अब पता चलेगा: राधा क्या तोड़ पाई बेटी संदली की शादी

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मान न मान : मर्यादा की तरकीब

मर्दों के दबदबे वाले समाज की यह खासीयत होती है कि वे औरतों पर अपनी मरजी थोपने की कोशिश करते हैं. कोई औरत माने या न माने, जबरदस्ती वे उस के दिल में घुसने की कोशिश करने लगते हैं. मर्दों को यह सोचना चाहिए कि वे कितने भी बलशाली क्यों न हों, औरतें कितनी भी लाचार क्यों न हों, कभी उन की मरजी के खिलाफ उन्हें हासिल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

औरत भले ही अबला की तरह लाचार नजर आती है, लेकिन मौका मिलने पर वह किसी घायल नागिन की तरह पलट कर हमला कर सकती है. कभी वह छुईमुई नजर आती है, तो कभी मर्यादा की दहलीज लांघ कर मर्द को सबक सिखाने के लिए मजबूर हो जाती है.

दूसरे बच्चों की तरह मर्यादा को भी पढ़लिख कर अपना कैरियर बनाना था और उस के बाद किसी अमीर लड़के से शादी कर के ऐश की जिंदगी जीनी थी.

मर्यादा की मौसी ने उसे समझाया कि अगर वह सचमुच अमीर पति चाहती है, तो उसे खुद ही किसी अमीर लड़के को अपने प्यार के झांसे में लेना होगा, वरना उस के मांबाप दहेज के पैसे नहीं दे सकेंगे. मर्यादा ने मौसी की बात गांठ बांध ली थी.

मर्यादा लखनऊ शहर के एक कालेज से एमबीए कर रही थी, पढ़ाई के लिए घर से भेजा हुआ खर्च पूरा नहीं पड़ता था, मजबूरी में उस ने लोगों के घर जा कर ब्राइडल मेकअप और मेहंदी लगाने का पार्टटाइम काम शुरू कर दिया.

पढ़ाई के अलावा मर्यादा दुलहनों को सजाने के साथ खुद भी सजनेसंवरने में बिजी रहती थी. उस का सीना पूरी तरह से नहीं उभरा था, फिर भी पैडेड ब्रा पहन कर वह बहुत ही मस्त दिखने लगी थी. उस के पेशे में मस्त दिखना बहुत जरूरी था. मर्यादा को अपनी क्लास के सिर्फ 2 लड़के अच्छे लगते थे. पहला खानदानी रईस राकेश था. उस का खुद का बिजनैस था. दूसरा संतोष पढ़ने में बहुत ही होशियार था. उस की सरकारी नौकरी लगना तय था. स्टूडैंट यूनियन का नेता अर्जुन बेवजह उस के पीछे पड़ा रहता था.

लेकिन जिंदगी में सबकुछ इनसान की योजना के मुताबिक नहीं होता. अर्जुन भले ही एक बैक बैंचर था, लेकिन उस ने मर्यादा को शादी के कई घरों में मेकअप आर्टिस्ट का काम दिलाया था.

एक दिन मर्यादा को साइट पर छोड़ने के बहाने अर्जुन ने रास्ते में पड़ने वाली खंडहर हवेली में ले जा कर जबरदस्ती उस का कुंआरापन लूट लिया.

भैंस जैसे सख्त उस लौंडे ने मर्यादा को दिन में तारे दिखा दिए थे. खून बहने के चलते उस पर बेहोशी छाने लगी. उस की जांघों के बीच की हड्डियां ककड़ी की तरह चटक गई थीं.

मर्यादा अपने बलात्कारी का खून कर देना चाहती थी, लेकिन जिस लड़के से वह अपनी इज्जत नहीं बचा सकी थी, उस की जान लेना इतना आसान नहीं था.

अगले दिन कालेज में मर्यादा अपने साथ हुई घटना की शिकायत किसी से नहीं कर सकी. अगर बाबूजी को पता चल गया तो उन्हें उस की पढ़ाई बंद करा कर घर बैठा देना था और फिर किसी चने बेचने या रिकशा चलाने वाले से उस की शादी करा देनी थी. उस ने खुदकुशी करनी चाही, लेकिन हिम्मत नहीं हुई.

मर्यादा द्वारा खामोशी से इतना सब सह लेने के चलते अर्जुन के चमचों का हौसला और ज्यादा बढ़ गया. अगले दिन कालेज में मर्यादा नाम के पोस्टर चिपके हुए थे. उन्होंने मर्यादा को अर्जुन की मंगेतर और अपनी भाभी के नाम से बदनाम कर दिया.

राकेश और सुरेश ने मर्यादा के चरित्र पर लांछन लगा कर उसे रिजैक्ट कर दिया था. हर जगह उस की बदनामी हो चुकी थी. चुनरी से चेहरा छिपाए बगैर उस का होस्टल से बाहर निकलना मुश्किल हो गया.

अर्जुन के अलावा हर इनसान मर्यादा को आवारा, बदचलन, बिगड़ी हुई लड़की समझने लगा. उस के पास एकमात्र रास्ता अर्जुन बचा था, फिर भी वह उसे कोई मौका नहीं दे रही थी.

अगले 3 महीनों तक अकेले कहीं ले जाने, मिलने, छूने, बोलने का कोई भी मौका मर्यादा ने अर्जुन को नहीं दिया, जिस से मर्यादा पर उस का क्रश बहुत बढ़ गया. अर्जुन अपनी बलात्कार की ज्यादती को भावनाओं का बहाव बता कर अपने प्यार की कसम खा रहा था.

इधर मौसी ने भी मर्यादा को समझाया था कि जो मर्द अपने पहले प्यार में ही किसी लड़की का खून निकाल कर उसे एक पूरी औरत बना देता है, वही सच्चा मर्द होता है. अर्जुन ने वह कर दिखाया था.

मर्यादा को अब अर्जुन के प्यार में कोई शक नहीं बचा था, लेकिन उस के पास पैसों की कड़की थी. उस की आमदनी का जरीया नहीं था, इसलिए वह उस से पीछा छुड़ाना चाहती थी.

इसी उधेड़बुन से तंग आ कर एक दिन मर्यादा ने अर्जुन को साफ शब्दों में समझा दिया कि अगर वह शादी के बाद मेरे लिए पैसे कमा कर नहीं ला सकता, तो उसे मेरा पीछा करने की कोई जरूरत नहीं है.

अर्जुन तैश में वहां से निकल गया. वह खुदकुशी कर सकता था. मर्यादा को मार सकता था. पर मर्यादा उस समय तक उस से इतना तंग आ चुकी थी कि वह क्या करेगा, इस की उसे कोई चिंता नहीं थी.

4 दिन बाद अर्जुन मर्यादा के लिए 4 लाख रुपए ले कर लौटा. मर्यादा ने कभी इतने सारे नोट एकसाथ नहीं देखे थे. उस की आंखें खुली की खुली रह गईं.

अब अर्जुन के सच्चे प्यार को स्वीकारने के अलावा मर्यादा के पास कोई उपाय नहीं बचा था. उस के पैसों की शर्त को अर्जुन ने पूरा कर दिया था और जिंदगीभर प्यार से रखने का भरोसा दिलाया था. वह सच्चे आशिक की तरह मर्यादा के जिस्म के हर रोम को प्यार करता था. घंटों उस के नंगे बदन को निहारता था. बिस्तर पर वह गुलाम की तरह बरताव करता था.

4 दिनों तक एकदूसरे की बांहों में पड़े हुए उन दोनों के सारे गिलेशिकवे खत्म हो चुके थे. उस घटना के लिए उस ने मर्यादा से बारबार और रोरो कर माफी मांगी थी. मर्यादा ने उसे माफ कर दिया.

अभी मेरी जिंदगी में कुछ अच्छा घटना शुरू हुआ ही था कि अर्जुन को पुलिस ने पकड़ लिया. दरअसल, अर्जुन ने पैट्रोल पंप के कैशियर को लूटा था. इस खबर से एक बार फिर मर्यादा की जिंदगी में भूचाल आ गया.

बहरहाल, अर्जुन ने मर्यादा का नाम नहीं बताया. उस ने भी अर्जुन को पहचानने से इनकार कर दिया. शायद अर्जुन बेहद प्यार करने के चलते मर्यादा को किसी परेशानी में डालना नहीं चाह रहा था या फिर पैसे बरामद करा कर अपना जुर्म कबूल करना नहीं चाह रहा था. मर्यादा ने सुना कि थाने में अर्जुन की खूब कुटाई हुई, फिर भी उस ने उस का नाम नहीं बताया.

अर्जुन के दिए हुए 4 लाख रुपए ले कर मर्यादा गांव भाग आई. रुपयों को उस ने बहुत अच्छी तरह से कपड़े में बांध कर भूसा रखने वाले कच्चे मकान के छप्पर में छिपा दिया. यहां भी डर के चलते वह 2 दिन तक खाना नहीं खा सकी. घर के बाहर से किसी गाड़ी की आवाज आती तो लगता कि पुलिस उसे पकड़ने आ गई है.

इस बीच मर्यादा को एक शानदार मौका हासिल हुआ. उस के एक दूर के रिश्तेदार ने बायोडाटा के आधार पर उसे शादी के लिए चुन लिया था. मर्यादा का होने वाला मंगेतर सरकारी नौकरी में था और खानदानी रईस था. उसे मर्यादा की शक्ल और उस का बायोडाटा मर्यादा को तो पसंद आ गया था, लेकिन वह दहेज भी मांग रहा था. इस से पहले कि कोई उसे मर्यादा के कालेज के कांड के बारे में बताए, उसे शादी कर के यहां से हजार किलोमीटर दूर अपनी ससुराल नरसिंहपुर भाग जाना चाहिए.

तय योजना के मुताबिक, अर्जुन को उस के हाल पर छोड़ कर अपने सारे कौंटैक्ट नंबर मिटा कर, मोबाइल फोन की सिम बदल कर, सोशल मीडिया एकाउंट डिलीट कर मर्यादा रविंद्र से शादी कर के अपनी ससुराल भाग गई. अर्जुन के दिए हुए 4 लाख रुपए से उसे दहेज की रकम जुटाने में बहुत मदद मिली थी.

ससुराल पहुंचते ही मर्यादा ने रविंद्र को पूरी तरह से अपने काबू में ले लिया था. मौसी की सिखाई हुई तरकीब के मुताबिक सुहागरात के दिन बेवजह चीखचिल्ला कर उस ने अपने पति को अहसास करा दिया कि वह अभी तक कुंआरी थी.

मर्यादा के वे 6 महीने बहुत मजे से गुजरे. इस के बाद वह अपने गांव लौटी थी. कुनकुनी धूप में अपने ब्रा को सुखाने के लिए डालते समय मर्यादा रविंद्र के विचारों में मगन थी. रविंद्र मर्यादा का बहुत ध्यान रखता था. जवानी का पूरा मजा लेने के लिए वे फैमिली प्लानिंग कर रहे थे.

मर्यादा रविंद्र के विचारों में डूबी ही थी कि ‘मर्यादा’ नाम पुकारे जाने से वह चौंक गई. उस ने बगल की छत पर झांका, तो धक की आवाज के बाद उस का दिल धड़कना बंद सा हो गया.

सामने अर्जुन खड़ा हुआ था. पहले से ज्यादा डरावना. उस के हाथ में देशी तमंचा देख कर मर्यादा को यकीन हो गया कि आज वह उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा.

मुसीबत के समय जिस की जैसी बुद्धि काम कर जाए. मर्यादा ने तुरंत ही अर्जुन को अपनी बांहों में भर लिया और झूठे आंसू बहाने लगी, ‘‘अर्जुन, तुम कहां थे इतने दिन? देखो तुम्हारे बिना मेरा क्या हाल हुआ? घर वालों ने जबरदस्ती मेरी शादी करा दी…’’ कहते हुए वह उस के सीने से लिपट कर फूटफूट कर रोने लगी.

अपनी चालाकी का असर होते देख कर मर्यादा अर्जुन की पैंट में हाथ डाल कर उसे अपने साथ सैक्स के लिए उकसाने लगी.

