उन दोनों का सच : क्या पति के धोखे का बदला ले पाई गौरा – भाग 2

उस मुश्किल घड़ी में पति की यह हालत देख वह बेहद घबरा गई. वह सोच नहीं पा रही थी कि आखिरकार पति को उस के पीछे एसी की बाहरी यूनिट को साफ करने की जरूरत क्या आन पड़ी और वह भी तब, जब वह घर पर नहीं थी.

उधर पलाश गिरने के बाद पूरी तरह से मौन हो गया था. उस ने गिरने के बाद गौरा से बिलकुल कोई भी बात नहीं की. वह बस वीरान निगाहों से शून्य में ताक रहा था. एक तरफ उस की यह हालत देख उस का कलेजा मुंह में था, वहीं दूसरी ओर उस के प्रति गुस्से का भाव भी था कि आखिर वह बेवजह एसी की बाहरी यूनिट साफ करने उस ऊंचे स्टूल पर चढ़ा ही क्यों जिस से आज उसे अस्पताल में धक्के खाने की नौबत आ गई. उस नाजुक वक्त में बिब्बो ने उसे बहुत सहारा दिया.

बिब्बो भी ग्रैजुएट ही थी, लेकिन दुनिया देखीभाली, खेलीखाई महिला थी. पुरुषों से बेहद धड़ल्ले से बातें करती. सो पलाश के इलाज के सिलसिले में डाक्टरों से बातचीत करने में वही आगे रही .

अस्पताल के डाक्टर मिहिर और उन की टीम ने पलाश का ट्रीटमैंट शुरू किया. गौरा तो बस बेहद घबराई हुई कलेजा मुंह में लिए डाक्टरों और बिब्बो की बातें सुनती रहती. तभी डाक्टर मिहिर ने गौरा से कहा, “गौरा, आप के हसबैंड के ब्रेन का सीटी स्कैन और एमआरआई करवाना पड़ेगा, यह देखने के लिए कि कहीं उन्हें कोई अंदरूनी चोट तो नहीं पहुंची.”

“ठीक है डाक्टर साहब, आप जो ठीक समझें”, गौरा ने डॉक्टर से कहा.

“डाक्टर साहब, पलाश के ब्रेन का सीटी स्कैन और एमआरआई होगा? एक बात बताइए डाक्टर साहब, इन की गरदन के पीछे कुछ दाने हो रहे हैं. सीटी स्कैन और एमआरआई में कोई दिक्कत तो नहीं आएगी?” बिब्बो के मुंह से अनायास यह शब्द निकले ही थे कि अगले ही क्षण अपनी जीभ काटते हुए वह चुप हो गई.

यह वह क्या कह बैठी, अगले ही क्षण उसे एहसास हुआ और वह घबरा गई.

“नहींनहीं, उस की वजह से कोई परेशानी नहीं होगी,” डाक्टर ने जवाब दिया.

इधर बिब्बो के मुंह से पति की गरदन के पीछे हुए दानों के बारे में सुन कर गौरा के जेहन में घंटी बजी, यह बिब्बो को पलाश की गरदन के पीछे के दानों के बारे में कैसे पता? वह एक असहज बेचैनी में डूब गई. बारबार एक ही प्रश्न उस के दिलोदिमाग को मथने लगा, ‘आखिर बिब्बो ने यह बात कैसे बोली?’

पलाश के ब्रेन का सीटी स्कैन और एमआरआई हुआ और उन की रिपोर्ट से पता चला कि पलाश के ऊंचाई से गिरने की वजह से उस के ब्रेन में तीव्र हेमरेज हुआ था. दोनों जांचों की रिपोर्ट आने के बाद डाक्टर ने उस की हालत बेहद गंभीर बताई.

पति की गंभीर हालत के विषय में सुन कर गौरा के हाथों के तोते उड़ गए. डाक्टर ने उसे यह भी कहा कि पलाश की हालत बहुत नाजुक है. अगले ढाई घंटों में कुछ भी हो सकता है.”

आखिरकार डाक्टरों का इलाज रंग लाई. ढाई घंटे सकुशल बिना किसी अनहोनी के बीत गए. उस के बाद पलाश की हालत में शीघ्रता से सुधार हुआ. करीब 1 सप्ताह आईसीयू में रहने के बाद पलाश को एक अलग कमरे में शिफ्ट किया गया. अस्पताल में गुजरा वह समय गौरा के लिए बेहद उथलपुथल भरा रहा, पर वहां बीता आखिरी दिन उसे एक जबरदस्त झटका दे गया.

उस दिन पलाश को अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी. उसे डिस्चार्ज करने के पहले डाक्टर मिहिर उसे उस की दवाओं और घर पर ली जाने वाली सावधानियों के बारे में बताने के लिए अपने चैंबर ले गए. आधे घंटे बाद डाक्टर से बात कर गौरा जैसे ही पलाश के कमरे में घुसी, यह देख कर उस के पांवों तले जमीन न रही कि पलाश अपनी आंखें मूंदे बिब्बो के दोनों हाथों को अपने हाथों में थामे हुए उन्हें चूम रहा था और बुदबुदा रहा था, “तुम ने मेरी जान बचा दी. अगर तुम मुझे उस दिन वक्त पर अस्पताल नहीं लातीं तो न जाने क्या होता?”

