कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को हैं कुकिंग का शौक, कभी मां तो, कभी लालू के साथ बनाई डिश

लोकसभा चुनाव 2024 में राहुल गांधी खूब चर्चा में रहे हैं. यूपी की सबसे चर्चित लोकसभा सीटों में से एक रायबरेली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने काफी बड़े अंतर से जीत हासिल की. इस चुनाव में केरल राज्य की वायनाड लोकसभा सीट भी काफी अहम रही. कांग्रेस के राहुल गांधी ने यहां से अच्छी जीत हासिल की. राहुल गांधी चुनावों से पहले भी लोगों के बीच चर्चा में बने रहे. उन्होंने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान लोगों का दुख दर्द सुना उनके साथ बातें की और अलगअलग फूड्स को भी एंजौय भी किए. कुछ महीने पहले राहुल गांधी मां सोनियां गांधी के साथ ऑरेंज मार्मलेड बनाते नजर आएं तो कभी लालू के अवास पर मटन खाते पाए गए.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Sarassalil (@sarassalil_magazine)


पूरे देश के राज्यों में अलगअलग फूड्स खाते राहुल गांधी

  • अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान राहुल लोकल फूडस का लुत्फ दिखे. महाराष्ट्र में भाकरी उन्हे बहुत पसंद आया लेकिन तेलंगाना का खाना टेस्टी तो लगा लेकिन तीखा भी लगा.
  • राहुल गांधी पुरानी दिल्ली में खाना बहुत पसंद करते हैं. लेकिन वो मोतीमहल जैसी जगहों पर जाना पसंद करते हैं. इस रेस्टोरेंट का बटर चिकन खूब पसंद हैं. इसके अलावा वह ‘सागर’, ‘स्वागत’ और ‘सरावना भवन’ रेस्टोरेंट जाना पसंद करते हैं.
  • साउथ इंडियन और पंजाबी खाना बेहद पसंद है. उन्हें खाने में छोले-भटूरे, पराठा, तंदूरी चिकन और बटर चिकन बड़े शौक से खाते हैं. राहुल गांधी को चांदनी चौक की आलू टिक्की भी खाना खूब पसंद है. कांग्रेस नेता पानी पुरी के भी शौकीन है जिसे खाने के लिए वह चांदनी चौक जाना पसंद करते हैं.

राहुल गांधी ने लालू अवास पर बनाया था मटन

राहुल गांधी कुकिंग को लेकर एक बार तब भी चर्चा में आए थे जब उन्होंने लालू यादव के साथ उनके घर जाकर मटन बनाया और खाया. जिसका वीडियो राहुल ने सोशल मीडिया पर शेयर भी किया था. उन्होंने लालू यादव से मटन बनाने के टिप्स लिए इस मौके पर लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती,भी उन्हे मटन बनाने के टिप्स देती नजर आई. ये वीडियो पटना में लालू यादव के आवास का बताया गया. वीडियो में राहुल गांधी, लालू यादव के पूरे परिवार के साथ मटन खाते दिखे. इस दौरान सभी ने राजनीति पर भी चर्चा की.

जब मां सोनिया गांधी के साथ बनाया था संतरे का मुरब्बा

राहुल तब भी चर्चा में थे जब साल 2023 विदा हो रहा था और साल 2024 आने वाला था. राहुल गांधी ने अपनी मां सोनिया गांधी के साथ घर पर संतरे का मुरब्बा बनाकर न्यू ईयर का जश्न मनाया. कांग्रेस नेता ने अपने किचन गार्डन से ताजे फलों को तोड़ा और प्रियंका गांधी की रेसिपी से मुरब्बा तैयार किया. मां-बेटे की बातचीत में राहुल यह कहते सुने जा सकते हैं कि अगर बीजेपी वाले चाहें तो वे उनको भी मारेमेलेड दे सकते हैं. मजाकिया लहजे में सोनिया गांधी ने कहा, ‘वे लोग इसे लेकर हमपर फेंकेंगे’. इसका वीडियो भी राहुल ने अपने सोशल मीडिया पर हेंडल पर शेयर किया.

तेजस्वी यादव के वो कमेंट्स जो लोकसभा चुनाव 2024 में चर्चा में रहे

लोकसभा चुनाव 2024 का रूझान सभी के लिए चौंकाने वाला थे. इस पूरे 7 चरणों के इस चुनाव में बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने विपक्ष पर जमकर तंज कसा. लालू के बेटे तेजस्वी यादव ने पूर्व सहयोगी बिहार के सीएम नीतीश कुमार पर चाचा चाचा कह कर खूब तंज कसा.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Sarassalil (@sarassalil_magazine)

लालू के राज में थे सब बाबू साहब

एक चुनावी सभा के दौरान तेजस्वी यादव ने कहा था कि जब लालू यादव का राज था तो गरीब सीना तान के “बाबू साहब” के सामने चलते थे. उन्होंने कहा कि, “हमारी सरकार आएगी तो हम सब लोगों को साथ लेकर चलेंगे. जो अपराध करेगा उसे सज़ा मिलेगी, जो कर्मचारी काम करेंगे उन्हें सम्मान मिलेगा.”

शरीर उधर है मन इधर है

जब से तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार राजनीतिक तौर पर एक दूसरे से अलग हुए हैं. तभी से ऐसा देखा गया है कि तेजस्वी बीजेपी पर तो खूब हमलावर रहते हैं लेकिन नीतीश कुमार को लेकर उनका रुख नरम पड़ जाता है. ऐसे में तेजस्वी यादव ने हाल में नीतीश कुमार को लेकर एक बार फिर से बड़ा बयान दे दिया है. सीएम नीतीश कुमार को लेकर तेजस्वी यादव ने कहा – ‘चाचा जी का शरीर उधर है, मन इधर है’.

मोदी को लेकर तेजप्रताप की तरह है तेजस्वी यादव

तेजस्वी ने लोकसभा चुनावों के दौरान मंच पर राहुल गांधी के साथ एक भाषण दिया जिससे सोशल मीडिया पर मोदी और गोबर हलवा का नाम दिया. भाषण में ये जताने की कोशिश की गई कि मोदी सरकार और गोबर का हलवा बराबर है. यहां तेजस्वी ने पूरे भाषण में ऐसी बातें कही जिससे साथ में बैठे राहुल गांधी पर हंस पडे. उन्होंने कहा कि भाजपा का ‘बटन दबाओं खटाखट और बीजेपी का बटन दबाओं झटाझट, सरकार बदेलेंगी फटाफट’. इन सब कमेंट्स को लेकर तेजस्वी इन लोकसभा चुनाव में काफी चर्चा में रहे है. बता दें कि मोदी सरकार को लेकर तेजस्वी अपने बड़े भाई की तरह कभी नहीं चूकते है, वह भी विपक्ष पर खूब तंज कसते है.

हर मुद्दे पर खुल कर बोल रहे हैं राहुल गांधी

उत्तर प्रदेश में अपनी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सेना में अग्निवीर योजना, बेरोजगारी, अडानी, राम मंदिर और जातीय गणना पर खुल कर बोला. प्रदेश में इस यात्रा में पार्टी नेता प्रियंका गांधी को भी शामिल होना था, लेकिन तबीयत ठीक न होने के चलते वे शामिल नहीं हो सकी थीं.

16 फरवरी, 2024 को ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ ने देश के सब से ज्यादा लोकसभा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में प्रवेश किया था. यह यात्रा बिहार से चंदौली के रास्ते उत्तर प्रदेश पहुंची थी, जहां यात्रा का तय कार्यक्रम ‘तिरंगा सैरेमनी’ हुआ, जिस में बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय को तिरंगा सौंपा था.

इस मौके पर राष्ट्रीय महासचिव व प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे, कांग्रेस विधानमंडल दल की नेता आराधना मिश्रा मोना और दूसरे कई नेता हाजिर रहे थे.

चंदौली पहुंच कर राहुल गांधी ने सैयद राजा शहीद स्मारक पर शहीदों को नमन किया. राहुल गांधी ने कहा, ‘‘एक विचारधारा भाई को भाई से लड़ाती है और आप की जेब से पैसा निकाल कर चुनिंदा अरबपतियों को दे देती है, वहीं दूसरी विचारधारा नफरत के बाजार में मुहब्बत की दुकान खोलती है और आप का हक आप को वापस लौटाती है.’’

‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान राहुल गांधी ने लोगों से पूछा कि देश में फैली नफरत की क्या वजह है? इस पर जवाब मिला कि देश में फैल रही नफरत की वजह डर है और इस डर की वजह नाइंसाफी है.

आज देश के हर हिस्से में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक लैवल पर नाइंसाफी हो रही है. देश में किसानों और गरीबों की जमीनें छीन कर अरबपतियों को दी जा रही हैं. महंगाई और बेरोजगारी बढ़ती जा रही है.

मोदी सरकार की अग्निपथ योजना को नौजवानों के साथ धोखा बताते हुए राहुल गांधी ने कहा कि अग्निवीर को न कैंटीन सुविधा मिलेगी, न पैंशन मिलेगी और न शहीद का दर्जा मिलेगा. यह नौजवानों के साथ धोखा है.

मोदी सरकार अग्निपथ योजना इसलिए लाई, ताकि देश के रक्षा बजट से पैसा हमारे जवानों की रक्षा, उन की ट्रेनिंग और पैंशन में न जाए. रक्षा के सभी कौंट्रैक्ट अडानी की कंपनी के पास हैं. मोदी सरकार हिंदुस्तान के बजट का पूरा पैसा अडानी को देना चाहती है, इसलिए अग्निवीर योजना लाई गई.

राहुल गांधी ने आगे कहा कि मोदी सरकार चाहती है कि सब लोग ठेके के मजदूर बनें. नौजवानों को सेना, रेलवे और पब्लिक सैक्टर में नौकरी नहीं मिल रही, क्योंकि मोदी सरकार चाहती है कि नौजवान ठेके पर ही काम करें.

आज हिंदुस्तान में 2-3 अरबपतियों को पूरा फायदा मिल रहा है और नौजवानों का ध्यान भटका कर उन का भविष्य छीना जा रहा है. केंद्र में ‘इंडिया’ की सरकार आने पर पूरे हिंदुस्तान में खाली पड़े सरकारी पदों पर भरती की जाएगी.

राहुल गांधी ने आगे यह भी कहा, ‘‘कुछ ही दिनों पहले हम ने किसानों के लिए एमएसपी की लीगल गारंटी दी है. हम कानूनी गारंटी देंगे कि हिंदुस्तान के किसानों को सही एमएसपी दी जाए.

‘‘मैं आप से यह कहना चाहता हूं कि सामाजिक अन्याय हो रहा है, आर्थिक अन्याय हो रहा है, किसानों के खिलाफ अन्याय हो रहा है.’’

राहुल गांधी ने जनता से सवाल किया कि नरेंद्र मोदी ने किसानों का कितना कर्जा माफ किया?

जनता की भीड़ ने कहा, ‘जीरो. एक रुपया नहीं किया.’

राहुल गांधी ने दूसरा सवाल किया, ‘हिंदुस्तान के 20-25 अरबपतियों का कितना कर्जा माफ किया?’

भीड़ से जवाब आया, ‘16 लाख करोड़ रुपए.’

मीडिया पर तंज कसते हुए राहुल गांधी बोले, ‘‘हम ने किसानों का कर्जा माफ किया, 72,000 करोड़ रुपए हम ने माफ किए और उस टाइम सारे मीडिया ने कहा कि देखो, यूपीए की सरकार पैसा जाया कर रही है, किसानों को आलसी बना रही है. तो जब किसानों का कर्जा माफ होता है तो मीडिया कहती है कि किसानों को आलसी बनाया जा रहा है और जब नरेंद्र मोदी 15-20 लोगों का 16 लाख करोड़ रुपए का कर्जा माफ करते हैं, तो फिर ये एक शब्द नहीं कहते.’’

जनता की भीड़ ने कहा, ‘मोदी मीडिया, गोदी मीडिया एक शब्द नहीं कहता.’

जनता के यह कहने पर राहुल गांधी बोले, ‘‘तो इसी अन्याय के खिलाफ हम ने यह यात्रा निकाली है.’’

कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी ने आगे कहा कि मीडिया में कभी किसान या मजदूर का चेहरा नहीं दिखाई देगा. राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में अडानी, अंबानी, अरबपति, फिल्मी सितारे दिखे, लेकिन कोई गरीब, किसान, बेरोजगार, दुकानदार या मजदूर नहीं दिखा.

भागीदारी न्याय का मुद्दा उठाते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि देश में पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों की आबादी 73 फीसदी है. मगर इन वर्गों की कहीं भी भागीदारी नहीं है.

इन वर्गों को कुछ नहीं मिल रहा है. यह नाइंसाफी है. जाति जनगणना से पता चलेगा कि देश में कितने पिछड़े, दलित और आदिवासी हैं. किस वर्ग के पास कितना पैसा है.

जाति जनगणना देश का ऐक्सरे है. इस से पता लग जाएगा कि सोने की चिडि़या का पैसा किस के हाथ में है. यह क्रांतिकारी कदम है. केंद्र में ‘इंडिया’ की सरकार आने पर पूरे देश में जाति जनगणना कराई जाएगी.

मंदिर दर्शन में न भटक जाए ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’

‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के 9वें दिन राहुल गांधी असम के बरगांव पहुंचे. यहां वे बोर्दोवा में संत शंकरदेव के जन्मस्थल पर दर्शन करने जाना चाहते थे. सुरक्षाबलों ने राहुल गांधी और दूसरे कांग्रेसी नेताओं को बरगांव में रोक दिया.

सुरक्षाबलों से बहस के बाद राहुल गांधी और बाकी कांग्रेसी नेता धरने पर बैठ गए. सभी को अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के बाद 3 बजे मंदिर आने के लिए कहा गया.

कांग्रेस के कुछ नेताओं ने राहुल गांधी के मंदिर दर्शन को मुद्दा बना दिया. पुलिस ने गुवाहाटी सिटी जाने वाली सड़क पर बैरिकेडिंग कर दी. इस के बाद कांग्रेस समर्थक पुलिस से भिड़ गए. उन्होंने बैरिकेडिंग तोड़ दी. इस धक्कामुक्की में कइयों को चोटें भी आईं.

राहुल गांधी की ‘न्याय यात्रा’

18 जनवरी, 2024 को नागालैंड से असम पहुंची थी. 20 जनवरी, 2024 को यात्रा अरुणाचल प्रदेश गई, फिर 21 जनवरी, 2024 को फिर असम लौट आई.

इस के बाद यात्रा 22 जनवरी, 2024 को मेघालय निकली और अगले दिन यानी 23 जनवरी को एक बार फिर असम पहुंची.

‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के बारे में राहुल गांधी ने कहा, ‘‘भाजपा देश में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक अन्याय कर रही है. ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ का लक्ष्य हर धर्म, हर जाति के लोगों को एकजुट करने के साथ इस अन्याय के खिलाफ लड़ना भी है.’’

राहुल गांधी मैतेई और कुकी दोनों समुदायों के इलाकों से गुजरे. उन्होंने कांगपोकपी जिले की भी यात्रा की, जहां पिछले साल मई में 2 औरतों को बिना कपड़ों के घुमाया गया था.

अपनी इस यात्रा के बारे में राहुल गांधी ने कहा था, ‘‘इस यात्रा को मणिपुर से शुरू करने की वजह यह है कि मणिपुर में भाजपा ने नफरत की राजनीति को बढ़ावा दिया है. मणिपुर में भाईबहन, मातापिता की आंखों के सामने उन के अपने मरे और आज तक हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री मणिपुर में आप के आंसू पोंछने, गले मिलने नहीं आए. यह शर्म की बात है.’’

मंदिर दर्शन विवाद में फंसे

66 दिनों तक चलने वाली ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ देश के 15 राज्यों और 110 जिलों में 337 विधानसभा और 100 लोकसभा सीटों से हो कर गुजरेगी. इन राज्यों में मणिपुर, नागालैंड, असम, मेघालय, पश्चिम बंगाल, बिहार, ?ारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र शामिल हैं. राहुल गांधी जगहजगह रुक कर स्थानीय लोगों से संवाद करेंगे. इस दौरान राहुल 6,700 किलोमीटर का सफर तय करेंगे.

‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ 20 मार्च, 2024 को मुंबई में खत्म होगी. मगर इस यात्रा के बीच ही 22 जनवरी, 2024 को मोदी और योगी सरकार द्वारा आयोजित अयोध्या के राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम आ गया, जिस में कांग्रेस के नेताओं को भी बुलाया गया था.