मर्द तो चौबीस घंटे सैक्स के लिए भूखे रहते ही हैं. खुले आसमान के नीचे, कुनकुनी धूप में, पानी की टंकी के पीछे लेट कर जिस्मानी संबंध बनाने लगे.

अर्जुन ने मर्यादा के हर झूठ को सच मान लिया. अब तो वह उस से लपेटलपेट कर और भी बहुत सारे झूठ बोलने लगी, ‘‘मैं ने अपने पति के साथ सिर्फ सात फेरे लिए हैं, अपना शरीर नहीं छूने दिया… मुझे प्यार करने का हक सिर्फ तुम्हें हैं अर्जुन…

‘‘रविंद्र मेरे शरीर को जीत सकता है, लेकिन आत्मा को नहीं… मैं जल्द ही रविंद्र को तलाक दे कर हमेशा के लिए तुम्हारी हो जाऊंगी…’’

आज मर्यादा को इस अर्जुन नाम के मूर्ख प्राणी से जरा भी डर नहीं लग रहा था. एक महीना, जब तक वह अपने मायके रही, अर्जुन से अपनी और अपने परिवार की भरपूर सेवा कराई.

अर्जुन एक बार फिर कहीं से 2 लाख रुपए लूट कर उस के लिए ले आया, ताकि इन पैसों से वह अपने पति को तलाक दे सके.

वे 2 लाख रुपए एक पुलिस वाले को अर्जुन के ऐनकाउंटर के नाम पर देने के बाद मर्यादा अपनी ससुराल भाग गई. वह मर्द का बच्चा अर्जुन जबरदस्ती मर्यादा की जिंदगी को ड्रामा बनाने की कोशिश कर रहा था.

बारिश : फुहार इश्क की

मेरी शक्लसूरत कुछ ऐसी थी कि 2-4 लड़कियों के दिल में गुदगुदी जरूर पैदा कर देती थी. कालेज की कुछ लड़कियां मुझे देखते हुए आपस में फब्तियां कसतीं, ‘देख अर्चना, कितना भोला है. हमें देख कर अपनी नजरें नीची कर के एक ओर जाने लगता है, जैसे हमारी हवा भी न लगने पाए. डरता है कि कहीं हम लोग उसे पकड़ न लें.’

‘हाय, कितना हैंडसम है. जी चाहता है कि अकेले में उस से लिपट जाऊं.’

‘ऐसा मत करना, वरना दूसरे लड़के भी तुम को ही लिपटाने लगेंगे.’

धीरेधीरे समय बीतने लगा था. मैं ने ऐसा कोई सबक नहीं पढ़ा था, जिस में हवस की आग धधकती हो. मैं जिस्म का पुजारी न था, लेकिन खूबसूरती जरूर पसंद करने लगा था.

एक दिन उस ने खूब सजधज कर चारबत्ती के पास मेरी साइकिल के अगले पहिए से अपनी साइकिल का पिछला पहिया भिड़ा दिया था. शायद वह मुझ से आगे निकलना चाहती थी.

उस ने अपनी साइकिल एक ओर खड़ी की और मेरे पास आ कर बोली, ‘माफ कीजिए, मु?ा से गलती हो गई.’
यह सुन कर मेरे दिल की धड़कनें इतनी तेज हो गईं, मानो ब्लडप्रैशर बढ़ गया हो. फिर उस ने जब अपनी गोरी हथेली से मेरी कलाई को पकड़ा, तो मैं उस में खोता चला गया.

दूसरे दिन वह दोबारा मु?ो चौराहे पर मिली. उस ने अपना नाम अंबाली बताया. मेरा दिल अब उस की ओर खिंचता जा रहा था.

प्यार की आग जलती है, तो दोनों ओर बराबर लग जाती है. धीरेधीरे वक्त गुजरता गया. इस बीच हमारी मुहब्बत रंग लाई.

एक दिन हम दोनों एक ही साइकिल पर शहर से दूर मस्ती में ?ामते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे. आकाश में बादलों की दौड़ शुरू हो चुकी थी. मौसम सुहावना था. हर जगह हरियाली बिछी थी.

अचानक आसमान में काले बादल उमड़ने लगे, जिसे देख कर मैं परेशान होने लगा. मु?ो अपनी उतनी फिक्र नहीं थी, जितना मैं अंबाली के लिए परेशान हो उठा था, क्योंकि कभी भी तेज बारिश शुरू हो सकती थी.

मैं ने अंबाली से कहा, ‘‘आओ, अब घर लौट चलें.’’

‘‘जल्दी क्या है? बारिश हो गई, तो भीगने में ज्यादा मजा आएगा.’’

‘‘अगर बारिश हो गई, तो इस कच्ची और सुनसान सड़क पर कहीं रुकने का ठिकाना नहीं मिलेगा.’’
‘‘पास में ही एक गांव दिखाई पड़ रहा है. चलो, वहीं चल कर रुकते हैं.’’

‘‘गांव देखने में नजदीक जरूर है, लेकिन उधर जाने के लिए कोई सड़क नहीं है. पतली पगडंडी पर पैदल चलना होगा.’’

‘‘अब तो जो परेशानियां सामने आएंगी, बरदाश्त करनी ही पड़ेंगी,’’ अंबाली ने हंसते हुए कहा.

हम ने अपनी चाल तेज तो कर दी, लेकिन गांव की पतली पगडंडी पर चलना उतना आसान न था. अभी हम लोग सोच ही रहे थे कि एकाएक मूसलाधार बारिश होने लगी.

कुछ दूरी पर घासफूस की एक झोपड़ी दिखाई दी. हम लोग उस ओर दौड़ पड़े. वहां पहुंचने पर उस में एक टूटाफूटा तख्त दिखाई पड़ा, लेकिन वहां कोई नहीं था.

हम दोनों भीग चुके थे. झोपड़ी में शरण ले कर सोचा कि कुछ आराम मिलेगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.

अंबाली ठंड से बुरी तरह कांपने लगी. जब उस के दांत किटकिटाने लगे, तो वह बोली, ‘‘मैं इस ठंड को बरदाश्त नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘कोई दूसरा उपाय भी तो नहीं है.’’

‘‘तुम मुझे अपने आगोश में ले लो. अपने सीने में छिपा लो, तुम्हारे जिस्म की गरमी से कुछ राहत मिलेगी,’’ अंबाली ने कहा. ‘‘अंबाली, हमारा प्यार अपनी जगह है, जिस पर मैं धब्बा नहीं लगने दूंगा, लेकिन तुम्हारी हिफाजत तो करनी होगी,’’ कह कर मैं ने अपनी कमीज उतार दी और उसे अपने सीने से चिपका लिया.
जब अंबाली मेरी मजबूत बांहों और चौड़े सीने में जकड़ गई, तो उस के होंठ जैसे मेरे होंठों से मिलने के लिए बेताब होने लगे थे.

मैं ने उस के पीछे अपनी दोनों हथेलियों को एकदूसरे पर रगड़ कर गरम किया और उस की पीठ सहलाने लगा, ताकि उस का पूरा बदन गरमी महसूस करे. तब मुझे ऐसा लगा, जैसे गुलाब की कोमल पंखुडि़यों पर ओस गिरी हो. मेरी उंगलियां फिसलने लगी थीं.

आधे घंटे के बाद बारिश कम होने लगी थी.

अंबाली मेरी बांहों में पूरी तरह नींद के आगोश में जा चुकी थी. मैं ने उसे जगाना ठीक नहीं सम?ा.
एक घंटे बाद मैं ने उसे जगाया, तब तक बारिश बंद हो चुकी थी.

अंबाली ने अलग हो कर अपने कुरते की चेन चढ़ाई और मुसकराते हुए पूछा, ‘‘तुम ने मेरे साथ कोई शैतानी तो नहीं की?’’

मैं हंसा और बोला, ‘‘हां, मैं ने तुम्हारे होंठों पर पड़ी बारिश की बूंदों को चूम कर सुखा दिया था.’’
‘‘धत्त…’’ थोड़ा रुक कर वह कहने लगी, ‘‘तुम्हारा सहारा पा कर मुझे नई जिंदगी मिली. ऐसा मन हो रहा था कि जिंदगीभर इसी तरह तुम्हारे सीने से लगी रहूं.’’

‘‘हमारा प्यार अभी बड़ी नाजुक हालत में है. अगर हमारे प्यार की जरा सी भी भनक किसी के कान में पड़ गई, तो हमारी मुहब्बत खतरे में तो पड़ ही जाएगी और हमारी जिंदगी भी दूभर हो जाएगी,’’ मैं ने कहा.
‘‘जानते हो, मैं तुम्हारे आगोश में सुधबुध भूल कर सपनों की दुनिया में पहुंच गई थी. मेरी शादी धूमधाम से तुम्हारे साथ हुई और विदाई के बाद मैं तुम्हारे घर पहुंची. वहां भी खूब सजावट थी.

‘‘रात हुई. मुझे फूलों से सजे हुए कमरे में पलंग पर बैठा दिया गया. तुम अंदर आए, दरवाजा बंद किया और मेरे पास बैठे.

‘‘हम दोनों ने वह पूरी रात बातें करते हुए और प्यार करने में गुजार दी,’’ इतना कह कर वह खामोश हो गई.

‘‘फिर क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हवा का एक बवंडर आया और मेरा सपना टूट गया. मैं ने महसूस किया कि मैं तुम्हारी बांहों में
हूं. मेरा जिस्म तुम्हारे सीने में समाया था,’’ इतना कहतेकहते वह मुझसे चिपक गई.

‘‘अंबाली, बारिश बंद हो चुकी है. अंधेरा घिरने लगा है. अब हमें अपने घर पहुंचने में बहुत देर हो जाएगी. तुम्हारे घर वाले चिंता कर रहे होंगे. कहीं हमारा राज न खुल जाए.’’

‘‘तुम ठीक कहते हो. हमें चलना ही होगा.’’

कुछ दिन कई वजहों से हम दोनों नहीं मिल सके. लेकिन एक शाम अंबाली मेरे पास सहमी हुई आई. मैं ने उस के चेहरे को देखते हुए पूछा, ‘‘आज तुम बहुत उदास हो?’’

‘‘आज मेरा मन बहुत भारी है. मैं तुम्हारे बिना कैसे जी सकूंगी, कहीं मैं खुदकुशी न कर बैठूं, क्योंकि उस के सिवा कोई रास्ता नहीं सूझता,’’ कह कर अंबाली रो पड़ी.

‘‘ऐसा क्या हुआ?’’

‘‘मेरे घर वालों को हमारे प्यार के बारे में मालूम हो गया. अब मेरी शादी तय हो चुकी है. लड़का पढ़ालिखा रईस घराने का है. अगले महीने की तारीख भी तय कर ली गई. अब मुझे बाहर निकलने की इजाजत भी नहीं मिलेगी,’’ अंबाली रोते हुए बोली.

‘‘तुम्हारे घर वाले जो कर रहे हैं, वह तुम्हारे भविष्य के लिए ठीक होगा. मेरातुम्हारा कोई मुकाबला नहीं. उन के अरमानों पर जुल्म मत करना. हमारा प्यार आज तक पवित्र है, जिस में कोई दाग नहीं लगा. सम?ा लो कि हम दोनों ने कोई सपना देखा था.’’

‘‘यह कैसे होगा?’’

‘‘अपनेआप को एडजस्ट करना ही पड़ेगा.’’

‘‘मेरे लिए कई रिश्ते आए, पर मैं ने किसी को पसंद नहीं किया. उस के बाद मैं तुम्हें अपना दिल दे बैठी, अब तुम मु?ो भूल जाने के लिए कहते हो. मैं तुम्हें बेहद प्यार करती हूं, मेरा प्यार मत छीनो. मैं तुम्हें भुला नहीं पाऊंगी. क्या तुम मुझे तड़पते देखते रहोगे? मैं तुम्हें हर कीमत पर हासिल करना चाहूंगी.’’

कुछ दिन हम लोग अपना दुखी मन ले कर समय बिताते रहे. किसी काम को करने की इच्छा नहीं होती थी. अंबाली की मां से उस की हालत देखी नहीं गई. वह एकलौती लाड़ली थी. उन्होंने अपने पति को बहुत सम?ाया.

अंबाली के पिता ने एक दिन हमारे यहां संदेशा भेजा, ‘आप लोग किसी दूसरे किराए के मकान में दूर चले जाइए, ताकि दोनों लड़केलड़की का भविष्य खराब न हो.’

हमें दूसरे मकान में शिफ्ट होना पड़ा. 3 महीने तक हम एकदूसरे से नहीं मिले. चौथे महीने अंबाली के पिता मेरे पिता से मिलने आए और साथ में मिठाई भी लाए थे.

बाद में उन्होंने कहा, ‘‘रिश्ता वहीं होगा, जहां अंबाली चाहेगी, इसलिए

2 साल में उस की पढ़ाई पूरी हो जाने पर विचार होगा. आप लोग दूर चले आए. हम दोनों की इज्जत नीलाम होने से बच गई, वरना ये आजकल के लड़केलड़की मांबाप की नाक कटा देते हैं.’’

मेरे पिता ने उन की बातों को सुना और हंस कर टाल दिया.

एक साल बीत जाने पर मेरा चुनाव एक सरकारी पद पर हो गया और मेरी बहाली दूसरे शहर में हो गई. मेरी शादी के कई रिश्ते आने लगे और मैं बहाने बना कर टालता रहा.

आखिर में मेरे पिता ने झला कर कहा, ‘‘अब हम लोग खुद लड़की देखेंगे, क्योंकि तुम्हें कोई लड़की पसंद नहीं आती. अगर तुम ने हमारी पसंद को ठुकरा दिया, तो हम लोग तुम्हें अकेला छोड़ कर चले जाएंगे.’’
मुझे उन के सामने झकना पड़ा और कहा, ‘‘आप लोग जैसा ठीक समझे, वैसा करें. मुझे कोई एतराज नहीं होगा.’’

शादी की जोरशोर से तैयारियां होने लगीं, लेकिन मुझे कोई दिलचस्पी न थी.
बरात धूमधाम से एक बड़े होटल में घुसी, जहां बताया गया कि लड़की के पिता बीमार होने के चलते द्वारचार पर नहीं पहुंच सके. उन के भाई बरात का स्वागत करेंगे.

लड़की को लाल घाघराचोली में सजा कर स्टेज तक लाया गया, पर उस के चेहरे से आंचल नहीं हटाया गया था.

लड़की ने मेरे गले में जयमाल डाली और मैं ने उस के गले में. तब लोग शोर करने लगे, ‘अब तो लड़की का घूंघट खोल दिया जाए, ताकि लोग उस की खूबसूरती देख सकें.’

लड़की का घूंघट हटाया गया, जिसे देख कर मैं हैरान रह गया. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, मानो उसे जबरदस्ती बांधा गया था.

मैं ने एक उंगली से उस की ठुड्डी को ऊपर किया. उस की नजरें मुझे से टकराईं, तो वह बेहोश होतेहोते बची.

सुहागरात में अंबाली ने मेरे आगोश में समा कर अपनी खुशी का इजहार किया. उस का प्यार जिंदा रह गया. मैं ने उस के गुलाबी गाल पर अपने होंठ रख कर प्यार से कहा, ‘‘अंबाली, तुम्हारे गालों पर अभी तक बारिश की बूंदें मोतियों जैसी चमक रही हैं. थोड़ा मुझे अपने होंठों से चूम लेने दो.’’

यह सुन कर अंबाली खिलखिला कर हंस पड़ी, जैसे वह कली से फूल बन गई हो.

औनर किलिंग: आखिर क्यों हुई अतुल्य की हत्या?

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 क्रौसिंग की बत्ती

कीया को आज अमर की याद आ गई थी. अमर के साथ बिताया वक्त वह भूल नहीं पाई थी लेकिन उसे भूल जाना ही अच्छा था.

सिंग पर लालबत्ती यानी ठहरने का सिग्नल होने से पहले ही कीया अपनी गाड़ी निकाल लेना चाहती थी. लेकिन उसी क्षण रैड सिग्नल हो गया, गाड़ी रुक गई और उस के पीछे वाहनों की लंबी कतार. कीया ने अनुभव किया, जब कभी भी वह डेली रूटीन में 2-4 मिनट की चूक करती है, उसे मंजिल तक पहुंचने में देर हो जाती है, ‘लेट लतीफ’ का टाइटल कीया ने दूसरों के लिए संजो रखा है, वह तो ‘मिस राइट टाइम’ के नाम से जानी जाती है.

ट्रैफिक में फंसी कीया की नजर अपनी ही कंपनी द्वारा प्रायोजित एक होर्डिंग पर पड़ी जिस में दूधिया सफेदी लिए एक बच्ची साबुन का विज्ञापन कर रही है, जिस के नीचे लिखे स्लोगन पर कीया के अपने व्यक्तित्व की छाप है, ‘सुबह की कच्ची धूप भी काफी होती है उजाले के लिए. पर तुम तो पूरा सूरज ही उतार देती हो.’

दरअसल, यह स्लोगन अमर ने कीया के संदर्भ में कहा था. दोनों की पहली मुलाकात कुछ कम रोचक नहीं थी.

उस दिन थिएटर के हौल में अंधेरा था. परदे पर गब्बर दहाड़ रहा था, ‘अरे ओ सांभा, कितना मैल था कपड़ों में?’

बदले में सांभा मिमिया रहा था. मैल और साबुन की फाइटिंग चल रही थी, इतने में कोई अजनबी कीया के कानों में फुसफुसाया. रोशनी होने पर उस ने बड़ी ही शालीनता से अपना परिचय दिया, ‘मैं अमर हूं. आप की ही एड कंपनी में पोस्ंिटग हुई है मेरी.’

कीया की अजनबी आंखों में पहचान उभारने के लिए वह आगे भी बोल रहा था, ‘आप से मेरा परिचय नहीं हुआ, पर मैं आप को पहले से ही जानता हूं. बौस आप की बेहद तारीफ करते हैं. क्या आप वाकई उतनी फंटास्टिक वर्कर हैं?’

अमर का शरारती अंदाज कीया को भा गया. मूवी के बाद उस ने कीया को अपनी क्रेटा में साथ चलने का आग्रह किया.

‘ओह सौरी, मेरी गाड़ी सामने ही खड़ी है,’ कीया ने मना करते हुए कहा.

‘उसे बाद में मंगवा लेंगे. हमारी मंजिल एक है, मंसूबे भी एक ही होने चाहिए. आप कंपनी के सेवेंथ ब्लौक में रहतीं हैं न? मु?ो भी वहीं फ्लैट एलौट हुआ है,’ अमर कहने लगा.

कीया को थोड़ी उल?ान होने लगी.

इस बीच अमर आगे बोला, ‘आप को सचमुच अपनी गाड़ी की फिक्र है या आप किसी अजनबी पुरुष के साथ जाना नहीं चाहतीं?’

कीया को लगा अमर के इस वाक्य ने संपूर्ण नारी जाति को चुनौती दे दी है. अगले ही पल अमर कंपनी की मार्केटिंग एग्जीक्युटिव औफिसर मिस कीया के लिए अपनी क्रेटा कार का दरवाजा खोल रहा था. रास्ते में कीया ने जाना कि अमर ने अमेरिका स्थित हार्वर्ड से बिजनैस मैनेजमैंट की डिगरी हासिल की है और यहां मैनेजिंग डायरैक्टर के पद पर उस की पोस्ंिटग हुई है. कंपनी द्वारा बिजनैस कंसलटैंसी की शिक्षा देने के लिए संचालित ट्रेनिंग सैंटर में अकसर अमर के लैक्चर होते रहते हैं.

काम के प्रति लगन और दायित्वबोध ने कुछ ही दिनों में अमर और कीया के रिश्ते को जहां प्रगाढ़ किया, वहीं उन का कैरियर बुलंदी को छूने लगा. यह खुशी अमर कीया के साथ किसी फाइवस्टार होटल में सैलिब्रेट करना चाहता था, पर कीया ने बिना बताए, पहल कर के होटल में टेबल बुक करवा ली. डिनर के बाद अमर ने हमेशा की तरह कार का दरवाजा खोला, तो थैंक्स कहने के बजाय कीया चुपचाप जा कर कार सीट पर बैठ गई. उस की बगल में बैठे अमर के कानों में अपने मित्रों के शब्द गूंज रहे थे, ‘देखो तो, कैसे मर्द बनने की कोशिश कर रही है.’ पर दूसरे ही पल प्रशंसाभरी नजरें उस पर उकेर कर बोला, ‘कीया, तुम्हारा स्टाइल गजब का है. तुम्हारी पलकें गजब की हैं.’

कीया बदले में मुसकराने लगी.

‘तुम कहीं कोई बिजनैस मैनेजमैंट कोर्स क्यों नहीं जौइन कर लेतीं?’

‘क्यों?’

‘अरे बाबा, शादी के बाद घरद्वार संभालना है कि नहीं?’

कीया शरमा गई. उस ने महसूस किया कि अमर उस के प्यार में दीवाना हो रहा है. एक दिन तो हद हो गई जब अमर कह रहा था, ‘कीया, तुम बाल खुले मत रखा करो. दूसरे भी आकर्षित होते हैं.’

‘बस,’ कीया ने खिजाने के लिए कहा.

‘मु?ो द्रौपदी की याद आती है.’

‘वो…वो, उस ने तो पुरुषों को चुनौती देने के लिए बाल खोल रखे थे, पर मैं…मैं… जाने दो… बांध लेती हूं,’ कीया ने ?ोंपते हुए बाल बांध लिए थे.

कभीकभी कीया को लगता कि जैसे अमर के व्यक्तित्व में एक असुरक्षा की भावना पनप रही है, क्योंकि बिजनैस की बात पर बहस करतेकरते अमर अप्रासंगिक बात छेड़ देता. ‘आज की औरत स्वतंत्र नहीं, स्वच्छंद हो गई है.’

सुन कर कीया चिढ़ जाती, ‘तुम्हारे जैसे मर्द, औरत के तन की सुंदरता तो सम?ाते हैं, पर उन की दिमागी श्रेष्ठता को बरदाश्त नहीं कर पाते.’

अमर तमतमा कर उस समय तो चुप हो जाता लेकिन दोचार दिन बाद ऐसी ही किसी बात को ले कर फिर दोनों में बहस छिड़ जाती.

ऐसे ही दिन बीत रहे थे, तभी एकसाथ 2 सुखद घटनाएं घटीं. एक तो अमर को कंपनी द्वारा लंदन टूर पर जाने का औफर मिला, दूसरे कीया को बेस्ट मार्केटिंग का अवार्ड मिला. पर अमर इस खबर में शरीक होने से पहले अपने घरवालों से मिलने अचानक अपने गांव चला गया. कीया को अकेलापन बुरी तरह सता रहा था. उस ने सोचा शायद जाने से पहले अमर कोई मैसेज छोड़ गया हो. उस ने फोन चैक किया तो मैसेज उभरा, ‘जल्दी लौटूंगा. मां चाहती हैं लंदन जाने से पहले मैं शादी कर लूं.’

कीया शरमा गई. उस ने सोचा अमर प्रपोज कर रहा है. वह बेसब्री से अमर की प्रतीक्षा करने लगी. लगभग 2 सप्ताह बाद अमर किसी लड़की के साथ दरवाजे पर खड़ा था.

‘कहां थे अब तक,’ कीया का धीरज जवाब दे रहा था.

‘इन से मिलो, ये हैं रानी.’

इतने में रानी ने आगे बढ़ कर कीया को गले लगा लिया.

‘अरे, अरे, यह क्या कर रही हो?’

‘रानी बहुत अच्छा खाना बना लेती है. आप कहें तो चाय के साथ नाश्ता भी बना लाएगी. आप तब तक अपना अवार्ड दिखाइए,’ अमर ने मुसकराते हुए कहा.

‘कौन है ये, तुम्हारी रिश्तेदार या…?’

‘मां की पसंद है रानी.’

कीया ने जैसे कुछ नहीं सुना. रानी उस की पत्नी है तो क्या अमर गांव शादी करने गया था? लेकिन, कीया ने तो ऐसा नहीं सोचा था, वह तो यही सोचती रही कि अमर उसे प्यार करता है, उस के साथ शादी करना चाहता है.

‘खाना बना देगी, देखभाल करेगी, घर में रहेगी. आखिर हमारा व्यवसाय तो एक ही है. हम अब भी गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड तो रह ही सकते हैं?’

अचानक कीया उठ खड़ी हुई, ‘मिस्टर अमर, हमारा व्यवसाय एक हो सकता है, पर व्यक्तित्व एक नहीं है. मैं नहीं चाहती कि तुम मेरे व्यक्तित्व को व्यवसाय बनाओ. मैं सम?ा गई तुम मु?ो अपनी गर्लफ्रैंड नहीं मिस्ट्रैस बनाना चाहते हो. गेट आउट… गेट लौस्ट,’ कीया दहाड़ रही थी, ‘तुम लोग बुद्धिमान महिला से मिलना तो चाहते हो, पर शादी रसोइए, बावर्चिन से करते हो. बाजार का हिसाबकिताब करती पत्नी तुम्हें अच्छी लगती है, पर शेयर मार्केट का हिसाब अपने कब्जे में रखना चाहते हो.’

अकेले में नाराज कीया को तो अमर कैसे भी मना लेता, पर नवविवाहित पत्नी के सामने वह अपना अपमान बरदाश्त नहीं कर पाया. गुस्से में बोला, ‘आश्चर्य की बात है. आप ने ऐसा कैसे सोच लिया कि मैं आप से शादी करूंगा? आप गलतफहमी की शिकार हुई हैं. जैसा कि महिलाएं अकसर हो जाती हैं. मेरी पत्नी भी एक नारी है. आप उसे रसोइया, बावर्चिन कह रही हैं? आप पुरुषों का तो क्या, नारियों का सम्मान करना भी नहीं जानतीं.’ अमर का स्वर तल्ख हो उठा था.

‘पश्चिम में आप जैसी महिलाओं द्वारा वुमेंस लिबरेशन का दौर चलाया गया था. आप लोग पुरुषों से मिलना तो चाहती हैं मगर समानता के स्तर पर नहीं. आप पुरुषों को हीन बनाना चाहती हैं. घरगृहस्थी दो पहियों पर चलती है. आप लोग दूसरा पहिया बनना नहीं चाहती हैं.   मैं 4 साल अमेरिका में रहा हूं. पश्चिम की औरत स्वतंत्र है. मगर आप जैसी महिलाओं की तरह स्वच्छंद नहीं है.’ और पैर पटकते हुए अमर बाहर निकल आया.

गुस्से में कीया ने अपने बालों के रिबन खोल डाले. कभी अमर कहा करता था कि बाल खोल कर वह द्रौपदी सी लगती है, यही सही. पर वह मिस्ट्रैस नहीं बन सकती, कभी नहीं. अचानक अपनी तंद्रा से बाहर आई कीया ने हरी बत्ती देखी और कार आगे बढ़ा ली.

बदचलनी का ठप्पा – भाग 4 : क्यों भागी परबतिया घर से?

यह सुन कर अर्जुन को कुछ उम्मीद बंधी. भीड़ भी एकमत थी बलदेव प्रसाद से. और लोगों की भी बीवियां तो खूबसूरत हैं कोलियरी में. अगर बदमाशों को न रोका गया तो न जाने कितने अर्जुन होंगे और कितनी परबतिया. देवेंद्रजी बोले, ‘‘भाइयो, आप सब की मदद से हम ने आज तक कई मामले निबटाए हैं. कभी बदनामी नहीं उठानी पड़ी. पर इस तरह के मियांबीवी वाले मामले में हम ने अब तक कभी हाथ नहीं डाला है, क्योंकि ऐसे मामलों में बड़ा जोखिम उठाना पड़ता है,’’

देवेंद्रजी भीड़ पर अपना रुतबा जमाते हुए बोले. भीड़ खुश हो गई. अर्जुन को उम्मीद बंधी कि अब देवेंद्रजी इस मामले को हाथ में ले रहे हैं तो वह जरूर कामयाब होें. पर खतरा? यह खतरे वाली बात कहां से पैदा हो गई. अर्जुन को थोड़ा शक हुआ. भीड़ के कान खड़े हो गए. ‘‘कैसा खतरा?’’

लगा कि बलदेव प्रसाद भी चकित था. ‘‘हम अगर जल्दबाजी में कोई कदम उठाएंगे तो हो सकता है कि वह बदमाश परबतिया को कोई नुकसान पहुंचा दे,’’ देवेंद्रजी ने कहा, ‘‘इसलिए हमें कतई जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए.’’ भीड़ को देवेंद्रजी की बातों में कुछ सार नजर आया.

उम्मीद बंधी. पर अर्जुन फिर निराशा से घिरने लगा था. गया प्रसाद उस की परबतिया को नुकसान पहुंचा सकता है, यह बात उस के दिमाग में घूम रही थी. उस का खून खौलने लगा.  अगर उस का बस चले तो… जैसे वह जंगल में लकड़ी काटा करता है, वैसे ही गया प्रसाद की गरदन पर कुल्हाड़ी चला दे.

पर, क्या करे?  नहींनहीं… वह बदमाश परबतिया को कोई नुकसान न पहुंचाए. वह दुष्ट तो उस के बच्चे को भी नुकसान पहुंचा सकता है. देवेंद्रजी शायद ठीक कह रहे हैं. कोई जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. मौका आने पर वह खुद ही निबट लेगा गया प्रसाद से.

अर्जुन का मन हुआ कि वह चिल्ला कर देवेंद्रजी से कह दे कि उसे कोई जल्दी नहीं है. बस, पार्वती और उस का बच्चा सहीसलामत रहे. ‘‘हांहां, आप ठीक ही कह रहे हैं,’’ बलदेव प्रसाद बोला, ‘‘उस जैसे दुष्टों का कोई भरोसा नहीं. लेकिन ऐसे दुष्टों को बताना ही होगा कि वे बसीबसाई घरगृहस्थी नहीं उजाड़ सकते. हां भाइयो, हम ऐसी धांधली नहीं चलने देंगे,’’ उस ने भीड़ को देखा. देवेंद्रजी के मुंह से अब एक नेता की आवाज उभरी, ‘‘हम गया प्रसाद को चेतावनी देना चाहते हैं कि वह अर्जुन की घरवाली परबतिया को बाइज्जत घर पहुंचाए और अपनी इस हरकत के लिए अर्जुन से माफी मांगे.’’

देवेंद्रजी के कहने के ढंग से लगा मानो गया प्रसाद वहीं भीड़ में दुबका हुआ उन की बातें सुन रहा हो. ‘बाइज्जत’ शब्द सभी के सामने एक बड़ा सवाल बन कर खड़ा हो गया.  परबतिया एक रात तो गया प्रसाद के घर में बिता ही चुकी है. अब भी उस की इज्जत बची होगी भला?

यह बात तो अर्जुन को भीतर ही भीतर मथे डाल रही थी. एक दर्द उभरा अर्जुन के मन में. यह क्या सोच गया वह? नहीं, परबतिया कैसी भी हो, उसे उस शैतान के चंगुल से छुड़ाना ही होगा. ‘‘और हम बता देना चाहते हैं कि…’’ देवेंद्रजी ने धमकी भरी आवाज में कहा, ‘‘अगर एक हफ्ते के भीतर इस बात पर अमल नहीं किया गया तो हमें कोई कड़े से कड़ा कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.’’

बलदेव प्रसाद ने भी अर्जुन को ढांढस बंधाया, ‘‘अब एक हफ्ते तक इंतजार करना ही पड़ेगा अर्जुन भाई, इसलिए अपने मन को कड़ा करो और जा कर नहाओ, खाओ. रात की ड्यूटी किए हो, थक गए होगे. हम सब तुम्हारा दुख समझते हैं.’’ भीड़ को एक बार फिर लगा कि देवेंद्रजी और बलदेव बड़े दयालु और दूसरों के दुख को अपना दुख समझने वाले इनसान हैं.

पहली बार अर्जुन ने कुछ कहा, ‘‘जो मरजी हुजूर. बस, आप लोगों का सहारा है. गरीब हूं, माईबाप,’’ कहतेकहते अर्जुन का गला भर आया. आगे बढ़ कर उस ने देवेंद्रजी के पैर छू लिए. ‘‘ठीक है, ठीक है,’’ देवेंद्रजी की आवाज में दया थी, करुणा थी,

‘‘अब, तुम निश्चिंत हो कर जाओ अर्जुन.’’ ‘‘हांहां, अर्जुन, अब चिंता की कोई बात नहीं,’’ बलदेव प्रसाद बोला, ‘‘अब तो देवेंद्रजी ने तुम्हारे मामले को अपने हाथों में ले ही लिया है. अब तो  हमारी और देवेंद्रजी की इज्जत का भी सवाल है.’’

देवेंद्रजी उठ कर अपने घर के भीतर चले गए. तमाशा खत्म हुआ तो भीड़ भी छंटने लगी. कुछ लोग देवेंद्रजी की प्रशंसा कर रहे थे. कुछ गया प्रसाद को कोस रहे थे. सभी जल्दीजल्दी अपने घरों की ओर बढ़ने लगे थे इस डर से कि कहीं इसी बीच उन की घरवालियां  भी किसी बदमाश के घर जा कर न बैठ गई हों.  न जाने कितने गया प्रसाद छिपे पड़े होंगे इस कोलियरी में. न जाने कितने निहत्थे अर्जुन, न जाने कितनी खूबसूरती का शाप झेलती औरतें. फिर देवेंद्र की वही चौपाल,

भीड़, तमाशा और सरेआम उछलती किसी मजदूर की इज्जत. एक हफ्ते के भीतर ही गया प्रसाद परबतिया को उस के बच्चे समेत बाइज्जत अर्जुन के घर पहुंचाने गया था. पर अर्जुन ने पार्वती को बहुत भलाबुरा कहा और उसे अपने घर पर रखने से इनकार कर दिया. इस अफवाह ने देवेंद्रजी की इज्जत को तो बढ़ाया, पर अर्जुन को सभी धिक्कारने लगे कि वह फिर बेवकूफी कर बैठा.

कुछ लोगों के विचार से अर्जुन ने जो किया वह ठीक ही किया. ऐसी बदचलन औरत को तो जिंदा ही जमीन में गाड़ देना चाहिए. गहनेकपड़े, रुपएपैसे सबकुछ तो वह गया प्रसाद के घर ही छोड़ आई थी. अर्जुन की जिंदगीभर की कमाई उस बदमाश को भेंट कर आई थी. अर्जुन को परबतिया का अचार तो डालना नहीं था, सो उस ने बिलकुल ठीक किया. परंतु एक खबर पूरी कोलियरी में बड़ी तेजी से फैली. कुछ लोग इसे अफवाह कह रहे थे, तो कुछ सौ फीसदी सच होने का दावा कर रहे थे.

दूसरी पार्टी के मजदूर नेता इस बात का जोरशोर से प्रचार कर रहे थे कि परबतिया जो गहनेकपड़े और रुपए अपने साथ लाई थी, उस में से देवेंद्रजी और बलदेव प्रसाद ने अपनेअपने हिस्से ले लिए हैं. यही नहीं, कुछ तो यहां तक कहते सुने गए कि भरी रात बलदेव प्रसाद और देवेंद्रजी गया प्रसाद के घर से मुंह काला कर के निकलते हुए भी देखे गए.

सचाई जो हो, पर इतना सच है कि परबतिया को अर्जुन ने अपने घर में घुसने तक नहीं दिया. बच्चे को भी नहीं रखा. बेचारी परबतिया बच्चे को साथ लिए कहां जाए? गया प्रसाद के यहां वह खुद गई थी या जबरन ले जाई गई थी, यह  भी किसी ने नहीं पूछा. उस पर क्या गुजरी, यह जानने की किसी ने जरूरत ही नहीं समझी.  अर्जुन के साथ हमदर्दी जताने के लिए तो अच्छीखासी भीड़ इकट्ठी हो गई थी, पर ‘परबतिया’ को कौन पूछे? औरत जो ठहरी बेचारी. और उस पर भी बदचलन होने का ठप्पा जो लग चुका था.

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