मजाक: मेरी गली का हीरो-एक मजनू की शामत

शाम हुई और हीरो जैसे कपड़े पहन कर, उन्हीं की तरह बनावसिंगार कर के वह मियां मजनू सड़क पर खड़ा नजर आने लगा.

कुछ दिनों तक मामला केवल नजरें फेंकने तक ही सिमटा रहा. एक दिन दिल पर हाथ रख कर वह आहें भी भरने लगे और फिर अपनी हथेली पर चुम्मा ले कर सुहानी की तरफ उछालने का सिलसिला भी उस ने शुरू कर दिया.

सुहानी उस मजनू की इन हरकतों के एवज में कभीकभी उस के सामने एकाध मुसकान भी फेंक देती थी. मुसकान पा कर तो वह निहाल हो जाता था. ठंडीठंडी आहें भरने लगता और दीवानगी की ढेर सी हरकतें करने लगता.

जब यह सिलसिला चलते हुए बहुत दिन हो गए, तो मुझे सड़क पर गोश्त और रोटी बेचने वाले नसीम भटियारे से कहना पड़ा, ‘‘नसीम चाचा, इन मियां मजनू को समझाओ, नहीं तो मैं बदनाम हो जाऊंगी.’’

नसीम भटियारा हंस कर बोला, ‘‘बेटी, ऐसी बात है, तो मैं कल ही उसे फटकारता हूं. नजारे तो मैं भी रोज ही देखता रहा हूं. मैं ने समझा था कि शायद ताली दोनों हाथ से बज रही है.’’

‘‘नहीं चाचा, भला ऐसे सड़कछाप मजनुओं से मेरा क्या लेनादेना,’’ सुहानी ने कहा.

दूसरे दिन सुहानी ने देखा कि जब उस का आशिक आए और खिड़की की तरफ मुंह कर के ‘दिल तड़प रहा है, आ भी जा…’ गाने पर ऐक्टिंग शुरू की तो नसीम भटियारे ने उसे समझाया, ‘‘जनाब, यह शरीफों का महल्ला है. यहां शरीफ औरतें रहती हैं. आप अपनी ये बेहूदा हरकतें कहीं और जा कर कीजिए.’’

शायद उस हीरो में दिलीप कुमार जाग उठा. वह उसी की तरह धीरे से बोला, ‘‘ऐ मुहब्बत के दुश्मन, तू नहीं जानता कि प्यार करना कोई बुरा काम नहीं है. मैं भी एक शरीफ घराने का लड़का हूं. तुम क्यों विलेन बनते हो? हटो, प्यार के रास्ते से हटो और अपनी गोश्तरोटी बेचो.’’

दूसरे दिन मेरे एक चचेरे भाई ने उसे समझाया, तो उस ने राजेश खन्ना की तरह कहा, ‘‘अरे बेवकूफ, प्यार करना या न करना, न तेरे बस में है, न मेरे बस में. प्यार तो ऊपर वाला कराता है. हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं, जो उसी के इशारे पर नाचती हैं.’’

सुहानी की गली के उस हीरो ने उस के बाद हर तरह के लोगों को कई सिनेमा हीरो के अंदाज में प्यार को सही बता कर चुप करा दिया और चलता बना.

वैसे, उसे रोकना जरूरी था, क्योंकि तब सुहानी की बदनामी तय लग रही थी. इसीलिए अपने एक अन्य चचेरे भाई से उसे कहना पड़ा. वह थोड़ा अक्खड़ मिजाज का था.

उस ने गली के उस हीरो को समझाते हुए कहा, ‘‘देख बे मजनू की औलाद, यहां मनमोहन नाम का एक लड़का तेरी तरह आशिकी बघारने आता था, हम ने उस की वह धुनाई की थी कि उस का नाम ही लोगों ने मनमोहन ‘घायल’ रख दिया. कल से अगर तू ने इस गली में कदम रखा, तो समझ ले

कि तेरे नाम के आगे भी ‘अधमरा’ या ‘अधकुचला’ लग जाएगा.’’

‘‘प्यार में तो लोग शहीद भी हो जाते हैं,’’ उस ने हंसते हुए कहा था.

सुहानी के उस चचेरे भाई को उस दिन एक जरूरी काम था, इसलिए उस दिन तो वह चला गया, लेकिन दूसरे दिन उस के अपने तकरीबन 20 साथियों के साथ गली के उस हीरो को उस समय घेर लिया, जब वह सुहानी की तरफ चुम्मा उछाल रहा था.

गली का वह हीरो इतनी भीड़ देख कर घबराया नहीं, बल्कि उस ने मुसकरा कर सुहानी की ओर देखा, फिर अपनी कमीज की बांहों को ऊपर की ओर खींचा.

शायद तब उस में धर्मेंद्र जाग उठा था. उस ने अपनी ओर बढ़ रही भीड़ में से एक के जबड़े पर हथौड़ा मार्का घूंसा जड़ दिया.

‘‘वाह…’’ सुहानी के मुंह से अचानक निकला, ‘‘सचमुच, धर्मेंद्री हथौड़ा है.’’

चोट खाने वाले लड़के के 2 दांत हथेली पर निकल आए थे. बेचारा कराह कर एक तरफ गिर पड़ा था. सुहानी को लगा कि ठीक हिंदी फिल्मों की तरह ही अब उस की गली का वह हीरो एकएक की धुनाई कर देगा, लेकिन हुआ उस का उलटा ही.

भीड़ में शायद इंकलाब जाग उठा था. उन सब ने एकएक ही हाथ उस पर चलाया. किसी ने जबड़े पर घूंसा मारा, तो किसी ने पेट पर या पीठ पर, कुछ लोगों ने लातें भी चलाई थीं.

इन सब का फल भी तब हिंदी फिल्मों के फल के उलटा निकला था. बेचारा वह… गली का हीरो सचमुच अधमरा हो गया था. उस की देह पर केवल जांघिया और बनियान ही नजर आ रहे थे.

‘‘यह सब क्या चल रहा है?’’ दारोगाजी ने प्रेमनाथ की तरह पूछा. वे उसी समय अपने एक दीवान और सिपाही के साथ उधर से गुजर रहे थे.

‘‘हुजूर…’’ दीवानजी और सिपाही के चेहरों को देखता हुआ नसीम भटियारा मुकरी की तरह मिमियाया, ‘‘यह रोटीसालन खा कर बिना पैसे दिए भाग रहा था. जब मेरे आदमियों ने इसे रोका, तो इस ने एक के 2 दांत तोड़ दिए. मेरे आदमी ने इसे पकड़ रखा था. बस, इतनी सी बात है हुजूर.’’

‘‘क्यों बे लफंगे की औलाद…’’ इस बार दारोगाजी अमरीश पुरी की तरह गुर्राए, ‘‘चोरी, ऊपर से सीनाजोरी,’’ फिर सिपाही की तरफ देख कर उन्होंने कहा, ‘‘इसे गिरफ्तार कर लो.’’

और सचमुच, सुहानी के गली के उस हीरो पर मुकदमा हो गया. गवाहों की क्या कमी थी. फिर उस ने जुर्म तो किया ही था, इसलिए बेचारे को सजा हो गई.

कुछ समय बाद सजा काट कर जब वह एक बार सुहानी की गली में गलती से चला आया, तो बच्चे उस के पीछे दौड़े, ‘अधमराजी… अधमराजी…’

तब वह बेचारा भाग खड़ा हुआ. वह फिर कभी सुहानी की गली में नहीं दिखा.

बिगड़ी हुई लड़की: गुड़िया का अनोखा राज

भारी बदन की और गोरीचिट्टी खालाजान पानदान खोले बैठी थीं. बड़े से देशी पान का डंठल तोड़ कर पान फैला कर उस में पानदान से तांबे की छोटीछोटी चमचियों से चूना और कत्था लगाते हुए वे मुझ से कहने लगीं, ‘‘देख रानी बिटिया, यह तो मर्दमारनी है. तेरा घर बिगड़वा देगी. देखा नहीं, कैसे बालों की लटें चेहरे पर डाले घूम रही है खसमखानी. ‘‘अभी पिछले हफ्ते ही दाना साहब मियां की मजार के पास, वह जो गुड्डू पगला रहता है न, इसे छेड़ने लगा था. और यह उसे मर्दानी गालियां दे रही थी.

वह तो अच्छा हुआ तेरे खालू साहब उधर से गुजर रहे थे. उन्होंने गुड्डू को डांट कर भगाया और इसे भी चुप करा कर घर भेजा. अगर तू थोड़ा रुक जाए, तो मैं तेरे लिए कोई उम्रदराज कामवाली ढूंढ़ दूंगी.’’मैं बड़ी कशमकश में थी. मुझे फौरन ही किसी कामवाली की सख्त जरूरत थी. मेरा एकाध दिन में मेजर आपरेशन होने वाला था. डाक्टरनी ने साफसाफ लफ्जों में कह दिया था कि यह बच्चा नौर्मल डिलीवरी से नहीं हो सकता. आपरेशन करना जरूरी है. कुछ अंदरूनी प्रौब्लम है.

मैं ने एक नजर गुडि़या पर डाली थी. जब वह खालाजान के घर का काम निबटा कर 1-2 सैकंड को खालाजान के सामने खड़ी हुई, जैसे कह रही हो कि काम निबट चुका है, अब मैं घर जाऊं? मगर उस ने मुंह से कुछ नहीं कहा. खालाजान ने उस का मतलब समझ लिया और आंख के इशारे से ही उसे जाने की इजाजत दे दी.पहली नजर में मुझे गुडि़या सांवली रंगत की छरहरे बदन की तकरीबन 15-16 साल की एक चटपटी सी लड़की लगी. बालों की एक लट उस ने कर्ल कर रखी थी.

वही घुंघराले बालों की लट उस के बाएं गाल को छूती हुई झूल रही थी और अच्छी लग रही थी.मैं ने मन ही मन तय कर लिया कि इसे काम पर जरूर रखूंगी. 2 छोटे बच्चों को कुछ देर देखेगी, फिर झाड़ूपोंछा करने के बाद अगर मौका लगा तो खाना भी बना दिया करेगी. मुझे उस की साफसफाई ने सब से ज्यादा प्रभावित किया. अमूमन काम वाली औरतें गंदे कपड़े पहने रहती हैं, जबकि वह साफसुथरे कपड़े पहने हुए खुद भी साफसुथरी नजर आ रही थी.गुडि़या जब पहले दिन मेरे घर आई, वही घुंघराली लट गाल को छूती हुई थी. आंखों में काजल लगा था, जो पहली नजर में ही दिखाई दे जाए.

मैं ने गुडि़या का तीखी नजरों से जायजा लिया. वह इकहरे बदन की सांवली सी लड़की थी. उम्र के लिहाज से स्वभाव में थोड़ी लापरवाही और झिझक थी. होशियार औरत किसी दूसरी औरत को किसी पहुंचे हुए हकीम की तरह नब्ज नहीं, बल्कि चेहरा देख कर ही उस के पेट, दिल और दिमाग का हाल जान ही लेती है.पहले दिन मैं ने गुडि़या को घर का पूरा काम समझाया. उस के परिवार का पूरा हाल जाना. वह एक टूटेबिखरे परिवार की लड़की थी. उस की मां 2 बच्चे छोड़ कर महल्ले के ही पति के एक दोस्त के साथ दिल्ली भाग कर भजनपुरा महल्ले में रहती थी. भाई उस से छोटा था.

उसे बाप ने एक मोटर मेकैनिक की दुकान पर लगा दिया था. बाप खुद एक लौंड्री पर कपड़े प्रैस करने का काम करता था. डाल से टूटा पत्ता और डोर से टूटी पतंग गरीब की जोरू की तरह होती है, जिसे हर कोई मुफ्त का माल समझ कर झपटना चाहता है. जाहिर है, जमाने ने गुडि़या को इतनी आसानी से नहीं बख्शा होगा. फब्तियों और छींटाकशी की तो उसे इतनी आदत हो गई होगी कि वे अब उस के लिए बेअसर हो गई होंगी.मैं ने पहले ही दिन से गुडि़या को काम समझाने के साथसाथ नैतिकता का पाठ भी पढ़ाना शुरू कर दिया था, ‘‘देखो गुडि़या, अच्छी लड़कियां बालों की लटें नहीं निकालतीं, कभी पान नहीं खातीं और रास्ते में चलते हुए कभी इधरउधर देख कर हंसीठट्ठा नहीं करतीं.’’गुडि़या मेरी नसीहत सुन कर ऐसे मुसकराई, जैसे टीचर की बातों से बोर हो कर लड़कियां मुसकराने लगती हैं.

शाम को अख्तर साहब के आने पर मैं ने गुडि़या की सारी दास्तान उन्हें सुनाई और खालाजान ने जो गुडि़या के बारे में किस्से बयान किए थे, वे भी बताए.अख्तर साहब फौरैस्ट अफसर थे. 5 फुट, 10 इंच कद. भरा पर तंदुरुस्त कसरती बदन. भरी मूंछों में वे बहुत हैंडसम लगते थे. जंगलजंगल की खाक उन्होंने छानी थी. वे दुनिया देखेभाले थे. वैसे भी उन्हें घर आने की फुरसत ही कब मिलती थी. जब भी घर आने का समय मिलता, तो वे घर के कामों में ही बिजी रहते. मेरी बातें सुन कर अख्तर साहब बोले, ‘‘तुम्हें काम से मतलब है, इसलिए काम से ही मतलब रखो. सलोनी के कुछ बड़े होने तक तो इसे रखना ही पड़ेगा.

इसे मजबूरी समझ लो या जरूरत.’’खालाजान को जब मैं ने जा कर बताया कि गुडि़या को मैं ने घर के कामकाज के लिए रख लिया है, तो उन के मुंह का स्वाद मानो कसैला हो गया.  वे मुंह बिगाड़ कर मुझे ऊंचनीच का लैक्चर देने लगीं.शाम के समय जब खालू साहब अपनी फ्रूट की आड़त से घर आए तो खालाजान फिर गुडि़या का दुखड़ा ले बैठीं, ‘‘कलमुंही, महल्ले के आवारा लड़कों से बहुत नैनमटक्का करती है. दीदे तो इतने फट गए हैं कि उस की बेहयाई देख लो, तब भी हयाशर्म नहीं है उसे. बस, दांत फाड़ कर हंस देती है.’’खालू साहब चुपचाप पानी पीते रहे.

कुछ ‘हांहुं’ भी न की. खालाजान की बड़ी लड़की शमा खालू साहब को चाय देने के बाद जब मुड़ी, तो वह मुसकरा रही थी.खालाजान की छोटी लड़की आयशा तेज आवाज में अपनी पढ़ाई कर रही थी. वह भी अब चुप हो कर खालाजान की बातें दिलचस्पी से सुनने लगी.

शमा ने मेज पर नाश्ता लगा दिया, तो मैं ने सेब का एक टुकड़ा उठाया और खालाजान से बोली, ‘‘खालाजान, आजकल कामवाली आसानी से नहीं मिलती है और जब जरूरत हो तो कतई दिखाई नहीं देती. आप उम्रदराज कामवाली मेरे लिए कहां से ढूंढ़तीं?’’खालाजान तखत पर बैठ कर खालू साहब और अपने लिए पानदान खोल कर पान बनाने लगीं. वे मेरी बात से सहमत थीं, मगर गुडि़या से न जाने क्यों उन्हें कुढ़न थी, जबकि वे खुद उस से अपने घर का काम करा रही थीं.

गुडि़या घर का सारा काम खत्म करने के बाद सलोनी को गोद में ले कर खिलाने लगती, तो कभी बाहर गली की दुकान से उस के लिए चौकलेट या बिसकुट खरीद लाती. धीरेधीरे वह मेरे घर में काफी हिलमिल गई थी. अब उस की लटें भी धीरेधीरे लंबी हो कर बालों में समा गई थीं और वह कभी पान खा कर भी नहीं आती थी.कुछ अरसा गुजरा. इसी बीच गुडि़या का बाप और भाई भी कई बार गाहेबगाहे किसी न किसी काम से घर आने लगे थे. वे निश्चिंत थे कि गुडि़या मेरे घर में पूरी तरह से महफूज है.

अब गुडि़या धीरेधीरे मेरी सभी नसीहतों पर भी अमल करने लगी. पहली बार जब मेरे साथ बाजार गई, तो काफी घबराई सी पूरे बाजार में मेरे साथ चिपक कर चलती रही. मैं ने उस के चेहरे की घबराहट को समझा. घर की गली से निकल कर बाजार तक पहुंचने तक मैं ने देखा कि कुछ मनचले थोड़ी दूर तक उस का पीछा करते रहे, मगर मेरे साथ रहने की वजह से वे रास्ते में ही रुक गए.

किसी ने कोई फिकरा भी नहीं कसा. घर आ कर मैं ने गुडि़या से पूछा कि वह बाजार जाते समय इतनी घबराई हुई क्यों थी? पहले तो वह खामोशी से नीचे जमीन की तरफ देखती रही, फिर जब उस ने नजरें उठाईं, तो उस की आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे. गुडि़या ने बताया, ‘‘जब से मेरी मां ने घर से बाहर कदम रखा है, दुनिया मेरी दुश्मन हो गई है.

लोगों ने मेरी मां की बदचलनी का लेबल मेरे माथे पर चिपका दिया है. मैं जहां भी जाती हूं, लोग मेरी तरफ इस तरह देखते हैं कि जैसे कोई अजूबा हूं.‘‘गलती मां ने की थी, सजा मैं भुगत रही हूं. फिर मैं ने सोचा कि दुनिया से लड़ने के लिए दुनिया जैसा ही बनने का नाटक करना पड़ेगा, इसलिए मैं ने दूसरा रास्ता अख्तियार कर लिया. लड़कों के छेड़े जाने पर उन्हें मर्दानी गालियां देती. हावभाव ऐसे कर लिए जैसे कोई बिगड़ैल लड़की हूं, ताकि मनचले मुझ से आंख न मिला सकें.

’’मैं ने गुडि़या को समझाया, ‘‘अब तुझे किसी तरह का नाटक करने की जरूरत नहीं है. तेरी तरफ अगर किसी ने आंख भी उठाई तो उस की खैर नहीं होगी. बस, तू महल्ले में बेवजह घूमना छोड़ दे.’’गुडि़या अब मेरे घर के सदस्य जैसी हो गई थी. सुबह आ कर घर का सारा कामधाम अपनेआप बड़ी जिम्मेदारी से करती. काम खत्म करने के बाद सलोनी को घंटों खिलौनों से खिलाती. मैं भी अब उस के खाने और खर्चे का पूरा खयाल रखती. हमारे घर में रहने की वजह से अब वह बेखौफ आतीजाती.

अब उस ने खालाजान के घर का काम भी छोड़ दिया था.एक दिन गुडि़या के बाप ने आ कर बताया कि एक रिश्तेदार के लड़के से गुडि़या की शादी की बात चल रही है, आप की क्या राय है?अब सलोनी भी 3 साल की हो गई थी. वह नर्सरी में जाने लगी थी. मुझे भी अब गुडि़या की तरफ से जिम्मेदार होने का अहसास होने लगा था. मैं ने गुडि़या के बाप से कहा, ‘‘आप शादी की तारीख तय कीजिए. हम शादी में हर तरह से मदद करेंगे.’’कुछ दिनों बाद गुडि़या दुलहन बन कर ससुराल जाने लगी.

मुझ से जो बन सका, मैं ने उस की शादी में जिम्मेदारी निभाई.विदा होते समय गुडि़या मुझ से लिपट कर रोने लगी. हिचकियां लेने के बीच वह कह रही थी, ‘‘मेरी मां ने तो मेरे साथ कुछ नहीं किया, मगर आप ने मां की तरह मुझे सहारा दिया. मुझे अच्छेबुरे की समझ दी. हिफाजत की मेरी. मैं आप को कभी नहीं भूलूंगी.’’गुडि़या के जाने के बाद मुझे कुछ अधूरापन सा महसूस हुआ.

घर में अजीब सी खामोशी छाई रहती, मगर मेरे दिल में सुकून था कि गुडि़या अपनी नई दुनिया में खुश थी और जमाने का बिगड़ी हुई लड़की का लेबल उस के माथे से मिट चुका था.एक दिन खालाजान के घर से एक बुरी खबर सुनने को मिली. मैं दौड़ीदौड़ी उन के घर पहुंची. वे मुझे देखते ही चिपट कर रोने लगीं. मैं ने उन को धीरज बंधाया, तो टुकड़ोंटुकड़ों में उन्होंने बताया कि उन की बड़ी लड़की शमा महल्ले के ही एक आवारा लड़के के साथ सुबहसुबह ही घर में रखे सारे जेवर और नकदी ले कर भाग गई.

खालू साहब सुबह से ही उस की तलाश में निकले हुए हैं. छोटी लड़की आयशा सहमी सी डरीडरी निगाहों से खालाजान को देख रही थी और घर में सन्नाटा पसरा हुआ था.

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बकरा – भाग 4 : दबदबे का खेल

अचानक तभी डिंपल भी जोरजोर से चीखने और हंसने लगी. उस के बाल खुल कर बिखर गए. अब तो गांव वाले और हैरानपरेशान हो गए. इस गांव के ही नहीं, बल्कि आसपास के बीसियों गांवों में कभी ऐसा नहीं हुआ था कि किसी औरत में देवी आई हो. डिंपल की आवाज में भी फर्क आ गया था. एक बुढि़या ने डरतेडरते पूछा, ‘‘आप कौन हैं, जो इस सीधीसादी लड़की में प्रवेश कर गए हो?

हे महाराज, आप देव हैं या देवी?’’ डिंपल भी चीखतीउछलती लटूरी देवता की पिंडी के पास पहुंच गई थी. वह जोर से बोली, ‘‘मैं महाकाली हूं. आज मैं पाखंडियों को सजा दूंगी. अब काली और महाकाली आ गई हैं, अब दुष्टों को दंड जरूर मिलेगा,’’ कह कर उस ने पिंडी के पास से दराट उठाया  और बकरे का सींग पकड़े छांगू के हाथ पर दे मारा. छांगू चेले की उंगलियों की 2 पोरें कट कर नीचे गिर गईं.

वह दर्द के मारे चिल्लाने और तड़पने लगा. ‘‘बकरे, जा अपने घर, तु?ो कोई नहीं काट सकता. जा, घर जा,’’ डिंपल ने उछलतेकूदते कहा. बकरा भी माधो के घर की तरफ दौड़ गया. यह सब देख कर लोग जयजयकार करने लगे. अब तक तो सभी ने हाथ भी जोड़ लिए थे.

बच्चे तो अपनी मां से चिपक गए थे. डिंपल ने दराट लहराया, फिर चीखते और उछलते हुए बोली, ‘‘बहन काली, गुर और उस के ?ाठे साथियों से पूछ कि सच क्या है, वरना इन्हें काट कर मैं इन का खून पीऊंगी.’’ ‘‘जो आज्ञा. खालटू गुर, जो पूछूंगी सच कहना. अगर ?ाठ कहा, तो खाल खींच लूंगी.

आज सारे गांव के सामने सच बोल.’’ डिंपल ने एक जोर की लात खालटू को दे मारी. दूसरी लात कांता ने मारी, तो वह गिरतेगिरते बचा. गलत आदमी भीतर से डराडरा ही रहता है. डर के चलते ही खालटू ने सीधीसादी लड़कियों में काली और महाकाली का प्रवेश मान लिया था. छांगू की कटी उंगलियों से बहते खून ने उसे और ज्यादा डरा दिया था,

जबकि वह खुद में तो ?ाठमूठ का देवता ला देता था. लातें खा कर वह डर के मारे उन के पैर पड़ गया और गिड़गिड़ाया, ‘‘मु?ो माफ कर दीजिए माता कालीमहाकाली, मु?ो माफ कर दीजिए.’’ दर्द से तड़पते छांगू चेले ने अपनी उंगलियों पर रूमाल कस कर बांध लिया था.

गुर को देख कर डर और दर्द के मारे वह भी रोते हुए उन के पैर पड़ गया, ‘‘मु?ो भी माफी दे दो माता.’’ डिंपल ने गुर की पीठ पर कस कर लात मारी और बोली, ‘‘मैं महाकाली खप्पर वाली हूं. सच बता रे खालटू, या फिर तेरी गरदन काट कर तेरा सारा खून पी जाऊं,’’

डिंपल ने हाथ में पकड़ा दराट लहराया, तो वह डर के मारे कांप गया. ‘‘बताता हूं माता, सच बताता हूं. गांव वालो, माधो का बकरा खाने के लिए हम ने ?ाठमूठ की अफवाहें फैला कर माधो और डिंपल पर ?ाठा आरोप लगाया था. मु?ा में कोई देवता नहीं आता है. मैं, चेला छांगू, मौहता भागू, कारदार सब से ठग कर माल ऐंठते थे.  ‘‘हम सारे दूसरों की औरतों पर बुरी नजर रखते थे.

मु?ो माफ कर दीजिए. आज के बाद मैं कभी बुरे काम नहीं करूंगा. मु?ो माफ कर दीजिए.’’ डिंपल और कांता की 2-4 लातें और खाने से वह रो पड़ा. अब तो कारदार भी उन दोनों के पैरों में लौटने लगे थे. ‘‘तू सच बता ओ छांगू चेले, नहीं तो तेरा सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा,’’ कांता ने जोर की ठोकर मारी तो वह नीचे गिर पड़ा, फिर उठ कर उस के पैर पकड़ लिए.

‘‘गांव के भाईबहनो, मैं तो चेला  बन कर तुम सब को ठगता था. कई लड़कियों और औरतों को अंधविश्वास में डाल कर मैं ने उन से कुकर्म किया, उन से रुपएपैसे ऐंठे. मु?ो माफ कर दीजिए माता महाकाली. आज के बाद मैं कभी बुरे काम नहीं करूंगा.’’ गुर, चेले, मौहता और कारदारों ने सब के सामने सच उगल दिया. डिंपल और कांता ने उछलतेचीखते उन्हें लातें मारमार कर वहां से भागने पर मजबूर कर दिया. एक नौजवान ने पेड़ से एक टहनी तोड़ कर कारदार और मौहता भागू को पीट दिया.

डिंपल और जोर से चीखी, ‘‘जाओ दुष्टो, भाग जाओ, अब कभी गांव  मत आना.’’ वे सारे सिर पर पैर रख कर भाग गए और 2 मील नीचे लंबा डग नदी के  तट पर जीभ निकाले लंबे पड़ गए.  उन की पूरे गांव के सामने पोल खुल गई थी. वे एकदूसरे से भी नजरें नहीं मिला पा रहे थे. कांता ने उछलतेचीखते जोर की किलकारी मारते हुए गुस्से से कहा, ‘‘गांव वालो, ध्यान से सुनो. खशलोहार के नाम पर रास्ते मत बांटो, वरना मैं अभी तुम सब को शाप दे दूंगी.’’

‘माफी काली माता, शांत हो जाइए. आप की जय हो. हम रास्ते नहीं बांटेंगे. माफीमाफी,’ सैकड़ों मर्दऔरत एक आवाज में बोल उठे. बच्चे तो पहले ही डर के मारे रोने लगे थे. काली और महाकाली के डर से अब खश खश न थे और लोहार लोहार न थे, लेकिन वे सारे गुर खालटू, चेले, मौहता व कारदारों से ठगे जाने पर दुखी थे. ‘माफी दे दो महाकाली माता. आप दोनों देवियां शांत हो जाइए.

हमारे मन का मैल खत्म हो गया है. शांत हो जाइए माता,’ कई औरतें हाथ जोड़े एकसाथ बोलीं. ‘‘क्या माफ कर दें बहन काली?’’ ‘‘हां बहन, इन्हें माफ कर दो. पर ये सारे भविष्य में ?ाठे और पाखंडी लोगों से सावधान रहें.’’ ‘हम सावधान रहेंगे.’ कई आवाजें एकसाथ गूंजीं. कुछ देर उछलतेचीखते और दराट लहराने के बाद डिंपल ने कहा, ‘‘काली बहन, अब लौट चलें अपने धाम.

हमारा काम खत्म.’’ ‘‘हां दीदी, अब लौट चलें.’’ डिंपल और कांता कुछ देर उछलींचीखीं, फिर ‘धड़ाम’ से धरती पर गिर पड़ीं. काफी देर तक चारों ओर सन्नाटा छाया रहा. सब की जैसे बोलती बंद हो गई थी. जब काफी देर डिंपल और कांता बिना हिलेडुले पड़ी रहीं, तो कांता की दादी ने मंदिर के पास से पानी भरा लोटा उठाया और उन के चेहरे पर पानी के छींटें मारे. वे दोनों धीरेधीरे आंखें मलती  हुई उठ बैठीं.  वे हैरानी से चारों ओर देखने लगी थीं, फिर कांता ने बड़ी मासूमियत से अपनी दादी से पूछा, ‘‘दादी, मु?ो क्या हुआ था?’’ ‘‘और मु?ो दादी?’’ डिंपल ने भी भोलेपन से पूछा.

‘‘कुछ नहीं. आज सच और ?ाठ का पता चल गया है. लूट और पाखंड का पता लग गया है. जाओ भाइयो, सब अपनेअपने घर जाओ,’’ दादी बोलीं. धीरेधीरे लोग अपने घरों को लौटने लगे.  दादी कांता का हाथ पकड़ कर बच्ची की तरह उसे घर ले गईं. डिंपल को उस की मां और बापू घर ले आए. शाम गहराने लगी थी और हवा खुशबू लिए सरसर बहने लगी थी. एक बार फिर डिंपल और कांता सुनसान मंदिर के पास बैठ कर ठहाके लगने लगी थीं. ‘‘बहन महाकाली.’’

‘‘बोलो बहन काली.’’ ‘‘आज कैसा रहा सब?’’ ‘‘बहुत अच्छा. बस, अब कदम रुकेंगे नहीं. पहली कामयाबी की तुम्हें बधाई हो कांता.’’ ‘‘तुम्हें भी.’’ दोनों ने ताली मारी, फिर वे अपने गांव और आसपास के इलाकों को खुशहाल बनाने के लिए योजनाएं बनाने लगीं. आकाश में चांद आज कुछ ज्यादा ही चांदनी बिखेरने लगा था.

प्यारी दलित बेटी – भाग 3 : हिम्मती गुड़िया की कहानी

कार्यक्रम छोटा था. 2-4 लोगों ने माला पहनाई और सविता मैम ने उन के माथे पर तिलक लगाया. वे उन के साथ हो रहे गलत बरताव को जानती थीं, पर खामोश ही रहती थीं.रिटायरमैंट के समय ही गंगाधर शास्त्री को एक लिफाफा दिया गया, जिस में उन की कुल जमापूंजी का चैक था. छोटा बेटा वहां आया और मां को मोटरसाइकिल पर बैठा कर ले गया.

चैक भी अपने बाबूजी से तकरीबन छीन कर ले गया.सविता मैम कुछ दूर तक गंगाधर शास्त्री के साथ पैदल चलीं, फिर वे भी लौट गईं. वे पैदल चलते हुए गांव के बाजार से निकले. गांव के लोगों ने उन्हें देखा और मुंह फेर लिया. अब तो उन्हें इस की आदत ही पड़ चुकी है.

गुडि़या के लिए ही तो उन्होंने सबकुछ झेला था. उन का कदम सही था या गलत, यह तो वे खुद भी नहीं जानते, पर इतना जरूर जान गए थे कि भलाई करने का फल इतना कड़वा नहीं होता.पैदल चलते हुए गंगाधर शास्त्री के सामने उन की पूरी जिंदगी किसी फिल्म की तरह सामने आ रही थी. गुडि़या से मिलने के पहले तक उन की जिंदगी एकदम शांत और इज्जत से भरी थी.

वे आंखें उठा कर भी किसी को देख लेते तो सामने वाला घबरा जाता था. पर समय ने ऐसा पलटा खाया कि आज उन्हें कोई घर तक छोड़ने नहीं जा रहा था.गंगाधर शास्त्री के घर के आंगन में दोनों बेटे बैठे थे. पत्नी अंदर थीं शायद. उन के कदम गेट के सामने आते ही रुक गए.

उन्हें अहसास हुआ कि उन के बेटों के चेहरों पर गुस्से के भाव थे और उन की आंखें ज्वाला पैदा कर रही थीं. बेटों के हाथ में वही चैक था, जो उन्हें रिटायरमैंट के समय मिला था. वे समझ गए कि उन के बेटों को पता चल गया है कि उन्हें उतने पैसे नहीं मिले हैं, जितना बेटे हिसाब लगाए बैठे थे. इस वजह से वे नाराज दिख रहे थे.गंगाधर शास्त्री ने धीरे से गेट खोला.

आज गेट खोलते समय उन्हें लग रहा था जैसे वे किसी पराए घर में दाखिल होने जा रहे हैं. यह गेट ही क्यों यह मकान भी उन्होंने कितने अरमानों के साथ बनवाया था. स्कूल से छुट्टी ले कर खुद दिनभर धूप में खड़े रहते थे और मजदूरों से कहते थे, ‘देखो भाई, मकान मजबूत बनाना.

मेरे बेटों के काम आ जाए बस. हमारा क्या है, हम ने तो अपनी जिंदगी जी ली.’आज गंगाधर शास्त्री को यह मकान पराया लग रहा था. उन्होंने गहरी सांस ली और अंदर दाखिल हो गए. उन्हें देख कर बेटों की आंखों में खून उतर आया. वे बहुत देर से अपने पिताजी की राह देख रहे थे.

अपने पिता को अंदर आता देख कर छोटा बेटा उबल पड़ा, ‘‘सारा पैसा अपनी ऐयाशी में उड़ा दिया… अब यहां क्यों आए हो…’’‘‘अपनी जबान संभाल छोटे…

क्या ऐयाशी बोले जा रहा है…’’ उन्हें भी गुस्सा आ गया.

‘‘क्या जबान संभालूं… आप ने जबान संभालने लायक छोड़ा ही कहां है…

ऐयाशी करते समय यह भी याद नहीं रहा कि आप ने 2 बेटों को पहले ही पैदा कर रखा है…’’ बड़े बेटे की जबान आग उगल रही थी.गंगाधर शास्त्री को समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या जबाव दें…

‘‘देखो बेटा, यह जो मुझे पैसा मिला है न, वह सारा तुम लोगों का ही है…’’‘‘इतना सा पैसा… अहसान जता रहे हो… इस से ज्यादा पैसा तो अपनी नाजायज औलाद गुडि़या पर लुटा चुके हो…’’ छोटे बेटे ने कहा.‘‘बकवास मत करो…’’

गंगाधर शास्त्री ने भी तेज आवाज में कहा. इस बात ने गुस्से से उबल रहे बेटों के लिए जैसे आग में घी डाल दिया. वे उठे और गंगाधर को धक्का दे कर गिरा दिया.‘‘जाओ यहां से, हमें आप से कोई मतलब नहीं है… जाओ अपनी ऐयाशी करो…’’

बड़े बेटे ने कहा.एकाएक धक्का लगने से गिरे गंगाधर शास्त्री की कराह निकल गई. उन के आंसू बह निकले. उन की चेतना शून्य होने लगी. चेतना शून्य होने के पहले उन के कानों ने किसी गाड़ी के रुकने की आवाज सुनी.

गुडि़या को पता था कि आज उस के बाबूजी रिटायर होने वाले हैं. वैसे तो वह उन के रिटायरमैंट कार्यक्रम में ही पहुंचना चाहती थी और कार्यक्रम में सब को बताना चाहती थी कि देखो, दलित होने के बाद भी बाबूजी ने उसे अपनाया और ढेर सारा रुपया खर्च कर के उसे पढ़ाया…

वह बाबूजी का अहसान कभी नहीं चुका सकती, पर वह समय पर नहीं पहुंच पाई.गाड़ी रुकते ही गुडि़या धड़धड़ाते हुए अंदर दाखिल हो गई.

गेट के सामने ही उस ने बाबूजी को जमीन पर गिरा देखा. उस के कानों में उन के कराहने की आवाज पहुंची. वह हैरान हो गई और ‘बाबूजी’ कहते हुए उस ने गंगाधर शास्त्री के सिर को अपनी गोद में रख लिया.गुडि़या को समझते देर नहीं लगी कि बाबूजी के बच्चों ने ही उन पर हमला किया है.

वह बिफर पड़ी, ‘‘किस ने गिराया है बाबूजी को…

बोल दो नहीं तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा…’’

उस का गुस्सा देख कर सारे लोग सहम गए. साथ आए पुलिस के जवान भी गुडि़या की आवाज सुन कर गेट के अंदर आ गए.गुडि़या चिल्लाई,

‘‘इन्हें जल्दी अस्पताल ले चलो…

और इन से तो मैं वापस आ कर निबटती हूं…

’’गंगाधर शास्त्री ने जब अपनी आंखें खोलीं, तो वे अस्पताल के बिस्तर पर थे. गुडि़या उन के सिर को सहला रही थी. उन्होंने गुडि़या को देखा, पर पहचान नहीं पाए.‘‘मैं कहां हूं?’’

गंगाधर शास्त्री ने पूछा.‘‘बाबूजी, आप अस्पताल में हैं…’’

‘बाबूजी…’ उन्हें यह आवाज सुनी सी लगी. उन्होंने फिर से उस ओर देखा और बोले,

‘‘गुडि़या…’’ उन की आवाज में दम आ गया था.‘‘हां बाबूजी, आप की बेटी…’’

कह कर गुडि़या उन के गले से लग गई. दोनों के आंसू बह रहे थे.

‘‘देखो बाबूजी, आप की गुडि़या कलक्टर बन गई है…’’

‘‘कलक्टर…’’ उन्होंने हैरत से उस की ओर देखा.‘‘हां बाबूजी…

यह सरप्राइज देने के लिए ही तो मैं ने आप को उस दिन कुछ बताया नहीं था और बीच में भी इसी वजह से फोन नहीं किया था.’’गंगाधर शास्त्री की आंखों से बहने वाले आंसुओं की रफ्तार तेज हो गई थी.

‘‘बाबूजी, आप ने मुझे यहां तक पहुंचाया है…

पिता बन कर मेरी देखभाल की है…

मैं आप का कर्ज तो कभी चुका ही नहीं सकती…’’

गुडि़या के आंसुओं ने भी रफ्तार पकड़ ली थी.‘‘मैं जानती हूं बाबूजी,

आप ने मेरे लिए क्याक्या नहीं सहा… मैं दलित जो थी.

सविता मैम मुझे सबकुछ बताती रहती थीं. पर बाबूजी, अब आप की बेटी आ गई है न…

आप के साथ हुई बेइज्जती का बदला मैं लूंगी…’’

कहते हुए गुडि़या ने अपने दांत भींच लिए थे.‘‘नहीं बेटी, ऐसा नहीं कहते. तू मेरी बेटी हो कर ऐसी बात कर रही है…’’‘‘नहीं बाबूजी…

आप की बेइज्जती का बदला तो मैं लूंगी ही. उन्होंने जिंदगीभर मेरी बेइज्जती की वह मुझे बरदाश्त है, पर कोई मेरे पिता समान बाबूजी की बेइज्जती करे, एक बेटी उसे कैसे सहन कर सकती है बाबूजी…’’

कहते हुए गुडि़या ने गंगाधर शास्त्री को अपनी बांहों में भींच लिया.‘‘तू तो पागल हो गई है… मेरी बेटी, ऐसा जिंदगी में कभी न सोचना और न ही करना.

किसी से बदला नहीं लिया जाता, बल्कि उसे बदलने की कोशिश की जाती है पगली…’’

गुडि़या कुछ नहीं बोली. वह खुद को अपने बाबूजी की बांहों में समेटे हुए थी. अस्पताल के मुलाजिम और गुडि़या के साथ आया स्टाफ बापबेटी के इस मिलन का गवाह बन रहा था. दूर कोने में गंगाधर शास्त्री की पत्नी और दोनों बेटे सिर झुकाए खड़े थे.

परंपरा- भाग 3 : रिश्तों का तानाबाना

रवि कमरे से निकल गया. मगर उस की आंखों के पटल से मोनाली का वह दृश्य मिट नहीं पाया था. रवि ने भी फोन पर तनु को सम झाया कि जो कुछ उस ने देखा है वह ऐक्सिडैंटल एनकाउंटर मात्र था. एक दिन मोनाली ने रवि के कमरे में अपना मनपसंद रूम फ्रैशनर स्प्रे किया था. रवि कमरे में घुसते के साथ बोल पड़ा, ‘‘आज कोई स्पैशल खुशबू आ रही है कमरे में.’’

मोनाली वहीं कमरे में कुछ सजावट के सामान रख रही थी. उस ने कहा, ‘‘हां, मैं ने नया स्प्रे किया है. अच्छा नहीं लगा?’’

‘‘नो, नो. तुम्हारी चौइस लाजवाब है. बहुत अच्छा लगा.’’

उसी समय तनु वहां से गुजर रही थी और उस ने उन की बात सुनी. उसे पहली बार भय हुआ कि कहीं शायद अब वह रवि की प्रेमिका नहीं रही.

अगले दिन नए साल का पहला दिन था. नए मेहमान, मोनाली के पिता सुजीत अपनी पत्नी के साथ आए थे. प्रतीक ने रवि से उन का परिचय कराया. फिर प्रतीक और सुजीत दंपती आपस में बातें करने लगे.

सुजीत बोले, ‘‘क्यों न हम नए साल के दिन नए रिश्ते की बात करें? हम लोगों को और मोनाली को तो रवि बहुत पसंद है. आगे आप लोगों की क्या राय है?’’

प्रतीक बोले, ‘‘हम दोनों को तो मोनाली बहुत प्यारी लगी. एक बार रवि से बात कर सगाई की डेट रख लेते हैं.’’

उसी समय तनु चायनाश्ता ट्रे में ले कर आई और टेबल पर सजा गई. उस ने उन लोगों की बातें भी सुनी थीं. उस के दिल में बिजली सी कौंध गई. प्रतीक ने बेटे को आवाज दे कर बुलाया और सुजीत से परिचय करा उन के आने का मकसद बताया.

सुजीत ने रवि से कहा, ‘‘बेटे, तुम को पता है, हम लोग मोनाली के रिश्ते के बारे में तुम्हारी राय जानना चाहते हैं. सबकुछ तुम पर निर्भर करता है. निसंकोच बताना.’’

रवि बोला, ‘‘मु झे थोड़ा वक्त चाहिए.’’

सुजीत बोले, ‘‘हां, कोई जल्दी नहीं. सोच कर अपने पापा को बता देना. वैसे, शुभस्य शीघ्रं.’’

प्रतीक ने बेटे से कहा, ‘‘रात में न्यू ईयर की आतिशबाजी मोनाली को दिखा लाओ.’’

रवि का मन नहीं था, मगर सभी लोगों की जिद के आगे उसे  झुकना पड़ा था. आतिशबाजी की जगह तनु भी अपने मातापिता के साथ गई थी. दोनों ने एक दूसरे को देखा, पर कोई बात नहीं हुई थी.

रवि बोला, ‘‘तो क्या हुआ? हम अमेरिकी हैं. यहां कर्म ही धर्म है. और तनु का परिवार भी एक तरह से हिंदू ही है, वे सब शाकाहारी भी हैं.’’

‘‘तुम्हें पता है कि मोनाली भी पांडे की इकलौती संतान है. वह परिवार भी काफी धनी है. उस पूरे परिवार की संपत्ति भी तुम्हीं लोगों को मिलेगी.’’

‘‘वाह पापा, अब धर्म से धन पर उतर आए. मैं नहीं मानता यह सब.’’

प्रतीक चिल्ला उठे, ‘‘तुम मानो, न मानो. तनु से शादी के पहले तुम्हें अपने मातापिता का क्रियाकर्म करना होगा.’’

दूसरे दिन प्रभा ने तनु की मां आशा को बुला कर उस से कहा कि वह उसे सम झाए कि वह रवि के रास्ते से हट जाए. आशा ने कहा, ‘‘मैं खुद नहीं चाहती कि दोनों की शादी हो. हमारे धर्म, रीतिरिवाज बिलकुल अलग हैं. अपनी बिरादरी में ही हम लोग शादी करते हैं. तनु के पापा भी यही चाहते हैं. वैसे, आप हमारी ओर से क्या चाहती हैं?’’

‘‘आशा, कुछ दिनों के लिए तनु हमारे घर नहीं आए. तुम ही कुछ समय निकाल कर काम कर दिया करो.’’

आशा बोलीं, ‘‘मुश्किल वक्त में आप ने हमें काम दिया था. मैं पहले जितना काम तो नहीं कर सकती, पर आप के कुछ जरूरी काम कर दिया करूंगी.’’

आशा ने घर जा कर तनु को सारी बातें बताईं. उसे सुन कर बहुत बुरा लगा. रवि को अगले दिन लौटना था. उस ने फोन कर तनु से मिलने को कहा.

रवि ने उस से कहा, ‘‘जो कुछ हम दोनों के घर में हो रहा है, तुम्हें पता ही होगा. मेरे मातापिता का कहना है कि उन के जीतेजी मैं तुम से शादी नहीं कर सकता हूं. पर मैं तुम्हें भी खोना नहीं चाहता. मु झ पर भरोसा करो, मोनाली में मेरी कोई रुचि नहीं है. वह मु झ पर थोपी जा रही है.’’

तनु बोली, ‘‘हर प्यार करने वाले को मनचाहा अंजाम मिले, जरूरी नहीं.’’

‘‘पर मैं खोना नहीं चाहता. 4-5 महीनों में दोनों की पढ़ाई पूरी हो रही है. मु झे फ्रीमौंट के विश्वविख्यात इलैक्ट्रिक कार बनाने वाली कंपनी टेस्ला में प्लेसमैंट मिल गया है. मेरा मन करता है विद्रोह कर तुम्हारे साथ घर बसा लूं. क्या तुम तैयार हो?’’

‘‘हरगिज नहीं. दोनों में से किसी परिवार में प्यार या आदर नहीं मिलेगा, न मु झे न तुम्हें. और तुम पुरुष हो, धनी भी हो, साहस कर सकते हो, पर मैं क्या करूं? मां ने मेड का काम कर के हमें पालपोस कर बड़ा किया है. उन की भी कुछ अपेक्षाएं होंगीं. और हम दोनों अपने परिवार की इकलौती संतान हैं. मैं मां की उपेक्षा नहीं कर सकती, भले ही अपने प्यार की बलि देनी पड़े.’’

रवि बोला, ‘‘तुम ने, तुम्हारे मातापिता ने संघर्ष किया है और इस की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, मैं मानता हूं. पर मेरे मम्मीपापा तो बस पुरानी सोच और रूढि़वादिता के शिकार हैं.’’

तनु ने कहा, ‘‘जैसे भी हों, हैं तो हमारे जन्मदाता. प्यार में जीतना ही हमारा लक्ष्य नहीं होना चाहिए. मेरे कुछ खोने से किसी को खुशी मिले, तो मु झे दोगुनी खुशी मिलती है.’’

रवि ने तनु का एक हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘तुम अब उपदेश देने लगीं. मैं तो चाहता था कि यह हाथ कभी न छोड़ूं.’’

‘‘दोनों के परिवार की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए हमें कुछ त्याग करना होगा. विडंबना है कि हम अमेरिकी हो कर इतने दिनों बाद भी पुरानी सोच और ढोंग से उबर नहीं सके हैं. उम्मीद करो कि हम से आगे की पीढ़ी को ऐसी स्थिति का सामना न करना पडे़,’’ तनु बोली.

थोड़ी देर दोनों खामोश रहे. फिर तनु ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘एक खुशखबरी है. मेरा भी प्लेसमैंट टेस्ला के अकाउंट डिपार्टमैंट में हो गया है. पिछले वर्ष इंडियन प्राइम मिनिस्टर भी इस प्लांट में आए थे, तुम्हें याद होगा.’’

रवि बोला, ‘‘यह तो बहुत अच्छा है, तुम से मुलाकात तो होती ही रहेगी.’’

तनु बोली, ‘‘मैं कभी तुम्हारी मानिनी प्रियतमा थी, मानिनी पत्नी होने के सपने देखा करती थी. मौजूदा हालात में मु झे बहुत खुशी होगी अगर तुम मु झे आजीवन मानिनी मित्र सम झोगे. यह मेरे लिए सुकून की बात होगी.’’

तनु ने अपनी दोस्ती का दूसरा हाथ भी रवि की ओर बढ़ा दिया.

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