8 टिप्स: सेक्स पावर बढ़ाने की दवाइयों से रहें दूर, हो सकते हैं ये नुकसान

आप ने ऐसे कई विज्ञापन देखे होंगे जिन में सेक्स समस्याओं को खत्म करने और सेक्स पावर बढ़ाने की दवाओं के बारे में बताया जाता है. यों तो सेक्स पावर बढ़ाने का दावा कई दवा कंपनियां करती हैं, लेकिन सवाल है कि इन पर कितना विश्वास किया जाए. इस पर विचार करें. लेकिन आंखें बंद कर के भरोसा न करें. आप को ऐसे विज्ञापनों से सावधान रहने  की जरूरत है.

1.  बौडी पर बुरा प्रभाव :

ऐसी दवाएं किसी मान्यताप्राप्त लैब में नहीं, बल्कि झोलाछाप नीमहकीमों द्वारा बनाई जाती हैं, जिन्हें दवा बनाने की कोई साइंटिफिक जानकारी नहीं होती. इधरउधर, गांव के बुजुर्गों से मिले अधकचरे ज्ञान के आधार पर वे इन्हें तैयार करते हैं. दवा में किस चीज की मात्रा कितनी होनी चाहिए और कौन सी 2 चीजें एक ही दवाई में होने पर रिएैक्ट करेंगी, इस बारे में भी इन लोगों को कोई जानकारी नहीं होती है.

ये दवाएं सरकार द्वारा मान्यताप्राप्त भी नहीं होती हैं. यही वजह है कि जब इन का सेवन किया जाता है तो ये शरीर पर गलत असर डालती हैं. कई बार तो इन के सेवन से धीरेधीरे शरीर के अंग भी काम करना बंद कर देते हैं. इसलिए वही दवाएं लें जो आप की समस्या के अनुसार मान्यताप्राप्त डाक्टर द्वारा दी गई हों.

2.  डोज का सही होना जरूरी

परेशानी चाहे तन से जुड़ी हो या मन से, उस का निवारण तभी हो सकता है जब उस की काट के लिए दवा सही मात्रा में ली जाए. इस के लिए जरूरी है कि सही डाक्टर से उचित देखरेख में ही यह काम किया जाए. लेकिन झोलाछाप, ओझा आदि पैसे बनाने के लिए और अधिक से अधिक दवा की बिक्री के लिए ज्यादा डोज लेने को कहते देते हैं. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि इस से मरीज की सेहत पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा. इन चक्करों में पड़ने से बचें.

3. दवा के साइड इफैक्ट्स

कामोत्तेजना बढ़ाने वाली वियाग्रा जैसी कई दवाओं के भ्रामक विज्ञापन अखबारों की सुर्खियां बनते रहते हैं और युवा पीढ़ी इस ओर जल्द आकर्षित होती है और इन दवाओं का सेवन शुरू करती है. थोड़ा सा असर दिखने पर युवाओं को यह एक नशे के जैसा लगने लगता है और वे खुद ही इस की मात्रा बढ़ा देते हैं ताकि और मजे लिए जा सकें. मजे का तो पता  नहीं लेकिन इन दवाओं का साइड इफैक्ट होने लगते हैं और मरीज को थकान व कमजोरी जैसी समस्याएं महसूस होने लगती हैं. ऐसी कोई भी दवा लेने से बचें और अगर ले रहे हैं तो उन दवाओं के बारे में इंटरनैट पर पूरी जानकारी लें और फिर सोचविचार के बाद ही उन्हें खरीदने के बारे में सोचें.

4. अति हर चीज की बुरी

सेक्स पावर बढ़ाने जैसी कई दवाओं के विज्ञापन आएदिन छपते रहते हैं, लेकिन ये सभी सही नहीं होते हैं. सेक्स की हर व्यक्ति की अपनी इच्छा और क्षमता होती है. इसे किसी दूसरे से कंपैरिजन नहीं किया जा सकता है. इसलिए कहीं  पढ़ कर ऐसा न सोचें कि आप भी ये दवाएं खा कर हृष्टपुष्ट हो जाएंगे.

यदि अगर वास्तव में कोई दिक्कत है तो अपने डाक्टर से कंसल्ट करें और अपने अच्छे खानपान और पूरी नींद जैसी बातों पर ध्यान दें. इन विज्ञापनों के बारे में सोच कर ज्यादा ऐक्साइटेड न हों क्योंकि अति हर चीज की बुरी होती है. अगर आप की सेक्सलाइफ बिना कुछ किए ही अच्छी चल रही है तो फिर इन दवाओं का सेवन करना बेकार है.

5. गर्भ निरोधक गोलियां

गर्भ रोकने वाली दवाओं को बारबार लेने के घातक परिणाम हो सकते हैं. स्त्रियों के प्रजन्न अंगों पर इन का विपरीत प्रभाव पड़ सकता है. उपयोग करने के इच्छुकों को चाहिए कि वे डाक्टर से दवाओं के साइड इफैक्ट, उन के असफल होने की आशंकाएं और गर्भाशय से बाहर गर्भधारण की संभावनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर लें. यदि अगला मासिकधर्म न आए या मासिकधर्म के समय बहुत अधिक खून बहने लगे, तो हकीमों के पास जाने के बजाय तुरंत डाक्टर से जांच करवाएं.

डाक्टर से जांच करवा कर यह सुनिश्चित कर लें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार महिला इस दवा को लेने के लिए सक्षम है या नहीं. आपात गर्भनिरोधक गोलियों का विज्ञापन जिस तरह से किया जा रहा है उस से समाज में और विशेषरूप से युवावर्ग में यह भ्रांति फैल रही है कि बिना किसी डर के यौन संबंध बनाओ, गोली है न. लेकिन ऐसा नहीं है. युवाओं को इस बात का खयाल रखना चाहिए कि इन गोलियों की जरूरत ही न पड़े.

ऐसा न हो कि आपात गोली आफत की गोली बन जाए. इसलिए डाक्टर से मिलें और किसकिस तरह के प्रोटैक्शन होते हैं और आप दोनों में से कौन सा प्रोटैक्शन लेना ज्यादा बेहतर होगा, आदि के बारे में बात कर के ही कोई प्रोटैक्शन यूज करें. सिर्फ इन विज्ञापनों में दी गई गोली का नाम पढ़ कर ही लेना शुरू न करें.

6. वियाग्रा का इस्तेमाल न करें

प्रिस्क्रिप्शन पर दी गई परफौर्मेंस बढ़ाने वाली दवाओं जैसे वियाग्रा का उपयोग कभी न करें, क्योंकि इन्हें पहले से ब्लडप्रैशर जैसी कंडीशन होने पर, लेना सुरक्षित नहीं होता, साथ ही, अगर आप शुगर की बीमारी से पीडि़त हैं तो भी यह दवा लेना सही नहीं है. यह आप के डाक्टर का काम है कि आप के लिए ऐसी दवा लिखें जो आप के लिए सुरक्षित हों और आप को बताएं कि आप को कितनी डोज से इन्हें लेने की शुरुआत करनी चाहिए. विशेषरूप से जब आप पहले से आप द्वारा ली जाने वाली दवाओं के साथ इन्हें लेने का प्लान बना रहे हों.

7. हर्ब्स और हर्बल मिश्रण से बनी दवाओं से सावधान

आप सेक्स की इच्छा बढ़ाने का दावा करने वाली हर्ब्स और हर्बल मिश्रण से बच कर रहें. इन में से कुछ के कारण असुविधाजनक इरैक्शन हो सकता है जो घंटों तक वापस नहीं आता और योहिम्बे जैसी हर्ब आप के हृदय की गति को बढ़ा कर कार्डियक अरैस्ट  की आशंका को बढ़ा देती है. इसलिए इन्हें लेने से पहले हमेशा अपने डाक्टर की सलाह लें.

8. स्टैरौयड न लें

गैरकानूनी स्टैरौयड आप की सेक्स इच्छा बढ़ा तो सकते हैं लेकिन बाद में आप को इस की महंगी कीमत चुकानी पड़ती है. ये आप के हृदय को नुकसान पहुंचा सकते हैं और शरीर में ऐसे अपरिविर्तनीय बदलाव ला सकते हैं जिन से आप कभी भी पूरी तरह से नहीं उबर नहीं सकते. बजाय इस के ऐसे प्राकृतिक और कानूनी रूप से वैध सप्लीमैंट का उपयोग करें जो स्टैरौयड के समान ही प्रभाव रखते हैं और आप को स्थायी रूप से कोई हानि भी नहीं पहुंचाते.

