ग्वार की खेती कहां उगाएं कौन सी किस्म

लेखक- भानु प्रकाश राणा

ग्वार के दानों से निकलने वाले गोंद के कारण इस की खेती ज्यादा फायदेमंद हो सकती है. हरियाणा के अनेक इलाकों में ग्वार की खेती ज्यादातर उस के दानों के लिए की जाती है. ग्वार की खेती उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान जैसे अनेक इलाकों में की जाती है. इस की खेती को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती. यह बारानी इलाकों के लिए खरीफ की खास फसल है इसलिए इस की खेती उन्नत तरीके से करनी चाहिए और अच्छी किस्म के बीजों को ही बोना चाहिए.

ग्वार में गोंद होने की वजह से इस का बारानी फसल का औद्योगिक महत्त्व भी बढ़ता जा रहा है. भारत से करोड़ों रुपए का गोंद विदेशों में बेचा जाता है. ग्वार की अनेक उन्नत किस्मों में 30 से 35 फीसदी तक गोंद की मात्रा होती है.

ग्वार की अच्छी पैदावार के लिए रेतीली दोमट मिट्टी मुफीद रहती है. हालांकि हलकी जमीन में भी इसे पैदा किया जा सकता?है. परंतु कल्लर (ऊसर) जमीन इस के लिए ठीक नहीं है.

जमीन की तैयारी : सब से पहले 2-3 जुताई कर के खेत की जमीन एकसार करें और खरपतवारों का भी खत्मा कर दें.

बोआई का समय?: जल्दी तैयार होने वाली फसल के लिए जून के दूसरे हफ्ते में बोआई करें. इस के लिए एचजी 365, एचजी 563, एचजी 2-20, एचजी 870 और एचजी 884 किस्मों को बोएं.

देर से तैयार होने वाली फसल एचजी

75, एफएस 277 की मध्य जुलाई में बोआई करें. अगेती किस्मों के लिए बीज की मात्रा

5-6 किलोग्राम प्रति एकड़ और मध्य अवधि के लिए बीज 7-8 किलोग्राम प्रति एकड़ की जरूरत होती है. बीज की किस्म और समय के मुताबिक ही बीज बोएं.

खरपतवारों की रोकथाम : बीज बोने के 20-25 दिन बाद खेत की निराईगुड़ाई करें. अगर बाद में भी जरूरत महसूस हो तो 15-20 दिन बाद दोबारा एक बार फिर खरपतवार निकाल दें.

गुड़ाई करने के लिए हाथ से चलने वाले कृषि यंत्र हैंडह्वील (हो) से कर देनी चाहिए. ‘पूसा’ पहिए वाला हो वीडर कम कीमत वाला साधारण यंत्र है. इस यंत्र से खड़े हो कर निराईगुड़ाई की जाती?है. इस का वजन तकरीबन 8 किलोग्राम है. इस यंत्र को आसानी से फोल्ड किया जा सकता है. यह यंत्र कहीं?भी लाया व ले जाया जा सकता है.

इस यंत्र को खड़े हो कर, आगेपीछे धकेल कर चलाया जाता?है. निराईगुड़ाई के लिए लगे ब्लेड को गहराई के अनुसार ऊपरनीचे किया जा सकता?है. पकड़ने में हैंडल को भी अपने हिसाब से एडजस्ट कर सकते हैं. यह कम खर्चीला यंत्र है. आजकल यह यंत्र गांवदेहातों में आसानी से मिलता?है. अनेक कृषि यंत्र निर्माता इसे बना रहे हैं.

खेत में पानी : आमतौर पर इस दौरान मानसून का समय होता?है और पानी की जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन अगर बारिश न हो और खेत सूख रहे हों तो फलियां बनते समय हलकी सिंचाई जरूर करें.

फसल की कटाई?: जब फसल की पत्तियां पीली पड़ कर झड़ने लगें और फलियों का रंग भी भूरा होने लगे तो फसल की कटाई करें और कटी फसल को धूप में सूखने के लिए छोड़ दें. जब कटी फसल सूख जाए तो इस की गहाई करें और दानों को सुखा कर रखें.

अगर फसल में कीट व रोग का हमला दिखाई दे तो कीटनाशक छिड़कें और कुछ दिनों तक पशुओं को खिलाने से परहेज करें.

उन्नत किस्में

हरियाणा के लिए

एफएस 277 : यह किस्म सीधी व लंबी बढ़ने वाली है. साथ ही, देर से पकने वाली किस्म है. यह मिश्रित खेती के लिए अच्छी मानी गई है. इस के बीज की पैदावार 5.5-6.0 क्विंटल प्रति एकड़ है.

एचजी 75 : अनेक शाखाओं वाली यह किस्म रोग के प्रति सहनशील है और देर से पकने वाली है. इस के बीज की पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ है.

एचजी 365 : यह कम शाखाओं वाली जल्दी पकने वाली किस्म है. यह किस्म तकरीबन 85-100 दिनों में पक जाती?है और औसतन पैदावार 6.5-7.5 क्विंटल प्रति एकड़ है. इस किस्म के बोने के बाद आगामी रबी फसल आसानी से ली जा सकती है.

एचजी 563 : यह किस्म भी पकने में 85-100 दिन लेती?है. इस के पौधों पर फलियां पहली गांठ व दूसरी गांठ से ही शुरू हो जाती हैं. इस का दाना चमकदार और मोटा होता है. इस किस्म की पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ है.

एचजी 2-20 : ग्वार की यह किस्म पूरे भारत में साल 2010 में अनुमोदित की गई?थी. 90 से 100 दिनों में पकने वाली इस किस्म की फलियां दूसरी गांठ से शुरू हो जाती हैं और इस की फली में दानों की तादाद आमतौर पर दूसरी किस्मों से?ज्यादा होती व दाना मोटा होता है. इस किस्म की औसत पैदावार 8-9 क्विंटल प्रति एकड़ है.

एचजी 870 : इस किस्म को भी साल 2010 में हरियाणा के लिए अनुमोदित किया गया?था. पकने का समय 85-100 दिन. दाने की पैदावार 7.5-8 क्विंटल प्रति एकड़ है. गोंद की औसत मात्रा 31.34 फीसदी तक होती है.

एचजी 884 : ग्वार की इस किस्म को पूरे भारत के लिए साल 2010 में अनुमोदित किया गया था. यह किस्म 95-110 दिन में पकती है. मोटे दाने, दाने की पैदावार 8 क्विंटल प्रति एकड़ व गोंद की औसत मात्रा 29.91 फीसदी तक है.

राजस्थान के लिए

आरजीसी 936 : यह किस्म जल्दी पकने वाली है. दाने मध्यम आकार के और हलके गुलाबी रंग के होते?हैं. 80-110 दिन में पकने वाली यह किस्म अंगमारी रोधक है. इस में झुलसा रोग को सहने की कूवत भी होती?है. इस के पौधे शाखाओं वाले झाड़ीनुमा, पत्ते खुरदरे होते?हैं. सफेद फूल इस किस्म की शुद्धता बनाए रखने में सहायक है. सूखा प्रभावित इलाकों में जायद और खरीफ में यह किस्म बोने के लिए सही है. यह किस्म 8 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है.

आरजीएम 112 (सूर्या) : इस किस्म को जायद और खरीफ दोनों में बोया जा सकता?

है. यह किस्म 85 से 100 दिन में

पक कर तैयार हो जाती?है. इस के पौधे शाखाओं वाले झाड़ीनुमा, पत्ते खुरदरे और एकसाथ पकने वाली यह किस्म

10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती?है. इस किस्म के फूलों का रंग नीला, फली मध्यम लंबी भूरे रंग की और दानों का रंग सलेटी है और इस में बैक्टीरियल ब्लाइट सहन करने की कूवत होती है.

आरजीसी 1002 : शुष्क और कम बारिश वाले इलाकों के लिए यह खास किस्म है. इस के पौधे 60 से 90 सैंटीमीटर ऊंचे व अत्यधिक शाखाओं वाले होते?हैं. इस की पत्तियां खुरदरी होती हैं और पत्ती के किनारों पर स्पष्ट कटाव होते?हैं. फली की लंबाई 4.5 से 5.0 सैंटीमीटर (मध्यम) होती?है. यह शीघ्र पकने वाली किस्म है यानी 80-90 दिन में पक जाती है. पैदावार तकरीबन 10 से 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है.

आरजीसी 1003 : इस किस्म के पौधे अधिक शाखाओं वाले होते?हैं. पत्तियां खुरदरी व किनारी बिना दांतेदार होती हैं. यह फसल 85 से 90 दिनों में पक जाती है. पैदावार 8 से

14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. बीज में गोंद की मात्रा 29 से 32 फीसदी होती?है. यह किस्म देश के शुष्क और अर्द्धशुष्क इलाकों के लिए सही है.

आरजीसी 1017 : इस किस्म के पौधों की पत्तियां खुरदरी और दांतेदार होती हैं. इस की फसल 90 से 100 दिनों में पक जाती है. इस के दाने औसत मोटाई वाले, जिस के 100 दानों का वजन 2.80 से 3.20 ग्राम के मध्य होता है. इस की पैदावार 10 से 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

आरजीसी 1031 (क्रांति) : इस किस्म के पौधे 75 से 108 सैंटीमीटर ऊंचाई वाले और अत्यधिक शाखाओं वाले होते हैं. पौधों पर पत्तियां गहरी हरी, खुरदरी और कम कटाव वाली होती हैं. दानों का रंग सलेटी और आकार मध्यम मोटाई का होता है. इस किस्म

के पकने की अवधि 110 से 114 दिन है

और पैदावार कूवत 10 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

आरजीसी 1038 (करण) : इस किस्म के पकने की अवधि 100 से 105 दिन है. पौधे की पत्तियां खुरदरी और कटाव वाली होती?हैं. इस किस्म की पैदावार कूवत 10 से

21 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. दानों का रंग सलेटी और आकार मध्यम मोटाई का होता?है. फलियां मध्यम लंबी और इन में दानों का उभार साफ दिखाई देता?है. यह किस्म अनेक रोगों की प्रतिरोधक है.

आरजीसी 1033 : इस किस्म के पौधों की?ऊंचाई तकरीबन 40 से 115 सैंटीमीटर होती?है और पौधों पर पत्तियां गहरी हरी, खुरदरी और कम कटाव वाली होती हैं. फूल हलके गुलाबी रंग के और दानों का रंग सलेटी और आकार मध्यम मोटाई का होता है. इस किस्म की अवधि 95 से 106 दिन है और पैदावार कूवत 15 से

25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

आरजीसी 1066 : इस किस्म के पत्ते कटावदार होते हैं. यह किस्म जल्दी पकने वाली है यानी 90 से 100 दिन में पकती है. यह किस्म शाखारहित और गुलाबी रंग के फूलोें वाली होती?है. इस किस्म की पैदावार

तकरीबन 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर?है.

आरजीसी 1055 (उदय) : यह किस्म खरीफ व जायद दोनों के लिए सही?है. पत्तों के किनारे खुरदरे और पौधे शाखा वाले होते हैं. इस के पकने की अवधि 95 से 105 दिन है. औसतन पैदावार 11 से 13 क्विंटल है. सिंचित और बारिश वाले इलाकों के लिए यह किस्म सही है.

पंजाब के लिए

एजी 111 : शाखाओं वाली यह जल्दी पकने वाली उन्नत किस्म?है. इस किस्म के पकने की अवधि 90 से 95 दिन है. औसतन पैदावार 12 से 15 क्विंटल है. सिंचित और बारिश पर आधारित इलाकों के लिए यह किस्म सही है.

ग्वार 80 : यह देरी से पकने वाली और शाखाओं वाली किस्म है. इस के पकने की अवधि 115 से 120 दिन है. औसतन पैदावार

18 से 20 क्विंटल है. सिंचित और बारिश आधारित इलाकों के लिए यह किस्म सही है.

दिल्ली के लिए

नवीन : यह किस्म जल्दी पकने वाली है. इस के पौधे शाखाओं वाले होते हैं. इस की पकने की अवधि 90 से 95 दिन है. औसतन पैदावार 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मिलती?है. सिंचित और बारिश आधारित इलाकों के लिए सही है.

सुविधा : यह भी जल्दी पकने वाली किस्म है. इस के पौधे शाखाओं वाले होते?हैं. इस के पकने की अवधि 90 से 95 दिन है. औसतन पैदावार 15 से 18 क्विंटल. सिंचित और बारिश आधारित इलाकों के लिए सही?है.

सोना?: यह देरी से पकने वाली किस्म है. इस के पकने की अवधि 115 से 120 दिन है. औसतन पैदावार 16 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. सिंचित और बारिश आधारित क्षेत्रों के लिए सही?है. यह अनेक शाखाओं वाली किस्म?है.

पीएलजी 85 : यह देरी से पकने वाली उन्नत किस्म है. इस के पकने की अवधि 100 से 110 दिन है. औसतन पैदावार 15 से 18 क्विंटल, सिंचित व बारिश आधारित इलाकों के लिए सही?है.

उत्तर प्रदेश के लिए

बुंदेल 1 : यह देरी से पकने वाली किस्म है. इस के पकने की अवधि 115 से 120 दिन?है. औसतन पैदावार 14 से 16 क्विंटल तक है. सिंचित और बारिश आधारित इलाकों के लिए सही है.

बुंदेल 2 : यह भी देरी से पकने वाली किस्म?है. इस के पकने की अवधि 115 से 120 दिन?है. औसतन पैदावार 14 से 16 क्विंटल तक है. सिंचित और बारिश आधारित इलाकों के लिए सही है.

गुजरात के लिए

जीजी 1 : यह अनेक शाखाओं वाली किस्म है. इस के पकने की अवधि 105 से 110 दिन है. औसतन पैदावार 8 से 11 क्विंटल है. बारिश पर आधारित इलाकों के लिए सही और फैलने वाली जीवाणु झुलसा रोग प्रतिरोधक है.

जीजी 2 : बारिश आधारित इलाकों के लिए यह ग्वार की उन्नत किस्म है. इस के पकने की अवधि 100 से 110 दिन है. औसतन पैदावार 11 से 13 क्विंटल है. यह फैलने वाली जीवाणु झुलसा रोग प्रतिरोधक है.

सब्जी के रूप में ग्वार : गंवई इलाकों में ग्वार की फलियों के साथसाथ फूलों की सब्जी बना कर खाने में इस्तेमाल किया जाता है. अब तो शहरों में भी तमाम लोग ग्वार की फलियों को सब्जी के रूप में पसंद करते हैं.

ग्वार की फली का बाजार भाव भी अच्छा मिलता है. इसलिए किसानों को चाहिए कि वह ग्वार की खेती करते समय जागरूक रहें और अपने इलाके के मुताबिक उन्नत किस्मों के बीजों का इस्तेमाल करें, जिस से बेहतर पैदावार मिल सके.

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