कांग्रेस ने अपनी धर्मनिरपेक्ष नीति के उलट राम मंदिर न जाने के पीछे की वजह मंदिर का पूरा न बनना और राजनीति में धर्म का प्रयोग बताया. लेकिन इस को ले कर पूरी पार्टी 2 भागों में बंटी दिखी. एक तरफ केंद्रीय नेताओं ने राम मंदिर समारोह में हिस्सा लेने से मना किया, तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश कांग्रेस की पूरी टीम प्रचारप्रसार के साथ अयोध्या गई, मंदिर दर्शन किया और सरयू में स्नान भी किया.

यही ऊहापोह राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में भी दिखी. राहुल गांधी की यह मुहिम भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नीतियों के खिलाफ है. भाजपा और संघ देश को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं. कांग्रेस इस का विरोध करती आ रही थी.

ऐसे में मंदिर दर्शन और धार्मिक आस्था की बातों को इस यात्रा से अलग रखना चाहिए था, मगर राहुल खुद मंदिर जाने की जिद में धरने पर बैठ गए. उन्हें धर्मनिरपेक्ष नीतियों पर चल कर अपनी यात्रा जारी रखनी चाहिए थी, तो वे इस जिद पर अड़ गए कि उन्हें मंदिर जाना है. इस ने यात्रा में खलल डाल दिया.

धर्म से कैसे मिलेगा न्याय

कांग्रेस सौफ्ट हिंदुत्व की राह पर चल रही है. इस से उस की धर्मनिरपेक्ष छवि प्रभावित होगी और वह धर्म की राजनीति का विरोध पुरजोर तरीके से नहीं कर पाएगी. इस समय बहुत जरूरी है कि कांग्रेस भाजपा और संघ के हिंदू राष्ट्र के खिलाफ लोगों का आह्वान करे.

आज भी तमाम मिले वोटों के मुकाबले आधे से कम वोट ही भाजपा को मिलते हैं. ऐसे में यह साफ है कि देश के आधे से ज्यादा लोग भाजपा की धर्म वाली नीतियों से खुश नहीं हैं.

दुनिया में जितने लोग या देश धार्मिक कट्टरता की राह पर चल रहे हैं, वे विकास की राह पर बहुत पीछे हैं और आतंकी गतिविधियों के शिकार हैं. पाकिस्तान और अफगानिस्तान इस का मुख्य उदाहरण हैं.

पाकिस्तान और बंगलादेश की तुलना करें, तो पाकिस्तान के मुकाबले कम कट्टरता वाला बंगलादेश ज्यादा तरक्की कर गया है. बंगलादेश की प्रति व्यक्ति आय 2,688 डौलर भारत की 2,085 डौलर से (साल 2022 के आंकड़े) कहीं ज्यादा है. भाजपा और संघ ने जब से देश को मंदिर आंदोलन में धकेला है, उस के बाद से देश का धार्मिक ढांचा ही प्रभावित नहीं हुआ है, बल्कि यहां की माली हालत भी प्रभावित हुई है.

साल 2007 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 1,070 डौलर थी. उस समय भारत की प्रति व्यक्ति आय बंगलादेश की 550 डौलर से दोगुनी थी. मतलब, धर्म से न तो माली तौर पर प्रगति हो सकती है और न ही न्याय मिल सकता है. अगर धर्म से ही लोगों को न्याय मिल जाता, तो आईपीसी बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ती.

धर्म औरतों की आजादी की बात नहीं करता है. औरतों की सारी परेशानियां धर्म के ही कारण चलती हैं. धार्मिक कुप्रथाएं और रूढि़यां औरतों के पैरों में बेडि़यों की तरह जकड़ी हैं. दहेज प्रथा, सती प्रथा, पेट में लड़की की हत्या, विधवाओं की बढ़ती संख्या इस के सुबूत हैं. धर्म ने औरतों को पढ़नेलिखने और नौकरी करने के हक से दूर कर उन्हें कम उम्र में पत्नी के रूप में मर्द की गुलाम और बच्चा पैदा करने वाली मशीन बना दिया है.

धार्मिक सत्ता से देश को आजादी दिलाने का काम कांग्रेस की जिम्मेदारी है. अब अगर कांग्रेस ही मंदिरमंदिर घूमेगी तो वह भाजपा और संघ की राह पर चल कर धर्म की सत्ता को मजबूत करने का ही काम करेगी. राहुल गांधी

11 दिन की तपस्या करने में होड़ न करें. वे धर्म के शिकंजे में बारबार फंसने से खुद को बचाएं.

राहुल गांधी को चाहिए कि वे अपनी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ को मजबूत कर देश को धार्मिक सत्ता से बाहर निकालने का काम करें, ताकि देश की गरीब जनता को रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार मिल सके.

राहुल गांधी ने अडानी समूह के बहाने नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा

दुनिया का सब से बड़ा राजनीतिक दल होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने राजनीति में ईमान को ताक पर रख दिया है. चाहे आर्थिक हो, राजनीतिक हो, सामाजिक हो या फिर वैश्विक क्षेत्र हो, हर जगह वह सब काम किया है, जो देशहित में नहीं है और कतई नहीं करना चाहिए.

इस का वर्तमान में कमज्यादा असर होता दिखाई दे रहा है. आगे दूरगामी रूप में यह देश के लिए घातक साबित होगा. दरअसल, भारतीय जनता पार्टी की दशा और दिशा पर आज रिसर्च करने की जरूरत है, ताकि आने वाले समय में भाजपा की नीतियों के चलते देश को जो चौतरफा नुकसान हो रहा है, उस का आकलन किया जा सके.

भारतीय जनता पार्टी में देश के प्रति समर्पण, निष्ठा और ईमानदारी की कमी है. एक राजनीतिक दल होने के नाते सत्ता में होने के चलते देश की आम जनता को किस तरह आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जाए, यह भावना भी उस में नहीं दिखाई देती.

इस की जगह पर ‘भारत माता की जय’, ‘वंदे मातरम’, ‘मंदिर बनाएंगे’ जैसे मसलों को ले कर जनता को बरगलाने का काम किया गया. इसी के तहत भाजपा के बड़े नेता नरेंद्र मोदी और अमित शाह द्वारा मुकेश अंबानी और गौतम अडानी दोनों को जो संरक्षण दिया गया, इस के चलतेवे दोनों मालामाल हो गए.

जिस तरह भाजपा दुनिया की सब से बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का ढोल बजा रही है, उसी तरह गौतम अडानी को भी दुनिया का सब से बड़ा अमीर आदमी बनने के लिए केंद्र सरकार खुल कर समर्थन कर रही है.

यह बात आज देश का बच्चाबच्चा जानता है. यही वजह है कि जब गौतम अडानी समूह की पोल खुली तो वह लुढ़क कर नीचे आ गया. नरेंद्र मोदी सरकार ने जिस तरह गौतम अडानी को समर्थन दिया है, वह सीमाओं का अतिक्रमण करता है और देश के लिए चिंता का सबब होना चाहिए.

देश में कांग्रेस और दूसरी राजनीतिक पार्टियों ने भी सरकार चलाई है, मगर कभी भी किसी उद्योगपति का आंख बंद कर के समर्थन नहीं किया गया. यही वजह है कि कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी ने अडानी समूह पर कोयले के आयात में ज्यादा कीमत दिखा कर 12,000 करोड़ रुपए की अनियमितता का आरोप लगाया है और कहा है कि अगर साल 2024 में उन की पार्टी को केंद्र सरकार बनाने का मौका मिला, तो इस कारोबारी समूह से जुड़े मामले की जांच कराई जाएगी.

दुनिया की निगाहों में अडानी

राहुल गांधी ने ब्रिटिश अखबार ‘फाइनैंशियल टाइम्स’ की एक खबर का हवाला देते हुए कहा, “वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस संदर्भ में मदद करना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री अडानी समूह के मामले की जांच कराएं और अपनी विश्वसनीयता बचाएं.”

अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले के अध्यक्ष होने के नाते राहुल गांधी ने खुल कर अपना और पार्टी का पक्ष देश के सामने रख दिया है और नरेंद्र मोदी पर तल्ख टिप्पणी की है. नरेंद्र मोदी और देश उस चौराहे पर खड़ा है, जहां से गौतम अडानी पर सरकार को जांच कर के दूध का दूध और पानी का पानी करना चाहिए.

मगर आजकल भारत सरकार जिस तरीके से काम कर रही है, वह निष्पक्ष नहीं कहा जा सकता, क्योंकि जहां सरकार और उन के चेहरों के पक्ष की बात होती है, वहां फैसले बदल जाते हैं. यह बात देश के लोकतंत्र के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती और दुनिया के जीनियस इसे ले कर चिंतित हैं.

राहुल गांधी ने उद्योगपति गौतम अडानी से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार की मुलाकातों को ले कर सफाई दी और कहा, “शरद पवार देश के प्रधानमंत्री नहीं हैं और अडानी का बचाव भी नहीं कर रहे हैं, इसलिए वे राकांपा नेता से सवाल नहीं करते.”

दरअसल, राहुल गांधी ने ‘फाइनैंशियल टाइम्स’ की जिस खबर का हवाला दिया है, उस में कहा गया है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री काल में साल 2019 और साल 2021 के बीच अडानी की 31 लाख टन मात्रा वाली 30 कोयला शिपमैंट की स्टडी की गई, जिस में कोयला व्यापार जैसे कम मुनाफे वाले कारोबार में भी 52 फीसदी लाभ समूह को मिला है.

कुलमिला कर सच यह है कि कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी ने अडानी समूह पर कोयले के आयात में ज्यादा कीमत दिखा कर 12,000 करोड़ रुपए की अनियमितता का आरोप लगाया है.

उन्होंने कहा, “यह चोरी का मामला है और यह चोरी जनता की जेब से की गई है. यह राशि करीब 12,000 करोड़ रुपए हो सकती है. पहले हम ने 20,000 करोड़ रुपए की बात की थी और सवाल पूछा था कि यह पैसा किस का है और कहां से आया? अब पता चला है कि 20,000 करोड़ रुपए का आंकड़ा गलत था, उस में 12,000 करोड़ रुपए और जुड़ गए हैं.अब कुल आंकड़ा 32,000 करोड़ रुपए का हो गया है.”

राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी “भारत जोड़ो यात्रा” में अगर साथ साथ होते

अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और आज देश के सबसे चर्चित राजनीतिक शख्सियत बन चुके राहुल गांधी की “भारत जोड़ो यात्रा” की जिस तरह भारतीय जनता पार्टी उसके छोटे से लेकर बड़े नेता आलोचना करते रहे हैं विशेष तौर पर बड़े चेहरे इससे हुआ यह है कि उल्टे बांस बरेली कहावत की तर्ज पर भारत जोड़ो यात्रा भारतीय जनता पार्टी के लिए ही भारी पड़ गई है.

इसीलिए कहा जाता है कि बिना सोचे समझे कोई बात नहीं कही जानी चाहिए. यहां उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी ने जैसे ही भारत जोड़ो यात्रा का एलान किया था भारतीय जनता पार्टी और उसका दस्ता मानो राहुल गांधी के पीछे पड़ गया था और ऐन केन प्रकारेण  राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जिसके पीछे का मकसद अब धीरे-धीरे देश की जनता समझ रही है की कितना पवित्र है को भाजपा और उसके नेता माहौल को खराब करके इस यात्रा पर प्रश्न चिन्ह लगा देने की जुगत में थे. मगर देश की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पूरे दबाव प्रभाव और चिल्लपौं  के बाद भी भारत जोड़ो यात्रा आगे बढ़ते रही और धीरे-धीरे उसकी लोकप्रियता में इजाफा होता ही चला गया. अब भाजपा के यह नेता बगले झांक रहे हैं और मुंह से शब्द नहीं फुट रहें है.

लोकतंत्र और नरेंद्र मोदी       

दरअसल, भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र दामोदरदास मोदी को देश के लोकतंत्र पर शायद आस्था नहीं है. इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद विपक्ष अर्थात सबसे बड़ी पार्टी अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को विपक्ष के रूप में मान्यता नहीं देने की भावना. और यह बार-बार कहना कि हम तो देश से कांग्रेस का नामोनिशान मिटा देंगे हम तो देश को कांग्रेस मुक्त बना देंगे.

भाजपा का यह उद्घोष, यह सब कहना लोकतंत्र में आस्था की कमी को दर्शाता है और इस सब के कारण भारतीय जनता पार्टी की छवि को लोकतंत्र को बहुत क्षति हुई है. भारतीय जनता पार्टी की साख में भी गिरावट आई है. अगर मोदी जिस तरह कांग्रेस ने अपनी सरकार के समय विपक्ष को हमेशा महत्व दिया वैसा ही माहौल बनाकर रखते तो नरेंद्र मोदी की छवि देश में और भी ज्यादा लोकप्रिय हो सकती थी.

नरेंद्र दामोदरदास मोदी अपनी इसी अराजक छवि और सोच के कारण भाजपा को भारी क्षति पहुंचा रहे हैं .जो अभी दिखाई नहीं दे रही मगर आने वाले समय में भाजपा को इसका खामियाजा तो भुगतना ही होगा. जैसे यह तथ्य भी सामने है कि अगर राहुल गांधी  कांग्रेस के एक बड़े चेहरे हैं भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे थे नरेंद्र दामोदरदास मोदी इस यात्रा में सम्मिलित हो जाते और अपनी शुभकामनाएं दे देते तो देश में हमारे लोकतंत्र में यह एक नजीर बन जाता और सद्भावना का एक मिसाल रूपी उदाहरण बन जाता. मगर नरेंद्र मोदी के समय काल में भारत में जिस तरह जाति संप्रदाय हिंदू मुस्लिम से लेकर के अनेक मसलों को बेवजह उभार दिया जा रहा है वह देश को विकास की और नहीं बल्कि विनाश की ओर ले जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी अब इस यात्रा को लेकर रक्षात्मक है वही कांग्रेस और राहुल गांधी आगे और आगे निकलते चले जा रहे हैं.

राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी “भारत जोड़ो यात्रा” में अगर साथ साथ होते

अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और आज देश के सबसे चर्चित राजनीतिक शख्सियत बन चुके राहुल गांधी की “भारत जोड़ो यात्रा” की जिस तरह भारतीय जनता पार्टी उसके छोटे से लेकर बड़े नेता आलोचना करते रहे हैं विशेष तौर पर बड़े चेहरे इससे हुआ यह है कि उल्टे बांस बरेली कहावत की तर्ज पर भारत जोड़ो यात्रा भारतीय जनता पार्टी के लिए ही भारी पड़ गई है.

इसीलिए कहा जाता है कि बिना सोचे समझे कोई बात नहीं कही जानी चाहिए. यहां उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी ने जैसे ही भारत जोड़ो यात्रा का एलान किया था भारतीय जनता पार्टी और उसका दस्ता मानो राहुल गांधी के पीछे पड़ गया था और ऐन केन प्रकारेण राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जिसके पीछे का मकसद अब धीरे-धीरे देश की जनता समझ रही है की कितना पवित्र है को भाजपा और उसके नेता माहौल को खराब करके इस यात्रा पर प्रश्न चिन्ह लगा देने की जुगत में थे. मगर देश की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पूरे दबाव प्रभाव और चिल्लपौं के बाद भी भारत जोड़ो यात्रा आगे बढ़ते रही और धीरे-धीरे उसकी लोकप्रियता में इजाफा होता ही चला गया. अब भाजपा के यह नेता बगले झांक रहे हैं और मुंह से शब्द नहीं फुट रहें है.

लोकतंत्र और नरेंद्र मोदी

दरअसल, भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र दामोदरदास मोदी को देश के लोकतंत्र पर शायद आस्था नहीं है. इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद विपक्ष अर्थात सबसे बड़ी पार्टी अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को विपक्ष के रूप में मान्यता नहीं देने की भावना. और यह बार-बार कहना कि हम तो देश से कांग्रेस का नामोनिशान मिटा देंगे हम तो देश को कांग्रेस मुक्त बना देंगे.

भाजपा का यह उद्घोष, यह सब कहना लोकतंत्र में आस्था की कमी को दर्शाता है और इस सब के कारण भारतीय जनता पार्टी की छवि को लोकतंत्र को बहुत क्षति हुई है. भारतीय जनता पार्टी की साख में भी गिरावट आई है. अगर मोदी जिस तरह कांग्रेस ने अपनी सरकार के समय विपक्ष को हमेशा महत्व दिया वैसा ही माहौल बनाकर रखते तो नरेंद्र मोदी की छवि देश में और भी ज्यादा लोकप्रिय हो सकती थी.

नरेंद्र दामोदरदास मोदी अपनी इसी अराजक छवि और सोच के कारण भाजपा को भारी क्षति पहुंचा रहे हैं .जो अभी दिखाई नहीं दे रही मगर आने वाले समय में भाजपा को इसका खामियाजा तो भुगतना ही होगा. जैसे यह तथ्य भी सामने है कि अगर राहुल गांधी कांग्रेस के एक बड़े चेहरे हैं भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे थे नरेंद्र दामोदरदास मोदी इस यात्रा में सम्मिलित हो जाते और अपनी शुभकामनाएं दे देते तो देश में हमारे लोकतंत्र में यह एक नजीर बन जाता और सद्भावना का एक मिसाल रूपी उदाहरण बन जाता. मगर नरेंद्र मोदी के समय काल में भारत में जिस तरह जाति संप्रदाय हिंदू मुस्लिम से लेकर के अनेक मसलों को बेवजह उभार दिया जा रहा है वह देश को विकास की और नहीं बल्कि विनाश की ओर ले जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी अब इस यात्रा को लेकर रक्षात्मक है वही कांग्रेस और राहुल गांधी आगे और आगे निकलते चले जा रहे हैं.

हलचल: भारत जोड़ो यात्रा- भाजपा चंचला, राहुल गांधी गंभीरा

राहुल गांधी ने इस पदयात्रा का आगाज ‘विवेकानंद पौलीटैक्निक’ से 118 दूसरे ‘भारत यात्रियों’ और कई नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ 7 सितंबर, 2022 को शुरुआत की थी. कांग्रेस ने राहुल गांधी समेत 119 नेताओं को ‘भारत यात्री’ नाम दिया है, जो कन्याकुमारी से पदयात्रा करते हुए कश्मीर तक जाएंगे. ये लोग कुल 3,570 किलोमीटर की दूरी तय करेंगे.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से अपनी ‘भारत जोड़ो’ यात्रा की औपचारिक शुरुआत की और इस मौके पर पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक लिखित संदेश में कहा, ‘यह यात्रा भारतीय राजनीति के लिए परिवर्तनकारी क्षण है और यह कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम करेगी.’

इस तरह कहा जा सकता है कि राहुल गांधी की यह पदयात्रा कई माने में गंभीर संदेश देश को देने लगी है. देश के प्रधानमंत्री रह चुके और अपने पिता राजीव गांधी को श्रीपेरंबदूर में श्रद्धांजलि देने के बाद यह पदयात्रा शुरू हुई थी, जो देखतेदेखते भाजपा के लिए सिरदर्द बन गई और कांग्रेस अब आगे निकलती दिखाई दे रही है.

भाजपा के आरोप

राहुल गांधी की पदयात्रा शुरू होने से पहले से ही भारतीय जनता पार्टी की घबराहट दिखाई देने लगी थी और उस के नेता इस पदयात्रा पर उंगली उठाने लगे थे. जैसेजैसे पदयात्रा का समय निकट आता गया, भारतीय जनता पार्टी और भी आक्रामक होती चली गई.

पदयात्रा शुरू होने के साथ भाजपा के नेताओं की जैसी आदत है, उन्होंने हर मुमकिन तरीके से राहुल गांधी की इस ऐतिहासिक पदयात्रा को शुरू में ही मानसिक रूप से ध्वस्त और कमजोर करने की भरसक कोशिश की. देश में यह संदेश फैलाने का काम किया कि यह सब तो सिर्फ और सिर्फ बेकार की कवायद है.

भाजपा के एक नेता ने कहा कि भारत जोड़ो यात्रा का क्या मतलब है भाई? भारत तो पहले से ही जुड़ा हुआ है. इस तरह इस अभियान पर सवालिया निशान लगाने की पूरी कोशिश की गई.

मगर आश्चर्यजनक रूप से भाजपा का यह अमोघ ब्रह्मास्त्र फेल हो गया, क्योंकि देश की जनता राहुल गांधी को बड़ी गंभीरता से देख रही है और भारत जोड़ो यात्रा को पौजिटिव भाव से ले रही थी.

भाजपा का जब भारत जोड़ो यात्रा पर सवाल उठाने वाला तीर नहीं चला, तो उस ने दूसरा तीर चलाया और कहा कि राहुल गांधी तो 41,000 रुपए की महंगी टीशर्ट पहन कर पदयात्रा पर निकले हैं, लेकिन भाजपा का यह तीर भी भोथरा साबित हुआ, क्योंकि देश की जनता ने उसे गंभीरता से नहीं लिया.

वजह, आरोप लगाने वाले भाजपाई नेता चाहे वे प्रधानमंत्री हों या गृह मंत्री या फिर दूसरे बड़े नेता खुद लाखों रुपए के बेशकीमती कपड़े पहनते हैं. इन की फुजूलखर्ची सारा देश देख रहा है. इन के स्वभाव में कहीं भी किफायतदारी नहीं है. ऐसे में यह तीर ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ कहावत बन कर रह गया.

राहुल गांधी की इस पदयात्रा से अब जहां भाजपा हैरान है, वहीं विपक्ष के कई बड़े नेताओं का भी होश काम नहीं कर रहा है. चाहे वे नीतीश कुमार हों या ममता बनर्जी या फिर अरविंद केजरीवाल, प्रधानमंत्री पद के दावेदार सभी के मुंह पर ताला लग गया है.

वैसे तो होना यह चाहिए था कि विपक्ष की एकता की बात करने वाले ये नेता खुल कर राहुल गांधी की पदयात्रा का समर्थन करते. अभी तक शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने राहुल गांधी की पदयात्रा के पक्ष में अपना बयान दिया है, बाकी सारे नेता खामोश हैं और उन की खामोशी अपनेआप में एक बड़ा सवाल है.

आईना : बूढ़ी सोच तो विकास कैसे?

केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री और उन का मंत्रिमंडल भी बूढ़ों से भरा हुआ है. देश और राज्यों का नेतृत्व जब इन उम्र के नेताओं के हाथों में है तो नए विचार, नया विकास कहां से आएगा?

यह वह पीढ़ी है, जो राम का नाम जपने, मंत्र पढ़ने, हवनयज्ञ कराने, ब्राह्मणों को दानदक्षिणा देने, गौसेवा करने, स्वर्गनरक में विश्वास जैसे धार्मिक पाखंडों के जरीए समस्याओं के समाधान पर भरोसा करती आई है. अफसोस यह है कि इस पीढ़ी ने नई पीढ़ी को भी उसी अंधविश्वासी ढांचे में ढाल दिया है.

देश और राज्यों की तरक्की के लिए यह नेतृत्व अपने राज्यों में तीर्थयात्राएं, हवनयज्ञ, मंदिर दर्शन, धर्मस्थलों का निर्माण, दानदक्षिणा जैसे धार्मिक कर्मकांडों में उल झा रहा है और नौजवान इस में कांवडि़यों और यात्रियों की सेवा धर्म की खातिर करने में लगे रहते हैं. कई भाजपाई राज्यों में तो धार्मिक मंत्री तक बनाए गए हैं.

भारत एक युवा समाज है. सवा अरब की आबादी में 60 फीसदी से ज्यादा युवा हैं. दूसरे देशों के बजाय भारत में इन की आबादी सब से ज्यादा है. इस लिहाज से युवा भारत होते हुए देश में एक भी युवा विधानसभा नहीं है.

राहुल गांधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट जैसे युवा कहलाने वाले नेता भी पैतृक विरासत से राजनीति में आए हुए हैं.

राजनीति में आज ऐसे युवा नेता नहीं हैं, जो युवाओं में क्रांति का संचार कर सकें, इसलिए वोटरों को पुराने, बूढ़े और युवा नेताओं में कोई फर्क नजर नहीं आता.

मगर विचार युवा नहीं

कहने को हर राजनीतिक दल की अपनीअपनी युवा विंग हैं. भारतीय युवा कांग्रेस, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, स्टूडैंट फैडरेशन औफ इंडिया जैसी राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर युवा राजनीति की शाखाएं सक्रिय हैं.

सवाल यह है कि क्या राजनीतिक नजरिए से हमारे युवा नेताओं के विचार मौजूदा नेताओं से अलग हैं? जवाब है, नहीं. हमारे युवा नेताओं के विचार किसी भी तरह से नए, क्रांतिकारी और बदलाव के वाहक नहीं हैं. युवाओं से बदलाव क्रांति की राजनीति की उम्मीद है, पर वे उस पर खड़े उतरते दिखाई नहीं देते.

युवा राजनीति से उदासीन हैं और वे दूसरे क्षेत्रों में अपना भविष्य ज्यादा चमकीला सम झते हैं.

युवा नेता राजनीति में किसी भी लिहाज से अलग नहीं हैं. वे पुरानी पीढ़ी के नेताओं से अलग विचार नहीं रखते. वे न तो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते सुनाई पड़ते हैं, न नशाखोरी और न ही सामाजिक बुराइयों के खिलाफ.. ऐसे युवा नेता नहीं आ रहे जो खुल कर धर्म, जातिवादी राजनीति का विरोध कर सड़कों पर उतरते हों. जो युवा राजनीति में आ रहे हैं या मौजूद हैं, वे ज्यादातर पारिवारिक राजनीतिक विरासत को जारी रखने और शासन व सत्ता का सुख भोगने के लिए हैं.

यही वजह है कि देश के युवा अपने राजनीतिक नेतृत्व की कमी में पुराने विचारों से हांके जा रहे हैं.

वे मंदिर निर्माण, रथयात्राओं के पीछे, गौरक्षा की गुहार लगाते हुए हिंसा पर उतारू दिखाई दे रहे हैं. वे सड़ीगली हिंदुत्ववादी संस्कृति के पहरेदार बने हुए हैं.

धार्मिक युवाओं का महत्त्व

भारतीय राजनीति लकीर की फकीर बनी रहना चाहती है. यह यों ही नहीं है. भाजपा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नहीं चाहता कि ऐसे नए युवा आगे आएं, जो जाति, धर्म की प्राचीन व्यवस्था को नकारें और पुराणों के मिथकों की जगह विज्ञान की सचाई को वरीयता दें.

पौराणिक कथाओं को विज्ञान के आविष्कारों से जोड़ बताने वाले त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव कुमार और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस युवा राजनीति की संघीभाजपाई मिसाल हैं.

उधर, कांग्रेस भी इस मामले में भाजपा की ही बहन है. वह भी पार्टी में संस्कारी ब्राह्मणवादी युवाओं को ही आगे लाती है. दोनों ही पार्टियों में युवा चाहे किसी भी जाति के हों, तिलक लगाए, बातबात में धर्म, ईश्वर और अवतारों के किस्से जबान पर रखे हुए हिंदू संस्कृति, संस्कारों का जप करते हैं.

राजनीति में परिवर्तनकारी विचारों के अगुआ कन्हैया कुमार, हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी, चंद्रशेखर रावण जैसे युवा नेताओं को पीछे धकेलने में कांग्रेस और भाजपा पूरी ताकत से मिल कर जुटी नजर आती हैं.

ऐसा इसलिए है, क्योंकि युवाओं को शिक्षादीक्षा धर्म के बुजुर्ग नेता ही दे रहे हैं. यही वजह है कि राजनीति में पुराने नेताओं का दबदबा कायम है.

‘अग्निपथ’ योजना से सरकार ने उन युवाओं को भी निराश कर दिया है, जो सेना में आगे बढ़ कर कुछ करना चाहते थे. सरकारी नौकरियों में भी युवा अपना दमखम नहीं दिखा सकते हैं, क्योंकि नौकरियां हैं ही नहीं. अब तो युवा सिर्फ पकौड़े बेचेंगे.

प्रशांत किशोर नहीं अपने कामों पर भरोसा करे कांग्रेस

भाजपाई नेता और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बचपन में चाय बेची थी या नहीं, इस का कोई सुबूत किसी ने नहीं देखा. इस के बाद भी देश के सामने उन्होंने खुद को चाय बेचने वाला साबित कर दिया.

इस के उलट विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने अपने राज में देश और समाज के सुधार के लिए कई बड़े काम किए थे, पर न जाने क्यों अब वह उस का बखान जनता के सामने करने में नाकाम हो रही है.

भले ही कांग्रेस ने अभी हुए चिंतन शिविर में खुद को जनता के सामने अच्छे से रखने की बात कही है, पर सच तो यह है कि उस के सुविधाभोगी नेता कलफदार कुरतापाजामा पहन कर एयरकंडीशनर कमरों से बाहर निकलने को तैयार नहीं हैं.

देश में ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ की राजनीति भी नई नहीं है. राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण और विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपनेअपने दौर में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने का काम किया था. इस के बाद भी कांग्रेस सत्ता में वापस आई. साल 2024 के लोकसभा चुनाव में देश की जनता कांग्रेस को तब अहमियत देगी, जब कांग्रेस खुद को सत्ता का दावेदार साबित करने में कामयाब होगी.

पर आज की तारीख में तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस सत्ता की रेस से दूर क्या हुई पार्टी का खुद पर से पूरी तरह से भरोसा उठ गया है. पर राजनीति में कब क्या होगा, यह बता पाना आसान नहीं है.

साल 1984 में राजीव गांधी इतिहास में सब से बड़ा बहुमत हसिल कर के देश के प्रधानमंत्री बने थे. 5 साल के बाद ही जनता ने उन पर भरोसा बरकरार नहीं रखा और वे सत्ता से बाहर हो गए थे.

साल 2004 में भाजपा की अगुआई वाली अटल सरकार को यह गुमान हो गया था कि उन के कार्यकाल में इंडिया शाइन कर रहा है, लिहाजा समय से 6 महीने पहले अटल सरकार ने लोकसभा चुनाव कराने का फैसला ले लिया था. पर चुनाव के नतीजे एक बार फिर उम्मीद के खिलाफ गए थे. अटल सरकार चुनाव हार गई. जिस कांग्रेस को खत्म मान लिया गया था, वह न केवल सत्ता में आई, बल्कि उस ने पूरे 10 साल सरकार चलाई.

साल 2014 में कांग्रेस लोकसभा चुनाव हारी. इस के बाद कई प्रदेशों में भी उसे चुनावी हार का सामना करना पड़ा. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा. इस हार के बाद एक बार फिर से कांग्रेस को खत्म माना जा रहा है. कांग्रेस के तमाम नेता पार्टी छोड़ कर दूसरे दलों में जा रहे हैं. ‘जी-23’ नाम से कांग्रेस में एक अंसतुष्ट खेमा बन गया है.

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस को केवल 2 सीटें मिलीं, तो पार्टी का मनोबल टूट गया. अब उसे लगने लगा कि पार्टी का समय चला गया है. इस के बाद भी देश की जनता कांग्रेस को ही सब से प्रमुख विपक्षी दल मान रही है.

कांग्रेस को चुनावी लड़ाई में वापस लाने के लिए तरहतरह के उपाय सोचे जाने लगे हैं. इस में यह योजना भी बनी कि राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की मदद ली जाए. कई बार ऐसी खबरें सुनाई पड़ीं कि प्रशांत किशोर जिन शर्तों के साथ कांग्रेस में आना चाहते हैं या कांग्रेस के साथ काम करना चाहते हैं, वह कांग्रेस हाईकमान को मंजूर नहीं है, इसलिए प्रशांत किशोर और कांग्रेस का गठजोड़ अधर में लटक गया.

प्रशांत किशोर नरेंद्र मोदी से ले कर ममता बनर्जी तक तमाम बड़े नेताओं के लिए काम कर चुके हैं. ऐसे में उन पर सहज भरोसा नहीं किया जा सकता. कांग्रेस के पुराने नेता मानते हैं कि देश की तरक्की में कांग्रेस द्वारा कराए गए कामों का अहम रोल रहा है. लिहाजा, कांग्रेस को प्रशांत किशोर के ऊपर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है. उसे अपने अच्छे कामों को ले कर जनता के बीच जाना चाहिए.

कांग्रेस की मजबूत बुनियाद

कांग्रेस का पूरा नाम ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ है. कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश राज में 28 दिसंबर, 1885 को हुई थी. इस के संस्थापकों में एओ ह्यूम (थियोसोफिकल सोसाइटी के प्रमुख सदस्य), दादाभाई नौरोजी और दिनशा वाचा शामिल थे.

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति के साथ 28 दिसंबर, 1885 को बंबई (अब मुंबई) के गोकुल दास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में हुई थी. इस के संस्थापक महासचिव एओ ह्यूम थे, जिन्होंने कलकत्ता (अब कोलकाता) के व्योमेश चंद्र बनर्जी को अध्यक्ष नियुक्त किया था.

भारत को आजादी दिलाने वाले आंदोलन में कांग्रेस की भूमिका प्रमुख थी. इसी वजह से 1947 में आजादी के बाद कांग्रेस भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन गई. आजादी से ले कर साल 2014 तक, 16 आम चुनावों में से कांग्रेस ने 6 आम चुनावों में पूरा बहुमत मिला है और 4 आम चुनावों में सत्तारूढ़ गठबंधन की अगुआई की है. इस तरह 49 सालों तक वह केंद्र सरकार का हिस्सा रही.

भारत में कांग्रेस के 7 प्रधानमंत्री रह चुके हैं. इन में 1947 से 1964 तक जवाहरलाल नेहरू, 1964 से 1966 तक लाल बहादुर शास्त्री, 1966 से 1977 और 1980 से 1984 तक  इंदिरा गांधी, 1984 से 1989 तक राजीव गांधी, 1991 से 1996 तक पीवी नरसिंह राव और 2004 से 2014 तक डाक्टर मनमोहन सिंह शामिल हैं.

साल 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस ने आजादी से अब तक का सब से खराब प्रदर्शन किया और 543 सदस्यीय लोकसभा सीटों में से केवल 44 सीटें ही जीत पाई. तब से ले कर अब तक कांग्रेस कई विवादों में घिरी हुई है. उस के भविष्य पर सवालिया निशान लग रहे हैं.

गांधी युग की शुरुआत

साल 1907 में कांग्रेस में 2 दल बन चुके थे, गरम दल और नरम दल. गरम दल का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल, जिन्हें लालबालपाल भी कहा जाता है, कर रहे थे. वहीं नरम दल का नेतृत्व गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता और दादाभाई नौरोजी कर रहे थे. गरम दल पूरे स्वराज की मांग कर रहा था, पर नरम दल ब्रिटिश राज में स्वशासन चाहता था.

पहला विश्व युद्ध छिड़ने के बाद साल 1916 की लखनऊ बैठक में दोनों दल फिर एक हो गए थे और होम रूल आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जिस के तहत ब्रिटिश राज में भारत के लिए अधिराजकीय पद (डोमेनियन स्टेटस) की मांग की गई थी. इस के बाद कांग्रेस एक जन आंदोलन के रूप में देश के सामने खड़ी होने लगी थी.

साल 1915 में मोहनदास करमचंद गांधी का भारत आगमन होता है. उन के आने के बाद कांग्रेस में बहुत बड़ा बदलाव आया. चंपारण और खेड़ा में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को जनसमर्थन से अपनी पहली कामयाबी मिली.

साल 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद महात्मा गांधी कांग्रेस के महासचिव बने. तब कांग्रेस में राष्ट्रीय नेताओं की एक नई पीढ़ी का आगमन हुआ, जिस में सरदार वल्लभभाई पटेल, जवाहरलाल नेहरू, डाक्टर राजेंद्र प्रसाद, महादेव देसाई और सुभाष चंद्र बोस जैसे लोग शामिल थे.

महात्मा गांधी के नेतृत्व में प्रदेश कांग्रेस कमेटियों का निर्माण हुआ. कांग्रेस में सभी पदों के लिए चुनाव की शुरुआत हुई और कार्यवाहियों के लिए भारतीय भाषाओं का इस्तेमाल शुरू हुआ. कांग्रेस ने कई प्रांतों में सामाजिक समस्याओं को हटाने की कोशिश की, जिन में छुआछूत, परदा प्रथा और मद्यपान वगैरह शामिल थे.

राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करने के लिए कांग्रेस को पैसों की कमी का सामना करना पड़ता था. महात्मा गांधी ने एक करोड़ रुपए से ज्यादा का पैसा जमा किया और इसे बाल गंगाधर तिलक के स्मरणार्थ ‘तिलक स्वराज कोष’ का नाम दिया. 4 आना का नाममात्र सदस्यता शुल्क भी शुरू किया गया था.

नया नहीं है कांग्रेस विरोध

राम मनोहर लोहिया लोगों को आगाह करते आ रहे थे कि देश की हालत सुधारने में कांग्रेस नाकाम रही है. कांग्रेस शासन नए समाज की रचना में सब से बड़ा रोड़ा है. उस का सत्ता में बने रहना देश के लिए हितकर नहीं है, इसलिए लोहिया ने ‘कांग्रेस हटाओ, देश बचाओ’ का नारा दिया.

साल 1967 के आम चुनाव में एक बड़ा बदलाव हुआ. देश के 9 राज्यों पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा (अब ओडिशा), मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में गैरकांग्रेसी सरकारें गठित हो गईं. इस को लोहिया की बड़ी जीत के रूप में देखा गया.

जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेंका. साल 1974 में जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए ‘संपूर्ण क्रांति’ का नारा दिया. इस आंदोलन को भारी जनसमर्थन मिला.

इस से निबटने के लिए इंदिरा गांधी ने देश में इमर्जेंसी लगा दी. विरोधी नेताओं को जेल में डाल दिया गया. इस का आम जनता में जम कर विरोध हुआ. जनता पार्टी की स्थापना हुई और साल 1977 में कांग्रेस पार्टी बुरी तरह से हारी. पुराने कांग्रेसी नेता मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी.

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बोफोर्स दलाली कांड को ले कर राजीव गांधी को सत्ता से हटा दिया. साल 1987 में यह बात सामने आई थी कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिए 80 लाख डौलर की दलाली चुकाई थी. उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और उस के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे. स्वीडन रेडियो ने सब से पहले 1987 में इस का खुलासा किया. इसे ही ‘बोफोर्स घोटाला’ नाम से जाना जाता है.

इस खुलासे के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाया, जिस के चलते कांग्रेस की हार हुई और विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने.

हालांकि कांग्रेस की सत्ता में फिर वापसी हुई. इस के बाद गांधी परिवार का कोई भी नेता देश का प्रधानमंत्री नहीं बन सका. एक बार पीवी नरसिंह राव और 2 बार डाक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले ही अन्ना आंदोलन के सहारे कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने का काम शुरू हुआ. भारतीय जनता पार्टी ने भी कांग्रेस मुक्त भारत का अपना अभियान शुरू किया. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद सत्ता में कांग्रेस की वापसी मुश्किल हो गई. 2019 के लोकसभा चुनाव की हार के बाद अब 2024 की तैयारी चल रही है.

कांग्रेस विरोध का इतिहास नया नहीं है. पर हर बार कांगेस ने वापसी की है. कांग्रेस के इतिहास के मुकाबले राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर का राजनीतिक अनुभव और साख दोनों ही कम है. वे कई नेताओं के साथ काम कर चुके हैं. ऐसे में कांग्रेसीजन उन पर यकीन करने को तैयार नहीं हैं.

रणनीतिकार प्रशांत किशोर

जिस समय कांग्रेस अपने सब से अच्छे दौर में थी, उस समय प्रशांत किशोर  ने जन्म लिया था. वे रोहतास जिले के कोनार गांव के रहने वाले हैं. उन के पिता श्रीकांत पांडे एक डाक्टर थे, जो बक्सर में ट्रांसफर हो गए थे. वहां प्रशांत किशोर ने अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी की.

प्रशांत किशोर ने अपने कैरियर की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र संघ में काम कर के की थी. वहां वे स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहे थे. इस के बाद प्रशांत किशोर ने भारतीय राजनीति में रणनीतिकार के रूप में अपनी सेवाएं देनी शुरू कीं.

उन्होंने भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए चुनावी रणनीतिकार के रूप में काम किया है. उन का पहला प्रमुख राजनीतिक अभियान 2011 में नरेंद्र मोदी की मदद करने का था.

2014 के आम चुनाव की तैयारी के लिए प्रशांत किशोर ने मीडिया और प्रचार कंपनी ‘सिटीजन्स फोर अकाउंटेबल गवर्नेंस’ को बनाया. प्रशांत किशोर 16 सितंबर, 2018 को जनता दल ‘यूनाइटेड’ में शामिल हो गए.