शरीर पर टैटू बनवाने से पहले जान लें ये 6 बातें

यदि आप ने टैटू बनवाने का फैसला कर लिया है तो इस बारे में आप को बहुत सारी बातें पता होनी चाहिए, क्योंकि यह आप के साथ हमेशा रहने वाली चीज होगी. टैटू आर्टिस्ट सनी और विकी पाटिल के अनुसार, टैटू गुदवाने से पहले कुछ बातों पर ध्यान देना आवश्यक है.

1.  जो टैटू आर्टिस्ट आप की बौडी पर टैटू बना रहा है, उस की सोशल प्रोफाइल अच्छी तरह चैक कर लें. वह प्रशिक्षित होना चाहिए. कई बार टैटू में गड़बड़ी हो जाती है, क्योंकि लोग आर्टिस्ट के बारे में ज्यादा ध्यान नहीं देते. भले ही उस के पहले के काम का अच्छा पोर्टफोलियो हो, यह सुनिश्चित कर लें कि लोगों की उस के काम के बारे में क्या राय है. उस की सभी स्पैशल प्रोफाइल्स अच्छी तरह देख लें.

2. पार्लर साफसुथरा हो, उस के सारे इंस्ट्रूमैंट और ग्लब्स, जिन का टैटू आर्टिस्ट इस्तेमाल कर रहा है, नए व फ्रैश हों. पहले से इस्तेमाल चीजों से इन्फैक्शन का खतरा रहता है.

ये तो थी टैक्निकल चीजें जो आप को पता होनी चाहिए. ऐसी कई और भी बातें हैं जिन की जानकारी आप को टैटू गुदवाने से पहले होनी ही चाहिए जैसे कि आप दर्द सहने के लिए तैयार रहें. टैटू गुदवाने में कभी ज्यादा दर्द भी हो सकता है. स्किन की ऊपरी सतह पर 10 से 15 विशेषरूप से डिजाइन की गई टैटू की सुईयां चुभोई जाती हैं. सुईयों की संख्या कमज्यादा भी हो सकती है, उसी के हिसाब से दर्र्द भी कमज्यादा होगा.

3. टैटू बिना कुछ कहे अपनेआप को व्यक्त करने का एक तरीका है. अपने टैटू से आप को प्रेरणा भी मिल सकती है. इसलिए बहुत सोचसमझ कर डिजाइन चुनना चाहिए. यदि आप को डिजाइन पसंद नहीं आ रहा है, तो अपनेआप से ही पूछें कि आप तितली क्यों बनाना चाहते हैं. जो भी डिजाइन चुनें उस का कोई मतलब हो. लोग टैटू बनवा तो लेते हैं लेकिन उस का कोई मतलब ही नहीं होता. कई बार तो स्पैलिंग भी गलत होती हैं, वह देखने में अच्छा नहीं लगता.

4. किस जगह टैटू गुदवाना है, अच्छी तरह सोच लें. कुछ लोग ऐसी जगह टैटू बनवाते हैं जहां आसानी से कोई देख ही नहीं पाता. टैटू गुदवाने से पहले बौडी पार्ट का ध्यान रखें, क्योंकि कुछ जगहों पर टैटू नहीं होने चाहिए जैसे आंखों के आसपास, ब्रैस्ट्रस, यौनांग. इस बारे में अपने टैटू आर्टिस्ट से अच्छी तरह सलाहमशवरा कर लें. बांहें, कलाइयां, पैर कौमन जगहें हैं, जहां लोग टैटू गुदवाते हैं.

5. अगर आप को किसी तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्या है जैसे हृदय रोग, एलर्जी, डायबिटीज तब आप टैटू गुदवाने से पहले अपने डाक्टर से सलाह जरूर लें. अगर आप को स्किन एलर्जी है तो आप परमानैंट टैटू न बनवाएं.

6. ऐक्सपर्ट्स की मानें तो जो फैशन, स्टाइल के लिए टैटू गुदवाने का शौक रखते हैं, उन्हें अस्थायी टैटू ही बनवाना चाहिए. ये आप की स्किन को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं और इन्हें आप मूड के मुताबिक बदल भी सकते हैं.

इस बात का ध्यान रखें कि परमानैंट टैटू बनवाना जितना आसान है, उसे हटाना उतना ही मुश्किल है.

अगर आप भी हैं बवासीर के शिकार तो जरूर अपनाएं ये उपाय

बवासीर को पाइल्स या मूलव्याधि भी कहते हैं. यह एक खतरनाक बीमारी है. मलाशय के आस-पास की नसों में सूजन की वजह से बवासीर की समस्या होती है. इस बीमारी में जब मलत्याग किया जाता है तब अत्यधिक पीड़ा और फिर रक्त स्राव की समस्या होती है. बवासीर दो तरह की होती है. अंदरूनी और बाहरी बवासीर. अंदरूनी बवासीर में नसों की सूजन दिखाई नहीं देती जबकि बाहरी बवासीर में यह गुदा के बिल्कुल बाहर दिखाई देती है.

कारण

कुछ व्यक्तियों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है. अतः अनुवांशिकता इस रोग का एक कारण हो सकता है. जिन व्यक्तियों को अपने रोजगार की वजह से घंटों खड़े रहना पड़ता हो या भारी वजन उठाने पड़ते हों उनमें इस बीमारी से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है. कब्ज भी बवासीर को जन्म देती है. इसकी एक प्रमुख वजह खान पान की अनियमितता का होना भी है.

उपचार

हम आपको यहां कुछ घरेलू उपाय के बारें में बताने जा रहे हैं, जिसके इस्तेमाल से बवासीर से पूरी तरह से छुटकारा पाया जा सकता है. चलिए जानते हैं इसके बारे में.

छाछ और जीरा

दो लीटर छाछ में पचास ग्राम जीरा पीसकर मिला लें और जब भी प्यास लगे तब पानी की जगह यह मिश्रण पिएं. ऐसा करने पर आपको तीन से चार दिन के अंदर ही लाभ दिखने लगेगा. आप छाछ की जगह पानी का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. इसके लिए एक गिलास पानी में आधा चम्मच जीरा पाउडर मिलाकर पिएं. यह बवासीर को जल्द से जल्दी ठीक करने का एक बेहतरीन उपाय है.

इसबगोल

रात में सोते समय एक गिलास पानी में दो चम्मच इसबगोल की भूसी डालकर पिए. इसबगोल की भूसी खाने से पेट साफ रहता है और मल की कठोरता कम होती है. इससे बवासीर में दर्द नहीं होता.

बड़ी इलायची

50 ग्राम बड़ी इलायची लेकर उसे तवे पर भून लीजिए. जब इलायची लाल हो जाए तब इसे तवे पर से उतारकर ठंडा कर लीजिए और पीसकर रख लीजिए. हर रोज सुबह खाली पेट इस चूर्ण के साथ पानी पीजिए. यह बवासीर को जड़ से मिटाने में सहायक है.

किशमिश

रात को सोते समय सौ ग्राम किशमिश को पानी में भिगो दें. सुबह उठकर पानी में ही इसे मसल डालें और रोज इस पानी का सेवन करें. बवासीर रोग में यह बेहद फायदेमंद नुस्खा है.

जामुन

खूनी बवासीर में जामुन और आम की गुठली बड़े काम की चीज होती है. जामुन और आम की गुठली के अंदर का भाग निकालकर इसे धूप में सुखा लें और इसका चूर्ण बना लें. अब रोजाना एक चम्मच चूर्ण को गुनगुने पानी या फिर छाछ के साथ पिएं. बवासीर में बेहद लाभ मिलेगा.

इसके अलावा तरल पदार्थों, हरी सब्जियों एवं फलों का बहुतायात मात्रा में सेवन करें. तली हुई चीजें, मिर्च-मसालों युक्त गरिष्ठ भोजन न करें.

आखिर शराब क्यों है खराब, पढ़ें खबर

शराब न केवल स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है बल्कि यह अपराध को भी बढ़ावा देने का एक प्रमुख कारण है. शराब पीने के बाद व्यक्ति का दिल और दिमाग अच्छे और बुरे में फर्क करना भूल जाता है. शराब की वजह से व्यक्ति अपनी सुधबुध खो बैठता है. ऐसे में वह अपने से बड़ों से अभद्रता से बात करने में भी नहीं हिचकता.

