Story in hindi
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अकसर शाम को मैं ने उसे गांव के अंदर से बाहर शौच को जाते समय देखा था. सिंदूर की बड़ी सी सुर्ख बिंदी लगाए हुए. उस के नीचे हमेशा चंदन का टीका लगा रहता था. यही कोई होगी साढ़े 5 फुट लंबी. गांव में औरतें इतनी लंबी कम ही होती हैं.
वैसे तो उसे बहुत खूबसूरत नहीं कहा जा सकता, पर गोरी होने के चलते मोटे नैननक्श भी ज्यादा बुरे नहीं लगते थे. बड़ी सी सिंदूर वाली बिंदी उस पर खूब फबती है. शायद इसलिए ही उस की ओर ध्यान खिंच जाता है सब का खासकर मर्द तो एक बार पलट कर देखता जरूर था, फिर चाहे कोई जवान हो या बुजुर्ग. इतनी खूबसूरत न होने पर भी कशिश तो थी, ऊपर से हंस कर बोल जाती तो थोड़ी खुरदरी जबान भी फूल ही बिखेरती आदमी जात पर.
एक बात और यह कि अपनेआप को ज्यादा खूबसूरत दिखाने के लिए वह शायद काली प्रिंट की साड़ियां ज्यादा ही पहनती है, पर वे उस पर जमती भी हैं. अरे, एक खासीयत और रह गई न उस की बाकी, वह अपने पैर बहुत ही साफसुथरे रखती है.
गांव में अकसर औरतों के पैर गंदे और एड़ियां फटी ही देखी हैं, पर लगता है कि वह दिन में कई बार रगड़ती होगी, इसलिए ही तो कांच सी चमकदार हुई रहती हैं उस की एड़ियां ऊपर से, जिन में चांदी की बड़ीबड़ी पाजेब पहने रहती है. झनकझनक चलती तो दूर से पहचान हो जाती और ऊपर से इठलाइठला कर चलना तो लगता कहर ही है.
हां, यही सही में सेठजी की घरवाली है. सेठ धनपत लाल की शादी के तकरीबन 10 बरस बाद भी उस का मूंग भी मैला नहीं हुआ. जैसी आई थी, अब भी वैसी ही है. न मोटी हुई, न पतली.
इतनी धनदौलत है कि चाहे तो धन के कुल्ले करे धनपत लाल. उस के पास बस कमी है तो आंगन में खेलने वाले की, नन्ही किलकारी के गुंजन की. अरे मतलब, अब तक सेठानी की गोद खाली है. शुरू के 5-6 साल तो खेलतेखाते निकल ही गए, मगर अब सेठजी की मां आएदिन ताने देती रहती है.
लोग भी बीच रास्ते में कानाफूसी करते हैं कि सेठ दूसरी औरत लाने के जुगाड़ में है. आतेजाते लोग सेठजी की तारीफ में चुटकी लेले कर कह ही देते हैं कि धनपत लाल तो तराजू पर ध्यान देते हैं, घरवाली पर नहीं.
कुछ लोग बोलते कि गढ़ी के दरवाजे के पास सट्टे हवेली से सुबह अंधेरे एक औरत को निकलते देखा. साफसाफ तो नहीं दिख रही थी, कदकाठी से धनपत लाल की ही घरवाली लग रही थी.
किसी ने सवाल किया कि वह तो लखन सिंह का घर है, वहां क्या करने जाएगी सेठ धनपत की घरवाली? इसी तरह बात आईगई हो गई, पर जब भी मैं उसे देखती, मुझे लगता कि वह अपना दर्द शायद बड़ी सी बिंदी के पीछे छिपाए घूम रही थी.
सुनने में आ रहा था कि अकसर धनपत लाल और उस की घरवाली के बीच कुछ महीनों से झगड़े बढ़ रहे हैं. आए 2-4 दिन में वह देर रात झगड़ा कर कहीं चली जाती है. सास अपनी बहू को ढूंढ़ती रहती है और भोर होते ही वह वापस आ जाती है.
कुछ महीनों तक तो वही सब चलता रहा, अचानक एक दिन सुनने में आया कि इतने बरसों के बाद धनपत लाल की घरवाली के पैर भारी हैं. पूरे गांव में खुशी की लहर है. जहां देखो, वहां वही चर्चा. दुकान पर तो जो भी गया, मिठाई खाए बगैर कैसे आ जाता भला.
अब लड़ाईझगड़े खत्म हो गए थे. रूठ कर जानाआना तो शायद बरसों पहले की बात हो गई. सुना है कि सास तो बहू की सेवा में हाजिर ही खड़ी रहती है. बढ़ते पेट के साथ खुशी में देखतेदेखते कब 9 महीने निकल गए, पता ही नहीं चला.
आज जब गांव में पटाखे चले, बंदूकें चलीं तो पता चला कि सेठ धनपत के बेटा हुआ है.
समय पंख लगा कर उड़ गया. मैं ने आज अचानक देखा, वही बड़ी सी बिंदी लगाए नीचे चंदन का तिलक लगा कर वही की वही शाम को काले फ्लौवर वाली प्रिंट की साड़ी पहने आ रही थी धीरेधीरे.
पल्लू पकड़े एक गोराचिट्टा गोलमटोल सिर पर जूड़ा बांधे आंखों में काजल लगाया हुआ बालक. काजल इतना बड़ा शायद इसलिए कि किसी की नजर न लग जाए उस के अनमोल लाल को.
वह मस्त मदमाती हथिनी सी चल रही थी. उसे देख कर लग रहा था कि जो भी चमक आज उस की बिंदिया में है, वह मां बन कर आ गई या फिर सेठ धनपत लाल को वारिस दे कर.
‘‘सुनती हो चंपा?’’
‘‘क्या बात है? दारू पीने के लिए पैसे चाहिए?’’ चंपा ने जब यह बात कही, तब विनोद हैरानी से उस का मुंह ताकता रह गया.
विनोद को इस तरह ताकते देख चंपा फिर बोली, ‘‘इस तरह क्या देख रहा है? मु झे पहले कभी नहीं देखा क्या?’’
‘‘मतलब, तुम से बात करना भी गुनाह है. मैं कोई भी बात करूं, तो तुम्हें लगता है कि मैं दारू के लिए ही पैसा मांगता हूं.’’
‘‘हां, तू ने अपना बरताव ही ऐसा कर लिया है. बोल, क्या कहना चाहता है?’’
‘‘लक्ष्मी होटल में धंधा करते हुए पकड़ी गई.’’
‘‘हां, मु झे मालूम है. एक दिन यही होना था. वही क्या, पूरी 10 औरतें पकड़ी गई हैं. क्या करें, आजकल औरतों ने अपने खर्चे पूरे करने के लिए यह धंधा बना लिया है. लक्ष्मी खूब बनठन कर रहती थी. वह धंधा करती है, यह बात तो मुझे पहले से मालूम थी.’’
‘‘तु झे मालूम थी?’’ विनोद हैरानी से बोला.
‘‘हां, बल्कि वह तो मुझ से भी यह धंधा करवाना चाहती थी.’’
‘‘तुम ने क्या जवाब दिया?’’
‘‘उस के मुंह पर थूक दिया,’’ गुस्से से चंपा बोली.
‘‘यह तुम ने अच्छा नहीं किया?’’
‘‘मतलब, तुम भी चाहते थे कि मैं भी उस के साथ धंधा करूं?’’
‘‘बहुत से मरद अपनी जोरू से यह धंधा करा रहे हैं. जितनी भी पकड़ी गईं, उन में से ज्यादातर को धंधेवाली बनाने में उन के मरदों का ही हाथ था,’’ विनोद बोला.
‘‘वे सब निकम्मे मरद थे, जो अपनी जोरू की कमाई खाते हैं. आग लगे ऐसी औरतों को…’’ कह कर चंपा झोंपड़ी से बाहर निकल गई.
चंपा जा जरूर रही थी, मगर उस का मन कहीं और भटका हुआ था.
चंपा घरों में बरतन मांजने का काम करती थी. जिन घरों में वह काम करती है, वहां से उसे बंधाबंधाया पैसा मिल जाता था. इस से वह अपनी गृहस्थी चला रही थी.
चंपा की 4 बेटियां और एक बेटा है. उस का मरद निठल्ला है. मरजी होती है, उस दिन वह मजदूरी करता है, वरना बस्ती के आवारा मर्दों के साथ ताश खेलता रहता है. उसे शराब पीने के लिए पैसा देना पड़ता है.
चंपा उसे कितनी बार कह चुकी है कि तू दारू नहीं जहर पी रहा है. मगर उस की बात को वह एक कान से सुनता है, दूसरे कान से निकाल देता है. उस की चमड़ी इतनी मोटी हो गई है कि चंपा की कड़वी बातों का उस पर कोई असर नहीं पड़ता है.
जो 10 औरतें रैस्टहाउस के पकड़ी गई थीं, उन में से लक्ष्मी चंपा की बस्ती के मांगीलाल की जोरू है.
पुरानी बात है. एक दिन चंपा काम पर जा रही थी. कुछ देरी होने के चलते उस के पैर तेजी से चल रहे थे. तभी सामने से लक्ष्मी आ गई थी. वह बोली थी, ‘कहां जा रही हो?’
‘काम पर,’ चंपा ने कहा था.
‘कौन सा काम करती हो?’ लक्ष्मी ने ताना सा मारते हुए ऊपर से नीचे तक उसे घूरा था.
तब चंपा भी लापरवाही से बोली थी, ‘5-7 घरों में बरतन मांजने का काम करती हूं.’
‘महीने में कितना कमा लेती हो?’ जब लक्ष्मी ने अगला सवाल पूछा, तो चंपा सोच में पड़ गई थी. उस ने लापरवाही से जवाब दिया था, ‘यही कोई 4-5 हजार रुपए महीना.’
‘बस इतने से…’ लक्ष्मी ने हैरान हो कर कहा था.
‘तू सम झ रही है कि घरों में बरतन मांज कर 10-20 हजार रुपए महीना कमा लूंगी क्या?’ चंपा थोड़ी नाराजगी से बोली थी.
‘कभी देर से पहुंचती होगी, तब बातें भी सुननी पड़ती होंगी,’ जब लक्ष्मी ने यह सवाल पूछा, तब चंपा भीतर ही भीतर तिलमिला उठी थी. वह गुस्से से बोली थी, ‘जब तू सब जानती है, तब क्यों पूछ रही है?’
‘‘तू तो नाराज हो गई चंपा…’’ लक्ष्मी नरम पड़ते हुए बोली थी, ‘इतने कम पैसे में तेरा गुजारा चल जाता है?’
‘चल तो नहीं पाता है, मगर चलाना पड़ता है,’ चंपा ने जब यह बात कही, तब वह भीतर ही भीतर खुश हो गई थी.
‘अगर मेरा कहना मानेगी तो…’ लक्ष्मी ने इतना कहा, तो चंपा ने पूछा था, ‘मतलब?’
‘तू मालामाल हो सकती है,’ लक्ष्मी ने जब यह बात कही, तब चंपा बोली थी, ‘कैसे?’
‘अरे, औरत के पास ऐसी चीज है कि उसे कहीं हाथपैर जोड़ने की जरूरत नहीं पड़े. बस, थोड़ी मर्यादा तोड़नी पड़ेगी,’ चंपा की जवानी को ऊपर से नीचे देख कर जब लक्ष्मी मुसकराई, तो चंपा ने पूछा था, ‘क्या कहना चाहती है.’
‘नहीं सम झी मेरा इशारा…’ फिर लक्ष्मी ने बात को और साफ करते हुए कहा था, ‘अभी तेरे पास जवानी है. इन मर्दों से मनचाहा पैसा हड़प सकती है. ये मरद तो जवानी के भूखे होते हैं.’
‘तू मुझ से धंधा करवाना चाहती है?’ चंपा नाराज होते हुए बोली थी.
‘‘क्या बुराई है इस में? हम जैसी कितनी औरतें धंधा कर रही हैं और हजारों रुपए कमा रही हैं. फिर आजकल तो बड़े घरों की लड़कियां भी अपना खर्च निकालने के लिए यह धंधा कर रही हैं,’’ लक्ष्मी ने यह कहा, तो चंपा आगबबूला हो उठी और गुस्से से बोली थी, ‘एक औरत हो कर ऐसी बातें करते हुए तु झे शर्म नहीं आती?’
‘शर्म गई भाड़ में. अगर औरत इस तरह शर्म रखने लगी है, तो हमारे मरद हम को खा जाएं. एक बार यह धंधा अपना लेगी न, तब देखना तेरा मरद तेरे आगेपीछे घूमेगा,’ लक्ष्मी ने जब चंपा को यह लालच दिया, तब वह गुस्से से बोली थी, ‘ऐसी सीख मु झे दे रही है, खुद क्यों नहीं करती है यह धंधा?’
‘तू तो नाराज हो गई. ठीक है, अपने मरद के सामने सतीसावित्री बन. जब पैसे की बहुत जरूरत पड़ेगी न, तब मेरी यह बात याद आएगी,’ कह कर लक्ष्मी चली गई थी.
आज लक्ष्मी धंधा करती पकड़ी गई. धंधा तो वह बहुत पहले से ही कर रही थी. सारी बस्ती में यह चर्चा थी.
जब चंपा मिश्राइन के बंगले पर पहुंची, तब मिश्राइन और उस के पति ड्राइंगरूम में बैठे बातें कर रहे थे.
चंपा के पहुंचते ही मिश्राइन जरा गुस्से से बोली, ‘‘चंपा, आज तो तुम ने बहुत देर कर दी. क्या हुआ?’’
चंपा चुप रही. मिश्राइन फिर बोली, ‘‘तू ने जवाब नहीं दिया चंपा?’’
‘‘क्या करूं मेम साहब, आज हमारी बस्ती की लक्ष्मी धंधा करते हुए पकड़ी गई.’’
‘‘उस का अफसोस मनाने लगी थी?’’ मिश्राइन बोली.
‘‘अफसोस मनाए मेरी जूती…’’ गुस्से से चंपा बोली, ‘‘सारी बस्ती वाले उस पर थूथू कर रहे हैं. अच्छा हुआ कि वह पकड़ी गई.
‘‘तेरे आने के पहले उसी पर चर्चा चल रही थी…’’ मिश्राजी बोले, ‘‘लक्ष्मी भी क्या करे? पैसों की खातिर ऐसी झुग्गी झोंपड़ी वाली औरतों ने यह धंधा बना लिया है.’’
मिश्राजी ने जब यह बात कही, तब चंपा की इच्छा हुई कि कह दे, ‘आप जैसे अमीर घरों की औरतें भी गुपचुप तरीके से यह धंधा करती हैं,’ मगर वह यह बात कह नहीं सकी.
वह बोली, ‘‘क्या करें बाबूजी, हमारी बस्ती में एक औरत बदनाम होती है, यह धंधा करती है, मगर उस के पकड़े जाने पर सारी बस्ती की औरतें बदनाम होती हैं.’’ इतना कह कर चंपा बरतन मांजने रसोईघर में चली गई.
सूर्या ने परफ्यूम की बोतल को ही तकरीबन खाली कर दिया. अगर वह किसी लड़की से मिलने जा रहा हो, तब तो कहने ही क्या. उसे ब्लाइंड डेट का रिवाज बेहद भाता है. आजकल कितनी ही औनलाइन साइटें हैं, जो इस तरह की डेट सैट करने में काफी मदद कर देती हैं.
सूर्या आज पहली बार ब्लाइंड डेट पर नहीं जा रहा है. हां, लेकिन आज की डेट का नाम उसे बहुत लुभा रहा है… चेरी. होटल के बेसमैंट में रैस्टोरैंट था. एक कोने की टेबल पहले ही रिजर्व थी. एक लड़की वहां पहले से ही बैठी थी.
‘‘माफ कीजिए चेरी, मुझे देर हो गई क्या? या फिर आप को मुझ से भी ज्यादा जल्दी थी?’’ तिरछी मुसकान लिए सूर्या फ्लर्ट करने में माहिर था.
‘‘नहीं, मैं ही कुछ जल्दी आ गई. वह नया फ्लाईओवर खुल गया है न, सो आने में समय ही नहीं लगा,’’ चेरी भी बातचीत करने लगी.
शाम का रंग बढ़ने लगा और अपना परिचय देने के बाद वे दोनों एकदूसरे की पसंदनापसंद पर बात करने लगे.
सूर्या एक प्राइवेट हवाईजहाज कंपनी में पायलट था और चेरी एक मैनेजमैंट इंस्टीट्यूट में बिजनैस मैनेजमैंट पढ़ाती थी.
‘‘तुम्हारा इतना लजीज नाम किस ने रखा वैसे, चेरी मेरा पसंदीदा फल है. देखते ही जी चाहता है कि गप से मुंह में रख लूं,’’ सूर्या अपनी आदत के मुताबिक फ्लर्ट किए जा हा था.
चेरी भी शरमाने के बजाय आग में घी डाल रही थी. वह बोली, ‘‘अपने मन को ज्यादा नहीं तरसाना चाहिए. लेकिन यहां सब के सामने नहीं. कहो तो होटल में चलते हैं. वहां जितना जी चाहे, उतनी ‘चेरी’ खा लेना.’’
सूर्या फटी आंखों से चेरी को ताकता रह गया, फिर आननफानन उठा और बोला, ‘‘तो चलो.’’
दोनों होटल में गए. सूर्या रिसैप्शन पर जाने लगा, तो चेरी ने हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया और बोली, ‘‘मेरे नाम पर एक कमरा बुक है.’’
‘‘ओह, वैरी फास्ट,’’ जुमला कस कर सूर्या चेरी के पीछेपीछे हो लिया.
अब वे दोनों चेरी के कमरे में थे.
‘‘तुम बैठो, मैं हाथमुंह धो कर आई,’’ कहते हुए चेरी बाथरूम में चली गई.
सूर्या आया तो था सिर्फ एक दोस्ती भरी गपशप के लिए, लेकिन उस की अचानक लौटरी लग गई. लड़की खुद न्योता देते हुए उसे अपने कमरे तक ले आई थी.
सूर्या ने कमरे की खिड़की पर परदे डाल दिए और बत्तियां बंद कर दीं. अब कमरा हलकी पीली रोशनी से जगमगा रहा था.
तभी बाथरूम का दरवाजा खुला. चेरी एक छोटी सी लाल पोशाक में खड़ी इतराने लगी. सूर्या ने बांहें पसार दीं. चेरी मटकते हुए उन बांहों में समा गई. दोनों धप से बिस्तर पर गिरे.
सूर्या चेरी को बेतहाशा चूमने लगा. उस के हाथ चेरी के बदन पर दौड़ने लगे.
चेरी सूर्या की कमीज उतारने लगी. कुछ ही देर में सूर्या की कमीज और पैंट कमरे की कुरसी पर पड़े थे.
अब सूर्या की बारी थी. उस ने चेरी की पोशाक की जिप पर अपनी उंगली फिराई ही थी कि कमरे का दरवाजा खड़का.
उन दोनों के बिना खोले ही दरवाजा खुला और पुलिस की वरदी में एक आदमी सामने खड़ा था.
यह देख सूर्या हैरान रह गया. उस ने चेरी की ओर देखा. वह शांति से बिस्तर पर बैठी रही.
उस पुलिस वाले ने सूर्या के गाल पर एक तमाचा जड़ पर दिया. सूर्या का चेहरा झन्ना उठा.
‘‘हर जगह को बाजार समझ रखा है क्या? अच्छे घरों के लोगों का यह हाल है. बताओ, पढ़ेलिखे होते हुए भी…’’ कहते हुए वह पुलिस वाला कमरे की छानबीन करने लगा.
‘‘नहीं सर, आप गलत समझ रहे हैं. हम दोनों तो फ्रैंड हैं. वह तो बस यों ही थोड़ा भावनाओं में बह गए थे.
‘‘सौरी सर, गलती हो गई. आइंदा ऐसा नहीं होगा,’’ सूर्या बिना सांस लिए कहने लगा. वह इस मामले को रफादफा करना चाह रहा था.
पुलिस वाले ने चेरी के बालों को पकड़ कर उस का चेहरा ऊपर किया और अपना फोन निकाल कर वीडियो बनाने लगा, ‘‘कहां से पकड़ लाया इस छम्मकछल्लो को लड़की तो कम उम्र की लग रही है या…?’’ फिर उस ने अपने मोबाइल फोन का कैमरा सूर्या की ओर घुमा दिया.
‘‘अरे सर, क्या कर रहे हैं आप? मेरी नौकरी खतरे में पड़ जाएगी. बदनामी होगी सो अलग,’’ सूर्या उस पुलिस वाले के हाथपैर जोड़ने लगा.
‘‘यह बात ठीक कही तू ने. जो होना था, हो लिया. अब तेरी नौकरी छीन कर मुझे क्या मिलेगा. देख भाई, तू ने अपने मजे ले लिए, अब मुझे भी कुछ मिल जाता तो…’’ पुलिस वाला लेनदेन पर उतर आया.
‘‘बोलिए सर, क्या कर सकता हूं मैं आप के लिए?’’ कहते हुए सूर्या ने अपना पर्स निकाला और उस में जितने रुपए थे, सब उस को थमाने लगा.
‘‘यह क्या चिल्लर दे रहा है मुझे? एटीएम कार्ड थमा,’’ पुलिस वाले की नीयत का खोट अब सामने था.
सूर्या सकपका गया. एटीएम या क्रेडिट कार्ड का मतलब था बेहिसाब नुकसान. पर मरता क्या ना करता.
चेरी को वहीं छोड़ वे दोनों पास के एटीएम चल दिए. वहां पुलिस वाले ने एटीएम से 25 हजार रुपए निकाल कर अपनी जेब में रख लिए, फिर वह अपने रास्ते चलता बना.
सूर्या ने चैन की सांस ली. वह फौरन होटल के उसी कमरे में जा पहुंचा. कमरे में घुसा तो पाया कि चेरी कपड़े बदल कर कुरसी पर अपना सिर पकड़ कर बैठी थी.
चेरी के चेहरे की हवाइयां उड़ी देख सूर्या बोला, ‘‘गया वह पुलिस वाला. आई एम सो सौरी. मेरी वजह से आप… चलिए, जो हुआ उस पर तो अब कोई जोर नहीं. अब यहां से निकलना ही बेहतर होगा. चलिए, मैं आप को छोड़ देता हूं. बताएं, कहां जाना है आप को?’’
‘‘आप जाइए यहां से. मैं… मैं…’’ चेरी अभी भी घबराई हुई?थी.
‘‘घबराइए मत. मैं आप की मरजी के खिलाफ कुछ नहीं करूंगा. मुझ पर यकीन कीजिए. मैं तो बस आप को यहां से निकालना चाहता हूं.’’
‘‘मैं खुद चली जाऊंगी. आप जाइए यहां से, प्लीज,’’ चेरी के कहने पर सूर्या ने वहां से चले जाना ही ठीक समझा.
घर पहुंच कर सूर्या ने चैन की सांस ली. उस ने एक गिलास ठंडा पानी लिया और चुपचाप अपने बिस्तर पर निढाल पड़ गया. दिमाग थक चुका था और इसी वजह से शरीर भी थकावट महसूस कर रहा था. कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला.
जब आंख खुली, तब रात के 3 बज रहे थे. पेट में भूख के मारे गुड़गुड़ाहट हो रही थी. रसोई में जा कर फ्रिज से ब्रैड निकाल वह उस पर मक्खन लगाने लगा.
‘उफ, कहां फंस गया था आज. कम पैसों में ही जान छूट गई, वरना वह पुलिस वाला…’ मन अब भी उसी परेशानी में उलझा था. पर दिमाग खुद ही सारी घटना दोहरा कर सुलझाने की कोशिश में था.
चेरी के नाम पर उस होटल में कमरा रिजर्व क्यों था और उस के कपड़े भी थे उस कमरे में. उस ने तो बताया था कि वह किसी मैनेजमैंट इंस्टीट्यूट में टीचर है, तो फिर होटल में क्यों रहती है?
पुलिस वाले ने उसे इतनी आसानी से कैसे और क्यों छोड़ दिया और वह भी केवल यही जोर दे रही थी कि सूर्या वहां से चला जाए. तो क्या चेरी और उस पुलिस वाले की कोई मिलीभगत थी? कहीं ऐसा तो नहीं कि यह सब एक जाल हो पैसा ऐंठने के लिए?
‘खैर, जान बची और लाखों पाए. अब ब्लाइंड डेटिंग के बारे में सोचूंगा भी नहीं,’ यह सोच कर सूर्या एक बार फिर अपने रोजाना के कामों में मसरूफ हो गया था. पर अगले 2 दिन बाद ही सूर्या को उस पुलिस वाले का फिर फोन आया.
इस बार वह अपना मुंह बंद रखने के लिए 10 लाख रुपए की मांग कर रहा?था और कह रहा था, ‘और 2 लाख उस बेचारी लड़की के लिए भी लेते आना. उस बेचारी को तो तू ने कुछ भी न दिया.’
अब सूर्या को 2 दिन के अंदर ही 12 लाख रुपए का इंतजाम करना था. इंतजाम हो जाने पर सूर्या ने तथाकथित जगह पर एक थैले में रुपए छोड़ दिए.
कुछ दिन बाद एक सुबह सूर्या अपने काम के लिए हवाईअड्डे के लिए निकल रहा था कि टैक्सी की खिड़की से उसे चेरी दिखाई दी. उस के घर के पास के बाजार में कुछ खरीद रही थी.
सूर्या ने फौरन टैक्सी वहीं छोड़ी और चेरी का पीछा करने लगा. एक सुनसान सी गली में पहुंच कर उस ने आवाज दी, ‘‘चेरी.’’
चेरी ने अचकचा कर मुड़ कर देखा, तो उस के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगीं, ‘‘तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे हो?’’
‘‘नहीं चेरी, मैं तो यहीं पास में ही रहता हूं. तुम्हें यहां देखा तो… खैर, क्या उस पुलिस वाले से तुम्हारा कोई सरोकार है? कौन हो तुम? क्या है तुम्हारी सचाई?’’ सूर्या के अंदर उबलते सवाल बाहर उफनने लगे.
चेरी चुप रही. सूर्या ने उस का रास्ता रोक लिया. गली में किसी और को न पा कर चेरी अचानक रो पड़ी, ‘‘तुम्हारी तरह मैं भी इस दलदल का शिकार हूं…’’
चेरी आगे कुछ बताती, इस से पहले गली में कुछ लोग आते दिखाई दिए. सूर्या ने जल्दी से अपना फोन नंबर चेरी को बताया और वहां से चलता बना.
शाम ढलने से पहले चेरी का फोन आ गया. उस का असली नाम दीप्ति था.
एक गरीब घर की दीप्ति बड़े शहरों की चकाचौंध में अंधी हो कर एक लड़के के साथ अपने कसबे से मुंबई भाग आई थी. उस समय वह महज 15 साल की थी.
फिर जो होता है, वही हुआ. उस लड़के ने दीप्ति को बेच दिया. कई हाथों में से घूमती हुई वह आखिरकार इस पुलिस वाले के हत्थे चढ़ गई.
जिस्म के बाजार में अनगिनत बार बिकी दीप्ति का तनमन सब बदल चुका था, यहां तक कि नाम भी.
वक्त की ठोकरें खाखा कर वह एक सख्त जान बन गई थी. पुलिस वाला उसे अपने लिए, अपने दोस्तोंयारों के लिए, अपना काम निकालने के लिए और अनजान लड़कों को बेवकूफ बना कर लूटने के लिए इस्तेमाल करता था. लेकिन सूर्या को लूट कर दीप्ति को बिलकुल अच्छा नहीं लगा था.
‘‘क्यों?’’ सूर्या के सवाल पर वह बोली, ‘‘क्योंकि तुम ने मेरे साथ कोई जबरदस्ती नहीं की. और फिर तुम खुद धोखा खाने के बाद भी मुझे मेरे घर छोड़ने के लिए होटल आए.’’
‘‘तो क्या तुम मेरी मदद कर सकती हो?’’ सूर्या ने पूछा.
सूर्या इस दलदल से निकलना चाहता था, वरना वह पुलिस वाला जबतब उसे ब्लैकमेल करता रहेगा.
दीप्ति राजी हो गई. शायद उसे सूर्या से प्यार हो गया था. तन के साथ मन का घायल होना जरूरी नहीं. किसी ने पहली बार उसे एक लड़की के तौर पर इज्जत दी थी.
अगले कुछ दिनों में उस पुलिस वाले का फोन ही आ गया, ‘ओ भाई, जरा पैसे की सख्त जरूरत है. फटाफट 8 लाख रुपए का इंतजाम कर. जगह और दिन मैं फोन कर के बता दूंगा.’’
पैसे देने के लिए इस बार जो जगह और दिन बताया गया, उस की जानकारी सूर्या ने पूरी हिम्मत कर पुलिस स्टेशन जा कर एफआईआर में दर्ज कराई.
पुलिस ने उस की पूरी मदद की. उन का अपना साथी ऐसी हरकत कर रहा है, इस बात को जान कर उन्होंने ऐसी गंदी मछली को तालाब से निकाल फेंकने की योजना बनाई.
तथाकथित जगह और समय पर न केवल सूर्या पहुंचा, बल्कि पुलिस वाले भी पहुंचे और उस भ्रष्ट पुलिस वाले को धरदबोचा गया. पूछताछ करने पर दीप्ति के ठिकाने का भी पता चला और उसे नारी निकेतन भिजवा दिया गया.
दीप्ति की तृष्णा, पुलिस वाले के लालच और सूर्या की कामुकता ने उन तीनों को परेशानी के कीचड़ में उतार दिया था. आखिर में सचाई ही काम आई.
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राजेश का आलीशान बंगला देख कुमुदिनी हैरान रह गई. दरबान ने बंगले का गेट खोला और नमस्ते की. नौकर ने राजेश की अटैची टैक्सी से निकाल कर बंगले में रखी.
‘‘मैडम, यह है अपनी कुटिया. आप के आने से हमारी कुटिया भी पवित्र हो जाएगी,’’ राजेश ने कुमुदिनी से कहा.
‘‘बहुत ही खूबसूरत बंगला बनाया है. कितनी भाग्यशाली हैं इस बंगले की मालकिन?’’
‘‘छोड़ो, इधर बाथरूम है. आप फ्रैश जाओ. मैं आप के लिए कपड़े लाता हूं,’’ कह कर राजेश दूसरे कमरे में जा कर एक बड़ी सी कपड़ों की अटैची ले आया. अटैची खोली तो उस में कपड़े तो कम थे, सोनेचांदी के गहने व नोटों की गड्डियां भरी पड़ी थीं.
‘‘नहींनहीं, यह अटैची मैं भूल से ले आया. कपड़े वाली अटैची इसी तरह की है,’’ और राजेश तुरंत अटैची बंद कर उसे रख कर दूसरी अटैची ले आया.
‘‘यह लो अपनी पसंद के कपड़े… मेरा मतलब, साड़ीब्लाउज या सूट निकाल लो. इस में रखे सभी कपड़े नए हैं.’’
‘‘पसंद तो आप की रहेगी,’’ तिरछी नजरों से कुछ मुसकरा कर कुमुदिनी ने कहा.
‘‘यह नीली ड्रैस बहुत ज्यादा फबेगी आप पर. यह रही मेरी पसंद.’’
वह ड्रैस ले कर कुमुदिनी बाथरूम में चली गई. तब तक राजेश भी अपने बाथरूम में नहा कर ड्राइंगरूम में आ कर कुमुदिनी का इंतजार करने लगा.
कुमुदिनी जब तक वहां आई, तब तक नौकर चायनाश्ता टेबल पर रख कर चला गया.
दोनों ने नाश्ता किया. राजेश ने पूछा, ‘‘खाने में क्या चलेगा?’’
‘‘आप तो मेहमानों की पसंद का खाना खिलाना चाहते हो. मैं ने कहा न आप की पसंद.’’
‘‘मैं तो आलराउंडर हूं. फिर भी?’’
‘‘वह सबकुछ तो ठीक है, पर मैं आप के बारे में कुछ…’’
‘‘क्या? साफसाफ कहो.’’
‘‘आप के नौकरचाकर श्रीमतीजी को जरूरत बता सकते हैं. मेरे चलते आप के घर में पंगा खड़ा हो, मुझे गवारा नहीं.’’
‘‘आप चाहो तो मैं परसों तक नौकरों को छुट्टी पर भेज देता हूं, पर मेरी एक शर्त है.’’
‘‘कौन सी शर्त?’’
‘‘खाना आप को बनाना पड़ेगा.’’
‘‘हां, मुझे मंजूर है, पर आप के घर में कोई पंगा न हो.’’
‘‘पहले यह तो बताओ खाने में…’’ राजेश ने पूछा.
‘‘आप जो खिलाओगे, मैं खा लूंगी,’’ आंखों में झांक कर कुमुदिनी ने कहा.
राजेश ने एक नौकर से चिकन और शराब मंगवाई और बाद में सभी नौकरों को छुट्टी पर भेज दिया. तब तक रात के 9 बज चुके थे.
‘‘आप ने तो…’’ शराब से भरे जाम को देखते हुए कुमुदिनी ने कहा.
‘‘जब मेरी पसंद की बात है तो साथ तो देना ही पड़ेगा,’’ राजेश ने जाम आगे बढ़ाते हुए कहा.
‘‘मैं ने आज तक इसे छुआ भी नहीं है.’’
‘‘ऐसी बात नहीं चलेगी. मैं अगर अपने हाथ से पिला दूं तो…?’’ और राजेश ने जबरदस्ती कुमुदिनी के होंठों से जाम लगा दिया.
‘‘काश, आप के जैसा जीवनसाथी मुझे मिला होता तो मैं कितनी खुशकिस्मत होती,’’ आंखों में आंखें डाल कर कुमुदिनी ने कहा.
‘‘यही तो मैं सोच रहा हूं. काश, आप की तरह घर मालकिन रहती तो सारा घर महक जाता.’’
‘‘अब मेरी बारी है. यह लो, मैं अपने हाथों से आप को पिलाऊंगी,’’ कह कर कुमुदिनी ने दूसरा रखा हुआ जाम राजेश के होंठों से लगा दिया.
शराब पीने के बाद राजेश से रहा न गया और उस ने कुमुदिनी के गुलाबी होंठों को चूम लिया.
‘‘आप तो मेहमान की बहुत ज्यादा खातिरदारी करते हो,’’ मुसकराते हुए कुमुदिनी ने कहा.
‘‘बहुत ही मधुर फूल है कुमुदिनी का. जी चाहता है, भौंरा बन कर सारा रस पी लूं,’’ राजेश ने कुमुदिनी को अपने आगोश में लेते हुए कहा.
‘‘आप ने ही तो यह कहा था कि कुमुदिनी रात में सारे माहौल को महका देती है.’’
‘‘मैं ने सच ही तो कहा था. लो, एक जाम और पीएंगे,’’ गिलास देते हुए राजेश ने कहा.
‘‘कहीं जाम होंठ से टकराते हुए टूट न जाए राजेश साहब.’’
‘‘कैसी बात करती हो कुमुदिनी. यह बंदा कुमुदिनी की मधुर खुशबू में मदहोश हो गया है. यह सब तुम्हारा है कुमुदिनी,’’ जाम टकराते हुए राजेश ने कहा और एक ही सांस में शराब पी गया.
कुमुदिनी ने अपना गिलास राजेश के होंठों से लगाते हुए कहा, ‘‘इस शराब को अपने होंठों से छू कर और भी ज्यादा नशीली बना दो राजेश बाबू, ताकि यह रात आप के ही नशे में मदहोश हो कर बीते.’’
नशे में धुत्त राजेश ने कुमुदिनी को बांहों में भर कर प्यार किया. कुमुदिनी भी अपना सबकुछ उस पर लुटा चुकी थी. राजेश पलंग पर सो गया.
थोड़ी देर में कुमुदिनी उठी और अपने पर्स से एक छोटी सी शीशी निकाल राजेश को सुंघाई. शीशी में क्लोरोफौर्म था. इस के बाद कुमुदिनी ने किसी को फोन किया.
राजेश जब सुबह उठा, उस समय 8 बजे थे. राजेश के बिस्तर पर कुमुदिनी की साड़ी पड़ी थी. साड़ी को देख उसे रात की सारी बातें याद हो आईं. उस ने जोर से पुकारा, ‘‘ऐ कुमुदिनी.’’
बाथरूम से नल के तेजी से चलने की आवाज आ रही थी. राजेश ने दोबारा आवाज लगाई, ‘‘कुमुदिनी, हो गया नहाना. बाहर निकलो.’’
पर, कुमुदिनी की कोई आवाज नहीं आई. तब राजेश ने बाथरूम का दरवाजा धकेला, तो उसे कुमुदिनी नहीं दिखी.
वह घर के अंदर गया. सारा सामान इधरउधर पड़ा था. रुपएपैसे व जेवर वाला सूटकेस, घर की कीमती चीजें गायब थीं. राजेश को समझते देर नहीं लगी. उस के मुंह से निकला, ‘‘चालाक लड़की…’’
मालती के पास आमदनी का कोई और जरीया नहीं था. मांबेटी की कमाई से 5 लोगों का पेट भरता था. क्या करे वह? पूजा का काम करना छुड़वा दे, तो आमदनी आधी रह जाएगी. एक अकेली औरत की कमाई से किस तरह 5 पेट पल सकते थे?
मालती अच्छी तरह जानती थी कि वह अपनी बेटी की जवानी को किसी तरह भी इनसानी भेडि़यों के जबड़ों से नहीं बचा सकती थी. न घर में, न बाहर… फिर भी उस ने पूजा को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटी, अगर तू मेरी बात समझ सकती है तो ठीक से सुन… हम गरीब लोग हैं, हमारे जिस्म को भोगने के लिए यह अमीर लोग हमेशा घात लगाए रहते हैं. इस के लिए वे तमाम तरह के लालच देते हैं. हम लालच में आ कर फंस जाते हैं और उन को अपना बदन सौंप देते हैं.
‘‘गरीबी हमारी मजबूरी है तो लालच हमारा शाप. इस की वजह से हम दुख और तकलीफें उठाते हैं.
‘‘हम गरीबों के पास इज्जत के नाम पर कुछ नहीं होता. अगर मैं तुझे काम पर न भेजूं और घर पर ही रखूं तब भी तो खतरा टल नहीं सकता. चाल में भी तो आवाराटपोरी लड़के घूमते रहते हैं.
‘‘अमीरों से तो मैं तुझे बचा लूंगी. पर इस खोली में रह कर इन गली के आवारा कुत्तों से तू नहीं बच पाएगी. खतरा सब जगह है. बता, तुझे दुनिया की गंदी नजरों से बचाने के लिए मैं क्या करूं?’’ और वह जोर से रोने लगी.
पूजा ने अपने आंसुओं को पोंछ लिया और मां का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मां, तुम चिंता मत करो. अब मैं किसी की बातों में नहीं आऊंगी. किसी का दिया हुआ कुछ नहीं लूंगी. केवल अपने काम से काम रखूंगी.
‘‘हां, कल से मैं कांबले के घर काम करने नहीं जाऊंगी. कोई और घर पकड़ लूंगी.’’
‘‘देख, हमारे पास कुछ नहीं है, पर समझदारी ही हमारी तकलीफों को कुछ हद तक कम कर सकती है. अब तू सयानी हो रही है. मेरी बात समझ गई है. मुझे यकीन है कि अब तू किसी के बहकावे में नहीं आएगी.’’
पूजा ने मन ही मन सोचा, ‘हां, मैं अब समझदार हो गई हूं.’
मालती अच्छी तरह जानती थी कि ये केवल दिलासा देने वाली बातें थीं और पूजा भी इतना तो जानती थी कि अभी तो वह जवानी की तरफ कदम बढ़ा रही थी. पता नहीं, आगे क्या होगा? बरसात का पानी और लड़की की जवानी कब बहक जाए और कब किधर से किधर निकल जाए, किसी को पता नहीं चलता.
पूजा अभी छोटी थी. जवानी तक आतेआते न जाने कितने रास्तों से उसे गुजरना पड़ेगा… ऐसे रास्तों से जहां बाढ़ का पानी भरा हुआ है और वह अपनी पूरी होशियारी और सावधानी के साथ भी न जाने कब किस गड्ढे में गिर जाए.
वे दोनों ही जानती थीं कि जो वे सोच रही थीं, वही सच नहीं था या जैसा वे चाह रही हैं, उसी के मुताबिक जिंदगी चलती रहेगी, ऐसा भी नहीं होने वाला था.
दिन बीतते रहे. मालती अपनी बेटी की तरफ से होशियार थी, उस की एकएक हरकत पर नजर रखती. उन दोनों के बीच में बात करने का सिलसिला कम था, पर बिना बोले ही वे दोनों एकदूसरे की भावनाओं को जानने और समझने की कोशिश करतीं.
पर जैसेजैसे बेटी बड़ी हो रही थी, वह और ज्यादा समझदार होती जा रही थी. अब वह बड़े सलीके से रहने लगी थी और उसे अपने भावों को छिपाना भी आ गया था.
इधर काफी दिनों से पूजा के रंगढंग में काफी बदलाव आ गया था. वह अपने बननेसंवरने में ज्यादा ध्यान देती, पर इस के साथ ही उस में एक अजीब गंभीरता भी आ गई थी. ऐसा लगता था, जैसे वह किन्हीं विचारों में खोई रहती हो. घर के काम में मन नहीं लगता था.
मालती ने एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘बेटी, मुझे डर लग रहा है. कहीं तेरे साथ कुछ हो तो नहीं गया?’’
पूजा जैसे सोते हुए चौंक गई हो, ‘‘क्या… क्या… नहीं तो…’’
‘‘मतलब, कुछ न कुछ तो है,’’ उस ने बेटी के सिर पर हाथ रख कर कहा.
पूजा के मुंह से बोल न फूटे. उस ने अपना सिर झुका लिया. मालती समझ गई, ‘‘अब कुछ बताने की जरूरत नहीं है. मैं सब समझ गई हूं, पर एक बात तू बता, जिस से तू प्यार करती है, वह तेरे साथ शादी करेगा?’’
पूजा की आंखों में एक अनजाना सा डर तैर गया. उस ने फटी आंखों से अपनी मां को देखा. मालती उस की आंखों में फैले डर को देख कर खुद सहम गई. उसे लगा, कहीं न कहीं कोई बड़ी गड़बड़ है.
डरतेडरते मालती ने पूछा, ‘‘कहीं तू पेट से तो नहीं है?’’
पूजा ने ऐसे सिर हिलाया, जैसे जबरदस्ती कोई पकड़ कर उस का सिर हिला रहा हो. अब आगे कहने के लिए क्या बचा था.
मालती ने अपना माथा पीट लिया. न वह चीख सकती थी, न रो सकती थी, न बेटी को मार सकती थी. उस की बेबसी ऐसी थी, जिसे वह किसी से कह भी नहीं सकती थी.
जो मालती नहीं चाहती थी, वही हुआ. उस की जिंदगी में जो हो चुका था उसी से बेटी को आगाह किया था. ध्यान रखती थी कि बेटी नरक में न गिर जाए. बेटी ने भी उसे भरोसा दिया था कि वह कोई गलत कदम नहीं उठाएगी, पर जवानी की आग को दबा कर रख पाना शायद उस के लिए मुमकिन नहीं था.
मरी हुई आवाज में उस ने बस इतना ही पूछा, ‘‘किस का है यह पाप…?’’
पूजा ने पहले तो नहीं बताया, जैसा कि आमतौर पर लड़कियों के साथ होता है. जवानी में किए गए पाप को वे छिपा नहीं पातीं, पर अपने प्रेमी का नाम छिपाने की कोशिश जरूर करती हैं. हालांकि इस में भी वे कामयाब नहीं होती हैं, मांबाप किसी न किसी तरीके से पूछ ही लेते हैं.
पूजा ने जब उस का नाम बताया, तो मालती को यकीन नहीं हुआ. उस ने चीख कर पूछा, ‘‘तू तो कह रही थी कि कांबले के यहां काम छोड़ देगी?’’
‘‘मां, मैं ने तुम से झूठ बोला था. मैं ने उस के यहां काम करना नहीं छोड़ा था. मैं उस की मीठीमीठी और प्यारी बातों में पूरी तरह भटक गई थी. मैं किसी और घर में भी काम नहीं करती थी, केवल उसी के घर जाती थी.
‘‘वह मुझे खूब पैसे देता था, जो मैं तुम्हें ला कर देती थी कि मैं दूसरे घरों में काम कर के ला रही हूं, ताकि तुम्हें शक न हो.’’
‘‘फिर तू सारा दिन उस के साथ रहती थी?’’
पूजा ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. ‘‘मरी, हैजा हो आए, तू जवानी की आग बुझाने के लिए इतना गिर गई. अरे, मेरी बात समझ जाती और तू उस के यहां काम छोड़ कर दूसरों के घरों में काम करती रहती, तो शायद किसी को ऐसा मौका नहीं मिलता कि कोई तेरे बदन से खिलवाड़ कर के तुझे लूट ले जाता. काम में मन लगा रहता है, तो इस काम की तरफ लड़की का ध्यान कम जाता है. पर तू तो बड़ी शातिर निकली… मुझ से ही झूठ बोल गई.’’
पूजा अपनी मां के पैरों पर गिर पड़ी और सिसकसिसक कर रोने लगी, ‘‘मां, मैं तुम्हारी गुनाहगार हूं, मुझे माफ कर दो. एक बार, बस एक बार… मुझे इस पाप से बचा लो.’’
मालती गुस्से में बोली, ‘‘जा न उसी के पास, वह कुछ न कुछ करेगा. उस को ले कर डाक्टर के पास जा और अपने पेट के पाप को गिरवा कर आ…’’
‘‘मां, उस ने मना कर दिया है. उस ने कहा है कि वह पैसे दे देगा, पर डाक्टर के पास नहीं जाएगा. समाज में उस की इज्जत है, कहीं किसी को पता चल गया तो क्या होगा, इस बात से वह डरता है.’’
‘‘वाह री इज्जत… एक कुंआरी लड़की की इज्जत से खेलते हुए इन की इज्जत कहां चली जाती है? मैं क्या करूं, कहां मर जाऊं, कुछ समझ में नहीं आता,’’ मालती बोली.
मालती ने गुस्से और नफरत के बावजूद भी पूजा को परे नहीं किया, उसे दुत्कारा नहीं. बस, गले से लगा लिया और रोने लगी. पूजा भी रोती जा रही थी.
दोनों के दर्द को समझने वाला वहां कोई नहीं था… उन्हें खुद ही हालात से निबटना था और उस के नतीजों को झेलना था.
मन थोड़ा शांत हुआ, तो मालती उठी और कपड़ेलत्ते व दूसरा जरूरी सामान समेट कर फटेपुराने बैग में भरने लगी. बेटी ने उसे हैरानी से देखा. मां ने उस की तरफ देखे बिना कहा, ‘‘तू भी तैयार हो जा और बच्चों को तैयार कर ले. गांव चलना है. यहां तो तेरा कुछ हो नहीं सकता. इस पाप से छुटकारा पाना है. इस के बाद गांव में रह कर ही किसी लड़के से तेरा ब्याह कर देंगे.’’
वह एक ऐसे मर्द द्वारा लुट रही थी, जो उस से उम्र में दोगुनातिगुना ही नहीं, बाप की उम्र से भी बड़ा था, पर औरतमर्द के रिश्ते में उम्र बेमानी हो जाती है और कभीकभी तो रिश्ते भी बदनाम हो जाते हैं.
तब मालती भी अपनी बेटी की तरह दुबलीपतली सांवली सी थी. आज जब वह पूजा को गौर से देखती है, तो लगता है जैसे वही पूजा के रूप में खड़ी है.
मालती बिलकुल उस का ही दूसरा रूप थी. जब वह अपनी बेटी की उम्र की थी, तब चोगले साहब के घर में काम करती थी. वह शादीशुदा था, 2 बच्चों का बाप, पर एक नंबर का लंपट… उस की नजरें हमेशा मालती के इर्दगिर्द नाचती रहती थीं.
चोगले की बीवी किसी स्कूल में पढ़ाती थी, सो वह सुबह जल्दी निकल जाती थी. साथ में उस के बच्चे भी चले जाते थे. बीवी और बच्चों के जाने के बाद मालती उस घर में काम करने जाती थी.
चोगले तब घर में अकेला होता था. पहले तो काफी दिनों तक उस ने मालती की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और कभी कोई ऐसी बात नहीं कही, जिस से लगे कि वह उस के बदन का भूखा था.
शायद वह उसे बच्ची समझता था. वह काम करती रहती थी और काम खत्म होने के बाद चुपचाप घर चली आती थी.
पर जब उस ने 13वें साल में कदम रखा और उस के सीने में कुछ नुकीला सा उभार आने लगा, तो अचानक ही एक दिन चोगले की नजर उस के शरीर पर पड़ गई. वह मैलेकुचैले कपड़ों में रहती थी.
झाड़ूपोंछा करने वाली लड़की और कैसे रह सकती थी. कपड़े धोने के बाद तो वह खुद गीली हो जाती थी और तब बिना अंदरूनी कपड़ों के उस के बदन के अंग शीशे की तरह चमकने लगते थे.
ऐसे मौके पर चोगले की नजरों में एक प्यास उभर आती और उस के पास आ कर पूछता था, ‘‘मालती, तुम तो गीली हो गई हो, भीग गई हो. पंखे के नीचे बैठ कर कपड़े सुखा लो,’’ और वह पंखा चला देता.
मालती बैठती नहीं खड़ेखड़े ही अपने कपड़े सुखाती. चोगले उस के बिलकुल पास आ कर सट कर खड़ा हो जाता और अपने बदन से उसे ढकता हुआ कहता, ‘‘तुम्हारे कपड़े तो बिलकुल पुराने हो गए हैं.’’
‘‘जी…’’ वह संकोच से कहती.
‘‘अब तो तुम्हें कुछ और कपड़ों की भी जरूरत पड़ती होगी?’’ मालती उस का मतलब नहीं समझती. बस, वह उस को देखती रहती.
वह एक कुटिल हंसी हंस कर कहता, ‘‘संकोच मत करना, मैं तुम्हारे लिए नए कपड़े ला दूंगा. वे वाले भी…’’
मालती की समझ में फिर भी नहीं आता. वह अबोध भाव से पूछती, ‘‘कौन से कपड़े…’’
चोगले उस के कंधे पर हाथ रख कर कहता, ‘‘देखो, अब तुम छोटी नहीं रही, बड़ी और समझदार हो रही हो. ये जो कपड़े तुम ने ऊपर से पहन रखे हैं, इन के नीचे पहनने के लिए भी तुम्हें कुछ और कपड़ों की जरूरत पड़ेगी, शायद जल्दी ही…’’ कहतेकहते उस का हाथ उस की गरदन से हो कर मालती के सीने की तरफ बढ़ता और वह शर्म और संकोच से सिमट जाती. इतनी समझदार तो वह हो ही गई थी.
चोगले की मेहनत रंग लाई. धीरेधीरे उस ने मालती को अपने रंग में रंगना शुरू कर दिया.
चोगले की मीठीमीठी बातों और लालच में मालती बहुत जल्दी फंस गई. घर का सूनापन भी चोगले की मदद कर रहा था और मालती की चढ़ती हुई जवानी. उस की मासूमियत और भोलेपन ने ऐसा गुल खिलाया कि मालती जवानी के पहले ही प्यार के सारे रंगों से वाकिफ हो गई थी.
तब मालती की मां ने उस में होने वाले बदलाव के प्रति उसे सावधान नहीं किया था, न उसे दुनियादारी समझाई थी, न मर्द के वेष में छिपे भेडि़यों के बारे में उसे किसी ने कुछ बताया था.
भेद तब खुला था जब उस का पेट बढ़ने लगा. सब से पहले उस की मां को पता चला था. वह उलटियां करती तो मां को शक होता, पर वह इतनी छोटी थी कि मां को अपने शक पर भी यकीन नहीं होता था. यकीन तो तब हुआ जब उस का पेट तन कर बड़ा हो गया.
मां ने मारपीट कर पूछा, तब बड़ी मुश्किल से उस ने चोगले का नाम बताया. बड़े लोगों की करतूत सामने आई, पर तब चोगले ने भी उस की मदद नहीं की थी और दुत्कार कर उसे अपने घर से भगा दिया था. बाद में एक नर्सिंगहोम में ले जा कर मां ने उस का पेट गिरवाया था.
अपना बुरा समय याद कर के मालती रो पड़ी. डर से उस का दिल कांप उठा. क्या समय उस की बेटी के साथ भी वही खिलवाड़ करने जा रहा था, जो उस के साथ हुआ था? गरीब लड़कियों के साथ ही ऐसा क्यों होता है कि वे अपना बचपन भी ठीक से नहीं बिता पातीं और जवानी के तमाम कहर उन के ऊपर टूट पड़ते हैं?
मालती ने अपनी बेटी पूजा को गले से लगा लिया. जोकुछ उस के साथ हुआ था, वह अपनी बेटी के साथ नहीं होने देगी. अपनी जवानी में तो उस ने बदनामी का दाग झेला था, मांबाप को परेशानियां दी थीं. यह तो केवल वह या उस के मांबाप ही जानते थे कि किस तरह उस का पेट गिरवाया गया था. किस तरह गांव जा कर उस की शादी की गई थी. फिर कई साल बाद कैसे वह अपने मर्द के साथ वापस मुंबई आई थी और अपने मांबाप के बगल की खोली में किराए पर रहने लगी थी.
आज उस का मर्द इस दुनिया में नहीं था. 4 बच्चे उस की और उस की बड़ी बेटी की कमाई पर जिंदा थे. पूजा के बाद 3 बेटे हुए थे, पर तीनों अभी बहुत छोटे थे. पिछले साल तक उस का मर्द फैक्टरी में हुए एक हादसे में जाता रहा.
पति की मौत के बाद ही मालती ने अपनी बेटी को घरों में काम करने के लिए भेजना शुरू किया था. उसे क्या पता था कि जो कुछ उस के साथ हुआ था, एक दिन उस की बेटी के साथ भी होगा.
जमाना बदल जाता है, लोग बदल जाते हैं, पर उन के चेहरे और चरित्र कभी नहीं बदलते. कल चोगले था, तो आज कांबले… कल कोई और आ जाएगा. औरत के जिस्म के भूखे भेडि़यों की इस दुनिया में कहां कमी थी. असली शेर और भेडि़ए धीरेधीरे इस दुनिया से खत्म होते जा रहे थे, पर इनसानी शेर और भेडि़ए दोगुनी तादाद में पैदा होते जा रहे थे.
मालती काम से लौटी थी… थकीमांदी. कुछ देर लेट कर आराम करने का मन कर रहा था, पर उस की जिंदगी में आराम नाम का शब्द नहीं था. छोटा वाला बेटा भूखाप्यासा था. वह 2 साल का हो गया था, पर अभी तक उस का दूध पीता था.
मालती के खोली में घुसते ही वह उस के पैरों से लिपट गया. उस ने उसे अपनी गोद में उठा कर खड़ेखड़े ही छाती से लगा लिया. फिर बैठ कर वह उसे दूध पिलाने लगी थी.
सुबह मालती उसे खोली में छोड़ कर जाती थी. अपने 2 बड़े भाइयों के साथ खोली के अंदर या बाहर खेलता रहता था. तब भाइयों के साथ खेल में मस्त रहने से न तो उसे भूख लगती थी, न मां की याद आती थी.
दोपहर के बाद जब मालती काम से थकीमांदी घर लौटती, तो छोटे को अचानक ही भूख लग जाती थी और वह भी अपनी भूखप्यास की परवाह किए बिना या किसी और काम को हाथ लगाए बेटे को अपनी छाती का दूध पिलाने लगती थी.
तभी मालती की बड़ी लड़की पूजा काम से लौट कर घर आई. पूजा सहमते कदमों से खोली के अंदर घुसी थी. मां ने तब भी ध्यान नहीं दिया था. पूजा जैसे कोई चोरी कर रही थी. खोली के एक किनारे गई और हाथ में पकड़ी पोटली को कोने में रखी अलमारी के पीछे छिपा दिया.
मां ने छोटू को अपनी छाती से अलग किया और उठने को हुई, तभी उस की नजर बेटी की तरफ उठी और उसे ने पूजा को अलमारी के पीछे थैली रखते हुए देख लिया.
मालती ने सहज भाव से पूछा, ‘‘क्या छिपा रही है तू वहां?’’
पूजा चौंक गई और असहज आवाज में बोली, ‘‘कुछ नहीं मां.’’
मालती को लगा कि कुछ तो गड़बड़ है वरना पूजा इस तरह क्यों घबराती.
मालती अपनी बेटी के पास गई और उस की आंखों में आंखें डाल कर बोली, ‘‘क्या है? तू इतनी घबराई हुई क्यों है? और यहां क्या छिपाया है?’’
‘‘कुछ नहीं मां, कुछ नहीं…’’ पूजा की घबराहट और ज्यादा तेज हो गई. वह अलमारी से सट कर इस तरह खड़ी हो गई कि मालती पीछे न देख सके.
मालती ने जोर से पकड़ कर उसे परे धकेला और तेजी से अलमारी के पीछे रखी पोटली उठा ली.
हड़बड़ाहट में मालती ने पोटली को खोला. पोटली का सामान अंदर से सांप की तरह फन काढ़े उसे डरा रहे थे… ब्रा, पैंटी, लिपस्टिक, क्रीम, पाउडर और तेल की शीशी…
मालती ने फिर अचकचा कर अपनी बेटी पूजा को गौर से देखा… उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. उस की बेटी जवान तो नहीं हुई थी, पर जवानी की दहलीज पर कदम रखने के लिए बेचैन हो रही थी.
मालती का दिल बेचैन हो गया. गरीबी में एक और मुसीबत… बेटी की जवानी सचमुच मांबाप के लिए एक मुसीबत बन कर ही आती है खासकर उस गरीब की बेटी की, जिस का बाप जिंदा न हो. मालती की सांसें कुछ ठीक हुईं, तो बेटी से पूछा, ‘‘किस ने दिया यह सामान तुझे?’’
मां की आवाज में कोई गुस्सा नहीं था, बल्कि एक हताशा और बेचारगी भरी हुई थी.
पूजा को अपनी मां के ऊपर तरस आ गया. वह बहुत छोटी थी और अभी इतनी बड़ी या जवान नहीं हुई थी कि दुनिया की सारी तकलीफों के बारे में जान सके. फिर भी वह इतना समझ गई थी कि उस ने कुछ गलत किया था, जिस के चलते मां को इस तरह रोना पड़ रहा था. वह भी रोने लगी और मां के पास बैठ गई.
बेटी की रुलाई पर मालती थोड़ा संभली और उस ने अपने ममता भरे हाथ बेटी के सिर पर रख दिए.
दोनों का दर्द एक था, दोनों ही औरतें थीं और औरतों का दुख साझा होता है. भले ही, दोनों आपस में मांबेटी थीं, पर वे दोनों एकदूसरे के दर्द से न केवल वाकिफ थीं, बल्कि उसे महसूस भी कर रही थीं.
पूजा की सिसकियां कुछ थमीं, तो उस ने बताया, ‘‘मां, मैं ले नहीं रही थी, पर उस ने मुझे जबरदस्ती दिया.’’
‘‘किस ने…?’’ मालती ने बेचैनी से पूछा.
‘‘गोकुल सोसाइटी के 401 नंबर वाले साहब ने…’’
‘‘कांबले ने?’’ मालती ने हैरानी से पूछा.
‘‘हां… मां, वह मुझ से रोज गंदीगंदी बातें करता है. मैं कुछ नहीं बोलती तो मुझे पकड़ कर चूम लेता है,’’ पूजा जैसे अपनी सफाई दे रही थी.
मालती ने गौर से पूजा को देखा. वह दुबलेपतले बदन की सांवले रंग की लड़की थी, कुल जमा 13 साल की… बदन में ऐसे अभी कोई उभार नहीं आए थे कि किसी मर्द की नजरें उस पर गड़ जाएं.
हाय रे जमाना… छोटीछोटी बच्चियां भी मर्दों की नजरों से महफूज नहीं हैं. पलक झपकते ही उन की हैवानियत और हवस की भूख का शिकार हो जाती हैं.
मालती को अपने दिन याद आ गए… बहुत कड़वे दिन. वह भी तब कितनी छोटी और भोली थी. उस के इसी भोलेपन का फायदा तो एक मर्द ने उठाया था और वह समझ नहीं पाई थी कि वह लुट रही थी, प्यार के नाम पर… पर प्यार कहां था वह… वह तो वासना का एक गंदा खेल था.
इस खेल में मालती अपनी पूरी मासूमियत के साथ शामिल हो गई थी. नासमझ उम्र का वह ऐसा खेल था, जिस में एक मर्द उस के अधपके बदन को लूट रहा था और वह समझ रही थी कि वह मर्दऔरत का प्यार था.