बेइमानी के काम करने वाले अक्सर इतने ज्यादा अपराधी आदतों के शिकार हो जाते हैं कि हत्या करने तक चूकते नहीं है और उन में से कुछ तो कानून के हत्थे चढ़ ही जाते है. फाइनैंस कंपनियों का काम इस देश में पूरी तरह बेइमानी का काम है. जो पैसा लगा कर मोटा ब्याज देने का वादा करते हैं वे आमतौर पर गुंडे किस्म के लोग होते हैं और जमा पैसे को हड़पना आम है. देश भर में लाखों लोग ऐसी कंपनियों में खरबों खो चुके हैं और नईनई कंपनियां खुल रही हैं, नएनए बेवकूफ मेहनत की या बेइमानी की कमाई उन में लगा रहे हैं.
इन को चलाने वाले चूंकि धोखा देना जानते हैं, ये अपनी बीवियों या प्रेमिकाओं से भी बेइमानी करते हुए हिचकते नहीं है. बेइमानी इन के खून का हिस्सा बन जाती हैं. दिल्ली के एक घने इलाके में ङ्क्षसह एंड ब्रादर्स फाइनेंशियल कंपनी के मालिक अनुज को गिरफ्तार किया गया क्योंकि उस ने अपनी प्रेमिका की हत्या कराई जो शादी के लिए दबाव डाल रही थी जबकि अनुज पहले से शादीशुदा था.
इन का मतलब है लोगों से फाइनैंस कंपनी के नाम पर पैसा जमा करने वाला अपनी बीबी से भी बेईमानी कर रहा था और प्रेमिका से भी. प्रेमिका चूंकि उसी दफ्तर में काम करती थी उसे यह मालूम होगा ही कि अनुज शादीशुदा है पर वह पत्नी से पति छीन लेना चाहती थी, बेइमानी से.
जो धंधे टिके ही बेइमानी पर होते हैं उन में सभी बेइमान होते हैं और ‘शोले’ के गब्बर ङ्क्षसह की तरह कब बौस का निशाना बन जाएं कहां नहीं जा सकता. ये फाइनैंस कंपनियां वालें सुंदर सौम्य मीठी बातें करने वाले लड़कियां रखने है ताकि ग्राहकों को फंसाया जा सके. अब ये लड़कियां बौस को फंसा लें. या बौस इन्हें फंसा ले तो कोई आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि इन की पूरी ट्रेङ्क्षनग ग्राहक को फंसा कर पैसा जमा करने की होती है. जो किसी से पैसा लेना जानता या जानती है उसे किसी का जीवन साथी या किसी का दिल लूटना भी आता है.
बहुत से अपराध इसी तरह से होते हैं. कई सैक्सुअल हैरेसमैंट केसों के पीछे यही लूटन की खून में भरी आदत हो जाती है.भारतीय जनता पार्टी की एक संस्थान स्पोक्सपर्सन सोनाली फोगाट की हत्या का शक भी इसी गिनती में आ सकता है. वह अपने बौयफ्रैंड्स के साथ गोल के किसी पब में गई थी जहां शायद उसे ड्रिंक में कुछ पिलाया गया जिस से उस की मृत्यु हो गई. राजनीति में लगे लोगों के पास इतने पैसे, इतना समय आखिर आता कैसे है कि वे गोवा में सैरसपाटे कर सकें. राजनीति और वह भी भारतीय जनता पार्टी की तो साफसुथरी है. वहां तो कंदमूल खा कर जीने का उपदेश दिया जाता है.
सोनाली फोगाट की हत्या भी उसी वजह से होना मुमकिन है क्योंकि जो उस के साथ गए थे कोई सगेसंबंधी नहीं थे. अब वे सब गिरफ्तार कर लिए गए हैं.
शराफत कोई खास गुण नहीं है. यह अपने बचाव का कवच है. दूसरों को न लूटने का मतलब है खुद के लूटे न जाने देना. यह हर शरीफ समझ जाता है कि मजबूत होने के बाद भी कैसे शरीफ बना रहा जाए.
नेहा पहली बार लखनऊ के भूतनाथ मंदिर गई थी. उस की एक रिश्तेदार भी साथ थी. जब वह मंदिर से वापस आई, तो देखा कि उस की नई चप्पलें गायब थीं. नेहा भी जैसे को तैसा के जवाब में वहां रखी किसी और की चप्पलें पहन कर घर चली आई. घर आ कर नेहा ने यह घटना अपने परिवार वालों को बताई, तो उन्होंने उस से कहा कि जब तुम भी वही गलती कर आई, तो तुम में और दूसरे में क्या फर्क रह गया?
यह सुन कर नेहा को बहुत बुरा लगा. वह वापस मंदिर गई और वहां से लाई चप्पलें वापस रख दीं, पर उसे अपनी चप्पलें नहीं मिलीं.
दीपाली वाराणसी के मशहूर काशी विश्वनाथ मंदिर गई थी. उस के साथ 4 साल की बेटी और कुछ रिश्तेदार भी थे. उस ने एक दुकान से प्रसाद लिया और वहीं दुकान के पास ही अपनी चप्पलें उतार दीं. दीपाली का एक रिश्तेदार वहीं रुक गया.
जब दीपाली अपने परिवार के साथ वापस आई, तो उस की बेटी की नई चप्पलें गायब थीं. न तो दीपाली के रिश्तेदार को और न ही दुकानदार को चप्पलें चोरी होने की भनक लग सकी.
दीपाली की बेटी का रोरो कर बुरा हाल था. जब तक उसे नई चप्पलें नहीं दिलाई गईं, तब तक वह चुप नहीं हुई.
सुनीता लखनऊ के मनकामेश्वर मंदिर गई. मंदिर में जाने के पहले उस ने एक जगह पर चप्पलें उतार कर रख दीं. चप्पलें चोरी न हों, इस के लिए सुनीता ने पूरी सावधानी बरती थी. उस ने सब से किनारे अपनी चप्पलें रखी थीं.
जब सुनीता लौट कर आई, तो देखा कि एक औरत उस के जैसी चप्पलें पहन कर जा रही थी. उस ने सोचा कि एकजैसी कई चप्पलें होती हैं.
जब सुनीता अपनी चप्पलों के पास गई और वहां उस को गायब पाया, तो वह समझ गई कि उस की आंख के नीचे से ही चप्पलें गायब हो गई हैं. सुनीता के मन में यह खयाल आया कि भगवान के दर्शन करने आए थे, पर चप्पलें गुम हो गईं.
माया दिल्ली के एक दुर्गा मंदिर में दर्शन करने गई. नवरात्र का समय था. मंदिर में काफी भीड़ थी. दर्शन के लिए अंदर जाने से पहले उस ने अपनी चप्पलें एक जगह पर रख दीं. मंदिर वालों ने चप्पल रखने के लिए एक जगह बना रखी थी.
जब माया दर्शन कर के वापस आई, तो उस की चप्पलें गायब थीं. माया को बहुत बुरा लगा. वह नंगे पैर ही घर वापस आई.
जिया और उस की एक सहेली गीता शादी के पहले मंदिर दर्शन करने के लिए जाती थीं. एक दिन गीता की चप्पलें चोरी हो गईं. वह रोने लगी. रोतेरोते वह घर आई, तो उस के परिवार वालों ने कहा कि कोई बात नहीं. जिस की चप्पलें मंदिर में चोरी हो जाती हैं, भगवान उस के हर दुख को दूर करते हैं. पर यह बात गीता के पल्ले नहीं पड़ी.
योगिता कहती है कि वह कई बार मातारानी के मंदिर जाती थी. एक बार
5 मिनट के अंदर ही उस की चप्पलें गायब हो गईं. वे उस की मनपसंद चप्पलें थीं.
चेतना बताती है कि वह शिरड़ी के मंदिर गई थी. वहां उस की चप्पलें चोरी हो गई थीं.
रेनू कहती है कि वह एक बार गुरुद्वारे में लंगर खाने गई थी. बच्चे भी साथ में थे. बच्चों की नई चप्पलें निकाल कर बाहर रख दी थीं.
लंगर खा कर जब वे बाहर निकले, तो चप्पलें गायब थीं. तब से अब किसी मंदिर में जाओ,तो चप्पलों की हिफाजत में ही ध्यान लगा रहता है.
ये घटनाएं मनगढ़ंत नहीं हैं. इन में एक सामान्य सी बात यह देखने में आई कि मंदिर छोटा हो या बड़ा, चप्पल चोरी की घटनाएं हर मंदिर में होती हैं.
यही वजह है कि लोग जब मंदिर जाते हैं, तो पुरानी चप्पलें पहन कर जाते हैं. अगर चप्पलजूते नए होते हैं, तो सब से ज्यादा उन की हिफाजत की चिंता रहती है. कई बार तो लोग उन्हें कार या किसी सुरक्षित जगह रख कर जाते हैं.
यह बात केवल मंदिरों की ही नहीं है, बल्कि शोकसभाओं, गुरुद्वारों में भी चप्पलें चोरी होती हैं. जहां लोग सुख के लालच में जाते हैं, वहां दरवाजे पर ही दुख मिलता है. धर्म के समर्थक इस बात को ऐसे देखते हैं कि चप्पलजूते चोरी होने से उन के दुखदर्द दूर हो जाते हैं. वैसे, इस तरह की चोरी से एक बात साफ हो गई कि नैतिकता पूजापाठ से नहीं आती है.
मंदिरों में केवल जूतेचप्पल ही चोरी होते हों, ऐसी बात नहीं है. वहां पर पौकेटमारी और चेन स्नैचिंग जैसी घटनाएं भी खूब होती हैं.
तमाम मंदिरों में यह लिखा होता है कि यहां चोरउचक्कों से सावधान रहें. पौकेटमारी से बचने के लिए लोग मंदिरों में पर्स ले कर नहीं आते. वे चढ़ावे के लिए पैसा अलग जेब में रख कर आते हैं.
कई मंदिरों में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए यह नियम बना दिया गया कि चमडे़ से बना सामान जैसे पर्स, बैल्ट वगैरह को ले कर मंदिर न आएं. मंदिर वालों को लगता है कि पर्स चोरी की घटनाओं को रोकने का यह सब से अच्छा तरीका है.
समझने वाली बात यह है कि मंदिरों में लोग शांति और अपनी मुरादें पाने के लिए जाते हैं. जब मंदिर में ही ऐसी घटनाएं घटने लगेंगी, तो वहां जाने का क्या फायदा? केवल वे लोग ही मंदिर नहीं जाते, जिन के जूतेचप्पल चोरी होते हैं. वे लोग भी मंदिर जाते हैं, जो चोरी करते हैं.
मंदिरों में केवल बडे़ लोगों के जूतेचप्पल ही चोरी नहीं होते, बल्कि बच्चों के भी जूतेचप्पल चोरी होते हैं. कुछ गिरोह इसी काम के लिए सक्रिय रहते हैं.
ऐसे में मंदिरों में अपराध की घटनाएं बताती हैं कि लोग जिस सुखशांति की तलाश में मंदिरों में जाते हैं, वह उन को वहां भी नहीं मिलती. पूजा से ज्यादा उन का ध्यान बाहर रखे जूतेचप्पलों में लगा रहता है. दूसरी तरफ चोरों का भी ध्यान इस में लगा रहता है कि वे कब अपने हाथ का कमाल दिखाएं.