प्रशांत किशोर ने चुनावी प्रचार को ले कर जो अभियान चलाए, उन में नरेंद्र मोदी की ‘चाय पर चर्चा’, ‘3 डी रैली’, ‘रन फोर यूनिटी’, ‘मंथन’ और ‘सोशल मीडिया कार्यक्रम’ प्रमुख थे.

प्रशांत किशोर 2014 के आम चुनावों से पहले महीनों तक मोदी की टीम का सब से महत्त्वपूर्ण हिस्सा थे. 2016 में कांग्रेस द्वारा पंजाब के अमरिंदर सिंह के अभियान में मदद करने के लिए प्रशांत किशोर को पंजाब विधानसभा चुनाव 2017 के लिए नियुक्त किया गया था. लगातार 2 विधानसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस को पंजाब में चुनाव प्रचार में मदद मिली.

प्रशांत किशोर को मई, 2017 में वाईएस जगनमोहन रेड्डी के राजनीतिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था. उन्होंने ‘समराला संवरवरम’, ‘अन्ना पिलुपु’ और ‘प्रजा संकल्प यात्रा’ जैसे अभियान शुरू किए, जिस से कई चुनावी अभियानों की शुरुआत हुई.

प्रशांत किशोर ने साल 2017 में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए काम किया, पर कामयाबी नहीं मिली. एक दल से दूसरे दल के सफर में प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के साथ खड़े हुए. ममता बनर्जी की जीत का श्रेय प्रशांत किशोर को दिया गया.

इस के बाद से साल 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रशांत किशोर की भूमिका खास हो गई. पर उन के खाते में चुनावी कामयाबी और नाकामी दोनों रही हैं. ऐसे में यह सोचना कि अकेले प्रशांत किशोर के बल पर कांग्रेस खड़ी हो जाएगी, यह मुमकिन नहीं है.

कांग्रेस के फैसले

देश की माली और सामाजिक व्यवस्था को मजबूत करने के लिए कांग्रेस की सरकारों ने कई महत्त्वपूर्ण काम किए हैं. इन में बैंक के राष्ट्रीयकरण का फैसला अहम था. साल 1969 में भारत में काम करने वाले 14 प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया. 1980 में अन्य 6 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, जिस से राष्ट्रीयकृत बैंकों की कुल संख्या बढ़ कर 20 हो गई.

साल 1962 में चीन और साल 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्धों ने सरकारी खजाने पर बहुत ज्यादा दबाव डाला था. लगातार 2 साल तक सूखे के चलते खाद्यान्न की गंभीर कमी हो गई थी और राष्ट्रीय सुरक्षा (पीएल 480 कार्यक्रम) से भी समझौता किया गया. सार्वजनिक निवेश में कमी के कारण परिणामी तीनवर्षीय योजना अवकाश ने कुल मांग को प्रभावित किया.

1960-70 के दशक में भारत की आर्थिक वृद्धि मुश्किल से जनसंख्या वृद्धि को पीछे छोड़ पाई और औसत आय स्थिर हो गई. 1951 और 1968 के बीच वाणिज्यिक बैंकों द्वारा औद्योगिक क्षेत्र में ऋण वितरण का अंश तकरीबन दोगुना हो गया, जबकि कृषि को कुल ऋण का 2 फीसदी से भी कम प्राप्त हुआ. इस तथ्य के बावजूद कि 70 फीसदी से ज्यादा आबादी थी, उस पर निर्भर है.

बैंकों के राष्ट्रीयकरण से देश को मदद मिली. बैकों में नौकरियां मिलने लगीं, जिस से बेरोजगारी घटी और आरक्षण लागू होने के चलते कमजोर तबकों को भी सरकारी नौकरी का फायदा मिल सका.

जमींदारी उन्मूलन कानून

संविधान बनाते समय जिन अहम मुद्दों से लड़ना था, उन में भारत की सामंतीशाही व्यवस्था प्रमुख थी, जिस ने आजादी से पहले देश के सामाजिक तानेबाने को बुरी तरह चोट पहुंचाई थी. उस वक्त जमीन का मालिकाना हक कुछ ही लोगों के पास था, जबकि बाकी लोगों की जरूरतें भी पूरी नहीं हो पाती थीं. इस असमानता को खत्म करने के लिए सरकार कई भूमि सुधार कानून ले कर आई, जिस में से एक जमींदारी उन्मूलन कानून 1950 भी था.

प्रिवीपर्स कानून

भारत जब आजाद हो रहा था, तब यहां तकरीबन 570 के आसपास रियासतें थीं. इन सभी को भारत में विलय के बाद एक खास तरीके से प्रिवीपर्स की रकम इन के राजाओं के लिए तय की गई. इस का फार्मूला था, उस स्टेट से सरकार को मिलने वाले कुल राजस्व की तकरीबन साढ़े 8 फीसदी रकम उत्तराधिकारियों को दी जाए. सब से ज्यादा प्रिवीपर्स मैसूर के राजपरिवार को मिला, जो 26 लाख रुपए सालाना था. हैदराबाद के निजाम को 20 लाख रुपए मिले.

वैसे, प्रिवीपर्स की रेंज भी काफी दिलचस्प थी. काटोदिया के शासक को प्रिवीपर्स के रूप में महज 192 रुपए सालाना की रकम मिली. 555 शासकों में 398 के हिस्से 50,000 रुपए सालाना से कम की रकम आई. 1947 में भारत के खाते से 7 करोड़ रुपए प्रिसीपर्स के रूप में निकले. 1970 में यह रकम घट कर 4 करोड़ रुपए सालाना रह गई.

साल 1971 में इंदिरा ने प्रिवीपर्स रोकने का कानून बना दिया. इस कानून को लागू करने के पीछे सारे नागरिकों के लिए समान अधिकार और सरकारी धन के व्यर्थ व्यय का हवाला दिया. यह बिल 26वें संवैधानिक संशोधन के रूप में पास हो गया. इस के साथ ही राजभत्ता और राजकीय उपाधियों का भारत में हमेशा के लिए अंत हो गया.

हालांकि इस विधेयक के पास होने के बाद कई पूर्व राजवंश अदालतों की शरण में गए, लेकिन वहां उन की सारी याचिकाएं खारिज हो गईं. इसी के विरोध में कई राजाओं ने 1971 के चुनाव में खड़े होने और नई पार्टी बनाने का फैसला किया, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल पाई. इस कानून के जरीए भारत में राजशाही का खात्मा हुआ.

रोजगार गारंटी कानून

कांग्रेस के ही कार्यकाल में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) 7 सितंबर, 2005 को लागू हुआ. इस योजना में हर वित्तीय वर्ष में किसी भी ग्रामीण परिवार के उन वयस्क सदस्यों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराना सरकार का काम था. प्रतिदिन 220 रुपए की न्यूनतम मजदूरी मिलती थी. इस कानून ने गांव के लोगों की क्रयशक्ति को बढ़ाने का काम किया. इस का असर गांव वालों के रहनसहन पर देखने को मिला.

कांग्रेस के ही कार्यकाल में जमीन अधिग्रहण कानून बना, जिस के जरीए किसानों को बाजार मूल्य का 4 गुना पैसा मिलने लगा. बेटियों को अपने पिता की जायदाद में हक देने का काम भी कांग्रेस सरकार में हुआ. सूचना अधिकार कानून और शिक्षा अधिकार कानून भी कांग्रेस सरकार के समय लागू हुए.

कांग्रेस इन का प्रचार कर के लोगों को अपने कामों के बारे में बता सकती है. आज भी देश के बहुत सारे लोग कांग्रेस की नीतियों पर भरोसा करते हैं. पर कांग्रेस की दिक्कत यह है कि वह जनता तक अपनी आवाज पहुंचा नहीं पा रही है.

कांग्रेस लंबे समय तक सत्ता में रहने के चलते सुविधाभोगी हो गई थी. उस के नेता जनता से दूर हो गए हैं. अगर सत्ता वापस लानी है, तो जनता के बीच जा कर विरासत को बता कर लोगों से जुड़ना होगा. प्रशांत किशोर जैसे लोग चुनावी मैनेजमैंट तो कर सकते हैं, पर वोट दिलाने का काम नहीं कर सकते.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें