उन दोनों का सच : क्या पति के धोखे का बदला ले पाई गौरा – भाग 1

“बिब्बो…बिब्बो…” पलाश ने अपने फ्लैट की साइड की बालकनी से अपनी माशूका बिब्बो के बैडरूम से लगी बालकनी में कूद कर उस के बैडरूम के दरवाजे पर दस्तक दी, लेकिन भीतर से कोई जवाब नहीं आया.

उसे उस के दरवाजे को खटखटाते 5 मिनट हो गए कि तभी पलाश ने देखा बिब्बो के फ्लैट के ठीक सामने ड्यूटी पर तैनात उन की सोसाइटी का गार्ड शायद उस की दस्तक की आवाज सुन कर उसी तरफ चला आ रहा था. उसी की वजह से वह बिब्बो के घर मेन दरवाजे से नहीं घुस पाता था. गार्ड को अपनी ओर आता देख कर पलाश के पसीने छूट गए. वह अपनेआप को उस से छिपाने के उद्देश्य से झट से नीचे बैठ गया.

करीब 5 मिनट बाद उस ने धीमे से उचकते हुए देखा, गार्ड जा चुका था. उस ने चैन की सांस ली. तभी उसे खयाल आया वह बिब्बो को फोन ही कर देता. वह उसे फोन लगा कर धीमे से फुसफुसाया “बिब्बो… दरवाजा खोलो भई. कितनी देर से तुम्हारी बालकनी में खड़ा हूं.”

“सौरी जानू, नहा रही थी.”

“अब दरवाजा तो खोलो.”

“अभी आई.”

तभी दरवाजा खुला और पलाश झपट कर भीतर घुस गया और चैन की सांस लेते हुए बोला, “यह कमीना गार्ड, इतनी सी देर में उस ने यहां के 10 चक्कर लगा लिए. कुछ ज्यादा ही चौकीदारी करता है यह.”

“ओ जानू, क्यों अपसेट हो रहे हो. जाने दो, उस का तो काम ही है चौकीदारी करना. अब वह तो करेगा ही न. चलो अब यह बताओ जरा, आज मैं कैसी लग रही हूं?”

“गजब ढा रही हो जानेमन. तुम तो हमेशा ही बिजली गिराती हो स्वीटू. तभी तो मैं तुम पर फिदा हूं. चलो अब दूरदूर रह कर मुझे टौर्चर मत करो,” यह कहते हुए पलाश ने हाथ बढ़ा कर बिब्बो को अपनी ओर खींच लिया और बांहों में भर उसे बेहताशा चूमने लगा.

करीब घंटे भर तक प्रेम सागर में गोते लगा कर एकदूसरे से तृप्त हो कर दोनों प्रेमियों को समय का भान हुआ तो पलाश बोला, “1 बजने आए. मैं चलता हूं. गौरा आ जाएगी.”

“गौरा कहां गई है?”

“उस की मां बीमार है. उन्हें देखने गई है.”

“अच्छा.”

“तो ठीक है जान, कल मिलते हैं.”

“ओके स्वीटहार्ट, बायबाय”, यह कहते हुए पलाश बालकनी में आया. वह बालकनी की नीची दीवार पर पैर रखते हुए नीचे कूदा, लेकिन न जाने कैसे उस का संतुलन बिगड़ गया और वह पलक झपकते ही अपनी बालकनी में उतरने की बजाय उसके बाहर अपनी सोसाइटी के कैंपस में गिर गया.

उसे यों सोसाइटी के कैंपस में गिरते देख अपनी बालकनी में खड़ी बिब्बो आननफानन में लगभग दौड़ती हुए बदहवास उस के पास पहुंची. पलाश को यों अविचल जमीन पर पड़े देख बिब्बो का कलेजा मुंह में आ गया और उस ने उस का हाथ पकड़ कर हिलाया, “पलाश…पलाश… आंखें खोलो,” लेकिन उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई.

तभी वह दौड़ कर भीतर अपने फ्लैट में गई और एक गिलास में पानी ले आई और उस के चेहरे पर छींटे मारने लगी. 5 मिनट में उसे होश आ गया, लेकिन वह सामान्य नहीं लग रहा था. वह फटीफटी निगाहों से बिब्बो को देख रहा था. उस की शून्य में ताकती दृष्टि से परेशान हो बिब्बो ने उसे झिंझोड़ा और उस से कहा, “पलाश उठो, क्या हुआ? कैसे गिर गए? अपना बैलेंस लूज कर दिया तुम ने,” लेकिन पलाश कुछ नहीं बोला.
इस बार तनिक घबराते हुए उस ने उस के कंधों को थाम उसे उठाने का प्रयास किया, “उठो पलाश, प्लीज उठो. तुम्हें यहां गिरा हुआ देख कर लोग बातें बनाएंगे.”

संयोग से अभी तक पलाश को वहां गिरते हुए किसी ने नहीं देखा था. उस वक्त गार्ड भी अपनी जगह पर नहीं था. उन दोनों को यों साथ देख लेने के खौफ से बिब्बो का घबराहट से बहुत बुरा हाल था. उस ने अपना पूरा दम लगा कर उसे उठाया और अपना सहारा दे उसे उस के फ्लैट में पहुंचा दिया.

पलाश अभी तक सामान्य नहीं था. उसे यों फटीफटी निगाहों से अपने चारों ओर ताकते देख वह बेहद घबरा गई. ‘उसे कोई अंदरूनी चोट तो नहीं लगी’, इस सोच ने उसे बेहद परेशान कर दिया.

वह सोचने लगी, ‘पलाश सामान्य बिहेव नहीं कर रहा. उस के ऊंचाई से गिरने की बात उसकी पत्नी गौरा को बिना बताए नहीं चलने वाला, लेकिन उसे वह कैसे बताए कि वह अपनी बालकनी से उस की बालकनी में कूदने की कोशिश में गिरा. यह तो वह बुरी फंसी.’

घबराहट से उस के होश फाख्ता होने लगे कि तभी पलाश की बालकनी में रखे झाड़न और एक ऊंचे स्टूल को देख कर उस ने सोचा, ‘मैं गौरा से कह दूंगी, पलाश अपनी बालकनी में लगे एसी के ऐक्सटर्नल यूनिट को साफ करने के लिए स्टूल पर चढ़ा था और वह उस से गिर गया. उस समय संयोग से वह भी अपनी बालकनी में थी और वह उस के सामने गिरा था.’

तनिक देर तक सोचविचार कर उस ने सोचा, ‘हां यही बहाना ठीक रहेगा,’ इस खयाल से उस की व्यग्रता तनिक कम हुई और उस ने झट से पलाश से कहा, “पलाश, मैं अभी बिब्बो को फोन करने जा रही हूं. वह तुम से पूछे कि तुम कैसे गिरे तो तुम्हें कहना है कि तुम उस स्टूल पर एसी की यूनिट साफ करने के लिए चढ़े थे और वहां से गिर गए. ठीक है न? प्लीज, यही बहाना बनाना ठीक रहेगा. और कुछ मत कहना. ओके पलाश, तुम मुझे सामान्य नहीं लग रहे. तुम्हें चैकअप के लिए अस्पताल ले ही जाना होगा, कहीं कोई अंदरूनी चोट न आई हो,” उस से यह कहते हुए बिब्बो ने गौरा को फोन कर उसे फौरन घर आने की ताकीद की.

10-15 मिनट में तो गौरा अपनी मां के घर से लौट आई. पलाश को गिरे हुए करीब घंटा बीत चला था, लेकिन वह अभी भी सामान्य नहीं हुआ था. उस की यह हालत देख कर गौरा पलाश को घर के निकट एक अस्पताल ले गई. बिब्बो उस के साथ साथ अस्पताल गई. उस के मन में अपराध भावना थी कि पलाश उस की वजह से दुर्घटनाग्रस्त हुआ. उस आड़े वक्त में बिब्बो उस के साथसाथ रही. वह अपने घर से एक बड़ी रकम अपने साथ ले गई.

पलाश की पत्नी गौरा मात्र बीए पास, सीधीसादी घरेलू किस्म की औरत थी जिस की दुनिया महज घरगृहस्थी, पति, बच्चों तक ही सीमित थी. वह पुरुषों से पूरे आत्मविश्वास से बात न कर पाती. यहां जयपुर में उस का ऐसा कोई रिश्तेदार न था जो इस मुश्किल घड़ी में अस्पताल के मसलों में उस की मदद कर पाता.

गौरा के मायके में मात्र वृद्धा विधवा मां थी जो अपनी किशोरवय की बेटी के साथ रहतीं. वह बड़ी मुश्किल से लोगों के कपड़े सील कर अपना और अपनी बेटी का पेट पालती. उस के ससुराल में भी उस के मात्र वयोवृद्ध ससुर थे, जो जयपुर के पास के एक गांव में अपनी वृद्धा बहन के साथ रहा करते. इसलिए गौरा को दोनों ही पक्षों से किसी तरह के सहारे की कोई उम्मीद न थी .

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भरमजाल : रमेश ने कैसे बरबाद की अपनी जिंदगी

आज पार्क जा कर जौगिंग करने में मेरा बिलकुल भी मन नहीं लगा. हालांकि, रमेश को छोड़ कर बाकी सभी दोस्त थे, मगर रमेश से मेरी कुछ ज्यादा ही पटती थी.

25 सालों से हम दोनों एकसाथ इस पार्क में जौगिंग करने आते रहे हैं. कुछ तो वैसे ही रमेश का न होना मुझे एक अधूरेपन का एहसास करा रहा था और कुछ दोस्तों ने जब उस के बारे में उलटीसीधी बात करनी शुरू की, तो मेरा मन और भी परेशान हो गया.

‘‘4 महीने बाद 60वां जन्मदिन होने वाला था रमेश का. उम्र के इस पड़ाव पर ऐसा काम करते हुए उसे जरा भी शर्म नहीं आई. देखने में कितना धार्मिक लगता था और काम देखो कैसा किया. सारा समाज थूथू कर रहा है उस पर,’’ एक दोस्त ने कहा.

दूसरे दोस्त ने नाकभौं सिकोड़ते हुए कहा, ‘‘मुझे तो भाभीजी पर तरस आ रहा है. अच्छा हुआ दोनों लड़कों ने घर से निकाल दिया ऐसे बाप को…’’

इस से ज्यादा सुनने की ताकत मुझ में नहीं थी.

‘‘कुछ काम है…’’ कह कर मैं वापस घर आ गया और रमेश के बारे में सोचने लगा.

रमेश और मेरी कारोबार के सिलसिले में एकदूसरे से जानपहचान हुई थी. यह जानपहचान कब दोस्ती और फिर गहरी दोस्ती में बदल गई, पता ही नहीं चला.

रमेश बहुत ही साफदिल, अपने काम में ईमानदार और सामाजिक इनसान था. उस के इन्हीं गुणों के चलते हमारी दोस्ती इतनी बढ़ी कि 25 साल तक हम रोजाना एकसाथ जौगिंग करने जाते रहे.

हम दोनों अपनी सारी बातें जौगिंग के दौरान ही कर लेते थे. कई बार तो दूसरे दोस्त हमें लैलामजनू कह कर चिढ़ाते थे.

इतने सालों में रमेश ने अपना कारोबार काफी बढ़ा लिया था. ट्रांसपोर्ट के कारोबार के साथ ही अब उस ने दिल्ली के पौश इलाके में पैट्रोल पंप भी खोल लिया था.

एक तरफ लक्ष्मी उस पर पैसा बरसा रही थी, वहीं दूसरी तरफ उस की सुंदर सुशील पत्नी ने 2 बेटे उस की गोद में दे कर दुनिया का सब से अमीर इनसान बना दिया था.

जिंदगी ने अच्छी रफ्तार पकड़ ली थी, मगर सब से अमीर आदमी सुखी भी हो, ऐसा जरूरी नहीं होता. वह लालच के ऐसे दलदल में धंसता चला जाता है कि जब तक उसे एहसास होता है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है.

2 साल पहले बाजार में गिरावट आई, तो सभी के कारोबार ठप हो गए. रमेश किसी भी तरह कारोबार को चलाना चाहता था. उस ने अपने पैट्रोल पंप पर पैट्रोल भरने के लिए लड़कियां रख लीं और वाकई उस के पैट्रोल पंप की कमाई पहले से काफी ज्यादा बढ़ गई.

ग्राहक वहां पैट्रोल लेने के बहाने लड़कियां देखने ज्यादा आने लगे. अब रमेश हर तीसरे महीने पहली लड़की को हटा कर किसी नई और खूबसूरत लड़की को काम पर रखता.

मुझे उस की इस सोच से नफरत हुई. मैं ने उसे समझाने की कोशिश भी की, तो उस ने कहा ‘आल इज फेयर इन बिजनेस’.

मैं अपनी आंखों से देख रहा था कि पैसा कैसे एक सीधेसादे इनसान की अक्ल मार देता है.

ज्यादातर उस के मैनेजर ही इन लड़कियों को काम पर रखते थे. पर वे लड़कियां काम कैसा कर रही हैं, यह देखने के लिए रमेश कभीकभार अपने पैट्रोल पंप पर ही पैट्रोल भरवाने चला जाया करता था.

उन्हीं दिनों एक लड़की रानी, उस के पैट्रोल पंप पर काम करने आई. एक शाम को मैं उसी की गाड़ी में काम के सिलसिले में उस के साथ गया था.

उस दिन रमेश ने पहली बार रानी को देखा था. गठे हुए बदन की लंबीपतली थोड़ी सांवली सी थी वह, उम्र यही होगी कोई 23-24 साल यानी रमेश के बेटे से भी छोटी उम्र की थी.

रमेश ने मैनेजर को बुला कर पूछा, तो उस ने बताया कि यह नई लड़की है रानी, अपना काम भी बखूबी कर रही है. उस के बाद रमेश और मैं वापस आ गए.

3 महीने बाद मैनेजर का रमेश के पास फोन आया कि रानी आप से मिलना चाहती है. वह काम से हटने को तैयार नहीं है. उसे समझाने की बहुत कोशिश की, मगर कहती है कि एक बार मालिक से मिलवा दो, फिर चली जाऊंगी.

रमेश ने कहा, ‘‘उसे मेरे दफ्तर भेज देना.’’

दफ्तर आते ही रानी रमेश के पैरों में गिर गई और लगी जोरजोर से रोने, ‘‘मालिक, मुझे काम से मत निकालो. मेरे घर में कमाने वाली सिर्फ मैं ही हूं. बाप शराबी है. वह पैसे के लिए मुझे बेच देगा. 3 महीने से आधी तनख्वाह उस के हाथ में रख देती थी, तो शांत रहता था. बड़ी मुश्किल से अच्छी नौकरी और अच्छे लोग मिले थे. मैं आप के सब काम कर दिया करूंगी, ओवरटाइम भी करूंगी. उस के पैसे भी चाहे मत देना, पर मुझे काम से मत निकालो.’’

रमेश ने 1-2 बार उस से कहा भी कि उठो, ऐसे पैरों में मत गिरो, मगर वह पैरों को पकड़े रोती रही. आखिरकार रमेश को ही उसे उठाना पड़ा और मानना पड़ा कि वह उसे काम से नहीं निकालेगा.

ऐसा सुनते ही रानी ने रमेश का हाथ चूम लिया. 60 साल के बूढ़े रमेश के अंदर कमसिन रानी के चुंबन से एक सिहरन सी दौड़ गई.

रानी के जाने के बाद भी रमेश उसी के बारे में सोचता रहा. वह खुद को उस की तरफ खिंचता हुआ महसूस कर रहा था. 1-2 बार उस ने अपने इन विचारों को झटका भी कि वह यह क्या सोच रहा है. मगर रानी का गठीला बदन और उस का चुंबन रहरह कर उसे उस से मिलने को बेचैन कर रहे थे.

उस दिन के बाद से रमेश अकसर अपने पैट्रोल पंप पर जाने लगा. पहले वह वहां बैठता नहीं था. अब उस ने वहां बैठना भी शुरू कर दिया था.

रानी के दफ्तर आने वाली बात रमेश ने मुझे बताई थी और जब उस ने अपनी उस सोच के बारे में मुझे बताया, तभी मैं ने उसे समझाने की कोशिश की, ‘‘तुम रानी से दूर ही रहो. फिसलने की कोई उम्र नहीं होती. कीचड़ में कितना धंस जाओगे, खुद तुम्हें भी पता नहीं चलेगा.’’

मेरे समझाने के बाद से रमेश ने मुझ से रानी के बारे में बातें करना बंद कर दिया, मगर मैं बरसों पुराना दोस्त था उस का, उस की बदलती हरकतों को बखूबी देख पा रहा था.

अगले 3 महीने का समय भी इसी तरह निकल गया. अब रमेश ने रानी को बुला कर कहा, ‘‘देखो, अब मुझे तुम्हें यहां से हटाना होगा, नहीं तो बाकी की लड़कियां भी यही मांग करेंगी कि हमें भी काम से मत हटाओ.’’

‘‘मगर, मैं कहां जाऊंगी मालिक?’’

‘‘शहर से बाहर निकल कर हमारा एक फार्म हाउस है, वहां उस घर की देखभाल के लिए किसी की जरूरत है. मैं तुम्हें वहां नौकरी दे सकता हूं. चौबीस घंटे वहीं रहना होगा. खानापीना सब हम देंगे और तनख्वाह अलग.’’

रानी ने खुशीखुशी हां भर दी.

अब रानी फार्म हाउस में काम करने लगी. कभीकभी रमेश अपने दोस्तों को वहां ले जाता, तो रानी खाना भी बना देती थी सब के लिए.

रानी हर काम में माहिर थी. फार्म हाउस पूरा चमका दिया था उस ने. रमेश को यह देख कर बहुत अच्छा लगा.

एक बार कहीं बाहर से आते हुए रमेश फार्म हाउस पर चला गया. वहां जा कर पता चला कि चौकीदार छुट्टी पर है. तब रानी ही गेट खोलने आई. चायपानी, नाश्ता सब दे दिया और जाने लगी, तो रमेश ने पूछा, ‘‘तुम्हें यहां कोई दिक्कत तो नहीं है?’’

‘‘जितना चाहा था, उस से भी ज्यादा मिल गया मालिक. आप की वजह से ही मैं आज इज्जत की जिंदगी जी रही हूं, नहीं तो मेरा बाप कब का मुझे बेच देता,’’ कहतेकहते वह रोने लगी.

रमेश ने उस के आंसू पोंछे, तो रानी ने रमेश का हाथ पकड़ लिया, ‘‘सर, आप बहुत ही अच्छे इनसान हैं. आजकल अपने कर्मचारियों के बारे में कौन सोचता है.’’ और फिर से उस का हाथ चूमने लगी और बोली, ‘‘आप तो मेरे लिए सबकुछ हैं.’’

उस चुंबन की सिहरन ने रमेश के हाथों वह काम करवा दिया, जो रानी उस से कराना चाहती थी. उस के बाद से तो रमेश का हर हफ्ते का यही काम हो गया. वह हर हफ्ते काम का बहाना बना कर फार्म हाउस आ जाता.

रानी ने उसे अपनी बातों में इस कदर उलझा लिया था कि अब रमेश को अपने घर और बीवीबच्चों की भी चिंता नहीं थी.

इस बीच रमेश ने मुझ से मिलनाजुलना बंद कर दिया था. फिर अचानक एक दिन भाभी (रमेश की पत्नी) का फोन आया कि रमेश ने दूसरी शादी कर ली है.

यह सुन कर मैं हक्काबक्का रह गया. मुझे यह तो अंदाजा था कि कुछ गलत हो रहा है, मगर इस हद तक होगा, यह नहीं सोचा था.

शादी की उम्र तो उस के बेटों की थी, ऐसे में जब उन्हें अपने बाप की करतूत का पता चला, तो उन्होंने उन्हें घर से निकाल दिया.

रमेश ने पार्क आना बंद कर दिया. आता भी किस मुंह से. इतने सालों से कमाई इज्जत पल में मिट्टी में मिल गई. सारा समाज रमेश पर थूथू कर रहा था.

शादी के 6 महीने बाद ही रानी ने एक बच्चे को जन्म दे दिया. रमेश रानी के साथ फार्म हाउस में ही रह रहा था. एक दिन अचानक रात में रमेश मुझ से मिलने आया. वह जानता था कि उस की हरकत से मैं भी बहुत नाराज हूं.

मेरे कुछ कहने से पहले ही वह बोला, ‘‘मुझे मालूम है कि तुम मेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहते, पर एक बार मेरी बात सुन लो. मैं यही चाहता हूं और कुछ नहीं. तुम्हारी माफी भी नहीं.’’

फिर रमेश ने शुरू से आखिर तक सारी बातें मुझे बताईं. रमेश ने यह भी बताया कि यह बच्चा उस का है ही नहीं. मगर रमेश ने रानी के साथ संबंध बनाए थे, उस का वीडियो रानी के आशिक ने चुपके से बना लिया था. रमेश पर शादी करने का दबाव डाला गया.

‘‘शादी के बाद ही उसे सारी सचाई का पता चल गया था. रानी ने सिर्फ पैसों के लिए उसे फंसाया था. यह उस की और उस के आशिक की सोचीसमझी चाल थी,’’ यह सब कह कर रमेश फूटफूट कर रोने लगा और मेरे घर से चला गया.

मैं तो यह सुन कर सन्न सा बैठा रह गया. अपने दोस्त की जिंदगी अपनी आंखों के सामने बरबाद होते हुए देख रहा था. जिसे रमेश प्यार समझ रहा था, वह केवल एक भरमजाल था. उस ने अपनी इज्जत, परिवार, दोस्तों को तो खोया ही, साथ ही उस प्यार से भी इतना बड़ा धोखा खाया.

काश, वह पहले ही समझ जाता, तो इतने सालों से कमाई हुई उस की इज्जत पर इतना बड़ा कलंक तो नहीं लगता. वह इतना समझता कि 60 साल की उम्र प्यार करने के लिए नहीं, बल्कि अपने परिवार के लिए होती है.

रिश्तों की मर्यादा: अपनों ने तोड़े माला के सपने

ढोलक पर बन्नाबन्नी गाते सब के बीच बैठी माला कोने में 20 वर्षीय भांजी रुचि की फुसफुसाहट सुनते ही तिलमिला उठी. वह तुरंत उठी और दुकान से सटे कमरे में जा कर देखा तो उस की 8 वर्षीय बेटी परी जेठानी के पिता की गोदी में बैठी थी और जिस तरह से कहानी सुनाते उन के हाथ उस मासूम के कोमल अंगों को छू रहे थे, माला की आंखों में खून उतर आया. उस की पिता की उम्र के उस व्यक्ति की नापाक हरकत कतई माफी योग्य नहीं थी. उस का जी चाहा कि बेटी के साथ ऐसा घिनौना खिलवाड़ करने वाले का मुंह नोच ले, पर समझदार माला शादी जैसे मौके पर रंग में भंग नहीं डालना चाहती थी.

वैसे भी मिनी उस की प्रिय भतीजी थी और उसी की शादी अटेंड करने वह इंदौर से इटावा अपने पति और बेटी के साथ आई थी. इसलिए जैसेतैसे अपनेआप को नियंत्रित कर उस ने तेज आवाज में बेटी को आवाज दी, “चलो, परी खेल हो चुका. अब आओ, हाथमुंह धुला कर तुम्हें तैयार कर दूं.”

मां की आवाज सुनते ही परी भाग कर आई और उस के पैरों से लिपट गई. तभी जेठानी के पिता की आंखें माला से जा मिलीं. उस की आंखों में घृणा मिश्रित क्रोध देख वे थोड़ा सकपकाते हुए बोले, “बच्चों ने जिद की तो उन्हें कहानी सुना रहा था.”

‘छि: कैसा बेशर्म इनसान है. रंगेहाथों पकड़े जाने पर भी वह बातें बना रहा है,’ माला उस के दुस्साहस पर हैरान थी. इस तरह अपनों की भीड़ में कोई व्यक्ति वो भी पिता जैसे सम्मानित ओहदे वाला ऐसी नीच हरकत करेगा, उस ने सपने में भी नहीं सोचा था.

रिश्तों की मर्यादा भंग होती देख मन का आक्रोश आंखों के रास्ते उमड़तेघुमड़ते बहने लगा. उफ्फ क्या करूं, क्या कवीश को बताना ठीक रहेगा. लेकिन, अगर उन्हें गुस्सा आ गया तो माहौल बिगड़ते समय न लगेगा. ठीक है, देखती हूं अगर उन्होंने फिर ऐसी हरकत दोहराई तो उन की उम्र और ओहदे का खयाल न रखूंगी… सोचते हुए माला ने जैसे मन ही मन कुछ ठान लिया.

वाशरूम में उस ने परी के हाथमुंह धुलाते समय उसे नाना से दूर रहने को कहा.

“पर क्यों मम्मी, नाना तो हमें प्यार करते हैं, चौकलेट भी देते हैं.”

“पर, उन्हें आप को यहांवहां छूना नहीं चाहिए. ये गलत होता है,” कहते हुए माला ने उसे अच्छेबुरे टच के बारे में समझाया.

“हां मम्मी, उन का छूना तो मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा था. मैं उन की गोद में बैठना भी नहीं चाहती थी, लेकिन उन्होंने कहा कि कहानी सुनने के लिए तो सब को बारीबारी से उन की गोद में बैठना होगा.

“पर, अब मैं नाना से चौकलेट भी नहीं लूंगी और कहानी भी नहीं सुनूंगी, फिर आप सुनाओगी न मुझे कोई अच्छी सी कहानी,” नन्ही परी मचल उठी.

“हां, मैं अपनी परी को एक सुंदर सी कहानी सुनाऊंगी, पर रात को सोते समय.

“लेकिन, अब हमेशा ध्यान रखना है कि आप को रुचि दीदी के साथ ही रहना है. ठीक है?”

“ओके…” अपनी छोटीछोटी बांहें उस के गले में डाल परी झूल गई.

12 साल पहले 5 भाईबहनों वाले उस हवेलीनुमा घर में माला सब से छोटी बहू बन कर आई थी. सासससुर थे नहीं, इसलिए अपने से काफी बड़े जेठजेठानी को ही वह सासससुर सा सम्मान देती थी. उस से बड़ी 3 ननदें भी उस पर बहुत स्नेह लुटाया करती थीं.

माला को याद आया, जब वह नीता दीदी के पिता से पहली बार मिलने पर उन के पैर छूने झुकी थी, तो उन्होंने ये कहते हुए उसे पैर नहीं छूने दिया था कि “कहीं बिटियन से पांव छुआए जात हैं. अरे बिटिया तो देवी का अवतार होती हैं. उन के तो पांव पूजे जात हैं…” और आज एक बिटिया के अंदर उन्हें देवी के बजाय उस की देह का दर्शन हो रहा है.
कैसी दोगुली मानसिकता, कैसा पाखंड… माला विचारों के भंवर में गोते लगा ही रही थी कि बाहर से आती भतीजे की आवाज ने उसे चौंका दिया, “चाची क्या कर रही हो, चाचा कब से आवाज दिए जा रहे हैं.”

“आईईई…” परी के कपड़े बदल चुकी माला ने जवाब दिया और परी को दुलारते हुए बाहर भेजा और खुद भी जल्दीजल्दी तैयार होने लगी.

आज लेडीज संगीत था, जिस में उस की और कवीश की भी परफोर्मेंस थी. प्योर जोर्जेट की रेड कलर की बौर्डर वाली साड़ी में माला बेहद खूबसूरत लग रही थी. शादी के लिए बुक किया गया गार्डन घर से 5 मिनट के फासले पर था. वहीं संगीत का प्रोग्राम होना था. काफी बड़े स्टेज की सजावट देखते ही बनती थी. पीच कलर का गाउन पहने मिनी भी बिलकुल गुड़िया सी लग रही थी.
सब से पहले दुलहन की सहेलियों का डांस हुआ, फिर मिनी ने भी उन को ज्वाइन कर लिया.

“मम्मा, मम्मा, मुझे भी डांस करना है.”

काफी देर से परी जिद कर रही थी. फिर तो वह भी कमर पर दोनों हाथ रखे ठुमकठुमक कर सब के बीच खूब नाची. फिर बारी आई माला और कवीश की. पुराने गीतों की पैरोडी पर उन दोनों ने इतना मस्ती भरा डांस किया कि सभी मंत्रमुग्ध हो उन्हें देखते रह गए. फिर तो क्या बच्चे क्या बड़े सभी एकएक कर डांस की मस्ती में डूबते चले गए.
माला भी प्रोग्राम ऐंजौय कर रही थी, पर उस की पैनी नजरें अपनी बच्ची की सुरक्षा के लिए पूरी तरह मुस्तैद थीं. उस की नजर बराबर दीदी के पिताजी पर थी. परी को खाना खिलाने के दौरान उस का ध्यान थोड़ा भटका तो वे गायब थे. “दीदी, क्या बात है, पिताजी नजर नहीं आ रहे?”

“अरे, उन से ज्यादा देर बैठा नहीं जाता. कहने लगे कि तुम बच्चों का प्रोग्राम है, तुम लोग मस्ती करो. मुझ से अब बैठा नहीं जाएगा. सो, खाना खा कर घर निकल गए.”

“दीदी, मेरी तबियत भी कुछ ढीली लग रही है, शायद थकान का असर है. घर जा कर आराम करती हूं. परी को ले जा रही हूं. कवीश पूछे तो बता देना.”

“अरे, पर तू ने तो अभी कुछ खाया भी नहीं है.”

“अभी भूख नहीं है. अगर लगी तो किसी के हाथों घर पर ही मंगवा लूंगी. आप चिंता न करो,” कहते हुए माला ने परी का हाथ पकड़ा और लंबे डग भरती हुई घर की तरफ चल दी. वह बेहद परेशान थी, क्योंकि बात यहां सिर्फ उस की बच्ची के प्रति हुए अन्याय की नहीं थी, बल्कि ये एक अनाचार और व्यभिचार था, जिसे करने वाला बेहद करीबी रिश्ते में बंधा एक धूर्त व्यक्ति था. सभ्य समाज का दुश्मन ऐसा व्यक्ति कभी भी किसी भी निरीह को अपनी कुचेष्टाओं का शिकार बना सकता है. तो क्या मासूमों के दोषी को यों ही छोड़ देना सही है, क्या रिश्ते की आड़ में उस की धृष्टता क्षमा करने योग्य है? ऐसे अनेक प्रश्न उस के मन को मथ रहे थे.
उस की आंखों के आगे जेठानी नीता की तसवीर तैर गई. कितनी अच्छी हैं दीदी, अपने पिता की सचाई जान कर उन्हें कितनी तकलीफ होगी? फिलहाल वह समझ नहीं पा रही थी कि उसे क्या करना चाहिए. जानबूझ कर माला घर के सामने वाले गेट से न जा कर आंगन में बने पीछे वाले दरवाजे से अंदर घुसी. वहां नाइन और कामवाली अगले दिन की पूजा के लिए मंडप के नीचे कुछ तैयारी कर रही थीं. परी को उस ने हाल में ले जा कर चुपचाप बैठने को कहा.

आंगन से लगे लंबे गलियारे को पार करती हुई वह दुकान के पास वाले कमरे तक जा पहुंची, तभी उस के कानों में बच्चों के खिलखिलाने की आवाज पड़ी, “नानाजी, अब हमारी बारी है.”

“सब की बारी आएगी, तनिक धीरज रखो… नाना के हाथों की जादू वाली मालिश,” खरखराती आवाज में भद्दी सी हंसी सुन वह खड़ी न रह सकी. उटका हुआ दरवाजा हाथ से ठेलते ही खुल गया.
अंदर का नजारा देख उसे एक बार फिर अपनी आंखों पर विश्वास न हुआ. आसपड़ोस के बच्चे नाना कहे जाने वाले शख्स को घेरे बैठे थे और अपनी गोदी में 5-6 साल की बच्ची को उलटा लिटाए वो उस की मालिश करने की भावभंगिमा कर रहा था. लपक कर माला ने बच्ची को उस की गोद से लगभग छीना और सभी को प्यार से अपनेअपने घर जाने को कहा.

“तुम बहुत जल्दी आ गई बिटिया,” उस के चेहरे पर अभी भी कुटिल मुसकान तैर रही थी.

“आप को शर्म नहीं आती ये नीच हरकत करते हुए. कहने को आप पितातुल्य हैं, पर आप को पिता कहना उस पवित्र शब्द का अपमान होगा. उम्र में आप की पोतियों से भी छोटी हैं ये बच्चियां. सच बताएं, आप का विवेक मर चुका है क्या, जो इन के साथ इतनी घिनौनी हरकत करते वक्त आप के हाथ नही कांपे,” अत्यंत क्षोभ व गुस्से से वह फट पड़ी.

“तुम क्या कह रही हो, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा. मुझ पर झूठा इलजाम लगाते तुम्हें शर्म आनी चाहिए.”

अचानक ही उस की बोली और सुर बदल चुका था. बेशर्मी की ये पराकाष्ठा देख माला दंग थी.

“सच में आप जैसे इनसान को चुल्लूभर पानी में डूब मरना चाहिए. जिस तरह की जलील हरकत आप ने की है, कायदे से आप को पुलिस में दे देना चाहिए, परंतु मैं सिर्फ समझाइश दे कर छोड़ रही हूं. वक्त रहते सुधर जाइए, नहीं तो दीदी और दूसरे लोगों को पता चला तो आप कहीं के नहीं रहेंगे,” आवेश में ऊंची होती उस की आवाज आंगन में काम कर रहे लोगों तक जा पहुंची.

“पागल हो क्या, बित्तेभर की छोकरी मुझे सबक सिखाने चली है, जानती नहीं कि कौन हूं मैं? तुझे तो…” तैश में उस ने माला पर अपना हाथ छोड़ दिया. पर उस उठे हाथ को किसी ने हवा में ही रोक लिया.

“खबरदार, जो माला पर हाथ उठाया. और सही कहा आप ने, वो मासूम आप को जानेगी भी कैसे? पर, मैं आप की भलेमानस वाली छवि के पीछे की घिनौनी हकीकत से भलीभांति वाकिफ हूं. आप इस संसार के सब से निकृष्ट व्यक्ति हैं, जिन्होंने अपनी घृणित वासना की पूर्ति के लिए अपनी बच्ची तक को न छोड़ा. सच में आप को पिता कहते मुझे लज्जा आती है,” गुस्से में नीता का चेहरा तमतमा रहा था.

“ये क्या कह रही हो दीदी, एक बाप अपनी बेटी के साथ ऐसा कैसे…”

“बाप… इस की दरिंदगी देख प्रकृति ने इसे बाप बनने का अवसर ही कहां दिया?

“एक अदद बच्चे की आस में इस की सहृदय पत्नी तमाम कोशिशें कर के हार गई. सब तरफ से निराश हो कर उस की जिद पर मुझे एक अनाथालय से गोद लिया गया था. लेकिन बेटी हो कर भी मैं इस की बेटी कभी न बन सकी.

“एक दिन इसे मेरे साथ गलत हरकत करते देख मां का दिल भारी पीड़ा से भर उठा. उस दिन मुझे अपने सीने से चिपटाए वे देर तक रोती रहीं. 2 दिन बाद ही उन्होंने अपने भाई को बुला कर मुझे उन के हाथों सौंप दिया. उन 2 दिनों में वे साए की तरह मेरे साथ रहीं. और मेरे जाने के महीनेभर बाद ही ये खबर आ गई कि घर के अहाते में बने कुएं में कूद कर उन्होंने आत्महत्या कर ली. शायद इन का ये भयावह रूप उन की बरदाश्त से बाहर हो चुका था…” कहते हुए नीता फफक पड़ी.

“काश, उस वक्त मैं अपनी मां के साथ मजबूती से खड़ी हो पाती और इसे इस के किए का दंड दिला पाती, तो आज मेरी मां जिंदा होती. मैं ने तो सदा ही इस से एक निश्चित दूरी बना रखी थी.

“मिनी की शादी में भी न बुलाती, पर तुम्हारे भैया ने कहा तो उन्हें कैसे मना करती. अपना हर जख्म उन से साझा करना पड़ता. फिर मुझे भी लगा कि उम्र के इस पड़ाव पर जीवन की काफी ठोकरें खाने के बाद शायद इन्हें कुछ समझ आ गई हो, पर नहीं, कुछ लोगों की फितरत कभी नहीं बदलती. सोचती हूं कि इन्हें न बुलाना ही सही होता. वो तो अच्छा हुआ, तुम्हारी बातों से मुझे कुछ संदेह हुआ और मैं तुम्हारे पीछे चल पड़ी. पर अब क्या करूं? इन की हैवानियत ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा, क्या बताऊंगी तुम्हारे भैया को. जी तो कर रहा है कि अपनेआप को ही खत्म कर लूं. मैं नहीं रहूंगी, तो इस घर से इन का रिश्ता भी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा.”

“गलती से भी ऐसा कभी मत सोचना. भुगतना तो उसे पड़ेगा, जिस ने ये जलील काम किया है. इन्हें इन के गुनाहों की सजा मिल कर रहेगी, ताकि ऐसी घिनौनी हरकत करने से पहले कोई सौ बार सोचे.”

दरवाजे पर नीता के पति खड़े थे.

“तुम यहां…?”

“हां, रुचि ने तुम दोनों को एक के बाद एक जाते देखा तो उस ने आज सुबह की घटना मुझे कह सुनाई और मैं सीधा यहां चला आया. तुम्हारी पूरी बात सुनते ही मैं ने कवीश को पुलिस को फोन करने को कहा है, पुलिस आती ही होगी,” कहते हुए नीता के कंधे को उन्होंने हौले से थपथपाया मानो उस के साथ खड़े रहने का भरोसा दे रहे हों.

“तुम अपने बाप को जेल भिजवाओगी?” इनसानी चोले के पीछे छिपे हैवान की आंखों में गहरा अविश्वास था.

“नहीं, मैं उस अनाचारी को जेल भेजूंगी, जिस ने रिश्तों की सभी मर्यादाओं को लांघ जाने का दुस्साहस किया है,” तल्ख स्वर में जवाब दे कर नीता ने घृणा से मुंह फेर लिया और भारी कदमों से अपने कमरे की ओर चल दी.

“मुझे माफ कर दो दीदी, तुम्हारे आंसुओं की जिम्मेदार हूं मैं. ऐसे मौके पर ये सब नहीं चाहती थी, पर…”

“कैसी बातें करती हो माला, तुम्हारी वजह से आज एक अपराधी अपनी सही जगह पहुंच जाएगा. शुक्रगुजार हूं तुम्हारी, आज तुम्हारे कारण ही मैं इतनी हिम्मत जुटा पाई और एक सही फैसला लिया है,” नीता उस की बात को काटते हुए बोली.

“सच में दीदी, गर्व है मुझे आप पर,” कहते हुए माला नीता के गले लग गई.

पुलिस की गाड़ी का सायरन धीरेधीरे पास हो कर तेज ध्वनि में तबदील हो रहा था.

आज के भूत : नीलम के जीवन में लगा था कैसा दाग

नीलम सुबहसवेरे ससुराल छोड़ कर मायके में आ गई थी. उसे अचानक घर में आते देख कर उस के मातापिता परेशान हो उठे.

उन्होंने उस से घर आने की वजह पूछी, तो उस ने जलती आंखों से देख कर कहा, ‘‘आप लोग किसी अच्छे डाक्टर से मेरा इलाज कराएं, तो बेहतर होगा.’’

वे दोनों बौखला कर उस का मुंह देखते रहे.

नीलम बेहद खूबसूरत थी. वह 12वीं जमात की छात्रा थी. डेढ़ महीने के बाद उस ने महसूस किया कि उस के पैर भारी हो गए हैं. फिर 3 महीने के बाद वह अपना पेट छिपाने लगी थी.

एक दिन जब रात में उसे नींद नहीं आ रही थी, तब उस का गुजरा वक्त उस की आंखों के सामने तैरने लगा.

नीलम की शादी हो गई थी. तब उसे एक बीमारी ने दबोच लिया था. उस का इलाज शहर के बड़े डाक्टर से हो रहा था. कई महीने तक उस का इलाज चलता रहा, मगर उसे कोई आराम नहीं मिला था.

एक दिन नीलम के पिता ने उस डाक्टर से नीलम के हालचाल के बारे में पूछा, तो उन्होंने सम?ाया कि नीलम को हिस्टीरिया नाम की बीमारी है. अभी उस का इलाज चलता ही रहेगा. हां, अगर वह अपने पति के साथ रहेगी, तो उस की यह बीमारी अपनेआप ठीक हो जाएगी.

पर उस डाक्टर की बात पिता की समझ में नहीं आई, क्योंकि वह पाखंडों का गुलाम था. उस के सिर पर यह भूत सवार हो गया कि नीलम पर किसी प्रेत का साया है, क्योंकि दौरे के दौरान वह देर तक आंखें फाड़ कर देखती थी.

नीलम अजीबोगरीब हावभाव से अपने हाथपैरों को ऐंठती?ाटकती और दांतों को किटकिटा कर चबाती थी. फिर डाक्टर से उस का इलाज बंद हो गया था.

उस के घर में एक से बढ़ कर एक ओ?ागुनी आए, मगर उसे जरा भी फायदा नहीं हुआ था. उस के पिता ने ओझाई पर पानी की तरह पैसा खर्च किया था.

एक दिन पिता को खबर मिली कि ताड़डीह में एक काफी मशहूर ओझा है. वह नीलम के साथ फौरन वहां जा पहुंचा.

मंदिर में भीड़ लगी थी. वहां पर तथाकथित भूतप्रेत से हैरानपरेशान कुछ औरतें और कुछ जवान लड़कियां थीं.

जब नीलम का नंबर आया, तब तक रात हो गई थी. वहां पर बल्ब की रोशनी थी. बाकी सभी लोग जा चुके थे.

रंगीन फूलों वाली रेशमी साड़ी में नीलम की जवानी साफ झलक रही थी. ओझा उस की रसभरी आंखों में देखता रहा. उस की शरारत पर नीलम ने शरमा कर अपनी नजरें झाका लीं.

वह ओझ मन ही मन मंत्र बुदबुदाने लगा. उस ने कुछ कौडि़यां हवा में उछालीं, चावल चारों दिशाओं में

फेंके और हवा में अपना त्रिशूल लहरा कर गरजा, ‘ऐ दुष्ट प्रेतो, तुम अपने निवास से चलो और इस पर सवार हो जाओ.’

काफी देर तक विचित्र हावभाव से वह ओझ ऊपर की तरफ मुंह कर के इशारेबाजी करता रहा, फिर नीलम ने उस के अनपढ़ पिता को समझाया,

‘3 दिशाओं की 3 खतरनाक प्रेतात्माएं इसे सता रही हैं. मेरी महिमा के डर से वे इस पर प्रकट नहीं हुई हैं.

‘खैर, मैं उन्हें हवन कुंड में जला कर भस्म कर दूंगा,’ कह कर उस ओझा ने हवा में अपना त्रिशूल लहराया और एक बड़ा सा जंतर नीलम के गले में डाल दिया.

इस के बाद उस ने नीलम के अंधविश्वासी पिता से कहा, ‘हवनजाप यहीं पर होगा. क्या तुम्हारे पास 15-20 हजार रुपए हैं?’

पिता ने कहा, ‘जी महाराज.’

उस ओझा ने उसे चेतावनी दी, ‘यह लड़की देवी मां की शरण में रहेगी, तो वे प्रेतात्माएं इसे सता नहीं पाएंगी. तुम

10 दिन बाद यहां रुपए ले कर आओ.’

उस ओझा की बात नीलम के पिता को जंच गई.

अगली सुबह वह नीलम को देवी

मां की शरण में छोड़ कर अपने गांव चला गया.

गांव में ओझा का हराभरा परिवार था. नीलम की उस ओझा की बड़ी बेटी काजल से दोस्ती हो गई थी. उस की गोद में एक साल का एक लड़का भी था.

जब रात में नीलम सोने के लिए कमरे में गई, तब ओझा का एक चेला उसे एक गिलास दूध दे कर बोला,

‘यह मां का प्रसाद है. इसे खा कर ही सोना.’

नीलम ने देखा कि दूध मे मेवा भी डाला गया था. बिना कुछ सोचेसमझे ही वह चटखारे लेले कर देवी मां का प्रसाद खा गई. उसे फौरन नींद की झपकियां आने लगीं और वह पलंग पर जा कर गहरी नींद में सो गई थी. फिर रात में उस के साथ क्या हुआ, उसे कुछ भी मालूम नहीं हो पाया था.

सुबह नीलम देर से जागी, तो हैरानपरेशान हो गई कि उस के कपड़े जमीन पर पड़े थे. उस का दिमाग चकरा कर रह गया. उसे एहसास हुआ कि किसी ने उस की इज्जत लूट ली है.

नीलम ने रात की यह घटना काजल को बताई, तो उस का भी दिमाग चकरा कर रह गया.

नीलम बोली, ‘मेरी इज्जत लूटने वाला वह भेडि़या यहां पर आया कैसे?’

यह सुन कर काजल ने कहा, ‘तुम चुप रहोगी, तो मैं उस भेडि़ए को रंगे हाथ पकड़ सकती हूं.’

फिर रात में वही चेला नीलम को एक गिलास दूध दे कर चला गया,

तभी उस के पास काजल आ गई. उस ने वह दूध एक बिल्ली को पीने के लिए दिया, तो वह बिल्ली दूध पी कर फौरन सो गई.

काजल बोली, ‘नीलम, इस में कुछ मिलाया गया है.’

जब घर के सभी लोग सो गए, तब खिड़की के रास्ते से कोई नीलम के कमरे में कूदा.

वह शख्स नीलम के पलंग की ओर बढ़ने लगा कि तभी एक कोने से उस पर टौर्च की तेज रोशनी पड़ी, तो वह बुरी तरह से बौखला उठा.

उस ने देखा कि पलंग पर काजल लेटी हुई थी. वह शख्स खिड़की के रास्ते से वापस भागा.

टौर्च की रोशनी में नीलम और काजल ने देखा कि वहां से भागने वाला ओ?ा था. दोनों की नजरों में उस ओ?ा की पोल खुल गई थी. नीलम अपनी यादों से बाहर निकल आई.

अगले दिन मां चुपके से नीलम को शहर के नर्सिंगहोम में ले गई, जहां एक लेडी डाक्टर ने हमेशा के लिए उसे इस पाप से छुटकारा दिला दिया.

लेकिन आज के उस भूत ने नीलम को जो दाग लगाया था, उसे कौन धो सकता है?

पाखंड का अंत : बिंदु का गौना

बिंदु के मातापिता बचपन में ही गुजर गए थे, पर मरने से पहले वे बिंदु का रिश्ता भमुआपुर के चौधरी हरिहर के बेटे बिरजू से कर गए थे.

उस समय बिंदु 2 साल की थी और बिरजू 5 साल का. बिंदु के मातापिता के मरने के बाद उसे उस के चाचा ने पालापोसा था.

बिंदु के चाचा बहुत ही नेकदिल इनसान थे. उन्होंने बिंदु को शहर में रख कर पढ़ायालिखाया था. यही वजह थी कि 17वें साल में कदम रख चुकी बिंदु 12वीं पास कर चुकी थी.

बिरजू के घर से गौने के लिए कई प्रस्ताव आए, लेकिन बिंदु के चाचा ने उन्हें साफ मना कर दिया था कि वे गौना उस के बालिग होने के बाद ही करेंगे.

उधर बिरजू भी जवान हो गया था. उस का गठीला बदन देख कर गांव की कई लड़कियां ठंडी आहें भरती थीं. पर  बिरजू उन्हें घास तक नहीं डालता था.

‘‘अरे, हम पर भले ही नजर न डाल, पर शहर जा कर अपनी जोरू को तो ले आ,’’ एक दिन चमेली ने बिरजू का रास्ता रोकते हुए कहा.

‘‘ले आऊंगा. तु झे क्या? चल, हट मेरे रास्ते से.’’

‘‘क्या तेरी औरत के संग रहने की इच्छा नहीं होती? कहीं वो तो नहीं है तू…?’’ चमेली ने एक आंख दबा

कर कहा, तो उस की हमउम्र सहेलियां खिलखिला कर हंस पड़ीं.

‘‘चमेली, ज्यादा मत बन. मैं ने कह तो दिया, मु झे इस तरह की बातें पसंद नहीं हैं,’’ कहते हुए बिरजू ने आंखें तरेरीं, तो वे सब भाग गईं.

उधर बिंदु की गदराई जवानी व अदाएं देख कर स्कूल के लड़के उस के आसपास मंडराते रहते थे.

गोरा बदन, आंखें बड़ीबड़ी, उभरी हुई छाती… जब बिंदु अपने बालों को  झटकती, तो कई मजनू आहें भरने लगते.

बिंदु को भी सजनासंवरना भाने लगा था. जब कोई लड़का उसे प्यासी नजरों से देखता, तो वह भी तिरछी नजरों से उसे निहार लेती.

बिंदु के रंगढंग और बिरजू के घर वालों के बढ़ते दबाव के चलते उस के चाचा ने गौने की तारीख तय कर दी और उसी दिन बिरजू आ कर अपनी दुलहन को ले गया.

शहर में पलबढ़ी बिंदु को गांव में आ कर थोड़ा अजीब तो लगा, पर बिरजू को पा कर वह सबकुछ भूल गई.

बिंदु को बहुत चाहने वाला पति मिला था. दिनभर खेत में जीतोड़ मेहनत कर के जब शाम को बिरजू घर आता, तो बिंदु उस का इंतजार करती मिलती.

रात होते ही मौका पा कर बिरजू बिंदु को अपनी मजबूत बांहों में कस कर पने तपते होंठ उस के नरम गुलाबी होंठों पर रख देता था.

कब 2 साल बीत गए, पता ही नहीं चला. बिंदु और बिरजू अपनी हसीन दुनिया में खोए हुए थे कि एक दिन बिंदु की सास अपने पति से पोते की चाहत जताते हुए बोलीं, ‘‘बहू के पैर अभी तक भारी क्यों नहीं हुए?’’

सचाई तो यह थी कि यह बात घर में सभी को चुभ रही थी.

‘‘सुनो,’’ एक दिन बिरजू ने बिंदु

के लंबे बालों को सहलाते हुए पूछा, ‘‘हमारा बच्चा कब आएगा?’’

‘‘मु झे क्या मालूम… यह तो तुम जानो,’’ कहते हुए बिंदु शरमा गई.

‘‘मां को पोते का मुंह देखने की बड़ी तमन्ना है.’’

‘‘और तुम्हारी?’’

‘‘वह तो है ही, मेरी जान,’’ बिरजू ने बिंदु को खुद से सटाते हुए कहा और बत्ती बु झा दी.

‘‘मु झे लगता है, बहू में कोई कमी है. 3 साल हो गए ब्याह हुए और अभी तक गोद सूनी है. जबकि अपने बिरजू के साथ ही गोपाल का गौना हुआ था, वह तो 2 बच्चों का बाप भी बन गया है,’’ एक दिन पड़ोस की काकी घर आईं और बोलीं.

बिंदु के कानों तक जब ऐसी बातें पहुंचतीं, तो वह दुखी हो जाती. वह भी यह सोचने पर मजबूर हो जाती कि आखिर हम पतिपत्नी तो कोई ‘बचाव’ भी नहीं करते, फिर क्या वजह है कि 3 साल होने पर भी मैं मां नहीं बन पाई?

इस बार जब वह अपने मायके गई, तो उस ने लेडी डाक्टर से अपनी जांच कराई. पता चला कि उस की बच्चेदानी की दोनों नलियां बंद हैं. इस वजह से बच्चा ठहर नहीं रहा है. यह जान कर बिंदु घबरा गई.

‘‘क्या अब मैं कभी मां नहीं बन पाऊंगी?’’ डाक्टर से पूछने पर बिंदु का गुलाबी चेहरा पीला पड़ गया.

‘‘ऐसी बात नहीं है. आजकल विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है. तुम जैसी औरतें भी मां बन सकती हैं,’’ डाक्टर ने कहा, तो बिंदु को चेहरा खिल उठा.

गांव आ कर उस ने बिरजू को सारी बात बताई और कहा, ‘‘तुम्हें मेरे साथ कुछ दिनों के लिए शहर चलना होगा.’’

‘‘शहर तो हम लोग बाद में जाएंगे, पहले तुम आज शाम को बंगाली बाबा के आश्रम में जा कर चमत्कारी भभूत का प्रसाद ले आना. सुना है कि उस के प्रसाद से कई बां झ औरतों के बच्चे हो गए हैं,’’ बिरजू बोला.

‘‘यह तुम कैसी अनपढ़ों वाली बातें कर रहे हो? तुम्हें ऐसा करने को किस

ने कहा?’’

‘‘मां ने.’’

बिंदु ने कहा, ‘‘देखिए, मांजी तो पुराने जमाने की हैं, इसलिए वे इन बातों पर भरोसा कर सकती हैं, पर हम तो जानते हैं कि ये बाबा वगैरह एक नंबर के बदमाश होते हैं. भोलीभाली औरतों को चमत्कार के जाल में फंसा कर…

‘‘नहीं, मैं तो नहीं जाऊंगी किसी के पास,’’ बिंदु ने बहुत आनाकानी की, पर उस की एक न सुनी गई.

बिंदु सम झ गई कि अगर उस ने सू झबू झ से काम नहीं लिया, तो उस का घरसंसार उजड़ जाएगा. उस ने मजबूती से हालात का सामना करने की ठान ली.

बाबा के आश्रम में पहुंच कर बिंदु ने 2-3 औरतों से बात की, तो उस का शक सचाई में बदल गया.

उन औरतों में से एक ने उसे बताया, ‘‘बाबा मु झे अपने आश्रम के अंदरूनी हिस्से में ले गया, जहां घना अंधेरा था.’’

‘‘फिर क्या हुआ तुम्हारे साथ?’’

‘‘पहले तो बाबा ने मु झे शरबत जैसा कुछ पीने को दिया. शरबत पी कर मैं बेहोश हो गई और जब मैं होश में आई, तो ऐसा लगा जैसे मैं ने बहुत मेहनत का काम किया हो.’’

‘‘और भभूत?’’

‘‘वह पुडि़या यह रही,’’ कहते हुए महिला ने हाथ आगे बढ़ा कर भभूत की पुडि़या दिखाई, तो बिंदु पहचान गई कि वह केवल राख ही है.

अगले दिन बिंदु फिर आश्रम में गई, तभी एक सास अपनी जवान बहू को ले कर वहां आई. उसे भी बच्चा नहीं ठहर रहा था.

बाबा ने उसे अंदर आने को कहा. उस के बाद बिंदु की बारी थी, पर जैसे ही वह औरत बाबा के साथ अंदर गई, बिंदु भी नजर बचा कर अंदर घुस गई.

बाबा ने उस औरत को कुछ पीने को दिया. जब वह बेहोश हो गई, तो बाबा ने उस के कपड़े हटा कर…

बिंदु यह सब देख कर हैरान रह गई. उस ने इरादे के मुताबिक अपने कपड़ों में छिपाया हुआ कैमरा निकाला और कई फोटो खींच लिए.

वह औरत तो बेहोश थी और बाबा वासना के खेल में मदहोश था. भला कैमरे की फ्लैश पर किस का ध्यान जाता.

कुछ दिनों बाद बिंदु ने भरी पंचायत में थानेदार के सामने वे फोटो दिखाए. इस से पंचायत में खलबली मच गई.

बाबा को उस के चेलों समेत हवालात में बंद कर दिया गया, पर तब तक अपने  झूठे चमत्कार के बहाने वह न जाने कितनी ही औरतों की इज्जत लूट चुका था. खुद संरपच की बेटी विमला भी

उस पाखंडी के हाथों अपनी इज्जत लुटा चुकी थी.

पूरे गांव में बिंदु के हौसले और उस की सू झबू झ की चर्चा हो रही थी. जिस ने न केवल अपनी इज्जत बचा ली थी, बल्कि गांव की बाकी मासूम युवतियों की जिंदगी बरबाद होने से बचा ली थी.

शहर जा कर बिंदु ने डाक्टर से अपना इलाज कराया और महीनेभर बाद गांव लौटी.

तीसरे महीने जब वह उलटी करने के लिए गुसलखाने की तरफ दौड़ी, तो बिरजू की मां व पूरे घर वालों का चेहरा खुशी से खिल उठा.

 

 

स्वर्गवासी पुलवा का बयान : भ्रष्टाचार की हद

मैंने आज तक कुछ लिखा नहीं, पर लिखने की नौटंकी पूरी की. यही वजह है कि जम कर छप रहा हूं. लिखने को साधना मानने वालों से ज्यादा लिखने की नौटंकी करने वाले छपते हैं.

आज फिर लिखने का नाटक करने की कोशिश में था कि सामने कल ही गिरा पुल भागताभागता, हांफतहांफता, लड़खड़ाता, भरभराता मेरे सामने आ खड़ा हुआ. तनिक सांस लेने के बाद उस ने मुझ से बड़े अदब से पूछा, ‘जनाबजी, क्या फ्री हो?’

‘नहीं, हूं तो नहीं, पर कहो क्या करना है?’

‘मैं अपना दर्दभरा बयान दर्ज करवा कर अपनी आत्मा की शांति चाहता हूं.’

‘तो कोर्ट में जाओ. जज के सामने जो उगलना है, उसे उगलो.’

‘पर, वहां मेरी फिर हत्या हो सकती है, इसलिए…

‘खूनखराबे से मैं बहुत डरता हूं. वह गली के चौक पर हो या कोर्ट में. पता नहीं, क्यों कई बार मुझे महल्ले के चौक और कोर्ट में कोई खास फर्क नहीं लगता, इसलिए कि कहीं गिरे पुल की भी हत्या न हो जाए, मैं ने उसे अपना बयान दर्ज करने की इजाजत देते हुए कहा, ‘डियर, मेरे सामने कहने से होगा तो कुछ नहीं, पर फिर भी जो कहना चाहते हो, मात्र अपने मन की शांति के लिए बिना डरे कहो.’

‘बंधु, मेरे गिरने को ले कर आजकल मेरी बदनामियों का बाजार गरम है. सब मुझ पर तोहमत लगा रहे हैं, मुझे देशद्रोही बता रहे हैं और मैं राष्ट्रभक्त अपनी देशभक्ति को छिपाए मारामारा फिर रहा हूं, पर कहीं मुंह छिपाने तक एक इंच भर जगह नहीं मिल रही. सब को अपने गिरने पर नहीं, मेरे गिरने पर गुस्सा है. पर कोई यह सुनने को तैयार नहीं कि मेरे गिरने से पहले कौनकौन गिरा.’

‘गिरने को अभी भी कोई बचा है क्या? कौनकौन गिरा?’

‘मेरे गिरने से पहले मुझे बनाने का अपनों को ठेका देने वाले वे गिरे, जिन को शौचालय की दीवार तक बनाने का अनुभव न था.’

‘पर अनुभव तो किसी को गिराने से आएगा न…’

‘उस के बाद वे गिरे, जिन्होंने अपनी कमीशन समेट मुझे बनाने को औरों के हवाले कर दिया. उस के बाद वे भी गिरे, जिन्होंने अपना कमीशन ले कर मुझे दूसरे के हाथों कर दिया.’

‘फिर…?’

‘उस के बाद वे गिरे, जिन्होंने मुझे अपना हिस्सा रख औरों के सुपुर्द

कर दिया.’

‘फिर…? मतलब, तुम किसी धंधे वाली की तरह अगलेअगले हाथों

बिकते रहे?’

‘आखिर में उस ने मुझे बनाने का काम शुरू किया, जो मुझे आगे नहीं बेच सकता था,’ कह कर उस ने दुखभरी सांस ली.

‘फिर…?’

‘फिर मेरा निर्माण शुरू हुआ. मुझे पता था कि अब मुझे बनाने की नहीं, मुझे गिराने की साजिश पूरी ईमानदारी से

रची जाएगी, इसलिए मुझे बनाने को घटिया रेत लाया गया. घटिया सरिया लाया गया. जरूरत से कम मुझ में सीमेंट लगाया गया.

‘बंधु, गिरे हुओं के बीच सिर उठा कर खड़े होने की कितनी ही कोशिश की जाए, पर वे दूसरों को भी अपनी तरह गिरा कर ही चैन की सांस लेते हैं. सो, उन्होंने भी ली.’

‘तो सरकारी इंजीनियर साहब

कहां थे? तुम ने उन से शिकायत क्यों नहीं की?’

‘अपने बंगले में. उन का हिस्सा उन को बंगले में भेज दिया जाता. 1-2 बार मैं ने मौका मिलते ही उन से शिकायत करने की कोशिश की, तो उन्होंने मेरा मुंह बंद करवा दिया.’

‘तो उन से बड़े साहब से शिकायत क्यों नहीं की कि वे तुम्हारा मुंह बंद करवा रहे हैं?’

‘उन का हिस्सा भी उन के बंगले में पहुंच जाता. उन से शिकायत करने गया, तो वे बोले कि अगली दफा शिकायत करने आओगे, तो मुंह की खाओगे.’

‘इस देश की सब से बड़ी बीमारी यही है कि जो भी सिस्टम के चरणों में आता है, अपनी शिकायत ले कर ही आता है, उस की जरा भी तारीफ करने कोई नहीं आता.

‘पता नहीं, जनता इतनी नैगेटिव क्यों हो रही है? इसलिए तुम भी सब की तरह चुपचाप जैसे बनाए जा रहे हो बनते रहो. हमारे अनुभवी हाथों से देश के विकास को रोकने की कोशिश करोगे, तो हमारे हाथों बेवक्त मरोगे.’

‘फिर…?’

‘फिर मैं चुप हो गया. मुझे बनातेबनाते मिस्त्री से ले कर बिल पास करने वाले बाबू सब ने अपना कौड़ीकौड़ी हिस्सा लिया, पर मेरा हिस्सा मुझे किसी ने न दिया,’ कह कर वह सिसकने लगा तो मैं ने उसे समझाया, ‘चलो, यह लो मेरा सम्मान में मिला रूमाल. बेकार के अपने आंसू पोंछो. ईमानदारों को उन का हिस्सा आज तक मिला ही कहां? फिर…’

‘फिर अब टूटा और लुटा तुम्हारे सामने हूं.’

‘तो गंगाजी तुम्हें अपने चरणों में जगह दें और तुम्हें गिराने वालों को जांच में क्लीन चिट,’ इस से ज्यादा मैं और कर भी क्या सकता था?

ओम अशांति… ओम अशांति… ओम अशांति…

लावारिस : सुनयना की चाह

‘‘तुम्हें गोली लेने को कहा था,’’ प्रमोद ने शिकायत भरे लहजे में कहा.

‘‘मैं ने जानबूझ कर नहीं ली,’’ सुनयना ने कहा.

‘‘पागल हो गई हो,’’ अपने कपड़े पहन चुके और बालों में कंघी करते हुए प्रमोद ने कहा.

‘‘बच्चा जिंदगी में खुशियां लाता है, घर में चहलपहल हो जाती है और बुढ़ापे का सहारा भी बनता है,’’ सुनयना ने प्रमोद को सम झाया.

‘‘बंद करो अपनी बकवास. मैं तुम से बच्चा कैसे चाह सकता हूं. मेरी तो सोशल लाइफ ही खत्म हो जाएगी,’’ गुस्से से चिल्लाते हुए प्रमोद ने कहा.

‘‘तो आप को खुद ध्यान रखना चाहिए था. मैं ने आप से कंडोम का इस्तेमाल करने को कहा था.’’

‘‘मु झे मजा नहीं आता. आजकल तो औरतों के कंडोम भी आते हैं, तुम्हें इस्तेमाल करने चाहिए.’’

‘‘जो भी हो, इस बार मैं बच्चा नहीं गिरवाऊंगी,’’ सुनयना ने दोटूक कहा.

‘‘तो तुम पछताओगी,’’ धमकता हुआ प्रमोद बोला. फिर दरवाजा खोल वह बाहर चला गया.

प्रमोद कारोबारी था. उस के पास खूब दौलत थी. घर में खूबसूरत पत्नी थी और 3 बच्चे थे.

प्रमोद ने अपना दिल बहलाने के लिए एक रखैल सुनयना रखी हुई थी. उस को फ्लैट ले कर दिया हुआ था. मिलने के लिए वह हफ्ते में 2-3 दफा वहां आता था. कभीकभी वह उसे बिजनैस टूर पर भी ले जाता था.

सुनयना तकरीबन 3 साल से प्रमोद के साथ थी. बीचबीच में 3-4 बार वह पेट से भी हुई थी, लेकिन चुपचाप पेट साफ करवा आई थी.

एक रात मेकअप करते समय सुनयना की नजर अपने चेहरे पर उभरती  झुर्रियों और सिर में 3-4 सफेद बालों पर पड़ी. उसे चिंता हो गई कि अगर उस का ग्लैमर खत्म हो गया, तब क्या होगा?

प्रमोद को कोई और जवान रखैल मिल जाएगी. ऐसी औरतों को बुढ़ापे में कौन पूछता है.

सुनयना के पास प्रमोद द्वारा दिए गए जेवर काफी थे. बैंक के लौकर में जमापूंजी भी काफी थी. अपने मातापिता को पैसे भेजने के बाद भी उस के पास अच्छीखासी रकम बच जाती थी.

उसी रात सुनयना ने सोचा कि अगर उसे प्रमोद से एक बच्चा हो जाए, तो वह उस के बुढ़ापे का सहारा बन जाएगा.

इस के बाद से सुनयना ने पेट से न होने वाली गोलियों को खाना बंद कर दिया था. प्रमोद भी कंडोम का इस्तेमाल कम ही करता था. नतीजतन, सुनयना पेट से हो गई.

प्रमोद गुस्से से लालपीला हो रहा था. कल को सुनयना उसे ब्लैकमेल कर सकती थी.

3-4 दिन बाद प्रमोद सुनयना से मिलने आया और उस से पूछा, ‘‘बच्चा गिरवाया कि नहीं?’’

‘‘मैं ने तुम से कहा था न कि मैं बच्चा चाहती हूं.’’

‘‘तुम से मेरा बच्चा कैसे हो

सकता है?’’

‘‘क्यों नहीं हो सकता? यह बच्चा मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगा.’’

उस शाम को प्रमोद सुनयना के पास जैसे आया था, वैसे ही चला गया. उस के मन में एक ही सवाल उठ रहा था कि अगर सुनयना उस के बच्चे को जन्म देगी, तो क्या होगा?

‘‘मेरे पेट में पल रहे बच्चे के पीछे आप क्यों पड़े हैं? आप मु झे जवाब दे दें, तो कहीं और मैं चली जाती हूं,’’ अगली बार प्रमोद के आने पर सुनयना ने पूछा.

‘‘बच्चा मुझसे है. नाजायज है, मेरे लिए वह परेशानी खड़ी कर सकता है.’’

‘‘क्या परेशानी खड़ी कर सकता है वह?’’

‘‘मेरा वारिस बनने का दावा कर सकता है.’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? मैं बताऊंगी तभी न.’’

‘‘बच्चा कल को पूछ भी तो सकता है कि उस का पिता कौन है?’’

‘‘लेकिन, मैं एक बच्चा चाहती हूं.’’

‘‘इस को गिरवा कर तुम किसी और से बच्चा गोद ले लो.’’

‘‘फर्ज करो कि वह आप से नहीं किसी और से है तब?’’

‘‘बकवास मत करो. मैं जानता हूं कि यह मु झ से है.’’

‘‘मैं आप की वफादार हूं और वफादारी का यह इनाम है.’’

यह सुन कर प्रमोद दनदनाता हुआ वहां से चला गया. वह कानूनी और सामाजिक पचड़े के बारे में सोच रहा था कि कल को अगर मैडिकल रिपोर्ट का सहारा ले कर सुनयना बच्चे को उस का बच्चा साबित कर के उस की जायदाद में से हिस्सा मांग सकती है.

प्रमोद की कशमकश को सुनयना बखूबी सम झ रही थी. उस ने चुपचाप अपना सामान समेटना शुरू कर दिया.

एक दिन वह फ्लैट छोड़ कर चली गई. 2 दिन बाद प्रमोद ने फ्लैट का चक्कर लगाया. उस को वहां सन्नाटा मिला. सुनयना कहां गई? धरती निगल गई या आसमान?

प्रमोद कुछ दिनों तक बेचैन रहा, फिर खाली फ्लैट को आबाद करने के लिए एक नई उम्र की कालगर्ल को ला कर बसा दिया.

प्रमोद को यह डर बराबर सता रहा था कि सुनयना उस के सामने उस की नाजायज औलाद को वारिस के तौर पर न ले आए.

एक दिन कार से गुजरते समय प्रमोद की नजर एक नर्सिंगहोम के बाहर रिकशे से उतरती एक औरत पर पड़ी. उस का पेट फूला हुआ था. गौर से देखने पर पता चला कि वह तो सुनयना ही थी. वह जल्दी ही बच्चा जनने वाली थी.

प्रमोद ने कार सड़क की एक तरफ रोक दी और सुनयना के बाहर निकलने का इंतजार करने लगा. लेकिन वह काफी देर तक बाहर नहीं निकली.

तब प्रमोद ने अपना मोबाइल फोन निकाला और नर्सिंगहोम के बाहर लगे बोर्ड पर लिखा मोबाइल फोन नंबर पढ़ कर उस पर फोन किया.

‘‘हैलो, यह अस्पताल का रिसैप्शन है?’’ प्रमोद ने पूछा.

‘जी हां, बोलिए.’

‘‘अभी थोड़ी देर पहले मिसिज सुनयना ने डिलीवरी के लिए विजिट किया था, क्या उन को एडमिट किया गया है?’’

‘जी हां, उन को मैटरनिटी वार्ड में एडमिट कर लिया गया है.’

‘‘थैक्यू,’’ प्रमोद ने इतना कह कर फोन काट दिया.

अब प्रमोद को सुनयना और उस के बच्चे को खत्म करना था. वह अपनी फैक्टरी पहुंचा. अभी तक उस की जिंदगी बिना रुकावट वाली रही थी. उस का अब तक किसी से पंगे वाला वास्ता नहीं पड़ा था.

प्रमोद की फैक्टरी का मैनेजर अरुण बड़ा ही धूर्त था. मालिक के कई उल झे मामले उस ने सुल झाए थे, लेकिन ऐसा पंगा कभी नहीं निबटाया था.

‘‘साहब, आप को सुनयना और उस का बच्चा क्या परेशानी दे सकता है?’’ अरुण ने पूछा.

‘‘कल को वह मेरा वारिस होने का दावा कर सकता है.’’

‘‘क्या सुनयना ने कभी ऐसा इरादा जाहिर किया है?’’

‘‘नहीं. वह तो कहती है कि बच्चा बुढ़ापे का सहारा बनेगा. वह उस बच्चे को पैदा करना चाहती है.’’

‘‘तो इस में आप को क्या परेशानी है?’’

‘‘अरे भाई, कल को वह बच्चा बड़ा हो कर मेरे सामने आ कर खड़ा हो सकता है. मेरी सोशल लाइफ खराब हो सकती है.’’

‘‘वह बच्चा आप से ही है, क्या यह बात सच है?’’

‘‘वह तो यही कहती है. मेरा भी यही विश्वास है कि वह वफादार है.’’

‘‘आप क्या चाहते हैं?’’

‘‘बच्चे और मां को खत्म करना है, खासकर बच्चे को.’’

‘‘ऐसा काम मैं ने कभी नहीं किया. फिर भी देखता हूं कि क्या हो सकता है,’’ अरुण ने कहा.

अरुण सुनयना को पहचानता था. वह नर्सिंगहोम पहुंचा. जच्चाबच्चा वार्ड में सुनयना एक बिस्तर पर लेटी थी.

‘‘एक रिश्तेदार को देखना है. एक मिनट के लिए अंदर जाने दें,’’ अरुण ने वार्ड के बाहर बैठी एक औरत से कहा. इजाजत मिलने के बाद वह अंदर गया और कुछ ही पलों में लौट आया.

सुभाष और अर्जुन सुपारी किलर थे. उन्हें सुनयना को खत्म करने की सुपारी दी गई थी. वे दोनों एक कार में बैठ कर बारीबारी से नर्सिंगहोम की निगरानी करने लगे थे.

‘‘आप यहां अकेली आई हैं? आप के साथ कोई नहीं है?’’ लेडी डाक्टर ने मुआयना करने के बाद सुनयना से पूछा.

‘‘जी, मेरी मजबूरी है,’’ इस पर लेडी डाक्टर सम झ गईं.

सुनयना कुंआरी मां बनने वाली थी. ऐसे मामले नर्सिंगहोम में आते रहते थे, लेकिन कानूनी औपचारिकता अपनी जगह थी. इलाज, डिलीवरी या औपरेशन के दौरान मरीज की मौत हो सकती थी, इसलिए किसी जिम्मेदार आदमी के फार्म पर दस्तखत कराना जरूरी था.

‘‘आप की जिम्मेदारी के फार्म पर दस्तखत कौन करेगा?’’

‘‘मैं खुद ही करूंगी.’’

‘‘ऐसा नहीं हो सकता.’’

तभी सुनयना को दर्द शुरू हो

गया. चंद मिनटों के बाद उस ने एक खूबसूरत बच्चे को जन्म दिया. सारी औपचारिकताएं धरी की धरी रह गईं.

4 दिन बाद सुनयना को छुट्टी मिल गई. बच्चे को गोद में उठाए वह नर्सिंगहोम से बाहर आई. आटोरिकशे में बैठी. उस के पीछे किराए के हत्यारों की कार लग गई.

इंस्पैक्टर मधुकर लोकल थाने के एसएचओ थे. वे चुस्त और मुस्तैद पुलिस अफसर थे. दोपहर का खाना खाने के बाद वे चंदू पनवाड़ी के यहां पान खाते थे. इस बहाने से वे इलाके का दौरा भी कर लेते थे.

नर्सिंगहोम से आटोरिकशे में बैठी सुनयना के पीछे किराए के हत्यारों की कार लगी थी. उन की यह हरकत जीप पर सवार एसएचओ मधुकर की निगाह में आ गई. उन के एक इशारे पर ड्राइवर ने जीप कार के पीछे लगा दी.

आटोरिकशा एक बस्ती में पहुंचा. सुनयना उतरी, भाड़ा चुकाया और अपने किराए के कमरे की तरफ बढ़ी. पीछे आ रही कार थमने लगी. तभी सुभाष की नजर पीछे से आ रही जीप पर पड़ी.

‘‘अर्जुन, कार मत रोकना. पीछे एसएचओ आ रहा है,’’ सुभाष ने कहा, तो अर्जुन ने कार की रफ्तार बढ़ा दी.

एचएचओ मधुकर ने जीप में सादा कपड़ों में बैठे एक पुलिस वाले को इशारे से कुछ सम झाया. वह पुलिस वाला सुनयना की निगरानी करने लगा. कार का नंबर नोट कर मधुरकर ने पुलिस कंट्रोल रूम को भेज दिया.

चंद मिनटों में शहर के खासखास इलाकों में तैनात पुलिस की गाडि़यों को उस कार के बारे में हिदायतें मिल गईं. एक चौराहा पार करते समय एक कार उस कार के पीछे लग गई. उस कार में सादा ड्रैस में मुखबिर थे.

एसएचओ मधुकर थाने पहुंचे. थोड़ी देर में उन का मोबाइल फोन बजा, ‘सर, उस कार में 2 लोग हैं, जो अपराधी नहीं दिख रहे हैं,’ मुखबिर ने खबर दी.

‘‘ठीक है, तुम उन पर निगाह रखो,’’ इंस्पैक्टर मधुकर बोले.

थोड़ी देर बाद एक बस्ती में

तैनात मुखबिर का फोन आया, ‘‘साहब, खतरा है.’’

‘‘क्या खतरा है?’’

‘‘जान जाने का. और क्या खतरा हो सकता है?’’

‘‘तू उन मवालियों को पहचानता

है क्या?’’

‘‘नहीं. पर मेरा अंदाजा है कि इस इलाके का खबरिया राम सिंह भी नहीं पहचानता होगा.’’

‘‘तब हम क्या करें?’’

‘‘इस बाई की हिफाजत और निगरानी.’’

‘‘खतरे की वजह?’’

‘‘इस का बच्चा.’’

‘‘क्या…’’

‘‘तेरी इस क्या का जवाब फिलहाल मेरे पास नहीं है.’’

सुनयना नहीं जानती थी कि वह पुलिस के जासूसों की नजर में आ

चुकी है.

‘‘सेठ की माशूका और उस के बच्चे के ठिकाने का पता हम ने लगा लिया है. जल्दी ही वे दोनों को मार देंगे,’’ प्रमोद के मैनेजर अरुण को सुपारी लेने वाले

ने बताया.

‘‘ठीक है. मेरा और सेठ का नाम नहीं आना चाहिए,’’ अरुण ने कहा.

‘‘आप तसल्ली रखें.’’

बच्चे के जन्म के बाद सुनयना ने अपनी एक सहेली मीरा को फोन किया, जो उस के बारे में सबकुछ जानती थी.

‘‘अरी, तेरे और तेरे बच्चे को मरवाने का ठेका दिया है सेठ ने,’’ उस की सहेली मीरा ने बताया.

‘‘क्या? उस को कैसे पता चला?’’

‘‘वह तेरे पीछे शुरू से ही लगा है.’’

‘‘तु झे किस ने बताया?’’

‘‘तेरी जगह फ्लैट में आई उस नई लड़की ने.’’

‘‘अब मैं क्या करूं?’’ सुनयना

ने पूछा.

‘‘अपना ठिकाना बदल ले.’’

‘‘ठीक है,’’ सुनयना बोली.

दोनों सुपारी किलर सुभाष और अर्जुन आपस में सलाह कर रहे थे.

‘‘बाई इस बस्ती में है. कल उस का घर ढूंढ़ कर उसे खत्म कर देते हैं,’’ सुभाष ने कहा.

सुबह सुनयना बच्चे को कुनकुने पानी से नहला कर साफ कपड़े में लपेट चुकी थी. वह सोच रही थी कि कहां जाए? तभी उस को अपनी पुरानी

सहेली प्रेमलता का ध्यान आया. वह एक अनाथालय की मैनेजर थी.

सुनयना बच्चे को गोद में ले कर बाहर आई. उस ने एक आटोरिकशा किया. आटोरिकशे के चलते ही मवालियों की कार पीछे लगी. उस की खबर पुलिस कंट्रोल रूम को भी हो गई.

आटोरिकशा अनाथालय के बाहर रुका.

‘‘थोड़ी देर इंतजार करो. मैं अभी आई,’’ सुनयना ने आटोरिकशे वाले से कहा.

सुनयना को देखते ही प्रेमलता मुसकराई, ‘‘अरे सुनयना, तुम यहां

कैसे आई?’’

‘‘मैं मुसीबत में फंस गई हूं. जरा

यह बच्चा संभाल. मैं थोड़ा ठहर

कर आऊंगी,’’ बच्चा देते हुए सुनयना

ने कहा.

‘‘यह किस का बच्चा है?’’ प्रेमलता ने पूछा.

‘‘मेरा है,’’ सुनयना बोली.

‘‘तेरा है? तू ने शादी कर ली क्या?’’ प्रेमलता ने पूछा.

‘‘फिर बताऊंगी. शाम को आऊंगी. कुछ दिक्कत है.’’

प्रेमलता ने बच्चा थामा. सुनयना आटोरिकशे में बैठ रेलवे स्टेशन की ओर चली गई.

‘‘उस्ताद, बाई यतीमखाने में गई थी. वहां अपना बच्चा दे आई है, अब क्या करें?’’ सुभाष ने अर्जुन से पूछा.

‘‘सेठ कहता है कि बच्चे को पहले खत्म करना है. यतीम खाने में चलते हैं. बाई को फिर मारेंगे.’’

कार एक तरफ खड़ी कर वे दोनों सुपारी किलर अनाथालय में घुस गए. सुनयना के बच्चे को एक पालने में लिटा कर प्रेमलता मुड़ी ही थी कि 2 बदमाश नौजवानों को देख कर वह चौंकी, ‘‘क्या बात है?’’

‘‘अभी एक बाई तु झे बच्चा दे कर गई है. वह कौन सा है?’’ सुभाष ने कमरे में नजर डालते हुए पूछा. दर्जनों पालनों में नवजात बच्चे अठखेलियां करते दूध पी रहे थे.

‘‘बाई, कौन बाई?’’

‘‘जो अभीअभी यहां आई थी,’’ अर्जुन ने कहा.

‘‘यहां कोई बाई नहीं आई,’’ प्रेमलता बोली.

‘‘सीधी तरह मान जा. बता वह बच्चा कौन सा है,’’ अर्जुन ने चाकू निकालते हुए कहा.

तभी अनाथालय के दरवाजे पर एसएचओ मधुकर ने कदम रखा.

प्रेमलता पुलिस को देखते ही चीखी, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, चोरबदमाश…’’

सिपाहियों ने घेरा डाल कर दोनों बदमाशों को पकड़ लिया. थाने में उन्होंने सब सचसच उगल दिया.

मैनेजर अरुण के काबू में आते ही सेठ प्रमोद भी टूट गया.

‘‘आप या तो बच्चे और उस की मां को अपना लें, अन्यथा 10 साल की सजा भुगतें. बच्चा आप का वारिस फिर भी माना जाएगा,’’ इंस्पैक्टर मधुकर ने सम झाते हुए कहा.

मरता क्या न करता, सेठ प्रमोद ने सुनयना को अपनी पत्नी और बच्चे को वारिस मान लिया.

अनचाहा बंधन : रिश्तों का बोझ ढोती आशा

कुदरत ऐसे 2 लोगों को क्यों मिलाती है, जो उन्हें एक कर सके, ऐसा कोई रास्ता ही नहीं बनाया होता है? न जाने कैसे रह पाते हैं वे, जैसे कंठ में विष हो, जो न निगला जाए और न उगला जाए? ऐसा ही कुछ आशा और देबू के साथ हुआ.

‘‘पापा, क्यों की आप ने मेरी शादी वहां? क्या जल्दी थी आप को मुझे घर से निकालने की? कितना कहा कि 1-2 साल दे दो मुझे, मैं आगे पढ़ना चाहती हूं. बाद में कर देना शादी मेरी…’’

पापा बोले, ‘‘बाद में क्या हो जाता? तब कुछ बदल जाता क्या?’’

आशा इन्हीं खयालों में खोई हुई थी कि कैसे शादी के थोड़े समय बाद ही उस ने पापा से यह शिकायत की थी, लेकिन पापा ने इस मामले में कुछ खास दिलचस्पी नहीं ली थी.

आशा को याद आ गए वे दिन… बीए ही तो किया था उस ने. आगे पढ़ना चाहती थी वह, लेकिन पापा नहीं माने. वे शादी के लिए जल्दी करने लगे और आननफानन में 4-5 लड़के देख कर ही थक गए और एक जगह हां कर दी.

लड़के वाले भी तैयार थे और शादी कर दी गई. आशा ने कहा भी था, ‘‘एक बार हम दोनों को मिलना चाहिए, बात करनी चाहिए.’’

लेकिन कोई नहीं माना और आखिर में वही हुआ, जिस का डर था. दोनों के विचार नहीं मिलते थे, सोच नहीं मिलती थी, पसंद नहीं मिलती थी. लड़का

कम पढ़ालिखा था, छोटी सोच, हर पल निगाहों में शक, कहां तक सहे कोई, लेकिन और कोई रास्ता भी तो नहीं था.

आशा उस दिन को याद कर के कोसती है, जब…

‘‘आशा, अरे ओ आशा, क्या कर रही है?’’

‘‘कुछ नहीं मम्मी, मैं ये प्रोस्पैक्टस देख रही थी.’’

‘‘क्या देख रही है इस में?’’

‘‘अरे मम्मी, एडमिशन की आखिरी तारीख कौन सी है, यह देख रही थी.’’

‘‘बेटा, कितनी बार कहा है कि तेरे पापा नहीं चाहते कि तू आगे पढ़े. बीए तो कर लिया, बस बहुत है. अब जाओ अपने घर.’’

‘‘मम्मी, कितनी बार कहा आप से, पापा से कहो न कि एक साल का तो कोर्स है, करने दें, उस के बाद जहां ब्याहना है, ब्याह देना. और यह ‘अपने घर’ क्या होता है? क्या यह घर मेरा नहीं है?’’

‘‘बेटा, शादी के बाद ससुराल ही औरत का अपना घर होता है.’’

लेकिन आशा मां से बहस न कर के चुप हो जाती. सोचा था कि 2 साल का कोर्स है, मगर एक साल का झूठ बोल कर एक बार एडमिशन हो जाए तो 2 साल तो फिर पार कर ही लेंगे. नहीं मालूम था कि भविष्य में तो कुछ और ही था.

शादी के बाद रोज का यही हाल…

‘‘किस के खयालो में खोई हो? कहां खो जाती हो? कभी रोटी जल गई, कभी सब्जी में नमक ज्यादा, तो कभी दूध उबल गया… आखिर कौन से यार की याद सताती है तुम्हें? काम में तो ध्यान होता ही नहीं…’’

‘‘देबू, आप से कितनी बार कहा मैं ने कि ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा आप कह रहे हो. मेरी जिंदगी में आप के सिवा न कोई था, न होगा,’’ आशा अपने पति देबू को समझाती.

‘‘अच्छा, कालेज में कोई जाए और इश्क न हो, ऐसा कैसे हो सकता है…’’

‘‘कालेज इश्क करने के लिए तो नहीं, और सभी एकजैसे भी नहीं होते. जिन्हें इश्क करना है, बिना कालेज गए भी करते हैं.’’

इस तरह रोज की खिटपिट में 3 साल गुजर गए.

आज आशा को सुबह से चक्कर आ रहे थे. देबू औफिस गए हुए थे. किस से कहती, खुद ही चली गई डाक्टर के पास. चैकअप कराया तो पता चला कि एक वह महीने के पेट से है. मन में खुशी की लहर दौड़ गई कि शायद अब देबू का बरताव उस के प्रति अच्छा हो जाए.

घर आ कर आशा खुशी से देबू का इंतजार करने लगी. रात को जैसे ही बिस्तर पर गई तो देबू के गले में बांहें डाल कर चूम लिया उसे.

इस पर देबू ने झटके से उसे अलग किया और बोला, ‘‘यह क्या बचपना है… ऐसी कौन सी लौटरी लगी है, जो इतना खुश हो?’’

आशा ने धीरे से कहा, ‘‘लौटरी से भी बढ़ कर खुशी है.’’

अब आशा से रहा नहीं गया और बोल ही दिया, ‘‘मैं मां बनने वाली हूं और आप पापा.’’

‘‘तुम मां बनने वाली हो, यह तो ठीक है, मगर पापा मैं ही हूं या तुम्हारा कोई यार…’’

यह सुन कर आग सी लग गई आशा के तनमन में. नहीं सह पाई वह इतनी जिल्लत. एक झटके से उठी और भागी छत की ओर. बस उस ने इतना ही कहा, ‘‘जब हम दोनों को एकदूसरे के लिए बनाया ही नहीं था, तो मिलाया ही क्यों? क्यों बांधा यह अनचाहा बंधन?’’

आशा छत से कूद चुकी थी. थोड़ी देर में वहां एक एंबुलैंस आई. लेकिन उस में अब कुछ भी नहीं रहा था. डाक्टर ने न में सिर हिलाया. एंबुलैंस खाली चली गई.

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