Story in Hindi

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‘जैसा नाम वैसा ही गुण’ कहावत साध्वी प्रज्ञा पर पूरी तरह फिट बैठती थी. समाज का एक बड़ा तबका खासतौर से जैन समाज साध्वी प्रज्ञा को देवी का अवतार मानता था. धर्म की बातों पर वह घंटों बोलती और सत्संग में आए हजारों लोग मंत्रमुग्ध हो कर उसे सुनते थे.
रजनीश छोटे शहर का एक गरीब लड़का था. सीधासादा, गोरे रंग का और उस की उम्र तकरीबन 27-28 साल होगी. वह कभी किसी परचून की दुकान पर, तो कभी कपड़े की दुकान पर काम करता. वह बहुत ज्यादा पढ़ालिखा भी न था. पहचान के नाम पर उसे इतना मालूम था कि वह जैनी है.
रजनीश साल में 8 महीने काम करता और चतुर्मास में जब मुनि अपनी मंडली के साथ जैन सभागार में रुकते, तो सत्संग मंडली की सेवा करता.
जब उस ने सुना कि इस चतुर्मास में साध्वी प्रज्ञा भी सत्संग करने आ रही हैं, तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा. काफी समय से वह उन्हें चिट्ठी लिखा करता था और जवाब का इंतजार करता, पर जवाब न मिलता.
रजनीश सोचता कि किसी साध्वी से प्यार करना कितनी गंदी सोच है, लेकिन सच भी यही था. वह कब तक इस बात को छिपा कर अपने मन को मारता रहता. ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? लोग मारेंगे, पीटेंगे. धर्म से, समाज से, जाति से बाहर कर देंगे. कर दें. उस का है ही कौन.
4 महीने साध्वी की सेवा का मौका मिलेगा और अपनी बात कहने का भी. वह अपनी लिखी गई चिट्ठियों के बारे में भी पूछ सकता है. चिट्ठी उन्हें मिली या नहीं? मिली तो जवाब क्यों नहीं दिया?
सारे समाज ने आचार्यश्री, उन की शिष्या साध्वी प्रज्ञा और मुनि मंडली का स्वागत किया. जयजयकार के नारे से सारा शहर गूंज उठा. विशाल सभागार में मंडली के ठहरने का इंतजाम किया गया. बडे़बडे़ नगर सेठ, करोड़पतिअरबपति दर्शन के लिए आचार्यश्री से मिलने आते.
साध्वी प्रज्ञा का प्रवचन सुनने के लिए हजारों की तादाद में लोग आते. रजनीश को हर बार की तरह इस बार भी सेवा करने का काम सौंपा गया.
प्रवचन सुनने के लिए रजनीश सब से आगे बैठता, मानो प्रज्ञा की नजर उस पर पड़ जाए, तो वह धन्य हो जाए. वह बिना पलक ?ापकाए कई घंटे प्रवचन सुनता रहता था. उस के दिलोदिमाग
पर तो बस प्रज्ञा छाई हुई थी.
आचार्यश्री और मुनि मंडली की सेवा करने का पुण्यभार तो करोड़पति सेठों ने संभाल लिया, जबकि साध्वी प्रज्ञा की सेवा के लिए उन्हीं के साथ आई एक सेविका, शहर के अमीर घरों की औरतों के अलावा रजनीश को भी रखा गया. रजनीश को तो मानो सारे जहां की खुशियां मिल गई थीं.
साध्वी प्रज्ञा के कमरे में दरवाजे पर मौजूद उस की सेविका की इजाजत से ही कोई जा सकता था.
रजनीश को चूंकि सेवा के लिए रखा गया था, इसलिए वह औरत रजनीश के जरीए ही भोजन, पानी, कपड़ा वगैरह भिजवाती.
साध्वी प्रज्ञा को अपने पास देख कर रजनीश को लगा, मानो वह सपना देख रहा हो.
एक दिन साध्वी प्रज्ञा ने अचानक उस से पूछा, ‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’
‘‘जी, मेरा नाम है रजनीश…’’ रजनीश ने अटकते हुए जवाब दिया, ‘‘मैं ने आप को कई चिट्ठियां भी लिखीं, पर…’’
‘‘अच्छा, तो तुम हो,’’ प्रज्ञा ने हंस कर कहा, ‘‘क्या करते हो?’’
रजनीश ने बताया कि वह इस दुनिया में बिलकुल अकेला है.
‘‘मेरे साथ ही क्यों? सेवा तो किसी के भी साथ कर सकते हो?’’
‘‘जी, आप मु?ो अच्छी लगती हैं,’’ कहने के बाद वह घबरा गया, ‘‘माफ करना, मेरे कहने का मतलब…’’ रजनीश लड़खड़ाती जबान से बोला.
‘‘मन की बात आखिर जबान पर आ ही गई…’’ साध्वी प्रज्ञा ने कहा, ‘‘तुम्हारी चिट्ठियां मैं ने पढ़ी हैं, पर मैं क्या जवाब देती. मैं ठहरी साध्वी…’’
‘‘मैं आप से एक निवेदन करना चाहता हूं,’’ रजनीश सहमते हुए बोला.
‘‘कौन सा निवेदन?’’ प्रज्ञा ने पूछा.
‘‘प्रणय निवेदन…’’ रजनीश ने पूरी हिम्मत जुटा कर लरजते होंठों से कहा, ‘‘भले ही आप मु?ो पापी सम?ों, लेकिन मैं आप को दिलोजान से चाहता हूं. आप कहें, तो मैं कभी आप को अपना मुंह नहीं दिखाऊंगा. मेरी मंजिल, मेरा मकसद, जीने की सीढ़ी सब आप ही हैं. आप न कहेंगी, तो मेरे पास खुदकुशी करने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं है.
‘‘इसलिए नहीं कि मैं कमजोर हूं, बल्कि इसलिए कि फिर जीने की कोई वजह नहीं. आप शायद मेरी भावनाओं को नहीं सम?ोंगी, क्योंकि आप साध्वी…’’
‘‘नहीं, पहले मैं एक औरत हूं…’’
तभी घड़ी की टनटन हुई. साध्वी प्रज्ञा ने कहा, ‘‘देखो, रात के 10 बज रहे हैं. अब तुम जाओ. मु?ो आचार्यश्री की सेवा में जाना है.’’
‘‘लेकिन…’’
‘‘बाकी बातें कल होंगी… अभी तो तुम फौरन यहां से चले जाओ.’’
रजनीश को हैरानी हुई कि वह इतना सब कैसे कह गया. साध्वी प्रज्ञा ने उस की बात ध्यान से सुनी और बाकी बातें कल करने को भी कहा.
अगले दिन रजनीश साध्वी प्रज्ञा के कमरे में समय से पहले ही खाना ले कर पहुंच गया. उस समय प्रज्ञा कमरे में नहीं थी. रजनीश खाना रख कर कमरे में इधरउधर टहलने लगा.
उसे सामने की अलमारी में, जो शायद लापरवाही से खुली रह गई थी, सजनेसंवरने का सामान दिखाई दिया. वह अलमारी के नजदीक पहुंचा. उसे अलमारी में गर्भनिरोधक गोलियां, हेयर रिमूवर, सीडी दिखाई दी.
रजनीश ने ज्यों ही सीडी हाथ में ली, तभी पीछे से कोई बोला, ‘‘ब्लू फिल्म की है,’’ यह आवाज प्रज्ञा की थी.
रजनीश ने घबरा कर सीडी वहीं रख दी. वह तेजी से अलमारी बंद कर के पलटा और बोला, ‘‘यह सब आप के पास भी…आप तो…’’
‘‘मैं ने कहा था न कि मैं पहले एक औरत भी हूं.’’
‘‘लेकिन…’’
‘‘लेकिनवेकिन छोड़ो. हां, कल तुम मु?ा से क्या कह रहे थे? प्यार करते हो मु?ा से, जी नहीं सकते मेरे बगैर,
और क्या…’’
‘‘यह सब क्या है?’’ रजनीश ने प्रज्ञा से बड़ी धीमी आवाज में पूछा.
‘‘हर आदमी जैसा दिखाई देता है, वैसा होता नहीं. तुम मु?ो इसलिए चाहते हो न कि मैं खूबसूरत हूं. तुम मु?ो नहीं, मेरी खूबियों से प्यार करते हो. अब शायद तुम्हारी सोच बदल गई होगी.
तुम ने अपनी तो कहानी सुना दी, अब मेरी सुनो…
‘‘3 जवान कुंआरी बहनों की शादी, 2 छोटे भाइयों की पढ़ाई और मजदूर मातापिता. मु?ो आचार्यश्री ने साध्वी बना कर पूरे परिवार की जिम्मेदारी ले ली.
‘‘लाखोंकरोड़ों रुपए के गुप्त दान से मेरी तीनों बहनों की शादी अच्छे घरों में हो गई. आचार्यश्री ने दोनों भाइयों को दुकानें खुलवा दीं. बदले में मु?ो दुनिया के सामने साध्वी और रात में आचार्यश्री का बिस्तर गरम करना पड़ता था. अब तो मेरे खुद के नाम से भी दान, गुप्त दान आने लगे हैं.
‘‘मैं यहां से बहुत दूर अपने नाम से एक बंगला बनवा चुकी हूं. बैंक में मैं ने इतना रुपया जमा कर लिया है कि जिंदगीभर कुछ करने की जरूरत न पड़े.’’
यह सुन कर रजनीश को मानो लकवा मार गया. वह चुपचाप खड़ा सब सुन रहा था.
‘‘क्यों? अब क्या हुआ तुम्हारे प्यार को? सच जान गए हो, तो खत्म हो गया तुम्हारा प्यार?’’