उस के अचानक कमरे में पहुंचने पर बिब्बो ने सकपका कर अपने हाथ पलाश के हाथों की गिरफ्त से छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन पलाश ने उस के हाथ नहीं छोड़े और गौरा पर एक घोर उपेक्षा की दृष्टि डाल वह बिब्बो से इधरउधर की बातें करता रहा.

एक ओर पति की गंभीर शारीरिक हालत, तो दूसरी ओर उस का निर्लज्ज आचरण गौरा के सीने में छुरियां चला रहा था. वह सोच नहीं पा रही थी कि जिंदगी के इस कठिन मुकाम पर वह उन विपरीत परिस्थितियों का सामना कैसे करे? बिस्तर पर पड़े पलाश और बिब्बो का अनवरत प्रेमालाप देख उस का खून उबल उठता, लेकिन वह हालातों के आगे बेबस थी. आर्थिक तौर पर वह पूरी तरह से पलाश पर आश्रित थी.

एक दिन तो हद ही हो गई. उस दिन पलाश अपने 5 साल के बेटे और 7 साल की बेटी के सामने ही गौरा द्वारा परोसी गई लौकी की सब्जी को परे हटा बिब्बो की लाई सब्जी की चटखारे लेते खा रहा था और बिब्बो की कुकिंग की प्रशंसा कर रहा था, “बिब्बो से सीखो सब्जी बनाना. तुम्हें तो तुम्हारी मां ने महज हींगजीरे का छौंक लगाना सिखाया है. बिब्बो के हाथ की बनी यह पनीर की सब्जी खा कर देखो तो समझ आएगा कुकिंग किसे कहते हैं.”

पलाश की इस बात से गौरा का चेहरा स्याह हो आया और उस दिन वह अपनेआप पर काबू नहीं रख पाई और बिब्बो के अपने घर जाते ही घोर आवेश में आ उस से बोल पड़ी, “बिब्बो के हाथ की बनी सब्जी तो बहुत अच्छी लग रही है आप को. उस की तरह मैं भी किसी गैर मर्द के साथ इश्क के पेंच लड़ाऊं तो भी आप को बहुत अच्छा लगेगा न?”

गौरा की यह हिमाकत देख पलाश आगबबूला हो गया और गुस्से में गौरा पर फट पड़ा, “मैं जो चाहे करूं, तुम होती कौन हो मुझे आंख दिखाने वाली? मेरा ही खाती है और मुझ पर ही गुर्राती है बदजात? इतनी ही ऊंची नाक है तो चली जा अपनी मां के घर.”

गौरा के पास पति की प्रताड़ना को सहने के अलावा और कोई चारा न था. एक बार को तो उस का मन किया कि वह सबकुछ छोड़छाड़ मां के घर चली जाए, लेकिन वृद्धा विधवा मां जो अपना और एक बेटी का गुजारा बड़ी मुश्किल से कर रही हो वह उसे किस दम पर संभालती? सो बस आंखों में पानी भर उस ने पति के इस तिरस्कार को खून के घूंट पीते हुए सहा, लेकिन उस दिन उस ने जिंदगी में पहली बार अपने आत्मनिर्भर होने की दिशा में सोचा.

उन दोनों का सच : क्या पति के धोखे का बदला ले पाई गौरा – भाग 1

“बिब्बो…बिब्बो…” पलाश ने अपने फ्लैट की साइड की बालकनी से अपनी माशूका बिब्बो के बैडरूम से लगी बालकनी में कूद कर उस के बैडरूम के दरवाजे पर दस्तक दी, लेकिन भीतर से कोई जवाब नहीं आया.

उसे उस के दरवाजे को खटखटाते 5 मिनट हो गए कि तभी पलाश ने देखा बिब्बो के फ्लैट के ठीक सामने ड्यूटी पर तैनात उन की सोसाइटी का गार्ड शायद उस की दस्तक की आवाज सुन कर उसी तरफ चला आ रहा था. उसी की वजह से वह बिब्बो के घर मेन दरवाजे से नहीं घुस पाता था. गार्ड को अपनी ओर आता देख कर पलाश के पसीने छूट गए. वह अपनेआप को उस से छिपाने के उद्देश्य से झट से नीचे बैठ गया.

करीब 5 मिनट बाद उस ने धीमे से उचकते हुए देखा, गार्ड जा चुका था. उस ने चैन की सांस ली. तभी उसे खयाल आया वह बिब्बो को फोन ही कर देता. वह उसे फोन लगा कर धीमे से फुसफुसाया “बिब्बो… दरवाजा खोलो भई. कितनी देर से तुम्हारी बालकनी में खड़ा हूं.”

“सौरी जानू, नहा रही थी.”

“अब दरवाजा तो खोलो.”

“अभी आई.”

तभी दरवाजा खुला और पलाश झपट कर भीतर घुस गया और चैन की सांस लेते हुए बोला, “यह कमीना गार्ड, इतनी सी देर में उस ने यहां के 10 चक्कर लगा लिए. कुछ ज्यादा ही चौकीदारी करता है यह.”

“ओ जानू, क्यों अपसेट हो रहे हो. जाने दो, उस का तो काम ही है चौकीदारी करना. अब वह तो करेगा ही न. चलो अब यह बताओ जरा, आज मैं कैसी लग रही हूं?”

“गजब ढा रही हो जानेमन. तुम तो हमेशा ही बिजली गिराती हो स्वीटू. तभी तो मैं तुम पर फिदा हूं. चलो अब दूरदूर रह कर मुझे टौर्चर मत करो,” यह कहते हुए पलाश ने हाथ बढ़ा कर बिब्बो को अपनी ओर खींच लिया और बांहों में भर उसे बेहताशा चूमने लगा.