‘सबरंगी’ समाज और धर्म के ठेकेदार बन कर अराजक व निठल्ले लोगों के समूह पंचायत कर के कई बार प्यार करने वालों को शर्मसार करने वाली मनमानी सजाएं देते हैं. न कानून, न कानून के पहरेदार, न अदालत और हो जाता है कबिलाई फैसला. इस से सामाजिक और मानसिक दर्द के साथ ही जिल्लत उठानी पड़ती है. बात ऊंचनीच की हो तो हालत और भी चिंताजनक हो जाती है. पंचायतों की शर्मनाक करतूतें सभ्य समाज को कलंकित करती हैं और कानून व न्याय व्यवस्था को चिढ़ाती नजर आती हैं. प्यार का पंछी बंदिशों से आजाद होता है,
लेकिन समाज के ठेकेदार न तो उस की उड़ान पसंद करते हैं और न ही उस की आजादी. अगर कोई यह चूक कर दे, तो उसे सजा दी जाती है. अराजक व निठल्ले लोगों की पंचायतें बैठ जाती हैं और वे ऐसा करने वालों के हक में तालीबानी सजाएं मुकर्रर करती हैं. मामला किसी दलित से जुड़ा हो, तो उस की मुसीबत में कई गुना इजाफा हो जाता है. घर, समाज, परिवार, जाति, धर्म, इज्जत, बेइज्जती के नाम पर वह सब घटित हो जाता है, जो सभ्य समाज को कलंकित करने वाला होता है. कभी खाप, तो कभी गांवकसबों की पंचायतों में मनमाने फैसले कर के सजाएं दी जाती हैं. कुछ इस अंदाज में कि न कानून, न कानून के पहरेदार, न कोर्ट, न कोई दलील,
सिर्फ चंद लोगों का समूह और उन का थोपा गया जिल्लत देने वाला फरमान. असभ्यता को आईना दिखाया जाता है. इतना ही नहीं, कानून का नकारापन भी लोगों को सामाजिक व मानसिक दर्द सहने को मजबूर करता है. 21वीं सदी में कानून का जिस तरह से मजाक बनाया जाता है, उस पर अमल करना पीडि़तों की मजबूरी हो जाता है, क्योंकि हर तरफ उन्हें मायूसी का घना बादल नजर आता है. इस बीच कुछ अराजक लोगों ने प्रेमी जोड़े का मुंह काला करने के लिए काला तेल फेंक दिया. बात यहीं खत्म नहीं हुई. दोनों को पीटा भी गया. इस के बाद तथाकथित पंचों ने फैसला सुनाया. उन्होंने प्रेमी जोड़े को 4 महीने के लिए गांव से निकाल दिया. इस के बाद ही वे पतिपत्नी की तरह रह सकते थे. गांव, समाज, बिरादरी की बदनामी के कलंक के दाग के साथ उन्हें अलगअलग भेज दिया गया.
पंचायत ने यह भी तय किया कि अगर कोई अब पुलिस के दरवाजे पर गया, तो उस का सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाएगा. सभ्य समाज पर कालिख पोतने वाला फरमान प्रेमी जोड़े पर लागू हुआ. प्यार करने की कीमत उन्हें जिल्लत और मानसिक दर्द के साथ चुकानी पड़ी थी. न यहां कानून काम आया और न कानून के पहरेदार. सिरफिरे सामाजिक ठेकेदारों की करतूत को सामने लाने वाला यह कोई अकेला मामला नहीं था. उत्तर प्रदेश का ही मुजफ्फरनगर कसबा प्रेमी जोड़े को सजा देने के मामले में लंबे अरसे से बदनाम है. चारथावल क्षेत्र के एक गांव में एक जोड़े में प्यार हुआ, तो इन दोनों ने निकाह कर लिया. लड़की के घर वालों को यह बात अखर गई. उन के साथ गांव के लोग भी मिल गए और इसे पूरे गांव की इज्जत से जोड़ दिया गया. इस फरमान से डर कर प्रेमी जोड़ा घर से भाग गया. इस के बाद पंचायत हुई, जिस में लड़के के मातापिता को बुलाया गया.
पंचायत के फरमान के बाद सरेआम लड़के के पिता को 10 व मां को 5 जूते मारे गए. उन पर 25,000 रुपए का जुर्माना भी थोप दिया गया और गांव छोड़ने को कहा गया. साथ ही, यह भी ऐलान किया गया कि प्रेमी जोड़े को देखते ही कत्ल कर दिया जाए. बात ऊंचनीच और दलितों की हो, तो मुसीबत और भी बढ़ जाती है. दबंगों का पारा चढ़ जाता है और वे सबक सिखाने पर उतर आते हैं. यह उनकी वे कुंठाएं होती हैं, जो दिमाग के कोने में दलितों को देख कर कुलबुलाती रहती हैं. बागपत जिले का एक मामला कम चौंकाने वाला नहीं है. दरअसल, एक लड़के का जाट समुदाय की एक लड़की से प्यार हो गया. लड़का दलित था. लिहाजा, दबंगों का पारा चढ़ गया.
उन्होंने लड़की की जबरन शादी कर दी, लेकिन एक महीने बाद ही वह मायके आई और वह लड़के के साथ फरार हो गई. दोनों ने शादी कर ली. बाद में दोनों को बरामद कर लिया गया. पुलिस ने लड़के पर दूसरा केस बना कर जेल भेज दिया. इस के बाद दलित परिवार की जान पर बन आई. दबंगों के समूह ने फरमान जारी कर दिया कि ऊंची जाति की लड़की भगाने वाले लड़के की दोनों बहनों के साथ रेप कर के उन्हें गांव में नंगा घुमाया जाए. लड़के की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई. अफसरों को नोटिस जारी किए गए, तो हड़कंप मच गया. गांव के बिगड़े हालात को किसी तरह संभाला गया. जाति और समाज के ठेकेदारों की दबंगई लड़का और लड़की को शायद ही कभी एक होने दे. हरियाणा के यमुनानगर में एक लड़की ने दलित लड़के से प्यार किया और घर से भाग कर शादी कर ली.
इस के बाद पंचायत हुई और तुगलकी फरमान जारी हुआ कि दोनों जहां भी मिलें, उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाए. ऐसे मामले भी होते हैं, जिन का बातचीत के जरीए हल निकाला जा सकता है. समस्या को सुल?ाया जा सकता है, लेकिन ऐसा करने में समाज के ठेकेदारों की हुकूमत और कुंठा दोनों प्रभावित होती हैं, इसलिए तरहतरह की बातें करने के साथ ही तुगलकी फैसले किए जाते हैं. मामले को धार्मिक, बदनामी, जातियों जैसे मोड़ देने में उन्हें हुनर हासिल होता है. बुलंदशहर जिले के बुगरासी इलाके के एक नेत्रहीन अब्दुल कदीर की भतीजी ने अपने शौहर को तलाक देने के बाद गैरधर्म के एक लड़के से शादी कर ली. इस से धर्म के ठेकेदार भड़क गए. उन के डर से वह जोड़ा गांव छोड़ कर भाग गया. दूसरों के घरों की इज्जत संभालने का ठेका लेने वालों को यह बात और भी बुरी लगी. सबक सिखाने के लिए उन्होंने पंचायत बुला ली. पंचायत ने अब्दुल कदीर को हाजिर करने का हुक्म दिया, तो कुछ लोग उसे खींच कर पंचायत में ले गए. पंचायत में शामिल लोगों ने भतीजी के दूसरे समुदाय के लड़के के साथ जाने पर उसे जम कर बेइज्जत किया और गालियों से नवाजा.
इतना ही नहीं, उस का सामाजिक बहिष्कार करने का फरमान सुना दिया गया. गांवों में ऐसे निठल्लों की जमात भी होती है, जिन का काम नजर रखना होता है कि किस का चक्कर कहां चल रहा है. उन की असल पीड़ा और कुंठा यह होती है कि लड़की उन्हें लिफ्ट नहीं देती. वे धीरेधीरे खिलाफत का माहौल बनाते हैं, अच्छे मौके की तलाश में रहते हैं और एक दिन वह सब बड़े बवाल की वजह बन जाता है. छोटीछोटी बातों पर होने वाले बैर के चलते भी चटकारे ले कर प्यार के किस्से बयां किए जाते हैं कि किस की लड़की गांव और समाज की नाक कटवा रही है. हापुड़ जनपद में एक लड़का और एक लड़की के बीच प्यार हुआ और दोनों ने कोर्ट में शादी कर ली. इस की खबर लोगों को हुई, तो समाज के अराजक लोग तुरंत सक्रिय हो गए. बदनामी का वास्ता दे कर पंचायत बैठ गई. पंच बने लोगों ने उन दोनों को गोली से उड़ाने तक का फरमान जारी कर दिया. इस से जोड़ा दहशत में आ गया और थाने पहुंच कर सुरक्षा की गुहार लगाई.
वे दोनों बालिग थे, लेकिन समाज के डर से उन्हें अपने घर छोड़ने पड़ गए. पंचायतों में ही नहीं, यह गलत सोच घरों में भी पनपती रही है. हैदराबाद शहर में जहां पंचायतों की नहीं, कानून की चलनी चाहिए. 24 साल के नीरज कुमार पंवार को मई, 2022 में बेगम बाजार में अपनी दुकान के पास पत्नी के घर वालों द्वारा मार डाला गया. उस की पत्नी और 3 महीने के बच्चे का अब क्या होगा, यह भी पत्नी के घर वालों ने नहीं सोचा. ये लोग उत्तर भारत के गांवों से अपनी सोच ले कर हैदराबाद तक में कांड करने को तैयार हैं. ये ही खाप पंचायतों को असल में बल देते हैं. राजस्थान के बांसवाड़ा के अरथूना थाना क्षेत्र के डोबापाड़ा गांव में इनसानियत को शर्मसार करने वाला मामला सामने आया.
प्रेम प्रसंग में एक छात्रा अपने प्रेमी के साथ गांव से चली गई. लड़की के पिता गांव के सरपंच रह चुके थे. लिहाजा, इज्जत का वास्ता दे कर सभी का खून खौल गया. परिवार वाले उन की खोजबीन में लगे थे. उन के दूसरे प्रदेश गुजरात के अहमदाबाद में रहने की बात पता चली, तो वे दोनों को पकड़ कर ले आए. इस के बाद उन के साथ क्रूरता का बरताव शुरू हुआ. दोनों को सरेआम रस्सी के सहारे एक पेड़ से बांध दिया गया और उन के साथ मारपीट की गई. बाद में मौके पर पहुंची पुलिस ने दोनों को छुड़ाया. बिहार के गया जिले में तो समाज के ठेकेदार इनसानियत की हदों को लांघ गए. वजीरगंज थाना क्षेत्र के अमेठा गांव में एक प्रेमी जोड़ा गांव से भाग गया. बाद में दोनों पकड़े गए, तो पंचायत हो गई. पंचायत में पहले दोनों को लाठीडंडों से पीटा गया. जब दोनों बेसुध हो गए, तो उन्हें चिता पर रख कर आग के हवाले कर दिया गया. पुलिस ने इस मामले में 15 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर के कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया. सब से बड़ा सवाल यही था कि चंद लोगों को इस फैसले का अधिकार किस ने दिया?
उन्हें कानून का डर क्यों नहीं था? मेरठ के एक मामले में एक लड़के को प्रेमिका से दूर रहने की हिदायत दी गई. जब वह नहीं माना, तो पंचायत हुई. पंचायत में उस नौजवान को 6 महीने गंजा रहनेकी मनमानी सजा सुना दी. मुजफ्फरनगर की साधना और नूरसलीम ने प्रेम विवाह किया, लेकिन अब सुरक्षा के लिए पुलिस के चक्कर काट रहे हैं, क्योंकि पंचायत उन्हें मारने का फरमान सुना चुकी है. उदयपुर जिले में भरी पंचायत में प्रेमी जोड़े को मुरगा बना कर मनमानी सजा दी गई. इज्जत व सामाजिक व्यवस्था के नाम पर वह सब होता है, जिस की सभ्य समाज में इजाजत नहीं दी जा सकती. उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान,
बिहार व मध्य प्रदेश जैसे इलाकों में पंचायतें सभ्य समाज को कलंकित कर के तरहतरह की सजाएं देती हैं. जो सजा दी जाती है, उस पर अमल जरूरी होता है. अगर कोई नहीं करता, तो उसे डंडे के बलबूते कराया जाता है. पीडि़त कानून की चौखट पर जाने से कतराते हैं, क्योंकि उन्हें उसी समाज और लोगों के बीच रहना होता है. फिर इस बात की कोई गारंटी और सुरक्षा नहीं होती कि भविष्य में उस के साथ बुरा बरताव नहीं होगा. ज्यादातर मामलों में तो कानून के पहरेदार तमाशा ही देखते हैं. बात जब हद से बढ़ जाए, तो जरूरत भर की सक्रियता आती है और फैसले की वकालत पुरजोर ढंग से की जाती है. ऐसा नहीं है कि देश का संविधान इस तरह की हरकतों को नजरअंदाज करता हो.
साल 2017 के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि शादी का फैसला करने का हक हर नागरिक का अपना है और अनुच्छेद 21 भी यह साफ करता है कि राज्य सरकार, पुलिस, खाप किसी लड़केलड़की की शादी के मामले में रोकटोक रखने पर आमतौर पर यह सब कांड तो पहले हो जाता है और मामला सुर्खियों में आए, उस से पहले ही सबकुछ हो चुका होता है. आजकल सरकार खापों पर मेहरबान है, क्योंकि ये खाप ही गांवों में वर्ग व्यवस्था को और मंदिरमसजिद की राजनीति को लागू करने में मदद कर रही हैं. द्य हरियाणा सरकार की ‘चिराग योजना’ सरकारी स्कूलों को खत्म करने की साजिश हरियाणा में एमबीबीएस की फीस पहले हर साल 53,000 रुपए हुआ करती थी,
जो साल 2020 में बढ़ा कर हर साल 10 लाख रुपए कर दी गई. 40-50 लाख रुपए में वे नौजवान डाक्टर बन सकते हैं, जिन्होंने नीट टौप किया हो और सरकारी मैडिकल कालेज मिला हो. जब यूक्रेन संकट शुरू हुआ, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सवाल किया था कि इतने नौजवान बाहर पढ़ने क्यों जाते हैं? इस का सीधा सा जवाब मनोहर सरकार द्वारा बढ़ाई गई एमबीबीएस की फीस में है. जब 25 लाख रुपए में कुल खर्चे मिला कर बाहर से एमबीबीएस हो रही है, तो यहां ज्यादा फीस भरने से कौन खुश होगा? अब हरियाणा सरकार स्कूली शिक्षा के लिए नई नीति लाई है, जिस का नाम ‘चिराग योजना’ रखा है. सरकारी स्कूल में बच्चा दाखिला लेगा, तो 500 रुपए वसूल करेगी व प्राइवेट स्कूल में दाखिला लेगा, तो 1,100 रुपए तक फीस सरकार भरेगी. बाकी की फीस मांबाप को भरनी होगी. यह सरकारी स्कूलों को खत्म करने की साजिश है. जब सरकारी स्कूल बरबाद हो जाएंगे,
उस के बाद निजी स्कूलों का असली खेल शुरू होगा. जब तक जनता को यह गड़बड़झाला समझ में आएगा, तब तक ये सरकारी स्कूल बेच चुके होंगे. जिस तरह ऊंची शिक्षा के लिए अभी बच्चे विदेश जा रहे हैं, बाद में स्कूली शिक्षा के लिए भी भेजना पड़ेगा. अमीर लोग तो यहां की महंगी फीस भर लेंगे, जो थोड़े कम अमीर होंगे वे दूसरे रास्ते ढूंढ़ लेंगे, लेकिन बहुसंख्यक गरीब आबादी के बच्चों का क्या होगा, यह सोच कर ही भविष्य के भारत में फैलते जा रहे अंधेरे से डर लगने लगता है.
सावन की सुबह थी. हलकीहलकी बूंदाबांदी धरती को गीला कर रही थी. बागों में खिले फूलों को छू कर निकली महक भरी हवा दिल के कोनेकोने में टीस सी उठा देती. जवान लड़कियां झूलों पर मतवाली नागिनों की तरह लिपटी हुई थीं. ऐसे समय में मेरे दिमाग में बीते समय की याद किसी किताब के पन्ने की तरह फड़फड़ाने लगी. आंखों में बीते कल के दृश्य झिलमिलाने लगे. क्या चाहने वाले मंजिल तक पहुंच पाते हैं? शायद ऐसा तो कभीकभी ही होता होगा, क्योंकि ज्यादातर प्रेमी प्रेम कर के अपने साथी को पूरी जिंदगी तिलतिल कर मरने के लिए छोड़ जाते हैं.
ऐसे में कुछ लोग जहां बिछुड़न की आग में जल कर अपने जीवन को ही खत्म कर देते हैं, तो कुछ लोग समय से समझौता कर लेते हैं. अकसर प्यार की मंजिल अधूरी क्यों होती है? प्रेम के बंधन में बांध कर कोई पहले तो सहारा देता है, फिर तूफानी थपेड़ों में क्यों छोड़ जाता है? ठीक ऐसा ही किया था मेरी नीलम ने. हम लोगों ने खूब चैटिंग की, खूब रातें साथ बिताईं. प्रेम से पहले उस ने मुझे सहारा दिया, पर 2 साल बाद ही वह मेरा साथ छोड़ कर भाग गई. क्या उस ने मुझे धोखा दिया? क्या वह बेवफा थी? बेवफाई लड़कियां करती हैं, सजा लड़कों को भुगतनी पड़ती है. उस के बाद मैं बड़े डिप्रैशन में रहा था. आज का प्यार नकली है. मैं ने तो नीलम से मुहब्बत की और उस के साथ शादी कर बच्चे करने का वादा किया, मगर वह तो बेवफा निकली.
वह छलिया मुझे छोड़ क्यों गई? एक के बाद एक 6 साल मैं ने अकेले काट दिए, पर मैं नीलम को नहीं खोज पाया. फेसबुक खंगाला. टिकटौक देखा. इंस्टाग्राम देखा. कुछ भी तो पता नहीं था उस का. दुनिया की भीड़ में वह न जाने कहां खो गई. आज फिर सर्दियों की रात थी. चांद को बादलों में छिपतानिकलता देख कर नीलम की याद आई. हम एकदूसरे की बांहों में खोए रहते थे. आज मैं अपने गम के सागर में डूब रहा था, तभी कविता ने आ कर मुझे उबार लिया. कविता सीधीसादी लड़की है. अभी हिंदी में एमए कर रही है. मैं जानता हूं कि भीतर ही भीतर वह मुझ से प्रेम करती है, पर आज तक इसलिए नहीं कह पाई कि मैं नीलम के ब्रेकअप से निकल नहीं पाया हूं. कविता ने आते ही मुझे झिंझोड़ कर प्यार से पूछा, ‘‘क्या बात है राजन डियर, कहां खोए हुए हो?’’
‘‘मैं तो बहुत पहले ही खो गया था कविता. अब खोने के लिए रहा ही क्या है?’’ मैं ने कविता को कविता में ही जवाब दिया. ‘‘जनाब, तुम अब तक उसे नहीं भूल पाए हो, हैरानी है, सब जानते हुए भी,’’ कविता ने मुझ से कहा. ‘‘प्यार अगर भुला दिया जाए, तो उसे प्यार नहीं कहा जाता. प्यार न भूलने का ही तो एक नाम है.’’ ‘‘मैं अभी मां पर बोझ बना हुआ हूं. वे एक अस्पताल में हैड नर्स हैं. उन्होंने मुझे पढ़ाया है. पर जब नीलम याद आती है, तो मानो सबकुछ गायब हो जाता है. वह बहुत ज्यादा फ्लर्ट करती थी… और फिर मुझे याद आने लगे बीते हुए क्षण…’’ जब एक दिन नीलम ने मुझ से कहा था, ‘‘राजन, यहां आओ न. आज तो बड़े खुश नजर आ रहे हो. आखिर ऐसी कौन सी चीज मिल गई है तुम्हें?’’ ‘‘तुम्हें पा लिया?है, अब कुछ नहीं चाहिए नीलू. बस, तुम्हें दुलहन बना कर अपने घर ले जाना चाहता हूं.’’ इतना सुनते ही नीलम का मुखड़ा लाल हो गया.
वह बोली, ‘‘उस का फैसला कल पर छोड़ दो. अभी ऐसे फैसले लेने का टाइम नहीं है.’’ ‘‘क्यों? क्या हुआ? शादी नहीं करोगी मुझ से?’’ ‘‘ऐसा तो मैं सोच भी नहीं सकती राज. अभी तो मैं आज में जीना चाहती हूं. तुम भी यही सोच कर रहो,’’ वह गंभीरता से बोली. ‘‘ऐसा क्यों?’’ मैं ने पूछा. ‘‘हां राज, कोई भी सिचुएशन हमें दूर कर सकती है.’’ ‘‘तो फिर घर पर बातचीत नहीं करूं?’’ ‘‘नहीं, अभी नहीं. मांपिताजी ने मुझे आजादी दी है, तो कुछ मन की कर लूं,’’ नीलम ने शरारती नजरों से कहा था. उस के बाद आज 7 साल बीत जाने पर भी मैं उस की थाह नहीं पा सका, उसे नहीं खोज सका. उस ने फोन बंद दिया. फेसबुक अकाउंट पर पुरानी तसवीरें पड़ी थीं. ‘‘तुम फिर यादों में खो गए न राजन? अपनेआप को संभालो. मां का खयाल करो. आखिर कब तक ऐसे चलेगा?’’ जब कविता ने कहा, तो मेरा ध्यान टूटा.
‘‘पता नहीं. अच्छा, अब तुम जा कर सो जाओ. रात ज्यादा हो गई?है. मां परेशान होंगी.’’ ‘‘जब मैं तुम्हारे पास आती हूं, तो मुझे कोई कुछ नहीं कहता. फिर मैं तुम्हें इस तरह छोड़ कर जाना भी नहीं चाहती.’’ ‘‘परेशान न हो कविता, मैं खुद अब सोने जा रहा हूं. सुबह आना, कुछ बातचीत करेंगे. अब जाओ,’’ मैं ने कविता को टाल दिया. जो प्यार और बौंडिंग मुझ में और नीलम में थी, वह कविता से नहीं हो पाई थी. कविता कुछ नहीं बोली. चुपचाप चली गई. मैं भी कुछ समय बाद बिस्तर पर लेट गया. कब मेरी आंखें लग गईं, पता ही नहीं चला. सुबह तकरीबन 10 बजे कविता आई. हम दोनों बैठ गए और नीलम के बारे में बातचीत करने लगे. अचानक कविता को कुछ याद हो आया. उस ने मुझ से कहा, ‘‘तुम्हें मालूम है राजन, शुरूशुरू में यह सुनने में आया था कि नीलम की शादी हो गई और यहां वाला मकान उस के पिताजी ने बेच दिया.
उस के पिताजी कट्टर ब्राह्मण हैं. दूसरी जाति में शादी की तो बात उन्हें मंजूर ही नहीं है.’’ ‘‘पर, उस ने मुझे तो कभी ऐसा नहीं बताया.’’ ‘‘कैसे बताती? तुम्हारा प्यार पाने के लिए तो कोई कुछ भी छिपा सकता है,’’ कविता गंभीर आवाज में बोली. ‘‘हां, तुम शायद ठीक कह रही हो…’’ मेरे मोबाइल पर एक नोटिफिकेशन की आवाज आई. मैं ने ईमेल देखा. ‘‘कविता, मैं रोज फार्म पर असिस्टैंट मैनेजर के पद पर बहाल किया गया हूं. एक सितंबर से जौइनिंग है.’’ कविता बहुत खुश थी. मुझ में खुशी और दुख का मिलाजुला रूप उमड़ रहा था. नौकरी पर जाने में अभी काफी समय था.
यह नौकरी मुझे कविता की बदौलत ही मिली थी. इसी ने ही समयसमय पर आ कर मुझे संभालासमझाया, नहीं तो मैं इस इंटरव्यू की तैयारी कभी भी नहीं कर पाता. मैं ने तय किया कि उस शहर में जा कर अपने रहने का इंतजाम कर आऊं, ताकि बाद में परेशानी न हो. मैं ने कुछ दिनों के बाद वहां जाने का कार्यक्रम बना लिया. जब मैं उस शहर के रेलवे स्टेशन पर उतरा, तो मुझे अजीब सी खुशी हुई. एक अनजाना डर भी मेरे भीतर समाता चला गया. न जाने क्या था उस शहर में, जो मुझे ऐसा लग रहा था. फार्म पर पहुंच कर मैं वहां के मैनेजर कौशलजी से मिला और रहने के बारे में उन से बात की. उन्होंने कहा, ‘‘राजनजी, मेरे मकान में जगह तो खाली है, पर सिर्फ 2 आदमी रह सकते हैं. आप तो बीवीबच्चों वाले होंगे, इसलिए…’’ ‘‘सर, मैं तो बिलकुल अकेला हूं.
अभी तक शादी की नहीं…’’ मैं बीच में ही बोल पड़ा. ‘‘क्या आप ने अभी तक शादी नहीं की… कमाल है? आप फिलहाल गैस्टरूम में रह सकते हैं.’’ मुझे कविता की याद आई. जब चला था, तब उस का चेहरा उदास था. होंठों पर हंसी थी और आंखों में मोती जैसे झिलमिलाते आंसू थे. रेलवे स्टेशन पर मेरे साथ ही आई थी वह. तब गंभीर हो कर मैं ने उस से कहा था, ‘‘कविता, तुम ने मेरी जिंदगी संवारी है, मुझे नया जीवन दिया है. मैं दिनोंदिन तुम्हारे एहसानों से दबता जा रहा हूं. कैसे उतार पाऊंगा इतने सारे एहसान?’’ ‘‘अगर तुम इन सब बातों को एहसान कहते हो, तो मैं कुछ नहीं कहूंगी. वैसे, यह मेरा फर्ज है. हां, अगर यह एहसान है और उतारने की बात है, तो समय आने पर मैं हिसाब मांग लूंगी,’
’ कविता ने रोते हुए कहा था. मैं यादों से बाहर निकला. कुछ दिन के बाद कौशलजी ने कहा, ‘‘राजनजी, अब आप के लिए मैं ने घर के बगल में ही किराए का एक कमरा ले रखा है.’’ ‘‘धन्यवाद सर,’’ मैं इतना ही बोल सका. कौशलजी मुझे कमरे की ओर ले गए. कमरा साफसुथरा व काफी बड़ा था. एक ओर पलंग बिछा था. लगता था कि मेरे आने से पहले ही इस को संवारा गया था. मैं ने अपना सामान जमा लिया. कौशलजी चाय ले कर आए. चाय पीने के बाद कुछ बातचीत हुई, फिर वे चले गए. मैं ने अपना जरूरी सामान ठीक किया. रात के 8-9 बजे कौशलजी खाना ले आए. हम दोनों ने साथ ही खाना खाया. कुछ देर बैठने के बाद कौशलजी चले गए. थका होने के चलते मैं भी जल्दी ही सो गया. सुबह का नाश्ता कौशलजी के घर से ही लाया गया था. हम दोनों साथ ही फार्म गए और साथ ही वहां से लौटे. 15 दिनों तक यह सब चलता रहा. इस बीच मेरी कविता व मां से कई बार बात हुई.
यहां मुझे किसी प्रकार की कमी महसूस नहीं हुई. मैं बहुत खुश था. वहां काम करते हुए मुझे एक महीना हो गया था. कौशलजी की पत्नी पीहर गई थीं, इसलिए हम दोनों साथ ही होटल में खाते. लगातार होटल में खाना खाने की वजह से मैं कमजोर होता जा रहा था. थकान और हलकाहलका बुखार रहने लगा था. उस दिन मुझे तेज बुखार था. मैं छुट्टी ले कर घर पर ही रहा. 3 दिन बीत गए. बुखार नहीं गया. कौशलजी रोज आते थे. एक दिन उन्होंने बताया कि उन की बीवी लौट आई? हैं. उन्होंने कहा, ‘‘आप दवाएं तो ठीक से ले रहे हैं न?’’ ‘‘हां सर, पर हालत तो दिनोंदिन बिगड़ती ही जा रही है.’’ ‘‘यह तो स्वाभाविक ही है. एक तो आप बीमार हैं, ऊपर से खाना खुद बनाते हैं. मैं आज से खाना भिजवा दिया करूंगा.’’ मैं चुप ही रहा. न नहीं कह सका. कुछ देर बाद कौशलजी चले गए. मैं एक बार फिर विचारों में डूब गया. मैं सोचने लगा, ‘‘हर आदमी का बरताव मेरे साथ कितना अच्छा होता है.
पर समझ में नहीं आता कि नीलम ही मेरे जीवन में बेवफा बन कर क्यों आई?’’ अगले दिन दोपहर में कौशलजी की पत्नी खाना ले कर आईं. तब मैं भीतर चादर ओढ़ कर सो रहा था. वे दरवाजे पर दस्तक दे कर अंदर आईं. दरवाजे की ओर मेरी पीठ थी. मैं ने करवट बदली, उन से मेरी आंखें टकराईं. मैं हैरान था. वह तो नीलम थी. कितनी चुस्त लग रही थी वह. कालेज में तो उसे मोटी कह कर चिढ़ाया जाता था. आज तो स्लिमट्रिम थी. चमकता चेहरा, लो कट ड्रैस, जिस में उस के उभार फूट रहे थे. यह कैसे हो गया? उस ने सीधा सवाल किया, ‘‘डियर, शादी क्यों नहीं की तुम ने अभी तक?’’ ‘‘किस से करता नीलम? मैं ने तो अपनी कही हुई बात निभाई है और निभाता ही रहूंगा. वादा तो तुम ने ही तोड़ा है नीलू.’’ ‘‘मुझे माफ कर दो राज. मैं तो आज भी तुम्हें अपने दिल से नहीं निकाल पाई हूं.
मेरे चेहरे को देखो, मेरी आंखों की भाषा पढ़ो. तुम्हें अपनी नीलम से कोई शिकायत नहीं रहेगी.’’ ‘‘ऐसी क्या मजबूरी थी, जो तुम मुझ से मिल भी नहीं पाई? किसी और से अपनी बात कहलवा सकती थी, मैसेज तो भेज सकती थी.’’ ‘‘कैसे कहती? जिस दिन हम आखिरी बार मिले थे, उस दिन घर जा कर मैं ने मां को सबकुछ बता दिया था. तब वे मुझ पर बुरी तरह बिगड़ पड़ीं. मुझे मारापीटा, बुराभला कहा. तब भी मैं नहीं मानी, तो मुझे ले कर वे लोग ननिहाल चले गए. वह घर बेच दिया. ‘‘मुझ पर दबाव डाला गया कि मैं कौशलजी से शादी करूं. मैं नहीं मानी, तब पिताजी ने गुस्से में जहर पी लिया. आखिर मुझे राजी होना पड़ा. मैं ने तुम्हारे पास मैसेज नहीं भेजा कि तुम कुछ… ‘‘मैं उस समय तुम्हें नहीं मिल सकी. पर इतने सालों तक अजीब संकट में पड़ी रही हूं. तुम्हारी तरफ आने पर मैं पति के रूप में कौशलजी को खोती हूं. जो आदमी तो ठीक हैं, पर वे औरत को खुश नहीं रख सकते,
बच्चे नहीं हो सकते उन से. और तुम मेरे आदर्श प्रेमी रहे हो. ‘‘मैं चाहती हूं कि जो मैं ने खोया है, तुम उसे पूरा कर दो. तुम्हारी एजूकेशन मैं ने देख ली थी, क्योंकि कौशलजी के सारे ईमेल मैं ही चैक करती हूं. मैं ने ही तुम्हें यहां बुलवाया, पर यह नहीं मालूम था कि तुम्हारी शादी नहीं हुई है. मुझे तुम जैसा प्रेमी चाहिए, हमेशा के लिए.’’ फिर वह बोली, ‘‘राज, सबकुछ भूल जाओ और शुरू से वही संबंध बना लो, जो शादी से पहले हमारे थे.’’ ‘‘नहीं, मैं अब यह नहीं कर सकता,’’ मैं ने कहा. ‘‘क्यों नहीं राज? शादी करने से मैं अधूरी हो गई क्या? मैं तो रातदिन तुम्हारा इंतजार कर रही हूं. तुम्हें अब मैं नहीं खो सकती. मुझे बच्चे चाहिए, वरना मैं अधूरी रह जाऊंगी.’’ इतना कह कर नीलम चली गई, पर मैं अंधकार में भटक गया. मैं उसे क्या समझ रहा था, पर वह क्या निकली. वह तो बेहद स्वार्थी निकली. शादी से पहले की बात दूसरी थी. अब मैं न खुद को धोखा दे सकता था, न कविता को, जो सबकुछ जान कर भी मुझ पर फिदा है. मुझे मालूम है कि काम निकलने के बाद यह नीलम मुझे अपनी जिंदगी से निकाल देगी. उसी दिन मैं ने वह शहर और नौकरी छोड़ देने की बात तय कर ली,
क्योंकि अगर कौशलजी को हमारे प्रेम के बारे में पता चल गया तो उन के परिवार में जहर घुल जाएगा. हो सकता है कि कौशलजी को सारी बात मालूम हो, पर मैं क्यों उन के प्लान का हिस्सा बनूं. एक दिन मैं कौशलजी की गैरहाजिरी में सबकुछ समेट कर और नीलम से आखिरी बार मिल कर हमेशा के लिए वहां से चला आया. घर पहुंचने के बाद ठीक होने में मुझे 5 दिन लग गए. कविता मेरी खूब सेवा कर रही थी. कुछ दिनों बाद मुझे नीलम का एक मैसेज मिला, जिस में उस ने गुस्सा तो जाहिर किया, पर फिर कहा कि जो मैं ने किया वही सही था. मैं ने फिर कविता से शादी कर ली. आज मैं बहुत खुश हूं और तनिक दुखी भी कि नीलम जैसी स्मार्ट और चुलबुली लड़की मेरे जीवन से निकल गई, पर यह भरोसा भी है कि अब मेरी जिंदगी सही पटरी पर चलेगी. पर इस दुख का बोझ मेरे दिल पर ज्यादा नहीं, क्योंकि नीलम तो बेवफा है. वह दूसरों को इस्तेमाल करने वाली बन चुकी है.
