कुहू : परिवार को संभालती एक हिम्मती लड़की

लेखक – प्रदीप कुमार रॉय 

वह अपने मातापिता का एकलौता बेटा था. 3 बहनें उस से बड़ी थीं. हम लोग उस के पड़ोस में रहते थे. उस के लालनपालन को देख कर बचपन से ही मैं उस से जलता था.

वह मुझ से 5 साल छोटा था, पर उसे वे सारी सुविधाएं मुहैया थीं, जिन की चाह अकसर हर बच्चे को होती है.

उस के पास खेलने के लिए महंगे खिलौने थे, पहनने को एक से एक मौडर्न पोशाकें थीं, पढ़ने के लिए तरहतरह की पत्रिकाएं और कहानियों की ढेरों किताबें थीं.

कम आमदनी के बावजूद भी उस के पिता उस की तमाम जायज और नाजायज जरूरतों को पूरा करने में खुशी महसूस करते थे, जिस की भरपाई बहनों से होती थी. उन की तो आम जरूरतें ही पूरी नहीं होती थीं.

वे तीनों एक जोड़ी कपड़े में साल निकाल देती थीं. पढ़नेलिखने के लिए किताबें और कौपियां भी नहीं होती थीं. लड़कियां पढ़लिख लें, इस की चिंता मांबाप को कतई नहीं थी. लड़कियां घर के कामकाज में लगी रहती थीं और मांबाप बेटे की देखभाल में.

दोनों बड़ी बहनों की पढ़ाई 5वीं-6ठी क्लास तक ही सिमट कर रह गई. उन्हें इस की कोई शिकायत नहीं थी, बल्कि उन्होंने तो छोटी उम्र से ही  झाड़ूपोंछा से ले कर चौकाबरतन तक सभी कामों में अपनेआप को ढाल लिया था, घर का सारा काम संभाल लिया था, बल्कि ऐसा करने पर उन्हें मजबूर किया गया था, क्योंकि नौकरचाकर को तो खर्च में कटौती के लिए हटाया जा चुका था. तकलीफें तो बहनों को सहनी पड़ी थीं.

लेकिन, जो सब से ज्यादा अनदेखी की शिकार हुई थी, वह थी कुहू. बस, इसी के चलते उसे बचपन से ही पढ़ाईलिखाई में बेहद दिलचस्पी थी. घर के कामकाज से उसे न कोई लगाव था और न ही कोई इच्छा थी. वह दिनभर पढ़नेलिखने में ही लगी रहती थी, जिस का खमियाजा उसे मां की डांटफटकार से भुगतना पड़ता था.

मां से डांट पड़ती… वे कहतीं, ‘‘क्या कर लेगी पढ़लिख कर. लड़की जात है, कुछ भी कर ले, चूल्हाचौका में सिमट कर रह जाएगी. बेहतर है कि अभी से घरगृहस्थी के काम सम झ ले, नहीं तो बाद में पछताएगी. फिर न कहना कि मां ने यह सब सिखाया नहीं था.’’

कभीकभी उसे मार भी पड़ती थी. बड़ी दोनों बहनें काम करती थीं, इसलिए उन्हें मार नहीं पड़ती थी. ये सब बातें कुहू के दिलोदिमाग पर इस तरह से रचबस गई थीं कि बरसों बाद आज जब मैं उस से मिला, तो आगबबूला हो कर अपनी भड़ास निकालते हुए मु झे बताने लगी.

दरअसल, मैं उस की बड़ी बहन की शादी में शरीक होने आया था. इधरउधर की बातों के बाद जब मैं ने उस के भाई संतु के बारे में जानने की इच्छा जाहिर की, तो वह भड़क गई और अनापशनाप बकने लगी.

गुस्से में कुहू न जाने क्याक्या कह गई, ‘‘तीसरी बेटी के रूप में पैदा होना जैसे मेरे लिए एक कलंक था… शायद मांबाप की इच्छा के खिलाफ मैं पैदा हो गई थी. एक साल के बाद ही संतोष उर्फ संतु पैदा हुआ था. बेटे के आते ही घर में रौनक का माहौल बन गया था. मांबाप का उस के प्रति जरूरत से ज्यादा लाड़प्यार से मैं असहज महसूस करती. अपनेआप को मातापिता की नजरों में हमेशा गिरा हुआ पाती. अपने प्रति मां के भेदभाव को तब मैं अच्छी तरह सम झने लगी थी. मेरे पैदा होते ही गुस्से से पिता ने भगवान की फोटो को नदी में फेंक कर घर में पूजापाठ पर रोक लगा दी थी,’’ ऐसा बताते हुए कुहू फूटफूट कर रो पड़ी थी.

संतु के पैदा होते ही भगवान को घर में फिर से प्रतिष्ठित किया गया था और घर में पूजापाठ फिर से शुरू हो गया था. ऐसा कुहू ने सुना था और भी उस ने बताया कि किस तरह खानेपहनने में उन की मां उन के साथ भेदभाव किया करती थीं… ‘‘सुबह नाश्ते में अकसर हम बहनों के लिए बासी रोटी होती थी और वे भी रूखीसूखी, जबकि संतु के लिए परांठे और मक्खन. दूध, दही, फल वगैरह के लिए तो हम बहनें तरस ही जाती थीं.

‘‘संतु के खाने के बाद अगर कुछ बचता तो ही हमें नसीब होता था. एक जोड़ी स्कूल के कपड़ों से हफ्ता निकाल देती थीं… पसीने की बदबू आती थी, सहेलियां फब्तियां कसती थीं, जबकि संतु की पोशाक हमेशा लौंड्री से धुली हुई होती थी.

‘‘इस्तरी वाले पोशाक हम बहनें सिर्फ किसी खास मौके पर, जैसे गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस पर ही पहनती थीं, जिस के लिए हम शाम को स्कूल के बाद खुद अपने कपड़े धोतीं और पंखे के नीचे सुखाया करतीं…

‘‘बड़ी दीदी कपड़ों पर इस्तरी कर देतीं. कभीकभी कपड़े सूख नहीं पाते और गीले कपड़ों में ही स्कूल जाना पड़ता था… और वहीं संतु… जिसे मांबाप ने सिर पर बिठा रखा था, आज..’’  कहतेकहते कुहू दोबारा फफक कर रो पड़ी.

कुहू की इन बातों से कुछ पता चले या न चले, पर इतना तो साफ हो गया था कि संतु के किसी गैरजिम्मेदाराना बरताव से उसे गहरा सदमा पहुंचा है और वह दुखी है. ऐसे समय में मैं ने उसे कुरेदना ठीक नहीं सम झा. मैं ने उसे हिम्मत बंधा कर चुप कराया.

शादी में काफी लोग थे. पर न जाने क्यों चहलपहल में कमी कहीं न कहीं मु झे डरा रही थी. मैं 10 साल बाद इस परिवार से मिल रहा था.

मेरी 10वीं जमात के बाद पिताजी का तबादला हो गया और उस के बाद कभी कोई ऐसा मौका नहीं आया कि हम मिलते. कुहू से कालेज में बातचीत हो जाती थी… पर सीमित रूप से. कई पुराने दोस्तों से वहां मुलाकात हुई. उन लोगों से ही संतु के बारे में जानकारी मिली और उस के वहां न होने की वजह साफ हो गई.

दरअसल, कालेज में फर्स्ट ईयर के दौरान संतु पिंकी के प्रेमपाश में फंस गया था, जिस पर कुहू ने एतराज जताया था, क्योंकि कुहू पिंकी के चरित्र से अच्छी तरह वाकिफ थी.

पिंकी कुहू की हमउम्र थी. दोनों एक ही क्लास में पढ़ती थीं. पिंकी को डांस में दिलचस्पी थी. वह बचपन से ही कथक डांस की तालीम ले रही थी. स्कूल हो या कालोनी… सभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में डांस करने के लिए उसे कहा जाता था. डांस के सिलसिले में उसे अपने ग्रुप के साथ शहर से बाहर भी जाना पड़ता था.

कुहू और पिंकी दोनों अच्छी सहेली हुआ करती थीं. दोनों का एकदूसरे के घर पर आनाजाना था. उन का एकसाथ पढ़नालिखना और घूमनाफिरना भी था. तब पिंकी के कई बौयफ्रैंड हुआ करते थे, जो शायद पिंकी के मुताबिक डांस ग्रुप से ही जुड़े थे, इसलिए कुहू उन से अनजान थी.

स्कूल जाते हुए या कभी शाम को टहलते हुए उन दोस्तों में से कोई न कोई पिंकी से मिलने आ जाता था. कई बार कुहू को उन के मिलनेजुलने का ढंग अच्छा नहीं लगता था. वह पिंकी से इस की शिकायत भी करती, पर वह किसी न किसी बहाने सबकुछ टाल जाती.

कई बार तो पिंकी रातरात भर घर से बाहर रहती, पर अपने घर पर बता कर आती कि वह कुहू के घर जाएगी गणित की प्रैक्टिस करने. कभीकभी तो किसी कार्यक्रम के लिए डांस की प्रैक्टिस करने का बहाना बना कर रातभर घर से नदारद रहती थी.

पिंकी की मां के पूछने पर कुहू वैसा ही बताती, जैसा कि उसे पिंकी के द्वारा कहने को कहा जाता था. उस के लिए कुहू को बेवजह ही  झूठ बोलना पड़ता था, जो वह नहीं चाहती थी. उन लड़कों के चालचलन पर उसे शक होने लगा था. यकीनन, ये आवारा लड़के ही थे, जिन से पिंकी का मेलजोल था.

पूछने पर पहले तो कुहू ने आनाकानी की, पर असलियत का पता चलते ही फौरन कुहू ने पिंकी से दूरी बना ली. फिर भी पिंकी कहीं न कहीं किसी रैस्टोरैंट में, पार्क में या सड़क पर किसी पेड़ की आड़ में लड़कों के साथ मटरगश्ती करती दिख ही जाती. कभी किसी के साथ तो कभी कोई और होता था. खुले आसमान में चिडि़या अपने पंख फैला कर उड़ रही थी… न कोई दिशा थी और न ही कोई मंजिल.

अब संतु की बारी थी. वह भी पिंकी के प्यार के चंगुल से बच नहीं पाया. वह पिंकी पर फिदा हो चुका था. सरेआम दोनों का मिलनाजुलना होता था.

पिंकी के साथ संतु का मेलजोल कुहू को बिलकुल बरदाश्त नहीं था, क्योंकि पिंकी की कोई भी बात उस से छिपी तो थी नहीं.

कुहू नहीं चाहती थी कि उस का भाई पिंकी के साथ रह कर बिगड़ जाए. उस की पढ़ाई में कहीं बाधा न हो.

जब कुहू ने अपना कड़ा एतराज जताया, तो संतु ने अपनी बहन को ही भलाबुरा कह डाला. तमतमाए चेहरे से अपनी बहन को ओछी सोच वाला बताया और यह भी कह डाला कि वह पिंकी से जलती है.

कुहू संतु को साफसाफ कहना चाहती थी, ‘गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड का होना हर किसी का निजी मामला है. किसी को उस में दखल देने का कोई हक नहीं है. फिर किसी के तुम्हारी गर्लफ्रैंड होने से भला मु झे कोई शिकायत या परेशानी क्यों होगी. दरअसल, परेशानी की बात यह है कि पिंकी की बुरी संगति से एतराज है.’

पर कुहू ने चुप रहना ही उचित सम झा, क्योंकि उसे यकीन था कि जल्दी ही पिंकी आदतन संतु को भी अपने हाल पर छोड़ कर किसी और को फंसा लेगी.

आखिर हुआ भी वही…  संतु को ठुकरा कर पिंकी पैसों के लिए किसी और के साथ अठखेलियां करने लगी

थी. पर एक पागल प्रेमी की तरह संतु अपनेआप को पिंकी से अलग होने की बात सोच भी नहीं सकता था.

वह पिंकी के पीछे हाथ धो कर पड़ गया. उस ने दाढ़ी बढ़ा ली और पिंकी के इर्दगिर्द चक्कर काटने लगा, ताकि पिंकी उस पर तरस खा कर फिर से दोस्ती का हाथ बढ़ा ले.

पर पिंकी तो पुरानी खिलाड़ी निकली. उस ने अपना पुराना नुसखा आजमाया. नतीजतन, संतु चोटिल हालत में अस्पताल के बैड पर कराहता मिला. इन सब बातों के बावजूद अपनी बहन के साथ उस का संबंध बिगड़ा ही रहा.

संतु का पिंकी की निजी जिंदगी में दखल पिंकी और उस के बौयफ्रैंड को गवारा न हुआ. संतु से छुटकारा पाने के लिए पिंकी और उस के बौयफ्रैंड ने कोर्टमैरिज कर ली. इस में शायद उस के बौयफ्रैंड की ही पहल रही होगी.

अब तो संतु पढ़ाई वगैरह छोड़ पागलों की तरह भटकने लगा. उसे शराब की लत लग गई थी. घर पर वह कभीकभार ही आता था.

संतु की बदहाली पर घर के सभी सदस्य परेशान थे. जिस लड़के को मांबाप ने बेटियों की सामान्य जरूरतों की अनदेखी कर लाड़प्यार से पालापोसा, उस की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी.

आज संतु दरदर भटक रहा है. किस मांबाप से यह सब सहन होगा… घर पर पहली शादी थी और घर का एकलौता बेटा इस खुशी के मौके पर नहीं था. खुशी के माहौल में वहां मातम सा पसरा था.

संतु कुछेक साल यों ही गुमशुदा रहा. हुआ यों कि आखिरी बार जब वह घर आया था और मांबाप ने उस की शादी की बात चलाई थी, तो उस ने साफ मना कर दिया था.

संतु ने कहा था कि वह शादी नहीं करेगा और अगर करेगा भी तो किसी विधवा से करेगा. शादी और विधवा से? ऐसे बेतुके लगने वाले प्रस्ताव पर किसी की रजामंदी नहीं थी.

पहले कुहू ने ही अपना विरोध जताया था, मातापिता ने बस कुहू के फैसले पर हामी भरी थी, पर उन के अंदर की सुगबुगाहट किसी से छिपी नहीं थी. आखिर बेटा जो ठहरा.

दरअसल, उन्हें अपने बेटे के द्वारा लिए गए फैसले को किसी क्रांतिकारी कदम से कम नहीं सू झा. पर, खुल कर कुछ कहने से बचे रहे. वे कुहू के खिलाफ जा कर उसे नाराज नहीं करना चाहते थे. कुहू ही तो एकमात्र सहारा थी. वैसे भी दोनों बड़ी बहनें शादी के बाद ससुराल में थीं. संतु अपने फैसले पर अडिग रहा.

जातेजाते संतु ने इसे अपना फैसला बताते हुए कहा कि चाहे कुछ भी हो, वह ऐसा कर दिखलाएगा. संतु के मुंह से विधवा विवाह वाली बात सभी कीसम झ से परे थी.

संतु कहीं बाहर चला गया. किसी ने भी उसे ढूंढ़ने की कोशिश नहीं की. सुनीसुनाई खबर थी कि आजकल वह हरिद्वार के किसी आश्रम में रह रहा है और योग सिखा रहा है. इस बात से पता नहीं क्यों मु झे बड़ा सुकून मिला.

मु झे महसूस हुआ कि शायद अब संतु सुधर गया है, वरना किसी विधवा से विवाह की बात उस के मन में क्यों आई. उस में मु झे समाजसुधारक की छवि नजर आने लगी. उस से मिलने की इच्छा मेरे मन में जाग गई, पर सिर्फ मन मसोस कर रह जाना पड़ा. सिवा इस के मेरे पास कोई उपाय नहीं था.

बूढ़े मांबाप के साथ अब अकेली कुहू ही रह गई. अपने मांबाप को साथ लिए इलाहाबाद आ गई. वहां वह कालेज में टीचिंग का काम कर रही है.

कुहू को दुख इस बात का था कि मांबाप की हर खुशी का ध्यान रखते हुए भी उस के लिए उन्हें कोई फिक्र न थी, बल्कि बातबात में संतु को याद कर के वे परेशान होते.

इसी सदमे में पिताजी चल बसे. संतु का कोई ठिकाना नहीं था. उसे यह खबर नहीं दी जा सकी. मैं पहुंच गया था.

कुहू की मां को अब अपने पति के खोने का गम सताने लगा था. वे कुछ ज्यादा ही बेचैन रहने लगी थीं. उन्हें शायद यह डर था कि कुहू शादी कर लेगी, तो उन का क्या होगा? वे कहां रहेंगी? इस शक से तो वह शायद पति के रहते हुए भी चिंतित थीं, लेकिन कभी खुलासा नहीं किया था.

आजकल मां के हावभाव से कुहू सम झने लगी है. कभीकभार तो अनायास ही इशारेइशारे में कुछ कह जाती हैं. अब पहले की तरह कोसती नहीं. बचपन में बातबात पर कोसती थीं. पढ़नेलिखने में बाधा पैदा करती थीं.

कितनी छोटी सोच थी कि बेटा पढ़लिख कर मांबाप के बुढ़ापे का सहारा बनेगा. बेटी पढ़ेगी तो क्या कर लेगी, आखिर ससुराल ही तो जाएगी. अपने मांबाप के लिए तो पराई ही होगी…

तभी तो बचपन से कुहू ने अपने घर में पराई होने जैसी दुखद घडि़यों को जिया है. बचपन से ही उसे पढ़ने की जिद रही है. माहौल न होने के बावजूद भी उस ने पढ़ाई जारी रखी. बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती और उन्हीं पैसों से पढ़ाई का खर्च निकालती.

एमए के बाद कुहू टीचिंग में आ गई. साथसाथ पीएचडी भी कर रही है. अपनी हैसियत पर हर टारगेट को हासिल किया है उस ने. दोनों बहनों की शादी में हाथ बंटाया, वरना उस के पिताजी की आमदनी ही कितनी थी. उस ने अपनी जिम्मेदारी से कभी मुंह नहीं मोड़ा. अब इस हालत में मां को छोड़ कर अपनी शादी की बात कैसे सोच सकती थी वह.

बचपन से ही हम एकदूसरे को चाहते थे. बड़े हुए तो बड़ी सादगी से मिलते थे. रिश्ते को निभाने में शुरू से हम ने कभी ऐसी कोई फूहड़ हरकत नहीं की, जिस से हमारे संबंध की भनक तक किसी को पड़ती.

हम दोनों के रिश्ते की बात सिर्फ हम ही जानते थे. हम एकदूसरे की तकलीफों और मजबूरियों को बखूबी सम झते थे. किसी ने भी कभी कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई, तभी तो हमारे संबंध मजबूत थे.

कुहू ने बताया कि एक दिन अचानक संतु मां को लेने आ गया. उस ने शादी कर ली थी. यही बताया था संतु ने मां को. मां तो जैसे बेटे के इंतजार में बिलकुल तैयार बैठी थीं. बेटे के साथ ऐसी गईं, मानो अचानक तय समय से पहले किसी कैदी की सजा माफ कर दी गई हो. ऐसा लगा जैसे वह यहां कैदी

की जिंदगी जी रही थीं और छुटकारा मिलते ही भाग खड़ी हुईं. कुछ कह कर भी नहीं गईं.

कुहू उन्हें जाते हुए देखती रह गई. मुड़ कर भी पीछे नहीं देखा था उन्होंने. यहां से चले जाने के बाद वह अकेली कैसे रहेगी, पूछा तक नहीं.

कुहू की 10 साल की तपस्या एक पल में भंग हो गई, मानो इस जमाने में लड़की के रूप में जन्म लेना ही पाप है. रोरो कर कुहू का बुरा हाल था. उसे दिलासा देने वाला कोई भी साथ नहीं था. उस के कहने पर एक परची में संतु अपना पता छोड़ गया था.

अचानक एक दिन कुहू ने मु झे आने को कहा. आननफानन में ही हम दोनों ने आर्य समाज विधि से शादी कर ली. सिर्फ मेरे घर के लोग शादी में थे.

कुहू ने किसी को भी नहीं बुलाया था. मां, बहनें और भाई किसी को भी नहीं. जब किसी को उस की फिक्र नहीं है, तो वह क्यों उन्हें बुलाए.

उन लोगों के प्रति कुहू के मन में गुस्सा होना मुझे लाजिमी लगा. मेरे घर के लोग इस शादी से बेहद खुश लगे.

कई महीने बीत गए. पता नहीं अचानक कुहू को मां की याद आने लगी. हम दोनों ने उन से मिलने का मन बनाया. हरिद्वार के किसी आश्रम का पता परची में लिखा था.

जब हम वहां आश्रम में पहुंच कर संतु के बारे में पूछताछ कर रहे थे, तो मैलीकुचैली साड़ी में लिपटी एक दुबली सी बुढि़या कुहू से लिपट कर रोने लगीं.

वे मां हो सकती हैं, हम ने कल्पना भी नहीं की थी. वे सूख कर कांटा हो चुकी थीं, पहचानना मुश्किल हो रहा था.

मां की हालत पर कुहू भी बिलख कर रोने लगी थी. उन्हें शांत कराया. मां हमें संतु के घर पर ले गईं. वहां संतु नहीं था और न ही उस की पत्नी. वे कई दिनों से शहर से बाहर किसी योग शिविर में गए हुए थे.

मां ने बताया कि महीने में 20 दिन वे लोग घर से बाहर रहते हैं. हमें मां की बदहाली की वजह सम झते देर नहीं लगी. वहां दीवार पर टंगी फोटो में संतु के साथ पिंकी थी.

पिंकी के पति की मौत में हत्या का जो शक जताया जा रहा था, उस की तसदीक तो नहीं हो पाई थी, पर संतु को जिस विधवा विवाह की बात पर जिद थी, उस के पीछे की कहानी साफ हो गई थी.

तकरीबन घंटाभर रहने के बाद जब हम निकलने लगे, तो मां एक साफ साड़ी में तैयार हो कर बड़ी बेबसी से कुहू के चेहरे पर उभरते भावों को अपनी सूनी निगाहों से टोह रही थीं. कुहू ने विनम्र आंखों से मेरी रजामंदी मांगी थी. मां को साथ ले कर हम वहां से वापस आ गए.

स्टेटस: ऑटो रिक्शा चालक का संघर्ष

आटोरिकशा चालक रामलाल ने अपने बेटे को पढ़ाने के लिए खूब मेहनत की, ताकि अमीर लोग उसे गरीब न कह सकें. बेटा बड़ा हो कर इंजीनियर बन गया और अपने बूढ़े मांबाप को छोड़ कर दूसरे शहर चला गया, ताकि उस के स्टेटस में फर्क न आए…

बेचारा रामलाल आटोरिकशा वाला… हर कोई उस से तूतड़ाक से बात करता था. उसे बहुत बुरा लगता था. वह सोचता, ‘मैं गरीब हूं, लेकिन इनसान तो इन के जैसा ही हूं, फिर ये अमीर लोग इस तरह से क्यों बात करते हैं?’ रामलाल ने मन में प्रण कर लिया कि वह अपने बेटे को बड़ा अफसर बनाएगा, ताकि उस से कोई इस तरह बात न करे. इस के लिए रामलाल दिन में आटोरिकशा चलाता, रात में चौकीदारी करता, ताकि बेटे को बड़े स्कूल में  पढ़ा सके.

बेटा पढ़लिख कर इंजीनियर बन गया. उस का बड़ेबड़े लोगों के साथ उठनाबैठना हो गया था. अब उसे पिता के आटोरिकशा चलाने पर शर्म महसूस होती थी. लिहाजा, उस ने दूसरे शहर में अपना ट्रांसफर करा कर वहीं शादी करने का फैसला किया. कुछ समय बाद बेटे ने अपनी मां को फोन किया, ‘‘मां, कल मैं शादी कर रहा हूं. किसी दिन आ कर मैं आप का आशीर्वाद ले जाऊंगा.’’

यह सुन कर मां ने कहा, ‘बेटा, या तो तू यहां आ कर शादी कर ले या फिर हम वहां आ जाते हैं.’ ‘‘मां, वहां सब मुझे जानते हैं कि मैं आटोरिकशा वाले का बेटा हूं. मुझे शर्म आती है.

यहां मुझे कोई नहीं जानता, इसलिए मैं यहीं रहूंगा. आप यहां नहीं आना, क्योंकि यहां मेरा जो स्टेटस है, उस में आप एडजस्ट नहीं कर पाओगे,’’ बेटे ने कह डाला. इसी बीच रामलाल ने फोन ले कर कहा, ‘बेटा, इसी आटोरिकशा वाले ने ही तेरा यह स्टेटस बनाया है.

क्या तुम्हारी खुशियों में हमें शामिल होने का  या तुम्हारी जिंदगी में हमारा कोई हिस्सा नहीं है?’ यह सुन कर बेटे ने कहा, ‘‘पापा, आप ने जो किया वह अपने अहम के लिए किया. जब भी मेरे अच्छे नंबर आते थे, आप सब को बताते फिरते थे. अब मैं जिस शहर और सर्कल में हूं, वह दूसरा है.

यहां सब के मांबाप पहले से ही हैसियत वाले हैं.  ‘‘आप हमारे समाज को तो जानते ही हैं न, जो धर्म, जाति, रंग के साथसाथ बैकग्राउंड से भी बंटा हुआ है. आप ने ही मुझे समझाया था कि मैं मुसलिम और दलितों से दोस्ती नहीं करूं, क्योंकि वे हम जैसे नहीं हैं. आप और मां भी अब मेरे और आप की बहू जैसे नहीं हैं.’’ रामलाल मुंह खोले सुन रहा था और उस के पास जवाब देने लायक बोल नहीं बचे थे.

बोझ: ससुरजी की मन की पीड़ा को कैसे किया बहू अंजू ने दूर

उस  रात अंजु और मनोज बुरी तरह झगड़े. मनोज अपने दोस्त के घर से पी कर आया था और अंजु ने अपनी सास के साथ झड़प हो जाने के बाद कुछ देर पहले ही तय किया था कि वह अपनी ससुराल में किसी से डरेगीदबेगी नहीं. इन दोनों कारणों से उन के बीच झगड़ा बढ़ता ही चला गया.

‘‘तुम्हें इस घर में रहना है, तो काम में मां का पूरा हाथ बंटाओ. तुम मटरगस्ती करती फिरो और मां रसोई में घुसी रहे, यह मैं बिलकुल बरदाश्त नहीं करूंगा,’’ मनोज की गुस्से से कांपती आवाज पूरे घर में गूंज उठी.

‘‘आज औफिस में ज्यादा काम था, इसलिए देर से आई थी. फिर भी मैं ने उन के साथ थोड़ा सा काम कराया… अपनी मां की हर बात सच मानोगे, तो हमारी रोज लड़ाई होगी,’’ अंजु भी जोर से चिल्लाई.

‘‘उन की रोज की शिकायत है कि जिस दिन तुम वक्त से घर आ जाती हो, उस दिन भी तुम उन के साथ कोई काम नहीं कराती हो.’’

‘‘यह झठ बात है.’’

‘‘झठी तुम हो, मेरी मां नहीं.’’

‘‘नहीं, झठी तुम्हारी मां है.’’

उस रात मनोज ने अपनी दूसरी पत्नी पर पहली बार हाथ उठा दिया. उन की शादी को अभी 2 महीने ही बीते थे.

‘‘तुम्हारी मुझ पर हाथ उठाने की जुर्रत कैसे हुई? अब दोबारा हाथ उठा कर देखो… मैं अभी पुलिस बुला लूंगी.’’

उस की चिल्ला कर दी गई इस धमकी को सुन कर राजनाथ और आरती अपने बेटेबहू को शांत कराने के लिए उन के कमरे में आए.

गुस्से से कांप रही अंजु ने अपनी सास को जलीकटी बातें सुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. जवाब में आरती कुछ देर ही चुप रही. फिर वह भी ईंट का जवाब पत्थर से देते हुए उस से भिड़ गई.

‘‘मुझे नहीं रहना है इस नर्क में. मैं कल सुबह ही अपने मायके जा रही हूं. तुम्हारे मांबाप का बोझ मुझे नहीं ढोना है,’’ धमकी देने के बाद अंजु ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

‘‘ये मुझे कैसे दिन देखने पड़ रहे हैं… पहली बीवी चरित्रहीन थी, सो मुझे छोड़ कर अपने प्रेमी के साथ भाग गई. अब यह दूसरी जो पल्ले पड़ी है, बहुत ही बदतमीज है,’’ अपने को कोसता मनोज उस रात सोफे पर ही सोया.

अगले दिन रविवार था. आंखों में गुस्सा भरी जब 10 बजे के करीब अंजु अपने कमरे से बाहर आई, तो उस ने मनोज को ड्राइंगरूम में मुंह लटकाए बैठे पाया.

उस के पूछे बिना मनोज ने उसे दुखी लहजे में बताया, ‘‘मम्मीपापा सुबह की गाड़ी से मामाजी के पास मेरठ चले गए हैं.’’

‘‘क्यों?’’ चाय बनाने रसोई में जा रही अंजु ने ठिठक कर पूछा.

‘‘ उन के जाने का कारण समझना क्या मुश्किल है?’’

‘‘मुझे जबरदस्ती कुसूरवार मत ठहराओ, प्लीज. तुम्हारी माताजी ने मुझे एक की चार सुनाई थीं.’’

‘‘वे दोनों बीमार रहते हैं. घर से दूर जा कर उन की कैसी भी दुर्गति हो, तुम्हारी बला से.’’

‘‘जब आज मैं ही घर छोड़ कर जाने वाली थी, तो तुम ने उन्हें रोका क्या नहीं?’’

‘‘मैं ने बहुत कोशिश करी, पर पापा नहीं माने.’’

‘‘वे कब तक लौटेंगे?’’

‘‘कुछ बता कर नहीं गए हैं,’’ मनोज ने थकेहारे अंदाज में अपना चेहरा हथेलियों से रगड़ा तो अंजु भी कुछ उदास सी हो गई.

दोनों दिनभर सुस्त ही रहे, पर शाम को उन का बाजार घूम आने का कार्यक्रम बन गया. पहले उन्होंने कुछ खरीदारी करी और फिर खाना भी बाहर ही खाया.

उस रात अंजु को जीभर के प्यार करते हुए मनोज को एक बार भी अपने मातापिता का ध्यान नहीं आया.

अगले 2-3 दिन उन के बीच झगड़ा नहीं हुआ. फिर एक दिन औफिस से अंजु देर से लौटी तो मनोज उस से उलझ पड़ा. दोनों के बीच काफी तूतू, मैंमैं हुई पर फिर जल्द ही सुलह भी हो गई. तब दोनों के मन में यह विचार एकसाथ उभरा कि अगर आरती घर में मौजूद होती, तो यकीनन झगड़ा लंबा खिंचता.

मनोज लगभग रोज ही अपने मातापिता से फोन पर बात कर लेता. अंजु ने उन से पूरा हफ्ता बीत जाने के बाद बात करी थी. उस ने उन दोनों का हालचाल तो पूछ लिया, पर उन के वापस घर लौट आने की चर्चा नहीं छेड़ी.

‘‘देखो, शायद अगले हफ्ते वापस आएं,’’ मनोज जब भी उन के घर लौटने की बात उठाता, तो राजनाथ उसे यही जवाब देते.

जब उन्हें मेरठ गए 1 महीना बीत गया तो अंजु और मनोज के मन की बेचैनी बढ़ने लगी. पड़ोसी और रिश्तेदार जब भी मिलते, तो आरती और राजनाथ के लौटने के बारे में ढेर सारे सवाल पूछते. तब उन्हें कोई झठा कारण बताना पड़ता और यह बात उन्हें अजीब से अपराधबोध का शिकार बना देती.

लोगों के परेशान करने वाले सवालों से बचने के लिए तब दोनों ने मेरेठ जा कर उन्हे वापस लाने का फैसला कर लिया.

‘‘अब वहां पहुंच कर उन से बहस में मत उलझना. उन्हें मनाने को अगर ‘सौरी’ बोलना पडे़, तो बोल देंगे. उन को साथ रखना हमारी जिम्मेदारी है, मामाजी या किसी और की नहीं,’’ मनोज सारे रास्ते अंजू को ऐसी बातें समझता रहा.

मामामामी के यहां 2 दिन बिताने के लिए शुक्रवार की रात को करीब 9 बजे उन के घर पहुंच गए.

उन दोनों से मामामामी बड़े प्यार से मिले. उन की नजरो में अपने लिए नाराजगी के भाव न देख कर अंजु मन ही मन हैरान हुई.

‘‘दीदी और जीजाजी खाना खाने के बाद पार्क में घूमने गए हैं,’’ अपने मामा की यह बात सुन कर मनोज हैरान रह गया.

‘‘पापामम्मी घूमने गए हैं? उन्होंने यह आदत कब से पाल ली?’’ मनोज की आंखों में अविश्वास के भाव पैदा हुए.

‘‘वे दोनों अब नियम से सुबह भी घूमने जाते हैं. तुम उन की फिटनैस में आए बदलाव को देखोगे, तो चकित रह जाओगे.’’

‘‘मम्मी की कमर का दर्द उन्हें घूमने की इजाजत देता है?’’

‘‘दर्द अब पहले से काफी कम है. जीजाजी दीदी का हौसला बढ़ा कर उन्हें सुस्त नहीं पड़ने देते हैं.’’

‘‘क्या मम्मी का किसी नए डाक्टर से इलाज चल रहा है?’’

‘‘हां, डाक्टर राजनाथ के इलाज में है दीदी,’’ अपने इस मजाक पर मामाजी ने जोरदार ठहाका लगाया, तो मनोज और अंजु जबरदस्त उलझन का शिकार बन गए.

जब वे सब चाय पी रहे थे, तब राजनाथ और आरती ने घर में प्रवेश किया. उन पर नजर पड़ते ही मनोज उछल कर खड़ा हो गया और प्रसन्न लहजे में बोला, ‘‘वाह, पापामम्मी. इन स्पोर्ट्स शूज में तो आप दोनों बड़े जंच रहे हो.’’

‘‘तुम्हारे मामाजी ने दिलाए हैं. अच्छे हैं न?’’ राजनाथ पहले किसी बच्चे की तरह खुश हुए और फिर उन्होंने मनोज को गले से लगा लिया.

अपनी मां के पैर छूते हुए मनोज ने उन की तारीफ करी, ‘‘ये बड़ी खुशी की बात है कि कमर का दर्द कम हो जाने से अब तुम्हे चलने में ज्यादा दिक्कत नहीं आ रही है. चेहरे पर भी चमक है. मामाजी के यहां लगता है खूब माल उड़ा रहे हैं.’’

‘‘मेरी यह शुगर की बीमारी कहां मुझे माल खाने देती है. तुम दोनों कैसे हो? आने की खबर क्यों नहीं दी?’’ अपने बेटेबहू को आशीर्वाद देते हुए आरती की पलकें नम हो उठीं.

‘‘तुम दोनों को भूख लग रही होगी. बोलो, क्या खाओगे?’’ बड़े उत्साहित अंदाज में अपनी हथेलियां आपस में रगड़ते हुए राजनाथ ने अपने बेटेबहू से पूछा.

‘‘ज्यादा भूख नहीं है, इसलिए बाजार से कुछ हलकाफुलका ले आते हैं,’’ कह मनोज अपने पिता के साथ जाने को उठ खड़ा हुआ.

‘‘बाजार से क्यों कुछ लाना है? आलूमटर की सब्जी रखी है. मैं फटाफट परांठे तैयार कर देती हूं,’’ कह मामी रसोई में जाने को उठ खड़ी हुई.

‘‘भाभी, आज आप अपने इस शिष्य को काम करने की आज्ञा दो,’’ रहस्यमयी अंदाज में मुसकरा रहे राजनाथ ने अपनी सलहज का हाथ पकड़ कर वापस सोफे पर बैठा दिया.

‘‘क्या परांठे आप बनाएंगे?’’ मनोज का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया.

‘‘पिछले दिनों तुम्हारी मामी से कुछ कुकिंग सीखी है मैं ने. बस 15 मिनट से ज्यादा समय नहीं लगेगा खाना लगाने में. तुम दोनों तब तक फ्रैश हो जाओ,’’ अपने बेटे का गाल प्यार से थपथपाने के बाद राजनाथ सीटी बजाते हुए रसोई की तरफ चले गए.

राजनाथ ने क्याक्या बनाना सीख लिया है, इस की जानकारी उन दोनों को देते हुए आरती और मामामामी की आंखें खुशी से चमक रही. ‘‘मटरपनीर, कोफ्ते, बैगन का भरता, भरवां भिंडी. पापा ये सब बना सकते हैं. मुझे विश्वास नहीं हो रहा है. कैसे हुआ यह चमत्कार?’’ मनोज सचमुच बहुत हैरान नजर आ रहा था, क्योंकि राजनाथ को तो पहले चाय भी ढंग से बनानी नहीं आती थी.

‘‘अरे, जीजाजी आजकल बड़े मौडर्न हो गए हैं. कहते हैं कि आज के समय में हर इंसान को घर और बाहर के सारे काम करने आने चाहिए. किसी पर आश्रित हो कर बोझ बन जाना नर्क में जीने जैसा है… अपने इस नए आदर्श वाक्य को वे दिन में कई बार हम सब को सुनाते हैं. इस उम्र में कोई इतना ज्यादा बदल सकता है, यह सचमुच हैरान करने वाली बात है,’’ मामाजी की इस बात का पूरा अर्थ मनोज को अगले 2 दिनों में समझ आया.

राजनाथजी ने उन्हें उस रात खस्ता परांठे बना कर खिलाए. फिर रेत गरम कर के उसे एक पोटली में भरा और आरती की कमर की सिंकाई करी. वे पहले बहुत कम बोलत थे, पर अब उन की हंसी से कमरा बारबार गूंज उठता था.

अगले दिन सब को बैड टी उन्होंने ही पिलाई. इस से पहले वे और आरती घंटाभर पास के पार्क में घूम आए थे. नाश्ते में ब्रैडपकौड़े मामीजी ने बनाए पर सब को गरमगरम पकौड़े खिलाने का काम उन्होंने बड़े उत्साह से किया.

आरती ने पूरे घर में झड़ू लगाया और डस्टिंग का काम राजनाथजी ने किया. फिर नहाधो कर वे लाइब्रेरी में अखबार पढ़ने चले गए.

मनोज और अंजु उन की चुस्तीफुरती देख कर बारबार हैरान हो उठते. ऐसा प्रतीत होता जैसे उन में जीने का उत्साह कूटकूट कर भर गया हो.

शाम को वे सब बाजार घूमने गए. चाट खाने की शौकीन अंजु को राजनाथजी ने एक मशहूर दुकान से चाट खिलाई. बाद में आइसक्रीम भी खाई.

वापस आने पर किसी को ज्यादा भूख नहीं थी, इसलिए पुलाव बनाने का कार्यक्रम बना. आरती और मामीजी यह काम करना चाहती थीं, लेकिन राजनाथजी ने किसी की न चलने दी और रसोई में अकेले घुस गए.

उन्होंने बहुत स्वादिष्ठ पुलाव बनाया. सब के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर वे फूले नहीं समाए.

काफी थके होने के बावजूद उन्होंने सोने से पहले आरती की कमर की सिंकाई करने के बाद मूव लगाने में कोई आलस नहीं किया.

रविवार की सुबह मामीजी ने सब को सांभरडोसे का नाश्ता कराया. राजनाथजी उन की बगल में खड़े हो कर डोसा बनाने की विधि बड़े ध्यान से देखते रहे.

सब ने इतना ज्यादा खाया कि लंच करने की जरूरत ही न रहे. कुछ देर आराम करने के बाद मनोज ने दिल्ली लौटने की तैयारी शुरू कर दी.

‘‘पापा, मम्मी, आप दोनों भी अपना सामान पैक करना शुरू कर दो. यहां से 2 बजे तक निकलना ठीक रहेगा. लेट हो गए तो शाम के ट्रैफिक में फंस जाएंगे,’’ मनोज की यह बात सुन कर राजनाथजी एकदम गंभीर हो गए तो आरती बेचैन अंदाज में उन की शक्ल ताकने लगी.

‘‘इन्हें अभी कुछ और दिन यहीं रहने दो, मनोज बेटा,’’ मामाजी भी सहज नजर नहीं आ रहे थे.

‘‘मामाजी, ये दोनों 1 महीना तो रह लिए हैं यहां. इन का अगला चक्कर मैं जल्दी लगवा दूंगा,’’  मनोज ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

राजनाथ ने एक बार अपना गला साफ करने के बाद मनोज से कहा, ‘‘हम अभी नहीं चल रहे हैं मनोज.’’

‘‘क्यों? क्या आप अब भी हम से नाराज हो?’’ मनोज एकदम से चिड़ उठा.

‘‘मेरी बात समझ बेटे. हमारे कारण तेरे घर में क्लेश हो, यह हम बिलकुल नहीं चाहते हैं,’’ राजनाथ असहज नजर आने लगे.

‘‘इस तरह के झगड़े घर में चलते रहते हैं, पापा. इन के कारण आप दोनों का घर छोड़ देना समझदारी की बात नहीं है.’’

‘‘तेरी मां की बहू से नहीं बनती है. किसी दिन लड़झगड़ कर अंजु घर छोड़े, इस से बेहतर है कि हम तुम दोनों को अकेले रहने दें.’’

‘‘हमे अकेले नहीं, बल्कि आप दोनों के साथ रहना है. अब आप पिछली बातें भुला कर सामान बांधना शुरू कर दो. अंजु, तुम क्यों नहीं कुछ बोल रही हो?’’ मनोज ने उन दोनों पर दबाव बनाने के लिए अपनी पत्नी से सहायता मांगी.

‘‘आप दोनों हमारे साथ चलिए, प्लीज,’’ अंजु ने धीमी आवाज में अपने ससुर से प्रार्थना करी.

राजनाथजी कुछ पलों की खामोशी के बाद बोले, ‘‘तुम दोनों जोर डालोगे, तो हम वापस चल पड़ेंगे, पर पहले मैं कुछ कहना चाहता हूं.’’

‘‘क्या यह कहनासुनना घर पहुंच कर नहीं हो सकता है, पापा?’’

‘‘अभी मैं ने तुम्हारे साथ वापस चलने का फैसला नहीं किया है, मनोज.’’

‘‘वापस तो मैं आप दोनों को ले ही जाऊंगा. हम से क्या कहना चाहते हो आप?’’

तब राजनाथजी ने भावुक स्वर में बोलना शुरू किया, ‘‘बहू, तुम भी मेरी बात ध्यान से सुनो. उस रात मनोज से लड़ते हुए गुस्से में तुम ने हमें बोझ बताया था. तुम्हारी उस शिकायत को दूर करने के लिए मैं ने खाना बनाना, घर साफ रखना और मशीन से कपड़े धोना सीख लिया है. तुम्हारी सास से ज्यादा काम नहीं होता, पर मैं तुम्हारा हाथ बंटाने लायक हो गया हूं.

‘‘तुम्हारी सास का भी गुस्सा तेज है. मैं ने यहां आ कर इसे बहुत समझया है… इस ने मुझ से वादा किया है कि यह तुम्हारे साथ अपना व्यवहार बदल लेगी.

‘‘उस रात मनोज से झगड़ते हुए जब तुम ने घर छोड़ कर मायके चले जाने की धमकी दी, तो मैं अंदर तक कांप उठा था. उसी रात मैं ने ये फैसला कर लिया था कि घर में सुखशांति बनाए रखने को अगर कोई घर छोड़ेगा, तो वे तुम्हारी सास और मैं, तुम नहीं.

‘‘बहू, मनोज को अपनी पहली पत्नी से तलाक आसानी से नहीं मिला था. जिन दिनों केस चल रहा था, हम शर्मिंदगी के मारे लोगों से नजर नहीं मिला पाते थे. उन के सवालों के जवाब देने से बचने के लिए हम ने घर से निकलना बिलकुल कम कर दिया था. वकीलों और पुलिस वालों ने हमें बहुत सताया था.

‘‘वैसा खराब वक्त मेरी जिंदगी में फिर से आ सकता है, ऐसी कल्पना भी मेरी रूह कंपा देती है. तभी मैं कह रहा हूं कि तुम दोनों हमें साथ ले जाने की जिद न करो. अगर तुम दोनों के बीच कभी अलगाव हुआ और मुझे वैसी शर्मिंदगी का बोझ एक बार फिर से ढोना पड़ा, तो मैं जीतेजी मर जाऊंगा.’’

‘‘पापा, आप अपने आंसू पोंछ लो, प्लीज… मैं वादा करती हूं कि घर छोड़ कर जाने की बात मेरे मुंह से कभी नहीं निकलेगी.’’ अपने ससुर के मन की पीड़ा को दूर करने के लिए अंजु ने भरे गले से तुरंत उन्हें  विश्वास दिलाया.

‘‘और मैं ने आज से शराब छोड़ दी,’’ मनोज के इस फैसले को सुन राजनाथजी ने भावविभोर हो कर उसे गले से लगा लिया.

‘‘आरती, तुम पैकिंग शुरू करो और मैं इस खुशी के मौके पर सब का मुंह हलवे से मीठा कराता हूं,’’ बहुत खुश नजर आ रहे राजनाथजी ने अपने बहूबेटे के सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया और फिर रसोई की तरफ चले गए.

अधूरी प्यास: नव्या पर लगा हवस का चसका

चढ़ती हुई बेल… कैसी दीवानी होती है… नयानया जोबन, अल्हड़पन, बदहवास सी, बस अपनी मस्ती में सरसराती हुई छुईमुई सी हिलोरें लेती है… जिस का सहारा मिल गया, उसी से लिपट जाती है.ऐसा ही तो नव्या के साथ हो रहा था. अभीअभी जवानी की दहलीज पर कदम रखा था मानो एक नशा सा चढ़ने लगा था. एक खुमारी सी…

आईने में खुद को कईकई बार देखना, उभरते अंगों को देख कर मुसकराना और अकेले में उभारों को हलके से छूना और मस्त हो जाना. नहीं संभाल पा रही थी वह अपनी भावनाओं को, अब तो बस वह समा जाना चाहती थी किसी की मजबूत बांहों में, जहां उस के हर अंग पर पा सके वह किसी का चुंबन और सैक्स की गहराई का मजा ले सके.‘‘नव्या, यह क्या तू हर समय आईने के सामने खड़ी रहती है… स्कूल नहीं जाना है क्या? इम्तिहान सिर पर हैं…’’

अचानक तनुजा की आवाज से नव्या चौंक गई.‘‘अरे मम्मी, जा रही हूं न. चोटी कर रही थी…’’ नव्या ने कहा और आईने में अपने उभारों को देख कर मुसकराती हुई यूनिफार्म की कमीज ठीक करने लगी.‘‘चल, जल्दी कर. तेरी फ्रैंड बुला रही है,’’ तनुजा ने लंच बौक्स उस के स्कूल बैग में रखते हुए कहा.‘‘ओके, बाय मम्मी. लव यू…’’ तनुजा को गाल पर किस करते हुए नव्या ने कहा और बैग उठा कर बाहर भाग गई.‘‘यह लड़की भी न, घोड़े पर सवार रहती है,’’ तनुजा बोली और काम में लग गई.

‘‘वाह यार, आज तो तू झकास लग रही है… फेशियल किया है क्या?’’ नव्या की फ्रैंड सुहानी ने उस के दमकते हुए चेहरे को देखते हुए कहा.‘‘नहीं तो, यह तो नैचुरल ग्लो है,’’ नव्या ने इतराते हुए कहा.‘‘आज तो देखना कि विपुल सर तुझे ही ताड़ेंगे. नजरें नहीं हटेंगी उन की तुझ पर से. क्या इरादा है नव्या मैडम…’’ सुहानी ने आंख मारते हुए कहा.‘‘अरे यार, अपने ऐसे नसीब कहां…

मैं तो कब से उन्हें लाइन दे रही हूं, लेकिन वे तो भाव ही नहीं देते. काश, एक बार नजरें इनायत कर लें इस बंदी पर तो लाइफ बन जाए यार,’’ नव्या ने आह भरते हुए कहा और दोनों हंस पड़ीं.‘‘अरे, देख तो यह सिम्मी किस के साथ आई है… चलचल देखते हैं कौन है यह बंदा…’’ स्कूल के सामने एक क्लासमेट को किसी लड़के की बाइक से उतरते देख कर सुहानी बोली.‘‘इस की तो…

चल देखते हैं,’’ नव्या ने खीजते हुए कहा.‘हाय सिम्मी…’ दोनों ने पास पहुंच कर एकसाथ कहा.‘‘हाय फ्रैंड्स, यह है मेरा कजिन वासु. और वासु, ये मेरी फ्रैंड्स हैं नव्या और सुहानी,’’ सिम्मी ने उन्हें आपस में मिलवाया.‘‘हैलो, प्रिटी गर्ल्स,’’ वासु ने सनग्लासेस को बालों पर चढ़ाते हुए कहा.‘‘हैलो,’’ नव्या ने कहा और दावत देती हुई निगाहों से उस की आंखों में देखा, जवाब में वासु ने भी पलकें झपका कर मानो उस का आमंत्रण कबूल किया.‘‘चलोचलो, क्लास शुरू हो जाएगी.

ओके वासु, बायबाय… ऐंड थैंक्यू, तुम नहीं आते तो आज मैं लेट हो जाती,’’ सिम्मी ने कहा.‘‘ओके, बायबाय,’’ वासु ने बाइक स्टार्ट करते हुए कहा और चला गया.नव्या उसे जाते हुए देख रही थी कि सुहानी उस को खींचते हुए स्कूल के अंदर ले गई.क्लास चल रही थी. सभी लड़कियां नोट्स लिखने में मगन थीं, लेकिन नव्या की आंखों के सामने वासु का चेहरा घूम रहा था.‘‘नव्या चौधरी…’’ तभी टीचर की आवाज से वह सहम गई. उसे लगा कि उस की चोरी पकड़ी गई है.‘‘जी मैडम,’’

नव्या अपनी जगह पर खड़े होते हुए बोली.‘‘ध्यान कहां है तुम्हारा? बताओ, क्या पढ़ा रही हूं मैं?’’ टीचर ने गुस्से से तमतमा कर कहा.‘‘मैडम… वह… ये… आप…’’ नव्या कुछ बता नहीं पाई.‘‘चुप रहो, मुझे पता है कि तुम्हारा ध्यान नहीं था. एग्जाम टाइम में यह हाल है, बैठो और अब फोकस करो,’’ टीचर ने हिदायत दी.‘‘जी मैडम,’’ कह कर नव्या बैठ गई. अगला पीरियड विपुल सर का था.

वे बिजनैस एडमिनिस्ट्रेशन पढ़ाते थे. नव्या अब उन के आने का बेसब्री से इंतजार करने लगी.‘‘नव्या, विपुल सर आने वाले हैं,’’ सुहानी ने चुटकी ली.‘‘हां यार, मुझे पता है,’’ बालों को झटकते हुए नव्या बोली.‘‘गुड मौर्निंग गर्ल्स…’’ विपुल सर की आवाज सुनते ही नव्या के कानों में सीटियां बजने लगीं. शरीर को एकदम टाइट कर के, पैर पर पैर चढ़ा कर वह ऐसे बैठी, जिस से स्कर्ट से उस की दूधिया और मांसल जांघें साफ नजर आ रही थीं.विपुल सर की निगाहें एक बार उन्हीं पर जा टिकीं, लेकिन जल्दी ही उन्होंने खुद पर काबू करते हुए पढ़ाना शुरू कर दिया.नव्या का बारबार पहलू बदलना, जांघों को हाईलाइट करना, विपुल सर को खुला आमंत्रण लगा. उन्होंने भी क्लास खत्म होने के बाद नव्या को बुलाया.

नव्या की तो धड़कनें आपे से बाहर हो गईं. वह सर के पास पहुंच कर बोली, ‘‘जी सर?’’‘‘नव्या, तुम्हें कोई प्रौब्लम तो नहीं आ रही है न? अगर कोई कंफ्यूजन हो तो तुम मेरे घर आ सकती हो. मैं तुम्हारे सारे डाउट क्लियर कर दूंगा. अगर तुम चाहो तो…’’ सर ने न्योता देने के अंदाज में कहा. नव्या तो यही चाहती थी. उस ने तपाक से कहा, ‘‘सर, मैं कब आप के घर आ सकती हूं?’’

‘‘आज शाम को ही, स्कूल के बाद.’’‘‘सर, आज तो मुश्किल होगी, क्योंकि मम्मी को बता कर नहीं आई हूं. कल शाम को आऊं क्या?’’ नव्या ने पूछा.‘‘देखो नव्या, ऐसा है कि डाउट जितनी जल्दी क्लियर हो जाए तो अच्छा है. आज मेरी वाइफ भी घर पर नहीं रहेगी तो अकेले में मैं तुम्हें बहुत अच्छे से समझा पाऊंगा. समझ गई न तुम…’’ विपुल सर ने उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

विपुल सर का हाथ लगते ही नव्या के तनबदन में जैसे चिनगारियां फूटने लगीं, सांसें तेज और गरम हो गईं, गाल दहकने लगे. अब तो जैसे उस का खुद पर काबू पाना मुश्किल हो गया.नव्या ने मन ही मन सोचा, ‘मम्मी को तो कुछ भी बहाना सुना दूंगी, लेकिन आज का यह मौका हाथ से नहीं जाने दूंगी.’वह बोली, ‘‘ठीक है सर, मैं आज ही आती हूं आप के घर. सुहानी से बोल दूंगी कि वह मेरी मम्मी से कह दे कि वीक स्टूडैंट्स की ऐक्स्ट्रा क्लास है.’’‘‘तो तुम मेरे साथ ही चलना.

मैं गाड़ी से अकेले ही तो जाता हूं,’’ विपुल सर ने कहा.‘‘ओके सर,’’ नव्या बोली.‘‘तो शाम को स्कूल के गेट से निकल कर जो पीसीओ है, वहां से मैं तुम्हें पिक करूंगा. ठीक है?’’ विपुल सर ने फिर नव्या का कंधा दबाया और हाथ को पीठ पर फेरते हुए कहा.नव्या का शरीर कड़क हो गया. मुंह से बस इतना ही निकला, ‘‘ओके सर.’’नव्या जल्दी से सुहानी के पास पहुंची और बोली, ‘‘सुन, विपुल सर ने आज मुझे डाउट क्लियर करने के लिए घर बुलाया है. तू मेरी मम्मी को बता देना कि वीक स्टूडैंट्स की ऐक्स्ट्रा क्लास है, तो मैं 2 घंटे लेट हो जाऊंगी.’’

‘‘वाह रे नव्या, तेरी तो लौटरी लग गई. विपुल सर के घर… डाउट क्लियर… मौजां ही मौजां…’’ सुहानी ने नव्या को छेड़ा. नव्या ने भी उसे आंख मार दी.स्कूल के बाद नव्या धड़कते दिल से गेट के बाहर निकली. कुछ दूर चलने पर ही विपुल सर की कार दिखाई दी. नव्या कार के नजदीक पहुंची, तो सर ने आगे का गेट खोल दिया. नव्या तुरंत गाड़ी में बैठ गई.‘‘तुम रिलैक्स हो न नव्या?’’ विपुल सर ने पूछा.‘‘जी सर…’’

नव्या ने बैग पीछे रखते हुए कहा.‘‘सो स्वीट,’’

विपुल सर ने कहा और उस की जांघों को सहला दिया. नव्या का शरीर कंपकंपा गया.‘‘मैं तुम्हें बहुत दिनों से नोटिस कर रहा था,’’ विपुल सर ने कहा.‘‘क्या सर?’’

नव्या ने डर के लहजे में पूछा.‘‘क्या तुम नहीं जानती?’’ विपुल सर ने सवाल किया.

‘‘जी सर, आप मुझे बहुत अच्छे लगते हैं,’’ नव्या ने दिल खोला.

‘‘अच्छा… कितना अच्छा लगता हूं?’’ विपुल सर ने बात को आगे बढ़ाया.

‘‘सब से अच्छे, इतने अच्छे, इतने अच्छे कि ऐसा लगता है कि…’’

नव्या ने बात अधूरी छोड़ दी.‘‘कितने अच्छे, अब बता भी दो.

यहां तो कोई नहीं हम दोनों के अलावा,’’ विपुल सर ने सुलगती आग को हवा देना शुरू किया.‘‘सर…’’

कह कर नव्या ने उन की जांघों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया. विपुल सर ने नव्या का हाथ कस कर पकड़ लिया और कहा, ‘‘तुम्हारी बेचैनी मैं समझ रहा हूं. सब्र करो, बस घर पहुंचने ही वाले हैं, फिर तुम्हारे इस प्यारे से शरीर को बहुत प्यार करूंगा.’’

‘‘ओह सर, आई लव यू सर…’’ कहते हुए नव्या ने उन के गालों को चूम लिया.गाड़ी पार्क कर के विपुल सर नव्या को घर के भीतर ले आए.

दरवाजा बंद कर दिया और पलटते ही नव्या को बांहों में भर कर उस के होंठों को अपने होंठों में भर लिया. नव्या तो पहले ही बेकाबू हो चुकी थी. उसे तो बस आज अपने शरीर की भूख मिटानी थी, जो उसे भीतर ही भीतर खा रही थी. विपुल सर ने नव्या को गोद में उठा लिया और बैडरूम में ले जा कर बिस्तर पर लिटा दिया. नव्या बदहवास हो रही थी. उस ने विपुल सर को पकड़ कर अपने शरीर पर गिरा लिया और बेतहाशा चूमने लगी. विपुल सर के हाथ उस के उभारों पर थे, जिन्हें वह कस कर भींच रहे थे. नव्या को एक मीठामीठा दर्द हो रहा था. उस की सिसकारियां निकलने लगीं.

विपुल सर को तो कोरा बदन मिला था, सो वे भी उस का पूरा मजा लेना चाहते थे. उन्होंने नव्या की कमीज उतार दी. उस के बेदाग, गदराए उभार देखते ही वे पूरी तरह बहक गए. नव्या के अंगों से खेलते हुए उन्होंने कुछ ही देर में उस के सारे कपड़े उतार दिए.नव्या ने उन्हें कस कर पकड़ रखा था मानो वह तो यही चाहती थी. कुछ ही देर में नव्या की सिसकारियों से कमरा गूंज उठा.

नव्या का कुंआरापन भंग हो चुका था, लेकिन नव्या इस से बेफिक्र सैक्स के सागर में गोते लगा रही थी.थोड़ी देर में सबकुछ शांत हो गया.

नव्या कपड़े पहनने लगी. हालांकि, उसे बड़ा दर्द हो रहा था. विपुल सर ने जल्दी से दूसरी चादर बिछा दी और बोले, ‘‘नव्या, तुम ठीक हो न?’’‘‘जी सर.’’‘‘तो फिर अब क्या इरादा है?’’

‘‘क्या मतलब सर?’’‘‘अब दोबारा कब?’’‘‘जब आप कहें…’’‘‘कल?’’

‘‘आप की वाइफ…’’‘‘वह हफ्तेभर के लिए गई है.’’

‘‘फिर तो ठीक है.’’

‘‘चलो, तुम्हें बस स्टौप तक छोड़ दूं…’’

विपुल सर ने नव्या को सीने से कस कर लगाते हुए कहा.‘‘लव यू सर.’’‘‘लव यू टू, माय स्वीटी…’’ कहते हुए विपुल सर ने उस के होंठों को चूम लिया, फिर उसे बस स्टौप तक छोड़ आए.नव्या घर पहुंची, पर सैक्स से अभी उस का मन नहीं भरा था. उस का बस चलता तो वह घर आती ही नहीं. विपुल सर की वाइफ के न होने का वह भरपूर फायदा उठाना चाहती थी.‘‘बहुत थकी हुई लग रही है तू, ऐक्स्ट्रा क्लास के बारे में तू ने सुबह तो कुछ नहीं बताया था…’’ मम्मी ने कहा.‘‘मम्मी, ऐक्स्ट्रा क्लास अचानक ही अनाउंस हो गई.

अब रोज रहेगी. मैं रोज ही देर से आऊंगी,’’ नव्या ने लगे हाथ आगे का रास्ता साफ कर लिया.अगला पूरा हफ्ता नव्या और विपुल सर ने सैक्स का भरपूर मजा लिया.‘‘नव्या, कल मेरी वाइफ वापस आ रही है.’’‘‘ओह सर, फिर अब क्या करेंगे?’’‘‘यही मैं भी सोच रहा हूं.’’‘‘सर, कोई रास्ता तो निकालना होगा, अब तो मैं…’’‘‘जानता हूं, मेरी भी वही हालत है.’’‘‘तो फिर कुछ करिए न.’’

‘‘एक रास्ता है, अगर तुम तैयार हो जाओ तो…’’‘‘कौन सा रास्ता?’’‘‘मेरा एक दोस्त है. उस की वाइफ डिलीवरी के लिए मायके गई हुई है एक महीने के लिए, उस के घर इंतजाम हो सकता है, लेकिन…’’‘‘लेकिन, क्या सर?’’‘‘अब देखो नव्या, हम किसी से मदद लेना चाहते हैं, तो उसे कुछ देना भी होगा.’’‘‘क्या देना होगा?’’ नव्या ने बात समझते हुए कहा.‘‘कभीकभी वह भी तुम्हारे साथ…’’‘‘हां तो नो प्रौब्लम सर. आप के साथ के लिए इतना सैक्रिफाइस तो कर ही सकती हूं.’’‘‘तो फिर कल से गिरीश के घर.’’‘‘ओके सर,’’ दरअसल, नव्या को अब सैक्स का चसका लग चुका था.

उसे एक से ज्यादा मर्दों से संबंध बनाने से कोई परहेज नहीं था और इन शादीशुदा मर्दों को मुंह का जायका बदलने के लिए गरम और कम उम्र की चिडि़या मिल गई थी.अब तो नव्या का हर रोज सैक्स करने का सिलसिला चल निकला. स्कूल से अब कालेज में आ गई थी वह. अपनी अदाओं से नित नए मुरगे फंसाने का हुनर भी आ गया था.‘‘नव्या सुन, आज रोहित आ रहा है, उस की मीटिंग है यहां, शायद 2-4 दिन रुके. रमा बोल रही थी कि वह होटल में रुक जाएगा, लेकिन मैं ने कहा कि मौसी का घर होते हुए होटल में क्यों रुके, इसलिए मैं ने उसे यहीं बुला लिया है. ‘‘तू अपना कमरा उसे सोने के लिए दे देना.

तू मेरे साथ सो जाना. पापा बैठक में सोफे पर सो जाएंगे. ठीक है न?’’ तनुजा ने नव्या से कहा.‘‘अरे यार मम्मी, आप भी न…’’‘‘क्या आप भी, मौसेरा भाई है वह तेरा. 1-2 दिन एडजस्ट नहीं कर सकती क्या?’’‘‘ठीक है बाबा, कर लूंगी एडजस्ट.’’अगले दिन सुबह ही रोहित आ गया. काफी समय के बाद नव्या और रोहित मिले थे.‘‘और कैसी है रे तू छुटंकी?’’ रोहित ने हंसते हुए कहा.‘‘अब मैं छुटंकी कहां हूं, देख कितनी बड़ी हो गई…’’ नव्या ने तनते हुए कहा.‘‘हां, वह तो है,’’ रोहित ने उस के शरीर पर निगाह डालते हुए कहा. उस की नजरें नव्या के अंगों के उतारचढ़ाव से हटने को राजी नहीं थीं. बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू करते हुए वह बोला, ‘‘और बताओ, आजकल क्या चल रहा है?’’

‘‘सब एकदम बढि़या चल रहा है. तुम सुनाओ, कैसी मीटिंग है तुम्हारी?’’ नव्या ने हिलते हुए कहा.‘‘औफिशियल है. खाली समय में तुम जबलपुर घुमा देना. घुमाओगी या नहीं?’’ रोहित ने नव्या की आंखों में गहरे झांकते हुए कहा.‘‘बिलकुल घुमाएंगे जबलपुर, बदले में क्या दोगे?’’ नव्या ने पूछा.‘‘क्या चाहिए बोलो तो, जो बोलोगी मिल जाएगा,’’ रोहित ने आंख मारते हुए कहा.‘‘अरे, क्या लेनेदेने की बातें हो रही हैं… चल बेटा रोहित, फ्रैश हो ले. मैं नाश्ता लगाती हूं.

नव्या, जरा रोहित को अपना रूम तो दिखा दो,’’ तनुजा ने आ कर कहा.‘‘ओके मम्मी. चलो रोहित, आज से मेरा रूम तुम्हारा है, ऐश करो,’’ नव्या ने हंसते हुए कहा और रोहित को अपने कमरे तक ले आई.‘‘वैलकम इन माय रूम…’’‘‘थैंक्स डियर,’’ कह कर रोहित ने शेकहैंड की मुद्रा में हाथ बढ़ाया.‘‘मोस्ट वैलकम,’’ कह कर नव्या ने अपना हाथ उस के हाथ में दिया, जिसे रोहित ने चूम लिया. नव्या ने मुसकराते हुए उस की इस हरकत का स्वागत किया.नव्या रोहित के इरादे समझ चुकी थी.

उस के लिए तो यह एक बेहतरीन मौका था, घर में ही रात को रंगीन बनाने का.रोहित नाश्ता कर के मीटिंग अटैंड करने चला गया. नव्या भी कालेज चली गई. यह उस का बीए का दूसरा साल था, जहां उस की खुली जिंदगी जीने की चाहत को पंख मिल चुके थे. सैक्स संबंध, ऐयाशी, अमीर मर्दों से महंगे गिफ्ट्स लेना… सबकुछ बड़े मजे से चल रहा था.

शाम को रोहित घर पहुंचा. उस के दिमाग में भी कुछ चल रहा था. नव्या मौसेरी बहन थी, लेकिन उस की दावत देती आंखों ने रोहित का विवेक खत्म कर दिया था. उसे तो बस नव्या का भरा हुआ कसा तन चुंबक की तरह खींच रहा था.‘‘बेटा, कैसी रही तुम्हारी मीटिंग?’’ तनुजा ने पूछा.‘‘बढि़या रही मौसी,’’ रोहित बोला.‘‘चलो, हाथमुंह धो कर रिलैक्स हो जाओ,’’ तनुजा ने कहा.‘‘जी मौसी, नव्या कहां है?’’ रोहित ने पूछा.‘‘वह फ्रैंड की बर्थडे पार्टी में गई है.

आती ही होगी,’’ तनुजा ने बताया.‘‘ओके मौसी, मैं फ्रैश हो कर आता हूं,’’ कह कर रोहित कमरे में चला गया.थोड़ी ही देर में नव्या भी आ गई, ‘‘और जनाब, कैसी रही आप की आज की मीटिंग?’’‘‘बढि़या रही, तुम्हें बहुत ज्यादा मिस कर रहा था.’’‘‘मुझे? वाह…’’‘‘हां नव्या, मैं तुम्हें बहुत मिस कर रहा था. क्या जादू है तुम में, जब से देखा है बस…’’‘‘बस क्या?’’ नव्या इतराते हुए बोली.

‘‘तुम रात में कहां सोओगी?’’‘‘मम्मी के पास.’’‘‘यहीं आ जाना, कुछ देर बातें करेंगे…’’‘‘बातें?’’‘‘और भी बहुतकुछ, आओगी न?’’‘‘आऊंगी… चलो, अब डिनर कर लो. मम्मी बुला रही हैं.’’खाने की टेबल पर रोहित और नव्या की आंखोंआंखों में बातें हो रही थीं. तनुजा और नव्या के पापा सुकेश इन सब बातों से अनजान खाना खा रहे थे.रात को नव्या मम्मीपापा के सो जाने का इंतजार करने लगी.

जब वह पूरी तरह यकीन हो गया कि वे दोनों सो चुके हैं, तो आहिस्ता से रोहित के कमरे में जा पहुंची. उस ने नाइट गाउन पहन रखा था.‘‘हैलो, स्वीटहार्ट…’’ नव्या फुसफुसाते हुए बोली.‘‘वैलकम डियर, मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा था. बहुत देर लगा दी तुम ने,’’ रोहित ने बेसब्री से कहा.‘‘तुम्हारे मौसाजी और मौसी के सोने का इंतजार कर रही थी… और कहो क्या इरादा है?’’

नव्या ने होंठ चबाते हुए कहा.‘‘तुम बोलो…’’‘‘अच्छा जी, अब वह सब भी मैं ही बोलूं…’’‘‘तो फिर?’’‘‘चलो, अब ये नाटक छोड़ो.’’‘‘सच में… छोड़ दूं नाटक, तो यह लो छोड़ दिया,’’ कह कर रोहित ने झटके से नव्या को अपनी बांहों में भर लिया.‘‘बहन हूं तुम्हारी…’’‘‘हां यार, लेकिन क्या करूं… यह दिल है कि मानता नहीं, इतनी हौट जो हो,’’ रोहित ने उसे गोद में उठा लिया. फिर शुरू हो गया हवस का गंदा खेल. रोहित और नव्या दोनों ने ही रिश्ते को दरकिनार कर जिस्मानी रिश्ते बना लिए.

बिस्तर पर नव्या के रंगढंग देख कर रोहित ने नव्या को लिवइन में रहने का प्रपोजल दे डाला.नव्या ने सोचा कि यह ऐक्सपीरियंस लेने में क्या जाता है… रोहित अच्छा कमाता है, कोई बुराई भी नहीं है. अगर उस के साथ लिवइन में रहूं, तो मम्मीपापा के बंधन से भी छुटकारा पा जाऊंगी और सैक्स भी ऐंजौय कर सकूंगी.3 दिनों में रोहित का औफिशियल काम भी खत्म हो गया.

नव्या और रोहित ने सब तैयारी कर ली. नव्या रोहित के साथ बालाघाट जाने के लिए पूरी तरह तैयार थी. दोनों ने फैसला किया कि कल घर वालों को अपने इरादों से वाकिफ करवा कर वे बालाघाट निकल जाएंगे.अगली सुबह घर में हंगामा मचा हुआ था. नव्या ने अपने फैसले को बहुत ही बेशर्मी से मातापिता को बता दिया.‘‘कुछ तो शर्म करो… हम दुनिया और समाज को क्या जवाब देंगे..

. क्या कहूंगी तेरी मौसी से… कुछ तो सोच, और तेरी उम्र तो देख, अभी तो पढ़नेलिखने के दिन हैं,’’ तनुजा भरी आंखों से बोली.‘‘मम्मी, अब इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है. मेरा फैसला नहीं बदलने वाला… और फिर यह मेरी जिंदगी है, मुझे पूरा हक है कि इसे मैं कैसे जीऊं.

मैं रोहित के साथ बालाघाट जा रही हूं. वहीं उस की पोस्टिंग है. अपने मांबाप को वह बता देगा,’’ नव्या ने तुनक कर कहा और कमरे में चली गई.‘‘तनुजा, अब कोई फायदा नहीं इसे समझाने का. बालिग हो चुकी है वह और इसी बात का फायदा उठा रही है. उस के कदम बहक चुके हैं. क्या पता बात कहां तक बढ़ चुकी है. हमतुम तो शायद वहां तक सोच भी न सकें, क्योंकि जिस बुलंदी से नव्या ने यह बताया है, उस से तो लगता है कि इन दोनों के जिस्मानी…’’

तनुजा के पति हताश स्वर में बोले.‘‘क्या यही दिन देखना बाकी था… हम तो किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. क्या इसी दिन के लिए नाजों से पाला था इस को… इतनी आज़ादी दी थी. यह कहां की हवा लग गई इसे कि आंखों की शर्म तक खत्म हो गई…‘‘और रोहित, वह भी… अरे,

अब उसे क्या कहें, जब अपना सिक्का ही खोटा निकला,’’ तनुजा लगातार रोते हुए बोली.नव्या और रोहित परिवार व समाज के गाल पर तमाचा मार कर चले गए. पीछे रह गए 2 परिवार और शर्मसार मातापिता. सैक्स और ऐयाशी की चाहत में बच्चों ने घर वालों को एक ऐसा नासूर दे दिया, जो हर पल कसकता रहेगा.

बिना शर्त: मिन्नी के बारे में क्या जान गई थी आभा

महेश के कमरे से बाहर निकलते ही आभा के हृदय की धड़कन धीमी होने लगी. उस ने सोफे पर गरदन टिका कर आंखें बंद कर लीं.

आभा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि महेश आज उसे ऐसा उत्तर देगा जिस से उस के विश्वास का महल रेत का घरौंदा बन कर ढह जाएगा. महेश ने उस की गुडि़या सी लाड़ली बेटी मिन्नी के बारे में ऐसा कह कर उस के सपनों को चूरचूर कर दिया. पता नहीं वह कैसे सहन कर पाई उन शब्दों को जो अभीअभी महेश कह कर गया था.

वह काफी देर तक चिंतित बैठी रही. कुछ देर बाद दूसरे कमरे में गई जहां मिन्नी सो रही थी. मिन्नी को देखते ही उस के दिल में एक हूक सी उठी और रुलाई आ गई. नहीं, वह अपनी बेटी को अपने से अलग नहीं करेगी. मासूम भोली सी मिन्नी अभी 3 वर्ष की ही तो है. वह मिन्नी के बराबर में लेट गई और उसे अपने सीने से लगा लिया.

5 वर्ष पहले उस का विवाह प्रशांत से हुआ था. परिवार के नाम पर प्रशांत व उस की मां थी, जिसे वह मांजी कहती थी.

प्रशांत एक प्राइवेट कंपनी में प्रबंधक था.

वह स्वयं एक अन्य कंपनी में काम करती थी.

2 वर्षों बाद ही उन के घरपरिवार में एक प्यारी सी बेटी का जन्म हुआ. बेटी का मिन्नी नाम रखा मांजी ने. मांजी को तो जैसे कोई खिलौना मिल गया हो. मांजी और प्रशांत मिन्नी को बहुत प्यार करते थे.

एक दिन उस के हंसते, खुशियोंभरे जीवन पर बिजली गिर पड़ी थी. औफिस से घर लौटते हुए प्रशांत की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. सुन कर उसे लगा था मानो कोई भयंकर सपना देख लिया हो. पोस्टमार्टम के बाद जब प्रशांत का शव घर पर आया तो वह एक पत्थर की प्रतिमा की तरह निर्जीव हो गई थी.

मिन्नी अभी केवल 2 वर्ष की थी. उस की हंसीखुशी, सुखचैन मानो प्रशांत के साथ ही चला गया था. जब भी वह अपना शृंगारविहीन चेहरा शीशे में देखती तो उसे रुलाई आ जाती थी. कभीकभी तो वह अकेली देर तक रोती रहती.

उस के मां व बाबूजी आते रहते थे उस के दुख को कुछ कम करने के लिए. उस ने औफिस से लंबी छुट्टी ले ली थी.

एक दिन उस के बाबूजी ने उसे सम झाते हुए कहा था, ‘देख बेटी, जो दुख तु झे मिला है उस से बढ़ कर कोई दुख हो ही नहीं सकता. अब तो इस दुख को सहन करना ही होगा. यह तेरा ही नहीं, हमारा भी दुख है.’

वह चुपचाप सुनती रही.

‘बेटी, मिन्नी अभी बहुत छोटी है. तेरी आयु भी केवल 30 साल की है. अभी तो तेरे जीवन का सफर लंबा है. हम चाहते हैं कि फिर से तु झे कोई जीवनसाथी मिल जाए.’

‘नहीं, मु झे नहीं चाहिए कोई जीवनसाथी. अब तो मैं मिन्नी के सहारे ही अपना जीवन गुजार लूंगी. मैं इसे पढ़ालिखा कर किसी योग्य बना दूंगी. अगर मेरे जीवन में जीवनसाथी का सुख होता तो प्रशांत हमें छोड़ कर जाता ही क्यों?’ उस ने कहा था.

तब मां व बाबूजी ने उसे बहुत सम झाया था, पर उस ने दूसरी शादी करने से मना कर दिया था.

4 महीने बाद कंपनी ने उस का ट्रांस्फर देहरादून कर दिया था. वह बेटी मिन्नी के साथ देहरादून पहुंच गई थी.

देहरादून में उस की एक सहेली लीना थी. लीना का 4-5 कमरों का मकान था. लीना तो कहती थी कि उसे किराए का मकान लेने की क्या जरूरत है. यहीं उस के साथ रहे, जिस से उसे अकेलेपन का भी एहसास नहीं होगा. पर वह नहीं मानी थी.

उस ने हरिद्वार रोड पर 2 कमरों का एक फ्लैट किराए पर ले लिया था.

कुछ दिनों में उसे ऐसा लगने लगा था कि एक व्यक्ति उस में कुछ ज्यादा रुचि ले रहा है. वह व्यक्ति था महेश. कंपनी का सहायक प्रबंधक. महेश उसे किसी न किसी बहाने केबिन में बुलाता और उस से औफिस के काम के बारे में बातचीत करता.

एक दिन सुबह वह सो कर भी नहीं उठी थी कि मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. सुबहसुबह किस का फोन आ गया.

उस ने मोबाइल स्क्रीन पर पढ़ा – महेश.

महेश ने सुबहसुबह क्यों फोन किया? आखिर क्या कहना चाहता है वह? उस ने फोन एक तरफ रख दिया. आंखें बंद कर लेटी रही. फोन की घंटी बजती रही. दूसरी बार फिर फोन की घंटी बजी, तो उस ने  झुं झला कर फोन उठा कर कहा, ‘हैलो…’

‘आभाजी, आप सोच रही होंगी कि पता नहीं क्यों सुबहसुबह डिस्टर्ब कर रहा हूं जबकि हो सकता है आप सो रही हों. पर बात ही ऐसी है कि…’

‘ऐसी क्या बात है जो आप को इतनी सुबह फोन करने की जरूरत आ पड़ी. यह सब तो आप औफिस में भी…’

‘नहीं आभाजी, औफिस खुलने में अभी 3 घंटे हैं और मैं 3 घंटे प्रतीक्षा नहीं कर सकता.’

‘अच्छा, तो कहिए.’ वह सम झ नहीं पा रही थी कि वह कौन सी बात है जिसे कहने के लिए महेश 3 घंटे भी प्रतीक्षा नहीं कर पा रहा है.

‘जन्मदिन की शुभकामनाएं आप को व बेटी मिन्नी को. आप दोनों के जन्मदिन की तारीख भी एक ही है,’ उधर से महेश का स्वर सुनाई दिया.

चौंक उठी थी वह. अरे हां, आज तो उस का व बेटी मिन्नी का जन्मदिन है. वह तो भूल गई थी पर महेश को कैसे पता चला? हो सकता है औफिस की कंप्यूटर डिजाइनर संगीता ने बता दिया हो क्योंकि उस ने संगीता को ही बताया था कि उस की व मिन्नी के जन्म की तिथि एक ही है.

‘थैंक्स सर,’ उस ने कहा था.

‘केवल थैंक्स कहने से काम नहीं चलेगा, आज शाम की दावत मेरी तरफ से होगी. जिस रैस्टोरैंट में आप कहो, वहीं चलेंगे तीनों.’

‘तीनों कौन?’

‘आप, मिन्नी और मैं.’

सुन कर वह चुप हो गई थी. सम झ नहीं पा रही थी कि क्या उत्तर दे.

‘आभाजी, प्लीज मना न करना, वरना इस बेचारे का यह छोटा सा दिल टूट जाएगा,’ बहुत ही विनम्र शब्द सुनाई दिए थे महेश के.

वह मना न कर सकी. मुसकराते हुए उस ने कहा था, ‘ओके.’

शाम को वह मिन्नी के साथ रैस्टोरैंट में पहुंच गई थी जहां महेश उस की प्रतीक्षा कर रहा था. खाने के बाद जब वह घर वापस लौटी तो 10 बज रहे थे.

बिस्तर पर लेटते ही मिन्नी सो गई थी. पर उस की आंखों में नींद न थी. वह आज महेश के बारे में बहुतकुछ जान चुकी थी कि महेश के पापा एक व्यापारी हैं. वह अपने घरपरिवार में इकलौता है. मम्मीपापा उस की शादी के लिए बारबार कह रहे हैं. कई लड़कियों को वह नापसंद कर चुका है. उस ने मम्मीपापा से साफ कह दिया है कि वह जब भी शादी करेगा तो अपनी मरजी से करेगा.

वह सम झ नहीं पा रही थी कि महेश उस की ओर इतना आकर्षित क्यों हो रहा है. महेश युवा है, अविवाहित और सुंदर है. अच्छीखासी नौकरी है. उस के लिए लड़कियों की कमी नहीं. महेश कहीं इस दोस्ती की आड़ में उसे छलना तो नहीं चाहता? पर वह इतनी कमजोर नहीं है जो यों किसी के बहकावे में आ जाए. उस के अंदर एक मजबूत नारी है. वह कभी ऐसा कोई गलत काम नहीं करेगी जिस से आजीवन प्रायश्चित्त करना पड़े.

कमल उस का मकान मालिक था. उस का फ्लैट भी बराबर में ही था. वह एक सरकारी विभाग में कार्यरत था. परिवार के नाम पर कमल, मां और 5 वर्षीय बेटा राजू थे. कमल की पत्नी बहुत तेज व  झगड़ालू स्वभाव की थी. वह कभी भी आत्महत्या करने और कमल व मांजी को जेल पहुंचाने की धमकी भी दे देती थी. रोजाना घर में किसी न किसी बात पर क्लेश करती थी. कमल ने रोजाना के  झगड़ों से परेशान हो कर पत्नी से तलाक ले लिया था.

आभा मिन्नी को सुबह औफिस जाते समय एक महिला के घर छोड़ आती थी, जहां कुछ कामकाजी परिवार अपने छोटे बच्चों को छोड़ आते थे. शाम को औफिस से लौटते समय वह मिन्नी को वहां से ले आती थी.

एक दिन मांजी ने आभा के पास आ कर कहा था, ‘बेटी, तुम औफिस जाते समय मिन्नी को हमारे पास छोड़ जाया करो. वह राजू के साथ खेलेगी. दोनों का मन लगा रहेगा. हमारे होते हुए तुम किसी तरह की चिंता न करना, आभा.’

उस दिन के बाद वह मिन्नी को मांजी के पास छोड़ कर औफिस जाने लगी.

रविवार छुट्टी का दिन था. वह मिन्नी के साथ एक शौपिंग मौल में पहुंची. लौट कर बाहर सड़क पर खड़ी औटो की प्रतीक्षा कर रही थी, तभी एक बाइक उस के सामने रुकी, बाइक पर बैठे कमल ने कहा, ‘आभाजी, आइए बैठिए.’

वह चौंकी, ‘अरे आप? नहींनहीं, कोई बात नहीं, मैं चली जाऊंगी. थ्रीव्हीलर मिल जाएगा.’

‘क्यों, टूव्हीलर से काम नहीं चलेगा क्या? इस ओर मेरा एक मित्र रहता है. बस, उसी से मिल कर आ रहा हूं. यहां आप को देखा तो मैं सम झ गया कि आप किसी बस या औटो की प्रतीक्षा में हैं. आइए, आप जहां कहेंगी, मैं आप को छोड़ दूंगा.’

‘मु झे पलटन बाजार जाना है,’ उस ने बाइक पर बैठते हुए कहा.

‘ओके मैडम. घर पहुंच कर मां को मेरे लिए भी एक रस्क का पैकेट दे देना.’ उस ने रस्क के कई पैकेट खरीदे थे जो कमल ने देख लिए थे.

‘ठीक है,’ उस ने कहा था.

कमल उसे व मिन्नी को पलटन बाजार में छोड़ कर चला गया.

आभा कभीकभी मांजी व कमल के बारे में सोचती कि कितना अच्छा स्वभाव है दोनों का. हमेशा दूसरों की भलाई के बारे में सोचते हैं. दोनों ही बहुत मिलनसार व परोपकारी हैं.

अकसर मांजी राजू को साथ ले कर उस के पास आ जाती थीं. राजू और मिन्नी खेलते रहते. वह मांजी के साथ बातों में लगी रहती.

एक दिन मांजी ने कहा था, ‘आभा, हमारे साथ तो कुछ भी ठीक नहीं हुआ. ऐसी  झगड़ालू बहू घर में आ गई थी कि क्या बताऊं. बहू थी या जान का क्लेश. हमें तो तुम जैसी सुशील बहू चाहिए थी.’

वह कुछ नहीं बोली. बस, इधरउधर देखने लगी.

धीरेधीरे उस के व महेश के संबंधों की दूरी घटने लगी थी. महेश ने उस से कह दिया था कि वह जल्द ही उस के जीवन का हमसफर बन जाएगा. उसे भी लग रहा था कि उस ने महेश की ओर हाथ बढ़ा कर कुछ गलत नहीं किया है.

आज शाम जब वह रसोई में थी तो महेश का फोन आ गया था, ‘मैं कुछ देर बाद आ रहा हूं. कुछ जरूरी बात करनी है.’ ऐसी क्या जरूरी बात है जो महेश घर आ कर ही बताना चाहता है. उस ने जानना भी चाहा, परंतु महेश ने कह दिया था कि वहीं घर आ कर बताएगा.

एक घंटे बाद महेश उस के पास आ गया.

‘क्या लोगे? ठंडा या गरम?’ उस ने पूछा था.

‘कुछ नहीं.’

‘ऐसा कैसे हो सकता है? कोल्डडिं्रक्स ले लीजिए,’ कहते हुए वह रसोई की ओर चली गई. जब लौटी तो ट्रे में 2 गिलास कोल्डडिं्रक्स के साथ खाने का कुछ सामान था.

‘अब कहिए अपनी जरूरी बात,’ उस ने मुसकरा कर महेश की ओर देखते हुए कहा.

‘आज मम्मीपापा आए हैं दिल्ली से. मैं ने उन को सबकुछ बता दिया था. यह भी कह दिया था कि शादी करूंगा तो केवल आभा से. कल वे तुम से मिलने आ रहे हैं,’ महेश ने उस की ओर देखते हुए कहा था. उस के चेहरे पर प्रसन्नता की रेखाएं फैलने लगीं.

‘मम्मीपापा ने इस शादी की स्वीकृति तो दे दी है, परंतु एक शर्त रख दी है.’

वह चौंक उठी, ‘शर्त, कैसी शर्त?’

‘वे कहते हैं कि शादी के बाद मिन्नी किसी होस्टल में रहेगी या नानानानी के पास रहेगी.’

यह सुन कर मन ही मन तड़प उठी थी वह. उस ने कहा, ‘यह तो मम्मीपापा की शर्त है, आप का क्या कहना है?’

‘देखो आभा, मेरी बात को सम झने की कोशिश करो. मिन्नी को अच्छे स्कूल व होस्टल में भेज देंगे. हम उस से मिलते भी रहेंगे.’

‘नहीं, महेश ऐसा नहीं हो सकता. मैं मिन्नी के बिना और मिन्नी मेरे बिना नहीं रह सकती.’

‘ओह आभा, तुम सम झती क्यों नहीं.’

‘मु झे कुछ नहीं सम झना है. मैं एक मां हूं. मिन्नी मेरी बेटी है. आप ने यह कैसे कह दिया कि मिन्नी होस्टल में रह लेगी. मैं अपनी मिन्नी को अपने से दूर नहीं कर सकती.’

‘तब तो बहुत कठिन हो जाएगा, आभा. मम्मीपापा नहीं मानेंगे.’

‘कोई बात नहीं. आप अपने मम्मीपापा का कहना मानो. वैसे भी शर्तों के आधार पर जीवन में साथसाथ नहीं चला जा सकता,’ उस ने दुखी मन से कहा था.

‘सोच लेना, आभा, सारी रात है. कल मु झे जवाब दे देना.’

‘मेरा निर्णय तो सदा यही रहेगा कि जो मु झे मेरी बेटी से दूर करना चाहता है उस के साथ मैं सपने में भी नहीं रह सकती.’ उस ने दृढ़ स्वर में कहा था.

कुछ देर बाद महेश उठ कर कमरे से बाहर निकल गया था.

विचारों में डूबतेतैरते आभा को नींद आ गई थी. सुबह आभा की आंख खुली तो सिर में दर्द हो रहा था और उठने को मन भी नहीं कर रहा था. रात की बातें याद आने लगीं. हृदय पर फिर से भारी बो झ पड़ने लगा. क्या महेश ऊपरी मन से मिन्नी को प्रेम व दुलार देता था? मिन्नी को बेटीबेटी कहना केवल दिखावा था. यदि वह पहले ही यह सब जान जाती तो महेश की ओर कदम ही न बढ़ाती. महेश भी तो मिन्नी को उस से दूर करना चाहता है.

नहीं, वह मिन्नी को कभी स्वयं से दूर नहीं करेगी. प्रशांत के जाने के बाद उस ने मिन्नी को पढ़ालिखा कर किसी योग्य बनाने का लक्ष्य बनाया था. पर जब महेश ने उस की ओर हाथ बढ़ाया तो वह स्वयं को रोक नहीं पाई थी.

दोपहर को आभा के मोबाइल की घंटी बजी. स्क्रीन पर महेश का नाम था. उस ने कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘आभा, आज आप औफिस नहीं आईं?’’ स्वर महेश का था.

‘‘हां, आज तबीयत ठीक नहीं है, औफिस नहीं आ पाऊंगी.’’

‘‘दवा ले लेना. मेरी जरूरत हो तो फोन कर देना. मैं डाक्टर के यहां ले चलूंगा.’’

‘‘ठीक है.’’

उधर से मोबाइल बंद हो गया. आभा मन ही मन तड़प कर रह गई. उस ने सोचा था कि शायद महेश यह कह देगा कि मिन्नी हमारे साथ ही रहेगी, पर ऐसा नहीं हुआ. अब वह एक अंतिम निर्णय लेने पर विवश हो गई. ठीक है जब महेश को उस की बेटी मिन्नी की जरा भी चिंता नहीं है तो उसे क्या जरूरत है महेश के बारे में सोचने की.

दोपहर बाद मांजी आभा के पास आईं और बोलीं, ‘‘अरे बेटी, आज तुम औफिस नहीं गईं?’’

‘‘मांजी, आज तबीयत कुछ खराब थी, इसलिए औफिस से छुट्टी कर ली.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ? मु झे बता देती. मैं कमल से कह कर दवा मंगा देती. कहीं डाक्टर को दिखाना है तो मैं शाम को तेरे साथ चलूंगी.’’

‘‘नहींनहीं, मांजी. मामूली सा सिरदर्द था, अब तो ठीक भी हो गया है. आप चिंता न करें.’’

‘‘तू मेरी बेटी की तरह है. बेटी की चिंता मां को नहीं होगी तो फिर किसे होगी?’’ मांजी ने आभा की ओर देखते हुए कहा.

आभा मांजी की ओर देखती रह गई. ठीक ही तो कह रही हैं मांजी. बेटी की चिंता मां नहीं करेगी तो कौन करेगा. उस के चेहरे पर प्रसन्नता फैल गई. वह कुछ नहीं बोली.

‘‘बेटी, बहुत दिनों से एक बात कहना चाह रही थी, पर डर रही थी कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ,’’ मांजी बोलीं.

‘‘मांजी, आप कहिए. मां की बात का बेटी भी कहीं बुरा मानती है क्या?’’

‘‘बेटी, तुम तो हमारे छोटे से घरपरिवार के बारे में जानती हो. कमल में कोई ऐब नहीं है. उस की आयु भी ज्यादा नहीं है. जब भी उस से दूसरी शादी की बात करती हूं तो मना कर देता है. उसे डर है कि दूसरी लड़की भी तेज झगड़ालू आदत की आ गई तो यह घर घर न रहेगा.’’

आभा सम झ गई जो मांजी कहना चाहती हैं लेकिन वह चुप रही.

मांजी आगे बोलीं, ‘‘बेटी, जब से तुम हमारे यहां किराएदार बन कर आई हो, मैं तुम्हारा व्यवहार अच्छी तरह परख चुकी हूं. राजू और मिन्नी भी आपस में हिलमिल गए हैं. तुम्हारे औफिस जाने के बाद दोनों आपस में खूब खेलते हैं. मैं चाहती हूं कि तुम हमारे घर में बहू बन कर आ जाओ. राजू को बहन और मिन्नी को भाई मिल जाएगा. कमल भी ऐसा ही चाहता है. मैं बहुत आशाएं ले कर आई हूं, निराश न करना अपनी इस मांजी को.’’

सुनते ही आभा की आंखों के सामने महेश और कमल के चेहरे आ गए. कितना अंतर है दोनों में. महेश तो अपने मम्मीपापा के कहने में आ कर बेटी मिन्नी को उस से दूर करना चाहता है जबकि मांजी मिन्नी को अपने पास ही रखना चाहती हैं. इस में तो कमल की भी स्वीकृति है.

‘‘क्या सोच रही हो, बेटी? मु झे तुम्हारा उत्तर चाहिए. यदि तुम ने हमारे राजू को अपना बेटा बना लिया तो मेरी बहुत बड़ी चिंता दूर हो जाएगी,’’ मांजी ने आभा की ओर देखा.

आभा कुछ नहीं बोली. वह चुपचाप उठी, साड़ी का पल्लू सिर पर किया और मुड़ कर मांजी के चरण छू लिए.

मांजी को उत्तर मिल गया था. वे प्रसन्नता से गदगद हो कर बोलीं, ‘‘मु झे तुम से ऐसी ही आशा थी, बेटी. सदा सुखी रहो. तुम अपने मम्मीपापा को बुला लेना. उन से भी बात करनी है.’’

‘‘अच्छा मांजी.’’

‘‘और हां, आज रात का खाना हम सभी इकट्ठा खाएंगे.’’

‘‘खाना मैं बनाऊंगी, मांजी. मैं आप की और कमल की पसंद जानती हूं.’’

‘‘ठीक है, बेटी. अब मैं चलती हूं. कमल को भी यह खुशखबरी सुनाना चाहती हूं. उस से कह दूंगी कि औफिस से लौटते समय मिठाई का डब्बा लेता आए क्योंकि आज सभी का मुंह मीठा कराना है,’’ मांजी ने कहा और कमरे से बाहर निकल गईं.

अगले दिन सुबह जब आभा की नींद खुली तो 7 बज रहे थे. रात की बातें याद आते ही उस के चेहरे पर प्रसन्नता दौड़ने लगी. रात खाने की मेज पर कमल, मांजी, वह, राजू और मिन्नी बैठे थे. खाना खाते समय कमल व मांजी ने बहुत तारीफ की थी कि कितना स्वादिष्ठ खाना बनाया है. हंसी, मजाक व बातों के बीच पता भी न चला कि कब 2 घंटे व्यतीत हो गए. उसे बहुत अच्छा लगा था.

वह आंखें बंद किए अलसाई सी लेटी रही. बराबर में मिन्नी सो रही थी.

अगली सुबह आभा नाश्ता कर रही थी. तभी मोबाइल की घंटी बज उठी. उस ने देखा कौल महेश की थी.

‘‘हैलो,’’ वह बोली.

‘‘अब कैसी हो, आभा?’’

‘‘मैं ठीक हूं.’’

‘‘मैं ने मम्मीपापा को मना लिया है. वे बहुत मुश्किल से तैयार हुए हैं. अब मिन्नी हमारे साथ रह सकती है.’’

‘‘आप को अपने मम्मीपापा को जबरदस्ती मनाने की जरूरत नहीं थी.’’

‘‘मैं कुछ सम झा नहीं?’’

‘‘सौरी महेश, आप ने थोड़ी सी देर कर दी. अब तो मैं अपनी मिन्नी के साथ काफी दूर निकल चुकी हूं. अब लौट कर नहीं आ पाऊंगी.’’

‘‘आभा, तुम क्या कह रही हो, मेरी सम झ में कुछ नहीं आ रहा है,’’ महेश का परेशान व चिंतित सा स्वर सुनाई दिया.

‘‘अभी आप इतना ही सम झ लीजिए कि मु झे बिना शर्त का रिश्ता यानी अपना घरपरिवार मिल गया है, जहां मिन्नी को ले कर कोई शर्त नहीं. मिन्नी भी साथ रहेगी. आप अविवाहित हैं, आप की शादी भी जल्द हो जाएगी. मैं आज औफिस आ रही हूं, बाकी बातें वहां आ कर सम झा दूंगी,’’ यह कह कर आभा ने मोबाइल बंद कर दिया और निश्चिंत हो कर नाश्ता करने लगी.

एक थी मालती : बेटी हो तो ऐसी

यकीन करना मुश्किल था कि 20 साल पहले मैं उस कमरे में रहता था. पर बात तो सच थी. साल 1990 से ले कर साल 1993 तक छपरा में पढ़ाई के दौरान मैं ने रहने के कई ठिकाने बदले, पर जो लगाव पंडित शिव शंकर के मकान से हुआ, वह बहुत हद तक आज भी कायम है.

वह खपरैल के छोटेछोटे 8-10 कमरों का लौज था. उन्हीं में से एक कमरे में मैं रहता था. किराया 70 रुपए से शुरू हो कर मेरे वहां से हटतेहटते 110 रुपए तक पहुंच गया था. यह बात दीगर है कि मैं ने कभी समय पर किराया दिया नहीं. पंडित का बस चले तो आज भी सूद समेत मुझ से कुछ उगाही कर लें.

एक बार तो पंडित ने मेरे कुछ दोस्तों से कह भी दिया था कि भाई उन से कहिए कि उलटा हम से 2 महीने का किराया ले लें और हमारा मकान खाली कर दें.

पंडित का होटल भी था, जहां 5 रुपए में भरपेट खाने का इंतजाम था. मेरा खाना भी अकसर वहीं होता था. पंडिताइन तकरीबन आधा दिन गोबर और मिट्टी में ही लगी रहतीं. कभी उपले बनातीं, कभी मिट्टी के बरतन.

जब खाने जाओ, झट से हाथ धोतीं और चावल परोसने लगतीं. सच कहूं, उस वक्त बिलकुल नफरत नहीं होती थी, बल्कि गोबर और मिट्टी की खुशबू से खाने में और स्वाद आ जाता.

उन की एक बेटी थी मालती. साल 1993 में उधर उस की शादी हुई, इधर मैं ने मकान खाली किया. वैसे, मालती से मेरा कोई खास नजदीकी रिश्ता नहीं था, मगर उस के जाने के बाद एक अजीब सा सूनापन नजर आ रहा था. मन उचट सा गया था, इसलिए मैं ने वहां से जाने का तय किया.

इस के पहले कि दूसरा ठिकाना खोजता, मेरी नौकरी लग गई और मैं ने छपरा को अलविदा कह दिया.

20 साल बाद छपरा में एक दिन मैं बारिश में बुरी तरह घिर गया और मेरी मोटरसाइकिल बंद हो गई. सोचा, क्यों न मोटरसाइकिल को पंडित के घर रख दें, कल फिर आ कर ले जाएंगे.

मैं मोटरसाइकिल को धकेलते और बारिश में भीगता हुआ वहां पहुंचा. पंडित का होटल अब मिठाई की दुकान में तबदील हो गया था.

पंडिताइन मुझे देखते ही पहचान गईं. वे चाय बनाने लगीं. मैं ने उन से कहा, ‘‘आप चाय बनाइए, तब तक मैं अपना कमरा देख कर आता हूं जहां मैं रहता था.’’

मैं पीछे लौज की ओर गया. सारे कमरे तकरीबन गिर चुके थे. अपने कमरे के दरवाजे को मैं प्यार से सहलाने लगा, तभी मेरी नजर एक चित्र पर गई. दिल का रेखाचित्र और बीच में इंगलिश का एम देख कर यादें ताजा हो गईं.

एक दिन मैं ने मालती से कहा था, ‘अबे ओ बौनी, नकचढ़ी, नाक से बोलने वाली लड़की, तेरा यह कमरा मैं तभी खाली करूंगा, जब तू ससुराल चली जाएगी.’

इस पर मालती बनावटी गुस्से में बोली थी, ‘यह मेरा मकान है. जब चाहें तब निकाल दें तुम्हें… यह लो…’ और उस ने खुरपी से दरवाजे पर दिल का रेखाचित्र बनाया और बीच में एम लिख दिया.

मालती का कद काफी छोटा था. लौज के सारे लड़के उसे बौनी कहते थे, मगर उस के पीछे. वे जानते थे कि मालती बड़ी गुस्सैल है, सुन लेगी तो खुरपी चला देगी.

पर, यह हिम्मत मैं ने की. एक दिन उस से कहा, ‘ऐ तीनफुटिया, जरा अपनी दुकान से चाय ला कर तो दे.’

उस ने भी पलट कर कहा था, ‘चाय नहीं, जहर ला कर दूंगी भालू…’

हमारे नहाने का कार्यक्रम खुले में होता था नल के नीचे और मालती ने बालों से भरा मेरा बदन देख लिया था, इसलिए वह मुझे भालू कहती थी.

मैं समझ गया कि उसे बुरा नहीं लगा था. कुछ मस्ती मैं कर रहा था, कुछ वह. फिर तो मस्ती का सिलसिला चल पड़ा.

पंडित के घर के पिछले हिस्से में लौज था. अगले हिस्से में वे रहते थे. बीच में एक पतली गली थी.

मालती हम लोगों के लिए अलार्म का काम भी करती थी. सुबहसुबह गाय ले कर उस गली से गुजरती तो जोर से आवाज लगाती थी, ‘कौनकौन जिंदा है? जो जिंदा है, वह उठ जाए. जो मर गया, उस का राम नाम सत्य.’

मैं जानता था कि मरने वाली बात वह मेरे लिए बोलती थी, क्योंकि मैं सुबह देर तक सोता था. खैर, उस के इसी डायलौग से मेरी नींद खुलती थी. फिर भी कभी अगर नींद नहीं खुलती तो मारटन टौफी चला कर मारती. उन दिनों बिहार में मारटन टौफी का खूब प्रचलन था.

पंडित की एक राशन की दुकान भी थी, जहां उन का बेटा यानी मालती का बड़ा भाई बैठता था. उस समय मैं महज 19 साल का था. इतनी समझ नहीं थी. मैं ने मालती की राशन की दुकान का भरपूर फायदा उठाया. जब कभी वह गली से गुजरती, मैं अपनेआप से ही जोरजोर से कहता, ‘यार, कोलगेट खत्म हो गया. पैसे भी नहीं हैं. मालती बहुत अच्छी लड़की है. उस से कह दो तो कोलगेट क्या पूरी दुकान ला कर दे दे…’

फिर क्या था. थोड़ी देर बाद दरवाजे पर कोलगेट पड़ा मिलता. फिर तो कभी साबुन, कभीकभी चीनी, कभी कुछ मैं अपनी जुगत से हासिल करने लगा.

एक दिन मालती गली में टकरा गई. वह बोली, ‘तुम मेरे बारे में क्या सोचते हो, दिनरात जो तारीफ करते हो. क्या सचमुच मैं उतनी अच्छी और सुंदर हूं?’

मैं ने उस से मुसकरा कर कहा, ‘तुम तो बहुत सुंदर हो. सिर्फ थोड़ा कद छोटा है, नाक थोड़ी टेढ़ी है, दांत खुरपी जैसे हैं और गरदन कबूतर जैसी. बाकी कोई कमी नहीं. सर्वांग सुंदरी हो.’

वह लपकी, ‘तुम किसी दिन मेरी खुरपी से कटोगे. अब खा लेना मारटन टौफी…’

शरारतों का सिलसिला यों ही चलता रहा. एक दिन उस का रिश्ता आया. बाद में पता चला कि लड़के वालों ने उसे नापसंद कर दिया. यह मालती के लिए सदमे जैसा था. कई दिनों तक वह घर से नहीं निकली और जब निकली तो बदल चुकी थी. वह चंचल लड़की अब मूक गुडि़या बन चुकी थी.

एक दिन मैं ने उसे गली में घेर लिया और पूछा, ‘तू आजकल इतनी शांत कैसे हो गई?’

वह बोली, ‘तुम झूठे हो. कहते थे कि मालती सुंदर है, पर लड़के वाले रिजैक्ट कर के चले गए.’

मैं ने उसे समझाया, ‘धत पगली, वह लड़का ही तेरे लायक नहीं था. तेरे नसीब में तो कोई राजकुमार है.’

वह भोलीभाली मालती फिर से मेरी बातों का यकीन कर बैठी. अब फिर वह पहले की तरह चहकने लगी और कुछ दिनों बाद सचमुच उस की शादी तय हो गई.

उस ने मुझ से पूछा, ‘तुम मेरी शादी में आओगे न?’

मैं ने चिरपरिचित अंदाज में जवाब दिया, ‘चाहे धरती इधर की उधर हो जाए, मैं तेरी शादी जरूर अटैंड करूंगा.’

उस की शादी हो गई. संयोग देखिए, जिस दिन शादी थी, उसी दिन मेरा पटना में इम्तिहान था. मैं शादी अटैंड नहीं कर सका. मालती चली गई थी अपने साथ सारी ऊर्जा ले कर.

मालती के जाने के बाद कुछ खालीखाली सा लगने लगा था. समझ में नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है. कहां चली गई ऊर्जा. ऐसा कब तक चल सकता था? कुछ दिनों बाद मैं ने भी वह कमरा खाली कर दिया.

मैं अपनी यादों से लौट आया. पंडिताइन की चाय तैयार थी. मैं चाय पी ही रहा था कि पंडितजी भी आ गए.

बातोंबातों में मैं ने उन से पूछा, ‘‘मालती कैसी है? आजकल वे कहां रहती है?’

तब पंडिताइन ने डबडबाई आंखों से बताया, ‘‘मालती… वह अब इस दुनिया में नहीं है.’’

यह सुन कर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई. कांपती आवाज में मैं ने पूछा, ‘‘कब हुआ यह सब?’’

पंडिताइन ने आंखें पोंछते हुए कहा,  ‘‘शादी के 2 साल बाद ही. डिलीवरी के दौरान जच्चाबच्चा दोनों.’’

ओह… तब मैं ने सोचा कि कितना बदनसीब हूं मैं. एक लड़की, जो मुझे बेइंतिहा चाहती थी, न मैं उस की शादी में शामिल हो सका और न ही जनाजे में. और तो और उस की मौत की खबर भी मिली उस के मरने के इतने साल बाद.

गलत फैसला : सुखराम चंदा गांव पहुंचा तो क्या देखा

रौयल स्काई टावर को बनते हुए 2 साल हो गए. आज यह टावर शहर के सब से ऊंचे टावर के रूप में खड़ा है. सब से ऊंचा इसलिए कि आगरा शहर में यही एक 22 मंजिला इमारत है. जब से यह टावर बन रहा है, हजारों मजदूरों के लिए रोजीरोटी का इंतजाम हुआ है. इस टावर के पास ही मजदूरों के रहने के लिए बनी हैं झोंपड़ियां.

इन्हीं झोंपड़ियों में से एक में रहता है सुखराम अपनी पत्नी चंदा के साथ. सुखराम और चंदा का ब्याह 2 साल पहले ही हुआ था. शादी के बाद ही उन्हें मजदूरी के लिए आगरा आना पड़ा. वे इस टावर में सुबह से शाम तक साथसाथ काम करते थे और शाम से सुबह तक का समय अपनी झोंपड़ी में साथसाथ ही बिताते थे. इस तरह एक साल सब ठीकठाक चलता रहा.

एक दिन चंदा के गांव से चिट्ठी आई. चिट्ठी में लिखा था कि चंदा के एकलौते भाई पप्पू को कैंसर हो गया है और उन के पास इलाज के लिए पैसे का कोई इंतजाम नहीं है.

सुखराम को लगा कि ऐसे समय में चंदा के भाई का इलाज उस की जिम्मेदारी है, पर पैसा तो उस के पास भी नहीं था, इसलिए उस ने यह बात अपने साथी हरिया को बता कर उस से सलाह ली.

हरिया ने कहा, ‘‘देखो सुखराम, गांव में तुम्हारे पास घर तो है ही, क्यों न घर को गिरवी रख कर बैंक से लोन ले लो. बैंक से लोन इसलिए कि घर भी सुरक्षित रहेगा और बहुत ज्यादा मुश्किल का सामना भी नहीं करना पड़ेगा.’’

कहते हैं कि बुरा समय जब दस्तक देता है, इनसान भलेबुरे की पहचान नहीं कर पाता. यही सुखराम के साथ हुआ. उस ने हरिया की बात पर ध्यान न दे कर यह बात ठेकेदार लाखन को बताई.

लाखन ने उस से कहा, ‘‘क्यों चिंता करता है सुखराम, 20,000 रुपए भी चाहिए तो ले जा.’’

सुखराम ने चंदा को बिना बताए लाखन से 20,000 रुपए ले लिए और चंदा के भाई का इलाज शुरू हो गया.

चंदा समझ नहीं पा रही थी कि इतना पैसा आया कहां से, इसलिए उस ने पूछा, ‘‘इतना पैसा आप कहां से लाए?’’

तब सुखराम ने लाखन का गुणगान किया. जब कुछ दिनों बाद पप्पू चल बसा, तो उस के अंतिम संस्कार का इंतजाम भी सुखराम ने ही किया.

इस घटना के कुछ ही दिनों के बाद सुखराम की मां भी चल बसीं. वे गांव में अकेली रहती थीं, इसलिए पड़ोसी ही मां का सहारा थे. पड़ोसियों ने सुखराम को सूचित किया.

सुखराम चंदा के साथ गांव लौटा और मां का अंतिम संस्कार किया.  जिंदगीभर गांव में खाया जो था, इसलिए खिलाना भी जरूरी समझा.

मकान सरपंच को महज 15,000 रुपए में बेच दिया. तेरहवीं कर के आगरा लौटने तक सुखराम के सभी रुपए खर्च हो चुके थे, क्योंकि गांव में मां का भी बहुत लेनदेन था.

इतिहास गवाह है कि चक्रव्यूह में घुसना तो आसान होता है, पर उस में से बाहर निकलना बहुत मुश्किल. जिंदगी के इस चक्रव्यूह में सुखराम भी बुरी तरह फंस चुका था. जैसे ही वह आगरा लौटा, शाम होते ही लाखन शराब की बोतल हाथ में लिए चला आया.

वह सुखराम से बोला, ‘‘सुखराम, मुझे अपना पैसा आज ही चाहिए और अभी…’’

सुखराम ने उसे अपनी मजबूरी बताई. वह गिड़गिड़ाया, पर लाखन पर इस का कोई असर नहीं हुआ. वह बोला, ‘‘तुम्हारी परेशानी तुम जानो, मुझे तो मेरा पैसा चाहिए. जब मैं ने तुम्हें पैसा दिया है, तो मु   झे वापस भी चाहिए और वह भी आज ही.’’

सुखराम और चंदा की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. वे उस के सामने मिन्नतें करने लगे.

लाखन ने कुटिलता के साथ चंदा की ओर देखा और बोला, ‘‘ठीक है सुखराम, मैं तु   झे कर्ज चुकाने की मोहलत तो दे सकता हूं, लेकिन मेरी भी एक शर्त है. हफ्ते में एक बार तुम मेरे साथ शराब पियोगे और घर से बाहर रहोगे… उस दिन… चंदा के साथ… मैं…’’

इतना सुनते ही सुखराम का चेहरा तमतमा उठा. उस ने लाखन का गला पकड़ लिया. वह उसे धक्के मार कर घर से बाहर निकाल देना चाहता था, लेकिन क्या करता? वह मजबूर था. चंदा चाहती थी कि उस की जान ले ले, मगर वह

खून का घूंट पी कर रह गई. उस के पास भी कोई दूसरा रास्ता नहीं था. जब लाखन नहीं माना और उस ने सुखराम के साथ मारपीट शुरू कर दी तो चंदा लाखन के आगे हाथ जोड़ कर सुखराम को छोड़ने की गुजारिश करने लगी.

लाखन ने सुखराम की कनपटी पर तमंचा रख दिया तो वह मन ही मन टूट गई. उस की आंखों से आंसू बहने लगे, इसलिए कलेजे पर पत्थर रख कर उस ने लाखन को अपने शरीर से खेलने की हामी भर दी.

लाखन बहुत खुश हुआ, क्योंकि चंदा गजब की खूबसूरत थी. उस का जोबन नदी की बाढ़ की तरह उमड़ रहा था. उस की आंखें नशीली थीं. यही वजह थी कि पिछले 2 साल से लाखन की बुरी नजर चंदा पर लगी थी.

बुरे समय में पति का साथ देने के लिए चंदा ने ठेकेदार लाखन के साथ सोना स्वीकार किया और सुखराम की जान बचाई.

सुखराम ने उस दिन से शराब को गम भुलाने करने का जरीया बना लिया. इस तरह हवस के कीचड़ में सना लाखन चंदा की देह को लूटता रहा. जब सुखराम को पता चला कि चंदा पेट से है, तो उस ने चंदा से बच्चा गिराने की बात की, पर वह नहीं मानी.

सुखराम बोला, ‘‘मैं उस बच्चे को नहीं अपना सकता, जो मेरा नहीं है.’’

चंदा ने उसे बहुत समझाया, पर वह न माना. चंदा ने भी अपना फैसला सुना दिया, ‘‘मैं एक औरत ही नहीं, एक मां भी हूं. मैं इस बच्चे को जन्म ही नहीं दूंगी, बल्कि उसे जीने का हक भी दूंगी.’’

इस बात पर दोनों में झगड़ा हुआ. सुखराम ने कहा, ‘‘ठेकेदार के साथ सोना तुम्हारी मजबूरी थी, पर उस के बच्चे को जन्म देना तो तुम्हारी मजबूरी नहीं है.’’

चंदा ने जवाब दिया, ‘‘तुम्हारा साथ देने के लिए मैं ने ऐसा घोर अपराध किया था, लेकिन अब मैं कोई गलती नहीं करूंगी… जो हमारे साथ हुआ, उस में इस नन्हीं सी जान का भला क्या कुसूर? जो भी कुसूर है, तुम्हारा है.’’

इस के बाद चंदा सुखराम को छोड़ कर चली गई. वह कहां गई, किसी को नहीं मालूम, पर आज सुखराम को हरिया की कही बात याद आई. वह सिसक रहा था और सोच रहा था कि काश, उस ने गलत फैसला न लिया होता.

एक बार फिर : लिवइन का लफड़ा

आरोही ने रात 8 बजे औफिस सेनिकलते ही जयको फोन किया, ‘‘मैं अभी निकली हूं, तुम घर पहुंच गए?’’‘‘हां, जल्दी फ्री हो गया था, सीधे घर ही आ गया. औफिस नहीं आया फिर.’’

‘‘डिनर का क्या करना है? कुछ बना लोगे या और्डर करना है? मु  झे भी घर आतेआते 1 घंटा तो लग ही जाएगा.’’‘‘और्डर कर दो यार, कुछ बनाने का मन नहीं… और हां आइसक्रीम भी खत्म हो गई है, वह भी और्डर कर दो.’’आरोही ने फोन रख दिया, दिन काफी व्यस्त रहा था, शारीरिक और मानसिक रूप से काफी थक गई थी. अभी भी दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था…

जय और आरोही एक ही कंपनी में अलगअलग डिवीजन में काम करते हैं. आरोही पुणे की है और मुंबई में 2 साल से एक बड़ी कंपनी में जय से बड़ी पोस्ट पर है और बहुत अच्छी तरह अपनी लाइफ जी रही है. जय के साथ 1 साल से लिव इन रिलेशनशिप में रह रही है.

दोनों एक मीटिंग में मिले थे, एक ही बिल्डिंग में दोनों के औफिस हैं, बस अलगअलग हैं, जय दिल्ली का है. दोनों एकदूसरे के साथ खुशीखुशी फ्लैट शेयर कर रहे हैं और काम भी मिलबांट कर करते हैं.दोनों के परिवार वालों को नहीं पता कि दोनों लिव इन में रहते हैं.

आरोही का जय का मस्त स्वभाव बहुत अच्छा लगता है. जय को आरोही का जिम्मेदार स्वभाव भाता है. दोनों एकदूसरे से बिलकुल अलग हैं पर एकदूसरे को बहुत पसंद करते हैं. मगर आजकल जय के बारे में जितनी गहराई से सोचती जा रही थी, कहीं कुछ खल रहा था, जिस पर पहले कभी ध्यान नहीं गया था…

तभी उस की मम्मी रेखा का फोन आ गया, दिन में एक बार आरोही की अपनी फैमिली से बात हो ही जाती. बात कर के आरोही ने डिनर और्डर कर दिया. वह जब घर पहुंची, जय कोई मूवी देख रहा था. फ्रैश हो कर आरोही भी लेट गई. इतने में खाना भी आ गया.आरोही ने कहा, ‘‘चलो जय, खाना लगा लें?’’

‘‘प्लीज, तुम ही लगा लो, मूवी छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा है,’’ जय ने कहतेकहते आरोही को फ्लाइंग किस दे दिया. आरोही मुसकरा दी. दोनों ने डिनर साथ किया.

मूवी खत्म होने पर जब जय सोने आया, आरोही लेटीलेटी फोन पर ही कुछ देख रही थी. जय ने आरोही के पास लेट कर अपनी बांहों में भर लिया.आरोही भी उस के सीने से लगती हुई बोली, ‘‘कैसा था

दिन?’’‘‘बोर.’’आरोही चौंकी, ‘‘क्यों?’’‘‘बहुत काम करना पड़ा.’’

‘‘तो इस में बुराई क्या है?’’‘‘अरे यार, मेरा मन ही नहीं करता कोई काम करने का,

मन होता है कि बस आराम करूं. घर में भी सब मु  झे कामचोर कहते हैं,’’

जय ने हंसते हुए बताया और आगे शरारत से कहा, ‘‘असल में बस मन यही होता है कि या आराम करूं या तुम्हें प्यार.’’‘‘पर डियर, खाली आराम या मु  झे प्यार करने से तो लाइफ नहीं चलेगी न?’’

‘‘चल जाएगी बड़े आराम से… देखो, तुम्हारी सैलरी मु  झ से बहुत ज्यादा है, इस में हमारा घर आसानी से चल सकता है और तुम हो भी अपने पेरैंट्स की इकलौती संतान, वहां का भी सब तुम्हारा है. चलो, शादी कर लेते हैं. मजा आ जाएगा,’’

कहतेकहते जय उस के थोड़ा और नजदीक आ गया.2 युवा दिलों की धड़कनें जब तेज होने लगीं तो बाकी बातों की फिर जगह न रही. सब भूल दोनों एकदूसरे में खोते चले गए. अगले कुछ दिन तो रोज की तरह ही बीते, दोनों पतिपत्नी तो नहीं थे पर लिव इन में रहने वाले रहते तो पतिपत्नी की ही तरह हैं.

रिश्ते पर मुहर नहीं लगी होती है पर रिश्ता तो होता ही है.कभी नोक  झोंक भी होती, फिर रूठनामनाना भी होता, पर कुछ बातें आरोही को आजकल सचमुच खल रही थीं, बातें तो छोटी थीं पर उन पर ध्यान तो जा ही रहा था. हर तरह के खर्च आरोही के ही जिम्मे आते जा रहे थे,

सारे बिल्स, खानेपीने के सामान की जिम्मेदारी, फ्लैट का किराया भी काफी दिन से जय ने नहीं दिया था. यह विषय आने पर कहता कि यार, तुम तो मु  झ से ज्यादा कमाती हो,

मेरे पास तो प्यार है, बस. ऐसा नहीं कि जय की सैलरी बहुत कम थी, हां, आरोही जितनी नहीं थी. इस पर आरोही कहना तो बहुत कुछ चाहती थी पर जय को इतना प्यार करने लगी थी कि उस से पैसों की बात करना उसे बहुत छोटी बात लगती थी.

वह यही सोचती कि एक दिन तो दोनों शादी कर ही लेंगे, क्या फर्क पड़ता है, पर जितना जय को दिन ब दिन जान रही थी, वह मन ही मन थोड़ा अलर्ट हो रही थी. 6 महीने और बीते, आरोही ने नोट किया, जय जब भी अपने घर दिल्ली जाता, वहां से उसे न कोई फोन करता, न किसी तरह का कोई मतलब रखता. एक दिन उस के कलीग रवि ने आरोही को हिंट दिया कि जय अपने पेरैंट्स की पसंद की लड़की से शादी करने के लिए तैयार है,

इसलिए उस के दिल्ली के चक्कर बढ़ गए हैं.आरोही के लिए यह एक बड़ा   झटका था. वह अकेले में खूब रोई, सचमुच जय को अपना जीवनसाथी मानने लगी थी. बहुत दुखी भी रही पर वह आजकल की हिम्मती, आत्मनिर्भर और इंटैलीजैंट लड़की थी. जीभर कर रोने के बाद वह सोचने लगी कि अच्छा हुआ,जय की सचाई पता चल गई. वही तो सारे खर्च, सारे काम करती आ रही थी. ठीक है, अब ब्रेकअप होगा, ठीक है, कोई बात नहीं, दुनिया में न जाने कितनी लड़कियों के साथ ऐसा होता है. मैं एक चालाक लड़के के लिए अब और नहीं रोऊंगी, एक बार फिर अपनी लाइफ शुरू करूंगी.

जय जब वापस आया तो आरोही ने उसे लंच टाइम में औफिस की कैंटीन में आने के लिए कहा और सीधेसीधे बात करना शुरू किया, ‘‘देखो जय, मु  झे साफसाफ बात करना पसंद है… अब हम साथ नहीं रह सकते.’’जय चौंका, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मैं और बेवकूफ नहीं बन सकती, तुम आराम से अपने पेरैंट्स की मरजी से शादी करो, मु  झे कोई प्रौब्लम नहीं है. मैं तुम्हारे साथ रह कर काफी आर्थिक रूप से नुकसान उठा चुकी हूं.

अब इतनी भी बेवकूफ नहीं कि तुम्हें पालती रहूं और जब तक तुम्हारी शादी न हो, तुम्हारे शरीर की जरूरतों के लिए एक सुविधा बनी नहीं… अब यह बताओ मैं दूसरा फ्लैट ढूंढ़ू या तुम जाओगे?’’ जय का चेहरा शर्म और अपमान से काला हो गया.

झेंपते हुए बोला, ‘‘मैं ही चला जाता हूं.’’‘‘ठीक है, अगर हो सके तो कल शनिवार है, कल कहीं भी शिफ्ट हो जाना, मैं पुणे जारही वीकैंड में… मेरे आने से पहले अपना सामान ले जाना.’’आरोही ने औफिस से जल्दी उठ कर रात की ही बस पकड़ ली और पुणे चली गई.

शिवनेरी बस पुणे और मुंबई के बीच चलने वाली आरामदायक बसें हैं, सोफे जैसी सीट पर बैठ कर आरोही बीते दिनों को याद कर उदास तो हो रही थी पर वह लाइफ में आगे बढ़ने के लिए भी खुद को संभालती जा रही थी.कई बार आंखें नम हुईं, कई बार दिल बैठने को हुआ पर जय की चालाकियां बहुत दिनों से देख रही थी, बहुत कुछ खलने लगा था. दिमाग कहता रहा जो हुआ, अच्छा हुआ.

पुणे आने तक दिल भी दिमाग का साथ देने लगा कि अच्छा हुआ, एक लालची, स्वार्थी और कामचोर इंसान का साथ छूटा. मजबूत कदमों से चलते हुए उस ने घर पहुंच कर खुद को मां की नर्म, स्नेही बांहों में सौंप दिया. मां मां थीं, उदास चेहरा देख कर सम  झ गईं बेटी रात को यों ही तो नहीं आई. हमेशा सुबह की बस पकड़ कर आती थी, पर उस समय किसी ने कुछ नहीं पूछा.

उस के पापा संजय ने उसे खूब दुलारा. खाना खा कर थकी हूं मां, सुबह बात करते हैं, कह कर आरोही सोने लेट गई.शनिवार और रविवार आरोही ने हमेशा की तरह अपने मम्मीपापा के साथ बिताए, तीनों थोड़ा घूम कर आए, बाहर खायापीया. रेखा आरोही की पसंद की चीजें बनाती रहीं, आरोही का बु  झा चेहरा देख 1-2 बार पूछा, ‘‘आरोही, सब ठीक तो है न?

औफिस के काम का स्ट्रेस है क्या?’’‘‘नहीं मम्मी,

सब ठीक है.’’

रेखा सम  झदार मां थीं. सम  झ गईं, बेटी अभी अपने मन की कोई बात शेयर करने के मूड में नहीं है, जब ठीक सम  झेगी, खुद ही शेयर कर लेगी. मांबेटी की बौंडिंग अच्छी है, जब ठीक लगेगा, बताएगी. संडे की रात आरोही वापस मुंबई आने के लिए पैकिंग कर रही थी.

संजय ने कहा, ‘‘बेटा, एक परिचित हैं, उन्होंने अपने बेटे सुमित के लिए तुम्हारे लिएबात की है.

तुम जब ठीक सम  झो, उन से मिल लो, कहो तो अगली बार तुम्हारे आने पर उन्हें बुला लूं?’’बैग बंद करते हुए आरोही के हाथ पल भर को रुके, फिर रेखा की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘मम्मी, मु  झे थोड़ा समय दो.’’संजय ने कहा, ‘‘अरे बेटा, अब तुम 30 की हो गई, वैलसैटल्ड हो…

यह परिवार अच्छा है. एक बार मिल तो लो. सबकुछ तुम्हारी हां कहने के बाद ही होगा.’’आरोही ने कहा, ‘‘इस समय मु  झे जाने दें, मैं बहुत जल्दी आप से इस बारे में बात कर लूंगी.’’संजय और रेखा आज के जमाने के पेरैंट्स थे… उन्होंने बेटी पर अपनी मरजी कभी नहीं थोपी.

उसे भरपूर सहयोग दिया हमेशा. यह भी एक कारण था कि आरोही बहुत स्ट्रौंग, बोल्ड और इंटैलीजैंट थी, वह अपनी शर्तों पर जीने वाली लड़की थी, फिर भी अपने पेरैंट्स की बहुत रिस्पैक्ट करती.रेखा ने मन ही मन कुछ अंदाजा लगाया कि कोई बात है जरूर, हमेशा खिला रहने वालाचेहरा यों ही नहीं बु  झा, फिर कहा, ‘‘ठीक है,तुम आराम से जाओ… ये बातें तो फोन पर भीहो जाएंगी.’’मुंबई अपने फ्लैट पर आ कर आरोही ने देखा कि जय अपना सारा सामान ले जा चुका है…

खालीखाली तो लगा पर उस ने अपनेआप को इतने समय में संभाल लिया था. उस ने यह बात स्वाभाविक तौर पर ली. खुद से ही कहाकि इतने दिन का साथ था, कोई बात नहीं.आदत थी उस की, छूट जाएगी. ऐसे   झूठे रिश्तों के लिए अफसोस करने में वह अपनी लाइफ नहीं बिता सकती. अभी बहुत कुछ करना है, खुश रहना है, जीना है, लाइफ जय जैसों के साथ खत्म नहीं हो जाती.

बस यह विचार आते ही आरोही रोज की तरह औफिस पहुंची. रवि ने बताया कि जय किसी दोस्त के साथ रहने चला गया है… तुम ने जो किया, ठीक किया.जय के औफिस की बिल्डिंग से आतेजाते जब भी कभी उस का आमनासामना हुआ, आरोही के निर्विकार चेहरे को देख जय की कभी हिम्मत ही नहीं हुई उस से बात करने की. कुछ महीनों बाद आरोही ने पेरैंट्स के कहने पर सुमित से मिलना स्वीकार कर लिया.सुमित मुंबई में ही काम करता था.

वह अपने 2 दोस्तों के साथ फ्लैट शेयर करता था. पुणे में सुमित अपने मम्मीपापा, विकास और आरती और छोटी बहन सीमा के साथ उन के घर आया. पहली मीटिंग में तो सब एकदूसरे से मिल कर खुश हुए.मुंबई में ही होने के कारण सुमित चाहता था कि वह मुंबई में ही जौब करने वाली लड़की के साथ शादी करे.

सब को यह सोच कर अच्छा लग रहा था कि दोनों पुणे आतेजाते रहेंगे. दोनों के ही घर एक जगह थे, सबकुछ ही देखते तय होता गया. आरोही ने पेरैंट्स की पसंद का मान रखा, सुमित से जितना मिली, वह ठीक ही लगा. आरोही चाहती थी कि नया रिश्ता वह ईमानदारी के साथ शुरू करे, वह सुमित को जय के साथ लिव इन में रहने के बारे में बताना चाहती थी. इस बारे में जब उस ने अपने पक्के दोस्त रवि से बात की, तो रवि ने कहा, ‘‘क्या जरूरत है? मत बताओ, कोई भी लड़का कितनी भी मौडर्न हो, यह बरदाश्त नहीं करेगा.’’‘‘क्यों?

अगर वह मु  झे बताए कि वह भी किसी गर्लफ्रैंड के साथ लिव इन में रहा है, तो मैं तो कुछ नहीं कहूंगी, उलटा इस बात पर खुश होऊंगी कि मेरे होने वाले पति ने ईमानदारी के साथ मु  झ से अपना सच शेयर किया.’’‘‘यार, तुम आरोही हो. सब से अलग, सब से प्यारी लड़की,’’

फिर आरोही को हंसाने के लिए शरारत से कहा, ‘‘मेरी बीवी आज तक मेरे कालेज की गर्लफ्रैंड को ले कर ताने मारती है… अब बोलो.’’आरोही हंस पड़ी, ‘‘बकवास मत करो, जानती हूं मैं तुम्हारी बीवी को, वह बहुत अच्छी हैं.’’‘‘हां, यही तो… सम  झो, लड़के जल्दी हजम नहीं करते ऐसी बातों को…

वह तो तुम बहुत बड़े दिल की हो.’’रवि ने काफी सम  झाया पर आरोही जब सुमित के कहने पर उस के साथ डिनर पर गई, तो आरोही ने जय के बारे में सब बता दिया.सुन कर सुमित मुसकराया, ‘‘तुम बहुत सच्ची हो. आरोही, मु  झे इन बातों का फर्क नहीं पड़ता, मेरे भी 2 ब्रेकअप हुए हैं, क्या हो गया. यह तो लाइफ है. होता ही रहता है. अब तुम मिली हो, बस मैं खुश हूं.’’

आरोही के दिल से जैसे बो  झ हट गया.1-2 बार और सुमित से मिलने के बाद उस ने अपने पेरैंट्स को इस शादी के लिए हां कर दी. उन की खुशी का ठिकाना न था. 4 महीने बाद की शादी की डेट भी फिक्स हो गई.दोनों पक्ष शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गए.

बहुत तो नहीं पर सुमित और आरोही बीचबीच में मिलते रहते, दोनों औफिस के काम में व्यस्त रहते पर चैटिंग, फोन कौल्स चलते रहते. शादी पुणे में ही धूमधाम से हुई. दोनों के काफी कलीग्स आए. मुंबई आ कर आरोही के ही फ्लैट में सुमित अपने सामान के साथ शिफ्ट कर गया. दोनों खुश थे, आरोही ने जय का खयाल पूरी तरह से दिलोदिमाग से निकाल दिया था.

1 साल बहुत खुशी से बीता.आरोही अपनी लाइफ से अब पूरी तरह संतुष्ट व सुखी थी. दोनों छुट्टी होने पर कभी साथ पुणे निकल जाते, कभी किसी के पेरैंट्स मिलने आ जाते. सब ठीक था, आरोही की अगली 2 प्रोमोशंस तेजी से हुई, वह अब काफी अच्छे पैकेज पर थी, उस ने बहुत जल्दी अब एक अपना फ्लैट लेने की इच्छा जाहिर की.सुमित ने कहा, ‘‘देखो आरोही,

तुम्हारी सैलरी मु  झ से अब काफी ज्यादा है, तुम चाहो तो ले लो.’’आरोही चौंकी, ‘‘अरे, मेरा पैसा तुम्हारा पैसा अलगअलग है क्या? हमारा भी प्यारा सा अपना घर होगा,

कब तक इतना किराया देते रहेंगे?’’‘‘देख लो, तुम ही सोच लो, मैं तो अपनी सैलरी से ईएमआई दे नहीं पाऊंगा, घर भी पैसा भोजना होता है मु  झे.’’आरोही ने सुमित के गले में बांहें डाल दीं.

कहा, ‘‘ठीक है, तुम बस मेरे साथ फ्लैट पसंद करते चलो, सब हो जाएगा.’’

यह सच था कि सुमित की सैलरी आरोही से बहुत कम थी और जब से आरोही की प्रोमोशंस हुई थीं, सुमित की मेल ईगो बहुत हर्ट होने लगी थी. वह अकसर उखड़ा रहता. आरोही यह सम  झ रही थी, उसे खूब प्यार करती, उस की हर जरूरत का ध्यान रखती और जब आरोही ने कहा कि सुमित, मैं सोच रही हूं, मैं औफिस जानेआने के लिए एक कार ले लूं. बस में ट्रैफिक में बहुत ज्यादा टाइम लग रहा है. मजा आएगा, फिर पुणे भी कार से जायाआया करेंगे, अभी तो बस और औटो में बैठने का मन नहीं करता.’’

सुमित ने कुछ तलख लहजे में कहा, ‘‘तुम्हारे पैसे हैं, चाहे उड़ाओ चाहे बचाओ, मु  झे क्या,’’ कह कर सुमित वहां से चला गया.आरोही इस बदले रूप पर सिर पकड़ कर बैठी रह गई. 2 महीने में ही आरोही ने फ्लैट और कार ले ही ली. सुमित मशीन की तरह पसंद करने में साथ देता रहा.थोड़ा समय और बीता तो आरोही कोसुमित के व्यवहार में कुछ और बदलाव दिखे, अब वह कहता, ‘‘तुम ही पुणे जा कर सब से मिल आओ, तो कभी कहता टूर पर जा रहा हूं,

2 दिनों में आ जाऊंगा.’’आरोही ने कहा, ‘‘मैं भी चलूं? कार से चलते हैं, मैं घूम लूंगी…

तुम अपना काम करते रहना. आनेजाने में दोनों का कुछ चेंज हो जाएगा.सुमित ने साफ मना कर दिया. वह चला गया. अब वह पहले की तरह बाहर जा कर आरोही से उस की खबर बिलकुल न लेता.

आरोही फोन करती तो बहुत बिजी हूं, घर आकर ही बात करूंगी, कह कर फोन रख देता. सुमित बहुत बदल रहा था और इस का कारणभी आरोही के सामने जब आया, तो वह ठगी सी रह गई.एक सुबह सुमित सो रहा था, उस का मोबाइल साइलैंट था,

पर जब कविता नाम उस की स्क्रीन पर बारबार चमकता रहा, आरोही ने धीरे से फोन उठाया और दूसरे कमरे में जा कर जैसे ही हैलो कहा, फोन कट गया. आरोही ने यों ही व्हाट्सऐप चैट खोल ली और जैसेतैसे फिर कविता और सुमित की चैट पढ़ती गई, साफ हो गया कि दोनों का जबरदस्त अफेयर चल रहा है, गुस्से के मारे आरोही का खून खौल उठा.साफसाफ सम झ आ गया कि सुमित की बेरुखी का क्या कारण है.

वह चुपचाप सोफे पर बैठी कभी रोती, कभी खुद को सम झाती, सुमित के जागने का इंतजार कर रही थी, सुमित जब सो कर उठा, आरोही के हाथ में अपना फोन देख चौंका. आरोही का चेहरा देख उसे सब सम  झ आ गया.

बेशर्मी से बोला, ‘‘क्या हुआ?’’‘‘तुम बताओ, यह सब क्या चल रहा है?‘‘तो तुम भी तो शादी से पहले लिव इन रिलेशनशिप में रही थी?’’आरोही हैरान रह गई. बोली, ‘‘ये सब तो शादी से पहले की बात है और तुम्हें सब पता था. मैं ने तुम्हें शादी के बाद तो कभी धोखा नहीं दिया? तुम तो मु  झे अब धोखा दे रहे हो…’’‘‘असल में मैं तुम से अलग होना चाहता हूं…

मैं अब कविता से शादी करना चाहता हूं.’’आरोही ने गुस्से से कहा, ‘‘तुम्हें जरा भी शर्म नहीं आ रही है?’’‘‘तुम्हें आई थी लिव इन में रहते हुए?’’

‘‘पहले की बात अब इतने दिनों बाद करने का मतलब? अब अपनी ऐय्याशी छिपाने के लिए मु  झ पर ऊंगली उठा रहे हो?’’‘‘मैं ने अपना ट्र्रांसफर दिल्ली करवा लिया है.

आज मैं पुणे जा रहा हूं,’’ कह कर सुमित आरोही की तरफ कुटिलता से देखते हुए मुसकराया और वाशरूम चला गया.आरोही को कुछ नहीं सू  झ रहा था. यह क्या हो गया, अपना अफेयर चल रहा है, तो गड़े मुरदे उखाड़ कर मु  झ पर ही इलजाम डाल रहा है.

मेड आ गई तो वह भी औफिस के लिए तैयार होने लगी और चुपचाप सुमित को एक शब्द कहे बिना औफिस चली गई.रवि ने उस की उड़ी शकल देखी तो उसे कैंटीन ले गया और परेशानी का कारण पूछा. देर से रुके आंसू दोस्ती की आवाज सुन कर ही बह निकले.

वह सब बताती चली गई. इतने में दोनों की एक और कलीग दोस्त सान्या भी आ गई. सब जान कर वह भी हैरान रह गई. थोड़ी देर बाद तीनों उठ कर काम में लग गए.आरोही के दिल को चैन नहीं आ रहा था. फिर एक और धोखा. क्या करे. क्या यह रिश्ता किसी तरह बचाना चाहिए? नहीं, जबरदस्तीकैसे किसी को अपने से बांध कर रखा जा सकता है? यह तो प्यार, विश्वास का रिश्ता है. अब तो कुछ भी नहीं बचा. वह अपना आत्मसम्मान खो कर तो जबरदस्ती इस रिश्ते को नहीं ढो सकती..

जो होगा देखा जाएगा. ऐसे रिश्ते का टूटना ही अच्छा है. जब रात को आरोही घर लौटी, सुमित जा चुका था. वह अपनी पैकिंग अच्छी तरह कर के गया था, लगभग सारा सामान ले गया. कुछ दिन बाद ही आरोही को तलाक के पेपर मिले तो वह रो पड़ी. यह क्या हो गया, सब बिखर गया. उस की कहां क्या गलती है.सुमित ने उसे फोन किया और कहा, ‘‘साइन जल्दी कर देना,

मैं कोर्ट में यही कहने वाला हूं कि तुम चरित्रहीन हो, तुम पहले भी लिव इन में बहुत समय रह चुकी हो और मु  झे ये सब बताया नहीं गया था.’’‘‘पर मैं ने तुम्हें सारा सच बता दिया था और तुम्हें कोई परेशानी नहीं थी.’’‘‘पर तुम्हारे पास कोई सुबूत नहीं है न कि तुम ने मु  झे सब बता दिया था.’’

आरोही चुप रह गई. अगले दिन रवि और सान्या ने सब जान कर अपना सिर पकड़ लिया. फिर सान्या ने पूछा, ‘‘आरोही, तुम ने कैसे बताया था सुमित को जय के बारे में?’’‘‘मिल कर, फिर बहुत कुछ चैटिंग में भी इस बारे में बात होती रही थी.’’‘‘चैट कहां है?’’‘‘उन्हें तो मैं डिलीट करती रहती हूं. सुमित भी जानता है कि मु  झे चैट डिलीट करते रहने की आदत है.’’

‘‘अभी राजनीति में, ड्रग केसेज में जो इतनी चैट खंगाल दी गईं, वह भी नामी लोगों की, तो इस का मतलब यह मुश्किल भी नहीं.’’‘‘और मेरे पास कविता और उस के अफेयर का सुबूत है…

मैं ने जब उन दोनों की चैट पढ़ी, खूब सारी पिक्स ले ली थीं.’’‘‘यह अच्छा किया तुम ने, गुस्से में होश नहीं खोया, दिमाग लगाया. भांडुप में मेरा कजिन सुनील पुलिस इंस्पैक्टर है, उस से बात करूंगी, वह तुम्हारी पुरानी चैट निकलवा पाएगा, इसे तो तलाक हम देंगे.

बच्चू याद रखेगा.’’सान्या ने उसी दिन सुनील से बात की. उस ने कहा सब हेल्प मिल जाएगी. रवि और सान्या आरोही के साथ खड़े थे. वीकैंड आरोही ने पुणे जा कर अपने पेरैंट्स से बात करने का, उन्हें पूरी बात बताने का मन बनाया.अभी तक आरोही ने अपने पेरैंट्स से कुछ भी शेयर नहीं किया था. सुमित आरोही से अब बिलकुल टच में नहीं था.

कभीकभी एक मैसेज तलाक के बारे में कर देता.संजय और रेखा पूरी बात सुन कर सिर पकड़ कर बैठ गए. कुछ सम  झ न आया, दोनों को जय के बारे में भी अब ही पता चला था, क्या कहते, बच्चे जब आत्मनिर्भर  हो कर हर फैसला खुद लेने लगें तो सम  झदार पेरैंट्स, कुछ कहने का फायदा नहीं है, यह भी जानते हैं. जय के साथ, सुमित के साथ बेटी का अनुभव अच्छा नहीं रहा, प्यारी, सम  झदार बेटी दुखी है, यह समय उसे कुछ भी ज्ञान देने का नहीं है.इस समय उसे अपने पेरैंट्स की सपोर्ट चाहिए. कोई ज्ञान नहीं… और सुमित तो गलत कर ही रहा था…

जय की बात जरूर अजीब लगी थी, पर अब वे बेटी के साथ थे.संजय ने कहा, ‘‘मैं आज ही वकील से बात करता हूं.’’रेखा ने सुमित के पेरैंट्स अनिल और रमेश से बात की. मिलने के लिए कहा, उन्होंने आरोही को चरित्रहीन कहते हुए रेखा के साथ काफी अपमानजनक तरीके से बात की तो सब को सम  झ आ गया, यह रिश्ता नहीं बचेगा.रवि और सान्या आरोही के टच में थे. सुनील ने काफी हिम्मत बंधा दी थी, बहुत कुछ सोच कर सुमित को आरोही ने फोन किया, ‘‘सुमित, मैं पुणे आई हुई हूं, कल सुबह चली जाऊंगी. आज तुम से मिलना चाहती हूं… कैफे कौफी डे में आज शाम को 5 बजे आओगे?’’

‘‘ठीक है,’’ पता नहीं क्या सोच कर सुमित मिलने के लिए तैयार हो गया.आरोही बिना पेरैंट्स को बताए सुमित से मिलने के लिए पहुंची. दिल में अपमान और क्रोध का एक तूफान सा था.

आज भड़ास निकालने का एक मौका मिल ही गया था. एक टेबल पर बैठा सुमित उसे देख कर जीत और बेशर्मी के भाव के साथ मुसकराया. उस के बैठते ही कहा, ‘‘देखो, गिड़गिड़ाना मत, मु  झे दीनहीन लड़कियां अच्छी नहीं लगतीं.’’

यह सुनते ही आरोही के दिल में कुछ बचा भी एक पल में खत्म हो गया. मजबूत स्वर में बोली, ‘‘मु  झे भी धोखेबाज लोग अच्छे नहीं लगते. आज तुम्हें बस इतना बताने आई हूं कि मैं जा कर तलाक के पेपर साइन कर दूंगी… अभी तक पूरी तैयारी भी तो करनी थी.’’सुमित उस की आवाज की मजबूती पर चौंका, ‘‘कैसी तैयारी?’’‘‘तुम मु  झे चरित्रहीन बताने वाले हो न?

मैं ने भी तुम्हारी और कविता की सारी चैट के फोटो ले लिए थे और इंस्पैक्टर सुनील हमारी वे चैट निकाल रहे हैं, जिन में मैं ने तुम्हें साफसाफ जय के बारे में पहले ही बता दिया था और तुम्हेंउस में कोई आपत्ति नहीं थी. तुम्हारे ऊपर तो ऐसीऐसी बात उठेगी कि किसी लड़की को आगे धोखा देना भूल जाओगे, सारी ऐयाशियां न भूल जाओ तो कहना.‘‘मैं कभी कमजोर लड़की नहीं रही…

तुम्हारे जाने का अफसोस हो ही नहीं सकतामु  झे, मैं खुश हूं कि जल्द ही तुम से पीछा छूट गया. मैं तो एक बार फिर जीवन में आगे बढ़ने के लिए पूरी तरह तैयार हूं. अब कोर्ट में अपने वकील के साथ मिलेंगे,’’ कह कर मुसकराते हुए आरोही खड़ी हो गई. फिर कुछ याद करते हुए बैठ गई. वेटर को इशारा करते हुए बिल मांगा और कहा, ‘‘कौफी भले ही ठंडी हो गई थी,

भले ही पी भी नहीं, पर आज एक बार फिर मेरे आत्मविश्वास को देख कर तुम जैसे, जय जैसे पुरुष की यह उड़ी शकल देखने में बहुत मजा आया,’’ कहतेकहते उस ने पेमैंट की और वहां से निकल गई.सुमित आने वाले तूफान से अभी से घबरा गया था.

सिर्फ एक घटना : निशा और गौतम का साहस

अचानक ही गौतम के मोबाइल फोन की घंटी बज उठी.

‘हैलो, मैं अनीता बोल रही हूं,’ उधर से आवाज आईं.

‘‘हां, बोलो अनीता. कोई खास बात है क्या?’’ गौतम ने पूछा.

‘गौतम, आज मेरे मम्मीपापा एक रिश्तेदार की शादी में जा रहे हैं. मैं रात को घर पर अकेली रहूंगी. तुम मौका देख कर यहां चले आना. हम लोग रातभर मजे करेंगे,’ अनीता ने कहा.

‘‘अनीता, मुझे बहुत डर लग रहा है. कहीं कोई देख लेगा तो मेरा क्या होगा?’’ गौतम की आवाज सहमी हुई थी.

‘मैं लड़की हो कर नहीं डर रही हूं और तुम लड़के हो कर…’ अनीता ने उसे मीठी झिड़की दी.

‘‘ठीक है अनीता, मैं आज रात में आ जाऊंगा. तुम मेरा इंतजार करना,’’ गौतम ने कहा.

गौतम 20 का गठीला नौजवान था. वह लंबे कद का था, जिस से हैंडसम दिखता था. अनीता और गौतम दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे.

अनीता 18 साल की बहुत हसीन लड़की थी. उस की आंखें बड़ी खूबसूरत थीं. उस के सुडौल उभार मर्दों को बरबस अपनी तरफ खींच लेते थे. यही वजह थी कि गौतम उस के हुस्न का दीवाना हो गया था.

आधी रात हो गई थी. चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था. लोग अपने घरों में गहरी नींद में सो रहे थे. गौतम चुपके से अनीता के घर पहुंच गया.

अनीता उस का इंतजार कर रही थी. वह गौतम को अपने कमरे में ले गई. उस ने गौतम को प्यार से चूम लिया. गौतम ने भी अनीता को बांहों में भर लिया.

‘‘गौतम, पहले तुम अपना काम कर लो,’’ अनीता ने कहते हुए अपने कपड़े उतार दिए. उस के सैक्सी बदन को देखते ही गौतम के दिल की धड़कनें तेज हो गईं.

अनीता बिछावन पर लेट गई. गौतम भी झटपट अपने कपड़े उतार कर उस के साथ लेट गया. वह अनीता के जिस्म से लिपट कर उस के उभारों को सहलाता रहा. थोड़ी देर बाद गौतम ने अनीता के साथ सैक्स करना चाहा, लेकिन घबराहट व डर के मारे उस में तनाव नहीं आ सका. उसे डर लग रहा था कि अनीता के घर में वह पकड़ा जाएगा.

गौतम ने अनीता को चूम कर उस के कोमल अंगों को सहला कर अपने को जोश में लाना चाहा, लेकिन कामयाबी नहीं मिली.

अनीता 2-4 मिनट तक बिछावन पर लेटी उस के सैक्स करने का इंतजार करती रही, लेकिन गौतम कुछ कर नहीं सका. तब वह गुस्सा हो कर अपने कपड़े पहनने लगी.

अनीता गौतम की छाती को ठोंकते हुए गुस्से में बोली, ‘‘गौतम, तुम तो बहुत बड़े बौडीबिल्डर बनते थे न. आज तुम्हारी पोल खुल गई. तुम नामर्द हो, एकदम नामर्द.’’

गौतम ने अनीता से आंखें चुराते हुए कहा, ‘‘अनीता, मुझे समझने की कोशिश करो. पता नहीं, मुझे क्या हो गया है.’’

अनीता गुस्से में कांप रही थी. वह बोली, ‘‘कपड़े उतार कर अपनी इज्जत भी गंवा बैठी. लेकिन तुम…’’

अनीता तकरीबन चीखते हुए बोली, ‘‘चले जाओ यहां से. आज के बाद मुझ से मिलने की कोशिश भी मत करना.’’

गौतम कुछ नहीं बोला. वह शर्मिंदगी से सिर झुकाए कमरे से बाहर निकल गया. उस रात गौतम और अनीता का मजबूत दिखने वाला रिश्ता टूट गया.

घर आ कर गौतम उस रात सो नहीं सका. उस के मन में यही सब चलता रहा कि क्या वह नामर्द है? वह किसी भी औरत के साथ जिस्मानी संबंध नहीं बना सकता. उसे एक ही उपाय सूझा कि वह शादी नहीं करेगा, नहीं तो उस के चलते किसी लड़की की जिंदगी बरबाद हो जाएगी.

गौतम कुछ दिनों तक टैंशन में रहा. इस तकलीफ को भुला कर वह पढ़ाई में अपना मन लगाने लगा. कालेज में वह एक अच्छे स्टूडैंट के रूप में जाना जाता था. उस का स्वभाव भी शालीन हो गया था, जिस से प्रभावित हो कर कालेज में साथ पढ़ने वाली लड़की निशा उस से मन ही मन प्यार करने लगी थी.

निशा साधारण रूपरंग की लड़की थी. वह पढ़ाई में जहीन थी. वह गौतम को अपने टाइप का पाती थी, जिस से एक लगाव महसूस करती थी.

गौतम को भी निशा अच्छी लगती थी, लेकिन उस की अपनी मजबूरी साथ चल रही थी. वह किसी लड़की से प्यार नहीं करना चाहता था, क्योंकि उस के दिल में अनीता के साथ उस रात की जो घटना घटी थी, उस का पेंच बुरी तरह फंसा हुआ था.

एक दिन निशा ने गौतम को गुलाब का फूल दे कर अपने प्यार का इजहार कर दिया, ‘‘गौतम, मैं तुम्हें दिल से चाहती हूं. मुझे तुम से प्यार हो गया है. मेरे प्यार को ठुकराना मत.’’

गौतम ने हिचकिचाते हुए निशा के हाथ से गुलाब का फूल ले लिया. उस के चेहरे पर थोड़ी चिंता के भाव थे. वह निशा से बस इतना कह सका, ‘‘निशा, अपने प्यार को हर हाल में निभाना. बीच रास्ते में छोड़ कर चले जाना प्यार नहीं होता है.’’

निशा ने गौतम के हाथ को अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘गौतम, मैं हरदम अपने प्यार को निभाती रहूंगी.’’

गौतम और निशा की कालेज की पढ़ाई खत्म हो गई थी. वे दोनों नौकरी के लिए फार्म भरने लगे थे. गौतम की पढ़ाई में की गई कड़ी मेहनत काम आई. वह एक बड़े दफ्तर में जूनियर अफसर बन गया.

उसी दफ्तर में निशा को क्लर्क की नौकरी मिल गई. अब गौतम और निशा एक ही औफिस में साथसाथ काम करने लगे.

गौतम की मां उस की शादी करने की जिद करने लगी, जिस से गौतम डराडरा सा रहने लगा था. वह शादी कर के किसी लड़की की जिंदगी बरबाद नहीं करना चाहता था.

एक दिन तो मां ने गौतम से पूछा, ‘‘बेटा, अगर कोई लड़की तुम्हारी पसंद की हो तो बताना. मैं उसी लड़की से तुम्हारी शादी करवा दूंगी.’’

गौतम ने मां से कहा, ‘‘ठीक है, मां. कोई लड़की मेरी पसंद की होगी, तो मैं आप को बता दूंगा.’’

उस दिन औफिस में गौतम बहुत परेशान था. उस की परेशानी उस के चेहरे से साफ झलक रही थी.

गौतम को चिंतित देख कर निशा ने पूछ लिया, ‘‘क्या बात है गौतम, तुम आज काफी उदास दिख रहे हो?’’

‘‘निशा, मां मेरी शादी कराने की जिद कर रही हैं.’’

‘‘तो मां से तुम ने क्या कहा?’’ निशा ने पूछा.

‘‘यही कि कोई लड़की पसंद की होगी तो बताऊंगा,’’ गौतम ने निशा से कहा.

निशा के होंठों पर मुसकान खिल गई, ‘‘इस में उदास होने की तो कोई बात नहीं है.’’

‘‘नहीं निशा, मैं किसी लड़की की जिंदगी बरबाद नहीं करना चाहता. मेरे साथ एक घटना घट गई थी, जिस ने मेरी जिंदगी से शादी का सपना छीन लिया.’’

‘‘कौन सी घटना थी? मैं जानना चाहूंगी,’’ निशा ने पूछा.

गौतम ने अनीता के साथ घटी उस रात की घटना को तफसील से सुनाया. उस ने बताया कि कैसे उस रात को अनीता ने अपने कमरे में उसे नामर्द कहा था, जबकि अनीता ने जिस्मानी संबंध बनाने के लिए उसे खुद बुलाया था.

निशा, गौतम की बात बड़े ध्यान से सुन रही थी.

‘‘निशा अब तुम्हीं बताओ कि कौन सी लड़की एक नामर्द से शादी करना चाहेगी?’’

निशा ने कहा, ‘‘शादी तो मैं तुम से ही करूंगी,’’ निशा ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘गौतम, तुम्हारे साथ ऐसा कुछ भी नहीं है. अनीता के साथ घटी उस रात की घटना में एक बात सामने आ रही है कि तुम बहुत घबराए हुए थे. तुम्हारे मन में पकड़े जाने का डर था, जिस से ऐसे हालात पैदा हो गए थे. वह घटना वहम बन कर तुम्हें अब तक डराती रही है. बेवजह अपने को नामर्द समझना भी तो एक गुनाह है.’’

निशा की बातों से गौतम को हौसला मिला. उस की आंखों में खोई हुई चमक लौट आई.

गौतम और निशा की शादी बड़े ही धूमधाम से हो गई. आज उन की सुहागरात थी. एक कमरे को फूलों से सजा दिया गया था. निशा दुलहन के लाल जोड़े में पलंग पर बैठी थी. वह गौतम का इंतजार कर रही थी.

कुछ देर बाद गौतम कमरे में आया. वह कमरे का दरवाजा बंद कर निशा के पास आ कर बैठ गया, ‘‘निशा, दुलहन के लाल जोड़े में तुम बड़ी खूबसूरत लग रही हो,’’ गौतम ने उसे भरपूर नजर से देखते हुए कहा.

निशा मुसकरा दी. गौतम ने उसे बांहों में भर कर चूम लिया. निशा ने भी गौतम को प्यार से चूम लिया. धीमेधीमे प्यार का नशा दोनों पर छाने लगा. निशा ने गौतम को बांहों में जकड़ लिया.

गौतम और निशा ने जीभर कर सुहागरात का मजा लिया. निशा गौतम के प्यार से संतुष्ट हो गई थी.

निशा ने गौतम से प्यार से कहा, ‘‘आज सुहागरात में आप की मर्दानगी में कोई कमी नहीं थी.’’

‘‘निशा, तुम मेरी बीवी हो. यहां मुझे किस बात का डर था, जिस के चलते मुझे कोई परेशानी नहीं हुई,’’ गौतम ने निशा से कहा.

‘‘गौतम, अब समझ में आ गया न कि आप बेकार के वहम में जी रहे थे,’’ निशा बोली.

‘‘हां निशा, एक बोझ जो आज दिल से उतर गया,’’ गौतम ने कहा और निशा को चूम लिया.

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