‘‘नहींनहीं, मैं अब भी आप से उतना ही प्यार करता हूं, जितना यह सब बताने से पहले. आप के पास समाज में इज्जत है, पैसा है, भोग है, योग है, फिर तुम मु?ा से प्यार या शादी क्यों करोगी?’’
‘‘मैं ने पहले भी कहा था और अब भी कह रही हूं कि मैं सब से पहले एक औरत हूं.
‘‘मु?ो भी प्यार करने वाला मर्द चाहिए. देखभाल करने वाला पति चाहिए. वासना में सनी गंदी निगाहें, मर्दों की हमबिस्तरी के लिए तो मैं अपनी जिंदगी बरबाद नहीं कर सकती…’’ प्रज्ञा ने उदास लहजे में कहा, ‘‘हर औरत की तरह मैं भी मां बनना चाहती हूं. पत्नी बनना चाहती हूं.
‘‘रुपयापैसा, मानसम्मान तभी तक अच्छे लगते हैं, जब तक ये नहीं मिलते. एक समय ऐसा आता है, जब ये सब खोखले लगने लगते हैं.’’
‘‘क्या तुम इस सब से निकल पाओगी?’’ रजनीश ने पूछा.
‘‘हां, अगर चाहा तो…’’ प्रज्ञा ने कहा.
‘‘क्या तुम यह इज्जत, यह दौलत भुला सकोगी, वह भी मु?ा जैसे गरीब की खातिर?’’ रजनीश ने पूछा.
‘‘सच्चा प्यार करने वाले के लिए कोई औरत तीनों जहां की दौलत को ठोकर मार सकती है.’’
‘‘कहीं बाद में पीछे तो नहीं हट जाओगी?’’
‘‘तुम क्या सम?ाते हो कि धर्म के ये ठेकेदार मु?ो जिंदगीभर इज्जत और पैसा देंगे? धर्म की राजनीति सत्ता की राजनीति से भी ज्यादा खतरनाक होती है. जब इन आचार्यश्री को मेरी जैसी दूसरी मिल जाएगी और मु?ा से मन भर जाएगा, तो ये मु?ो खुदकुशी करने के लिए मजबूर कर देंगे.’’
‘‘क्या हम मीडिया, स्टिंग औपरेशन वगैरह से इन की असलियत को जनता…’’
‘‘ऐसी बेवकूफी की बात सोचना भी मत. ये पैसे के दम पर कुछ भी कर सकते हैं. अज्ञानी, नासम?ा, अपढ़ अंधविश्वासी अनुयायी इन के लिए दंगाफसाद, मारकाट कुछ भी कर सकते हैं.’’
‘‘फिर हमारी शादी कैसे होगी?’’
‘‘चुपके से, अगर तुम मेरा साथ दोगे तो…’’
‘‘हां, हर हाल में.’’
‘‘तो बस, मैं जो कहती हूं, करते जाओ. बाकी काम धर्म के ठेकेदार खुद ही कर लेंगे,’’ प्रज्ञा ने कहा.
‘‘मु?ो करना क्या होगा?’’ रजनीश ने सवालिया नजरों से पूछा.
‘‘मैं एक कविता लिख कर छोड़ती हूं,’’ प्रज्ञा ने कुटिल मुसकराहट से कहा, ‘‘तुम कल रात की हवाईजहाज की
2 टिकटें बुक करा लो. हम कब, कहां जा रहे हैं, किसी को भी खबर नहीं लगनी चाहिए.’’
‘‘वह तो ठीक है, पर तुम निकलोगी कैसे?’’
‘‘तुम मेरी चिंता मत करो. मैं आचार्यश्री के कमरे से लौटने के बाद अपने कमरे में जाने के बजाय बुरके में सीधे एयरपोर्ट पहुंच जाऊंगी.’’
‘‘क्या आचार्यश्री के कमरे में जाना जरूरी है?’’
‘‘हां, किसी को हमारे निकलने से पहले शक न हो, नहीं तो हम बुरी तरह फंस जाएंगे. अब तुम जाओ…’’
रजनीश प्रज्ञा के कमरे से बाहर निकल गया.
प्रज्ञा ने आचार्यश्री के साथ आखिरी रात बिताई. सुबह 3 बजे उस ने एक कविता लिखी :
‘मैं अब आजाद पंछी
चली मुक्ति की ओर.
तेरी इस ?ाठी दुनिया में
नहीं रहना अब और.’
कविता अपने कमरे में छोड़ कर प्रज्ञा ने अपना पहनावा बदला. सुबह होने से पहले ही वह तेज कदमों से एयरपोर्ट की ओर बढ़ गई.
सेविका ने आचार्यश्री को साध्वी प्रज्ञा के गायब होने की सूचना दी.
आचार्यश्री गुस्सा हो कर बोले, ‘‘यह भी भाग गई.’’
उन्होंने दूसरे दिन सभी भक्तों को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘साध्वी प्रज्ञा ने आसन लगा कर खुद को भस्म कर दिया. उन के आसन पर उन के शरीर की राख और हड्डियां रह गई हैं. आप लोगों के लिए कल का दिन उन के अवशेष के दर्शन का होगा?’’ साध्वी प्रज्ञा के जयकारों की गूंज उठने लगी.
अगले दिन चारों तरफ भीड़ ही भीड़ थी. कोई फूलमाला ले कर, तो कोई नारियल, प्रसाद ले कर पहुंच रहा था.
इधर आचार्यश्री के पास एसपी साहब और एक खोजी पत्रकार बैठे हुए थे.
एसपी साहब बोले, ‘‘आचार्यश्री नाराज न हों, लेकिन मामूली सी जांच करनी है. आग भी लगी, पर कमरे में कुछ जलना तो दूर, जिस आसन पर साध्वी ने खुद को जलाया, वह भी नहीं जला.’’
पत्रकार महोदय ने भी पूछा, ‘‘हम खोजी पत्रकार हैं. चैनलों और अखबार पर अंधभक्त लोग ही भरोसा कर सकते हैं, पर हम नहीं.’’
यह सुनते ही आचार्यश्री भड़क उठे, ‘‘यहां कोई हत्या नहीं हुई है.’’
‘‘लेकिन चमत्कार भी तो नहीं हुआ. हम तो आप के अपने हैं, हमें तो सच बताइए,’’ एसपी साहब बोले.
आचार्यश्री बोले, ‘‘सच तो यह है कि साध्वी प्रज्ञा किसी की मदद से भाग गई है. हम ने ही स्वांग रचा कि आसन पर हड्डी और राख का ढेर रख कर उसे भस्म करवा दो…’’
‘‘लेकिन इस स्वांग की क्या जरूरत थी?’’ पत्रकार ने पूछा.
‘‘जरूरत थी, ताकि लोगों की धर्म के प्रति आस्था न टूटे. आप को अपने चैनल की टीआरपी बढ़ानी है, तो चमत्कार को नमस्कार करना ही होगा. आप के सच से क्या होगा? हमारे धर्म की बदनामी. लोग कल भूल भी जाएंगे. सच से अच्छा है कि चमत्कार दिखाएं, कल तक आप के पास 5-5 लाख रुपए पहुंच जाएंगे.’’
एसपी साहब और पत्रकार वहां से चले गए.
इधर बहुत दूर जा चुके प्रज्ञा और रजनीश एक होटल के कमरे में बैठे हुए थे. रजनीश हैरानपरेशान था, लेकिन प्रज्ञा बेफिक्र.
प्रज्ञा ने रजनीश को भरोसा दिलाते हुए कहा, ‘‘मैं सब की नजरों में मर चुकी हूं. तुम चिंता मत करो. भरोसा न हो, तो टैलीविजन का कोई भी न्यूज चैनल चला कर देख लो.’’
रजनीश ने न्यूज चैनल देखा, तो हैरान रह गया. सारे चैनल वाले प्रज्ञा को देवी बता कर जयजयकार कर रहे थे.
तभी प्रज्ञा की आवाज सुनाई दी, ‘‘कल हमारी शादी है. मैं ने आर्य समाज वालों से बात कर ली है…’’
‘‘लेकिन आर्य समाज में बर्थ सर्टिफिकेट, गवाह के साथसाथ और भी जरूरी चीजें चाहिए….’’ रजनीश बोला.
‘‘तुम भी न बस… अरे, जब पैसे के सामने लेडी डाक्टर एक औरत के पेट में बच्चा मार देती है और अपना मुंह बंद कर लेती है. मन ही मन वह खुद को यह कह कर सम?ा लेती है कि लड़की की समाज में इज्जत बचाने के लिए पेट गिरा दिया. यह कोई पाप नहीं. करते तो सब पैसों के लिए ही हैं.
‘‘पैसा मारो तो सब का मुंह बंद, तो फिर पंडित क्या चीज है? गवाह, कागजात सब वही तैयार करेगा. हमें सिर्फ पैसे दे कर शादी कर के सर्टिफिकेट लेना है, जो मिल जाएगा.’’
‘‘लेकिन अगर बाद में तुम्हें किसी ने पहचान लिया तो,’’ रजनीश ने पूछा.
‘‘यहां किसी को कुछ याद नहीं रहता. चंद दिनों में सब भूल जाएंगे. दूसरी साध्वी आ जाएगी. फिर हम कोई अपराध कर के तो भागे नहीं हैं. बेकार की चिंता मत करो. धर्म के ठेकेदार इतना मौका नहीं देते. ऐसा पहले भी हो चुका है. देखा नहीं खबर में कि सब जयजयकार करने में लगे हैं…’’
साध्वी प्रज्ञा रजनीश के साथ शादी के बंधन में बंध कर श्रीमती प्रज्ञा रजनीश जैन बन गई और उतार फेंका उस ने अधर्म का, व्यभिचार का, व्यापार का और साध्वी का मुखौटा.
नीचे से ऊपर तक पानी में भीगे जोगवा को घर के भीतर घुसते देख कर सुखिया चिल्लाई, ‘‘बाहर देह पोंछ कर अंदर नहीं आ सकते थे? सीधे घर में घुस आए. यह भी नहीं सोचा कि घर का पूरा फर्श गीला हो जाएगा.’’
जोगवा को सुखिया की बात पर गुस्सा तो आया, पर उसे चुप रहने का इशारा कर के वह कोने में पड़े एक पीढ़े पर बैठ गया.
पलभर खोजी नजरों से चारों ओर देख कर जोगवा ने अपनी धोती थोड़ी ढीली की और उस की कमर में बंधा मिट्टी का लोंदा फर्श पर गिर पड़ा.
‘‘यह क्या है?’’ सुखिया ने धीमी आवाज में पूछा.
‘‘मालिक के कुएं में बालटी गिर गई थी. उसे निकालने के लिए जब मैं कुएं में उतरा, तो यह चीज हाथ लगी. मैं सब की नजरों से छिपा कर ले आया हूं,’’ जोगवा बोला.
मिट्टी के उस लोंदे को टटोल कर सुखिया ने पूछा, ‘‘पर यह है क्या?’’
जोगवा के चेहरे पर हलकी सी मुसकान फैल गई. उस ने कहा,
‘‘तुम देखोगी, तो खुशी से पागल हो जाओगी… सम झी?’’ इतना कह कर उस ने कोने में रखे घड़े के पानी से कीचड़ में लिपटी उस चीज को रगड़रगड़ कर साफ किया, तो उस के हाथ में एक पायल झलकने लगी.
‘‘अरे सुखिया, देख यह चांदी की है. कितनी मोटी और वजनदार है. असली चांदी की लगती है,’’ जोगवा अपनी खुशी संभाल नहीं पा रहा था.
चांदी की पायल देख कर सुखिया खुशी से झूम उठी. वह जोगवा का सिर सहलाते हुए बड़े प्यार से बोली, ‘‘क्या इस की जोड़ी नहीं थी?’’
‘‘पानी के अंदर तो लगा था कि कुछ और भी है, पर तब तक मेरा दम घुटने लगा और मैं पानी के अंदर से ऊपर आ गया,’’ जोगवा ने बताया.
सुखिया जोगवा की कमर में हाथ डाल कर बड़े प्यार से बोली, ‘‘सुनोजी, मेरा मन कहता है कि तुम इस की जोड़ी जरूर ला दोगे. देखो न, यह मेरे पैर में कितनी अच्छी लग रही है…’’ सुखिया पायल को एक पैर में पहन कर बोली, ‘‘मैं इसे पहन कर अपने मायके जाऊंगी और जो लोग तुम्हें भुक्खड़ कह कर खुश होते थे, तुम्हारा मजाक उड़ाते थे, उन्हें दिखा कर बताऊंगी कि मेरा घरवाला कंगाल नहीं है. इस से तुम्हारी इज्जत और भी बढ़ जाएगी.’’
‘‘ठीक है, मैं एक बार और कुएं में उतरूंगा. पर दिन के उजाले में नहीं, बल्कि रात के अंधेरे में… जब सारा गांव गहरी नींद में सोया होगा,’’ जोगवा बोला, तो सुखिया के होंठों पर हंसी फैल गई.
आखिरकार रात हो गई. सारा गांव सन्नाटे में डूबा हुआ था. गहरी नींद में सोए गांव को देख कर जोगवा घर से बाहर निकला. उस के पीछेपीछे सुखिया भी रस्सी ले कर निकली. दोनों धीरेधीरे मालिक के घर की ओर बढ़े.
कुएं के करीब पहुंचने पर दोनों ने पलभर रुक कर इधरउधर देखा. कहीं कुछ नहीं था. सुखिया ने कुएं में रस्सी डाल दी.
कुएं में उतरने से पहले जोगवा सुखिया से बोला कि वह रस्सी को अपनी कमर में लपेट ले, ताकि हाथ से अचानक छूटने का खतरा न रहे.
सुखिया ने वैसा ही किया. रस्सी के एक छोर को अपनी कमर से लपेट कर उस ने दोनों हाथों से उसे कस कर पकड़ लिया.
जोगवा रस्सी के सहारे धीरे-धीरे कुएं के अंधेरे में गुम हो गया. वह अथाह पानी में जोर लगा कर अंदर धंसता चला गया. कीचड़ से भरे तल को उस ने रौंद डाला. कंकड़पत्थर और न जाने क्याक्या उस के हाथ में आए, पर पायल जैसी कोई चीज हाथ न लगी.
जब जोगवा का दम घुटने लगा, तब जल्दीजल्दी हाथपैर मार कर वह पानी की सतह पर आया और कुएं का कुंडा पकड़ कर दम लेने लगा.
सुखिया को कुएं के भीतर से जोगवा के पानी के ऊपर उठने की आहट मिली, तो उस की बांछें खिल उठीं. वह रस्सी के हिलने का इंतजार करने लगी. लेकिन जब अंदर से कोई संकेत नहीं मिला, तब वह निराश हो गई.
कुछ देर दम भरने के बाद जोगवा फिर पानी में घुसा. इधर अंधेरे में कुछ दूरी पर कुत्तों के भूंकने की आवाजें सुनाई पड़ीं.
सुखिया का कलेजा कांप उठा. उस ने कुएं में झुक कर जोगवा को आवाज लगाई, पर कुएं से उसी की आवाज लौट आई. उस का जी घबराने लगा.
तभी अचानक मालिक के मकान का दरवाजा खुला. लालटेन की धीमी रोशनी कुएं के चबूतरे पर पड़ी.
‘‘कौन है? वहां कौन खड़ा है?’’ दरवाजे के पास से कड़कदार आवाज आई.
मालिक की आवाज सुन कर सुखिया का दिल दहल उठा. उस के हाथपैर कांपने लगा.
दहशत में न जाने कैसे सुखिया की कमरे से बंधी रस्सी छूट कर हाथ में आ गई और हाथ से छूट गई. जोगवा के ऊपर आने का सहारा कुएं के अंधेरे में गुम हो गया.
मालिक लालटेन ले कर कुएं तक आए. वहां उन्हें कोई दिखाई नहीं पड़ा. इधरउधर झांक कर वे लौट गए.
इधर जोगवा ने पानी से ऊपर आ कर जैसे ही रस्सी पकड़ कर दम लेना चाहा, तो रस्सी ऊपर से आ कर उस की देह में सांप की तरह लिपट गई.
रस्सी उस के लिए नागफांस बन गई और वह पानी में डूबनेउतराने लगा. हाथपैर मारना मुहाल हो गया. धीरेधीरे पानी में उठने वाला हिलोर शांत हो गया.
सुखिया अंधेरे में गिरतीपड़ती घर पहुंची. डर से उस का पूरा शरीर कांप रहा था. सांस धौंकनी की तरह चल रही थी. मालिक के हाथों जोगवा के पकड़े जाने के डर ने उसे रातभर सोने नहीं दिया.
पौ फटते ही मालिक के कुएं के पास भीड़ जमा हो गई. सुखिया को किसी ने आ कर जब जोगवा के डूब जाने की खबर दी, तो वह पछाड़ खा कर गिर पड़ी. गांव वालों ने जोगवा की लाश को कुएं से निकाल कर आंगन में रख दिया.
सुखिया रोतेरोते जब जोगवा की लाश के पास गई, तो उस की आंखें उस के हाथ में दबी किसी चीज पर अटक गईं. सुखिया ने जोगवा के हाथ को अपने हाथ में ले कर जब पायल की रुन झुन की आवाज सुनी, तो उस का कलेजा फट गया. उस चीज को मुट्ठी में भींच कर सुखिया दहाड़ मार कर रोने लगी. उस के लालच ने जोगवा की जान ले ली थी.
राजेश का आलीशान बंगला देख कुमुदिनी हैरान रह गई. दरबान ने बंगले का गेट खोला और नमस्ते की. नौकर ने राजेश की अटैची टैक्सी से निकाल कर बंगले में रखी.
‘‘मैडम, यह है अपनी कुटिया. आप के आने से हमारी कुटिया भी पवित्र हो जाएगी,’’ राजेश ने कुमुदिनी से कहा.
‘‘बहुत ही खूबसूरत बंगला बनाया है. कितनी भाग्यशाली हैं इस बंगले की मालकिन?’’
‘‘छोड़ो, इधर बाथरूम है. आप फ्रैश जाओ. मैं आप के लिए कपड़े लाता हूं,’’ कह कर राजेश दूसरे कमरे में जा कर एक बड़ी सी कपड़ों की अटैची ले आया. अटैची खोली तो उस में कपड़े तो कम थे, सोनेचांदी के गहने व नोटों की गड्डियां भरी पड़ी थीं.
‘‘नहींनहीं, यह अटैची मैं भूल से ले आया. कपड़े वाली अटैची इसी तरह की है,’’ और राजेश तुरंत अटैची बंद कर उसे रख कर दूसरी अटैची ले आया.
‘‘यह लो अपनी पसंद के कपड़े… मेरा मतलब, साड़ीब्लाउज या सूट निकाल लो. इस में रखे सभी कपड़े नए हैं.’’
‘‘पसंद तो आप की रहेगी,’’ तिरछी नजरों से कुछ मुसकरा कर कुमुदिनी ने कहा.
‘‘यह नीली ड्रैस बहुत ज्यादा फबेगी आप पर. यह रही मेरी पसंद.’’
वह ड्रैस ले कर कुमुदिनी बाथरूम में चली गई. तब तक राजेश भी अपने बाथरूम में नहा कर ड्राइंगरूम में आ कर कुमुदिनी का इंतजार करने लगा.
