्ढे तक कैसे ले आई और उस ने अकेले ही कैसे दफना दिया? पुलिस की एक टीम राजकुमारी की तलाश में उस के मायके के लिए रवाना हुई. लेकिन राजकुमारी रास्ते में ही मिल गई तो पुलिस उसे गिरफ्तार कर के थाने ले आई.

पूछताछ के दौरान राजकुमारी ने कुबूल किया कि प्रियंका की हत्या उस ने ही की थी. प्रियंका ने उस के वैवाहिक जीवन को उजाड़ कर रख दिया था. इसी मजबूरी के चलते उस ने इस खतरनाक योजना को अंजाम दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि प्रियंका 7 माह की गर्भवती थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने राजकुमारी को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

लव, सैक्स और मर्डर

उस दिन तारीख थी 31 जुलाई, 2017. भोर का समय था. नित्य मौर्निंग वौक करने वाले इक्का- दुक्का लोग सड़कों पर आ गए थे. खेतरपाल मंदिर के सामने से गुजरने वाले मेगा हाईवे पर वाहनों की आवाजाही जारी थी. मेगा हाईवे पर बाईं तरफ सड़क किनारे एक युवा महिला की औंधी लाश पड़ी थी. लाश देख कर एक राहगीर ठिठका और स्थिति को समझ कर मोबाइल से थानापुलिस को इस की सूचना दे दी. अज्ञात लाश की सूचना थानाप्रभारी सीआई विजय सिंह को मिली तो वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

एक राष्ट्रीय अखबार के प्रतिनिधि नरेश असीजा अखबार वितरण व्यवस्था का जायजा ले कर घर लौट रहे थे. उन्हें लाश मिलने की सूचना मिली तो वह भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस मृतका की पहचान का प्रयास कर रही थी. नरेश ने उस की पहचान कर दी. बरसों पहले मृतका उन की बिल्डिंग में किराएदार के रूप में रही थी. पत्रकार ने मृतका की पहचान समेस्ता पत्नी श्रवण कुमार के रूप में की. पहचान होने के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

प्रथमदृष्टया यह मामला दुर्घटना का लग रहा था. संभवत: मृतका किसी वाहन की टक्कर से हाईवे पर गिर गई थी, जिस से उस का सिर फट गया था. लेकिन घटनास्थल पर मिले हुए साक्ष्य कुछ और ही कह रहे थे.

जिस जगह पर समेस्ता का शव मिला था, उस के पास मिट्टी में छोटे वाहन के टायरों के निशान दिख रहे थे. समेस्ता के शरीर पर टक्कर का कोई निशान नहीं था. पुलिस को लगा कि मृतका की हत्या कहीं और कर के लाश को यहां फेंक दिया गया है, ताकि मामला सड़क दुर्घटना का लगे.

समेस्ता की मौत का मामला संदिग्ध लग रहा था. बाल की खाल निकालने वाले माने जाने वाले सीआई विजय सिंह मीणा ने इस मामले को एक चैलेंज के रूप में लिया. विजय सिंह ने मामले के खुलासे के लिए एसआई छोटूराम तिवाड़ी, कांस्टेबल सुखदेव सिंह बेनीवाल, रीडर अमर सिंह, लक्ष्मीनारायण, अमनदीप व सुभाष को शामिल कर के एक टीम बना ली.

सुखदेव बेनीवाल का शहर में ही नहीं, देहात क्षेत्र में भी मुखबिरों का सशक्त नेटवर्क था. एसआई छोटूराम व सुखदेव ने मेगा हाईवे पर लगे सीसीटीवी कैमरे खंगालने शुरू कर दिए. अथक प्रयासों के बाद एक हार्डवेयर शौप पर लगे कैमरे में समेस्ता दिखाई दी. वह संभल कर सड़क  पार कर रही थी. कैमरे के इस दृश्य को दोनों पुलिसकर्मियों ने जांच अधिकारी से साझा किया. जांच टीम ने विचारविमर्श के बाद यही निष्कर्ष निकाला कि समेस्ता ने जितनी सावधानी से सड़क पार की थी. ऐसे में वह सड़क हादसे की शिकार नहीं हो सकती थी.

society

पुलिस टीम ने जांच आगे बढ़ाने के लिए मेगा हाईवे के 2 किलोमीटर के लंबे दायरे को खंगालना शुरू किया. एक वर्कशाप में लगे कैमरे की फुटेज में एक पिकअप गाड़ी दिखाई दी. 10 मिनट के अंतराल में 3-4 बार आनेजाने से पिकअप संदिग्ध के दायरे में आ गई. एक बार पिकअप एक झाड़ी के पास रुकी तो झाडि़यों में छिपा एक शख्स पिकअप के पास आता दिखाई दिया. यह दृश्य भी कैमरे में कैद हो गया था.

सुखदेव का एक मुखबिर जो समेस्ता के ही मोहल्ले में रहता था, ने भी जांच टीम को एक सुराग दिया. सुराग के मुताबिक समेस्ता और उस के पति की जरा भी नहीं बनती थी. उस का पति श्रवण कुमार सूरतगढ़ में रह कर पढ़ाई कर रहा था. वह कभीकभार अपने 2 बच्चों के लिए रावतसर आ जाता था.

उधर दुर्घटनास्थल पर समेस्ता के शव की पहचान करने वाले पत्रकार नरेश असीजा घटनास्थल से सीधे समेस्ता के घर गए. श्रवण और समेस्ता का सगा भाई कालूराम घर में ही मिले. उन्होंने पूछा, ‘‘अरे श्रवण, समेस्ता दिखाई नहीं दे रही, कहां गई है वह?’’

‘‘अंकल, वह मंदिर गई थी, आती ही होगी.’’ श्रवण ने जवाब दिया.

नरेश असीजा समेस्ता के भाई कालूराम को साथ ले कर सीधे मोर्चरी पहुंचे. कालूराम ने मृतका की पहचान अपनी बहन समेस्ता के रूप में कर दी. कालूराम की तहरीर पर थाने में अज्ञात के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया. श्रवण 4 दिनों से रावतसर में ही था, जबकि कालूराम 2 दिन पहले ही रावतसर आया था.

समेस्ता कौन थी और बेमौत क्यों मारी गई, यह जानने के लिए हमें डेढ़ दशक पीछे लौटना पड़ेगा. समेस्ता श्रीगंगानगर निवासी पृथ्वीराज की बेटी थी. सन 2001 में समेस्ता की शादी हनुमानगढ़ जिले के मसीतावाली गांव निवासी हरलाल टाक के बेटे सीताराम टाक से हुई थी. सीताराम का ममेरा भाई था श्रवण कुमार.

श्रवण कुमार रातवसर तहसील के गांव सरदारपुरा खालसा में रहता था. कानून की पढ़ाई कर रहे श्रवण कुमार के परिवार की माली हालत अच्छी थी. श्रवण एक दिन अपने भाई सीताराम से मिलने बाइक से मसीता वाली आया. उस वक्त सीताराम खेतों पर गया हुआ था. दरवाजा समेस्ता ने खोला.

‘‘जी कहिए.’’ समेस्ता ने पूछा.

‘‘सीताराम भैया से मिलना था, मैं सरदारपुरा से आया हूं. मेरा नाम श्रवण है.’’ जवाब में श्रवण ने बताया.

‘‘आइए बैठिए, आप के भैया खेतों पर गए हैं. आते ही होंगे.’’

श्रवण आंगन में पड़ी कुरसी खिसका कर किचन के सामने ही बैठ गया. सुगठित देह, उभरे वक्षस्थल वाली समेस्ता सुंदर लग रही थी. मीठे बोल और सलीके का उच्चारण करने वाली समेस्ता श्रवण के दिल को छू गई. वह बैठाबैठा समेस्ता के सौंदर्य का रसपान करता रहा. तभी समेस्ता 2 प्यालों में चाय ले कर आ गई. ‘‘लीजिए चाय पीजिए.’’

श्रवण चाय पीने लगा. समेस्ता भी प्याला उठा कर पालाथी मार कर श्रवण के सामने बैठ गई. श्रवण चाय समाप्त करते ही बोल पड़ा, ‘‘भाभीजी, आप ने तो बड़ी गड़बड़ कर दी, यह आप के हाथों का कमाल है या आप की भावनाओं का, मैं आप की चाय का मुरीद हो गया हूं. लगता है, अब चाय पीने हर रोज आना पड़ा करेगा.’’

‘‘मना किस ने किया है देवरजी, मेरा दरवाजा आप के लिए 24 घंटे खुला रहेगा.’’ समेस्ता ने कहा.

समेस्ता से उस का मोबाइल नंबर ले कर श्रवण लौट गया. उस से हुई संक्षिप्त मुलाकात के आगे श्रवण ने भाई से मिलना जरूरी नहीं समझा.

एक साल बीततेबीतते समेस्ता बिलकुल बदल गई. प्यारमोहब्बत तो दूर, वह पति सीताराम की उपेक्षा तक करने लगी. नतीजतन घर में कलह रहने लगी. इस कलह में श्रवण की चाहत और उस की वकालत ने आग में घी का काम किया. शादी के 2 साल बाद ही श्रवण के उकसाने पर समेस्ता ने सीताराम के खिलाफ शारीरिक उत्पीड़न व दहेज मांगने का आरोप लगा कर अदालत में मुकदमा दर्ज करवा दिया. इस के बाद समेस्ता अपने मायके लौट गई.

इन हालात में समेस्ता व श्रवण के बीच पनपे प्यार ने अपनी राह पकड़ ली थी. श्रवण की चाहत पर समेस्ता उस के बुलाए स्थान पर पहुंच जाती थी. सामाजिक व पारिवारिक वर्जनाएं उन दोनों के सरेआम मिलन में बाधक बन रही थीं. आखिर श्रवण और समेस्ता एक दिन अपनेअपने घरों से फुर्र हो गए. जब पास का पैसा खत्म हो गया तो 10 दिन बाद दोनों घर लौट आए. लेकिन दोनों के घर वालों ने उन से नाता तोड़ लिया. इसी बीच अदालत से सीताराम और समेस्ता का विधिवत तलाक हो गया. तब तक समेस्ता एक बच्ची की मां बन गई थी.

समेस्ता व श्रवण अब निरंकुश हो गए थे. दोनों लिव इन रिलेशनशिप में पतिपत्नी की तरह रावतसर में रहने लगे. श्रवण बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर घर का खर्च चला रहा था. इस के साथसाथ वह अपनी वकालत की पढ़ाई भी कर रहा था. इसी बीच समेस्ता एक बेटे की मां और बन गई. दूसरी ओर श्रवण ने एलएलबी तथा एलएलएम की डिग्री हासिल कर ली.

society

मात्र सैक्स को जीवन का मूलमंत्र मानने वाले श्रवण और समेस्ता का प्यार अब धीरेधीरे ठंडा पड़ने लगा था. बच्चों की ट्यूशन से होने वाली आय में उस के खर्चे मुश्किल से पूरे होते थे. महंगाई के जमाने में तंगहाली से 2-4 हुए समेस्ता और श्रवण खुदगर्ज बन गए थे. तब सन 2014 में श्रवण समेस्ता को रावतसर में ही छोड़ कर सूरतगढ़ चला गया और वहीं रह कर बैंकिंग सर्विस की कोचिंग लेने लगा.

समेस्ता रावतसर में अपने 2 बच्चों के साथ किराए के एक कमरे में तंगहाली में जीवन गुजार रही थी. बाद में मजबूरी में उस ने विवाह शादियों में बरतन साफ करने का काम शुरू कर दिया, साथ ही दोनों बच्चों का दाखिला स्कूल में करवा दिया.

आर्थिक हालात में मामूली सुधार होते ही उस ने घर में ही खाने के टिफिन तैयार करने का काम शुरू कर दिया, साथ ही अकेले रह रहे 2-3 अधिकारियों और कर्मचारियों के यहां दोनों समय का खाना भी बना आती थी. अब तक समेस्ता 35 साल की हो चुकी थी. हालातों से लड़ने के जज्बे ने उसे शालीन बना दिया था.

बता दें कि सूरतगढ़ में रह रहे श्रवण ने समेस्ता से अभी अपने संबंध खत्म नहीं किए थे. वह 2-4 महीने में चक्कर लगा कर समेस्ता को संभाल जाता था. श्रवण को यह पता चला कि समेस्ता अधिकारियों के घर जा कर खाना बनाती है तो वह बिफर पड़ा. समेस्ता के रहनसहन में आए बदलाव ने उस के मन में शक का जहर पैदा कर दिया.

श्रवण ने एक दिन उस से कह ही दिया, ‘‘समेस्ता, अब तू किसी के घर खाना बनाने नहीं जाएगी. मुझे पता चल गया है कि खाना बनाने की ओट में तू अधिकारियों के यहां गुलछर्रे उड़ाती है.’’

गुस्से में कांपते श्रवण ने गालियों के साथ समेस्ता को चेतावनी दे डाली.

‘‘देख श्रवण, तूने मुझे अकेली छोड़ कर डांटने या कोई बंदिश लगाने का अधिकार खो दिया है. तूने कभी जानने की कोशिश की है कि मैं किन हालात में जी रही हूं. और हां, वैसे भी अगर मैं किसी के साथ मस्ती करती हूं तो तू कौन होता है मुझे रोकने वाला? अगर तूने भविष्य में मुझे टोका तो मैं तुझे काट कर फेंक दूंगी.’’ गुस्से में समेस्ता ने श्रवण को खरीखोटी सुना दी.

समेस्ता के तेवर देख कर श्रवण उलटे पैरों सूरतगढ़ लौट गया. यह बात 4-5 महीने पहले की है.

समेस्ता श्रवण की विवाहिता नहीं थी. फिर भी वह उस पर पाबंदी लगाना चाहता था. चूंकि समेस्ता अपने पैरों पर खड़ी हो कर संभल चुकी थी, इसलिए उस ने श्रवण की उपेक्षा करनी शुरू कर दी. जो भी हो, वह श्रवण के बच्चे की मां तो थी ही, वह नहीं चाहता था कि उस के बच्चे की मां पराए मर्दों की रातें गुलजार करे.

इस सब से श्रवण का दिमाग घूम गया. उस ने जुलाई, 2017 में रावतसर के एकदो चक्कर लगाए. वह घर पहुंचता तो बच्चे बताते कि मां फलां अधिकारी के यहां खाना बनाने गई है. श्रवण समेस्ता से बिना मिले ही लौट जाता. उस के मन में स्वयं को मिटाने या समेस्ता को मार डालने के विचार आने लगे.

वकालत की पढ़ाई वह पूरी कर चुका था. अंत में उस ने समेस्ता को मिटाने का मन बना लिया. वह वकील था और उस की सोच थी कि वह फूलप्रूफ योजना के तहत समेस्ता को ठिकाने लगाएगा, ताकि पुलिस या कानून को उस की करतूत का पता नहीं चल सके.

2 दिनों तक योजना बनाने के बाद श्रवण ने समेस्ता को सड़क दुर्घटना में मारने की योजना बना ली. पर इस योजना को हकीकत में बदलने के लिए उसे एक विश्वसनीय साथी की जरूरत थी. उस ने विचार कर के अपने साथी अमरजीत सिंह को राजदार बनाने का निश्चय किया. अमरजीत सिंह मूलरूप से रायसिंनगर क्षेत्र के चक 38 एनपी का निवासी था. वह सूरतगढ़ में रह कर ट्रांसपोर्ट का काम करता था.

अजरजीत सिंह श्रवण का खास दोस्त था. श्रवण ने अपने मन की बात अमरजीत सिंह को बताई. अमरजीत सिंह जानता था कि श्रवण कानून का अच्छा जानकार है, जो भी योजना बनाएगा, वह फूलप्रूफ होगी. वह श्रवण का साथ देने को तैयार हो गया. वह श्रवण की योजना पर सहमत हो गया. यह बात 26 जुलाई, 2017 की है.

योजना के अनुरूप अमरजीत, जो एक कुशल वाहनचालक था, को किराए की गाड़ी ले कर रावतसर आना था. भोर में समेस्ता जब खेतरपाल मंदिर जाती थी, उसी समय उसे मेगा हाईवे पर गाड़ी चढ़ा कर कुचल डालना था. 27 जुलाई की सुबह श्रवण रावतसर आ गया. अमरजीत भी रात में पिकअप ले कर आ गया.

society

अगली सुबह मेगा हाईवे पर निकली समेस्ता इसलिए बच गई, क्योंकि उसी समय जयपुर से आने वाली वीडियो बस खेतरपाल मंदिर बसस्टैंड पर पहुंच गई. अगले 2 दिनों तक अमरजीत रावतसर आता रहा. पर कभी हाईवे पर यात्रियों के आगमन या मौर्निंग वौक वालों के जमघट के कारण योजना सिरे नहीं चढ़ पाई.

30 जुलाई की रात श्रवण समेस्ता व बच्चों के साथ सो गया. सुबह वह भोर से पहले ही उठ कर मेगा हाईवे पर आ गया. भोर में साढ़े 3 बजे अमरजीत सिंह भी पिकअप ले कर आ गया. 4 बजे के आसपास समेस्ता मंदिर जाने के लिए मेगा हाईवे पर पहुंच गई. झाडि़यों में छिपे श्रवण ने उसी क्षण अमरजीत को घंटी मार दी.

सुनसान गली में खड़ी पिकअप का चालक अमरजीत सिंह जल्दी से मेगा हाईवे पर पहुंच गया. सुनसान मेगा हाईवे पर शिकार नजर आते ही अमरजीत ने एक्सीलेटर पर पैर का दबाव बढ़ा दिया. तेजी से आई पिकअप की टक्कर से समेस्ता हवा में उछल कर सड़क पर औंधे मुंह जा गिरी. समेस्ता की खोपड़ी फट गई थी, जिस से उस का ज्यादा तादाद में खून निकल गया और उस ने उसी समय दम तोड़ दिया.

कुछ दूरी जा कर अमरजीत पिकअप ले कर लौट आया. तब तक झाडि़यों से निकल कर श्रवण भी मेगा हाईवे पर आ गया था. अमरजीत ने श्रवण को गाड़ी में बिठाया और उसे मोड़ कर घटनास्थल पर पहुंच गया. दोनों ने गाड़ी से उतर कर समेस्ता का जायजा लिया. निश्चल पड़ी समेस्ता की मौत हो चुकी थी. श्रवण दबे पांव अपने घर पहुंच कर बिस्तर में दुबक गया. जबकि अमरजीत पिकअप ले कर सूरतगढ़ लौट गया.

फूलप्रूफ योजना के तहत समेस्ता को मौत की नींद सुलाने वाले श्रवण व अमरजीत योजना के क्रियान्वयन से खुश थे. दोनों को उम्मीद थी कि उन का जघन्य अपराध कभी भी जगजाहिर नहीं होगा. लेकिन वकालत की पढ़ाई कर चुका श्रवण इस तथ्य से अनजान था कि उन का कृत्य सीसीटीवी कैमरे में रिकौर्ड हो रहा था.

यह एक ऐसा अकाट्य साक्ष्य था जिसे झुठलाया नहीं जा सकता था. इसी कैमरे की फुटेज से श्रवण के कृत्य का भंडाफोड़ हुआ. समेस्ता व श्रवण के बीच बढ़ी दूरियों से श्रवण संदिग्ध बन कर पुलिस रिकौर्ड पर आ चुका था.

समेस्ता के अंतिम संस्कार के बाद श्रवण भूमिगत हो गया था. पर कांस्टेबल सुखदेव बेनीवाल के मुखबिरों के नेटवर्क के आगे वह बौना साबित हुआ. 10 अगस्त को पुलिस ने श्रवण को अमरजीत के साथ गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में दोनों ने षडयंत्रपूर्वक समेस्ता को मार देने का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

रावतसर के सीजेजेएम रविकांत सोनी की अदालत ने पुलिस की मांग पर दोनों हत्यारोपियों का 4 दिनों का पुलिस रिमांड दे दिया. पुलिस ने इस केस की प्राथमिकी में भादंवि की धारा 302, 120बी और जोड़ दी. इस अवधि में आरोपी अमरजीत सिंह ने वारदात में प्रयुक्त पिकअप गाड़ी पुलिस को बरामद करवा दी. पूछताछ में पता चला कि अमरजीत का आपराधिक रिकौर्ड रहा है. पूर्व में भी उस के खिलाफ हत्या के आरोप में मुकदमा दर्ज हुआ था. लेकिन अदालत ने सबूतों के अभाव में उसे बरी कर दिया था.

16 अगस्त, 2017 को पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. वकालत की पढ़ाई कर चुके नासमझ श्रवण ने समेस्ता को मिटा कर अपना और अमरजीत सिंह का भविष्य तो अंधकारमय बना ही दिया, समेस्ता के दोनों बच्चे भी बेसहारा हो गए.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

VIDEO : नेल आर्ट डिजाइन – टील ब्लू नेल आर्ट

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें