जब बेड पर अग्रैसिव हो पति

जब से देश में फिल्मों के साथसाथ वैब सीरीज बनने का सिलसिला शुरू हुआ है, तब से उन में गालीगलौज, गोलीबारी और गरमागरम सीन दिखाने का मानो लाइसैंस मिल गया है. ऐसी ही एक वैब सीरीज आई थी ‘मिर्जापुर सीजन 1’, जिस में मुन्ना त्रिपाठी नाम का किरदार अपने घर की नौकरानी को भी नहीं छोड़ता है.

नशे में वह बिस्तर पर दरिंदा बन जाता है और नौकरानी लड़की घर की भाभी के सामने हाथ जोड़ कर कहती है कि वह मुन्ना का बिस्तर गरम नहीं करेगी, क्योंकि वह उसे पूरी तरह निचोड़ देता है और जिस्म का बुरा हाल कर देता है.

किसी लड़की को कोई मर्द पूरी तरह से संतुष्ट कर दे, यह सब सुनने में बहुत अच्छा लगता है और पहली बार में यही जताता है कि जब कोई लड़की या औरत बिस्तर पर संतुष्ट हो जाती है, तो अपने पार्टनर का साथ पूरी जिंदगी निभाती है.

पर, जब यही मर्द पार्टनर शैतान बन कर उस के जिस्म पर हावी हो जाता है, उसे नोंच डालता है, तो वह ‘मिर्जापुर’ वाली नौकरानी लड़की की तरह हाथ जोड़ जाती है.

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यह तो फिल्मी सीन है या समस्या है, पर अगर असली जिंदगी में कोई औरत या लड़की किसी के सामने ऐसी ही गुहार लगाए तो क्या होगा? दिल्ली प्रैस की लोकप्रिय पत्रिका ‘सरस सलिल’ के एक कौलम ‘सच्च्ची सलाह’ में बहुत सी पाठिकाएं ऐसे ही सवाल करती हैं. जैसे एक औरत का सवाल आया था कि ‘मैं 36 साल की शादीशुदा औरत हूं. मेरे 2 बच्चे हैं. मेरे पति सैक्स के दौरान काफी जोश में आ जाते हैं. वे मेरे शरीर को खेल का मैदान बना देते हैं और हवस के जोश में मेरे बदन पर यहांवहां काटते हैं और नाखून से नोंचते हैं.

‘इस से मु झे काफी दर्द होता है. कभीकभी तो मेरी नाभि भी हिल जाती है. जब भी मैं उन से अपने दिल का हाल बताती हूं, तो उन का एक ही जवाब होता है कि हमबिस्तरी के दौरान वे खुद पर काबू नहीं रख पाते हैं. मैं क्या करूं?’

ऐसे सवाल का अमूमन जवाब दिया जाता है कि ‘बहुत से जोड़े इस तरह की अग्रैसिव हमबिस्तरी का मजा लेते हैं, पर इस में उन दोनों की रजामंदी होना जरूरी है, पर चूंकि यह आप की इच्छा के मुताबिक नहीं हो रहा है और आप के लिए मजे से ज्यादा सजा बन गया है, तो पति को प्यार से सम झाएं. अगर वह नहीं मानता है, और आप को ज्यादा सताता है तो किसी माहिर काउंसलर से सलाह लें.’

ऐसा क्यों होता है कि दिनभर शांत सा दिखने वाला पति बिस्तर पर इतना ज्यादा उतावला हो जाता है कि पत्नी ‘हायहाय’ करती रह जाती है? यह ‘हायहाय’ तब और ज्यादा भयावह हो जाती है, जब कोई पत्नी रात में अपने ही बैडरूम में घुसने से पहले कतराती है. उसे पति द्वारा खरीदा हुआ एक ‘सैक्स गुलाम’ सम झ लिया जाता है. सैक्स के नाम पर वह उसे थप्पड़ मारता है, दांतों से काटता है, छाती पर जख्म दे देता है और नाजुक अंग को भी नहीं छोड़ता है.

सैक्स में पति का अग्रैसिव होना किसी हद तक दुखदायी नहीं होता है, क्योंकि एक रिसर्च के मुताबिक, 70 फीसदी लोग इस हद तक रफ सैक्स या ‘बिस्तर पर बदमाशी’ को ऐंजौय करते हैं कि वे अपने पार्टनर खासकर महिला पार्टनर को बांधने से ले कर कई ऐसी चीजों का इस्तेमाल करते हैं, जिस से दोनों पार्टनर को भरपूर मजा मिलता है.

लेकिन, जब इस में महिला पार्टनर की रजामंदी न हो तो यह सैक्स नहीं, बल्कि सामने वाले को चोट पहुंचाना माना जाता है. लिहाजा, आप को इस बात का ध्यान रखना होगा कि आप जबरदस्ती कुछ न करें. जो चीजें करना आप के पार्टनर को पसंद न हों, तो उस पर किसी तरह का दबाव न बनाएं. इस के लिए पार्टनर के साथ बात करना बेहद जरूरी है.

अल्फा वन एंड्रोलौजी के डायरैक्टर और फैलो औफ यूरोपियन कौंसिल औफ सैक्सुअल मैडिसिन के डाक्टर अनूप धीर का मानना है, ‘शादी के बाद सैक्स को ले कर मची कलह तब ज्यादा जोर पकड़ती है, जब कोई पति अपनी पत्नी के सामने बिस्तर पर ऐसी डिमांड रखता है, जो प्यार करना तो बिलकुल नहीं होती है. पत्नी ऐसी डिमांड को सिरे से खारिज कर देती है.

‘सही कहें तो पति की ऐसी मांग बिलकुल नाजायज होती है, जबकि उन के दिमाग में यह घुस चुका होता है कि सैक्स करने का यही तरीका उन्हें संतुष्ट कर सकता है या मजा दे सकता है और वे बिस्तर पर आक्रामक हो जाते हैं.

‘जब पत्नी अपने पति की ऐसी बेहूदा मांग को पूरा करने से मना कर देती है, तो वे किसी भी जायज और नाजायज तरीके से अपनी बात मनवाने की कोशिश करते हैं, जिस में जिस्मानी चोट पहुंचाने के साथसाथ जोरजबरदस्ती करना भी शामिल रहता है.

‘इस से शादी पर बहुत बुरा असर पड़ता है. कभीकभी तो बात तलाक लेने तक पहुंच जाती है. लिहाजा, पति की ऐसी दरिंदगी पर पत्नी को किसी काउंसलर का सहारा लेना चाहिए और अगर बात न बने तो फिर पुलिस या महिला आयोग की शरण में जाना चाहिए.’

बहुत से पति अपनी पत्नी को बैडरूम में ‘स्वीटहार्ट’ कह कर पुकारते हैं. जब वही ‘स्वीटहार्ट’ बिस्तर पर पति से संबंध बनाते हुए ‘स्वीट सैक्स’ चाहती हैं, तो पति को उन की भावनाओं का खयाल रखना चाहिए और अपने प्यार के पलों को हवस के जोश में रौंदने से बचना चाहिए.

इस उम्र में बढ़ती जाती है सेक्स की इच्छा

60 साल से अधिक उम्र के बुजुर्ग यौन संबंध बनाने को लेकर ज्यादा इच्छुक रहते हैं. हालिया शोध में यह बात सामने आई है. अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. क्रिस्टीन मिलरोड द्वारा किए गए शोध के मुताबिक, 60 की उम्र लांघने के बाद बुजुर्ग यौन संबंध बनाते वक्त अनिवार्य सुरक्षा लेना भी जरूरी नहीं समझते.

पैसे देकर यौन संबंध बनाने वाले 60 से 84 वर्ष के बुजुर्गो में यह देखने को मिला है कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, उनकी यौन संबंध बनाने की इच्छा भी बढ़ती जाती है. वे बार-बार यौन संबंध बनाने के लिए पैसे खर्च करते हैं. वे ज्यादा से ज्यादा बार अपने पेड-पार्टनर के साथ असुरक्षित यौन संबंध बनाने के इच्छुक रहते हैं.

मिलरोड के मुताबिक, लोगों के बीच यह आम धारणा है कि बुजुर्गो में यौन संबंध बनाने के प्रति रुचि कम हो जाती है और वे रुपये खर्च कर संबंध बनाने के लिए साथी की तलाश नहीं करते हैं. परन्तु यह सही नहीं है. युवाओं के मुकाबले बुजुर्ग अपने पेड पार्टनर के साथ संबंध बनाते वक्त कम से कम एहतियात बरतने का प्रयास करते हैं.

डॉक्टर क्रिस्टीन मिलरोड व पोर्टलैंड विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र के प्रोफेसर मार्टिन मोंटो ने 60 से 84 वर्ष की उम्र के बीच के उन 208 बुजुर्गो पर यह सर्वेक्षण किया, जो पैसे देकर यौन सबंध बनाते हैं. अध्ययन के दौरान पाया गया कि 59.2 प्रतिशत बुजुर्ग ऐसे हैं, जो हमेशा सबंध बनाते वक्त कंडोम का इस्तेमाल करना जरूरी नहीं समझते. करीब 95 प्रतिशत बुजुर्ग हस्तमैथुन करते वक्त सुरक्षा नहीं बरतते. जबकि 91 प्रतिशत मुखमैथुन के दौरान सुरक्षा लेना जरूरी नहीं समझते.

31.1 प्रतिशत बुजुर्गों ने बताया कि जीवन काल के दौरान वे यौन संक्रमण का शिकार हुए, जबकि 29.2 प्रतिशत लोगों ने बताया कि वे अपनी पसंदीदा पेड पार्टनर के साथ बार-बार संबंध बनाते हैं.

मिलरोड और मोंटो ने यह सलाह दी कि स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोग बुजुर्गो में संक्रमण संबंधित बीमारी का इलाज करते वक्त उनके पार्टनर के बारे में जरूर पूछें और उनसे सुरक्षित यौन संबंध बनाने के तरीकों के बारे में बताएं. चिकित्सकीय एवं मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों को यह कभी भी मान कर नहीं चलना चाहिए कि व्यक्ति बुजुर्ग है, तो वह पेड-संबंध नहीं बनाएगा.

खुशहाल सेक्स लाइफ यानी खुशियों का खजाना

सफल सेक्स जीवन सचमुच खुशियों का खजाना है. यह बात सिर्फ मनोविद ही नहीं कहते बल्कि शरीर विज्ञानी भी इस सच्चाई की तस्दीक करते हैं. सेक्स हमारे लिए फायदेमंद क्यों हैै यह जानना किसी रहस्य को उद्घाटित करना नहीं है बल्कि सहज और खुशियों से भरी जिंदगी को जीना है.

सेक्स एक अद्भुत अनुभूति है, जो न सिर्फ हमें मानसिक रूप से मजबूत बनाती है, बल्कि कई रोगों से भी हमारा बचाव करती है. यदि लोग इस तथ्य को समझ जाएं तो समाज की बहुत-सी समस्याएं हल हो सकती हैं साथ ही लोगों में एक सकारात्मक ऊर्जा संचरित हो उसका इस्तेमाल रचनात्मक कार्यों में किया जा सकता है.

सेक्स पति-पत्नी के रिश्ते की प्रगाढ़ता का आईना है. यदि सेक्स-जीवन अच्छा है तो जाहिर है पूरा दांपत्य-जीवन भी सुखी होगा और जब दांपत्य-जीवन सुखमय होगा तो उसका सकारात्मक प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र पर पड़ेगा. क्योंकि सेक्स एक बहुत बड़ा -स्ट्रेस रिलीवर’ है. शरीर में तनाव पैदा करने वाले जो हार्मोंस होते हैं, सेक्स के जरिए उनका स्तर काफी हद तक कम हो जाता है और व्यक्ति तनावमुक्त हो जाता है. इसके अलावा तनाव से होनेवाली बीमारियों से भी वह बचा रहता है. जैसे सोरायसिस, अस्थमा, उच्च रक्तचाप आदि.

सेक्स एक बेहतरीन व्यायाम भी है. खासतौर से हृदय के लिए यह एक अच्छा व्यायाम साबित होता है. शोधों से यह साबित हो चुका है कि जिन लोगों के सेक्स-संबंध अच्छे व सामान्य होते हैं, उनमें हार्ट-अटैक की संभावना बहुत कम हो जाती है क्योंकि सेक्स की क्रिया कार्डियो पल्मोनरी एक्सरसाइज के समान ही होती है जिससे रक्त संचारण अच्छा होता है तथा धमनियों में कोलेस्ट्राॅल भी नहीं जमता. सेक्स को जितना शारीरिक फायदा है उतना ही मानिसक फायदा भी है.

सेक्स साथी की नज़दीकी से अकेलेपन की भावना दूर होती है और मन प्रफुल्लित रहता है. सेक्स के दौरान या उससे पहले जो ‘फोर प्ले’ होता है, वह रक्तसंचार में वृद्धि कर वही लाभ देता है जो मालिश से मिलता है. अधिकतर पुरुष बिना फोर प्ले के ही अपनी पत्नी से संबंध बना लेते हैं जिससे उनकी पत्नियों को काफी तकलीफ होती है, क्योंकि पुरुष सेक्स के लिए जल्दी तैयार हो जाते हैं, जबकि स्त्रियां प्यार भरी बातें व स्पर्श को महसूस करकें इस क्रिया के लिए तैयार होती हैं. पर पुरुष इसे समझे बिना यही सोचते हैं कि वे जैसा महसूस करते हैं, उनकी पत्नियां भी वही उत्तेजना महसूस करती होंगी.

इन सबके अलावा जिन लोगों का सेक्स जीवन अच्छा होता है, वे स्वभाव से शांत व खुशमिज़ाज रहते हैं, क्योंकि सेक्स जीवन का असर जीवन के हर क्षेत्र पर पड़ता है. जिसका सेक्स जीवन अच्छा नहीं होता, वे आगे चलकर चिड़चिड़े हो जाते हैं.

फायदों की फेहरिस्त

– अच्छे सेक्स के बाद अच्छी नींद आती है और अच्छी नींद के अपने अनंत फायदे होते हैं.

– उच्च रक्तचाप वालों के लिए भी अच्छा व नियमित सेक्स बहुत फायदेमंद होता है.

– स्वस्थ व सामान्य सेक्स संबंध व्यक्ति के स्वाभिमान तथा आत्मविश्वास को बढ़ाता है. यह आत्मविश्वास जीवन के अन्य क्षेत्रों में बहुत लाभ पहुंचाता है.

– सेक्स ‘माइग्रेन’ की एक बहुत ही अच्छी दवा है. अक्सर शादी से पहले लड़कियां माइग्रेन से पीड़ित होती हैं, इसकी प्रमुख वजह होती है काम-वासना का दमन. इसके अलावा काम-भावना के दमन से और भी कई शारीरिक व मानसिक समस्याएं पैदा हो जाती हैं. जैसे हिस्टीरिया, स्प्लिट पर्सनैलिटी. यदि शादी के बाद सेक्स जीवन अच्छा हो तो इन समस्याओें से दूर-दूर तक वास्ता नहीं पड़ता.

– लड़कियों को मासिक के दौरान पेडू में जो दर्द होता है, वह शादी के बाद सेक्स से दूर हो सकता है, क्योंकि पुरुषों के वीर्य में  ‘प्रोस्टा ग्लैंडिन’ होता है जो एक दर्दनिवारक हार्मोन होता है.

– जो लोग नियमित रूप से सप्ताह में दो बार सेक्स करते हैं, उनके शरीर में इक्यूलोब्यूलिन की मात्रा अधिक पाई जाती है, जो सर्दी से शरीर की सुरक्षा करता है.

– अच्छे सेक्स से फर्टिलिटी भी बढ़ जाती है. यदि आप बच्चा चाहते हैं, तो सेक्स के दौरान पोजीशन बदलते रहें. सेक्स जितना अधिक आनंददायक होता है, पुरुष के शुक्राणु उतने ही फर्टाइल होते हैं.

– सेक्स एक बेहतरीन पेनकिलर होता है. शरीर के किसी भी अंग में दर्द हो और उसी समय आप अच्छे सेक्स का आनंद उठा लें, तो आपका दर्द गायब हो जाएगा.

उदासी, सेक्स का मजा भी किरकिरा कर देती है

वसीम बरेलवी का एक शेर है-हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल / उदासियों की कोई शहरियत नहीं होती. मतलब यह कि उदास होंगे तो कुछ भी अच्छा नहीं लगेगा. उदासी एक ऐसी नकारात्मकता है जो हर चीज को अपने रंग में रंग लेती है . यहां तक कि सेक्स जैसी सनसनाती चाहत भी उदासी के मनोभाव में न सिर्फ फीकी बल्कि जोशहीन हो जाती है. क्योंकि उदासी होती ही इतनी नकारात्मक भावना है . इसलिए उदास हों तो सेक्स करने से बचें क्योंकि उदासी सेक्स का मजा तो किरकिरा कर ही देगी,भविष्य के लिए भी इसके प्रति अरुचि की गांठ बना सकती है.

लेकिन कई बार दांपत्य जीवन में विशेषकर महिलाओं का व्यवहार उदासीनता बढ़ाने वाला होता है. कई स्त्रियां यौनक्रिया आरंभ होने से पूर्व या इसके दौरान भी प्यार का माहौल बनाने  की जगह शिकवे-शिकायतें शुरू कर देती हैं या दूसरी निरर्थक घरेलू बातें ले बैठती हैं.स्त्री का ऐसा व्यवहार पुरुष में सहवास के प्रति उदासीनता भर देती है. उसकी यौनेच्छा कमजोर हो जाती है. पुरुष की भावनाएं पूरी तरह ऊफान पर नहीं आ पातीं. जिस वेग से उसे सहवास करना चाहिए, वह कर नहीं पाता है. ऐसा भी प्रायः देखा गया है कि शिश्न में उत्थान तक नहीं आता या कमजोर होता है. ऐसी स्थितियां बार-बार आने पर पुरुष को सहवास से उदासीनता होने लगती है. संसर्ग से उसका मन उचाट हो जाता है. ऐसी बात नहीं कि स्त्री को ऐसी अवस्था नहीं भुगतनी पड़ती. उपर्युक्त हालात बनने से उसे भी पुरुष से शारीरिक संबंध बनाने में खुशी की बजाय परेशानी होने लगती है. सहवास में उसे भी रुचि नहीं रह जाती. यही अरुचि उसे उदासीनता की अवस्था में ला पटकती है.

स्त्री चाहती है कि उसके शरीर रूपी पुस्तक में, जिसमें अनेकानेक अध्याय हैं, उनके महज पन्ने पलटकर न छोड़ दिये जाएं. वह रोज बदले हुए पुरुष (कहने का मतलब हर बार नये तरीके से) के साथ संबंध बनाने की कामनाओं को अपने मन में समेटे होती है. पुरुष के कई रूपों को देखने की उसे इच्छा होती है. यह तभी संभव हो सकता है, जब उसका पति या प्रेमी हर बार नये तरीके से सहवास करे. अगर आप छोटी-छोटी बातों पर उदास हो जाते हैं तो यह जीवन के प्रति नैराश्य की भावना है और आपके सेक्स व्यवहार के लिए बेहद हानिकारक. उदासी और उत्तेजना एक-दूसरे के जन्मजात शत्रु हैं. उदास रहने वाला व्यक्ति कभी भी बिस्तर पर बहुत सफल नहीं हो पाता . अतः उदासी ओढ़े रखना कतई अच्छा नहीं है.

तनावों को शयनकक्ष से दूर रखें

चूँकि आज तनाव के कारण हैं मसलन- आर्थिक विषमताएं बढ़ गई हैं. हर कोई अपने में फोकस है. जीवन में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा है. सवाल है क्या इस तनावों के बीच उदासी से बचा जा सकता है ? क्या इस सबके बीच लरजता हुआ सेक्स करना संभव है. जवाब है नहीं . सेक्स की तो छोड़िये लगातार तनाव में रहने के चलते कई तरह की बीमारियों से भी ग्रस्त हो सकते हैं. मसलन ब्लड प्रेशर का बढ़ना, हृदय रोग, पागलपन तथा कई मानसिक बीमारियां भी निरंतर तनाव में रहने के चलते हो जाती हैं. ऐसे में यह तनाव सहवास के लिए बिल्कुल प्रतिकूल है. यहां तक कि तनाव से ग्रस्त व्यक्ति हस्तमैथुन करके भी पूरी तरह से चैन नहीं पता.

इसीलिए विशेषज्ञ कहते हैं कि तनाव में हों तो सेक्स कभी न करें. क्योंकि तनाव के कारण सहवास को सफलतापूर्वक संपन्न करना संभव नहीं है. ऐसी अवस्था में यौन क्रिया करने से कई गलतफहमियां हो जाएंगी, जो बाद में मानसिक यौन रोग में परिवर्तित हो सकती हैं. इस तथ्य को जान लेना अति आवश्यक है कि अगर मस्तिष्क तनावों से भरा रहेगा तो सेक्स की भावनाएं ही नहीं आयेंगी. इसका मतलब है कि व्यक्ति सेक्स के लिए भावनात्मक रूप से तैयार ही नहीं होगा. ऐसा व्यक्ति पूरी क्षमता से सहवास को सम्पन्न नहीं कर सकता. अगर सहवास क्रिया से शारीरिक और मानसिक संतुष्टि नहीं होती तो इसके अनेक दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं. शरीर में थकान का बना रहना भी इसका एक दुष्परिणाम है. इससे स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ सकता है. काम में दिल का न लगना मानसिक तनाव का ही कारण है.

तनावमुक्त सहवास को ही एक किस्म की संभोग समाधि कहते हैं. समाधि का अर्थ होता है-सांसारिक तनावों से मुक्त होकर क्रिया करना. यौन की क्रिया को भी तनावों से मुक्त रहकर करना सुखद माना गया है. तनावमुक्त सहवास से व्यक्ति स्वच्छ तथा ताजा हो जाता है. नींद अच्छी से आती है. मस्तिष्क पूर्ण रूप से क्रियाशील बना रहता है. जिस तरह मंदिर के भीतर प्रवेश करने से पूर्व जूते उतारकर पांव साफ किए जाते हैं और फिर भीतर जाया जाता है, ठीक इसी प्रकार रात को शयनकक्ष में पत्नी के पास जाने से पूर्व मानसिक तनावों की गर्द को हटा देना चाहिए. निश्चय ही इससे मनवांछित सुख की प्राप्ति होगी. ऐसा न करने की स्थिति में निश्चित रूप से सहवास में पुरुष को ही विफलता नहीं मिलेगी बल्कि स्त्री को भी संतुष्टि प्राप्त नहीं हो पायेगी.

क्या है जेंडर इक्वैलिटी और ज्यादा सेक्स का संबंध

औस्टेलियाई महिलाओं के औसतन 11 सेक्स पार्टनर्स होते हैं और अमेरिकी महिलाओं के 4. भारतीय महिलाओं का एक ही सेक्स पार्टनर होता है. ये आंकड़े फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के रौय बौमीस्टर के अध्ययन को सही साबित करते हैं. उनका अध्ययन, सेक्शुअल इकोनौमिक्स : ए रिसर्च बेस्ड थ्योरी औफ सेक्शुअल इंटरैक्शन और व्हाय दि मैन बायज डिनर, कहता है कि ऐसे देश, जहां लैंगिक समानता (जेंडर इक्वैलिटी) का स्तर ऊंचा है, वहां महिलाओं के एक से अधिक सेक्शुअल पार्टनर्स बनते हैं.

वे जनरल औफ सोशल साइकोलौजी सर्वेइंग में प्रकाशित उस रिसर्च की ओर ध्यान दिलाते हैं, जिसमें 37 देशों के 3 लाख लोगों पर सर्वे करने के बाद पाया गया था कि जिन देशों में लैंगिक समानता का स्तर ऊंचा है, वहां महिलाएं कैशुअल सेक्स में ज्यादा लिप्त थीं. हमने जानने की कोशिश की कि भारतीय महिलाओं के संदर्भ में इसका क्या औचित्य है?

सेक्स, आपूर्ति व मांग से अछूता नहीं है

इस असमानता के पीछे कई सांस्कृतिक और आर्थिक कारण हैं. रौय की थ्योरी कहती है कि (औसतन) महिलाओं की तुलना में पुरुषों में सेक्स की चाहत ज्यादा होती है और रिश्तों में सेक्स तभी संभव है, जब महिला यह चाहे. यहां भी आपूर्ति और मांग का नियम लागू होता है. जिस लिंग का अभाव होता है, उसके पास शक्ति होती है. ‘‘यदि महिलाओं के पास खुद पैसे कमाने के ज्यादा अवसर नहीं हैं तो वे सेक्स को बहुत मूल्यवान बनाए रखना चाहेंगी, क्योंकि सेक्स ही वह मुख्य चीज है, जो वे किसी पुरुष को दे सकती हैं,’’ रौय कहते हैं.

पुरुषों के लिए महिलाओं की सेक्शुएलिटी की बहुत अहमियत होती है; एक पुरुष जिसे किसी महिला से सेक्स की जरूरत है, उसे इसके बदले में उस महिला को कोई मूल्यवान चीज देनी होगी, जैसे-विवाह का प्रस्ताव. ‘‘ऐसे देश, जहां महिलाओं की दशा अच्छी नहीं है, महिलाएं सेक्स पर अंकुश रखती हैं, ताकि इसका मूल्य ऊंचा रहे और पुरुष सेक्स पाने के लिए ताउम्र प्रतिबद्घता का वचन दें,’’ रौय कहते हैं. ‘‘और पुरुष सेक्स के लिए कुछ भी कर सकते हैं.’’

साइकोलौजिस्ट की राय में

साइकोलौजिस्ट डा. छवि खन्ना रौय के निष्कर्षों से पूरी तरह सहमत हैं. ‘‘अध्ययन बताते हैं कि जहां लैंगिक समानता का स्तर ऊंचा है, वहां महिलाएं वर्जनाओं को तोड़ती हैं और वहां के सामाजिक नियम भी सेक्शुअल गतिविधियों को प्रतिबंधित नहीं करते. ऐसे समाज में महिलाएं कैशुअल सेक्स में लिप्त भी रहती हैं और उन्हें सेक्स संबंधों का पहला अनुभव भी अपेक्षाकृत कम उम्र में हो जाता है,’’ यह बताते हुए वे कहती हैं, ‘‘लैंगिक समानता से महिलाओं को अपनी सेक्शुएलिटी को अपनी इच्छा के अनुसार व्यक्त करने का अवसर मिलता है.’’

आम लोगों की राय में

इन्वेस्टमेंट बैंकर, प्रिया नायर, 28, कहती हैं कि मेरी परवरिश ऐसे परिवार में हुई है, जहां महिलाओं को बिल्कुल बराबरी के अधिकार मिलते हैं. उन्हें हमेशा से पता था कि उनकी इच्छाओं को उतना ही महत्व मिलेगा, जितना किसी पुरुष की इच्छा को मिलता. ‘‘इस अध्ययन के बारे में जानकर मुझे लगता है कि, क्योंकि मैं आत्मनिर्भर और बुद्घिमान हूं इसलिए मेरे पास पुरुष को देने के लिए सेक्स के अलावा भी बहुत कुछ है,’’ वे कहती हैं. ‘‘इसका ये भी मतलब है कि मैं इतनी आत्मविश्वासी और खुले विचारों की हूं कि किसी पुरुष को ये बता सकती हूं कि मैं क्या चाहती हूं.’’

वहीं मीडिया कंसल्टेंट, पुरंजय मेहता, 26, का मानना है कि भारत के संदर्भ में ये अध्ययन केवल शहरों के लिए सही है. ‘‘जब महिलाएं आत्मविश्वास के साथ अपनी सेक्शुएलिटी का अन्वेषण करती हैं, तब उनके ज्यादा सेक्शुअल पार्टनर्स बनते हैं. ऐसा छोटे कस्बों की युवतियों के साथ नहीं होता, क्योंकि उन्हें अब भी पारंपरिक, लैंगिक असमानता वाले मूल्यों के साथ परवरिश मिलती है.’’

वहीं साइकोलौजिस्ट डा. सोनाली गुप्ता रोहित की बातों से सहमत हैं. ‘‘यह सच है कि शहरों में लैंगिक समानता ज्यादा होती है और महिलाएं जो पाना चाहती हैं, खुलकर उसे पाने का प्रयास करती हैं,’’ वे कहती हैं. ‘‘मैं उनके एक से अधिक सेक्शुअल पार्टनर्स होने के बारे में तो नहीं कह सकती, पर ये जरूर कह सकती हूं कि ऐसी महिलाओं के साथ सेक्स एक आनंददायक प्रक्रिया होती है, क्योंकि उन्हें पता होता है कि उन्हें क्या चाहिए.’’

सेक्स रिश्तों के लिए कितना जरूरी

रिया और राहुल की नई शादी हुई थी पर राहुल पर काम का प्रेशर ज्यादा होने से वो रिया को वक़्त ही नहीं दे पा रहा था अक्सर उसे शहर से बाहर जाना पड़ता था संयुक्त परिवार होने के कारण रिया को भी ऑफिस और घर मे पूरा सामंजस्य बिठाना पड़ रहा था ऐसे में उनमें अक़्सर झगड़े होने लगे थे और नौबत यहाँ तक आ गयी कि रिया गुस्से में अपने मायके चली गई तब राहुल के एक दोस्त के कहने पर दोनों मैरिज कॉउंसलर के पास गए.

उसने दोनों का पक्ष सुनने के बाद दोनों से एक छोटा दो 3 दिन का ट्रिप प्लान करने की सलाह दी जहाँ सिर्फ वो दोनों हों और वहाँ से लौटकर मिलने को कहा.लौटकर आने तक दोनों का झगड़ा सुलझ गया था अब उन्हें उस कॉउंसलर के पास जाने की जरूरत ही नहीं थी.प्रश्न ये है कि इन तीन चार दिनों में उन दोनों के बीच क्या बदल गया ?

इसका सीधा सा जवाब है कि पति पत्नी का संबंध भले ही आत्मा से जुड़ा बँधन है फिर भी शारीरिक अंतरंगता इस रिश्ते के लिए बेहद महत्वपूर्ण है . जब भी इस रिश्ते में सेक्स की कमी होती है तो कहीं न कहीं अलगाव पनपने लगता है. चूँकि हम भारतीय समाज मे रहते हैं जहाँ पर इस विषय पर चर्चा करना आज भी वर्जित है ऐसे में इस बात को समझना और भी मुश्किल हो जाता है.जबकि ये एक स्वाभाविक ज़रूरत है जिसकी पूर्ति होना आवश्यक है.पति पत्नी के संबंधों की मजबूती के लिए इसके अलावा भी बहुत सी बातें जरूरी हैं पर इस पहलू को नज़रअंदाज़ तो कतई नहीं किया जा सकता है.

हर किसी के जीवन में कभी न कभी ये प्रश्न खड़ा होता है कि क्या शारिरिक संबंधों का शादी के रिश्ते में होना जरूरी है इसके बिना क्या ये रिश्ता खत्म हो जाएगा ? सवाल लाज़मी है जवाब भी उतना ही आसान .जी हाँ ये बहुत ही जरूरी है आपसी तालमेल के लिए.

इसी तरह सुमि और रजत की अरेंज्ड मैरिज हुई थी पर कुछ ही दिनों में दोनों में बात बात पर लड़ाइयाँ होने लगीं बात इतनी बढ़ी कि दोनों में बोलचाल बन्द हो गई .फिर किसी के कहने पर वो दोनों एक कॉउंसलर के पास गए दोनों से बात करके उसने उन्हें जो समस्या बताई उस से दोनों ही सहमत थे .असल में बात ये थी कि नई शादी के कुछ महीनों तो सब नया सा था तो दोनों को अच्छा लगता था फिर धीरे धीरे एक जैसा सब चलने से दोनों को ही सब उबाऊ लगने लगा जिसका सीधा असर उनके आपसी संबंधों पर पड़ने लगा.

रजत की इच्छा रहती कि कभी सुमि भी पहल करे ऐसा न होने पर वो एक मशीन की तरह एक ही ढर्रे पर यंत्रवत सब करता इस से न उसे संतुष्टि होती न ही सुमि को इसके उलट सुमि चाहती कि रजत उसे पहले खूब प्यार करे उसके बाद सेक्स की शुरुवात हो पर संकोच वश कह नही पाती इसके कारण दोनों के रिश्ते में परेशानी खड़ी हो गई .कुल मिलाकर बात ये है कि पति पत्नी के रिश्ते में मानसिक जुड़ाव जितना ज़रूरी है उस से भी ज़्यादा जरूरी है शारीरिक संबंधों का तालमेल वरना रिश्ते की गाड़ी को पटरी से उतरते देर नहीं लगती.इस बात को लेकर हर व्यक्ति का अपना नज़रिया होता है परंतु एक बात तय है कि ये प्यार जताने का एक तरीका है जब दो लोग एक दूसरे पर पूरा भरोसा कायम कर लेते हैं तभी आगे बढ़ते हैं .भारतीय समाज मे शादी के बाद ही शारीरिक संबंधों को जायज़ माना जाता है परंतु लिव इन के नए कॉन्सेप्ट ने इस सोच को काफी हद तक प्रभावित किया है.ऐसे में ये जानना बेहद आवश्यक हो जाता है कि किसी भी रिश्ते की सफलता के लिए शारीरिक संबंधों की भूमिका क्या होती है.

तनाव को दूर करने में कारगर

इस बात को लेकर कई शोध हुए हैं जिनमे ये बताया गया है कि सेक्स से मानसिक तनाव कम होता है.ऐसे में ये तनाव कम करने में मदद करता है और छोटे मोटे आपसी विवाद सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

आपसी सामंजस्य

किसी भी कपल की सेक्सुअल लाइफ ये पता लगता है कि उनकी आपसी साझेदारी और समझ का स्तर क्या है.किसी भी कपल की सेक्स लाइफ उनके बीच विश्वास का प्रतीक होती है.

असुरक्षा की भावना से मुक्ति

सेक्स रिश्ते में एक विश्वास क़ायम करता है जिस से एक दूसरे से दूर रहने पर भी साथ होने का अहसास बना रहता है .एक दूसरे को खो देने की जो असुरक्षा मन मे होती है उस भावना को ये दूर करता है.

प्यार जताने का तरीका

ये प्यार जताने का एक कारगर तरीका होता है. अंतरंग संबंध जितने मजबूत और स्वस्थ्य होते हैं रिश्ता भी उतना ही मजबूत होता है. जिन रिश्तों में सेक्स की कमी होती है अक्सर उन रिश्तों में तनाव होता है या कभी कभी तो अलगाव की स्थितियाँ भी निर्मित हो जाती हैं.

स्वास्थ्य के लिए लाभकारी

एक शोध में ये बात सामने आई है कि रोज एक बार सेक्स करने वाले लोग सेक्स से परहेज रखने वालों से ज़्यादा स्वस्थ्य और लंबा जीवन जीते हैं.सेक्स के दौरान शरीर से जो हार्मोन निकलते हैं वो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं.इस दौरान एक मिनट में लगभग पाँच कैलोरी खर्च होती है जिसके कारण ये व्यायाम जैसा लाभ देता है.

टीनएज में बेहद जरूरी है सेक्स एजुकेशन

युवाओं में भले ही पोर्नोग्राफी देखने का चलन बढ़ रहा हो, पर सेक्स एजुकेशन के नाम पर उन की जानकारी शून्य ही होती है. सेक्स एजुकेशन पोर्नोग्राफी से अलग होती है. इस की जानकारी टीनएज में जरूरी है. इस से लड़कियों को कई तरह की परेशानियों से बचाया जा सकता है.

16 साल की नेहा अपनी मामी के घर आई थी. उस के स्कूल में गरमी की छुट्टियां चल रही थीं. नेहा के मामामामी शहर में एक बड़े घर में रहते थे. घर का काम करने के लिए नौकरचाकर थे. एक दिन नेहा की मामी अपने किसी परिचित से मिलने चली गईं. घर पर नेहा और उस के मामा थे. दोनों टीवी पर एक फिल्म देख रहे थे. इसी बीच नेहा के मामा ने कहा कि आओ तुम्हें एक खेल खिलाते हैं. नेहा कुछ समझ नहीं पाई, लेकिन जो हुआ वह बहुत बुरा और रिश्तों को कलंकित करने वाला था. नेहा को इस का परिणाम पता ही नहीं था. मामा ने नेहा से कहा कि इस बात को वह किसी को न बताए. नेहा भी इस खेल को बुरा खेल समझ कर भूल गई थी.

इस के बाद नेहा का मन मामा के घर में नहीं लगा. कुछ ही दिनों बाद वह वापस अपने घर आ गई. समय बीतने लगा. इसी बीच नेहा की तबीयत कुछ खराब रहने लगी तो मां ने डाक्टर को दिखाया. डाक्टर ने कुछ टैस्ट किए और इस के बाद नेहा की मां को जो कुछ बताया उस पर उन्हें यकीन ही नहीं हुआ.

डाक्टर ने साफसाफ शब्दों में कह दिया कि नेहा मां बनने वाली है. डाक्टर और उस की मां ने जब नेहा से पूछा तो उस ने बताया कि किस तरह एक दिन मामा ने उस के साथ दुष्कर्म किया.

सेक्स की जानकारी जरूरी

स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. सुनीता चंद्रा कहती हैं, ‘‘इस तरह के मामले कोई अचंभे वाली बातें नहीं हैं. ऐसी बहुत सारी घटनाएं हम लोगों के सामने आती हैं, जिन में लड़की को पता ही नहीं चलता है कि उस के साथ क्या हुआ है. इसीलिए इस बात की जरूरत है कि किशोर उम्र में ही लड़की को सेक्स शिक्षा दी जाए. घर में मां और स्कूल में टीचर इस काम को सरलता से कर सकती हैं. मां और टीचर को पता होना चाहिए कि बच्चों को सेक्स की क्या और कितनी शिक्षा देनी चाहिए.’’

डाक्टर सुनीता का कहना है, ‘‘जिस तरह की बातें सामने आ रही हैं, उन से पता चलता है कि कम उम्र में लड़कियों का यौनशोषण उन के रिश्तेदारों या फिर घनिष्ठ दोस्तों द्वारा किया जाता है. इसलिए जरूरी है कि लड़की को 10 से 12 साल की उम्र के बीच यह बता दिया जाए कि सेक्स क्या होता है और यह बहलाफुसला कर किस तरह किया जाता है. लड़कियों को बताया जाना चाहिए कि वे किसी के साथ एकांत में न जाएं. अगर कभी इस तरह की कोई घटना घटती है तो लड़की मां को यह बता दे ताकि मां उस की मदद कर सके.’’

शारीरिक संबंधों में समझदारी

शारीरिक संबंध बनाने से यौनरोग हो सकते हैं, जिन का स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है. इन बीमारियों में एड्स जैसी जानलेवा लाइलाज बीमारियां भी शामिल हैं. इसलिए पेरैंट्स व टीचर्स को चाहिए कि वे घर व स्कूल में लड़कियों को गर्भनिरोधक गोलियों के बारे मेें बताएं कि इन का उपयोग कैसे और क्यों किया जाता है.

अधिकतर लड़कियों के साथ बलात्कार जैसी घटनाएं हो जाती हैं तो वे या तो मां बन जाती हैं या फिर आत्महत्या कर लेती हैं. उन्हें इस बात की जानकारी दी जानी चाहिए कि अब इस तरह की गोलियां भी आती हैं, जिन्हें खाने से अनचाहे गर्भ से नजात मिल सकती है. वैसे कई दवाएं अब आसानी से दवा की दुकानों पर भी उपलब्ध हैं. लेकिन दवा लेने से पहले बेहतर होगा कि आप किसी डाक्टर से मिल लें और जो भी पिल्स डाक्टर कहें वही लें.

डाक्टर सुनीता का कहना है कि प्राइवेट अस्पतालों में महिला डाक्टरों द्वारा एक दिन कुछ घंटे किशोरियों की परेशानियों को हल किया जाना चाहिए. यहां परिवार नियोजन की बात होनी चाहिए. स्कूलों को भी समयसमय पर डाक्टरों को साथ ले कर ऐसी चर्चा करानी चाहिए जिस से छात्र और टीचर दोनों को सही जानकारी मिल सके. बढ़ती उम्र की लड़कियों को कंडोम के बारे में बताना जरूरी होता है. यह केवल गर्भ ठहरने से ही नहीं रोकता, बल्कि यौनरोगों से भी बचाव करता है.

पीरियड्स में न घबराएं

किशोर उम्र में सब से बड़ी परेशानी लड़कियों में पीरियड्स को ले कर होती है. आमतौर पर पीरियड्स आने की उम्र 12 से 15 साल के बीच की होती है. अगर इस उम्र में पीरियड्स न आए तो डाक्टर की सलाह लेनी चाहिए.

डाक्टर सुनीता का कहना है कि पीरियड में देरी का कारण खानपान में कमी, आनुवंशिक जैसे मां और बहन को अगर पीरियड्स देर से आए होंगे तो उस के साथ भी देरी हो सकती है. कुछ बीमारियों के चलते भी ऐसा होता है. इन बीमारियों में गर्भाशय का न होना, उस का छोटा होना, अंडाशय में कमी होना, क्षय रोग और एनीमिया के कारण भी देरी हो सकती है. डाक्टर से सलाहमशवरा करने के बाद ही पता चलेगा कि सही कारण क्या है.

यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि  कभीकभी लड़की उस समय भी गर्भधारण कर लेती है जब उस के पीरियड्स नहीं होते हैं. डाक्टर सुनीता कहती हैं, ‘‘ऐसा तब होता है जब लड़की का शरीर गर्भधारण के योग्य हो जाता है, लेकिन पीरियड्स किसी कारण से नहीं आते हैं. यह नहीं सोचना चाहिए कि जब तक पीरियड्स नहीं होंगे, गर्भ नहीं ठहर सकता है.

पीरियड्स में कई दूसरी तरह की परेशानियां भी आती हैं. कभीकभी ये समय से शुरू तो हो जाते हैं लेकिन बीच में एकदो माह का गैप भी हो जाता है. शुरुआत में ये नौर्मल होते हैं, लेकिन यह परेशानी बारबार हो तो डाक्टर से मिलना जरूरी हो जाता है. कभीकभी पीरियड्स का समय तो ठीक होता है, लेकिन यह ज्यादा मात्रा में होते हैं. यदि ध्यान न दिया जाए तो लड़की का हीमोग्लोबिन कम हो जाता है और उस का विकास रुक हो जाता है.

डाक्टर सुनीता कहती हैं कि परेशानी की बात तो यह है कि कुछ लोग अपनी लड़कियों को डाक्टर के पास लाने से घबराते हैं. उन का मानना है कि अविवाहित लड़की की जांच कराने से उस के अंग को नुकसान हो सकता है. जिस से उस का होने वाला पति उस पर शक कर सकता है,  लेकिन अब ऐसा नहीं है. अल्ट्रासाउंड और दूसरे तरीकों से जांच बिना किसी नुकसान के हो सकती है.

बदलते समय के अनुसार करें ड्रैस का चुनाव

टीनएज में शरीर में बदलाव शुरू होता है. इस उम्र से ही सही तरह के इनरवियर का इस्तेमाल शुरू कर देना चाहिए. कौटन के इनरवियर पहनने चाहिए. एकदम फिटिंग वाले इनरवियर न पहनें. इस से बौडी के पार्ट की ग्रोथ रुक जाती है.

टीनएज में बौडी को ज्यादा डाइट की जरूरत होती है. ऐसे में शरीरकी जरूरत के हिसाब से डाइट लेनी चाहिए. खाने में जंकफूड से परहेज करें. खाने के साथसाथ ऐक्सरसाइज का भी ध्यान रखें. यह फिटनैस के लिए जरूरी है. फिट बौडी पर हर डै्रस अच्छी लगती है. शरीर की साफसफाई खासकर इनरपार्ट की बहुत जरूरी है. सफाई न होने से फंगस होने की आशंका बढ़ जाती है.

सेक्स लाइफ में हो इन चीजों की ‘नो एंट्री’

दिलीप ने जब रुही से यह कहा कि वह बिस्तर पर अब पहले जैसा साथ नहीं देती, तो वह यह सुन कर परेशान हो उठी. फिर रुही ने सैक्स ऐक्सपर्ट डा. चंद्रकिशोर कुंदरा से संपर्क किया. डा. कुंदरा के मुताबिक, सैक्स सफल दांपत्य जीवन का महत्त्वपूर्ण आधार है. इस की कमी पतिपत्नी के रिश्ते को प्रभावित करती है. पतिपत्नी की एकदूसरे के प्रति चाहत, लगाव, आकर्षण खत्म होने के कई कारण होते हैं जैसे शारीरिक, मानसिक, लाइफस्टाइल. ये सैक्स ड्राइव को कमजोर बनाते हैं.

तनाव:

औफिस, घर का वर्कलोड, आर्थिक समस्या, असमय खानपान आदि का सीधा असर तनाव के रूप में नजर आता है, जो हैल्थ के साथसाथ सैक्स लाइफ को भी प्रभावित करता है.

डिप्रैशन:

यह सैक्स का सब से बड़ा दुश्मन है. यह पतिपत्नी के संबंधों को प्रभावित करने के साथसाथ परिवार में कलह को भी जन्म देता है. डिप्रैशन के कारण वैसे ही सैक्स की इच्छा में कमी आ जाती है. ऊपर से डिप्रैशन की दवा का सेवन भी कामेच्छा को खत्म करने लगता है.

नींद पूरी न होना:

4-5 घंटे की नींद से हम फ्रैश फील नहीं कर पाते, जिस से धीरेधीरे हमारा स्टैमिना कम होने लगता है. इतना ही नहीं सैक्स में भी हमारा इंट्रैस्ट नहीं रहता है.

गलत खानपान:

वक्तबेवक्त खाना और जंक फूड व प्रोसैस्ड फूड का सेवन भी सैक्स ड्राइव को खत्म करता है.

टेस्टोस्टेरौन की कमी:

शरीर में मौजूद यह हारमोन हमारी सैक्स इच्छा को कंट्रोल करता है. इस की कमी से पतिपत्नी दोनों ही प्रभावित होते हैं.

बर्थ कंट्रोल पिल्स:

बर्थ पिल्स महिलाओं में टेस्टोस्टेरौन लैवल को कम करती हैं, जिस से महिलाओं में सैक्स संबंधों को ले कर विरक्ति हो जाती है. पतिपत्नी का दांपत्य जीवन तभी सफल होता है, जब सैक्स में दोनों एकदूसरे को सहयोग करें. सैक्स एक दोस्त की तरह भी जीवन में रंग भर देता है. शादीशुदा जिंदगी से प्यार की कशिश और इश्क का रोमांच खत्म होने लगा है तो सावधान हो जाएं.

यदि आप की सैक्स लाइफ अच्छी है तो इस का सकारात्मक प्रभाव आप की सेहत पर भी पड़ता है.

जानिए, सैक्स के सेहत से जुड़े कुछ फायदे:

शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा में राहत दिलाता है:

सैक्स के समय शरीर में हारमोन पैदा होते हैं, जो दर्द की अनुभूति कम करते हैं. भले ही कुछ समय के लिए.

सर्दीजुकाम के असर को कम करता है:

सैक्स गरमी, सर्दीजुकाम के प्रभाव को काफी हद तक कम कर देता है. अमेरिका स्थित ओहियो यूनिवर्सिटी के अध्ययन बताते हैं कि चुंबन एवं प्यारदुलार करने से रक्त में बीमारियों से लड़ने वाले टी सैल्स की तादाद बढ़ जाती है.

मानसिक तनाव को कम करता है:

सैक्स मन को शांति देने के साथसाथ मूड को भी बढि़या बनाने वाले हारमोन ऐंडोर्फिंस के उत्पादन में वृद्धि करता है. इस के मानसिक तनाव कम हो जाता है.

मासिकधर्म के पूर्व की कमी को कम करता है:

सैक्स में लगातार गरमी के चलते ऐस्ट्रोजन स्तर काफी हद तक कम होता है. इस दौरान शरीर में थकान कम महसूस होती है.

दिल के रोग और दौरों की आशंका कम होती है:

अकसर दिल के मरीजों को सैक्स संबंध बनाने से दूर रहने की सलाह दी जाती है. मगर अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ हृदयरोग विशेषज्ञ, डा. के.के. सक्सेना के अनुसार, पत्नी के साथ सैक्स संबंध बनाने से पूरे शरीर का समुचित व्यायाम होता है, जिस से दिमाग तनावरहित हो जाता है. दिल के दौरों की आशंका कम हो जाती है. सैक्स संबंध बनाने से धमनियों में रक्त का प्रवाह और हृदय की मांसपेशियों की क्षमता बढ़ती है.

आखिर क्या है सेक्स फीलिंग्स के 5 सीक्रेट्स, जानें यहां

ज्यादातर महिलाएं चाहती हैं कि उन के कुछ सेक्स सीक्रेट्स उन के पतियों को खुद जानने चाहिए. नौर्थवैस्टर्न यूनिवर्सिटी इलिनौयस की सैक्सुअलिटी प्रोग्राम की थेरैपिस्ट पामेला श्रौक कहती हैं कि ज्यादातर विवाहित पुरुष अपनी पत्नी की सैक्सुअल प्राथमिकताओं और चाहतों को नहीं समझते. पामेला ने इस विषय पर पत्नियों के मन में झांकने की कोशिश की तो उन्हें कुछ ऐसे सेक्स सीक्रेट्स का पता चला, जिन्हें महिलाएं अपने पति से कहना तो चाहतीं, पर कह नहीं पातीं.

महिलाओं के लिए अच्छा सेक्स सिर्फ इंटरकोर्स नहीं: महिलाओं को आनंददायक सेक्स के लिए सिर्फ इंटरकोर्स ही नहीं, बल्कि पति के साथ दिन के अन्य क्षणों में भी अच्छी फीलिंग्स और अनुभव की जरूरत होती है. महिलाओं को यह बात कतई अच्छी नहीं लगती कि पति दिन भर सिर्फ अपने ही काम में व्यस्त रहे, रात को घर लौट कर खाना खा देर तक टीवी देख कर फिर बिस्तर पर आते ही पत्नी को दबोच ले.

इस से पत्नी के मन में खुद को औब्जैक्ट समझने की भावना आती है. वह अपने पति को बेहद स्वार्थी और खुद को भोग की वस्तु समझने लगती है. हर पत्नी चाहती है कि उस का पति उसे सिर्फ बिस्तर पर ही नहीं बिस्तर के बाहर भी उतना ही प्यार करे, उस पर ध्यान दे, उस के साथ अपनी बातें शेयर करे, प्रेमपूर्वक बातें करे, उस की भावनाओं को जानने की कोशिश करे आदि.

समाजशास्त्री डालिया चक्रवर्ती कहती हैं, ‘‘पत्नियां अपनी जिंदगी के हर पहलू को एकदूसरे से जोड़ कर देखती हैं जबकि पति समझते हैं कि स्ट्रैस और झगड़ों को सेक्स के वक्त एक तरफ रख देना चाहिए और इन चीजों को सेक्स के साथ नहीं जोड़ना चाहिए. सच यह है कि सेक्स का असली मजा अफैक्शन के कारण ही आता है. मानसिक रूप से अपनापन, प्यार और नजदीकियां होती हैं तभी सेक्स संबंध सही माने में उत्तेजनापूर्ण होता है. जब कोई पति अपनी पत्नी को समयसमय पर छोटेमोटे उपहार देता है, बीवीबच्चों को घर से बाहर ले जाता है, परिवार का खयाल रखता है और बीवी को स्पैशल फील करवा कर घर का माहौल खुशनुमा रखता है, तो सेक्स का मजा कई गुना बढ़ जाता है.

महिलाओं को टर्नऔन करने के लिए प्रेम भरी बातें चाहिए: रात के भोजन के वक्त मीठीमीठी छेड़छाड़, रोमांटिक बातें और गुदगुदाने वाले किस्से पत्नियों को भीतर तक भिगो देते हैं. इस से उन का मूड बन जाता है. इसी तरह सेक्स के दौरान पत्नी की प्रशंसा, उस के साथ प्यार का इजहार और उस का नाम लेना पत्नी को उत्तेजना से भर देता है. सेक्स थेरैपिस्ट लिन एटवाटर कहती हैं, ‘‘महिलाओं की शारीरिक संबंधों से ज्यादा दिलचस्पी मानसिक उत्तेजना और मानसिक संबंधों में होती है.’’

यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया मैडिकल स्कूल की साइकोलौजिस्ट लोनी बारबच कहती हैं, ‘‘अकसर घरेलू कामों, बच्चों की देखभाल, पति के हजार काम और फिर औफिस वर्क के दबाव के बीच किसी पत्नी को सब से ज्यादा जरूरत सहानुभूति और प्रेमपूर्ण बातों की होती है. उसे शरीर सहलाने से जितना मजा आता है उस से कहीं ज्यादा उस का मन सहलाने से आनंद मिलता है. हर पत्नी चाहती है कि उस का पति उस के साथ रोमांटिक बातें करे.’’

महिलाओं में भी होती है परफौर्मैंस ऐंग्जाइटी: कई अध्ययनों में यह बात सामने आ चुकी है कि सिर्फ 60% ऐसी पत्नियां हैं, जिन्होंने जितनी बार संभोग किया उस से कम से कम आधी बार चरम आनंद का अनुभव किया. लेकिन उन्हें पति को खुश करने के लिए सेक्स के दौरान चरम आनंद का दिखावा करना पड़ा. कई बार तो उन के मन में अपराधबोध आ जाता है कि कहीं उन्हीं में तो कोई कमी नहीं.

पत्नियों में भी अपने अंगों की बनावट, आकार और साफसफाई को ले कर तुलनात्मक हीनता की भावना होती है. इसीलिए वे अंधेरे में ही निर्वस्त्र होना चाहती हैं. ऐसे में वे अपने पति से प्रोत्साहन, अपने शारीरिक अंगों की प्रशंसा और सौंदर्य के बखान की अपेक्षा रखती हैं. कई पति तो अपनी पत्नी की प्रशंसा करना ही नहीं जानते और कई सेक्स के दौरान उस के अंगों में भी मीनमेख निकालने लगते हैं. पत्नी को मोटी, थुलथुल आदि न जाने क्याक्या कहने लगते हैं. ऐसे में पत्नी के मन का बुझ जाना, उस का तनावग्रस्त हो जाना स्वाभाविक है. ऐसी पत्नी अपने पति के साथ सेक्स संबंध बनाने से कतराने लगती है.

जाहिर है, इन का यौन जीवन नीरस और आनंदविहीन हो जाता है. झूठी बढ़ाई की जरूरत नहीं, लेकिन समझदार पति वही है जो अपनी पत्नी की त्वचा की कोमलता, आंखों या उस का जो कुछ भी अच्छा लगे उस की सराहना कर के पत्नी का आत्मविश्वास बढ़ाए और हंसीठिठोली करे ताकि पत्नी ऐंग्जाइटी से ग्रस्त न हो.

सेक्स के बाद भी चाहिए अटैंशन: कई पति पत्नी के साथ अंतरंग क्षणों का जम कर आनंद उठाते हैं और फिर चरम पर पहुंच कर स्खलित होते ही ऐसे मुंह फेर कर सो जाते हैं जैसे उन्हें पत्नी से कोई लेनादेना ही नहीं. ऐसे में पत्नी खुद को बेहद अकेली, उपेक्षित समझने लगती है.

उसे लगता है कि बस पति का यही अंतिम उद्देश्य था. पत्नी चाहती है कि सेक्स और स्खलन के बाद भी पति उसे सहलाए, चूमे उस के अंगों को छेड़े. साथ ही उसे धन्यवाद दे व प्यार जताए. ऐसा करतेकरते ही पत्नी को बांहों में भरे हुए उसे नींद आ जाए. इस से पत्नी को बड़ा आत्मसंतोष महसूस होता है.

नौनसेक्सुअल टच: पत्नियों को यह बात बिलकुल अच्छी नहीं लगती है कि दिन भर में पति उन्हें एक बार भी न छुए या चूमे. बस बिस्तर पर फोरप्ले के लिए ही उन के हाथ बढ़ते हैं. वे चाहती हैं कि दिन में भी पति उन्हें छूएं, लेकिन यह टच नौनसैक्सुअल हो. वे छेड़छाड़ या हंसीमजाक के लिए अथवा अपनापन जताने के लिए छूएं. कभी बालों को सहलाएं या पीठ पर हाथ फेरें, गालों को चूमें, गालों को थपथपाएं. मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि पति और पत्नी के संबंध सिर्फ और सिर्फ सेक्स के लिए ही नहीं होने चाहिए.

सेक्स के अलावा भी दुनिया में और बहुत कुछ ऐंजौय करने को होता है. संबंधों में प्रगाढ़ता और केयरिंग होना ज्यादा जरूरी है. पत्नी की कुकिंग को सराहते हुए उस के हाथों को चूम लेना, उस की ड्रैसिंग सैंस की प्रशंसा करना, बात करने के तरीके को सराहना आदि उस के मन को गहराई तक छू लेता है. रिश्तों में मजबूती के लिए यह बेहद जरूरी है. पत्नी को जताएं कि आप उसे सिर्फ सेक्स के लिए ही नहीं चाहते.

आखिर युवकों से वर्जिनिटी क्यों नहीं पूछते?

हर युवक या बौयफ्रैंड अपने लिए वर्जिन युवती या गर्लफ्रैंड ही चाहता है. भले ही वह खुद कितनी ही युवतियों की वर्जिनिटी भंग कर चुका हो. साथ ही यह माना जाता है कि यदि युवती वर्जिन है तो ही वह चरित्रवान है, लेकिन युवक के लिए ऐसी कोई शर्त ही नहीं है. उसे तो हमेशा ही वर्जिन माना गया है. आखिर वर्जिनिटी क्या है? युवक क्यों देते हैं इसे इतनी अहमियत? इस का युवती के चरित्र से क्या संबंध? ऐसे बहुत सारे सवालों के जवाब और गलतफहमियों को समझने की जरूरत है. पिछले साल की बहुचर्चित फिल्म ‘पिंक’ में जब वकील कोर्ट में खुलेआम तापसी पन्नू के किरदार से सवाल करता है कि उस की वर्जिनिटी कब खोई थी, तो वहां सन्नाटा पसर जाता है. भारत में युवकयुवती का फर्क सिर्फ लिंगभेद तक ही सीमित नहीं रहता  बल्कि वर्जिनिटी के सवाल को ले कर भी है.

सैक्स और वर्जिनिटी

गर्लफ्रैंड जब अपने बौयफ्रैंड से मिलती है तो जाहिर है कि आज की जनरेशन सैक्स से परहेज नहीं करती. इसलिए दोनों में उन्मुक्त सैक्स होता है और पारंपरिक रोमांस भी, जब तक दोनों का अफेयर चलता है, कायदे से दोनों ही अपनी वर्जिनिटी खो चुके होते हैं.

बौयफ्रैंड चाहे कितनी ही बार सैक्स कर ले, कितनी ही युवतियों का दिल तोड़े, उस से कभी उस की वर्जिनिटी को ले कर सवाल नहीं पूछा जाता. युवती की शादी में भी कई सवाल पूछे जाते हैं, लेकिन युवक वर्जिन है या नहीं, इस सवाल को कोई नहीं उठाता. वहीं युवती का हर दूसरा बौयफ्रैंड यही उम्मीद रखता है कि उस की गर्लफ्रैंड वर्जिन हो यानी उस ने किसी के साथ सैक्स न किया हो. भले ही युवक ने अपनी ऐक्स गर्लफ्रैंड के साथ कई बार शारीरिक संबंध बनाए हों पर युवती उसे वर्जिन चाहिए.

युवक भी वर्जिन होते हैं

 कालेज और क्लास में अकसर स्टूडैंट्स के बीच आम बहस का टौपिक होता है कि उन की गर्लफ्रैंड या क्लासमेट ने अपनी वर्जिनिटी कब खोई थी. बड़े दिलचस्प अंदाज में युवक अंदाजा लगाते हैं कि फलां युवती वर्जिन है या नहीं. अपनी गर्लफ्रैंड बनाने की पहली प्राथमिकता भी वह एक वर्जिन युवती को ही देते हैं, लेकिन वे खुद के गिरेबान में कभी झांक कर नहीं देखते कि वे वर्जिन कहां हैं?

अमिताभ बच्चन इस विषय पर अपनी राय रखते हुए कहते हैं कि अगर युवतियों से उन की वर्जिनिटी, कौमार्य या कुंआरेपन को ले कर सवाल पूछे जाते हैं तो युवकों से भी ये सवाल पूछे जाने चाहिए. इस में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए. वे आगे कहते हैं कि अगर किसी युवती से कुछ पूछा जाता है तो उस पर सवालिया निशान लगता है जैसे उस ने कोई गलत काम कर दिया है, लेकिन जब युवकों का मामला हो तो सवाल विस्मयादिबोधक चिह्न के साथ आता है जैसे उन्होंने कोई महान काम कर दिया हो.

वर्जिनिटी टैस्ट में फेल तो…

 आएदिन अखबारों में इस तरह की खबरें पढ़ने को मिल जाती हैं, जहां वर्जिनिटी टैस्ट करने के नाम पर युवती की शादी टूट जाती है या फिर उसे प्रताडि़त किया जाता है. गर्लफ्रैंड और बौयफ्रैंड के रिश्ते भी इसी बात के आधार पर टूट जाते हैं. पिछले दिनों यह खबर आई थी कि महाराष्ट्र के नासिक में एक पति ने शादी के 2 दिन बाद ही अपनी पत्नी को सिर्फ इसलिए छोड़ दिया, क्योंकि वह वर्जिनिटी टैस्ट में फेल हो गई.

इतना ही नहीं युवती वर्जिन है या नहीं इस का फैसला करने के लिए पंचायत के सदस्यों द्वारा शादीशुदा जोड़े को बिस्तर पर सफेद चादर बिछा कर सैक्स करने के लिए कहा जाता है. सैक्स के बाद अगर चादर पर खून के धब्बे नहीं मिलते, तो युवती को वर्जिन नहीं माना जाता. इस मामले में युवक ने अपनी पत्नी के वर्जिनिटी टैस्ट का प्रमाण पंचायत को सौंपा. युवक ने सुबूत के तौर पर वह चादर पंचायत के सामने पेश की. इस चादर पर खून के धब्बे न होने पर पंचायत के सदस्यों ने पति को शादी खत्म करने की अनुमति दे दी.

वर्जिन टैस्ट और भ्रम

 आम धारणा है कि जिस युवती ने पहली बार सैक्स कर लिया उस की फीमेल रिप्रोडक्टिव और्गन में पाई जाने वाली हाइमन झिल्ली फट जाती है और ब्लड निकल जाता है. अगर वह झिल्ली न फटे तो उसे वर्जिन होने की निशानी माना जाता है. बस, इसी बात को ले कर गलतफहमी है कि पहली बार सैक्स करते समय गर्लफ्रैंड को ब्लीडिंग हुई तो वह वर्जिन वरना नहीं, जबकि गाइनोकोलौजिस्ट और सैक्स ऐक्सपर्ट मानते हैं कि हाइमन झिल्ली का सैक्स संबंध और वर्जिनिटी से कोई वास्ता नहीं है. 90त्न युवतियों की यह झिल्ली साइकिलिंग, घुड़सवारी, डांस या अन्य शारीरिक क्रियाओं के दौरान फट जाती है. ऐसे में यह कहना कि युवती ने सैक्स किया है, गलत है.

बौयफ्रैंड की भी वर्जिनिटी जांचें

अगर बौयफ्रैंड बातबात पर वर्जिन होने का सुबूत मांगे तो उस का भी वर्जिनिटी का परीक्षण करना चाहिए. इस से न सिर्फ उसे सबक मिलेगा बल्कि वह वर्जिन जैसी बेमतलब की बातों को दोबारा नहीं पूछेगा. लेकिन यह कैसे पता करें? यदि आप को भी बौयफ्रैंड की वर्जिनिटी चैक करनी है तो उस से सवाल करें और उस के व्यवहार को समझें. मसलन, अगर बौयफ्रैंड वर्जिन है तो आप के साथ सैक्स करने में जल्दबाजी नहीं करेगा. सैक्स के दौरान भी काफी असहज दिखेगा. पहली बार संबंध बनाते समय घबराता है या फिर वह पोजीशन नहीं जमा पाता. वह आप के साथ संबध बनाने से कतराएगा, जबकि पहले से सैक्स संबंध बना चुका बौयफ्रैंड आसानी से सैक्स करेगा. वर्जिन बौयफ्रैंड गर्लफ्रैंड से एक दूरी बना कर बात करेगा और कई बार घबराएगा भी, जबकि वर्जिनिटी खो चुका बौयफ्रैंड खुल कर गर्लफ्रैंड को टच करेगा और जबतब सैक्स करने के मौके खोजेगा.

कुल मिला कर युवकयुवती का संबंध प्रेम पर टिका हो न कि सैक्स और वर्जिनिटी के सवाल पर. वर्जिन कोई नहीं होता. किसी ने सैक्स किया होता है और कोई पोर्न फिल्में देख कर खयाली सैक्स करता है इसलिए गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड का रिश्ता भरोसे पर टिका हो और जो युवक युवती से उस की वर्जिनिटी को ले कर सवाल करे उसे पहले युवती को अपनी वर्जिनिटी का सुबूत देना चाहिए.

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