कुमुदिनी जब तक वहां आई, तब तक नौकर चायनाश्ता टेबल पर रख कर चला गया.
दोनों ने नाश्ता किया. राजेश ने पूछा, ‘‘खाने में क्या चलेगा?’’
‘‘आप तो मेहमानों की पसंद का खाना खिलाना चाहते हो. मैं ने कहा न आप की पसंद.’’
‘‘मैं तो आलराउंडर हूं. फिर भी?’’
‘‘वह सबकुछ तो ठीक है, पर मैं आप के बारे में कुछ…’’
‘‘क्या? साफसाफ कहो.’’
‘‘आप के नौकरचाकर श्रीमतीजी को जरूरत बता सकते हैं. मेरे चलते आप के घर में पंगा खड़ा हो, मुझे गवारा नहीं.’’
‘‘आप चाहो तो मैं परसों तक नौकरों को छुट्टी पर भेज देता हूं, पर मेरी एक शर्त है.’’
‘‘कौन सी शर्त?’’
‘‘खाना आप को बनाना पड़ेगा.’’
‘‘हां, मुझे मंजूर है, पर आप के घर में कोई पंगा न हो.’’
‘‘पहले यह तो बताओ खाने में…’’ राजेश ने पूछा.
‘‘आप जो खिलाओगे, मैं खा लूंगी,’’ आंखों में झांक कर कुमुदिनी ने कहा.
राजेश ने एक नौकर से चिकन और शराब मंगवाई और बाद में सभी नौकरों को छुट्टी पर भेज दिया. तब तक रात के 9 बज चुके थे.
‘‘आप ने तो…’’ शराब से भरे जाम को देखते हुए कुमुदिनी ने कहा.
‘‘जब मेरी पसंद की बात है तो साथ तो देना ही पड़ेगा,’’ राजेश ने जाम आगे बढ़ाते हुए कहा.
‘‘मैं ने आज तक इसे छुआ भी नहीं है.’’
‘‘ऐसी बात नहीं चलेगी. मैं अगर अपने हाथ से पिला दूं तो…?’’ और राजेश ने जबरदस्ती कुमुदिनी के होंठों से जाम लगा दिया.
‘‘काश, आप के जैसा जीवनसाथी मुझे मिला होता तो मैं कितनी खुशकिस्मत होती,’’ आंखों में आंखें डाल कर कुमुदिनी ने कहा.
‘‘यही तो मैं सोच रहा हूं. काश, आप की तरह घर मालकिन रहती तो सारा घर महक जाता.’’
‘‘अब मेरी बारी है. यह लो, मैं अपने हाथों से आप को पिलाऊंगी,’’ कह कर कुमुदिनी ने दूसरा रखा हुआ जाम राजेश के होंठों से लगा दिया.
शराब पीने के बाद राजेश से रहा न गया और उस ने कुमुदिनी के गुलाबी होंठों को चूम लिया.
‘‘आप तो मेहमान की बहुत ज्यादा खातिरदारी करते हो,’’ मुसकराते हुए कुमुदिनी ने कहा.
‘‘बहुत ही मधुर फूल है कुमुदिनी का. जी चाहता है, भौंरा बन कर सारा रस पी लूं,’’ राजेश ने कुमुदिनी को अपने आगोश में लेते हुए कहा.
‘‘आप ने ही तो यह कहा था कि कुमुदिनी रात में सारे माहौल को महका देती है.’’
‘‘मैं ने सच ही तो कहा था. लो, एक जाम और पीएंगे,’’ गिलास देते हुए राजेश ने कहा.
‘‘कहीं जाम होंठ से टकराते हुए टूट न जाए राजेश साहब.’’
‘‘कैसी बात करती हो कुमुदिनी. यह बंदा कुमुदिनी की मधुर खुशबू में मदहोश हो गया है. यह सब तुम्हारा है कुमुदिनी,’’ जाम टकराते हुए राजेश ने कहा और एक ही सांस में शराब पी गया.
कुमुदिनी ने अपना गिलास राजेश के होंठों से लगाते हुए कहा, ‘‘इस शराब को अपने होंठों से छू कर और भी ज्यादा नशीली बना दो राजेश बाबू, ताकि यह रात आप के ही नशे में मदहोश हो कर बीते.’’
नशे में धुत्त राजेश ने कुमुदिनी को बांहों में भर कर प्यार किया. कुमुदिनी भी अपना सबकुछ उस पर लुटा चुकी थी. राजेश पलंग पर सो गया.
थोड़ी देर में कुमुदिनी उठी और अपने पर्स से एक छोटी सी शीशी निकाल राजेश को सुंघाई. शीशी में क्लोरोफौर्म था. इस के बाद कुमुदिनी ने किसी को फोन किया.
राजेश जब सुबह उठा, उस समय 8 बजे थे. राजेश के बिस्तर पर कुमुदिनी की साड़ी पड़ी थी. साड़ी को देख उसे रात की सारी बातें याद हो आईं. उस ने जोर से पुकारा, ‘‘ऐ कुमुदिनी.’’
बाथरूम से नल के तेजी से चलने की आवाज आ रही थी. राजेश ने दोबारा आवाज लगाई, ‘‘कुमुदिनी, हो गया नहाना. बाहर निकलो.’’
पर, कुमुदिनी की कोई आवाज नहीं आई. तब राजेश ने बाथरूम का दरवाजा धकेला, तो उसे कुमुदिनी नहीं दिखी.
वह घर के अंदर गया. सारा सामान इधरउधर पड़ा था. रुपएपैसे व जेवर वाला सूटकेस, घर की कीमती चीजें गायब थीं. राजेश को समझते देर नहीं लगी. उस के मुंह से निकला, ‘‘चालाक लड़की…’’
मालती के पास आमदनी का कोई और जरीया नहीं था. मांबेटी की कमाई से 5 लोगों का पेट भरता था. क्या करे वह? पूजा का काम करना छुड़वा दे, तो आमदनी आधी रह जाएगी. एक अकेली औरत की कमाई से किस तरह 5 पेट पल सकते थे?
मालती अच्छी तरह जानती थी कि वह अपनी बेटी की जवानी को किसी तरह भी इनसानी भेडि़यों के जबड़ों से नहीं बचा सकती थी. न घर में, न बाहर… फिर भी उस ने पूजा को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटी, अगर तू मेरी बात समझ सकती है तो ठीक से सुन… हम गरीब लोग हैं, हमारे जिस्म को भोगने के लिए यह अमीर लोग हमेशा घात लगाए रहते हैं. इस के लिए वे तमाम तरह के लालच देते हैं. हम लालच में आ कर फंस जाते हैं और उन को अपना बदन सौंप देते हैं.
‘‘गरीबी हमारी मजबूरी है तो लालच हमारा शाप. इस की वजह से हम दुख और तकलीफें उठाते हैं.
‘‘हम गरीबों के पास इज्जत के नाम पर कुछ नहीं होता. अगर मैं तुझे काम पर न भेजूं और घर पर ही रखूं तब भी तो खतरा टल नहीं सकता. चाल में भी तो आवाराटपोरी लड़के घूमते रहते हैं.
‘‘अमीरों से तो मैं तुझे बचा लूंगी. पर इस खोली में रह कर इन गली के आवारा कुत्तों से तू नहीं बच पाएगी. खतरा सब जगह है. बता, तुझे दुनिया की गंदी नजरों से बचाने के लिए मैं क्या करूं?’’ और वह जोर से रोने लगी.
पूजा ने अपने आंसुओं को पोंछ लिया और मां का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मां, तुम चिंता मत करो. अब मैं किसी की बातों में नहीं आऊंगी. किसी का दिया हुआ कुछ नहीं लूंगी. केवल अपने काम से काम रखूंगी.
‘‘हां, कल से मैं कांबले के घर काम करने नहीं जाऊंगी. कोई और घर पकड़ लूंगी.’’
‘‘देख, हमारे पास कुछ नहीं है, पर समझदारी ही हमारी तकलीफों को कुछ हद तक कम कर सकती है. अब तू सयानी हो रही है. मेरी बात समझ गई है. मुझे यकीन है कि अब तू किसी के बहकावे में नहीं आएगी.’’
पूजा ने मन ही मन सोचा, ‘हां, मैं अब समझदार हो गई हूं.’
मालती अच्छी तरह जानती थी कि ये केवल दिलासा देने वाली बातें थीं और पूजा भी इतना तो जानती थी कि अभी तो वह जवानी की तरफ कदम बढ़ा रही थी. पता नहीं, आगे क्या होगा? बरसात का पानी और लड़की की जवानी कब बहक जाए और कब किधर से किधर निकल जाए, किसी को पता नहीं चलता.
पूजा अभी छोटी थी. जवानी तक आतेआते न जाने कितने रास्तों से उसे गुजरना पड़ेगा… ऐसे रास्तों से जहां बाढ़ का पानी भरा हुआ है और वह अपनी पूरी होशियारी और सावधानी के साथ भी न जाने कब किस गड्ढे में गिर जाए.
वे दोनों ही जानती थीं कि जो वे सोच रही थीं, वही सच नहीं था या जैसा वे चाह रही हैं, उसी के मुताबिक जिंदगी चलती रहेगी, ऐसा भी नहीं होने वाला था.
दिन बीतते रहे. मालती अपनी बेटी की तरफ से होशियार थी, उस की एकएक हरकत पर नजर रखती. उन दोनों के बीच में बात करने का सिलसिला कम था, पर बिना बोले ही वे दोनों एकदूसरे की भावनाओं को जानने और समझने की कोशिश करतीं.
पर जैसेजैसे बेटी बड़ी हो रही थी, वह और ज्यादा समझदार होती जा रही थी. अब वह बड़े सलीके से रहने लगी थी और उसे अपने भावों को छिपाना भी आ गया था.
इधर काफी दिनों से पूजा के रंगढंग में काफी बदलाव आ गया था. वह अपने बननेसंवरने में ज्यादा ध्यान देती, पर इस के साथ ही उस में एक अजीब गंभीरता भी आ गई थी. ऐसा लगता था, जैसे वह किन्हीं विचारों में खोई रहती हो. घर के काम में मन नहीं लगता था.
मालती ने एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘बेटी, मुझे डर लग रहा है. कहीं तेरे साथ कुछ हो तो नहीं गया?’’
पूजा जैसे सोते हुए चौंक गई हो, ‘‘क्या… क्या… नहीं तो…’’
‘‘मतलब, कुछ न कुछ तो है,’’ उस ने बेटी के सिर पर हाथ रख कर कहा.
पूजा के मुंह से बोल न फूटे. उस ने अपना सिर झुका लिया. मालती समझ गई, ‘‘अब कुछ बताने की जरूरत नहीं है. मैं सब समझ गई हूं, पर एक बात तू बता, जिस से तू प्यार करती है, वह तेरे साथ शादी करेगा?’’
पूजा की आंखों में एक अनजाना सा डर तैर गया. उस ने फटी आंखों से अपनी मां को देखा. मालती उस की आंखों में फैले डर को देख कर खुद सहम गई. उसे लगा, कहीं न कहीं कोई बड़ी गड़बड़ है.
डरतेडरते मालती ने पूछा, ‘‘कहीं तू पेट से तो नहीं है?’’
पूजा ने ऐसे सिर हिलाया, जैसे जबरदस्ती कोई पकड़ कर उस का सिर हिला रहा हो. अब आगे कहने के लिए क्या बचा था.
मालती ने अपना माथा पीट लिया. न वह चीख सकती थी, न रो सकती थी, न बेटी को मार सकती थी. उस की बेबसी ऐसी थी, जिसे वह किसी से कह भी नहीं सकती थी.
जो मालती नहीं चाहती थी, वही हुआ. उस की जिंदगी में जो हो चुका था उसी से बेटी को आगाह किया था. ध्यान रखती थी कि बेटी नरक में न गिर जाए. बेटी ने भी उसे भरोसा दिया था कि वह कोई गलत कदम नहीं उठाएगी, पर जवानी की आग को दबा कर रख पाना शायद उस के लिए मुमकिन नहीं था.
मरी हुई आवाज में उस ने बस इतना ही पूछा, ‘‘किस का है यह पाप…?’’
पूजा ने पहले तो नहीं बताया, जैसा कि आमतौर पर लड़कियों के साथ होता है. जवानी में किए गए पाप को वे छिपा नहीं पातीं, पर अपने प्रेमी का नाम छिपाने की कोशिश जरूर करती हैं. हालांकि इस में भी वे कामयाब नहीं होती हैं, मांबाप किसी न किसी तरीके से पूछ ही लेते हैं.
पूजा ने जब उस का नाम बताया, तो मालती को यकीन नहीं हुआ. उस ने चीख कर पूछा, ‘‘तू तो कह रही थी कि कांबले के यहां काम छोड़ देगी?’’
‘‘मां, मैं ने तुम से झूठ बोला था. मैं ने उस के यहां काम करना नहीं छोड़ा था. मैं उस की मीठीमीठी और प्यारी बातों में पूरी तरह भटक गई थी. मैं किसी और घर में भी काम नहीं करती थी, केवल उसी के घर जाती थी.
‘‘वह मुझे खूब पैसे देता था, जो मैं तुम्हें ला कर देती थी कि मैं दूसरे घरों में काम कर के ला रही हूं, ताकि तुम्हें शक न हो.’’
‘‘फिर तू सारा दिन उस के साथ रहती थी?’’
पूजा ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. ‘‘मरी, हैजा हो आए, तू जवानी की आग बुझाने के लिए इतना गिर गई. अरे, मेरी बात समझ जाती और तू उस के यहां काम छोड़ कर दूसरों के घरों में काम करती रहती, तो शायद किसी को ऐसा मौका नहीं मिलता कि कोई तेरे बदन से खिलवाड़ कर के तुझे लूट ले जाता. काम में मन लगा रहता है, तो इस काम की तरफ लड़की का ध्यान कम जाता है. पर तू तो बड़ी शातिर निकली… मुझ से ही झूठ बोल गई.’’
पूजा अपनी मां के पैरों पर गिर पड़ी और सिसकसिसक कर रोने लगी, ‘‘मां, मैं तुम्हारी गुनाहगार हूं, मुझे माफ कर दो. एक बार, बस एक बार… मुझे इस पाप से बचा लो.’’
मालती गुस्से में बोली, ‘‘जा न उसी के पास, वह कुछ न कुछ करेगा. उस को ले कर डाक्टर के पास जा और अपने पेट के पाप को गिरवा कर आ…’’
‘‘मां, उस ने मना कर दिया है. उस ने कहा है कि वह पैसे दे देगा, पर डाक्टर के पास नहीं जाएगा. समाज में उस की इज्जत है, कहीं किसी को पता चल गया तो क्या होगा, इस बात से वह डरता है.’’
‘‘वाह री इज्जत… एक कुंआरी लड़की की इज्जत से खेलते हुए इन की इज्जत कहां चली जाती है? मैं क्या करूं, कहां मर जाऊं, कुछ समझ में नहीं आता,’’ मालती बोली.
मालती ने गुस्से और नफरत के बावजूद भी पूजा को परे नहीं किया, उसे दुत्कारा नहीं. बस, गले से लगा लिया और रोने लगी. पूजा भी रोती जा रही थी.
दोनों के दर्द को समझने वाला वहां कोई नहीं था… उन्हें खुद ही हालात से निबटना था और उस के नतीजों को झेलना था.
मन थोड़ा शांत हुआ, तो मालती उठी और कपड़ेलत्ते व दूसरा जरूरी सामान समेट कर फटेपुराने बैग में भरने लगी. बेटी ने उसे हैरानी से देखा. मां ने उस की तरफ देखे बिना कहा, ‘‘तू भी तैयार हो जा और बच्चों को तैयार कर ले. गांव चलना है. यहां तो तेरा कुछ हो नहीं सकता. इस पाप से छुटकारा पाना है. इस के बाद गांव में रह कर ही किसी लड़के से तेरा ब्याह कर देंगे.’’
वह एक ऐसे मर्द द्वारा लुट रही थी, जो उस से उम्र में दोगुनातिगुना ही नहीं, बाप की उम्र से भी बड़ा था, पर औरतमर्द के रिश्ते में उम्र बेमानी हो जाती है और कभीकभी तो रिश्ते भी बदनाम हो जाते हैं.
तब मालती भी अपनी बेटी की तरह दुबलीपतली सांवली सी थी. आज जब वह पूजा को गौर से देखती है, तो लगता है जैसे वही पूजा के रूप में खड़ी है.
मालती बिलकुल उस का ही दूसरा रूप थी. जब वह अपनी बेटी की उम्र की थी, तब चोगले साहब के घर में काम करती थी. वह शादीशुदा था, 2 बच्चों का बाप, पर एक नंबर का लंपट… उस की नजरें हमेशा मालती के इर्दगिर्द नाचती रहती थीं.
चोगले की बीवी किसी स्कूल में पढ़ाती थी, सो वह सुबह जल्दी निकल जाती थी. साथ में उस के बच्चे भी चले जाते थे. बीवी और बच्चों के जाने के बाद मालती उस घर में काम करने जाती थी.
चोगले तब घर में अकेला होता था. पहले तो काफी दिनों तक उस ने मालती की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और कभी कोई ऐसी बात नहीं कही, जिस से लगे कि वह उस के बदन का भूखा था.
शायद वह उसे बच्ची समझता था. वह काम करती रहती थी और काम खत्म होने के बाद चुपचाप घर चली आती थी.
पर जब उस ने 13वें साल में कदम रखा और उस के सीने में कुछ नुकीला सा उभार आने लगा, तो अचानक ही एक दिन चोगले की नजर उस के शरीर पर पड़ गई. वह मैलेकुचैले कपड़ों में रहती थी.
झाड़ूपोंछा करने वाली लड़की और कैसे रह सकती थी. कपड़े धोने के बाद तो वह खुद गीली हो जाती थी और तब बिना अंदरूनी कपड़ों के उस के बदन के अंग शीशे की तरह चमकने लगते थे.
ऐसे मौके पर चोगले की नजरों में एक प्यास उभर आती और उस के पास आ कर पूछता था, ‘‘मालती, तुम तो गीली हो गई हो, भीग गई हो. पंखे के नीचे बैठ कर कपड़े सुखा लो,’’ और वह पंखा चला देता.
मालती बैठती नहीं खड़ेखड़े ही अपने कपड़े सुखाती. चोगले उस के बिलकुल पास आ कर सट कर खड़ा हो जाता और अपने बदन से उसे ढकता हुआ कहता, ‘‘तुम्हारे कपड़े तो बिलकुल पुराने हो गए हैं.’’
‘‘जी…’’ वह संकोच से कहती.
‘‘अब तो तुम्हें कुछ और कपड़ों की भी जरूरत पड़ती होगी?’’ मालती उस का मतलब नहीं समझती. बस, वह उस को देखती रहती.
वह एक कुटिल हंसी हंस कर कहता, ‘‘संकोच मत करना, मैं तुम्हारे लिए नए कपड़े ला दूंगा. वे वाले भी…’’
मालती की समझ में फिर भी नहीं आता. वह अबोध भाव से पूछती, ‘‘कौन से कपड़े…’’
चोगले उस के कंधे पर हाथ रख कर कहता, ‘‘देखो, अब तुम छोटी नहीं रही, बड़ी और समझदार हो रही हो. ये जो कपड़े तुम ने ऊपर से पहन रखे हैं, इन के नीचे पहनने के लिए भी तुम्हें कुछ और कपड़ों की जरूरत पड़ेगी, शायद जल्दी ही…’’ कहतेकहते उस का हाथ उस की गरदन से हो कर मालती के सीने की तरफ बढ़ता और वह शर्म और संकोच से सिमट जाती. इतनी समझदार तो वह हो ही गई थी.
चोगले की मेहनत रंग लाई. धीरेधीरे उस ने मालती को अपने रंग में रंगना शुरू कर दिया.
चोगले की मीठीमीठी बातों और लालच में मालती बहुत जल्दी फंस गई. घर का सूनापन भी चोगले की मदद कर रहा था और मालती की चढ़ती हुई जवानी. उस की मासूमियत और भोलेपन ने ऐसा गुल खिलाया कि मालती जवानी के पहले ही प्यार के सारे रंगों से वाकिफ हो गई थी.
तब मालती की मां ने उस में होने वाले बदलाव के प्रति उसे सावधान नहीं किया था, न उसे दुनियादारी समझाई थी, न मर्द के वेष में छिपे भेडि़यों के बारे में उसे किसी ने कुछ बताया था.
भेद तब खुला था जब उस का पेट बढ़ने लगा. सब से पहले उस की मां को पता चला था. वह उलटियां करती तो मां को शक होता, पर वह इतनी छोटी थी कि मां को अपने शक पर भी यकीन नहीं होता था. यकीन तो तब हुआ जब उस का पेट तन कर बड़ा हो गया.
मां ने मारपीट कर पूछा, तब बड़ी मुश्किल से उस ने चोगले का नाम बताया. बड़े लोगों की करतूत सामने आई, पर तब चोगले ने भी उस की मदद नहीं की थी और दुत्कार कर उसे अपने घर से भगा दिया था. बाद में एक नर्सिंगहोम में ले जा कर मां ने उस का पेट गिरवाया था.
अपना बुरा समय याद कर के मालती रो पड़ी. डर से उस का दिल कांप उठा. क्या समय उस की बेटी के साथ भी वही खिलवाड़ करने जा रहा था, जो उस के साथ हुआ था? गरीब लड़कियों के साथ ही ऐसा क्यों होता है कि वे अपना बचपन भी ठीक से नहीं बिता पातीं और जवानी के तमाम कहर उन के ऊपर टूट पड़ते हैं?
मालती ने अपनी बेटी पूजा को गले से लगा लिया. जोकुछ उस के साथ हुआ था, वह अपनी बेटी के साथ नहीं होने देगी. अपनी जवानी में तो उस ने बदनामी का दाग झेला था, मांबाप को परेशानियां दी थीं. यह तो केवल वह या उस के मांबाप ही जानते थे कि किस तरह उस का पेट गिरवाया गया था. किस तरह गांव जा कर उस की शादी की गई थी. फिर कई साल बाद कैसे वह अपने मर्द के साथ वापस मुंबई आई थी और अपने मांबाप के बगल की खोली में किराए पर रहने लगी थी.
आज उस का मर्द इस दुनिया में नहीं था. 4 बच्चे उस की और उस की बड़ी बेटी की कमाई पर जिंदा थे. पूजा के बाद 3 बेटे हुए थे, पर तीनों अभी बहुत छोटे थे. पिछले साल तक उस का मर्द फैक्टरी में हुए एक हादसे में जाता रहा.
पति की मौत के बाद ही मालती ने अपनी बेटी को घरों में काम करने के लिए भेजना शुरू किया था. उसे क्या पता था कि जो कुछ उस के साथ हुआ था, एक दिन उस की बेटी के साथ भी होगा.
जमाना बदल जाता है, लोग बदल जाते हैं, पर उन के चेहरे और चरित्र कभी नहीं बदलते. कल चोगले था, तो आज कांबले… कल कोई और आ जाएगा. औरत के जिस्म के भूखे भेडि़यों की इस दुनिया में कहां कमी थी. असली शेर और भेडि़ए धीरेधीरे इस दुनिया से खत्म होते जा रहे थे, पर इनसानी शेर और भेडि़ए दोगुनी तादाद में पैदा होते जा रहे थे.
अब्बू और अम्मी के राज में भी सभी तरह की बातें करते थे, पर कभी मन की बात नहीं कर सके. वैसे भी बाप के होटल में गुजारा करने वालों की कोई सुनता नहीं. जवानी फूटी तो बगल और नाक के नीचे वाले हिस्सों में छोटेछोटे बाल उगने शुरू हुए, तो स्कूल और कालेज की लड़की सहपाठी से ईलू टाइप मन की बात कहने की इच्छा बलवती हुई, पर बेरोजगारों की जब ऊपर वाला नहीं सुनता तो लड़की सहपाठी क्या खाक सुनेगी. यह विचार मन में आते ही जुम्मन चचा के मन के उपवन में मन की बात दफन हो कर रह गई.
डिगरी हासिल होने पर घर वालों से यूपीएससी की तैयारी करने की मन की बात शेयर करना चाहते थे, कम आमदनी वाले पिता सुलेमान दर्जी के सामने मन की मरजी वाली अर्जी दायर नहीं कर पाए. नतीजतन, सरकारी दफ्तर में चपरासी बन कर रह गए.
आप को पता ही है कि मुलाजिम से अफसर तक सब की सुनने वाले की बात भला कोई सुनता है क्या?
हालत और हालात के चलते बातों की खेती करने वाले जुम्मन चचा के अंदर का हुनर मरने सा लगा. नौकरी लगी नहीं कि निकाह के लिए रिश्ते आने शुरू हो गए.
पतली, कमसिन और हसीन बेगम की इच्छा पालने वाले जुम्मन मियां शर्म और हया के चलते इस बार भी घर वालों से मन की बात कह सकने में नाकाम रहे. नतीजतन, भारीभरकम दहेज के साथ पौने 3 गुना भारीभरकम वजन वाली बेगम से उन का कबूलनामा पढ़वा दिया गया.
निकाह के बाद मन की बात करना तो दूर मन की बात सोचना भी चचा जुम्मन के लिए दूभर हो गया. दफ्तर और घरेलू कामों की दोहरी जिम्मेदारी जो मिल गई थी. पिछले 22 साल से जुम्मन की घरगृहस्थी में एमन बेगम की बात ही कही, सुनी और मानी जाने लगी.
एक दिन की बात है. चचा जुम्मन सूजे हुए चेहरे के साथ लंगड़ाते हुए ‘अल्प संसद’ के उपनाम से मशहूर असलम की चाय दुकान पर पहुंचे. ढुलमुल अर्थव्यवस्था की तरह चचा की अवस्था को देख कर ‘कब, कहां, कैसे’ के संबोधन के साथ मुफ्त का अखबार पढ़ने और चाय की चुसकी के बीच खबरों का स्थानीय पोस्टमार्टम करने वाले बुद्धिजीवी पूछ बैठे, ‘‘अरे, यह क्या हो गया चचाजान?’’
जुम्मन चचा ने गहरी सांस लेते हुए जवाब दिया, ‘‘अब क्या बताऊं भाई, कल दोपहर में तुम्हारी चाचीजान के लिए चाय बनाई थी…’’
‘‘तो क्या चाय सही नहीं बनने के चलते चाची ने खातिरदारी कर डाली?’’ भीड़ में से किसी ने चुटकी ली.
जुम्मन चचा खीजते हुए बोले, ‘‘बिना बात के बेतिया मत बनो यार. पूरी बात सुनते नहीं कि लहेरिया सराय बन बीच में लहराने लगते हो.’’
‘‘मोकामा की तरह मौन हो कर चुपचाप सुन नहीं सकते क्या भाई…’’ मामले की गंभीरता देखते हुए असलम चाय वाले ने अपनी बात रखी.
असलम की बात सुन कर सभी खामोशी से जुम्मन चचा की ओर मुखातिब हुए.
‘‘हां तो मैं बची हुई चाय को सुड़क रहा था कि घर की दीवार पर टंगे ससुराल से मदद से मिले 24 इंच वाले एलईडी पर अचानक छप्पन इंच वाले सज्जन प्रकट हो गए यानी न्यूज चैनल पर संयुक्त राष्ट्र में पीएम के मन की बात का लाइव प्रसारण होने लगा.
‘‘कार्यक्रम देख कर मेरे मन के अंदर भी कई बातें एकसाथ उफान मारने लगीं. यह सोच कर मेरा मन मुझे धिक्कारने लगा कि एक हमारे पीएम साहब हैं, जो संयुक्त राष्ट्र से अपने मन की बात कर रहे हैं. और एक मैं हूं, जो खुद के घर में भी मन बात नहीं कर सकता. कार्यक्रम देखते हुए मुझे प्रेरणा और हौसले का बूस्टर डोज मिला.
‘‘चाय की आखिरी चुसकी के साथ मन ही मन प्रण किया कि आज मैं भी हर हाल में मन की बात कह कर रहूंगा. फिर क्या, टीवी बंद कर बेगम के सामने मैं मन की बात करने लगा. उस के 22 साल के इमोशनल अत्याचार और ससुराल वालों की दखलअंदाजी वाली ट्रैजिडी पर खुल कर मन की बात कहने लगा.
‘‘अभी मेरे मन की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि तुम्हारी चाची ने जम कर मेरी सुताई कर दी… कल दोबारा मुझे घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ा…’’
चाय के गिलास से निकल रही भाप को चेहरे के सूजन क्षेत्र की ओर ले जाते हुए जुम्मन चचा ने अपना पूरा दर्द सुनाया.
‘ओह…’ एकसाथ हमदर्दी के कई स्वर चाय दुकान पर गूंज उठे.
‘‘लेकिन भाई, कल का कार्यक्रम देख कर मुझे एक बात की सीख जरूर मिल गई… यही कि पीएम की नकल नहीं करनी चाहिए…’’ जुम्मन चचा की बात पूरी होने से पहले ही बैंच पर बैठे उस्मान ने जोश में आ कर अपनी बात कही.
‘‘अरे नहीं मियां…’’ लंबी सांस लेते हुए जुम्मन चचा बोले, ‘‘अगर बेगम साथ न हो, तो बंदा संयुक्त राष्ट्र में भी मन की बात कर सकता है और अगर बेगम साथ हो, तो घर के अंदर भी मन की बात करना मयस्सर नहीं…’’
मालती काम से लौटी थी… थकीमांदी. कुछ देर लेट कर आराम करने का मन कर रहा था, पर उस की जिंदगी में आराम नाम का शब्द नहीं था. छोटा वाला बेटा भूखाप्यासा था. वह 2 साल का हो गया था, पर अभी तक उस का दूध पीता था.
मालती के खोली में घुसते ही वह उस के पैरों से लिपट गया. उस ने उसे अपनी गोद में उठा कर खड़ेखड़े ही छाती से लगा लिया. फिर बैठ कर वह उसे दूध पिलाने लगी थी.
सुबह मालती उसे खोली में छोड़ कर जाती थी. अपने 2 बड़े भाइयों के साथ खोली के अंदर या बाहर खेलता रहता था. तब भाइयों के साथ खेल में मस्त रहने से न तो उसे भूख लगती थी, न मां की याद आती थी.
दोपहर के बाद जब मालती काम से थकीमांदी घर लौटती, तो छोटे को अचानक ही भूख लग जाती थी और वह भी अपनी भूखप्यास की परवाह किए बिना या किसी और काम को हाथ लगाए बेटे को अपनी छाती का दूध पिलाने लगती थी.
तभी मालती की बड़ी लड़की पूजा काम से लौट कर घर आई. पूजा सहमते कदमों से खोली के अंदर घुसी थी. मां ने तब भी ध्यान नहीं दिया था. पूजा जैसे कोई चोरी कर रही थी. खोली के एक किनारे गई और हाथ में पकड़ी पोटली को कोने में रखी अलमारी के पीछे छिपा दिया.
मां ने छोटू को अपनी छाती से अलग किया और उठने को हुई, तभी उस की नजर बेटी की तरफ उठी और उसे ने पूजा को अलमारी के पीछे थैली रखते हुए देख लिया.
मालती ने सहज भाव से पूछा, ‘‘क्या छिपा रही है तू वहां?’’
पूजा चौंक गई और असहज आवाज में बोली, ‘‘कुछ नहीं मां.’’
मालती को लगा कि कुछ तो गड़बड़ है वरना पूजा इस तरह क्यों घबराती.
मालती अपनी बेटी के पास गई और उस की आंखों में आंखें डाल कर बोली, ‘‘क्या है? तू इतनी घबराई हुई क्यों है? और यहां क्या छिपाया है?’’
‘‘कुछ नहीं मां, कुछ नहीं…’’ पूजा की घबराहट और ज्यादा तेज हो गई. वह अलमारी से सट कर इस तरह खड़ी हो गई कि मालती पीछे न देख सके.
मालती ने जोर से पकड़ कर उसे परे धकेला और तेजी से अलमारी के पीछे रखी पोटली उठा ली.
हड़बड़ाहट में मालती ने पोटली को खोला. पोटली का सामान अंदर से सांप की तरह फन काढ़े उसे डरा रहे थे… ब्रा, पैंटी, लिपस्टिक, क्रीम, पाउडर और तेल की शीशी…
मालती ने फिर अचकचा कर अपनी बेटी पूजा को गौर से देखा… उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. उस की बेटी जवान तो नहीं हुई थी, पर जवानी की दहलीज पर कदम रखने के लिए बेचैन हो रही थी.
मालती का दिल बेचैन हो गया. गरीबी में एक और मुसीबत… बेटी की जवानी सचमुच मांबाप के लिए एक मुसीबत बन कर ही आती है खासकर उस गरीब की बेटी की, जिस का बाप जिंदा न हो. मालती की सांसें कुछ ठीक हुईं, तो बेटी से पूछा, ‘‘किस ने दिया यह सामान तुझे?’’
मां की आवाज में कोई गुस्सा नहीं था, बल्कि एक हताशा और बेचारगी भरी हुई थी.
पूजा को अपनी मां के ऊपर तरस आ गया. वह बहुत छोटी थी और अभी इतनी बड़ी या जवान नहीं हुई थी कि दुनिया की सारी तकलीफों के बारे में जान सके. फिर भी वह इतना समझ गई थी कि उस ने कुछ गलत किया था, जिस के चलते मां को इस तरह रोना पड़ रहा था. वह भी रोने लगी और मां के पास बैठ गई.
बेटी की रुलाई पर मालती थोड़ा संभली और उस ने अपने ममता भरे हाथ बेटी के सिर पर रख दिए.
दोनों का दर्द एक था, दोनों ही औरतें थीं और औरतों का दुख साझा होता है. भले ही, दोनों आपस में मांबेटी थीं, पर वे दोनों एकदूसरे के दर्द से न केवल वाकिफ थीं, बल्कि उसे महसूस भी कर रही थीं.
पूजा की सिसकियां कुछ थमीं, तो उस ने बताया, ‘‘मां, मैं ले नहीं रही थी, पर उस ने मुझे जबरदस्ती दिया.’’
‘‘किस ने…?’’ मालती ने बेचैनी से पूछा.
‘‘गोकुल सोसाइटी के 401 नंबर वाले साहब ने…’’
‘‘कांबले ने?’’ मालती ने हैरानी से पूछा.
‘‘हां… मां, वह मुझ से रोज गंदीगंदी बातें करता है. मैं कुछ नहीं बोलती तो मुझे पकड़ कर चूम लेता है,’’ पूजा जैसे अपनी सफाई दे रही थी.
मालती ने गौर से पूजा को देखा. वह दुबलेपतले बदन की सांवले रंग की लड़की थी, कुल जमा 13 साल की… बदन में ऐसे अभी कोई उभार नहीं आए थे कि किसी मर्द की नजरें उस पर गड़ जाएं.
हाय रे जमाना… छोटीछोटी बच्चियां भी मर्दों की नजरों से महफूज नहीं हैं. पलक झपकते ही उन की हैवानियत और हवस की भूख का शिकार हो जाती हैं.
मालती को अपने दिन याद आ गए… बहुत कड़वे दिन. वह भी तब कितनी छोटी और भोली थी. उस के इसी भोलेपन का फायदा तो एक मर्द ने उठाया था और वह समझ नहीं पाई थी कि वह लुट रही थी, प्यार के नाम पर… पर प्यार कहां था वह… वह तो वासना का एक गंदा खेल था.
इस खेल में मालती अपनी पूरी मासूमियत के साथ शामिल हो गई थी. नासमझ उम्र का वह ऐसा खेल था, जिस में एक मर्द उस के अधपके बदन को लूट रहा था और वह समझ रही थी कि वह मर्दऔरत का प्यार था.
डाक्टर निकुंज अपनी कुरसी पर बैठे थे. वे एक विदेशी पत्रिका देखने में मग्न थे. तभी ‘चीरघर’ का जमादार काशीराम ‘नमस्ते साहब’ कह कर उन के पास आ खड़ा हुआ.
डाक्टर साहब ने सिर हिला कर उसके नमस्ते का जवाब दिया और बगैर नजर उठाए ही पूछा, ‘‘कोई तगड़ा पैसे वाला मरा है काशी?’’
काशीराम पान मसाले की पीक को गटकते हुए बोला, ‘‘कहां साहब, लगता है कि आज का दिन तो कल से भी ज्यादा खराब जाएगा.’’
‘‘तो फिर?’’ डाक्टर ने तीखी नजरों से काशीराम को देखा.
‘‘वही साहब, कल वाली लाशें… बुड्ढा मगज खाए जा रहा है मेरा.’’
‘‘कुछ ढीली की मुट्ठी उस ने?’’
‘‘साहब, वह वाकई बहुत गरीब है. आदमी बहुत लाचारी में खुदकुशी करता है. उस ने फूल सी बेटियों को जहर देने से पहले अपने दिल को कितना मजबूत किया होगा.’’
‘‘बड़ी सिफारिश कर रहा है उस की. कहीं अकेलेअकेले तो जेब नहीं गरम कर ली?’’
‘‘अपनी कसम साहब, जो मैं ने उस की एक बीड़ी भी पी हो. उलटे जब से अखबार से उस का सारा हाल जाना है, हर पल ‘हाय’ लगने का डर लगता है.’’
होंठों पर मतलबी मुसकान ला कर डाक्टर साहब बोले, ‘‘कैसा सिर चढ़ कर बोल रहा है जाति प्रेम.’’
‘‘जाति? नहीं साहब, वे तो ऊंची जाति के लोग हैं.’’
‘‘दुनिया में सिर्फ 2 ही जातियां होती हैं बेवकूफ, अमीर और गरीब. इसीलिए तुम्हारा दिल पिघल रहा है… लेकिन, मैं तुम्हारी भी सिफारिश नहीं मानूंगा.
‘‘मैं ने आज तक ‘सुविधा शुल्क’ वसूल किए बिना कोई भी पोस्टमार्टम नहीं किया और न ही आज करूंगा, चाहे मुरदा हफ्तेभर वैसे ही पड़ा रहे.’’
‘‘देखता हूं साहब, फिर बात कर के… बुड्ढा बाहर ही खड़ा है.’’
काशीराम बाहर निकल आया. बरामदे के गमले से सट कर खड़े धरम सिंह ने उस की ओर आशाभरी नजरों से देखा, तो वह न में सिर हिलाता हुआ बोला, ‘‘डाक्टर नहीं मानता ठाकुर. कहता है, बिना पैसा लिए उस ने कभी पोस्टमार्टम नहीं किया, न आगे करेगा.’’
‘‘अगर ‘पैसे’ की कसम ही खाए हैं, तो भैया बात कर के देखो, सौ 2 सौ…’’
‘‘सौ 2 सौ… क्या बात करते हो ठाकुर? 5 सौ रुपए का रोज धुआं उड़ाता है. हजार तो कम से कम लेता है… तुम्हारी तो 3 लाशें हैं.’’
धरम सिंह आह भर कर बोला, ‘‘ठीक है, तुम एक बार पूछ कर आओ कि कितना लेगा. खड़ी फसल बेच दूंगा आढ़ती को. मर नहीं जाऊंगा.
‘‘अरे, सरकार ने जमींदारी छीन ली तब नहीं मरा, फिर सीलिंग लगा दी तब नहीं मरा, जमुना मैया घरखेत लील गईं तब नहीं मरा, बुढ़ापे में दिल के टुकड़े चले गए तब भी मौत नहीं आई, तो अब फसल जाने से क्या मौत आ जाएगी?’’
‘‘मेरी चलती तो तुम पर एक रुपया न लगने देता. पर मजबूर हूं… क्योंकि आज के साहबों में दिल नहीं…’’
‘‘नहीं भाई, मैं तुम्हें कहां दोष दे रहा हूं, तुम जा कर पूछ तो आओ.’’
काशीराम चुपचाप डाक्टर के कमरे में घुस गया.
डाक्टर ने उसे देख कर पूछा, ‘‘बुड्ढा कितने पर राजी हुआ?’’
‘‘हजार से ज्यादा नहीं निकाला जा सकेगा साहब… वह भी खड़ी फसल औनेपौने में बेचेगा, तब जा कर पैसे का जुगाड़ होगा.’’
‘‘ठीक है, भागते भूत की लंगोटी भली… तुम्हारा कमीशन अलग होगा.’’
‘‘आप ही रखना साहब. उस का पैसा मु?ो तो हजम नहीं होगा.’’
‘‘बेवकूफ कहीं का, नहीं होगा… यह तो दुनिया का नियम है कि एक मरता है, तो दूसरा अपनी जेब भरता है… जाओ, जा कर देखो, शायद कोई पैसे वाला पोस्टमार्टम के लिए आया हो.’’
काशीराम से एक हजार की बात सुन कर धरम सिंह थके कदमों से अपने आढ़ती के यहां चल पड़ा.
कुछ देर बाद डाक्टर निकुंज के कमरे के बाहर एक बड़ीबड़ी मूंछों वाला आदमी आया और उस ने अंदर आने की इजाजत मांगी.
डाक्टर साहब से अंदर आने का संकेत पाते ही वह अंदर घुस गया.
‘‘बैठिए,’’ डाक्टर साहब ने उस के हावभाव को देखते हुए सामने की कुरसी की ओर इशारा किया.
वह आदमी कुरसी पर बैठ गया, पर कुछ बोल न सका. डाक्टर साहब ने उसे पहले तो नजरभर टटोला, फिर कहा, ‘‘कहिए…’’
‘‘साहब, पोस्टमार्टम के लिए अभी एक लाश आएगी.’’
‘‘आप… किस पक्ष से हैं?’’
‘‘बचाव पक्ष से.’’
‘‘क्या चाहते हैं?’’
‘‘राइफल की गोली बंदूक के छर्रों में बदल जाए.’’
‘‘जानते हैं आप कि यह कितना खतरनाक काम है?’’
‘‘खतरनाक काम की ही तो कीमत है,’’ उस आदमी ने जेब से 10 हजार की 2 गड्डियां निकालीं.
‘‘नहीं, 50 से कम नहीं.’’
‘‘तब लाश पर एक ही फायर दिखना चाहिए, जबकि घुटने, हाथ और छाती पर कुल 3 घाव हैं.’’
‘‘ठीक है. काम हो जाएगा.’’
उस आदमी ने 40 हजार रुपए गिन कर डाक्टर को दे दिए और मूंछों पर ताव देता हुआ बाहर निकल गया.
पोस्टमार्टम करते समय डाक्टर निकुंज और काशीराम की जेबों में जो गरमी थी, उस की वजह से उन दोनों के हाथ बड़ी तेजी से चले, इसलिए चारों पोस्टमार्टम एक घंटे में ही निबट गए.
डाक्टर साहब बाकी बचे कामों को अपने जूनियर को सौंप कर अपनी गाड़ी की ओर चल दिए, क्योंकि आज उन के हाथ में बीवीबच्चों की फरमाइशें पूरी करने के लिए मुफ्त में मिला पैसा था.
बीवी के लिए स्लिपर, बेटी के लिए मोतियों का हार, बेटे के लिए कैमरा खरीद कर जब डाक्टर निकुंज अपने घर पहुंचे, तो वहां माली के अलावा कोई और न था.
माली ने बताया कि मेमसाहब आज देर से लौटेंगी और जिम्मी बाबा व बिन्नी बेटी अभी कालेज से नहीं आए.
डाक्टर निकुंज ने घड़ी देखी. दोनों के कालेज छूटे डेढ़ घंटा हो चुका था. कुछ देर सोचने के बाद डाक्टर ने माली से गाड़ी में रखे उपहारों को निकाल लाने के लिए कहा.
अचानक उन्हें एक विचार सूझ कि क्यों न जिन के उपहार हैं, उन के कमरे में रख दिए जाएं. उन की आंखों में शरारती बच्चों जैसी चमक उभरी और वे बड़ा वाला पैकेट उठा कर पत्नी की कपड़ों वाली अलमारी खोल बैठे.
पैकेट भीतर रख कर वे अभी अलमारी बंद कर ही रहे थे कि किसी कपड़े से फिसल कर एक परचा उन के पैरों के पास आ कर गिरा. उन्होंने वह परचा उठा लिया. परचे पर लिखा था:
‘नंदिताजी,
‘कई घंटों से आप का फोन नंबर मिला रहा हूं, मिल ही नहीं रहा. हार कर एक पालतू आप के पास भेज रहा हूं. खबर यह है कि जिस के बारे में मैं ने आप को पहले भी बताया था, वे आज इसी शहर में रात में रुकने वाले हैं. एमएलए का टिकट उन्हीं के हाथों में है. बाकी आप खुद सम?ादार हैं.
‘श्यामलाल.’
‘‘तो अब नेतागीरी चमकाने के लिए इस दलाल की उंगलियों पर नाचा जा रहा है,’’ डाक्टर निकुंज निचला होंठ चबाते हुए बड़बड़ाए, फिर कदम घसीटते हुए बेटी के कमरे में घुस गए.
थोड़ी सी उलटपुलट के बाद ही उन के हाथ में छिपा कर रखा गया एक फोटो अलबम आ गया.
अलबम का पहला पन्ना देखते ही डाक्टर निकुंज के हाथ, जो सड़ीगली लाशों की चीरफाड़ करने में भी नहीं कांपते थे, अचानक ऐसे थक गए कि अलबम छूट कर जमीन पर जा गिरा.
अभी बेटे के कारनामों की जानकारी बाकी थी, इसलिए वे जिम्मी के कमरे में जा घुसे.
बेटे की रंगीनमिजाजी के बारे में तो वे कुछकुछ जानते थे. उन का लाड़ला नशीली चीजों का आदी हो चुका था.
अगले कई दिनों तक उस बंगले में घरेलू ?ागड़े होते रहे. आखिर में डाक्टर निकुंज की हार हुई. बीवीबच्चों ने साफ शब्दों में कह दिया कि उन लोगों को अपना भलाबुरा सोचने का हक है और इस में उन्हें किसी की दखलअंदाजी पसंद नहीं है.
अकेले पड़ चुके डाक्टर निकुंज एक दिन जिंदगी से इतने निराश हो गए कि खुदकुशी करने पर उतर आए. पर ठीक समय पर उन्हें याद आ गई वह शपथ, जो उन्होंने डाक्टरी की उपाधि लेने के समय ली थी.
उन्होंने दोनों हाथों से मुंह छिपा लिया और फूटफूट कर रो पड़े. जब मन आंसुओं से धुल कर साफ हो गया, तब उन्होंने कागजकलम उठाई और लिखने लगे:
‘अभी तक मैं इस दुनिया की बेवकूफ भरी दौड़ में अंधों की तरह दौड़ता रहा, पर अब जिंदगी की सभी सचाइयां मेरे आगे खुल चुकी हैं.
‘नंदिता, तुम सुंदर शरीर की सीढ़ी के सहारे यकीनन सत्ता की सीढि़यां चढ़ जाओगी. बिन्नी, तुम भी आखिर अपनी मां की बेटी हो न. तुम भी इसी राह पर चल कर नाम कमा सकती हो.
‘जिम्मी बेटे, जिस की मांबहनें इतनी कमाऊ हों, वह चाहे हशीश के नशे में डूब कर मर जाए, चाहे ब्राउन शुगर के नशे में. ‘तुम तीनों अब मेरी ओर से आजाद हो. तुम जो चाहो करना, केवल मेरे सामने मत पड़ना, क्योंकि मैं खुदकुशी भले न कर सका, पर तुम लोगों का खून जरूर कर दूंगा.’
कागज मेज पर छोड़ कर डाक्टर निकुंज पैदल ही बाहर निकल गए.
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