Hindi Kahani: शीलू हत्याकांड – अहमद ने कबूला जुर्म

Hindi Kahani: श्रद्धा हत्याकांड को अभी कुछ ही दिन हुए थे कि लखनऊ के गोमती नगर में एक मल्टीनैशनल कंपनी की मैनेजर शीलू की हत्या से लोगों का गुस्सा उफान पर था. राजनीतिक पार्टियां इस मामले पर अपनअपनी रोटियां सेंकने में बिजी थीं.

खबरिया चैनलों के मुताबिक, अहमद (बदला हुआ नाम) गोमती नगर में अपनी लिवइन पार्टनर शीलू के मकान में पिछले 2 साल से रह रहा था. शीलू एक रियल ऐस्टेट कंपनी में मैनेजर थी, जबकि अहमद एक छोटी सी कंपनी में नौकरी करता था. शीलू किसी मजबूरी में अहमद को अपने साथ रखे हुए थी. अहमद रोज उसे तंग करता था.

अहमद ने शीलू को अपने प्रेमजाल में फंसाया और फिर उसे ब्लैकमेल करने लगा. आखिरकार अहमद ने अपने पालतू कुत्ते से कटवा कर शीलू का मर्डर कर दिया.

पुलिस की चार्जशीट के मुताबिक, बुधवार रात 12 बजे पुलिस हैल्पलाइन पर अहमद का फोन आया कि उस के पालतू पिटबुल कुत्ते ने उस की दोस्त पर हमला कर दिया है.

पुलिस ने मौके पर पहुंच कर जब तक कुत्ते को मौत के घाट उतारा, वह शीलू के पेट की आंत फाड़ चुका था. पुलिस इसे कुत्ते का हमला मान कर चल रही थी, लेकिन कुत्ते की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसे कई दिन से भूखा होने, कुत्ते को खरीदने का महज 2 महीने पुराना बिल और कमरे में फैली इथोक्सीक्विन की गंध से पुलिस को अहमद पर शक हो गया.

पुलिस को दिए गए अपने बयान में अहमद ने बताया कि शीलू की हत्या के लिए ही उस ने पिटबुल कुत्ते को खरीदा था. 2 महीने में यह कुत्ता उस का अच्छा दोस्त बन गया था, जबकि शीलू को वह पहचानता तक नहीं था. शीलू को कुत्तों से नफरत थी और वह रोज उसे और उस के कुत्ते को घर से निकालने की धमकी दे रही थी.

घटना के 2 दिन पहले से उस ने अपने पालतू कुत्ते को भूखा रखना शुरू कर दिया. घटना की रात शीलू के सोते ही अहमद ने उस के ऊपर इथोक्सीक्विन का स्प्रे कर दिया. कुत्ते को कमरे में छोड़ दरवाजे को बाहर से बंद कर दिया.

इथोक्सीक्विन का इस्तेमाल कुत्तों के भोजन में प्रिजर्वर की तरह किया जाता है. पिटबुल कुत्ते ने गहरी नींद में सो रही शीलू को अपना भोजन समझ कर नोचना शुरू कर दिया. शीलू बहुत देर तक तड़पती, चिल्लाती और मदद मांगती रही.

शीलू के चीखने की आवाज कुछ कम होना शुरू हुई, तब अहमद ने पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस के आने से पहले उस ने कमरे का दरवाजा खोल कर शीलू को बचाने की कोशिश का नाटक करना शुरू किया था.

अहमद के कबूलनामे के बाद उस की फांसी की सजा तय थी. अहमद ने जेल के अपने साथियों को जो कहानी सुनाई, वह बहुत ही मनगढ़ंत, बेतुकी, लेकिन रोमांचक लग रही थी.

अहमद ने बताया कि उस ने 2 साल पहले शीलू की कंपनी में काम शुरू किया था. वह कंपनी के फाइनैंस सैक्शन में था. उस का काम कंपनी के स्टौक को गोपनीय रखना था. साथ ही, स्टौक के रखरखाव की जिम्मेदारी भी थी.

शीलू उस की बौस थी. जिस तरह से कालेज जाने वाले छात्रों को रैगिंग के लिए डराया जाता है, उसी तरह से मल्टीनैशनल कंपनी को जौइन करने से पहले उसे उस के दोस्तों ने बौस के नाम से डराया था कि कारपोरेट सैक्टर के बौस धरती के सब से ज्यादा खूंख्वार प्राणी हैं. वे अपने नीचे काम करने वालों के साथ गलत बरताव करते हैं, उन का फायदा उठाते हैं वगैरह.

अहमद ने आगे बताया, ‘‘मुझे दोस्तों की बातों से डरने की जरूरत नहीं थी. मेरी बौस एक अबला नारी थी. जरूरत पड़ने पर मैं ही उस के साथ सैक्स करने को तैयार बैठा था. मेरी सोच बहुत गलत थी. मैं अपनी लेडी बौस को कम आंक रहा था.

‘‘एक हफ्ते में ही शीलू ने मेरे काम में तरहतरह की गलती निकालते हुए मेरा बैंड बजाना और मुझे नीचा दिखाना शुरू कर दिया. पर मैं जानता था कि मेरी पहली ही कंपनी ने अगर मुझे इस तरह से काम से निकाल दिया, तो मेरा कैरियर बरबाद हो जाएगा और मुझे फिर कहीं भी कायदे की नौकरी नहीं मिलेगी.

‘‘औफिस में शीलू के सहयोगियों ने मुझे बताया कि अपनी नौकरी बचाने के लिए मुझे शीलू मैडम की मेहरबानी हासिल करनी होगी और अपनी नौकरी की खुशी में उन के लिए कोई गिफ्ट ले कर उन के घर जाना चाहिए.

‘‘मैं शाम को डरता हुआ उन के घर पहुंचा. शीलू मैडम, गोमती नगर में एक बंगले जैसे ड्यूप्लैक्स में अकेली रहती थीं. नौकरानी ने दरवाजा खोला, मुझे ऊपर से नीचे तक ललचाई नजरों से देखा और फिर खुशीखुशी अपनी मालकिन को मेरा ब्योरा दिया. उसी पल मुझे समझ जाना था कि मैं एक भारी मुसीबत में फंसने वाला हूं.

‘‘शीलू मैडम अपने लिविंगरूम में बहुत ही कम कपड़ों में थीं. उन्होंने केवल सफेद शर्ट पहनी हुई थी. वे कंप्यूटर पर किसी जरूरी काम में बिजी थीं. शायद उन्हें स्कर्ट पहनने और कुरसी पर बैठने का भी समय न था.

‘‘मैडम की दूधिया, मोम की तरह चिकनी और साफ जांघों को देख कर मेरा पसीना निकलने लगा. मैडम की ट्रांसपेरेंट शर्ट भी नाममात्र के लिए ही थी. काली ब्रा से ढके हुए उन के विशाल गुंबद साफ दिखाई दे रहे थे.

‘‘मैडम के चिकने टखनों, पैर, घुटनों और जांघ को घूरतेघूरते जब तक मेरी नजरें मैडम की चितकबरी कौटन पैंटी तक पहुंचीं, तब तक मैडम मेरी नजरों को ताड़ चुकी थीं. उन्होंने गले लगा कर मेरा स्वागत किया.

‘‘किसी भारतीय मर्द की मति हरने के लिए इतना लालच काफी होता है. उन्होंने और उन की नौकरानी ने मेरी अच्छे से आवभगत की. हमारे बीच सिर्फ संबंध बनना ही बाकी रह गया था.

‘‘उस दिन से मैं शीलू मैडम का आशिक बन गया. मैं बेवकूफ लट्टू की तरह उन के चारों ओर गोलगोल घूमने लगा. औफिस तो औफिस, शीलू मैडम की कालोनी के लोग भी मुझे शीलू मैडम का चमचा और उन का निजी नौकर समझने लगे थे.

‘‘शीलू मैडम सैक्स के मामले में डोमिनैंट थीं. शुरू में उन की हरकतें मुझे बहुत अच्छी लगती थीं. उन का गुस्से में मुझे पलंग पर पटक देना, मेरे कपड़े फाड़ देना, जंगली बिल्ली की तरह उछल कर मेरे सीने पर सवार हो जाना, मेरे बम को अपने हंटर की मार से लाल कर देना वगैरह. उन्हें मेरे गले में कुत्तों का पट्टा पहना कर, घुटनों के बल, अपने पैरों के बीच बैठाना बहुत अच्छा लगता था.

‘‘मुझे कुरसी से बांधने के बाद जिस्मानी संबंध के लिए तरसाने में उन्हें मजा आता था. यह एक ऐसा माइंड गेम था कि मैं खुद भी अपनेआप को उन का पालतू कुत्ता समझ कर बरताव करने लगा था, उन के आगेपीछे दुम हिलाने लगा था.

‘‘शीलू मैडम के दो घड़ी के प्यार के बदले उन का नौकर बनना तो बहुत छोटी बात है, मैं उन के लिए अपनी गरदन कटाने को तैयार बैठा था. औफिस में हर कहीं वे मेरा इस्तेमाल कर रही थीं, मुझे उन के काम के लिए अपना इस्तेमाल कराने में कोई तकलीफ नहीं थी.

‘‘मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी, अपने सैक्सी बौस से अफेयर, एक भारतीय लड़के को इस से ज्यादा क्या चाहिए? मेरे सारे साथी मुझ से जलने लगे थे. शीलू मैडम के चक्कर में मैं ने अपनी पुरानी गर्लफ्रैंड को भी धोखा दे दिया, उसे छोड़ दिया था.

‘‘यह सही बात है कि शीलू मैडम ने मुझे अपने घर में शरण दी, लेकिन यह मुफ्त नहीं था. मकान के किराए के बदले शीलू मैडम मेरी आधी तनख्वाह अपने पास रख लेती थीं. इस के अलावा शीलू मैडम को खुश रखने के चक्कर में मेरी बाकी तनख्वाह भी खत्म हो जाती थी.

‘‘मेरी हालत उन के घर में नौकरों से भी बदतर थी. वह मुझ से अपने जूते चमकवाने से ले कर चड्डी धुलाने तक के काम करवाती थीं. शुरूशुरू में मैं राजीखुशी उन के सारे काम कर रहा था.

‘‘मैं सोचता था कि किसी को क्या पता चलेगा. सभी तो यही समझेंगे कि मैं लखनऊ शहर की सब से पसंदीदा महिला शीलू का बौयफ्रैंड हूं, उन का फायदा उठा रहा हूं. बस इसी ख्वाबों की दुनिया ने मुझे बरबाद कर दिया था.

‘‘शीलू मैडम ने मेरे घर की जमीन बिकवा कर अपने नाम लखनऊ में प्लौट खरीद लिया. मेरे पिता इस सदमे में मर गए, तब जा कर मेरी अक्ल पर पड़े पत्थर हटने शुरू हुए.

‘‘शीलू मैडम के कई दूसरे लड़कों से अफेयर के भी मुझे पुख्ता सुबूत मिलने लगे थे. शीलू मैडम मुझ से पहले भी अनेक मर्दों से यह स्वांग रच चुकी थीं.

‘‘शीलू मैडम की पैसों की भूख मैं पहचान चुका था, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी. उन्होंने हमारे सैक्स वाले फोटो वायरल करने, मुझ पर ‘सैक्सुअल हरैसमैंट’ का केस लगाने और मुझे ‘मी टू हैशटैग’ कैंपेन में फंसाने की धमकी दी, तो घबरा कर मुझे उन के आगे सरैंडर करना पड़ा.

‘‘उस दिन हम आखिरी बार बिस्तर पर मिले थे. शीलू मैडम किसी गुलाम की तरह वे सारे काम कर रही थीं, जो रोज मैं उन के लिए किया करता था.

‘‘उस दिन के बाद दिन ब दिन मेरी हालत उन के दरवाजे के चौखट से बंधे हुए कुत्ते से भी बदतर होती जा रही थी. शीलू मैडम मेरे सामने ही अपने दूसरे मर्दों के साथ अफेयर करने लगी थीं. मेरे सामने ही अपने दोस्तों से लिपटना, होंठ से होंठ सटा देना… और मैं बेबसी से बस उन्हें देख सकता था.

‘‘शीलू मैडम ने मेरे लैपटौप और मोबाइल के पासवर्ड ले लिए थे. अकसर वे उन्हें चैक करने के बहाने अपने कब्जे में रख लेती थीं.

‘‘इतना सब होने के बावजूद भी मैं शीलू मैडम की खिलाफत नहीं कर पा रहा था. एक ही छत के नीचे रहते हुए, जबतब मुझे बाथरूम से बाहर निकलती या पानी के छींटे उछालती शीलू मैडम के ताजमहल या नीलम घाटी के दर्शन हो जाते.

‘‘इतने से ही मेरी इच्छा पूरी हो जाती थी. मुझे लगता था कि एड़ा बन कर पेड़ा खाते रहने में भी क्या बुराई है. शीलू मैडम का लिवइन पार्टनर तो मैं ही कहलाऊंगा.

‘‘दौलत की लालची शीलू मैडम ने मेरे नाम से एक फर्जी डीमैट अकाउंट खोल कर कंपनी के शेयरों की इनसाइड ट्रेडिंग कर करोड़ों का घपला कर लिया और मुझे मुसीबत में डाल दिया.

कंपनी के औडिट में मुझे कुसूरवार समझ कर नौकरी से निकाल दिया. मेरी भविष्यनिधि जब्त कर ली. ‘‘शीलू मैडम ने चुपचाप मेरे कानों में कह दिया था, ‘चुप रहो, चिंता की बात नहीं है, मैं तुम्हें बचा लूंगी.’

‘‘धोखा… उन की कोई भी बात सही नहीं थी. मुझे उन की किसी बात पर यकीन नहीं करना चाहिए था.

‘‘पुरानी दोस्ती के नाम पर उन्होंने मुझे अपने घर में रहते रहने की इजाजत दे दी, लेकिन उन के बैडरूम में आने की अब मुझे इजाजत नहीं थी. मुझे घर का सारा काम निबटाना होता था, बदले में शीलू मैडम ने सिफारिश कर मुझे एक कुरियर कंपनी में छोटी सी नौकरी दिला दी थी.

‘‘इतना सब होने के बावजूद मैं ने शीलू मैडम से बदलना लेने के बारे में नहीं सोचा था. ‘‘पर, उस दिन मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया, जब शीलू मैडम देर रात अपने एक दोस्त के साथ घर आईं. आते ही उन्होंने मुझे ‘टौमी… टौमी…’ कह कर और ‘पुच… पुच…’ कर चिढ़ाना शुरू कर दिया.

‘‘शीलू मैडम नशे में चूर थीं और बारबार अपने दोस्त से चिपक रही थीं, उस की बांहों में झूल रही थीं. अगर उन के दोस्त ने न रोका होता, तो वे वहीं दरवाजे के सामने ही उस के साथ सैक्स करना शुरू कर देतीं.

‘‘शीलू मैडम का दोस्त मेरे सामने से ही उन्हें बैडरूम में खींच ले गया. शीलू मैडम ने मुझे अपनी दूध की फैक्टरी में से मक्खी की तरह बाहर निकाल फेंका था. बहुत देर तक उन के कमरे से सैक्सुअल फोरप्ले की आवाज आती रही. मेरी सोच पहले ही मर चुकी थी, उस दिन मेरा दिल भी जल कर राख हो गया. मुझे उस दिन रातभर नींद नहीं आई.

‘‘उसी दिन मैं ने अपनी प्यारी शीलू मैडम को ठिकाने लगाने का प्लान बना लिया था. आज भी उन की मौत का सब से ज्यादा दुख मुझे है.’’ अहमद की इस मनगढ़ंत कहानी पर किसी को यकीन नहीं है. Hindi Kahani

Hindi Story: कुरसी का करिश्मा – कलावती का जालिम हुस्न

Hindi Story: दीपू के साथ आज मालिक भी उस के घर पधारे थे. उस ने अंदर कदम रखते ही आवाज दी, ‘‘अजी सुनती हो?’’

‘‘आई…’’ अंदर से उस की पत्नी कलावती ने आवाज दी.

कुछ ही देर बाद कलावती दीपू के सामने खड़ी थी, पर पति के साथ किसी अनजान शख्स को देख कर उस ने घूंघट कर लिया.

‘‘कलावती, यह राजेश बाबू हैं… हमारे मालिक. आज मैं काम पर निकला, पर सिर में दर्द होने के चलते फतेहपुर चौक पर बैठ गया और चाय पीने लगा, पर मालिक हालचाल जानने व लेट होने के चलते इधर ही आ रहे थे.

‘‘मुझे चौक पर देखते ही पूछा, ‘क्या आज काम पर नहीं जाना.’

‘‘इन को सामने देख कर मैं ने कहा, ‘मेरे सिर में काफी दर्द है. आज नहीं जा पाऊंगा.’

‘‘इस पर मालिक ने कहा, ‘चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं.’

‘‘देखो, आज पहली बार मालिक हमारे घर आए हैं, कुछ चायपानी का इंतजाम करो.’’

कलावती थोड़ा सा घूंघट हटा कर बोली, ‘‘अभी करती हूं.’’

घूंघट के हटने से राजेश ने कलावती का चेहरा देख लिया, मानो उस पर आसमान ही गिर पड़ा. चांद सा दमकता चेहरा, जैसे कोई अप्सरा हो. लंबी कदकाठी, लंबे बाल, लंबी नाक और पतले होंठ. सांचे में ढला हुआ उस का गदराया बदन. राजेश बाबू को उस ने झंकझोर दिया था.

इस बीच कलावती चाय ले आई और राजेश बाबू की तरफ बढ़ाती हुई बोली, ‘‘चाय लीजिए.’’

राजेश बाबू ने चाय का कप पकड़ तो लिया, पर उन की निगाहें कलावती के चेहरे से हट नहीं रही थीं. कलावती दीपू को भी चाय दे कर अंदर चली गई.

‘‘दीपू, तुम्हारी बीवी पढ़ीलिखी कितनी है?’’ राजेश बाबू ने पूछा.

‘‘10वीं जमात पास तो उस ने अपने मायके में ही कर ली थी, लेकिन यहां मैं ने 12वीं तक पढ़ाया है,’’ दीपू ने खुश होते हुए कहा.

‘‘दीपू, पंचायत का चुनाव नजदीक आ रहा है. सरकार ने तो हम लोगों के पर ही कुतर दिए हैं. औरतों को रिजर्वेशन दे कर हम ऊंची जाति वालों को चुनाव से दूर कर दिया है. अगर तुम मेरी बात मानो, तो अपनी पत्नी को उम्मीदवार बना दो.

‘‘मेरे खयाल से तो इस दलित गांव में तुम्हारी बीवी ही इंटर पास होगी?’’ राजेश बाबू ने दीपू को पटाने का जाल फेंका.

‘‘आप की बात सच है राजेश बाबू. दलित बस्ती में सिर्फ कलावती ही इंटर पास है, पर हमारी औकात कहां कि हम चुनाव लड़ सकें.’’