करीब घंटे भर तक प्रेम सागर में गोते लगा कर एकदूसरे से तृप्त हो कर दोनों प्रेमियों को समय का भान हुआ तो पलाश बोला, “1 बजने आए. मैं चलता हूं. गौरा आ जाएगी.”

“गौरा कहां गई है?”

“उस की मां बीमार है. उन्हें देखने गई है.”

“अच्छा.”

“तो ठीक है जान, कल मिलते हैं.”

“ओके स्वीटहार्ट, बायबाय”, यह कहते हुए पलाश बालकनी में आया. वह बालकनी की नीची दीवार पर पैर रखते हुए नीचे कूदा, लेकिन न जाने कैसे उस का संतुलन बिगड़ गया और वह पलक झपकते ही अपनी बालकनी में उतरने की बजाय उसके बाहर अपनी सोसाइटी के कैंपस में गिर गया.

उसे यों सोसाइटी के कैंपस में गिरते देख अपनी बालकनी में खड़ी बिब्बो आननफानन में लगभग दौड़ती हुए बदहवास उस के पास पहुंची. पलाश को यों अविचल जमीन पर पड़े देख बिब्बो का कलेजा मुंह में आ गया और उस ने उस का हाथ पकड़ कर हिलाया, “पलाश…पलाश… आंखें खोलो,” लेकिन उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई.

तभी वह दौड़ कर भीतर अपने फ्लैट में गई और एक गिलास में पानी ले आई और उस के चेहरे पर छींटे मारने लगी. 5 मिनट में उसे होश आ गया, लेकिन वह सामान्य नहीं लग रहा था. वह फटीफटी निगाहों से बिब्बो को देख रहा था. उस की शून्य में ताकती दृष्टि से परेशान हो बिब्बो ने उसे झिंझोड़ा और उस से कहा, “पलाश उठो, क्या हुआ? कैसे गिर गए? अपना बैलेंस लूज कर दिया तुम ने,” लेकिन पलाश कुछ नहीं बोला.
इस बार तनिक घबराते हुए उस ने उस के कंधों को थाम उसे उठाने का प्रयास किया, “उठो पलाश, प्लीज उठो. तुम्हें यहां गिरा हुआ देख कर लोग बातें बनाएंगे.”

संयोग से अभी तक पलाश को वहां गिरते हुए किसी ने नहीं देखा था. उस वक्त गार्ड भी अपनी जगह पर नहीं था. उन दोनों को यों साथ देख लेने के खौफ से बिब्बो का घबराहट से बहुत बुरा हाल था. उस ने अपना पूरा दम लगा कर उसे उठाया और अपना सहारा दे उसे उस के फ्लैट में पहुंचा दिया.

पलाश अभी तक सामान्य नहीं था. उसे यों फटीफटी निगाहों से अपने चारों ओर ताकते देख वह बेहद घबरा गई. ‘उसे कोई अंदरूनी चोट तो नहीं लगी’, इस सोच ने उसे बेहद परेशान कर दिया.

वह सोचने लगी, ‘पलाश सामान्य बिहेव नहीं कर रहा. उस के ऊंचाई से गिरने की बात उसकी पत्नी गौरा को बिना बताए नहीं चलने वाला, लेकिन उसे वह कैसे बताए कि वह अपनी बालकनी से उस की बालकनी में कूदने की कोशिश में गिरा. यह तो वह बुरी फंसी.’

घबराहट से उस के होश फाख्ता होने लगे कि तभी पलाश की बालकनी में रखे झाड़न और एक ऊंचे स्टूल को देख कर उस ने सोचा, ‘मैं गौरा से कह दूंगी, पलाश अपनी बालकनी में लगे एसी के ऐक्सटर्नल यूनिट को साफ करने के लिए स्टूल पर चढ़ा था और वह उस से गिर गया. उस समय संयोग से वह भी अपनी बालकनी में थी और वह उस के सामने गिरा था.’

तनिक देर तक सोचविचार कर उस ने सोचा, ‘हां यही बहाना ठीक रहेगा,’ इस खयाल से उस की व्यग्रता तनिक कम हुई और उस ने झट से पलाश से कहा, “पलाश, मैं अभी बिब्बो को फोन करने जा रही हूं. वह तुम से पूछे कि तुम कैसे गिरे तो तुम्हें कहना है कि तुम उस स्टूल पर एसी की यूनिट साफ करने के लिए चढ़े थे और वहां से गिर गए. ठीक है न? प्लीज, यही बहाना बनाना ठीक रहेगा. और कुछ मत कहना. ओके पलाश, तुम मुझे सामान्य नहीं लग रहे. तुम्हें चैकअप के लिए अस्पताल ले ही जाना होगा, कहीं कोई अंदरूनी चोट न आई हो,” उस से यह कहते हुए बिब्बो ने गौरा को फोन कर उसे फौरन घर आने की ताकीद की.

10-15 मिनट में तो गौरा अपनी मां के घर से लौट आई. पलाश को गिरे हुए करीब घंटा बीत चला था, लेकिन वह अभी भी सामान्य नहीं हुआ था. उस की यह हालत देख कर गौरा पलाश को घर के निकट एक अस्पताल ले गई. बिब्बो उस के साथ साथ अस्पताल गई. उस के मन में अपराध भावना थी कि पलाश उस की वजह से दुर्घटनाग्रस्त हुआ. उस आड़े वक्त में बिब्बो उस के साथसाथ रही. वह अपने घर से एक बड़ी रकम अपने साथ ले गई.

