Story in Hindi
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?लैब इंचार्ज बिना कुछ कहे वहां से
चला गया.
2 दिनों के बाद, दोनों प्रतिद्वंद्वियों के बीच भरी सभा में वादविवाद रखा गया था. दोनों को अपनेअपने पक्षों को रखने का मौका था. प्रांगण खचाखच भरा हुआ था. सारा महाविद्यालय उमड़ आया था. मस्ती का माहौल था. छात्रों में उत्साह था. हर्षोल्लास के साथ इस वादविवाद को देखने के लिए वे पहुंचे थे.
चुनाव के इंचार्ज नीलेंदु सर ने माइक पर घोषणा की, ‘‘छात्र प्रतिनिधि का चुनाव लड़ रहे दोनों उम्मीदवार, अनुरंजन और जयेश, अपनाअपना तर्क आप के सामने रखेंगे. ये लोग आप के अपने छात्र प्रतिनिधि हैं, आप की समस्याओं का निवारण करने के लिए. आप ही के द्वारा चुने जाएंगे. इसीलिए ये जो भी कहेंगे, उन्हें ध्यान से सुनिएगा और सुनने के बाद, सोचविचार कर के ही अपना प्रतिनिधि चुनें. आप में से अधिकांश के लिए यह बिलकुल नया अनुभव होगा. सार्वजनिक वक्ता के साथ कृपया किसी भी प्रकार का दुर्व्यवहार न करें. न तो उन का उपहास उड़ाएं, न ही आक्रामक टिप्पणियों से उन्हें बेमतलब परेशान करें.’’ फिर थोड़ा रुक कर उन्होंने कहा, ‘‘सब से पहले अपने विचार आप के सामने रखेंगे हमारे स्नातकोत्तर विद्यार्थी, अनुरंजन नावे.’’
अनुरंजन अपनी जगह से उठ कर माइक के सामने आया तो जोरदार तालियों के साथ उस का स्वागत किया गया. जैसे संपूर्ण महाविद्यालय का वह बेताज बादशाह हो. तालियों की गड़गड़ाहट धीमी पड़ी तो उस ने सब से पहले नीलेंदु सर को धन्यवाद दिया, ‘‘मैं नीलेंदु सर का शुक्रिया अदा करता हूं कि मु?ो अपने विचार रखने के लिए उन्होंने यह मंच प्रदान किया. वादविवाद का आयोजन भी उन्होंने ही किया है. अपने प्रिंसिपल रत्नेश्वर, जिन का पूरा समय सब की समस्याओं को दूर करने में निकल जाता है, हमारे महाविद्यालय के मेहनती अध्यापकगण और मेरे साथी छात्र और मित्रगण. यह मेरा सौभाग्य है कि आप में से अधिकांश को मैं अपना दोस्त कह सकता हूं. आप सभी शायद मेरे बारे में सबकुछ पहले से ही जानते हैं. इसीलिए मैं आप से अपने प्रतिद्वंद्वी के बारे में बात करना चाहता हूं. वह हमारे कालेज में नए विज्ञान उपकरणों की पैरवी कर रहा है.’’
यह सुन कर सभी वाणिज्य, कला और मैनेजमैंट के छात्र जोरों से हंस दिए. जयेश उस पर हो रहे सीधेसीधे आक्रमण से सुन्न हो गया था.
जब हंसी कम हुई तो अनुरंजन ने कहना शुरू किया, ‘‘भले ही यह अद्भुत बात लगती हो, लेकिन उसे ऐसा लगता है कि हमारा कालेज खेल पर अपना पैसा बरबाद करता है.’’
वहां मौजूद लगभग सभी छात्रों ने जयेश को हूट कर के अपनी नापसंदगी जाहिर की. जयेश चुपचाप बैठ अपना तिरस्कार होते देखता रहा.
अनुरंजन ने जयेश पर अपना आक्रमण जारी रखा, ‘‘क्या हम वास्तव में एक ऐसे छात्र प्रतिनिधि को चुनना चाहते हैं, जो खेलों की परवाह नहीं करता है? जिस को क्रिकेट की परवाह नहीं…?’’
सभी छात्र जोरजोर से चिल्लाने लगे. जयेश को अपनेआप पर काबू पाना कठिन हो रहा था. सभी छात्र उस के खिलाफ हो रहे थे. अनुरंजन सभी छात्रों को उस के खिलाफ भड़काने में कामयाब हो रहा था.
अनुरंजन ने आगे कहा, ‘‘मु?ो गर्व इस बात का है कि मैं खुद क्रिकेट खेलता हूं और मैं चाहता हूं कि खेलों में हमारे महाविद्यालय का आर्थिक सहयोग और बढ़े.’’
फिर उस ने थम कर कहा, ‘‘एक चीज और है, जिसे मैं क्रिकेट से ज्यादा पसंद करता हूं और वह है जगन्नाथ.’’
जाहिर है, उस का उल्लेख रांची के मशहूर जगन्नाथ मंदिर से था. उस के इतना बोलने पर सभी ने जोरों से तालियां बजाईं.
अनुरंजन ने जयेश पर अपने प्रहारों का अंत नहीं किया था, ‘‘मेरे मित्र जयेश के बारे में मैं आप को एक और दिलचस्प तथ्य बताता हूं. उस का ईश्वर में विश्वास नहीं है. न तो जगन्नाथ मंदिर ही वह कभी गया है, न ही पहाड़ी मंदिर.’’
अब तो छात्रगण बेहद नाराज हो गए. शिव शांति पथ पहाड़ी मंदिर, शिवजी का मंदिर था. उस मंदिर में न जाना, खुद एक अपराध था.
अनुरंजन ने अपनी बात की समाप्ति करते हुए कहा, ‘‘आशा है कि अपना वोट डालते समय मेरी बताई इन बातों का आप पूरी तरह से ध्यान रखेंगे. धन्यवाद.’’ और तालियों की जबरदस्त गड़गड़ाहट के साथ वह वापस अपनी जगह पर आ बैठा.
नीलेंदु ने माइक संभाला, ‘‘अनुरंजन के बाद मैं अपने दूसरे उम्मीदवार जयेश को आमंत्रित करता हूं कि वह आए और अपना पक्ष रखे कि क्यों उसे छात्र प्रतिनिधि बनाया जाना चाहिए?’’
जब जयेश अपनी जगह से उठ कर माइक के सामने आया तो सन्नाटा छा गया. किसी ने उस का तालियों से स्वागत नहीं किया. सिर्फ प्रसेनजीत और संदेश तालियां बजा कर उस की हौसलाअफजाई कर रहे थे. माइक के सामने आज सभी जयेश को अपने दुश्मन नजर आ रहे थे. आज सचाई की जीत नामुमकिन थी. अपनी बात को कितने ही सुनहरे तरीके से वह पेश करे, लेकिन जो कीचड़ उस पर पड़ चुकी थी, उसे साफ करना भयंकर कठिन कार्य जान पड़ता था, मानो उसे चक्कर सा आ रहा हो. अब कुछ भी कहना व्यर्थ था. सभी उस के खिलाफ भड़क चुके थे.
जयेश के पास अब कोई रास्ता नहीं बचा था. अपने विचारों के बल पर छात्रों को वापस अपने पक्ष में लाने की बात वह सोच भी नहीं सकता था. अगर वह ?ाठ का सहारा न भी लेना चाहे तो भी अपने प्रतिद्वंद्वी के स्तर तक तो उसे आज गिरना ही पड़ेगा, वरना सालों तक अपमान ?ोलते रहना पड़ेगा और उस स्तर तक गिरने के लिए, उसे संदेश द्वारा खोजबीन कर प्राप्त हुए अनुरंजन के पृष्ठभूमि तथ्यों का इस्तेमाल करना ही पड़ेगा और कोई चारा नहीं था.
यही सब सोच कर जयेश ने अपने भाषण की शुरुआत की, ‘‘मेरे प्रतिद्वंद्वी अनुरंजन नावे ने आप को मेरे बारे में बताया. अब मैं भी आप को उस के बारे में कुछ बताना चाहता हूं. ऐसी बात जो वह खुद नहीं बताना चाहता है. शायद आप लोगों को पता नहीं कि अनुरंजन नावे का इतिहास क्या है. अनुरंजन, ?ारखंड का मूल निवासी नहीं है.’’
वहां बैठे सभी छात्र आपस में फुसफुसाने लगे. महाविद्यालय में लगभग सभी छात्र रांची से ही थे. जयेश ने अपना वक्तव्य जारी रखा, ‘‘मु?ो तो इस बात का बेहद गर्व है कि मेरे पूर्वजों के भी पूर्वजों के नाम की यहां की जमीन का खतियान है. लेकिन मेरे विरोधी की रांची में तो क्या, पूरे ?ारखंड में कोई जमीन नहीं है, न ही उस के बापदादाओं की है या कभी थी.’’
प्रांगण में बैठे विद्यार्थियों में अब आपस में बोलचाल और बढ़ गई. जयेश ने कहा, ‘‘मैं शुद्ध ?ारखंडी हूं और हमारे राज्य की 9 क्षेत्रीय भाषाओं को पाठ्यक्रम में लागू करवाने का जिम्मा लेता हूं. यह काम मेरा प्रतिद्वंद्वी कभी न कर सकेगा, क्योंकि उसे तो यह भी नहीं पता है कि हमारे राज्य की ये 9 भाषाएं कौन सी हैं. उसे कभी इस राज्य में सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती, क्योंकि वह स्थानीय नहीं है. क्या आप ऐसे व्यक्ति को अपना वोट देना चाहोगे, जिस के भविष्य में इस राज्य से पलायन करना ही लिखा है?’’
विद्यार्थीगण अब तैश में आ गए थे. जयेश ने आगे कहा, ‘‘क्या बाहर वाला कभी हमारी ही तरह सोच पाएगा? अनुरंजन नावे भले ही खेल प्रेमी हो और ईश्वर में विश्वास रखता हो, लेकिन उस का जन्म माधोपुर में हुआ था.’’ इसी बात का संदेश ने पता लगाया था.
बाहरी राज्य के शहर का नाम सुन कर विद्यार्थी भड़क गए. जयेश ने उन्हें और भड़काया, ‘‘आप को ऐसा नहीं लगता कि रांची के प्रमुख महाविद्यालय का छात्र प्रतिनिधि, रांची या कम से कम ?ारखंड का होना चाहिए, ताकि आप की सोच और उस की सोच मेल खाती हो?’’
छात्रों की भीड़ में अब होहल्ला मच रहा था. जयेश ने उस शोर के ऊपर जोर से माइक में कहा, ‘‘मेरे विरोधी ने ?ारखंड में तब पहली बार कदम रखा, जब अपनी बीएससी की पढ़ाई करने के लिए वह यहां आया था. उस को न तो राज्य से जुड़ी समस्याओं की सू?ाबू?ा है, न ही प्रांतीय लोगों की सम?ा. हमारी राज्य सरकार ऐसे लोगों को अपने राज्य का हिस्सा नहीं मानती और आप उसे अपना वोट देना चाहते हो? अगर आप ने ऐसा किया तो आप राज्य सरकार के कानून के खिलाफ वोट करोगे. ?ारखंड के मूल निवासी के लोगों के अधिकार हमें सुरक्षित रखने हैं. हम बाहर वालों को ऐसी जिम्मेदारी सौंप कर यह गलती नहीं कर सकते.
‘‘याद रखिएगा कि हमारे अधिकारों की रक्षा करने वाली जितनी भी संस्थाएं हैं, वे सभी हमेशा मेरा साथ देंगी, लेकिन मेरे विरोधी का वे कभी भी साथ नहीं देंगी.
‘‘अगर आप चाहते हैं कि हम अपने अधिकारों की रक्षा करने वाली संस्थाओं के साथ जुड़े रहें तो अपना वोट आप मु?ो
ही देंगे.’’
इतना कह कर जयेश वापस अपनी जगह पर आ कर बैठ गया. जबरदस्त तालियों के साथ जयेश का नाम गूंजने लगा. नीलेंदु ने वादविवाद के समापन की घोषणा की.
अगले ही दिन चुनाव थे. कुछ ही दिनों में चुनाव के नतीजे आ गए. जयेश को भारी बहुमत की प्राप्ति हुई और वह अपने महाविद्यालय का छात्र प्रतिनिधि बन गया.
‘‘तब तो रघु जानता होगा इसे…’’
‘‘जानता तो होगा, पता लग जाएगा कि कौन है.’’
दूसरे दिन जब प्रमोद जयंती को औफिस में छोड़ कर घर लौट रहा था, तो वहीं गेट के सामने झाड़ू लगाते पूरनराम ने उसे देख लिया और जब वह चला गया, तो लपक कर पूरनराम जयंती के सामने आ कर पूछ बैठा, ‘‘जयंती मैडम, वह आदमी जो आप को छोड़ कर गया है, क्या आप का आदमी है?’’
‘‘हां, पर क्यों?’’
‘अगर यह जयंती मैडम का पति है, तो फिर वह औरत कौन थी, जो उस दिन इस आदमी के हाथ पर हाथ धरे मेघदूत सिनेमाघर के अंदर हंसते हुए जा रही थी?’ पूरनराम सोचने लगा.
‘‘क्या हुआ? किस सोच में पड़ गया तू?’’
‘‘नहीं, कुछ नहीं हुआ मैडम. एक आदमी कितने रंग बदल सकता है, वही सोच रहा था. इसी से मिलताजुलता एक आदमी है, जो पिछले कुछ दिनों से उधर बाहर के सामने वाले पेड़ों पर चढ़ कर औफिस के बरामदे की ओर ताकता रहता है. कल करमचंद बाबू ने टोका तो उस से लड़ बैठा. मैं समझा वही था…’’ सिनेमाघर वाली बात पूरनराम ने छिपा ली.
‘‘अरे नहीं, यह मेरा पति है. वह ऐसा क्यों करेगा? कोई दूसरा होगा…’’ जयंती ने यह बात पूरनराम से बड़ी सफाई से कह तो दी, लेकिन खुद किसी गहरी सोच में पड़ गई कि अगर वह प्रमोद ही है तो ऐसा क्यों कर रहा है? यह जान लेना जयंती के लिए बहुत जरूरी हो गया.
पूरनराम वाली बात की जयंती ने प्रमोद से चर्चा तक नहीं की और मन ही मन एक योजना बना डाली.उधर इतने दिन माथा खपाने के बाद भी प्रमोद को जब कोई सुराग हाथ नहीं लगा, तो वह सब्र खो बैठा और एक दिन उस ने औफिस में ही धावा बोल दिया.
तकरीबन 22 साल से जयंती को लाने और ले जाने का काम करने वाले प्रमोद ने कभी उस के औफिस में कदम नहीं रखा था. उस दिन अचानक आधा घंटा पहले अपने औफिस में पति को आया देख जयंती एकदम से चौंक उठी थी. उस घड़ी वह राजेश बाबू के साथ किसी जरूरी काम में लगी हुई थी.
जयंती के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘क्या हुआ? इस तरह अचानक से?’’
‘‘एक जरूरी काम से मुझे एक जगह जाना है, सोचा तुम्हें घर छोड़ता जाऊं.’’
जयंती ने राजेश बाबू की ओर देखा. राजेश बाबू बोल पड़े, ‘‘ठीक है, कोई जरूरी काम होगा. तुम जाओ. यह काम हम लोग कल पूरा कर लेंगे.’’
जयंती ने अपना हैंडबैग उठाया और औफिस से निकल गई.
इस बात को बीते अभी महज 2 दिन ही हुए थे. तीसरे दिन साढ़े 10 बजे प्रमोद फिर औफिस में घुस गया. तब जयंती और राजेश बाबू दोनों चाय पी रहे थे और थोड़ी दूरी पर मंजूबाई भी बैठी चाय पी रही थी. मंजूबाई औफिस में चाय पिलाने का काम करती थी.
‘‘बैंक से फोन आया था. तुम्हारे आधारकार्ड और पैनकार्ड की जिरौक्स कौपी मांग रहे हैं,’’ प्रमोद ने बताया.
‘‘अभी अप्रैल में ही केवाईसी जमा की है न?’’ जयंती को बैंक वालों की यह ज्यादती अच्छी नहीं लगी थी.
‘‘कुछ काम होगा. यहां है तो दे दो, जमा कर आएगा,’’ राजेश बाबू आज फिर बीच में बोल पड़े.
जयंती ने प्रमोद को कागज दे दिए. वह चला गया. मंजूबाई भी बगल वाले औफिस में चली गई तो जयंती बोल पड़ी, ‘‘मुझे लगता है कि यह हमारा पीछा कर रहा है.’’
‘‘मुझे लगता है कि यह किसी बड़ी दुविधा में पड़ा है. अच्छा होगा कि यह कंफर्म हो जाए, किसी तरह के कंफ्यूजन में न रहे.’’
अकसर आदमी उस जगह धोखा खाता है, जहां भरोसा डगमगाता है. प्रमोद को जयंती और राजेश बाबू को ले कर इश्कविश्क का कोई सुबूत नहीं मिला था, जिस के चलते वह अपना सब्र खो बैठा था.
तब एक रात उस ने जयंती पर सीधे हमला कर दिया, ‘‘तुम उस जगह से ट्रांसफर ले लो, राजेश बाबू के साथ तुम्हारा काम करना मुझे अच्छा नहीं लगता है. टेबल के नीचे पैर पर पैर फंसा कर कोई काम करता है भला. दीवार की भी आंखें होती हैं.’’
‘‘और कुछ?’’ जयंती ने अपने उमड़ते जज्बातों को जबरन रोकते हुए कहा, ‘‘उन के साथ मैं 22 साल से काम कर रही हूं. तुम्हारे मन में इस तरह का खयाल कभी नहीं आया. जब वे मेरे प्रमोशन को ले कर एरिया अफसर से हाथापाई पर उतर आए थे, तब तो तुमने ‘तुम्हारा बड़ा बाबू मर्द आदमी है’ कहा था…
‘‘उन्हीं की वजह से आज तक औफिस में किसी की मेरी तरफ आंख उठा कर देखने की कभी हिम्मत नहीं हुई और तुम कहते हो कि मैं उन के साथ काम करना छोड़ दूं… कभी नहीं…’’ जयंती चीख ही पड़ी थी.
इस के बाद जयंती ने करवट बदल ली और सो गई. प्रमोद कमरे से बाहर निकल गया, पर जयंती टस से मस नहीं हुई. प्रमोद अभी तक वाशरूम से बाहर नहीं निकला था. यह देख कर जयंती ने जोर से आवाज लगाई, ‘‘अरे, अब क्या वहां सो कर रात की नींद पूरी करनी है?’’
‘‘सौरी जयंती…’’ सामने आ कर प्रमोद बोला, ‘‘तुम सही थी, मैं गलत साबित हो गया. मैं पिछले एकडेढ़ महीने से तुम्हारा पीछा कर रहा था.’’
‘‘मालूम है मुझे.’’
‘‘मैं रघु चपरासी के बहकावे में आ गया था. मैं बेहद शर्मिंदा हूं,’’ प्रमोद पछाड़ खाए पहलवान की तरह चित हो गया था, ‘‘जब तुम्हें सबकुछ मालूम हो चुका था, तो कभी विरोध क्यों नही किया?’’
‘‘विरोध गलत नीतियों का किया जाता है, पर जिस की सोच ही गलत हो, जिसे अपनी पत्नी पर भरोसा न हो, जो गैरऔरत के साथ सिनेमाघर में जाता हो, वैसी नीयत वाले आदमी का विरोध क्या करना, उस से छुटकारा पा लेना ही बेहतर है. फिर तुम तो खुद भ्रमित आदमी हो. मैं हैरान हूं कि इतने सालों से तुम्हारे साथ बिस्तर साझा करती रही और तुम्हें जान न पाई.
‘‘अब जब तुम्हारी असलियत सामने आ चुकी है, तब तुम्हारे इस शक के चक्कर में मैं अपना जीने का अंदाज क्यों बदल लूं…’’
‘‘तुम कितनी अच्छी हो जयंती डार्लिंग. मुझे माफी दे दो.’’
‘‘दूर रहो, यह हक अब तुम खो चुके हो…’’ जयंती ने प्रमोद को झिड़क दिया, ‘‘22 साल के हमारे गाढ़े प्यार को तुम ने गंदे नाले में बहा दिया. ‘जयंती का पति छिपछिप कर उस का पीछा कर रहा है’ इस शब्द ने मुझे अपने ही औफिस में बदनाम करा दिया. डेढ़ महीने से औफिस के आसपास तुम ने जो तमाशा किया, लोगों ने आंखें फाड़फाड़ कर देखा है, वह क्या कम है…’’
जयंती ने कहना जारी रखा, ‘‘तुम जैसे मर्दों से कोई औरत मां तो बन सकती है, पर इज्जत की जिंदगी कभी नहीं जी सकती है. अब तुम मेरी एक बात सुनो कि मैं मीरा नहीं, जयंती हूं और अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने का सलीका जान चुकी हूं.
‘‘वैसे, मीरा ने भी नौकरी से रिजाइन नहीं दिया है, वह 3 महीने की मैटरनिटी लीव पर है. मीरा मां बनने वाली है. ऐसे निकम्मे मर्दों के आगे हम कामकाजी औरतों ने घुटने टेकने छोड़ दिए हैं. हमें अपनी जिंदगी कैसे जीनी है, वह तरीका हमें समझ में आ चुका है.
‘‘हर बार पत्नी ही अग्निपरीक्षा क्यों दे? मर्द क्यों नहीं देता? आखिर एक जिस्म के लिए औरतें कब तक मर्दों के जुल्म सहेंगी? आखिर कब तक?’’
‘‘बाबूजी, आप मां का पीछा कर रहे थे? अपनी ही पत्नी की जासूसी करने लगे थे? हम ने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन आप का यह रूप भी देखना पड़ेगा…’’ एक आवाज ने जयंती और प्रमोद को चौंकाया. देखा कि बड़ा बेटा बगल के कमरे के दरवाजे की ओट में छिप कर जाने कब से उन की बातें सुन रहा था.
‘‘फिलहाल वहां ग्रैजुएशन करने के बाद 3 महीने पहले ही आई हूं. बहुत कोशिश करने पर तुम्हारे एक दोस्त से तुम्हारा नंबर मिला, तो तुम्हें फोन किया. मेरी सगाई हो गई है. 3 महीने बाद शादी हो जाएगी.
‘‘यह कहने के लिए बुलाया है कि जो होना था वह हो गया. अब मुद्दे की बात करते हैं. सचाई यह है कि हम अब भी एकदूसरे को चाहते हैं. तुम मेरे लिए बेताब हो, मैं तुम्हारे लिए.
‘‘इसलिए शादी होेने तक हम रिश्ता बनाए रख सकते हैं. चाहोगे तो शादी के बाद भी मौका पा कर तुम से मिलती रहूंगी. ससुराल कोलकाता में ही है. इसलिए मिलनेजुलने में कोई परेशानी नहीं होगी.’’
श्रेया का चरित्र देख कर गौतम को इतना गुस्सा आया कि उस का कत्ल कर फांसी पर चढ़ जाने का मन हुआ. लेकिन ऐसा करना उस के वश में नहीं था. क्योंकि वह उसे अथाह प्यार करता था. उसे लगता था कि श्रेया को कुछ हो गया तो वह जीवित नहीं रह पाएगा.
उसे सम?ाते हुए उस ने कहा, ‘‘मुझे इतना प्यार करती हो तो शादी मुझ से क्यों नहीं कर लेतीं?’’
‘‘इस जमाने में शादी की जिद पकड़ कर क्यों बैठे हो? वह जमाना पीछे छूट गया जब प्रेमीप्रेमिका या पतिपत्नी एकदूसरे से कहते थे कि जिंदगी तुम से शुरू, तुम पर ही खत्म है.
‘‘अब तो ऐसा चल रहा है कि जब तक साथ निभे, निभाओ, नहीं तो अपनेअपने रास्ते चले जाओ. तुम खुद ही बोलो, मैं क्या कुछ गलत कह रही हूं? क्या आजकल ऐसा नहीं हो रहा है?
‘‘दरअसल, मैं सिर्फ कपड़ों से ही नहीं, विचारों से भी आधुनिक हूं. जमाने के साथ चलने में विश्वास रखती हूं. मैं चाहती हूं कि तुम भी जमाने के साथ चलो. जो मिल रहा है उस का भरपूर उपभोग करो. फिर अपने रास्ते चलते बनो.’’
श्रेया जैसे ही चुप हुई, गौतम ने कहा, ‘‘लगा था कि तुम्हें गलती का अहसास हो गया है. मु?ा से माफी मांगना चाहती हो. पर देख रहा हूं कि आधुनिकता के नाम पर तुम सिर से पैर तक कीचड़ से इस तरह सन चुकी हो कि जिस्म से बदबू आने लगी है.
‘‘यह सच है कि तुम्हें अब भी अथाह प्यार करता हूं. इसलिए तुम्हें भूल जाना मेरे वश की बात नहीं है. लेकिन अब तुम मेरे दिल में शूल बन कर रहोगी, प्यार बन कर नहीं.’’
श्रेया ने गौतम को अपने रंग में रंगने की पूरी कोशिश की, परंतु उस की एक दलील भी उस ने नहीं मानी.
उस दिन से गौतम पहले से भी अधिक गमगीन हो गया.
इस तरह कुछ दिन और बीत गए. अचानक इषिता ने फोन पर बताया कि उस ने कोलकाता में ट्रांसफर करा लिया है. 3-4 दिनों में आ जाएगी.
3 दिनों बाद इषिता आ भी गई. गौतम के घर गई तो वह गहरी सोच में था.
उस ने आवाज दी. पर उस की तंद्रा भंग नहीं हुई. तब उसे झंझोड़ा और कहा, ‘‘किस सोच में डूबे हुए हो?’’
‘‘श्रेया की यादों से अपनेआप को मुक्त नहीं कर पा रहा हूं,’’ गौतम ने सच बता दिया.
इषिता गुस्से से उफन उठी, ‘‘इतना सबकुछ होने के बाद भी उसे याद करते हो? सचमुच तुम पागल हो गए हो?’’
‘‘तुम ने कभी किसी को प्यार नहीं किया है इषिता, मेरा दर्द कैसे समझ सकती हो.’’
‘‘कुछ घाव किसी को दिखते नहीं. इस का मतलब यह नहीं कि उस शख्स ने चोट नहीं खाई होगी,’’ इषिता ने कहा.
गौतम ने इषिता को देखा तो पाया कि उस की आंखें नम थीं. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी आंखों में आंसू हैं. इस का मतलब यह है कि तुम ने भी प्यार में धोखा खाया है?’’
‘‘इसे तुम धोखा नहीं कह सकते. जिसे मैं प्यार करती थी उसे पता नहीं था.’’
‘‘यानी वन साइड लव था?’’
‘‘कुछ ऐसा ही समझो.’’
‘‘लड़का कौन था. निश्चय ही वह कालेज का रहा होगा?’’
इषिता उसे उलझन में नहीं रखना चाहती थी, रहस्य पर से परदा हटाते हुए कह दिया, ‘‘वह कोई और नहीं, तुम हो.’’
गौतम ने चौंक कर उसे देखा तो वह बोली, ‘‘कालेज में पहली बार जिस दिन तुम से मिली थी उसी दिन तुम मेरे दिल में घर कर गए थे. दिल का हाल बताती, उस से पहले पता चला कि तुम श्रेया के दीवाने हो. फिर चुप रह जाने के सिवा मेरे पास रास्ता नहीं था.
‘‘जानती थी कि श्रेया अच्छी लड़की नहीं है. तुम से दिल भर जाएगा, तो झाट से किसी दूसरे का दामन थाम लेगी. आगाह करती, तो तुम्हें लगता कि अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए उस पर इलजाम लगा रही हूं. इसलिए तुम से दोस्ती कर ली पर दिल का हाल कभी नहीं बताया.
‘‘श्रेया के साथ तुम्हारा सबकुछ खत्म हो गया, तो सोचा कि मौका देख कर अपनी मोहब्बत का इजहार करूंगी और तुम से शादी कर लूंगी. पर देख रही हूं कि आज भी तुम्हारे दिल में वह ही है.’’
दोनों के बीच कुछ देर तक खामोशी पसर गई. गौतम ने ही थोड़ी देर बार खामोशी दूर की, ‘‘उसे दिल से निकाल नहीं पा रहा हूं, इसीलिए कभी शादी न करने का फैसला किया है.’’
‘‘तुम्हें पाने के लिए मैं ने जो तपस्या की है उस का फल मुझे नहीं दोगे?’’ इषिता का स्वर वेदना से कांपने लगा था. आंखें भी डबडबा आई थीं.
‘‘मुझे माफ कर दो इषिता. तुम बहुत अच्छी लड़की हो. तुम से विवाह करता तो मेरा जीवन सफल हो जाता. पर मैं दिल के हाथों मजबूर हूं. किसी से भी शादी नहीं
कर सकता.’’
इषिता चली गई. उस की आंखों में उमड़ा वेदना का समंदर देख कर भी वह उसे रोक नहीं पाया. वह उसे कैसे समझाता कि श्रेया ने उस के साथ जो कुछ भी किया है, उस से समस्त औरत जाति से उसे नफरत हो गई है.
3 दिन बीत गए. इषिता ने न फोन किया न आई. गौतम सोचने लगा, ‘कहीं नाराज हो कर उस ने दोस्ती तोड़ने का मन तो नहीं बना लिया है?’
उसे फोन करने को सोच ही रहा था कि अचानक उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. उस समय शाम के 6 बज रहे थे. फोन किसी अनजान का था.
उस ने ‘‘हैलो’’ कहा तो उधर से किसी ने कहा, ‘‘इषिता का पापा बोल रहा हूं. तुम से मिलना चाहता हूं. क्या हमारी मुलाकात हो सकती है?’’
उस ने ?ाट से कहा, ‘‘क्यों नहीं अंकल. कहिए, कहां आ जाऊं?’’
‘‘तुम्हें आने की जरूरत नहीं है बेटे. 7 बजे तक मैं ही तुम्हारे घर आ जाता हूं.’’
इषिता उसे 3-4 बार अपने घर ले गई थी. वह उस के मातापिता से मिल चुका था.
उस के पिता रेलवे में उच्च पद पर थे. बहुत सुलझे हुए इंसान थे. वह उन की इकलौती संतान थी. मां कालेज में अध्यापिका थीं. बहुत समझदार थीं. कभी भी उस के और इषिता के रिश्ते पर शक नहीं किया था.
इषिता के पापा समय से पहले ही आ गए. गौतम के साथसाथ उस की मां और बहन ने भी उन का भरपूर स्वागत किया.
उन्होंने मुद्दे पर आने में बहुत देर नहीं लगाई. पर उन चंद लमहों में ही अपने शालीन व्यक्तित्व की खुशबू से पूरे घर को महका दिया था. इतनी आत्मीयता उड़ेल दी थी वातावरण में कि उसे लगने लगा कि उन से जनमजनम का रिश्ता है.
कुछ देर बाद इषिता के पापा को गौतम के साथ कमरे में छोड़ कर मां और बहन चली गईं तो उन्होंने कहा, ‘‘बेटा, इषिता तुम्हें प्यार करती है और शादी करना चाहती है. उस ने श्रेया के बारे में भी सबकुछ बता दिया है.
‘‘श्रेया से तुम्हारा रिश्ता टूट चुका है तो इषिता से शादी क्यों नहीं करना चाहते? वैसे तो बिना कारण भी कोई किसी को नापसंद कर सकता है. यदि तुम्हारे पास इषिता से विवाह न करने का कारण है तो बताओ. मिलबैठ कर कारण को दूर करने की कोशिश करें.’’
उसे लगा जैसे अचानक उस के मन में कोई बड़ी सी शिला पिघलने लगी है. उस ने मन की बात बता देना ही उचित समझा.
‘‘इषिता में कोई कमी नहीं है अंकल. उस से जो भी शादी करेगा उस का जीवन सार्थक हो जाएगा. कमी मु?ा में है. श्रेया से धोखा खाने के बाद लड़कियों से मेरा विश्वास उठ गया है.
‘‘लगता है कि जिस से भी शादी करूंगा वह भी मेरे साथ बेवफाई करेगी. ऐसा भी लगता है कि श्रेया को कभी भूल नहीं पाऊंगा और पत्नी को प्यार नहीं कर पाऊंगा,’’ गौतम ने दिल की बात रखते हुए बताया.
‘‘इतनी सी बात के लिए परेशान हो? तुम मेरी परवरिश पर विश्वास रखो बेटा. तुम्हारी पत्नी बन कर इषिता तुम्हें इतना प्यार करेगी कि तुम्हारे मन में लड़कियों के प्रति जो गांठ पड़ गई है वह स्वयं खुल जाएगी.’’
वे बिना रुके कहते रहे, ‘‘प्यार या शादी के रिश्ते में मिलने वाली बेवफाई से हर इंसान दुखी होता है, पर यह दुख इतना बड़ा भी नहीं है कि जिंदगी एकदम से थम जाए.
‘‘किसी एक औरतमर्द या लड़कालड़की से धोखा खाने के बाद दुनिया के तमाम औरतमर्द या लड़केलड़की को एकजैसा सम?ाना सही नहीं है.
‘‘यह जीवन का सब से बड़ा सच है कि कोई भी रिश्ता जिंदगी से बड़ा नहीं होता. यह भी सच है कि हर प्रेम संबंध का अंजाम शादी नहीं होता.
‘‘जीवन में हर किसी को अपना रास्ता चुनने का अधिकार है. यह अलग बात है कि कोई सही रास्ता चुनता है कोई गलत.
‘‘श्रेया के मन में गलत विचार भरे पड़े थे. इसलिए चंद कदम तुम्हारे साथ चल कर अपना रास्ता बदल लिया. अब तुम भी उसे भूल कर जीने की सही राह पर आ जाओ. गिरते सब हैं पर जो उठ कर तुरंत अपनेआप को संभाल लेता है, सही माने में वही साहसी है.’’
थोड़ी देर बाद इषिता के पापा चले गए. गौतम ने मंत्रमुग्ध हो कर उन की बातें सुनी थीं.
श्रेया के कारण लड़कियों के प्रति मन में जो गांठ पड़ गई थी वह खुल गई.
अब देर करना उस ने मुनासिब नहीं समझा. इषिता के पापा को फोन किया, ‘‘अंकल, कल अपने घर वालों के साथ इषिता का हाथ मांगने आप के घर आना चाहता हूं.’’
उधर से इषिता के पापा ने कहा, ‘‘वैलकम बेटे. देर आए दुरुस्त आए. अब तुम्हें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता. तुम ने अपने भीतर के डर पर विजय जो प्राप्त कर ली है.’’
सौरभ दफ्तर के काम में बिजी था कि अचानक मोबाइल फोन की घंटी बजी. मोबाइल की स्क्रीन पर कावेरी का नाम देख कर उस का दिल खुशी से उछल पड़ा.
कावेरी सौरभ की प्रेमिका थी. उस ने मोबाइल फोन पर ‘हैलो’ कहा, तो उधर से कावेरी की आवाज आई, ‘तुम्हारा प्यार पाने के लिए मेरा मन आज बहुत बेकरार है. जल्दी से घर आ जाओ.’
‘‘तुम्हारा पति घर पर नहीं है क्या?’’ सौरभ ने पूछा.
‘नही,’ उधर से आवाज आई.
‘‘वह आज दफ्तर नहीं आया, तो मुझे लगा कि वह छुट्टी ले कर तुम्हारे साथ मौजमस्ती कर रहा है,’’ सौरभ मुसकराते हुए बोला.
‘ऐसी बात नहीं है. वह कुछ जरूरी काम से अपने एक रिश्तेदार के घर आसनसोल गया है. रात के 10 बजे से पहले लौट कर नहीं आएगा, इसीलिए मैं तुम्हें बुला रही हूं. तनमन की प्यास बुझाने के लिए हमारे पास अच्छा मौका है. जल्दी से यहां आ जाओ.’
‘‘मैं शाम के साढ़े 4 बजे तक जरूर आ जाऊंगा. जिस तरह तुम मेरा प्यार पाने के लिए हर समय बेकरार रहती हो, उसी तरह मैं भी तुम्हारा प्यार पाने के लिए बेकरार रहता हूं.
‘‘तुम्हारे साथ मु?ो जो खुशी मिलती है, वैसी खुशी अपनी पत्नी से भी नहीं मिलती है. हमबिस्तरी के समय वह एक लाश की तरह चुपचाप पड़ी रहती है, जबकि तुम प्यार के हर लमहे में खरगोश की तरह कुलांचें मारती हो. तुम्हारी इसी अदा पर तो मैं फिदा हूं.’’
थोड़ी देर तक कुछ और बातें करने के बाद सौरभ ने मोबाइल फोन काट दिया और अपने काम में लग गया.
4 बजे तक उस ने अपना काम निबटा लिया और दफ्तर से निकल गया.
सौरभ कावेरी के घर पहुंचा. उस समय शाम के साढ़े 4 बज गए थे. कावेरी उस का इंतजार कर रही थी.
जैसे ही सौरभ ने दरवाजे की घंटी बजाई, कावेरी ने ?ाट से दरवाजा खोल दिया. मानो वह पहले से ही दरवाजे पर खड़ी हो.
वे दोनों वासना की आग से इस तरह झलस रहे थे कि फ्लैट का मेन दरवाजा बंद करना भूल गए और झट से बैडरूम में चले गए.
कावेरी को बिस्तर पर लिटा कर सौरभ ने उस के होंठों को चूमा, तो वह भी बेकरार हो गई और सौरभ के बदन से मनमानी करने लगी.
जल्दी ही उन दोनों ने अपने सारे कपड़े उतारे और धीरेधीरे हवस की मंजिल की तरफ बढ़ते चले गए.
अभी वे दोनों मंजिल पर पहुंच भी नहीं पाए थे कि किसी की आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘यह सब क्या हो रहा है?’’
वे दोनों घबरा गए और ?ाट से एकदूसरे से अलग हो गए.
सौरभ ने दरवाजे की तरफ देखा, तो बौखला गया. दरवाजे पर कावेरी का पति जयदेव खड़ा था. उस की आंखों से अंगारे बरस रहे थे.
उन दोनों को इस बात का एहसास हुआ कि उन्होंने मेन दरवाजा बंद नहीं किया था.
कावेरी ने ?ाट से पलंग के किनारे रखे अपने कपड़े उठा लिए. सौरभ ने भी अपने कपड़े उठाए, मगर जयदेव ने उन्हें पहनने नहीं दिया.
जयदेव उन को गंदीगंदी गालियां देते हुए बोला, ‘‘मैं चुप रहने वालों में से नहीं हूं. अभी मैं आसपड़ोस के लोगों को बुलाता हूं.’’
कावेरी ने जयदेव के पैर पकड़ लिए. उस ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘प्लीज, मु?ो माफ कर दीजिए. अब ऐसी गलती कभी नहीं करूंगी.’’
‘‘मैं तुम्हें हरगिज माफ नहीं कर सकता. तुम तो कहती थीं कि मैं कभी किसी पराए मर्द को अपना बदन छूने नहीं दूंगी. फिर अभी सौरभ के साथ क्या कर रही थीं?’’
कावेरी कुछ कहती, उस से पहले जयदेव ने सौरभ से कहा, ‘‘तुम तो अपनेआप को मेरा अच्छा दोस्त बताते थे. यही है तुम्हारी दोस्ती? दोस्त की पत्नी के साथ रंगरलियां मनाते हो और दोस्ती का दम भरते हो. मैं तुम्हें भी कभी माफ नहीं करूंगा.
‘‘फोन कर के मैं तुम्हारी पत्नी को बुलाता हूं. उसे भी तो पता चले कि उस का पति कितना घटिया है. दूसरे की पत्नी के साथ हमबिस्तरी करता है.’’
‘‘प्लीज, मुझे माफ कर दो. मेरी पत्नी को कावेरी के बारे में पता चल जाएगा, तो वह मुझे छोड़ कर चली जाएगी.
‘‘मैं कसम खाता हूं कि अब कभी कावेरी से संबंध नहीं बनाऊंगा,’’ सौरभ ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.
सौरभ के गिड़गिडाने का जयदेव पर कोई असर नहीं हुआ. उस ने सौरभ से कहा, ‘‘मैं तुम दोनों को कभी माफ नहीं कर सकता. तुम दोनों की करतूत जगजाहिर करने के बाद आज ही कावेरी को घर से निकाल दूंगा. उस के बाद तुम्हारी जो मरजी हो, वह करना. कावेरी से संबंध रखना या न रखना, उस से मु?ो कोई लेनादेना नहीं.’’
जयदेव चुप हो गया, तो कावेरी फिर गिड़गिड़ा कर उस से माफी मांगने लगी. सौरभ ने भी ऐसा ही किया. जयदेव के पैर पकड़ कर उस से माफी मांगते हुए कहा कि अगर वह उसे माफ नहीं करेगा, तो उस के पास खुदकुशी करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह जाएगा, क्योंकि वह अपनी पत्नी की नजरों में गिर कर नहीं जी पाएगा.
आखिरकार जयदेव पिघल गया. उस ने सौरभ से कहा, ‘‘मैं तुम्हें माफ तो नहीं कर सकता, मगर जबान बंद रखने के लिए तुम्हें 3 लाख रुपए देने होंगे.’’
‘‘3 लाख रुपए…’’ यह सुन कर सौरभ की घिग्घी बंध गई. उस का सिर भी घूमने लगा.
बात यह थी कि सौरभ की माली हालत ऐसी नहीं थी कि वह जयदेव को 3 लाख रुपए दे सके. उसे जितनी तनख्वाह मिलती थी, उस से परिवार का गुजारा तो चल जाता था, मगर बचत नहीं हो पाती थी.
सौरभ ने अपनी माली हालत के बारे में जयदेव को बताया, मगर वह नहीं माना. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी माली हालत से मुझे कुछ लेनादेना नहीं है. अगर तुम मेरा मुंह बंद रखना चाहते हो, तो रुपए देने ही होंगे.’’
सौरभ को सम?ा नहीं आ रहा था कि वह इस मुसीबत से कैसे निबटे?
सौरभ को चिंता में पड़ा देख कावेरी उस के पास आ कर बोली, ‘‘तुम इतना सोच क्यों रहे हो? रुपए बचाने की सोचोगे, तो हमारी इज्जत चली जाएगी. लोग हमारी असलियत जान जाएंगे.
‘‘तुम खुद सोचो कि अगर तुम्हारी पत्नी को सबकुछ मालूम हो जाएगा, तो क्या वह तुम्हें माफ कर पाएगी?
‘‘वह तुम्हें छोड़ कर चली जाएगी, तो तुम्हारी जिंदगी क्या बरबाद नहीं हो जाएगी? मेरी तो कोई औलाद नहीं है. तुम्हारी तो औलाद है, वह भी बेटी. अभी उस की उम्र भले ही 6 साल है, मगर बड़ी होने के बाद जब उसे तुम्हारी सचाई का पता चलेगा, तो सोचो कि उस के दिल पर क्या गुजरेगी. तुम से वह इतनी ज्यादा नफरत करने लगेगी कि जिंदगीभर तुम्हारा मुंह नहीं देखेगी.’’
सौरभ पर कावेरी के सम?ाने का तुरंत असर हुआ. वह जयदेव को
3 लाख रुपए देने के लिए राजी हो गया, मगर इस के लिए उस ने जयदेव से एक महीने का समय मांगा.
कुछ सोचते हुए जयदेव ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें एक महीने की मुहलत दे सकता
हूं, मगर इस के लिए तुम्हें कोई गारंटी देनी होगी.’’
‘‘कैसी गारंटी?’’ सौरभ ने जयदेव से पूछा.
‘‘मैं कावेरी के साथ तुम्हारा फोटो खींच कर अपने मोबाइल फोन में
रखूंगा. बाद में अगर तुम अपनी जबान से मुकर जाओगे, तो फोटो सब को
दिखा दूंगा.’’
मजबूर हो कर सौरभ ने जयदेव की बात मान ली. जयदेव ने कावेरी के साथ सौरभ का बिना कपड़ों वाला फोटो खींच कर अपने मोबाइल में सेव कर लिया.
शाम के 7 बजे जब सौरभ कावेरी के फ्लैट से बाहर आया, तो बहुत परेशान था. वह लगातार यही सोच रहा था कि 3 लाख रुपए कहां से लाएगा?
सौरभ कोलकाता का रहने वाला था. उलटाडांगा में उस का पुश्तैनी मकान
था. उस की शादी अनीता से तकरीबन
8 साल पहले हुई थी.
सौरभ की पत्नी अनीता भी कोलकाता की थी. अनीता जब बीए के दूसरे साल में थी, तभी उस के मातापिता ने उस की शादी सौरभ से कर दी थी. सौरभ ने उस की पढ़ाई छुड़ा कर उसे घर के कामों में लगा दिया. अनीता भी आगे नहीं पढ़ना चाहती थी, इसलिए तनमन से घर संभालने में जुट गई थी.
शादी के समय सौरभ के मातापिता जिंदा थे, मगर 2 साल के भीतर उन दोनों की मौत हो गई थी. तब से अनीता ने घर की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी.
मगर शादी के 5 साल बाद अचानक सौरभ ने अपना मन अनीता से हटा लिया था और वह मनचाही लड़की की तलाश में लग गया था.
बात यह थी कि एक दिन सौरभ ने अपने दोस्त के घर ब्लू फिल्म देखी थी. उस के बाद उस का मन बहक गया था. ब्लू फिल्म की तरह उस ने भी मजा लेने की सोची थी.
उसी दिन दोस्त से ब्लू फिल्म की सीडी ले कर सौरभ घर आया. बेटी जब सो गई, तो टैलीविजन पर उस ने अनीता को फिल्म दिखाना शुरू किया.
कुछ देर बाद अनीता सम?ा गई कि यह कितनी गंदी फिल्म है. फिल्म बंद कर के वह सौरभ से बोली, ‘‘आप को ऐसी गंदी फिल्म देखने की लत किस ने लगाई?’’
‘‘मैं ने यह फिल्म आज पहली बार देखी है. मुझे अच्छी लगी, इसलिए तुम्हें दिखाई है कि फिल्म में लड़की ने अपने मर्द साथी के साथ जिस तरह की हरकतें की हैं, उसी तरह की हरकतें तुम मेरे साथ करो.’’
‘‘मु?ा से ऐसा नहीं होगा. मैं ऐसा करने से पहले ही शर्म से मर जाऊंगी.’’
‘‘तुम एक बार कर के तो देखो, शर्म अपनेआप भाग जाएगी.’’
‘‘मु?ो शर्म को भगाना नहीं, अपने साथ रखना है. आप जानते नहीं कि शर्म के बिना औरतें कितनी अधूरी रहती हैं. मेरा मानना है कि हर औरत को शर्म
के दायरे में रह कर ही हमबिस्तरी
करनी चाहिए.
‘‘आप अपने दिमाग से गंदी बातें निकाल दीजिए. हमबिस्तरी में अब तक जैसा चलता रहा है, वैसा ही चलने दीजिए. सच्चा मजा उसी में है. अगर मुझ पर दबाव बनाएंगे, तो मैं मायके चली जाऊंगी.’’
उस समय तो सौरभ की बोलती बंद हो गई, मगर उस ने अपनी चाहत को दफनाया नहीं. उस ने मन ही मन ठान लिया कि पत्नी न सही, कोई और सही, मगर वह मन की इच्छा जरूर पूरी कर के रहेगा.
उस के बाद सौरभ मनचाही लड़की की तलाश में लग गया. इस के लिए एक दिन उस ने अपने दोस्त रमेश से बात भी की. रमेश उसी कंपनी में था, जिस में वह काम करता था.
रमेश ने सौरभ को सु?ाव दिया, ‘‘तुम्हारी इच्छा शायद ही कोई घरेलू औरत पूरी कर सके, इसलिए तुम्हें किसी कालगर्ल से संबंध बनाना चाहिए.’’
सौरभ को रमेश की बात जंच गई. कुछ दिन बाद उसे एक कालगर्ल मिल भी गई.
एक दिन सौरभ रात के 9 बजे कालगर्ल के साथ होटल में गया. वह कालगर्ल के साथ मनचाहा करता, उस से पहले ही होटल पर पुलिस का छापा पड़ गया. सौरभ गिरफ्तारी से बच न सका.
Story in hindi
रामदयाल के कानों में प्रभव की बात गूंज रही थी, ‘शादी अभी तो मुमकिन नहीं है, गुंजन की मजबूरियों के कारण. विधुर पिता के प्रति इकलौते बेटे की जिम्मेदारियां और लगाव कुछ ज्यादा ही होता है.’ लगाव वाली बात से तो इनकार नहीं किया जा सकता था लेकिन प्रेमा की मृत्यु के बाद जब प्राय: सभी ने उस से कहा था कि पिता और घर की देखभाल अब उस की जिम्मेदारी है, इसलिए उसे शादी कर लेनी चाहिए तो गुंजन ने बड़ी दृढ़ता से कहा था कि घर संभालने के लिए तो मां से काम सीखे पुराने नौकर हैं ही और फिलहाल शादी करना पापा के साथ ज्यादती होगी क्योंकि फुरसत के चंद घंटे जो अभी सिर्फ पापा के लिए हैं फिर पत्नी के साथ बांटने पड़ेंगे और पापा बिलकुल अकेले पड़ जाएंगे. गुंजन का तर्क सब को समझ में आया था और सब ने उस से शादी करने के लिए कहना छोड़ दिया था. तभी प्रभव और राघव आ गए.
‘‘अंकल, गुंजन को आपरेशन के लिए ले गए हैं,’’ राघव ने बताया. ‘‘आपरेशन में काफी समय लगेगा और मरीज को होश आने में कई घंटे. हम सब को आदेश है कि अस्पताल में भीड़ न लगाएं और घर जाएं, आपरेशन की सफलता की सूचना आप को फोन पर दे दी जाएगी.’’
‘‘तो फिर अंकल घर ही चलिए, आप को भी आराम की जरूरत है,’’ प्रभव बोला.
‘‘हां, चलो,’’ रामदयाल विवश भाव से उठ खड़े हुए, ‘‘तुम्हें कहां छोड़ना होगा, राघव?’’
‘‘अभी तो आप के साथ ही चल रहे हैं हम दोनों.’’
‘‘नहीं बेटे, अभी तो आस की किरण चमक रही है, उस के सहारे रात कट जाएगी. तुम दोनों भी अपनेअपने घर जा कर आराम करो,’’ रामदयाल ने राघव का कंधा थपथपाया.
हालांकि गुंजन हमेशा उन के लौटने के बाद ही घर आता था लेकिन न जाने क्यों आज घर में एक अजीब मनहूस सा सन्नाटा फैला हुआ था. वह गुंजन के कमरे में आए. वहां उन्हें कुछ अजीब सी राहत और सुकून महसूस हुआ. वह वहीं पलंग पर लेट गए.
तकिये के नीचे कुछ सख्त सा था, उन्होंने तकिया हटा कर देखा तो एक सुंदर सी डायरी थी. उत्सुकतावश रामदयाल ने पहला पन्ना पलट कर देखा तो लिखा था, ‘वह सब जो चाह कर भी कहा नहीं जाता.’ गुंजन की लिखावट वह पहचानते थे. उन्हें जानने की जिज्ञासा हुई कि ऐसा क्या है जो गुंजन जैसा वाचाल भी नहीं कह सकता?
किसी अन्य की डायरी पढ़ना उन की मान्यताआें में नहीं था लेकिन हो सकता है गुंजन ने इस में वह सब लिखा हो यानी उस मजबूरी के बारे में जिस का जिक्र प्रभव कर रहा था. उन्होंने डायरी के पन्ने पलटे. शुरू में तो तनूजा से मुलाकात और फिर उस की ओर अपने झुकाव का जिक्र था. उन्होंने वह सब पढ़ना मुनासिब नहीं समझा और सरसरी निगाह डालते हुए पन्ने पलटते रहे. एक जगह ‘मां’ शब्द देख कर वह चौंके. रामदयाल को गुंजन की मां यानी अपनी पत्नी प्रेमा के बारे में पढ़ना उचित लगा.
‘वैसे तो मुझे कभी मां के जीवन में कोई अभाव या तनाव नहीं लगा, हमेशा खुश व संतुष्ट रहती थीं. मालूम नहीं मां के जीवनकाल में पापा उन की कितनी इच्छाआें को सर्वाधिक महत्त्व देते थे लेकिन उन की मृत्यु के बाद तो वही करते हैं जो मां को पसंद था. जैसे बगीचे में सिर्फ सफेद फूलों के पौधे लगाना, कालीन को हर सप्ताह धूप दिखाना, सूर्यास्त होते ही कुछ देर को पूरे घर में बिजली जलाना आदि.
‘मुझे यकीन है कि मां की इच्छा की दुहाई दे कर पापा सर्वगुण संपन्न और मेरे रोमरोम में बसी तनु को नकार देंगे. उन से इस बारे में बात करना बेकार ही नहीं खतरनाक भी है. मेरा शादी का इरादा सुनते ही वह उत्तर प्रदेश की किसी अनजान लड़की को मेरे गले बांध देंगे. तनु मेरी परेशानी समझती है मगर मेरे साथ अधिक से अधिक समय गुजारना चाहती है. उस के लिए समय निकालना कोई समस्या नहीं है लेकिन लोग हमें एकसाथ देख कर उस पर छींटाकशी करें यह मुझे गवारा नहीं है.’
रामदयाल को याद आया कि जब उन्होंने लखनऊ की जायदाद बेच कर यह कोठी बनवानी चाही थी तो प्रेमा ने कहा था कि यह शहर उसे भी बहुत पसंद है मगर वह उत्तर प्रदेश से नाता तोड़ना नहीं चाहती. इसलिए वह गुंजन की शादी उत्तर प्रदेश की किसी लड़की से ही करेगी. उन्होंने प्रेमा को आश्वासन दिया था कि ऐसा करना भी चाहिए क्योंकि उन के परिवार की संस्कृति और मान्यताएं तो उन की अपनी तरफ की लड़की ही समझ सकती है.
गुंजन का सोचना भी सही था, तनु से शादी की इजाजत वह आसानी से देने वाले तो नहीं थे. लेकिन अब सब जानने के बाद वह गुंजन के होश में आते ही उस से कहेंगे कि वह जल्दीजल्दी ठीक हो ताकि उस की शादी तनु से हो सके.
अगली सुबह अखबार में घायलों में गुंजन का नाम पढ़ कर सभी रिश्तेदार और दोस्त आने शुरू हो गए थे. अस्पताल से आपरेशन सफल होने की सूचना भी आ गई थी फिर वह अस्पताल जा कर वरिष्ठ डाक्टर से मिले थे.
‘‘मस्तिष्क में जितनी भी गांठें थीं वह सफलता के साथ निकाल दी गई हैं और खून का संचार सुचारुरूप से हो रहा है लेकिन गुंजन की पसलियां भी टूटी हुई हैं और उन्हें जोड़ना बेहद जरूरी है लेकिन दूसरा आपरेशन मरीज के होश में आने के बाद करेंगे. गुंजन को आज रात तक होश आ जाएगा,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘आप फिक्र मत कीजिए, जब हम ने दिमाग का जटिल आपरेशन सफलतापूर्वक कर लिया है तो पसलियों को भी जोड़ देंगे.’’
शाम को अपने अन्य सहकर्मियों के साथ तनुजा भी आई थी. बेहद विचलित और त्रस्त लग रही थी. रामदयाल ने चाहा कि वह अपने पास बुला कर उसे दिलासा और आश्वासन दें कि सब ठीक हो जाएगा लेकिन रिश्तेदारों की मौजूदगी में यह मुनासिब नहीं था.
पसलियों के टूटने के कारण गुंजन के फेफड़ों से खून रिसना शुरू हो गया था जिस के कारण उस की संभली हुई हालत फिर बिगड़ गई और होश में आ कर आंखें खोलने से पहले ही उस ने सदा के लिए आंखें मूंद लीं.
अंत्येष्टि के दिन रामदयाल को आएगए को देखने की सुध नहीं थी लेकिन उठावनी के रोज तनु को देख कर वह सिहर उठे. वह तो उन से भी ज्यादा व्यथित और टूटी हुई लग रही थी. गुंजन के अन्य सहकर्मी और दोस्त भी विह्वल थे, उन्होंने सब को दिलासा दिया. जनममरण की अनिवार्यता पर सुनीसुनाई बातें दोहरा दीं.
सीमा के साथ खड़ी लगातार आंसू पोंछती तनु को उन्होंने चाहा था पास बुला कर गले से लगाएं और फूटफूट कर रोएं. उन की तरह उस का भी तो सबकुछ लुट गया था. वह उस की ओर बढ़े भी लेकिन फिर न जाने क्या सोच कर दूसरी ओर मुड़ गए.
कुछ दिनों के बाद एक इतवार की सुबह राघव गुंजन का कोट ले कर आया.
‘‘इस की जेब में गुंजन की घड़ी और पर्स वगैरा हैं. अंकल, संभाल लीजिए,’’ कहते हुए राघव का स्वर रुंध गया.
कुछ देर के बाद संयत होने पर उन्होंने पूछा, ‘‘यह तुम्हें कहां मिला, राघव?’’
‘‘तनु ने दिया है.’’
‘‘तनु कैसी है?’’
‘‘कल ही उस की बहन उसे अपने साथ पुणे ले गई है, जगह और माहौल बदलने के लिए. यहां तो बम होने की अफवाहों को सुन कर वह बारबार उन्हीं यादों में चली जाती थी और यह सिलसिला यहां रुकने वाला नहीं है. तनु के बहनोई उस के लिए पुणे में ही नौकरी तलाश कर रहे हैं.’’
‘‘नौकरी ही नहीं कोई अच्छा सा लड़का भी उस के लिए तलाश करें. अभी उम्र नहीं है उस की गुुंजन के नाम पर रोने की?’’
राघव चौंक पड़ा.
‘‘आप को तनु और गुंजन के बारे में मालूम है, अंकल?’’
‘‘हां राघव, मैं उस के दुख को शिद्दत से महसूस कर रहा था, उसे गले लगा कर रोना भी चाहता था लेकिन…’’
‘‘लेकिन क्या, अंकल? क्यों नहीं किया आप ने ऐसा? इस से तनु को अपने और गुंजन के रिश्ते की स्वीकृति का एहसास तो हो जाता.’’
‘‘मगर मेरे ऐसा करने से वह जरूर मुझ से कहीं न कहीं जुड़ जाती और मैं नहीं चाहता था कि मेरे जरिए गुंजन की यादों से जुड़ कर वह जीवन भर एक अंतहीन दुख में जीए.’’
अंकल शायद ठीक कहते हैं.