‘‘अरे, इस की चिंता तुम क्यों करते हो? मैं सारा खर्च उठाऊंगा. पर मेरी एक शर्त है कि तुम दोनों को हमेशा मेरी बातों पर चलना होगा,’’ राजेश बाबू ने जाल बुनना शुरू किया.

‘‘हम आप से बाहर ही कब थे राजेश बाबू? हम आप के नौकरचाकर हैं. आप जैसा चाहेंगे, वैसा ही हम करेंगे,’’ दीपू ने कहा.

‘‘तो ठीक है. हम कलावती के सारे कागजात तैयार करा लेंगे और हर हाल में चुनाव लड़वाएंगे,’’ इतना कह कर राजेश बाबू वहां से चले गए.

कुछ दिन तक चुनाव प्रचार जोरशोर से चला. राजेश बाबू ने इस चुनाव में पैसा और शराब पानी की तरह बहाया. इस तरह कलावती चुनाव जीतने में कामयाब हो गई.

कलावती व दीपू राजेश बाबू की कठपुतली बन कर हर दिन उन के यहां दरबारी करते. खासकर कलावती तो कोई भी काम उन से पूछे बिना नहीं करती थी.

एक दिन एकांत पा कर राजेश बाबू ने घर में कलावती के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कलावती, एक बात कहूं?’’

‘‘कहिए मालिक,’’ कलावती राजेश बाबू के हाथ को कंधे से हटाए बिना बोली.

‘‘जब मैं ने तुम्हें पहली बार देखा था, उसी दिन मेरे दिल में तुम्हारे लिए प्यार जाग गया था. तुम को पाने के लिए ही तो मैं ने तुम्हें इस मंजिल तक पहुंचाया है. आखिर उस अनपढ़ दीपू के हाथों

की कठपुतली बनने से बेहतर है कि तुम उसे छोड़ कर मेरी बन जाओ. मेरी जमीनजायदाद की मालकिन.’’

‘‘राजेश बाबू, मैं कैसे यकीन कर लूं कि आप मुझ से सच्चा प्यार करते हैं?’’ कलावती नैनों के बाण उन पर चलाते हुए बोली.

‘‘कल तुम मेरे साथ चलो. यह हवेली मैं तुम्हारे नाम कर दूंगा. 5 बीघा खेत व 5 लाख रुपए नकद तुम्हारे खाते में जमा कर दूंगा. बोलो, इस से ज्यादा भरोसा तुम्हें और क्या चाहिए.’’

‘‘बस… बस राजेश बाबू, अगर आप इतना कर सकते हैं, तो मैं हमेशा के लिए दीपू को छोड़ कर आप की हो जाऊंगी,’’ कलावती फीकी मुसकान के साथ बोली.

‘‘तो ठीक है,’’ राजेश ने उसे चूमते हुए कहा, ‘‘कल सवेरे तुम तैयार रहना.’’

दूसरे दिन कलावती तैयार हो कर आई. राजेश बाबू के साथ सारा दिन बिताया. राजेश बाबू ने अपने वादे के मुताबिक वह सब कर दिया, जो उन्होंने कहा था.

2 दिन बाद राजेश बाबू ने कलावती को अपने हवेली में बुलाया. वह पहुंच गई, तो राजेश बाबू ने उसे अपने आगोश में भरना चाहा, तभी कलावती अपने कपड़े कई जगह से फाड़ते हुए चीखी, ‘‘बचाओ… बचाओ…’’

कुछ पुलिस वाले दौड़ कर अंदर आ गए, तो कलावती राजेश बाबू से अलग होते हुए बोली, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, यह शैतान मेरी आबरू से खेलना चाह रहा था. देखिए, मुझे अपने घर बुला कर किस तरह बेइज्जत करने पर तुल गया. यह भी नहीं सोचा कि मैं इस पंचायत की मुखिया हूं.’’

इंस्पैक्टर ने आगे बढ़ कर राजेश बाबू को धरदबोचा और उस के हाथों में हथकड़ी डालते हुए कहा, ‘‘यह आप ने ठीक नहीं किया राजेश बाबू.’’

राजेश बाबू ने गुस्से में कलावती को घूरते हुए कहा, ‘‘धोखेबाज, मुझसे दगाबाजी करने की सजा तुम्हें जरूर मिलेगी. आज तू जिस कुरसी पर है, वह कुरसी मैं ने ही तुझे दिलाई है.’’

‘‘आप ने ठीक कहा राजेश बाबू. अब वह जमाना लद गया है, जब आप लोग छोटी जातियों को बहलाफुसला कर खिलवाड़ करते थे. अब हम इतने बेवकूफ नहीं रहे.

‘‘देखिए, इस कुरसी का करिश्मा, मुखिया तो मैं बन ही गई, साथ ही आप ने रातोंरात मुझे झोंपड़ी से उठा कर हवेली की रानी बना दिया. लेकिन अफसोस, रानी तो मैं बन गई, पर आप राजा नहीं बन सके. राजा तो मेरा दीपू ही होगा इस हवेली का.’’राजेश बाबू अपने ही बुने जाल में उलझ गए. Hindi Story

Best Hindi Story: ठोकर – लाली ने कैसे गंवा दिया सब कुछ

Best Hindi Story: सतपाल गहरी नींद में सोया हुआ था. उस की पत्नी उर्मिला ने उसे जगाने की कोशिश की. वह इतनी ऊंची आवाज में बोली थी कि साथ में सोया उस का 5 साला बेटा जंबू भी जाग गया था. वह डरी निगाहों से मां को देखने लगा था.

‘‘क्या हो गया? रात को तो चैन से सोने दिया करो. क्यों जगाया मुझे?’’ सतपाल उखड़ी आवाज में उर्मिला पर बरस पड़ा.

‘‘बाहर गेट पर कोई खड़ा है. जोरजोर से डोर बैल बजा रहा है. पता नहीं, इतनी रात को कौन आ गया है? मुझे तो डर लग रहा है,’’ उर्मिला ने घबराई आवाज में बताया.

‘‘अरे, इस में डरने की क्या बात है? गेट खोल कर देख लो. तुम सतपाल की घरवाली हो. हमारे नाम से तो बड़ेबड़े भूतप्रेत भाग जाते हैं.’’

‘‘तुम ही जा कर देखो. मुझे तो डर लग रहा है. पता नहीं, कोई चोरडाकू न आ गया हो. तुम भी हाथ में तलवार ले कर जाना,’’ उर्मिला ने सहमी आवाज में सलाह दी.

सतपाल ने चारपाई छोड़ दी. उस ने एक डंडा उठाया. गेट के करीब पहुंच कर उस ने गेट के ऊपर से झांक कर देखा, तो कांप उठा. बाहर उस की छोटी बहन खड़ी सिसक रही थी.

सतपाल ने हैरानी भरे लहजे में पूछा, ‘‘अरे लाली, तू? घर में तो सब ठीक है न?’’ लाली कुछ नहीं बोल पाई. बस, गहरीगहरी हिचकियां ले कर रोने लगी. सतपाल ने देखा कि लाली के चेहरे पर मारपीट के निशान थे. सिर के बाल बिखरे हुए थे.

सतपाल लाली को बैडरूम में ले आया. वह बारबार लाली से पूछने की कोशिश कर रहा था कि ऐसा क्या हुआ कि उसे आधी रात को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा?

उर्मिला ने बुरा सा मुंह बनाया और पैर पटकते हुए दूसरे कमरे में चली गई. उसे लाली के प्रति जरा भी हमदर्दी नहीं थी.

लाली की शादी आज से 10 साल पहले इसी शहर में हुई थी. तब उस के मम्मीपापा जिंदा थे. लाली का पति दुकानदार था. काम अच्छा चल रहा था. घर में लाली की सास थी, 2 ननदें भी थीं. उन की शादी हो चुकी थी.

लाली के पति अजय ने उसे पहली रात को साफसाफ शब्दों में समझ दिया था कि उस की मां बीमार रहती हैं. उन के प्रति बरती गई लापरवाही को वह सहन नहीं करेगा. लाली ने पति के सामने तो हामी भर दी थी, मगर अमल में नहीं लाई.

कुछ दिनों बाद अजय ने सतपाल के सामने शिकायत की. जब सतपाल ने लाली से बात की, तो वह बुरी तरह भड़क उठी. उस ने तो अजय की शिकायत को पूरी तरह नकार दिया. उलटे अजय पर ही नामर्दी का आरोप लगा दिया.

अजय ने अपने ऊपर नामर्द होने का आरोप सुना, तो वह सतपाल के साथ डाक्टर के पास पहुंचा. अपनी डाक्टरी जांच करा कर रिपोर्ट उस के सामने रखी, तो सतपाल को लाली पर बेहद गुस्सा आया. उस ने डांटडपट कर लाली को ससुराल भेज दिया.

लाली ससुराल तो आ गई, मगर उस ने पति और सास की अनदेखी जारी रखी. उस ने अपनी जिम्मेदारियों को महसूस नहीं किया. अपने दोस्तों के साथ मोबाइल पर बातें करना जारी रखा.

आखिरकार जब अजय को दुकान बंद कर के अपनी मां की देखभाल के लिए घर पर रहने को मजबूर होना पड़ा, तब उस ने अपनी आंखों से देखा कि लाली कितनी देर तक मोबाइल फोन पर न जाने किसकिस से बातें करती थी.

एक दिन अजय ने लाली से पूछ ही लिया कि वह इतनी देर से किस से बातें कर रही थी?

पहले तो लाली कुछ भी बताने को तैयार नहीं हुई, पर जब अजय गुस्से से भर उठा, तो लाली ने अपने भाई सतपाल का नाम ले लिया.

उस समय तो अजय खामोश हो गया, क्योंकि उसे मां को अस्पताल ले जाना था. जब वह टैक्सी से अस्पताल की तरफ जा रहा था, तब उस ने सतपाल से पूछा, तो उस ने इनकार कर दिया कि उस के पास लाली का कोई फोन नहीं आया था.

अजय 2 घंटे बाद वापस घर में आया, तो लाली को मोबाइल फोन पर खिलखिला कर बातें करते देख बुरी तरह सुलग उठा था. उस ने तेजी से लपक कर लाली के हाथ से मोबाइल छीन कर 4-5 घूंसे जमा दिए.

लाली चीखतीचिल्लाती पासपड़ोस की औरतों को अपनी मदद के लिए बुलाने को घर से बाहर निकल आई.

अजय ने उसी नंबर पर फोन मिलाया, जिस पर लाली बात कर रही थी. दूसरी तरफ से किसी अनजान मर्द की आवाज उभरी.

अजय की आवाज सुनते ही दूसरी तरफ से कनैक्शन कट गया. अजय ने दोबारा नंबर मिला कर पूछने की कोशिश की, तो दूसरी तरफ से मोबाइल स्विच औफ हो गया. अजय ने लाली से पूछा, तो उस ने भी सही जवाब नहीं दिया.

अजय का गुस्से से भरा चेहरा भयानक होने लगा. उस के जबड़े भिंचने लगे. वह ऐसी आशिकमिजाजी कतई  सहन नहीं करेगा.

लाली घबरा उठी. उसे लगा कि अगर वह अजय के सामने रही और किसी दोस्त का फोन आ गया, तो यकीनन उस की खैरियत नहीं. उस ने उसी समय जरूरी सामान से अपना बैग भरा और अपने मायके आ गई.

लाली ने घर आ कर अजय और उस की मां पर तरहतरह के आरोप लगा कर ससुराल जाने से मना कर दिया. कई महीनों तक वह अपने मायके में ही रही. अजय भी उसे लेने नहीं आया. इसी तनातनी में एक साल गुजर गया.

आखिरकार अजय ही लाली को लेने आया. उस ने शर्त रखी कि लाली को मन लगा कर घर का काम करना होगा. वह पराए मर्दों से मोबाइल फोन पर बेवजह बातें नहीं करेगी.

सतपाल ने बहुत सम?ाया, मगर लाली नहीं मानी. लाली का तलाक हो गया. सतपाल ने उस के लिए 2 लड़के देखे, मगर वे उसे पसंद नहीं आए.

दरअसल, लाली ने शराब का एक  ठेकेदार पसंद कर रखा था. उस का शहर की 4-5 दुकानों में हिस्सा था. वह शहर का बदनाम अपराधी था, मगर लाली को पसंद था. काफी अरसे से लाली का उस ठेकेदार जोरावर से इश्क चल रहा था.

जोरावर सतपाल को भी पसंद नहीं था, मगर इश्क में अंधी लाली की जिद के सामने वह मजबूर था. उस की शादी जोरावर से करा दी गई.

जोरावर शराब के कारोबार में केवल 10 पैसे का हिस्सेदार था, बाकी 90 पैसे दूसरे हिस्सेदारों के थे. उस की कमाई लाखों में नहीं हजारों रुपए में थी. वह जुआ खेलने और शराब पीने का शौकीन था. वह लाली को खुला खर्चा नहीं दे पाता था.

अब तो लाली को पेट भरने के भी लाले पड़ गए. उस ने जोरावर से अपने खर्च की मांग रखी, तो उस ने जिस्म

बेच कर पैसा कमाने का रास्ता दिखाया. लाली ने मना किया, तो जोरावर ने घर में ही शराब बेचने का रास्ता सुझा दिया.

अब लाली करती भी क्या. अपना मायका भी उस ने गंवा लिया था. जाती भी कहां? उस ने शराब बेचने का धंधा शुरू कर दिया. उस का जवान गदराया बदन देख कर मनचले शराब खरीदने लाली के पास आने लगे. उस का कारोबार अच्छा चल निकला.

जोरावर को लगा कि लाली खूब माल कमा रही है, तो उस ने अपना हिस्सा मांगना शुरू कर दिया. लाली ने पैसा देने से इनकार कर दिया. उस रात दोनों में झगड़ा हुआ. लाली जमा किए तमाम रुपए एक पुराने बैग में भर कर घर से भाग निकली. Best Hindi Story

Hindi Family Story: गेहूं, गहने और चक्की – शुभम की मम्मी का गुस्सा

Hindi Family Story: ‘‘शुभम… ओ शुभम,’’ मीता देवी के चीखने का स्वर  कुछ इस तरह का था कि शुभम  सिर से  पांव तक सिहर उठा. वह अचानक यह समझ नहीं सका कि उस से कहां क्या गड़बड़ हो गई. अपनी मां मीता के उग्र स्वभाव से वह क्या, घर और महल्ले तक के लोग परिचित थे. इसलिए शुभम अपनी ओर से कोशिश करता था कि ऐसा कोई काम न करे कि उस की मां को क्रोध आए. फिर भी जानेअनजाने कभी कुछ ऐसा हो ही जाता था कि मां का पारा सातवें आसमान पर पहुंच जाता.

‘‘क्या हुआ, मां,’’ कहता हुआ शुभम तेजी से सीढि़यां फलांगते हुए मां के सामने आ खड़ा हुआ.

‘‘तुम से गेहूं पिसवाने के लिए कहा था, उस का क्या हुआ?’’ मां मीता ने छूटते ही शुभम से पूछा.

‘‘वह तो मैं सुबह ही चक्की पर पिसने को दे आया था.’’

‘‘वही तो मैं पूछ रही हूं कि ऐसी क्या आफत आ गई थी जो तुम सुबहसुबह ही गेहूं पिसने के लिए चक्की पर रख आए?’’ मीता कुछ इस तरह बोली थीं कि शुभम हक्का- बक्का रह गया.

‘‘आप को समझ पाना तो असंभव है, मां. आप ने इतनी जल्दी मचाई कि नूरे की चक्की बंद थी तो मैं 30 किलो गेहूं साइकिल पर रख कर चौराहे तक ले गया. वहां एक नई चक्की खुली है, जहां गेहूं रख कर आया हूं.’’

‘‘सत्यानाश, नूरे की चक्की बंद थी तो गेहूं वापस नहीं ला सकते थे क्या? यों तो 10 बार कहने पर भी तुम्हारे कान पर जूं नहीं रेंगती लेकिन आज इतने आज्ञाकारी बन गए कि फौरन ही हुक्म बजा लाए. अब क्या होगा? मैं तो बरबाद हो गई, लुट गई.’’

‘‘बरबाद आप नहीं मैं हो जाऊंगा, मां. कल मेरी एम.एससी. की प्रतियोगी परीक्षा है और आप यह रोनाधोना ले कर बैठ गई हैं,’’ शुभम को भी गुस्सा आ गया था.

‘‘तुम्हें पता भी है कि तुम ने क्या किया है?’’

‘‘क्या कर दिया, मां! मैं ने आप से कहा था कि कल परीक्षा के बाद गेहूं पिसवा दूंगा. आज काम चला लीजिए तो आप ने इतना शोर मचाया कि मैं अपना सब काम छोड़ कर गेहूं पिसवाने भागा.’’

‘‘गेहूं के कनस्तर में एक पोटली में मेरे 40 तोले के सोने के जेवर रखे थे,’’ यह कह कर मीता विलाप कर उठी थीं.

‘‘क्या कह रही हो, मां? गहने क्या गेहूं के कनस्तर में रखे जाते हैं? घर में 2 स्टील की अलमारी हैं. बैंक में आप का लौकर है और गहने वहां…’’ शुभम के आश्चर्य की सीमा न थी.

‘‘कल गुंजन के विवाह में जाने के लिए गहने बैंक से निकाले थे और चोरों के भय से कनस्तर में छिपा कर रखे थे. तुम नहीं जानते, समय कितना खराब है. काश, आज तुम गेहूं पिसवाने नहीं गए होते…’’ इतना कह मां सिर पर दोहत्थड़ मार कर फूटफूट कर रो पड़ी थीं.

‘‘किसी को घर बैठे 40 तोले सोने के गहने मिल जाएं तो क्यों लौटाने लगा? फिर भी मैं प्रयत्न करता हूं,’’ कहता हुआ शुभम साइकिल ले कर बाहर निकल गया था.

मीता का जोरजोर से दहाडें़ मार कर रोना सुन कर पड़ोसी भी जमा हो गए थे.

हंगामा सुन कर गली में क्रिकेट खेलता उन का छोटा बेटा सत्यम आ गया और कालिज से लौट कर सोई हुई उन की बेटी सत्या भी जाग गई और मां को ढाढ़स बंधाने लगी.

पड़ोसियों ने पूरी कहानी सुन कर शुभम के पिता मुकेश को फोन कर दिया तो वह भी आननफानन में दफ्तर से आ गए और पत्नी को ही पूरे मामले के लिए दोषी ठहराने लगे.

‘‘भूल जाओ गहनों को, कोई मूर्ख ही घर आई लक्ष्मी को लौटाता है. जीवन भर की गाढ़ी कमाई खर्च कर गहने बनवाए थे. सोचा था बच्चों के काम आएंगे. सारे गहने चले गए चक्की वाले के यहां. वह तो घी के दीपक जला रहा होगा,’’ मुकेशजी अपनी भड़ास निकाल रहे थे.

‘‘यों हिम्मत नहीं हारते, मुकेश बाबू, शुभम आता ही होगा. सब ठीक हो जाएगा,’’ पड़ोसी मुकुल नाथ बोले थे.

शुभम की प्रतीक्षा में मानो समय ठहर सा गया था. आंगन के बीचोंबीच आंखें मूंदे कराहती हुई मीताजी अर्द्ध- चेतना में पड़ी थीं और उन के चारों ओर जमा महिलाएं अपनेअपने ढंग से उन्हें ढाढ़स बंधा रही थीं. साथ ही विस्तार से इस बात की चर्चा भी हो रही थी कि कैसे जाने वाली चीज के पैर लग जाते हैं.

यह चर्चा कुछ और देर चलती पर तभी शुभम की साइकिल दरवाजे पर आ कर रुकी और वहां मौजूद लोगों में सर- सराहट सी फैल गई. बिसूरती हुई मीताजी उठ बैठी थीं. कई जोड़ी निगाहें शुभम के चेहरे पर टिकी थीं. वह चुपचाप साइकिल खड़ी कर के घर की सीढि़यां चढ़ने लगाथा.

‘‘कहां जा रहे हो, शुभम? मैं कब से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूं,’’ आखिर, मुकेश बाबू का धैर्य जवाब दे गया तो वह बोल पडे़.

‘‘मेरी प्रतीक्षा…क्यों?’’ शुभम बोला था.

‘‘तुम अपनी मां के गहने लेने गए थे न?’’

‘‘हां, पापा, मैं चक्की तक गया था पर वहां ताला लगा हुआ था.’’

‘‘देखा, मैं कहती थी न कि मुआ चक्की वाला मेरे गहने ले कर भाग गया होगा. अब क्या होगा?’’ और फिर उन्होंने इस प्रकार बिलखना शुरू किया कि वहां मौजूद औरतों की आंखों से भी जलधारा बह चली.

उधर आसपड़ोस के पुरुषों ने मुकेश बाबू को घेर लिया और उन्हेंअनेक प्रकार की सलाह देने लगे.

‘‘मेरी मानो तो तुम्हें पुलिस को सूचित कर देना चाहिए. जब पुलिस के डंडे उस पर पडें़गे तो वह सब उगल देगा,’’ एक पड़ोसी ने सलाह दी थी.

‘‘उगलने को वह कौन सा मेरे घर चोरी करने आया था. अब कौन सा मुंह ले कर मैं पुलिस के पास जाऊं? वे उपहास ही करेंगे कि जब गहनों की पोटली खुद ही चक्की वाले के हवाले कर दी तो क्या आशा ले कर आए हो पुलिस के पास?’’ मुकेशजी क्रोध में बोले थे.

‘‘देखा, मैं कहती थी न…’’ मीता देवी ने अभी इतना ही कहा था कि मुकेशजी ने झल्लाते हुए कहा, ‘‘अरे, अब कहने को क्या रह गया है? तुम यह रोनाधोना बंद करो और अपनेअपने कामधंधे से लगो. और आप लोग भी अपने घरों को जाइए, व्यर्थ ही हम लोगों ने रात के 10 बजे आप सब को परेशान किया.’’

‘‘कैसी बातें करते हैं, मुकेश बाबू, दुखतकलीफ में मित्र व पड़ोसी काम नहीं आएंगे तो कौन आएगा,’’ उन के पड़ोसी नितिन राय बोले तो वह दांत पीस कर रह गए थे.

मुकेश बाबू अच्छी तरह जानते थे कि अपनेअपने घर पहुंच कर सब उन की पत्नी की मूर्खता पर ठहाके लगाएंगे. इसीलिए वह जल्दी से जल्दी पड़ोसियों से छुटकारा पा कर एकांत चाहते थे. पर पड़ोसी थे कि जाने का नाम ही नहीं ले रहे थे. तभी उन्होंने शुभम को आवाज लगाई और वह डरासहमा उन के सामने आ खड़ा हुआ था.

‘‘गेहूं ले जाने से पहले तुम कनस्तर देख नहीं सकते थे? पर तुम्हारे पास जितनी अक्ल है उतना ही तो काम करोगे.’’

‘‘मुझे क्या पता था कि गेहूं पिसाने के कनस्तर में गहने भी रखे जा सकते हैं. मैं ने तो गेहूं तुलवाए भी थे. मुझे तो कोई पोटली नजर नहीं आई.’’

‘‘नजर आती भी कैसे? तुम्हारा ध्यान तो कहीं और ही रहता है.’’

‘‘पापा, आप तो बेवजह मुझ पर गुस्सा कर रहे हैं. भला, गेहूं तुलवाते समय कहां ध्यान जा सकता है,’’ शुभम भी तीखे स्वर में बोला था.

‘‘देखा आप सब ने? यह है आज की संतान. एक तो इतना नुकसान कर दिया उस की चिंता नहीं है, ऊपर से अपनी मां को ही दोषी ठहरा रहा है,’’ मुकेश बाबू अचानक उग्र रूप धारण कर कुछ इस प्रकार चीखे थे कि शुभम सकते में आ गया और चुपचाप एक कोने में बैठ कर रोने लगा.

‘‘चक्की बंद है. आधी रात होने को आई. इस समय चक्की वाले का पता करना भी कठिन है,’’ एक पड़ोसी ने विचार जाहिर किए थे.

‘‘मैं भी यही सोच रहा हूं कि आप लोग भी चल कर विश्राम कीजिए. कब तक इस ठंड में यहां बैठे रहेंगे,’’ मुकेश बाबू ने सलाह दी थी.

‘‘ठीक है, फिर हम सब चलते हैं,’’ एकएक कर सभी पड़ोसी उठ खडे़ हुए थे.

‘‘आप तनिक भी चिंता मत कीजिए, मुकेश बाबू,’’ जातेजाते भी नितिन राय बोले थे, ‘‘कल दुकान खुलने का समय होते ही हमसब आप के साथ चलेंगे और कुछ दूरी पर आड़ में खडे़ हो जाएंगे. पहले शुभम को भेज कर देखेंगे. उस ने गहने देने में कुछ आनाकानी की तो पुलिस की सहायता लेंगे.’’

मुकेश बाबू को छोटा बेटा और बेटी सहारा दे कर अंदर के कमरे में ले गए थे. शुभम का तो उन के सामने जाने का साहस ही नहीं हो रहा था.

‘‘आज तो लगता है भूखे ही सोना पड़ेगा, शुभम भैया,’’ सत्यम ने कहा तो शुभम को भी याद आया कि उस ने दोपहर के भोजन के बाद कुछ भी नहीं खाया था.

‘‘भूख तो मुझे भी लग रही है. ऊपर से कल मेरी प्रतियोगी परीक्षा भी है,’’ शुभम ने हां में हां मिलाई थी.

शुभम इस ऊहापोह के बीच भी खुद को शांत कर कुछ पढ़ने का प्रयत्न कर रहा था. तभी सत्या ने कुछ खाद्य पदार्थों के साथ उस के कमरे में प्रवेश किया.

‘‘भैया, जो कुछ फ्रिज में मिला, मैं ले आई हूं,’’ सत्या धीमे स्वर में बोली थी.

शुभम ने प्लेट में नजर डाली तो ब्रेड, मक्खन और कुछ फल रखे थे.

‘‘यह सबकुछ आज खा लिया तो कल नाश्ते का क्या होगा? मां बहुत डांटेंगी,’’ शुभम बोला था.

‘‘भैया, तुम सब से बडे़ हो पर सब से अधिक डरपोक. अरे, आज तो खा लो, कल डांट खा लेंगे,’’ सत्यम हंस कर ब्रेड पर मक्खन लगाते हुए बोला था.

सत्यम और सत्या को खाते देख शुभम को भी लगा कि बिना कुछ खाए वह पढ़ने में ध्यान नहीं लगा सकेगा.

‘‘यह हुई न बात,’’ शुभम को खाते देख सत्यम बोला, ‘‘भैया, आप कुछ बोलते क्यों नहीं. गेहूं में गहने मां ने रखे थे पर मां और पापा आप को ही दोष दिए जा रहे हैं.’’

‘‘तुम नहीं समझोगे. सब से बड़ा होने पर सबकुछ सहना पड़ता है. हर बात में पलट कर वार नहीं कर सकते,’’ शुभम अपने विशेष अंदाज में बोला था.

‘‘अच्छा हुआ जो मैं सब से बड़ा न हुआ,’’ सत्यम मुसकराया था.

‘‘नहीं तो क्या होता?’’ शुभम ने पूछा तो सत्यम बोला, ‘‘अभी तो भैया, मैं खुद जानने का प्रयत्न कर रहा हूं. पता चलते ही आप को सूचित करूंगा.’’

खापी कर सत्यम, सत्या और शुभम सो गए. जब नींद खुली तो पौ फट रही थी. शुभम केवल यही कामना कर रहा था कि गहनों का झमेला सुलझ जाए ताकि वह समय पर परीक्षा भवन तक पहुंचने में सफल हो सके अन्यथा न जाने क्या होगा.

9 बजते ही पड़ोसी जमा होने लगे थे. सलाह करने के बाद सब चक्की की ओर चल पड़े. चक्की अब भी बंद थी. सभी चक्की की उलट दिशा में फुटपाथ पर खडे़ हो गए और उन्होंने शुभम को चक्की के सामने बनी सीढि़यों पर जा बैठने का आदेश दिया.

थोड़ी ही देर में चक्की वाला आ पहुंचा था.

‘‘क्या हुआ? बडे़ सवेरे आ गए. घर में आटा नहीं था क्या?’’ उस ने आते ही शुभम से पूछा था.

‘‘मुझे परीक्षा देने के लिए जाना था. मां ने कहा आटा ले आओ. इसीलिए जल्दी आना पड़ा.’’

‘‘बस, यही बात थी क्या?’’

‘‘नहीं, सच तो यह है कि मां ने 40 तोले गहनों की पोटली गेहूं में छिपा कर रखी थी. मुझे पता नहीं था. गलती से मैं पोटली सहित कनस्तर का गेहूं आप की चक्की पर रख गया था.’’

‘‘कौनकौन से गहने थे?’’ चक्की वाले ने प्रश्न किया.

‘‘वह तो मुझे पता नहीं.’’

‘‘तो बेटे, फिर अपनी मां के साथ आना चाहिए था न?’’

दोनों के बीच बातचीत होते देख कर मुकेश बाबू और पड़ोसी खुद को रोक नहीं सके और सड़क पार कर चक्की के सामने आ खडे़ हुए थे.

‘‘पोटली मेरे पास है. उसे खोल कर देखते ही मेरे तो होश उड़ गए थे. गरीब आदमी हूं. दूसरे की अमानत की रक्षा कर पाऊंगा या नहीं, इसी तनाव में पूरी रात कटी. जाओ, अपनी मां को बुला लाओ. वह अपने गहने सहेज लें तो मैं चैन की सांस ले सकूं,’’ चक्की वाला बोला था.

उस की यह बात सुन कर मुकेश बाबू तथा अन्य सभी हक्केबक्के रह गए थे. वे सब तो सीधी उंगली से घी न निकलने की स्थिति में उंगली टेढ़ी करने का मन बना कर आए थे पर यहां तो मामला ही दूसरा था. कैसा मूर्ख व्यक्ति था, घर आई लक्ष्मी लौटा रहा था.

शीघ्र ही शुभम अपनी मां मीता को ले कर आ गया. उन्होंने पोटली में बंधे गहने पहचान कर ले लिए थे. बहुत जोश में वहां पहुंचे लोग उस की ईमानदारी का प्रतिदान देने की युक्ति सोच रहे थे. मुकेश बाबू ने थानापुलिस से निबटने के लिए जेब में जो 5 हजार रुपए रखे थे वह उस के सामने रख दिए.

‘‘यह क्या है, बाबूजी?’’ चक्की वाले ने प्रश्न किया था.

‘‘मैं बहुत साधारण व्यक्ति हूं. तुम्हारे उपकार का प्रतिदान तो नहीं चुका सकता पर यह छोटी सी तुच्छ भेंट स्वीकार करो,’’ मुकेश बाबू का स्वर भर्रा गया था.

‘‘आप लोगों के चेहरों पर आए राहत और संतोष के भाव देख कर मुझे सबकुछ मिल गया. आप की अमानत आप को लौटा कर कोई उपकार नहीं किया है मैं ने.’’

लाख कहने पर भी चक्की वाले ने कुछ भी लेना स्वीकार नहीं किया था. मुकेश बाबू और अन्य पड़ोसियों को अचानक उस का कद बहुत ऊंचा लग रहा था और अपना बहुत बौना, जिस के बारे में बिना कुछ जाने वे कल से अनापशनाप आरोप लगाते रहे थे. उसे किसी प्रकार कुछ दे कर वे शायद अपने अपराधबोध को कम करना चाह रहे थे. पर ईमानदारी और बेईमानी के दो पाटों के बीच का असमंजस बड़ा विचित्र था जो गहने मिलने पर भी उन्हें आनंदित नहीं होने दे रहा था. Hindi Family Story

Story In Hindi: भ्रष्टाचार – कौन थी मोहिनी

Story In Hindi: मोहिनी ने पर्स से रूमाल निकाला और चेहरा पोंछते हुए गोविंद सिंह के सामने कुरसी खींच कर बैठ गई. उस के चेहरे पर अजीब सी मुसकराहट थी.

‘‘चाय और ठंडा पिला कर तुम पिछले 1 महीने से मुझे बेवकूफ बना रहे हो,’’ मोहिनी झुंझलाते हुए बोली, ‘‘पहले यह बताओ कि आज चेक तैयार है या नहीं?’’

वह सरकारी लेखा विभाग में पहले भी कई चक्कर लगा चुकी थी. उसे इस बात की कोफ्त थी कि गोविंद सिंह को हिस्सा दिए जाने के बावजूद काम देरी से हो रहा था. उस के धन, समय और ऊर्जा की बरबादी हो रही थी. इस के अलावा गोविंद सिंह अश्लील एवं द्विअर्थी संवाद बोलने से बाज नहीं आता था.

गोविंद सिंह मौके की नजाकत को भांप कर बोला, ‘‘तुम्हें तंग कर के मुझे आनंद नहीं मिल रहा है. मैं खुद चाहता हूं कि साहब के दस्तखत हो जाएं किंतु विभाग ने जो एतराज तुम्हारे बिल पर लगाए थे उन्हें तुम्हारे बौस ने ठीक से रिमूव नहीं किया.’’

‘‘हमारे सर ने तो रिमूव कर दिया था,’’ मोहिनी बोली, ‘‘पर आप के यहां से उलटी खोपड़ी वाले क्लर्क फिर से नए आब्जेक्शन लगा कर वापस भेज देते हैं. 25 कूलरों की खरीद का बिल मैं ने ठीक कर के दिया था. अब उस पर एक और नया एतराज लग गया है.’’

‘‘क्या करें, मैडम. सरकारी काम है. आप ने तो एक ही दुकान से 25 कूलरों की खरीद दिखा दी है. मैं ने पहले भी आप को सलाह दी थी कि 5 दुकानों से अलगअलग बिल ले कर आओ.’’

‘‘फिर तो 4 दुकानों से फर्जी बिल बनवाने पड़ेंगे.’’

‘‘4 नहीं, 5 बिल फर्जी कहो. कूलर तो आप लोगों ने एक भी नहीं खरीदा,’’ गोविंद सिंह कुछ शरारत के साथ बोला.

‘‘ये बिल जिस ने भेजा है उस को बोलो. तुम्हारा बौस अपनेआप प्रबंध करेगा.’’

‘‘नहीं, वह नाराज हो जाएगा. उस ने इस काम पर मेरी ड््यूटी लगाई है.’’

‘‘तब, अपने पति को बोलो.’’

‘‘मैं इस तरह के काम में उन को शामिल नहीं करना चाहती.’’

‘‘क्यों? क्या उन के दफ्तर में सारे ही साधुसंत हैं. ऐसे काम होते नहीं क्या? आजकल तो सारे देश में मंत्री से ले कर संतरी तक जुगाड़ और सैटिंग में लगे हैं.’’

मोहिनी ने जवाब में कुछ भी नहीं कहा. थोड़ी देर वहां पर मौन छाया रहा. आखिर मोहिनी ने चुप्पी तोड़ी. बोली, ‘‘तुम हमारे 5 प्रतिशत के भागीदार हो. यह बिल तुम ही क्यों नहीं बनवा देते?’’

‘‘बड़ी चालाक हो, मैडम. नया काम करवाओगी. खैर, मैं बनवा दूंगा. पर बदले में मुझे क्या मिलेगा?’’

‘‘200-400 रुपए, जो तुम्हारी गांठ से खर्च हों, मुझ से ले लेना.’’

‘‘अरे, इतनी आसानी से पीछा नहीं छूटेगा. पूरा दिन हमारे साथ पिकनिक मनाओ. किसी होटल में ठहरेंगे. मौज करेंगे,’’ गोविंद सिंह बेशर्मी से कुटिल हंसी हंसते हुए मोहिनी को तौल रहा था.

‘‘मैं जा रही हूं,’’ कहते हुए मोहिनी कुरसी से उठ खड़ी हुई. उसे मालूम था कि इन सरकारी दलालों को कितनी लिफ्ट देनी चाहिए.

गोविंद सिंह समझौतावादी एवं धीरज रखने वाला व्यक्ति था. वह जिस से जो मिले, वही ले कर अपना काम निकाल लेता था. उस के दफ्तर में मोहिनी जैसे कई लोग आते थे. उन में से अधिकांश लोगों के काम फर्जी बिलों के ही होते थे.

सरकारी विभागों में खरीदारी के लिए हर साल करोड़ों रुपए मंजूर किए जाते हैं. इन को किस तरह ठिकाने लगाना है, यह सरकारी विभाग के अफसर बखूबी जानते हैं. इन करोड़ों रुपयों से गोविंद सिंह और मोहिनी जैसों की सहायता से अफसर अपनी तिजोरियां भरते हैं और किसी को हवा भी नहीं लगती.

25 कूलरों की खरीद का फर्जी बिल जुटाया गया और लेखा विभाग को भेज दिया गया. इसी तरह विभाग के लिए फर्नीचर, किताबें, गुलदस्ते, क्राकरी आदि के लिए भी खरीद की मंजूरी आई थी. अत: अलगअलग विभागों के इंचार्ज जमा होकर बौस के साथ बैठक में मौजूद थे. बौस उन्हें हिदायत दे रहे थे कि पेपर वर्क पूरा होना चाहिए, ताकि कभी अचानक ऊपर से अधिकारी आ कर जांच करें तो उन्हें फ्लाप किया जा सके. और यह तभी संभव है जब आपस में एकता होगी.

सारा पेपर वर्क ठीक ढंग से पूरा कराने के बाद बौस ने मोहिनी की ड्यूटी गोविंद सिंह से चेक ले कर आने के लिए लगाई थी. बौस को मोहिनी पर पूरा भरोसा था. वह पिछले कई सालों से लेखा विभाग से चेक बनवा कर ला रही थी.

गोविंद सिंह को मोहिनी से अपना तयशुदा शेयर वसूल करना था, इसलिए उस ने प्रयास कर के उस के पेपर वर्क में पूरी मदद की. सारे आब्जेक्शन दूर कर के चेक बनवा दिया. चेक पर दस्तखत करा कर गोविंद सिंह ने उसे अपने पास सुरक्षित रख लिया और मोहिनी के आने की प्रतीक्षा करने लगा.

अपराह्न 2 बजे मोहिनी ने उस के केबिन में प्रवेश किया. वह मोहिनी को देख कर हमेशा की तरह चहका, ‘‘आओ मेरी मैना, आओ,’’ पर उस ने इस बार चाय के लिए नहीं पूछा.

मोहिनी को पता था कि चेक बन गया है. अत: वह खुश थी. बैठते हुए बोली, ‘‘आज चाय नहीं मंगाओगे?’’

गोविंद सिंह आज कुछ उदास था. बोला, ‘‘मेरा चाय पीने का मन नहीं है. कहो तो तुम्हारे लिए मंगा दूं.’’

‘‘अपनी उदासी का कारण मुझे बताओगे तो मन कुछ हलका हो जाएगा.’’

‘‘सुना है, वह बीमार है और जयप्रकाश अस्पताल में भरती है.’’

‘‘वह कौन…अच्छा, समझी, तुम अपनी पत्नी कमलेश की बात कर रहे हो?’’

गोविंद सिंह मौन रहा और खयालों में खो गया. उस की पत्नी कमलेश उस से 3 साल पहले झगड़ा कर के घर से चली गई थी. बाद में भी वह खुद न तो गोविंद सिंह के पास आई और न ही वह उसे लेने गया था. उन दोनों के कोई बच्चा भी नहीं था.

दोनों के बीच झगड़े का कारण खुद गोविंद सिंह था. वह घर पर शराब पी कर लौटता था. कमलेश को यह सब पसंद नहीं था. दोनों में पहले वादविवाद हुआ और बाद में झगड़ा होने लगा. गोविंद सिंह ने उस पर एक बार नशे में हाथ क्या उठाया, फिर तो रोज का ही सिलसिला चल पड़ा.

एक दिन वह घर लौटा तो पत्नी घर पर न मिली. उस का पत्र मिला था, ‘हमेशा के लिए घर छोड़ कर जा रही हूं.’

‘चलो, बड़ा अच्छा हुआ जो अपनेआप चली गई,’ गोविंद सिंह ने सोचा कि बर्फ की सिल्ली की तरह ठंडी औरत के साथ गुजारा करना उसे भी कठिन लग रहा था. अब रोज रात में शराब पी कर आने पर उसे टोकने वाला कोई न था. जब कभी किसी महिला मित्र को साथ ले कर गोविंद सिंह घर लौटता तो सूना पड़ा उस का घर रात भर के लिए गुलजार हो जाता.

‘‘कहां खो गए गोविंद,’’ मोहिनी ने टोका तो गोविंद सिंह की तंद्रा भंग हुई.

‘‘कहीं भी नहीं,’’ गोविंद सिंह ने अचकचा कर उत्तर दिया. फिर अपनी दराज से मोहिनी का चेक निकाला और उसे थमा दिया.

चेक लेते हुए मोहिनी बोली, ‘‘मेरा एक कहना मानो तो तुम से कुछ कहूं. क्या पता मेरी बात को ठोकर मार दो. तुम जिद्दी आदमी जो ठहरे.’’

‘‘वादा करता हूं. आज तुम जो भी कहोगी मान लूंगा,’’ गोविंद सिंह बोला.

‘‘तुम कमलेश से अस्पताल में मिलने जरूर जाना. यदि उसे तुम्हारी मदद की जरूरत हो तो एक अच्छे इनसान की तरह पेश आना.’’

‘‘उसे मेरी मदद की जरूरत नहीं है,’’ मायूस गोविंद सिंह बोला, ‘‘यदि ऐसा होता तो वह मुझ से मिलने कभी न कभी जरूर आती. वह एक बार गुस्से में जो गई तो आज तक लौटी नहीं. न ही कभी फोन किया.’’

‘‘तुम अपनी शर्तों पर प्रेम करना चाहते हो. प्रेम में शर्त और जिद नहीं चलती. प्रेम चाहता है समर्पण और त्याग.’’

‘‘तुम शायद ऐसा ही कर रही हो?’’

‘‘मैं समर्पण का दावा नहीं कर सकती पर समझौता करना जरूर सीख लिया है. आजकल प्रेम में पैसे की मिलावट हो गई है. पर तुम्हारी पत्नी को तुम्हारे वेतन से संतोष था. रिश्वत के चंद टकों के बदले में वह तुम्हारी शराब पीने की आदत और रात को घर देर से आने को बरदाश्त नहीं कर सकती थी.’’

‘‘मैं ने तुम से वादा कर लिया है इसलिए उसे देखने अस्पताल जरूर जाऊंगा. लेकिन समझौता कर पाऊंगा या नहीं…अभी कहना मुश्किल है,’’ गोविंद सिंह ने एक लंबी सांस ले कर उत्तर दिया.

मोहिनी को गोविंद सिंह की हालत पर तरस आ रहा था. वह उसे उस के हाल पर छोड़ कर दफ्तर से बाहर आ गई और सोचने लगी, इस दुनिया में कौन क्या चाहता है? कोई धनदौलत का दीवाना है तो कोई प्यार का भूखा है, पर क्या हर एक को उस की मनचाही चीज मिल जाती है? गोविंद सिंह की पत्नी चाहती है कि ड््यूटी पूरी करने के बाद पति शाम को घर लौटे और प्रतीक्षा करती हुई पत्नी की मिलन की आस पूरी हो.

गोविंद सिंह की सोच अलग है. वह ढेरों रुपए जमा करना चाहता है ताकि उन के सहारे सुख खरीद सके. पर रुपया है कि जमा नहीं होता. इधर आता है तो उधर फुर्र हो जाता है.

मोहिनी बाहर आई तो श्याम सिंह चपरासी ने आवाज लगाई, ‘‘मैडमजी, आप के चेक पर साहब से दस्तखत तो मैं ने ही कराए थे. आप का काम था इसलिए जल्दी करा दिया. वरना यह चेक अगले महीने मिलता.’’

मोहिनी ने अपने पर्स से 100 रुपए का नोट निकाला. फिर मुसकराते हुए पूछ लिया, ‘‘श्याम सिंह, एक बात सचसच बताओगे, तुम रोज इनाम से कितना कमा लेते हो?’’

‘‘यही कोई 400-500 रुपए,’’ श्याम सिंह बहुत ही हैरानी के साथ बोला.

‘‘तब तो तुम ने बैंक में बहुत सा धन जमा कर लिया होगा. कोई दुकान क्यों नहीं खोल लेते?’’

‘‘मैडमजी,’’ घिघियाते हुए श्याम सिंह बोला, ‘‘रुपए कहां बचते हैं. कुछ रुपया गांव में मांबाप और भाई को भेज देता हूं. बाकी ऐसे ही खानेपीने, नाते- रिश्तेदारों पर खर्च हो जाता है. अभी पिछले महीने साले को बेकरी की दुकान खुलवा कर दी है.’’

‘‘फिर वेतन तो बैंक में जरूर जमा कर लेते होंगे.’’

‘‘अरे, कहां जमा होता है. अपनी झोंपड़ी को तोड़ कर 4 कमरे पक्के बनाए थे. इसलिए 1 लाख रुपए सरकार से कर्ज लिया था. वेतन उसी में कट जाता है.’’

श्याम सिंह की बातें सुन कर मोहिनी के सिर में दर्द हो गया. वह सड़क पर आई और आटोरिकशा पकड़ कर अपने दफ्तर पहुंच गई. बौस को चेक पकड़ाया और अपने केबिन में आ कर थकान उतारने लगी.

मोहिनी की जीवन शैली में भी कोई आनंद नहीं था. वह अकसर देर से घर पहुंचती थी. जल्दी पहुंचे भी तो किस के लिए. पति देर से घर लौटते थे. बेटा पढ़ाई के लिए मुंबई जा चुका था. सूना घर काटने को दौड़ता था. बंगले के गेट से लान को पार करते हुए वह थके कदमों से घर के दरवाजे तक पहुंचती. ताला खोलती और सूने घर की दीवारों को देखते हुए उसे अकेलेपन का डर पैदा हो जाता.

पति को वह उलाहना देती कि जल्दी घर क्यों नहीं लौटते हो? पर जवाब वही रटारटाया होता, ‘मोहिनी… घर जल्दी आने का मतलब है अपनी आमदनी से हाथ धोना.’

ऊपरी आमदनी का महत्त्व मोहिनी को पता है. यद्यपि उसे यह सब अच्छा नहीं लगता था. पर इस तरह की जिंदगी जीना उस की मजबूरी बन गई थी. उस की, पति की, गोविंद सिंह की, श्याम सिंह की, बौस की और जाने कितने लोगों की मजबूरी. शायद पूरे समाज की मजबूरी.

भ्रष्टाचार में कोई भी जानबूझ कर लिप्त नहीं होना चाहता. भ्रष्टाचारी की हर कोई आलोचना करता है. दूसरे भ्रष्टचारी को मारना चाहता है. पर अपना भ्रष्टाचार सभी को मजबूरी लगता है. इस देश में न जाने कितने मजबूर पल रहे हैं. आखिर ये मजबूर कब अपने खोल से बाहर निकल कर आएंगे और अपनी भीतरी शक्ति को पहचानेंगे.

मोहिनी का दफ्तर में मन नहीं लग रहा था. वह छुट्टी ले कर ढाई घंटे पहले ही घर पहुंच गई. चाय बना कर पी और बिस्तर पर लेट गई. उसे पति की याद सताने लगी. पर दिनेश को दफ्तर से छुट्टी कर के बुलाना आसान काम नहीं था, क्योंकि बिना वजह छुट्टी लेना दिनेश को पसंद नहीं था. कई बार मोहिनी ने आग्रह किया था कि दफ्तर से छुट्टी कर लिया करो, पर दिनेश मना कर देता था.

सच पूछा जाए तो इस हालात के लिए मोहिनी भी कम जिम्मेदार न थी. वह स्वयं ही नीरस हो गई थी. इसी कारण दिनेश भी पहले जैसा हंसमुख न रह गया था. आज पहली बार उसे महसूस हो रहा था कि जीवन का सच्चा सुख तो उस ने खो दिया. जिम्मेदारियों के नाम पर गृहस्थी का बोझ उस ने जरूर ओढ़ लिया था, पर वह दिखावे की चीज थी.

इस तरह की सोच मन में आते ही मोहिनी को लगा कि उस के शरीर से चिपकी पत्थरों की परत अब मोम में बदल गई है. उस का शरीर मोम की तरह चिकना और नरम हो गया था. बिस्तर पर जैसे मोम की गुडि़या लेटी हो.

उसे लगा कि उस के भीतर का मोम पिघल रहा है. वह अपनेआप को हलका महसूस करने लगी. उस ने ओढ़ी हुई चादर फेंक दी और एक मादक अंगड़ाई लेते हुए बिस्तर से अलग खड़ी हुई. तभी उसे शरारत सूझी. दूसरे कमरे में जा कर दिनेश को फोन मिलाया और घबराई आवाज में बोली, ‘‘क्या कर रहे हो?’’

अचानक मोहिनी का फोन आने से दिनेश घबरा सा गया. उस ने पूछा, ‘‘खैरियत तो है. कैसे फोन किया?’’

‘‘बहुत घबराहट हो रही है. डाक्टर के पास नहीं गई तो मर जाऊंगी. तुम जल्दी आओ,’’ इतना कहने के साथ ही मोहिनी ने फोन काट दिया.

अब मोहिनी के चेहरे पर मुसकराहट थी. बड़ा मजा आएगा. दिनेश को दफ्तर छोड़ कर तुरंत घर आना होगा. मोहिनी की शरारत और शोखी फिर से जाग उठी थी. वह गाने लगी, ‘तेरी दो टकिया दी नौकरी में, मेरा लाखों का सावन जाए…’

गीजर में पानी गरम हो चुका था. वह बाथरूम में गई. बड़े आराम से अपना एकएक कपड़ा उतार कर दूर फेंक दिया और गरम पानी के फौआरे में जा कर खड़ी हो गई.

गरम पानी की बौछारों में मोहिनी बड़ी देर तक नहाती रही. समय का पता ही नहीं चला कि कितनी देर से काल बेल बज रही थी. शायद दिनेश आ गया होगा. मोहिनी अभी सोच ही रही थी कि पुन: जोरदार, लंबी सी बेल गूंजने लगी.

बाथरूम से निकल कर मोहिनी वैसी ही गीला शरीर लिए दरवाजे की ओर दौड़ पड़ी. आई ग्लास से झांक कर देखा तो दिनेश परेशान चेहरा लिए खड़ा था.

मोहिनी ने दरवाजा खोला. दिनेश ने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया, उसे देख कर उस की आंखें खुली की खुली रह गईं, किसी राजा के रंगमहल में फौआरे के मध्य खड़ी नग्न प्रतिमा की तरह एकदम जड़ हो कर मोहिनी खड़ी थी. दिनेश भी एकदम जड़ हो गया. उसे अपनी आंखों पर भरोसा न हुआ. उसे लगा कि वह कोई सपना देख रहा है, किसी दूसरे लोक में पहुंच गया है.

2 मिनट के बाद जब उस ने खुद को संभाला तो उस के मुंह से निकला, ‘‘तुम…आखिर क्या कर रही हो?’’

मोहिनी तेजी से आगे बढ़ी और दिनेश को अपनी बांहों में भर लिया. दिनेश के सूखे कपड़ों और उस की आत्मा को अपनी जुल्फों के पानी से भिगोते हुए वह बोल पड़ी, ‘‘बताऊं, क्या कर रही हूं… भ्रष्टाचार?’’और इसी के साथ दोनों ही खिलखिला कर हंस पड़े. Story In Hindi

Hindi Kahani: डर – नेहा महतो की मनकही

Hindi Kahani: नेहा महतो के साथ शादी हो जाने के बाद मैं ने एक बड़ी मजेदार बात नोट की है. अब लड़कियों के बीच में मेरी लोकप्रियता पहले से ज्यादा बढ़ गई है. इस बदलाव का कारण भी समझ में आता है. जो चीज आप को आसानी से उपलब्ध नहीं हो, उस में दिलचस्पी का बढ़ जाना स्वाभाविक ही है. हमारे समाज में वैसे तो लड़कियों से मेलजोल आसान नहीं होता पर फिर भी पढ़ते समय, कालेज में, फैक्ट्री में जाते समय, खेत पर कुछ देनेलेने जाते समय मौके मिल ही जाते हैं.

लड़कियां बहुत सुंदर हों, ऐसा नहीं पर इन के लटके-झटके बहुत होते हैं. कारों में बाप और भाई के घर से बाहर निकलते ही ये आजाद पंछी की तरह ऊंची उड़ानें भरनी शुरू कर देती हैं. लड़कियों के साथ फ्लर्ट करना मैं ने बंद तो नहीं किया है पर अब ऐसा करने में पहले जैसा मजा नहीं रहा. उन का दिल जीतने के लिए मेहनत करने का अब दिल नहीं करता.

प्यारमोहब्बत की बातें कर के मामला आगे बढ़ाने का फायदा ही क्या जब इंसान उन के साथ मौजमस्ती करने की बात सोच कर मन ही मन भयभीत हो उठता हो?

मेरा कोई पुराना दोस्त कभी विश्वास नहीं करेगा कि मैं अब सिर्फ नेहा के साथ जुड़ा हुआ जी रहा हूं. उन सब का मानना था कि शादी हो जाने के बाद भी मेरा सुंदर लड़कियों को अपने प्रेमजाल में फंसाने का शौक बंद नहीं होगा.हम सब दोस्त मानते थे कि लड़की के साथ संबंध न बनें तो मर्दानगी कैसे होगी.

शादी होने तक मैं दसियों लड़कियों से लुकाछिपा का दोषी रहा था. मुझ पर शादी करने के लिए किसी ने जोर डालना शुरू किया या जिस ने सतीसावित्री बनने की कोशिश की, उस को मांबाप और खाप का डर व जाति क्षेत्र की बात कर एक तरफ कर देने में मैं ने कभी देर नहीं लगाई थी.

फिर एक वक्त ऐसा आया कि मेरे जानपहचान के दायरे में जितनी भी लड़कियां मौजूद थीं, वे कभी न कभी मेरी या मेरी किसी दोस्त की प्रेमिका रह चुकी थीं. बस, प्रेमिकाओं की अदलाबदली कर हम दोस्त अपनेअपने मुंह का स्वाद बदल लेते थे. एकदूसरे की जूठन से शादी कर के हंसी का पात्र बनने की मूर्खता करने को कोई तैयार नहीं था.

मुझे जैसे मौजमस्ती के शौकीन इंसान की जिंदगी में भी एक वक्त ऐसा आया कि मन में अपना घर बसाने की इच्छा बड़ी बलवती हो उठी. मुझे जब ऐसा महसूस हुआ तो मैं ने अपनी जीवनसंगिनी ढूंढ़ने की जिम्मेदारी अपने मातापिता के ऊपर डाल दी.

नेहा महतो के साथ मेरा रिश्ता पक्का करने में मेरी बूआ ने बिचौलिए की भूमिका निभाई थी. वह हम सब को पहली नजर में पसंद आ गई थी.

रिश्ता पक्का हो जाने के बाद हम दोनों ने मोबाइल पर खूब बातें करनी शुरू कर दीं. सप्ताह में एकदो बार बाहर छिपछिप कर मिलने लगे. ऐसी हर मुलाकात के बाद मेरे दिल में उस के प्रति दीवानगी के भाव बढ़ जाते थे.

उस की पर्सनैलिटी में एक गहराई थी. ऐसी गरिमा थी जो कसबाई लड़कियों में नहीं होती. मैं ने अब तक अपनी किसी पुरानी जानपहचान वाली नहीं पाई थी. उस की आंखों में झांकते ही मुझे अपने प्रति गहरे प्रेम और पूर्ण समर्पण के भावों का सागर लहराता नजर आता.

हम दोनों साथ होते तो हंसीखुशी भरा वक्त पंख लगा कर उड़ जाता. अभी और ज्यादा देर के लिए उस का साथ बना रहना चाहिए था, सदा ऐसी इच्छा रखते हुए ही मेरा मन उस से विदा लेता था. उस के भाई लोग बहुत सख्त थे. मैं भी बेकार का पंगा नहीं लेना चाहता था.

नेहा एक दिन मुझे अपने कालेज के दोस्त नीरज के घर ले कर गई. उस ने हमें लंच करने के लिए आमंत्रित किया था.

कुछ देर में ही मुझे यह एहसास हो गया कि नेहा को इस घर में परिवार के सदस्य की तरह से अपना समझ जाता था. नीरज चौधरी की पत्नी कविता उसे देख कर फूल सी खिल गई थी. उन के 3 साल के बेटे आशु का नेहा आंटी के साथ खूब खेलने के बाद भी दिल नहीं भरा था. उस का घर 2 कमरे का ही था पर लगता था कि वहां तो दिलों में जगह है.

‘समीर, नेहा का हमारी जिंदगी में बड़ा खास स्थान है. उस की दोस्ती को हम बहुमूल्य मानते हैं. हमारे इस छोटे से घर में तुम्हारा सदा स्वागत है.’ कविता के दिल से निकले इन शब्दों ने मुझे भी इस परिवार के बहुत निकट होने का एहसास कराया था.

मेरी खातिर करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. खाने में चीजें मेरी पसंद की थीं. अपनी भूख से ज्यादा खाने को मुझे उन दोनों के प्यार ने मजबूर किया था.

खाना खाने के बाद जब आशु सो गया तो उन तीनों के बीच सुखदुख बांटने वाली बातें शुरू हो गईं. पहले आशु को अच्छे स्कूल में प्रवेश दिलाने पर चर्चा हुई. तय यही हुआ कि सरकारी स्कूल में भेजा जाए क्योंकि प्राइवेट में आगे चल कर पढ़ाई बहुत महंगी हो जाएगी.

मैं तो कुछ देर बाद इस चर्चा से उकता सा गया पर नेहा की दिलचस्पी रत्तीभर कम नहीं हुई. करीब डेढ़ घंटे के बाद जब 2 सरकारी स्कूलों के नाम का चुनाव हो गया तो उन सब के चेहरे संतोष व खुशी से चमक उठे थे.

इस के बाद नेहा की शादी के लिए चल रही खरीदारी चर्चा का विषय बनी. इस बार वार्त्तालाप कविता और नेहा के बीच ज्यादा हो रहा था पर नीरज का पूरा ध्यान उन दोनों की तरफ बना रहा तो मैं अपने बजट के हिसाब से खरीदारी करना चाह रहा था.

मुझे एक बात ने खासकर प्रभावित किया. ये तीनों आपस में बहुत खुले हुए थे. एकदूसरे के समक्ष अपने मनोभावों को खुल कर व्यक्त करने से कोई भी बिलकुल नहीं हिचकिचा रहा था. हर कोई अपनी सलाह दोस्ताना ढंग से दे कर खामोश हो जाता. वह सलाह मानी भी जाए, ऐसा दबाव कोई किसी पर बिलकुल नहीं बना रहा था. हालांकि नीरज चौधरी के घरवालों के रिश्तेदारों में कई पुलिस व पौलिटिक्स में थे पर वह रोबदाब बनाने की कोशिश उस ने कभी नहीं की. नीरज के माथे पर पुराने घाव का लंबा सा निशान था. इस के बारे में जानकारी प्राप्त करने की उत्सुकता मेरे मन में धीरेधीरे बढ़ती जा रही थी.

‘यह निशान कैसे मिला?’ मेरे इस सवाल को सुन वे तीनों ही खिलखिला कर हंस पड़े थे.

‘यह कैसे मिला और इस से क्या मिला, इन दोनों सवालों का जवाब जानने के लिए तुम्हें एक कहानी सुननी पड़ेगी, समीर,’ नेहा के इस जवाब ने पूरी बात जानने के लिए मेरी उत्सुकता और ज्यादा बढ़ा दी.

उस ने मुझे बताया कि कालेज के दूसरे साल में बाहर से आए कुछ बदमाश युवक जब उसे गेट के पास छेड़ रहे थे तब नीरज इत्तफाक से पास में खड़ा था. उस वक्त तक नेहा और उस की कोई खास जानपहचान नहीं थी.

नीरज ने जब अपने साथ पढ़ने वाली नेहा को तंग किए जाने का विरोध किया तो वे लड़के उस के साथ मारपीट करने पर उतर आए थे. नेहा के बहुत मना करतेकरते भी नीरज उन से लड़ने को तैयार हो गया था. नीरज कुश्ती वगैरह बचपन से करता था पर पांचपांच से भिड़ना तो आसान नहीं था.

‘यह नीरज एक सिरफिरा इंसान है, समीर. उस दिन यह अकेला ही उन पांचों से लड़भिड़ गया था. यह माथे का घाव जनाब को उस दिन अपने उसी दुस्साहस के कारण मिला था,’ नेहा ने नीरज का कंधा आभार प्रकट करने वाले अंदाज में दबाते हुए समीर को जानकारी दी.

‘और लगे हाथ यह भी बता दो कि इस जख्म से नीरज को क्या मिला?’ मैं ने नेहा से मुसकराते हुए पूछा.
‘मुझे नेहा की दोस्ती मिली,’ नेहा के कुछ बोलने से पहले ही नीरज ने जवाब दिया.

‘और मेरे सब से अच्छे दोस्त को मिली यह प्यारी सी हमसफर,’ नेहा ने कविता का हाथ पकड़ कर नीरज के हाथ में पकड़ा दिया, ‘समीर, उस दिन नीरज के इस घाव की मरहमपट्टी कविता ने अपनी स्कूटी में रखे फर्स्टएड बौक्स को निकाल कर की थी. यह हमारी जूनियर थी. नीरज की हिम्मत ने इस का दिल उस पहली मुलाकात में ही जीत लिया था.’

‘वैसे कायदे से तो समीर को ऐसी हिम्मत दिखाने का इनाम नेहा के प्यार के रूप में मिलना चाहिए था,’ मेरे इस मजाक ने उन तीनों को एकाएक ही गंभीर बना दिया तो बात मेरी समझ में नहीं आई.

मेरी उलझन को नीरज ने दूर करने की कोशिश की, ‘उस दिन होली खेल कर लौट रहा कमल नाम का एक सीनियर मेरी मदद को आगे आया था. उस के हाथ में हौकी देख कर वे बदमाश भाग निकले थे. उस दिन नेहा का दिल कमल ने जीता था पर…’ ‘बात अधूरी मत छोड़ो, नीरज.’

‘यह कमल नेहा का विश्वसनीय और वफादार प्रेमी नहीं बन सका. सिर्फ 3 महीने बाद नेहा ने उस के साथ सारे संबंध तोड़ लिए थे.’

‘क्या किया था उस ने?’ यह सवाल मैं ने नेहा से पूछा.

‘रितु के साथ वह एक पुराने खंडहर में पकड़ा गया था. कमल ने दोस्ती और प्रेम दोनों के नाम को कलंकित किया था. नेहा के होंठों पर उदास सी मुसकान उभरी.’

‘रितु गुप्ता नेहा की सब से अच्छी सहेली थी. कमल के साथ नेहा की दोस्ती बढ़ी तो रितु को भी उस के साथ हंसनेबोलने के खूब मौके मिलने लगे. नेहा सोचती थी कि वह अपने होने वाले जीजा से अच्छी नीयत के साथ हंसीमजाक करती है पर रितु की नीयत में खोट आ गया था.

उसे लग रहा था कि बहती गंगा में हाथ धो ले. वह बहुत सैक्सी किस्म की लड़की है.’
‘नेहा को जिस दिन असलियत पता लगी उसी दिन उस ने कमल को दूध में पड़ी मक्खी की तरह से निकाल अपनी जिंदगी से दूर फेंक दिया था. रितु गुप्ता को धोखा देने की जो सजा नेहा ने दी थी वह कालेज में महीनों चर्चा का विषय बनी रही थी,’ मुझे ये सारी बातें बताने के बाद नीरज चौधरी रहस्यमयी अंदाज में मुसकराने लगा.

मैं ने नेहा की तरफ सवालिया नजरों से देखा तो वह बेचैनीभरे अंदाज में बोली, ‘कमल कटियार से मेरी जानपहचान तो नई थी पर रितु के साथ मेरी दोस्ती 5 साल से ज्यादा पुरानी थी. उस ने मु?ो धोखा दिया तो मैं गुस्से से पागल हो गई थी, समीर. म… मैं ने तब उसे जान से मारने की कोशिश भी की थी.’

‘यह क्या कह रही हो?’ मैं बुरी तरह से चौंक पड़ा.

‘अरे, कोई जहर दे कर नहीं बल्कि जुलाब की गोलियां खिला कर नेहा ने उसे विश्वासघात करने की सजा दी थी. उस धोखेबाज के उस दिन कपड़े खराब हो गए थे क्योंकि शौचालय के दरवाजे पर गुस्से से लालपीली हो रही नेहा खड़ी हुई थी और उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह इस के सामने आ जाए. उस घटना के कई चश्मदीद गवाह थे. अपना मजाक उड़वाने से बचने के लिए वह महीनेभर तक कालेज आने की हिम्मत नहीं कर सकी थी,’ नीरज ने पूरी घटना का ब्योरा ऐसे मजाकिया अंदाज में सुनाया कि उस समय घटे दृश्य की कल्पना कर हम सभी जोर से हंस पड़े थे.

‘अच्छे दोस्त जीवन में बड़ी मुश्किल से मिलते हैं, समीर. समझदार इंसान को उन की बहुत कद्र करनी चाहिए,’ कविता ने अचानक भावुक हो कर अपनी राय जाहिर की थी.

‘बिलकुल ठीक कह रही हो तुम,’ मैं ने फौरन अपनी सहमति जताई.

‘दोस्तों से कोईर् भी अहम बात छिपाना गलत होता है.’

‘यह भी बिलकुल सही बात है.’

‘तब यह बताओ कि मौडलिंग करने वाली शिखा के साथ तुम्हारे किस तरह के संबंध हैं?’ कविता द्वारा अचानक पूछे गए इस सवाल ने मेरे दिल की धड़कनें बहुत तेज कर दी थीं.

‘वह मेरी अच्छी दोस्त है,’ मैं ने अधूरा सच बोला.

उन तीनों ने मेरा जवाब सुन कर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. बस, खामोशी के साथ मेरी तरफ ध्यान से देखते हुए वे मेरे आगे बोलने का इंतजार कर रहे थे.

‘तुम सब शिखा को कैसे जानते हो?’ कुछ और सचझूठ बोलने के बजाय मैं ने यह सवाल पूछना बेहतर समझ था.
शिखा मेरी मौसी के गांव की लड़की थी और दिल्ली में रह कर पढ़ाई कर रही थी.

‘वह कल शाम मुझ से मिलने मेरे घर आईर् थी,’ नेहा ने मुझे बताया.
‘क्या कह रही थी वह?’ मेरे मन की बेचैनी बहुत ज्यादा बढ़ गई.
‘किस बारे में?’

‘मेरे बारे में, अपने और मेरे बारे में उस ने कुछ ऊटपटांग बातें तो तुम से नहीं कही हैं?’
नेहा ने गहरी सांस छोड़ी और गंभीर लहजे में बोली, ‘इस बात को लंबा खींचने के बजाय मु?ो जो कहना है, वह मैं तुम से साफसाफ कहे देती हूं.’

‘शिखा तुम्हें धोखेबाज इंसान बता रही थी क्योंकि तुम ने उस के साथ शादी करने के अपने वादे को तोड़ा है. तुम्हारे साथ अपनी अति निकटता को सिद्ध करने के लिए उस ने अपने मोबाइल में सेव किए कुछ फोटो भी मुझे दिखाए थे.’

‘ओह.’

‘लेकिन तुम्हारे खिलाफ लगातार जहर उगलते रहने के कारण वह मु?ो तुम्हारी प्रेमिका कम और दुश्मन ज्यादा लगी तो उस की बातें मेरे दिल को गहरी चोट पहुंचाने में सफल नहीं रही थीं. अब मैं तुम से एक महत्त्वपूर्ण सवाल पूछना चाहूंगी, समीर.’

‘तुम अपना सवाल जरूर पूछना पर मैं पहले कुछ कहना चाहूंगा. शिखा के साथ मेरे जो संबंध थे उसे प्रेम नहीं कहा जा सकता है. मौजमस्ती की शौकीन उस लड़की के ऊपर बहुत सारा पैसा खर्च कर के मैं ने उस के साथ को पाया था. मुझे पता चला है कि उस की बड़ी बहन भी ऐसी ही थी. वे 4 बहनें हैं और मांबाप किसी तरह उन की शादी करा देना चाहते हैं और इसलिए छूट देते हैं.

‘वह झठ कह रही थी कि मैं ने उस के साथ शादी करने का वादा किया था. यह तुम सब भी सम?ा सकते हो कि ऐसी लड़कियों से शादी में किसी भी लड़के की दिलचस्पी नहीं होती है. मैं सच कह रहा हूं कि जब से नेहा मेरी जिंदगी में आई है तब से मैं ने शिखा या अपनी पुरानी किसी दोस्त के साथ रत्तीभर गलत संबंध नहीं रखा है,’ उन्हें सचाई बताते हुए मैं काफी उत्तेजित हो उठा था.

नीरज और कविता ध्यानपूर्वक नेहा की तरफ देखने लगे. जो कुछ मैं ने कहा था शायद वे दोनों उस के प्रति नेहा की प्रतिक्रिया जानना चाहते थे.

कुछ देर सोचविचार में डूबे रहने के बाद नेहा गंभीर लहजे में मुझसे बोली, ‘समीर, मैं तुम्हें अपना जीवनसाथी मान दिल की गहराइयों से प्यार करने लगी हूं. इसलिए मैं तुम्हारी पुरानी करतूतों को भुलाने को तो तैयार हूं पर क्या तुम आगे मेरे प्रति पूरी तरह से वफादार रह सकोगे?’

‘बिलकुल वफादार रहूंगा क्योंकि मैं तुम्हें दिल की गहराइयों से प्यार करता हूं. तुम जैसी सोने का दिल रखने वाली लड़की को पा कर कोई भला क्यों इधरउधर तांक?ांक करेगा?’ उसे अपने प्यार का भरोसा दिलाते हुए मेरी आंखों में आंसू आ गए.

‘इस वक्त दिए गए अपने इस जवाब को तुम आजीवन कभी भूलोगे तो नहीं?’

‘नहीं.’

‘देखो, तुम को अपने ऊपर भरोसा न हो तो अभी हम अपनीअपनी राह आगे बढ़ जाएंगे. मु?ो जो गम होगा, उसे मैं सहन कर लूंगी. लेकिन शादी हो जाने के बाद अगर तुम ने मेरे साथ कभी भरोसा तोड़ा…’
‘मैं तुम्हें ऐसी शिकायत का कभी मौका नहीं दूंगा, माई लव,’ मैं ने नेहा का हाथ अपने हाथ में ले कर चूम लिया.

‘पक्का?’

‘वैरीवैरी पक्का.’

‘तब अपनी शादीशुदा जिंदगी में खुशियां भरने में कोई कसर नहीं उठा रखने का वादा मैं इस पल तुम से करती हूं,’ नेहा ने आगे झक जब मेरे गाल पर प्यारभरा चुम्मा लिया तो मेरे पूरे बदन में ?ार?ारी सी दौड़ गई थी.

नीरज ने उठ कर मुझे गले से लगाते हुए गंभीर लहजे में कहा, ‘नेहा की खुशी के लिए मैं अपनी जान दे भी सकता हूं और किसी की जान ले भी सकता हूं. तुम दोनों की जरूरत में काम आना मेरे लिए खुशी की बात होगी, हमारे नए दोस्त. मुझे हमेशा मांबाप ने सिखाया है कि कुरबानी देनी पड़े तो हटना नहीं. हमारे घरों के कितने ही तो फौज में हैं.’

‘इस हीरे की सदा बहुत कद्र करना, समीर,’ कविता ने मेरा हाथ पकड़ कर नेहा के हाथ में दिया और हम तीनों के हाथ को अपने बड़ेबड़े हाथों से ढक कर नीरज ने हमारी नई बनी दोस्ती की नींव डाली थी.

नेहा के साथ शादी कर के मैं हर तरह से बहुत खुश हूं. नीरज मेरा बहुत अच्छा दोस्त बन गया है. कविता मुझे घर के जंवाई जैसा आदरसम्मान देती है.

मैं चाहूं भी तो अब किसी लड़की को अपने प्रेमजाल में फंसाने की हिम्मत या जुर्रत नहीं कर सकता. पहली मुलाकात के दिन नीरज के घर में हुई बातों ने मेरे मन में इन तीनों का अजीब सा डर बिठा दिया है. नेहा को धोखा दे कर इन तीनों को नाराज करना पूरे खानदान को खतरे में डालना होगा, यह बात मेरे मन में कहीं गहरी जड़ें जमा चुकी है. Hindi Kahani

Story In Hindi: क्रौसिंग की बत्ती

Story In Hindi: कीया को आज अमर की याद आ गई थी. अमर के साथ बिताया वक्त वह भूल नहीं पाई थी लेकिन उसे भूल जाना ही अच्छा था.

सिंग पर लालबत्ती यानी ठहरने का सिग्नल होने से पहले ही कीया अपनी गाड़ी निकाल लेना चाहती थी. लेकिन उसी क्षण रैड सिग्नल हो गया, गाड़ी रुक गई और उस के पीछे वाहनों की लंबी कतार. कीया ने अनुभव किया, जब कभी भी वह डेली रूटीन में 2-4 मिनट की चूक करती है, उसे मंजिल तक पहुंचने में देर हो जाती है, ‘लेट लतीफ’ का टाइटल कीया ने दूसरों के लिए संजो रखा है, वह तो ‘मिस राइट टाइम’ के नाम से जानी जाती है.

ट्रैफिक में फंसी कीया की नजर अपनी ही कंपनी द्वारा प्रायोजित एक होर्डिंग पर पड़ी जिस में दूधिया सफेदी लिए एक बच्ची साबुन का विज्ञापन कर रही है, जिस के नीचे लिखे स्लोगन पर कीया के अपने व्यक्तित्व की छाप है, ‘सुबह की कच्ची धूप भी काफी होती है उजाले के लिए. पर तुम तो पूरा सूरज ही उतार देती हो.’

दरअसल, यह स्लोगन अमर ने कीया के संदर्भ में कहा था. दोनों की पहली मुलाकात कुछ कम रोचक नहीं थी.

उस दिन थिएटर के हौल में अंधेरा था. परदे पर गब्बर दहाड़ रहा था, ‘अरे ओ सांभा, कितना मैल था कपड़ों में?’

बदले में सांभा मिमिया रहा था. मैल और साबुन की फाइटिंग चल रही थी, इतने में कोई अजनबी कीया के कानों में फुसफुसाया. रोशनी होने पर उस ने बड़ी ही शालीनता से अपना परिचय दिया, ‘मैं अमर हूं. आप की ही एड कंपनी में पोस्ंिटग हुई है मेरी.’

कीया की अजनबी आंखों में पहचान उभारने के लिए वह आगे भी बोल रहा था, ‘आप से मेरा परिचय नहीं हुआ, पर मैं आप को पहले से ही जानता हूं. बौस आप की बेहद तारीफ करते हैं. क्या आप वाकई उतनी फंटास्टिक वर्कर हैं?’

अमर का शरारती अंदाज कीया को भा गया. मूवी के बाद उस ने कीया को अपनी क्रेटा में साथ चलने का आग्रह किया.

‘ओह सौरी, मेरी गाड़ी सामने ही खड़ी है,’ कीया ने मना करते हुए कहा.

‘उसे बाद में मंगवा लेंगे. हमारी मंजिल एक है, मंसूबे भी एक ही होने चाहिए. आप कंपनी के सेवेंथ ब्लौक में रहतीं हैं न? मु?ो भी वहीं फ्लैट एलौट हुआ है,’ अमर कहने लगा.

कीया को थोड़ी उल?ान होने लगी.

इस बीच अमर आगे बोला, ‘आप को सचमुच अपनी गाड़ी की फिक्र है या आप किसी अजनबी पुरुष के साथ जाना नहीं चाहतीं?’

कीया को लगा अमर के इस वाक्य ने संपूर्ण नारी जाति को चुनौती दे दी है. अगले ही पल अमर कंपनी की मार्केटिंग एग्जीक्युटिव औफिसर मिस कीया के लिए अपनी क्रेटा कार का दरवाजा खोल रहा था. रास्ते में कीया ने जाना कि अमर ने अमेरिका स्थित हार्वर्ड से बिजनैस मैनेजमैंट की डिगरी हासिल की है और यहां मैनेजिंग डायरैक्टर के पद पर उस की पोस्ंिटग हुई है. कंपनी द्वारा बिजनैस कंसलटैंसी की शिक्षा देने के लिए संचालित ट्रेनिंग सैंटर में अकसर अमर के लैक्चर होते रहते हैं.

काम के प्रति लगन और दायित्वबोध ने कुछ ही दिनों में अमर और कीया के रिश्ते को जहां प्रगाढ़ किया, वहीं उन का कैरियर बुलंदी को छूने लगा. यह खुशी अमर कीया के साथ किसी फाइवस्टार होटल में सैलिब्रेट करना चाहता था, पर कीया ने बिना बताए, पहल कर के होटल में टेबल बुक करवा ली. डिनर के बाद अमर ने हमेशा की तरह कार का दरवाजा खोला, तो थैंक्स कहने के बजाय कीया चुपचाप जा कर कार सीट पर बैठ गई. उस की बगल में बैठे अमर के कानों में अपने मित्रों के शब्द गूंज रहे थे, ‘देखो तो, कैसे मर्द बनने की कोशिश कर रही है.’ पर दूसरे ही पल प्रशंसाभरी नजरें उस पर उकेर कर बोला, ‘कीया, तुम्हारा स्टाइल गजब का है. तुम्हारी पलकें गजब की हैं.’

कीया बदले में मुसकराने लगी.

‘तुम कहीं कोई बिजनैस मैनेजमैंट कोर्स क्यों नहीं जौइन कर लेतीं?’

‘क्यों?’

‘अरे बाबा, शादी के बाद घरद्वार संभालना है कि नहीं?’

कीया शरमा गई. उस ने महसूस किया कि अमर उस के प्यार में दीवाना हो रहा है. एक दिन तो हद हो गई जब अमर कह रहा था, ‘कीया, तुम बाल खुले मत रखा करो. दूसरे भी आकर्षित होते हैं.’

‘बस,’ कीया ने खिजाने के लिए कहा.

‘मु?ो द्रौपदी की याद आती है.’

‘वो…वो, उस ने तो पुरुषों को चुनौती देने के लिए बाल खोल रखे थे, पर मैं…मैं… जाने दो… बांध लेती हूं,’ कीया ने ?ोंपते हुए बाल बांध लिए थे.

कभीकभी कीया को लगता कि जैसे अमर के व्यक्तित्व में एक असुरक्षा की भावना पनप रही है, क्योंकि बिजनैस की बात पर बहस करतेकरते अमर अप्रासंगिक बात छेड़ देता. ‘आज की औरत स्वतंत्र नहीं, स्वच्छंद हो गई है.’

सुन कर कीया चिढ़ जाती, ‘तुम्हारे जैसे मर्द, औरत के तन की सुंदरता तो सम?ाते हैं, पर उन की दिमागी श्रेष्ठता को बरदाश्त नहीं कर पाते.’

अमर तमतमा कर उस समय तो चुप हो जाता लेकिन दोचार दिन बाद ऐसी ही किसी बात को ले कर फिर दोनों में बहस छिड़ जाती.

ऐसे ही दिन बीत रहे थे, तभी एकसाथ 2 सुखद घटनाएं घटीं. एक तो अमर को कंपनी द्वारा लंदन टूर पर जाने का औफर मिला, दूसरे कीया को बेस्ट मार्केटिंग का अवार्ड मिला. पर अमर इस खबर में शरीक होने से पहले अपने घरवालों से मिलने अचानक अपने गांव चला गया. कीया को अकेलापन बुरी तरह सता रहा था. उस ने सोचा शायद जाने से पहले अमर कोई मैसेज छोड़ गया हो. उस ने फोन चैक किया तो मैसेज उभरा, ‘जल्दी लौटूंगा. मां चाहती हैं लंदन जाने से पहले मैं शादी कर लूं.’

कीया शरमा गई. उस ने सोचा अमर प्रपोज कर रहा है. वह बेसब्री से अमर की प्रतीक्षा करने लगी. लगभग 2 सप्ताह बाद अमर किसी लड़की के साथ दरवाजे पर खड़ा था.

‘कहां थे अब तक,’ कीया का धीरज जवाब दे रहा था.

‘इन से मिलो, ये हैं रानी.’

इतने में रानी ने आगे बढ़ कर कीया को गले लगा लिया.

‘अरे, अरे, यह क्या कर रही हो?’

‘रानी बहुत अच्छा खाना बना लेती है. आप कहें तो चाय के साथ नाश्ता भी बना लाएगी. आप तब तक अपना अवार्ड दिखाइए,’ अमर ने मुसकराते हुए कहा.

‘कौन है ये, तुम्हारी रिश्तेदार या…?’

‘मां की पसंद है रानी.’

कीया ने जैसे कुछ नहीं सुना. रानी उस की पत्नी है तो क्या अमर गांव शादी करने गया था? लेकिन, कीया ने तो ऐसा नहीं सोचा था, वह तो यही सोचती रही कि अमर उसे प्यार करता है, उस के साथ शादी करना चाहता है.

‘खाना बना देगी, देखभाल करेगी, घर में रहेगी. आखिर हमारा व्यवसाय तो एक ही है. हम अब भी गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड तो रह ही सकते हैं?’

अचानक कीया उठ खड़ी हुई, ‘मिस्टर अमर, हमारा व्यवसाय एक हो सकता है, पर व्यक्तित्व एक नहीं है. मैं नहीं चाहती कि तुम मेरे व्यक्तित्व को व्यवसाय बनाओ. मैं सम?ा गई तुम मु?ो अपनी गर्लफ्रैंड नहीं मिस्ट्रैस बनाना चाहते हो. गेट आउट… गेट लौस्ट,’ कीया दहाड़ रही थी, ‘तुम लोग बुद्धिमान महिला से मिलना तो चाहते हो, पर शादी रसोइए, बावर्चिन से करते हो. बाजार का हिसाबकिताब करती पत्नी तुम्हें अच्छी लगती है, पर शेयर मार्केट का हिसाब अपने कब्जे में रखना चाहते हो.’

अकेले में नाराज कीया को तो अमर कैसे भी मना लेता, पर नवविवाहित पत्नी के सामने वह अपना अपमान बरदाश्त नहीं कर पाया. गुस्से में बोला, ‘आश्चर्य की बात है. आप ने ऐसा कैसे सोच लिया कि मैं आप से शादी करूंगा? आप गलतफहमी की शिकार हुई हैं. जैसा कि महिलाएं अकसर हो जाती हैं. मेरी पत्नी भी एक नारी है. आप उसे रसोइया, बावर्चिन कह रही हैं? आप पुरुषों का तो क्या, नारियों का सम्मान करना भी नहीं जानतीं.’ अमर का स्वर तल्ख हो उठा था.

‘पश्चिम में आप जैसी महिलाओं द्वारा वुमेंस लिबरेशन का दौर चलाया गया था. आप लोग पुरुषों से मिलना तो चाहती हैं मगर समानता के स्तर पर नहीं. आप पुरुषों को हीन बनाना चाहती हैं. घरगृहस्थी दो पहियों पर चलती है. आप लोग दूसरा पहिया बनना नहीं चाहती हैं.   मैं 4 साल अमेरिका में रहा हूं. पश्चिम की औरत स्वतंत्र है. मगर आप जैसी महिलाओं की तरह स्वच्छंद नहीं है.’ और पैर पटकते हुए अमर बाहर निकल आया.

गुस्से में कीया ने अपने बालों के रिबन खोल डाले. कभी अमर कहा करता था कि बाल खोल कर वह द्रौपदी सी लगती है, यही सही. पर वह मिस्ट्रैस नहीं बन सकती, कभी नहीं. अचानक अपनी तंद्रा से बाहर आई कीया ने हरी बत्ती देखी और कार आगे बढ़ा ली.  Story In Hindi

Hindi Romantic Story: बारिश – फुहार इश्क की

Hindi Romantic Story: मेरी शक्लसूरत कुछ ऐसी थी कि 2-4 लड़कियों के दिल में गुदगुदी जरूर पैदा कर देती थी. कालेज की कुछ लड़कियां मुझे देखते हुए आपस में फब्तियां कसतीं, ‘देख अर्चना, कितना भोला है. हमें देख कर अपनी नजरें नीची कर के एक ओर जाने लगता है, जैसे हमारी हवा भी न लगने पाए. डरता है कि कहीं हम लोग उसे पकड़ न लें.’

‘हाय, कितना हैंडसम है. जी चाहता है कि अकेले में उस से लिपट जाऊं.’

‘ऐसा मत करना, वरना दूसरे लड़के भी तुम को ही लिपटाने लगेंगे.’

धीरेधीरे समय बीतने लगा था. मैं ने ऐसा कोई सबक नहीं पढ़ा था, जिस में हवस की आग धधकती हो. मैं जिस्म का पुजारी न था, लेकिन खूबसूरती जरूर पसंद करने लगा था.

एक दिन उस ने खूब सजधज कर चारबत्ती के पास मेरी साइकिल के अगले पहिए से अपनी साइकिल का पिछला पहिया भिड़ा दिया था. शायद वह मुझ से आगे निकलना चाहती थी.

उस ने अपनी साइकिल एक ओर खड़ी की और मेरे पास आ कर बोली, ‘माफ कीजिए, मु?ा से गलती हो गई.’
यह सुन कर मेरे दिल की धड़कनें इतनी तेज हो गईं, मानो ब्लडप्रैशर बढ़ गया हो. फिर उस ने जब अपनी गोरी हथेली से मेरी कलाई को पकड़ा, तो मैं उस में खोता चला गया.

दूसरे दिन वह दोबारा मु?ो चौराहे पर मिली. उस ने अपना नाम अंबाली बताया. मेरा दिल अब उस की ओर खिंचता जा रहा था.

प्यार की आग जलती है, तो दोनों ओर बराबर लग जाती है. धीरेधीरे वक्त गुजरता गया. इस बीच हमारी मुहब्बत रंग लाई.

एक दिन हम दोनों एक ही साइकिल पर शहर से दूर मस्ती में ?ामते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे. आकाश में बादलों की दौड़ शुरू हो चुकी थी. मौसम सुहावना था. हर जगह हरियाली बिछी थी.

अचानक आसमान में काले बादल उमड़ने लगे, जिसे देख कर मैं परेशान होने लगा. मु?ो अपनी उतनी फिक्र नहीं थी, जितना मैं अंबाली के लिए परेशान हो उठा था, क्योंकि कभी भी तेज बारिश शुरू हो सकती थी.

मैं ने अंबाली से कहा, ‘‘आओ, अब घर लौट चलें.’’

‘‘जल्दी क्या है? बारिश हो गई, तो भीगने में ज्यादा मजा आएगा.’’

‘‘अगर बारिश हो गई, तो इस कच्ची और सुनसान सड़क पर कहीं रुकने का ठिकाना नहीं मिलेगा.’’
‘‘पास में ही एक गांव दिखाई पड़ रहा है. चलो, वहीं चल कर रुकते हैं.’’

‘‘गांव देखने में नजदीक जरूर है, लेकिन उधर जाने के लिए कोई सड़क नहीं है. पतली पगडंडी पर पैदल चलना होगा.’’

‘‘अब तो जो परेशानियां सामने आएंगी, बरदाश्त करनी ही पड़ेंगी,’’ अंबाली ने हंसते हुए कहा.

हम ने अपनी चाल तेज तो कर दी, लेकिन गांव की पतली पगडंडी पर चलना उतना आसान न था. अभी हम लोग सोच ही रहे थे कि एकाएक मूसलाधार बारिश होने लगी.

कुछ दूरी पर घासफूस की एक झोपड़ी दिखाई दी. हम लोग उस ओर दौड़ पड़े. वहां पहुंचने पर उस में एक टूटाफूटा तख्त दिखाई पड़ा, लेकिन वहां कोई नहीं था.

हम दोनों भीग चुके थे. झोपड़ी में शरण ले कर सोचा कि कुछ आराम मिलेगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.

अंबाली ठंड से बुरी तरह कांपने लगी. जब उस के दांत किटकिटाने लगे, तो वह बोली, ‘‘मैं इस ठंड को बरदाश्त नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘कोई दूसरा उपाय भी तो नहीं है.’’

‘‘तुम मुझे अपने आगोश में ले लो. अपने सीने में छिपा लो, तुम्हारे जिस्म की गरमी से कुछ राहत मिलेगी,’’ अंबाली ने कहा. ‘‘अंबाली, हमारा प्यार अपनी जगह है, जिस पर मैं धब्बा नहीं लगने दूंगा, लेकिन तुम्हारी हिफाजत तो करनी होगी,’’ कह कर मैं ने अपनी कमीज उतार दी और उसे अपने सीने से चिपका लिया.
जब अंबाली मेरी मजबूत बांहों और चौड़े सीने में जकड़ गई, तो उस के होंठ जैसे मेरे होंठों से मिलने के लिए बेताब होने लगे थे.

मैं ने उस के पीछे अपनी दोनों हथेलियों को एकदूसरे पर रगड़ कर गरम किया और उस की पीठ सहलाने लगा, ताकि उस का पूरा बदन गरमी महसूस करे. तब मुझे ऐसा लगा, जैसे गुलाब की कोमल पंखुडि़यों पर ओस गिरी हो. मेरी उंगलियां फिसलने लगी थीं.

आधे घंटे के बाद बारिश कम होने लगी थी.

अंबाली मेरी बांहों में पूरी तरह नींद के आगोश में जा चुकी थी. मैं ने उसे जगाना ठीक नहीं सम?ा.
एक घंटे बाद मैं ने उसे जगाया, तब तक बारिश बंद हो चुकी थी.

अंबाली ने अलग हो कर अपने कुरते की चेन चढ़ाई और मुसकराते हुए पूछा, ‘‘तुम ने मेरे साथ कोई शैतानी तो नहीं की?’’

मैं हंसा और बोला, ‘‘हां, मैं ने तुम्हारे होंठों पर पड़ी बारिश की बूंदों को चूम कर सुखा दिया था.’’
‘‘धत्त…’’ थोड़ा रुक कर वह कहने लगी, ‘‘तुम्हारा सहारा पा कर मुझे नई जिंदगी मिली. ऐसा मन हो रहा था कि जिंदगीभर इसी तरह तुम्हारे सीने से लगी रहूं.’’

‘‘हमारा प्यार अभी बड़ी नाजुक हालत में है. अगर हमारे प्यार की जरा सी भी भनक किसी के कान में पड़ गई, तो हमारी मुहब्बत खतरे में तो पड़ ही जाएगी और हमारी जिंदगी भी दूभर हो जाएगी,’’ मैं ने कहा.
‘‘जानते हो, मैं तुम्हारे आगोश में सुधबुध भूल कर सपनों की दुनिया में पहुंच गई थी. मेरी शादी धूमधाम से तुम्हारे साथ हुई और विदाई के बाद मैं तुम्हारे घर पहुंची. वहां भी खूब सजावट थी.

‘‘रात हुई. मुझे फूलों से सजे हुए कमरे में पलंग पर बैठा दिया गया. तुम अंदर आए, दरवाजा बंद किया और मेरे पास बैठे.

‘‘हम दोनों ने वह पूरी रात बातें करते हुए और प्यार करने में गुजार दी,’’ इतना कह कर वह खामोश हो गई.

‘‘फिर क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हवा का एक बवंडर आया और मेरा सपना टूट गया. मैं ने महसूस किया कि मैं तुम्हारी बांहों में
हूं. मेरा जिस्म तुम्हारे सीने में समाया था,’’ इतना कहतेकहते वह मुझसे चिपक गई.

‘‘अंबाली, बारिश बंद हो चुकी है. अंधेरा घिरने लगा है. अब हमें अपने घर पहुंचने में बहुत देर हो जाएगी. तुम्हारे घर वाले चिंता कर रहे होंगे. कहीं हमारा राज न खुल जाए.’’

‘‘तुम ठीक कहते हो. हमें चलना ही होगा.’’

कुछ दिन कई वजहों से हम दोनों नहीं मिल सके. लेकिन एक शाम अंबाली मेरे पास सहमी हुई आई. मैं ने उस के चेहरे को देखते हुए पूछा, ‘‘आज तुम बहुत उदास हो?’’

‘‘आज मेरा मन बहुत भारी है. मैं तुम्हारे बिना कैसे जी सकूंगी, कहीं मैं खुदकुशी न कर बैठूं, क्योंकि उस के सिवा कोई रास्ता नहीं सूझता,’’ कह कर अंबाली रो पड़ी.

‘‘ऐसा क्या हुआ?’’

‘‘मेरे घर वालों को हमारे प्यार के बारे में मालूम हो गया. अब मेरी शादी तय हो चुकी है. लड़का पढ़ालिखा रईस घराने का है. अगले महीने की तारीख भी तय कर ली गई. अब मुझे बाहर निकलने की इजाजत भी नहीं मिलेगी,’’ अंबाली रोते हुए बोली.

‘‘तुम्हारे घर वाले जो कर रहे हैं, वह तुम्हारे भविष्य के लिए ठीक होगा. मेरातुम्हारा कोई मुकाबला नहीं. उन के अरमानों पर जुल्म मत करना. हमारा प्यार आज तक पवित्र है, जिस में कोई दाग नहीं लगा. सम?ा लो कि हम दोनों ने कोई सपना देखा था.’’

‘‘यह कैसे होगा?’’

‘‘अपनेआप को एडजस्ट करना ही पड़ेगा.’’

‘‘मेरे लिए कई रिश्ते आए, पर मैं ने किसी को पसंद नहीं किया. उस के बाद मैं तुम्हें अपना दिल दे बैठी, अब तुम मु?ो भूल जाने के लिए कहते हो. मैं तुम्हें बेहद प्यार करती हूं, मेरा प्यार मत छीनो. मैं तुम्हें भुला नहीं पाऊंगी. क्या तुम मुझे तड़पते देखते रहोगे? मैं तुम्हें हर कीमत पर हासिल करना चाहूंगी.’’

कुछ दिन हम लोग अपना दुखी मन ले कर समय बिताते रहे. किसी काम को करने की इच्छा नहीं होती थी. अंबाली की मां से उस की हालत देखी नहीं गई. वह एकलौती लाड़ली थी. उन्होंने अपने पति को बहुत सम?ाया.

अंबाली के पिता ने एक दिन हमारे यहां संदेशा भेजा, ‘आप लोग किसी दूसरे किराए के मकान में दूर चले जाइए, ताकि दोनों लड़केलड़की का भविष्य खराब न हो.’

हमें दूसरे मकान में शिफ्ट होना पड़ा. 3 महीने तक हम एकदूसरे से नहीं मिले. चौथे महीने अंबाली के पिता मेरे पिता से मिलने आए और साथ में मिठाई भी लाए थे.

बाद में उन्होंने कहा, ‘‘रिश्ता वहीं होगा, जहां अंबाली चाहेगी, इसलिए

2 साल में उस की पढ़ाई पूरी हो जाने पर विचार होगा. आप लोग दूर चले आए. हम दोनों की इज्जत नीलाम होने से बच गई, वरना ये आजकल के लड़केलड़की मांबाप की नाक कटा देते हैं.’’

मेरे पिता ने उन की बातों को सुना और हंस कर टाल दिया.

एक साल बीत जाने पर मेरा चुनाव एक सरकारी पद पर हो गया और मेरी बहाली दूसरे शहर में हो गई. मेरी शादी के कई रिश्ते आने लगे और मैं बहाने बना कर टालता रहा.

आखिर में मेरे पिता ने झला कर कहा, ‘‘अब हम लोग खुद लड़की देखेंगे, क्योंकि तुम्हें कोई लड़की पसंद नहीं आती. अगर तुम ने हमारी पसंद को ठुकरा दिया, तो हम लोग तुम्हें अकेला छोड़ कर चले जाएंगे.’’
मुझे उन के सामने झकना पड़ा और कहा, ‘‘आप लोग जैसा ठीक समझे, वैसा करें. मुझे कोई एतराज नहीं होगा.’’

शादी की जोरशोर से तैयारियां होने लगीं, लेकिन मुझे कोई दिलचस्पी न थी.
बरात धूमधाम से एक बड़े होटल में घुसी, जहां बताया गया कि लड़की के पिता बीमार होने के चलते द्वारचार पर नहीं पहुंच सके. उन के भाई बरात का स्वागत करेंगे.

लड़की को लाल घाघराचोली में सजा कर स्टेज तक लाया गया, पर उस के चेहरे से आंचल नहीं हटाया गया था.

लड़की ने मेरे गले में जयमाल डाली और मैं ने उस के गले में. तब लोग शोर करने लगे, ‘अब तो लड़की का घूंघट खोल दिया जाए, ताकि लोग उस की खूबसूरती देख सकें.’

लड़की का घूंघट हटाया गया, जिसे देख कर मैं हैरान रह गया. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, मानो उसे जबरदस्ती बांधा गया था.

मैं ने एक उंगली से उस की ठुड्डी को ऊपर किया. उस की नजरें मुझे से टकराईं, तो वह बेहोश होतेहोते बची.

सुहागरात में अंबाली ने मेरे आगोश में समा कर अपनी खुशी का इजहार किया. उस का प्यार जिंदा रह गया. मैं ने उस के गुलाबी गाल पर अपने होंठ रख कर प्यार से कहा, ‘‘अंबाली, तुम्हारे गालों पर अभी तक बारिश की बूंदें मोतियों जैसी चमक रही हैं. थोड़ा मुझे अपने होंठों से चूम लेने दो.’’

यह सुन कर अंबाली खिलखिला कर हंस पड़ी, जैसे वह कली से फूल बन गई हो. Hindi Romantic Story

Best Hindi Kahani: मान न मान – मर्यादा की तरकीब

Best Hindi Kahani: मर्दों के दबदबे वाले समाज की यह खासीयत होती है कि वे औरतों पर अपनी मरजी थोपने की कोशिश करते हैं. कोई औरत माने या न माने, जबरदस्ती वे उस के दिल में घुसने की कोशिश करने लगते हैं. मर्दों को यह सोचना चाहिए कि वे कितने भी बलशाली क्यों न हों, औरतें कितनी भी लाचार क्यों न हों, कभी उन की मरजी के खिलाफ उन्हें हासिल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

औरत भले ही अबला की तरह लाचार नजर आती है, लेकिन मौका मिलने पर वह किसी घायल नागिन की तरह पलट कर हमला कर सकती है. कभी वह छुईमुई नजर आती है, तो कभी मर्यादा की दहलीज लांघ कर मर्द को सबक सिखाने के लिए मजबूर हो जाती है.

दूसरे बच्चों की तरह मर्यादा को भी पढ़लिख कर अपना कैरियर बनाना था और उस के बाद किसी अमीर लड़के से शादी कर के ऐश की जिंदगी जीनी थी.

मर्यादा की मौसी ने उसे समझाया कि अगर वह सचमुच अमीर पति चाहती है, तो उसे खुद ही किसी अमीर लड़के को अपने प्यार के झांसे में लेना होगा, वरना उस के मांबाप दहेज के पैसे नहीं दे सकेंगे. मर्यादा ने मौसी की बात गांठ बांध ली थी.

मर्यादा लखनऊ शहर के एक कालेज से एमबीए कर रही थी, पढ़ाई के लिए घर से भेजा हुआ खर्च पूरा नहीं पड़ता था, मजबूरी में उस ने लोगों के घर जा कर ब्राइडल मेकअप और मेहंदी लगाने का पार्टटाइम काम शुरू कर दिया.

पढ़ाई के अलावा मर्यादा दुलहनों को सजाने के साथ खुद भी सजनेसंवरने में बिजी रहती थी. उस का सीना पूरी तरह से नहीं उभरा था, फिर भी पैडेड ब्रा पहन कर वह बहुत ही मस्त दिखने लगी थी. उस के पेशे में मस्त दिखना बहुत जरूरी था. मर्यादा को अपनी क्लास के सिर्फ 2 लड़के अच्छे लगते थे. पहला खानदानी रईस राकेश था. उस का खुद का बिजनैस था. दूसरा संतोष पढ़ने में बहुत ही होशियार था. उस की सरकारी नौकरी लगना तय था. स्टूडैंट यूनियन का नेता अर्जुन बेवजह उस के पीछे पड़ा रहता था.

लेकिन जिंदगी में सबकुछ इनसान की योजना के मुताबिक नहीं होता. अर्जुन भले ही एक बैक बैंचर था, लेकिन उस ने मर्यादा को शादी के कई घरों में मेकअप आर्टिस्ट का काम दिलाया था.

एक दिन मर्यादा को साइट पर छोड़ने के बहाने अर्जुन ने रास्ते में पड़ने वाली खंडहर हवेली में ले जा कर जबरदस्ती उस का कुंआरापन लूट लिया.

भैंस जैसे सख्त उस लौंडे ने मर्यादा को दिन में तारे दिखा दिए थे. खून बहने के चलते उस पर बेहोशी छाने लगी. उस की जांघों के बीच की हड्डियां ककड़ी की तरह चटक गई थीं.

मर्यादा अपने बलात्कारी का खून कर देना चाहती थी, लेकिन जिस लड़के से वह अपनी इज्जत नहीं बचा सकी थी, उस की जान लेना इतना आसान नहीं था.

अगले दिन कालेज में मर्यादा अपने साथ हुई घटना की शिकायत किसी से नहीं कर सकी. अगर बाबूजी को पता चल गया तो उन्हें उस की पढ़ाई बंद करा कर घर बैठा देना था और फिर किसी चने बेचने या रिकशा चलाने वाले से उस की शादी करा देनी थी. उस ने खुदकुशी करनी चाही, लेकिन हिम्मत नहीं हुई.

मर्यादा द्वारा खामोशी से इतना सब सह लेने के चलते अर्जुन के चमचों का हौसला और ज्यादा बढ़ गया. अगले दिन कालेज में मर्यादा नाम के पोस्टर चिपके हुए थे. उन्होंने मर्यादा को अर्जुन की मंगेतर और अपनी भाभी के नाम से बदनाम कर दिया.

राकेश और सुरेश ने मर्यादा के चरित्र पर लांछन लगा कर उसे रिजैक्ट कर दिया था. हर जगह उस की बदनामी हो चुकी थी. चुनरी से चेहरा छिपाए बगैर उस का होस्टल से बाहर निकलना मुश्किल हो गया.

अर्जुन के अलावा हर इनसान मर्यादा को आवारा, बदचलन, बिगड़ी हुई लड़की समझने लगा. उस के पास एकमात्र रास्ता अर्जुन बचा था, फिर भी वह उसे कोई मौका नहीं दे रही थी.

अगले 3 महीनों तक अकेले कहीं ले जाने, मिलने, छूने, बोलने का कोई भी मौका मर्यादा ने अर्जुन को नहीं दिया, जिस से मर्यादा पर उस का क्रश बहुत बढ़ गया. अर्जुन अपनी बलात्कार की ज्यादती को भावनाओं का बहाव बता कर अपने प्यार की कसम खा रहा था.

इधर मौसी ने भी मर्यादा को समझाया था कि जो मर्द अपने पहले प्यार में ही किसी लड़की का खून निकाल कर उसे एक पूरी औरत बना देता है, वही सच्चा मर्द होता है. अर्जुन ने वह कर दिखाया था.

मर्यादा को अब अर्जुन के प्यार में कोई शक नहीं बचा था, लेकिन उस के पास पैसों की कड़की थी. उस की आमदनी का जरीया नहीं था, इसलिए वह उस से पीछा छुड़ाना चाहती थी.

इसी उधेड़बुन से तंग आ कर एक दिन मर्यादा ने अर्जुन को साफ शब्दों में समझा दिया कि अगर वह शादी के बाद मेरे लिए पैसे कमा कर नहीं ला सकता, तो उसे मेरा पीछा करने की कोई जरूरत नहीं है.

अर्जुन तैश में वहां से निकल गया. वह खुदकुशी कर सकता था. मर्यादा को मार सकता था. पर मर्यादा उस समय तक उस से इतना तंग आ चुकी थी कि वह क्या करेगा, इस की उसे कोई चिंता नहीं थी.

4 दिन बाद अर्जुन मर्यादा के लिए 4 लाख रुपए ले कर लौटा. मर्यादा ने कभी इतने सारे नोट एकसाथ नहीं देखे थे. उस की आंखें खुली की खुली रह गईं.

अब अर्जुन के सच्चे प्यार को स्वीकारने के अलावा मर्यादा के पास कोई उपाय नहीं बचा था. उस के पैसों की शर्त को अर्जुन ने पूरा कर दिया था और जिंदगीभर प्यार से रखने का भरोसा दिलाया था. वह सच्चे आशिक की तरह मर्यादा के जिस्म के हर रोम को प्यार करता था. घंटों उस के नंगे बदन को निहारता था. बिस्तर पर वह गुलाम की तरह बरताव करता था.

4 दिनों तक एकदूसरे की बांहों में पड़े हुए उन दोनों के सारे गिलेशिकवे खत्म हो चुके थे. उस घटना के लिए उस ने मर्यादा से बारबार और रोरो कर माफी मांगी थी. मर्यादा ने उसे माफ कर दिया.

अभी मेरी जिंदगी में कुछ अच्छा घटना शुरू हुआ ही था कि अर्जुन को पुलिस ने पकड़ लिया. दरअसल, अर्जुन ने पैट्रोल पंप के कैशियर को लूटा था. इस खबर से एक बार फिर मर्यादा की जिंदगी में भूचाल आ गया.

बहरहाल, अर्जुन ने मर्यादा का नाम नहीं बताया. उस ने भी अर्जुन को पहचानने से इनकार कर दिया. शायद अर्जुन बेहद प्यार करने के चलते मर्यादा को किसी परेशानी में डालना नहीं चाह रहा था या फिर पैसे बरामद करा कर अपना जुर्म कबूल करना नहीं चाह रहा था. मर्यादा ने सुना कि थाने में अर्जुन की खूब कुटाई हुई, फिर भी उस ने उस का नाम नहीं बताया.

अर्जुन के दिए हुए 4 लाख रुपए ले कर मर्यादा गांव भाग आई. रुपयों को उस ने बहुत अच्छी तरह से कपड़े में बांध कर भूसा रखने वाले कच्चे मकान के छप्पर में छिपा दिया. यहां भी डर के चलते वह 2 दिन तक खाना नहीं खा सकी. घर के बाहर से किसी गाड़ी की आवाज आती तो लगता कि पुलिस उसे पकड़ने आ गई है.

इस बीच मर्यादा को एक शानदार मौका हासिल हुआ. उस के एक दूर के रिश्तेदार ने बायोडाटा के आधार पर उसे शादी के लिए चुन लिया था. मर्यादा का होने वाला मंगेतर सरकारी नौकरी में था और खानदानी रईस था. उसे मर्यादा की शक्ल और उस का बायोडाटा मर्यादा को तो पसंद आ गया था, लेकिन वह दहेज भी मांग रहा था. इस से पहले कि कोई उसे मर्यादा के कालेज के कांड के बारे में बताए, उसे शादी कर के यहां से हजार किलोमीटर दूर अपनी ससुराल नरसिंहपुर भाग जाना चाहिए.

तय योजना के मुताबिक, अर्जुन को उस के हाल पर छोड़ कर अपने सारे कौंटैक्ट नंबर मिटा कर, मोबाइल फोन की सिम बदल कर, सोशल मीडिया एकाउंट डिलीट कर मर्यादा रविंद्र से शादी कर के अपनी ससुराल भाग गई. अर्जुन के दिए हुए 4 लाख रुपए से उसे दहेज की रकम जुटाने में बहुत मदद मिली थी.

ससुराल पहुंचते ही मर्यादा ने रविंद्र को पूरी तरह से अपने काबू में ले लिया था. मौसी की सिखाई हुई तरकीब के मुताबिक सुहागरात के दिन बेवजह चीखचिल्ला कर उस ने अपने पति को अहसास करा दिया कि वह अभी तक कुंआरी थी.

मर्यादा के वे 6 महीने बहुत मजे से गुजरे. इस के बाद वह अपने गांव लौटी थी. कुनकुनी धूप में अपने ब्रा को सुखाने के लिए डालते समय मर्यादा रविंद्र के विचारों में मगन थी. रविंद्र मर्यादा का बहुत ध्यान रखता था. जवानी का पूरा मजा लेने के लिए वे फैमिली प्लानिंग कर रहे थे.

मर्यादा रविंद्र के विचारों में डूबी ही थी कि ‘मर्यादा’ नाम पुकारे जाने से वह चौंक गई. उस ने बगल की छत पर झांका, तो धक की आवाज के बाद उस का दिल धड़कना बंद सा हो गया.

सामने अर्जुन खड़ा हुआ था. पहले से ज्यादा डरावना. उस के हाथ में देशी तमंचा देख कर मर्यादा को यकीन हो गया कि आज वह उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा.

मुसीबत के समय जिस की जैसी बुद्धि काम कर जाए. मर्यादा ने तुरंत ही अर्जुन को अपनी बांहों में भर लिया और झूठे आंसू बहाने लगी, ‘‘अर्जुन, तुम कहां थे इतने दिन? देखो तुम्हारे बिना मेरा क्या हाल हुआ? घर वालों ने जबरदस्ती मेरी शादी करा दी…’’ कहते हुए वह उस के सीने से लिपट कर फूटफूट कर रोने लगी.

अपनी चालाकी का असर होते देख कर मर्यादा अर्जुन की पैंट में हाथ डाल कर उसे अपने साथ सैक्स के लिए उकसाने लगी.

मर्द तो चौबीस घंटे सैक्स के लिए भूखे रहते ही हैं. खुले आसमान के नीचे, कुनकुनी धूप में, पानी की टंकी के पीछे लेट कर जिस्मानी संबंध बनाने लगे.

अर्जुन ने मर्यादा के हर झूठ को सच मान लिया. अब तो वह उस से लपेटलपेट कर और भी बहुत सारे झूठ बोलने लगी, ‘‘मैं ने अपने पति के साथ सिर्फ सात फेरे लिए हैं, अपना शरीर नहीं छूने दिया… मुझे प्यार करने का हक सिर्फ तुम्हें हैं अर्जुन…

‘‘रविंद्र मेरे शरीर को जीत सकता है, लेकिन आत्मा को नहीं… मैं जल्द ही रविंद्र को तलाक दे कर हमेशा के लिए तुम्हारी हो जाऊंगी…’’

आज मर्यादा को इस अर्जुन नाम के मूर्ख प्राणी से जरा भी डर नहीं लग रहा था. एक महीना, जब तक वह अपने मायके रही, अर्जुन से अपनी और अपने परिवार की भरपूर सेवा कराई.

अर्जुन एक बार फिर कहीं से 2 लाख रुपए लूट कर उस के लिए ले आया, ताकि इन पैसों से वह अपने पति को तलाक दे सके.

वे 2 लाख रुपए एक पुलिस वाले को अर्जुन के ऐनकाउंटर के नाम पर देने के बाद मर्यादा अपनी ससुराल भाग गई. वह मर्द का बच्चा अर्जुन जबरदस्ती मर्यादा की जिंदगी को ड्रामा बनाने की कोशिश कर रहा था. Best Hindi Kahani

Story In Hindi: वैंटिलेटर – कोरोना में दांव पर लगी जिंदगी

Story In Hindi: सरकार कहती है कि उस ने कोरोना महामारी का सामना बहुत अच्छी तरह से किया है, लौकडाउन ने लोगों को बरबाद होने से बचा लिया, पर कोरोना ने कितना नुकसान किया, यह या तो बलि चढ़ने वाला या फिर बलि लेने वाला बता सकता है.कोरोना की दूसरी लहर ने मेरे सारे सपनों को चकनाचूर कर दिया.

हमारे हंसतेखेलते परिवार को बरबाद कर दिया. हमारी जिंदगी को वैंटिलेटर बना दिया. कोरोना ने मुझे सिविल सर्विस प्रतियोगी से दूर कर के कारपोरेट वेश्या बना दिया.आज मैं अपनी यानी पूर्णिमा की कहानी आप को सुनाती हूं. मेरे पिताजी फलों के ठेले की फेरी लगा कर आराम से 800 से 1,200 रुपए रोजाना बचा लेते थे. उन्होंने कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया और यही सीख हम बच्चों को भी मिली थी.

12वीं क्लास में उत्तर प्रदेश की मैरिट लिस्ट में नाम आने के बाद पापा की इच्छा थी कि मैं आईएएस की तैयारी के लिए दिल्ली चली जाऊं और मां की इच्छा थी कि मेरे छोटे भाई विनोद को डाक्टरी की तैयारी कराऊं.मैं जानती थी कि दोनों सपने एकसाथ पूरे नहीं हो सकते, इसलिए मैं ने शहर के एक कालेज में एडमिशन ले लिया और विनोद को डाक्टरी की तैयारी कराने के लिए हम सब पाईपाई जोड़ने लगे.सरकार की गलत नीतियों के चलते महंगाई और बेरोजगारी वैसे ही हद पर थी.

पापा की कमाई तो घरखर्च में भी कम पड़ जाती थी. मेरी और मां की ट्यूशन की कमाई थी, जिस से थोड़ीबहुत बचत हो रही थी.अपने सरकारी कालेज के एक फंक्शन में मेरी मुलाकात शहर के सब से बड़े उद्योगपति के बिगड़ैल लड़के राजीव से हुई थी. मैं ने उस फंक्शन में रानी झांसी का किरदार निभाया था. मेरी बहुत तारीफ हुई थी. राजीव ने मुख्य अतिथि की हैसियत से मुझे पुरस्कार दिया था.राजीव एक बहुत ही महंगी कार से आया था. उस के गोरे, क्लीन शेव चेहरे पर क्रीम कलर का सूट बहुत अच्छा लग रहा था. उस के काले चश्मे में अपना अक्स देख कर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई थी.

कालेज की बिगड़ी हुई लड़कियां पीछे की लाइन में बैठ कर राजीव के लिए तरहतरह की गंदीगंदी बातें करते हुए अफवाह फैला रही थीं. कुछ लड़कियां राजीव को शहर का सब से काबिल बैचलर बताते हुए उस के लिए ठंडी आहें भरने लगी थीं, तो एक सीनियर लड़की ने बताया कि वह पहले से शादीशुदा है.पता नहीं क्यों इस बात से मुझे भी बुरा लग गया. इस बीच राजीव को अपनी ओर घूरता देख मेरे शरीर में एक सिहरन सी पैदा हो गई. उस दिन के बाद राजीव से मेरी कभी मुलाकात नहीं हुई.मार्च, 2020 में कोरोना महामारी के चलते पूरे भारत में लौकडाउन हो गया.

हम सब की कमाई खत्म हो गई. डेढ़ महीने तो घर बैठ कर अपनी बचत इस्तेमाल करते रहे, उस के बाद पापा ने दोबारा ठेला लगाना शुरू कर दिया. सरकार ने फलसब्जियों की कीमत तो कंट्रोल कर दी थी, लेकिन यह तय नहीं हुआ था कि वह फुटकर में बेची जाएगी कि थोक में यानी दुकानदार 100 रुपए प्रति किलो से महंगे सेब नहीं बेच सकता, चाहे थोक हो या फुटकर.

इस का नतीजा यह हुआ कि मार्जन बहुत घट गया और अब उन्हें रोजाना 200-300 रुपए कमाने में दिक्कत हो रही थी.हमारे पड़ोस की कमला आंटी, जो बड़े लोगों के घरों में बरतन मांजती थीं, अनपढ़ होने के बावजूद उन की जिंदगी अब हम से कहीं बेहतर चल रही थी. उन की मालकिन ने दोबारा उन्हें काम पर बुलाना चालू कर दिया था. 2 महीने उन्हें घर बैठे के पैसे दिए थे, सो अलग.

कमला आंटी के बच्चों को उन की मालकिन के बच्चों की उतरन मिल जाती थी, जो हमारे नए कपड़ों से भी अच्छे होते थे. अब तो कई महीने से हमारे कपड़े खरीदे ही नहीं गए थे. विनोद कमला आंटी के बच्चों के कपड़ों पर ललचाता था, तो अकसर मैं अपने हिस्से के पैसों से भी उसी के लिए कपड़े खरीद देती थी.लड़कियों के कपड़े लड़कों से पहले छोटे हो जाते हैं, क्योंकि वे लंबाई के साथ चौड़ाई में भी बढ़ती हैं. लौकडाउन में मेरे सारे कपड़े छोटे पड़ने लगे थे.

सब से ज्यादा गुस्सा मुझे अपने सीने के साइज को ले कर था. हर सुबह इस का साइज मुझे कुछ बढ़ा हुआ महसूस होता था. मेरी सब से बड़ी साइज की कुरती भी सीने के पास से छोटी हो गई थी. मेरे तकरीबन सारे कपड़े कांख के पास से फटने शुरू हो चुके थे.कमला आंटी को समाजसेवियों के मुफ्त भंडारे का पता चल जाता था. उन्होंने साथ चलने को कहा, तो मैं ने बहुत आनाकानी की, पर मजबूरी में विनोद को ले कर उन के साथ फ्री राशन लेने जाना पड़ा. मैं ने जानबूझ कर और भी खराब कपड़े पहने थे, ताकि मदद देने वाले कुछ गलत न बोलने लगें.शरमाते हुए मैं भीख मांगने की लाइन में लगी ही थी कि धक्के की आवाज के साथ मेरे दिल की धड़कन रुक गई. सामने राजीव सर थे…

मेरे ड्रीम बौयफ्रैंड, जिन के बारे में सपने देखते हुए मैं ने दर्जनों बार मधुर मिलन किया था. मेरा चेहरा शर्म से लाल पड़ गया और मुझे रोना आ गया.जल्द मुझे अहसास हुआ कि दुनिया इतनी बुरी नहीं जितना मैं मानती थी. मदद बांटने वाले लड़के और राजीव सर ने मुझे लाइन तोड़ कर सामान दे दिया. इस से थोड़ी सी वीआईपी वाली फीलिंग आई, लेकिन भीख तो भीख ही होती है.अगले दिन राजीव सर ने दोबारा मुझे कसम दे कर बुलाया था. आज मैं अपने सब से अच्छे कपड़े पहन कर गई थी. राजीव सर थोड़ी देर से आए थे. भीख के लालच में जनता बेसब्री से उन का और उन की टीम का इंतजार कर रही थी.राजीव सर अपनी बड़ी शाही कार से आने के बाद सीधे मेरे पास आ कर रुके.

वे आज मेरे भाई विनोद के लिए एक बहुत बड़ी चौकलेट ले कर आए थे. वे मुझ में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहे थे. मुझे इस बात से शर्मिंदगी भी हो रही थी, तो दूसरी ओर मैं रोमांचित भी हो रही थी.राजीव सर बहुत देर से मेरे सीने को ही देखे जा रहे थे. तब मुझे अहसास हुआ कि मेरी नई कुरती भी कांख के पास से फट चुकी थी. मैं जब तक संभलती, तब तक राजीव सर मेरे ‘ताजमहल’ को अच्छी तरह ताड़ चुके थे.अगले दिन राजीव सर मेरे लिए टौप लाए थे और उन्होंने जबरदस्ती गाड़ी के अंदर जा कर नया टौप पहनने को मुझे मजबूर कर दिया.

मैं बाहर निकली, तो टौप से कंपनी का टैग निकालने के बहाने उन का मुंह मेरे बेहद करीब था. उन की सांस को मैं अपनी आंखों पर महसूस कर रही थी. उन के गुलाब की खुशबू का परफ्यूम बेहद मस्त था.अचानक उन्होंने मेरे नितंबों को अपनी हथेली से पकड़ते हुए अपनी ओर खींचना शुरू किया, तो घबरा कर मैं ने उन्हें धक्का दे दिया. उन से दूर भागते हुए दूर से ही उन्हें ‘थैंक्यू’ बोला और उन्हें ‘बाय’ बोलते हुए वहां से दौड़ निकली.विनोद ने बहुत पूछा कि दीदी हुआ क्या है, लेकिन मैं ने जवाब में सिर्फ विनोद का सिर चूमा. उस दिन के बाद विनोद ने बहुत जिद की, लेकिन मैं फ्री का राशन लेने नहीं गई. उस दिन से फिर मेरी राजीव सर से तीसरी बार मुलाकात नहीं हुई.अगस्त महीने में कोरोना का असर थोड़ा कम होने लगा था. मुफ्त का भोजन बंटना अब बंद हो चुका था.

मेरा कालेज दोबारा खुल गया था. मैं ने पूरा मन बना लिया था कि कोई नौकरी कर लूंगी. घर के माली हालात के हिसाब से मुझे अब अपने छोटे भाई को डाक्टर बनाने का सपना नामुमकिन सा लग रहा था.हमारे कालेज में सोशल डिस्टैंस, मास्क, सैनेटाइजर, कोरोना प्रोटोकाल का पालन करते हुए कोई न कोई कार्यक्रम होता रहता था. कालेज की सब से मेधावी छात्र होने के चलते इवैंट मैनेजमैंट की जिम्मेदारी मेरी रहती थी. मेरी आंखें हर मास्क के पीछे राजीव सर को ही तलाशती रहती थीं.

जिंदगी में पहली बार मुझे गरीब होने का दुख था. अगर कुछ अच्छे कपड़े होते, अगर मैं भी उन के साथ गरीबों को दान कर रही होती, तब हमारी दोस्ती के कुछ और माने होते. रोतेरोते मेरी आंख लग चुकी थी. राजीव सर सपने में मेरे सीने और जांघों को मसलते हुए मेरे होंठ चूम रहे थे. उन्होंने मेरे कपड़े उतारते हुए मुझे अपनी औफिस की टेबल पर लिटा दिया, उस के बाद वे मुझे प्यार करने लगे. जैसे ही वे मुझ में समाने लगे, तो मैं चौंक कर उठ गई. यह सिर्फ एक सपना होने पर मुझे तसल्ली हुई.कोरोना की दूसरी लहर शुरू होने के चलते बाजार बंद किए जाने लगे. पापा ने तय कर लिया था कि इस बार कुछ भी हो जाए, वे फेरी लगाना बंद नहीं करेंगे. यह फैसला हमारी जिंदगी की सब से बड़ी गलती साबित हुई.

पापा को कोरोना हो गया. बुखार, खांसी और थकान के साथसाथ उन्हें सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी. जाहिर था कि वे कोरोना की दूसरी अवस्था में थे. शाम होतेहोते पापा का औक्सीजन लैवल बहुत घट गया और उन्हें वैंटिलेटर की जरूरत महसूस होने लगी. सरकारी अस्पताल में वैंटिलेटर की कमी हो रही थी.कमला आंटी ने बताया, ‘‘एक बार सरकारी अस्पताल के इमर्जैंसी वार्ड में जाने के बाद मुरदे ही बाहर आ रहे हैं.’’रिश्तेदारों ने भी निजी अस्पताल का सुझाव दिया.

मम्मी ने डेढ़ लाख रुपए जोड़ रखे थे. यह रकम हम लोगों के लिए बहुत बड़ी थी. मम्मी को लगता था कि इस के बूते वे किसी भी समस्या से बाहर आ जाएंगी. पापा का निजी अस्पताल में इलाज शुरू हो गया. आरटीपीसीआर और एंटीजन टैस्ट पौजिटिव आया था. सीटी स्कैन में 19/24 इंफैक्शन पाया गया. अस्पताल के कमरे का एक दिन का चार्ज 1950 रुपए, नर्स का चार्ज 900 रुपए, डाक्टर की एक विजिट के 900 रुपए थे.रेडियोलौजी टैस्ट के लिए… ऐक्सरे चैस्ट पीए व्यू 550 रुपए, अल्ट्रासाउंड 2,000 रुपए, सीटी चैस्ट एचआरसीटी 7,150 रुपए. खून की जांच के लिए, एंटी एचसीबी टैस्ट 1,450 रुपए, ब्लड कल्चर 1,100 रुपए, डीडाईमर 1,600 रुपए और ब्लड शुगर 100 रुपए प्रति जांच.मैं ने पूछा, ‘‘मेरे पापा को तो शुगर नहीं है, तो टैस्ट क्यों?’’डाक्टर ने बताया कि मरीज को रैबजोल, लोपारिन, टेजिन वगैरह जो भी दवाएं दी जा रही हैं, सभी में ग्लूकोज है. कोरोना प्रोटोकाल में जरूरी है.

इन दवाओं के बाद मरीज को शुगर रिपोर्ट के मुताबिक इंसुलिन दिया जा रहा है.इन सारी बातों के बीच सिस्टर रोजी से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई थी. वे जींसटौप में स्कूटी से अस्पताल आती थीं. एक घंटा उन्हें अस्पताल की ड्रैस पहनने और मेकअप में लगता था. इस बीच अगर कोई उन्हें टोक दे तो उन्हें बहुत गुस्सा आता था. मुझे समझ नहीं आता था कि इस प्रोफैशन में मेकअप की क्या जरूरत? सिस्टर रोजी ने बताया कि औरत को हर प्रोफैशन में मेकअप की जरूरत होती है. औरत कितनी भी बुद्धिमान क्यों न हो, उसे अच्छा दिखना होता है.

मुझे उन की जौब बहुत अच्छी लगती थी. मैं उन से कई बार उन के जैसी जौब दिलाने को कह चुकी थी.सिस्टर रोजी मुसकरा कर कहती, ‘‘उस के लिए कुछ कंप्रोमाइज करना होता है. हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और होते हैं…’’ और बात खत्म हो जाती थी.एक दिन रोजी मैडम ने अपनी मेकअप किट से मुझे लिपस्टिक लगा दी. मैं ने जिंदगी में पहली बार लिपस्टिक लगाई थी और केवल इस वजह से मैं आईने में बेहद खूबसूरत लगने लगी थी. रोजी मैडम ने बताया कि मेरे चेहरे की बनावट बहुत अच्छी है. सीने, कमर और नितंबों का अनुपात बहुत अच्छा है. अगर मैं कोशिश करूंगी, तो मुझे अच्छी नौकरी मिल जाएगी. अस्पताल में चौथे दिन ही हमारे सारे पैसे वैंटिलेटर की भेंट चढ़ गए.

डाक्टर ने प्लाज्मा थैरेपी के लिए 20,000 रुपए अलग से मांगे. मम्मी के ट्यूशन के बच्चों से उम्मीद नहीं थी, क्योंकि आधे बच्चे तो फ्री में ही ट्यूशन पढ़ते थे, बाकी भी गरीब परिवारों से थे. हमारे महल्ले में ज्यादातर गरीब लोग रहते थे.मेरे कालेज के बहुत से दोस्त पापा को देखने आए थे. जिन लड़कों से मैं सीधे मुंह कभी बात नहीं करती थी, उन्होंने भी हमारी मदद की थी.

इन सब को जोड़ कर कुल 8,000 रुपए हुए थे.मैं ने दोबारा कातर निगाह से दोस्तों को देखा. जितेंद्र मेरी मदद करने को तैयार हो गया, लेकिन वह कुछ रिटर्न चाहता था. जितेंद्र हमारे कालेज का सब से अमीर, बिगड़ा हुआ और स्टूडैंट यूनियन का नेता था. अगर मुझे यही सब करना होता, तो जितेंद्र का औफर मैं ने तुरंत स्वीकार कर लिया होता, पर उस की मदद लेने से मैं ने साफ इनकार कर दिया.रोजी मैडम ने हमें इलाज के खर्च में छूट दिला दी. कुछ रिश्तेदारों से मदद हो गई.

इस तरह मैं इस मुसीबत से तो बाहर आ गई, लेकिन अगले ही दिन एक नई मुसीबत आ पड़ी. डाक्टर अब रेमडेसिवीर खरीदने को कह रहे थे. मैं पूरी तरह लाचार हो चुकी थी.तभी मुझे अस्पताल के गेट से राजीव सर आते दिखे. सफेद खादी के कुरते और ग्रीन सनग्लास में वे फिल्मी हीरो की तरह लग रहे थे. इतने बुरे हालात में उन के सामने आने की मेरी जरा भी हिम्मत नहीं थी.

मैं ने दीवार की ओर सिर कर के उन से छिपने की कोशिश की, पर उन्होंने मुझे देख लिया.चिरपरिचित गुलाब की खुशबू महसूस होते ही मुझे पीछे मुड़ कर देखने की इच्छा होने लगी. एक परिचित आवाज में मेरा नाम ‘पूर्णिमा’ सुनते ही मेरा सब्र जवाब दे गया. मैं राजीव सर से लिपट कर देर तक रोती रही. काउंटर पर जा कर उन्होंने कुछ बात की, तो अकाउंटैंट हैरानी से मुझे देखने लगी. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि मेरी जैसी सीधीसादी, देहाती लड़की राजीव सर की दोस्त है.

राजीव सर उस अस्पताल के मालिक के बेटे थे.फिर उस के बाद 2 दिन और मेरे पापा वैंटिलेटर पर रहे, उस के बाद सामान्य औक्सीजन पर आ गए. अब अस्पताल में मुझ से पैसे मांगे ही नहीं जा रहे थे.रोजी मैडम को जब मेरी और राजीव सर की दोस्ती के बारे में पता चला, तो वे खुशी से फूली नहीं समा रही थी. उन्होंने मुझे दोपहर में स्टाफरूम में बुला कर गेट बंद कर लिया. मेरे सारे कपड़े उतारने के बाद उन्होंने मुझे शीशे के सामने खड़ा कर दिया.

मेरे एकएक अंग की खास बनावट के बारे में मुझे समझाने लगीं. मेरे सीने की नाप की तुलना में उभारों की माप कुछ ज्यादा थी और वे आम की तरह पिलपिले नहीं, सेब की तरह सख्त थे. उस पर निप्पल बटन की तरह न हो कर खूंटी की तरह थे. वे काले नहीं, सुर्ख गुलाबी थे. इसी तरह मेरे नितंबों का आकार भी कमर की तुलना में ज्यादा था और वे गीली मिट्टी की तरह लचर न हो कर रबड़ की तरह तने से थे. गोरा रंग और चेहरे की उभरी हुई बनावट मुझे आकर्षक और ग्लैमरस बनाते थे.

मतलब, मैं एक खास प्रोफैशन के लिए परफैक्ट थी. पर मुझे रोजी मैडम की बेहूदा बातें जरा भी पसंद नहीं आ रही थीं. उन्हें भलाबुरा बोल कर मैं बाहर निकल गई. कुदरत की मरजी को कोई नहीं समझ सका है. पापा के ठीक हो कर घर लौटते ही एक दिन राजीव सर का बुलावा आया. उन के एहसान का बदला चुकाने और उन की प्रेमिका बनने के लिए मैं पहले से तैयार बैठी थी. एक महीने में एक दर्जन जगहों पर बुला कर उन्होंने मुझे भरपूर भोगा, उस के बाद मुझे मेरी औकात समझा कर बाहर का रास्ता दिखा दिया.अपनी इज्जत गंवाने के बाद अब मेरे पास रोजी मैडम के बताए रास्ते पर चलने के अलावा कोई रास्ता न था. Story In Hindi

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