उठाइए और्गेज्म का आनंद

स्त्रीपुरुष संबंध में चरम आनंद को और्गेज्म कहा जाता है. स्त्रियों में यह स्थिति धीरेधीरे या देर से आती है. इसलिए कई स्त्रियों को इस के आने या होने का एहसास भी नहीं होता. सैक्सोलौजिस्ट्स यह मानते हैं कि मनुष्य देह मल्टीपल और्गेज्म वाली है जबकि स्त्री को प्रकृति ने पुरुष की तुलना में ज्यादा बार और्गेज्म पर पहुंचने की क्षमता दी है. कुपोषण, पोषणहीनता विटामिंस की कमी, सेक्स संबंधों में अनाड़ीपन या अल्पज्ञान के चलते हमारे देश में लोग मोनो और्गेज्म का ही सुख पाते हैं और उसे ही पर्याप्त समझते हैं.

सुहागरात का प्रथम मिलन

अकसर दंपती सुहागरात के दिन चरम आनंद का अनुभव नहीं कर पाते. उन्हें लगता है व्यर्थ ही इतने सपने पाले.

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एक दंपती कहता है, बहुत भयंकर रहा हमारा प्रथम मिलन. पत्नी को छूते ही पति का काम हो गया (स्खलित हो गया). पत्नी कोरी (चरमानंद का एक अंश तक नहीं) ही रह गई. अभी पतिपत्नी के बीच न कुछ बात हुई, न विचार…पति ग्लानि का शिकार हो गया. उसी को दबाने के लिए उस ने नया पैंतरा अपनाया. शादी में ससुराल में हुए स्वागत और लेनदेन में मीनमेख निकालने लगा. पत्नी भी कब तक चुप रहती. दूसरेतीसरे दिन पति सहज था पर पत्नी न हो पाई. तब पति ने सचाई पत्नी को बताई. इस सच को बता कर और अपनी कमजोरी बता कर पति ने पत्नी का मन जीत लिया. उस दिन वे दोनों मन से मिले. दरअसल, वे उसी दिन को अपनी सुहागरात का नाम देते हैं.

कई बार प्रथम रात्रि में आनंद भी संभव नहीं होता, और्गेज्म तो दूर की बात है. दरअसल, उस रात्रि में कई तरह के डर हावी रहते हैं. मिलन के लिए दोनों की मानसिकता एकजैसी हो, यह भी आवश्यक नहीं. चरमानंद तालमेल, स्नेह व सद्व्यवहार पर निर्भर करता है.

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लंबे समय बाद भी सुख

अकसर पुरुष आनंद पा ले तो स्त्रियां अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेती हैं. पूछने पर कह देती हैं कि उन्हें आनंद आ गया. असल में 2 या 3 बच्चे हो जाने के बाद भी आनंद आता है. एक युवती कहती है, ‘‘संभोग करने में उसे दर्द रहता था. सहेलियों ने सलाह दी कि बच्चा पैदा होने पर यह दर्द गायब हो जाएगा. दर्द गायब हुआ पर चरमानंद तीसरे बच्चे के बाद ही आया. चरमानंद के बाद मैंने संभोग की असली स्टेज जानी जिस के बाद कुछ करने का मन नहीं करता.’’

एक स्त्री कहती है, ‘‘मुझे मेनोपौज के समय चरमानंद का पता चला. उस समय कामोत्तेजना बढ़ गई. मैं स्वयं ही इन से फरमाइश करने लगी. पहले चरमानंद आ जाता तो जीवन के लंबे अरसे तक इस का अनुभव लेते रहते.’’

कैसे पहचानें और्गेज्म

यह स्थिति चरम संतुष्टि की स्थिति है. यह अपनेआप पता लग जाती है. अकसर इस के बाद कुछ करने का मन नहीं करता. कुछ स्त्रियां आंख मीच कर निढाल भी रहती हैं.

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इस दौरान योनि में संकुचन हृदय धड़कन जैसा होने लगता है. निरंतर और्गेज्म पाते रहने से इस स्थिति पर पहुंचने का 20-30 सैकंड पहले पता लग जाता है. ऐसे में एकाग्रता बढ़ा लेना अच्छा रहता है. पुरुष भी अपनी देह पर पकड़ अनुभव करते हैं. यह स्थिति उन के लिए सफल सेक्स का बहुत बड़ा साइलैंट कम्युनिकेशन है.

और्गेज्म अपने सुख के लिए भी है. शरीर के साथ ही यह मन को भी हलका बनाता है. शरीर से निकले स्राव तनमन में रासायनिक क्रिया उपजाते हैं. मन को फुर्तीला बनाते हैं, जीवन के प्रति विश्वास जगाते हैं. जीना रुचिकर लगता है, उस में रस आता है. कभी स्खलन न हो या चरमानंद न आए तो मन बेचैन, उद्विग्न, अकारण परेशान, चिंतातुर रहता है. इसे चरमानंद पाने वाले लोग आसानी से जानसम झ सकते हैं.

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हर बार पहले जैसी अनुभूति

एक युवती कहती है कि पहला और्गेज्म उसे समझ न आया. संकुचन हुआ तो लगा पता नहीं यह क्या हो गया. इसे जानने के बाद अगली बार यह स्थिति न सिर्फ आनंददायक रही बल्कि तृप्तिदायक व संतुष्टिदायक भी रही. एक युवक कहता है, ‘‘मेरी पत्नी ने एक रात मुझे बताया कि आज मुझे नाभि तक सरसराहट महसूस हो रही है. लग रहा है मेरे भीतर घंटियां बज रही हैं.’’ मैं समझ गया, यह उस का पहला और्गेज्म है.

स्त्रियों का चरमानंद पुरुषों के चरमानंद जैसा मुखर नहीं होता कि बिना बताए उसे कोई जान ले या भांप ले. इसीलिए कई बार उस में बाधा होती है. कुछ स्त्रियों को चरमानंद से पूर्व जल्दी और ज्यादा घर्षण चाहिए. कुछ को पुरुष अंग और गहराई पर चाहिए तो किसीकिसी को सिर्फ कोराकोरा स्पर्श चाहिए.

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पुरुष करते हैं परवाह

स्त्रियों के चरमानंद की पुरुषों को बहुत परवाह रहती है. दरअसल, यह उन्हें अपनी सेक्स परफौर्मैंस की बदौलत पाई सफलता लगती है. इसलिए उन्हें सही स्थिति बताई जाए तो वे उस की परवा करते हैं, यहां तक कि अपने आनंद को स्थगित कर के भी. एक सज्जन कहते हैं कि मैं चरमानंद के नजदीक होता हूं और मेरी पत्नी कहती है, अब यह करो. यह मत करो तो मैं मान लेता हूं क्योंकि मुझे पता है, मेरी तृप्ति कैसे होती है पर उस की तृप्ति उस समय मेरे लिए सब से महत्त्वपूर्ण होती है.

चरमानंद से पूर्व भी आनंद आता है. अगर चरमानंद को डिले करना है तो थोड़ा ध्यान बांटा जाए. लेकिन डिले इतना न हो कि हाथ से ही निकल जाए. यह न हो कि वह पुरुष साथी स्खलित हो जाए और फिर स्त्री के योग्य होने में उसे समय लगे और तब चरमानंद हाथ न आए.

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फोरप्ले व आफ्टरप्ले दोनों स्थितियों का अपना महत्त्व है. अच्छे फोरप्ले से समय पर चरमानंद पाया जा सकता है और अच्छा आफ्टरप्ले चरमानंद को देर तक बनाए रखता है. ये भावात्मक निकटता उपजाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. सेक्स को सिर्फ तन की क्रिया ही नहीं रहने देते बल्कि भावनात्मक, आंतरिक व सम्मानजनक बनाते हैं.

चरमानंद सेक्स को मुक्त मन से किए गए स्वागत का सुखद परिणाम है.ु यह स्त्रीत्व और पुरुषत्व के माने ठीक से बता देता है. एकदूसरे के लिए साथी का महत्त्व भी सम झाता है. समझदारी, समरसता से किया गया सेक्स सुख के द्वार खोलता है. यह और्गेज्म यानी चरमानंद पा कर ही अनुभव किया जा सकता है.

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वह क्यों बन गई कॉलगर्ल : उसे अपने शरीर बेचने पर कोई गिला नहीं

वह समय गुजारना मेरे लिए बङा ही अजीब और रोचक था. मैं फाइव स्टार होटल के एक कमरे में था और मेरे सामने एक बेइंतिहा खूबसूरत और आधुनिक लङकी बैठी थी. वह कौलगर्ल थी.

ब्लैक जींस और पिंक टौप में वह बेहद जंच रही थी. मैं ने उस पर एक भरपूर निगाह डाली.

उस ने अपने चेहरे से मास्क और स्टौल हटाए तो मैं उसे देखता ही रह गया. खुले बाल और हलके मेकअप में वह काफी आकर्षक लग रही थी. उस के वक्षस्थल काफी उन्नत थे और मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि वह गदराए हुस्न की मलिका थी.

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उस ने वी गले की टौप पहन रखी थी, जिस के अंदर से वक्ष मानो बाहर आने को उतावले हो रहे थे. मैं ने उसे पानी का गिलास पकङाया और चाय या कौफी की पेशकश की.

क्यों आती हैं इस धंधे में

यों मुझे पिछले कई सालों से कौलगर्ल्स के धंधे के बारे में जानने की जिज्ञासा थी. मैं अकसर यह सोचा करता था कि वे इस धंधे में आती क्यों हैं? वैसे आजकल तो कोरोना की वजह से इस धंधे में भी मंदी का दौर है मगर रसूखदारों के लिए आज भी कोरोना से ज्यादा मौजमस्ती जरूरी है और मौजमस्ती में सैक्स का मजा न हो तो सब बेकार.

खैर, मैं ने इज्जत से उस से पूछा,”क्या नाम है आप का?”

उस ने कहा,”सौम्या.”

मैं ने फिर पूछा,”यह असली नाम है?”

सौम्या ने कहा,”नहीं, पर असली नाम जान कर आप क्या करोगे? इस धंधे के कुछ उसूल होते हैं,” और वह हंस पङी.

हालांकि सौम्या से मेरी मुलाकात एक जानकार के माध्यम से हुई थी. उसी जानकार ने एक होटल में सौम्या से मेरी मुलाकात का समय तय किया था. उस ने मुझे बताया था कि सौम्या सुखीसंपन्न घर की आधुनिक युवती है और वह इंग्लिश भी बोलती है.

होटल के उस कमरे में सिर्फ मैं और वह युवती ही थे. मेरे सामने निहायत ही एक ऐसी युवती थी जिसे पाने के लिए कोई भी पुरूष एक तरह से टूट ही पङें मगर वह यह जान कर हैरान थी कि मैं उस से सिर्फ जानकारी चाहता हूं. मुझे उस के शरीर में कोई दिलचस्पी नहीं है.

जब वह राजी हो गई

थोड़ा नानुकुर के बाद वह अपने इस धंधे के बारे में बताने को राजी हो गई.

उस ने बताया,”मैं इस धंधे में पिछले 3 सालों से हूं. अब तो मुझे इस जिंदगी की आदत सी हो चली है. मेरे पास पैसा कमाने का इस से अच्छा जरीया और कोई नहीं दिखा. इस में पैसा तो है ही मौजमस्ती भी है.”

सौम्या आगे बताती है,”उस के अधिकतर ग्राहक पैसे वाले हैं, जो उस पर सैक्स के बदले खूब पैसा बरसाते हैं.”

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यह कह कर सौम्या चुप हो गई तो मैं ने फिर सवाल दाग दिए,”सौम्या, क्या तुम्हें इस में भय नहीं लगता? किसी अपरिचित के सामने जाने पर कैसा लगता है?”

पहले उसे डर लगता था

सौम्या कहती है,”इस धंधे में सतर्क हो कर काम करना पड़ता है. मगर हम नैटवर्क के जरीए काम करते हैं और हमेशा संपर्क में रहते हैं.”

सौम्या जब इस धंधे में आई थी तब उसे बहुत डर लगता था मगर अब वह एक पेशेवर की तरह हो गई थी. वह बताती है कि जब वह इस धंधे में आई थी तो सिर्फ वही नहीं, बल्कि अच्छेअच्छे घरों की लङकियांमहिलाएं भी बहुत थीं. उस ने यह भी बताया कि वह महीने में ₹80-90 हजार कमा लेती है, मगर चूंकि अभी कोरोना वायरस का डर है इसलिए आमदनी कम हो गई है.

उसे भरोसा है कि जल्दी ही सबकुछ समान्य हो जाएगा और वह पहले की तरह ही रूपए बना सकेगी.

दिल्ली में बड़ा नैटवर्क

वैसे देश में मुंबई के बाद दिल्ली ही एक ऐसी जगह है, जो कौलगर्ल के साथ रात बिताने के लिए हौटस्पौट जगह है. दिल्ली में तो यह हालत है कि यहां नौकरशाह, बिजनैसमैन, सत्ता के दलाल और फिक्सरों आदि के लिए खूबसूरत युवती के साथ रात गुजारने की आदत सी हो चुकी है.

यहां इस टाइप की कौलगर्ल्स के पास खूब पैसा है, वे फर्राटेदार इंग्लिश बोलती हैं और बहुतों ने तो अपना फ्लैट भी खरीद लिया है. वे कार भी चलाती हैं.

इन हाईफाई कौलगर्ल्स कोई पीङित और अपहरण की हुई नहीं होती हैं और न तो वे आम वेश्याओं जैसी भङकीली ड्रैस और मेकअप से पुती होती हैं. ये न तो रैडलाइट ऐरिया में रहती हैं न ही मैट्रो स्टैशनों, बिजली के खंभों के नीचे खङी हो कर ग्राहकों तलाश रही होती हैं. इन का लंबाचौङा नैटवर्क होता है, जो फाइव स्टार होटलों, फौर्महाउसों की मौजमस्ती में आसानी से घुलमिल जाती हैं.

ये सिंपल मेकअप में होती हैं, ब्रैंडेड कपङे पहनती हैं और हाथों में महंगे मोबाइल फोन रखती हैं. एकबारगी ये कुलीन घर की लगती हैं.

धंधे में खूब पैसा है

सौम्या बताती है,”इस धंधे में लङकियां जल्दी पैसा कमाने के लिए उतरती हैं. यह सही है कि कुछ 2-4 बार ऐसा करने के बाद इस धंधे से किनारा कर लेती हैं तो कुछ को इसी में मजा आता है.

“इस में पैसा भी है और मौजमस्ती भी. लगभग आएदिन कभी शिमला तो कभी मसूरी और कभी गोआ में वीकऐंड हो ही जाता है.”

वैसे इस धंधे में खतरा भी कम नहीं है. खासकर बिचौलिए या दलाल से, क्योंकि कभीकभी गलत किस्म का आदमी भी आ जाता है जिस के लिए नारी देह को भोगना होता है और वह नशे में जानवरों की तरह टूट पङता है. लेकिन अब अधिकतर लङकियां बिना दलाल के भी इस धंधे में हैं और महीने के ₹70-80 हजार कमा लेती हैं.

पुलिस का डर

कभीकभी पुलिस के छापों का खतरा रहता है मगर सौम्या ने बताया कि रसूखदारों के साथ होने से कोई खास दिक्कत नहीं होती.

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वैसे पुलिस के लिए भी देह व्यापार से जुङीं महिलाओं को पङकना और फिर उन्हें सजा दिलवाना आसान नहीं होता, क्योंकि पकङे जाने के बाद अकसर उन्हें कोर्ट से जमानत मिल जाती है और वे रिहा हो जाती हैं.

देह धंधे से जुङे अपराधियों में दिल्ली का कंवलजीत काफी कुख्यात रहा है. एक समय वह दिल्ली में इस धंधे का माफिया था. आज भी उस का नाम दिल्ली पुलिस की निगरानी सूची में है. पुलिस दबिश के बाद वह दिल्ली छोङ कर मुंबई भाग गया था.

सौम्या ने बताया कि आज वह जितना कमाती है उतना किसी कंपनी के बड़ेबङे अधिकारी भी शायद ही कमा पाते होंगे.

गलत तो है मगर…

सौम्या को पता है कि यह एक गलत धंधा है पर वह ठसके से कहती है,”यह मेरा देह है. मैं अपनी मरजी से कुछ भी कर सकती हूं. जब काफी पैसा बना लूंगी तब सोचूंगी कि आगे इसे जारी रखूं या बंद कर दूं?”

वह बताती है, “मुझे याद है जब मैं पूरी दिल्ली में नौकरी के लिए दरदर सिर फोङतीफिरती थी. एक जगह नौकरी भी की मगर 20-25 हजार की नौकरी से आजकल क्या होता है? मगर आज मेरे पास सबकुछ है…”

सही भी है, नारी देह पर अधिकार सिर्फ एक नारी को ही है. देह उस का है और वह इस देह से कमाना चाहती है, तो यह कानून भले ही इजाजत नहीं देता, समाज गलत मानता हो मगर सौम्या जैसी हजारों कौलगर्ल्स को इस से क्या लेनादेना? क्योंकि उन्हें पता है कि अच्छी नौकरी आसानी से मिल नहीं सकती और उस समाज की चिंता क्यों जो सदियों से औरतों पर जुल्म ही तो ढाए हैं फिर चाहे एक औरत को परंपरा पर दबाया जाता रहा हो या फिर धर्मकर्म के नाम पर डरा कर रखा जाता हो.

सौम्या ने अंतिम में बस इतना ही कहा,”आई होप कि मेरी इस मुलाकात को यहीं खत्म समझना. हां, सैक्स की इच्छा है तो मैं मना नहीं करूंगी.”

मैं ने जाते समय उस से हाथ मिलाया तो उस ने थैंक्स कहा और कमरे का दरवाजा खोल कर निकल गई.

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बेफिक्र होकर उठाएं Masturbation का लुत्फ

के के अग्रवाल देश के जाने माने डाक्टर हैं जिन्हे अपनी काबिलियत के लिए कई दूसरे पुरुस्कारों और सम्मान के साथ  सरकार से पद्म श्री जैसा पुरुस्कार भी मिल चुका है . दिल के रोगों के माहिर ये डाक्टर साहब सेक्स से ताल्लुक रखते मसलों पर भी बेबाकी से अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं . देश के वे पहले नामी डाक्टर हैं जो मास्टरवेशन यानि हस्तमैथुन पर खुलकर बोलते लोगों की कई गलतफहमियाँ दूर करते हैं . उनकी मानें तो हस्तमैथुन कतई सेहत के लिए नुकसानदेह नहीं है बल्कि फायदेमंद है .

हस्तमैथुन को लेकर कई गलतफहमियाँ फैली हुई हैं , बेहतर तो यह कहना होगा कि जानबूझकर फैलाई जाती हैं जिससे लोग इसका लुत्फ न ले सकें .  जबकि सेक्स सुख लेने का यह इकलौता बेहतर और महफूज रास्ता है जिसमें किसी पार्टनर की मोहताजी नहीं रह जाती . मेडिकल साइंस में यह बात ज़ोर देकर कही और मानी जाती है कि एक दो या चार पाँच नहीं बल्कि 99 फीसदी लोग हस्तमैथुन करते हैं . खासतौर से कुँवारे लड़के लड़कियां तो सेक्स की अपनी इच्छा इसी से पूरी करते हैं . हालांकि दिलचस्प सच यह भी है कि कई शादीशुदा लोग भी हस्तमैथुन करते हैं क्योंकि उन्हें हमबिस्तरी से पूरा और मनमाफिक मजा नहीं मिलता.

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यह कोई बीमारी नहीं है बल्कि एक आम बात है लेकिन सच यह भी है कि सही जानकारियाँ न होने से अधिकतर लोग हस्तमैथुन को लेकर वेबजह के तनाव में रहते हैं और खुद को कमजोर और कभी कभी तो नामर्द तक समझने की गलती कर बैठते हैं . ऐसा महज इसलिए कि इनके दिमाग में यह बात ठूंस ठूंस कर भर दी गई है कि हस्तमैथुन बुरी बात है और इसके जरिये जो वीर्य बेकार निकल जाता है वह बड़ी मुश्किल से बनता है इसकी एक बूंद की कीमत ही करोड़ों रु होती है . इस बाबत वेबकूफी भरी बात यह फैला दी गई है कि एक बूंद वीर्य बनने सैकड़ों किलो अन्न लगता है जिससे खून और उस खून से एक तरह का रस और फिर उससे वीर्य बनता है .

गलतफहमी यह भी बड़े पैमाने पर पसरी है कि जो वीर्य को हस्तमैथुन के जरिये जाया कर देता है उसकी ज़िंदगी के कोई माने नहीं रह जाते उसके चेहरे पर रौनक नहीं रह जाती और उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है . धार्मिक किताबों में इस वीर्य का बखान इतने भयानक तरीके से किया गया है कि अच्छे अच्छे इसे पढ़कर दहल जाएँ लेकिन हकीकत एकदम उलट है .

जानें सच – हकीकत यह है कि वीर्य शरीर में लगातार बनते रहने बाला एक खास किस्म का केमिकल है जो बनता तभी है जब शरीर और दिमाग में सेक्स की उत्तेजना चरम पर होती है हर कोई इसे महसूसता भी है . यानि वीर्य शरीर के अंदर स्टाक में नहीं रहता है और न ही उत्तेजना होने पर इसका निकलना रोका जा सकता .  इस के निकलने से ही सेक्स सुख मिलता है फिर चाहे वह हमबिस्तरी से मिले या हस्तमैथुन से इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता . आमतौर पर मर्दों में 12 – 13 साल की उम्र में सेक्स उत्तेजना आने लगती है जिसे शांत या पूरी करने वे हस्तमैथुन करते हैं .

गड़बड़ यहीं से शुरू होती है क्योंकि जवान होते लड़के लड़कियों के दिमाग में यह बात पहले से ही भरी होती है कि हस्त मैथुन गलत है , पाप है . ये बातें वे ठीक उसी तरह सीखते हैं जैसे यह कि भगवान है और उसके पूजा पाठ से ही मनचाहे फल मिलते हैं . फर्क इतना है कि हस्तमैथुन के बारे में जानकारियाँ उन्हें इधर उधर से नीम हकीमों के इश्तिहारों और यार दोस्तों से मिलती हैं.

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जब जवान होते लड़के किसी इश्तहार में यह पढ़ते हैं कि बचपन के कुसंग की वजह से नामर्दी या  कमजोरी आ गई हो , थकान महसूस होती हो , शीघ्रपतन हो जाता हो , स्वप्न दोष हो तो घबराएँ नहीं शीघ्र हमसे मिलें और मर्दाना ताकत पाएँ तो वे घबरा उठते हैं और उन्हें यह वहम और गलतफहमी हो जाती है कि वे हस्तमैथुन करने के चलते बच्चा पैदा करना तो बाद की बात है औरत को सेक्स सुख नहीं दे पाएंगे . ऐसा इसलिए और भी होता है कि हमारे यहाँ सेक्स एज्यूकेशन यानि तालीम के कोई इंतजाम नहीं हैं . गलत जानकारियाँ कैसे ज़िंदगी दुश्वार कर देती हैं इसके बारे में भोपाल के नजदीक सीहोर के एक दुकानदार के उदाहरण से समझा जा सकता है .

40 साला इस दुकानदार के मुताबिक वह 15 साल की उम्र से ही हस्तमैथुन कर रहा था 25 का होते होते जब शादी की बात चली तो वह घबरा उठा कि कैसे बीबी को संतुष्ट करेगा इसलिए वह शादी से कतराने लगा . एक दिन उसने शहर के कोतवाली चौराहे पर एक खानदानी हकीम को तम्बू गड़ाए देखा तो अपनी परेशानी लेकर उसके पास जा पहुंचा . हकीम साहब तो बैठे ही ऐसे मुर्गों के लिए थे .  उन्होने पहले तो उसे डराया फिर 40 रु लेकर कुछ पुड़ियेँ थमा दीं कि रात को सोते वक्त दूध के साथ खाते रहना आठ दिन में ही घोड़े को भी मात कर दोगे .

सोते वक्त  दुकानदार ने हिदायत के मुताबिक दवा दूध से खा ली लेकिन आधी रात को उसके पेट में इतना भयंकर दर्द उठा कि उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती करना पड़ा . डाक्टर ने खान पान के बारे में पूछताछ की तो घबराए दुकानदार ने तुरंत सच उगल दिया . 2 दिन बाद अस्पताल से छुट्टी हुई तो अकेले में उसके चाचा ने उसे समझाया कि हस्तमैथुन से ऐसा कुछ नहीं होता जिसे सोचकर वह घबरा गया था . फिर उन्होने सेक्स से ताल्लुक रखती कई अहम बातें उसे समझाईं तो उसका डर जाता रहा . अब यह दुकानदार 2 बच्चों का बाप है और बिना किसी खानदानी हकीम की दवा खाए इस उम्र में भी पलंग तोड़ सेक्स करता है और नौजवानों को मेसेज देता है कि वे नीम हकीमी के चक्कर में वक्त और पैसा जाया न करें हस्तमैथुन से न तो कमजोरी आती और न ही ज़िंदगी बर्बाद होती .

नुकसान कुछ नहीं फायदे कई – माहिरों की मानें तो हस्तमैथुन से कोई नुकसान नहीं होता उल्टे फायदे कई होते हैं मसलन इससे मूड फ्रेश होता है और जिस्म सहित अंग की भी कसरत हो जाती है . जानकर हैरानी होना कुदरती बात है कि इससे तनाव भी दूर होता है .  कई रिचर्स में चौका देने बाली ये बातें भी उजागर हुई है कि सेक्स की इच्छा होने पर हस्तमैथुन कर लेने से लोग सेक्स रोगों के जोखिम से बचे रहते हैं और स्वप्न दोष भी नहीं होता अलावा इसके अच्छी नींद भी आती है .

डाक्टर के के अग्रवाल पूरे भरोसे से ज़ोर देकर कहते हैं कि मेडिकल साइंस हस्तमैथुन को गलत या नुकसानदेह नहीं मानती और न ही इसका शरीर की ताकत और मर्दानगी से कुछ लेना देना यह एक कुदरती बात है . इससे एनर्जी कम नहीं होती बल्कि बढ़ती है . भोपाल के नामी  मनोविज्ञानी यानि दिमागी बीमारियों के माहिर डाक्टर विनय मिश्रा तो यह तक कहते हैं कि अगर सेक्स इच्छाओं को जरूरत से ज्यादा दबाया जाये तो जरूर दिमागी बीमारियों का खतरा बनने लगता है . इसलिए जरूरत पड़ने पर हस्तमैथुन करना हर्ज की बात नहीं .

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एहतियात रखें – एक पुरानी कहावत है कि अति सर्वत्र वर्जयते यानि अति हर जगह नुकसान करती है फिर वह चाहे अच्छे खाने पीने की ही क्यों न हो . हस्तमैथुन पर भी यह बात  लागू होती है . आमतौर पर माहिर यह मानते हैं कि हफ्ते में 3-4 दिन हस्तमैथुन किया जा सकता है . इसके अलावा ये एहतियात भी बरतना चाहिए –

1 – अंग को पूरा उत्तेजित होने पर ही हस्तमैथुन करना चाहिए .

2 – कमरे या बाथरूम बगैरह जहां भी करें दरवाजा अच्छे से बंद कर लेना चाहिए .

3 – ज्यादा ज़ोर से नहीं करना चाहिए इससे अंग को नुकसान हो सकता है .

4 – वीर्य को पोंछने साफ कपड़े या टिसु पेपर का इस्तेमाल करना चाहिए .

5 – एक दिन में बार बार हस्तमैथुन नहीं करना चाहिए .

6 – अगर इसके लिए किसी सेक्स टोय का इस्तेमाल कर रहे हैं तो उसे अच्छे से साफ करना चाहिए खासतौर से उन लड़कियों को जो नकली अंग का इस्तेमाल करती हैं .

और आखिरी बात जो हमेशा जेहन में रखनी चाहिए वह यह कि हस्तमैथुन कतई नुकसानदेह नहीं है इसे आत्मनिर्भरता भी कहा और समझा जा सकता है .

Lockdown में उजड़ने लगीं देह व्यापार की मंडियां

49 साला सोनिया बीते 25 सालों से मुंबई के कमाठीपुरा में रहते देह व्यापार कर रही है यानि सेक्स वर्कर है. सालों पहले पह नेपाल से इस बदनाम इलाके में आई थी, तब कमसिन थी सो अच्छा खासा पैसा मिल जाता था क्योंकि जवान लड़कियां हमेशा ही ग्राहकों की पहली पसंद रहीं हैं. हालांकि इस उम्र में भी वह 2-3 हजार रु रोज कमा लेती है लेकिन लॉक डाउन के बाद यानि  24 मार्च से सोनिया ने एक धेला भी नहीं कमाया है क्योंकि कोरोना की दहशत और लॉक डाउन के चलते ग्राहक कमाठीपुरा की तरफ झांक भी नहीं रहे हैं.

हैरान परेशान सोनिया पहली सेक्स वर्कर है जिसने मीडिया के सामने अपना दुख दर्द बयां किया वह कहती है, पूरी ज़िंदगी इधर निकल गई, लेकिन इतने बुरे हालात कभी नहीं देखे. इतने बम फटे, अटैक हुये, बीमारिया आईं पर ऐसी वीरानी कभी नहीं देखी.

सोनिया जिस कमरे में रहती है उसमें तीन और सेक्स वर्कर रहतीं हैं. उन्हें भी हालात सुधरते नहीं दिख रहे. बक़ौल सोनिया, अगर हालात ऐसे ही रहे तो हमें खाने पीने के लाले पड़ जाएंगे.  अभी तो मकान मालिक को किराया देने भी पैसे नहीं हैं. सोनिया के साथ रहने वाली जया भी उसी की तरह चिंतित है कि अब क्या होगा, कमाठीपुरा में इतना सन्नाटा उसने भी पहले कभी नहीं देखा.

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जया ने अपने 6 साल के बेटे को पुणे में एक रिश्तेदार के यहां रख छोड़ा है जिससे वह पढ़ लिखकर कुछ बन सके. बेटे की पढ़ाई के लिए उसे हर महीने 1500 रु भेजने पड़ते हैं जो अब शायद ही वह भेज पाये. अभी तो चिंता पेट पालने की है क्योंकि धंधा एकदम से बंद हुआ है जिसकी उम्मीद उसने या देह व्यापार के लिए बदनाम कमाठीपुरा की हजारों काल गर्ल्स ने नहीं की थी.

कमाठीपुरा में हजारों सेक्स वर्कर हैं जिनमें से कई यहीं की चालों में किराए से रहती हैं तो कई मुंबई की उपनगरियों से देहव्यापार के लिए आती हैं. इस इलाके में सुबह ही देर रात 8 बजे के बाद होती है. देश का ऐसा कोई इलाका नहीं जहां की काल गर्ल्स यहां न मिलती हों. ग्राहकों की फरमाइश पर दलाल हर तरह का माल उन्हें मुहैया कराते हैं मसलन साउथ इंडियन, नेपाली बंगाली, हिन्दी राज्यों की और पूर्वोत्तर राज्यों की लड़कियां भी इस बाजार में मिलती हैं. लेकिन लॉकडाउन के बाद न केवल कमाठीपुरा बल्कि देश भर की देह मंडियों की सेक्स वर्कर भुखमरी के कगार पर आ खड़ी हुई हैं और चूंकि वे समाज के माथे पर बदनुमा दाग हैं इसलिए कोई उनकी सुध नहीं ले रहा जबकि इनकी हालत भी रोज कमाने खाने वाले दिहाड़ी मजदूरो सरीखी ही है.

एक और सेक्स वर्कर किरण का कहना है कि आप मीडिया बाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हमें माली इमदाद भेजने क्यों नहीं कहते क्योंकि हमारे ऊपर भी बूढ़े माँ बाप और बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारी है. अब जब धंधा चौपट है तो हम क्या करें. कमाठीपुरा में तकरीबन 2 लाख सेक्स वर्कर हैं जो लॉकडाउन  के चलते बदबूदार और संकरी कोठियों में कैद होकर रह गईं हैं. इनके अधिकतर ग्राहक भी रोज कमाने खाने बाले ही होते हैं जिनके अब कहीं अते पते नहीं.

ये मंडियां हुईं सूनी…   

कमाठीपुरा से भी बड़ा बाजार कोलकाता का सोनगाछी है जो एशिया का सबसे बड़ा रेड लाइट इलाका है. एक अंदाजे के मुताबिक सोनगाछी में कोई 3 लाख सेक्स वर्कर हैं कुछ पार्ट टाइम धंधा करती हैं तो कुछ फुल टाइम. इनका एक बड़ा संगठन भी है जिसका नाम दरबार महिला समन्वय समिति है. इस संगठन में लगभग 1 लाख 30 हजार सेक्स वर्कर्स ने रजिस्ट्रेशन कराया हुआ है और इससे ज्यादा वे हैं जिनहोने रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं समझी.

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सोनगाछी में हैरानी की बात है लॉकडाउन से पहले ही ग्राहकों की आवाजाही कम हो चली थी. दरबार की एक पदाधिकारी महाश्वेता मुखर्जी के पास पश्चिम बंगाल के अलग अलग इलाकों से फोन सेक्स वर्कर्स के आने लगे थे कि उन्हें भुखमरी से बचाने कोई पहल की जाये. 30 मार्च आते आते तो हालात काफी भयावह हो चले थे. अधिकांश सेक्स वर्कर्स के पास जमापूंजी और राशन खत्म हो चला था.

ऐसे में महाश्वेता ने एक एनजीओ सोनगाछी रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की मदद से एक योजना बनाई. इस एनजीओ के प्रबंध निदेशक समरजीत साना ने ममता बनर्जी सरकार की सामाजिक कल्याण मंत्री शशि पांजा से गुजारिश की कि कोरोना वायरस के मद्देनजर सरकार की तरफ से दिये जाने बाले फायदे सेक्स वर्कर्स को भी दिये जाएँ. किराए से रह रही तकरीबन 30 हजार सेक्स वर्कर्स के मकान मालिकों को भी उन्होने कहा कि उनका किराया माफ किया जाये. अलावा इसके समरजीत ने कई जानी मानी हस्तियों और दूसरी एनजीओ से भी सेक्स वर्कर्स की मदद के लिए गुहार लगाई है.

यह कोशिश थोड़ी ही सही रंग लाई. शशि पांजा की पहल पर सेक्स वर्कर्स को दाल चावल और आलू के अलावा पका हुआ खाना भी दिया जा रहा है लेकिन लॉकडाउन के बाद क्या होगा इसे लेकर काल गर्ल्स की चिंता कुदरती बात है. सोनगाछी एक महीने पहले तक चौबीसों घंटे गुलजार रहने बाला बाजार हुआ करता था जिसमें देहव्यापार पर बनी कई फिल्मों की शूटिंग भी हुई है. लेकिन अब यहाँ मनहूसियत पसरी पड़ी हुई है.

देह व्यापार पर दर्जनो फिल्मे बन चुकी हैं और मीना कुमारी से लेकर करीना कपूर और विद्धया बालान तक तकरीबन सभी नामी एक्ट्रेसों ने तवायफ का किरदार जिया है. इनकी मुसीबतों पर बनी सबसे सटीक फिल्म 1983 में आई श्याम बेनेगल निर्देशित मंडी थी जिसमें लीड रोल शबाना आजमी ने निभाया था. मंडी में सधे ढंग से दिखाया गया था कि नेता कारोबारी, समाजसेवी और दलाल कैसे कैसे वेश्याओं को मोहरा बनाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं.

कमाठीपुरा और सोनगाछी के मुक़ाबले दिल्ली के रेड लाइट इलाके जीबी रोड की सेक्स वर्कर थोड़ी बेहतर हालात में हैं. इस इलाके में 98 के लगभग ऐसे मकान हैं जिन्हें कोठा कहा जा सकता है इनमें 1500 के लगभग सेक्स वर्कर रहती हैं. लॉकडाउन  के बाद यहाँ की सेक्स वर्कर भी भुखमरी के कगार पर आ गईं थीं लेकिन उन्हें खाना दिल्ली पुलिस दे रही है और नजदीक के गुरुद्वारे से भी मदद और राशन मिल जाता है.

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सेक्स वर्कर भूखी न रहें इसके लिए पहले दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग यानि डीसीपीसीआर ने जीबी रोड के कोठों पर रहने बालियों के लिए एक हंगर सेंटर बनाया था लेकिन ये सेक्स वर्कर लोगों के तानों के चलते वहाँ जाने से कतराईं तो उन्हें घर पर ही दवाइयों और राशन पहुंचाया जा रहा है. यह एक काबिले तारीफ पहल है जिसका श्रेय डीसीपीसीआर के मेम्बर सुदेश विमल को जाता है जो दूसरे जरूरी सामान के साथ साथ सेनेटरी नेपकिन तक सेक्स वर्कर्स को पहुंचाने का इंतजाम कर रहे हैं.

यहां तो कुछ भी नही –

ये तो वे शहर और इलाके थे जहां सेक्स वर्कर बड़ी तादाद में हैं और एक ही जगह से धंधा करती हैं इसलिए राज्य सरकारें इनकी अनदेखी नहीं कर पाईं लेकिन कोरोना और लॉकडाउन  का सबसे बुरा और ज्यादा असर उन शहरों और इलाकों पर पड़ रहा है जहां यह धंधा छिटपुट और छोटे पैमाने पर होता है लेकिन अक्सर चर्चाओं और सुर्खियों में रहता है.

ऐसे खास इलाके हैं ग्वालियर का रेशमपुरा, आगरा का कश्मीरी मार्केट, पुणे का बुधबर पैठ, सहारनपुर का नक्काफसा बाजार, इलाहाबाद का मीरागंज और एक और नामी धार्मिक शहर वाराणसी का मड़ुआडिया, मेरठ का कबाड़ी बाजार और नागपुर का गंगा जमुना.

इन इलाकों और अड्डों की रौनक गायब है और अधिकांश सेक्स वर्कर या तो घरों में कैद हैं या फिर अपने घरो को लौट गईं हैं. मुमकिन है लॉकडाउन के बाद ये भी दूसरे दिहाड़ी मजदूरों की तरह अपने धंधे पर वापस लौट आयें लेकिन धंधा पहले सा चलेगा इसमें शक है क्योंकि हर कोई कोरोना से लंबे वक्त तक डरा रहेगा और सोशल डिस्टेन्सिंग पर अमल करने की हर मुमकिन कोशिश करेगा लेकिन यह देखना भी दिलचस्पी की बात होगी की शरीर की भूख और जरूरत पर कोरोना कितना और कब तक भारी पड़ेगा .

भोपाल के एमपी नगर इलाके की एक काल गर्ल लक्ष्मी शर्मा (बदला नाम) से इस बारे में बात की गई तो उसने बताया नौबत तो भूखों मरने की आ गई है सामाजिक संगठन जो खाना बाँट रहे हैं उससे पेट भर रही हूँ लेकिन अब न तो खाने में मजा आ रहा है और न ही जीने में. पास के शहर विदिशा से भोपाल आकर धंधा करने बाली 28 साला लक्ष्मी कहती है पैसों के लिए कई ग्राहकों को फोन किया लेकिन कोई साला नहीं दे रहा कई ग्राहक जो आम दिनों में कुत्ते की तरह दुम हिलाते आगे पीछे घूमते थे परेशानी के इन दिनों में फोन ही नहीं उठा रहे.

वे क्यों मुझे भाव दें, वह जैसे खुद को तसल्ली देते हुये बताती है यह तो इस हाथ दे उस हाथ ले वाला सौदा है पर लोक डाउन की बेगारी ने साबित कर दिया कि एक रंडी आखिर रंडी ही होती है जिसका कोई सगा नहीं होता.

फर्क धंधे के तरीकों का

लक्ष्मी की खीझ अपनी जगह सही है लेकिन उसकी बातों से एक बात तो समझ आती है कि कालगर्ल दो तरह की होती हैं एक वे जो मर्जी से धंधा करतीं हैं और दूसरी वे जो मजबूरी के चलते इस दलदल में आती हैं. हाई टेक कालगर्ल्स उतनी परेशानी में नहीं हैं जितनी में कि  लक्ष्मी जैसी हैं जिनकी गुजर का जरिया ही रोज रोज जिस्म बेचना है. इन्हें ज्यादा पैसा नहीं मिलता है कई बार तो दिन में 200– 300 रु ही मिल जाएं तो ही इनके घर का चूल्हा जल पाता है.

कमाठीपुरा और सोनागाछी जैसे इलाकों में लक्ष्मी जैसी ही सेक्स वर्कर हैं जबकि फाइव स्टार होटलों, स्पा, मसाज सेंटर्स, फार्म हाउसों और खुद के आलीशान फ्लेट्स से धंधा करने बालियों पर लॉकडाउन का कोई खास असर नहीं पड़ा है. यह ठीक वैसी ही स्थिति है कि अमीर और आम मध्यांवर्गीयो पर लॉकडाउन बेअसर है लेकिन मारा गरीब मजदूर जा रहा है.

हाइटैक कालगर्ल्स की तादाद 10 फीसदी ही है जबकि रोजाना कमाने खाने वालियों की 90 फीसदी है जो बद से बदतर हालत में लॉकडाउन के बाद आ गई हैं और ऐसा लगता नहीं कि अभी एकाध साल और ये उजड़ती मंडिया आबाद हो पाएंगी.

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दूसरों की जिस्मानी भूख मिटाने बाली इन सेक्स वर्कर्स के पेट की भूख खैरात के खाने से अगर जैसे तैसे मिट पा रही है तो इसकी वजह इस धंधे का गैर कानूनी होना भी है और इन्हें पापिन करार देना भी है.

योजनाओं का भी फायदा नहीं

इन सेक्स वर्कर्स की गिनती दिहाड़ी मजदूरों में नहीं होती इसलिए इन्हें सरकारी योजनाओं का फायदा भी न के बराबर ही मिलता है. सेक्स वर्कर्स के भले के लिए काम करने बाली सबसे बड़ी एजेंसी भारतीय पतिता उद्धार सभा की दिल्ली इकाई के सचिव इकबाल अहमद की मानें तो सरकार की जनधन और सेहत समेत किसी योजना का लाभ सेक्स वर्कर्स को नहीं मिल पा रहा है क्योंकि अधिकांश के पास न तो आधार कार्ड हैं और न ही राशन कार्ड हैं और न ही इनके बेंक खाते हैं.

बक़ौल इकबाल अहमद लॉकडाउन के मुश्किल वक्त में कई संगठन बाले आते हैं और थोड़ा बहुत सामान देकर चले जाते हैं पर उनकी असल मंशा फोटो खिंचाने की होती है. राशन मिल भी जाये तो सेक्स वर्कर्स के पास उसे पकाने न तो गेस सिलेन्डर हैं और न ही केरोसिन के लिए पैसे हैं. इस पर भी दिक्कत यह कि अधिकांश सामान देने बाले नीचे से ही सामान देकर चले जाते हैं जिससे तीसरे चौथे माले पर रहने बालियों को सामान मिल ही नहीं पाता.

इसी संस्था के अध्यक्ष खैराती लाल भोला की मानें तो लॉकडाउन के बाद उन्हें देश भर से सेक्स वर्कर्स के फोन आए और उन्होने अपनी समस्याएँ बताईं जिनसे मैंने पत्र द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्वास्थ मंत्री हर्षवर्धन को अवगत कराया लेकिन अभी तक कोई जबाब मुझे इनसे नहीं मिला है. गौरतलब है कि देश में कोई 1100 रेड लाइट इलाके हैं. खैराती लाल पहले भी सेक्स वर्कर्स की परेशानियों को लेकर सभी सांसदों को चिट्ठी लिख चुके हैं जिससे सेक्स वर्कर्स का हेल्थ कार्ड बन सके क्योंकि अस्पताल में जब ये खुद को रेड लाइट इलाके का बताती हैं तो हर कोई इनसे कन्नी काटने लगता है.

अब लॉकडाउन के वक्त में सेक्स वर्कर्स की बदहाली भुखमरी के जरिये भी उजागर हो रही है तो बारी सरकार की है कि वह इनके बाबत संजीदगी से सोचे और इनके भले के लिए कदम उठाए क्योंकि ये भी समाज का अहम हिस्सा हैं.

MRI मशीन में क्यों 20 साल पहले कराया गया संभोग!, जानिए दिलचस्प वजह

यकीनन आपको इस बात पर विश्वास ना हुआ होगा लेकिन ये हकीकत है. वैज्ञानिकों की एक टीम ने वास्तव में लोगों से मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) स्कैनर के अंदर सेक्स करने के लिए कहा था ताकि वे यह पता लगा सकें कि ‘सहवास के दौरान पुरुष और महिला के जननांगों की तस्वीरें लेना संभव है या नहीं?’

20 साल पहले ऐसा हुआ था और अब ‘सहवास और महिला यौन उत्तेजना के दौरान पुरुष और महिला जननांगों के मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग’ शीर्षक का लेख मेडिकल जर्नल बीएमजे के सबसे अधिक डाउनलोड किए गए लेखों में से एक बन गया है.

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इसमें जिस बात का पता चला शायद ही वह चांद पर इंसान के कदम रखने जितनी हो, लेकिन इस रिसर्च के पेपर्स पॉपुलर हो गए हैं. शायद यह इसलिए क्योंकि मुफ्त में लोगों का आकर्षण स्क्रीन पर सहवास देखने की संभावना का हो. फिर चाहे देखने में सब ब्लैक एंड व्हाइट जैसा क्यों ना प्रतीत हो.

डच वैज्ञानिकों की टीम द्वारा किए गए इस प्रकार के प्रयोगों में से एक का उद्देश्य यह पता लगाना था कि संभोग और महिला यौन उत्तेजना के दौरान शरीर रचना के बारे में पूर्व व वर्तमान विचार मान्यताओं पर आधारित हैं या तथ्यों पर.

मुख्य निष्कर्ष 13 प्रयोगों में से हैं, जिसमें से आठ दंपति और तीन एकल महिलाओं के साथ किए गए ‘मिशनरी पोजीशन’ में सेक्स के दौरान पुरुष यौन अंग एक बूमरैंग के आकार का प्रतीत होता है. इसमें यह भी पाया गया कि यौन उत्तेजना के दौरान गर्भाशय का आकर बढ़ता नहीं है. इस प्रयोग के लिए 8 कपल को खास तौर से बुलाया गया था. इनमें 3 सिंगल महिलाएं थीं जिन पर 13 तरह के प्रयोग किए गए थे. रिसर्च के लिए तीन जोड़ों ने MRI स्कैनर के अंदर दो बार सेक्स किया और सिंगल लड़कियों ने पार्टनर के बिना और्गेज्म महसूस किया.

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नीदरलैंड के एक यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में ये रिसर्च किया गया था और जोड़ों को न्शारीरिक बनावट के मुताबिक चुना गया था जो कि मशीन में फिट हो सकें. प्रयोग के दौरान स्कैनर को चारों तरफ से परदे में रखा गया था ताकि उन्हें परेशानी न हो. स्कैनर के जरिए महिलाओं और पुरुषों की ऑर्गेज्म से पहले और बाद की अलग-अलग तस्वीरें ली गईं जिन पर साइड में बने कंट्रोल रूम में बैठे रिसर्चर नजर रख रहे थे. मशीन के अंदर महिलाओं के मुकाबले पुरुषों को सेक्स करने में दिक्कत हुई और एक जोड़े के अलावा सबने वियाग्रा का इस्तेमाल किया.

रिसर्च टीम के सामने बहुत पुरानी धारणा टूट गई कि सेक्सुअल उत्तेजना के समय यूटरस में फैलाव आता है. ये भी देखा गया कि मिशनरी पोजीशन में संबंध बनाते समय पुरुषों के अंग स्ट्रेट या एस शेप में नहीं बल्कि बूमरैंग शेप में हो जाते हैं. एनाटॉमी की तस्वीरें प्राप्त करके इस रिसर्च को पूरा करने में एक साल का समय लगा.

इस रिसर्च को 2000 में एलजी नोबेल अवौर्ड मिला. द बीएमजे मैगजीन के डिप्टी एडिटर के रूप में रिटायर हुए डौक्टर टोनी डेलमौथ ने इस साल के क्रिसमस अंक में इसकी लोकप्रियता के बारे में लेख लिखा है.

वे लिखते हैं कि लोग मुफ्त में इसकी तस्वीरें देखने को बेताब रहते थे. आम लोगों से लेकर वैज्ञानिकों तक सभी इसे पाना चाहते थे. MRI स्कैनर मशीन में सेक्स के विषय को लेकर की गई इस रिसर्च ने बिक्री के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे. डेलमौथ कहते हैं कि 20 साल बाद भी उस आर्टिकल को पढ़ना उतना ही दिलचस्प है.

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