Story in Hindi
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बाद तुम्हारी राह देखी थी, तुम्हारा इंतजार किया था, पर तुम्हें आज यों पा कर मैं तुम से नफरत करता हूं. तुम तो वेश्या निकली ज्योति… वेश्या.’’
मेरी बात सुन कर वह कुछ पल खामोश मुझे देखती रही, फिर अचानक खड़े हो कर बिफरते हुए वह बोली, ‘‘ऋषि, मैं वेश्या हूं ठीक कहा, पर तुम यहां एक वेश्या के घर क्या करने आए थे? तुम भी तो उतने ही गिरे हुए हो, जितना मैं, बल्कि मुझ से भी ज्यादा.
‘‘और अब मैं खुद को वेश्या कहने वाले को यहां एक पल भी बरदाश्त नहीं कर सकती, दफा हो जाओ यहां से,’’ इतना कह कर उस ने मुझे धक्का देते हुए वहां से बाहर निकाल कर दरवाजा बंद कर लिया. सच तो यह था कि ज्योति ने आज मुझे आईना दिखा दिया था.
ज्योति के दिखाए गए आईने ने मुझे झकझोर कर रख दिया. मैं ने खुद को बड़ी तेजी से बदल लिया. अब मैं सिर्फ और सिर्फ अपनी पढ़ाई और अस्मिता को समर्पित था.
बीटैक कर के मुझे एक नौकरी मिल गई थी और मैं ने अस्मिता के लास्ट सैमेस्टर के एग्जाम होने के बाद शादी का ऐलान कर दिया. हम दोनों के घर वालों ने हमारी होने वाली शादी को मंजूरी दे दी.
पर हमारे परिवार की एक परंपरा के मुताबिक थोड़ी सी अड़चन आ गई. मेरे ताऊजी के बेटे विवेक भैया, जो जन्म से हमेशा गांव से बाहर ही रहे थे, ने अब तक शादी नहीं की थी और परिवार की परंपरा के मुताबिक जब तक किसी बड़े की शादी न हुई हो छोटे की शादी नहीं हो सकती.
पर यह अड़चन भी जल्दी ही खत्म हो गई थी. एक दिन विवेक भैया ने फोन कर के कहा कि उन्होंने लखनऊ में एक जूनियर साइंटिस्ट से शादी कर ली है, जो उन के ही डिपार्टमैंट में इस साल आई थी. विवेक भैया वनस्पति अनुसंधान संस्थान में वैज्ञानिक थे.
यों बिना किसी को बताए शादी कर लेने से परिवार के लोग विवेक भैया से थोड़ा नाराज हुए, फिर स्वीकार करते हुए उन्हें बहू के साथ तुरंत घर आने की ताकीद की.
हां, विवेक भैया के इस तरह शादी कर लेने से मैं बहुत खुश था, मेरा रास्ता जो अब साफ हो गया था. यह खबर मैं ने अस्मिता को भी दे दी थी.
मैं और अस्मिता बाजार से भैया और भाभी के स्वागत के लिए जब गुलदस्ता ले कर घर पहुंचे, तो विवेक भैया और भाभी घर आ चुके थे. लोग उन के स्वागत में बिजी थे. लोगों के मुंह से भाभी की खूबसूरती के कसीदे गढ़े जा रहे थे.
मैं ने भाभी को देखने की कोशिश तो की, पर लोगों से घिरे होने की वजह से उन्हें देख ही नहीं पाया. तभी विवेक भैया की नजर मुझ पर पड़ी और वे चिल्ला कर बोले, ‘‘आओ ऋषि, कैसे हो? आ कर अपनी भाभी से मिलो.’’
भाभी से मिलने की खुशी में मैं तेजी से आगे बढ़ा, पर जल्दी ही ठिठक कर खड़ा हो गया.
‘‘ज्योति…’’ मेरे होंठ हलके से हिले. शरीर पूरी तरह से कांप कर रह गया.
हाथ में पकड़े गुलदस्ते को मेरे हाथ से लेते हुए विवेक भैया बोले, ‘‘यह तो मेरे लिए है, अब बोल अपनी भाभी को क्या दोगे?’’
तभी मां ने कहा, ‘‘चलो ऋषि, भाभी के पैर छू कर आशीर्वाद लो… और देख, तो विवेक किस खूबसूरत लड़की को हमारी बहू बना कर लाया है.’’
मैं ने खामोश हो कर ज्योति की तरफ देखा, तो उस ने हलके से बाईं आंख दबा दी.
मुझे खड़ा देख कर मेरी बहन ने हलके से धक्का मार के कहा, ‘‘भैया, अब जल्दी पैर छू कर यहां से हटो. और भी लोग लाइन में लगे हैं भाभी से मिलने को.’’
ज्योति के रूप में भाभी को देख कर सब बहुत खुश हो रहे थे. मैं न चाहते हुए भी आगे बढ़ा और झुक कर अपने हाथ की उंगली को ज्योति के पैर पर टिका दिया.
ज्योति के पैर छूते ही मुझे लगा कि वह ज्वर मेरे शरीर से उतर गया, जो कभी ज्योति ने मेरे शरीर को छू कर दिया था. मैं पलट कर जब वहां से हटा, तो मेरे कानों में ये शब्द गूंज उठे, ‘एक दिन किसी हमजैसी के पैर तू भरी महफिल में छुएगा, उस दिन मुझे याद करना’.
आज मुझे गुंजा की मां याद आ गई थी.
आज अस्पताल में भरती नमन से मिलने जब भैयाभाभी आए तो अश्रुधारा ने तीनों की आंखों में चुपके से रास्ता बना लिया. कोई कुछ बोल नहीं रहा था. बस, सभी धीरे से अपनी आंखों के पोर पोंछते जा रहे थे. तभी नमन की पत्नी गौरी आ गई. सामने जेठजेठानी को अचानक खड़ा देख वह हैरान रह गई. झुक कर नमस्ते किया और बैठने का इशारा किया. फिर खुद को संभालते हुए पूछा, ‘‘आप कब आए? किस ने बताया कि ये…’’
‘‘तुम नहीं बताओगे तो क्या खून के रिश्ते खत्म हो जाएंगे?’’ जेठानी मिताली ने शिकायती सुर में कहा, ‘‘कब से तबीयत खराब है नमन भैया की?’’
‘‘क्या बताऊं, भाभी, ये तो कुछ महीनों से… इन्हें जो भी परहेज बताओ, ये किसी की सुनते ही नहीं,’’ कहते हुए गौरी की आंखें भीग गईं. इतने महीनों का दर्द उमड़ने लगा. देवरानीजेठानी कुछ देर साथ बैठ कर रो लीं. फिर गौरी के आंसू पोंछते हुए मिताली बोली, ‘‘अब हम आ गए हैं न, कोई बदपरहेजी नहीं करने देंगे भैया को. तुम बिलकुल चिंता मत करो. अभी कोई उम्र है अस्पताल में भरती होने की.’’
मिताली और रोहन की जिद पर नमन को अस्पताल से छुट्टी मिलने पर उन्हीं के घर ले जाया गया. बीमारी के कारण नमन ने दफ्तर से लंबी छुट्टी ले रखी थी. हिचकिचाहटभरे कदमों में नमनगौरी ने भैयाभाभी के घर में प्रवेश किया. जब से वे दोनों इस घर से अलग हुए थे, तब से आज पहली बार आए थे. मिताली ने उन के लिए कमरा तैयार कर रखा था. उस में जरूरत की सभी वस्तुओं का इंतजाम पहले से ही था.
‘‘आराम से बैठो,’’ कहते हुए मिताली उन्हें कमरे में छोड़ कर रसोई में चली गई.
रात का खाना सब ने एकसाथ खाया. सभी चुप थे. रिश्तों में लंबा गैप आ जाए तो कोई विषय ही नहीं मिलता बात करने को. खाने के बाद डाक्टर के अनुसार नमन को दवाइयां देने के बाद गौरी कुछ पल बालकनी में खड़ी हो गई. यह वही कमरा था जहां वह ब्याह कर आई थी. इसी कमरे के परदे की रौड पर उस ने अपने कलीरे टांगी थीं. नवविवाहिता गौरी इसी कमरे की डै्रसिंगटेबल के शीशे पर बिंदियों से अपना और नमन का नाम सजाती थी.
मिताली ने उस का पूरे प्यारमनुहार से अपने घर में स्वागत किया था. शुरू में वह उस से कोई काम नहीं करवाती, ‘यही दिन हैं, मौज करो,’ कहती रहती. शादीशुदा जीवन का आनंद गौरी को इसी घर में मिला. जब से अलग हुए, तब से नमन की तबीयत खराब रहने लगी. और आज हालत इतनी बिगड़ चुकी है कि नमन ठीक से चलफिर भी नहीं पाता है. यह सब सोचते हुए गौरी की आंखों से फिर एक धारा बह निकली. तभी कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई.
