अब पता चलेगा – भाग 3 : राधा क्या तोड़ पाई बेटी संदली की शादी

फंक्शन से फ्री हो कर जब सब साथ बैठे, मधु ने कहा,”मुझे आप लोगों से कुछ जरूरी बात करनी है.”

सुनते ही राधा ने विकास को इशारा किया, “देखो, मैं ने कहा था न…”

राधा ने कहा,”जी कहिए.”

”देखिए, पैसे की हमारे यहां कोई कमी है नहीं, बस मेरा मन तो अपने बच्चों की खुशी में खुश होता है, मेरी इच्छा है कि शादी अब जल्दी ही कर दें, घर में रौनक हो, हमारी बेटी कोई है नहीं और मुझे संदली के साथ रहने की बहुत इच्छा है, मुझ से अब इंतजार नहीं होगा, शादी अब बहुत जल्दी हो जाए, बस यही मान लीजिए.

“तैयारी भी मैं सब कर लूंगी और हां, संदली ने जो लोन लिया है, वह भी हम चुका देंगे, अब संदली यहां फैमिली बिजनैस संभाल लेगी. उसे वहां अकेली रह कर जौब करने की जरूरत है ही नहीं. अब बच्चे मिल कर बिजनैस संभालें, हमारे पास रहें और क्या…”

विकास ने हाथ जोड़ दिए,”आप जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा, हम तैयार हैं. लोन चुकाने की बात आप न सोचें प्लीज, हमारा एक फ्लैट किराए पर चढ़ा है, उसे संदली को देने के लिए ही इन्वेस्ट किया था. अब उसे बेच देंगे तो लोन चुक जाएगा, कोई प्रौब्लम नहीं है. शादी जब आप कहें, हो जाएगी.”

मधु ने खुश हो कर उठ कर संदली को गले लगा लिया. खूब प्यार करते हुए बोलीं,”बस मेरी बहू अब जल्दी घर आ जाए. संदली, अब एक बार जाना और वहां से अपना सब सामान ले आओ, बस अब तो आर्यन के साथ ही घूमने जाना.”

आगे का प्रोग्राम तय होने लगा था. राधा हैरान थी कि इतनी जल्दी यह सब… ये कैसे लोग हैं? कोई इतना अच्छा कैसे हो सकता है?

मुंबई लौटते हुए संदली ने पूछा,”मम्मी, सब ठीक लगा न आप को?”

”देखते हैं, कुछ ज्यादा ही अच्छा परिवार लग रहा है. देखते हैं कि तुम कितना खुश रहती हो इन के साथ.अब पता चलेगा…’’

संदली चुप ही रही. राधा ने फिर विकास से कहा,”आप ने सब बात खुद ही कर ली उन से, मुझ से कुछ पूछा ही नहीं.”

”पूछना क्या था, सब अच्छा ही लग रहा था, अच्छे लोग हैं.”

दोनों तरफ शादी की तैयारियां शुरू हो गईं. 2 महीने बाद ही शादी थी. प्रिया भी सपरिवार आने वाली थी. संदली ने रिजाइन कर दिया और वहां से सब क्लियर कर लौट आई. मधु फोन पर ही उस से पूछपूछ कर उस की पसंद की तैयारी करने लगीं. मधु एक से बढ़ कर एक चीजें उस की पसंद से बनवा रही थीं.

राधा ने कहा,”मुझे पता ही है कि इन अमीरों के 4 दिन के चोंचले हैं, थोड़े ही दिनों में असलियत सामने आएगी, पहले तो सब अच्छा ही दिखता है.”

संदली मन ही मन बहुत उदास थी. शादी का समय था उस पर भी मां की अजीबोगरीब बातें रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. जो भी तैयारी राधा कर रही थीं, बोझ समझ कर कर रही थीं, उस में बेटी को अच्छा परिवार मिलने की कोई खुशी नहीं थी. हर समय किसी न किसी बात पर आर्यन के परिवार को ले कर कुछ ऐसा कह देतीं कि संदली का चेहरा मुरझा जाता.

विकास सब समझ रहे थे पर क्या करते, राधा को कुछ कह कर घर का माहौल खराब नहीं करना चाहते थे. प्रिया भी आ चुकी थी, उस के पति विशाल और दोनों बच्चे सोनू,पिंकी मौसी की शादी को ले कर बहुत उत्साहित थे.

सब खुश थे पर राधा का स्वभाव अकसर रंग में भंग डाल देता. विकास ने अपने बजट के अनुसार सारा पैसा अनिल के अकाउंट में ट्रांसफर कर दिया था. सब इंतजाम आर्यन का परिवार ही देख रहा था.

शादी से 4 दिन पहले संदली अपने परिवार के साथ दिल्ली पहुंची तो आर्यन की तरफ से कई गाड़ियां उन्हें लेने आई हुई थीं.

अनिल और मधु ने खुद एअरपोर्ट पर सब का स्वागत किया और उन्हें पानीपत के ही एक होटल में ले गए, जहां सारा इंतजाम बहुत शानदार था.

रस्में बहुत खुशी से पूरी की गईं. विवाह का आयोजन शानदार रहा. सबकुछ अच्छी तरह से संपन्न हुआ. राधा परिवार सहित मुंबई लौट आईं. कुछ दिन बाद प्रिया भी वापस चली गई.

विकास औफिस के काम में व्यस्त हो गए. राधा का पुराना रवैया चलता रहा. हर बात में अब भी अपने को ही सही ठहरातीं. संदली जब फोन करती, राधा खोदखोद कर पूछतीं कि ससुराल का क्या हाल है?

संदली तारीफ करती तो कहतीं,”मुझे पता है, यह सब प्यारव्यार थोड़े दिनों की बात है. आगे पता चलेगा.”

संदली ने घर का बिजनैस संभालना शुरू कर दिया था. एक नया शोरूम खोला जा रहा था जिस की देखरेख संदली और आर्यन पर छोड़ दी गई थी, उस के लिए एक कार और ड्राइवर हमेशा रहता. वह बहुत खुश रहती. उसे सारी सुविधाएं और ढेर सारा प्यार मिल रहा था.

कुछ ही दिनों में अभय की शादी भी उस की गर्लफ्रैंड तारा के साथ तय हो गई.

राधा ने सुनते ही कहा,”संदली, अब पता चलेगा तुम्हें जब देवरानी घर आएगी और प्यार बंटेगा.”

संदली चुप रही. अभय के विवाह में राधा और विकास भी गए. अब की बार भी उन्हें बहुत सम्मान दिया गया. सब कुछ पहले की तरह अच्छी तरह से हुआ. संदली की अपनी देवरानी तारा से खूब जम रही थी. दोनों खूब मस्ती कर रही थीं.

राधा ने मुंबई आने के बाद संदली से देवरानी के हाल पूछे तो वह खूब उत्साह से तारा और अपनी खूब अच्छी दोस्ती के बारे में बताने लगी. संदली और तारा का आपस में बहनों जैसा प्यार हो गया था.

राधा ने कहा,”बेटा, मैं ने देखे हैं ऐसे रिश्ते, अब पता चलेगा थोड़े दिनों में जब यही प्यार तकरार में बदलेगा, देखना.”

आज संदली का धैर्य जवाब दे गया. विकास भी वहीं बैठे थे, फोन स्पीकर पर था, संदली फट पड़ी थी आज,”हां, मुझे पता चल चुका है कि आप के लिए हर रिश्ता बेकार है. आप को कहां किसी रिश्ते में प्यार दिखता है? मम्मी, पता नहीं क्यों आप के लिए सब बुरा ही होने वाला होता है. मुझे तो इस घर में आने के बाद यह पता चला है कि शांति से रहना कितना आसान है, प्यार दो, प्यार लो, काश कि आप को भी यह पता रहता.

“बस, यहां जो मुझे पता चला है, वह सब आप के साथ रह कर कभी पता ही नहीं चला. आप मुझे अब कभी मत बताना कि मुझे क्या पता चलेगा? मुझे जो पता चलना था, चल चुका. इतना प्यार है यहां पर, मैं कितनी खुश हूं,आगे भी खुश ही रहूंगी, मुझे तो यह पता है.”

राधा का चेहरा देखने लायक था. संदली ने कभी इस तरह बात नहीं की थी. आज अपनी बात कह कर फोन ऐसे रखा था कि राधा शर्मिंदा सी बैठी रह गई थीं. विकास तो अपनी हंसी रोकने की कोशिश में आज चुपचाप वहां से उठ कर दूसरे रूम में जा चुके थे.

चौखट – भाग 3 : प्रेम को तरसती रेशमी

‘‘तुम जितनी जल्द घर खाली कर कहीं चले जाओ. अगर तुम नहीं गए तो अंजाम भुगतने को तैयार रहना,’’ धीरेन को धमका कर प्रकाश अपने गुरगों के साथ चला गया.

धीरेन बेहद डर गया था. अगर वह यहां से घर खाली कर के नहीं गया, तो प्रकाश उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा. अगर वह चला जाता है, तो रेशमी अकेली हो जाएगी. अकेली औरत को गुंडेमवाली खैरात का माल समझ कर तंग करते हैं.

धीरेन यही सब सोचता हुआ काम पर चला गया, लेकिन उस का मन काम में नहीं लग रहा था. वह अजीब उदासी में घिर गया था. उसे लग रहा था कि वह एक चक्रव्यूह में फंस गया है, जहां से निकलना मुमकिन नहीं है.

रात हो गई थी. गली में अंधेरा था. धीरेन काम पर से घर लौट आया था. वह कमरे में गुमसुम बैठा था. उस की अक्ल काम नहीं कर रही थी.

धीरेन एक बड़े से बैग में घर का सामान रखने लगा. एकएक कर अपना सामान वह बैग में रखता जा रहा था. यही एक रास्ता बचा था कि वह घर खाली कर कहीं और मकान ले कर रहने चला जाए.

धीरेन जाने के लिए अपना बैग पैक कर चुका था, तभी रेशमी उस के कमरे में आई और बोली, ‘‘धीरेन, मुझे छोड़ कर कहां जा रहे हो?’’

‘‘रेशमी, अगर मैं यहां से नहीं गया, तो प्रकाश और उस के पालतू गुंडे मुझे मार डालेंगे,’’ धीरेन ने कहा.

‘‘धीरेन, जीने के लिए लड़ना पड़ता है. भागने से कुछ नहीं मिलता है. हिम्मत से मंजिल मिलती है,’’ रेशमी ने उस का हौसला बढ़ाया.

‘‘लेकिन रेशमी, मैं अकेला क्या कर सकता हूं,’’ धीरेन ने चिंतित हो कर कहा.

‘‘धीरेन, तुम अकेले कहां हो. मैं हरपल तुम्हारे साथ हूं,’’ रेशमी ने कहा.

रेशमी अपने कमरे में चली गई. जब वह लौटी, तब उस की मुट्ठी में एक छोटी सी डिबिया थी.

रेशमी ने अपनी मुट्ठी धीरेन के सामने खोल दी, ‘‘इस डिबिया में सिंदूर भरा है. इस सिंदूर से मेरी मांग भर दो.’’ धीरेन ने डिबिया से एक चुटकी सिंदूर ले कर रेशमी की मांग भर दी थी.

रेशमी विधवा से सुहागन हो गई थी. धीरेन ने रेशमी को बांहों में भर कर कहा, ‘‘अब कोई हम लोगों को जुदा नहीं कर सकता है.’’

‘‘हां धीरेन, अब हम लोग एकसाथ मिल कर जी सकेंगे,’’ रेशमी की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए थे.

सुबह रेशमी दरवाजे की चौखट से पीठ टिकाए धीरेन के इंतजार में बैठी थी. वह सब्जी मंडी से दुकान के लिए सब्जियां लाने गया था.

टैंपो दरवाजे पर आ कर रुक गया था. धीरेन टैंपो से उतर कर सब्जियों की टोकरी दुकान में रखने लगा. रेशमी भी सब्जियों की टोकरी उठा कर रखने लगी थी.

उसी समय प्रकाश अपने गुरगों के साथ कहीं जा रहा था. वह रेशमी की दुकान के पास आ कर रुक गया. रेशमी की मांग में सिंदूर देख वह मुसकराते हुए चला गया.

दोपहर में सब्जी खरीदने सुधा और गीता रेशमी की सब्जी दुकान पर आईं और सुहागन बनी रेशमी को देख वे दोनों हैरान हो गईं. सुधा और गीता ने मुसकरा कर कहा, ‘‘बहुत अच्छा किया रेशमी, बहुत अच्छा.’’ यह सुन कर रेशमी खिलखिला कर हंसने लगी.

जीवन की नई शुरुआत – भाग 3 : कोरोना का साइड इफैक्ट

रात में सब के सो जाने के बाद रघु को फोन लगा कर कितना रोई थी वह. उस के जाने के बाद उस के साथ क्याक्या हुआ, सब बताया और यह भी कि अगर वह उस की नहीं हो सकी, तो किसी की भी नहीं हो सकेगी. फिर कई बार रघु ने फोन लगाया, पर बंद ही आ रहा था.

कहते हैं, सारी मुसीबतें एक बार में आ धमकती हैं इंसान की जिंदगी में और यह बात आज रघु को सही प्रतीत हो रही थी.

कोरोना महामारी के कारण एक तो कामकाज और शहर छूटा, फिर पता चला कि वहां मां बीमार हैं और अब यह सब. कहीं मुन्नी ने कुछ कर लिया तो… सोच कर ही रघु का खून सूखा जा रहा था. लेकिन क्या करे वह भी? यहां से भाग भी तो नहीं सकता है.  इसलिए उस ने भी अपनी जान खत्म करने की सोच ली थी. न जिएगा, न इतनी मुसीबत ?ोलनी पड़ेगी.

आज उसे मुन्नी का वह उदास चेहरा और थकी आंखें याद आ रही थीं. मन कर रहा था, करीब होती तो उस के अधरों पर अपने होंठ रख सारी उदासी सोख लेता.

मुसकरा भी पड़ा था वह दिन याद कर के, जब पहली बार मुन्नी को आलिंगन में भर कर उस के अधरों को चूम लिया था और लजा कर वह रघु के सीने में सिमट गई थी. जीवन में पुरुष के साथ उस का यह पहला भरपूर आलिंगन था. मुन्नी की रीढ़ में हलकी सी ?ार?ारी दौड़ गई थी. दोनों को एकदूसरे की छूती हुई परस्पर आकर्षण की हिलोरों का एहसास था, तभी तो दोनों एकदूसरे के करीब आते चले गए थे बिना जमाने की परवा किए. लतावितान के भीतर यह अनुभूति गहराई थी, जब रघु ने उस के होंठों पर तप्त दबाव बढ़ाया था. यौवन वेग के अनेक स्पंदन अचानक देह में चमक उठे थे. इस आलिंगन और चुंबन की अवधि दिनप्रतिदिन बढ़ती ही चली गई थी. लेकिन जमाने ने और कुछ इस कोरोना ने उन्हें जुदा करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी.

रघु की कहानी सुन कर जिलाधिकारी मनोज को उस पर दया आ गई कि क्या एक गरीब इंसान को प्यार करने का भी हक नहीं होता? ‘बु?ाबु?ा सी उम्मीदों पर कोरोना का खौफ सब की आंखों में साफ दिखाई दे रहा था. ख्वाहिशों व उम्मीदों को समेटे लोग खुश हो कर दूसरे शहरों में कमानेखाने गए थे. लेकिन एक वायरस ने इन का सबकुछ छीन लिया. इन गरीब मजदूरों ने जिस शहर को सजायासंवारा, उसी ने इन्हें गैर बना दिया. अब तो बस दर्द ही याद है,’ अपने मन में ही सोच मनोज को उन मजदूरों पर दया आ गई कि आखिर गरीब लोग ही हमेशा क्यों मारे जाते हैं? वे ही क्यों दरदर भटकने को मजबूर हो जाते हैं? सब से ज्यादा तो उन्हें रघु पर दया आ रही थी कि उस का प्यार भी छिन गया. लेकिन उन्होंने भी सोच लिया कि जहां तक हो सकेगा, वे इन मजदूरों की सहायता जरूर करेंगे.

इधर मोहन से शादी के जोर पड़ने पर मुन्नी धीरेधीरे टूटने लगी थी. कुछ सम?ा नहीं आ रहा था कि क्या करे, कैसे इस शादी को रोके? मन तो कर रहा था कि धतूरे का बीज खा कर अपनी जान खत्म कर ले. लेकिन ऐसा भी वह नहीं कर सकती थी. क्योंकि मरना तो कायरता है. किसी चीज को हासिल करने के लिए लड़ना पड़ता है और वह लड़ेगी अपने मांबाप से भी और इस जमाने से भी. सोच लिया उस ने और अपने मन में ही एक फैसला ले लिया. रात में सोने से पहले उस ने तकिए में मुंह छिपा कर रघु का नाम लिया. उस का चुंबन याद आया और वह पुरानी सिहरन शरीर में ?ान?ाना गई.

अपने प्लान के अनुसार, सुबह मुंहअंधेरे ही वह घर से निकल गई और पैदल चल रहे मजदूरों के संग हो ली. जानती थी पैदल चल कर रघु से मिलना इतना आसान नहीं होगा. पर अपने प्यार के लिए वह कुछ भी करेगी. हजारों क्या, लाखों किलोमीटर चलना पड़े तो चल कर अपने प्यार को पा कर रहेगी. यह भी जानती थी कि उसे घर में न पा कर गुस्से से सब बौखला जाएंगे. जहां तक होगा, उसे ढूंढ़ने की कोशिश की जाएगी. लेकिन कोई फायदा नहीं, क्योंकि तब तक वह काफी दूर निकल चुकी होगी. रघु के गांवघर का पता तो उसे मालूम ही था, फिर डर किस बात का था.

5 दिनों बाद थकेहारे कदमों से, मगर विजयी मुसकान के साथ वह अपने रघु के सामने खड़ी थी. रघु को तो अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था. उसे तो लग रहा था, जैसे वह कोई सपना देख रहा हो. मगर यह सच था, मुन्नी उस के सामने खड़ी थी. दोनों बालिग थे, इसलिए उन की शादी में रुकावट की कोई गुंजाइश ही नहीं थी. क्वारंटीन अवधि पूरी होते ही जिलाधिकारी मनोज ने अपनी देखरेख में दोनों की शादी ही नहीं करवाई, बल्कि एक भाई की तरह मुन्नी को विदा भी किया. रघु को उन्होंने रोजगार दिलाने में भी मदद की, ताकि वह आत्मनिर्भर बन सके और अपनी जिंदगी अपने अनुसार जिए.

इस कोरोनाकाल में रघु ने बहुत मुसीबतें ?ोलीं, पर कहते हैं न, अंत भला तो सब भला. रघु और मुन्नी के जीवन की नई शुरुआत हो चुकी थी.

राजनीति नकाब की – भाग 3

उन 50 हजार रुपयों में से 10 हजार रुपए तो निहाल ने मिनी को दे दिए और बाकी के सारे पैसे मां को. अपने पास निहाल ने कुछ भी नहीं रखा. उस के लिए यह संतोष ही काफी था कि उस ने 50 हजार रुपए कमाए हैं. कुल मिला कर वह अपने किए इस काम से खुश था, पर उस की यह खुशी ज्यादा समय नहीं टिक पाई.

वीरेंद्र के अपहरण के 2 दिनों बाद ही उस की लाश एक नाले के पास नग्न हालत में पाई गई और मीडिया में प्रशासन पर जल्दी कार्रवाई करने का दबाव डाला जा रहा था. सारे समाचारपत्रों में आज इसी मर्डर की बात को प्रमुखता से जगह दी गई थी. दहशत में आ गया था निहाल. देवराज ने तो सिर्फ उसे उठा लाने को कहा था और वह उस का मर्डर कर देगा, ऐसा तो नहीं बताया गया था. वह सोचने लगा, ‘अगर मु?ो ऐसा बोला होता तो शायद मैं कभी उस का अपहरण नहीं करता, उफ्फ्फ, यह मु?ा से क्या हो गया.’

घबराई हालात में वह देवराज के पास पहुंचा. देवराज अपने चमचों के साथ जश्न मनाने में लगा हुआ था. निहाल ने उस से बात करनी चाही पर देवराज कहां सुनने वाला था. वह तो दुश्मन की मौत पर शराब उड़ाने में लगा हुआ था.

निहाल जब कुछ ज्यादा ही बात करने की जिद करने लगा तो देवराज ने पूरी की पूरी एक बोतल ही उस के मुंह में लगा दी.

अब से कुछ देर पहले जो निहाल डरा हुआ था वह अब शराब के असर से शेर बन गया और उस जश्न में शामिल हो गया.

अकसर किसी वारदात के बाद कुछ दिन मीडिया में बड़ी गरमागरमी रहती है, बड़ीबड़ी बहसें होती हैं, विशेषज्ञों के पैनल बिठाए जाते हैं पर जैसेजैसे समय बीतता है, वैसे ही सब सामान्य हो जाता है. वीरेंद्र के केस में भी ऐसा ही कुछ हुआ. सब भूल चुके थे उस मर्डर को, और इस बात ने बहुत हद तक निहाल को भी राहत दी और वह फिर से सामान्य ढंग से जीने लगा.एक दिन फिर देवराज का फोन आया और उस ने निहाल को अपने होस्टल में बुलाया.

जब निहाल वहां पहुंचा तो वह यह देख कर थोड़ा चौंका भी था कि आज देवराज एकदम अकेला बैठा है, उस के साथ कोई भी चमचा नहीं है.

‘‘आओ निहाल, बैठो. दरअसल, मु?ो तुम से कुछ जरूरी काम है, इसीलिए मैं ने तुम्हें यहां आने का कष्ट दिया, और काम थोड़ा विश्वास वाला भी है इसलिए मैं ने अपने चमचों को भी यहां से हटा दिया. अब यहां पर बस मैं हूं और तुम हो,’’ देवराज ने निहाल से फुसफुसाते हुए आगे कहा, ‘‘तुम्हारे लिए एक और काम है निहाल और मेरी आशा है तुम इसे मना भी नहीं करोगे.’’

‘‘हां देवराज, पर वो तुम ने वीरेंद्र को मार कर ठीक नहीं किया,’’ निहाल आज पुराने विषय पर बात कर लेना चाहता था.

‘‘अरे, वो सब छोड़ो यार. उस घटना को बीते हुए तो बहुत समय हो गया. अब नए काम पर फोकस करो.’’

‘‘क्या है नया काम?’’ निहाल थोड़ा रुखा हो गया था.

‘‘अरे, कुछ नहीं यार, वही वैन होगी, वही राजू होगा और वही तुम होंगे. बस, शिकार नया होगा.’’

‘‘मतलब? मु?ो और किसी का किडनैप करना होगा,’’ निहाल ने चौंक कर कहा.

‘‘अरे नहीं, यार निहाल, वो सब नहीं, वो पुराना खेल हो गया, पहले उठवाओ, फिर मरवाओ. इस बार तो फैसला औन द स्पौट ही करना होगा,’’ देवराज संदिग्ध होता जा रहा था.

‘‘मतलब?’’ निहाल चौंकता जा रहा था.

‘‘इस बार तुम्हें मैं एक गन दूंगा और एक लड़की की फोटो. बस, तुम्हें वैन में बैठे रहना है और जब वह लड़की तुम्हारे पास से गुजरे तब तुम को ट्रिगर दबाना है और वहां से फुर्र हो जाना है.’’

‘‘नहीं देवराज, मैं यह काम नहीं कर सकता. मैं किसी का खून नहीं कर सकता. तुम तो अपराधी होते जा रहे हो. मैं तुम से यही कहूंगा कि लौट आओ इस रास्ते से,’’ निहाल खड़ा हो गया था यह कहते हुए.

‘‘सोच लो निहाल, इस काम के तुम को पूरे 5 लाख रुपए दूंगा और वो भी आज ही,’’ देवराज ने फिर लालच दिया.

‘‘5 लाख, यह तो काफी बड़ी रकम है और अगर मैं हां करता हूं तो मैं मिनी की आगे की पढ़ाई भी अच्छे ढंग से करवा सकता हूं और उस की शादी के लिए भी कुछ पैसे जोड़ सकता हूं. पर किसी की जान लेना कहां तक उचित है. नहीं देवराज, मु?ा से यह नहीं होगा.’’

‘‘एक बार फिर सोच लो निहाल,’’ देवराज लगभग गुर्रा रहा था.

‘‘हांहां, मु?ा से नहीं हो पाएगा. मैं किसी निर्दोष की जान नहीं ले सकता और न ही मैं गन चलाना जानता हूं,’’ निहाल ने कहा.

‘‘अगर तुम यह काम नहीं कर सकते तो जरा मेरे मोबाइल पर चल रही इस वीडियो को तो देखो,’’ इतना कह कर देवराज ने उसे अपना मोबाइल पकड़ा दिया. जो वीडियो उस में चल रही थी उसे देख कर निहाल के पैरोंतले जमीन ही खिसक गई. यह निहाल का वह वीडियो था जिस में वह वीरेंद्र का अपहरण करने वैन के पास पहुंचता है और चेहरे पर नकाब लगा लेता है और फिर कैसे वह वीरेंद्र को वैन में खींचता है. हर कदम का एकदम साफ वीडियो था.

‘ओह्ह… यह मैं कहां फंस गया. दोस्त ने मु?ो धोखा दिया. मेरी वीडियो बना ली गई. देवराज की नीयत ठीक नहीं लगती. पर अब मैं कुछ भी नहीं कर सकता. ओह, बड़ी भूल हो गई है. मु?ो देवराज की बात माननी होगी,’ अपने को संयत करते हुए निहाल सोचने लगा. उस के मन में उथलपुथल मच गई.

‘‘अरे यार, तुम्हारे पास तो मेरे खिलाफ बहुत पुख्ता सुबूत हैं. अब भला मैं तुम्हें कैसे मना कर सकता हूं,’’ निहाल ने अपने स्वर में एक लापरवाही का अंदाज भर कर कहा था.

‘‘यह हुई न मर्दों वाली बात. मैं चाहूं तो इस वीडियो के दम पर तुम से मुफ्त में भी काम करवा सकता हूं. पर मैं तुम्हारा दोस्त हूं, इसलिए इतना घटिया काम नहीं करूंगा. तुम्हें पूरा मेहनताना दिया जाएगा और वह भी काम से पहले,’’ कहने के साथ ही हंस पड़ा था देवराज.

एक बार फिर सबकुछ वैसा ही था. एक जगह खड़ी वैन, वही राजू और उस के साथ 2 बंदे और खुद निहाल एक गन के साथ. यहां आने से पहले उसे निशानेबाजी के कुछ खास गुर बता दिए गए थे. फिर कुछ देर बाद जैसे ही वह लड़की सामने से वैन के पास आई तो उन दोनों गुंडों ने लड़की के हाथों को पकड़ लिया. नकाब पहने निहाल ने ट्रिगर दबा दिया और उस लड़की को छोड़ कर वैन फिर से वहां से फरार हो गई.

निहाल के खाते में 5 लाख रुपए आ चुके थे जिन्हें उस ने अपने प्लान के अनुरूप घर वालों को दे दिए. निहाल के मन में काफी अपराधबोध आ रहा था. वह लगातार यह सोच रहा था कि उस ने उस लड़की को क्यों मार दिया. उसे देवराज को मना कर देना चाहिए था.

फिर निहाल अपने ही मन को सम?ाता कि अगर वह नहीं मारता तो देवराज किसी और से मरवा देता. इस से तो अच्छा है कि 5 लाख रुपए तो उस के खाते में आए. और फिर यह तो दुनिया है, जीनामरना तो चलता रहता है. दुनिया का नियम है कि जब आप खुश होते हैं तो दुनिया का हर शख्स आप को खुश ही नजर आता है. ऐसा ही कुछ निहाल के साथ हो रहा था. वह खुश था, उस के घर में पैसा था, देवराज का साथ था और सब से बड़ी बात अब उस पर से बेरोजगारी का बिल्ला हट चुका था. उस ने घर वालों को यह बता रखा था कि वह एक विदेशी कंपनी के साथ काम करता है जो एकसाथ ही सारा पेमैंट करती है.

उधर विश्वविद्यालय की राजनीति में भी देवराज का नाम ऊंचा उठता जा रहा था. मिनी भी उसी विश्वविद्यालय में पढ़ती थी जिस में देवराज पढ़ाई कर रहा था, सो, मिनी की सुरक्षा को ले कर निहाल निश्ंिचत था.

देशभर में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध हो रहा था. ऐसे में विश्वविद्यालय भी 2 धड़ों में बंट चुका था. देशहित के कई मुद्दों पर उन धड़ों में विवाद था और बात मारपीट व पुलिस थाने तक पहुंच चुकी थी. निहाल के मोबाइल पर देवराज की कौल आई, ‘‘हां निहाल, अभी के अभी हमारे विश्वविद्यालय चलना है, साला वहां लफड़ा हो गया है, पार्र्टी फौर पुअर्स के लड़कों ने हमारी पार्टी के लड़के को मारा है. अब उन लोगों से बदला लेना है. जहां भी हो आ जाओ, जैसे भी हो आ जाओ, बाकी तुम खुद सम?ादार हो,’’ इतना कह कर फोन कट गया था.

निहाल के पास कोई दूसरा चारा नहीं था. वह तैयार हो कर देवराज के होस्टल पहुंच गया. वहां उस ने देखा कि देवराज के पास कई लड़के हाथों में डंडा ले कर खड़े हैं और हमले की योजना बना रहे हैं. उस योजना में निहाल से कहा गया कि वह हौकी ले कर सीधे विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में जाए और जो भी वहां पर दिखाई दे, सब को अंधाधुंध मारे. इतना कह कर उसे एक हौकी और सुरक्षा के लिए एक नकाब दे दिया गया. निहाल का मन उधेड़बुन में फंस गया था कि भला निर्दोष लोेगों को क्यों मारे. पर देवराज देर करने के चक्कर में नहीं था.

वे सब गेट पर बैठे गार्ड को धक्का देते हुए अंदर दाखिल हुए और मारपीट शुरू कर दी. निहाल ने देवराज से कुछ कहना चाहा तो बदले में देवराज चिल्ला कर बोला, ‘‘यह छात्रों की राजनीति है निहाल, अब समय नहीं है. या तो मारो या मर जाओ,’’ आखिरी के शब्द उस ने ऐसे कहे थे जैसे वह देश पर बलिदान होने की बात कर रहा हो.

सामने से दूसरी पार्टी के छात्र भी हथियारों से लैस हो कर आ रहे थे. देवराज ने निहाल से लाइब्रेरी में जा कर मारकाट करने को कहा.

निहाल लाइब्रेरी की ओर बढ़ा, उस के साथ राजू और 2 गुंडे और भी थे. लाइब्रेरी में छात्रछात्राएं अब भी बैठे पढ़ रहे थे. जाहिर था कि बाहर हो रहे दंगे की उन्हें खबर नहीं थी.

राजू और दोनों गुंडों ने छात्रों को मारना शुरू कर दिया. उन्हें देख कर निहाल के शरीर में भी हरकत हुई. उस की हौकी का वार कहीं किसी पढ़ रही लड़की के सिर पर लगता तो कहीं किसी लड़के के सिर पर.

अंधाधुंध मारपीट के बाद पुलिस का हूटर सुनाई दिया तो निहाल और राजू की पार्टी सब छोड़ कर भाग खड़ी हुई. बाहर निकलते समय निहाल इतना देख पाया था कि देवराज का सिर फूटा हुआ था और पुलिस उसे गिरफ्तार कर के ले जा रही थी.

निहाल दिनभर के बाद छिपतेछिपाते शाम को घर पहुंचा तो बाहर तक भीड़ देख कर किसी अनहोनी की आशंका से घबरा उठा. हिम्मत कर के वह घर के अंदर गया तो सामने मिनी की लाश पड़ी थी. चीख पड़ा था निहाल, ‘‘मां…ये…ये…कैसे हुआ मां… मिनी तो ठीक थी, फिर अचानक कैसे?’’

मां और पापा दोनों शून्य थे. जब निहाल बहुत चीखपुकार मचा कर सब से पूछने लगा कि मिनी को अचानक क्या हुआ तब पड़ोस के चाचा ने उस से कहा, ‘‘पढ़ने गई थी, बताते हैं लाइब्रेरी में दंगे वाले घुस आए थे और एक नकाब पहने आदमी ने मिनी के सिर पर हौकी से वार किया और यह बेचारी वहीं ढेर हो गई.’’

निहाल के पैर कांपने लगे. उसे लगा कि ये सारी दुनिया घूम रही है. वह अपना सिर पकड़ कर जमीन पर बैठ गया.

बदचलनी का ठप्पा – भाग 3: क्यों भागी परबतिया घर से?

‘‘किसी की घरवाली कोई दूसरा खसम कर ले, तो इस में हम क्या करें?’’

देवेंद्रजी थोड़ा नाराज हो कर बोले, ‘‘क्या सभी की समस्याएं सुलझाने का हम ने ठेका ले रखा है? किसी से अपनी घरवाली नहीं संभाली जाती तो कोई क्या करेगा?’’ भीड़ ने अर्जुन महतो की ओर देखा, देवेंद्रजी शायद ठीक ही कह रहे हैं. अर्जुन ने शर्म से अपना सिर झुका लिया.

‘‘वही तो हम भी कह रहे हैं,’’ बलदेव प्रसाद बोला, ‘‘पार्वती के रंगढंग कई दिनों से ठीक नहीं चल रहे थे. मैं ने सुना तो मैं ने समझाया भी था अर्जुन को. समझाना फर्ज बनता था हमारा. है कि नहीं अर्जुन?’’

अर्जुन ने रजामंदी में अपना सिर हिलाया.

‘‘बलदेवा, तुम चाहे जो करवा दो यहां,’’ देवेंद्रजी ने फिर मजाक किया, ‘‘बेचारी धनिया को भी लुटवा दिए थे ऐसे ही,’’ भीड़ फिर हंस पड़ी. बलदेव प्रसाद झेंपने का नाटक करते हुए बोला, ‘‘आप तो मजाक करने लगे. मुझे क्या पड़ी है कि मैं हर जगह टांग अड़ाऊं. वह तो ऐसे गरीबों का दुख नहीं देखा जाता इसीलिए. अब देखिए न, परबतिया गई सो गई, साथ में गहनेकपड़े, रुपयापैसा सबकुछ ले गई. अब इस बेचारे अर्जुन का क्या होगा?’’ ‘‘हां… माईबाप…’’

अर्जुन महतो फिर सिसकने लगा. देवेंद्रजी नाराजगी से बोले, ‘‘मरो भूखे अब. ये लोग अपनी सब कमाई तो खिला देते हैं ब्याज वालों को या दारू पी कर उड़ा देते हैं. चंदा भी देंगे तो दूसरे नेताओं को. और अब घरवाली भाग गई तो चले आए मेरे पास. जैसे देवेंद्र सब का दुख दूर करने का ठेका ले रखे हैं.’’

‘‘वही तो मैं भी कहता हूं,’’ बलदेव प्रसाद ने कहा, ‘‘लेकिन, ये लोग मानते कहां हैं. और अगर घरवाली खूबसूरत हुई तो हवा में उड़ने लगते हैं. वह तो आप जैसे दयालु हैं, जो सब सहते हैं.

पर सच पूछिए, तो एक गरीब के साथ ऐसी ज्यादती भी तो देखी नहीं जाती. आप के रहते यहां यह सब हो, यह तो अच्छी बात नहीं है न?’’ बलदेव प्रसाद के चेहरे पर देवेंद्रजी के लिए तारीफ के भाव थे. भीड़ ने सोचा कि देवेंद्रजी हैं तो कोई न कोई रास्ता जरूर निकालेंगे. अर्जुन को घबराना नहीं चाहिए. वह सही जगह पर आया है. ‘‘यही मस्का मारमार कर तो तुम ने हमें बरबाद करवा दिया है बलदेवा,’’ देवेंद्रजी मानो बलदेव को मीठा उलाहना देते हुए बोले. ‘‘खैर, यह तो बताओ कि अर्जुन और पार्वती की शादी को कितने दिन हुए थे?’’ उन्होंने जैसे भीड़ से सवाल किया. अर्जुन को कुछ उम्मीद बंधी.

देवेंद्रजी मामले में दिलचस्पी लेने लगे हैं. बस, वह एक बार हाथ तो धर दें सिर पर, फिर तो उस गया प्रसाद की ऐसीतैसी… यह सोच कर अर्जुन का खून जोश मारने लगा. बलदेव प्रसाद बोला, ‘‘अरे, भली कही आप ने. यही तो मुसीबत है. इस ने अगर परबतिया से शादी की ही होती तो वह भागती क्यों? पर यहां तो फैशन है. या तो रिश्ता बना लेते हैं या खूबसूरत औरत के मांबाप को 200-400 रुपए  दे कर उस औरत को घर बैठा लेते हैं. तभी तो…’’ अर्जुन ने बलदेव प्रसाद की बात का विरोध करना चाहा. वह चीखचीख कर कहना चाहता था कि पार्वती उसी की ब्याहता है, पर उस के बोलने के पहले ही देवेंद्रजी बोल पड़े, ‘‘तब तो मामला हाथ से गया, समझो. जब ब्याह नहीं रचाया तो कहां की घरवाली और कैसी परबतिया? कौन मानेगा भला?  ‘‘अरे, मैं कहता हूं कि परबतिया अर्जुन की घरवाली नहीं थी.

तो है कोई माई का लाल, जो यह दावा करे?’’ देवेंद्रजी ने जैसे भीड़ को ललकार दिया था.  भीड़ में सनाका खिंच गया. यह तो सोचने वाली बात है. क्या दावा है अर्जुन के पास? बेचारा अब क्या करे? कहां से लाए अपनी और परबतिया की शादी का कागजी सुबूत? ‘‘तभी तो मैं भी कहता हूं कि अब कौन गया प्रसाद जैसे बदमाश से कहने जाए कि उस ने बड़ा गलत किया है. सभी जानते हैं कि वह कैसा आदमी है?’’ बलदेव प्रसाद ने कहा. ‘‘हांहां, जाओ,’’ देवेंद्र तैश में आ कर बोले,

‘‘कौन सा मुंह ले कर जाओगे उस बदमाश के घर? लाठी मार कर घर से निकाल न दे तो कहना.

‘‘अपने ऊपर हाथ भी नहीं धरने देगा वह बदमाश. क्या मैं कुछ गलत कह रहा हूं, बलदेवा?’’ उन्होंने बलदेव प्रसाद की ओर देखा. ‘‘अरे, आप और गलत बोलेंगे?’’

चमचागीरी करते हुए बलदेव प्रसाद ने नहले पर दहला मारा, ‘‘आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं. वह बदमाश गया प्रसाद तो मुंह पर कह देगा कि किस की बीवी और कैसी परबतिया? खुलेआम दावा करेगा कि यह तो मेरी बीवी है.

ज्यादा जोर लगाएंगे तो जमा देगा 2-4 डंडे. इस तरह अपना सिर भी फुड़वाओ और हाथ भी कुछ न आए.’’ देवेंद्रजी अपने दाहिने हाथ बलदेव प्रसाद की बातों से मन ही मन खुश हुए. भीड़ को भी लगा कि बलदेव प्रसाद की बातों में दम है. गया प्रसाद जैसे गुंडे से उलझना आसान काम नहीं.  अर्जुन फिर एक बार मानो किसी अंधेरी कोठरी में छटपटाने लगा. ‘तो क्या अब कुछ नहीं हो सकता?’

मन ही मन उस ने सोचा. अब देवेंद्रजी ने सधासधाया तीर चलाया,

‘‘भाइयो, एक मिनट के लिए मान भी लें कि गया प्रसाद कुछ नहीं कहेगा. पर क्या पार्वती ताल ठोंक कर कह सकती है कि वह अर्जुन की घरवाली है और गया प्रसाद उसे बहका कर लाया है? ‘‘बोलो लोगो, क्या ऐसा कह पाएगी परबतिया? क्या उस की अपनी मरजी न रही होगी गया प्रसाद के साथ जाने की? वह कोई बच्ची तो है नहीं, जो कोई उसे बहका ले जाए?’’

भीड़ फिर प्रभावित हो गई देवेंद्रजी से. कितनी जोरदार धार है उन की बातों में? सभी बेचारे अर्जुन के बारे में सोचने लगे. लगता है, बेचारा अपनी घरवाली को सदा के लिए गंवा ही बैठा.

देवेंद्रजी ठीक ही तो कह रहे हैं. क्या परबतिया की अपनी मरजी न रही होगी? अब तो अर्जुन को उम्मीद छोड़ ही देनी चाहिए. भूल जाए पार्वती को. जिंदगी रहेगी तो उस जैसी कई मिल जाएंगी.

बलदेव प्रसाद ने देवेंद्रजी की हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘आप ठीक कह रहे हैं. यह औरत जात ही आफत की पुडि़या है. और यह अर्जुन तो बेकार रो रहा है ऐसी धोखेबाज और बदचलन औरत के लिए.’’

यह क्या सुन रहा था अर्जुन? परबतिया और बदचलन? नहीं, वह ऐसी औरत नहीं है. अर्जुन ने सोचा. फिर उस के मन में चोर उभरा. पार्वती उस का घर छोड़ कर गई ही क्यों? क्या कमी थी उस को? क्या नहीं किया उस ने पार्वती के लिए? फिर भी धोखा दे गई. जगहंसाई करा गई.

बदचलन कहीं की.  अर्जुन के मन में गुस्सा उमड़ने लगा. वह कुलटा मिल जाए तो वह उस का गला ही घोंट दे. पर कैसे करेगा ऐसा वह? जिन हाथों से उस ने परबतिया को प्यार किया, क्या उन्हीं हाथों से वह उस का गला दबा पाएगा? और परबतिया नहीं रहेगी तो उस के मासूम बच्चे का क्या होगा?

बच्चे का मासूम चेहरा घूम गया अर्जुन की आंखों में. कितना प्यार करता था वह अपने बच्चे को. कोयला खदान की हड्डीतोड़ मेहनत के बाद जब वह घर लौटता तो अपने बच्चे को गोद में उठाते ही उस की थकान दूर हो जाती. एक हूक सी उठी उस के मन में. बीवी भी गई, बच्चा भी गया. वह फिर पिघलने लगा. गुस्सा आंसू बन कर दोगुने वेग से बह चला था.

इस बार देवेंद्रजी ने अर्जुन को ढांढस देते हुए कहा, ‘‘अर्जुन रोओ मत. रोने  से तो समस्या सुलझेगी नहीं, इंसाफ अभी एकदम से नहीं उठा है धरती से. पुलिस है, अदालत है, कचहरी है. कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा, ताकि तुम्हें इंसाफ मिले.’’ बलदेव प्रसाद ने उन्हें टोका, ‘‘नहीं, नहीं. आप को ही कुछ करना पड़ेगा. पुलिस को तो आप जानते ही हैं.

वह दोनों तरफ से खापी कर चुप्पी मार जाएगी, इसलिए आप ही कोई उपाय बताइए.  ‘‘गया प्रसाद जैसा अकेला बदमाश यहां की जुझारू जनता को नहीं हरा सकता. हमें ऐसे लोगों को रोकना है और जोरजुल्म से इन गरीबों की हिफाजत करनी है.’’

जुम्मन और अलगू का बदला – भाग 3

अलगू ने सुना, तो तुरंत फोन काट कर जुम्मन के पास भागा हुआ आया और उस से पूछने लगा कि आखिर वह ऐसा क्यों कहा रहा है. तो जुम्मन ने उसे हंसते हुए बताया कि जिगलान ने टौप के मेकैनिक से पंगा लिया है न, तो मैं ने भी उसे अपना जलवा दिखा दिया.

जुम्मन ने अलगू को बताया कि उस ने चुपके से उस गाड़ी का ब्रेक औयल निकाल दिया था और ब्रेक सिस्टम में गड़बड़ी कर दी थी, जिस से कि गाड़ी जब तेज स्पीड में जाएगी, तब चाह कर भी ड्राइवर ब्रेक नहीं लगा पाएगा और कार का ऐक्सीडैंट हो जाएगा.

‘‘पर, इन महंगी गाडि़यों में तो वह सीट के आगे गुब्बारे वाली सुविधा भी तो होती है… जिगलनवा बच जाएगा भाई उस बेहया को कुछ नहीं होगा,’’ अलगू ने शक जाहिर किया, तो जुम्मन मुसकरा उठा, ‘‘घबरा मत अलगू, एक मेकैनिक गाड़ी के सारे फंक्शन खराब कर सकता है… सोचो, अगर गुब्बारे उस के अंदर से हटा ही दिए गए हों तो…’’

जुम्मन यह बात कह ही रहा था कि तभी अचानक ठाकुर जिगलान के बंगले के बाहर जैसे कुछ उथलपुथल सी महसूस हुई. ठाकुर जिगलान के चमचों की कई गाडि़यां शहर की ओर जाने वाली सड़क पर दौड़ पड़ी थीं.

जुम्मन और अलगू की नजरें एकदूसरे से टकराईं और दोनों मुसकरा उठे.‘‘उस की गाडि़यों के आसपास तो कई आदमी रहते हैं और गाड़ी की चाभी वगैरह?’’ एकसाथ कई सवाल पूछ लेना चाहता था अलगू.

जुम्मन ने सारे सवालों का जवाब एक शराब की बोतल दिखाते हुए कहा, ‘‘इसे देख दोस्त, सारा खेल इस बला का है.’’

अलगू समझ गया था कि अपना रास्ता बनाने के लिए जुम्मन ने शराब का इस्तेमाल किया है. शाम तक गांव में खबर फैल गई थी कि ठाकुर जिगलान की महंगी वाली गाड़ी का ऐक्सीडैंट हो गया है और वह शहर के अस्पताल में भरती है.

कुछ समय बाद जुम्मन और अलगू के परिवारों ने रन्नो और सलमा से शादी करने की बात उठाई, तो गांव के बहुत सारे लोगों के विरोध के स्वर गूंजे. उन लोगों की समझ में सभी लड़केलड़कियों की शादी कैसे हो और किस से हो, इस बात का ठेका उन लोगों के ही पास है.

सब लोगों ने कहा कि मामला गंभीर है, इसलिए पंचायत बुलाई गई. पंच लोग बैठे और बाकी गांव के लोग भी जमा हो गए. पंचों ने कहा कि अगर कोई मुसलिम लड़का सलमा से निकाह करना चाहे तो इसी वक्त अपना नाम आगे करे, पर अफसोस, एक बलात्कार पीडि़ता सलमा से शादी करने के लिए कोई भी आगे नहीं आया. ठीक ऐसा ही रन्नो के केस में किया गया, पर कोई हिंदू लड़का रन्नो से शादी करने को आगे नहीं आया.

काफी देर तक इंतजार के बाद भी जब कोई आगे नहीं आया, तब पंचायत ने जुम्मन और अलगू के हक में फैसला दे दिया और कहा कि एक शर्त यह रहेगी कि शादी कर के उन्हें यह गांव छोड़ कर शहर जाना होगा, क्योंकि पंचायत नहीं चाहती कि भविष्य में हिंदू और मुसलिमों में शादियां हों.

जुम्मन और अलगू ने बिना देर किए हां कर दी. अब दोनों जोड़े एकसाथ बैंगलुरु में रहते हैं. जुम्मन ने वहां एक कंपनी में मेकैनिक की नौकरी कर ली है और अलगू भी उसी के साथ असिस्टैंट का काम करता है.

दोनों जोड़े समयसमय पर अपने मांबाप से मिलने गांव आते हैं. अब वहां ठाकुर जिगलान की तूती नहीं बोलती है, क्योंकि उस दिन सड़क हादसे में उस की जान तो बच गई, पर पूरा शरीर लकवाग्रस्त हो गया था. उस के पास उस के शरीर की मक्खियां उड़ाने को भी कोई नहीं था. उस के सारे चमचे उसे छोड़ कर भाग चुके थे.

अब बगिया में चूल्हा नहीं जलता, मांस नहीं पकता और न ही शराब की बोतलें खुलती हैं. लकवाग्रस्त ठाकुर जिगलान अब खेत में काम कर रही किसी औरत का चाह कर भी रेप नहीं कर सकता.

ठाकुर जिगलान के पास न तो जानकीदास है और न ही उस की खामोश रहने वाली ठकुराइन. ठाकुर जिगलान के जुल्मोसितम के चलते 30 साल की ठकुराइन और

25 साल के जानकीदास में ऐसा प्रेम पनपा कि दोनों का अलग रहना मुश्किल हो गया. कार हादसे के बाद उन दोनों ने गांव से भाग कर शादी कर ली और एकसाथ रहने लगे.जुम्मन और अलगू ने सोचसमझ कर ठाकुर जिगलान से अपना बदला ले लिया था.

अब पता चलेगा – भाग 2 : राधा क्या तोड़ पाई बेटी संदली की शादी

रात को अकेले में राधा भुनभुनाती ही रहीं. विकास ने टोका,”कभी तो किसी बात पर खुश रहना सीखो, राधा. इतना अच्छा लड़का पसंद किया है संदली ने. बेटी बहुत समझदार है हमारी, सब देखसुन कर ही मिलवाने लाई होगी.”

”यह शादी कर के बहुत पछ्ताएगी.देखना, इस की किसी से नहीं निभ सकती, कुछ नहीं आता है, बस सैरसपाटा, आराम करना आता है.अब पता चलेगा, यह शादी के बाद बैठ कर रोएगी.”

विकास को गुस्सा आ गया,”कैसी मां हो, बेटी के लिए बुरा सोचती हो, शेम औन यू,राधा.”

संदली को मां का मन अच्छी तरह पता था. वह अंदर से दुखी भी थी पर आर्यन से बहुत प्यार करने लगी थी, अब विवाह करना चाहती थी पर मां इस विषय पर उस के लिए अच्छा नहीं सोचेंगी, पता था उसे.

अगले दिन आर्यन और संदली चले गए. फिर एक दिन प्रिया का फोन आया, वह संदली के लिए खुश थी.

कहने लगी,”आर्यन बहुत अच्छे परिवार से है, संदली ने नेट पर देख लिया है, उन के बिजनैस के बारे में वह सब जानती है, सब देख कर ही उस ने आर्यन से शादी का मन बनाया है. ऐसा लड़का तो हम भी उस के लिए नहीं ढूंढ़ सकते थे.”

राधा बिफरी,”मुझे पता था तुम उस की ही साइड लोगी.”

”ओह मां, यह जो आप को हर बात पता होती है न, बड़े परेशान हैं हम इस से, कभी तो कोई बात आराम से सुन लिया करो.”

थोड़ी देर बाद फोन रख दिया गया. संदली ने वहां से आर्यन के पेरैंट्स अनिल और मधु से भी विकास और राधा की बात करवा दी. विकास को दोनों का स्वभाव बहुत अच्छा लगा, दोनों संदली से मिल कर खुश थे. अब जल्दी से जल्दी उसे अपनी बहू बनाना चाहते थे.

विकास ने भी इस विवाह के लिए सहमति दे दी तो उन्होंने कहा,”आप भी आ कर हमारा घर देख लीजिए, तसल्ली कर लीजिए कि संदली हमेशा खुश रहेगी. यह बात विकास को बहुत अच्छी लगी.

उन्होंने कहा,”हम भी जल्दी ही आते हैं.”

दोनों परिवार अब आगे का प्रोग्राम बनाने लगे. संदली 2 दिन में वापस आ गई.

बैग खोलते हुए ढेरों गिफ्ट्स दिखाते हुए बोली,”पापा, मम्मी, देखो उन लोगों ने तो गिफ्ट्स की बौछार कर दी. इतने प्यार से मिले कि क्या बताऊं. पापा, मैं बहुत खुश हुई वहां जा कर.”

राधा ने सब सामान देखा, कहा कुछ नहीं, उठ कर अपने काम में लग गईं. 10 दिन बाद संदली चली गई. कोर्स पूरा हो चुका था. संदली को वहीं नई नौकरी जौइन करनी थी.

आर्यन अब पानीपत में फैमिली का बिजनैस ही संभालने वाला था. अनिल और मधु मुंबई आए. होटल में ठहरे और विकास और राधा से मिलने घर आए. गजब के खुशमिजाज, सुंदर दंपत्ति को देख कर राधा हैरान थीं. वे दोनों विकास और राधा के लिए बहुत सारे गिफ्ट्स भी लाए.

राधा के हाथ का बना खाना खा कर उन की कुकिंग की खूब तारीफ की तो राधा ने कहा,”पर संदली को कुछ भी बनाना नहीं आता. पहले इसलिए बता रही हूं कि आप लोग हमें बाद में यह न कहें कि आप लोगों को बताया नहीं.”

मधु ने खुल कर हंसते हुए कहा,”बेटी बहुत प्यारी है आप की. उस ने मुझे खुद ही बता दिया कि उसे कोई काम नहीं आता और उसे हमारे यहां कुकिंग की जरूरत पड़ेगी भी नहीं. हमारे यहां 2 कुक हैं, किचन में तो मैं ही जल्दी नहीं घुसती, आजकल की लड़कियां कैरियर बनाने में मेहनत करती हैं, जब जरूरत होती है सब कर लेती हैं और वहां अकेली रह ही रही है न, बहुत कुछ अपनेआप करती भी होगी.”

राधा चुप रहीं. अनिल और मधु ने अच्छा समय साथ बिताया. जाते हुए उन्हें भी गिफ्ट्स दे कर विदा किया गया.

अब अगले हफ्ते विकास और राधा को दिल्ली जाना था. तय हुआ कि अब सगाई भी कर देते हैं और संदली को भी बुला लेते हैं.

यह सुनते ही राधा को गुस्सा आ गया, विकास से कहा,”अब फिर उस के आने का खर्चा उठाना है?अभी तो गई है.”

संदली ने यह बात सुन कर कहा,”मम्मी, आप टिकट की चिंता न करो, सरप्राइज में आर्यन ने मुझे टिकट भेज दिए हैं.”

राधा ने कहा,”मुझे पता है कोई गड़बड़ जरूर है जो वे शादी के लिए इतनी जल्दी मचा रहे हैं. इतना अच्छा परिवार संदली को बहू बनाने के लिए क्यों मरा जा रहा है? कोई बात तो है.अब पता चलेगा.’’

विकास ने कहा,”गड़बड़ तुम्हारे दिमाग में है, बस.” संदली सीधे दिल्ली पहुंची. विकास और राधा भी पहुंच गए.

प्रिया ने कहा था कि वह सीधे शादी में ही आएगी. पानीपत में आर्यन का विशाल घर, नौकरचाकर देख कर राधा दंग रह गईं. उस पर सब का स्वभाव इतना सहज, कोई घमंड नहीं. पर आदत से मजबूर, कमी ढूंढ़ती ही रहीं, जो मिली नहीं.

राधा यह देख कर हैरान हुईं कि मधु और संदली ने फोन पर ही एकदूसरे के टच में रह कर सगाई के कपड़ों की जबरदस्त तैयारी कर रखी है. अभय संदली से खूब हंसीमजाक कर रहा था, विकास और मधु के लिए बेहद आरामदायक गेस्टरूम था, अनिल और मधु के करीब 100 लोगों के परिचितों के मौजूदगी में सगाई का फंक्शन हुआ.

विकास ने खर्चे बांटने की बात कही तो अनिल ने हाथ जोड़ दिए,”हमें कुछ नहीं चाहिए. संदली इस घर में आ रही है तो हमें खुशी से यह सब करने दें. हमें कुछ भी नहीं चाहिए.”

राधा ने अकेले में विकास से कहा,”इतना अच्छा बन कर दिखा रहे हैं, मुझे पता है ऐसे लोग बाद में रंग दिखाते हैं. अब पता चलेगा.‘’

संदली भी उन के पास ही बैठी थी.गुस्सा आ गया उसे, कहा,”मम्मी, हद होती है, इतने अच्छे लोग हैं फिर भी आप ऐसे कह रही हैं, सब कुछ उन्होंने आज मेरी पसंद का किया है, मेरी ड्रैस, ज्वैलरी सब आर्यन की मम्मी ने ली, मुझे कुछ भी लेने से मना कर दिया था, अब शादी की भी पूरी शौपिंग मुझे करवाने के लिए तैयार हैं, पर आप की बातें…उफ…”

”मुझे पता है तुम्हारी जैसी लड़कियां बाद में खूब रोती हैं.” संदली को रोना आ गया. उस के आंसू बह निकले तो विकास ने उसे गले से लगा लिया,”संदली बेटा, मत दुखी हो, तुम्हारी मम्मी को कुछ ज्यादा ही पता रहता है.‘’ विकास और संदली दोनों राधा से नाराज थे पर राधा पर न कभी पहले कोई असर हुआ था, न अब हो रहा था.

आगे पढ़ें- विकास ने हाथ जोड़ दिए,”आप जैसा चाहते हैं…

चौखट – भाग 2 : प्रेम को तरसती रेशमी

धीरेन रात में चूल्हे पर रोटी बना रहा था. उसे हर रोज अपने हाथ से खाना बनाना पड़ता था. रेशमी कटोरे में बनी हुई सब्जी ले कर चली आई.

‘‘यह सब्जी रख लो. आलूमटर और गोभी की मिक्स सब्जी बनाई है. खा

कर देखना,’’ रेशमी ने प्यार से कहा.

‘‘लेकिन, अभी रोटी सेंक रहा हूं,’’ कह कर धीरेन ने कटोरे की सब्जी रख ली.

‘‘हटो, मैं रोटी बना देती हूं. तुम खाना खा लो,’’ रेशमी ने कहा.

रेशमी तवे पर रोटी सेंकने लगी. धीरेन उस की दी हुई सब्जी के साथ गरमगरम रोटियां खाने लगा.

‘‘वाह, मजा आ गया. बड़ी मजेदार सब्जी बनी है,’’ धीरेन उंगलियां

चाट कर खाने लगा. रेशमी खुशी से मुसकरा उठी.

दूसरे दिन धीरेन ने फुटपाथ की दुकान से एक नाइटी खरीदी. वह नाइटी उस ने रेशमी को ला कर दे दी.

‘‘देखो, इसे पहन लेना. यह नाइटी तुम्हारे बदन पर खूब जंचेगी.’’

‘‘इसे मैं रात में पहन लूंगी,’’ रेशमी ने कहा.

‘‘कुलदीप को इस नाइटी पर शक हुआ तो?’’ धीरेन ने कहा.

‘‘कह दूंगी कि मैं ने खरीदी है,’’ रेशमी ने कहा.

‘‘आज रात तुम्हारे कमरे में आऊंगी. मेरा इंतजार कर लेना,’’ रेशमी ने धीमे से कहा.

तभी कुलदीप ने दुकान से पुकारा, ‘‘रेशमी, यह खाली टोकरी ले जाओ. इसे बरामदे में रख दो.’’

रेशमी बड़बड़ाई, ‘‘जब देखो, मुझ से खाली टोकरी उठवाता है. बाज आई ऐसे मर्द से.’’

आधी रात हो गई थी. रेशमी सोई नहीं थी. बगल में कुलदीप दारू पी कर सो रहा था. रेशमी कमरे से दबे पैर निकल कर धीरेन के कमरे में चली गई.

धीरेन जाग रहा था. वह रेशमी का इंतजार कर रहा था. उस ने रेशमी को बांहों में जकड़ लिया.

रेशमी ने धीरेन की दी हुई नाइटी पहन रखी थी, जिसे रेशमी ने पलभर में उतार दिया. इश्क की आग भड़क गई. दोनों ने एकदूसरे को बांहों में जकड़ लिया.

धीरेन रेशमी के साथ सैक्स करने लगा. कुछ देर तक यह खेल चलता रहा. जिस्म की आग जब ठंडी हो गई, तब दोनों अलग हो गए. रेशमी संतुष्ट हो कर अपने कमरे में सोने चली गई.

देशी दारू की दुकान में गहमागहमी थी. कुछ लोग आते और दारू की बोतल ले कर चले जाते थे. कई बेवड़े पी कर झूमते नजर आ रहे थे. मयखाने की हवाओं में भी नशा था.

कुलदीप अपने दोस्त किशन, सूरज और अजय के साथ बैठा दारू पी रहा था. जब नशा चढ़ा तो सभी लड़खड़ाते हुए उठे और रात के अंधेरे में घर चल दिए. कुछ दूर जाने पर कुलदीप के दोस्त अपने रास्ते निकल गए.

कुलदीप नशे में अकेले लड़खड़ाता हुआ चला जा रहा था. रास्ते में बड़े नाले पर एक पुलिया पड़ती थी, जिस की बाउंड्री ढह चुकी थी.

नशे के झोंक में कुलदीप लड़खड़ा कर बड़े नाले में गिर गया. आसपास अंधेरा और सन्नाटा था. उसे नाले में गिरते किसी ने भी नहीं देखा था.

कुलदीप हाथपैर मार कर नाले से निकलने की कोशिश करने लगा. वह जितना हाथपैर मारता, उतना ही कीचड़ और बदबूदार पानी से भरे नाले में धंसता चला गया. वह बड़े नाले में डूब गया था.

आधी रात तक कुलदीप जब घर नहीं लौटा, तब रेशमी घबराने लगी.

‘‘अभी तक कुलदीप नहीं आया,’’ रेशमी ने धीरेन से कहा.

‘‘सुबह का इंतजार करते हैं. हम लोग साथ चल कर उसे ढूंढ़ेंगे,’’ धीरेन ने तसल्ली दी.

सुबह हुई. थाने में लोगों की भीड़ लगी थी. पुलिस को एक शख्स की लाश बड़े नाले में तैरती हुई मिली थी. रेशमी और धीरेन ने थाने पहुंच कर लाश की शिनाख्त कुलदीप के रूप में की थी.

रेशमी जोरजोर से रो रही थी. पुलिस ने कुलदीप की लाश रेशमी को सौंप दी थी. उसी दिन कुलदीप का दाह संस्कार कर दिया था. रेशमी विधवा हो गई थी.

रोज कमानेखाने वाले लोगों को शोक मनाने का भी कहां समय होता है. कुछ दिनों से बंद पड़ी सब्जी की दुकान रेशमी ने खोल दी थी.

रेशमी की मदद के लिए धीरेन सामने आया. वह सब्जी मंडी से सुबह में सब्जियां टैंपो से ले आता था. रेशमी अपनी सब्जी दुकान में सब्जियां बेच देती थी.

इस तरह तकरीबन 2 महीने गुजर गए थे. रेशमी की जिंदगी ठीकठाक चलने लगी थी, लेकिन आसपास के लोगों को रेशमी खटकने लगी थी. सुधा नाम की एक अधेड़ औरत रेशमी को कुलटा साबित करने पर तुली थी.

सुधा आसपास की अनपढ़ औरतों को बतलाने लगी, ‘‘रेशमी एक विधवा औरत है. वह घर में अकेले रहती है. उस के घर में एक जवान लड़का धीरेन क्यों रहता है, जबकि उस के पति कुलदीप की मौत हो गई है?’’

एक अनपढ़ और जाहिल औरत गीता ने कहा, ‘‘रेशमी का धीरेन के साथ क्या संबंध है? वह सब्जी मंडी से उस की दुकान के लिए सब्जियां क्यों लाता है?’’

एक दिन सुधा ने रेशमी को समझाया, ‘‘धीरेन को घर से निकाल दो. कोई दूसरा किराएदार रख लो. एक अकेली औरत को जवान लड़के के साथ रहना ठीक नहीं है.’’

तब रेशमी ने तपाक से जवाब दिया, ‘‘धीरेन में कोई खराबी नहीं है. वह मेरे कामकाज में मदद कर देता है. भला उसे मैं घर से क्यों निकाल दूं?’’ यह सुन कर सुधा चुप हो गई थी.

महल्ले का एक बदमाश था प्रकाश. वह गली के नुक्कड़ पर लड़कों के साथ खड़ा रहता था. आसपास के लोग उस से खौफ खाते थे. सुधा ने प्रकाश से रेशमी की चुगली कर दी.

प्रकाश तो ऐसे मौके की तलाश में रहता था. वह रेशमी की सब्जी दुकान पर अपने गुरगों के साथ पहुंच गया. उस समय रेशमी दुकान पर बैठी थी.

‘‘इस घर में धीरेन नाम का कोई आदमी रहता है?’’ प्रकाश ने कड़क कर रेशमी से पूछा.

‘‘हां, धीरेन मेरे घर में रहता है,’’ रेशमी ने कहा.

‘‘उसे बाहर बुलाओ,’’ प्रकाश ने गरज कर कहा.

सुन कर धीरेन कमरे से बाहर आ गया, ‘‘क्या बात है?’’

राजनीति नकाब की – भाग 2

निहाल इस तरह से देवराज की मेहरबानी के बारे में कुछ सोचता कि क्यों देवराज इस तरह उस पर पैसे लुटाता रहता है, आखिर उस के जैसे तो बहुत सारे लड़के देवराज की जमात में होंगे, फिर क्यों वह निहाल को इतना आदर व सम्मान देता है. कभी सोचता कि खुद वह भी तो देवराज के एक बुलावे पर कहीं भी पहुंच जाता है और आज की दुनिया में सब से जरूरी चीज है समय, और वह तो उस के पास रहता ही है और देवराज उसी समय की कीमत तो चुकाता है, वह कोई एहसान थोड़े ही करता है उस पर.

सच है कि जब मनुष्य की जरूरतें पूरी होने लगती हैं तो उस के सिर पर अहंकार आने ही लगता है, और निहाल भी इस का कोई अपवाद नहीं था.

हमारे देश में कई नेता छात्र जीवन से ही राजनीति से जुड़े और आगे चल कर देश की राजनीति में भी उन्होंने नाम कमाया. दरअसल, राजनीति है ही ऐसी चीज, यह आप को उठाती है तो आकाश में पहुंचा देती है और गिराती है तो रसातल में.

ऐसी ही 2 अतियों के बीच में डोल रहा था देवराज, वह एक साफसुथरी छवि वाला नेता बनना चाहता था पर शायद राजनीति की कालिखभरी गलियों से बिना दाग लगे निकल पाना बहुत मुश्किल था.

एक बार फिर से निहाल के मोबाइल पर देवराज की कौल आई.

‘‘हैलो.’’

‘‘हां निहाल, कैसे हो भाई?’’

‘‘जी भैयाजी, अच्छा हूं.’’

‘‘अरे यार, कितनी बार कहा, भैयाजी मत कहा कर, तू मुझे मेरे नाम से ही बुलाया कर, वरना पिटेगा मु?ा से,’’ देवराज ने बनावटी गुस्से का इजहार करते हुए कहा.

‘‘अरे हां, भाई बिलकुल, अब से देवराज ही बुलाऊंगा, पर बताओ तो आज कैसे याद किया मुझे?’’ निहाल ने भी अपनापन दिखाया.

‘‘हां यार, बस हो सके तो थोड़ी देर के लिए होस्टल में आजा, कुछ बात ऐसी है कि फोन पर नहीं की जा सकती, सामने आएगा तब ही बता पाऊंगा,’’ देवराज रहस्मयी होता जा रहा था.

‘‘हां, ठीक है, देवराज, मैं अभी पहुंचता हूं,’’ निहाल ने फुरती दिखाते हुए कहा.

करीब एक घंटे बाद निहाल होस्टल में देवराज के सामने बैठा हुआ था.

‘‘अब बताओ देवराज, ऐसी कौन सी बात है जो तुम मुझे फोन पर नहीं बता सकते थे?’’ निहाल व्यग्र था.

‘‘दोस्त, बात दरअसल ऐसी है कि वो जो होस्टल है न ‘लंबरदार होस्टल’ उस के एक लड़के वीरेंद्र से अपनी ठन गई है. साला चला है मुझे को टक्कर देने, देवराज को टक्कर देने,’’ आंखें लाल हो चुकी थीं देवराज की. वह फुफकारते हुए बोला, ‘‘उठवा लूंगा साले को, और फिर ऐसीऐसी जगह तुड़ाई करूंगा कि जबजब हवा चलेगी, उस की टूटी हड्डियां उसे देवराज की याद दिलाएंगी,’’ देवराज क्रोध में था. उस का ऐसा रूप निहाल ने पहली बार देखा था.

‘‘पर देवराज, इस मामले में मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं,’’ निहाल की कुछ समझ में नहीं आ रहा था. ‘‘तुम्हे सिर्फ एक गाड़ी में बैठना होगा,’’ देवराज ने गुस्से को शांत करते हुए कहा.

‘‘गाड़ी में बैठना, मतलब? मैं कुछ समझ नहीं, देवराज?’’

‘‘हां निहाल, वह लड़का सुबह 7 बजे लंबरदार होस्टल से निकल कर पार्क जाता है. मेरे आदमी और तुम एक ओमनी वैन ले कर पार्क के पास ही खड़े रहोगे और जैसे ही वीरेंद्र पार्क में आएगा, बस, तुम्हें उस का मुंह दबा कर खींच लेना है वैन के अंदर. इस के बाद उस का क्या करना है, वो हम देख लेंगे.’’ अब देवराज थोड़ा शांत दिख रहा था, उस की यह मांग सुन कर अचानक सिहर उठा था निहाल.

‘‘पर यह तो अपहरण कहलाएगा, देवराज?’’ निहाल ने पूछा.

‘‘जानता हूं निहाल, जानता हूं, अपहरण ही तो करना है तुम्हें उस का,’’ देवराज एकएक शब्द चबा कर बोल रहा था.

‘‘अरे, पर… देवराज यह तो गलत है,’’ निहाल ने सलाह देने की कोशिश की.

‘‘गलत…? इस दुनिया में गलत और सही जैसी कोई चीज नहीं होती. असली चीज होती है अपना साम्राज्य, अपना आधिपत्य. और इन कामों में जो भी कांटा आए उस को अपनी राह से जो निकाल फेंकता है वही राजा कहलाता है. ये सारे कांटे कैसे निकाले जाते हैं, देवराज जानता है और अच्छी तरह जानता है,’’ देवराज की महत्त्वाकांक्षा अपने चरम पर उबल रही थी.

‘‘पर देवराज, यार, यह तो पुलिस का मामला बन सकता है, और कहीं मैं फंस गया तो? मैं तो एक सीधासादा बेरोजगार हूं जो किसी तरह से अपने मांबाप और बहन की जिम्मेदारी को निभा रहा हूं,’’ सशंकित हो रहा था निहाल.

‘‘मैं अच्छी तरह जानता हूं तुम्हारी जिम्मेदारियां, और तेरा परिवार मेरा भी है, और तुम बेरोजगार हो, इसीलिए यह काम तुम्हें दिया है. वैसे, यह काम मैं भाड़े के लोगों से भी करा सकता हूं, पर मैं जानता हूं कि ऐसे लोग विश्वास के योग्य नहीं होते. इस काम के लिए तो मुझे भरोसेमंद आदमी चाहिए, बिलकुल तुम्हारे जैसा. और हां, इस काम के लिए तुम को पूरे 50 हजार रुपए मिलेंगे, वह भी काम से पहले, ठीक है न?’’ काफीकुछ कह गया था देवराज.

देवराज के आखिरी के वाक्य सुन कर एक हर्र्षमिश्रित आश्चर्य निहाल के चेहरे पर दौड़ गया. हां, यह सच है कि अपहरण की बात उसे अच्छी नहीं लगी थी पर 50 हजार रुपए एक बेरोजगार के लिए एक बड़ी रकम थी और यह रकम उसे लालच भी दे रही थी और आकर्षित भी कर रही थी.

‘मु?ो करना ही क्या होगा, सिर्फ गाड़ी में मुंह पर नकाब लगा कर बैठे रहना है और जैसे ही वीरेंद्र पार्क से बाहर आएगा उस का मुंह दबा कर गाड़ी में ही तो खींचना है और इस काम में मेरी मदद के लिए देवराज के आदमी भी तो होंगे. 50 हजार… वह भी काम से पहले… यार निहाल, औफर तो अच्छा है… ये पैसे ले कर जब मांपापा के पास जाऊंगा और उन को यह बतलाऊंगा कि मैं भी निठल्ला नहीं हूं, मैं भी औरों की तरह कमा सकता हूं तब तो वे भी खुश होंगे न. और फिर मिनी भी सोचेगी कि उस का भाई किसी लायक बन गया है.’ अपनी ही गणित में उल?ा हुआ था निहाल कि तभी देवराज की आवाज ने उस की तंद्रा भंग कर दी.

‘‘अरे निहाल, इतना क्या सोच रहा है यार. ऐसे तुझे कोई फंसने थोड़े ही दूंगा. यार है तू मेरा. बस, तू मेरा काम करता जा और मैं तेरे काम आता जाऊंगा,’’ देवराज ने बहलाया निहाल को.

निहाल को 50 हजार की रकम के आगे सहीगलत कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. उसे बस अपनी बेरोजगारी के आगे यह रकम बहुत बड़ी लग रही थी और काफी सोचविचार के बाद उस ने देवराज से इस काम को करने के लिए हामी भर दी.

‘‘तो फिर ठीक है, निहाल. इस राजू नाम के लड़के को पहचान लो. कल यह एक वैन और 2 बंदे ले कर तुम्हें उसी पार्क के बाहर मिलेगा, जहां पर तुम्हें उस कमीने वीरेंद्र को अगवा करना है. बैस्ट औफ लक मेरे दोस्त,’’ निहाल से देवराज बोला.

आज फिर एक बार मनुष्य के विवेक पर लालच ने जीत हासिल कर ली थी और इसी लालच के वशीभूत हो कर आज वह वो काम करने जा रहा था जो उस ने कभी सोचा भी नहीं था. निहाल घर आ कर चुपचाप लेट गया पर रातभर सो न सका. सुबहसुबह ठीक उसी जगह पहुंच गया जहां पर उसे वारदात को अंजाम देना था. वहां पर वैन पहले से खड़ी थी और राजू अपने साथ 2 बंदे भी ले कर आया था. निहाल एक नकाब लगा कर वैन के अंदर बैठ गया. अभी कुछ ही समय बीता था कि सामने से वीरेंद्र आता हुआ दिखा. धीरेधीरे निहाल की धड़कनें तेज हो रही थीं, पसीना उस की कनपटी तक आ गया था. अब वीरेंद्र वैन के पास से गुजरा, एक खटाक की आवाज के साथ दरवाजा खोल कर निहाल ने वीरेंद्र के मुंह को कपड़े से दबाया और अंदर घसीट लिया. वैन को पहले से ही स्टार्ट कर के रखा था, सो, कुछ ही सैकंड्स में वैन वहां से काफी दूर निकल गई.

निहाल के मोबाइल पर देवराज का फोन आया जिस में उस ने निहाल को आगे वाले चौराहे पर उतर जाने को कहा और अपहृत वीरेंद्र को राजू को सौंप देने की बात कही. निहाल ने ऐसा ही किया. वह आगे वाले चौराहे पर उतर गया और जैसे ही वह उतरा मानो सैकड़ों टन बो?ा उस के सिर से उतर गया.

निहाल चुपके से एक चाय के होटल में घुस गया और यह सुनिश्चित किया कि उसे किसी ने उस वैन से उतरते हुए देखा तो नहीं. वास्तव में आजकल कौन कहां जा रहा है किस से बात कर रहा है, इन बातों का कोई ध्यान नहीं रखता है, सिवा हमारे अंदर के डर के.

चाय पी कर निहाल ने मोबाइल जेब से निकाल कर नैटबैंकिंग पर अपने बैंक के खाते का बैलैंस चैक किया तो उस में 2 दिन पहले ही 50 हजार रुपए जमा हो चुके थे. वह बहुत खुश हो गया और औटो ले कर घर की तरफ चल पड़ा. रास्ते में निहाल ने सोचा कि देखा जाए तो काम भी कुछ खास कठिन नहीं था और पैसा भी अच्छा मिला है. बस, सम?ो मजा ही आ गया. हां, आगे से कभी अगर देवराज ऐसा काम कहेगा भी तो वह साफ मना कर देगा क्योंकि रोजरोज यह काम ठीक नहीं. यही सब सोच उस ने मोबाइल पर ‘थैंक्यू भाई’ का एक संदेश टाइप कर के देवराज को भेज दिया.

बदचलनी का ठप्पा – भाग 2 : क्यों भागी परबतिया घर से?

“ऐसे में तो हमारा मरना भी मुश्किल हो जाएगा.’’

भीड़ को देवेंद्रजी से हमदर्दी हो आई. बेचारे देवेंद्रजी, सारी कोलियरी का बोझ उठाए हैं अपने कंधों पर. कितनी चिंता है उन्हें लोगों की. एक वे ही तो हैं यहां, जो लोगों का दुखदर्द समझते हैं. उन को चैन कहां मिल पाता होगा. इस बार देवेंद्रजी की निगाह भीड़ से हट कर खड़े अर्जुन महतो पर पड़ी. बेचारा अर्जुन अपनी वीरान दुनिया लिए लगातार रोए जा रहा था. देवेंद्रजी को जैसे कुछ मालूम ही न हो. उन्होंने अर्जुन महतो की तरफ देख कर अपनेपन से पूछा,

‘‘क्या हो गया अर्जुन? क्यों सुबहसुबह हमारे दरवाजे पर आंसू बहा रहे हो?’’

अर्जुन महतो बिना जवाब दिए सिर्फ रोता रहा. उसी बीच महल्ले की ओर से बलदेव प्रसाद आता हुआ दिखा. देवेंद्रजी और भीड़ को शायद उसी का इंतजार था, इसीलिए सभी खुश हो गए.

मजदूर नेता देवेंद्रजी के दाहिने हाथ बलदेव प्रसाद का पहनावा देखते ही बनता था. कलफदार सफेद कुरतापाजामा, जिस पर आंखें ठहरती नहीं थीं. और कोई अर्जुन का पहनावा देखे, मैलीचीकट लुंगी और वैसी ही बनियान पहने था वह. कोयले की खदान में काम करने वाला एक अदना सा मजदूर, बेचारा अर्जुन. मजदूर अंधेरे में रेंग लेगा, खाली पैर चल लेगा और बरसते पानी में भीग लेगा, पर नेतागीरी के मजे ही और हैं. नेता हो या उन का दाहिना हाथ, उन के पास टौर्च भी हैं, जूते भी और छतरियां भी.

बलदेव प्रसाद को देख कर दुबेजी बोले, ‘‘भई बलदेवा, आजकल कहां रहते हो? बहुत दिनों से मिले नहीं. लगता है, खूब मस्ती कर रहे हो?’’

बलदेव प्रसाद ने अपने चेहरे पर परेशानी की परत चढ़ाते हुए कहा, ‘‘क्या कहें, अब तो यहां रहना ही मुश्किल हो गया है. रोज कोई न कोई झंझट खड़ा हो जाता है, ‘‘ऐसा कह कर उस ने अर्जुन की ओर ऐसी नजरों से देखा, जैसे सारा कुसूर उसी का हो. ‘‘वही तो हम भी इस से पूछ रहे हैं,’’

देवेंद्रजी बोले, ‘‘पर, यह बस रोए जा रहा है. कुछ बताता ही नहीं. अब तुम्हीं कुछ बताओ, तो हमें भी  मालूम हो?’’

‘‘अब हम क्या बताएं. मेरी तो जबान ही आगे नहीं बढ़ती. कहूं तो क्या कहूं. लगता है कि अब इस कोलियरी में गरीब आदमी का गुजारा नहीं रहा,’’

बलदेव प्रसाद ने कहा. फिर उस ने अर्जुन महतो की ओर देख कर कहा, ‘‘बताओ अर्जुन, खुद बताओ न अपना दुखड़ा?’’ देवेंद्रजी मन ही मन खुश हुए. बड़ी सधी हुई बात करता है बलदेव प्रसाद. अर्जुन ने अपने हाथ जोड़ दिए. मुंह से तो वह कुछ कह ही नहीं पा रहा था.

बड़ी कातर आंखों से उस ने बलदेव प्रसाद को देखा, जैसे कह रहा हो कि आप ही बताओ माईबाप, आप को सब मालूम ही है. ‘‘क्या हो गया अर्जुन? खुल कर कहो न. अरे, हम पर तुम्हारा भरोसा है, तभी तो आए हो न यहां?’’ देवेंद्रजी ने अर्जुन का हौसला बढ़ाया.

अर्जुन हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और फफकफफक कर जोर से रो पड़ा. बलदेव प्रसाद ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘बसबस, अब रोनाधोना नहीं मेहरियों की तरह, नहीं तो मैं देवेंद्रजी को कुछ नहीं बताऊंगा, समझा?’’ फिर उस ने देवेंद्रजी से कहा, ‘‘आप परबतिया को तो जानते ही होंगे?’’

‘‘कौन परबतिया…? अरे वही… जगेशर की बिटिया न?’’ देवेंद्रजी  ने कहा.

‘‘नहींनहीं,’’ बलदेव प्रसाद बोला, ‘‘यह अर्जुन महतो है न, इसी की घरवाली परबतिया की बात कर रहा हूं. इस कोलियरी में ऐसा अंधेर न देखा, न सुना. क्या पता आगे क्याक्या देखना पड़ जाए यहां,’’ उस ने भीड़ पर एक धिक्कार भरी नजर डाली.

‘‘तो यह अर्जुन हमारे पास क्यों आया है?’’ देवेंद्रजी ने मजाक करते हुए कहा, ‘‘हम ने तो इस की घरवाली को छिपा कर नहीं रखा अपने यहां,’’ उन की बात सुन कर भीड़ हंसने लगी.

‘‘माईबाप…’’ अर्जुन महतो के मुंह से मुश्किल से निकला. हाथ उस के लगातार जुड़े हुए थे. उस के खाली पैरों में एक घाव पक गया था, जिस से मवाद बह रहा था. मक्खियों को भगाने के लिए वह बीचबीच में अपना पैर झटक लेता था.

‘‘वही तो मैं बताने जा रहा था,’’ बलदेव प्रसाद ने भीड़ को ऐसे देखा, जैसे कोई बहुत बड़ी बात कहने जा  रहा हो, ‘‘वही परबतिया कल रात  जा कर उस बदमाश गया प्रसाद के घर बैठ गई.’’

‘‘गया प्रसाद…?’’ देवेंद्रजी का चेहरा तन गया, ‘‘वही लठैत गया  प्रसाद न?’’

‘‘हांहां,’’ बलदेव प्रसाद बोला, ‘‘एकदम वही, दिनदहाड़े ऐसी अंधेरगर्दी. तभी तो कहता हूं कि अब यहां किसी भलेमानुष का रहना  मुश्किल है.’’

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