हमारे देश के लोग आज भी पंडेपुजारियों के जाल में ऐसे फंसे हैं कि वे चाह कर भी उस से निकल नहीं पाते हैं. धर्म के नाम पर यहां बड़ी आसानी से लोगों को लूटा जाता है. पंडेपुजारी मंदिरों में श्रद्धालुओं की जेब हलकी करवाना अपना जन्मजात हक समझते हैं, जबकि भारत में 30 फीसदी ऐसे लोग हैं, जो जानवरों को कैद कर के उन को नचा कर या दिखा कर अपनी ऐश की जिंदगी बसर कर रहे हैं. 3 साल पहले हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में बसस्टैंड के नजदीक बहुत ज्यादा भीड़ लगी हुई थी. वहां एक हट्टाकट्टा मर्द व एक औरत ट्रैक्टरनुमा गाड़ी के दाएंबाएं बैठे हुए थे, जबकि बीच में एक गाय खड़ी थी. गाय के गले में फूलमालाओं व उस के मुंह पर चंदन वगैरह का लेप उस की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे.
गेरुआ कपड़े पहने वह औरत व मर्द इस बात को प्रचारित कर रहे थे कि 5 पैरों वाली यह गाय लक्ष्मी देवी का अवतार है. अंधभक्तों की भीड़ उस गाय के पैर छूने व पुण्य लाभ कमाने की गरज से खूब रुपए चढ़ा रही थी. लोग वहां से ऐसे खुश हो कर लौट रहे थे, मानो उन्होंने स्वर्ग के लिए अपनी सीट एडवांस में बुक करा दी. 5 पैरों वाली उस गाय ने उस निकम्मे जोड़े को मालामाल कर दिया था. पर सारा दिन उसे खड़ा रहने की सजा भुगतनी पड़ रही थी.
शहर की ही कुछ निठल्ली अंधभक्त औरतें उस जोड़े को सुबह के नाश्ते से ले कर रात का भोजन कराती थीं. उन औरतों को यह भरम था कि ‘गऊ मैया’ के ये संरक्षक उन की जीवन नैया पार लगा देंगे.
धर्मभीरु लोगों को कौन समझाए कि 5 पैरों वाली गाय पैदा हो सकती है, पर कोई अवतार नहीं है. यह तो महज धर्म के नाम पर लोगों को छलने के लिए, उस गाय को उस पाखंडी जोड़े ने अपना हथियार बना कर लोगों की भावनाओं को भुनाने का अच्छा तरीका अपनाया है.
इसी शहर में हर साल गरमियों में 10-12 लोग गेरुए कपड़े पहन कर, माथे पर बड़ा सा तिलक लगा कर और कानों में बड़ेबड़े कुंडल डाल कर एक हथिनी को ले कर आते हैं और पूरे शहर का चक्कर लगा कर उस बूढ़ी, लाचार जख्मी हथिनी के नाम पर लोगों से खूब पैसे बटोरते हैं.
उस हथिनी के जरीए शाही भोजन का जुगाड़ करने वाले ये लोग सालों पहले किसी जंगल से हथिनी के बच्चे को खरीद कर या पकड़ कर ले आए होंगे और फिर उसे पालपोस कर अपनी आमदनी का जरीया बना लिया.
वे लोग हथिनी को ले कर गांवकसबों से ले कर शहरशहर में घूमते हैं और लोगों से कहते हैं कि उस हथिनी के नीचे से गुजर कर या लेट कर जो भी निकल जाता है, उस के सारे पाप मिट जाते हैं. इस बात को सच मान कर लोग खुले दिल से नोटों की बौछार करने में जरा भी संकोच नहीं करते हैं.
कोई इन ठगों से पूछे कि किसी हथिनी के नीचे से गुजर जाने से अगर सारे पाप मिट जाते होते, तो वे खुद पाप मुक्त क्यों नहीं हुए, जिन्होंने किसी बेजबान जानवर की आजादी छीन कर उस के परिवार से उसे अलग कर सब से बड़ा पाप किया है?
मुंह में पान का बीड़ा डाले हुए ये सभी लोग अपनेआप तो ‘ऐश’ करते हैं, पर उस बूढ़ी हथिनी को ले कर उन में तनिक भी चिंता नहीं है, जिस के शरीर में जगहजगह जख्म हो गए हैं.
धर्म के कुछ ठेकेदार अच्छी नस्ल के बैलों को सजा कर के गांवों में जा कर लोगों को धर्म का पाठ पढ़ा कर उन से न केवल अनाज व कपड़ेलत्ते लेते हैं, बल्कि देशी घी, लस्सी के साथ छक कर मुफ्त का माल डकारते हैं.
बेचारे उन भोलेभाले गांव वालों को कौन समझाए कि उन बैलों को छूने से या उन की पूंछ पकड़ कर वे अपनेआप को छलावा दे रहे हैं कि उन की जीवनरूपी नैया भवसागर के पार लग जाएगी.
समाजसेवी हुसैन अली का कहना है, ‘‘धर्म की आड़ में पशुओं पर कहर ढाने पर तभी लगाम लगाई जा सकती है, जब सभी लोग जागरूक हों और इस तथाकथित पाखंड के विरोध में एकजुट हो कर काम करें.’’
कारोबारी संदीप नड्डा का इस बारे में कहना है, ‘‘लोग किसी की बातों में न आ कर अपनी ऊर्जा व पैसे को बरबाद न करें. मेहनत से पैसे कमाना ही सब से बड़ा कर्म है.’’
डियारा सैक्टर में रहने वाले सतीश गुप्ता का कहना है, ‘‘भले ही ‘पेटा’ कानून लागू है, पर हमें मूक प्राणियों के प्रति हमदर्दी रखनी चाहिए, क्योंकि इन बेबस, बेसहारा पशुओं को भी हमारी मदद व प्यार की जरूरत होती है.’’
हमारे देश में औरतों और बच्चों के हालात में सुधार तभी मुमकिन है, जब मर्दों के मानसिक लैवल में बदलाव हो. उन की सोच बदले, क्योंकि हमारा समाज अभी भी पुरुष प्रधान है. केवल 20 से 30 फीसदी ही औरतों के हालात में सुधार हुआ है. ये आंकड़े शहरों के हैं, जबकि गांवों में अभी भी औरतों के हालात चिंताजनक हैं. महाराष्ट्र सरकार को आज भी महिला और बालबाड़ी और आंगनबाड़ी चलाने पड़ रहे हैं,
क्योंकि मर्द अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से नहीं निभाते हैं और बच्चों को प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई तक नहीं मिलती है. बालबाड़ी और आंगनबाड़ी में बच्चों के जन्म से ले कर 6 साल तक उन की देखभाल की जाती है. महाराष्ट्र के सभी शहरों और गांवों में सभी तरह की स्वास्थ्य संबंधी जांच और टीकाकरण का काम हो रहा है. इस विकास के नारे के बावजूद बच्चों को भरपेट खाना नहीं मिलता, पेट से हुई औरतों की जांच नहीं हो पाती और उन के खानेपीने का इंतजाम भी नहीं हो पाता है,
ताकि जन्म के बाद बच्चे कुपोषण के शिकार न हों. महाराष्ट्र में तकरीबन 86,000 आंगनबाडि़यां हैं. यही हाल हर राज्य का है. राज्य सरकारों को अनाथ गरीब बच्चों या फिर घर से बिछुड़े बच्चों को माली मदद देनी होगी. सभी राज्यों में यह स्कीम भी उन बच्चों के लिए है, जो कम उम्र में अपराध करते हैं और उन्हें जेल में नहीं भेजा जाता है. उन्हीं बच्चों को रखने, उन के खानेपीने और सुधार में तरक्की मुमकिन है. बाल कल्याण समिति भी इस दिशा में काम कर रही है. कई बार बच्चे सड़क पर मिलते हैं, जो या तो बेघर होते हैं या अपनों से बिछुड़ जाते हैं. ऐसे बच्चों को बाल कल्याण समिति में रखा जाता है या फिर कोर्ट के आदेश के मुताबिक घर भेज दिया जाता है.
सताई गई औरतों के लिए भी राज्यों में महिला और बाल विकास मंडल काम करते हैं. घर से भागी लड़कियों, दहेज के चलते घर से निकाली गई औरतें, पति द्वारा मारपीट की शिकार औरतें वगैरह सभी के लिए स्कीमें लागू की गई हैं, जो उन्हें रोजगार के साधन के साथसाथ सहारा देती हैं. इन सभी संस्थाओं में भयंकर गोरखधंधे चलते हैं. लड़कियों को मर्दों के पास रात बिताने भी भेजा जाता है. कहने को खेतीबारी, पशुपालन या मछलीपालन पर भी जोर दिया जाता है, ताकि वे स्वावलंबी बनें, पर उस में कम औरतें ही दिलचस्पी दिखाती हैं. कानून के मुताबिक, घर से निकाली, भागी या अपराधी औरतों के लिए शैल्टर होम बनाए गए हैं,
जहां वे अपने 2 बच्चों के साथ भी रह सकती हैं. औरतें अपने पैसे पर खड़ी हो जाती हैं, तो उन से कुछ पैसे भी लिए जाते हैं. इस तरह के तकरीबन 3,400 लोग रहते हैं. ये शैल्टर होम पैसा कमाने का अच्छा जरीया बने हुए हैं. हालांकि जो वहां रहता है, उन्हें जैसी भी हो, छत तो मिली है. औरतों के लिए मुश्किल कानून बनाए तो गए हैं, पर दिखावटी ज्यादा हैं. अभी भी जैसे कुछ राज्यों में एक गोत्र में शादी बैन है, जिस में उन्हें पंचायत से सजा दिलाई जाती है. पंचायत में सारे लोग मर्द ही होते हैं. मर्दों का ही बोलबाला रहता है. वे तय करते हैं कि बेटी की शिक्षा कितनी हो, कब शादी हो,
कितना दहेज लें, कब वह मां बने वगैरह. औरतें पढ़ीलिखी और जागरूक होने पर भी चुप रहती हैं. उन्हें अपनी जिंदगी जीने का हक नहीं मिल रहा है. जब तक इस तरह के सुधार नहीं होंगे और औरतें भी हकों के लिए नहीं लड़ेंगी, तब तक देश की तरक्की मुमकिन नहीं है. मर्द हमेशा औरतों को डरा कर रखते हैं, मारतेपीटते हैं, जिस से उन की आवाज दब जाती है. मर्दों की सोच में सुधार से ही औरतों के हालात में सुधार मुमकिन होगा. पश्चिम बंगाल में अप्रैल, 2022 के दूसरे हफ्ते में 24 परगना में एक औरत को रात को शौच के लिए बाहर जाना पड़ा, क्योंकि वहां घर में शौचालय आज भी नहीं हैं. वह औरत 40 साल की थी, पर फिर भी 5 लड़कों की हिम्मत देखिए कि उन्होंने उसे पकड़ लिया और एक सुनसान जगह में एकएक कर के पहले रेप किया और फिर उस के बाद अंग पर कैरोसिन डाल कर जला डालने की कोशिश तक कर डाली.
ऐसे मर्दों को गिरफ्तार भी कर डाला जाए तो क्या होगा? औरत की न तो इज्जत रहेगी और न वह कभी पूरी तरह ठीक होगी. एक और मामले में एक प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को जला डाला, जबकि पता नहीं चला कि जो जली वह पेट से थी या सिर्फ रेप हुआ था. आंगनबाडि़यां या शैल्टर होम इस तरह की सताई गई लड़कियों को पनाह देते हैं, पर उन में न सही खाना मिलता है, न इज्जत और ऊपर से सब जगह देह धंधे के लिए भेजे जाने के आरोप लगते रहते हैं. अचंभा तो इस बात का है कि जो लोग महान संस्कृति, पूजापाठ, देवीदेवताओं की बात करते हैं और कहते हैं कि वे हमारी हिफाजत करेंगे, वे खुद के कारनामों और देवीदेवताओं के चुप रह जाने पर मुंह तक नहीं खोलते, पर हिंदूमुसलिम मुद्दों पर लाठियां ले कर खड़े रहते हैं.
जिस तरह अमरबेल पेड़पौधों का रस चूस कर हमेशा हरीभरी नजर आती है, ठीक उसी तरह अंधविश्वास और पाखंड भी समाज को खोखला कर अपनी जड़ें मजबूत कर रहा है. 21वीं सदी और डिजिटलाइजेशन के मौडर्न जमाने में अंधविश्वास खत्म होने के बजाय नएनए रूपों में देखनेसुनने को मिल रहा है. मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के एक कथावाचक का वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है, जिस में पंडित प्रदीप मिश्रा औरतों और बच्चों को सीख दे रहे हैं कि बच्चों को पढ़ाईलिखाई की टैंशन लेने की जरूरत नहीं है. सालभर मस्ती करो, मोबाइल में गेम खेलो और इम्तिहान के दिन एक बेलपत्र पर शहद लपेट कर शिवलिंग पर चिपका दो.
बस, इतना करने भर से ही भगवान शिव की कृपा से बच्चे बिना कुछ पढ़ेलिखे इम्तिहान में पास हो जाएंगे. कथावाचक कहते हैं कि 3 पत्ती वाले बेलपत्र के बीच वाली पत्ती में शहद लगा कर शिवलिंग पर चिपकाने से बिना मेहनत के भी इम्तिहान में कामयाबी मिल जाती है. लगता है कि यह पंडित प्रदीप मिश्रा का खुद पर आजमाया हुआ नुसखा है, जिस की बदौलत वे ग्रेजुएट हो कर लोगों को धार्मिक कथा सुना कर लाखों रुपए जनता की जेब से ढीले कर रहे हैं.
कथावाचक प्रदीप मिश्रा के इस वीडियो पर लोग तरहतरह के मजेदार कमैंट कर रहे हैं. एक यूजर ने कमैंट किया, ‘बाबाजी, सैलरी में इंक्रीमैंट पाने के लिए भी यह तकनीक काम करेगी क्या?’ एक दूसरे यूजर लिखते हैं, ‘अगर बेलपत्र के बीच की पत्ती से इम्तिहान में कामयाबी मिल सकती है, तो लैफ्टराइट की पत्तियों पर शहद लगाने से तनख्वाह में बढ़ोतरी होती होगी.’ वहीं एक यूजर ने इस पर मजेदार कमैंट करते हुए लिखा, ‘अगर पहले यह नुसखा मिल जाता तो हम भी कोई बड़ी डिगरी हासिल कर लेते.’ एक यूजर ने लिखा, ‘बाबाजी, जब मैं यूपीएससी इम्तिहान की आखिरी कोशिश कर रहा था, तो आप कहां थे.’ एक यूजर लिखते हैं, ‘अगर पेपर लीक हो जाए तो बेलपत्र कैसे चढ़ाना है?’ एक यूजर ने चुटकी लेते हुए लिखा, ‘लगता है, सारे कामयाब उम्मीदवार यही नुसखा अपनाते हैं,
मैं ही रह गया.’ पंडित प्रदीप मिश्रा अपने भक्तों को कथा के दौरान तरहतरह के टोटके करने को कहते हैं, लेकिन कोई टोटका अपने लिए नहीं कर सके, जिस से उन की कार पलटी खाने से बच जाती. 15 अप्रैल की सुबह 8 बजे हरिद्वार में उन की कार एक पहाड़ से टकरा कर पलट गई. पंडित प्रदीप मिश्रा के साथ 4 कारों का काफिला था, मगर जिस कार में वे सवार थे, वही 2 बार पलटी खा गई. कार के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के बाद रास्ते में जा रहे लोग उन की मदद के लिए आगे आए. 2 बार पलट जाने के बाद भी कार में सवार पंडित प्रदीप मिश्रा ने कथास्थल पर पहुंच कर यह बात बताई.
हर समस्या का हल बताने वाले पंडित प्रदीप मिश्रा आखिरकार अपनी कार को पलटने से क्यों नहीं रोक पाए? पोंगापंथ है जिम्मेदार इस जमात में अकेले पंडित प्रदीप पांडे मिश्रा ही नहीं हैं, बल्कि हमारे धर्मग्रंथों और तथाकथित धर्मगुरुओं ने लोगों के मन में पापपुण्य को ले कर ऐसी बातें भर दी हैं कि चाहे जितने पाप करो, पर अगर नदियों में डुबकी लगा कर देवीदेवताओं की पूजा और पंडितों को दान करोगे, तो सीधे स्वर्ग की टिकट हासिल हो जाएगी. स्वर्ग जाने की कामना में अंधभक्त नदियों के जल को प्रदूषित करने के साथसाथ पेड़पौधों को रौंद कर अपनेआप को धन्य समझ रहे हैं. महाशिवरात्रि पर बेलपत्र, शमि यानी सफेद कीकर की पत्तियों, गेहूं की बालें, चने की घेंटी, धतूरा चढ़ा कर हम पुण्य कमाने के चक्कर में कई टन की चीजें बरबाद तो कर ही रहे हैं, साथ ही साथ त्योहार के बाद कचरा बनती यही चीजें नदियों, तालाबों में बहा कर धड़ल्ले से हम पर्यावरण को भी गंदा कर रहे हैं. दशहरे पर सोना लूटने के नाम पर शमि के पत्तों की लूटखसोट की जाती है,
तो कभी आंवला नवमी पर औरतों द्वारा पूजन के नाम पर उस के तने पर लपेटे जाने वाले धागे से आंवले के पेड़ को नुकसान पहुंचाया जाता है. अंधविश्वास की जड़ें गांवदेहात के इलाकों के साथसाथ शहरी इलाकों में भी काफी गहराई तक अपना पैर पसारे हुए हैं. यह काम पंडेपुजारियों द्वारा धड़ल्ले से किया जा रहा है. धर्म के दुकानदार भक्तों को बताते हैं कि सावन महीने के सोमवार को 1,008 बेलपत्र चढ़ाने से भगवान शिव खुश हो जाते हैं और भक्त बेल के पेड़ की बड़ीबड़ी डालियों को बेरहमी से काट लाते हैं. ऐसा नहीं है कि लोग धर्म के प्रति आस्थावान हैं, बल्कि वे धर्म के डर के चलते यह ढोंग करते हैं. आज जहां देश के कई इलाकों में पीने के पानी का संकट है, वहीं दुर्गा उत्सव और गणेशोत्सव के नाम पर ज्यादा तादाद में प्रतिमाएं रखने की होड़ और प्लास्टर औफ पैरिस से बनी मूर्तियों के जल स्रोतों में विसर्जन की परंपरा आज पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी है.
फंस जाती हैं औरतें धर्म औरतों को मर्दों के अधीन रहने की ही सीख देता है. किसी भी कथा, पुराणों की कहानियों में उपदेश यही दिया जाता है कि पत्नी पति के जोरजुल्म को बरदाश्त कर पति को परमेश्वर मानती रहे. धर्मगुरुओं की भूमिका भी समाज को रास्ता दिखाने के बजाय अपने फायदे की ज्यादा रही है. धर्म का अनुसरण सब से ज्यादा औरतें ही करती आई हैं. इसी का फायदा हमारे धर्मगुरुओं ने उठा कर उन्हें अपनी हवस का शिकार तक बनाया है. धर्मगुरुओं का यह घिनौना आचरण कोई नई बात नहीं है. हमारे धर्मग्रंथों में ऐसे किस्से भरे पड़े हैं. ऋषि पाराशर ने मछुआरे की लड़की सत्यवती से नौका में संभोग कर अपनी हवस की भूख मिटाई थी. इसी कारण ‘महाभारत’ लिखने वाले वेद व्यास का जन्म हुआ था. ये वही वेद व्यास हैं, जिन्होंने अंबे और अंबालिका और उन की दासी के साथ शारीरिक संबंध बनाए, जिस से पांडु, धृतराष्ट्र और विदुर जैसे पुत्र पैदा हुए.
हमारे धर्मगुरु आज भी इस परंपरा को निभा रहे हैं. आसाराम, राम रहीम, रामपाल, नारायण सांईं जैसे धर्म के ठेकेदार इस के जीतेजागते उदाहरण हैं. गांवकसबों से ले कर शहरों तक की औरतें ढोंगी बाबाओं, संतमहात्माओं की काली करतूतों का शिकार हो ही जाती हैं. जिंदगी में आने वाली समस्याओं को सही सोच और समझ से हल न कर पाने के चलते ही औरतें धर्म और उन के ठेकेदारों के फैलाए जाल में फंस जाती हैं. एक ऐसा ही वाकिआ जबलपुर शहर की एक पढ़ीलिखी औरत के साथ घटित हुआ. जबलपुर के गड़ा पुरवा में भद्रकाली दरबार के बाबा संजय उपाध्याय के परचे पूरे जबलपुर शहर में बांटे जाते थे. परचे में छपे इश्तिहार में दावा किया गया था कि दरबार में एक नारियल चढ़ा कर सभी तरह की समस्याओं का समाधान किया जाता है. संजय बाबा के इसी गलत प्रचारप्रसार के झांसे में जबलपुर शहर की 52 साल की एक औरत अनीता (बदला नाम) भी आ गई. अनीता का अपने पति से अलगाव चल रहा था, जिस की वजह से वह मानसिक रूप से परेशान रहती थी.
बाबा द्वारा किए जा रहे प्रचारप्रसार में आ कर वह नवंबर, 2019 में भद्रकाली दरबार पहुंची थी. दरबार के पंडा संजय उपाध्याय ने उसे बताया कि पूजापाठ और मंत्र जाप करने से तुम्हारा पति तुम्हारे वश में हो जाएगा और तुम्हारा दांपत्य जीवन फिर से सुखमय हो जाएगा. हैरानपरेशान अनीता को तांत्रिक संजय बाबा ने अपने झांसे में ले लिया. संजय बाबा के द्वारा बताए गए दिन जब सुनीता मंदिर पहुंची, तो पूजापाठ के बहाने संजय महाराज उसे दरबार के नीचे बने एक ऐसे कमरे में ले गया, जो एकांत में होने के साथसाथ आलीशान सुखसुविधाओं से सजा हुआ था. संजय बाबा ने पूजापाठ करने से पहले अनीता को जल पीने के लिए दिया. जल में कुछ नशीला पदार्थ मिला हुआ था, जिस कारण वह बेहोशी की हालत में चली गई. उसी दौरान संजय बाबा ने उस के साथ दुराचार कर मोबाइल से वीडियो भी बना लिया. इस घटना के बाद बाबा अनीता को वीडियो दिखा कर ब्लैकमेल करने लगा.
इस के बाद तो बाबा का जब मन होता, वह अनीता को वीडियो वायरल करने की धमकी देते हुए अपने पास बुला लेता. संजय बाबा द्वारा कई बार उस का शारीरिक शोषण किया गया. बाबा के दुराचार से परेशान हो कर अनीता गुमसुम रहने लगी. परिवार के लोगों ने जब उस से कारण पूछा, तो अनीता ने रोधो कर अपने साथ हुए गलत बरताव की पूरी कहानी बता दी. ढोंगी बाबाओं और पंडेपुजारियों द्वारा लोगों के साथ ठगी और औरतों के साथ यौनाचार की आएदिन होने वाली घटनाएं बताती हैं कि औरतें इन से कोई सबक नहीं ले रही हैं. यही वजह है कि धर्मगुरुओं ने औरतों की इज्जत को तारतार किया है. समाज में आज भी ऐसे बाबाओं, पीरफकीरों की कमी नहीं है, जो कहीं बीमारियों के इलाज के नाम पर, तो कहीं औरतों की सूनी गोद भरने के नाम पर उन्हें बहलाफुसला कर अपनी हवस मिटाते हैं.
आखिर औरतों को यह बात समझ क्यों नहीं आती कि औलाद होने के लिए पतिपत्नी के बीच सैक्स संबंधों का होना जरूरी है. औलाद न होने पर डाक्टरी सलाह ले कर पतिपत्नी अपनी जांच करवा कर अपनी यौन दुर्बलता को दूर कर संतान सुख हासिल कर सकते हैं. औलाद किसी बाबा, संतमहात्माओं के चमत्कारी असर से पैदा नहीं होती. औरतों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि पति को प्यार और विश्वास से मना कर उस के दिल पर राज किया जा सकता है. एक तरफ औरतें बाबाओं और तांत्रिकों को अपना सबकुछ सौंपने के लिए तैयार हो जाती हैं, पर पति और उस के परिवार की खुशियों के लिए अपने अहम को सब से ऊपर मान कर पति की बात मानने को तैयार नहीं होती हैं. इसी तरह शारीरिक और मानसिक परेशानियों का इलाज भी डाक्टरी सलाह और दवाओं से किया जा सकता है. लिहाजा, औरतों को सोचसमझ कर फैसले ले कर ऐसे ढोंगी बाबाओं के चक्कर में फंसने से बचना होगा.
नेता फैलाते अंधविश्वास देश के नेता मौजूदा दौर में अंधविश्वास को पनपने में मददगार बने हुए हैं. कुरसी पाने के लिए मठमंदिरों में मत्था टेकने और साधुसंतों की शरण में जाने वाले समाज के बड़े लोगों के आचरण आम जनता में अंधश्रद्घा फैलाने में खास रोल निभा रहे हैं. राजनीतिक पार्टियों के नेता ऐसे मठाधीशों, बाबाओं और प्रवचन देने वालों के साथ गठजोड़ करते हैं, जिन के पीछे बड़ी तादाद में भक्तों की भीड़ हो. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बारबार धार्मिक जगहों पर जा कर साधुसंन्यासियों से मिलना तो यही दिखाता है. महाकाल की नगरी उज्जैन में रात्रि विश्राम करने पर राजा का राजपाट चले जाने का अंधविश्वास उन्हें कभी उज्जैन में रात में रुकने देता. कुरसी जाने के डर से वे अशोकनगर नहीं जाते तो नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक जाने के लिए वे हैलीकौप्टर से नदी पार नहीं करते. मध्य प्रदेश के गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह अपने धार्मिक गुरु से पूछे बिना कोई काम नहीं करते.
उन की पत्नी राजयोग हमेशा बने रहने के लिए सुहागिनों को साजसिंगार की सामग्री बांटती हैं. मध्य प्रदेश की एक राज्यमंत्री ललिता यादव बुंदेलखंड में अच्छी बारिश के लिए मेढकमेढकी की शादी रचा कर अंधविश्वास फैलाने का काम करती हैं, तो मंत्री गोपाल भार्गव रोजाना नंगे पैर चल कर गणेश मंदिर में पूजापाठ करते हैं. मंत्री नरोत्तम मिश्रा पीतंबरा देवी के दर्शन और बिना मुहूर्त के कोई काम नहीं करते हैं. विज्ञान के प्रयोग और सरकारी कार्यक्रम भी अंधविश्वास भगाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं. देश के नेता मौजूदा दौर में अंधविश्वास को पनपने में मददगार बने हुए हैं. कुरसी पाने के लिए मठमंदिरों में मत्था टेकने और साधुसंतों की शरण में जाने वाले समाज के बड़े लोगों के आचरण आम जनता में अंधश्रद्घा फैलाने में खास रोल निभा रहे हैं. आज भी मैट्रिक पास पंडेपुजारी पापपुण्य का डर दिखा कर कुरीतियों और परंपरा के नाम पर निचले तबके को ठगने का काम कर रहे हैं.
वैज्ञानिक नजरिया, तर्कशीलता और धर्मनिरपेक्षता की जगह अंधश्रद्धा और असहिष्णुता को बढ़ावा दिया जा रहा है. हमारे देश के करोड़ों लोगों तक ज्ञानविज्ञान की रोशनी अभी तक नहीं पहुंच पाई है. ऐसे में समाज के ज्यादातर लोगों में वैज्ञानिक नजरिए की कमी कोई हैरानी की बात नहीं है. लेकिन जिन लोगों को ज्ञानविज्ञान की जानकारी और उस की उपलब्धियां हासिल हैं, वे भी वैज्ञानिक नजरिए से कोसों दूर हैं. जब इसरो के वैज्ञानिक चंद्रयान की कामयाबी के लिए नारियल फोड़ने और मंदिरों में पूजापाठ के भरोसे हों और धर्मनिरपेक्ष देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सेना के आधुनिकतम राफेल लड़ाकू विमान को फ्रांस से लाने के बाद उस पर ओम लिख कर नारियल चढ़ा कर विमान के पहियों के नीचे नींबू रखते हों, तो जनता का अंधविश्वासी होना लाजिमी है. बढ़ावा दे रहे हैं कट्टरपंथी अंधविश्वास को बढ़ावा देने में कट्टरपंथी हिंदुत्ववादियों का रोल काफी अहम है. अंधविश्वास और धार्मिक पाखंडों का अगर कोई विरोध करने की कोशिश करता है, तो ये कट्टरपंथी उन पर हमला कर के उन की जान लेने पर आमादा हो जाते हैं. पिछले कुछ सालों में अंधविश्वासों के विरुद्ध अभियान चलाने वाली गौरी लंकेश की कर्नाटक में और गोविंद पंसारे व नरेंद्र दाभोलकर की महाराष्ट्र में हत्या कर दी गई. जांच करने पर यह पाया गया कि इन के हत्यारे दक्षिणपंथी तथाकथित हिंदुत्ववादियों के समर्थक थे.
कई जगहों पर कट्टर इसलाम के प्रचारकों ने भी अंधविश्वासों के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने वालों पर हमले किए. जैसे अफगानिस्तान में तालिबानियों ने पोलियो के खिलाफ चलाई गई मुहिम को गलत बताया और दवा पिलाने वालों की हत्या तक कर दी थी. मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और राष्ट्रीय सैक्युलर मंच के संयोजक लज्जा शंकर हरदेनिया कहते हैं कि अंधविश्वास के खिलाफ मुहिम आज की आधुनिक दुनिया और सभ्य समाज की सब से बड़ी जरूरत है. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस का महत्त्व समझा था, इसलिए वे अपने भाषणों में वैज्ञानिक समझ की जरूरत पर जोर देते थे. अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए सब से पहले तो कानून बने और स्कूलकालेजों में पढ़ाई जाने वाली पाठ्यपुस्तकों में धार्मिक पोंगापंथ की कथाकहानियों की जगह वैज्ञानिक नजरिया विकसित करने वाले पाठों को शामिल किया जाए. महाराष्ट्र और कर्नाटक में अंधविश्वास विरोधी कानून बनाए तो गए हैं, लेकिन ये कानून कमजोर हैं व इन में कई खामियां भी हैं. मध्य प्रदेश में भी एक कड़ा अंधविश्वास विरोधी कानून बनाया जाना चाहिए, जिस से धार्मिक पोंगापंथ पर रोक लग सके
विभा जाटव की शादी को 8 साल हो गए हैं. उस की 2 बेटियां हैं, जिन के आगे की फिक्र विभा को रातदिन सताती है, लेकिन विभा के मर्द को इस से कोई मतलब नहीं है. विभा अब एक निजी स्कूल में नौकरी कर के अपने घर का खर्च चला रही है. इस पर भी जो पैसा वह घर के खर्चों में से बचाती है, वह उस का पति अपनी शराब पीने पर खर्च करने के लिए छीन लेता है. विभा का कहना है कि कई बार सोचा कि पति से अलग हो जाऊं, पर हिम्मत ही नहीं हुई. इसी तरह मीनाक्षी विश्वकर्मा का कहना है,
‘‘मेरी शादी एक अच्छी दुकान चला रहे आदमी से हुई है, पर शादी के बाद पता चला कि मर्द को काम में कोई दिलचस्पी नहीं है और दूसरों के अंडर नौकरी भी नहीं करना चाहते, इसलिए घर में सारा दिन बेकार बैठ कर टाइम पास करते हैं. मुझे एकएक पैसे के लिए दूसरों के सामने हाथ फैलाना पड़ता है और छोटामोटा काम घर पर ला कर करना पड़ता है. मेरा कहीं नौकरी करना उन्हें बरदाश्त नहीं है. ‘‘मैं काफी सुंदर हूं और कई मर्द मुझ पर लाइन मारते हैं और इसलिए मेरा मर्द मुझ पर शक करता है.
अब लगता है कि इस तरह घुटघुट कर पूरी जिंदगी बरबाद करने से तो अच्छा है कि पति को छोड़ दूं और नौकरी कर के एक नई जिंदगी की शुरुआत करूं.’’ यह सिर्फ विभा और मीनाक्षी की कहानी नहीं है, बल्कि कईर् ऐसी युवतियां हैं, जो अपने मन में सुनहरे सपने संजोए शादी की दहलीज पर कदम रखती हैं, लेकिन ये सपने सचाई कि ऐसी जमीन पर आ कर चकनाचूर हो जाते हैं, जब उन्हें पता चलता है कि उन का पति दब्बू और बेकार है और फिर शुरू होती है जिंदगी को बेवजह ढोने की जंग,
अपने उसी हाल में दुनिया वालों के सामने मुसकराने की वह जद्दोजेहद, जिस के लिए अपने दुख भरे आंसू को भी खुशी के आंसू बताने की मजबूरी छिपी होती है. यह मजबूरी इसलिए होती है, क्योंकि हमारे समाज में हमेशा से ही लड़कियों को यह सिखाया जाता है कि मर्द ही उन का भगवान है और ससुराल में लड़की डोली में बैठ कर आती है और अर्थी में बैठ कर जाती है, भले ही ससुराल में वह हर रोज एक नई मौत क्यों न मर रही हो. लेकिन अब सोच बदल चुकी है. आज की पढ़ीलिखी गरीब औरत भी अपने ख्वाबों को खुद हकीकत में बदलना जानती है. इस बारे में बीकाम औनर्स की छात्रा शबनम का कहना है, ‘‘मैं नए जमाने की लड़की हूं. अगर मेरे साथ ऐसा हुआ, तो मुझ में इतनी ताकत है कि मैं अपने बलबूते पर जिंदगी जी सकूं. मेरी नजरों में पति हमसफर तो हो सकता है,
पर खुदा नहीं. अगर वह गलत है तो मुझे पूरा हक है कि मैं अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करूं.’’ अगर लड़की अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है और अपने साथसाथ बच्चों की भी जिम्मेदारी उठा सकती है, तो फैसला उस के हाथ में है. वह चाहे तो खुद कमा कर अपने बच्चों की परवरिश करे, एक शांत माहौल दे. इस के लिए उसे मर्द के साए की जरूरत नहीं है, लेकिन यह एक बहुत बड़ा फैसला है, जो जोश में आ कर नहीं लिया जा सकता. इस के लिए कई बातों पर सोचना जरूरी है :
॥ रिश्ता तोड़ने के बाद समाज में अकेले रहने की हिम्मत करनी होगी. ॥ बच्चों को पिता के बिना पालना एक बड़ी चुनौती है.
॥ ऐसा करने पर परिवार का विरोध भी सहना पड़ सकता है.
॥ दूसरी शादी करने में मुश्किल आ सकती है. पहली शादी को निभाने के चक्कर में उम्र निकल जाने पर लड़का मिलने में दिक्कत होगी.
॥ दूसरी शादी में बच्चों का पालनपोषण ठीक से हो पाएगा या नहीं.
॥ रिश्ता तोड़ने पर कई लोग आप को गलत ठहराने से भी बाज नहीं आएंगे.
॥ लड़की के मायके वाले कितना साथ दे रहे हैं, यह जानना भी जरूरी है, वरना रिश्ता टूटने के बाद जीने का सहारा क्या होगा, विचार करें.
॥ रिश्ता तोड़ने के बाद पति के प्रति सोया प्रेम तो नहीं जाग जाएगा. अगर इन सभी बातों पर विचार कर लिया है, तो आप अपने फैसले पर अडिग हैं, तो इस रिश्ते को तोड़ सकती हैं, क्योंकि आप को भी खुश रहने का हक है. गलती से एक संबंध जुड़ गया है, जो अब जी का जंजाल बन गया है, तो ऐसी गलती को सुधारने की कोशिश करना कुछ गलत भी नहीं है. अगर एक मर्द से नहीं बनी और उस का घर छोड़ दिया हो तो दूसरा मिले तो हिचकिचाना नहीं चाहिए.
अगर शादी से पहले किसी गैर मर्र्द के साथ सैक्स हो तो कंडोम जरूर इस्तेमाल करें, पर मर्द ऐसा हो, जो पैसा भी दे सके और इज्जत भी. औरतों के लिए अब पुलिस के दरवाजे भी कुछ ज्यादा खुले हैं. अगर अलग कहीं रह रही हैं और पिछला मर्द जबरदस्ती करने आए तो पुलिस में शिकायत की जा सकती है. पुलिस वाले अपनी कीमत तो मांगेगे, पर उन से अच्छा बचाव और कोई नहीं कर सकता. दब्बू पति की जगह किसी दमदार मर्द की दोस्त बनना है, चाहे दूसरे कुछ भी बोलते रहें.
तकरीबन 44,000 शराब पीने वालों पर एक स्टडी की गई थी. ये लोग 24 घंटे में तकरीबन 12 बार शराब पीते थे. उस स्टडी में पाया गया कि उन में से आधे से ज्यादा लोगों की कुछ सालों में ही शराब पीने के चलते मौत हो गई.
शुरुआती दौर में शराब पीने से लिवर में जलन होती है, लेकिन शराब पीने वाले इसे खाने के साथ की चीजों में उल?ा कर जलन को नजरअंदाज कर जाते हैं और धीरेधीरे जब कुछ समय बीत जाता है, तो शराब के चलते होने वाली ‘सिरोसिस औफ लिवर’ जैसी बीमारी शरीर को घेर लेती है.
भारतीय जनता पार्टी की नेता और मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकीं उमा भारती ने दिखावे के लिए ही भोपाल में मार्च में एक शराब की दुकान पर धरनाप्रदर्शन किया, वरना चाहे भाजपा सरकार हो या दूसरे दलों की सरकारें उन में शराब की बिक्री न केवल बढ़ रही है, बल्कि उस की दुकानें भी अब जगमग करती नजर आ रही हैं. मध्य प्रदेश में साल 2020-21 में 1,183 करोड़ रुपए शराब पर टैक्स से मिले, जबकि साल 2019-20 में 930 करोड़ रुपए मिले थे.
देशभर में तकरीबन 18 फीसदी लोग गांवों में और 21 फीसदी लोग शहरों में शराब तकरीबन नियमित लेते हैं. शराब का व्यापार देश में तकरीबन 3.9 लाख करोड़ रुपए का है और हर साल
7-8 फीसदी की दर से बढ़ रहा है.
अब अमीरों की जगह गरीब ज्यादा पीने लगे हैं, क्योंकि पिछले दशकों में उन की आमदनी में थोड़ी बढ़ोतरी हुई है. पर, वह आय घर पर खर्च होने की जगह ठेकों पर खर्च हो रही है.
मध्य वर्ग में तो यह फैशन बनती जा रही है. फिल्मों और प्रचार साधनों के बल पर धुआंधार शराब को धर्म की तरह स्थापित करने का काम चालू है, जहां पहले 7 फीसदी मिडिल क्लास के लोग शराब पीते थे, वहीं अब 21 फीसदी पी रहे हैं. साल 2030 तक यह आंकड़ा तकरीबन 44 फीसदी हो जाएगा. कोई ऐसा घर नहीं छूटेगा, जहां शराब की बोतलें फ्रिज में नहीं दिखेंगी. साल 2005 के मुकाबले 140 फीसदी बढ़ कर प्रति व्यक्ति शराब का सेवन साल 2016 में 5.7 लिटर प्रति वर्ष हो गया है, जो बेहद खतरनाक है.
भारत में जहां हजार व्यक्तियों में से महज 170 को ही दोनों वक्त का भरपेट खाना मिलता है, वहीं शराब की खपत हर 200 लोगों में एक बोतल रोज की है. अब सरकार कमा रही है और घर रो रहे हैं. अब तो महंगी स्कौच अपने देश में ही बनने लगी है और भारत सरकार ने इस के आयात पर टैक्स भी बहुत कम कर दिया है.
पैसे वाले लोगों की पार्टियों में शराब पानी की तरह बहती है और नतीजे में आप कभी जेसिका लाल की लाश देखते हैं, तो कभी रातों में बीच सड़क पर ठुकी हुई गाडि़यां.
शराब के कारण उपभोक्ता को हो रहे नुकसान को नजरअंदाज करते हुए शराब कंपनियां, शराब विक्रेता और बार मालिक शराब की मांग को बढ़ाने के लिए नएनए ढंग अपनाते हैं.
अपने उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए शराब बनाने वाली कंपनियों ने शाहरुख खान से ले कर रिएलिटी शो ‘बिग ब्रदर’ में शराब का फिल्मी विज्ञापन किया है.
सरकार ने सार्वजनिक जगहों या शराब पी कर गाड़ी चलाने पर कानूनी रोक लगा रखी है, तो शराब के व्यापारियों ने उस का भी तोड़ निकाल लिया है. जब दिल्ली यातायात पुलिस ने शराब पी कर कार चलाने वालों पर भारी जुर्माना और सीधे जेल भेज देने की मुहिम शुरू की, तो बार मालिकों ने अपने यहां ड्राइवर भरती कर लिए, ताकि
नशेडि़योंको गाड़ी न चलानी पड़े.
कुछ बार मालिकों ने टैक्सी सेवाओं से करार कर लिया. जाहिर है, नशे की हालत में व्यक्ति को सुरक्षित उस के घर छोड़ दिया जाता है और इस आने वाले खर्च को शराब पीने वाले आदमी की जेब से ही वसूला जाता है.
सरकार यह सब जानते हुए भी शराब के खिलाफ कोई सख्त कानून बनाने से बचती है, तो वजह यही है कि सरकारी खजाने के लिए शराब शायद इतनी बड़ी मजबूरी बन चुकी है कि सिर्फ नकली सतर्कता के अलावा ज्यादा से ज्यादा शराब खपाने पर सरकारें जोर देती हैं.
दिलचस्प बात तो यह है कि शराब पीना सेहत के लिए हानिकारक है. इस को बताने का नाटक जिस होर्डिंग और बोर्ड के जरीए सरकार करती है, उस का भुगतान भी शराब की कमाई से होता है.
अब सवाल यह उठता है कि ऐसा करने के पीछे सरकार की मंशा क्या है? आजादी के बाद 60 के दशक तक भारत सरकार शराब की बिक्री को बढ़ावा देने के पक्ष में नहीं थी और कई राज्यों में तो पूरी तरह से नशाबंदी लागू कर दी गई थी. मगर इस के बाद सड़कें बनाने और बाकी विकास के कामों के लिए पैसा कम पड़ने लगा, तो नशाबंदी पर कसता शिकंजा ढीला पड़ने लगा, जो धीरेधीरे इतना ढीला हुआ कि गांठ ही खुल गई.
अब तो सरकारें खुद ही शराब बेचने का धंधा कर रही हैं. इस के अलावा शराब के बड़े व्यापारी चुनाव के मौके पर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में मोटी रकम देते हैं. इस वजह से वे सत्ता में आने पर शराब के लिए सख्त कानून बनाने से हिचकिचाते हैं.
अब तो देश का कानून बनाने वालों में विजय माल्या जैसे बड़े शराब के कारोबारी भी शामिल थे, जो देश छोड़ कर भाग गए हैं. वे जहाज भी उड़ाते थे और शराब भी बेचते थे. उन्होंने विदेशी स्कौच के कई ब्रांड भी खरीद लिए थे और उन की एयरलाइंस का नाम भी प्रसिद्ध किंगफिशर बियर के नाम पर ही था. ऐसे में शराब के खिलाफ सख्त कानून बनना मुश्किल दिख रहा है.
देश की संसद में एक विजय माल्या ही नहीं, बल्कि और भी कई सफेदपोश चेहरे हैं, जिन को शायद माफियाओं के साथ उठनाबैठना होता है. अगर इन की दखलअंदाजी रोकनी है तो आम जनता को ही आगे आना होगा, क्योंकि इन सब में नुकसान तो उसी को हो रहा है.