अपने घर में : सासबहू की बेमिसाल जोड़ी-भाग 2

नीरजा ने एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली थी. सैटरडे, संडे उस की छुट्टी होती थी. उस दिन कमला देवी जरूर आतीं. उस के और अपनी पोतियों के साथ समय बितातीं. उन की हर समस्या का हल निकालतीं और फिर शाम तक अपने घर लौट जातीं.

इधर, दूसरी शादी के बाद जब भी सागर ने मिनी और गुड़िया से मिलना चाहा, तो मिनी ने साफ इनकार कर दिया. अब उसे अपने पापा से बात करना भी पसंद नहीं था. उस ने पापा के बिना जीना सीख लिया था और गुड़िया को भी सिखा दिया था. वह उस पापा को कभी माफ नहीं कर पाई जिस ने उस की सीधीसादी मां को छोड़ कर किसी और के साथ शादी कर ली थी.

वक्त इसी तरह निकलता गया. नई शादी से सागर को कोई संतान नहीं हुई थी. दिनोंदिन श्वेता के नखरे बढ़ते जा रहे थे. सागर का जीना मुहाल हो गया था. दोनों के बीच अकसर झगड़े होने लगे थे. श्वेता अकसर घर से बाहर निकल जाती. सागर भी देर रात शराब पी कर घर लौटता.

कमला देवी यह सब देखसमझ रही थीं. पर वह अपने बेटे के स्वार्थी रवैए से भी अच्छी तरह परिचित थीं, इसलिए उन्हें बेटे पर तरस नहीं बल्कि गुस्सा आता था.

कमला देवी को अकसर वह समय याद आता जब पति से तलाक के बाद उन की जिंदगी का एक ही मकसद था और वह था सागर को पढ़ालिखा कर काबिल बनाना. इस के लिए उन्होंने अपनी सारी शक्ति लगा दी थी. स्कूल टीचर की नौकरी करते हुए बेटे को ऊंची शिक्षा दिलाई, काबिल बनाया. मगर अब एहसास होने लगा था कि कितना भी काबिल बना लिया, वह रहा तो अपने बाप का बेटा ही जो बाप की तरह ही शराबी, स्वार्थी और बददिमाग निकला.

इधर कमला द्वारा नीरजा को अपनाने और हर जगह उस की तारीफ किए जाने की वजह से नातेरिश्तेदारों का व्यवहार भी नीरजा के प्रति काफी अच्छा बना रहा. सागर के चचेरेममेरे भाईबहनों के घर कोई भी आयोजन होता तो नीरजा और उस की बेटियों को परिवार के एक महत्त्वपूर्ण सदस्य की तरह आमंत्रित किया जाता और उन की पूरी आवभगत की जाती. यही नहीं, सागर के विवाहित दोस्त भी नीरजा को अवश्य बुलाते. यह सब देख कर सागर और श्वेता भुनभुनाते हुए घर लौटते.

श्वेता चिढ़ कर कहती, “देख लो तुम्हारी रिश्तेदारी में हर जगह अभी भी मुझ से ज्यादा नीरजा की पूछ होती है. लगता है जैसे मैं जबर्दस्ती पहुंच गई हूं. तुम्हारी मां भी जब देखो, नीरजा और उस की बेटियों से ही चिपकी रहती हैं.”

सागर समझाने के लिहाज से कहता, “बुरा तो मुझे भी लगता है पर क्या करूं श्वेता? नीरजा के साथ मेरी बेटियां भी हैं न. बस, इसीलिए चुप रह जाता हूं.”

एक दिन तो हद ही हो गई. सागर के एक दोस्त के बेटे की बर्थडे पार्टी थी. आयोजन बहुत शानदार रखा गया था. सागर के सभी दोस्त वहां मौजूद थे. सागर ने इधरउधर नजरें दौड़ाईं. उसे नीरजा कहीं भी नजर नहीं आई.

सागर ने चैन की सांस लेते हुए श्वेता को कुहनी मारी और बोला, “शुक्र है, आज नीरजा नहीं है.”

श्वेता मुसकरा कर बच्चे को गिफ्ट देने लगी. तभी दरवाजे से नीरजा और उस की दोनों बेटियों ने प्रवेश किया. नीरजा ने खूबसूरत सी बनारसी साड़ी पहन रखी थी और बाल खुले छोड़े थे. उस के आकर्षक व्यक्तित्व ने सब का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया. श्वेता जलभुन गई और सागर पर अपना गुस्सा निकालने लगी.

कुछ देर बाद जब पार्टी उफान पर थी तो सागर किनारे खड़े अपने दोस्तों के ग्रुप को जौन करता हुआ बोला, ‘यार, यह थोड़ा अजीब लगता है कि तुम लोग अब तक हर आयोजन में नीरजा को जरूर बुला लेते हो. तुम लोग जानते हो न, कि मैं नीरजा से अलग हो चुका हूं. अब उसे बुलाने की क्या जरूरत?”

एक दोस्त गुस्से में बोला, “क्या बात कह दी यार, तू अलग हुआ है भाभी से. पर हम तो अलग नहीं हुए न. उन से हमारा जो रिश्ता था वह तो रहेगा ही न.”

“पर क्यों रहेगा? जब वह मेरी पत्नी ही नहीं, तो तुम लोगों की भाभी कैसे हो गई?” सागर ने गुस्से में कहा तो एक दोस्त हंसता हुआ बोला, “ठीक है यार, भाभी नहीं तो दोस्त ही सही. यही मान ले कि अब एक दोस्त की हैसियत से हम सब उन्हें बुलाएंगे. रही बात तेरी, तो ठीक है. तेरी वर्तमान बीवी यानी श्वेता को भी हम न्योता भेज दिया करेंगे, मगर नीरजा को नहीं छोड़ेंगे. समझा?”

इस बात पर काफी देर तक उन के बीच तूतू मैंमैं होती रही. श्वेता पास खड़ी सबकुछ सुन रही थी. अंदर ही अंदर उसे नीरजा पर गुस्सा आ रहा था. उसे महसूस हो रहा था जैसे नीरजा उस की खुशियों के आगे आ कर खड़ी हो जाती है. सागर और उस के बीच कहीं न कहीं नीरजा अब भी मौजूद है. घर लौटते समय भी पूरे रास्ते श्वेता हमेशा की तरह सागर से लड़तीझगड़ती रही.

एक दिन शनिवार को जब कमला देवी बहू और पोती के साथ थीं, तो दोपहर में उछलतीकूदती मिनी घर में घुसी. आते ही उस ने मां और दादी के पैर छुए. नीरजा ने खुशी की वजह पूछी, तो मिनी खुशी से चिल्लाई, “मम्मा मैडिकल एंट्रेंस टैस्ट में मेरे बहुत अच्छे नंबर आए हैं और मुझे यहां के सब से बेहतरीन मैडिकल कालेज में दाखिला मिल रहा है.”

“सच बेटी?” दादी ने खुशी से पोती को गले लगा लिया.

मगर नीरजा थोड़ी उदास स्वर में बोली, “बेटा, यहां दाखिले में और उस के बाद पढ़ाई में कुल खर्च लगभग कितना आएगा?”

अब मिनी भी सीरियस हो गई थी. सोचते हुए उस ने कहा, “मम्मा, मेरे खयाल से लगभग दोढाई लाख रुपए तो लग ही जाएंगे. इस से ज्यादा भी लग सकते हैं.”

“पर बेटा, इतने रुपए मैं कहां से लाऊंगी?”

“मम्मा, मेरी शादी वाली जो एफडी आप ने रखी है न, बस, उसे तोड़ दो.”

“पागल है क्या? नहीं नीरजा, तू वैसा कुछ नहीं करेगी. पढ़ाई का खर्च मैं उठाऊंगी मिनी,” कमला देवी ने कहा.

“पर कैसे मम्मी? आप के पास इतने रुपए कहां से आएंगे?”

“बेटा, मैं ने अपनी नौकरी के दौरान कुछ रुपए बचा कर अलग रखे थे. वे रुपए मैं ने कभी सागर को भी नहीं दिए. अब उन्हें अपनी मिनी के मैडिकल की पढ़ाई के लिए खर्च करूंगी. इस का अलग ही सुख होगा.”

“नहीं मम्मी, उन्हें आप न निकालें. वैसे भी, इस उम्र में आप को पैसे अपने पास रखने चाहिए. कल को सागर ने कुछ गलत व्यवहार किया या बिजनैस डुबो दिया तो आप…?”

विधायक को जवाब : निशा किस वारदात से डरी हुई थी- भाग 2

मगर निशा उस के सीने में चेहरा छिपाए रोती ही रही. तभी निशा के पिता वहां आ पहुंचे. राजन उन्हें देख कर निशा से अलग हो गया. निशा भी आंसू पोंछते हुए सिर झुका कर खड़ी हो गई. कुछ पलों तक वहां शांति छाई रही. फिर निशा के पिता बोले. ‘‘देखो राजन साहब, इस तरह रात में किसी के घर में घुसना अच्छी बात नहीं. आप…’’ राजन उन की बात को काटते हुए बोला, ‘‘आप जो कुछ भी कहिए, मगर मैं निशा से प्यार करता हूं और हम दोनों शादी करना चाहते हैं.

जाति के बंधन तोड़ कर क्या शादी करना बुरी बात है?’’ ‘‘देखिए, निशा मेरी बेटी है और मैं एक हरिजन हूं. आप के पिताजी बारबार कह चुके हैं कि एक हरिजन की बेटी को वह अपनी बहू कभी नहीं बनाएंगे.’’ ‘‘मगर मैं निशा को अपनी पत्नी जरूर बनाऊंगा. मैं घर छोड़ दूंगा. उन की जायदाद से एक कौड़ी नहीं लूंगा.’’ ‘‘राजन बाबू, मेरी पीठ पर आप के पिताजी के आदमियों के डंडों के निशान हैं. अच्छा होगा कि आप यहां से चले जाएं, वरना यदि मेरी बिरादरी के लोग भी यहां आ गए, तो गजब हो जाएगा.’’

‘‘मैं निशा से सच्चा प्यार करता हूं बाबूजी, और प्यार करने वाले मौत से नहीं घबराते, मैं पिताजी की तरफ से…’’ राजन इतना ही बोल पाया था कि 4-5 लोग हाथ में लाठियां लिए अंदर आ गए. एक आदमी बोला, ‘‘राजनजी, हम हरिजन हैं तो क्या, हमारी भी अब इज्जत है. अब हम अपनी इज्जत की नीलामी कभी बरदाश्त नहीं कर सकते. बेहतर होगा कि आप यहां से चले जाएं. पुलिस कुछ नहीं करेगी तो भी हम बहुतकुछ कर सकते हैं.’’ निशा डर गई. राजन भी उस की हालत को समझ गया. राजन बोला, ‘‘भाइयो, इज्जत की नीलामी तो कोई भी बरदाश्त नहीं कर सकता. मगर, आप लोग बताइए कि शादी करना क्या जुर्म है?’’ ‘‘ऐसी बात मत कहिए राजन साहब, जिसे पूरा कर पाना नामुमकिन हो.’’ ‘‘मैं पूरे होश में कह रहा हूं और इस का सुबूत आप लोगों को कल ही मिल जाएगा.’’ तुरंत दूसरे आदमी ने कहा, ‘‘कल क्यों, आज क्यों नहीं?’’ सभी ने देखा कि राजन ने अपनी जेब से कुछ निकाला और निशा की तरफ मुड़ा. देखते ही देखते उस ने निशा की सूनी मांग में सिंदूर भर दिया.

निशा के साथसाथ सभी चौंक गए. निशा हैरानी से उसे देखने लगी. अचानक राजन बोला, ‘‘आज से यह मेरी पत्नी और कल कचहरी में जा कर अप्लाई कर देंगे और महीनेभर में हम दोनों कानूनी तौर पर पतिपत्नी बन जाएंगे. मैं ने वकील से बात कर ली है,’’ इतना कह कर वह निकल गया. राजन जब अपने घर के पास आया, तो गेट पर ही रामू से मुलाकात हो गई, जो उस का सब से वफादार नौकर था. वह उस को देखते ही बोला, ‘‘भैयाजी, बड़े मालिक आप ही की राह देख रहे हैं.’’ ‘‘ठीक?है,’’ कहते हुए राजन आगे बढ़ गया, तो रामू बोला, ‘‘बड़े मालिक आप पर बहुत गुस्सा हो रहे हैं.’’ राजन खड़ा हो गया. रामू की तरफ मुड़ा और मुसकरा कर आगे बढ़ गया. रामू हैरानी से उसे देखता रह गया.

राजन सीधा ठाकुर साहब के कमरे में गया. वह मुंह में सिगार दबाए इधरउधर घूम रहे थे. राजन उन को देखते ही बोला, ‘‘पिताजी…’’ ठाकुर साहब उसे देखते ही गुस्से से बोले, ‘‘कहां गए थे तुम?’’ ‘‘निशा के घर,’’ राजन ने साफ बोल दिया. ठाकुर साहब को इस जवाब की उम्मीद नहीं थी, इसलिए उन का गुस्सा और बढ़ गया, ‘‘क्यों गए थे?’’ ‘‘पिताजी, आप के आदमियों ने निशा के पिता को आज का तोहफा दिया. फिर भी आप पूछ रहे हैं कि क्यों गए थे?’’ आज बेटे के जवाब देने के इस तरीके पर वे हैरान रह गए, पर खुद पर काबू करते हुए बोले, ‘‘वाह बेटे, वाह. मैं ने तुम्हें मांबाप दोनों का प्यार दिया और आज तू मुझे उस का यह फल दे रहा?है. बड़ी इज्जत बढ़ाई है तू ने अपने बाप की.’’ ‘‘आप की इज्जत करना मेरा फर्ज है पिताजी, मैं जिंदगीभर आप की सेवा करूंगा… मगर मैं निशा को कैसे भूल जाऊं?’’

निशा का नाम सुन कर ठाकुर अपने गुस्से पर काबू न कर सके और चिल्ला कर बोले, ‘‘तो इतना जान लो कि मेरे जीतेजी एक हरिजन की बेटी इस खानदान की बहू कभी नहीं बन सकती.’’ राजन से भी नहीं रहा गया. वह बोला, ‘‘क्यों नहीं बन सकती?’’ ‘‘इसलिए कि नाली का कीड़ा नाली में ही अच्छा लगता है, समझे…’’ ‘‘तो ठीक है पिताजी, मैं निशा से बात तक नहीं करूंगा. मगर इस से पहले आप को मेरे सवालों का जवाब देना पड़ेगा.’’ ‘‘बोलो.’’ ‘‘मेरे खून का रंग कैसा है?’’ ‘‘लाल.’’ ‘‘और निशा के खून का रंग?’’ ‘‘तुम कहना क्या चाहते हो?’’ ‘‘जवाब दीजिए पिताजी.’’ ‘‘लाल.’’ ‘‘अगर मेरे और निशा दोनों के खून का रंग लाल ही है, तो वह नीची जाति की क्यों और मैं ऊंची जाति का क्यों?’’ ‘‘ऐसा सदियों से चलता आ रहा है…’’ ‘‘नहीं पिताजी, यह एक ढकोसला है. और मैं इसे नहीं मानता.’’

‘‘तुम्हारे मानने और न मानने से समाज नहीं बदल जाएगा. हम जिस घर का पानी तक नहीं पीते, उस घर की बेटी को किसी भी शर्त पर अपनी बहू नहीं बना सकते. समाज के रीतिरिवाजों से खिलवाड़ करने की कोशिश मत करो.’’ राजन गुस्से से पागल सा हो गया. वह जोर से चिल्लाया, ‘‘लानत है ऐसे समाज पर, जहां जातपांत और ऊंचनीच की दीवार खड़ी कर के इनसानियत के बंटवारे होते हैं. मैं उस समाज को नहीं मानता पिताजी, जहां इनसान को जात के नाम से अपनी पहचान बतानी पड़ती है.’’ ठाकुर साहब बेटे की इस हरकत से गुस्से से लाल हो रहे थे. वे जोर से चीखे, ‘‘मैं तुम से बहस नहीं करना चाहता. तुम्हारे लिए इतना ही जानना काफी?है कि तुम्हारी शादी उस लड़की से किसी भी हालत में नहीं होगी.’’

राजन भी मानने वाला नहीं था. उस ने साफसाफ शब्दों में बोल दिया कि वह निशा की मांग में सिंदूर भर के उसे अपनी पत्नी बना चुका है और एक महीने बाद कचहरी में जा कर कानूनी तौर पर भी शादी कर लेगा. राजन तेजी से अपने कमरे में चला गया तो ठाकुर साहब को मानो पैरों से धरती खिसकती हुई मालूम पड़ी. मगर ठाकुर साहब ने भी ठान लिया कि राजन और निशा को कचहरी तक पहुंचने ही नहीं देंगे. उन्होंने एक खतरनाक योजना बना डाली. वे निशा को जान से मरवा डालना चाहते थे. निशा और राजन इस बारे में जानते थे. उन्होंने उसी रात शहर छोड़ने का फैसला कर लिया. अपने कमरे में बिस्तर पर लेटा इस समाज की खोखली शान को मन ही मन कोसने लगा. उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी. अचानक ‘छोटे मालिक… छोटे मालिक…’ चिल्लाता हुआ रामू राजन के पास दौड़ा आया. उस ने एमएलए साहब की योजना बताते हुए यह भी कहा कि वे और उन के कुछ आदमी और अभीअभी पुलिस वाले सादा वरदी में निशा के घर की तरफ गए हैं. राजन ने भी तुरंत मेज की दराज से पिस्तौल और कुछ गोलियां निकालीं और गिरतापड़ता निशा के घर की तरफ दौड़ पड़ा. पूरी बस्ती रात के अंधेरे में डूबी थी.

राजन जब कुछ दूर पहुंचा तो ‘भागोभागो’ की आवाजें उस के कानों में गूंजने लगीं. कहीं टौर्च, तो कहीं लालटेन की रोशनी नजर आने लगी. चारों तरफ कुत्तों के भूंकने की आवाजें सुनाई देने लगीं. राजन डर से कांप गया. अभी वह कुछ ही दूर आगे बढ़ा था कि देखा बस्ती के कई हरिजन हाथों में लाठियां लिए चिल्लाते हुए निशा के घर की तरफ बढ़ रहे हैं. वह भी उन लोगों से छिपता हुआ उसी ओर भागा. जैसे ही राजन निशा के घर के नीचे पहुंचा, उसे उस के पिता के कराहने की आवाज सुनाई पड़ी. वह उधर ही लपका. विधायक के पालतू गुंडों ने निशा के बापू को मारमार कर बुरा हाल बना दिया था. निशा के पिता राजन को अंधेरे में भी पहचान गए. उसे देखते ही चिल्लाने लगे, ‘‘राजन, मेरी बेटी को बचा लीजिए. विधायक साहब और उन के आदमी उसे मार डालेंगे.’’ राजन ने घबराई आवाज में पूछा, ‘‘निशा कहां है?’’ ‘‘वे लोग…’’ तब तक राजन अपने पिताजी की गर्जन सुन कर उधर ही भागा. टौर्च और लालटेन की रोशनी में वहां का नजारा देख कर वह सिर से पैर तक कांप गया. विधायक कृपाल सिंह के आदमी हरिजनों की तरफ बंदूकों की नालें किए खड़े थे.

काले घोड़े की नाल: आखिर क्या था काले घोड़े की नाल का रहस्य ?- भाग 2

शादी के बाद सीमा को घर में मेहमानों के होने के कारण मुखियाजी से मिलने में बहुत परेशानी हो रही थी. ऐसे में उसे अपने पति संजय का साथ और सुख मिला. संजय भी बिस्तर पर ठीक ही था, पर मुखियाजी की ताकत के आगे वह फीका ही लगा था, इसीलिए सीमा मन ही मन सभी मेहमानों के जाने का इंतजार करने लगी, ताकि वह फिर से मुखियाजी के साथ रात गुजार सके.

सारे मेहमान चले गए थे. संजय और विनय को आज ही शहर जाना पड़ गया था.

अगले दिन से सीमा ने ध्यान दिया कि मुखियाजी उस के बजाय नई बहू रानी का अधिक मानमनुहार करते हैं. उन की आंखें रानी के कपड़ों के अंदर घुस कर कुछ तौलने का प्रयास करती रहती हैं. सीमा मुखियाजी की मनोभावना समझ गई थी.

‘‘तो क्या मुखियाजी ने अपने भाइयों को इसलिए पालापोसा है, ताकि वे हमारे पतियों को हम से दूर कर के हमें भोग सकें… पर मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती, क्योंकि मेरे पति ही अपने बड़े भाई के खिलाफ एक शब्द भी नहीं सुनना चाहते हैं…‘‘ ऐसा सोच कर सीमा को नींद न आ सकी.

रानी के कमरे से सीमा को कुछ आवाज आती महसूस हुई, तो आधी रात को वह उठी और नई बहू रानी के कमरे के बाहर जा कर दरवाजे की झिर्री में आंख गड़ा दी. अंदर रानी बेसुध हो कर सो रही थी, जबकि मुखियाजी उस के बिस्तर के पास खड़े हो कर उस के बदन को किसी भूखे भेड़िए की तरह घूरे जा रहे थे. अभी मुखियाजी रानी के सीने की तरफ अपना हाथ बढ़ाने ही जा रहे थे कि उन की हरकत देख कर सीमा को गुस्सा आया और उस ने पास में रखे बरतन नीचे गिरा दिए, जिस की आवाज से रानी जाग गई, “मु… मुखियाजी आप यहां… इस समय…”

“हां… बस जरा देखने चला आया था कि तुझे कोई परेशानी तो नहीं है,” इतना कह कर मुखियाजी बाहर निकल गए.

रानी भी मुखियाजी की नजर और उन के मनोभावों को अच्छी तरह समझ गई थी, पर प्रत्यक्ष में उस ने अनजान बने रहना ही उचित समझा.

“कल तो आप रानी के कमरे में ही रहे… हमें अच्छा नहीं लगा,” सीमा ने शिकायती लहजे में कहा, तो मुखियाजी ने बात बनाते हुए कहा, “दरअसल, अभी वह नई है… विनय शहर गया है, तो रातबिरात उस का ध्यान तो रखना ही है न.”

एक शाम को मुखियाजी सीधा रानी के कमरे में घुसते चले गए. रानी उन्हें देख कर सिर से पल्ला करने लगी, तो मुखियाजी ने उस के सिर से साड़ी का पल्ला हटाते हुए कहा, “अरे, हम से शरमाने की जरूरत नहीं है… अब विनय यहां नहीं है, तो उस की जगह हम ही तुम्हारा ध्यान रखेंगे… विश्वास न हो, तो अपने पिता से पूछ लेना. वो तुम से हमारी हर बात का पालन करने को ही कहेंगे,” रानी की पीठ को सहला दिया था मुखियाजी ने और मुखियाजी की इस बात पर रानी के पिताजी ने ये कह कर मोहर लगा दी थी कि ‘‘बेटी, तुम मुखियाजी की हर बात मानना. उन्हें किसी भी चीज के लिए मना मत करना.‘‘

एक अजीब संकट में थी रानी.नई बहू रानी ने आज खाना बनाया था. पूरे घर के लोग खा चुके तो घर के नौकरों की बारी आई. घोड़ो की रखवाली करने वाला चंद्रिका भी खाना खाने आया. उस की और रानी की नजरें कई बार टकराईं. हर बार चंद्रिका नजर नीचे झुका लेता.

खाना खा चुकने के बाद चंद्रिका सीधा रानी के सामने पहुंचा और बोला, “बहुत अच्छा खाना बनाया है आप ने… हम कोई उपहार तो दे नहीं सकते, पर ये हमारे काले घोड़े की नाल है… इसे आप घर के दरवाजे पर लगा दीजिए, बुरे वक्त और भूतप्रेत से आप की रक्षा करेगी ये,” सकुचाते हुए चंद्रिका ने कहा.

“अरे, ये सब भूतप्रेत, घोड़े की नाल वगैरह कोरा अंधविश्वास होता है… मेरा इन पर भरोसा नहीं है,” रानी ने कहा, पर उस ने देखा कि उस के ऐसा कहने से चंद्रिका का मुंह उतर गया है.

“अच्छा… ये तो बताओ कि तुम मुझे घुड़सवारी कब सिखाओगे?” रानी ने कहा, तो चंद्रिका बोला, “जब आप कहें.”

“ठीक है, 1-2 दिन में अस्तबल आती हूं.”

घर की छत से अकसर रानी ने चंद्रिका को घोड़ों की मालिश करते देखा था. 6 फुट लंबा शरीर था चंद्रिका का. जब वह अपने कसरती बदन से घोड़ों की मालिश करता, तो वह एकदम अपने काम में तल्लीन हो जाता, मानो पूरी दुनिया में एकमात्र यही काम रह गया हो.

2 दिन बाद रानी मुखियाजी के साथ अस्तबल पहुंची. चंद्रिका ने काला वाला घोड़ा एकदम तैयार कर रखा था. मुखियाजी वहीं खड़े हो कर रानी को घोड़े पर सवार हो कर घूमते जाते देख रहे थे. चंद्रिका पैदल ही घोड़े की लगाम थामे हौलहौले चल रहा था.

“तुम ने सवारी के लिए वो सफेद वाली घोड़ी धन्नो क्यों नहीं चुनी?”

“जी, क्योंकि धन्नो इस समय उम्मीद से है न (गर्भवती है)… ऐसे में हम घोड़ी पर सवार नहीं होते,” चंद्रिका का जवाब दिलचस्प लगा रानी को.

“अच्छा… तो वो धन्नो मां बनने वाली है, तो फिर उस के बच्चे का बाप कौन है?”

“यही तो है… बादल, जिस पर आप बैठी हुई हैं. बहुत प्रेम करता है ये अपनी धन्नो से,” चंद्रिका ने उत्तर दिया.

“प्रेम…?” एक लंबी सांस छोड़ी थी रानी ने.

“इस घोड़े को जरा तेज दौड़ाओ… जैसा फिल्मों में दिखाते हैं.”

“जी, उस के लिए हमें आप के पीछे बैठना पड़ेगा,” चंद्रिका ने शरमाते हुए कहा.

“तो क्या हुआ… आओ, बैठो मेरे पीछे.”

चंद्रिका शरमातेझिझकते रानी के पीछे बैठ गया और बादल को दौड़ाने के लिए ऐंड़ लगाई. बादल सरपट भागने लगा. घोड़े की लगाम चंद्रिका के मजबूत हाथों में थी. चंद्रिका और रानी के जिस्म एकदूसरे से रगड़ खा रहे थे. रानी और चंद्रिका दोनों ही रोमांचित हो रहे थे. एक अनकहा, अनदेखा, अनोखा सा कुछ था, जो दोनों के बीच में पनपता जा रहा था.

हां… पर, चंद्रिका के स्पर्श में कितनी पवित्रता थी, कितनी रूहानी थी उस की हर छुअन.

तहखाने: क्या अंशी दोहरे तहखाने से आजाद हो पाई?

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अपने घर में : सासबहू की बेमिसाल जोड़ी-भाग 1

लंच के समय स्कूल के गैस्टरूम में बैठा सागर बेसब्री से अपनी दोनों बेटियों का इंतजार कर रहा था. आज वह उन्हें अपनी होने वाली पत्नी श्वेता से मिलवाना चाहता था. कल वह श्वेता से शादी करने वाला था.

वह श्वेता की तरफ प्यारभरी नजरों से देखने लगा. उसे श्वेता बहुत ही सुलझी हुई और खूबसूरत लगती थी. श्वेता के लंबे स्ट्रेट बाल, आंखों में शरारत, दूध सा गोरा रंग और चालढाल तथा बातव्यवहार में झलकता आत्मविश्वास. श्वेता के आगे नीरजा उसे बहुत साधारण लगती थी. वह एक घरेलू महिला थी.

नीरजा से सागर की अर्रेंज मैरिज हुई थी. शुरूशुरू में सागर नीरजा से भी प्यार करता था. पर सागर की महत्त्वाकांक्षाएं काफी ऊंची थीं. उस ने अपने कैरियर में तेजी से छलांग मारी. वह आगे बढ़ता गया और नीरजा पीछे छूटती गई.

सागर ने शहर बदला, नौकरी बदली और इस के साथ ही उस की पसंद भी बदल गई. नई कंपनी में उसे श्वेता का साथ मिला. तब उसे समझ आया कि उसे तो एक बला की खूबसूरत लड़की अपना जीवनसाथी बनाने को आतुर है और कहां वह गंवार( उस की नजरों में) नीरजा के साथ बंधा पड़ा है. बस, यहीं से उस का रवैया नीरजा के प्रति बदल गया था और एक साल के अंदर ही उस ने खुद को नीरजा से आजाद कर लिया था. पर वह अपनी दोनों बेटियों के मोह से आजाद नहीं हो सका था. दोनों बेटियों में अभी भी उस की जान बसती थी.

उस ने श्वेता को अपने बारे में सबकुछ बता दिया था और अब दोनों कोर्ट मैरिज कर हमेशा के लिए एकदूसरे के होने वाले थे. पर इस से पहले श्वेता ने ही इच्छा जताई थी कि वह उस की बेटियों से मिलना चाहती है, इसलिए आज दोनों बच्चियों से मिलने उन के स्कूल आए थे. सागर अकसर स्कूल में ही अपनी बेटियों से मिला करता था.

तभी 4 नन्हीनन्ही आंखों ने दरवाजे से अंदर झांका, तो सागर दौड़ कर उन के पास पहुंचा और उन्हें सीने से लगा लिया. 10 साल की मिनी थोड़ी समझदार हो चुकी थी. जब कि 6 साल की गुड़िया अभी नादान थी.

सागर ने उन दोनों को श्वेता से मिलवाते हुए कहा, “देखो बच्चो, आज मैं आप को किन से मिलवाने वाला हूं?”

“ये कौन हैं, इन के बाल कितने सुंदर है?” गुड़िया ने पूछा तो सागर ने गर्व से श्वेता की तरफ देखा और बोला, “बेटी, ये आप की मम्मी हैं. कल से यर आप की नई मम्मी कहलाएंगी. कल ये आप के पापा की पत्नी बन जाएंगी.”

श्वेता ने प्यार से बच्चों की तरफ हाथ बढ़ाया, तो थोड़ा पीछे हटती हुई गुड़िया ने पूछा, “पर पापा, हमारी मम्मी तो हमारे पास ही हैं. फिर नई मम्मी की क्या जरूरत?”

“पर बेटा, ये मम्मी ज्यादा अच्छी हैं. है न?”

“नो, नैवर. पापा, हमें नई मम्मी की कोई जरूरत नहीं. हमारी मम्मी बहुत अच्छी हैं. एंड यू नो पापा…” मिनी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

“क्या बेटी, बताओ…”

“यू नो, आई हेट यू. आई हेट यू फौर दिस,” यह कह कर रोती हुई मिनी ने गुड़िया का हाथ थामा और तेजी से कमरे से बाहर निकल गई.

श्वेता ने जल्दी से अपने बढ़े हुए हाथों को पीछे कर लिया. अपमान और क्षोभ से उस का चेहरा लाल हो उठा था. सागर की आंखें भी पलभर में उदास हो गईं. उसे लगा जैसे उस के दिल का एक बड़ा टुकड़ा आज टूट गया है. उस ने श्वेता की तरफ देखा और फिर आ कर निढाल सा कुरसी पर बैठ गया. उस ने सोचा भी नहीं था कि उस की अपनी बेटी उस से नफरत करने लगेगी.

श्वेता ने रूखी आवाज में कहा, “चलो सागर, यहां रुक कर कोई फायदा नहीं. तुम्हारी बेटियां मुझे नहीं अपनाएंगी. लगता है तुम्हारी पत्नी ने पहले से ही उन के मन में मेरे खिलाफ जहर भर दिया है.”

सागर ने कुछ भी नहीं कहा. दोनों चुपचाप वापस चले गए.

इधर, नीरजा ने जब सुना कि उस का सागर दूसरी शादी करने वाला है तो वह और भी टूट गई. उस ने तुरंत अपनी सास कमला देवी को फोन लगाया, “मम्मी, कल आप का बेटा नई बहू ले कर आ रहा है. मुबारक हो, आप की जिंदगी में एक बार फिर बहू का सुख वापस आने वाला है.”

“चुप कर नीरजा, तेरे सिवा मेरी न कोई बहू है और न कभी होगी. मैं शरीर से भले ही यहां हूं पर मेरा दिल अब भी तेरे और तेरी दोनों बच्चियों के पास ही है. तू मेरी बेटी से बढ़ कर है. तेरी जगह कोई नहीं ले सकता, समझी पगली. और जानती है, तू मेरी बेटी कब बनी थी?”

“कब मम्मी?”

“उस रात जब मुझे तेज बुखार था. सागर ने मेरी तरफ देखा भी नहीं. पर तूने रातभर जाग कर मुझे ठंडी पट्टियां लगाई थीं. मेरी सेवा की थी. उसी रात मैं ने तुझे अपनी बेटी मान लिया था.”

“मम्मी, आप की जैसी मां पा कर मैं धन्य हो गई. आज मेरी मां जिंदा होतीं तो वे भी आप का प्यार देख कर…,” कहतेकहते वह रोने लगी तो सास ने टोका, “देख बेटी, मुझे मां कहा है न, फिर रोनेधोने की क्या जरूरत? हमेशा मुसकराती रह मेरी बच्ची. अपने बेटे पर तो मेरा काबू नहीं पर दुनिया की और किसी भी मुसीबत को तेरे पास भी नहीं फटकने दूंगी. जानती है यह बात?”

“जी मम्मी?”

“जब मेरे पति ने मुझे तलाक दिया था तब मेरे पास कोई नहीं था. मैं उन से कोई सवाल भी नहीं कर सकी थी. तेरे गम को मैं समझ सकती हूं. तलाक के बाद औरत मन से बिलकुल अकेली रह जाती है. पर तू जरा भी चिंता न कर. तेरे साथ हमेशा तेरी यह मां रहेगी तेरा मानसिक संबल बन कर.”

सास की बातें सुन रोतेरोते भी नीरजा के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई. सास की बातों से उसे बहुत सुकून मिला. आज वह अकेली नहीं, बल्कि सास का सपोर्ट उस के साथ था.

नीरजा के अपने मांबाप पहले ही गुजर चुके थे. एक भाई था जो मुंबई में सैटल था. 3 बहने थीं जिन का घर इसी शहर में था. पर चारों भाईबहनों ने उस से कन्नी काट ली थी. ऐसे में तलाक के बाद उस का और उस की दोनों बच्चियों का संबल उस की सास ही थी और यह उस के लिए बहुत बड़ा सहारा था. जब भी वह परेशान होती या अकेला महसूस करती तो सास से बात कर लेती.

मैले साब : कैसी थी हवलदार की मेहमाननवाजी

हवलदार सिंह पुलिस में नहीं, बल्कि राजनीति में थे. वे अपने क्षेत्र के विधायक थे. गांव के लोग आदर से उन्हें ‘मैले साब’ बुलाते थे. इंगलिश का एमएलए बोलने में उन्हें थोड़ी मुश्किल आती थी. विधायकजी को भी इस उपनाम से एतराज नहीं था.

वोटरों के रुझान के मद्देनजर आम चुनाव के ठीक पहले ‘मैले साहब’ ने अपनी पार्टी से बगावत कर जनवादी मोरचा का दामन थाम लिया था. पूरे देश में जनवादी मोरचा के पक्ष में लहर चल रही थी.

चुनाव में अगड़ेपिछड़े दोनों का ठीकठाक सहयोग मिला और मैले साब की नैया पार लग गई. उन की विधायकी सलामत रही और पुरानी पार्टी के उम्मीदवार की जमानत तक जब्त हो गई. राजधानी में उन का पुराना बंगला उन के ही कब्जे में रह गया.

मैले साब के परिवार में उन की पत्नी और 2 बेटियां थीं. पिछली विधायकी में ही बेटियों की जिम्मेदारी से मुक्त हो चुके थे. बेटियां ससुराल में खुश थीं. पत्नी उन के साथ ही विधायक आवास में रहती थीं. वे अकसर बीमार रहती थीं. कोविड काल में संक्रमित हुईं और अस्पताल से लौट नहीं पाईं.

गांव के पुश्तैनी मकान की देखरेख रघु करता था. घर की साफसफाई, रसोई, खेतीबारी वही देखता था. बेटियां, दामाद और बच्चे विधायक आवास पर ही आना पसंद करते थे. रघु 25 साल का हट्टाकट्टा नौजवान था और अभी कुंआरा था.

‘‘जल्दी कोई अच्छी लड़की देख कर शादी कर लो… रसोई से फुरसत ले कर खेतीबारी पर मन लगाओ…’’ मैले साब को अपनी जायदाद की चिंता थी. खेती से होने वाली सालाना आमदनी से वे संतुष्ट नहीं थे.

‘‘मैना मौसी ने लड़की पसंद कर रखी है… महीनेभर की छुट्टी लगेगी…’’ रघु ने बताया. उस की मैना मौसी का गांव पास के दूसरे जिले में था. पिछले साल तक दोनों गांव एक ही जिले में आते थे.

‘‘रजनी के बच्चों की छुट्टियां हैं… गांव आने की बात है… मैं सलाह कर के महीनेभर की छुट्टी पक्की कर दूंगा…’’ मैले साहब ने भरोसा दिलाया. रजनी उन की बड़ी बेटी थी.

रघु जब 9 साल का था, तभी उस की मां कालाजार के चपेट में आ कर गुजर गई थी. मैना मौसी ने उसे अपने पास रखा था. पिछले चुनाव में रघु ने दोस्तों के साथ अपने गांव का पोलिंग बूथ का जिम्मा लिया था. इसी दौरान जानपहचान हुई और भरोसा कर मैले साब ने गांव की अपनी गृहस्थी रघु को सौंप दी.

शादी हफ्तेभर में निबट गई. मौसी ने नई बहू को अपने ही पास रखने की बात कही.

‘‘खेतीबारी का काम तो कुछ महीनों का होता है. फुरसत मिले, आ जाना. सीता पढ़ीलिखी और होशियार है. गांव के स्कूल में बच्चों को पढ़ाती है… हफ्तेभर की भी छुट्टी होगी तो तुम्हारे पास आ जाएगी,’’ मौसी ने रघु और सीता को पास बुला कर सुझाया. सीता अपने स्कूल की नौकरी से जुड़ी थी. उसे बच्चों से काफी लगाव था.

रघु लौट कर आया तो मैले साब घर पर ही थे. बेटीदामाद, नातीनातिन सब थे. घर में चहलपहल थी. रघु मेहमानों की खातिर में जुट गया. बच्चों ने रघु अंकल से दोस्ती कर ली.

बेटीदामाद और बच्चों को विदा कर मैले साब उदास हो गए थे. उन की बड़ी बेटी अपनी मां पर गई थी. मैले साब को पत्नी की बहुत याद आ रही थी.

‘‘ह्विस्की मिलेगी…’’ मैले साब ने रघु को बुलाया… डर था… प्रदेश में शराबबंदी लागू थी.

‘‘ह्विस्की का तो पता नहीं था… चोरीछिपे देशी बिकती है…’’ रघु बोला.

‘‘नींद लाने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा… जुगाड़ लगाओ…’’ मैले साब ने कहा.

रघु ने अपने दोस्तों से बात की… मनोहर ने गिरधारी का नाम लिया… गिरधारी शराबी और गंजेड़ी था.

‘‘शराबबंदी की ऐसीतैसी… ह्विस्की और देशी सब मिलेगी… रोकड़ा मांगता… दारू और छोकरी होना… और जिंदगी में क्या रखा है… सरकार की…’’ गिरधारी ने सरकार को गंदी गाली दी.

रघु ह्विस्की और देशी दोनों ले आया.

रघु ने चखने में भुनी मछली और बकरे का गोश्त बनाया. चखना, दारू की बोतल और गिलास बैठक में सजा कर रख दिया.

मैले साब को शराब थोड़ी चढ़ी तो बड़बड़ाने लगे… रघु को पास बुलाया और पीने की जिद की.

नानुकर करते हुए रघु ने देशी की आधी बोतल गटक ली.

‘‘मेरे पास टाइम किधर है… देश की राजधानी में मिनिस्टर बनूंगा… इधर

पूरी हवेली तुम्हारे नाम कर दूंगा… परिवार के साथ यहीं रहो… फूलोफलो… खुश रहो…’’

नशे में धुत्त मैले साब जमीन पर ही पसर गए… कुछ ही देर में खर्राटे भरने लगे.

अगले हफ्ते मैले साब राजधानी चले गए. पार्टी के एमएलए की खरीदफरोख्त और पाला बदलने की खबर थी. महामहिम के पास हाजिरी लगानी थी.

दशहरे की छुट्टी आने वाली थी. सीता को रघु के साथ रहने का ज्यादा मौका नहीं मिला था. स्कूल की दूसरी टीचर छेड़ती थी.

सरोज अकसर तंग किया करती थी… वह पेट से थी… 5वां महीना चल रहा था.

‘‘सैयां बसे परदेस… रैना कैसे बीते पिया बिन…’’ सरोज उसे छेड़ने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी. सीता का भी मन मचल रहा था.

रघु को सीता को साथ लाने में कोई परेशानी नहीं थी. धान की फसल की कटाई पूरी हो चुकी थी. सीता के साथ मैना मौसी भी आई थी. मैले साब का मकान हवेलीनुमा था. सीता को छोड़ कर मौसी दूसरे ही दिन वापस चली गई.

शादी के बाद पहली बार कुछ दिनों के लिए साथ रहने का मौका मिला था. पूरी आजादी थी. सीता रघु की मांसल बांहों और मर्दानगी पर फिदा हो चुकी थी. वह रघु की बांहों में चिपकी रहती थी. रघु के साथ खेतों में ट्रैक्टर पर मस्ती करती थी.

इस बीच अचानक मैले साब का इनोवा गाड़ी में आना हुआ. बड़ी गाड़ी में सूबे के बड़े मिनिस्टर आए थे.

रघु मेहमान की खातिरदारी में जुट गया. सीता को रसोई संभालनी पड़ी. मिनिस्टर के साथ कई बौडीगार्ड जीप से आए थे.

चखने और दारू की फरमाइश हुई. गिरधारी ने रम और ह्विस्की के लिए हरे नोटों की गड्डियां ऐंठी. इस धंधे से उस की काफी अच्छीखासी कमाई होती थी. छापामारी होने पर महकमे के अफसर को नजराना देना पड़ता था.

मिनिस्टर साहब देर रात तक पीते रहे. सरकार पलटने की साजिश नाकाम कर पाने की खुशी थी.

सीता ने खाना परोसा था. वह मेहमानों के पास जाने से हिचकिचा रही थी. मैले साब ने रघु को मजबूर किया, तो घूंघट निकाल कर खाना परोसने आई.

घूंघट में उस की सूरत तो छिप गई, पर गदराया बदन और मस्त जवानी ने मिनिस्टर साहब को पागल बना दिया था.

मिनिस्टर साहब बिस्तर में पड़ेपड़े करवटें बदल रहे थे. बेचैनी हो रही थी. सीता भी गई थी. रात रंगीन कर अपनी प्यास और सफर की थकान मिटाना चाहते थे.

देर रात मिनिस्टर साहब ने रघु को अपने कमरे में बुलाया और अपना घिनौना प्रस्ताव रखा.

‘‘बस, एक रात की बात है… मुझे तुम्हारी जोरू से जबरदस्ती नहीं करनी… इस में मजा नहीं आता… पूरी कीमत मिलेगी…’’ मिनिस्टर साहब ने अपने गले से सोने की मोटी चेन और हीरे की कीमती अंगूठी निकाली. मुंहमांगी रकम भी देने का लालच दे कर रघु को राजी करने की कोशिश की.

‘‘गरीब की आबरू से खिलवाड़ मत करो साहब… हम दोनों ने आप की सेवा की है… इस का तो खयाल करो…’’ रघु ने साफ इनकार कर दिया. वह बेहद गुस्से में था, पर लाचार था.

सूबे के मिनिस्टर के सामने उस की हैसियत ही क्या थी. अपनी जान की कीमत पर भी सीता की आबरू बचाने को तैयार था. सीता उस की पत्नी, उस की जीवनसंगिनी थी.

मैले साब गहरी नींद में थे. उन को घटनाक्रम की बिलकुल खबर नहीं थी. मिनिस्टर साहब और रघु के बीच की तनातनी से उन की नींद उचट गई.

रघु ने किस्सा बयान किया, तो उन्हें बेहद बुरा लगा. मैले साब को अपने मेहमान से ऐसी बेहूदगी की उम्मीद नहीं थी.

‘‘सीता मेरी बेटी है… मेरी तीसरी बेटी… मेरे पुश्तैनी मकान की वारिस…’’ मैले साब ने ऐलान किया.

सीता भावुक हो गई. उसे भरोसा हुआ… वह फफक पड़ी. मैले साब ने उसे गले से लगा लिया.

मिनिस्टर साहब का नशा काफूर हो चुका था. भोरअंधेरे उन्होंने ड्राइवर को बुलाया और अपनी इनोवा में चुपचाप निकल गए. वैसे, वे अपनी इस करतूत पर शर्मिंदा नहीं थे. हवलदार सिंह उर्फ मैले साब की मेहमाननवाजी पसंद नहीं आई थी. वे अगले चुनाव में सबक सिखाने की सोच रहे थे.

सौतेली मां : हामिद की दूसरी शादी

हामिद की शादी आज से 5 साल पहले पास के ही एक गांव में चांदनी नाम की लड़की से हुई थी. चांदनी सिर्फ नाम की ही चांदनी नहीं थी, बल्कि उस की खूबसूरती के चर्चे आसपास के गांवों में आएदिन सुनने को मिलते रहते थे. वह बला की खूबसूरत और गदराए बदन की मालकिन थी.

चांदनी की बड़ीबड़ी आंखें, सुर्ख होंठ, गुलाबी गाल, पतली कमर देख कर ऐसे लगता था जैसे आसमान की कोई अप्सरा उतर कर जमीन पर आ गई हो. यही वजह थी कि हामिद पहली ही नजर में चांदनी की खूबसूरती का दीवाना हो गया था और शादी के फौरन बाद उसे अपने साथ मुंबई ले आया था.

हामिद मुंबई में सेल्समैन था. उस की अच्छीखासी कमाई थी. चांदनी को हामिद के साथ किसी बात की कोई कमी न थी. हामिद चांदनी का ऐसा दीवाना था कि वह हर साल उस के लिए कोई न कोई सोने का जेवर बनवाता रहता था.

हामिद को चांदनी से 5 साल के अंदर 3 बच्चे पैदा हुए थे. सब से पहले बेटी और उस के बाद 2 बेटे. हामिद और चांदनी अपने बच्चों के साथ खुशीखुशी रह रहे थे. घर में किसी चीज की कोई कमी न थी. हर साल हामिद अपने बीवीबच्चों के साथ गांव आताजाता रहता था.

चांदनी एक गरीब परिवार की लड़की थी. चांदनी के घर में उस की बेवा मां, 2 छोटी बहनें और एक छोटा भाई था, जिन की गुजरबसर खेतों में काम कर के होती थी. चांदनी अपनी मां की पैसे से मदद करती रहती थी. उस की शादी को 15 साल कब गुजर गए, पता ही नहीं चला.

हामिद ने अपनी बीवी चांदनी के नाम उसी के गांव में 10 लाख रुपए का एक खेत खरीद लिया था. यही हामिद की सब से बड़ी भूल थी, जिस की वजह से चांदनी अपनी मनमानी करने लगी थी. हामिद मुंबई में ही रह रहा था. उसे यहां एक छोटी से खोली में रहते हुए काफी दिन बीत गए थे.

बच्चे बड़े हो रहे थे, इसलिए वह मुंबई में एक बड़ा घर खरीदना चाहता था. उस ने चांदनी से बात की कि गांव की जमीन बेच देते हैं और यहां घर खरीद लेते हैं. चांदनी तैयार हो गई, पर जब हामिद अपनी बीवी के साथ खेत बेचने गांव पहुंचा, तो चांदनी की मां ने चांदनी को भड़का दिया, ‘‘जमीन तेरे नाम है.

तू क्यों बेच रही है? अपने नाम की चीज मत बेच. तेरे बुरे वक्त में काम आएगी.’’ चांदनी अपनी मां के बहकावे में आ गई और हामिद से टालमटोल करने लगी. हामिद ने उसे समझाया, ‘‘इस खेत की कीमत भी अच्छी मिल रही है और हमें मुंबई में रहना है. वहां हमें बड़ा और सस्ता घर मिल रहा है.

ग्राहक तैयार है.’’ लेकिन चांदनी ने साफ मना कर दिया, ‘‘यह खेत मेरे नाम है और मैं इसे नहीं बेचूंगी.’’ हामिद ने चांदनी को बहुत समझाया, पर वह नहीं मानी. बातों ही बातों में झगड़ा होने लगा.

हामिद ने चांदनी के एक थप्पड़ मारते हुए कहा, ‘‘जब बेचना नहीं था तो मुंबई से क्यों आई? और मैं ने इसे तेरे नाम इसलिए खरीदा था कि औरत के नाम खरीदने से कम खर्चा होता है. अब हमें पैसे की जरूरत है, तो तुम मुझे धोखा दे रही हो.’’

हामिद का थप्पड़ मारना हुआ कि चांदनी की मां ने फौरन पुलिस को बुला लिया. पुलिस दोनों को थाने ले गई. दोनों की बात सुनी और उन्हें झगड़ा न करने की सलाह दी. पर अगले ही दिन चांदनी और उस की मां ने हामिद पर दहेज और खर्चे का दावा कर दिया और उस में हामिद की कमाई 80,000 रुपए महीना लिखवा दी.

उधर हामिद ने भी अपने वकील के जरीए चांदनी पर रुखसती और मानहानि का दावा कर दिया. हामिद के वकील ने चांदनी के मुताबिक बताए गए 80,000 रुपए महीने की कमाई के हिसाब से 14 साल की कमाई की चोरी का इलजाम चांदनी और उस की मां पर लगाया और कहा कि जब तुम ने बताया कि हामिद महीने के इतने सारे रुपए कमाता है, तो उस की 14 साल की कमाई कहां है? उस के नाम क्या है? तुम ने सब पैसा अपनी मां को दे दिया.

मामला बढ़ गया. मुकदमेबाजी शुरू हो गई. चांदनी अपनी मां के घर जा कर बैठ गई. उस ने बच्चों तक की सुध न ली. 7 महीने बरबाद करने के बाद हामिद अपने बच्चों को ले कर मुंबई वापस अपने काम पर लौट आया.

कुछ ही महीनों बाद हामिद की मुलाकात सोशल मीडिया पर शबनम से हो गई. दोनों की प्यार भरी बातें होने लगीं. हामिद ने शबनम को अपने और चांदनी के साथसाथ बच्चों के बारे में सब बता दिया. शबनम की उम्र महज 22 साल थी, जबकि हामिद की उम्र 45 साल थी, फिर भी दोनों के सिर पर प्यार का उफान चढ़ने लगा और एक दिन शबनम ने हामिद से कहा, ‘‘मुझे तुम से शादी करनी है.

मेरे मांबाप तो मानेंगे नहीं, अगर तुम मुझ से प्यार करते हो तो अपना पता और मुंबई आने का टिकट भेज दो. मैं मौका पा कर तुम्हारे पास आ जाऊंगी और हम शादी कर लेंगे.’’ हामिद को शबनम की यह बात जम गई और उस ने शबनम के लिए टिकट भेज दिया.

शबनम मौका देख कर मुंबई आ गई और वहां हामिद ने शबनम से कोर्टमैरिज कर ली. हामिद और शबनम दोनों खुशीखुशी रहने लगे. शबनम के आने से हामिद के बच्चे भी खुश रहने लगे. शबनम बच्चों का खयाल सगी मां से भी ज्यादा करती थी.

उन के खानेपीने का खूब खयाल रखती थी. खुद पढ़ीलिखी होने की वजह से शबनम बच्चों को खुद पढ़ाती थी. उस ने बच्चों के ऊपर इतनी मेहनत की कि वे तीनों अपनीअपनी क्लास में अव्वल आए. शादी के एक साल बाद शबनम को भी एक बेटा हुआ, जिसे पा कर हामिद और शबनम की खुशी का ठिकाना न रहा, लेकिन वक्त के साथसाथ शबनम का हामिद के बच्चों से प्यार कम होता गया.

अब वह हामिद के पहले बच्चों को नजरअंदाज करने लगी और बातबात पर उन्हें मारनेपीटने लगी. इस बात से बच्चे पूरी तरह सहम गए थे. वे शबनम से खौफ खाने लगे थे.

अब उन का पढ़ाई में भी दिल नहीं लगता था. शबनम ने हामिद से कहना शुरू कर दिया कि इन बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता. लड़की की पढ़ाई बंद करो. मैं भी दिनभर काम कर के थक जाती हूं. काम के बाद इस छोटे बच्चे को भी संभालना पड़ता है.

लड़की घर पर रहेगी, तो मेरे साथ घर के कामकाज में हाथ बंटाएगी. पहले तो हामिद ने मना किया, पर शबनम की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा और इस तरह हामिद की पहली बच्ची का भविष्य घर की चारदीवारी में कैद हो कर रह गया.

दिनभर घर का काम करने के बाद भी उस लड़की को पेट भर खाना नहीं मिलता था और छोटी सी उम्र में ही वह घर में बाल मजदूर की तरह जिंदगी बिताने के लिए मजबूर हो गई. अभी बड़ी बेटी का भविष्य अंधकारमय हुए 3 महीने ही हुए थे कि शबनम ने हामिद के बड़े बेटे की भी पढ़ाई बंद करने का मशवरा देते हुए कहा कि अब उसे अपने साथ काम पर लगाओ, ताकि तुम्हें भी कुछ आराम मिल जाए.

अगर उसे पढ़ना है तो रात वाले सरकारी स्कूल में दाखिला करा दो. अपने छोटे बेटे का भी उसी सरकारी स्कूल में दाखिला करा दो. इस से बच्चों की फीस बचेगी और किताबें व ड्रैस भी स्कूल से मुफ्त में मिल जाएंगी. हामिद को शबनम की यह बात बुरी लगी.

उस ने शबनम को समझाया, ‘‘वे तीनों मेरी औलाद हैं और मैं किस के लिए कमा रहा हूं. आज मैं जिंदा हूं तो अपनी औलाद के लिए. इन्हीं के लिए मैं मेहनत कर रहा हूं. बच्चे अगर मेरे पास न होते तो आज मैं भी न होता. ‘‘मर तो मैं उसी दिन गया था, जब चांदनी ने मुझे धोखा दिया था.

इन बच्चों की खातिर मैं ने जीने की हिम्मत की और तुम इन का ही भविष्य बरबाद करने पर तुली हो.’’ यह सुन कर शबनम खफा हो गई. हामिद को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. शबनम के रूठने से वह बेचैन हो उठा. शबनम न खाना बना रही थी, न किसी से बात कर रही थी.

बच्चों की हालत और शबनम का रूखापन हामिद को अंदर ही अंदर खाए जा रहा था. वह सोच रहा था कि अगर शबनम भी उसे छोड़ कर चली गई तो बच्चों का क्या होगा? उस ने यही फैसला लिया कि शबनम की बात मान ली जाए. हामिद ने अपने बड़े बेटे को अपने ही साथ काम पर लगा लिया और दोनों बेटों का रात के सरकारी स्कूल में दाखिला करवा दिया.

उधर चांदनी भी मुंबई आ गई. उस ने यहां हामिद के खिलाफ फिर पुलिस में शिकायत दर्ज की. पुलिस ने हामिद और शबनम को पुलिस स्टेशन बुलाया और उस से पूछा, ‘‘अपनी पहली बीवी को छोड़ कर तुम इस के साथ क्यों रह रहे हो?’’ हामिद ने सब बातें बताईं.

पुलिस ने चांदनी को बोला, ‘‘तुम्हारा मामला कोर्ट में है. वहां से कोई और्डर मिलेगा तब आना.’’ हामिद और शबनम घर आ गए. अब शबनम हामिद से जिद करने लगी कि बच्चों को उन की मां चांदनी को दे दो, भले ही उन्हें यहां कोई घर किराए पर ले कर दे दो.

हामिद की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. शबनम बच्चों को अपने पास रखने से क्यों कतरा रही थी? शादी के एक साल तक तो उस ने इन बच्चों को अपने सगे बच्चों की तरह प्यार किया, आज जब इस के खुद का बेटा हो गया तो उन से नफरत करने लगी और जिद पर अड़ी हुई है कि इन बच्चों को इन की मां चांदनी को दे दो.

उधर चांदनी को पता नहीं इन बच्चों से क्या नफरत थी कि उस ने आज तक न तो इन्हें कोर्ट से मांगा और न ही कभी बच्चों से मिलने की ख्वाहिश जाहिर की. ऐसी हालत में कैसे चांदनी से कहा जाए कि बच्चों को तुम अपने पास रख लो? समय बीतता गया.

बच्चों का भविष्य चौपट होता गया. उन के चेहरे की खुशी दब कर रह गई. उन्हें देख कर ऐसा लगता था, जैसे बच्चे हंसना ही भूल गए हों. हामिद चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था. वह फिर से उन के सिर से मां के साए को दूर नहीं करना चाहता था.

आज बच्चे भले ही परेशानी में थे, पर उन के पास मां तो थी. उन्हें जैसा भी खाना मिल रहा था, पर भूखे तो नहीं थे. हामिद कभी बच्चों के लिए बाहर से कुछ लाता तो शबनम बच्चों को नहीं देने देती थी. भले ही वे पेट भर कर नहीं खाते थे, पर थोड़ाबहुत तो उन्हें मिल ही जाता था.

शबनम का पूरा ध्यान अपनी कोख से जनमे बच्चे पर था. हामिद ने कभी सोचा भी नहीं था कि जिन बच्चों के लिए वह शादी कर रहा है और उन के लिए नई मां ला रहा है, वह उन के साथ सौतेला बरताव रखेगी. आज उसे अहसास हो रहा था कि उस ने अपने से कम उम्र की कुंआरी लड़की से शादी कर के सब से बड़ी भूल की थी.

आज उस की वजह से ही बच्चे गुमसुम हो गए थे. सौतेली मां से बच्चों को जो दुख मिल रहा था, वह वाकई बरदाश्त के बाहर था, पर हामिद कर भी क्या सकता था. वह इस दुखभरी जिंदगी को जीने के लिए मजबूर था.

बस अब और नहीं: अनिरुद्ध के व्यवहार में बदलाव क्यो आया

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काले घोड़े की नाल: आखिर क्या था काले घोड़े की नाल का रहस्य ?- भाग 1

मुखियाजी को घोड़े पालने का बहुत शौक था. बताते हैं कि ये शौक उन को विरासत में मिला हुआ था. आज भी मुखियाजी के पास 5 घोड़े थे, जिन की देखभाल का काम उन्होंने चंद्रिका नाम के 35 साला एक शख्स को दे रखा था.

मुखियाजी की उम्र तकरीबन 50-55 उम्र के बीच, फिर भी बढ़ती उम्र का कोई असर नहीं पता चलता था. रोज सुबहशाम दूध पीते और लंबी सैर को जाते. अपनी जवानी के दिनों में आसपास के इलाकों में खूब दंगल जीते थे मुखियाजी ने.

पीठ पीछे कोई मुखियाजी को कुछ भी कहे, पर उन के सामने सभी नतमस्तक नजर आते थे.

मुखियाजी और उन की पत्नी के जीवन में एक बहुत भारी कमी थी कि दोनों के कोई औलाद नहीं थी. घरेलू नुसखों से कई बार उपचार करने की कोशिश भी की गई, पर कुछ नतीजा नहीं निकला. मुखियाइन की गोद हरी नहीं हो सकी और दोनों हार कर हाथ पर हाथ धर कर बैठ गए.

मुखियाजी को अपनी वंश बेल सूखने की कतई परवाह नहीं थी. उन्हें तो अपनी जिंदगी में अपनी सभी इंद्रियों से सुख उठाना अच्छी तरह आता था.

मुखियाजी कुल मिला कर 3 भाई थे, मुखियाजी से छोटा वाला संजय और सब से छोटा विनय, दोनों भाई मुखियाजी के प्रभाव में दबे हुए रहते थे. किसी की भी उन के सामने जबान खोलने की हिम्मत नहीं थी.

पिछले कुछ दिनों से मुखियाजी के मन में उन के किसी चमचे ने समाजसेवा का शौक लगा दिया था, तभी तो मुखियाजी हर किसी से यही कहते कि बड़े घर से तो हर कोई रिश्ता जोड़ना चाहता है, पर मैं तो संजय और विनय की शादी किसी गरीब घर की लड़की से ही करूंगा.

हां… पर लड़की खूबसूरत और सुशील होनी चाहिए, समाजसेवा भी होगी और किसी गरीब का भला भी हो जाएगा.

आसपास के गांव में कम पैसे वाले ठाकुर भी रहते थे. उन में से बहुत से लोग मुखियाजी के यहां अपनी लड़कियों का रिश्ता ले कर पहुंचे. मुखियाजी ने लड़कियों के फोटो रखवा लिए और बाद में संपर्क करने को कहा.

कुछ दिन बाद मुखियाजी ने उन सारे फोटो में से 2 खूबसूरत लड़कियों को पसंद किया. हैरानी की बात थी कि मुखियाजी ने जो 2 लड़कियां पसंद की थीं, वो अपेकक्षाकृत भरेपूरे बदन की थीं.

मुखियाजी ने उन दोनों के पिताजी को बुला भेजा और हर किसी से अकेले में बात की, “देखिए, हम अपने भाई संजय के लिए एक लड़की ढूंढ़ रहे हैं… पर हमारी 2 शर्तें हैं…

“पहली शर्त तो यह है कि फोटो देख कर लड़की की बुद्धिमत्ता का परिचय नहीं मिलता, इसलिए हम व्यक्तिगत रूप से लड़की से मिलना चाहेंगे… और दूसरी शर्त क्या होगी कि ये हम आप को रिश्ता तय होने के बाद बताएंगे.”

दूसरी शर्त वाली बात से लड़की का पिता थोड़ा घबराया, तो मुखियाजी ने उस से कहा कि ऐसी कोई शर्त नहीं होगी, जिसे वे पूरा न कर सकें. उन की इस बात पर लड़की के बाप को कोई आपत्ति नहीं हुई.

उन लोगों ने घर जा कर अपनी बेटियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया कि मुखियाजी के सभी सवालों का उत्तर सही से देना और सासससुर की बात मानना एक अच्छी बहू के गुण होते हैं.

मुखियाजी को आखिरकार सीमा नाम की एक लड़की पसंद आ गई.

“देखो सीमा, संजय को हम ने ही पालपोस कर बड़ा किया है, इसलिए हमारी हर बात मानता है वह. यही उम्मीद हम तुम से भी करते हैं… मानोगी न हमारी बात,” सीमा की पीठ पर हाथ घुमाते हुए मुखियाजी ने कहा. सीमा ने सिर्फ हां में सिर हिला दिया.

मुखियाजी ने सीमा के बाप मोती सिंह को बुलाया और कहा कि उन की लड़की उन्हें पसंद आ गई है और सब से पास वाले मुहूर्त बमें वे सीमा और संजय की शादी कर दें और फिर मुखियाजी ने सीमा के बाप मोती सिंह को अपनी दूसरी शर्त के बारे में बताया, “हमारी दूसरी शर्त ये है कि तुम हमें अपनी लड़की दे रहे हो, इसलिए हमारा भी फर्ज है कि हम तुम्हें अपनी तरफ से कुछ भेंट दें,” ये कह कर मुखियाजी ने 50,00 रुपए मोती सिंह को पकड़ा दिए. मोती सिंह उन की दरियादिली पर खुश हो गया. उस ने मुखियाजी के सामने हाथ जोड़ लिए.

संजय और सीमा की शादी हो गई थी, पर मुखियाजी का सख्त आदेश था कि अभी संजय और सीमा की सुहागरात का उचित समय नहीं है, इसलिए संजय को अलग कमरे में सोना पड़ेगा.

मुखियाजी अपने दोनों भाइयों के गांवों में रहने के सख्त खिलाफ थे. उन का साफ कहना था कि अगर तुम लोग गांव में रुक गए, तो यहां के गंवार लड़कों के साथ तुम लोग भी नहर पर बैठ कर चिलम पीया करोगे और आवारागर्दी करोगे और ये बात मुखियाजी को मंजूर नहीं, इसलिए मेहमानों के जाते ही संजय और विनय को शहर चलता कर दिया गया. बेचारा संजय अभी अपनी पत्नी के साथ सैक्ससुख भी नहीं ले पाया था और उस से अलग हो जाना पड़ा.

सीमा ने संजय से न जाने की फरियाद भी की, पर मुखियाजी का आदेश संजय के लिए पत्थर की लकीर था, इसलिए वह कुछ न बोल सका.

इसी तरह पूरे 6 महीने हो गए थे संजय को गए हुए, सीमा ने एक मर्द के शरीर का सामीप्य अभी तक नहीं जाना था. वह अकसर सोचती कि ऐसी शादी से क्या फायदा कि दिनभर घर का काम करो और रात में बिस्तर पर करवटें बदलो…

बाहर बारिश हो रही थी. सीमा अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी कि उसे अपने पैरों पर किसी के गरम हाथ की छुअन महसूस हुई. वे हाथ उस की जांघों तक पहुंच गए थे, कोई उस के सीने पर अपने हाथों का दबाव बढ़ा रहा था. सीमा की सांसें गरम हो गई थीं. उस का स्पर्श सीमा को बहुत अच्छा लग रहा था. सीमा को लगा कि उस का पति संजय ही वापस आ गया है. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं और आंनद लेना शुरू कर दिया. उस आदमी ने सीमा के सारे कपड़े हटा दिए और सीमा के स्त्री शरीर में प्रवेश कर गया.

सीमा को आज पहली बार मर्द की मर्दानगी का मजा मिला था. संभोग खत्म होते ही वह व्यक्ति सीमा से अलग हो गया.

सीमा ने उस की तरफ देख कर प्यारमनुहार करना चाहा और अपनी आंखें खोलीं…पर ये क्या, ये तो संजय नहीं था, बल्कि मुखियाजी थे… बिस्तर में पूरी तरह नग्न सीमा भला मुखियाजी का सामना कैसे करती. उस ने तुरंत ही चादर से अपने शरीर को ढकने की असफल कोशिश की और अस्फुट स्वर में बोली, “ये क्या किया मुखियाजी आप ने?”

“एक बात अच्छी तरह समझ ले सीमा… तुझे अब मुझे ही अपना पति समझना होगा, क्योंकि संजय का सारा खर्चा मैं उठाता आया हूं. मेरे सामने वह चूं तक नहीं करेगा. मैं उस के माल का मजा उड़ा सकूं, इसीलिए उस को मैं ने शहर भेज दिया है…

“और वैसे भी हम ने तेरे बाप को हमारी हर बात मानने के लिए पैसे दिए हैं,” नशे में बोल रहे थे मुखियाजी.

ऐसा सुन कर सन्न रह गई थी सीमा, पर मन ही मन उस ने अपनेआप को समझा लिया था, क्योंकि उसे मुखियाजी के रूप में उस के जिस्म को सुख पहुंचाने वाला मर्द जो मिल गया था.

फिर क्या था, मुखियाजी लगभग रोज ही सीमा के कमरे में आ जाते और दोनों सैक्स का जम कर मजा उठाते. मुखियाजी के चेहरे की लालिमा बढ़ गई थी. नई जवान लड़की के जिस्म का रस पी कर जैसे उन की जवानी ही वापस आ गई थी.

कभीकभी जब मुखियाजी अपनी पत्नी के पास ही सो जाते तो सीमा को जैसे सौतिया डाह सताने लगता. उसे अकेले नींद न आती, इसलिए कभी वह चूड़ियां खनकाती, तो कभी अपनी पायलें बजाते हुए मुखियाजी के कमरे के सामने से निकलती. हार कर मुखियाजी को उठ कर आना पड़ता और सीमा के जिस्म की आग को बुझाना पड़ता.

इस दौरान शहर से संजय वापस आया, तो मुखियाजी की त्योरियां चढ़ने लगीं और उन्होंने उसे किसी बहाने यहांवहां दौड़ा दिया, ताकि वह सीमा के साथ न रह पाए. फिर एक दिन उसे पैसावसूली के लिए दूसरे गांव भेज दिया और जब वह वापस आया, तब तक शहर से उस के ठेकेदार का बुलावा आ चुका था. बेचारा संजय अपनी पत्नी के संसर्ग को तरसता रह गया.

कुछ समय बीता तो मुखियाजी अपने छोटे भाई विनय की शादी के बारे में सोचने लगे. उन्होंने शहर से विनय को भी बुलवा लिया था और बहू ढूंढ़ने लगे. जल्दी ही उन्हें मुनासिब बहू मिल भी गई, जिस का पिता गरीब था और पहले की तरह ही उसे पूरे 50,000 रुपए देते हुए मुखियाजी ने लड़की के बाप से कहा कि बस अपनी लड़की से इतना कह दो कि विनय को पढ़ानेलिखाने में हम ने बहुत खर्चा किया है. हम ही उस के मांबाप हैं, इसलिए हमारी बात मान कर रहेगी तो सुखी रहेगी.

विधायक को जवाब : निशा किस वारदात से डरी हुई थी- भाग 1

निशा दोपहर की वारदात से बहुत ज्यादा डरी हुई थी, पर उस में बहुत हिम्मत बाकी थी. वह उदास सी कच्चे मकान की तीसरी मंजिल पर पलंग पर लेटी हुई थी. उसे हलका बुखार था. माथा दर्द से फटा जा रहा था. कभीकभी तो निशा अपने दोनों हाथों से सिर को इस तरह पकड़ लेती मानो उसे दबा कर निचोड़ देना चाहती हो. उस के बाल इधरउधर बिखर गए थे. वह बहुत बेचैन थी. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. अचानक निशा ने अपने दिल की आवाज सुनी, ‘निशा, तू इस शहरगांव, देश को छोड़ दे,’ और उस ने मरने की ठान ली. उस का चेहरा धीरेधीरे सख्त होने लगा. अचानक वह उठ कर बैठ गई. मगर जैसे ही उस ने उठना चाहा, बगल वाले टूटे पलंग पर लेटे पिता पर उस की नजर पड़ गई.

निशा ने जब गौर से पिता की नंगी पीठ देखी, तो उस के कानों में एमएलए कृपाल सिंह के आदमियों के डंडों की सरसराहट और पिता की चीखें गूंजने लगीं. उसे लगा मानो एमएलए की धमकी भरी तेज आवाज से उस का घर चरमरा कर गिर पड़ेगा. उस की आंखों से आंसू बहने लगे. वह अपने दोनों हाथों से चेहरा छिपा कर रोने लगी. निशा और राजन एकसाथ कोचिंग क्लासों में मिले थे. निशा के पास कुछ नहीं था, पर उस के हर ऐग्जाम में 98 फीसदी मार्क्स आते थे. राजन ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया. राजन पहले मौजमस्ती वाला लड़का था, पर निशा के पढ़ाने पर कोचिंग के मौक टैस्टों में अब वह भी 90 फीसदी मार्क्स लाने लगा था. मार्क्स ही नहीं मिले, दिल भी मिले और बदन भी. अब दोनों को अलग करना मुश्किल था. अचानक निशा के दिल ने फिर आवाज दी, ‘धीरज रखो निशा, सब ठीक हो जाएगा. अगर तुम भाग जाओगी तो पिता का क्या होगा? उस राजन का क्या होगा, जो तुम्हारे प्यार में अपना सबकुछ छोड़ने को तैयार है? तुम्हारे प्यार को ही वह अपनी मंजिल मानता है.

और जब तुम ही नहीं रहोगी तो वह कहां जाएगा? तब शायद वह भी मर जाएगा.’ राजन की बातें निशा के कानों में गूंजने लगीं, ‘नहीं निशा, तुम्हें कुछ नहीं होगा. मुझ पर यकीन करो. मैं इस ऊंचनीच की दीवार को तोड़ कर एक दिन इस सारी बस्ती की क्या सारे शहर के सामने तेरी मांग में सिंदूर भरूंगा. मरने की बात मत करो. अगर तुम्हें कुछ हो गया, तो मैं खुद को आग लगा दूंगा.’ निशा बड़बड़ाने लगी, ‘‘मुझे कुछ नहीं होगा राजन… मैं तुम्हारे साथ हूं… मैं भी लड़ूंगी इस समाज से भी, पुलिस से भी, मैं भी लड़ूंगी…’’ अचानक निशा ने देखा कि उस के पिता उसी की तरफ आ रहे हैं. वह आंखें बंद कर के सोने का नाटक करने लगी. मगर पिता तो पिता होता है, वे बेटी की हर हरकत को भांप चुके थे. वे उस के टूटे से पलंग पर बैठ गए. उस के गालों पर आंसू देख कर पहले तो सहमे, फिर प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, ‘‘तेरा बाप हूं… तेरी हालत को मैं जानता हूं. मगर मैं ऐसा बाप हूं,

जो तेरी इच्छा को जानते हुए भी तेरे लिए कुछ नहीं कर पा रहा हूं. मैं बेसहारा हूं. ‘‘बेटी, मेढ़क अगर चांद के पास जाना चाहे तो वह फुदकफुदक कर जान दे देगा, फिर भी वह चांद तक नहीं पहुंच पाएगा. हम उसी मेढ़क की तरह हैं. बेटी, भूल जा राजन को. ‘‘मैं मानता हूं कि प्यार करना कोई जुर्म नहीं है. मगर तुम्हारा सब से बड़ा जुर्म यह है कि तुम मेरी बेटी हो… एक हरिजन की बेटी. राजन इस इलाके के एमएलए के बेटे हैं, राजपूत खानदान के एकलौते वारिस हैं. वे ऊंची जाति वाले लोग हम हरिजनों को अपने आंगन में बैठा कर खाना तक नहीं खिलाते… अपना बेटा कहां से देंगे? ‘‘यह दुनिया फूलों की सेज नहीं है बेटी, बहुत कांटे हैं इस में. अपनी जिंदगी बचा लो, भूल जाओ राजन को. पोंछ लो आंसू… पत्थर आंसुओं से कभी नहीं पिघला करते. पत्थरों से सिर टकराने से अपना ही सिर फूटता है बेटी.’’ निशा जो अब तक चुप थी, फफक कर रो पड़ी. उस ने अपने पिता के सीने में अपना चेहरा छिपा लिया. कुछ देर तक बापबेटी एकदूसरे की बांहों में सुबकते रहे. फिर किसी तरह अपनेआप को संभालते हुए पिता बोले, ‘‘बेटी, इतना याद रखो कि हम हरिजन हैं… छोटी जाति के हैं. तुम…’’ बात को बीच में ही काटते हुए निशा बोली, ‘‘मगर बापू, आज जमाना बदल गया है. आप भी जानते हो और राजन भी जानता है कि यह कच्ची बस्ती का मकान हम जल्दी छोड़ देंगे. मुझे जरा इंजीनियरिंग करने दो, मैं लाखों कमाऊंगी. अब कोई हमारे रास्ते को जाति के नाम पर नहीं रोक सकता.

‘‘पर जब मेरे नंबर पता चलते हैं, तो चकरा जाते हैं, इसीलिए राजन इस फर्क को नहीं मानता.’’ ‘‘मैं जानता हूं बेटी, राजन का दिल साफ है. मगर जातपांत और ऊंचनीच की दीवारों को तोड़ना आसान नहीं है. विधायक कृपाल सिंह और वह भी सत्ताकद पार्टी का, किसी भी शर्त पर एक हरिजन की बेटी को अपनी बहू बनाना कबूल नहीं करेगा. यह बात दूसरी है कि वोट मांगने वह घरों में घुसता हो, पर बहू मांगने इस मकान में कभी नहीं आएगा.’’ कुछ देर बाद पिता उठे और अपने पलंग पर जा कर लेट गए. निशा चुपचाप बुत बनी वहीं बैठी रही. उसे कुछ सूझ नहीं रहा था. एक तरफ राजन का प्यार था, तो वहीं दूसरी तरफ जातपांत की दीवार थी. आखिर वह क्या करे? धीरे से निशा भी लेट गई और राजन के बारे में सोचने लगी. राजन तो दिल का राजा था. आज के जमाने में ऊंचनीच और जातपांत को न मानने वाला वह नौजवान सचमुच दिल का बादशाह था. यही वजह थी कि एक हरिजन की बेटी को वह अपना दिल दे बैठा था. उसे उस के कुछ दोस्तों ने कहा था कि नंबरों पर मत जा, औकात देख. निशा को एक दिन की बात याद आ गई, जब राजन उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा कर शहर से काफी दूर निकल गया था.

मोटरसाइकिल पर पीछे बैठी निशा ने राजन को कस कर पकड़ा हुआ था कि कहीं वह गिर न जाए. कभीकभी राजन जब अचानक ब्रेक लगा देता, तो निशा पूरी तरह उस पर झुक जाती. तब शरमाते हुए वह सिर्फ इतना ही कह पाती, ‘ठीक से चलाओ न.’ जब दोनों काफी दूर निकल आए तो निशा से नहीं रहा गया और पूछ बैठी कि वे कहां जा रहे हैं? मगर राजन मुसकरा कर बारबार अनसुनी कर देता. आखिर निशा अचानक जोर से बोली, ‘गाड़ी रोकिए.’ राजन मोटरसाइकिल रोक कर निशा की तरफ मुड़ा और मुसकराते हुए बोला कि वह एक रिजौर्ट में पूरा दिन बिताने ले जा रहा?है. पहले तो वह मना करती रही, मगर राजन की बात को ठुकरा नहीं पाई थी. वह निशा को पहली बार इतने शानदार रिजौर्ट में ले कर आया था. निशा ने छक कर खाया. दोनों ने बाद में एक कमरे में पूरा दिन बिताया. राजन निशा की गोद में सिर रख कर लेट गया. तब निशा प्यार से उस के माथे पर हाथ फेरते हुए बोली थी, ‘थक गए क्या?’ राजन भी निशा की आंखों में झांकते हुए प्यार से बोला था,

‘नहीं निशा, इस समय मुझे ऐसा लग रहा है, जैसे मुझे दुनियाभर की खुशियां मिल गई हैं.’ निशा कुछ नहीं बोली, तो राजन ने कहा, ‘चुप क्यों हो?’ ‘डरती हूं.’ ‘क्यों?’ हिचकिचाते हुए निशा ने कहा, ‘आप विधायक के बेटे, ऊंची जाति के…’ ‘और तुम एक हरिजन की बेटी… यही कहना चाहती हो न तुम?’ राजन थोड़े गुस्से से बोला था. निशा खामोश ही रही. फिर बड़े प्यार से राजन ने अपने दोनों हाथों से उस का चेहरा सामने करते हुए कहा, ‘मैं तुम से कितनी बार कह चुका हूं कि इस तरह की बातें मत किया करो. मैं जो कुछ भी हूं सिर्फ तुम्हारा हूं और तुम मेरी होने वाली पत्नी हो.

मैं तो इतना ही जानता हूं कि अगर तुम नहीं तो मैं भी नहीं.’ निशा अपने बीते हुए दिनों में खोई हुई थी कि अचानक पीछे की छोटी सी खिड़की से कोई कूदा. वह डर गई. घबराते हुए वह पलंग से उठने लगी. फिर जैसे ही बोलने के लिए उस ने मुंह खोलना चाहा, उस साए ने उस का मुंह बंद कर दिया और धीरे से कहा, ‘‘मैं हूं निशा, राजन, तुम्हारा राजन.’’ निशा राजन की बांहों में समा गई. उस के सीने में अपना चेहरा छिपा कर सुबकने लगी. राजन ने उस के बालों पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘मुझे सब मालूम हो गया निशा, लेकिन अब सब ठीक हो जाएगा.

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