दरवाजे पर मिताली थी, ‘‘लो, दूध पी लो. तुम्हें सोने से पहले दूध पीने की आदत है न.’’
‘‘आप को याद है, भाभी?’’
‘‘मुझे सब याद है, गौरी,’’ मिताली की आंखों में एक शिकायत उभरी जिसे उस ने जल्दी से काबू कर लिया. आखिर गौरी कई वर्षों बाद इस घर में लौटी थी और उस की मेहमान थी. वह कतई उसे शर्मिंदा नहीं करना चाहती थी.
अगले दिन से रोहन दफ्तर जाने लगे और मिताली घर संभालने लगी. गौरी अकसर नमन की देखरेख में लगी रहती. कुछ ही दिनों में नमन की हालत में आश्चर्यजनक सुधार होने लगा. शुरू से ही नमन इसी घर में रहा था. शादी के बाद दुखद कारणों से उसे अलग होना पड़ा था और इस का सीधा असर उस की सेहत पर पड़ने लगा था. अब फिर इसी घर में लौट कर वह खुश रहने लगा था. जब हम प्रसन्नचित्त रहते हैं तो बीमारी भी हम से दूर ही रहती है.
‘‘प्रणाम करती हूं बूआजी, कैसी हैं आप? कई दिनों में याद किया अब की बार कैसी रही आप की यात्रा?’’ मिताली फोन पर रोहन की बूआ से बात कर रही थी. बूआजी इस घर की सब से बड़ी थीं. उन का आनाजाना अकसर लगा रहता था. तभी गौरी का वहां आना हुआ और उस ने मिताली से कुछ पूछा.
‘‘पीछे यह गौरी की आवाज है न?’’ गौरी की आवाज बूआजी ने सुन ली.
‘‘जी, बूआजी, वह नमन की तबीयत ठीक नहीं है, तो यहां ले आए हैं.’’
‘‘मिताली बेटा, ऐसा काम तू ही कर सकती है, तेरा ही दिल इतना बड़ा हो सकता है. मुझे तो अब भी गौरी की बात याद आती है तो दिल मुंह को आने लगता है. छी, मैं तुझ से बस इतना ही कहूंगी कि थोड़ा सावधान रहना,’’ बूआजी की बात सुन मिताली ने हामी भरी. उन की बात सुन कर पुरानी कड़वी बातें याद आते ही मिताली का मुंह कसैला हो गया. वह अपने कक्ष में चली गई और दरवाजा भिड़ा कर, आंखें मूंदे आरामकुरसी पर झूलने लगी.
गौरी को भी पता था कि बूआजी का फोन आया है. उस ने मिताली के चेहरे की उड़ती रंगत को भांप लिया था. वह पीछेपीछे मिताली के कमरे तक गई.
‘‘अंदर आ जाऊं, भाभी?’’ कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए गौरी ने पूछा.
‘‘हां,’’ संक्षिप्त सा उत्तर दिया मिताली ने. उस का मन अब भी पुराने गलियारों के अंधेरे कोनों से टकरा रहा था. जब कोई हमारा मन दुखाता है तो वह पीड़ा समय बीतने के साथ भी नहीं जाती. जब भी मन बीते दिन याद करता है, तो वही पीड़ा उतनी ही तीव्रता से सिर उठाती है.
‘‘भाभी, आज हम यहां हैं तो क्यों न अपने दिलों से बीते दिनों का मलाल साफ कर लें?’’ हिम्मत कर गौरी ने कह डाला. वह इस मौके को गंवाना नहीं चाहती थी.
‘‘जो बीत गई, सो बात गई. छोड़ो उन बातों को, गौरी,’’ पर शायद मिताली गिलेशिकवे दूर करने के पक्ष में नहीं थी. अपनी धारणा पर वह अडिग थी.
‘‘भाभी, प्लीज, बहुत हिम्मत कर आज मैं ने यह बात छेड़ी है. मुझे नहीं पता आप तक मेरी क्या बात, किस रूप में पहुंचाई गई. पर जो मैं ने आप के बारे में सुना, वह तो सुन लीजिए. आखिर हम एक ही परिवार की डोर से बंधे हैं. यदि हम एकदूसरे के हैं, तो इस संसार में कोईर् हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता. किंतु यदि हमारे रिश्ते में दरार रही तो इस से केवल दूसरों को फायदा होगा.’’
‘‘भाभी, मेरी डोली इसी घर में उतरी थी. सारे रिश्तेदार यहीं थे. शादी के तुरंत बाद से ही जब कभी मैं अकेली होती. बूआजी मुझे इशारों में सावधान करतीं कि मैं अपने पति का ध्यान रखूं. उन के पूरे काम करूं, और उन की आप पर निर्भरता कम करूं. आप समझ रही हैं न? मतलब, बूआजी का कहना था कि नमन को आप ने अपने मोहपाश में जकड़ रखा है ताकि… समझ रही हैं न आप मेरी बात?’’
गौरी के मुंह से अपने लिए चरित्रसंबंधी लांछन सुन मिताली की आंखें फटी रह गईं, ‘‘यह क्या कह रही हो तुम? बूआजी ऐसा नहीं कह सकतीं मेरे बारे में.’’
‘‘भाभी, हम चारों साथ होंगे तो हमारा परिवार पूरी रिश्तेदारी में अव्वल नंबर होगा, यह बात किसी से छिपी नहीं है. शादी के तुरंत बाद मैं इस परिवार के बारे में कुछ नहीं जानती थी. जब बूआजी जैसी बुजुर्ग महिला के मुंह से मैं ने ऐसी बातें सुनीं, तो मैं उन पर विश्वास करती चली गई. और इसीलिए मैं ने आप की तरफ शुष्क व्यवहार करना आरंभ कर दिया.
‘‘परंतु मेरी आंखें तब खुलीं जब चाचीजी की बेटी रानू दीदी की शादी में चाचीजी ने मुझे बताया कि इन बातों के पीछे बूआजी की मंशा क्या थी. बूआजी चाहती हैं कि जैसे पहले उनका इस घर में आनाजाना बना हुआ था जिस में आप छोटी बहू थीं और उन का एकाधिकार था, वैसे ही मेरी शादी के बाद भी रहे. यदि आप जेठानी की भूमिका अपना लेतीं तो आप में बड़प्पन की भावना घर करने लगती और यदि हमारा रिश्ता मजबूत होता तो हम एकदूसरे की पूरक बन जातीं. ऐसे में बूआजी की भूमिका धुंधली पड़ सकती थी. बूआजी ने मुझे इतना बरगलाया कि मैं ने नमन पर इस घर से अलग होने के लिए बेहद जोर डाला जिस के कारण वे बीमार रहने लगे. आज उन की यह स्थिति मेरे क्लेश का परिणाम है,’’ गौरी की आंखें पश्चात्ताप के आंसुओं से नम थीं.
गौरी की बातें सुन मिताली को नेपथ्य में बूआजी द्वारा कही बातें याद आ रही थीं, ‘क्या हो गया है आजकल की लड़कियों को. सोने जैसी जेठानी को छोड़ गौरी को अकेले गृहस्थी बसाने का शौक चर्राया है, तो जाने दे उसे. जब अकेले सारी गृहस्थी का बोझा पड़ेगा सिर पे, तो अक्ल ठिकाने आ जाएगी. चार दिन ठोकर खाएगी, तो खुद आएगी तुझ से माफी मांगने. इस वक्त जाने दे उसे. और सुन, तू बड़ी है, तो अपना बड़प्पन भी रखना, कोई जरूरत नहीं है गौरी से उस के अलग होने की वजह पूछने की.’
‘‘भाभी, मुझे माफ कर दीजिए, मेरी गलती थी कि मैं ने बूआजी की कही बातों पर विश्वास कर लिया और तब आप को कुछ भी नहीं बताया.’’
‘‘नहीं, गौरी, गलती मेरी भी थी. मैं भी तो बूआजी की बातों पर उतना ही भरोसा कर बैठी. पर अब मैं तुम्हारा धन्यवाद करना चाहती हूं कि तुम ने आगे बढ़ कर इस गलतफहमी को दूर करने की पहल की,’’ यह कहते हुए मिताली ने अपनी बांहें खोल दीं और गौरी को आलिंगनबद्ध करते हुए सारी गलतफहमी समाप्त कर दी.
कुछ देर बाद मिताली के गले लगी गौरी बुदबुदाई, ‘‘भाभी, जी करता है कि बूआजी के मुंह पर बताऊं कि उन की पोलपट्टी खुल चुकी है. पर कैसे? घर की बड़ीबूढ़ी महिला को आईना दिखाएं तो कैसे, हमारे संस्कार आड़े आ जाते हैं.’’
‘‘तुम ठीक कहती हो, गौरी. परंतु बूआजी को सचाई ज्ञात कराने से भी महत्त्वपूर्ण एक और बात है. वह यह है कि हम आइंदा कभी भी गलतफहमियों का शिकार बन अपने अनमोल रिश्तों का मोल न भुला बैठें.’’
देवरानीजेठानी का आपसी सौहार्द न केवल उस घर की नींव ठोस कर रहा था बल्कि उस परिवार के लिए सुख व प्रगति की राह प्रशस्त भी कर रहा था.
‘‘इस तरह… इस तरह से ज्योति? मैं उस के कंधे झकझोरते हुए बोला, ‘‘यों गंदगी में गिर कर तुम खड़ा होना चाहती हो? कुछ बनना चाहती हो? क्या बनना चाहती हो तुम?’’
मेरे हाथों को अपने हाथों में लेते हुए ज्योति बोली, ‘‘ऋषि, यह ठीक है कि यह रास्ता गलत है, मैं मानती हूं कि मेरे जिस्म को कई मर्दों ने हासिल किया है, पर कोई लड़की उस शख्स को नहीं भूलती जिस ने उसे पहली बार पाया हो. ऋषि, तुम्हीं वह हो जिस ने मुझे पहली बार पाया था. ऋषि तुम अब तक मेरी सांसों में बसे हो. मैं वह पल नहीं भूली जब तारों की रोशनी में तुम ने मेरे कुंआरेपन को हासिल किया था,’’ मेरे हाथों को पकड़े वह और न जाने क्याक्या बोले जा रही थी, पर मैं ने वह सब अनसुना कर के उसे वापस अपने से परे धकेल दिया था. वह अपने घुटनों पर सिर रख कर सिसकने लगी थी.
मैं ने कहा, ‘‘ज्योति, मैं भी तुम्हें याद करता था. मैं ने भी उस रात के बाद तुम्हारी राह देखी थी, तुम्हारा इंतजार किया था, पर तुम्हें आज यों पा कर मैं तुम से नफरत करता हूं. तुम तो वेश्या निकली ज्योति वेश्या.’’
मेरी बात सुन कर वह कुछ पल खामोश मुझे देखती रही, फिर अचानक खड़े हो कर बिफरते हुए बोली, ‘‘ऋषि, मैं वेश्या हूं ठीक कहा, पर तुम यहां एक वेश्या के घर क्या करने आए थे? तुम भी तो उतने ही गिरे हुए हो जितना मैं, बल्कि मुझ से भी ज्यादा. और अब मैं खुद को वेश्या कहने वाले को यहां एक पल भी बरदाश्त नहीं कर सकती, दफा हो जाओ यहां से,’’ इतना कह कर उस ने मुझे धक्का देते हुए वहां से बाहर निकाल कर दरवाजा बंद कर लिया. सच तो यह था कि ज्योति ने आज मुझे आईना दिखा दिया था.
ज्योति के दिखाए गए आईने ने मुझे झकझोर कर रख दिया. मैं ने खुद को बड़ी तेजी से बदल दिया. अब मैं सिर्फ और सिर्फ अपनी पढ़ाई और अस्मिता को समर्पित था.
बीटैक कर के मुझे एक नौकरी मिल गई थी और मैं ने अस्मिता के लास्ट सैमेस्टर के एग्जाम होने के बाद शादी का ऐलान कर दिया. हम दोनों के घर वालों ने हमारी होने वाली शादी को मंजूरी दे दी.
पर हमारे परिवार की एक परंपरा के मुताबिक थोड़ी सी अड़चन आ गई. मेरे ताऊजी के बेटे विवेक भैया, जो जन्म से हमेशा गांव से बाहर ही रहे थे, ने अब तक शादी नहीं की थी और परिवार की परंपरा के मुताबिक जब तक किसी बड़े की शादी न हुई हो छोटे की शादी नहीं हो सकती.
पर यह अड़चन भी जल्दी ही खत्म हो गई थी. एक दिन विवेक भैया ने फोन कर के कहा कि उन्होंने लखनऊ में एक जूनियर सांइटिस्ट से शादी कर ली है, जो उन के ही डिपार्टमैंट में इस साल आई थी. विवेक भैया वनस्पति अनुसंधान संस्थान में वैज्ञानिक थे.
यों बिना किसी को बताए शादी कर लेने से परिवार के लोग विवेक भैया से थोड़ा नाराज हुए, फिर स्वीकार करते हुए उन्हें बहू के साथ तुरंत घर आने की ताकीद की. हां, विवेक भैया के इस तरह शादी कर लेने से मैं बहुत खुश था, मेरा रास्ता जो अब साफ हो गया था. यह खबर मैं ने अस्मिता को भी दे दी थी और उस ने भी खुश हो कर फोन पर ही मुझे चूम लिया था.
मैं और अस्मिता बाजार से भैया और भाभी के स्वागत के लिए जब गुलदस्ता ले कर घर पहुंचे, तो विवेक भैया और भाभी घर आ चुके थे. लोग उन के स्वागत में बिजी थे. लोगों के मुंह से भाभी की खूबसूरती के कसीदे गढ़े जा रहे थे.
मैं ने भाभी को देखने की कोशिश तो लोगों से घिरे होने की वजह से देख ही नहीं पाया. तभी विवेक भैया की नजर मुझ पर पड़ी और वे चिल्ला कर बोले, ‘‘आओ ऋषि, कैसे हो? आ कर अपनी भाभी से मिलो.’’
भाभी से मिलने की खुशी में मैं तेजी से आगे बढ़ा, पर जल्दी ही ठिठक कर खड़ा हो गया.
‘‘ज्योति…’’ मेरे होंठ. हलके से हिले. शरीर पूरी तरह से कांप कर रह गया. हाथ में पकड़े गुलदस्ते को मेरे हाथ से लेते हुऐ विवेक भैया बोले, ‘‘यह तो मेरे लिए है, अब बोल अपनी भाभी को क्या दोगे?’’
तभी मां ने कहा, ‘‘चलो ऋषि, भाभी के पैर छू कर आशीर्वाद लो… और देख तो विवेक किस खूबसूरत लड़की को हमारी बहू बना कर लाया है.’’
मैं ने खामोश हो कर ज्योति की तरफ देखा तो उस ने हलके से बाईं आंख दबा दी.
मुझे खड़ा देख कर मेरी बहन ने हलके से धक्का मार के कहा, ‘‘भैया, अब जल्दी पैर छू कर यहां से हटो. और भी लोग लाइन में लगे हैं भाभी से मिलने को.’’
ज्योति के रूप में भाभी को देख कर सब बहुत खुश हो रहे थे. मैं न चाहते हुए भी आगे बढ़ा और झुक कर अपने हाथ की उंगली को ज्योति के पैर पर टिका दिया.
ज्योति के पैर छूते ही मुझे लगा कि वह ज्वर मेरे शरीर से उतर गया जो कभी ज्योति ने मेरे शरीर को छू कर दिया था. मैं पलट कर जब वहां से हटा तो मेरे कानों में ये शब्द गूंज उठे कि ‘एक दिन किसी हम जैसी के पैर तू भरी महफिल में छुएगा, उस दिन मुझे याद करना’.
आज मुझे गुंजा की मां याद आ गई थी.
लगातार 2 साल तक क्लास में टौप आ कर मैं ने अपनी धाक पूरे कालेज में बैठा ली. अब न सिर्फ मेरी क्लास की, बल्कि पूरे कालेज की कई लड़कियां मेरी दोस्त थीं. उन में से कई लड़कियां अपनी मरजी से तनहाई में मेरे करीब आ कर मेरे साथ हमबिस्तर हुईं.
वह खिलते गुलाब के ताजा फूल की तरह थी. मुझ से 2 साल जूनियर. अस्मिता कटियार, बीटैक इलैक्ट्रोनिक्स फर्स्ट ईयर. उस खिलते गुलाब के आसपास मैं अपनी आदत के मुताबिक मंडराने लगा था. बहुत जल्द मैं ने अस्मिता से अपनी दोस्ती और फिर प्यार का इजहार किया, जिसे उस ने शरमा कर कबूल कर लिया था.
हां, यह सच था कि मुझे अस्मिता से प्यार हो गया और जल्द ही हमारे प्यार के अफसाने सारे कालेज में चर्चा की बात हो गए थे.
अस्मिता भी अपना पूरा प्यार मुझ पर उड़ेल रही थी और यह उस के प्यार का ही असर था कि मैं अब उस से मिलने के बाद किसी दूसरी लड़की के साथ बिस्तर पर नहीं गया.
भले ही अस्मिता ने मुझे प्यार सिखा दिया हो, पर मेरे जिस्म को दिया गया ज्योति का ज्वर उतरा न था और इस ज्वर ने उस दिन अपना असर दिखाया, जब अस्मिता दोपहर की तनहाई में मुझ से मिलने मेरे कमरे पर आई.
आज उस ने मटमैले ग्रे रंग का कुरता पहना था, जिस पर काले रंग की गुड़हल की पत्तियों की तरह बनावट थी और उस कुरते के नीचे काली सलवार. उस का गोरा बदन इस लिबास में उबलउबल पड़ रहा था.
आज पहली बार अस्मिता मेरे साथ बिस्तर पर थी. उस के नाजुक अंगों से होता हुआ मेरा हाथ उस की सलवार तक पहुंचा ही था कि तभी मेरा हाथ पकड़ कर वह बोली, ‘‘नहीं ऋषि, यह नहीं.’’
उस के हाथ से अपना हाथ छुड़ाते हुए मैं बोला, ‘‘अस्मिता, क्या हुआ? मुझ से प्यार नहीं करती?’’
ऋषि ने ‘‘बहुतबहुत प्यार करते हैं हम आप से,’’ इतना कह कर मेरे हाथ को उस ने अपनी छाती पर रख लिया.
अस्मिता के उभारों को सहला कर मैं वापस उस की सलवार खोलने की कोशिश करते हुए बोला, ‘‘जब हम एकदूसरे से प्यार करते हैं, तो फिर जिस्मों में दूरियां क्यों?’’
अस्मिता बोली, ‘‘जिस्मों में दूरियां इसलिए क्योंकि अभी हमारी शादी नहीं हुई है,’’ फिर मेरे हाथ को अपने उभारों पर रखते हुए वह बोली, ‘‘मेरे प्यारे प्रेमी, जब तक आप हमारे पति नहीं बन जाते तब तक इसी से काम चलाओ.’’
इतना कह कर अस्मिता खिलखिला कर हंस पड़ी और मैं उस निश्छल हंसी में डूब गया.
अस्मिता वह पहली लड़की थी जो मेरे साथ बिस्तर पर लेट कर भी उतनी ही दूर थी जितनी लड़की किसी मर्द के साथ बिस्तर पर बिना लेटे हुए होती है.
भले ही मैं अस्मिता से टूट कर प्यार करने लगा था, पर ज्योति के दिए ज्वर से आजाद न हो सका था. उस शाम अस्मिता के जाने के बाद इस ज्वर ने अपना भयंकर रूप दिखाया और मैं इसे शांत करने के लिए जिस्म की तलाश करने लगा.
इसी हाल में मुझे अपना दोस्त रतन मिला. मेरा चेहरा देख कर ही वह मेरी हालत समझ गया और मेरे कुछ कहने से पहले ही बोला, ‘‘देख ऋषि, कालेज की किसी लड़की से कतई नहीं वरना अस्मिता भाभी का दिल टूट जाएगा.’’
‘‘फिर?’’ मैं ने बेचैनी से पूछा.
‘‘एक लड़की को मैं जानता हूं जो यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रही है. खूबसूरत इतनी कि अप्सरा शरमा जाए. अपने खर्चे के लिए कभीकभी किसी लड़के को बुला लेती है. एक बार मैं गया था, जन्नत का मजा मिला था.
‘‘तू कहे तो मैं बात करूं. अगर उसे जरूरत होगी तो बुला लेगी. हां, थोड़ी उम्र में ज्यादा है हम से.’’
मैं कुछ बोल न सका, बस इकरार में सर हिला कर रह गया. फिर रतन पास के पीसीओ में जा कर किसी से बात करता रहा. कोई 2-3 बार फोन किया, फिर मेरे पास आ कर एक आंख दबाते हुए बोला, ‘‘चल उठ, जा तेरा काम हो गया. उस ने बुलाया है.’’
अगले ही पल उस ने कागज पर उस लड़की का पता लिख कर थमा दिया और बोला कि पैसे ले कर जाना.
दरवाजे पर लगी कुंडी मैं ने 2-3 बार खटखटाई. उस के बाद जब दरवाजा खुला तो एक सांवली सी ठिगनी लड़की सामने खड़ी थी. होंठों पर सवाल लिए, ‘‘किस से मिलना है?’’
‘‘जी… जी…,’’ मैं हकला कर रह गया. वैसे भी सामने खड़ी लड़की को देख कर मैं मन ही मन रतन को हजार गालियां दे चुका था.
मुझे हकलाते हुए देख कर वह गुस्से से बोली, ‘‘ओह, यह लड़की बाज नहीं आने वाली.’’
फिर वह चिल्ला कर बोली, ‘‘ओय बाहर आ,’’ इतना कह कर वह कमरे से बाहर चली गई. जातेजाते उस ने दरवाजे को भी बंद कर दिया था.
मुझे अभी कमरे में खड़े 1-2 मिनट ही हुए थे कि अपने गीले बालों को तौलिए से सुखाते हुए वह आ गई. जैसे ही उस ने बाल पीछे कर के सिर उठा कर मुझे देखा, मेरे मुंह से निकला, ‘‘ज्योति.’’
कुछ पल वह मुझे खामोश खड़ी निहारती रही फिर दौड़ कर मुझे गले लगा कर बोली, ‘‘ओह ऋषि, तुम हो?’’
‘‘हां, मैं हूं,’’ मैं उसे अपने से परे धकेलते हुए बोला.
ज्योति वापस आ कर मेरे गले से लगते हुए बोली, ‘‘ऋषि, कितने दिनों बाद हम देख रहे हैं आप को, यकीन ही नहीं होता…’’
‘‘यकीन तो मुझे भी नहीं होता ज्योति कि तुम इस हद तक गिर गई हो.’’
‘‘किस हद तक ऋषि… ओह, यह तुम क्या कह रहे हो. आज कितने दिनों बाद मिले और ये क्या बातें करने लगे.’’
‘‘वही बातें ज्योति जो करनी चाहिए. तुम अपने जिस्म का ज्वर उतारने के लिए उस जिस्म को मर्दों के आगे बेचती हो, क्या इसे गिरना नहीं कहते?’’
‘‘ऋषि, तुम समझ नहीं रहे. तुम्हें कैसे कहें कि यह पढ़ाई, यह पीएचडी इस में कितने पैसे लगते हैं… यह सब कहां से आता जबकि घर वाले मेरी शादी बीए के बाद ही कर देना चाहते थे. पर मैं पढ़ना चाहती थी, कुछ करना चाहती थी. अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी.’’
थोड़ी देर के बाद मैं ज्योति का हाथ पकड़ कर नीचे आ गया. मेरा हाथ छुड़ा कर वह जाते हुए बोली, ‘‘ऋषि, एक काम करना.’’
मैं ने पूछा, ‘‘क्या?’’
‘‘छत पर पड़ी खून की बूंदों को पानी से साफ कर देना,’’ इतना कह कर वह चली गई और मैं हाथ में बालटी ले कर छत की ओर चल दिया.
ज्योति उस रात के बाद फिर मुझे दिखाई न दी. उस की छुट्टियां खत्म हो गई थीं. मैं ने कई दिन की तड़प के बाद अपने दिल को तसल्ली दी कि वह जब अगले साल गरमियों की छुट्टियां बिताने आएगी तो जीभर के उस से बात करूंगा, उसे आगोश में लूंगा, मगर मेरे लाख इंतजार के बाद वह फिर कभी गरमी की छुट्टियां बिताने के लिए हमारे गांव नहीं आई.
मैं अपनी टीनएज में एक लड़की की तरफ आकर्षित हुआ, उस के जिस्म को मैं ने हासिल किया था. मैं जब भी तनहा लेटता, मुझे लगता कि मैं किसी हसीना के जिस्म से लिपटा हुआ हूं. मेरी नसनस कामज्वर से जल उठती. मैं बेचैन हो जाता. मैं कोशिश करता कि रात में अकेला न रहूं, बस इसलिए दोस्तों के साथ देर रात तक घूमा करता.
ऐसे ही एक रात मैं पास के एक गांव की महफिल में पहुंच गया, जहां तवायफें अपने हुस्न से अजब समां बांध रही थीं. लोग उन के थिरकते कदमों की लय पर वाहवाह कर रहे थे.
मेरी नजर भी ऐसे ही लयबद्ध थिरकते एक जोड़ी पांव पर टिक गई थी. वह एक मेरी उम्र की सुंदर नैननक्श वाली तवायफ थी, जिसे लोग गुंजा के नाम से पुकार रहे थे.
जब तक गुंजा उस गांव में रही, मैं रोज उस की महफिल में हाजिर होता रहा. मेरी इस हाजिरी को यकीनन उस ने तवज्जुह दी थी और यह तवज्जुह इतनी गहरी थी कि एक रात जब वह रक्स की महफिल के बाद कमरे में आराम कर रही थी, तो मैं उस के पास पहुंच गया और उस ने मुझे देखते ही अपने पास लेटी दूसरी तवायफ को बाहर जाने का इशारा कर के मेरी ओर अपनी मरमरी बांहें फैला दीं.
जिस कामज्वर को ज्योति ने मेरे शरीर में जगाया था, उसे मैं गुंजा की बांहों में शांत करने लगा. यहां तक कि जब वह अपने गांव गई, तो मैं अपने एक दोस्त के साथ वहां भी जा पहुंचा और वहीं पर मैं ने शालू को देखा.
शालू गुंजा की छोटी बहन थी और उस से भी ज्यादा हसीन. शालू को देखने के बाद जब मैं गुंजा के साथ लेटता तो मुझे लगता कि मैं शालू के साथ लेटा हूं. शालू के प्रति मेरी आकर्षित निगाहों को शायद गुंजा और उस की मां ने समझ लिया था, इसलिए वे दोनों गाहेबगाहे मुझे शालू से दूर रहने की हिदायत देती रहती थीं.
शालू अब मेरे ख्वाबों में आने लगी थी. इसी बीच मुझे लखनऊ के एक कालेज में बीटैक में एडमिशन मिल गया. लखनऊ जाने से पहले मैं शालू को पाना चाहता था. उस की गोद में सिर रख कर सोना चाहता था. अपनी इसी सोच को लिए मैं उस रात गुंजा के घर जा पहुंचा.
एक बड़ी महफिल उस रात गुंजा के घर सजी हुई थी. मुझे देख कर गुंजा मुसकरा उठी. मेरे पास आ कर वह बोली, ‘‘आओ ऋषि, बैठो.’’
मैं ने पूछा, ‘‘गुंजा, यह महफिल, ये इतने लोग किसलिए?’’
‘‘शालू के लिए,’’ वह मुसकराई.
‘‘मैं समझा नहीं,’’ शालू का नाम आते ही मैं उतावलेपन से बोला.
‘‘आज उस की नथ उतराई है,’’ गुंजा मेरे करीब आ कर मेरी कमीज के बटन खोलते हुए बोली.
‘नथ उतराई. कोठों की इस भाषा से मैं अब तक बखूबी परिचित हो चुका था और अच्छे से इस का मतलब भी जानता था.
मैं ने एक झटके से गुंजा को अपने से परे ढकेल दिया था. जमीन पर गुंजा के गिरने की आवाज सुन कर वहां पान चबाते हुए उस की मां आ गई थीं.
जमीन पर गुंजा को गिरा देख कर वह हाथ नचा कर बोली, ‘‘यह क्या हो रहा है?’’
मैं भी तनिक तेज आवाज में बोला, ‘‘मुझे शालू से दूर रहने की हिदायत दे कर तुम लोग उस की नथ उतराई की रस्म कर रहे हो.’’
‘‘हां तो… तुम्हें एतराज काक्या हक?’’ गुंजा की मां एक कोने में रखे पीकदान में पान की पीक थूकते हुए बोली.
‘‘मैं शालू को चाहता हूं.’’
‘‘तुम शालू को नहीं, बल्कि उस के जिस्म को चाहते हो, जिस की कीमत किसी ने 25,000 रुपए दी है. सौदा हो चुका है.’’
‘‘सौदा…’’ मैं तनिक रोब से बोला, ‘‘एक मासूम लड़की का सौदा कर के तुम्हें शर्म नहीं आती…’’
मेरी बात सुन कर वह अधेड़ औरत बिफर गई थी. न जाने कितनी बातों की बौछार उस ने मुझ पर कर दी. बस मुझे उस की आखिरी बात याद रही, ‘‘दफा हो जाओ यहां से, तुम्हारे जैसे लोग यहां आ कर घुटनों पर बैठ कर हमारे पैर चूमते हैं.’’
वहां से निकलते हुए मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पैर चूमे हमारा जूता.’’
मेरी बात सुनते ही वह दहाड़ कर बोली, ‘‘एक दिन किसी हम जैसी के पैर तू भरी महफिल में छुएगा, उस दिन मुझे याद करना.’’
वह चिल्ला रही थी. उस के वह शब्द पिघलते सीसे की तरह मेरे कानों में उतर रहे थे. मैं ने पलट कर भी नहीं देखा और तेज कदमों से वहां से निकल आया था.
लखनऊ शहर ने मेरे जवान होते जिस्म में अंगड़ाई भर दी थी. जिधर देखो उधर खूबसूरती बिखरी पड़ी थी. अब मैं 19 साल का सजीला नौजवान था, जो लखनऊ के एक मशहूर कालेज से बीटैक कर रहा था.
मैं पढ़ने में तो बचपन से ही होशियार था और इसी वजह से क्लास में मेरी धाक बैठ गई थी. लड़के और लड़कियां सब मेरी तरफ आकर्षित थे, पर मैं सिर्फ लड़कियों की तरफ आकर्षित था.
जब खूबसूरत लड़कियां स्लीवलैस टौप और स्किन टाइट जींस पहन कर खूबसूरती की गुडि़या बन कर मेरे सामने आतीं और होंठों पर मुसकान ला कर ‘हाय ऋषि’ कहतीं, तो मेरा दिल बल्लियों उछल जाता.
मेरे मन और शरीर में जो ज्वर ज्योति ने भरा था, न तो वह उतरा था और न ही गुंजा और उस की मां का दिया हुआ दंश कम हुआ था, बल्कि यों कहें तो और उफन उठा था.
‘‘मेरा मन तो मंदिर जाने को बिलकुल भी नहीं कर रहा है,’’ मंदिर की पहली सीढ़ी के पास भोलू का हाथ पकड़ते हुए वीरमती ने कहा.
‘‘चाहता तो मैं भी यही हूं वीरमती, पर तुम सब्र रखो और एक बार मंदिर जा कर लौट आओ. मैं यहां खड़ा रह कर तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ वीरमती के गले में अपनी बांहें डाल कर भोलू ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘पुरानी कहानियों और किताबों में कहीं भी नहीं पढ़ा कि कोई देवता पति से पहले नई ब्याहता से सुहागरात मनाता है,’’ अपने भोलू की आंखों में झांकते हुए वीरमती ने उदासी से कहा.
‘‘हां, पर मंदिर में ऐसा सच में थोड़े ही होगा. यह तो रस्म मात्र है. तुम जानती हो कि मैं डांभरी देवता में यकीन नहीं करता, लेकिन रिवाज है. अब तुम जाओ,’’ भोलू ने हौसला देते हुए कहा.
2 गांवों डांभरी और टिक्करी के बीच एकांत में और पेड़ों से घिरी एक समतल जगह पर डांभरी देवता का मंदिर बना था. मंदिर से थोड़ी दूर गढ़ की तरह भंडारगृह था. यहां सन्नाटे और डर का माहौल ही रहता था.
दोनों गांव के लोग देवता की खुशी में खुश रहते थे और उसे तरहतरह के उपहार देते थे. मांसभात का चढ़ावा तो वहां चढ़ता ही रहता था.
गुर दितू के जरीए देवता गांव वालों की सुखसमृद्धि की सूचना देता था. जो शख्स देवता पर शक करता था, उसे देवता गुर में प्रवेश कर कठोर सजा देता था.
गुर दितू का दोनों गांवों में खूब आदरसत्कार था. उस का कहा तो पत्थर की लकीर होता था.
डांभरी देवता पर भरोसा नहीं था तो केवल भोलू को, जबकि वीरमती को उस पर यकीन था, पर गुर दितू में देवता का प्रवेश करना उसे कतई सच नहीं लगता था.
दोनों गांवों में जब भी किसी लड़के की शादी होती थी, तो नई ब्याही दुलहन को सुहागरात से पहले देवता के मंदिर में पूजाअर्चना करने के साथ देवता से सुहागरात मनाने का निवेदन करना होता था और मंदिर में रखे तख्तपोश पर सो कर ही लौटना होता था.
यों तो छोटी जाति के लोगों का मंदिर में घुसना मना था, लेकिन उन की नई दुलहन मंदिर में आ सकती थी.
गांव के राघव ने अपनी दुलहन को मंदिर में नहीं भेजा था. नतीजतन, उस की दुलहन 7वें दिन मरी पाई गई थी और वह पागल हो गया था.
भोलू और वीरमती को उन के मांबाप और गांव वालों ने बहुत सम झाबु झाकर ही भेजा था. मंदिर को जाती पहली सीढ़ी से आगे नई दुलहन के पति समेत किसी को भी जाने की इजाजत नहीं थी.
भोलू पहली सीढ़ी के पास जलाभुना सा खड़ा हो गया था. वीरमती मुड़मुड़ कर बहुत प्यार से उसे देखती एकएक सीढ़ी चढ़ती जाती थी. भोलू का दिल धड़क जाता था. उसे वीरमती का जाना भीतर ही भीतर कचोट रहा था.
वीरमती नंगे पैर बरामदे तक पहुंच गई थी. उस ने उस डरावनी जगह पर चारों ओर नजर दौड़ाई, फिर नीचे खड़े भोलू को देखने लगी.
भोलू ने उसे नीचे से हाथ हिला कर इशारा किया, तो वह मुसकरा उठी.
वीरमती हिम्मत के साथ मंदिर की ओर बढ़ गई. दरवाजे के पास रुक कर उस ने भीतर झांका. पहले तो उसे काफी अंधेरा जान पड़ा, पर कुछ देर बाद उतना अंधेरा नहीं लगा और डांभरी देवता की सफेद पिंडी उसे साफसाफ दिखाई देने लगी.
वीरमती ने देवता की पिंडी पर हार पहनाया और धूप जला कर धूपदान में रखी. फिर पिंडी के सामने हाथ जोड़ कर और आंखें बंद करते हुए धीमी आवाज में बोली, ‘‘हे देवता, आप अच्छे गुणों के स्वामी हैं. आप मेरे मातापिता भी हैं, पर आप के साथ होने वाली सुहागरात के बारे में सोचना भी मेरे लिए पाप है…
‘‘हे देवता, इस तरह की प्रथा को हटाओ. ऐसा नहीं होना चाहिए.’’
इसके बाद वीरमती तख्तपोश की ओर मुड़ी, तो उसे एक सरसराहट सी सुनाई दी.
वीरमती ने चौकन्ना हो कर इधरउधर देखा, पर कुछ दिखाई न दिया. फिर भी उस की धड़कनें कुछ बढ़ सी गई थीं, जिसे वह सन्नाटे और डरावने माहौल में महसूस करने लगी थी.
कुछ देर खड़े रहने पर वीरमती ने उस सरसराहट को मन का वहम सम झा और तख्तपोश पर सोने के लिए जाने लगी कि अचानक एक बड़े डीलडौल वाला नंगा आदमी उस पर झपट पड़ा. उस आदमी के चेहरे पर डरावना मुखौटा लगा था. उस के लंबे बाल उसे और भी भयानक बना रहे थे.
इस के पहले कि वीरमती की चीख निकलती, उस डरावने आदमी का एक हाथ वीरमती के मुंह पर चिपक गया, ताकि वह चीख न सके.
उस डरावने आदमी का दूसरा हाथ उस के कमरबंद खोलने को रेंगने लगा. उस आदमी की सांसें मुखौटे के पीछे से पूरे सन्नाटे में गूंजने लगीं.
वीरमती उस शख्स की मंसा समझ चुकी थी कि यह देवता नहीं, बल्कि कोई शैतान है. उसे भोलू का ध्यान आया और पूरी हिम्मत बटोर कर उस ने अपने दाएं हाथ से वह मुखौटा हटाया और बाएं हाथ से अपने बालों के जूड़े में छिपाया चाकू निकाल लिया.
नंगे आदमी का चेहरा देख कर वीरमती का शक यकीन में बदल गया कि वह गुर दितू था.
वीरमती जोर से चिल्लाई, ‘‘पापी, ले दरिंदगी की सजा,’’ और उस ने झट से गुर दितू की नाक काट दी.
भयंकर दर्द से बेहाल गुर दितू जोर से चिंघाड़ा. उस की चिंघाड़ दूर तक गूंज गई. दर्द से तड़पता हुआ अब तो वह हिंसक बाघ बन गया.
एक आदमी की चिंघाड़ सुन कर किसी अनहोनी के डर से भोलू पूरी ताकत लगा कर सीढि़यों पर चढ़ चला. पहली ही सीढ़ी से ऊपर न चढ़ने का नियम भंग होने की उसे कतई चिंता न थी.
इधर खून से लथपथ गुर दितू ने वीरमती को उठने न दिया. वह एक हाथ से उस का गला दबाने लगा, पर वीरमती का चाकू ‘खचाक’ से उस की कलाई पर चला और बंधन छूट गया.
भोलू हांफता हुआ मंदिर में पहुंच गया. कुछ देर तो उसे चूडि़यों की खनक के सिवा कुछ दिखाई नहीं दिया, पर फिर सबकुछ साफ नजर आने लगा.
भीतर का सीन देख कर वह सम झ गया और उस का खून खौल उठा. सकपका कर डरते हुए गुर दितू उठने लगा, पर वीरमती ने बालों से पकड़ कर उसे झक झोरना शुरू कर दिया.
भोलू ने आव देखा न ताव देवता की पिंडी के पास पड़ी तलवार उठा ली. वह गुर्राते हुए बोला, ‘‘ठहर जा शैतान, मैं आज तु झे जिंदा नहीं छोड़ूंगा. तेरा यह खेल अब हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा.’’
वीरमती द्वारा बालों से पकड़े नंगे गुर दितू को भोलू की जोर की लात पड़ी और वह दरवाजे पर गिर पड़ा.
भोलू ने तलवार सीधे उस की गरदन पर दे मारी, लेकिन वीरमती के रोकने से तलवार उस का कान काटती हुई दरवाजे में धंस गई.
‘‘इस शैतान को मार कर अपने सिर हत्या का जुर्म न लें. इस की करतूतों की सजा इसे गांव वाले और पुलिस देगी,’’ वीरमती ने प्यार से समझाते हुए कहा.
गुस्से से तड़पता भोलू न चाहते हुए भी मान गया. वे दोनों गुर दितू को बालों से घसीटते हुए मंदिर से बाहर ले चले, तो उन्होंने देखा कि गांव वालों का जमघट चढ़ाई चढ़ते हुए बड़ी तेजी से मंदिर की ओर ही आ रहा है.
अब गुर दितू गिड़गिड़ाते हुए उन से माफी मांगने लगा. वह अपने नंगे बदन को हाथों से ढकता और दर्द से कराहता भी जाता था. उस के कटे नाककान से खून निकलना बंद नहीं हो रहा था.
गुर दितू को नंगा देख कर कई औरतें चेहरा घुमा कर हंसने लगी थीं, जबकि वह सिर झुकाए उकड़ू बैठ गया था.
एक औरत ने गुर दितू की ओर अपना दुपट्टा फेंका, जिसे उस ने झट से लपक कर कमर पर लपेट लिया था.
इसी दौरान एक औरत ने अपनी चप्पल निकाल कर गुर दितू के सिर पर मारनी शुरू कर दी थी. जब वह थक गई, तो रोतेरोते उस ने गुर दितू द्वारा उस से किए कुकर्म की बात सभी को बता दी.
उस औरत ने यह भी बताया कि वीरमती को चाकू रखने की सलाह उसी ने दी थी. अनहोनी के डर से गांव वालों को भी वही साथ लाई थी.
डांभरी और टिक्करी गांव के लोग बहुत दुखी हुए. तभी सब से पीछे खड़ी 11 दिन पहले ब्याही रघु पंडित की बहू भी जोरजोर से रो पड़ी.
वह रोतेरोते बोली, ‘‘मंदिर में बेहोश होने पर भी इस दुराचारी ने मेरे साथ कुकर्म किया था.’’
उस के पति ने दिलासा दे कर उसे चुप कराया और नफरत से गुर दितू की ओर थूक दिया.
अब सब गांव वाले देवता के नाम पर हो रहे पाखंड को पूरी तरह जान गए थे. वे अपनी नासम झी और अनपढ़ता पर बहुत दुखी थे.
इस दौरान 5-6 नौजवानों ने औरतों के दुपट्टों से गुर दितू को बांध लिया था.
सभी गांव वालों ने एकमत हो कर गुर दितू और डांभरी देवता के चारों कारदारों को पुलिस के हवाले करने और उन का सामाजिक बहिष्कार करने का फैसला ले लिया.
दोनों गांवों के सरपंचों ने भंडारगृह का सारा अनाज गरीबों में बांटने और मंदिर के साथ भंडारगृह को भी हमेशा के लिए ताला लगाने का फैसला सुना दिया. अब वे सब गुर दितू को पकड़ कर गांव की ओर ले जाने लगे थे.
सालों से गांव का यह धूर्त पुजारी ऊंचनीच की बात कर के गांव वालों की औरतों को लूट रहा था. कुछ के तो उस से बच्चे भी हुए थे, गोरेचिट्टे.
मांएं यही सोच कर खुश रहती थीं कि पंडित की संतान हैं, तो उस के अगले जन्म तो सुधरेंगे. कई औरतें तो बाद में भी पुजारी की सेवा करने आती रहतीं और यही कहतीं कि देवता उन पर खुश हैं.
आज मेरी चोरी पकड़ ली गई थी. दिल धक से धड़क कर रह गया. वह सिर उठा कर अपनी बड़ीबड़ी गोलगोल आंखों से मुझे देख रही थी और मैं इस बात से लापरवाह कि रंगे हाथों पकड़ा गया हूं, उस की आंखों में डूब जाने की हद तक उस की नजर से नजर मिलाए हुए था.
मैं उस की आंखों की जद से बाहर तब निकला, जब उस ने एक पल को अपनी पलकें झपकाई थीं. उस समय मेरी आंखें उस के गुलाबी होंठों और संगमरमरी गरदन की राह से फिसल कर उस के बड़े उभारों पर उस तरह ठहर गईं, जैसे उठी हुई चोटियों ने किसी पर्वतारोही का रास्ता रोक दिया हो.
इस समय वह ऊपर की तरफ देख रही थी, इसलिए यों लगा कि किसी परी के सीने पर 2 उजले कबूतर बैठे हैं, जो बस पंख फड़फड़ा कर उड़ना चाहते हैं.
मेरी आंखें उन उजले कबूतर के जोड़े में ही उलझी हुई थीं कि उस ने मेरी आंखों की शरारत को पहचान लिया और अगले ही पल अलगनी पर टंगे तौलिए से उस ने अपने बदन को ढक लिया.
उस समय मुझे यों लगा जैसे कबूतर किसी शिकारी की आहट पर अपने दड़बे में दुबक गए हों.
दुबक तो मैं गया था. 16 साल के मेरे मन ने समझ लिया था कि तूफान आएगा और इसी तूफान के डर से मैं तमाम दिन दबासहमा अपने कमरे में दुबका रहा. दिन ढल के शाम आ चुकी थी, पर तूफान ने अब तक दस्तक नहीं दी थी.
रात का अंधेरा अब पूरी तरह छा चुका था. मैं ने देखा कि वह दीदी के साथ घर आ गई थी. सच पूछो तो मैं उस का इंतजार भी करता था. इंतजार तो आज भी कर रहा था, पर उसे देखते ही मेरा दिल धड़क गया था.
ट्यूबलाइट की दूधिया रोशनी में उस की पहनी हुई सफेद उजली शर्ट उस की गोरी रंगत में चार चांद लगा रही थी और रात के अंधेरे की कालिमा उस की पहनी हुई काली सलवार से आंखें लड़ा कर उस की जुल्फों की काली रंगत में इजाफा कर रही थी.
‘‘ऋषि, जरा एक गिलास पानी तो पिलाना,’’ जब उस ने यह कहा, तो मेरा ध्यान टूटा.
पानी देते समय जब उस की उंगलियां मेरे हाथ से टकरा रही थीं, तब मेरे दिल में यह सोच बुलंदी पर थी कि अब वह मेरी दीदी के सामने ही मुझ से मेरी चोरी का जिक्र करेगी, पर उस ने ऐसा नहीं किया और थोड़ी देर में वह चली गई.
बीए फाइनल ईयर के एग्जाम दे कर वह अपने मामा के घर गरमियों की छुट्टियां बिताने आई थी. मेरे और उस के मामा का घर बिलकुल अगलबगल था.
वह 19-20 साल की एक गोरी, छरहरी और खूबसूरत लड़की थी. उस का नाम ज्योति था.
ज्योति के मामा के घर बाथरूम नहीं था, इसलिए वह नहाने के लिए मेरे घर आ जाया करती थी.
एक दिन जब वह बाथरूम में थी, मैं अपने बेचैन दिल के साथ टहलते हुए छत पर पहुंच गया. छत पर टहलते हुए मेरी नजर बाथरूम की छत के उस हिस्से पर पड़ी, जिसे पापा ने दूसरी मंजिल पर पानी ले जाने के लिए नल का इंतजाम करवाने के लिए ठीक किया था. इस समय वह हिस्सा एक टीन के टुकड़े से ढका था.
मैं ने धड़कते दिल से घुटनों के बल बैठ कर टीन के टुकड़े को हलका सा एक तरफ सरका दिया. मेरी नजरों ने नीचे बाथरूम में झांका और मुझे यों
लगा जैसे बाथरूम में कमल का फूल खिला हो.
फिर तो यह मेरा रोज का शगल हो गया. उधर ज्योति मलमल कर नहाती रहती और इधर में उस के रूप सागर में डुबकी लगाता रहता.
पर आज वह कुछ देर से आई. मैं तो उस का इंतजार ही कर रहा था. उस के बाथरूम में जाने के कुछ देर बाद मैं ने छत पर जा कर टीन को सरकाया, पर तभी सूरज की रोशनी हजार वाट के बल्ब की तरह बाथरूम में कौंधी.
ज्योति ने चौंक कर रोशनी आने के रास्ते को देखा तो वहां पर मुझे उकड़ू बैठा पाया. मेरी चोरी आज उस के सामने थी, पर अब तक उस ने इस का जिक्र किसी से नहीं किया, यहां तक कि मुझ से भी नहीं.
एक शाम को मैं घर पर अकेला कुछ लिख रहा था. लिखतेलिखते अचानक मुझे लगा जैसे सामने कोई बैठा है. नजरें उठाईं, तो सामने ज्योति थी.
‘‘क्या लिख रहे हो?’’ पूछते हुए उस ने वह कागज अपनी ओर खींच लिया.
उस कागज के टुकड़े पर मैं ने क्या लिखा था, सिवा उस के नाम ‘ज्योति’ के.
ज्योति ने तह कर के वह कागज अपनी स्कर्ट की जेब में रख लिया और फिर मुसकरा कर बोली, ‘‘हमें भी वह जगह दिखाओ, जहां से तुम हमें देखा करते थे.’’
उस की बात सुन कर मेरा दिल धड़क उठा. वह छत की तरफ जाने वाले जीने की तरफ चल दी और मैं उस पीछे.
खिलते तारों की उस रात को हम दोनों एकदूसरे की बांहों में थे. ज्योति भले ही मुझ से बड़ी थी, पर वह भी सैक्स से अनजान ही थी. और मेरी तो बात ही क्या, मैं ने तो सोलह ही सावन देखे थे.
खुले आसमान तले हम एकदूसरे को पाने को उतावले थे, पर हमारी नादानी हमारा इम्तिहान ले रही थी.
मुझे अपने सीने में भींच कर ज्योति बोली, ‘‘ऋषि…’’ और उस के होंठों से निकले मेरे नाम की गरमी ने कामयाबी की राह मजबूत कर दी.
रात के तकरीबन 8 बज रहे थे. पटना शहर के शिवपुरी इलाके में अमूमन इस समय काफी चहलपहल रहती है, लेकिन उस दिन बारिश के मौसम ने सभी को घरों में सिमट जाने के लिए मजबूर कर दिया था. यही वजह थी कि सड़कें सुनसान पड़ी थीं. आसमान में कालेकाले बादलों ने शाम से ही डेरा जमा लिया था.
26 साल का गोरा, तंदुरुस्त नौजवान रुद्र प्रताप गाड़ी चला रहा था. बगल वाली सीट पर उस का खास दोस्त आदित्य बैठा था, जो देखने में सांवले रंग का इकहरे बदन का नौजवान था. रेडियो पर गाना बज रहा था ‘भीगीभीगी सड़कों…’ और दोनों साथसाथ मस्ती में गाए भी जा रहे थे…
“यार रुद्र, क्या मस्त मौसम है, क्या शानदार गाना है, ऐसे में बस किसी अपने का साथ हो जाए तो जिंदगी में मजा आ जाए…” आदित्य ने खिड़की के कांच को नीचे कर बाहर की ओर देखते हुए कहा.
“देख, अपनेवपने का मैं नहीं जानता, पर… अच्छा, चल तेरे सामने जो बक्सा है उसे खोल,” रुद्र प्रताप ने दोस्त के मूड का खयाल रखते हुए कहा.
आदित्य ने बड़े जोश से बक्सा खोला और उछल पड़ा, “तू न सचमुच कमाल है कमाल… लेकिन ड्रिंक ऐंड ड्राइव… पकड़े गए तो?”
आदित्य एक साधारण परिवार का लड़का था. उसे दुनियादारी की खूब समझ थी, पर रुद्र प्रताप करोड़पति पिता का एकलौता बेटा था.
“कुछ नहीं होता, बस जेब में करारे नोटों की गड्डी होनी चाहिए… अब तू ज्ञान ही देगा या मजे भी करेगा…” रुद्र प्रताप को अपने पिता के पैसों पर बहुत घमंड था, यह उस की इस बात से साफ जाहिर हो रहा था.
“कुछ खाने के लिए नहीं है?” आदित्य ने शराब की बोतल को आगेपीछे देखते हुए कहा.
“पीछे की सीट पर देख…” रुद्र प्रताप ने पीछे की ओर इशारा करते हुए कहा.
“आज तो बस हम मजे ही मजे करेंगे. एक काम करते हैं तेरे औफिस वाले फ्लैट पर चलते हैं,” आदित्य ने सुझाव दिया.
“तू जैसा कहे…” रुद्र प्रताप ने हामी भरी.
‘भीगीभीगी सड़कों…’ दोनों एकदूसरे की ओर देख कर फिर से गाने लगे.
“यार रुद्र, इस गाने के साथ मेरे जज्बात कुछ ज्यादा ही मचल रहे हैं,” आदित्य ने चेहरे पर शैतानी मुसकान लाते हुए कहा.
“हां यार, मेरे भी…” रुद्र प्रताप ने आंख मारी.
अचानक तभी उन्हें सड़क किनारे 2 लड़कियां खड़ी दिखाई दीं, जो इस तेज बारिश में लोगों से मदद मांग रही थीं.
“दीदी, बहुत ठंड लग रही है, जल्दी से घर चलो न…” बारिश में भीगती बिन्नी ने ठिठुरते हूए खुद को अपनी बड़ी बहन पूर्वी से चिपकाते हुए कहा.
“मैं समझ रही हूं बिन्नी, पर तुझे भी क्या जरूरत थी सुबह मेरे साथ ईंट भट्ठे पर आने की, अब कोई सवारी मिले तो चलूं न,” परेशान पूर्वी ने चेहरे से पानी पोंछते हुए जवाब दिया. उस समय उस का पूरा ध्यान सड़क पर आजा रही गाड़ियों पर था.
“मरते समय बापू ने मुझ से वचन लिया था कि मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूं… उस का क्या?” बिन्नी ने ठिठुरते हुए भी जबाव दिया.
यह बात सुनते ही पूर्वी ने अपनी बहन के माथे को स्नेह से चूम लिया. 18 साल की पूर्वी अपनी 11 साल की बहन बिन्नी और मां के साथ शहर के भीतरी हिस्से में बनी झुग्गी बस्ती में रहती थी. उस की खूबसूरती में कोई कमी न थी, पर वह खूबसूरती लोगों को न दिखे, इस की कोशिश खूब होती थी. इस के लिए लोगों से कम बात करना, चिढ़ कर जबाव देना, बातबेबात पत्थर चला देना जैसी बेतुकी बातें शामिल थीं.
ऐसा पहले नहीं था, पर पिछले साल पिता की मौत होते ही ऐसे लोगों की लाइन लग गई थी, जो पूर्वी की मजबूरी का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे थे. अपने स्वाभिमान का खयाल रखते हुए वह ईंट भट्ठे पर बहीखाते के काम पर लग गई थी. उस ने सरकारी स्कूल में 10वीं जमात तक पढ़ाई भी की थी.
आज भी पुर्वी वहीं से लौट रही थी. रास्ते में बीमार मां के लिए दवाएं खरीदने लगी, तभी ईंट भट्ठे की ओर से निकलने वाली आखिरी बस छूट गई थी. नतीजतन, दोनों बहनें पैदल ही घर की ओर चल पड़ी थीं. उन्हें उम्मीद थी कि रास्ते में कोई न कोई इंतजाम हो ही जाएगा. लेकिन बरसात ने समस्या को बढ़ा दिया था.
तभी रुद्र प्रताप और आदित्य की गाड़ी वहां से गुजरी. दोनों लड़कों ने एकदूसरे की ओर शरारत भरी निगाहों से देखा और गाड़ी रोक दी. तब तक पूर्वी कार की खिड़की तक आ चुकी थी.
“झुग्गी बस्ती तक छोड़ देंगे बाबू…”
पूर्वी ने हाथ जोड़ कर कहा.
बारिश में भीगती हुई लड़की, चेहरा पानी में धुल कर चमक रहा था. रुद्र प्रताप और आदित्य की मुंहमांगी मुराद जैसे सामने खड़ी थी.
‘हांहां, क्यों नहीं…’ दोनों एकसाथ बोल पड़े.
पीछे का दरवाजा खोल दिया गया. पूर्वी अपनी बहन के साथ गाड़ी में बैठ गई. गाड़ी चलने लगी. दोनों ने सामने के मिरर से पूर्वी को निहारा.
रुद्र प्रताप ने स्टेयरिंग से हाथ हटा कर आदित्य की ओर बढ़ाया. आदित्य ने इशारे को समझ उस के हाथ को गरमाहट से थाम लिया.
उस समय पूर्वी का परेशान चेहरा घुंघराले बालों से ढका हुआ था, केवल पतले होंठ, जो बारिश में भीगने के चलते और भी गुलाबी हो गए थे, वही उन्हें दिख रहे थे. दोनों की बांछें ऐसे खिल गईं, जैसे पूर्वी उन्हीं के लिए आई हो.
“दीदी, पानी…” बिन्नी ने कराहते हुए कहा. बिन्नी का बुखार बढ़ता ही जा रहा था. होंठ सूख गए थे.
“बस, थोड़ी देर और बिन्नी…” कहते हुए पूर्वी ने अपने भीगे दुपट्टे से उस का चेहरा पोंछा.
दोनों लड़कों की दहकती निगाहें अब भी पूर्वी से चिपकी हुई थीं.
“दीदी, पानी…” और बिन्नी बेहोश हो गई.
“बिन्नी… बिन्नी…” पूर्वी ने जोर से आवाज लगाई.
बिन्नी का शरीर जैसे ढीला पड़ गया था. पूर्वी ने अपनी बहन को सीने से भींच लिया. बिन्नी का शरीर भट्ठी की तरह तप रहा था. पूर्वी उस के शरीर की गरमी को अपने अंदर ले लेना चाहती थी. वह परेशान लड़की किसी से और मदद नहीं लेना चाहती थी, अपनेआप ही इस परेशानी को सुलझाना चाहती थी.
रुद्र प्रताप और आदित्य, जो अब तक औफिस वाले फ्लैट की प्लानिंग में उलझे हुए थे, बिन्नी के बेहोश होते ही जैसे होश में आ गए.
‘क्या हुआ है बिन्नी को?’ दोनों ने एकसाथ पूछा.
बेचैन पूर्वी ने इसी तरह अपने पिता को खो दिया था. उस दिन भी उस के पिता ने भी उसी की गोद में लेटे हुए आखिरी सांस ली थी. उसे वह सीन याद आने लगा और वह एक अलग ही दुनिया में खो गई.
तब तक रुद्र प्रताप ने गाड़ी रोक दी. वे दोनों पीछे आए. अचानक पूर्वी को खतरा सामने दिखने लगा, जिस के लिए वह कुछ हद तक तैयार भी थी.
पूर्वी ने बाएं हाथ से अपना चाकू, जिसे वह हमेशा अपनी कमर में खोंसे रखती थी, कस कर थामा लिया, लेकिन उस की जरूरत नहीं पड़ी.
गाड़ी में हलचल मच गई. पीछे की सीट पर आते ही रुद्र प्रताप ने बिन्नी के माथे को छुआ. आदित्य बिन्नी की हथेली और पैर को मलने लगा. इतने में रुद्र प्रताप जल्दी जा कर आगे से पानी की बोतल ले आया और बूंदबूंद पानी बिन्नी के अधखुले होंठों पर लगातार गिराने लगा. आदित्य अब भी उस के हाथपैर मल रहा था.
“डाक्टर अंकल को फोन कर,” आदित्य ने रुद्र प्रताप से कहा.
“हां, किया था मैं ने, नैटवर्क नहीं मिल रहा…” रुद्र प्रताप ने एक बार फिर नंबर डायल करते हुए कहा.
“चल, बिन्नी को क्लिनिक ले कर चलते हैं,” आदित्य ने तेजी दिखाई.
“ठीक है,” कहते हुए रुद्र प्रताप आगे आ गया.
पूर्वी अभी भी चाकू थामे जड़वत उन दोनों की सारी बातें सुन रही थी.
क्लिनिक बंद होने ही वाला था. रात काफी गहरी हो चुकी थी.
“अंकल, प्लीज… थोड़ा देखिए न, बिन्नी को क्या हो गया…” रुद्र प्रताप ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.
डाक्टर बिना कुछ पूछे बिन्नी का मुआयना करने लगे और बोले, “सिस्टर, इन्हें वार्ड में ले चलो…”
थोड़ी देर बाद डाक्टर ने वार्ड से बाहर आ कर बताया, “घबराने की कोई बात नहीं है. कमजोरी, बुखार और भूखप्यास की वजह से बिन्नी बेहोश हो गई थी. सलाइन दी जा रही है, जल्दी ही उसे होश आ जाएगा…. हां, अगर और देर हो जाती तो मामला बिगड़ सकता था.”
वे रुद्र प्रताप के फैमिली डाक्टर थे. वे तीनों रातभर वहीं रहे. गाड़ी में रखी खाने की चीजें तीनों ने मिलबांट कर खाईं.
सुबह तक बिन्नी को होश आ गया था. रुद्र प्रताप तो उन्हें उन के घर तक छोड़ना चाहता था, पर पूर्वी ने मना कर दिया.
पूर्वी ने उन दोनों का शुक्रिया अदा करना चाहा, पर उस से पहले ही रुद्र प्रताप बोल उठा, “देखो, थैंक्यू मत कहना. जो भी हुआ वह इनसानियत थी, उस के आगे कुछ नहीं.”
वे दोनों बहनें वहां से जाने ही वाली थीं कि पीछे से रुद्र प्रताप ने कहा, “पूर्वी, चाकू का इस्तेमाल सही जगह पर जरूर करना.”
यह सुन कर पूर्वी झेंप गई. उसे लगा कि उस की चोरी पकड़ी गई है. उस ने मुसकराते हुए अपनी नजरें झुका लीं और फिर एक नजर रुद्र प्रताप और आदित्य की तरफ देखते हुए वह घर की ओर चल दी.