एक टीचर अपने ही स्टूडेंट से लड़ाने लगी इश्क, उजाड़ी अपनी शादीशुदा जिंदगी

दोपहर 3 बजे के करीब दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम को सुब्रतो पार्क स्थित एयरफोर्स मैडिकल सेंटर से सूचना दी गई कि एक सैनिक की मौत हो गई है, इसलिए थाना पुलिस भेजी जाए. यह मैडिकल सेंटर दक्षिणपश्चिमी दिल्ली के थाना कैंट के अंतर्गत आता है, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम ने तत्काल यह जानकारी थाना कैंट को वायरलेस द्वारा दे दी. यह 10 अप्रैल, 2014 की बात है.

चूंकि उस दिन दिल्ली में लोकसभा चुनाव का मतदान चल रहा था. इसलिए दिल्ली पुलिस के ज्यादातर पुलिसकर्मी चुनाव ड्यूटी पर थे. पुलिस चौकी सुब्रतो पार्क के चौकीप्रभारी के.बी. झा की भी ड्यूटी क्षेत्र के पोलिंग बूथ पर लगी थी.

पुलिस कंट्रोल रूम द्वारा वायरलेस से जो संदेश प्रसारित किया गया था, उसे उन्होंने सुन लिया था. इस के अलावा थानाप्रभारी ने भी उन्हें वहां जाने का निर्देश दिया था. इसलिए चौकीप्रभारी के.बी. झा एयरफोर्स मैडिकल सेंटर की ओर रवाना हो गए. दूसरी ओर सूचना मिलने पर थाना कैंट से भी एएसआई देवेंद्र कांस्टेबल सचिन के साथ एयरफोर्स अस्पताल के लिए चल पड़े थे.

पुलिस के अस्पताल पहुंचने तक डाक्टरों ने लाश को सफेद कपड़े में बंधवा दिया था. चौकीप्रभारी ने जब वहां के डाक्टरों से मृतक और उस की लाश के बारे में पूछा तो उन्होंने सफेद कपड़ों में बंधी उस लाश को दिखाते हुए बताया कि यही एयरफोर्स के सार्जेंट रमेशचंद्र की लाश है.

चौकीप्रभारी के.बी. झा ने पूछा कि रमेशचंद्र की मौत कैसे हुई तो डाक्टर ने बताया कि करीब एक घंटे पहले इन्हें इन की पत्नी सुधा एंबुलेंस से ले कर आई थीं. अस्पताल आने पर सुधा ने बताया था कि इन्हें हार्टअटैक आया था, लेकिन जब इन की जांच की गई तो पता चला कि इन की मौत हो चुकी है.

मृतक रमेशचंद्र की पत्नी सुधा गुप्ता वहीं थी. चौकीप्रभारी के.बी. झा ने पूछा कि यह सब कैसे हुआ तो उस ने कहा, ‘‘सर, यह शराब के आदी थे. कल रात यानी 9 अप्रैल की रात 10 बजे के करीब जब यह घर आए तो काफी नशे में थे. यह इन की रोजाना की  आदत थी, इसलिए मैं कुछ नहीं बोली. खाना खाने के बाद जब यह सोने के लिए लेटे तो कहा कि सीने में दर्द हो रहा है. मैं ने सोचा कि दर्द गैस की वजह से हो रहा होगा, क्योंकि इन्हें गैस की शिकायत थी.

‘‘मैं ने इन्हें पानी पिलाया और वहीं पास में बैठ गई. काफी देर तक इन्हें हलकाहलका दर्द होता रहा. उस के बाद यह सो गए तो मैं ने सोचा कि शायद इन्हें आराम हो गया है. फिर मैं भी इन्हीं के बगल में सो गई.

‘‘सुबह 9 बजे जब यह सो कर उठे तो मैं ने इन से तबीयत के बारे में पूछा. इन्होंने बताया कि अब ठीक है. नहाधो कर इन्होंने नाश्ता किया और वोट डालने की तैयारी करने लगे. यह तैयार हो कर घर से निकलने लगे तो इन्हें चक्कर आ गया. उस समय मैं किचन में थी. दौड़ कर मैं ने इन्हें संभाला और इन्हें ले जा कर बैड पर लिटा दिया.

‘‘एक बजे के करीब इन के सीने में फिर से दर्द उठा और वह दर्द भी वैसा ही था, जैसा रात में हो रहा था. मैं ने इन्हें पानी पिलाया. लेकिन इस बार दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा था. उस समय क्वार्टर में मैं अकेली थी. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं? मैं कुछ करती, दर्द अचानक काफी तेज हो गया, फिर यह बेहोश हो गए.

‘‘मैं ने इन्हें हिलायाडुलाया, लेकिन इन का शरीर एकदम ढीला पड़ चुका था. इन के चेहरे पर पानी के छींटे मार कर होश में लाने की कोशिश की, लेकिन इन्हें होश नहीं आया. मैं घबरा गई, भाग कर पड़ोस में रहने वाले एयरफोर्स औफिसर एम.पी. यादव के यहां पहुंची. उन्हें पूरी बात बता कर मैं ने इन्हें अस्पताल ले चलने के लिए कहा. उन्होंने फोन कर के एयरफोर्स की एंबुलैंस बुलवाई और इन्हें यहां लाया गया. यहां आने पर डाक्टरों ने बताया कि इन की मौत हो चुकी है.’’

सुधा गुप्ता से बातचीत करते हुए चौकीप्रभारी के.बी. झा ने देखा कि इस स्थिति में जहां महिलाओं का रोरो कर बुरा हाल होता है और वे किसी से बात करने की स्थिति में नहीं होती हैं, वहीं इस के चेहरे पर लेशमात्र का भी दुख नजर नहीं आ रहा. वह बातचीत भी इस तरह से कर रही है, जैसे सब कुछ सामान्य हो. चूंकि उस समय उस के पति की लाश अस्पताल में रखी थी, इसलिए उन्होंने उस से ज्यादा पूछताछ करना ठीक नहीं समझा.

रमेशचंद्र की लाश सफेद कपड़े में लिपटी थी, इसलिए चौकीप्रभारी लाश को भी नहीं देख सके थे. उन्हें यह मामला संदिग्ध लग रहा था, इसलिए उन्होंने सारी जानकारी थानाप्रभारी सुरेश कुमार को दी तो वह भी अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने भी सुधा गुप्ता और अस्पताल  के डाक्टरों से बात की. इस के बाद उन्होंने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सफदरजंग अस्पताल भिजवा दिया.

सूचना पा कर सार्जेंट रमेशचंद्र के घर वाले भी इलाहाबाद से सफदरजंग अस्पताल पहुंच गए थे. पुलिस ने उन से भी पूछताछ की थी. लेकिन उन से कोई खास जानकारी नहीं मिली. पोस्टमामर्टम के बाद पुलिस ने लाश मृतक के भाई सुरेश शाहू को सौंप दी.

सुधा से बातचीत के बाद थानाप्रभारी को भी शक हो गया था, इसलिए उन्होंने चौकीप्रभारी के.बी. झा को एयरफोर्स कालोनी में जा कर गुप्त रूप से मामले की छानबीन करने को कहा था.

चौकीप्रभारी के.बी झा ने एयरफोर्स कालोनी जा कर अपने ढंग से सार्जेंट रमेशचंद्र की मौत के बारे में पता करना शुरू किया. इसी पता करने में उन्हें एयरफोर्स के एक अधिकारी ने बताया कि पूरी कालोनी में इस बात की चरचा है कि मृतक रमेशचंद्र की पत्नी सुधा गुप्ता का पड़ोस में ही रहने वाले 17 वर्षीय अमित से प्रेमसंबंध है. यह बात कहां तक सच है, वह कुछ कह नहीं सकते.

कालोनी में रहने वाले एयरफोर्स कर्मचारियों की पत्नियों ने अपना एक एसोसिएशन बना रखा था. उस एसोसिएशन में सुधा गुप्ता भी थी. चौकीप्रभारी सार्जेंट की मौत के बारे में पता करने के लिए जब एसोसिएशन की महिलाओं के पास पहुंचे तो उन्होंने सार्जेंट की मौत पर अपना संदेह जाहिर करते हुए उन से सुधा गुप्ता के आचरण के बारे में पूछा तो संयोग से वहां मौजूद सुधा गुप्ता बोल पड़ी, ‘‘सर, मेरे ही पति की मौत हुई है और आप मेरे ही ऊपर इस तरह का आरोप लगा कर मुझे बदनाम कर रहे हैं. यह अच्छी बात नहीं है.’’

‘‘मैडम, हमारी आप से कोई दुश्मनी नहीं है कि हम आप को बदनाम करेंगे. जिस तरह की बातें हमें सुनने को मिल रही हैं, हम उसी के आधार पर यह बात कर रहे हैं. बहरहाल पोस्टमार्टम की रिपोर्ट मिल जाए, उस के बाद हम आप से बात करेंगे.’’ चौकीप्रभारी ने कहा.

चौकीप्रभारी ने कालोनी में रहने वाले कुछ एयरफोर्स के अधिकारियों से सुधा गुप्ता और अमित पर नजर रखने को कहा था. उन्हें डर था कि कहीं दोनों भाग न जाएं.

4 मई, 2014 को सार्जेंट रमेशचंद्र की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस को मिली. रिपोर्ट पढ़ कर पुलिस हैरान रह गई. सुधा गुप्ता ने बताया था कि उस के पति की मौत हार्टअटैक से हुई थी, जबकि पोस्टमार्टम के अनुसार उस की मौत गला दबाने से हुई थी. इस रिपोर्ट से पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि यह सब सुधा और अमित ने ही साजिश रच कर किया होगा.

आगे की काररवाई करने से पहले चौकीप्रभारी ने सफदरजंग अस्पताल के उन डाक्टरों से बात की, जिन्होंने सार्जेंट रमेशचंद्र की लाश का पोस्टमार्टम किया था. डाक्टरों ने बताया था कि उस की मौत सांस की नली दबाने यानी गला घोंटने से हुई थी, उन्होंने यह भी बताया था कि उस की गले की हड्डी में फै्रक्चर भी था. ऐसा गला दबाने पर ही हुआ होगा.

डाक्टरों ने पुलिस को यह भी बताया था कि रमेशचंद्र की जेब से एक परची मिली थी, जो उन्होंने एयरपोर्ट अथौरिटी को पहली अप्रैल को लिखी थी. उस में लिखा था, ‘मेरा कुछ दिनों से पारिवारिक क्लेश चल रहा है. मुझे नहीं पता कि मैं कितने दिन और रहूंगा. अगर मेरे साथ कुछ हो जाता है तो मेरी संपत्ति का आधा हिस्सा गरीबों में बांट दिया जाए, बाकी मेरी बेटी के लालनपालन पर खर्च किया जाए.’

पोस्टमार्टम रिपोर्ट और डाक्टरों की बातचीत से साफ हो गया था कि रमेशचंद्र की मौत हार्टअटैक से नहीं, गला दबाने से हुई थी. यानी उस की हत्या की गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट और उस परची के बारे में पुलिस उपायुक्त को भी अवगत कराया गया. उन के निर्देश पर 6 मई, 2014 को थाना दिल्ली कैंट में सार्जेंट रमेशचंद्र गुप्ता की हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया.

इस के बाद इस मामले को सुलझाने के लिए डीसीपी सुमन गोयल ने एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी सुरेश कुमार वर्मा, सुब्रतो पार्क चौकी के प्रभारी के.बी. झा, एसआई रामप्रताप, जी.आर. मीणा, एएसआई देवेंद्र, हेडकांस्टेबल अनिल, सचिन, महिला कांस्टेबल सुनीता, निर्मला आदि को शामिल किया गया.

चौकीप्रभारी के.बी. झा ने जब अस्पताल में सुधा गुप्ता से बात की थी, तभी उन्हें रमेशचंद्र की मौत पर शक हो गया था. लेकिन उस समय लाश कपड़े में बंधी हुई थी, इसलिए वह उसे देख नहीं पाए  थे. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट और परची ने उन का संदेह सच में बदल दिया था.

उन्हें कालोनी वालों से सुधा गुप्ता और 17 वर्षीय अमित के संबंधों के बारे में पता चल गया था. अब उन्हें लग रहा था कि इन्हीं संबंधों की वजह से सुधा गुप्ता और अमित ने रमेशचंद्र को ठिकाने लगाया था. चूंकि सुधा गुप्ता तेजतर्रार और उच्चशिक्षित महिला थी इसलिए पुलिस पूरे सुबूतों के साथ ही अब उस से पूछताछ करना चाहती थी.

पुलिस को सुधा गुप्ता और अमित के मोबाइल नंबर मिल गए थे. पुलिस ने दोनों नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला कि दोनों ने पिछले एक महीने में एकदूसरे को करीब डेढ़ हजार फोन किए थे. दोनों ने इतनी काल्स किसी अन्य नंबर पर नहीं की थीं. इस काल डिटेल्स ने पुलिस के शक को और मजबूत कर दिया था.

पुलिस को पर्याप्त सुबूत मिल गए तो सुधा को पूछताछ के लिए थाने बुलाने की तैयारी होने लगी. सुधा एयरफोर्स कालोनी के कवार्टर नंबर जी-28 में रहती थी. अमित भी वहीं पास में रहता था. पूछताछ के लिए बुलाने की खातिर पुलिस जब दोनों के क्वार्टरों पर पहुंची तो दोनों ही अपने क्वार्टरों से गायब मिले. इस से यही अंदाजा लगाया गया कि पुलिस की जांच सही दिशा में जा रही थी.

दोनों कहीं दूर न चले जाएं, इसलिए पुलिस टीम सरगर्मी से उन की तलाश करने लगी. इधरउधर भागादौड़ी करने के बाद पता चला कि सुधा गुप्ता और अमित वसंत विहार के वसंत गांव में रह रहे हैं. आखिर पुलिस उन के ठिकाने पर पहुंच ही गई. सुधा को जरा भी उम्मीद नहीं थी कि पुलिस वहां पहुंच जाएगी, इसलिए पुलिस को देख कर वह हैरान रह गई.

सुधा ने वह फ्लैट किराए पर ले रखा था. पुलिस को देख कर मकान मालिक भी आ गया था. पूछताछ में मकान मालिक ने बताया कि फ्लैट किराए पर लेते समय सुधा ने अमित को अपना पति बताया था. इस तरह पुलिस को सुधा के खिलाफ एक और सुबूत मिल गया था. पुलिस सुधा और अमित को ले कर थाने आ गई.

थाने में आते ही थानाप्रभारी ने सुधा से पूछा, ‘‘सचसच बताओ, तुम ने अपने पति को क्यों मारा?’’

‘‘सर, मैं भला अपने पति को क्यों मारूंगी, उन की मौत तो हार्टअटैक से हुई थी.’’

‘‘तुम यह बात इतने दावे के साथ कैसे कह सकती हो? तुम्हें कैसे पता चला कि मौत हार्टअटैक से हुई थी?’’ थानाप्रभारी सुरेश कुमार वर्मा ने पूछा.

‘‘उन के सीने में जिस तरह से दर्द हुआ था, उस से मैं ने अंदाजा लगाया था कि उन्हें हार्टअटैक आया था.’’

‘‘हमारे पास जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट है, उस में साफ लिखा है कि रमेशचंद्र की मौत गला दबाने से हुई थी.’’

‘‘यह कैसे हो सकता सर? मेरे सामने उन्हें हार्टअटैक आया था. सीने में दर्द से ही वह बेहोश हुए थे.’’ सुधा गुप्ता ने कहा.

थानाप्रभारी कुछ और पूछते, इस से पहले वहीं बैठे चौकीप्रभारी के.बी. झा बोले, ‘‘अच्छा, सुधा यह बताओ कि अमित से तुम्हारा क्या संबंध है?’’

‘‘अमित मेरा स्टूडेंट है. मैं उसे ट्यूशन पढ़ाती हूं.’’ सुधा ने कहा.

‘‘यह तो हमें भी पता है कि तुम उसे ट्यूशन पढ़ाती थी. लेकिन मैं उस संबंध के बारे में पूछ रहा हूं, जो सब की नजरों से छिपा रखा था. तुम पढ़ीलिखी और समझदार हो, फिर भी इस तरह का गलत काम कर रही थी. क्यों उस बच्चे की जिंदगी बरबाद कर रही हो?’’

‘‘सर, आप क्यों बिना मतलब हमें बदनाम कर रहे हैं?’’

‘‘हम बदनाम नहीं कर रहे हैं, बल्कि सही कह रहे हैं. तुम अपने फोन की काल डिटेल्स देखो.’’ चौकीप्रभारी ने उसे काल डिटेल्स दिखाते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों ने पिछले एक महीने में डेढ़ हजार से ज्यादा फोन किए हैं. ऐसा कौन सा काम था, जो तुम उस से रातदिन बातें करती रहती थीं?

‘‘इस के अलावा वसंत गांव में तुम ने जो फ्लैट ले रखा था. तुम उस में उसे अपना पति बता कर रह रही थी. मेरे खयाल से तुम्हें अब पता चल गया होगा कि मुझे सब जानकारी मिल गई है. इसलिए अब तुम्हें सच्चाई बता देनी चाहिए, वरना तुम्हें पता ही है कि पुलिस चाहेगी तो सच्चाई उगलवा लेगी.’’

चौकीप्रभारी के इतना कहते ही सुधा रो पड़ी. हथेलियों से आंसू पोंछते हुए उस ने कहा, ‘‘सर, वह तो केवल नाम के पति थे. किसी भी औरत को सिर्फ पैसा ही नहीं चाहिए. पैसे के अलावा भी उस की तमाम जरूरतें होती हैं. इस बात को वह समझते ही नहीं थे, बल्कि इधर घर में काफी क्लेश करने लगे थे.’’

इस के बाद सुधा ने पति की हत्या के पीछे की जो कहानी पुलिस को सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी—

रमेशचंद्र मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के गांव लालबिहारा के रहने वाले थे. 19 साल पहले वह एयरफोर्स में सार्जेंट के रूप में भरती हुए थे. अनेक जगह नौकरी करने के बाद उन का तबादला दिल्ली हुआ तो उन्हें रहने के लिए सुब्रतो पार्क स्थित एयरफोर्स कालोनी में जी-28 नंबर का फ्लैट आवंटित हुआ.

दूसरी मंजिल पर स्थित इस फ्लैट में वह अकेले ही रहते थे. करीब 5 साल पहले उन की शादी गोरखपुर के सैनिक कुंज में रहने वाली सुधा गुप्ता से हुई थी. सुधा के पिता भी भारतीय वायु सेना में नौकरी करते थे. बीकौम पास सुधा की जब शादी हुई थी, तब वह 23 साल की थी, जबकि रमेशचंद्र 35 साल के थे. दोनों की उम्र में 12 साल का अंतर था.

शादी के बाद सुधा पति के साथ दिल्ली आ कर सरकारी क्वार्टर में रहने लगी थी. कुछ दिनों तक उन की गृहस्थी ठीकठाक चली. उसी बीच सुधा एक बेटी की मां बनी. शादी के बाद भी सुधा अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी. इस के लिए उस ने पति से बात की तो उस ने इजाजत दे दी. सुधा कानपुर यूनिवर्सिटी से पत्राचार द्वारा एमकौम करने लगी.

रमेशचंद्र रोज शराब पीते थे. एक तरह से वह शराब के आदी थे. शाम को घर लौटते तो शराब के नशे में धुत होते थे. सुधा ने उन्हें बहुत समझाया, लेकिन उन्होंने अपनी आदत नहीं बदली. रोजरोज एक ही बात कहने से रमेशचंद्र चिढ़ने लगा.

इस के अलावा सुधा की सब से बड़ी समस्या यह थी कि रमेशचंद्र उस की जरूरतों पर बिलकुल ध्यान नहीं देते थे. घर में हर तरह की सुखसुविधा थी, लेकिन रमेशचंद्र यह नहीं समझते थे कि सुखसुविधाओं के अलावा भी पत्नी की अन्य जरूरतें भी होती हैं.

रमेशचंद्र नशे में धुत आते और खाना खा कर सो जाते. पत्नी की भावनाओं पर वह बिलकुल ध्यान नहीं देते. सुधा कभी पहल करती, तब भी वह उसे संतुष्ट नहीं कर पाते थे. लिहाजा वह तड़प कर रह जाती थी.

सुधा की यह ऐसी समस्या थी, जिसे वह किसी से कह भी नहीं सकती थी. उस की और रमेशचंद्र की उम्र में जो 12 साल का अंतर था, उसे अब वह साफ महसूस कर रही थी. पति की इन उपेक्षाओं से वह चिड़चिड़ी सी हो गई थी.

पति के ड्यूटी पर चले जाने पर सुधा बेटी के साथ मन बहलाने की कोशिश करती. अब तक सुधा की एमकौम की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी. खुद को व्यस्त रखने के लिए सुधा पास ही संकुल कोचिंग सेंटर में पढ़ाने जाने लगी. इस से उस का समय भी कट जाता था, साथ ही चार पैसे भी मिल रहे थे.

उसी कोचिंग सेंटर में अमित पढ़ने आता था. 11वीं में पढ़ने वाले अमित को सुधा कौमर्स पढ़ाती थी. अमित के पिता भी एयरफोर्स में थे. रहने के लिए उन्हें जो फ्लैट मिला था, वह सुधा के फ्लैट के करीब ही था. इसलिए सुधा अमित को अच्छी तरह से जानती थी.

अमित की उम्र 17 साल जरूर थी, लेकिन हष्टपुष्ट होने की वजह से वह अपनी उम्र से काफी बड़ा लगता था. वह थोड़ा मजाकिया स्वभाव का था, इसलिए उस की चुलबुली बातें सुधा को बहुत अच्छी लगती थीं.

पति से असंतुष्ट सुधा अमित में दिलचस्पी लेने लगी थी. उसे लगा कि जो ख्वाहिश उसे बेचैन किए है, वह अमित से पूरी हो सकती है. लिहाजा उम्र में 11 साल छोटे अमित को वह प्यार के जाल में फांसने की कोशिश करने लगी. अब वह पढ़ाई के बहाने अमित को अपने कमरे पर बुलाने लगी.

अमित भले ही नाबालिग था, लेकिन अपनी टीचर सुधा के हावभाव और बातों से उस के मन की बात को समझ गया था, इसलिए सुधा की पहल से वह खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाया और एक दिन उस ने वही कर डाला, जो सुधा चाहती थी. यह करीब 6 महीने पहले की बात है.

एक बार उन्होंने सीमाएं लांघी तो यह रोज का नियम बन गया. रमेशचंद्र के ड्यूटी पर चले जाने के बाद सुधा अमित को अपने क्वार्टर पर पढ़ाने के बहाने बुला लेती. बेटी छोटी थी, वह खापी कर सो जाती. इस के बाद दोनों को किसी की चिंता नहीं रहती थी.

सुधा को जिस चीज की जरूरत थी, अब वह अमित से मिल रही थी. इसलिए उसे अब पति से कोई शिकायत नहीं रह गई थी. उस ने पति से लड़नाझगड़ना भी बंद कर दिया था. रमेशचंद्र यह नहीं जान पाए कि पत्नी में अचानक यह बदलाव कैसे आ गया.

उन्हें लगता था कि सुधा अब समझदार और जिम्मेदार हो गई है. बहरहाल घर की रोजरोज की किचकिच बंद होने से वह खुश थे. इस तरह अमित और सुधा को रमेशचंद्र से कोई दिक्कत नहीं हो रही थी.

सुधा अमित को इस कदर चाहने लगी कि वह उस से शादी करने के बारे में सोचने लगी. अमित भी इस के लिए तैयार था. लेकिन यह भी सच है कि यह खेल कितना भी छिपा कर खेला जाए, इस की भनक लग ही जाती है.

रमेशचंद्र की गैरमौजूदगी में अमित का रोजरोज उन के घर जाने से लोगों को शक होने लगा. सुधा और अमित को ले कर एयरफोर्स कालोनी में तरहतरह की चरचा होने लगी. जब इस बारे में रमेशचंद्र को पता चला तो उन्होंने सुधा को समझाया कि वह अमित को अपने घर न आने दे, क्योंकि उसे ले कर लोग उस पर शक कर रहे हैं.

‘‘लोग जो कहते हैं, तुम ने उस  पर विश्वास कर लिया.’’ सुधा तुनक कर बोली, ‘‘अगर वह मेरे पास पढ़ने आता है तो लोगों को न जाने क्यों तकलीफ होती है? लोगों से अपना घर तो संभलता नहीं, दूसरों के घरों में ताकझांक करते हैं. मेरे सामने कोई कहे तो मैं बताऊं.’’

‘‘मेरे खयाल से तुम अमित को पढ़ाना बंद कर दो, वैसे भी तुम्हें पैसों की क्या जरूरत है? हमारी एक ही तो बेटी है. जो मैं कमाता हूं, वह हमारे परिवार के लिए काफी है.’’ रमेशचंद्र ने कहा.

‘‘तुम चुप रहो,’’ सुधा गुस्से में बोली, ‘‘मैं किसी के कह देने से शांत हो कर घर में नहीं बैठ जाऊंगी. मैं ने पढ़ाई घर में बैठने के लिए नहीं की है. लोग कुछ भी कहें, मैं अमित को पढ़ाना बंद नहीं करूंगी.’’

सुधा को नाराज होते देख रमेशचंद्र चुप हो गए. क्योंकि उन्हें लगा कि बात बढ़ाने से बेकार ही झंझट होगा. बात जहां से शुरू हुई थी, वहीं की वहीं रह गई. पति के समझाने का सुधा पर कोई असर नहीं हुआ. वह अमित से पहले की ही तरह मिलतीजुलती रही.

कालोनी वालों की बातें सुन सुन कर रमेशचंद्र परेशान हो चुके थे. इन बातों से वह खुद को अपमानित महसूस करते थे. वह सुधा को समझाते थे. लेकिन वह रवैया बदलने को तैयार नहीं थी. वह जब भी उस से कुछ कहते, वह लड़ने को तैयार हो जाती.

सुधा और अमित ने शादी करने का फैसला कर लिया था. लेकिन रमेशचंद्र के रहते यह संभव नहीं था. इसलिए सुधा ने अमित के साथ मिल कर रमेशचंद्र को खत्म करने की योजना बना डाली.

10 अप्रैल, 2014 को साढे़ 10 बजे के करीब सुधा ने योजना के अनुसार, प्रेमी अमित को अपने क्वार्टर पर बुला लिया. उस समय रमेशचंद्र कमरे में ही थे. जैसे ही उन्होंने अमित को अपने क्वार्टर में देखा, भड़क उठे. अमित ने आगे बढ़ कर पूरी ताकत से सार्जेंट रमेशचंद्र की गरदन पर एक घूंसा मारा. उसी घूंसे में नशेड़ी रमेशचंद्र गिर पड़े.

वह गिर ही नहीं पड़े, बल्कि बेहोश हो गए. अमित को लगा इस का खेल खत्म हो गया है. लेकिन सुधा ने पति की नाक पर हाथ रख कर देखा तो सांस चल रही है. उस ने कहा, ‘‘अमित अभी इस की सांस चल रही है. इसे खत्म कर दो. अगर यह जिंदा रहा तो हम बेमौत मारे जाएंगे.’’

अमित झुका और रमेशचंद्र की गरदन पकड़ कर पूरी ताकत से दबा दी. थोड़ी देर में गरदन लुढ़क गई. यानी उस का खेल खत्म हो गया. दोनों ने रमेशचंद्र की लाश को उठा कर बैड पर रखा. सुधा ने पति की लाश को रजाई ओढ़ाते हुए कहा, ‘‘अमित, अब तुम जाओ, आगे का काम मैं कर लूंगी.’’

अमित चला गया तो सुधा पड़ोस में रहने वाले एम.पी. यादव के यहां पहुंची और पति को हार्टअटैक आने की बात कही. उन्होंने एंबुलैंस बुला कर रमेशचंद्र को अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

सुधा ने सोचा था कि हार्टअटैक की बात बताने पर वह बच जाएगी. शुरू में उसे लगा था कि वह अपनी योजना में सफल हो गई है. पुलिस से बचने के लिए उस ने दक्षिणी दिल्ली के वसंत गांव में एक फ्लैट किराए पर ले लिया था. जिस में अमित के साथ रह रही थी. पति की हत्या के 10 दिनों बाद वह अमित के साथ अमृतसर भी घूमने गई थी. दोनों वहां 3 दिनों तक एक होटल में रुके थे.

थाना कैंट पुलिस को सुधा के हावभाव पर पहले ही शक हो गया था, लेकिन सुबूत के अभाव से उस समय पुलिस कोई काररवाई नहीं कर सकी थी. परंतु पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो पुलिस के हाथ एक बड़ा सुबूत लग गया. इस के बाद सुधा को पति की हत्या की बात स्वीकार करनी पड़ी.

सुधा से पूछताछ के बाद पुलिस ने अमित से भी पूछताछ की. उस ने भी वही सब बताया, जो सुधा ने बताया था. इस के बाद पुलिस ने रमेशचंद्र की हत्या के आरोप में सुधा को गिरफ्तार कर 9 मई, 2014 को पटियाला हाउस में महानगर दंडाधिकारी धीरज मित्तल की अदालत में पेश किया, जहां से उसे 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया.

जबकि नाबालिग अमित को दिल्ली गेट स्थित बाल सुधार गृह भेज दिया गया. 2 दिनों बाद 11 मई को पुन: सुधा को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

सुधा के साथ उस की ढाई साल की बेटी भी उस के साथ जेल चली गई, क्योंकि उस ने ससुराल वालों को बेटी सौंपने से मना कर दिया था. लिहाजा मां के गुनाह की वजह से बेटी भी जेल की चारदीवारी में कैद है. मामले की जांच थानाप्रभारी सुरेश कुमार वर्मा कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित. अमित परिवर्तित नाम है.

देवर के प्यार में अंधी हुई भाभी ने लीं ननद की जान, बनीं हत्यारी

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के गैनी गांव में छोटेलाल कश्यप अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में उन की पत्नी रामवती के अलावा 2 बेटे नरेश व तालेवर, 2 बेटियां सुनीता व विनीता थीं. छोटेलाल खेती किसानी का काम करते थे. इसी की आमदनी से उन्होंने बच्चों की परवरिश की. बच्चे शादी लायक हो गए तो उन्होंने बड़े बेटे नरेश का विवाह नन्ही देवी नाम की युवती से करा दिया.

कालांतर में नन्ही ने एक बेटे शिवम व एक बेटी सीमा को जन्म दिया. बाद में उन्होंने बड़ी बेटी सुनीता का भी विवाह कर दिया. अब 2 बच्चे शादी के लिए रह गए थे. छोटेलाल उन दोनों की शादी की भी तैयारी कर रहे थे.

इसी बीच दूसरे बेटे तालेवर ने ऐसा काम कर दिया, जिस से उन की गांव में बहुत बदनामी हुई. तालेवर ने सन 2014 में अपने ही पड़ोस में रहने वाली एक महिला के साथ रेप कर दिया था. जिस के आरोप में उस को जेल जाना पड़ा था.

उधर छोटेलाल की छोटी बेटी विनीता भी 20 साल की हो चुकी थी. यौवन की चमक से उस का रूपरंग दमकने लगा था. वह ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी, पर उसे फिल्म देखना, फैशन के अनुसार कपड़े पहनना अच्छा लगता था. उस की सहेलियां भी उस के जैसे ही विचारों की थीं, इसलिए उन में जब भी बात होती तो फिल्मों की और उन में दिखाए जाने वाले रोमांस की ही होती थी. यह उम्र का तकाजा भी था.

विनीता के खयालों में भी एक अपने दीवाने की तसवीर थी, लेकिन यह तसवीर कुछ धुंधली सी थी. खयालों की तसवीर के दीवाने को उस की आंखें हरदम तलाशती थीं. वैसे उस के आगेपीछे चक्कर लगाने वाले युवक कम नहीं थे, लेकिन उन में से एक भी ऐसा न था, जो उस के खयालों की तसवीर में फिट बैठता हो.

बात करीब 2 साल पहले की है. विनीता अपने पिता के साथ एक रिश्तेदारी में बरेली के कस्बा आंवला गई, जो उस के यहां से करीब 13 किलोमीटर दूर था. वहां से वापसी में वह आंवला बसअड्डे पर खड़ी बस का इंतजार कर रही थी तभी एक नवयुवक जोकि वेंडर था, पानी की बोतल बेचते हुए उस के पास से गुजरा.

उस युवक को देख कर विनीता का दिल एकाएक तेजी से धड़कने लगा. निगाहें तो जैसे उस पर ही टिक कर रह गई थीं. उस के दिल से यही आवाज आई कि विनीता यही है तेरा दीवाना, जिसे तू तलाश रही थी. उस युवक को देखते ही उस के खयालों में बनी धुंधली तसवीर बिलकुल साफ हो गई.

वह उसे एकटक निहारती रही. उसे इस तरह निहारता देख कर वह युवक भी बारबार उसी पर नजर टिका देता. जब उन की निगाहें आपस में मिल जातीं तो दोनों के होंठों पर मुसकराहट तैरने लगती.

उसी समय बस आ गई और विनीता अपने पिता के साथ बस में बैठ गई. वह पिता के साथ बस में बैठ जरूर गई थी, पर पूरे रास्ते उस की आंखों के सामने उस युवक का चेहरा ही घूमता रहा. विनीता उस युवक के बारे में पता कर के उस से संपर्क करने का मन बना चुकी थी.

अगले ही दिन सहेली के यहां जाने का बहाना बना कर विनीता आंवला के लिए निकल गई. बसअड्डे पर खड़े हो कर उस की आंखें उसे तलाशने लगीं. कुछ ही देर में वह युवक विनीता को दिख गया. पर उस युवक ने विनीता को नहीं देखा था.

विनीता उस पर नजर रख कर उस का पीछा कर के उस के बारे में जानने की कोशिश में लग गई. कुछ देर में ही उस ने उस युवक के बारे में किसी से जानकारी हासिल कर उस का नाम व मोबाइल नंबर पता कर लिया. उस युवक का नाम हरि था और वह अपने परिवार के साथ आंवला में ही रहता था.

एक दिन हरि सुबह के समय अपनी छत पर बैठा था, तभी उस का मोबाइल बज उठा. हरि ने स्क्रीन पर बिना नंबर देखे ही काल रिसीव करते हुए हैलो बोला.

‘‘जी, आप कौन बोल रहे हैं?’’ दूसरी ओर से किसी युवती की मधुर आवाज सुनाई दी तो हरि चौंक पड़ा.

वह बोला, ‘‘आप कौन बोल रही हैं और आप को किस से बात करनी है?’’

‘‘मैं विनीता बोल रही हूं. मुझे अपनी दोस्त से बात करनी थी, लेकिन लगता है नंबर गलत डायल हो गया.’’

‘‘कोई बात नहीं, आप को अपनी दोस्त का नंबर सेव कर के रखना चाहिए. ऐसा होगा तो दोबारा गलती नहीं होगी.’’

‘‘आप पुलिस में हैं क्या?’’

‘‘जी नहीं, आम आदमी हूं.’’

‘‘किसी के लिए तो खास होंगे?’’

‘‘आप बहुत बातें करती हैं.’’

‘‘अच्छी या बुरी?’’

‘‘अच्छी.’’

‘‘क्या अच्छा है, मेरी बातों में?’’

अब हंसने की बारी थी हरि की. वह जोर से हंसा, फिर बोला, ‘‘माफ करना, मैं आप से नहीं जीत सकता.’’

‘‘और मैं माफ न करूं तो?’’

‘‘तो आप ही बताइए, मैं क्या करूं?’’ हरि ने हथियार डाल दिए.

‘‘अच्छा जाओ, माफ किया.’’

दरअसल विनीता को हरि का मोबाइल नंबर तो मिल गया था. लेकिन विनीता के पास खुद का मोबाइल नहीं था, इसलिए उस ने अपनी सहेली का मोबाइल फोन ले कर बात की थी. पहली ही बातचीत में दोनों काफी घुलमिल गए थे. दोनों के बीच कुछ ऐसी बातें हुईं कि दोनों एकदूसरे के प्रति अपनापन महसूस करने लगे.

फिर उन के बीच बराबर बातें होने लगीं.  विनीता ने हरि को बता दिया था कि उस दिन अनजाने में उस के पास काल नहीं लगी थी बल्कि उस ने खुद उस का नंबर हासिल कर के उसे काल की थी और उन की मुलाकात भी हो चुकी है.

जब हरि ने मुलाकात के बारे में पूछा तो विनीता ने आंवला बसअड्डे पर हुई मुलाकात का जिक्र कर दिया. हरि यह जान कर बहुत खुश हुआ क्योंकि उस दिन विनीता का खूबसूरत चेहरा आंखों के जरिए उस के दिल में उतर गया था.

इस के बाद दोनों एकदूसरे से रूबरू मिलने लगे. इसी बीच एक मुलाकात में दोनों ने अपने प्यार का इजहार भी कर दिया. दिनप्रतिदिन उन का प्यार प्रगाढ़ होता जा रहा था. विनीता तो दीवानगी की हद तक दिल की गहराइयों से हरि को चाहने लगी थी.

धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. प्रेम दीवानों के प्यार की खुशबू जब जमाने को लगती है तो वह उन दीवानों पर तरहतरह की बंदिशें लगाने लगता है. यही विनीता के परिजनों ने किया. विनीता के घर वालों को पता चल गया कि वह जिस लड़के से मिलती है, वह बदमाश टाइप का है.

इसलिए उन्होंने विनीता पर प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए. लेकिन तमाम बंदिशों के बाद भी विनीता हरि से मिलने का मौका निकाल ही लेती थी.

धीरेधीरे दोनों के इश्क के चर्चे गांव में होने लगे. गांव के लोगों ने कई बार विनीता को हरि के साथ देखा. इस पर वह तरहतरह की बातें बनाने लगे. गांव वालों के बीच विनीता के इश्क के चर्चे होने लगे. इस से छोटेलाल की गांव में बदनामी हो रही थी.

घरपरिवार के सभी लोगों ने विनीता को खूब समझाया लेकिन प्यार में आकंठ डूबी विनीता पर इस का कोई असर नहीं हुआ. पूरा परिवार गांव में हो रही बदनामी से परेशान था. रोज घर में कलह होती लेकिन हो कुछ नहीं पाता था.

29 सितंबर की सुबह करीब 8 बजे विनीता अपनी भाभी नन्ही देवी के साथ दिशामैदान के लिए खेतों की तरफ गई थी. कुछ समय बाद नन्ही देवी घर लौटी तो विनीता उस के साथ नहीं थी. घर वालों ने उस से विनीता के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि जब वह दिशामैदान के बाद बाजरे के खेत से बाहर निकली तो उसे विनीता नहीं दिखी.

उस ने सोचा कि विनीता शायद अकेली घर चली गई होगी. लेकिन यहां आ कर पता चला कि वह यहां पहुंची ही नहीं है. नन्ही ने कहा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि विनीता अपनी किसी सहेली के यहां चली गई हो.

कुछ ही देर में गांव के एक किसान चंद्रपाल ने विनीता के घर पहुंच कर बताया कि रामानंद शर्मा के बाजरे के खेत में विनीता की लाश पड़ी है. उस समय छोटेलाल पत्नी के साथ डाक्टर के पास दवा लेने गए थे. छोटेलाल के धान के खेत के बराबर में ही रामानंद का बाजरे का खेत था.

यह खबर सुन कर सभी घर वाले लगभग दौड़ते हुए घटनास्थल पर पहुंचे. विनीता की लाश देख कर सब बिलखबिलख कर रोने लगे. इसी बीच वहां गांव के काफी लोग पहुंच गए थे. ग्रामप्रधान भी मौके पर थे. उन्होंने घटना की सूचना स्थानीय थाना अलीगंज को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी विशाल प्रताप सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. विनीता के पेट में गोली लगने के निशान थे. निशान देख कर ऐसा लग रहा था कि किसी ने काफी नजदीक से गोली मारी है. इस का मतलब था कि हत्यारे को विनीता काफी अच्छी तरह से जानती थी. इसी बीच रोतेबिलखते छोटेलाल और उन की पत्नी भी वहां पहुंच गए.

थानाप्रभारी विशाल प्रताप सिंह ने नन्ही और बाकी घर वालों से आवश्यक पूछताछ की. फिर विनीता की लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

थाने वापस आ कर उन्होंने छोटेलाल कश्यप की लिखित तहरीर पर गांव के ही इंद्रपाल, हरपाल, उमाशंकर और धनपाल के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. तहरीर में हत्या का कारण इन लोगों से रंजिश बताया गया था.

थानाप्रभारी सिंह ने केस की जांच शुरू की तो पता चला कि विनीता का भाई तालेवर अपने मकान के पीछे रहने वाली युवती से दुष्कर्म के मामले में 2014 से जेल में बंद है. पुलिस को पता चला कि जिस युवती ने रेप का आरोप लगाया था, छोटेलाल ने उस युवती के पिता को भी विनीता की हत्या में आरोपी बनाया गया था.

साथ ही विनीता के किसी हरि नाम के युवक से प्रेम संबंध की बात पता चली. बेटी की इस हरकत से घर वाले काफी परेशान थे. इस से पुलिस का शक विनीता के परिवार पर केंद्रित हो गया.

थानाप्रभारी ने सोचा कि कहीं एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश तो नहीं की गई. विनीता से छुटकारा तो मिलता ही साथ ही तालेवर को जेल भेजने वाले को भी जेल की चारदीवारी में कैद कराने में सफल हो जाते.

पूरी घटना की जांच में यही निष्कर्ष निकला कि परिवार का ही कोई सदस्य इस घटना में शामिल है. लेकिन मांबाप तो थे नहीं, उन का बेटा नरेश गांव में नहीं था. बची बेटे की पत्नी नन्ही जो विनीता के साथ ही गई थी और अकेली वापस लौटी थी. नन्ही पर ही हत्या का शक गहराया. थानाप्रभारी ने गांव के लोगों से पूछताछ की तो ऐसे में एक व्यक्ति ऐसा मिल गया, जिस ने ऐसा कुछ बताया कि थानप्रभारी की आंखों में चमक आ गई.

इस के बाद 2 अक्तूबर को उन्होंने नन्ही देवी को घर से पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. जब महिला आरक्षी की उपस्थिति में नन्ही से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गई. उस ने विनीता की हत्या अपने नाबालिग बेटे शिवम के साथ मिल कर किए जाने की बात स्वीकार कर ली और पूरी कहानी बयान कर दी.

विनीता के हरि नाम के युवक से प्रेम संबंध की बात से घर का हर कोई नाराज था. समझाने के बावजूद भी विनीता नहीं मान रही थी. गांव में हो रही बदनामी से घर वालों का जीना मुहाल हो गया था.

नन्ही अपनी ननद विनीता की कारगुजारियों से कुछ ज्यादा ही खफा थी. वह अपने परिवार को बदनामी से बचाना चाहती थी. इसलिए उस ने विनीता की हत्या अपने नाबालिग बेटे शिवम से कराने का फैसला कर लिया.

इस हत्या में उस इंसान को भी फंसा कर  जेल भेजने की योजना बना ली, जिस की बेटी से दुष्कर्म के मामले में उस का देवर तालेवर जेल में बंद था. उस इंसान के जेल जाने पर उस से समझौते का दबाव बना कर वह देवर तालेवर को जेल से छुड़ा सकती थी. घर में एक .315 बोर का तमंचा पहले से ही रखा हुआ था. नन्ही ने शिवम के साथ मिल कर विनीता की हत्या की पूरी योजना बना ली.

29 सितंबर की सुबह 8 बजे नन्ही ने बेटे शिवम को तमंचा ले कर घर से पहले ही भेज दिया. फिर विनीता को साथ ले कर दिशामैदान के लिए खुद घर से निकल पड़ी. विनीता को ले कर नन्ही अपने धान के खेत के बराबर में बाजरे के खेत में पहुंची. शिवम वहां पहले से मौजूद था.

विनीता के वहां पहुंचने पर शिवम ने तमंचे से विनीता पर फायर कर दिया. गोली सीधे विनीता के पेट में जा कर लगी. विनीता जमीन पर गिर कर कुछ देर तड़पी, फिर शांत हो गई.

विनीता की लीला समाप्त करने के बाद शिवम ने अपने धान के खेत में तमंचा छिपाया और वहां से छिपते हुए निकल गया. नन्ही भी वहां से घर लौट गई. लेकिन पुलिस के शिकंजे से वह न अपने आप को बचा सकी और न ही अपने बेटे को.

थानाप्रभारी विशाल प्रताप सिंह ने नन्ही को मुकदमे में 120बी का अभियुक्त बना दिया. शिवम की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा भी पुलिस ने बरामद कर लिया.

आवश्यक लिखापढ़ी के बाद नन्ही को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया, और शिवम को बाल सुधार गृह.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में शिवम नाम परिवर्तित है.

– फोटो काल्पनिक है. घटना से संबंधित नहीं है.

अवैध संबंध में विधवा ने किया एक का कत्ल, दो साल से चल रहा था रिलेशन

एक बच्चे की मां अंजलि ने विधवा होने के बाद मौसी के पति साजिद और स्कूल के गार्ड देवीलाल से अवैध संबंध बना लिए थे. आखिर ऐसी क्या वजह रही जो अंजलि को साजिद के साथ मिल कर देवीलाल की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा…    

सुबह का वक्त था. उत्तरपूर्वी दिल्ली की दिलशाद कालोनी में रहने वाले संजीव शर्मा चाय की चुस्कियां लेते हुए अखबार पढ़  रहे थे, तभी उन के पड़ोसी नदीम ने उन्हें खबर दी कि उन के स्कूल का गेट खुला हुआ है और अंदर पुकारने पर गार्ड देवीलाल भी जवाब नहीं दे रहा है. संजीव शर्मा का एच-432, ओल्ड सीमापुरी में बाल कौन्वेंट स्कूल था. देवीलाल उन के स्कूल में रात का सुरक्षागार्ड था. शर्माजी ने रहने के लिए उसे स्कूल में ही एक कमरा दे दिया था

नदीम की बात सुन कर संजीव कुमार शर्मा उस के साथ अपने स्कूल की तरफ निकल गए. संजीव शर्मा जब अपने स्कूल में देवीलाल के कमरे में गए तो वहां लहूलुहान हालत में देवीलाल की लाश पड़ी थी. उस के सिर तथा दोनों हाथों से खून निकल रहा था. यह खौफनाक मंजर देख कर संजीव कुमार शर्मा और नदीम के होश फाख्ता हो गए. संजीव शर्मा ने उसी समय 100 नंबर पर फोन कर के वारदात की सूचना पुलिस को दे दी. यह इलाका चूंकि सीमापुरी थानाक्षेत्र में आता है, इसलिए थाना सीमापुरी के एसआई आनंद कुमार और एसआई सौरभ घटनास्थल एच-432, ओल्ड सीमापुरी पहुंच गए. तब तक वहां आसपास रहने वाले कई लोग पहुंच चुके थे

पुलिस ने एक फोल्डिंग पलंग पर पड़ी सिक्योरिटी गार्ड देवीलाल की लाश का निरीक्षण किया तो उस के सिर पर चोट थी. ऐसा लग रहा था जैसे उस के सिर पर कोई भारी चीज मारी गई हो. इस के अलावा उस की दोनों कलाइयां कटी मिलीं. बिस्तर के अलावा फर्श पर भी खून ही खून फैला हुआ था. कमरे में रखी दोनों अलमारियां खुली हुई थीं. काफी सामान फर्श पर बिखरा हुआ था. हालात देख कर लूट की संभावना भी नजर आ रही थी.

इसी कमरे की मेज पर शराब की एक बोतल 2 गिलास तथा बचा हुआ खाना भी मौजूद था. एसआई सौरभ ने यह सूचना थानाप्रभारी संजीव गौतम को दे दी. हत्याकांड की सूचना पा कर थानाप्रभारी संजीव गौतम पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचेघटनास्थल का मौकामुआयना करने के बाद थानाप्रभारी इस नतीजे पर पहुंचे कि हत्यारा स्कूल में मित्रवत दाखिल हुआ था और उस ने मृतक के साथ शराब भी पी थी. इसलिए उस की हत्या में उस का कोई नजदीकी ही शामिल हो सकता है. खुली अलमारी और बिखरा सामान लूट की तरफ इशारा कर रहा था.

स्कूल मालिक संजीव शर्मा ने बताया कि देवीलाल जम्मू का रहने वाला था. पिछले 2 साल से वह उन के स्कूल में रात को सिक्योरिटी गार्ड के रूप में काम कर रहा था. थानाप्रभारी ने मौके पर क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम बुला कर गिलास तथा शराब की खाली बोतल से फिंगरप्रिंट्स उठवा लिए. मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए जीटीबी अस्पताल भेज दिया. फिर स्कूल मालिक संजीव शर्मा की तहरीर पर गार्ड देवीलाल उर्फ दीनदयाल की हत्या का मामला दर्ज करवा दिया.

थानाप्रभारी संजीव गौतम ने इस केस की तफ्तीश इंसपेक्टर (इनवैस्टीगेशन) जे.के. सिंह को सौंप दी. उन्होंने डीसीपी नूपुर प्रसाद, एसीपी रामसिंह को भी घटना के बारे में अवगत करा दिया.डीसीपी नूपुर प्रसाद ने इस हत्याकांड का खुलासा करने के लिए एसीपी रामसिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में आईपीएस हर्ष इंदोरा, थानाप्रभारी संजीव गौतम, अतिरिक्त थानाप्रभारी अरुण कुमार, इंसपेक्टर (इनवैस्टीगेशन) जे.के. सिंह, स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर हीरालाल, एसआई मीना चौहान, एएसआई आनंद, कांस्टेबल प्रियंका, वीरेंद्र, संजीव आदि शामिल थे.

टीम ने जांच शुरू की और स्कूल के प्रिंसिपल तथा मालिक संजीव कुमार शर्मा से मृतक गार्ड देवीलाल की गतिविधियों के बारे में विस्तार से पूछताछ की तो उन्होंने बता दिया कि गार्ड देवीलाल सीमापुरी की ही एक ट्रैवल एजेंसी में पिछले 20 सालों से गार्ड की नौकरी कर रहा था. इस के बीवीबच्चे जम्मू के गांव गुडि़याल में रहते हैं. पिछले 2 सालों से वह उन के स्कूल में नौकरी कर रहा था. चूंकि उस की ड्यूटी रात की थी, इसलिए उन्होंने रहने के लिए स्कूल में ही उसे एक कमरा दे दिया था.

संजीव शर्मा से बात करने के बाद पुलिस ने स्कूल के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को भी खंगाला. मगर उस से पुलिस को कोई भी सुराग नहीं मिला. क्योंकि स्कूल में लगे सीसीटीवी कैमरे केवल दिन के वक्त चालू रहते थे. शाम होने पर उन्हें बंद कर दिया जाता था. कहीं से कोई सुराग मिलने पर पुलिस ने मृतक के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स का अध्ययन किया गया तो पुलिस की निगाहें मृतक के फोन पर आई अंतिम काल पर अटक गईं. उस नंबर पर गार्ड की पहले भी बातें हुई थीं और 3 मार्च, 2018 की रात साढ़े 10 बजे लोकेशन उस फोन नंबर की घटनास्थल पर ही थी

जांच में वह फोन नंबर सीमापुरी की ही रहने वाली महिला अंजलि का निकला. पुलिस ने अंजलि के फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में भी एक फोन नंबर ऐसा मिला, जिस की लोकेशन घटना वाली रात को अंजलि के साथ घटनास्थल की थी. इतनी जांच के बाद पुलिस टीम को केस के खुलासे के आसार नजर आने लगे.

पुलिस टीम सीमापुरी में स्थित अंजलि के घर पहुंच गई. पुलिस को देख कर अंजलि एकदम से घबरा गई. इंसपेक्टर जे.के. सिंह ने अंजलि से पूछा, ‘‘तुम गार्ड देवीलाल को कैसे जानती हो?’’

‘‘मेरा बेटा उसी स्कूल में पढ़ता है, जहां देवीलाल गार्ड था, इसलिए कभीकभी उस से मुलाकात होती रहती थी. इस से ज्यादा मैं देवीलाल के बारे में कुछ नहीं जानती.’’ अंजलि ने बताया.

इंसपेक्टर जे.के. सिंह को लगा कि अंजलि सच्चाई को छिपाने की कोशिश कर रही है, क्योंकि उन के पास अंजलि और देवीलाल के बीच अकसर होने वाली बातचीत का सबूत मौजूद था. इसलिए वह पूछताछ के लिए उसे थाने ले आए. थाने में उन्होंने अंजलि से पूछा, ‘‘3 मार्च की रात साढे़ 10 बजे तुम देवीलाल के कमरे में क्या करने गई थी?’’

यह सवाल सुनते ही अंजलि की बोलती बंद हो गई. कुछ देर की चुप्पी के बाद उस ने जो कुछ बताया, उस से देवीलाल की हत्या की गुत्थी परतदरपरत खुलती चली गई. उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने अपने दूसरे प्रेमी साजिद उर्फ शेरू के साथ मिल कर देवीलाल की हत्या की थी. देवीलाल की हत्या क्यों की गई, इसे जानने के लिए 2 साल पीछे के घटनाक्रम पर नजर दौड़ानी होगी, जो इस प्रकार है

40 वर्षीय देवीलाल पिछले 20 सालों से पुरानी सीमापुरी में जयवीर ट्रैवल एजेंसी में नौकरी करता था. लेकिन वहां पगार कम होने के कारण उस के घर की आर्थिक जरूरतें पूरी नहीं हो पाती थीं. चूंकि ट्रैवल एजेंसी में उस का काम दिन में होता था, इसलिए रात के समय खाली होने के कारण वह संजीव कुमार शर्मा के स्कूल में गार्ड के रूप में नौकरी करने लगा. संजीव शर्मा ने उसे रहने के लिए स्कूल में ही एक कमरा भी दे दिया था.

देवीलाल का साल में एक बार ही घर जाना होता था. बाकी समय उस का समय दिल्ली में गुजरता था. चूंकि उस की पत्नी प्रमिला जम्मू में ही रहती थी, इसलिए वह बाजारू औरतों के संपर्क में रहता था. 2 जगहों पर काम करने के कारण थोड़े ही समय में उस के पास काफी रुपए इकट्ठे हो गए थे. वह अपने सभी रुपए अपने अंडरवियर में बनी जेब में रखता था. अंजलि की शादी करीब 8 साल पहले सुरेंद्र के साथ हुई थी. शादी की शुरुआत में तो अंजलि सुरेंद्र के साथ बहुत खुश थी. बाद में वह एक बेटे की मां बनी, जिस का नाम कपिल रखा. सुरेंद्र प्राइवेट नौकरी करता था. उसी से वह अपने परिवार का पालनपोषण कर रहा था

अंजलि की यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकी. बीमारी की वजह से सुरेंद्र की नौकरी छूट गई. इस से परिवार में आर्थिक समस्या खड़ी हो गई. अंजलि के पास जो थोड़ेबहुत पैसे जमा थे, वह भी सुरेंद्र की बीमारी पर खर्च हो गए थे. अंजलि ने सुरेंद्र को बचाने की जीतोड़ कोशिश की लेकिन एक दिन उस की मौत हो गई. पति की मौत से अंजलि की आंखों में अंधेरा छा गया. जैसेतैसे कर उस ने पति का दाहसंस्कार किया, फिर जीविका चलाने के लिए सीमापुरी की एक कैटरिंग शौप में नौकरी करने लगी. वहां से उसे जितनी पगार मिलती थी, उस से बड़ी मुश्किल से मांबेटे का गुजारा होता था.

2 साल पहले उस ने बेटे कपिल का एडमिशन ओल्ड सीमापुरी में स्थित बाल कौनवेंट स्कूल में नर्सरी कक्षा में करवाया. यह स्कूल ओल्ड सीमापुरी का एक नामचीन प्राइवेट स्कूल है. वह रोजाना सुबह बेटे को स्कूल छोड़ने जाती थी और छुट्टी के समय उसे स्कूल से लेने पहुंच जाती थी. बच्चे की छुट्टी होने तक वह अन्य मांओं की तरह गेट पर खड़ी हो कर बेटे का इंतजार करती थी.

हालांकि अंजलि एक विधवा थी, लेकिन उस के सौंदर्य में आज भी कशिश बरकरार थी. गरीबी का अभिशाप भी उस के खूबसूरत चेहरे का रंग फीका नहीं कर पाया था. उस के हुस्न का आलम यह था कि वह जिधर भी निकलती, युवकों की प्यासी निगाहें चोरीचोरी उस के रूप का रसपान करने, उस के हसीन चेहरे पर टिक जातीं. एक दिन शाम के समय जब स्कूल का गार्ड देवीलाल गेट पर ड्यूटी दे रहा था, तभी अचानक उस की निगाह अंजलि पर पड़ी. अंजलि को देख कर उस की आंखें चमक उठीं. वह उस पर डोरे डालने की योजनाएं बनाने लगा.

गार्ड देवीलाल उस के बेटे कपिल का विशेष ध्यान रखने लगा. वह कपिल को चौकलेट, टौफी आदि दे कर उस का करीबी बन गया. अंजलि ने देखा कि देवीलाल कपिल को खूब प्यार करता है तो वह घर से उस के लिए कुछ न कुछ खाने की चीज बना कर लाने लगी. इस तरह दोनों ही एकदूसरे को चाहने लगे. अंजलि को जब कभी पैसों की जरूरत होती तो वह उस की मदद भी कर देता. गार्ड की सहानुभूति पा कर अंजलि उस की दोस्त बन गई. अपने मोबाइल नंबर तो वे पहले ही एकदूसरे को दे चुके थे, जिस से वह बातचीत करते रहते थे.

देवीलाल ने जब देखा कि खूबसूरत अंजलि पूरी तरह शीशे में उतर गई है तो वह रात के समय उसे स्कूल में बुलाने लगा. अंजलि के आने पर वह उस के साथ महंगी शराब पीता. अंजलि भी उस के साथ शराब पीती फिर दोनों अपनी हसरतें पूरी करते थे. अंजलि को जब भी पैसों की जरूरत होती, देवीलाल अपने अंडरवियर की जेब से निकाल कर उसे दे देता था. अंजलि उस के पास इतने सारे रुपए देख कर बेहद प्रभावित हो गई थी, इसलिए वह देवीलाल को हर तरह से खुश रखने की कोशिश करती थी

धीरेधीरे उस का देवीलाल के पास आनाजाना इतना बढ़ गया कि आसपड़ोस के लोगों को भी उस के अवैध संबंधों की जानकारी हो गई. लेकिन अंजलि और देवीलाल को इस से कोई फर्क नहीं पड़ा. देवीलाल को जब भी मौका मिलता, वह अंजलि को अपने कमरे में बुला कर अपनी हसरतें पूरी कर लेता.

अंजलि की मौसी मधु का पति साजिद उस का हालचाल पूछने उस के पास आता रहता था. दोनों सालों से एकदूसरे को जानते थे. अंजलि के पति की मौत के बाद साजिद ने ही अंजलि को सहारा दिया था. साजिद भी अंजलि के हुस्न पर लट्टू था. साजिद के साथ भी अंजलि के शारीरिक संबंध थे. वह कईकई दिन अंजलि के यहां रुक जाता था. इस कारण उस के और मधु के संबंधों में भी खटास चुकी थी. साजिद ड्राइवर था, हरियाणा से करनाल बाइपास की ओर आने वाले यात्रियों को अपनी इनोवा कार में ढोया करता था

साजिद को जब अंजलि और गार्ड देवीलाल के संबंधों की जानकारी हुई तो वह इस का विरोध करने लगा. चूंकि अंजलि पर गार्ड देवीलाल खुल कर खर्च करता था, इसलिए वह उसे छोड़ना नहीं चाहती थी. वह साजिद को किसी तरह समझा देती फिर मौका मिलते ही देवीलाल से मिलने स्कूल में बने उस के कमरे में चली जाती थी. किसी तरह साजिद को यह बात पता चल ही जाती थी, तब उस ने अंजलि पर देवीलाल से रिश्ता तोड़ देने का दबाव बनाया

अंजलि के दिमाग में एक शैतानी योजना ने जन्म ले लिया. साजिद की इनोवा कार खराब थी. कार ठीक कराने के लिए उस के पास पैसे तक नहीं थे, इसलिए वह खाली बैठा थातब अंजलि ने साजिद को बताया कि देवीलाल के पास काफी रुपए रहते हैं. अगर दोनों मिल कर उस का काम तमाम कर दें तो उस के रुपयों पर आसानी से हाथ साफ किया जा सकता है.

साजिद तो देवीलाल से पहले से ही खार खाए बैठा था. लालच में वह उस की हत्या करने के लिए राजी हो गया. अब दोनों अपनी इस योजना को अंजाम देने के लिए अवसर की तलाश में रहने लगे. 3 मार्च, 2018 की रात देवीलाल का मूड बना तो उस ने उसी समय अंजलि को फोन कर दियाइस से पहले उस ने व्हिस्की की बोतल और खाना पैक करवा लिया. रात के 10 बजे उस ने अपनी प्रेमिका अंजलि को फोन कर के स्कूल में पहुंचने के लिए कहा तो अंजलि और साजिद की आंखें खुशी से चमकने लगीं.

अंजलि ने पहले तो शृंगार किया. होंठों पर सुर्ख लिपस्टिक लगाई, फिर साजिद की बुलेट मोटरसाइकिल पर बैठ कर कौन्वेंट स्कूल के नजदीक पहुंचा. अंजलि जिस समय स्कूल में पहुंची, रात के 10 बज रहे थे. देवीलाल की निगाहें केवल अंजलि पर पड़ीं तो वह उसे टकटकी लगाए देखता रह गया. उसे अंजलि इतनी सुंदर पहले कभी नहीं लगी थी. अंजलि के अंदर आने पर उस ने बांहों में भर कर चूमा फिर अपने कमरे पर बिछी चारपाई पर ले गया. तभी अंजलि ने उस से कोल्डड्रिंक लाने की फरमाइश की.

देवीलाल कोल्डड्रिंक लाने स्कूल से बाहर गया, तभी मौका मिलते ही अंजलि ने फोन कर के साजिद को अंदर बुलाया और छिप जाने के लिए कह दिया. देवीलाल के आने के बाद अंजलि व्हिस्की में कोल्डड्रिंक मिला कर उसे शराब पिलाने लगी. देवीलाल ने अंजलि के लिए भी पैग बना लिया. अंजलि भी शराब की शौकीन थी, लेकिन उस दिन उस ने स्वयं तो कम पी लेकिन देवीलाल को अधिक पिला कर मदहोश कर दिया. जब अंजलि ने देवीलाल को बेसुध देखा तो उस ने साजिद को इशारा कर बुला लिया

अंजलि ने उस से देवीलाल का काम तमाम करने के लिए कहा. फिर साजिद ने देवीलाल के सिर पर लोहे की रौड का भरपूर वार कर उस का काम तमाम कर दिया. इस के बाद साजिद और अंजलि ने देवीलाल के अंडरवियर में रखे लगभग 60 हजार रुपए तथा मोबाइल फोन ले लिया. जब दोनों वहां से जाने लगे तो अंजलि को शक हुआ कि कहीं देवीलाल बच जाए. अगर वह बच गया तो वह इस मामले में फंस जाएगी, इसलिए अंजलि ने साजिद को उस की कलाई की नसें काटने के लिए कहा

यह सुन कर साजिद ने अपने साथ लाए पेपर कटर से देवीलाल के दोनों हाथों की नसें काट दीं, जिस से उस का खून बह गया. देवीलाल की हत्या करने के बाद दोनों शातिर इत्मीनान से अपने घर लौट गए. अंजलि की निशानदेही पर पुलिस ने उस के पहले प्रेमी साजिद को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों की निशानदेही पर देवीलाल से लूटे गए रुपए, 3 मोबाइल फोन, मोटरसाइकिल तथा हत्या में प्रयुक्त रौड, पेपर कटर बरामद कर लिया. पुलिस ने दोनों को 7 मार्च को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

     – इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है

पति था या कसाई जो दोस्त की मदद से बीवी का गला रेता

घर वालों के दबाव में प्रमोद ने अर्चना से शादी तो कर ली. लेकिन वह अपनी पहली प्रेमिका सरिता को कभी भुला नहीं सका. यही वजह थी कि उस ने सरिता के लिए अर्चना की जिंदगी का सूर्य अस्त कर दिया.   उत्तर प्रदेश के जिला पीलीभीत के थाना गजरौला कलां का संतरी बरामदे में खड़ा इधरउधर ताक रहा था. उसी समय एक युवक तेजी से आया और थानाप्रभारी भुवनेश गौतम के औफिस में घुसने लगा तो उस ने टोका, ‘‘बिना पूछे कहां घुसे जा रहे हो भाई?’’

युवक रुक गया. वह काफी घबराया हुआ लग रहा था. उस ने कहा, ‘‘साहब से मिलना है, मेरी पत्नी को बदमाश उठा ले गए हैं.’’

‘‘तुम यहीं रुको, मैं साहब से पूछता हूं, उस के बाद अंदर जाना.’’ कह कर संतरी थानाप्रभारी के औफिस में घुसा और पल भर में ही वापस कर बोला, ‘‘ठीक है, जाओ.’’

संतरी के अंदर जाने के लिए कहते ही युवक तेजी से थानाप्रभारी के औफिस में घुस गया. अंदर पहुंच कर बिना कोई औपचारिकता निभाए उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं लालपुर गांव का रहने वाला हूं. मेरा नाम प्रमोद है. मैं अपनी पत्नी को विदा करा कर घर जा रहा था. गांव से लगभग 2 किलोमीटर पहले कुछ लोग बोलेरो जीप से आए और मेरी पत्नी को उसी में बैठा कर ले कर चले गए.’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने प्रमोद को ध्यान से देखा. उस के बाद मुंशी को बुला कर उस की रिपोर्ट दर्ज करने को कहा. मुंशी ने प्रमोद के बयान के आधार पर उस की रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद प्रमोद ने थानाप्रभारी के औफिस में कर कहा, ‘‘साहब, अब मैं जाऊं?’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने उसे एक बार फिर ध्यान से देखा. प्रमोद ने उन से एक बार भी नहीं कहा था कि वह उस की पत्नी को तुरंत बरामद कराएं. उस के चेहरे के हावभाव से भी नहीं लग रहा था कि उसे पत्नी के अपहरण का जरा भी दुख है. उन्होंने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम हमें वह जगह नहीं दिखाओगे, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है? अपहर्त्ता जिस बोलेरो जीप से तुम्हारी पत्नी को ले गए हैं, उस का नंबर तो तुम ने देखा ही होगा. वह नंबर नहीं बताओगे?’’

थानाप्रभारी की बातें सुन कर प्रमोद के चेहरे के भाव बदल गए. वह एकदम से घबरा सा गया. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘साहब, मैं गाड़ी का नंबर नहीं देख पाया था. यह सब इतनी जल्दी और अचानक हुआ था कि गाड़ी का नंबर देखने की कौन कहे, मैं तो यह भी नहीं देख पाया कि अपहर्त्ता कितने थे.’’

‘‘ठीक है, हम अभी तुम्हारे साथ चल कर वह जगह देखते हैं, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है. तुम घबराओ मत, हम नंबर और अपहर्त्ताओं के बारे में भी पता कर लेंगे.’’ कह कर थानाप्रभारी ने गाड़ी निकलवाई और सिपाहियों के साथ प्रमोद को भी गाड़ी में बैठा कर घटनास्थल की ओर चल पड़े. सिपाहियों के साथ बैठा प्रमोद काफी परेशान सा लग रहा था. जिस की पत्नी का अपहरण हो जाएगा, वह परेशान तो होगा ही, लेकिन उस की परेशानी उस से हट कर लग रही थी. थानाप्रभारी जब गांव के मोड़ पर पहुंचे तो प्रमोद ने कहा, ‘‘साहब, मुझे तो अब याद ही नहीं कि अपहरण कहां से हुआ था? मैं तो पत्नी के साथ पैदल ही जा रहा था. अंधेरा होने की वजह से मैं वह जगह ठीक से पहचान नहीं सका.’’

‘‘तुम ने शोर मचाया था?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, शोर मचाने का मौका ही कहां मिला. वह आंधी की तरह आए और मेरी पत्नी को जीप में जबरदस्ती बैठा कर ले गए.’’ प्रमोद ने कहा. थानाप्रभारी को प्रमोद की इस बात से लगा कि मामला अपहरण का नहीं, कुछ और ही है. पूछने पर प्रमोद यह भी नहीं बता रहा था कि उस की ससुराल कहां है. संदेह हुआ तो उन्होंने गुस्से में कहा, ‘‘सचसच बता, क्या बात है?’’ प्रमोद कांपने लगा. थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने उसे जीप में बैठाया और थाने गए. थाने ला कर उन्होंने उस से पूछताछ शुरू की. शुरूशुरू में तो प्रमोद ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन जब उस ने देखा कि पुलिस अब सख्त होने वाली है तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, अपने दोस्त मुकेश के साथ मिल कर मैं ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है और लाश एक गन्ने के खेत में छिपा दी है.’’

रात में तो कुछ हो नहीं सकता था, इसलिए पुलिस सुबह होने का इंतजार करने लगी. सुबहसुबह पुलिस लालपुर पहुंची तो गांव वाले हैरान रह गए. उन्हें लगा कि जरूर कुछ गड़बड़ है. जब प्रमोद ने गन्ने के खेत से लाश बरामद कराई तो लोगों को पता चला कि प्रमोद ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है. थोड़ी ही देर में वहां भीड़ लग गई. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 20 साल के करीब थी. वह साड़ीब्लाउज पहने थी. गले पर दबाने का निशान स्पष्ट दिखाई दे रहा था. गांव वालों से जब प्रमोद के घर वालों को पता चला कि प्रमोद ने अर्चना की हत्या कर दी है तो वे भी हैरान रह गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि प्रमोद ऐसा भी कर सकता है. लेकिन जब वे घटनास्थल पर पहुंचे तो अर्चना की लाश देख कर सन्न रह गए. पुलिस ने मृतका अर्चना के पिता डालचंद को भी फोन द्वारा सूचना दे दी थी कि उन की बेटी अर्चना की हत्या हो चुकी है

इस सूचना से डालचंद और उन की पत्नी शारदा हैरान रह गए थे. उन की समझ में नहीं रहा था कि यह सब कैसे हो गया. कल शाम को ही तो उन्होंने बेटी को विदा किया था. उस समय तो सब ठीकठाक लगा था. रास्ते में ऐसा क्या हो गया कि अच्छीभली बेटी की हत्या हो गई. डालचंद ने सिर पीट लिया. उन के मुंह से एकदम से निकला, ‘‘किस ने मेरी बेटी को मार दिया? उस ने आखिर किसी का क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘हमारी बेटी को किसी और ने नहीं, प्रमोद ने ही मारा है.’’ रोते हुए शारदा ने कहा.

पत्नी की इस बात से डालचंद हैरान रह गया, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’

‘‘तुम्हें पता नहीं है. दामाद का गांव की ही किसी लड़की से चक्कर चल रहा था. उसी की वजह से उस ने मेरी बेटी को मार डाला है.’’ शारदा ने कहा. पत्नी भले ही कह रही थी कि अर्चना की हत्या प्रमोद ने की है, लेकिन डालचंद को विश्वास नहीं हो रहा था. सूचना पाने के बाद डालचंद परिवार के कुछ लोगों के साथ थाना गजरौला कलां जा पहुंचा. अर्चना की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया था. थानाप्रभारी ने जब उसे बताया कि अर्चना की हत्या उस के दामाद प्रमोद ने ही की है, तब कहीं जा कर उसे विश्वास हुआ. पूछताछ में शारदा ने बताया कि अर्चना ने उन से बताया था कि प्रमोद का गांव की ही किसी लड़की से प्रेमसंबंध है.

लेकिन उस ने बेटी की इस बात को गंभीरता से नहीं लिया था. उसे लगा कि हो सकता है शादी के पहले रहे होंगे. शादी के बाद संबंध खत्म हो जाएंगे. उसे क्या पता कि उसी संबंध की वजह से प्रमोद उस की बेटी को मार डालेगा. पुलिस ने प्रमोद के बयान के आधार पर उस के साथी मुकेश को भी गिरफ्तार कर लिया था. उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. प्रमोद और मुकेश के बयान से अर्चना की हत्या की जो कहानी सामने आई, उस के अनुसार, निर्दोष अर्चना पति प्रमोद के प्रेमसंबंधों की भेंट चढ़ गई थी. हाईस्कूल पास करने के बाद प्रमोद ने पढ़ाई छोड़ दी थी. घर के कामों से वह कोई मतलब नहीं रखता था, इसलिए दिन भर गांव में घूमघूम कर अड्डेबाजी करता रहता था. अड्डेबाजी करने में ही उस की नजर गांव की सरिता पर पड़ी तो उस पर उस का दिल गया. फिर तो वह उस के पीछे पड़ गया. उस की मेहनत रंग लाई और सरिता का झुकाव भी उस की ओर हो गया. दोनों ही एकदूसरे को प्यार करने लगे. लेकिन इस में परेशानी यह थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी.

सरिता पढ़ रही थी, जबकि प्रमोद पढ़ाई छोड़ चुका था. उस का पिता के साथ खेतों में काम करने में मन भी नहीं लग रहा था, ही उसे कोई ठीकठाक नौकरी मिल रही थी. उसी बीच वह सरिता में रम गया तो उस का पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित हो गया. वह अपने भविष्य की चिंता करने के बजाय सरिता को सुनहरे सपने दिखाने लगा. इसी के साथ अन्य प्रेमियों की तरह साथ जीनेमरने की कसमें भी खाता रहा. लेकिन प्यार को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उस के पास तो कोई व्यवस्था थी, ही समाज उस के साथ था. सरिता और प्रमोद का मिलनाजुलना लोगों की नजरों में आया तो गांव में उन्हें ले कर चर्चा होने लगी. ऐसे में सरिता को डर सताने लगा कि उस के प्यार का क्या होगा? क्योंकि अब तक उसे लगने लगा था कि वह प्रमोद के बिना जी नहीं पाएगी. वह यह भी जानती थी कि उस का बाप किसी भी कीमत पर इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगा, वह उस के साथ मनमरजी से भी शादी नहीं कर सकती थी, क्योंकि तो प्रमोद ज्यादा पढ़ालिखा था, ही वह कोई कामधाम कर रहा था. ऐसे लड़के को कौन अपनी लड़की देना चाहेगा?

यह बात सरिता प्रमोद से कहती तो वह उसे आश्वस्त करते हुए कहता, ‘‘तुम्हें इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाऊंगा. लेकिन हर हालत में तुम्हें हासिल कर के रहूंगा.’’ प्रमोद सरिता को कितना भी आश्वस्त करता, लेकिन वह हर वक्त तनाव में रहती. उस के लिए परेशानी यह थी कि वह प्रमोद को छोड़ भी नहीं सकती थी, क्योंकि उस का दिल इस के लिए तैयार नहीं था. जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने प्रमोद से कहा कि वह कोई नौकरी कर ले, जिस से अगर घर छोड़ कर भागना पड़े तो गृहस्थी बसाने के लिए उस के पास कुछ पैसे तो हों. लेकिन तो केवल हाईस्कूल पास था. इतने पढ़े पर भला उसे कौन सी नौकरी मिल सकती थी.

प्रमोद और सरिता जीवन के रंगीन सपने तो देख रहे थे, लेकिन उन के इन सपनों का कोई भविष्य नहीं था. गांव में प्रमोद और सरिता के प्रेमसंबंधों की चर्चा हो और उन के घर वालों को पता चले, भला ऐसा कैसे हो सकता था. सरिता के पिता जीवनराम को भी किसी ने इस बारे में बता दिया. एक तो इज्जत की बात थी, दूसरे जीवनराम की नजरों में प्रमोद ठीक लड़का नहीं था. इसलिए वह परेशान हो उठा. घर जा कर पहले तो उस ने पत्नी को डांटा कि वह जवान हो रही बेटी का ध्यान नहीं रखती. उस के बाद सरिता को बुला कर पूछा ‘‘यह प्रमोद के साथ तेरा क्या चक्कर है? वह आवारा तेरा कौन है, जो तू उस से मिलतीजुलती है.’’

बाप की इन बातों से सरिता कांप उठी. वह जान गई कि पिता को उस के संबंधों की जानकारी हो गई है. वह उन के सामने सीधेसीधे तो अपने और प्रमोद के संबंधों को स्वीकार नहीं कर सकती थी, इसलिए उस ने कहा, ‘‘पापा, प्रमोद से मेरा कोई संबंध नहीं है. कभीकभार स्कूल आतेजाते रास्ते में मिल जाता है तो पढ़ाई के बारे में पूछ लेता है.’’ जीवनराम जानता था कि बेटी झूठ बोल रही है. जवान बेटी से ज्यादा कुछ कहा भी नहीं जा सकता था. फिर उन्हें यह भी पता नहीं था कि बात कहां तक पहुंची है, इसलिए उन्होंने सरिता को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा, हम तुम्हें इसलिए पढ़ा रहे हैं कि तुम्हारी जिंदगी बन जाए, लेकिन अगर मुझे कुछ ऐसावैसा सुनने को मिलेगा तो मैं तुम्हारी पढ़ाई छुड़ा कर शादी कर दूंगा.’’

‘‘पापा, आप बिलकुल चिंता करें. मैं कोई ऐसा काम नहीं करूंगी, जिस से आप को कोई परेशानी हो.’’

सरिता के इस आश्वासन पर जीवनराम को थोड़ी राहत तो मिली, लेकिन वह निश्चिंत नहीं हुए. उन्होंने पत्नी से तो सरिता पर नजर रखने के लिए कहा ही, खुद भी उस पर नजर रखते थे. जब उन्हें लगा कि इस तरह बात नहीं बनेगी तो एक दिन वह प्रमोद के बाप से मिल कर उस की शिकायत करते हुए बोले, ‘‘प्रमोद सरिता का पीछा करता है. यह अच्छी बात नहीं है. आप उसे रोकें.’’ प्रमोद का बाप वैसे ही बेटे की आवारगी से परेशान था. जब उसे इस बात की जानकारी हुई तो वह बेचैन हो उठा, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि कोई ऐसी स्थिति आए कि उसे मुंह छिपाना पड़े. इसलिए जीवनराम के जाते ही उस ने प्रमोद को बुला कर पूछा, ‘‘जीवनराम शिकायत ले कर आया था, सरिता से तुम्हारा क्या चक्कर है?’’

प्रमोद साफ मुकर गया. लेकिन उस का बाप अपने आवारा बेटे के बारे में जानता था, इसलिए उसे डांटफटकार कर कहा, ‘‘प्रमोद, बेहतर होगा कि तुम कोई कामधाम करो, वरना हमारा घर छोड़ दो. मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी करतूतों की वजह से गांव में मेरा सिर नीचा हो.’’ प्रमोद सिर झुकाए बाप की बातें सुनता रहा. उस ने सोचा, सरिता भी कोई कामधाम करने के लिए कह रही थी. अब बाप भी घर से भगा रहा है. इसलिए अब कुछ कर लेना ही ठीक है. बाप किसी बिजनैस के लिए पैसे दे नहीं सकता था, इसलिए उस ने दिल्ली जाने का मन बना लिया. उस का एक दोस्त सुरेश दिल्ली में पहले से ही रहता था. उस ने उस से बात की और दिल्ली आ गया.

प्रमोद का विचार था कि वह काम कर के खुद को इस काबिल बनाएगा कि कोई उस का विरोध नहीं कर सकेगा. दिल्ली में सुरेश ने उसे एक जींस बनाने वाली फैक्टरी में नौकरी दिला दी थी. काम भी बढि़या था और पैसे भी ठीकठाक मिल रहे थे, लेकिन कुछ ही दिनों में प्रमोद को सरिता की याद सताने लगी तो वह नौकरी छोड़ कर गांव चला गया. उस के बाहर जाने से जहां जीवनराम ने राहत की सांस ली थी, वहीं वापस आने से उस की चिंता फिर बढ़ गई थी. उसी दौरान उन्होंने सरिता को देर रात प्रमोद से मोबाइल फोन पर बातें करते पकड़ लिया तो उसे लगा कि अब वह बेटी को प्रमोद से अलग नहीं कर पाएगा, क्योंकि वह सरिता के साथ मारपीट, डांटफटकार कर के हार चुका था. सरिता प्रमोद को छोड़ने को तैयार नहीं थी. हद तो तब हो गई, जब सरिता ने मां से साफ कह दिया, ‘‘मां, आखिर प्रमोद में बुराई ही क्या है, हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं. आप लोगों को मेरी शादी कहीं न कहीं तो करनी ही है, उसी से कर दीजिए.’’

बेटी की बात सुन कर मां हैरान रह गई थी. बेटी के इसी इरादे से जीवनराम चिंतित था. उस ने देखा कि अब वह खुद कुछ नहीं कर सकता तो उस ने पंचायत बुलाई. पंचायत ने सलाह दी कि इस झंझट से बचने का एक ही तरीका है कि दोनों ही अपनेअपने बच्चों की शादी जल्द से जल्द कर दें. पंचायत ने प्रमोद से साफसाफ कह दिया था कि अगर उस ने कोई उल्टीसीधी हरकत की तो उसे गांव से निकाल दिया जाएगए. प्रमोद की समझ में नहीं रहा था कि वह क्या करे. सरिता का स्कूल जाना बंद करा दिया गया था. उसे घर से बिलकुल नहीं निकलने दिया जा रहा था. उन्हीं दिनों डालचंद अपनी बेटी अर्चना की शादी के लिए प्रमोद के घर पहुंचे तो प्रमोद के बाप छदामीलाल ने तुरंत यह रिश्ता स्वीकार कर लिया. इस के बाद 14 जून, 2013 को अर्चना और प्रमोद की शादी हो गई.

अर्चना ससुराल आई तो सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया. इस से अर्चना बहुत खुश हुई. लेकिन पहली रात को प्रमोद ने उस के साथ जो व्यवहार किया, वह उसे कुछ अजीब सा लगा था. एक पति पहली रात जिस तरह पत्नी से प्यार करता है, वैसा प्रमोद के प्यार में नजर नहीं आया था. अर्चना सप्ताह भर ससुराल में रही. इस बीच प्रमोद के बातव्यवहार से अर्चना ने अंदाजा लगा लिया कि पति उसे पसंद नहीं करता. लेकिन मायके आने पर यह बात उस ने किसी से नहीं कही क्योंकि अगर वह यह बात मायके में किसी से बताती तो वे काफी परेशान होते.

कुछ दिनों बाद अर्चना फिर ससुराल गई. पति का व्यवहार संतोषजनक नहीं था, इसलिए अर्चना परेशान रहने लगी थी. उस ने यह भी देखा कि प्रमोद दिनभर मटरगश्ती करता रहता है. घर का एक काम नहीं करता. पति की बेजा हरकतों से उस से रहा नहीं गया तो एक दिन उस ने कहा, ‘‘तुम दिनभर इधरउधर घूमा करते हो, पापा के साथ खेतों पर काम क्यों नहीं करते?’’

‘‘मुझ से खेती के काम नहीं होते.’’ प्रमोद ने जवाब दिया.

‘‘तो फिर कोई दूसरा काम करो. इस तरह आवारा की तरह घूमना ठीक नहीं है.’’ अर्चना ने कहा

पत्नी की इस सलाह पर प्रमोद को गुस्सा गया. उस ने उसे डांट कर कहा, ‘‘तू अपने काम से काम रख. मैं क्या करूं, यह मुझे तू बताएगी?’’

‘‘तुम्हारी स्थिति से तो यही लगता है कि तुम कोई कामधंधा करने वाले नहीं. पापा से तो तुम्हारे घर वालों ने बताया था कि तुम दिल्ली में नौकरी करते हो. शादी के बाद तुम मुझे दिल्ली ले जाओगे. लेकिन मैं देख रही हूं कि आवारागर्दी करने के अलावा तुम्हारे पास कोई काम नहीं है.’’ अर्चना ने गुस्से में बोली. प्रमोद ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम ने अपनी शक्ल देखी है. तुम जैसी गंवार लड़की दिल्ली में रहेगी तो यहां गांव में चूल्हाचौका कौन करेगा?’’

‘‘अगर मैं गंवार थी तो मुझ से शादी ही क्यों की.’’ अर्चना ने कहा.

‘‘बहुत हो गया, अब चुप रह. मैं फालतू की बकवास सुनना नहीं चाहता.’’

अर्चना को लगा कि कुछ ऐसा है जिस की जानकारी उसे नहीं है. लेकिन जल्दी ही उसे उस की भी जानकारी हो गई. उस ने प्रमोद के पर्स में सरिता के साथ उस की फोटो देख ली. उस ने तुरंत वह फोटो प्रमोद के सामने रख कर पूछा, ‘‘तुम्हारे साथ यह किस की फोटो है?’’ जवाब देने के बजाय प्रमोद उस के गाल पर जोरदार तमाचा मार कर बोला, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरा पर्स छूने की?’’

अर्चना तड़प कर बोली, ‘‘आज तो मार दिया, लेकिन फिर कभी ऐसी गलती मत करना, वरना जिंदगीभर पछताओगे. सब के सामने मैं विवाह कर के आई हूं. इसलिए तुम पर मेरा पूरा हक है. मेरे रहते यह सब नहीं चलेगा.’’

प्रमोद चुपचाप घर से निकल गया. अर्चना जान गई कि उस के पति के जीवन में उस के अलावा भी कोई है. यह उस के लिए चिंता की बात थी. अभी उस के हाथ की मेहंदी भी नहीं छूटी थी कि उसे पता चल गया कि उसे बचाखुचा प्यार मिल रहा है. अगर यह संबंध इसी तरह चलते रहे तो अर्चना का जीवन नरक हो जाता, इसलिए रात में प्रमोद आया तो उस ने साफसाफ कह दिया, ‘‘शादी से पहले तुम्हारी जिंदगी में जो भी रही हो, मुझ से कोई मतलब नहीं है. लेकिन शादी के बाद यह सब नहीं चलेगा. मैं तुम्हारे प्रति समर्पित हूं तो तुम्हें भी मेरे प्रति समर्पित होना पड़ेगा.’’

‘‘अगर मैं समर्पित हो सका तो…?’’

…तो इस का भी इलाज है, मुझे कानून का सहारा लेना होगा.’’ अर्चना ने कहा. प्रमोद सन्न रह गया. जिसे वह सीधीसादी गंवार समझता था, वह तो उस से भी तेज निकली. अर्चना ने उसी समय अपने बाप को फोन कर के कह दिया कि वह मायके आना चाहती है. प्रमोद को लगा कि अर्चना से उस की शादी गले की हड्डी बन रही है. उस ने घर वालों के दबाव में यह शादी की थी. उस ने सोचा था कि पत्नी को जैसे चाहेगा, रखेगा, लेकिन यह तो उस के लिए मुसीबत बन रही है. अब वह इस मुसीबत से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा. जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो वह अपने दोस्त मुकेश से मिला और उस से पूरी बात बता कर कहा, ‘‘यार! मैं किसी भी तरह इस अर्चना नाम की मुसीबत से छुटकारा चाहता हूं.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मुकेश ने पूछा.

‘‘मतलब यह कि जीतेजी तो उस से छुटकारा मिल नहीं सकता. ठिकाने लगाने के बाद ही शुकून मिल सकता है. और इस काम में तुम्हें मेरा साथ देना होगा.’’ प्रमोद ने कहा. इस के बाद दोनों कई दिनों तक योजनाएं बनाते रहे. आखिर में जब योजना फाइनल हो गई तो दोनों मौके की तलाश करने लगे. अर्चना को घर में तो मारा नहीं जा सकता था, क्योंकि घर में प्रमोद उसे मारता तो सीधे आरोप उसी पर लगता. यानी उस का फंसना तय था. इसलिए वह उसे घर के बाहर ही मारना चहाता था. उस ने ससुर को फोन किया कि पत्नी को विदा कराने रहा है.

अर्चना इस बार पिता के साथ मायके पहुंची थी तो उस ने मां से प्रमोद के गांव की किसी लड़की से संबंध होने की बात बता दी थी. बेटी की बात सुन कर शारदा स्तब्ध रह गई थी. कुछ महीने पहले ही तो उस ने बेटी की शादी की थी. अभी तो बेटी की पूरी जिंदगी पड़ी थी. उस ने बेटी को समझाया कि वह पति को संभाले. अब वह इस बात का जिक्र किसी और से न करे, क्योंकि अगर उस के पिता को इस बारे में पता चल गया तो मामला काफी संगीन हो जाएगा. प्रमोद ससुराल पहुंचा तो अर्चना को उस के साथ जाना ही था. उसी दिन प्रमोद ने दोपहर के बाद विदाई के लिए कहा तो डालचंद ने कहा, ‘‘यह समय विदाई करने का नहीं है. लालपुर पहुंचतेपहुंचते रात हो जाएगी. इसलिए तुम कल चले जाना.’’

‘‘नहीं पापा, जाना बहुत जरूरी है. साधन से ही तो जाना है. आराम से पहुंच जाएंगे.’’ डालचंद को क्या पता था कि उस के मन में क्या है. उन्होंने अर्चना को विदा कर दिया. प्रमोद खुश था कि सब कुछ उस के मन मुताबिक हो रहा है. अर्चना भी पति के मन की बात से बेखबर थी. वह प्रमोद के साथ गजरौला कलां पहुंची तो वहां मुकेश मिल गया. दोनों अर्चना को ले कर लालपुर की ओर चल पड़े. अंधेरा हो जाने की वजह से लालपुर जाने वाली सड़क सुनसान हो गई थी. रास्ते में खेतों के बीच प्रमोद ने अर्चना को दबोच लिया तो वह चीखी, ‘‘यह क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे.’’

लेकिन प्रमोद ने उसे छोड़ने के लिए थोड़े ही पकड़ा था. उस ने उसे जमीन पर गिरा दिया तो मुकेश ने फुरती से उस के दोनों हाथ पकड़ लिए. इस के बाद प्रमोद ने उस का गला दबा कर उसे मार डाला. इस तरह अर्चना का खेल खत्म कर के प्रमोद ने रास्ते का कांटा निकाल दिया था. इस के बाद प्रमोद ने जल्दीजल्दी अर्चना के गहने उतारे और फिर लाश को उठा कर गन्ने के खेत में फेंक दिया. फिर योजना के मुताबिक प्रमोद थाना गजरौला कलां पहुंचा, जहां उस ने अपनी पत्नी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी. लेकिन उस के हावभाव से ही थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने ताड़ लिया कि यह झूठ बोल रहा है. इस के बाद तो उन्होंने उसे थाने ला कर सच्चाई उगलवा ही ली

पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ने प्रमोद और मुकेश को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. बाद में डालचंद ने कहा कि उन की बेटी की हत्या की साजिश में प्रमोद का बाप छदामीलाल भी शामिल था तो पुलिस ने उसे भी इस मामले में अभियुक्त बना कर जेल भेज दिया

जांच अधिकारी ने सीओ दिनेश शर्मा की देखभाल में इस मामले की चार्जशीट तैयार कर के अदालत में पेश कर दी गई है. अब देखना यह है कि इस मामले में दोषियों को सजा क्या होती है.

   — कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जब एक बेटे की मां ने 10 साल छोटे लड़के से लड़ाया इश्क

कुछ औरतें दिखती सीधी हैं लेकिन शराफत का चोला ओढ़ कर वह अंदर ही अंदर गुल खिलाती रहती हैं. एक बेटे की मां कमलप्रीत भी ऐसी ही थी पर जब तभी उस की सच्चाई सामने आई तो तब तक उस का घर उजड़ चुका था

19मार्च, 2018 की सुबह कमलप्रीत कौर अपने पति हरजिंदर सिंह से यह कहते हुए घर से निकली थी कि उस के मायके में किसी की तबीयत खराब है, इसलिए वह राहुल को ले कर वहां जा रही है. पत्नी की यह बात सुन कर हरजिंदर ने कहा, ‘‘ठीक है, हो आओ. ज्यादा परेशानी वाली बात हो तो तुम मुझे फोन कर देना. मैं भी पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘हां, तुम्हारी जरूरत हुई तो फोन कर दूंगी और कोई ज्यादा चिंता वाली बात नहीं हुई तो 2 दिन में वापस लौट आऊंगी.’’ कमलप्रीत बोली. मूलरूप से पंजाब के जिला पटियाला के गांव बल्लोपुर की रहने वाली थी कमलप्रीत. करीब 12 साल पहले जब वह 19 बरस की थी, तब उस की शादी हरियाणा के गांव गणौली के रहने वाले हरजिंदर सिंह से हुई थी. यह गांव जिला अंबाला की तहसील नारायणगढ़ के तहत आता है.

शादी के ठीक एक साल बाद कमलप्रीत ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम राहुल रखा गया. इन दिनों वह गांव के सरकारी स्कूल में 5वीं कक्षा में पढ़ रहा था. हरजिंदर का अपना खेतीबाड़ी का काम था, जिस में वह काफी व्यस्त रहता था. कमलप्रीत घर पर रहते हुए चौकेचूल्हे से ले कर सब काम संभाले हुए थी. जो भी था, सब बड़े अच्छे से चल रहा था. पतिपत्नी में खूब प्यार था. दोनों में अच्छी अंडरस्टैंडिंग भी थी. दोनों अपने बच्चों का भी सलीके से ध्यान रखे हुए थे. काफी दिनों से राहुल पिता से कहीं घुमा लाने की जिद कर रहा था तो पिता ने उस से पक्का वादा किया था कि वह उस के इम्तिहान खत्म होने के बाद उसे 2 दिन के लिए घुमाने शिमला ले चलेगा.

मगर पेपर खत्म होने के अगले रोज ही उसे अपनी मां के साथ नानी के यहां जाना पड़ गया. पत्नी के मायके जाने वाली बात पर हरजिंदर को कोई परेशानी वाली बात नहीं थी. पति की निगाह में कमलप्रीत एक सुलझी हुई मेहनती औरत थी, जो ससुराल के साथसाथ अपने मायके वालों का भी पूरा ध्यान रखती थी. 

सुखदुख में वह अपने अन्य रिश्तेदारों के यहां भी अकेली आयाजाया करती थी. कुल मिला कर बात यह थी कि हरजिंदर को पत्नी की तरफ से कोई चिंता नहीं थी. इसलिए जब वह 19 मार्च को बेटे के साथ मायके के लिए घर से अकेली निकली तो हरजिंदर ने कोई चिंता नहीं की. उसी रोज शाम के समय हरजिंदर ने पत्नी को यूं ही रूटीन में फोन कर के पूछा, ‘‘हां कमल, पहुंचने में कोई परेशानी तो नहीं हुई? बल्लोपुर पहुंच कर तुम ने फोन भी नहीं किया?’’

‘‘हांहांवो ऐसा है कि अभी मैं बल्लोपुर नहीं पहुंच पाई.’’ कमलप्रीत बोली तो उस की आवाज में हकलाहट थी. पत्नी की ऐसी आवाज सुन कर हरजिंदर को थोड़ी घबराहट होने लगी. उस ने पूछा, ‘‘बल्लोपुर नहीं पहुंची तो फिर कहां हो?’’

‘‘अभी मैं शहजादपुर में हूं. किसी जरूरी काम से मुझे यहां रुकना पड़ गया.’’ कमलप्रीत ने पहले वाले लहजे में ही जवाब दिया. ‘‘शहजादपुर में ऐसा क्या काम पड़ गया तुम्हें? वहां तुम किस के यहां रुकी हो? सब ठीक तो है ? बताओ, कोई परेशानी हो तो मैं भी जाऊं क्या?’’

‘‘सब ठीक है, घबराने वाली कोई बात नहीं है. अच्छा, मैं फ्री हो कर अभी कुछ देर बाद फोन करती हूं. तब सब कुछ विस्तार से भी बता दूंगी.’’ कहने के साथ ही कमलप्रीत की ओर काल डिसकनेक्ट कर दी गई. लेकिन हरजिंदर की घबराहट बढ़ गई थी. उस ने कमलप्रीत का नंबर फिर से मिला दिया. पर अब उस का फोन स्विच्ड औफ हो चुका था.

अचानक यह सब होने पर हरजिंदर का फिक्रमंद हो जाना लाजिमी था. कुछ नहीं सूझा तो उस ने उसी समय अपनी ससुराल के लैंडलाइन नंबर पर फोन किया. यहां से उसे जो जानकारी मिली, उस से उस के पैरों तले की जमीन सरक गई. ससुराल से उसे बताया गया कि यहां तो घर में कोई बीमार नहीं है और न ही कमलप्रीत के वहां आने की किसी को कोई जानकारी थी.

अब हरजिंदर के लिए एक मिनट भी रुके रहना संभव नहीं था. उस ने अपनी मोटरसाइकिल उठाई और शहजादपुर की ओर रवाना हो गया. रास्ते भर वह कमलप्रीत को फोन भी मिलाता रहा था, पर हर बार उसे फोन के स्विच्ड औफ होने की ही जानकारी मिलती रही. आखिर वह शहजादपुर जा पहुंचा. पत्नी और बच्चे की तलाश में उस ने उस गांव का चप्पाचप्पा छान मारा मगर पत्नी और बेटे राहुल के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. वहां से वह मोटरसाइकिल से ही अपनी ससुराल बल्लोपुर चला गया. कमलप्रीत को ले कर वहां भी सब परेशान हो रहे थे.

इस के बाद तो हरजिंदर सिंह और उस की ससुराल वालों ने कमलप्रीत राहुल की जैसे युद्धस्तर पर तलाश शुरू कर दी. मगर कहीं भी दोनों मांबेटे के बारे में जानकारी हाथ नहीं लगी

19 मार्च, 2018 का दिन तो गुजर ही गया था, पूरी रात भी निकल गई. 20 मार्च को भी दोपहर तक तलाश करते रहने के बाद सभी निराश हो गए तो हरजिंदर शहजादपुर थाने पहुंच गया. थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह को उस ने पत्नी और बेटे के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जानकारी दे दी. थानाप्रभारी ने कमलप्रीत और उस के बेटे राहुल की गुमशुदगी दर्ज कर ली. पुलिस ने अपने स्तर से दोनों मांबेटे को ढूंढने की काररवाई शुरू कर दी.

देखतेदेखते इस बात को एक सप्ताह गुजर गया, मगर पुलिस भी इस मामले में कुछ कर पाने में असफल रहीबात 26 मार्च, 2018 की थी. थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह उस वक्त अपने औफिस में थे. तभी एक अधेड़ उम्र के शख्स ने उन के सामने कर दोनों हाथ जोड़ते हुए दयनीय भाव से कहा, ‘‘सर, मेरा नाम ओमप्रकाश है और मैं यमुनानगर में रहता हूं.’’

 ‘‘जी हां, कहिए.’’ शैलेंद्र सिंह बोले. ‘‘अब क्या कहूं सर, एक भारी मुसीबत आन पड़ी है हमारे परिवार पर.’’  ‘‘हांहां बताइए, क्या परेशानी है?’’ थानाप्रभारी ने कहा.

‘‘सर, मेरा एक भांजा है नीटू. उम्र उस की करीब 21 साल है. किसी बात पर उस का एक औरत से झगड़ा हुआ और हाथापाई में वह औरत मर गई. उस ने उस की लाश को कहीं ले जा कर दफन कर दिया. जब इस की जानकारी मुझे हुई तो हम ने उसे समझाया कि गलती हो जाने पर कानून से आंखमिचौली खेलने के बजाय पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना ही बेहतर होगा.’’ ओमप्रकाश ने बताया.

इस पर एकबारगी तो शैलेंद्र सिंह चौंके. फिर खुद को संभालने का प्रयास करते हुए बोले, ‘‘मतलब यह कि आप के भांजे ने किसी की जान ली, फिर उस की लाश भी ठिकाने लगा दी. अब सरेंडर का प्रस्ताव लेकर आए हो. तो यह भी बता दो कि किन शर्तों पर सरेंडर करवाओगे?’’

‘‘कोई शर्त नहीं सर. लड़का आप के सामने तो अपना अपराध कबूलेगा ही, अदालत में भी ठीक ऐसा ही बयान देगा. भले उसे कितनी भी सजा क्यों हो जाए. बस आप से हमें सिर्फ इतना सहयोग चाहिए कि थाने में उस पर ज्यादा सख्ती हो.’’ ओमप्रकाश ने कहा.

‘‘देखो, अगर वह हमें सहयोग करते हुए सच्चाई बयान करता रहेगा तो हमें क्या जरूरत पड़ी है उस से सख्ती से पेश आने की. जाओ, लड़के को ला कर पेश कर दो. यदि वह सच्चा है तो यहां उस से किसी तरह की ज्यादती नहीं होगी.’’

 ‘‘ठीक है सर, मैं समझ गया. लड़का थाने के बाहर ही खड़ा है. मैं अभी उसे ला कर आप के सामने पेश करता हूं.’’ कहने के साथ ही ओमप्रकाश बाहर गया और थोड़ी ही देर में एक लड़के को ले कर थाने में गया.

 ‘‘यही है मेरा भांजा नीटू, सर.’’ उस ने बताया. जिस वक्त ओमप्रकाश नीटू को ले कर थानाप्रभारी के औफिस में पहुंचा था, पुलिस वाले बगल वाले कमरे में एक अभियुक्त से गहन पूछताछ कर रहे थे. जरा सी देर में वहां से चीखचिल्लाहट की भयावह आवाजें आने लगी थीं

ये आवाजें सुन कर नीटू थरथर कांपने लगा. फिर वह दबी सी आवाज में ओमप्रकाश से बोला, ‘‘मामा, ये लोग मेरा भी क्या ऐसा ही हाल करेंगे?’’

‘‘नहीं करेंगे बेटा, मैं ने एसएचओ साहब से सारी बात कर ली है. फिर जब तुम एकदम सच्चाई बयान कर ही रहे हो तो फिर डर कैसा?’’ ओमप्रकाश ने समझाया. ‘‘यही तो डर है मामा, मैं ने आप को भी पूरी सच्चाई नहीं बताई. दरअसल, मैं ने औरत के साथसाथ उस के बेटे का भी मर्डर कर दिया है और दोनों की लाशें एक साथ दफनाई हैं.’’

नीटू की यह बात थानाप्रभारी के कानों तक भी पहुंच गई थी. उन्होंने नीटू को खा जाने वाली नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘मुझे पहले ही से शक था कि तुम्हारे अपराध का संबंध गणौली की कमलप्रीत और उस के बच्चे की गुमशुदगी से हैअब तुम्हारे लिए बेहतर यही है कि तुम अपने घिनौने अपराध की सच्ची दास्तान अपने मामा को बता दो, वरना दूसरे तरीके से सच्चाई उगलवानी भी आती है.’’

थानाप्रभारी के इतना कहते ही ओमप्रकाश नीटू को ले कर एक दूसरे कमरे में ले गया. इस के बाद नीटू ने अपने अपराध की पूरी कहानी मामा को बता दी. नीटू के बताने के बाद ओमप्रकाश ने सारी कहानी थानाप्रभारी को बता दी. थानाप्रभारी ने ओमप्रकाश के बयान दर्ज करने के बाद उसे घर भेज दिया फिर नीटू को गिरफ्तार कर उसे अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस से व्यापक पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने जो कुछ पुलिस को बताया, उस से अपराध की एक सनसनीखेज कहानी कुछ इस तरह सामने आई

करीब एक साल पहले की बात है. अपनी रिश्तेदारी के एक शादी समारोह में शामिल होने के लिए कमलप्रीत अकेली नारायणगढ़ के बड़ागांव गई थी. वहां जब वह नाचने लगी तो एक लड़के ने भी उस का खूब साथ दिया. उस ने बहुत अच्छा डांस किया था

इस डांस के बाद भी दोनों एक साथ बैठ कर बतियाते रहे. लड़के ने अपना नाम सुमित उर्फ नीटू कहते हुए बताया कि यों तो वह शहजादपुर का रहने वाला है, मगर बड़ागांव में किराए का कमरा ले कर एक कंप्टीशन की तैयारी कर रहा है.

कमलप्रीत उस की बातों से तो प्रभावित हो ही रही थी, उस का सेवाभाव भी उसे खूब पसंद आया. कमलप्रीत तो थकहार कर एक जगह बैठ गई थी, पार्टी में खाने की जिस चीज का भी उस ने जिक्र किया, वह ला कर उसे वहीं बैठी को खिलाता रहाइसी तरह काफी रात गुजर जाने पर कमलप्रीत को नींद सताने लगी. नीटू ने सुझाव दिया कि वह उसे अपने कमरे पर छोड़ आता है, जहां वह बिना किसी शोरशराबे के आराम से सो सकती है. थोड़ी झिझक के बाद वह मान गई. अब तक नीटू को भी नींद आने लगी थी. अत: कमरे में चारपाई पर कमलप्रीत को सुलाने के बाद वह खुद भी जमीन पर दरी बिछा कर सो गया.

आगे का सिलसिला शायद इन के वश में नहीं था. रात के जाने किस पहर में दोनों की एक साथ आंखें खुलीं और बिना आगेपीछे की सोचे, दोनों एकदूसरे में समा गए. कमलप्रीत से नीटू 10 साल छोटा था, अत: उस मिलन के बाद कमलप्रीत उस की दीवानी हो गई. इस के बाद यही सिलसिला चल निकला. दोनों किसी न किसी तरीके से, कहीं न कहीं मौजमस्ती करने का तरीका निकाल लेते.

देखतेदेखते एक बरस गुजर गया. अब कमलप्रीत ने नीटू से यह कहना शुरू कर दिया था कि वह अपने पति को तलाक दे कर उस से शादी कर लेगी. मौजमस्ती तक तो ठीक था, कमलप्रीत की इस बात ने उसे नीटू को परेशान कर डाला. नीटू ने इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए आखिर मन ही मन यह निर्णय लिया कि वह कमलप्रीत को अच्छी तरह से समझाएगा. फिर भी न मानी तो वह उस का खून कर देगा. इस के लिए उस ने एक चाकू भी खरीद कर रख लिया था.

19 मार्च, 2018 की सुबह कमलप्रीत उस के यहां आ धमकी. उस के साथ एक लड़का था, जिसे उस ने अपना बेटा बताया. आते ही उस ने कहा कि वह अपने पति को हमेशा के लिए छोड़ आई है. आगे वह उस से शादी कर के अपने लड़के सहित उसी के साथ रहेगी. नीटू ने उसे समझाने की कोशिश की. लगातार समझातेसमझाते पूरा दिन और सारी रात भी निकल गई. मगर वह अपनी जिद पर अड़ी रही तो 20 मार्च को नीटू ने चाकू से कमलप्रीत की हत्या कर दी

यह देख कर उस का लड़का राहुल सहम गया. मगर वह इस मर्डर का चश्मदीद गवाह बन सकता था. इसलिए नीटू ने चाकू से उस का भी गला रेत दिया. दोनों लाशों को कमरे में छिपा कर नीटू अमृतसर चला गया. वहां गोल्डन टेंपल में उस ने वाहेगुरु से अपने इस गुनाह की माफी मांगी. रात में वापस कर बड़ागांव के पास से गुजर रही बेगना नदी की तलहटी में दोनों लाशों को दफन कर आया. इस के बाद वह अपने मामा के पास यमुनानगर चला गया, जिन्होंने उसे पुलिस के सामने सरेंडर करने का सुझाव दिया था.

पुलिस ने उस की निशानदेही पर केवल चाकू बरामद किया बल्कि दोनों लाशें भी खोज लीं, जो जरूरी काररवाई के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. कस्टडी रिमांड की समाप्ति पर नीटू को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में अंबाला की केंद्रीय जेल भेज दिया गया था.

   — कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

—— फोटो रीयल घटना पर आधारित नहीं है ये एक डेमो फोटो है

जब एक पति ने अपनी पत्नी की जिंदगी की वैल्यू रखी पौने 6 करोड़

Love Crime ‘‘मम्मी, मैं जानता हूं कि आप को मेरी एक बात बुरी लग सकती है. वो यह कि सुमन आंटी जो आप की सहेली  हैं, उन का यहां आना मुझे अच्छा नहीं लगता और तो और मेरे दोस्त तक कहते हैं कि वह पूरी तरह से गुंडी लगती हैं.’’ बेटे यशराज की यह बात सुन कर मां दीपा उसे देखती ही रह गई.

दीपा बेटे को समझाते हुए बोली, ‘‘बेटा, सुमन आंटी अपने गांव की प्रधान है. वह ठेकेदारी भी करती है. वह आदमियों की तरह कपड़े पहनती है, उन की तरह से काम करती है इसलिए वह ऐसी दिखती है. वैसे एक बात बताऊं कि वह स्वभाव से अच्छी है.’’

मां और बेटे के बीच जब यह बहस हो रही थी तो वहीं कमरे में दीपा का पति बबलू भी बैठा था. उस से जब चुप नहीं रहा गया तो वह बीच में बोल उठा,‘‘दीपा, यश को जो लगा, उस ने कह दिया. उस की बात अपनी जगह सही है. मैं भी तुम्हें यही समझाने की कोशिश करता रहता हूं लेकिन तुम मेरी बात मानने को ही तैयार नहीं होती हो.’’

‘‘यश बच्चा है. उसे हमारे कामधंधे आदि की समझ नहीं है. पर आप समझदार हैं. आप को यह तो पता ही है कि सुमन ने हमारे एनजीओ में कितनी मदद की है.’’ दीपा ने पति को समझाने की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘मदद की है तो क्या हुआ? क्या वह अपना हिस्सा नहीं लेती है और 8 महीने पहले उस ने हम से जो साढ़े 3 लाख रुपए लिए थे. अभी तक नहीं लौटाए.’’ पति बोला.

मां और बेटे के बीच छिड़ी बहस में अब पति पूरी तरह शामिल हो गया था.

‘‘बच्चों के सामने ऐसी बातें करना जरूरी है क्या?’’ दीपा गुस्से में बोली.

‘‘यह बात तुम क्यों नहीं समझती. मैं कब से तुम्हें समझाता आ रहा हूं कि सुमन से दूरी बना लो.’’ बबलू सिंह ने कहा तो दीपा गुस्से में मुंह बना कर दूसरे कमरे में चली गई. बबलू ने भी दीपा को उस समय मनाने की कोशिश नहीं की. क्योंकि वह जानता था कि 2-4 घंटे में वह नार्मल हो जाएगी.

बबलू सिंह उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर के इस्माइलगंज में रहता था. कुछ समय पहले तक इस्माइलगंज एक गांव का हिस्सा होता था. लेकिन शहर का विकास होने के बाद अब वह भी शहर का हिस्सा हो गया है. बबलू सिंह ठेकेदारी का काम करता था. इस से उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी इसलिए वह आर्थिकरूप से मजबूत था.

उस की शादी निर्मला नामक एक महिला से हो चुकी थी. शादी के 15 साल बाद भी निर्मला मां नहीं बन सकी थी. इस वजह से वह अकसर तनाव में रहती थी. बबलू सिंह को बैडमिंटन खेलने का शौक था. उसी दौरान उस की मुलाकात लखनऊ के ही खजुहा रकाबगंज मोहल्ले में रहने वाली दीपा से हुई थी. वह भी बैडमिंटन खेलती थी. दीपा बहुत सुंदर थी. जब वह बनठन कर निकलती थी तो किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी.

बैडमिंटन खेलतेखेलते दोनों अच्छे दोस्त बन गए. 40 साल का बबलू उस के आकर्षण में ऐसा बंधा कि शादीशुदा होने के बावजूद खुद को संभाल न सका. दीपा उस समय 20 साल की थी. बबलू की बातों और हावभाव से वह भी प्रभावित हो गई. लिहाजा दोनों के बीच प्रेमसंबंध हो गए. उन के बीच प्यार इतना बढ़ गया कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया.

दीपा के घर वालों ने उसे बबलू से विवाह करने की इजाजत नहीं दी. इस की एक वजह यह थी कि एक तो बबलू दूसरी बिरादरी का था और दूसरे बबलू पहले से शादीशुदा था. लेकिन दीपा उस की दूसरी पत्नी बनने को तैयार थी. पति द्वारा दूसरी शादी करने की बात सुन कर निर्मला नाराज हुई लेकिन बबलू ने उसे यह कह कर राजी कर लिया कि तुम्हारे मां न बनने की वजह से दूसरी शादी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. पति की दलीलों के आगे निर्मला को चुप होना पड़ा क्योंकि शादी के 15 साल बाद भी उस की कोख नहीं भरी थी. लिहाजा न चाहते हुए भी उस ने पति को सौतन लाने की सहमति दे दी.

घरवालों के विरोध को नजरअंदाज करते हुए दीपा ने अपनी उम्र से दोगुने बबलू से शादी कर ली और वह उस की पहली पत्नी निर्मला के साथ ही रहने लगी. करीब एक साल बाद दीपा ने एक बेटे को जन्म दिया जिस का नाम यशराज रखा गया. बेटा पैदा होने के बाद घर के सभी लोग बहुत खुश हुए. अगले साल दीपा एक और बेटे की मां बनी. उस का नाम युवराज रखा. इस के बाद तो बबलू दीपा का खास ध्यान रखने लगा. बहरहाल दीपा बबलू के साथ बहुत खुश थी.

दोनों बच्चे बड़े हुए तो स्कूल में उन का दाखिला करा दिया. अब यशराज जार्ज इंटर कालेज में कक्षा 9 में पढ़ रहा था और युवराज सेंट्रल एकेडमी में कक्षा 7 में. दीपा भी 35 साल की हो चुकी थी और बबलू 55 का. उम्र बढ़ने की वजह से वह दीपा का उतना ध्यान नहीं रख पाता था. ऊपर से वह शराब भी पीने लगा. इन्हीं सब बातों को देखने के बाद दीपा को महसूस होने लगा था कि बबलू से शादी कर के उस ने बड़ी गलती की थी. लेकिन अब पछताने से क्या फायदा. जो होना था हो चुका.

बबलू का 2 मंजिला मकान था. पहली मंजिल पर बबलू की पहली पत्नी निर्मला अपने देवरदेवरानी और ससुर के साथ रहती थी. नीचे के कमरों में दीपा अपने बच्चों के साथ रहती थी. उन के घर से बाहर निकलने के भी 2 रास्ते थे. दीपा का बबलू के परिवार के बाकी लोगों से कम ही मिलना जुलना होता था. वह उन से बातचीत भी कम करती थी.

बबलू को शराब की लत हो जाने की वजह से उस की ठेकेदारी का काम भी लगभग बंद सा हो गया था. तब उस ने कुछ टैंपो खरीद कर किराए पर चलवाने शुरू कर दिए थे. उन से होने वाली कमाई से घर का खर्च चल रहा था.

शुरू से ही ऊंचे खयालों और सपनों में जीने वाली दीपा को अब अपनी जिंदगी बोरियत भरी लगने लगी थी. खुद को व्यस्त रखने के लिए दीपा ने सन 2006 में ओम जागृति सेवा संस्थान के नाम से एक एनजीओ बना लिया. उधर बबलू का जुड़ाव भी समाजवादी पार्टी से हो गया. अपने संपर्कों की बदौलत उस ने एनजीओ को कई प्रोजेक्ट दिलवाए.

इसी बीच सन 2008 में दीपा की मुलाकात सुमन सिंह नामक महिला से हुई. सुमन सिंह गोंडा करनैलगंज के कटरा शाहबाजपुर गांव की रहने वाली थी. वह थी तो महिला लेकिन उस की सारी हरकतें पुरुषों वाली थीं. पैंटशर्ट पहनती और बायकट बाल रखती थी. सुमन निर्माणकार्य की ठेकेदारी का काम करती थी. उस ने दीपा के एनजीओ में काम करने की इच्छा जताई. दीपा को इस पर कोई एतराज न था. लिहाजा वह एनजीओ में काम करने लगी.

सुमन एक तेजतर्रार महिला थी. अपने संबंधों से उस ने एनजीओ को कई प्रोजेक्ट भी दिलवाए. तब दीपा ने उसे अपनी संस्था का सदस्य बना दिया. इतना ही नहीं वह संस्था की ओर से सुमन को उस के कार्य की एवज में पैसे भी देने लगी. कुछ ही दिनों में सुमन के दीपा से पारिवारिक संबंध बन गए.

दीपा को ज्यादा से ज्यादा बनठन कर रहने और सजनेसंवरने का शौक था. वह हमेशा बनठन कर और ज्वैलरी पहने रहती थी. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी उस में गजब का आकर्षण था. उसे देख कर कोई भी उस की ओर आकर्षित हो सकता था. एनजीओ में काम करने की वजह से सुमन दीपा को अकसर अपने साथ ही रखती थी. दीपा इसे सुमन की दोस्ती समझ रही थी पर सुमन पुरुष की तरह ही दीपा को प्यार करने लगी थी.

एक बार जब सुमन दीपा को प्यार भरी नजरों से देख रही थी तो दीपा ने पूछा, ‘‘ऐसे क्या देख रही हो? मैं भी तुम्हारी तरह एक महिला हूं. तुम मुझे इस तरह निहार रही हो जैसे कोई प्रेमी प्रेमिका को देख रहा हो.’’

‘‘दीपा, तुम मुझे अपना प्रेमी ही समझो. मैं सच में तुम्हें बहुत प्यार करने लगी हूं.’’ सुमन ने मन में दबी बातें उस के सामने रख दीं.

सुमन की बातें सुनते ही वह चौंकते हुए बोली, ‘‘यह तुम कैसी बातें कर रही हो? कहीं 2 लड़कियां आपस में प्रेमीप्रेमिका हो सकती हैं?’’

‘‘दीपा, मैं लड़की जरूर हूं पर मेरे अंदर कभीकभी लड़के सा बदलाव महसूस होता है. मैं सबकुछ लड़कों की तरह करना चाहती हूं. प्यार और दोस्ती सबकुछ. इसीलिए तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मैं तुम से शादी भी करना चाहती हूं.’’

‘‘मैं पहले से शादीशुदा हूं. मेरे पति और बच्चे हैं.’’ दीपा ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘मैं तुम्हें पति और बच्चों से अलग थोड़े न कर रही हूं. हम दोस्त और पतिपत्नी दोनों की तरह रह सकते हैं. सब से अच्छी बात तो यह है कि हमारे ऊपर कोई शक भी नहीं करेगा. दीपा, मैं सच कह रही हूं कि मुझे तुम्हारे करीब रहना अच्छा लगता है.’’

‘‘ठीक है बाबा, पर कभी यह बातें किसी और से मत कहना.’’ दीपा ने सुमन से अपना पीछा छुड़ाने के अंदाज में कहा.

‘‘दीपा, मेरी इच्छा है कि तुम मुझे सुमन नहीं छोटू के नाम से पुकारा करो.’’

‘‘समझ गई, आज से तुम मेरे लिए सुमन नहीं छोटू हो.’’ इतना कह कर सुमन और दीपा करीब आ गए. दोनों के बीच आत्मीय संबंध बन गए थे. सुमन ने रिश्ते को मजबूत करने के लिए एक दिन दीपा के साथ मंदिर जा कर शादी भी कर ली. सुमन के करीब आने से दीपा के जीवन को भी नई उमंग महसूस होने लगी थी कि कोई तो है जो उसे इतना प्यार कर रही है.

इस के बाद सुमन एक प्रेमी की तरह उस का खयाल रखने लगी थी. समय गुजरने लगा. दीपा के पति और परिवार को इस बात की कोई भनक नहीं थी. वह सुमन को उस की सहेली ही समझ रहे थे. एनजीओ के काम के कारण सुमन अकसर ही दीपा के साथ उस के घर पर ही रुक जाती थी.

सुमन को भी शराब पीने का शौक था. बबलू भी शराब पीता था. कभीकभी सुमन बबलू के साथ ही पीने बैठ जाती थी. जिस से सुमन और बबलू की दोस्ती हो गई. सुमन के लिए उस के यहां रुकना और ज्यादा आसान हो गया था. उस के रुकने पर बबलू भी कोई एतराज नहीं करता था. वह भी उसे छोटू कहने लगा.

साल 2010 में उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हुए तो सुमन ने अपने गांव कटरा शाहबाजपुर से ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ा. सुमन सिंह का भाई विनय सिंह करनैलगंज थाने का हिस्ट्रीशीटर बदमाश था. उस के पिता अवधराज सिंह के खिलाफ भी कई आपराधिक मुकदमे करनैलगंज थाने में दर्ज थे. दोनों बापबेटों की दबंगई का गांव में खासा प्रभाव था. जिस के चलते सुमन ग्रामप्रधान का चुनाव जीत गई. उस ने गोंडा के पूर्व विधायक अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भैया की बहन सरोज सिंह को भारी मतों से हराया.

ग्राम प्रधान बनने के बाद सुमन सिंह सीतापुर रोड पर बनी हिमगिरी में फ्लैट ले कर रहने लगी. सन 2010 में प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद उस ने अपने संबंधों की बदौलत फिर से ठेकेदारी शुरू कर दी. अपनी सुरक्षा के लिए वह 32 एमएम की लाइसैंसी रिवाल्वर भी साथ रखने लगी. उस की और दीपा की दोस्ती अब और गहरी होने लगी थी. सुमन किसी न किसी बहाने से दीपा के पास ही रुक जाती थी.

ऐसे में दीपा और सुमन एक साथ ही रात गुजारती थीं. यह सब बातें धीरेधीरे बबलू और उस के बच्चों को भी पता चलने लगी थीं. तभी तो उन्हें सुमन का उन के यहां आना अच्छा नहीं लगता था.

सुमन महीने में 20-25 दिन दीपा के घर पर रुकती थी. शनिवार और रविवार को वह दीपा को अपने साथ हिमगिरी कालोनी ले जाती थी. दीपा को सुमन के साथ रहना कुछ दिनों तक तो अच्छा लगा, लेकिन अब वह सुमन से उकता गई थी.

एक बार सुमन ने दीपा से किसी काम के लिए साढ़े 3 लाख रुपए उधार लिए थे. तयशुदा वक्त गुजर जाने के बाद भी सुमन ने पैसे नहीं लौटाए तो दीपा ने उस से तकादा करना शुरू कर दिया. तकादा करना सुमन को अच्छा नहीं लगता था. इसलिए दीपा जब कभी उस से पैसे मांगती तो सुमन उस से लड़ाईझगड़ा कर बैठी थी.

27 जनवरी, 2014 की देर रात करीब 9 बजे सुमन दीपा के घर अंगुली में अपना रिवाल्वर घुमाते हुए पहुंची. दीपा और बबलू में सुमन को ले कर सुबह ही बातचीत हो चुकी थी. अचानक उस के आ धमकने से वे लोग पशोपेश में पड़ गए.

‘‘क्या बात है छोटू आज तो बिलकुल माफिया अंदाज में दिख रहे हो.’’ दीपा बोली.

इस के पहले कि सुमन कुछ कहती. बबलू ने पूछ लिया, ‘‘छोटू अकेले ही आए हो क्या?’’

‘‘नहीं, भतीजा विपिन और उस का दोस्त शिवम मुझे छोड़ कर गए हैं. कई दिनों से दीपा के हाथ का बना खाना नहीं खाया था. उस की याद आई तो चली आई.’’

सुमन और बबलू बातें करने लगे तो दीपा किचन में चली गई. सुमन ने भी फटाफट बबलू से बातें खत्म कीं और दीपा के पीछे किचन में पहुंच कर उसे पीछे से अपनी बांहों में भर लिया. पति और बच्चोें की बातें सुन कर दीपा का मूड सुबह से ही खराब था. वह सुमन को झिड़कते हुए बोली, ‘‘छोटू ऐसे मत किया करो. अब बच्चे बड़े हो गए हैं. यह सब उन को बुरा लगता है.’’

उस समय सुमन नशे में थी. उसे दीपा की बात समझ नहीं आई. उसे लगा कि दीपा उस से बेरुखी दिखा रही है. वह बोली, ‘‘दीपा, तुम अपने पति और बच्चों के बहाने मुझ से दूर जाना चाहती हो. मैं तुम्हारी बातें सब समझती हूं.’’

दीपा और सुमन के बीच बहस बढ़ चुकी थी दोनों की आवाज सुन कर बबलू भी किचन में पहुंच गया. लड़ाई आगे न बढ़े इस के लिए बबलू सिंह ने सुमन को रोका और उसे ले कर ऊपर के कमरे में चला गया. वहां दोनों ने शराब पीनी शुरू कर दी. शराब के नशे में खाने के समय सुमन ने दीपा को फिर से बुरा भला कहा.

दीपा को भी लगा कि शराब के नशे में सुमन घर पर रुक कर हंगामा करेगी. उस की तेज आवाज पड़ोसी भी सुनेंगे जिस से घर की बेइज्जती होगी इसलिए उस ने उसे अपने यहां रुकने के लिए मना लिया. बबलू सिंह ऊपर के कमरे में सोने चला गया. दीपा के कहने के बाद भी सुमन उस रात वहां से नहीं गई बल्कि वहीं दूसरे कमरे में जा कर सो गई.

28 जनवरी, 2014 की सुबह दीपा के बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे. वह उन के लिए नाश्ता तैयार कर रही थी. तभी किचन में सुमन पहुंच गई. वह उस समय भी नशे की अवस्था में ही थी. उस ने दीपा से कहा, ‘‘मुझ से बेरुखी की वजह बताओ इस के बाद ही परांठे बनाने दूंगी.’’

‘‘सुमन, अभी बच्चों को स्कूल जाना है नाश्ता बनाने दो. बाद में बात करेंगे.’’ पहली बार दीपा ने छोटू के बजाय सुमन कहा था.

‘‘तुम ऐसे नहीं मानोगी.’’ कह कर सुमन ने हाथ में लिया रिवाल्वर ऊपर किया और किचन की छत पर गोली चला दी.

गोली चलते ही दीपा डर गई. वह बोली, ‘‘सुमन होश में आओ.’’ इस के बाद वह उसे रोकने के लिए उस की ओर बढ़ी. सुमन उस समय गुस्से में उबल रही थी. उस ने उसी समय दीपा के सीने पर गोली चला दी. गोली चलते ही दीपा वहीं गिर पड़ी. गोली की आवाज सुन कर बच्चे किचन की तरफ आए. उन्होंने मां को फर्श पर गिरा देखा तो वे रोने लगे. बबलू उस समय ऊपर के कमरे में था. बच्चों की आवाज सुन कर वो और उस की पहली पत्नी निर्मला भी नीचे आ गए. निर्मला सुमन से बोली, ‘‘क्या किया तुम ने?’’

‘‘कुछ नहीं यह गिर पड़ी है. इसे कुछ चोट लग गई है.’’ सुमन ने जवाब दिया.

निर्मला ने दीपा की तरफ देखा तो उस के पेट से खून बहता देख वह सुमन पर चिल्ला कर बोली, ‘‘छोटू तुम ने इसे मार दिया.’’

दीपा की हालत देख कर बबलू के आंसू निकल पड़े. उस ने पत्नी को हिलाडुला कर देखा. लेकिन उन की सांसें तो बंद हो चुकी थीं. वह रोते हुए बोला, ‘‘छोटू, यह तुम ने क्या कर दिया.’’ वह दीपा को कार से तुरंत राममनोहर लोहिया अस्पताल ले गया जहां डाक्टरों ने दीपा को मृत घोषित कर दिया.

चूंकि घर वालों के बीच सुमन घिर चुकी थी. इसलिए उस ने फोन कर के अपने भतीजे विपिन सिंह और उस के साथी शिवम मिश्रा को वहीं बुला लिया. तभी सुमन ने अपना रिवाल्वर विपिन सिंह को दे दिया. विपिन ने रिवाल्वर से बबलू के घरवालों को धमकाने की कोशिश की लेकिन जब घरवाले उलटे उन पर हावी होने लगे वे दोनों वहां से भाग गए.

तब अपनी सुरक्षा के लिए सुमन ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया. बबलू के भाई बलू सिंह ने गाजीपुर थाने फोन कर के दीपा की हत्या की खबर दे दी. घटना की जानकारी पाते ही थानाप्रभारी नोवेंद्र सिंह सिरोही, एसएसआई रामराज कुशवाहा, सीटीडी प्रभारी सबइंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह, रूपा यादव, ब्रजमोहन सिंह के साथ मौके पर पहुंच गए.

हत्या की सूचना पाते ही एसएसपी लखनऊ प्रवीण कुमार, एसपी (ट्रांसगोमती) हबीबुल हसन और सीओ गाजीपुर विशाल पांडेय भी घटनास्थल पर पहुंच गए. बबलू के घर पहुंच कर पुलिस ने दरवाजा खुलवा कर सब से पहले सुमन को हिरासत में लिया. उस के बाद राममनोहर लोहिया अस्पताल पहुंच कर दीपा की लाश कब्जे में ले कर उसे पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया.

पुलिस ने थाने ला कर सुमन से पूछताछ की तो उस ने सच्चाई उगल दी. इस के बाद कांस्टेबल अरुण कुमार सिंह, शमशाद, भूपेंद्र वर्मा, राजेश यादव, ऊषा वर्मा और अनीता सिंह की टीम ने विपिन को भी गिरफ्तार कर लिया. उन से हत्या में प्रयोग की गई रिवाल्वर और सुमन की अल्टो कार नंबर यूपी32 बीएल6080 बरामद कर ली. जिस से ये दोनों फरार हुए थे.

देवरिया जिले के भटनी कस्बे का रहने वाला शिवम गणतंत्र दिवस की परेड देखने लखनऊ आया था. वह एक होनहार युवक था. लखनऊ घूमने के लिए विपिन ने उसे 1-2 दिन और रुकने के लिए कहा. उसे क्या पता था कि यहां रुकने पर उसे जेल जाना पड़ जाएगा. दोनों अभियुक्तों के खिलाफ पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 506 के तहत मामला दर्ज कर के उन्हें 29 जनवरी, 2014 को मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर जेल भेज दिया.

जेल जाने से पहले सुमन अपने किए पर पछता रही थी. उस ने पुलिस से कहा कि वह दीपा से बहुत प्यार करती थी. गुस्से में उस का कत्ल हो गया. सुमन के साथ जेल गए शिवम को लखनऊ में रुकने का पछतावा हो रहा था.

अपराध किसी तूफान की तरह होता है. वह अपने साथ उन लोगों को भी तबाह कर देता है जो उस से जुड़े नहीं होते हैं. दीपा और सुमन के गुस्से के तूफान में शिवम के साथ विपिन और दीपा का परिवार खास कर उस के 2 छोटेछोटे बच्चे प्रभावित हुए हैं. सुमन का भतीजा विपिन भागने में सफल रहा. कथा लिखे जाने तक उस की तलाश जारी थी.

— कथा पुलिस सूत्रों और मोहल्ले वालों से की गई बातचीत के आधार पर

फोटो डेमों के तौर पर यूज की गई है असल फोटो का प्रयोग नहीं किया गया है

एक नाबालिग लड़की के प्यार में किसने घोला तीखा जहर

रोमिला अपनी बेटी सलोनी के साथ लखनऊ के इंदिरा नगर मोहल्ले में रहती थी. उस का 3 मंजिल का मकान था. पहली दोनों मंजिलों पर रहने के लिए कमरे थे और तीसरी मंजिल पर गोदाम बना था, जहां कबाड़ और पुरानी चीजें रखी रहती थीं.

ईसाई समुदाय की रोमिला मूलत: सुल्तानपुर जिले की रहने वाली थी. उस ने जौन स्विंग से प्रेम विवाह किया था. सलोनी के जन्म के बाद रोमिला और जौन स्विंग के संबंध खराब हो गए. रोमिला ने घुटघुट कर जीने के बजाय अपने पति जौन स्विंग से तलाक ले लिया. इसी बीच रोमिला को लखनऊ के सरकारी अस्पताल में टैक्नीशियन की नौकरी मिल गई. वेतन ठीकठाक था. इसलिए वह अपनी आगे की जिंदगी अपने खुद के बूते पर गुजारना चाहती थी.

स्विंग से प्यार, शादी और फिर तलाक ने रोमिला की जिंदगी को बहुत बोझिल बना दिया था. कम उम्र की तलाकशुदा महिला का समाज में अकेले रहना सरल नहीं होता, इस बात को ध्यान में रखते हुए रोमिला ने अपने को धर्मकर्म की बंदिशों में उलझा लिया.

समय गुजर रहा था, बेटी बड़ी हो रही थी. रोमिला अपनी बेटी को पढ़ालिखा कर बड़ा बनाना चाहती थी. क्योंकि अब उस का भविष्य वही थी. सलोनी कावेंट स्कूल में पढ़ती थी, पढ़ने में होशियार. रोमिला ने लाड़प्यार से उस की परवरिश लड़कों की तरह की थी.

सलोनी भी खुद को लड़कों की तरह समझने लगी थी. वह जिद्दी स्वभाव की तो थी ही गुस्सा भी खूब करती थी. जन्म के समय ही कुछ परेशानियों के कारण सलोनी के शरीर के दाएं हिस्से में पैरालिसिस का अटैक पड़ा था, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ उस का असर करीब करीब खत्म हो गया था.

सलोनी बौबकट बाल रखती थी. उस की उम्र हालांकि 15 साल थी पर वह अपनी उम्र से बड़ी दिखाई देती थी. वह लड़कों की तरह टीशर्ट पैंट पहनती थी. सलोनी के साथ पढ़ने वाले लड़के लड़कियां स्मार्टफोन इस्तेमाल करते थे. सलोनी ने भी मां से जिद कर के स्मार्टफोन खरीदवा लिया.

रोमिला जानती थी कि आजकल के बच्चे मोबाइल पर इंटरनेट लगा कर फेसबुक और वाट्सएप जैसी साइटों का इस्तेमाल करते हैं जो सलोनी जैसी कम उम्र लड़की के लिए ठीक नहीं है. लेकिन एकलौती बेटी की जिद के सामने उसे झुकना पड़ा.

रोमिला सुबह 8 बजे अस्पताल जाती थी और शाम को 4 बजे लौटती थी. सलोनी भी सुबह 8 बजे स्कूल चली जाती थी और 2 बजे वापस आती थी. कठिन जीवन जीने के लिए रोमिला ने बेड की जगह घर में सीमेंट के चबूतरे बनवा रखे थे. मांबेटी बिस्तर डाल कर इन्हीं चबूतरों पर सोती थीं.

रोमिला को अस्पताल से 45 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता था. इस के बावजूद मांबेटी का खर्च बहुत कम था. रोमिला जो खाना बनाती थी वह कई दिन तक चलता था.

मोबाइल फोन लेने के बाद सलोनी ने इंटरनेट के जरीए अपना फेसबुक पेज बना लिया था. वह अकसर अपने दोस्तों से चैटिंग करती रहती थी. इसी के चलते उस के कई नए दोस्त बन गए थे. उस के इन्हीं दोस्तों में से एक था पश्चिम बंगाल के मालदा का रहने वाला सुदीप दास. 19 साल का सुदीप एक प्राइवेट फैक्ट्री में काम करता था.

उस के घर की हालत ठीक नहीं थी. उस का पिता सुधीरदास मालदा में मिठाई की एक दुकान पर काम करता था. जबकि मां कावेरी घरेलू महिला थी. उस का छोटा भाई राजदीप कोई काम नहीं करता था. सुदीप और उस के पिता की कमाई से ही घर का खर्च चलता था.

सुदीप और सलोनी के बीच चैटिंग के माध्यम से जो दोस्ती हुई धीरेधीरे प्यार तक जा पहुंची. नासमझी भरी कम उम्र का तकाजा था. चैटिंग करतेकरते सुदीप और सलोनी एकदूसरे के प्यार में पागल से हो गए. स्थिति यह आ गई कि सुदीप सलोनी से मिलने के लिए बेचैन रहने लगा.

दोनों के पास एकदूसरे के मोबाइल नंबर थे. सो दोनों खूब बातें करते थे. मोबाइल पर ही दोनों की मिलने की बात तय हुई. सितंबर 2013 में सुदीप सलोनी से मिलने लखनऊ आ गया. सलोनी ने सुदीप को अपनी मां से मिलवाया. रोमिला बेटी को इतना प्यार करती थी कि उस की हर बात मानने को तैयार रहती थी. 2 दिन लखनऊ में रोमिला के घर पर रह कर सुदीप वापस चला गया.

अक्तूबर में सलोनी का बर्थडे था. उस के बर्थडे पर सुदीप फिर लखनऊ आया. अब तक सलोनी ने सुदीप से अपने प्यार की बात मां से छिपा कर रखी थी. लेकिन इस बार उस ने अपने और सुदीप के प्यार की बात रोमिला को बता दी.

सलोनी और सुदीप दोनों की ही उम्र ऐसी नहीं थी कि शादी जैसे फैसले कर सकें. इसलिए रोमिला ने दोनों को समझाने की कोशिश की. ऊंचनीच दुनियादारी के बारे में बताया. लेकिन सुदीप और सलोनी पर तो प्यार का भूत चढ़ा था.

रोमिला को इनकार करते देख सुदीप बड़े आत्मविश्वास से बोला, ‘‘आंटी, आप चिंता न करें. मैं सलोनी का खयाल रख सकता हूं. मैं खुद भी नौकरी करता हूं और मेरे पिताजी भी. हमारे घर में भी कोई कुछ नहीं कहेगा.’’

बातचीत के दौरान रोमिला सुदीप के बारे में सब कुछ जान गई थी. इसलिए सोचविचार कर बोली, ‘‘देखो बेटा, तुम्हारी सारी बातें अपनी जगह सही हैं. मुझे इस रिश्ते से भी कोई ऐतराज नहीं है. पर मैं यह रिश्ता तभी स्वीकार करूंगी जब तुम कोई अच्छी नौकरी करने लगोगे. आजकल 10-5 हजार की नौकरी में घरपरिवार नहीं चलते. अभी तुम दोनों में बचपना है.’’

‘‘ठीक है आंटी, मैं आप की बात मान लेता हूं. लेकिन आप वादा करिए कि आप उसे मुझ से दूर नहीं करेंगी. जब मैं कुछ बन जाऊंगा तो सलोनी को अपनी बनाने आऊंगा.’’ सुदीप ने फिल्मी हीरो वाले अंदाज में रोमिला से अपनी बात कही.

इस बार सुदीप सलोनी के घर पर एक सप्ताह तक रहा. इसी बीच रोमिला ने सुदीप से स्टांप पेपर पर लिखवा लिया कि वह किसी लायक बन जाने के बाद ही सलोनी से शादी करेगा. इस के बाद सुदीप अपने घर मालदा चला गया. लेकिन लखनऊ से लौटने के बाद उस का मन नहीं लग रहा था.

जवानी में, खास कर चढ़ती उम्र में महबूबा से बड़ा दूसरा कोई दिखाई नहीं देता. कामधाम, भूखप्यास, घरपरिवार सब बेकार लगने लगते हैं. सुदीप का भी कुछ ऐसा ही हाल था. उस की आंखों के सामने सलोनी का गोलगोल सुंदर चेहरा और बोलती हुई आंखें घूमती रहती थीं. वह किसी भी सूरत में उसे खोने के लिए तैयार नहीं था.

जब नहीं रहा गया तो 10 दिसंबर, 2013 को सुदीप वापस लखनऊ आया और रोमिला को बहका फुसला कर सलोनी को मालदा घुमाने के लिए साथ ले गया. हालांकि सलोनी की मां रोमिला इस के लिए कतई तैयार नहीं थी. लेकिन सलोनी ने उसे मजबूर कर दिया.

दरअसल मां के प्यार ने उसे इतना जिद्दी बना दिया था कि वह कोई बात सुनने को तैयार नहीं होती थी. रोमिला के लिए बेटी ही जीने का सहारा थी. वह उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी. इस लिए वह सलोनी की जिद के आगे झुक गई. करीब ढाई माह तक सलोनी सुदीप के साथ मालदा में रही.

मार्च, 2014 में सलोनी वापस आ गई. सुदीप भी उस के साथ आया था. बेटी का बदला हुआ स्वभाव देख कर रोमिला को झटका लगा. सलोनी उस की कोई बात सुनने को तैयार नहीं थी. पति से अलग होने के बाद रोमिला ने सोचा था कि वह बेटी के सहारे अपना पूरा जीवन काट लेगी. अब वह बेटी के दूर जाने की कल्पना मात्र से बुरी तरह घबरा गई थी.

लेकिन हकीकत वह नहीं थी जो रोमिला देख या समझ रही थी. सच यह था कि सलोनी का मन सुदीप से उचट गया था. उस का झुकाव यश नाम के एक अन्य लड़के की ओर होने लगा था. जबकि सुदीप हर हाल में सलोनी को पाना चाहता था. वह कई बार उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर चुका था. यह बात मांबेटी दोनों को नागवार गुजरने लगी थी.

रोमिला ने अस्पताल से 1 मार्च, 2014 से 31 मार्च तक की छुट्टी ले रखी थी. उस ने अस्पताल में छुट्टी लेने की वजह बेटी की परीक्षाएं बताई थीं.

7 अप्रैल, 2014 की सुबह रोमिला के मकान के पड़ोस में रहने वाले रणजीत सिंह ने थाना गाजीपुर आ कर सूचना दी कि बगल के मकान में बहुत तेज बदबू आ रही है. उन्होंने यह भी बताया कि मकान मालकिन रोमिला काफी दिनों से घर पर नहीं है. सूचना पा कर एसओ गाजीपुर नोवेंद्र सिंह सिरोही, सीनियर इंसपेक्टर रामराज कुशवाहा और सिपाही अरूण कुमार सिंह रोमिला के मकान पर पहुंच गए.

देखने पर पता चला कि मकान के ऊपर के हिस्से में बदबू आ रही थी. पुलिस ने फोन कर के मकान मालकिन रोमिला को बुला लिया. वहां उस के सामने ही मकान खोल कर देखा गया तो पूरा मकान गंदा और रहस्यमय सा नजर आया. सिपाही अरूण कुमार और एसएसआई रामराज कुशवाहा तलाशी लेने ऊपर वाले कमरे में पहुंचे तो कबाड़ रखने वाले कमरे में एक युवक की सड़ीगली लाश मिली.

पुलिस ने रोमिला से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह लाश मालदा, पश्चिम बंगाल के रहने वाले सुदीप दास की है. वह उस की बेटी सलोनी का प्रेमी था और उस से शादी करना चाहता था. जब सलोनी ने इनकार कर दिया तो सुदीप ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. रोमिला ने आगे बताया कि इस घटना से वह बुरी तरह डर गई थी. उसे लग रहा था कि हत्या के इल्जाम में फंस जाएगी. इसलिए वह घर को बंद कर के फरार हो गई थी.

पुलिस ने रोमिला से नंबर ले कर फोन से सुदीप के घर संपर्क किया और इस मामले की पूरी जानकारी उस के पिता को दे दी. लेकिन उस के घर वाले लखनऊ आ कर मुकदमा कराने को तैयार नहीं थे. कारण यह कि वे लोग इतने गरीब थे कि उन के पास लखनऊ आने के लिए पैसा नहीं था. इस पर एसओ गाजीपुर ने अपनी ओर से मुकदमा दर्ज कर के इस मामले की जांच शुरू कर दी. प्राथमिक काररवाई के बाद सुदीप की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

8 अप्रैल 2014 को सुदीप की लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद जो सच सामने आया, वह चौंका देने वाला था. इस बीच सलोनी भी आ गई थी. रोमिला और उस की बेटी सलोनी ने अपने बयानों में कई बातें छिपाने की कोशिश की थी. लेकिन उन के अलगअलग बयानों ने उन की पोल खोल दी. एसपी ट्रांस गोमती हबीबुल हसन और सीओ गाजीपुर विशाल पांडेय पुलिस विवेचना पर नजर रख रहे थे जिस से इस पूरे मामले का बहुत जल्दी पर्दाफाश हो गया.

मांबेटी से पूछताछ के बाद जो कहानी सामने आई वह कुछ इस तरह थी.

13 मार्च, 2014 की रात को सलोनी अपने कमरे में किसी से फोन पर बात कर रही थी. इसी बीच सुदीप उस से झगड़ने लगा. वह गुस्से में बोला, ‘‘मैं ने मांबेटी दोनों को कितनी बार समझाया है कि मुझे खीर में इलायची डाल कर खाना पसंद नहीं है. लेकिन तुम लोगों पर मेरी बात का कोई असर नहीं होता.’’

उस की इस बात पर सलोनी को गुस्सा आ गया. उस ने सुदीप को लताड़ा, ‘‘तुम मां से झगड़ने के बहाने तलाश करते रहते हो. बेहतर होगा, तुम यहां से चले जाओ. मैं तुम से किसी तरह की दोस्ती नहीं रखना चाहती.’’

‘‘ऐसे कैसे चला जाऊं? मैं ने स्टांपपेपर पर लिख कर दिया है, तुम्हें मेरे साथ ही शादी करनी होगी. बस तुम 18 साल की हो जाओ. तब तक मैं कोई अच्छी नौकरी कर लूंगा और फिर तुम से शादी कर के तुम्हें साथ ले जाऊंगा. अब तुम्हारी मां चाहे भी तो तुम्हारी शादी किसी और से नहीं करा सकती.’’ सुदीप ने भी गुस्से में जवाब दिया.

‘‘मेरी ही मति मारी गई थी जो तुम्हें इतना मुंह लगा लिया.’’ कह कर सलोनी ऊपर चली गई. वहां उस की मां पहले से दोनों का लड़ाईझगड़ा देख रही थी.

‘‘सुदीप, तुम मेरे घर से चले जाओ.’’ रोमिला ने बेटी का पक्ष लेते हुए चेतावनी भरे शब्दों में कहा तो सुदीप उस से भी लड़नेझगड़ने लगा. यह देख मांबेटी को गुस्सा आ गया. सुदीप भी गुस्से में था. उस ने मांबेटी के साथ मारपीट शुरू कर दी. जल्दी ही वह दोनों पर भरी पड़ने लगा. तभी रोमिला की निगाह वहां रखी हौकी स्टिक पर पड़ी.

रोमिला ने हौकी उठा कर पूरी ताकत से सुदीप के सिर पर वार किया. एक दो नहीं कई वार. एक साथ कई वार होने से सुदीप की वहीं गिर कर मौत हो गई. सुदीप की मृत्यु के बाद मांबेटी दोनों ने मिल कर उस की लाश को बोरे में भर कर कबाड़ वाले कमरे में बंद कर दिया. इस के बाद अगली सुबह दोनों घर पर ताला लगा कर गायब हो गईं.

पुलिस को उलझाने के लिए रोमिला ने बताया कि वह यह सोच कर डर गई थी कि सुदीप का भूत उसे परेशान कर सकता है. इसलिए, वे दोनों हवन कराने के लिए हरिद्वार चली गई थीं.

सलोनी ने भी 14 मार्च को अपनी डायरी में लिखा था, ‘आत्माओं ने सुदीप को मार डाला. हम फेसबुक पर एकदूसरे से मिले थे. आत्माओं के पास लेजर जैसी किरणें हैं. वह हमें नष्ट कर देंगी. आत्माएं हमें फंसा देंगी.’ सलोनी ने इस तरह की और भी तमाम अनापशनाप बातें डायरी में लिखी थीं. रोमिला भी इसी तरह की बातें कर रही थी.

पुलिस ने अपनी जांच में पाया कि मांबेटी हरिद्वार वगैरह कहीं नहीं गई थी बल्कि दोनों लखनऊ में इधरउधर भटक कर अपना समय गुजारती रही थीं. वे समझ नहीं पा रही थीं कि इस मामले को कैसे सुलझाएं, क्योंकि सुदीप की लाश घर में पड़ी थी.

बहरहाल, उस की लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद इस बात का खुलासा हो गया था कि मामला आत्महत्या का नहीं बल्कि हत्या का था. गाजीपुर पुलिस ने महिला दारोगा नीतू सिंह, सिपाही मंजू द्विवेदी और उषा वर्मा को इन मांबेटी से राज कबूलवाने पर लगाया.

जब उन्हें बताया गया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सुदीप की मौत का का कारण सिर पर लगी चोट को बताया गया है, तो वे टूट गईं. दोनों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. रोमिला की निशानदेही पर हौकी स्टिक भी बरामद हो गई.

8 अप्रैल, 2014 को पुलिस ने मां रोमिला को जेल और उस की नाबालिग बेटी सलोनी को बालसुधार गृह भेज दिया. जो भी जैसे भी हुआ हो, लेकिन सच यह है कि फेसबुक की दोस्ती की वजह से सुदीप का परिवार बेसहारा हो गया है.

पुलिस उस के परिवार को बारबार फोन कर के लखनऊ आ कर बेटे का दाह संस्कार कराने के लिए कह रही थी. लेकिन वे लोग आने को तैयार नहीं थे. सुदीप की लाश लखनऊ मेडिकल कालेज के शवगृह में रखी थी. एसओ गाजीपुर नोवेंद्र सिंह सिरोही ने सुदीप के पिता सुधीर दास को समझाया और भरोसा दिलाया कि वह लखनऊ आएं, वे उन की पूरी मदद करेंगे. पुलिस का भरोसा पा कर सुदीप का पिता सुधीर दास लखनऊ आया. बेटे की असमय मौत ने उस का कलेजा चीर दिया था.

सुधीर दास पूरे परिवार के साथ लखनऊ आना चाहता था लेकिन उस के पास पैसा नहीं था. इसलिए परिवार का कोई सदस्य उस के साथ नहीं आ सका. वह खुद भी पैसा उधार ले कर आया था. सुधीर दास की हालत यह थी कि बेटे के दाह संस्कार के लिए भी उस के पास पैसा नहीं था. जवान बेटे की मौत से टूट चुका सुधीर दास पूरी तरह से बेबस और लाचार नजर आ रहा था.

उन की हालत देख कर गाजीपुर पुलिस ने अपने स्तर पर पैसों का इंतजाम किया और सुदीप का क्रियाकर्म भैंसाकुंड के इलेक्ट्रिक शवदाह गृह पर किया. सुदीप की अभागी मां कावेरी और भाई राजदीप तो उसे अंतिम बार देख भी नहीं सके.

क्रियाकर्म के बाद पुलिस ने ही सुधीर के वापस मालदा जाने का इंतजाम कराया. गरीबी से लाचार यह पिता बेटे की हत्या करने वाली मांबेटी को सजा दिलाने के लिए मुकदमा भी नहीं लड़ना चाहता. अनजान से मोहब्बत और उस से शादी की जिद ने सुदीप की जान ले ली. सुदीप अपने परिवार का एकलौता कमाऊ बेटा था. उस के जाने से पूरा परिवार पूरी तरह से टूट गया है. सलोनी और सुदीप की एक गलती ने 2 परिवारों को तबाह कर दिया है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है. कथा में आरोपी सलोनी का नाम परिवर्तित है.

12 दिसंबर, 2013 की सुबह के 4 बजे का समय था. लखनऊ की सब से पौश कालोनी आशियाना स्थित थाना आशियाना में सन्नाटा पसरा हुआ था. थाने में पहरे पर तैनात सिपाही और अंदर बैठे दीवान के अलावा कोई नजर नहीं आ रहा था. तभी साधारण सी एक जैकेट पहने 25 साल का एक युवक थाने में आया.

पहरे पर तैनात सिपाही से इजाजत ले कर वह ड्यूटी पर तैनात दीवान के सामने जा खड़ा हुआ. पूछने पर उस ने बताया, ‘‘दीवान साहब, मैं यहां से 2 किलोमीटर दूर किला चौराहे के पास आशियाना कालोनी में किराए के मकान में रहता हूं. मेरी बीवी मर गई है, थानेदार साहब से मिलने आया हूं.’’

सुबहसुबह ऐसी खबरें किसी भी पुलिस वाले को अच्छी नहीं लगतीं. दीवान को भी अच्छा नहीं लगा. वह उस युवक से ज्यादा पूछताछ करने के बजाए उसे बैठा कर यह बात थानाप्रभारी सुधीर कुमार सिंह को बताने चला गया. सुधीर कुमार सिंह को कच्ची नींद में ही उठ कर आना पड़ा. उन्होंने थाने में आते ही युवक से पूछा, ‘‘हां भाई, बता क्या बात है?’’

बुरी तरह घबराए युवक ने कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम सचिन है और मैं रुचिखंड के मकान नंबर ईडब्ल्यूएस 2/341 में किराए के कमरे में रहता हूं. यह मकान पीडब्ल्यूडी कर्मचारी गुलाबचंद सिंह का है. उन का बेटा अजय मेरा दोस्त है. जिस कमरे में मैं रहता हूं, वह मकान के ऊपर बना हुआ है. मेरी पत्नी ने मुझे दवा लेने के लिए भेजा था, जब मैं दवा ले कर वापस आया तो देखा, मेरी पत्नी छत के कुंडे से लटकी हुई थी. मैं ने घबरा कर उसे हाथ लगाया तो वह नीचे गिर गई. वह मर चुकी है.’’

‘‘घटना कब घटी?’’ सुधीर कुमार सिंह ने पूछा तो सचिन ने बताया, ‘‘रात 10 बजे.’’

‘‘तब से अब तक क्या कर रहे थे?’’ यह पूछने पर सचिन बोला, ‘‘रात भर उस की लाश के पास बैठा रोता रहा. सुबह हुई तो आप के पास चला आया.’’

सचिन ने आगे बताया कि वह यासीनगंज के मोअज्जमनगर का रहने वाला है और एक निजी कंपनी में नौकरी करता है. उस के पिता का नाम रमेश कुमार है. सचिन की बातों में एसओ सुधीर कुमार सिंह को सच्चाई नजर आ रही थी.

मामला चूंकि संदिग्ध लग रहा था, इसलिए उन्होंने इस मामले की सूचना क्षेत्राधिकारी कैंट बबीता सिंह को दी और सचिन को ले कर पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने जब उस के कमरे का दरवाजा खोला तो फर्श पर एक कमउम्र लड़की की लाश पड़ी थी. उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह शादीशुदा रही होगी.

इसी बीच सीओ कैंट बबीता सिंह भी वहां पहुंच गई थीं. सचिन की पूरी बात सुनने के बाद उन्होंने लड़की की लाश को गौर से देखा. उन्हें यह आत्महत्या का मामला नहीं लगा. बहरहाल, घटनास्थल की प्राथमिक काररवाई निपटा कर पुलिस ने मृतका की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और सचिन को थाने ले आई. कुछ पुलिस वालों का कहना था कि सचिन की बात सच है. लेकिन बबीता सिंह यह मानने को तैयार नहीं थीं. उन्होंने मृतका के गले पर निशान देखे थे और उन का कहना था कि संभवत: उस का गला घोंटा गया है.

कुछ पुलिस वालों का कहना था कि अगर सचिन ने ऐसा किया होता तो वह खुद थाने क्यों आता? अगर उस ने हत्या की होती तो वह भाग जाता. इस तर्क का सीओ बबीता सिंह के पास कोई जवाब नहीं था. बहरहाल, हकीकत पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल सकती थी.

सावधानी के तौर पर पुलिस ने सचिन को थाने में ही बिठाए रखा. इस बीच सचिन पुलिस को बारबार अलगअलग कहानी सुनाता रहा. देर शाम जब पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो इस मामले से परदा उठा. पता चला, मृतका की मौत दम घुटने से हुई थी और उसे गला घोंट कर मारा गया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखने के बाद पुलिस ने सचिन से थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो उस ने मुंह खोल दिया. सचिन ने जो कुछ बताया, वह एक किशोरी द्वारा अविवेक में उठाए कदम और वासना के रंग में रंगे एक युवक की ऐसी कहानी थी, जो प्यार के नाम पर दुखद परिणति तक पहुंच गई थी. मृतका सोफिया थी.

मिसकाल से शुरू हुई सचिन और सोफिया की प्रेमकहानी काफी आगे बढ़ चुकी थी. फोन पर होने वाली बातचीत के बाद दोनों के मन में एकदूसरे से मिलने की इच्छा बलवती होने लगी थी. तभी एक दिन सचिन ने कहा, ‘‘सोफिया, हमें आपस में बात करते 2 महीने बीत चुके हैं. अब तुम से मिलने का मन हो रहा है.’’

‘‘सचिन, चाहती तो मैं भी यही हूं. लेकिन कैसे मिलूं, समझ में नहीं आता. मैं अभी तक कभी अजगैन से बाहर नहीं गई हूं. ऐसे में लखनऊ कैसे आ पाऊंगी?’’ सोफिया ने कहा तो सचिन सोफिया की नादानी और भावुकता का लाभ उठाते हुए बोला, ‘‘इस का मतलब तुम मुझ से प्यार नहीं करतीं. अगर प्यार करतीं तो ऐसा नहीं कहतीं. प्यार इंसान को कहीं से कहीं ले जाता है.’’

‘‘ऐसा मत सोचो सचिन. तुम कहो तो मैं अपना सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे पास चली आऊं?’’ सोफिया ने भावुकता में कहा.

‘‘ठीक है, तुम 1-2 दिन इंतजार करो, तब तक मैं कुछ करता हूं.’’  कह कर सचिन ने बात खत्म कर दी.

दरअसल वह किसी भी कीमत पर सोफिया को हासिल करना चाहता था. इस के लिए वह मन ही मन आगे की योजना बनाने लगा. सचिन का एक दोस्त था सुवेश. सचिन ने उस से कोई कमरा किराए पर दिलाने को कहा.

सुवेश को कोई शक न हो, इसलिए सचिन ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘दरअसल मैं एक लड़की से प्यार करता हूं और मैं ने उस से शादी करने का फैसला कर लिया है. चूंकि मेरे घर वाले अभी उसे घर में नहीं रखेंगे, इसलिए तुम किसी का मकान किराए पर दिला दो तो बड़ी मेहरबानी होगी. बाद में जब घर के लोग राजी हो जाएंगे तो मैं उसे ले कर अपने घर चला जाऊंगा.’’

सुवेश सचिन का अच्छा दोस्त था. उस की परेशानी समझ कर उस ने कहा, ‘‘मेरा एक दोस्त है अजय. उस का घर रुचिखंड में है. उस के मकान का ऊपर वाला हिस्सा खाली है. मैं उस से बात करता हूं. अगर अजय तैयार हो गया तो तुम्हें कमरा मिल जाएगा. वह 2 हजार रुपए कमरे का किराया लेगा. साथ ही एक महीने का एडवांस देना होगा.’’

सचिन इस के लिए तैयार हो गया. सुवेश ने अजय से बात की और अजय ने अपने पिता से. अजय का कोई दोस्त अपनी पत्नी के साथ रहेगा यह जान कर अजय के पिता गुलाबचंद राजी हो गए. सचिन ने कमरा देख कर एडवांस किराया दे दिया. इस के बाद उस ने 8 दिसंबर को सोफिया को फोन कर के कहा, ‘‘सोफिया, मैं तुम्हें लखनऊ बुलाना चाहता हूं. मैं 10 तारीख को तुम्हें अजगैन में मिलूंगा. हम 1-2 महीने अकेले रहेंगे. इस बीच मैं अपने घर वालों को राजी कर लूंगा और फिर तुम्हें अपने घर ले जाऊंगा.’’

सोफिया यही चाहती थी. वह पहले से ही सचिन के साथ जिंदगी जीने के सपने देख रही थी. योजनानुसार सोफिया 10 दिसंबर की सुबह अपने घर से निकली तो उस की मां ने पूछा, ‘‘आज स्कूल नहीं जाएगी क्या?’’

‘‘नहीं मां, आज दादी की दवा लेनी है, वही लेने जा रही हूं. थोड़ी देर में लौट आऊंगी.’’ कह कर सोफिया घर से निकल गई. उस ने घर से 10 हजार रुपए और चांदी की एक जोड़ी पायल भी साथ ले ली थी. अपने गांव से वह सीधी अजगैन पहुंची. सचिन उसे तयशुदा जगह पर मिल गया. उस से मिलने की खुशी में 17 साल की सोफिया अपने मांबाप की इज्जतआबरू, मानसम्मान, प्यार और विश्वास सब भूल गई. वहां से दोनों लखनऊ आ गए. सचिन सोफिया को अपने कमरे पर ले गया. खाना वगैरह दोनों ने बाहर ही खा लिया था.

कमरे पर पहुंचते ही सोफिया सचिन से शादी की बात करने लगी. सचिन ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘मुझ पर भरोसा रखो. हम जल्द ही शादी भी कर लेंगे. मैं तुम्हें सारी बातें पहले ही बता चुका हूं.’’

दरअसल सचिन किसी भी तरह जल्द से जल्द सोफिया को हासिल कर लेना चाहता था. गहराती रात के साथ सचिन की जवानी हिलोरें मारने लगी तो वह सोफिया के न चाहते हुए भी अकेलेपन का लाभ उठा कर उसे हासिल करने की कोशिश करने लगा. सोफिया ने काफी हद तक खुद को बचाने की कोशिश की. लेकिन धीरेधीरे उस का विरोध कम हो गया और सचिन मनमानी करने में सफल रहा. सोफिया खुद को यह दिलासा दे रही थी कि आज न सही कल शादी तो होनी ही है. जो शादी के बाद होना था वह पहले ही सही.

अगले दिन सोफिया सचिन से शादी करने की जिद करने लगी. जबकि सचिन चाहता था कि वह किसी तरह अपने घर वापस चली जाए. उस ने बहानेबाजी कर के उसे लौट जाने को कहा तो सोफिया बोली, ‘‘घर से भाग कर आने वाली लड़की के लिए घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जाते हैं. मैं अब वापस नहीं लौट सकती.’’

सचिन और सोफिया का वह पूरा दिन प्यार और मनुहार के बीच गुजरा. रात गहरा गई तो सोफिया खाना खा कर सो गई. जबकि सचिन जाग रहा था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि सोफिया से कैसे पीछा छुड़ाए.

उस के मन में खयाल आया कि क्यों न वह गला दबा कर सोफिया को मार डाले. लेकिन उसे लगा कि इस से उस की अंगुलियों के निशान सोफिया के गले पर आ जाएंगे और वह पकड़ा जाएगा. आखिरकार काफी सोचविचार कर उस ने अपने हाथों पर पौलीथिन लपेट ली और सोती हुई सोफिया का गला दबाने लगा.

इस से सोफिया जाग गई और अपना बचाव करने का प्रयास करने लगी. सचिन जवान था और सोफिया से ताकतवर भी. वैसे भी वह योजना बना कर उस की हत्या कर रहा था. सोफिया एक तो शरीर से कमजोर थी, दूसरे उसे सचिन से ऐसी उम्मीद नहीं थी. इस के बावजूद वह पूरा जोर लगा कर बचने की कोशिश करने लगी. इस पर सचिन ने उस के सिर पर जोरो से वार किया. इस से वह बेहोश हो गई. सचिन को मौका मिला तो उस ने सोफिया का गला दबा कर उसे मार डाला.

सोफिया के मरने के बाद सचिन के हाथपांव फूल गए. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे. रात भर वह सोफिया की लाश के पास बैठा रोता रहा. काफी सोचने के बाद जब उसे लगा कि अब वह बच नहीं पाएगा तो वह सुबह 4 बजे आशियाना थाने जा पहुंचा. उस ने अपने बचाव के लिए झूठी कहानी भी गढ़ी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट और सीओ बबीता सिंह के सामने उस का झूठ टिक नहीं सका.

पुलिस ने मामले की जानकारी सोफिया के घर वालों को दी तो वे लखनऊ आ गए. उन लोगों ने बताया कि सोफिया किसी लड़के के साथ भाग आई थी. उन्हें सोफिया का शव सौंप दिया गया. लंबी पूछताछ के बाद सचिन के बयान की पुष्टि के लिए पुलिस ने मकान मालिक गुलाबचंद और उन के बेटे अजय व उस के दोस्त सुवेश से भी पूछताछ की.

आशियाना पुलिस ने सचिन के खिलाफ भादंवि की धारा 363, 376, 302 और पोक्सो एक्ट (प्रोटेक्शन औफ चिल्ड्रन फ्राम सैक्सुअल आफेंसेज एक्ट) की धारा 3/4 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. पूछताछ के बाद उसे जेल भेज दिया गया.

इस में कोई दो राय नहीं कि सचिन के पास बचने के तमाम रास्ते थे. वह सोफिया को कहीं बाजार में अकेला छोड़ कर भाग सकता था. उसे उस के घर पहुंचा सकता था. सोफिया नादान और नासमझ थी. वह 2 माह पुरानी मोबाइल की दोस्ती पर इतना भरोसा कर बैठी कि परिवार छोड़ कर लखनऊ आ गई. उस ने जिस पर भरोसा किया, वही उस का कातिल बन गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में सोफिया नाम परिवर्तित है.

अगले अंक में पढ़िए कैसे पहुंचाया सचिन ने सोफ़िया को मौत की कगार पर?

दो प्रेमियों को मिली प्यार करने की सबसे खतरनाक सजा

मनीष के पिता और दादा दोनों ही रेलवे कर्मचारी थे. इसलिए उस का जन्म और परवरिश आगरा की रेलवे कालोनी में हुई थी. उस की 3 बहनें और एक छोटा भाई था. पिता नत्थूलाल रेलवे कर्मचारी थे ही, साथ ही मां विमलेश ने भी घर बैठे कमाई का अपना जरिया बना रखा था. वह आगरा कैंट रेलवे स्टेशन पर आनेजाने वाले ट्रेन चालकों व गार्डों के लिए खाने के टिफिन पैक कर के उन तक पहुंचाती थी. इस से उन्हें भी ठीक आमदनी हो जाती थी.

मनीष समय के साथ बड़ा होता चला गया. इंटरमीडिएट करने के बाद वह रेलवे के ठेकेदारों के साथ कामकाज सीखने लगा. फिर रेलवे के एक अफसर की मदद से उसे मकानों की पुताई के छोटेमोटे ठेके मिलने लगे. देखते ही देखते उस ने रेलवे की पूरी कालोनी में रंगाई पुताई का ठेका लेना शुरू कर दिया. वह ईमानदार था इसलिए उस के काम से रेलवे अधिकारी भी खुश रहते थे.

मोटी कमाई होने लगी तो मनीष के हावभाव, रहनसहन, खानपान सब बदल गया. महंगे कपड़े, ब्रांडेड जूते, नईनई बाइक पर घूमना मनीष का जैसे शौक था. 2-3 सालों में उस की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो गई थी.

वह जिस तरह कमा रहा था, उसी तरह दान आदि भी करता. गांव में गरीब लड़कियों की शादी में वह अपनी हैसियत के अनुसार सहयोग करता था. मोहल्ले में भी वह अपने बड़ों को बहुत सम्मान करता था. इन सब बातों से वह गांव में सब का चहेता बना हुआ था.

करीब 4-5 साल पुरानी बात है. मनीष का कामकाज जोरों पर चल रहा था. उसे रंगाई पुताई के कारीगरों की जरूरत पड़ी तो वह पास की ही बस्ती सोहल्ला पहुंच गया. वहां पता चला कि बंडा और मुन्ना नाम के दोनों भाई यह काम करते हैं.

वह इन दोनों के पास पहुंचा और बातचीत कर के अपने काम पर ले गया. मनीष को दोनों भाइयों का काम पसंद आया तो उन से ही अपने ठेके का काम कराने लगा. वह उन्हें अच्छी मजदूरी देता था इसलिए वे भी मनीष से खुश थे.

धीरेधीरे मनीष का मुन्ना के घर पर भी आनाजाना शुरू हो गया. इसी दौरान मनीष की आंखें मुन्ना की 17-18 साल की बहन माधवी से लड़ गईं. माधवी उन दिनों कक्षा-9 में पढ़ती थी. यह ऐसी उम्र होती है जिस में युवत युवती विपरीतलिंगी को अपना दोस्त बनाने के लिए आतुर रहते हैं. माधवी और मनीष के बीच शुरू हुई बात दोस्ती तक और दोस्ती से प्यार तक पहुंच गई. फिर जल्दी ही उन के बीच शारीरिक संबंध भी कायम हो गए.

इस तरह करीब 4 सालों तक उन के बीच प्यार और रोमांस का खेल चलता रहा. माधवी भी अब इंटरमीडिएट में आ चुकी थी. प्यार के चक्कर में पड़ कर वह अपनी पढ़ाई पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दे रही थी, जिस से वह इंटरमीडिएट में एक बार फेल भी हो गई. उस के घर वालों को यह बात पता तक नहीं चली कि उस का मनीष के साथ चक्कर चल रहा है.

माधवी सुबह साइकिल से स्कूल के लिए निकलती लेकिन स्कूल जाने की बजाय वह एक नियत जगह पहुंच जाती. मनीष भी अपनी बाइक से वहां पहुंच जाता. मनीष किसी के यहां उस की साइकिल खड़ी करा देता था. इस के बाद वह मनीष की बाइक पर बैठ कर फुर्र हो जाती.

स्कूल का समय होने से पहले वह वापस साइकिल उठा कर अपने घर चली जाती. उधर मनीष भी अपने कार्यस्थल पर पहुंच जाता. वहां माधवी के भाइयों को पता भी नहीं चल पाता कि उन का ठेकेदार उन की ही बहन के साथ मौजमस्ती कर के आ रहा है.

माधवी के पिता भूपाल सिंह गांव से दूध खरीद कर शहर में बेचते थे. वह बहुत गुस्सैल थे. आए दिन मोहल्ले में छोटीछोटी बातों पर लोगों से झगड़ना आम बात थी. झगड़े में उन के तीनों बेटे भी शरीक  हो जाते थे, जिस से मोहल्ले में एक तरह से भूपाल सिंह की धाक जम गई थी.

लेकिन इतना सब होने के बाद भी मनीष के साथ इस परिवार के संबंध मधुर थे. मुन्ना और बंडा भी मनीष के घर जाने लगे.

मनीष और माधवी एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. उन्होंने शादी कर के साथसाथ रहने का फैसला कर लिया था. लेकिन उन के सामने समस्या यह थी कि उन की जातियां अलगअलग थीं. दूसरे माधवी के पिता और भाई गुस्सैल स्वभाव के थे इसलिए वे डर रहे थे कि घर वालों के सामने शादी की बात कैसे करें. लेकिन बाद में उन्होंने तय कर लिया कि उन के प्यार के रास्ते में जो भी बाधा आएगी, उस का वह मिल कर मुकाबला करेंगे.

माधवी जब घर पर अकेली होती तो मनीष को फोन कर के घर बुला लेती थी. एक बार की बात है. उस के पिता ड्यूटी गए थे भाई भी अपने काम पर चले गए थे और मां ड्राइवरों के टिफिन पहुंचाने के बाद खेतों पर गई हुई थी. माधवी के लिए प्रेमी के साथ मौजमस्ती करने का अच्छा मौका था. उस ने उसी समय मनीष को फोन कर दिया तो वह माधवी के घर पहुंच गया.

मनीष माधवी के घर तक अपनी बाइक नहीं लाया था वह उसे रेलवे फाटक के पास खड़ी कर आया था. उस समय घर में उन दोनों के अलावा कोई नहीं था इसलिए वे अपनी हसरत पूरी करने लगे. इत्तफाक से उसी समय घर का दरवाजा किसी ने खटखटाया. दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनते ही दोनों के होश उड़ गए. उन के जहन से मौजमस्ती का भूत उड़नछू हो गया. वे जल्दीजल्दी कपड़े पहनने लगे.

तभी माधवी का नाम लेते हुए दरवाजा खोलने की आवाज आई. यह आवाज सुनते ही माधवी डर से कांपने लगी क्योंकि वह आवाज उस के पिता की थी. वही उस का नाम ले कर दरवाजा खोलने की आवाज लगा रहे थे.

माधवी पिता के गुस्से से वाकिफ थी. इसलिए उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए. कमरे में भी ऐसी कोई जगह नहीं थी जहां मनीष को छिपाया जा सके. दरवाजे के पास जाने के लिए भी उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. उधर उस के पिता दरवाजा खोलने के लिए बारबार आवाजें लगा रहे थे.

दरवाजा तो खोलना ही था इसलिए डरते डरते वह दरवाजे तक पहुंची. दरवाजा खुलते ही मनीष वहां से भाग गया. मनीष के भागते ही भूपाल सिंह को माजरा समझते देर नहीं लगी. वह गुस्से से बौखला गया. घर में घुसते ही उस ने बेटी से पूछा कि मनीष यहां क्यों आया था.

डर से कांप रही माधवी उस के सामने मुंह नहीं खोल सकी. तब भूपाल सिंह ने उस की जम कर पिटाई की और सख्त हिदायत दी कि आइंदा वह उस से मिली तो वह दोनों को ही जमीन में जिंदा गाड़ देगा.

शाम को जब भूपाल के तीनों बेटे कुंवर सिंह, मुन्ना व बंडा घर आए तो उस ने उन्हें पूरा वाकया बताया. बेटों ने मनीष की करतूत सुनी तो वे उसी रात उसे जान से मारने उस के घर जाने के लिए तैयार हो गए. लेकिन भूपाल सिंह ने उन्हें गुस्से पर काबू कर ठंडे दिमाग से काम लेने की सलाह दी.

इस के बाद बंडा व मुन्नालाल ने मनीष के साथ काम करना बंद कर दिया था. 15 दिनों बाद माधवी की बोर्ड की परीक्षाएं थीं इसलिए उन्होंने माधवी पर भी पाबंदी लगाते हुए उस का स्कूल जाना बंद करा दिया.

4 महीने बीत गए. माधवी ने सोचा कि घर वाले इस बात को भूल गए होंगे. इसलिए उस ने मनीष से फिर से फोन पर बतियाना शुरू कर दिया. लेकिन अब वह बड़ी सावधानी बरतती थी. लेकिन माधवी की यही सोच गलत निकली. उसे पता नहीं था कि उस के घर वाले मनीष को ठिकाने लगाने के लिए कितनी खौफनाक साजिश रच चुके हैं.

योजना के अनुसार 28 जून, 2014 को सुबह के समय बंडा ने मेज पर रखा माधवी का फोन फर्श पर गिरा कर तोड़ डाला. माधवी को यह पता न था कि वह फोन जानबूझ कर तोड़ा गया है. घंटे भर बाद बंडा उस के फोन को सही कराने की बात कह कर घर से निकला.

इधर भूपाल सिंह ने यह कह कर अपनी पत्नी को मायके भेज दिया कि उस के भाई का फोन आया था कि वहां पर उस की बेटी को देखने वाले आ रहे हैं. पिता के कहने पर मां के साथ माधवी भी अपने मामा के यहां चली गई. जाते समय भूपाल सिंह ने पत्नी से कह दिया था कि मायके में वह माधवी पर नजर रखे.

उन दोनों के घर से निकलते ही बंडा घर लौट आया. उस ने तब तक माधवी का सिम कार्ड निकाल कर अपने फोन में डाल लिया. उस ने माधवी के नंबर से मनीष को एक मैसेज भेज दिया. उस ने मैसेज में लिखा कि आज घर पर कोई नहीं है. रात 8 बजे वह घंटे भर के लिए घर आ जाए.

पे्रमिका का मैसेज पढ़ते ही मनीष का दिल बागबाग हो गया. उस ने माधवी को फोन करना भी चाहा लेकिन उस ने इसलिए फोन नहीं किया क्योंकि माधवी ने उसे मैसेज के अंत में मना कर रखा था कि वह फोन न करे. केवल रात में जरूर आ जाए, ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा.

रात 8 बजे मनीष दबेपांव माधवी से मिलने उस के घर पर पहुंच गया. घर का मुख्य दरवाजा भिड़ा हुआ था. दरवाजा खोल जैसे ही वह सामने वाले कमरे में गया, उसे पीछे से माधवी के भाइयों ने दबोच लिया.

माधवी के भाइयों ने उस का मुंह दबा कर उस के सिर पर चारपाई के पाए से वार कर दिया. जोरदार वार से मनीष बेहोश हो कर गिर पड़ा. उस के गिरते ही उस पर उन्होंने लातघूंसों की बरसात शुरू कर दी. उन्होंने उस के गुप्तांग को पैरों से कुचल दिया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

हत्या करने के बाद लाश को ठिकाने भी लगाना था. आपस में सलाह करने के बाद उस के शव को तलवार से नाभि के पास से 2 हिस्सों में काट डाला. करीब 4 घंटे तक मनीष की लाश उसी कमरे में पड़ी रही.

लाश के टुकड़ों से खून निकलना बंद हो गया तो रात करीब 1 बजे जूट की बोरी में दोनों टुकड़े भर लिए. उन्हें रेलवे लाइन पर फेंकने के लिए मुन्ना और बंडा बाइक से निकल गए. हत्या करने के बाद उस की सभी जेबें खाली कर ली गई थीं ताकि पहचान न हो सके. उस के महंगे दोनों मोबाइल स्विच्ड औफ कर के घर पर ही रख लिए.

मुन्ना और बंडा जब लाश ले कर घर से निकल गए तो घर पर मौजूद भूपाल और उस के बेटे कुंवरपाल ने कमरे से खून के निशान आदि साफ किए. इस के बाद उन्होंने हत्या में प्रयुक्त हथियार, मनीष के दोनों मोबाइल आदि को एक मालगाड़ी के डिब्बे में फेंक दिया. वह मालगाड़ी आगरा से कहीं जा रही थी. मनीष की जेब से मिले कागजों और पर्स को भी उन्होंने जला दिया.

मुन्ना और बंडा लाश को सोहल्ला रेलवे फाटक से करीब आधा किलोमीटर दूर आगरा-ग्वालियर रेलवे ट्रैक पर ले गए. बाइक रोक कर ये लोग मनीष के शव को बोरे से निकाल कर मुख्य लाइन पर फेंकना चाह रहे थे तभी उन्हें सड़क पर अपनी ओर कोई वाहन आता दिखाई दिया.

तब तक वे शव को बोरे से निकाल चुके थे. उन्होंने तुरंत लाश के दोनों टुकड़े लाइन पर डाल दिए और बोरी उठा कर वहां से भाग निकले.

दोनों भाइयों ने रास्ते में एक खेत में वह बोरी जला दी और घर आ गए. घर आ कर मुन्ना व बंडा ने खून के निशान वाले कपड़े नहाधो कर बदल लिए. जब उन्होंने शव को पास की ही रेलवे लाइन पर फेंकने की बात अपने पिता को बताई तो भूपाल ने माथा पीट लिया.

वह समझ गया कि लाश पास में ही डालने की वजह से उस की शिनाख्त हो जाएगी और पुलिस उन के घर पहुंच जाएगी. इसलिए सभी लोग घर का ताला लगा कर रात में ही 2 बाइकों पर सवार हो कर वहां से भाग निकले.

घर से भाग कर वे चारों माधवी व उस की मां के पास पहुंचे. वहां पर भूपाल सिंह ने पत्नी को सारा वाकया बताया तो वह भी डर गई. उसे पति व बेटों पर बहुत गुस्सा आया. लेकिन अब होना भी क्या था अब तो बस पुलिस से बचना था.

वे चारों वहां से भाग कर आगरा के पास धौलपुर स्थित एक परिचित के यहां पहुंचे. लेकिन पुलिस के लंबे हाथों से बच नहीं सके. सर्विलांस टीम की मदद से वे पुलिस के जाल में फंस ही गए. हत्या में माधवी का कोई हाथ नहीं था इसलिए उसे पूछताछ के बाद छोड़ दिया.

पूछताछ के बाद सभी हत्यारोपियों को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक सभी हत्यारोपी जेल की सलाखों के पीछे थे.

सुबह करीब साढ़े 5 बजे आगरा के पुलिस नियंत्रण कक्ष को सूचना मिली कि आगरा-ग्वालियर की अपलाइन रेल पर शाहगंज और  सदर बाजार के बीच में एक युवक ने ट्रेन के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली है. सूचना शाहगंज और सदर बाजार के बीच होने की मिली थी. यह बात मौके पर जा कर ही पता चल सकती थी कि घटना किस थाने में आती है, इसलिए नियंत्रणकक्ष द्वारा इत्तला शाहगंज व सदर बाजार दोनों थानों को दे दी गई.

खबर मिलने के बाद दोनों थानों की पुलिस के साथसाथ थाना राजकीय रेलवे पुलिस आगरा छावनी की पुलिस टीम भी वहां पहुंच गई. पुलिस को रेलवे लाइनों के बीच एक युवक की लाश 2 टुकड़ों में पड़ी मिली. यह 25 जुलाई, 2014 की बात है.

सब से पहले पुलिस ने यह देखा कि जिस जगह पर लाश पड़ी है, वह क्षेत्र किस थाने में आता है. जांच के बाद यह पता चला कि वह क्षेत्र थाना सदर की सीमा में आता है.

रेलवे लाइनों में लाश पड़ी होने की सूचना पा कर आसपास के गांवों के तमाम लोग वहां पहुंच गए. लोगों ने उस की शिनाख्त करते हुए कहा कि मरने वाला युवक शिवनगर के रहने वाले नत्थूलाल का बेटा मनीष है. लोगों ने जल्द ही मनीष के घर वालों को खबर कर दी तो वे भी रोते बिलखते वहां पहुंच गए. जवान बेटे की मौत पर वे फूटफूट कर रो रहे थे.

सदर बाजार के थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह ने एएसपी डा. रामसुरेश यादव, एसपी सिटी समीर सौरभ व एसएसपी शलभ माथुर को भी घटना की जानकारी दे दी तो वे भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

जिस तरीके से वहां लाश पड़ी थी, देख कर पुलिस अधिकारियों को मामला आत्महत्या का नहीं लगा बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे उस की हत्या कहीं और कर के लाश ट्रैक पर डाल दी हो ताकि उस की मौत को लोग हादसा या आत्महत्या समझें.

कपड़ों की तलाशी ली तो पैंट और कमीज की जेबें खाली निकलीं. मनीष के घर वालों ने बताया कि उस के पास 2 मोबाइल फोनों के अलावा पर्स में पैसे व वोटर आईडी कार्ड व जेब में छोटी डायरी रहती थी जिस में वह लेबर का हिसाब किताब रखता था. इस से इस बात की पुष्टि हो रही थी कि किसी ने हत्या करने के बाद उस की ये सारी चीजें निकाल ली होंगी ताकि इस की शिनाख्त नहीं हो पाए.

पुलिस ने नत्थूलाल से प्रारंभिक पूछताछ  कर मनीष की लाश का पंचनामा तैयार कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी और नत्थूलाल की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के जांच थानाप्रभारी सुनील कुमार ने संभाल ली. एसएसपी शलभ माथुर ने जांच में क्राइम ब्रांच को भी लगा दिया.

थानाप्रभारी ने सब से पहले मनीष के घर वालों से बात कर के यह जानने की कोशिश की कि उस का किसी से कोई झगड़ा या दुश्मनी तो नहीं थी. इस पर नत्थूलाल ने बताया कि मनीष पुताई के काम का ठेकेदार था. वह बहुत शरीफ था. मोहल्ले में वह सभी से हंसता बोलता था.

उन से बात करने के बाद पुलिस को यह लगा कि उस की हत्या के पीछे पुताई के काम से जुड़े किसी ठेकेदार का तो हाथ नहीं है या फिर प्रेमप्रसंग के मामले में किसी ने उस की हत्या कर दी. इसी तरह कई दृष्टिकोणों को ले कर पुलिस चल रही थी.

अगले दिन पुलिस को मनीष की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई. पुलिस को शक हो रहा था, पोस्टमार्टम रिपोर्ट से वह सही साबित हुआ. यानी मनीष ने सुसाइड नहीं किया था, बल्कि उस की हत्या की गई थी. रिपोर्ट में बताया गया कि उस की सभी पसलियां टूटी हुई थीं, उस के दोनों फेफड़े फट गए थे. गुप्तांगों पर भी भारी वस्तु से प्रहार किया गया था. इस के अलावा उस के शरीर पर घाव के अनेक निशान थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात साफ हो गई कि मनीष की हत्या कहीं और की गई थी और हत्यारे उस से गहरी खुंदक रखते थे तभी तो उन्होंने उसे इतनी बेरहमी से मारा.

मनीष के पास 2 महंगे मोबाइल फोन थे जो गायब थे. पुलिस ने उस के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि उन की की अंतिम लोकेशन सोहल्ला बस्ती की थी.

इस बारे में उस के पिता नत्थू सिंह से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि सोहल्ला बस्ती में मनीष का कोई खास यारदोस्त तो नहीं रहता. उन्होंने यह जरूर बताया कि मनीष के 2 कारीगर मुन्ना और बंडा इस बस्ती में रहते हैं. वह उन के पास अकसर जाता रहता था.

मनीष की कालडिटेल्स पर नजर डाल रहे एएसपी डा. रामसुरेश यादव को एक ऐसा नंबर नजर आया था जिस से अकसर रात के 12 बजे से ले कर 2 बजे के बीच लगातार बातचीत की जाती थी. जिस नंबर से उस की बात होती थी, बाद में पता चला कि वह नंबर माधवी नाम की किसी लड़की की आईडी पर लिया गया था.

जांच में लड़की का नाम सामने आते ही पुलिस को केस सुलझता दिखाई दिया. क्योंकि मुन्ना और बंडा उस के भाई थे. एसएसपी को जब इस बात से अवगत कराया तो उन्होंने माधवी और उस के भाइयों से पूछताछ करने के निर्देश दिए. एक पुलिस टीम फौरन माधवी के घर दबिश देने निकल गई. लेकिन घर पहुंच कर देखा तो मुख्य दरवाजे पर ताला बंद था. यानी घर के सब लोग गायब थे.

माधवी के पिता भूपाल सिंह, भाई और अन्य लोग कहां गए, इस बारे में पुलिस ने पड़ोसियों से पूछा तो उन्होंने अनभिज्ञता जता दी. पूरे परिवार के गायब होने से पुलिस का शक और गहरा गया.

किसी तरह पुलिस को भूपाल सिंह का मोबाइल नंबर मिल गया. उसे सर्विलांस पर लगाया तो उस की लोकेशन आगरा के नजदीक धौलपुर गांव की मिली. पुलिस टीम वहां रवाना हो गई. फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस ने माधवी, उस के पिता भूपाल सिंह, 3 भाइयों कुंवरपाल सिंह, बंडा और मुन्ना को हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर उन सब से मनीष की हत्या के बारे में पूछताछ की तो भूपाल सिंह ने स्वीकार कर लिया कि मनीष की हत्या उस ने ही कराई है. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली.

—कथा पुलिस सूत्रों व मनीष के घर वालों के बयानों पर आधारित. माधवी परिवर्तित नाम है.

– फोटो का घटना से कोई संबंध नहीं है.

17 टुकडें कर ली जान, साऊदी से इंडिया लौटे प्रेमी को मिला मौत का तोहफा

26 वर्षीय मोहम्मद वसीम अंसारी अपनी 17 वर्षीया गर्लफ्रेंड नरगिस से मिलने के लिए बेताब था. उस से मिलने की खातिर वह सऊदी अरब से इंडिया आया. यहां उस की 17 टुकड़ों में कटी लाश पुलिस ने बरामद की. आखिर किस ने और क्यों की वसीम अंसारी की हत्या?

पहली नजर में दिल दे बैठा वसीम

वसीम और नरगिस की मुलाकात करीब 2 साल पहले बिलासपुर से रांची जाते हुए ट्रेन में हुई थी. वसीम अपनी एक रिश्तेदारी में बिलासपुर आया था. वहां से लौटते हुए ट्रेन की भीड़भाड़ वाले कोच में जिस सीट पर वह बैठा था, उस के सामने ही एक गोरीचिट्टी कमसिन लड़की बैठी थी. लड़की अपनी मां के साथ थी. वसीम की निगाह उस पर से हट नहीं रही थी. हालांकि उस की मां से नजरें बचा कर वसीम लड़की को बीचबीच में गहरी निगाह से घूर लेता था.

वसीम अकेला था. यह कहें कि वसीम की निगाह लड़की के चेहरे से हट नहीं पा रही थी. थोड़ी ही देर बाद लड़की मां से बोली, ”मुझे प्यास लग रही है.’’  उन के पास पानी नहीं था. इस कारण उस की मां इधरउधर देखने लगी. वसीम ने अपने बैग से पानी की बोतल निकाली और आगे बढ़ा दी. लड़की ने बोतल को थाम लिया. पानी पीने के बाद बोतल वापस करती हुई मुसकरा कर बोली, ‘थैंक यू!

इस पर वसीम ने सिर हिलाते हुए उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ”कोई बात नहीं, पानी ही तो है.’’ लड़की की मां भी झेंपती हुई लड़की से बोली, ”पानी वाला आएगा, तब एक बोतल खरीद लेना.’’ ”अम्मा, ट्रेन में पानी वाला नहीं आएगा, अगले स्टेशन से लेना होगा. कोई बात नहीं, मैं जा कर ला दूंगा.’’ ”हांहां…’’ लड़की बीच में ही बोल पड़ी. इस तरह से वसीम और उस लड़की के बीच बातचीत भी शुरू हो गई.

वसीम ने बातों ही बातों में उस से पूछ लिया, ”क्या नाम है आप का? पढ़ती हो?’’ ”मैं नरगिस सुलतान हूं. पढ़ाईलिखाई छूट गई है.’’ ”नरगिस सुलतान. वाह! कितना प्यारा नाम है. मगर पढ़ाई छूट गई, यह तो गलत बात हुई. अभी तो तुम्हारी उम्र ही क्या है? भला क्यों छूटी पढ़ाई?’’ इस पर नरगिस चुप हो गई, लेकिन उस की मां सकुचाती हुई बोली, ”घर में गमी हो गई थी बेटा, इस के बाद सब कुछ तहसनहस हो गया था…’’ यह कहतेकहते वह अपनी आंखें पोंछने लगी.

”ओह..! सौरी अम्मीजान, मैं ने आप का दिल दुखा दिया.’’ वसीम बोला. थोड़ी देर उन के बीच चुप्पी बनी रही. वसीम गाड़ी के बाहर भागते पेड़ों और खेतों को देखने लगा. नरगिस भी दूसरी खिड़की से बाहर देखने लगी थी. उसी ने चुप्पी तोड़ी. अनायास बोल पड़ी, ”अम्मी, देखो तो बाहर कितनी अच्छी हवा बह रही है.’’ ”हां, बिलकुल सही कह रही हो. मौसम सुहावना बना हुआ है.’’ 

वसीम ने हां में हां मिलाई. उस के बाद उन के बीच फिर से बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. इस बार वे दूसरी बातें करने लगे. तुम क्या करते हो बेटा, काफी पढ़ेलिखे मालूम देते हो!’’ नरगिस की अम्मी बोली. ज्यादा नहीं.’’ वसीम बोला. काम क्या करते हो?’’ नरगिस ने पूछा. मैं बहुत जल्द सऊदी अरब जाने वाला हूं, वहीं नौकरी करूंगा. मुझे खूब रुपएपैसे कमाने हैं.’’ वसीम बोला. इस पर नरगिस आश्चर्य से वसीम को देखने लगी. मजाकिया लहजे में नरगिस बोल पड़ी, ”मेरे लिए भी वहां कोई काम मिल सकता है क्या?’’

क्यों नहीं?…वहां तो हर किसी के लिए कुछ न कुछ काम होता है.’’ वसीम बोला. अच्छा… मुझ जैसी अनपढ़ को भी!’’ नरगिस की आंखें आश्चर्य से फैल गईं. बातोंबातों में वसीम और नरगिस ने अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिए. कुछ घंटे बाद दोनों अपनेअपने स्टेशनों पर उतर गए. वसीम और नरगिस अलगअलग शहरों में रहते हुए एकदूसरे से मोबाइल के जरिए जुड़े हुए थे. वसीम रांची का रहने वाला था, जबकि नरगिस बिलासपुर की थी.  एक बार उस ने नरगिस को बताया कि वह सऊदी जा चुका है. उसे बहुत सारा पैसा कमाना है. 

जब नरगिस के पाई कौल 

सऊदी अरब से कोरबा के पाली गांव की रहने वाली नरगिस के पास एक काल आई, ”हैलो…हैलो नरगिस, मैं वसीम बोल रहा हूं. कैसी हो?’’ काल का जवाब नरगिस शिकायती लहजे में देते हुए बोली, ”मैं कैसी हूं, यह पूछ रहे हो? बस, समझो जिंदा हूं.’’

”ऐसा क्यों कह रही हो नरगिस?’’ आश्चर्य से वसीम बोला. नरगिस कुछ नहीं बोली. वसीम ही दोबारा बोला, ”ऐसा मत कहो.’’ नरगिस का जवाब फिर शिकायत के साथ नाराजगी भरा था, ”इतने दिनों बाद तुम्हें मेरी याद आ रही है. मैं तो हमेशा तुम्हें याद करती हूं तुम्हें… नंबर भी दिया था, मगर?’’ बात पूरी किए बगैर चुप हो गई. इस पर वसीम ने कहा, ”नाराज मत हो नरगिस, जिस दिन से यहां आया हूं, सच कहो तो मैं तुम्हें कभी भूल नहीं पाया. यहां दम्मन, सऊदी अरब में इतना काम है कि मत पूछो…’’  वसीम मानो हाथ जोड़ कर के मनुहार कर रहा हो.

अच्छा, वहां काम में ही मन लगा रहता है, यह बात है. सिर्फ काम और पैसा ही तुम कमाते रहो और मैं तुम से बात भी नहीं करूं.’’  इतराती हुए नरगिस बोली. अरे, ऐसा नहीं है यार! मैं तो 24 घंटे तुम्हें याद करता रहता हूं. तुम्हारी सूरत मेरी आंखों के सामने घूमती रहती है. मैं संकोच में था कि फोन तुम उठाओगी या नहीं. हमें भूल तो नहीं गई होगी?’’ वसीम सहजता से बोला.

अच्छा! सीधा कहो न कि रुपयों से प्यार है, जो इतना दूर चले गए हो. तुम से तो प्यार करना फिजूल है.’’ नरगिस का ताना मारना वसीम पर असर कर गया.  वह बोला, ”अच्छा, मैं बहुत जल्दी तुम से मिलने आ रहा हूं… बस कुछ और रुपए और जोड़ लूं!’’ रुपए जोडऩा तो अच्छी बात है, तुम मेरे लिए क्या लाओगे?’’ नरगिस उस से जानना चाहती थी. अरे नरगिस, मैं आ रहा हूं यह क्या कम है. …और रुपएपैसे की क्या बात है. यहां जो मैं कमाता हूं वो घर भी भेज देता हूं. तुम्हारे लिए मैं ऐसी चीज लाऊंगा कि तुम खुश हो जाओगी! …और हां, अभी एक गिफ्ट मैं यहां से तुम्हें भेज रहा हूं. अब तो खुश हो जाओ.’’

यह सुन कर के नरगिस बड़ी खुशी से बोली, ”देखो, कोई अच्छी सी गिफ्ट भेजना, नहीं तो मैं वापस भेज दूंगी वहीं, सऊदी अरब.’’ वसीम और नरगिस के बीच होने वाली ये बातें कोई पहली बार नहीं हो रही थीं. वे अकसर काफी देर तक रोजाना मोबाइल पर बात करते थे. एक दिन भी इस में चूक होने पर नरगिस शिकायती लहजे में ताना भी मार देती थी. तब वसीम माफी मांगता और फिर दोनों फोन पर ही जीनेमरने की कसमें खाने लगते. एक दिन फेसबुक लाइव में बातों ही बातों में नरगिस बोली, ”वसीम, तुम्हारी बहुत याद आ रही है.’’

इसी के साथ उस ने अपने बदन को अधखुला कर दिया. इस का असर वसीम पर भी हुआ…और देखते ही देखते दोनों बेपरदा हो गए. एकदूसरे को देख शर्मसार भी हुए…

हजारों किलोमीटर की दूरी से इस अनुभूति का दोनों ने वीडियो कालिंग को थैंक्स बोला. छूटते ही वसीम ने नरगिस को फेसबुक, इंस्टाग्राम के लिए रील बनाने की सलाह दे डाली.

वसीम ने गर्लफ्रेंड को दी खुशखबरी

बात 26 जून, 2024 की है. शाम के वक्त नरगिस के मोबाइल पर वसीम की काल आई, ”रेहाना, मैं अगले महीने 2 जुलाई को आ रहा हूं.’’ सच विश्वास नहीं हो रहा, लेकिन तुम कहां आओगे? मेरे पास ही न!’’ हां, मैं रांची प्लेन से आ रहा हूं, उस के बाद सीधा तुम्हारे पास आ जाऊंगा, तुम मिलोगी न!’’ कैसी बात करते हो, तुम इतनी दूर से आ रहे हो और मैं भला नहीं मिलूंगी. तुम ने मेरे लिए इतने सारे गिफ्ट भेजे हैं, साडिय़ां भेजी हैं… क्या मैं तुम्हें भूल सकती हूं. लेकिन यह तो बताओ कि तुम अब वहां से मेरे लिए क्या बेशकीमती चीज ला रहे हो?’’ नरगिस मचलती हुई बोली.

कुछ सेकेंड तक वसीम चुप रहा, फिर धीरे से बोला, ”तुम दिल छोटा न करो… सऊदी अरब से आ रहा हूं, कुछ अच्छा ही लाऊंगा तुम्हारे लिए. तुम्हें तो मालूम है कि यहां पैसा ही पैसा है. हवा में उड़ता है पैसा, कोई पकडऩे वाला होना चाहिए. मैं यहां पैसे कमाने ही तो आया हूं और तुम्हारी दुआ से मैं यहां बहुत खुश हूं, मगर तुम्हारे प्यार के कारण आ रहा हूं.’’ इस के बाद वसीम ने अपने घरपरिवार के बारे में बातें कीं. बातों ही बातों में उस ने बताया कि उस के परिवार वाले उस के निकाह की तैयारी कर रहे हैं. लड़की तलाश रहे हैं. यह सुन कर नरगिस रुआंसी हो गई.

वसीम ने बताया कि वह पहले उस से मिलने के लिए आ रहा है, उस के बाद ही वह अपने घर रांची, झारखंड जाएगा. इस पर नरगिस सुलतान ने कहा, ”ठीक है, जैसे ही रांची से रवाना होना, मुझे बताना. मैं बिलासपुर आ जाऊंगी.  और फिर हम वहां से चैतमा आ जाएंगे.’’ 2 जुलाई, 2024 नरगिस को वसीम ने फोन किया, ”रेहाना, मैं इंडिया आ चुका हूं और शाम तक रांची हमारा प्लेन लैंड करने वाला है.’’

यह सुन कर के नरगिस बहुत खुश हो गई. वसीम भी नरगिस से मिलने की बात सोच कर बहुत ही प्रसन्न था. नरगिस ने भी कह दिया, ”मैं बिलासपुर आ रही हूं और वहां से हम लोग आगे का प्लान बना लेंगे.’’  वसीम ने संशय से कहा, ”तुम फिजूल ही क्यों आ रही हो, मैं गाड़ी ले कर के तुम से मिलने आ जाऊंगा.’’ ”अरे नहीं, मेरे एक मुंहबोले भाई हैं न बादशाह, उन के पास गाड़ी है. घूमतेफिरते आ जाएंगे. रांची से सिर्फ 50 किलोमीटर ही तो है बिलासपुर.’’

”तब ठीक है. मैं शाम को 3 बजे के आसपास बिलासपुर पहुंच जाऊंगा. तुम्हारा इंतजार रहेगा. नरगिस, तुम से मिलने के लिए मैं कितना बेताब हूं, इस का तुम्हें शायद अंदाजा नहीं है… कब होगी मुलाकात और कब मैं तुम्हें अपनी बांहों में भरूंगा. हरदम इसी कल्पना में खोया रहता हूं.’’ ”अच्छा, अब मैं फोन रखती हूं.’’ इठलाते हुए नरगिस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

17 टुकड़ों में मिली लाश

बुधवार के दिन 10 जुलाई, 2024 को छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा के थाना पाली में किसी ने फोन कर के सूचना दी कि गोपालपुर डैम के पास एक पिट्ठू बैग में कोई संदिग्ध चीज है. बैग के ऊपर मक्खियां भिनभिना रही हैं और तेज बदबू फैल रही है. यह सूचना मिलते ही एसएचओ चमन लाल सिन्हा कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर गोपालपुर डैम के पास पहुंच गए. उन्होंने जब वह बैग खुलवाया तो किसी युवक की टुकड़ों में कटी लाश निकली. उस का सिर और कुछ अंग गायब थे. 

पुलिस की प्रारंभिक जांच में पाया गया कि बरामद लाश को धारदार हथियार से टुकड़ों में काटा गया था. एसएचओ ने यह जानकारी कोरबा के एसपी सिद्धार्थ तिवारी के साथसाथ कोटघरा शहर की एडिशनल एसपी नेहा वर्मा और एसडीओपी पंकज ठाकुर को भी दे दी गई. एफएसएल यूनिट प्रभारी सत्यजीत कोसरिया और थाना पाली, चौकी चैतमा सहित साइबर टीम को सूचना दे दी गई. एसपी के निर्देश पर उपरोक्त अधिकारियों की टीम मौके पर गई. वहां की गई सूक्ष्म जांच के सिलसिले में गोताखोरों ने डैम में दोपहर तक मृतक का सिर व अन्य लापता अंगों से भरी एक बोरी तलाश ली. बरामद बैग में लाश के टुकड़ों के साथ एक आधार कार्ड, पासपोर्ट एवं एक फ्लाइट टिकट भी मिली.

उन दस्तावेजों की जांच के आधार पर मृतक की पहचान मोहम्मद वसीम अंसारी पुत्र मोहम्मद जमीर अंसारी के रूप में हुई. उस की उम्र 26 साल थी और वह कांता तोला, रांची, झारखंड का निवासी था. वहीं से उस के भाई का फोन नंबर भी मिल गया. पुलिस ने उन के बड़े भाई मोहम्मद तहसीन से फोन पर बात की. उन्हें घटना की जानकारी दे कर कोरबा बुलाया गया. फोन पर ही तहसीन ने बताया कि उस का भाई मोहम्मद वसीम पिछले 2 सालों से सऊदी अरब में सुरक्षा अधिकारी की नौकरी कर रहा था. वह वहां से कब आया, इस की उसे कोई जानकारी नहीं है.

वसीम की नृशंस तरीके से की गई हत्या कोरबा से ले कर रांची तक में चर्चा का विषय बन गई. आम और खास लोग यह जानने को उत्सुक थे कि आखिर किस ने और क्यों इस तरह मासूम नौजवान वसीम अंसारी को मार डाला? उस से किस की क्या दुश्मनी थी, जो उस के सऊदी से लौटते ही हत्या हो गई? क्या कोई पहले से ही घात लगाए बैठा था?

लोग तरहतरह की चर्चाएं कर रहे थे. इधर समय बीता जा रहा था. चौतरफा सनसनी बढ़ती जा रही थी. पुलिस जांच टीम तत्परता से बड़ी सतर्कता के साथ काम कर रही थी.  कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए पुलिस जांच को आगे बढ़ा रही थी. जुड़े पहलुओं की जांच पर यह तथ्य उजागर हुआ कि मृतक की सोशल मीडिया के माध्यम से बांसटाल चैतमा, थाना पाली की एक अवयस्क बालिका नरगिस से कई बार बातचीत हुई है. उन के बीच बातचीत इंटरनैशनल वीडियो काल, वाट्सऐप काल से हुई थी. बरामद मोबाइल में संयोग से उन दोनों की बातचीत के रिकार्डिंग क्लिप्स भी थे.

क्यों की गई वसीम की हत्या

पुलिस ने जब नरगिस के बारे में खोजबीन की, तब वह अपने घर से गायब मिली. उस के बारे में यह भी पता चला कि वह अपने किसी राजा खान उर्फ बादशाह नाम के प्रेमी के साथ फरार है. पुलिस नरगिस के साथसाथ राजा खान की भी तलाश करने लगी. जल्द उन का पता चल गया. वे ओडिशा के राउरकेला में एक होटल से पकड़े गए. उन्हें कोरबा ला कर पूछताछ शुरू की गई. नरगिस सुलतान के चेहरे से मासूमियत झलक रही थी, जो शायद कमसिन उम्र का तकाजा था. चेहरे की ताजगी बता रही थी कि वह बेकुसूर है. वह डरीसहमी थी. उस ने वसीम के साथ किसी तरह की जानपहचान होने से साफसाफ इनकार कर दिया. बड़े सामान्य ढंग से उस ने पुलिस को बताया कि वह मोहम्मद वसीम नाम के किसी व्यक्ति से मिली ही नहीं है.

मगर पुलिस के पास उस की और वसीम की बातचीत के सबूत थे. पुलिस जांच टीम के एक सदस्य ने सख्ती के साथ पूछताछ की और मोबाइल ट्रेस की जानकारी सामने रखी तो वह टूट गई. इस के बाद उस ने जो घटनाक्रम बयान किया, उस से वसीम की हत्या की तसवीर भी सामने आ गई.  महज 17 साल की नरगिस ने बताया कि वह राजा से मोहब्बत करती है और अपने परिवार को छोड़ चुकी है. दोनों साथ रहते हैं. इसी के साथ उस ने बताया कि उस ने पैसों के लालच में प्रेमी के साथ मिल कर वसीम की हत्या की.

नरगिस के इस बयान के बाद पुलिस ने राजा खान के खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज कर ली. आरोपी राजा खान उर्फ बादशाह 20 साल का नवयुवक था. वह बांसटाल चैतमा थाना पाली, जिला कोरबा का निवासी है. उस ने पुलिस से नरगिस के बारे में जो भी बातें बताईं, उस से यह साबित हो गया था कि वह और नरगिस एकदूसरे को बेइंतहा चाहते हैं.  दोनों अपनी मरजी से साथसाथ रह रहे थे. उस ने यह भी बताया कि नरगिस से उसे वसीम के बारे में जानकारी मिली थी और उस के कहने पर ही उस की योजना में शामिल हो गया था.

राजा खान ने बताया कि नरगिस ने उसे  मोहम्मद वसीम के सऊदी अरब से वापस आने की जानकारी दी थी. नरगिस ने उसे यह भी बताया था कि वसीम उस के रूपजाल पर लट्टू है और उसे दिलोजान से चाहता है. उस ने 2 सालों के भीतर सऊदी में रह कर बहुत पैसा कमाया है. उन पैसों को वह साथ ले कर आने वाला है. इसी लालच में उस ने वसीम को अपने जाल में फंसा लिया था. नरगिस उस से प्रेम का दिखावा करती थी.

नरगिस के कहने पर ही राजा खान ने बोलेरो गाड़ी किराए पर ली थी. उस पर सवार हो दोनों बिलासपुर गए थे. वसीम से मिलने पर नरगिस ने राजा का परिचय मुंहबोले भाई के रूप में दिया था. उस के बाद वे तीनों राजा के घर चैतमा आ गए. उस रोज मोहम्मद वसीम बहुत खुश था. राजा ने बताया कि वसीम ने बातों ही बातों में उस से कहा था कि उस की जिंदगी का खुशनुमा दिन आया है. उस ने यह भी कह डाला कि नरगिस से वह बेइंतहा मोहब्बत करता है. आज की रात वह उस के साथ गुजारेगा. उस वक्त घर में राजा और नरगिस के अलावा कोई नहीं था. नरगिस भी खुश नजर आ रही थी. वसीम ने आते ही उसे एक अच्छा गिफ्ट का पैकेट पकड़ा दिया था. इस पर नरगिस बोली थी, ”मैं आज तुम लोगों के लिए खाने में चिकन बना देती हूं.’’

इस तरह से की गई वसीम की हत्या

थोड़ी देर बाद रात होने पर सभी ने एक साथ खाना खाया था. उस के बाद राजा खान बाहर चला गया. नरगिस ने वसीम को बताया कि राजा अपने दोस्त के घर गया है, सुबह आएगा. वसीम यह सुन कर खुश हो गया. उसे नरगिस के साथ एकांत में रात गुजारने का मौका मिल गया था. दोनों खुशी से बातें करने में मशगूल हो गए. तभी पीछे के दरवाजे से राजा खान अचानक घर में आ घुसा. वसीम नरगिस से बातें करते हुए उस के काफी करीब आ चुका था.

नरगिस को वह अपनी बांहों में कसना ही चाहता था कि राजा खान ने मुरगी काटने वाले छुरे से वसीम अंसारी की गरदन पर पीछे से वार कर दिया. अचानक हुए वार से वसीम तिलमिला गया. वह बुरी तरह जख्मी हो गया और तड़पता हुआ कभी नरगिस को तो कभी राजा खान को देखने लगा. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि उस के साथ यह क्या हो रहा है? हंसते हुए राजा खान बोला, ”तुम नरगिस को चाहते हो, मेरी नरगिस को, हाहाहा… नरगिस सिर्फ मेरी है. नरगिस, बताओ इस बेवकूफ को जो तुम्हें पाने के लिए यहां आ गया है.’’

राजा की बातों में हां में हां मिलाते हुई बोली, ”तुम्हारा सारा पैसा अब हमारा होगा, हम दोनों जिंदगी भर ऐश करेंगे. हाहाहा.’’  नरगिस की इस हरकत पर वसीम तड़पता हुआ बोला, ”धोखा! मेरे साथ धोखा कर रही हो, ठीक नहीं होगा.’’ यह सुनना था कि राजा ने वसीम पर छुरे से लगातार 3-4 ताबड़तोड़ वार कर दिए. नरगिस ने तड़पते वसीम के पैर दबोच लिए थे. राजा खान ने ताबड़तोड़ वार कर उस का सिर धड़ से अलग कर दिया.  उस के बाद दोनों ने मिल कर वसीम के हाथों और पैरों को धड़ से अलग कर दिया. शव को 17 टुकड़ों में काट डाला. इस के लिए राजा ने पहले से ही छुरे के अलावा आरी ब्लेड ला कर घर में छिपा कर रख दिया था. वसीम की लाश के कटे टुकड़ों को उन्होंने प्लास्टिक की बोरी में भर लिया.

नरगिस और राजा ने बोरी को पिट्ठू बैग और एक ट्रौली बैग में बांध कर बाइक पर रख डैम में फेंकने की योजना बनाई. यह सब करतेकरते सवेरा हो गया था. शव के कुछ टुकड़े बच गए थे. वो उन्होंने घर के फ्रिज में छिपा कर रख दिए. अगले रोज 3 जुलाई, 2024 की रात में करीब लगभग 11 बजे स्पलेंडर बाइक से गोपालपुर डैम में फेंक कर दोनों घर वापस आ गए. वसीम की पहनी हुई सोने की चेन और अन्य सामान घर में छिपा दिया. 

नरगिस ने बातोंबातों में वसीम के मोबाइल का पासवर्ड पता कर लिया था. मोबाइल से यूपीआई आईडी चैक किया तो दोनों के होश उड़ गए. कारण, उन्होंने सोचा था कि सऊदी अरब में नौकरी करने के कारण कम से कम 50 लाख रुपए तो उस के एकाउंट में होंगे ही. मगर मिले सिर्फ 3 लाख रुपए. यह देख कर दोनों निराश हो गए. कुछ पैसे ही अपने खातों में ट्रांसफर कर पाए. आरोपी नरगिस सुलतान और राजा खान उर्फ बादशाह को पूछताछ करने के बाद पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर घटना में इस्तेमाल छुरा, बाइक आदि सामान जब्त कर लिया गया. 

राजा खान को 12 जुलाई, 2024 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर दूसरी आरोपी नरगिस सुलतान को नाबालिग होने के कारण किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश किया गया, जहां से उसे बालसुधार गृह भेज दिया गया. उक्त अपराध का खुलासा करने वाले एसपी (सिटी) दर्री नगर रविंद्र कुमार मीना के मार्गदर्शन में एसएचओ (पाली) चमन लाल सिन्हा, चौकीप्रभारी चैतमा चंद्रपाल खांडे, विमलेश भगत, एसआई पुरुषोत्तम उइके, कांस्टेबल अनिल कुर्रे, आशीष साहू तथा साइबर टीम के हैडकांस्टेबल राजेश कंवर, चंद्रशेखर पांडेय, आर. रवि चौबे, डेमन ओग्रे, बिरकेश्वर प्रताप सिंह, आलोक टोप्पो, सुशील यादव, लेडी कांस्टेबल सुषमा डहरिया एवं चौकी चैतमा के इंचार्ज की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में नरगिस परिवर्तित नाम है.

लालच का जंजाल, नौजवान बेहाल

छत्तीसगढ़ में शेयर ट्रेडिंग टिप्स सीखने के फेर में साकेत कालोनी, दुर्ग का एक नौजवान तकरीबन 15 लाख रुपए की ठगी का शिकार हो गया.

जांच करने वाले पुलिस अफसर ने बताया कि 35 साल का सौरभ स्वर्णकार एक औनलाइन इश्तिहार देखने के बाद शेयर ट्रेडिंग की जानकारी लेने की कोशिश करने लगा. उसे टैलीग्राम एप के जरीए संपर्क किया गया. एक लिंक के द्वारा 19 दिसंबर, 2023 को एक एप डाउनलोड करा कर केवाईसी के लिए आधारकार्ड और पैनकार्ड के फोटो भी अपलोड कराए गए.

उन लोगों के द्वारा पीडि़त को ह्वाट्सएप ग्रुप में भी जोड़ा गया. इसी के जरीए शेयर की खरीदीबिक्री की जानकारी दी जाने लगी. शेयर खरीदने के लिए जो पैसे लगने थे, उन्हें जो एप डाउनलोड कराया गया था, उस में रिचार्ज के जरीए रुपए का भुगतान करना होता था.

रिचार्ज करने के लिए टैलीग्राम चैनल में कस्टमर सर्विस के नाम से एक चैनल बनाया गया, जहां रिचार्ज की रकम पूछी जाती थी, फिर एक खाता नंबर में रुपए ट्रांसफर करने होते थे. रिचार्ज होने पर वह रकम उन के एप में दिखाई पड़ती थी.

हर रिचार्ज के समय अलगअलग खाते बताए गए. 19 जनवरी, 2024 को एक आईपीओ लौंच हुआ. सौरभ को इस में एप्लाई करने को कहा गया. मुनाफा अच्छा होने का चांस बता कर लालच भी दिया गया.

सौरभ स्वर्णकार पर दबाव बना कर एकमुश्त 13 लाख रुपए उस के बताए खाते में आरटीजीएस कराया गया. सौरभ स्वर्णकार को जमा रकम उस के एप में दिखाई दे रही थी, मगर कुछ दिनों बाद वह अपनेआप बदल गया. पूछने पर कोई सही जवाब नहीं आया.

ठगी का एहसास होने पर सौरभ स्वर्णकार ने मोहन नगर थाने में शिकायत दर्ज की. उस के साथ कुल 14 लाख, 65 हजार रुपए की ठगी हुई थी.

ऐसा है ठगी का खेल

दरअसल, जब सौरभ स्वर्णकार पूरी तरीके से उन के ?ांसे आ गया, तो उस के 2 अलगअलग अकाउंट खुलवाए गए, फिर धीरेधीरे एक करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम खातों में जमा कराई गई.

इधर, पीडि़त को लग रहा था कि उस की रकम बढ़ रही है और वह देखते ही देखते करोड़पति हो जाएगा और इस तरह वह लालच में फंसता चला गया. लेकिन जब जरूरत पड़ी और पीडि़त ने पैसे निकालने की कोशिश की, तो उसे रुपए नहीं मिले. उलटा, उस से नए आईपीओ के नाम पर और रकम मांगी गई.

पुलिस के मुताबिक, आमतौर पर लोगों के साथ धोखाधड़ी के मामले उन के लालच की वजह से होते हैं. जैसे, एक आदमी के साथ 22 करोड़ रुपए का साइबर कांड हुआ. उस ने इंवैस्टमैंट के नाम पर पैसा डबल होने के लालच में नुकसान झेला.

दरअसल, जैसे धार्मिक अंधश्रद्धा में फंस कर लोग अपना सबकुछ गंवा बैठते हैं और बाद में खुद को लुटा हुआ पाते हैं, वैसे ही आजकल कारोबार का जामा पहन कर लूटे जाने की वारदातें आम हो गई हैं.

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