शराब की लत की वजह

अकसर शौकिया तौर पर शराब पीने की शुरुआत होती है जो धीरेधीरे उन की आवश्यकता बन जाती है. शराब की लत का एक बड़ा कारण घरेलू माहौल भी है, क्योंकि जब घर का कोई बड़ा सदस्य घर के दूसरे सदस्यों व बच्चों के सामने खुलेआम शराब पीता है या पी कर आता है तो अनुभव लेने की इच्छा के चलते पत्नी, बच्चे व घर के अन्य सदस्य भी शराब पीने के आदी हो सकते हैं.

शराब की लत लगने का एक कारण गलत संगत भी है. अगर व्यक्ति शराब पीने वाले साथियों के साथ ज्यादा समय बिताता है तो उसे शराब की लत पड़ सकती है. तमाम लोग शराब को अपना सोशल स्टेटस मानते हैं.

शराब की लत लगने की एक बड़ी वजह निराशा, असफलता व हताशा को भी माना जाता है, क्योंकि अकसर लोग इन चीजों को भुलाने के लिए शराब का सहारा लेते हैं जो बाद में बरबादी का कारण भी बनता है.

पढ़ाई व कैरियर

किशोरों व युवाओं में नशे की लत दिनोदिन बढ़ती जा रही है. इस कारण शराब उन की पढ़ाई व कैरियर के लिए बाधा बन जाती है.

सामाजिक व आर्थिक नुकसान

शराबी व्यक्ति की समाज में इज्जत नहीं होती, शराब की लत के चलते परिवार में सदैव आर्थिक तंगी बनी रहती है, जिस वजह से परिवार के सदस्यों के साथ मारपीट आम बात हो जाती है. शराब की जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यक्ति अपनी स्थायी जमा पूंजी भी दांव पर लगा देता है, जिस से बच्चों की पढ़ाई व कैरियर भी प्रभावित होता है.

स्वास्थ्य का दुश्मन

स्वास्थ्य के लिए शराब जहर की तरह है जो व्यक्ति को धीरेधीरे मौत की तरफ ले जाती है. मानसिक व नशा रोग विशेषज्ञ डा. मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन के अनुसार शराब में पाया जाने वाला अलकोहल शरीर के कई अंगों पर बुरा असर डालता है, जिस की वजह से 200 से भी अधिक बीमारियां होने का खतरा बना रहता है.

अत्यधिक शराब पीने से शरीर में विटामिन और अन्य जरूरी तत्त्वों की कमी हो जाती है. शराब का लगातार प्रयोग पित्त के संक्रमण को बढ़ाता है, जिस से ब्रैस्ट और आंत का कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है.

शराब में पाया जाने वाला इथाइल अल्कोहल लिवर सिरोसिस की समस्या को जन्म देता है जो बड़ी मुश्किल से खत्म होने वाली बीमारी है. इथाइल अलकोहल की वजह से पाचन क्रिया गड़बड़ा जाती है, जिस से लिवर बढ़ जाता है और ऐसी अवस्था में भी व्यक्ति अगर पीना जारी रखता है तो अल्कोहल हैपेटाइटिस नाम की बीमारी लग जाती है.

सैक्स पर असर

जिला अस्पताल बस्ती के चिकित्सक डा. बी के वर्मा के अनुसार शराब सैक्स के लिए जहर है. लोग सैक्स संबंधों का अधिक मजा लेने के चलते यह सोच कर शराब पीते हैं कि वे लंबे समय तक आत्मविश्वास के साथ सहवास कर पाएंगे, लेकिन लगातार शराब के सेवन के चलते प्राइवेट पार्ट में तनाव आना कम हो जाता है, जिस का नतीजा नामर्दी के रूप में दिखता है. कामेच्छा की कमी के साथ ही महिलाओं की माहवारी अनियमित हो जाती है.

सड़क दुर्घटना का कारण

अकसर सड़क दुर्घटना का सब से बड़ा कारण शराब पी कर गाड़ी चलाना होता है, क्योंकि शराब पीने के बाद गाड़ी ड्राइव करने वाले का दिमाग उस के वश में नहीं रहता और ड्राइव करने वाला व्यक्ति गाड़ी से नियंत्रण खो देता है और दुर्घटना हो जाती है.

अपराध को बढ़ावा

शराब का नशा दुनिया भर में होने वाले अपराधों की सब से बड़ी वजह माना जाता है. अकसर शराबी व्यक्ति नशे में अपने होशोहवास खो कर ही अपराध को अंजाम देता है.

ऐसे पाएं छुटकारा

शराब की लत का शिकार व्यक्ति इस से होने वाली हानियों को देखते हुए अकसर शराब को छोड़ने की कोशिश करता है, लेकिन प्रभावी कदम की जानकारी न होने की वजह से वह शराब व नशे से दूरी नहीं बना पाता है. यहां दिए उपायों को अपना कर व्यक्ति शराब जैसी बुरी लत से छुटकारा पा सकता है :

– अगर आप शराब की लत के शिकार हैं और इस से दूरी बनाना चाहते हैं तो इस को छोड़ने के लिए खास तिथि का चयन करें. यह तिथि आप की सालगिरह वगैरा हो सकती है. छोड़ने से पहले इस की जानकारी अपने सभी जानने वालों को जरूर दें.

– अगर आप का बच्चा शराब का शिकार है तो मातापिता को चाहिए कि उस की गतिविधियों पर नजर रखें और समय रहते किसी नशामुक्ति केंद्र ले जाएं और मानसिक रोग विशेषज्ञ से संपर्क जरूर करें.

– ऐसी जगहों पर जाने से बचें जहां शराब की दुकानें या शराब पीने वाले लोग मौजूद हों, क्योंकि ऐसी अवस्था में फिर से आप की शराब पीने की इच्छा जाग सकती है.

– कमजोरी, उदासी या अकेलापन महसूस होने की दशा में घबराएं नहीं बल्कि अपने भरोसेमंद व्यक्ति के साथ अपने अनुभवों को बांटें और कठिनाइयों से उबरने की कोशिश करें.

– शराब छोड़ने के लिए आप इस बात को जरूर सोचें कि आप ने शराब की वजह से क्या खोया है और किस तरह की क्षति पहुंची है. इस से न केवल आप शराब से दूरी बना सकते हैं बल्कि खराब हुए संबंधों को पुन: तरोताजा भी कर सकते हैं.

– शराब छोड़ने से उत्पन्न परेशानियों से निबटने के लिए किसी अच्छे चिकित्सक या मानसिक रोग विशेषज्ञ की सलाह लेना न भूलें.

स्पाइनल इंजरी का सेक्सुअल लाइफ पर प्रभाव

स्पाइनल इंजरी किसी के भी जीवन की त्रासदपूर्ण घटना हो सकती है. इस से व्यक्ति एक तरह से लकवाग्रस्त हो सकता है. इंजरी जब गरदन में हो तो इस से टेट्राप्लेजिया हो सकता है. यदि इंजरी गरदन के नीचे हो तो इस से पाराप्लेजिया यानी दोनों टांगों और इंजरी से निचले धड़ में लकवा हो सकता है. केंद्रीय स्नायुतंत्र का हिस्सा होने के कारण स्पाइनल कौर्ड की सेहत पर ही पूरे शरीर की सेहत निर्भर करती है. इंजरी से यौन सक्रियता भी प्रभावित हो सकती है. स्पाइनल कौर्ड इंजरी ऊंचाई से गिरने, सड़क दुर्घटना, हिंसक या खेल की घटनाओं के कारण हो सकती है. स्पाइनल कौर्ड इंजरी के नौनट्रोमेटिक कारणों में स्पाइन और ट्यूमर के टीबी जैसे संक्रमण शामिल हैं.

यौन सक्रियता जरूरी

स्पाइनल इंजरी से पीडि़त व्यक्ति को यथासंभव आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश होनी चाहिए. भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से में यौन स्वास्थ्य पर चर्चा करना हमेशा वर्जित विषय माना जाता रहा है, इसलिए इस विषय पर बात करने से लोग कतराते हैं और मरीज खामोशी से इसे सहता रहता है. शिक्षा, ज्ञान और जागरूकता के अभाव में लोग ऐसे मरीजों के बारे में यह समझने लगते हैं कि वे यौनेच्छा एवं यौन उत्कंठा से पीडि़त हैं. लेकिन सच यह है कि सामान्य व्यक्ति की तरह ही स्पाइनल इंजरी से पीडि़त व्यक्ति के लिए भी यौन सक्रियता उतनी ही जरूरी है.

पार्टनर का अभाव

दरअसल, स्पाइन इंजरी इच्छाशक्ति का स्तर तो प्रभावित नहीं करती, लेकिन किसी व्यक्ति की यौन गतिविधि प्रभावित जरूर हो जाती हैं. कई बार ऐसा पार्टनर के अभाव में भी होता है. अन्य मामलों में यह मांसपेशियों पर नियंत्रण रखने वाले व्यायाम की कमजोर क्षमता के कारण भी हो सकता है. यौन अनिच्छा लिंग के आधार पर भी अलगअलग हो सकती है. पुरुष जहां उत्तेजना के अभाव के कारण प्रभावित होते हैं, वहीं महिलाएं आमतौर पर शिथिल पार्टनर होने के कारण इस से कम प्रभावित होती हैं खासकर भारतीय समाज में. लेकिन स्पाइनल इंजरी से पीडि़त व्यक्तियों की यौन अनिच्छा को सैक्सुअल रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम और निरंतर अभ्यास से बहुत हद तक दूर किया जा सकता है.

समस्या की अनदेखी

ऐसे मरीजों में आत्मविश्वास जगाना और यौन स्वास्थ्य के बारे में उन से खुल कर बात करना बहुत जरूरी होता है. इस में तंबाकू पूरी तरह से निषेध होना चाहिए. शारीरिक गतिविधियों के अभाव और दर्द के अलावा एससीआई मरीज आकर्षण, संबंधों और प्रजनन की क्षमता जैसे अन्य कारकों को ले कर भी चिंतित रहते हैं. समय के साथ जहां मरीज अपने नवजात शिशु के साथ जीना सीख जाते हैं और परिवर्तित जिंदगी अपना लेते हैं, वहीं वे अपने यौन स्वास्थ्य को ले कर अकसर अनजान रहते हैं. मरीज के शरीर की कुछ खोई गतिविधियां बहाल करने के लिए व्यापक रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम के दौरान भी यौन समस्या की अनदेखी ही की जाती है.

खुद पहल नहीं करतीं

एससीआई के मामले में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए अकसर सैक्सुअल पार्टनर बनना ज्यादा आसान होता है जो न सिर्फ शारीरिक रचना के कारण, बल्कि सक्रियता के स्तर पर भी संभव होता है. भारत जैसे रूढिवादी समाज में महिलाओं से यौनइच्छा की उम्मीद करना मुश्किल है. भारत की 80% महिलाएं ऐसी पैसिव सैक्सुअल पार्टनर होती हैं जो खुद पहल नहीं करतीं. इसलिए पुरुषों की तुलना में उन के लिए यौन स्वास्थ्य वापस पाना ज्यादा आसान होता है और उन का मुख्य लक्ष्य यौन सक्रियता वापस पाना तथा संभोग करने की क्षमता हासिल करना होता है.

समस्या का समाधान

पुरुषों के मामले में समस्याएं उत्तेजना में कमी और स्खलन से ही जुड़ी होती हैं. उन की उत्तेजना क्षमता और स्खलन में बदलाव आने के अलावा कामोत्तेजना की यौन संतुष्टि भी एक ऐसा क्षेत्र है जो एससीआई पीडि़त पुरुषों के लिए चिंता का कारण होता है. एक अन्य चिंता स्पर्म की क्वालिटी पर होने वाले प्रभाव और स्पर्म काउंट को ले कर होती है. ज्यादातर स्पाइनल इंजरी के मामले में वियाग्रा जैसी दवा से उत्तेजना की समस्या दूर की जा सकती है. कुछ मामलों में वैक्यूम ट्यूमेसेंस कंस्ट्रक्शन थेरैपी (वीटीसीटी) या पैनाइल प्रोस्थेसिस जैसे उपकरण की भी जरूरत पड़ सकती है.

गलत धारणा की वजह

सैक्सुअल काउंसलिंग और मैनेजमैंट विकासशील देशों में एससीआई के सब से उपेक्षित पहलुओं में से एक है. लेखकों के एक अध्ययन से पाया गया है कि एससीआई से पीडि़त 60% मरीजों और उन के 57% पार्टनरों ने पर्याप्त रूप से सैक्सुअल काउंसलिंग नहीं ली. जिन फैक्टर्स पर बहुत कम जोर दिया जाता है, उन में से एक है जागरूकता और सांस्कृतिक बदलाव. पति और पत्नी के बीच यौन संबंध का मकसद सिर्फ बच्चे पैदा करना ही माना जाता है. सेक्स के बारे में बातचीत को खराब माना जाता है.

यौन समस्याएं न सिर्फ आम हो गई हैं, बल्कि सेक्स की अनदेखी, सेक्स के बारे में गलत धारणाओं और नकारात्मक सोच भी इस के मुख्य कारण माने जाते हैं. पारंपरिक वर्जना भी इस में अहम भूमिका निभाती है. सैक्सुअलिटी को प्रभावित करने वाले अन्य सामाजिक, पारंपरिक फैक्टर्स में यौन संबंधी सोच, मातापिता के प्रति सम्मान तथा अन्य ऐसे कारण शामिल हैं, जिन में सेक्स को खराब माना जाता है और पुरुषों तथा महिलाओं के लिए बरताव के दोहरे मानदंड अपनाए जाते हैं. पुरुषों की तुलना में महिलाओं की स्थिति बदतर होती है.

आत्मविश्वास में कमी

एक अध्ययन के अनुसार, विकसित देशों की तुलना में भारत जैसे देश में स्पाइनल कौर्ड इंजरी से पीडि़त व्यक्तियों की यौन गतिविधि की बारंबारता कम रहती है. ज्यादातर मरीज इंजरी से पहले की तुलना में मौजूदा स्तर पर अपने सेक्स जीवन को कमतर आंकते हैं. यह शायद एससीआई की समस्याओं, इंजरी के बाद पार्टनर की असंतुष्टि, यौनक्रिया के दौरान पार्टनर से कम सहयोग, आत्मविश्वास में कमी तथा अपर्यात सैक्सुअल रिहैबिलिटेशन के कारण भी हो सकता है.

पश्चिमी देशों के मामलों की तरह बहुत कम पार्टनर संतुष्ट होते हैं. पुरुषों की तुलना में महिलाएं यौन संतुष्टि के अभाव की शिकायतें ज्यादा करती हैं. इस के पीछे प्रचलित सांस्कृतिक मान्यता है कि किसी बीमार महिला के साथ यौन संबंध बनाना नैतिकता के विरुद्ध है और इस से पुरुष पार्टनर में भी रोग संचारित हो सकता है. भारतीय समाज में महिलाओं की कमतर स्थिति, पार्टनर की भिन्न सोच, पाचनतंत्र आदि की गड़बड़ी और निजता का अभाव भी इस के कुछ अन्य संभावित कारण हो सकते हैं.

यौनजीवन का अंत नहीं

निष्कर्षतया स्पाइनल इंजरी को यौनजीवन का अंत नहीं मान लेना चाहिए. इस से इंजरी पीडि़त व्यक्ति को अपने नए शरीर में यौन सुख स्वीकार करने में मदद की जरूरत पड़ती है और कई बार उस के लिए अलग तरीके से सोचने की जरूरत होती है. परिवर्तित संवेदनशीलता, शारीरिक प्रतिबंध की स्वीकृति या उन्नत मसल कंट्रोल जैसे फैक्टर्स को समझने से स्पाइनल इंजरी मरीज को स्वस्थ यौनजीवन बहाल करने में मदद मिल सकती है. उस के सैक्सुअल रिहैबिलिटेशन के लिए मैडिकल प्रोफैशनल्स की मदद की जरूरत होती है. इस संबंध में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है खासकर भारतीय समाज तथा प्रोफैशनल्स के बीच.

फ्लेवर्ड हुक्का है सिगरेट से भी ज्यादा नुकसानदायक, जानें कैसे

भारत में आज कल हर छोट बड़े शहरों और मौल्‍स में हुक्‍का बार या शीशा लाउंज पौपुलर हो रहे हैं. खासकर युवा वर्ग अकसर बार में हुक्के के कश लगाते दिख जाते हैं. हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि हुक्का पीना सिगरेट पीने से ज्यादा नुकसानदेह नहीं होता. उनका मानना है कि हुक्के से खींचा जाने वाला तंबाकू पानी से होते हुए आता है इसलिए वह ज्यादा नुकसानदेह नहीं होता. लेकिन हाल ही सामने आई एक रिसर्च से पता चला है कि हुक्का भी सिगरेट के बराबर हार्ट को नुकसान पहुंचाता है. इससे दिल की बीमारी होने खतरा बढ़ जाता है.

वहीं ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक हुक्का में जिस तंबाकू का इस्तेमाल होता है, उसमें कई तरह के अलग-अलग फ्लेवर का भी इस्तेमाल होता है. यही वजह है कि आज कल युवा इसे ज्यादा पसंद कर रहे हैं. हुक्के का स्वाद बदलने के लिए उसमें फ्रूट सिरप मिलाया जाता है, जिससे किसी भी तरह का विटामिन नहीं मिलता. लोगों को लगता है कि हुक्के में मिलाया जाने वाला यह फ्लेवर स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है.

इसके अलावा हुक्के में सिगरेट की ही तरह कार्सिनोजन लगा होता है जिससे कैंसर होने की संभावना प्रबल होती है. हुक्के का धुआं ठंडा होने के बाद भी नुकसान पहुंचाता है. यह हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कार्डियोवैस्कुलर जैसी जानलेवा बीमारियों का कारण बनता है.

यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया की रिसर्च के मुताबिक हुक्के में इस्तेमाल किए जाने वाले हशिश (एक प्रकार का ड्रग) सेहत के लिए हानिकारक होता है. रिपोर्ट में बताया गया है कि जो लोग हुक्का पीते हैं उनकी धमनियां सख्त होने लगती हैं और हार्ट से संबंधित बारी होने का खतरा बढ़ जाता है.

शोधकर्ताओं के मुताबिक हुक्के में भी सिगरेट की तरह हानिकारक तत्व व निकोटीन पाए जाते हैं, जो सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए लोगों को यह मानना बंद कर देना चाहिए कि इसकी लत नहीं लग सकती. हुक्के में मौजूद तंबाकू में 4000 तरह के खतरनाक रसायन होते हैं. हुक्के के बारे में सच यही है कि इसका धुआं सिगरेट के धुएं से भी ज्यादा खतरनाक होता है.

खास अंगों की साफसफाई, ध्यान रखें ये बातें

अब से तकरीबन 23 साल पहले जब दीपक कुशवाहा ने भोपाल के नजदीक बैरसिया कसबे में अपना जनरल स्टोर खोला था, तब दुकान में कहने भर को ही लेडीज आइटम हुआ करते थे, लेकिन दीपक की आधे से ज्यादा दुकान अब लेडीज आइटमों से भरी पड़ी है, जिन में सैनेटरी नैपकिन, हेयर रिमूवर, अंडरगारमैंट्स, क्रीम, पाउडर और तरहतरह के दूसरे आइटम ज्यादा हैं.

इस बदलाव की वजह बताते हुए दीपक कहते हैं, ‘‘शिक्षा और जागरूकता ज्यादा है, जो कसबाई और देहाती लड़कियों में मीडिया और इश्तिहारों के जरीए आई है.’’

कसबे के हाईस्कूल में दाखिले बढ़े, तो नएनए आइटमों की मांग आने लगी. फिर कालेज खुला तो लड़कियों की झिझक और दूर होने लगी. अब तो हालात ऐसे हैं कि लड़कियां खरीदारी में बिलकुल नहीं शरमाती हैं.

दीपक कुशवाहा की बातों पर गौर करें, तो कसबाई और देहाती लड़कियों में खूबसूरती और सेहत के प्रति जबरदस्त जागरूकता आई है और वे बाहरी के साथसाथ अंदरूनी साफसफाई की भी अहमियत समझने लगी हैं. इस बाबत उन्हें घरों से भी छूट मिली हुई है. इसी वजह के चलते कसबे में हर ब्रांडेड कंपनी का हेयर रिमूवर और सैनेटरी नैपकिन मिलते हैं, जिन्हें खरीदने के लिए आसपास के गांवों की लड़कियां भी इफरात से आती हैं.

लेकिन इन लड़कियों की एक बड़ी दिक्कत आज भी यह है कि इन्हें खास अंगों की साफसफाई के बारे में कोई पुख्ता जानकारी कहीं से नहीं मिलती. आधीअधूरी जानकारी के चलते वे कई बार परेशानियों से भी घिर जाती हैं. घर में मां या भाभी अकसर पुराने यानी अपने जमाने के उपाय बाताती हैं, जबकि अब दौर नए तौरतरीकों का है.

मिसाल प्राइवेट पार्ट के आसपास के बालों की सफाई का लें, तो लड़कियां अब हाईस्कूल में आतेआते हेयर रिमूवर का इस्तेमाल शुरू कर देती हैं. पहले इस के लिए ब्लेड और कैंची का इस्तेमाल ज्यादा होता था, हालांकि अभी भी होता है, पर न के बराबर. और जो लड़कियां इन का इस्तेमाल करती हैं, उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि कभी भी पुराने ब्लेड का इस्तेमाल न करें. इस से इंफैक्शन का खतरा बढ़ जाता है.

आजकल बाजार में प्राइवेट पार्ट और बगलों के बालों को हटाने के लिए खास तरह के महीन ब्लेड वाले ब्रांडेड रेजर आ रहे हैं, इन का इस्तेमाल ज्यादा सुरक्षित रहता है.

तरीका जो भी अपनाएं, लेकिन बालों की समयसमय पर सफाई जरूरी है, क्योंकि इन्हीं बालों के ऊपर पसीना जमता है, जो बदबू की बड़ी वजह होता है.

हेयर रिमूवर के इस्तेमाल से बाल एक बार में पूरी तरह साफ हो जाते हैं. इस का इस्तेमाल करने से पहले इसे थोड़ी सी तादाद में हाथ पर कुछ देर लगाए रखना चाहिए. अगर जलन न पड़े तो इस का बेहिचक इस्तेमाल किया जा सकता है. इस के अलावा प्राइवेट पार्ट को रोजाना एक बार कुनकुने पानी से जरूर साफ करें. और हर बार पेशाब करने के बाद साफ पानी से इसे धो लेना चाहिए.

कोशिश यह होनी चाहिए कि प्राइवेट पार्ट को ज्यादा से ज्यादा सूखा रखा जाए. इस के लिए साफ कपड़े या टिशू पेपर से उसे पोंछ लेना चाहिए. इस से कई बीमारियों से बचाव होता है और बदबू भी नहीं आती.

बाल साफ करते रहने से पार्टनर को भी सैक्स में मजा आता है और वह अपने मनचाहे तरीके से प्यार करने में नहीं हिचकता. लेकिन प्राइवेट पार्ट पर कभी तेज खुशबू वाले परफ्यूम और साबुन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, इस से इंफैक्शन का खतरा बना रहता है.

माहवारी के 5 दिन भले ही तकलीफ वाले होते हों, लेकिन इन दिनों में खासतौर से एहतियात बरतना चाहिए. नैपकिन हर 4 घंटे बाद बदल लेना चाहिए, नहीं तो बदबू तो बढ़ती ही है साथ ही कई बीमारियों का भी डर बना रहता है. अंडरवियर भी इन दिनों में धो कर और सुखा कर ही पहनना चाहिए. सस्ते और लोकल सैनेटरी नैपकिन और अंडरगारमैंट्स के बजाय ब्रांडेड ही लेने चाहिए. ये भरोसेमंद भी होते हैं और अपना काम भी बेहतर तरीके से करते हैं.

दीपक की मानें, तो गांवों के हाट बाजारों में सस्ते के नाम पर लोकल नैपकिन और अंडरगारमैंट्स धड़ल्ले से बिकते हैं, लेकिन इन की न तो क्वालिटी अच्छी होती है और न ही नतीजे अच्छे मिलते हैं.

इन अंगों पर भी दें ध्यान

नाभि, स्तन, नितंब, जांघें और पीठ भी कम खास नहीं होते, जिन की साफसफाई पर लड़कियां कम ही ध्यान देती हैं. इन अंगों की साफसफाई अच्छे साबुन से हो जाती है. सेहत के अलावा ये अंग सैक्स में भी अहम रोल निभाते हैं, इसलिए इन को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. कई लड़कियों की जांघों और नितंबों पर भी महीन बाल उग आते हैं जो हार्मोंस की गड़बड़ी के चलते मामूली बात है. इन बालों को भी रेजर या रिमूवर से हटा लेना चाहिए.

खास अंगों की साफसफाई को ले कर आ रही जागरूकता एक अच्छी बात है, जो लड़कियों को आत्मविश्वास से भरे रखती है. जरूरत इस बात की है कि यह जागरूकता घरघर पहुंचे.

नए तौरतरीकों और प्रोडक्ट्स की जानकारी के किए लड़कियों के लिए खासतौर से निकाली जाने वाली मैगजीन ‘गृहशोभा’ जरूर पढ़नी चाहिए. इस के उपयोगी लेख, फैशन, सेहत, खूबसूरती और सैक्स के अलावा जिंदगी के दूसरे अहम पहलुओं की पेचीदगियों से रूबरू कराते हुए न केवल सही रास्ता सुझाते हैं, बल्कि लड़कियों को नए जमाने से भी जोड़े रखते हैं.

अगर आप भी हैं पैनिक डिसऔर्डर के शिकार तो जरूर पढ़ें ये खबर

पैनिक डिसऔर्डर एक ऐसा मनोरोग है जिस में किसी बाहरी खतरे के बावजूद विभिन्न शारीरिक लक्षणों, मसलन, दिल की धड़कन का असामान्य हो जाना तथा चक्कर आना आदि के साथ लगातार और आकस्मिक रूप से रोगी आतंकित हो जाता है. ये आतंकित कर देने वाले दौरे, जो कि पैनिक डिसऔर्डर की पहचान हैं, तब आते हैं जब किसी खतरे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने की सामान्य मानसिक प्रक्रिया तथा कथित संघर्ष अनुपयुक्त रूप से जाग जाता है.

पैनिक डिसऔर्डर से ग्रस्त अधिकतर लोग अगले अटैक की संभावना को ले कर चिंतित रहते हैं और उन स्थितियों से बचने की कोशिश करते हैं जिन में उन के अनुसार यह भय का दौरा पड़ सकता है.

शुरुआती पैनिक अटैक

आमतौर पर पहला पैनिक अटैक कभी भी हो सकता है, जैसे कार चलाते हुए या काम के लिए जाते हुए. सामान्य गतिविधियों के दौरान एकाएक व्यक्ति डराने वाले तथा तकलीफदेह लक्षणों से ग्रस्त हो जाता है. ये लक्षण कुछ सैकंड तक जारी रहते हैं लेकिन कई मिनट तक भी यह स्थिति बनी रह सकती है. ये लक्षण लगभग एक घंटे के भीतर सामान्य हो जाते हैं. जिन लोगों पर यह दौरा पड़ चुका है वे बता सकते हैं कि उन्होंने किस तरह की बेचैनी के साथ यह डर महसूस किया था कि उन्हें कोई बहुत खतरनाक जानलेवा बीमारी हो गई है या फिर वे पागल हो रहे हैं.

ऐसे कुछ लोग जिन्हें एक पैनिक अटैक या फिर कभीकभार जिन का सामना इस दौरे से हुआ हो, उन में ऐसी किसी समस्या का विकास नहीं होता जो उन के जीवन को प्रभावित करे लेकिन दूसरों के लिए इस स्थिति का जारी रहना असहनीय हो जाता है. पैनिक डिसऔर्डर में आतंकित कर देने वाले दौरे जारी रहते हैं और व्यक्ति के मन में यह डर समा जाता है कि उसे अगले दौरे का सामना कभी भी करना पड़ सकता है.

यह भय जिसे अग्रिम बेचैनी या डर का खौफ कहते हैं, अधिकतर समय मौजूद रहता है और व्यक्ति के जीवन को गंभीर रूप से तब भी प्रभावित कर सकता है जब उस पर दौरा नहीं पड़ा हो. इस के साथसाथ उस के मन में उन स्थितियों को ले कर भयंकर फोबिया का जन्म हो जाता है जिन में उस पर दौरा पड़ा था.

उदाहरण के लिए अगर किसी को गाड़ी चलाते वक्त पैनिक अटैक हुआ हो तो वह आसपास जाने के लिए भी गाड़ी चलाने में डरता है. जिन लोगों में आतंक से जुड़े इस फोबिया का विकास हो गया हो वे उन स्थितियों से बचने की कोशिश करने लगते हैं जिन के बारे में उन्हें आशंका रहती है कि उन को दौरा पड़ सकता है. परिणामस्वरूप वे अपनेआप को लगातार सीमित करते चले जाते हैं. उन का काम प्रभावित होता है क्योंकि वे बाहर निकलना नहीं चाहते और न ही समय पर अपने काम पर पहुंचते हैं.

इन दौरों की वजह से व्यक्ति के संबंध भी प्रभावित होते हैं. नींद पर असर पड़ता है और रात में दौरा पड़ने की स्थिति में व्यक्ति आतंकित हो कर जाग जाता है. यह अनुभव इतना हिला देने वाला होता है कि कई लोग सोने से भी डरने लगते हैं और थकेथके से रहते हैं. दौरा न पड़े, तब भी डर की वजह से नींद प्रभावित होती है.

इस सिलसिले में डाक्टर से मिलने के बाद जब यह पता चल जाता है कि जीवन पर खतरे की कोई स्थिति नहीं है तब भी इस दौरे से प्रभावित बहुत से लोग आतंक में डूबे रहते हैं. वे बहुत से चिकित्सकों के पास दिल की बीमारी या सांस की समस्या के इलाज के लिए भी जाया करते हैं. इस बीमारी के लक्षणों की वजह से बहुत से मरीज यह समझते हैं कि उन्हें कोई न्यूरोलौजिकल बीमारी या फिर कोई गंभीर गैस्ट्रौइनटैस्टाइनल समस्या हो गई है. कुछ मरीज कई चिकित्सकों से मिल कर महंगी और अनावश्यक जांच करवाते हैं ताकि यह मालूम किया जा सके कि इन लक्षणों की वजह क्या है.

चिकित्सकीय सहायता की यह खोज लंबे समय तक भी जारी रह सकती है क्योंकि इन मरीजों की जांच करने वाले बहुत से चिकित्सक पैनिक डिसऔर्डर की पहचान करने में असफल रहते हैं. जब चिकित्सक बीमारी की थाह पा भी लेते हैं तब भी कभीकभी वे इस की व्याख्या करते हुए यह सलाह दे देते हैं कि खतरे की कोई बात नहीं है और इलाज की कोई जरूरत नहीं है.

उदाहरण के लिए, चिकित्सक यह कह सकते हैं कि चिंता की कोई बात नहीं है. आप को सिर्फ पैनिक डिसऔर्डर अटैक हुआ था. हालांकि इस का उद्देश्य सिर्फ हौसलाअफजाई होता है, फिर भी ये शब्द उस चिंतित मरीज के लिए बेहद निराशाजनक होते हैं जोकि बारबार इस तरह के आतंकित करने वाले दौरों की चपेट में रहता है. मरीज को यह बताया जाना जरूरी है कि चिकित्सक अशक्त बना देने वाले पैनिक डिसऔर्डर से होने वाली परेशानी को समझते हैं और उन का मानना है कि इस का इलाज प्रभावी ढंग से किया जा सकता है.

क्या है इलाज

चिकित्सीय इलाज पैनिक डिसऔर्डर से पीडि़त मरीजों में 70 से 80 प्रतिशत को राहत पहुंचा सकता है और शुरुआती इलाज इस रोग को एगोराफोबिया की स्थिति तक नहीं पहुंचने देता. किसी भी इलाज की शुरुआत से पूर्व मरीज की पूरी चिकित्सकीय जांच की जानी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि हताशा के इन लक्षणों की और कोई वजह तो नहीं है.

ऐसा इसलिए आवश्यक है क्योंकि थायराइड हार्मोन से खास तरह की ऐपिलैप्सी और हृदय संबंधी समस्या बढ़ जाती है और पैनिक डिसऔर्डर से मिलतेजुलते लक्षण पैदा हो सकते हैं.

कौगनिटिव बिहेवियरल थैरेपी कही जाने वाली साइकोथैरेपी के प्रयोग और दवाओं के सेवन द्वारा पैनिक डिसऔर्डर का इलाज किया जा सकता है. इलाज का चयन व्यक्तिगत जरूरतों तथा प्राथमिकताओं के मुताबिक किया जाता है.

पैनिक अटैक समस्या नहीं

35 वर्षीय रोहण बैंक एग्जीक्यूटिव है. वह काम के लिए रोज दादर स्टेशन से मुंबई सीएसटी जाता था. एक दिन जब वह काम पर जा रहा था तो सीएसटी से पहले के ही स्टेशन पर उतर गया. जब वह वापस उस ट्रेन में नहीं चढ़ पाया तो दूसरी ट्रेन का सहारा ले कर औफिस लेट पहुंचा. बौस ने उसे डांटा तो वह वहीं बेहोश हो कर गिर पड़ा. थोड़ी देर बाद सबकुछ सामान्य हो गया. पर इस के बाद से जब भी बारिश होती या ट्रेन लेट आती, भले औफिस में कोई कुछ नहीं कहता, पर वह पैनिक हो जाता. उसे बेहोशी छाने लगती. दिनप्रतिदिन उस का परफौर्मेंस बिगड़ने लगा. धीरेधीरे नौबत ऐसी आ गई कि वह ट्रेन में भीड़ देख कर घबराने लगता. बैठने की जगह न हो तो परेशान हो जाता. ठंड में भी पसीने छूटने लगते. उस का खानापीना कम होने लगा. वह बीमार दिखने लगा. उस की पत्नी सीमा ने कई डाक्टरों से सलाह ली. सभी ने जांच की पर कोई समस्या नहीं दिखी. किसी दोस्त ने मनोचिकित्सक के पास ले जाने की सलाह दी. सीमा, रोहण को डा. पारुल टौक के पास ले गई. डाक्टर ने करीब 1 महीने की काउंसलिंग और दवा के जरिए रोहण को ठीक किया.

ऐसी ही एक और घटना है. 45 वर्षीय अनुराधा को हमेशा छाती में दर्द की शिकायत रहती थी. घबराहट में उसे चक्कर आने लगते थे और वह कई बार बेहोश हो कर गिर पड़ती थी. उस के पति धीरेन को अपनी पत्नी को ले कर काफी चिंता सताने लगी. उन्होंने सब से पहले कार्डियोलौजिस्ट से संपर्क किया. जांच के बाद डाक्टर को कोई भी समस्या नहीं दिखी. धीरेन पेट के डाक्टर के पास भी गए क्योंकि उन की पत्नी को पेटदर्द, बारबार दस्त का लगना आदि समस्या थी. वहां भी जांच में कुछ नहीं निकला. फिर फैमिली फिजीशियन की सलाह पर वे मनोचिकित्सक के पास गए. वहां पता चला कि अनुराधा पैनिक अटैक की शिकार है.

पैनिक अटैक के बारे में मुंबई के फोर्टिस अस्पताल और निमय हैल्थकेयर की मनोचिकित्सक डा. पारुल टौक कहती हैं, ‘‘इस तरह की समस्या किसी भी उम्र की महिला, पुरुष या युवा को हो सकती है. यही अटैक आगे चल कर फोबिया या डिप्रैशन का कारण बनता है. यह कोई बड़ी बीमारी नहीं है. इसे आसानी से और बिना अधिक खर्च किए मरीज को ठीक किया जा सकता है. लक्षणों का पता चलते ही तुरंत किसी मनोचिकित्सक से मिल कर इलाज करवाएं.’’

पैनिक अटैक आने पर क्या करें

अगर आप के परिवार में या आप के आसपास किसी व्यक्ति को पैनिक अटैक आए तो घबराएं नहीं, बल्कि उस कठिन परिस्थिति में आप उस व्यक्ति की सहायता कर सकते हैं

–       शांत रहें और पीडि़त व्यक्ति की शांत रहने में सहायता करें.

–       अगर वह व्यक्ति एंग्जाइटी की दवा लेता है तो उसे यह दवा तुरंत दें.

–       उस की समस्या को तुरंत और संक्षेप में समझने का प्रयास करें.

–       उस व्यक्ति को दोनों हाथ सिर के ऊपर सीधे उठाने में सहायता करें.

–       पैनिक होने की स्थिति में व्यक्ति को टहलाने ले जाएं, स्ट्रैचिंग या कूदने को कहें.

–       पीडि़त को धीरेधीरे सांस लेने को कहें और इस में उस की सहायता करें. नाक से लंबी सांस लें और मुंह से छोड़ें.

–       तुरंत किसी पास के अस्पताल में ले जाएं.

–       व्यक्ति को पैनिक अटैक से बचाए रखने के लिए उस को प्रोत्साहित करते रहें.

–       यदि स्थिति बिगड़ जाए तो उसे विश्वास दिलाएं कि यह कोई बड़ी बात नहीं है.

–       मातापिता हमेशा बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाते रहें. जैसे कुछ भी अच्छा काम करने पर तारीफ करें या कहें, हमें तुम पर नाज है.

–       नियमित तौर पर हैड मसाज देते रहें.

–       व्यक्ति से हमेशा अपने दिल की बात खुल कर बताने को कहें.

बौडी टोंड तो स्ट्रौंग होगा बौंड

लड़का हो या लड़की या फिर औरत हो या मर्द, सभी के लिए ऐक्सरसाइज करना फायदेमंद रहता है. ऐक्सरसाइज पुराने रोगों की रोकथाम से ले कर मौडर्न लाइफस्टाइल को ठीक करने तक में लाभदायक होती है. यह तनाव और घबराहट से मुक्ति दिलाती है. ऐक्सरसाइज आप के वजन पर भी नियंत्रण रखती है.

अगर आप रोज 30 मिनट तक  ऐक्सरसाइज करें तो उस के आप को ये लाभ होंगे :

  • दिल का दौरा पड़ने का खतरा कम होगा.
  •  वजन नियंत्रण में रहेगा.
  • ऐक्सरसाइज कोलैस्ट्रौल को नियंत्रित रखेगी.
  • टाइप टू डायबिटीज और कई तरह के कैंसर के खतरे को कम करेगी.
  • ब्लडप्रैशर कम होगा.
  • हड्डियां मजबूत होंगी और मांसपेशियों के कमजोर होने का खतरा कम होगा.
  • अधिक ऊर्जा महसूस करेंगे, खुश रहेंगे और नींद अच्छी आएगी.

तनाव से मुक्ति

इस के अलावा वर्कआउट नकारात्मक विचारों और टैंशन को भी कम करता है. अगर आप फिट हैं तो मन भी खुश रहेगा.

ऐक्सरसाइज सैरोटोनिन, ऐंडोर्फिन और स्ट्रैस के प्रभाव को कम कर मस्तिष्क के रसायन स्तर को संतुलित करती है.

जब आप ऐक्सरसाइज करते हैं तो आप का शरीर फिट रहने के साथसाथ सही आकार में भी रहता है, जिस से आप के पार्टनर का ध्यान आप की ओर सहजता से खिंचता है.

आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी

पूरे दिन की थकान के बाद जब आप ऐक्सरसाइज करते हैं, तो आप रिलैक्स हो जाते हैं. इस से सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास बढ़ता है.

जिस तरह दांतों को ठीक रखने के लिए ब्रश करना जरूरी होता है उसी तरह फिट बौडी और सकारात्मक सोच के लिए कम से कम सप्ताह में 5 दिन 30 मिनट तक ऐक्सरसाइज करना आवश्यक है.

शारीरिक रूप से फिट व्यक्ति की सैक्सुअल लाइफ भी अच्छी रहती है, क्योंकि ऐक्सरसाइज से आप की मांसपेशियां टोंड रहती हैं.

एक शोध में पता चला है कि रोज ऐक्सरसाइज करने वाले दंपती का आपसी रिश्ता अधिक मजबूत होता है. अधिक उम्र तक वे एकदूसरे को आकर्षक मानते हैं.

इस तरह के ऐक्सरसाइज में ऐरोबिक, कुछ दूर पैदल चलना सब से अधिक प्रभावशाली होती है. ऐक्सरसाइज से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है और व्यक्ति काफी समय तक अपनेआप को युवा महसूस करता है. पूरे दिन में आप आसानी से 30 मिनट ऐक्सरसाइज के लिए निकाल सकते हैं.

लड़कियों के लिए तो ऐक्सरसाइज खासतौर पर फायदेमंद रहती है. इस से तनाव, ब्लडप्रैशर, कोलैस्ट्रौल जैसी कई समस्याओं से राहत मिलती है.

यौनजनित बीमारियां: बताने में शर्म कैसी

यौनजनित एलर्जी एवं रोगों का पता नहीं चल पाता, क्योंकि यह थोड़ा निजी सा मामला है. इस बारे में बात करने में लोग झिझकते हैं और अकसर चिकित्सक या परिजनों को भी नहीं बताते. जहां यौन संसर्ग से होने वाले रोग (एसटीडी) कुछ खास विषाणु एवं जीवाणु के कारण होते हैं, वहीं यौनक्रिया से होने वाली एलर्जी लेटेक्स कंडोम के कारण हो सकती है. अन्य कारण भी हो सकते हैं, परंतु लेटैक्स एक प्रमुख वजह है.

यौन संसर्ग से होने वाले रोग

एसटीडीज वे संक्रमण हैं जो किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संसर्ग करने पर फैलते हैं. ये रोग योनि अथवा अन्य प्रकार के सैक्स के जरिए फैलते हैं, जिन में मुख एवं गुदा मैथुन भी शामिल हैं. एसटीडी रोग एचआईवी वायरस, हेपेटाइटिस बी, हर्पीज कौंपलैक्स एवं ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) जैसे विषाणुओं या गोनोरिया, क्लेमिडिया एवं सिफलिस जैसे जीवाणु के कारण हो सकते हैं.

इस तरह के रोगों का खतरा उन लोगों को अधिक रहता है जो अनेक व्यक्तियों के साथ सैक्स करते हैं, या फिर जो सैक्स के समय बचाव के साधनों का प्रयोग नहीं करते हैं.

कैंकरौयड : यह रोग त्वचा के संपर्क से होता है और अकसर पुरुषों को प्रभावित करता है. इस के होने पर लिंग एवं अन्य यौनांगों पर दाने व दर्दकारी घाव हो जाते हैं. इन्हें एंटीबायोटिक्स से ठीक किया जा सकता है और अनदेखा करने पर इन के घातक परिणाम हो सकते हैं. कंडोम का प्रयोग करने पर इस रोग के होने की आशंका बहुत कम हो जाती है.

क्लैमाइडिया : यह अकसर और तेजी से फैलने वाला संक्रमण है. यह ज्यादातर महिलाओं को होता है और इलाज न होने पर इस के दुष्परिणाम भी हो सकते हैं. इस के लक्षण स्पष्ट नहीं होते, परंतु कुछ मामलों में योनि से असामान्य स्राव होने लगता है या मूत्र त्यागने में कष्ट होता है. यदि समय पर पता न चले तो यह रोग आगे चल कर गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब या पूरी प्रजनन प्रणाली को ही क्षतिग्रस्त कर सकता है, जिस से बांझपन की समस्या हो सकती है.

क्रेब्स (प्यूबिक लाइस) : प्यूबिक लाइस सूक्ष्म परजीवी होते हैं जो जननांगों के बालों और त्वचा में पाए जाते हैं. ये खुजली, जलन, हलका ज्वर पैदा कर सकते हैं और कभीकभी इन के कोई लक्षण सामने नहीं भी आते. कई बार ये जूं जैसे या इन के सफेद अंडे जैसे नजर आ जाते हैं. कंडोम का प्रयोग करने पर भी इन जुंओं को रोका नहीं जा सकता, इसलिए बेहतर यही है कि एक सुरक्षित एवं स्थायी साथी के साथ ही यौन संसर्ग किया जाए. दवाइयों से यह समस्या दूर हो जाती है.

गोनोरिया : यह एक तेजी से फैलने वाला एसटीडी रोग है और 24 वर्ष से कम आयु के युवाओं को अकसर अपनी चपेट में लेता है. पुरुषों में मूत्र त्यागते समय गोनोरिया के कारण जलन महसूस हो सकती है, लिंग से असामान्य द्रव्य का स्राव हो सकता है, या अंडकोशों में दर्द हो सकता है. जबकि महिलाओं में इस के लक्षण स्पष्ट नहीं होते. यदि इस की चिकित्सा समय से न की जाए, तो जननांगों या गले में संक्रमण हो सकता है. इस से फैलोपियन ट्यूब्स को क्षति भी पहुंच सकती है जो बांझपन का कारण बन सकती है.

हर्पीज : यह रोग यौन संसर्ग अथवा सामान्य संपर्क से भी हो सकता है. मुख हर्पीज में मुंह के अंदर या होंठों पर छाले या घाव हो सकता है. जननांगों के हेर्पेस में जलन, फुंसी हो सकती है या मूत्र त्याग के समय असुविधा हो सकती है. य-पि दवाओं से इस के लक्षण दबाए जा सकते हैं, लेकिन इस का कोई स्थायी इलाज मौजूद नहीं है.

एचआईवी या एड्स : ह्यूमन इम्यूनोडैफिशिएंसी वाइरस अथवा एचआईवी सब से खतरनाक किस्म का यौनजनित रोग है. एचआईवी से पूरा तंत्रिका तंत्र ही नष्ट हो जाता है और व्यक्ति की जान भी जा सकती है. एचआईवी रक्त, योनि व गुदा के द्रव्यों, वीर्य या स्तन से निकले दूध के माध्यम से फैल सकता है. सुरक्षित एवं स्थायी साथी के साथ यौन संबंध रख कर और सुरक्षा उपायों का प्रयोग कर के एचआईवी को फैलने से रोका जा सकता है.

पैल्विक इन्फ्लेमेटरी डिसीज : पीआईडी एक गंभीर संक्रमण है और यह गोनोरिया एवं क्लेमिडिया का ठीक से इलाज न होने पर हो जाता है. यह स्त्रियों के प्रजनन अंगों को प्रभावित करता है, जैसे फैलोपियन ट्यूब. गर्भाशय या डिंबग्रंथि में प्रारंभिक अवस्था में कोई लक्षण स्पष्ट नहीं होते. परंतु इलाज न होने पर यह बांझपन या अन्य कई समस्याओं का कारण हो सकता है.

यौनजनित एलर्जी : इस तरह की एलर्जी की अकसर लोग चर्चा नहीं करते. सैक्स करते वक्त कई बार हलकीफुलकी एलर्जी का पता भी नहीं चलता. परंतु, एलर्जी से होने वाली तीव्र प्रतिक्रियाओं की अनदेखी नहीं हो सकती, जैसे अर्टिकेरिया, एंजियोडेमा, अस्थमा के लक्षण, और एनाफाइलैक्सिस. इन में से कई एलर्जिक प्रतिक्रियाएं तो लेटैक्स से बने कंडोम के कारण होती हैं. कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं, जैसे कि वीर्य से एलर्जी, गस्टेटरी राइनाइटिस आदि.

लेटैक्स एलर्जी : यह एलर्जी कंडोम के संपर्क में आने से होती है और स्त्रियों व पुरुषों दोनों को ही प्रभावित कर सकती हैं. लेटैक्स एलर्जी के लक्षणों में प्रमुख हैं- जलन, रैशेस, खुजली या अर्टिकेरिया, एंजियोडेमा, अस्थमा के लक्षण और एनाफाइलैक्सिस आदि. ये लक्षण कंडोम के संपर्क में आते ही पैदा हो सकते हैं.

यह एलर्जी त्वचा परीक्षण या रक्त परीक्षण के बाद पता चल पाती है. यदि परीक्षण में एलजीई एंटीबौडी मिलते हैं तो इस की पुष्टि हो जाती है, क्योंकि वे लेटैक्स से प्रतिक्रिया करते हैं. लेटैक्स कंडोम का प्रयोग बंद करने से इस एलर्जी को रोका जा सकता है.

वीर्य से एलर्जी : बेहद कम मामलों में ऐसा होता है, लेकिन कुछ बार वीर्य में मौजूद प्रोटीन से स्त्री में इस तरह की प्रतिक्रिया हो सकती है. कई बार भोजन या एनसैड्स व एंटीबायोटिक्स में मौजूद प्रोटीन पुरुष के वीर्य से होते हुए स्त्री में एलर्जी करने लगते हैं. इस का लक्षण है- योनि संभोग के 30 मिनट के भीतर योनि में जलन. अधिक प्रतिक्रियाओं में एरियूटिकेरिया, एंजियोडेमा, अस्थमा और एनाफाइलैक्सिस आदि शामिल हैं. प्रभावित महिला के साथी के वीर्य की जांच कर के इस एलर्र्जी की पुष्टि की जा सकती है.

दरअसल, नियमित यौन जीवन जीने वाले महिलाओं व पुरुषों को किसी विशेषज्ञ से प्राइवेट पार्ट्स की समयसमय पर जांच कराते रहना चाहिए. इस से यौनजनित विभिन्न रोगों का पता चलेगा और उन से आप कैसे बचें, इस का भी पता चल सकेगा. यदि ऐसी कोई समस्या मौजूद हुईर्, तो आप उचित इलाज करा सकते हैं. यह अच्छी बात नहीं है कि झिझक या शर्र्म के चलते ऐसी बीमारियों का इलाज रोक कर रखा जाए. यदि आप को या आप के साथी को ऐसी कोईर् बीमारी या एलर्जी हो, तो तत्काल विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए.

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