पलाश की पत्नी गौरा मात्र बीए पास, सीधीसादी घरेलू किस्म की औरत थी जिस की दुनिया महज घरगृहस्थी, पति, बच्चों तक ही सीमित थी. वह पुरुषों से पूरे आत्मविश्वास से बात न कर पाती. यहां जयपुर में उस का ऐसा कोई रिश्तेदार न था जो इस मुश्किल घड़ी में अस्पताल के मसलों में उस की मदद कर पाता.

गौरा के मायके में मात्र वृद्धा विधवा मां थी जो अपनी किशोरवय की बेटी के साथ रहतीं. वह बड़ी मुश्किल से लोगों के कपड़े सील कर अपना और अपनी बेटी का पेट पालती. उस के ससुराल में भी उस के मात्र वयोवृद्ध ससुर थे, जो जयपुर के पास के एक गांव में अपनी वृद्धा बहन के साथ रहा करते. इसलिए गौरा को दोनों ही पक्षों से किसी तरह के सहारे की कोई उम्मीद न थी .

गुड गर्ल: ससुराल में तान्या के साथ क्या हुआ

Story in Hindi

मियांबीवी राजी : क्यों करें रिश्तेदार दखलअंदाजी

Story in Hindi

काला अतीत: क्या पूरा हुआ देवेन का बदला

Story in hindi

बिजली कहीं गिरी असर कहीं और हुआ: कौन थी खुशबू

family story in hindi

बीती ताहि बिसार दे : देवेश के दिल की

Story in Hindi

बात एक राज की- भाग 4

‘‘पहले घटनास्थल पर जा कर मौके का मुआयना करते हैं. शायद कुछ निकल कर आए. आप तीनों को भी साथ चलना पड़ेगा,’’ थाना इंचार्ज ने कहा.

तीनों पुलिस वालों के साथ फार्महाउस पहुंच गए.

‘‘आप डेडबौडी की स्टडी कीजिए और अपने थौट्स के बारे में मु?ो बताइए,’’ पुलिस अफसर ने फोरैंसिक ऐक्सपर्ट को निर्देश दिए.

‘‘सर, यह सुसाइड का केस है ही नहीं, यह तो सीधेसीधे मर्डर का केस है,’’ अपनी प्रारंभिक जांच के बाद ऐक्सपर्ट ने कहा.

‘‘क्या?’’ सभी आश्चर्य से बोल पड़े.

‘‘आप कैसे कह सकते हैं कि यह मर्डर है?’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

‘‘क्योंकि रिवौल्वर पर जिस प्रैशर से फिंगरप्रिंट बनने चाहिए थे उतने प्रैशर से फिंगरप्रिंट बने नहीं हैं. दूसरा, रिवौल्वर चलने के बाद गन पाउडर का कुछ अंश चलाने वाले की कलाइयों पर आ जाता है जो नहीं है. ऐसा लगता है गहरी नींद में सोते हुए रुधिर पर किसी ने बहुत पास से दिल पर गोली मारी है और आत्महत्या दर्शाने के लिए रिवौल्वर हाथ में पकड़ा दी है. इसी कारण रिवौल्वर पर फिंगर एक्सप्रैशन प्रौपर नहीं आ पाए हैं,’’ एक्सपर्ट ने अपनी राय दी.

‘‘ओह, यह तो केस का डायरैक्शन ही चेंज हो गया. मतलब इस केस के बारे में और किसी को भी मालूम था. और उस ने फिरौती न मिलने की दशा में रुधिर को मार डाला. दूसरा एंगल यह है कि चौकीदार रामू ही रुधिर का कातिल हो सकता है. क्योंकि कायदे से तो सब से पहले सूचना उसी को देनी चाहिए थी मगर वह घटना के बाद से ही फरार है,’’ इंस्पैक्टर ने अपना शक जाहिर करते हुए कहा.

‘‘किंतु सर, रामू अंकल तो अनपढ़ हैं उन्हें तो लैंडलाइन से फोन करना तक नहीं आता. वे गोली इतनी सही नहीं चला सकते,’’ सिंदूरी ने कहा क्योंकि वह 2-3 बार रुधिर के साथ फार्महाउस आ चुकी थी.

‘‘तीसरा एंगल यह बनता है कि तुम तीनों में से ही किसी ने उस की हत्या की हो और पुलिस की जांच को भटकाने के लिए खुद पहले आ कर शिकायत कर दी ताकि तुम पर शक न हो,’’ इंस्पैक्टर तीनों पर पैनी नजर डालता हुआ बोला, ‘‘पुलिस तुम तीनों को अरैस्ट करती है.’’

‘‘सर, हम ने तो कुछ किया ही नहीं. हमें घर जाने दीजिए, प्लीज सर,’’ घबराते हुए लालिमा बोली.

‘‘जांच पूरी होने तक थाने का लौकअप ही तुम्हारा घर रहेगा. कौंस्टेबल, सेठ शांतिलाल को फोन कर के यही बुलवा लो. बता दो उन की रिवौल्वर मिल गई है,’’ इंस्पैक्टर ने आदेश दिया.

‘‘यस सर,’’ कौंस्टेबल बोला.

कुछ ही देर में सेठ शांतिलाल अपनी कार से वहां पहुंच गए.

‘‘कहां है रिवौल्वर और कहां है रुधिर? फार्महाउस में घुसते ही शांतिलाल ने प्रश्न किया.

‘‘बैडरूम में हैं दोनों. आप के लड़के ने उस रिवौल्वर से खुद को गोली मार ली है,’’ पुलिस अफसर ने बताया.

‘‘ओह,’’ शांतिलाल ने अफसोस वाले स्वर में कहा.

‘‘एक बात समझ में नहीं आ रही है शांतिलालजी. इन तीनों बच्चों का कहना है कि इन्होंने रुधिर के साथ मिल कर उस के अपहरण की साजिश रची और जब इन्होंने फिरौती के लिए आप को फोन किया तो आप ने ऐसा कुछ रिस्पौंस नहीं दिया जिस से लगे कि आप को कोई शौक लगा है,’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

‘‘क्योंकि मैं इन के अपहरण प्लान के बारे में पहले से ही जानता था,’’ सेठ शांतिलाल ने रहस्योद्घाटन किया, ‘‘इन लोगों की योजना के अनुसार जब रुधिर पहले दिन गैराज में छिपा, उस समय मैं बंगले की छत पर ही था और मैं ने उसे गैराज में जाते हुए देख लिया था. मैं ने सोचा, शायद कुछ सामान लेने के लिए गया है. परंतु जब वह लंबे समय तक बाहर नहीं आया तो मैं ने अपने ड्राइवर को उस की निगरानी के लिए रख दिया. मैं यह भी जानता था कि रुधिर ने मेरे फर्म के नाम पर कुछ सिमें निकलवाई हैं. मु?ो यह भी पता था कि रुधिर फार्महाउस पर ही छिपा हुआ है. बच्चे हैं, गलतियां कर रहे हैं, आज नहीं तो कल इन लोगों की सम?ा में आ जाएगी. यही सोच कर मैं ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. अगर मैं पुलिस में रिपोर्ट करूंगा तो इन का भविष्य बरबाद हो जाएगा. यही सब सोच कर मैं ने शिकायत नहीं की.’’

‘‘मतलब कल रात को रुधिर घर पर आ गया था?’’ इंस्पैक्टर ने प्रश्न किया.

‘‘जी नहीं, उसे तो पता ही नहीं कि उस का प्लान लीक हो गया था,’’ शांतिलाल ने उसी धारा प्रवाह में उत्तर दिया.

‘‘तो फिर रिवौल्वर आज सुबह बंगले से कैसे गायब हुई? उसे तो कल ही रुधिर के साथ गायब हो जाना चाहिए था,’’ अफसर ने कहा.

‘‘जी, जी वो शायद मैं ने कल ध्यान से कबर्ड देखा नहीं था. शायद वह कल ही अपने साथ ले आया हो,’’ शांतिलाल ने भरपूर आत्मविश्वास के बीच अपनी घबराहट छिपाते हुए कहा.

‘‘आश्चर्य है इतनी बड़ी गलती आप कैसे कर सकते हैं. ऐसी गलती करने पर सरकार आप का लाइसैंस रद्द तक कर सकती है,’’ इंस्पैक्टर ने चेताया.

‘‘मैं ने रिवौल्वर रख कर ही गलती कर दी, साहब. अगर यह रिवौल्वर नहीं होती तो रुधिर आत्महत्या नहीं करता,’’ शांतिलाल अफसोस जाहिर करते हुए बोले.

‘‘सरकार, माईबाप, यह आत्महत्या नहीं हत्या है और सेठजी ने ही रुधिर बाबा की…’’ एक अजनबी घटनास्थल पर प्रवेश करता हुआ बोला.

‘‘तुम कौन हो?’’ इंस्पैक्टर ने कड़क आवाज में पूछा.

‘‘सर, यही हैं यहां के चौकीदार रामू अंकल,’’ रक्ताभ ने बताया.

‘‘कैसे चौकीदार हो तुम? यहां पर इतनी बड़ी घटना हो गई और तुम्हारे पतेठिकाने ही नहीं हैं. जानते हो, इस घटना की सब से पहली सूचना तुम्हें ही पुलिस को देनी चाहिए थी,’’ इंस्पैक्टर रामू को डपटते हुए बोला. ‘‘तुम इतनी आसानी से कैसे कह सकते हो कि खून सेठ शांतिलाल ने ही किया है?’’

‘‘सरकार, मैं ठहरा अनपढ़गंवार. मुझे नहीं पता किसे सूचना देनी चाहिए,’’ रामू मिमियाता हुआ बोला, ‘‘पर आप एक बार मेरी बात ध्यान से सुन लीजिए.’’

‘‘अच्छा, बताओ क्या जानते हो इस घटना के बारे में?’’ इंस्पैक्टर कुछ नरम पड़ कर बोला.

‘‘सरकार, कल सुबह रुधिर बाबा अचानक आ गए. आते ही उन्होंने मुझे चाय बनाने को कहा. मैं किचन में चाय बनाने चला गया. जब मैं वापस लौटा तो उन्होंने मुझे बताया कि वे सेठजी से नाराज हो कर यहां आ गए हैं. लेकिन मैं सेठजी को यह बात किसी कीमत पर न बताऊं कि वे यहां पर हैं. उन्होंने मुझे यह भी बताया कि बाहर से कोई फोन न आ सके, इसलिए उन्होंने फोन खराब कर दिया है. एकदो दिनों में जब सेठजी का गुस्सा शांत होगा तब वे घर वापस चले जाएंगे. शाम को सेठजी का ड्राइवर आया और बोला कि सुबह साढ़े 6 बजे तक आवश्यक सफाई के लिए बंगले पर बुलवाया है. मैं अकसर तीजत्योहार पर बंगले की सफाई करने जाता ही हूं.

‘‘शाम को खाने में रुधिर बाबा ने चिकन बनाने की फरमाइश रखी. इसी कारण खाना बनाने और सफाई करने में काफी देर हो गई. देर से सोने के कारण नींद भी सुबह देर से खुली. जागा, तब तक साढ़े 7 बज चुके थे. रुधिर बाबा अभी सो ही रहे थे. मैं ने सोचा दिशामैदान कर आता हूं, उस के बाद बाबा को चायनाश्ता करवा कर चला जाऊंगा.

‘‘मैं कुछ दूर झाडि़यों में बैठा ही था कि मैं ने देखा सेठजी खुद कार चला कर फार्महाउस आ गए हैं. मैं ने सोचा शायद मुझे लेने आए हैं. लगभग 5 मिनट के बाद मैं ने देखा कि सेठजी वापस जा रहे हैं. मु?ो फार्महाउस में न पा कर शायद सेठजी ने सोचा होगा कि मैं सफाई के लिए पहले ही निकल चुका हूं. मैं जल्दी से फार्महाउस पहुंचा तो देखा कि रुधिर बाबा के सीने में गोली लगी है और हाथ में पिस्तौल है.

‘‘मु?ो कुछ सम?ा में नहीं आया और मैं साइकिल उठा कर सेठजी के घर निकल पड़ा. मैं तकरीबन 11 बजे सेठजी के घर पहुंच गया. लेकिन तब तक सेठजी वहां से निकल पड़े थे. मेरे पूछने पर सेठानीजी ने बताया कि उन की पिस्तौल चोरी हो गई

है और वे इस की सूचना देने के लिए थाने गए हैं.

‘‘तब मैं ने सेठानीजी को फार्महाउस की पूरी घटना की जानकारी दे दी. रुधिर बाबा की मौत की खबर सुन कर वे बेहोश हो गईं. पानी के छींटे डालने और होश में आने पर काफी समझने के बाद वे सामान्य हुईं. उन्होंने ही मुझे पुलिस को सूचित करने को बोला.

‘‘थाने पहुंचने पर पता चला कि आप लोग फार्महाउस पहुंच चुके हैं. साइकिल से लगभग 2 घंटे बाद यहां पहुंच सका हूं,’’ रामू ने अपने बयान में बताया.

‘‘क्यों शांतिलालजी, रामू ठीक कह रहा है?’’ इस के बयानों की तसदीक आप के ड्राइवर से करवाई जाए?’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

‘‘नहीं, रामू सही कह रहा है. मैं ने ही रुधिर की हत्या की है,’’ सेठ शांतिलाल ने अपने जुर्म का इकबाल किया.

वहां खड़े रक्ताभ, लालिमा और सिंदूरी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ कि जो उन्होंने चुना वह ठीक था या नहीं, वे चुपचाप हैरानी से सब देखते रहे.

‘‘तुम ने अपने बेटे का खून क्यों किया?’’ इंस्पैक्टर ने हैरत से पूछा.

‘‘क्योंकि रुधिर मेरा बेटा है ही नहीं,’’ शांतिलाल ने खुलासा किया.

‘‘आप का बेटा नहीं है रुधिर, तो फिर किस का बेटा है?’’ आप को कैसे पता चला रुधिर आप का अपना बेटा नहीं है?’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

‘‘पता नहीं रुधिर किस का बेटा है. सौभाग्यवती से शादी से पूर्व ही मैं जानता था कि मैं सौभाग्यवती को दुनिया का हर सुख दे सकता हूं सिवा मातृत्व सुख के. मैं ने सोचा था अगर सौभाग्यवती अनुरोध करेगी तो किसी वैज्ञानिक पद्धति से या अनाथालय से बच्चा गोद ले कर वह कमी पूरी कर लेंगे. किंतु सौभाग्यवती ने मुझे बताए बिना यह गलत कदम उठा लिया.

‘‘मैं  ने रुधिर को कभी भी अपना खून नहीं समझ, सिर्फ सौभाग्यवती की खुशी की खातिर उसे मैं अपने साथ रखे हुए था. मुझे उस पर कभी भी विश्वास नहीं था. इसी कारण मैं उसे सिर्फ जरूरत के अनुसार ही आवश्यक सुविधाएं दिया करता था. मेरी धारणा थी कि मेरी दौलत पाने के लिए रुधिर किसी भी स्तर पर गिर सकता है. खुद के अपहरण की इस साजिश ने मेरी इस धारणा को और पक्का कर दिया. इसी कारण अपनेआप को भविष्य में सुरक्षित रखने के दृष्टिकोण से मैं ने यह योजना बनाई. काश, मुझे पता चल पाता कि रुधिर का पिता कौन है,’’ सेठ शांतिलाल स्वीकारोक्ति करते हुए बोला.

‘‘मैं हूं उस का पिता,’’ नजरें झांका आगे आ कर रामू बोला. लगभग 20 साल पहले फार्महाउस पर आप की अनुपस्थिति में मैं सेठानीजी के आग्रह को ठुकरा न सका. वह पहला और आखिरी मिलाप था हमारा. आज जब सेठानीजी को फार्महाउस की घटना बतलाई तो उन्होंने यह राज की बात मुझे बताई. एक तरफ नमक का कर्ज था तो दूसरी तरफ पिता होने का फर्ज. आखिरकार पिता ने अपना आखिरी व एकमात्र कर्तव्य पूरा किया.’’

‘‘चलिए, सेठ शांतिलालजी, गुनाहगार का फैसला अदालत ही करेगी,’’ इंस्पैक्टर असली गुनाहगार को अपने साथ ले जाते हुए बोले.

रक्ताभ, लालिमा, सिंदूरी के होंठ जैसे किसी ने सी दिए हों. मन ही मन तीनों अपनी नादानी पर पछता रहे थे जिस की वजह से उन्होंने अपना प्यारा दोस्त हमेशा के लिए खो दिया था.

काला अतीत: क्या पूरा हुआ देवेन का बदला- भाग 4

दार्जिलिंग घूमघूम कर हम इतने थक चुके थे कि मां का घर जन्नत से कम नहीं लग रहा था. सही कहते हैं, भले ही आप फाइवस्टार होटल में रह लो, पर घर जैसा सुख कहीं नहीं मिलता. मां कहने लगीं कि यहीं पास में ही एक नया मौल खुला है तो जा कर घूम आओ. लेकिन बच्चे जाने से मना करने लगे कि उन्हें नानानानी के साथ ही रहना है तो आप दोनों जाओ.

सच में, बड़ा ही भव्य मौल था. फूड कोर्ट और सिनेमाहौल भी था यहां. मैं कब से ‘गंगूबाई’ फिल्म देखने की सोच रही थी. आज मौका मिला तो टिकट ले कर हम दोनों हौल में घुस गए. सोचा, आई हूं, तो मांपापा और बच्चों के लिए थोड़ीबहुत खरीदारी भी कर लेती हूं. अपने लिए भी 2-4 कौटन की कुरती खरीदनी थीं मुझे. गरमी में कौटन के कपड़े आरामदायक होते हैं. सो मैं लेडीज सैक्शन में घुस गई और देवेन पता नहीं किधर क्या देखने में लग गए.

मैं अपने लिए कुरतियां देख ही रही थी कि पीछे से जानीपहचानी आवाज सुन अकचका कर देखा, तो मोहन मुझे घूर रहा था. उसे देखते ही लगा जैसे किसी ने मेरे सीने में जोर का खंजर भोंक दिया हो. एकाएक वह दृश्य मेरी आंखों के सामने नाच गया.

उसे इग्नोर कर मैं झटके से आगे बढ़ने ही लगी कि मेरा रास्ता रोक वह खड़ा हो गया और

बोला, ‘‘अरे सुमन. मैं मोहन. पहचाना नहीं क्या मुझे?’’

‘‘हटो मेरे सामने से,’’ बोलते हुए मेरे होंठ कंपकंपाने लगे.

‘‘अरे, मैं तुम्हारा दोस्त हूं और कहती हो कि हटो मेरे सामने से. चलो न कहीं बैठ कर बातें करते हैं.’’

उस की बात पर मैं ने दूसरी तरफ मुंह

फेर लिया.

‘‘ओह, शायद अभी भी गुस्सा हो मुझ से. वैसे तुम्हारे पति भी साथ आए हैं,’’ मोहन रहस्यमय तरीके से मुसकराया, तो मेरा दिल धक रह गया कि इस नीच इंसान का क्या भरोसा कि देवेन के सामने ही उलटासीधा बकने लगे. इसलिए मैं जल्द से जल्द मौल से बाहर निकल जाना चाहती थी.

‘‘लेकिन वह तो मेरा रास्ता रोक कर खड़ा हो गया. आखिर क्या चाहता है अब यह. क्यों मेरे सूख चुके जख्मों को कुरेदकुरेद कर फिर से लहूलुहान कर देना चाहता है? क्यों मेरी बसीबसाई गृहस्थी को उजाड़ने पर तुला है? देवेन को अगर यह बात पता लग गई कि कभी मेरा बलात्कार हुआ था, तो क्या वे मुझे माफ करेंगे? निकाल नहीं देंगे अपनी जिंदगी से? मैं ने दोनों हाथ जोड़ कर मोहन से विनती कि मुझे जाने दो प्लीज. लेकिन वह तो बदमीजी पर उतर आया और कहने लगा कि मैं ने पाप किया था उस का दिल दुखा कर और उसी की मुझे सजा मिली. मेरी वजह से वह अपने घर में नकारा साबित हुआ. मेरी वजह से उसे चूडि़यों की दुकान पर बैठना पड़ा, जो वह कभी नहीं चाहता था. अपनी हर नाकामी के लिए वह मुझे ही दोषी ठहरा रहा था.

‘‘तुम इसी लायक थे,’’ मैं ने भी गुस्से से बोल दिया, तो वह तिलमिला उठा और कहने लगा कि उस ने मेरा बलात्कार कर के बहुत सही किया. उसी लायक हूं मैं. बड़ी चली थी आईएएस बनने. बन गई आईएएस? वह बलात्कार का दोषी भी मुझे ही ठहरा रहा था, बल्कि उस का कहना था कि दुनिया में जितनी भी लड़कियों का बलात्कार होता है उस के लिए वही दोषी होती हैं. वही मर्दों को बलात्कार के लिए उकसाती हैं. वह देवेन से सारी सचाई बताने की धमकी देने लगा, तो मैं डर गई कि कहीं सच में यह देवेन से जा कर कुछ बोल न दे. एक तो उस ने मेरे साथ गलत किया और ऊपर से मुझे ही धमका रहा था.

‘‘कैसी सचाई? क्या बताने वाले हो तुम मुझे?’’ पीछे से देवेन की आवाज सुन मैं सन्न रह गई कि कहीं उन्होंने हमारी बातें सुन तो नहीं लीं.

‘‘और क्या कह रहे थे तुम अभी कि दुनिया में जितने भी बलात्कार होते हैं उस के लिए महिलाएं ही दोषी होती हैं. वही मर्दों को बलात्कार के लिए उकसाती हैं.’’

देवेन की बात पर पहले तो वह सकपका गया, फिर बेशर्मों की तरह हंसते हुए बोलने ही जा रहा था कि देवेन बीच में ही बोल पड़े, ‘‘लगता है तुम ने सही से पढ़ाईलिखाई नहीं की, अगर की होती, तो पता होता कि रेप केस में औरत नहीं, मर्द सलाखों के पीछे होते हैं,’’ बोल कर देवेन ने मोहन को ऊपर से नीचे तक घूर कर देखा तो वह सहम उठा.

कहीं देवेन ने कुछ सुन तो नहीं लिया. डर के मारे मैं कांप उठी. मुझे डर लग रहा था कि कहीं मोहन कुछ बोल न दे इसलिए देवेन का हाथ पकड़ते हुए मैं बाहर निकल आई. लेकिन देवेन के चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा था.

‘‘अफसोस होता है कहते हुए कि बलात्कार एक ऐसा अपराध है जिस में अपराधी तो पुरुष होता है, लेकिन अपराधबोध का दंश उम्र भर महिलाओं को झेलना पड़ता है. आखिर क्यों? समाज में बदनामी के डर से महिलाएं चुप लगा जाती हैं. क्यों नहीं आवाज उठातीं ताकि बलात्कारियों को उन की करनी की सजा मिल सके? क्यों उन्हें आजाद घूमने के लिए छोड़ दिया जाता है और महिलाएं खुद घुटघुट कर जीने को मजबूर होती हैं? बोलो सुमन, जवाब दो?’’

मेरा तो पूरा शरीर थर्रा उठा कि देवेन को आज क्या हो गया.

‘‘तुम्हें क्या लगता है मुझे कुछ नहीं पता? सब पता है मुझे. शादी के 1 दिन पहले ही तुम्हारे पापा ने मुझे सबकुछ बता दिया था. लेकिन दुख होता है कि तुम ने मुझे अपना नहीं समझा. क्या यही भरोसा था तुम्हारा मुझ पर? हम सुखदुख के साथी हैं सुमन,’’ कह मेरा हाथ अपने हाथों के बीच दबाते हुए देवेन भावुक हो उठे, ‘‘शादी के वक्त हम ने वादा किया था एकदूसरे से कि हम कभी एकदूसरे से कुछ नहीं छिपाएंगे. फिर भी तुम ने मुझे कुछ नहीं बताया और खुद ही अकेली इस दर्द से लड़ती रही क्योंकि तुम्हें लगा मैं तुम्हें छोड़ दूंगा या तुम्हें ही दोषी मानूंगा. ऐसा कैसे सोच लिया तुम ने सुमन?

‘‘पवित्रता और निष्ठा तो मन में होती है, जननांगों में नहीं, इसलिए यह मत सोचो कि वह तुम्हारा काला अतीत था,’’ मुझे अपनी बांहों में भरते हुए देवेन बोले तो मैं उन के सीने से लग सिसका पड़ी. आज मेरे मन का सारा गुब्बार आंखों के रास्ते निकल गया. मेरे मन में जो एक डर था कि कहीं किसी रोज देवेन को मेरे काले अतीत का पता चल गया तो क्या होगा, वह डर आज काफूर हो चुका था.

‘‘लेकिन अब मैं उस मोहन को उस की करनी की सजा दिलवाना चाहती हूं,’’ मैं ने कहा.

‘‘हां, बिलकुल और इस में मैं तुम्हारे साथ हूं,’’ देवेन बोले.

‘‘लेकिन कैसे क्योंकि मेरे पास उस के खिलाफ कोई सुबूत नहीं है?’’

मेरी बात पर देवेन हंस पड़े और बोले कि है न, क्यों नहीं है. यह सुनो. इस से ज्यादा

और क्या सुबूत चाहिए तुम्हें?’’ कह कर देवेन ने अपना मोबाइल औन कर दिया.

मोहन ने खुद अपने मुंह से अपना सारा गुनाह कुबुल किया था. उस ने जोजो मेरे साथ किया वह सब बक चुका था और सारी बातें देवेन के मोबाइल में रिकौर्ड हो चुकी थीं. जब देवेन ने मोहन और मुझे बात करते देखा, तो छिप कर वहीं खड़े हो गए और हमारी सारी बातें अपने फोन में रिकौर्ड कर लीं.

देवेन का हाथ अपने हाथों में लेते हुए मैं ने एक गहरी सांस ली और खुद से ही कहा कि मुझे अब न तो समाज की परवाह है और न ही लोगों की कि वे क्या सोचेंगे क्योंकि अब मेरा पति मेरे साथ खड़ा है. यू वेट ऐंड वाच अब तुम अपना काला अतीत याद कर के रोओगे मोहन.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें