Hindi Kahani: पाखंड का अंत – बिंदु ने खोली ढोंगी बाबा की पोल

Hindi Kahani: बिंदु के मातापिता बचपन में ही गुजर गए थे, पर मरने से पहले वे बिंदु का रिश्ता भमुआपुर के चौधरी हरिहर के बेटे बिरजू से कर गए थे.

उस समय बिंदु 2 साल की थी और बिरजू 5 साल का. बिंदु के मातापिता के मरने के बाद उसे उस के चाचा ने पालापोसा था.

बिंदु के चाचा बहुत ही नेकदिल इनसान थे. उन्होंने बिंदु को शहर में रख कर पढ़ायालिखाया था. यही वजह थी कि 17वें साल में कदम रख चुकी बिंदु 12वीं पास कर चुकी थी.

बिरजू के घर से गौने के लिए कई प्रस्ताव आए, लेकिन बिंदु के चाचा ने उन्हें साफ मना कर दिया था कि वे गौना उस के बालिग होने के बाद ही करेंगे.

उधर बिरजू भी जवान हो गया था. उस का गठीला बदन देख कर गांव की कई लड़कियां ठंडी आहें भरती थीं. पर  बिरजू उन्हें घास तक नहीं डालता था.

‘‘अरे, हम पर भले ही नजर न डाल, पर शहर जा कर अपनी जोरू को तो ले आ,’’ एक दिन चमेली ने बिरजू का रास्ता रोकते हुए कहा.

‘‘ले आऊंगा. तुझे क्या? चल, हट मेरे रास्ते से.’’

‘‘क्या तेरी औरत के संग रहने की इच्छा नहीं होती? कहीं वो तो नहीं है तू…?’’ चमेली ने एक आंख दबा कर कहा, तो उस की हमउम्र सहेलियां खिलखिला कर हंस पड़ीं.

‘‘चमेली, ज्यादा मत बन. मैं ने कह तो दिया, मुझे इस तरह की बातें पसंद नहीं हैं,’’ कहते हुए बिरजू ने आंखें तरेरीं, तो वे सब भाग गईं.

उधर बिंदु की गदराई जवानी व अदाएं देख कर स्कूल के लड़के उस के आसपास मंडराते रहते थे.

गोरा बदन, आंखें बड़ीबड़ी, उभरी हुई छाती… जब बिंदु अपने बालों को झटकती, तो कई मजनू आहें भरने लगते.

बिंदु को भी सजनासंवरना भाने लगा था. जब कोई लड़का उसे प्यासी नजरों से देखता, तो वह भी तिरछी नजरों से उसे निहार लेती.

बिंदु के रंगढंग और बिरजू के घर वालों के बढ़ते दबाव के चलते उस के चाचा ने गौने की तारीख तय कर दी और उसी दिन बिरजू आ कर अपनी दुलहन को ले गया.

शहर में पलबढ़ी बिंदु को गांव में आ कर थोड़ा अजीब तो लगा, पर बिरजू को पा कर वह सबकुछ भूल गई.

बिंदु को बहुत चाहने वाला पति मिला था. दिनभर खेत में जीतोड़ मेहनत कर के जब शाम को बिरजू घर आता, तो बिंदु उस का इंतजार करती मिलती.

रात होते ही मौका पाकर बिरजू बिंदु को अपनी मजबूत बांहों में कस कर अपने तपते होंठ उस के नरम गुलाबी होंठों पर रख देता था.

कब 2 साल बीत गए, पता ही नहीं चला. बिंदु और बिरजू अपनी हसीन दुनिया में खोए हुए थे कि एक दिन बिंदु की सास अपने पति से पोते की चाहत जताते हुए बोलीं, ‘‘बहू के पैर अभी तक भारी क्यों नहीं हुए?’’

सचाई तो यह थी कि यह बात घर में सभी को चुभ रही थी.

‘‘सुनो,’’ एक दिन बिरजू ने बिंदु के लंबे बालों को सहलाते हुए पूछा, ‘‘हमारा बच्चा कब आएगा?’’

‘‘मुझे क्या मालूम… यह तो तुम जानो,’’ कहते हुए बिंदु शरमा गई.

‘‘मां को पोते का मुंह देखने की बड़ी तमन्ना है.’’

‘‘और तुम्हारी?’’

‘‘वह तो है ही, मेरी जान,’’ बिरजू ने बिंदु को खुद से सटाते हुए कहा और बत्ती बुझा दी.

‘‘मुझे लगता है, बहू में कोई कमी है. 3 साल हो गए ब्याह हुए और अभी तक गोद सूनी है. जबकि अपने बिरजू के साथ ही गोपाल का गौना हुआ था, वह तो 2 बच्चों का बाप भी बन गया है,’’ एक दिन पड़ोस की काकी घर आईं और बोलीं.

बिंदु के कानों तक जब ऐसी बातें पहुंचतीं, तो वह दुखी हो जाती. वह भी यह सोचने पर मजबूर हो जाती कि आखिर हम पतिपत्नी तो कोई ‘बचाव’ भी नहीं करते, फिर क्या वजह है कि

3 साल होने पर भी मैं मां नहीं बन पाई?

इस बार जब वह अपने मायके गई, तो उस ने लेडी डाक्टर से अपनी जांच कराई. पता चला कि उस की बच्चेदानी की दोनों नलियां बंद हैं. इस वजह से बच्चा ठहर नहीं रहा है.

यह जान कर बिंदु घबरा गई.

‘‘क्या अब मैं कभी मां नहीं बन पाऊंगी?’’ डाक्टर से पूछने पर बिंदु का गुलाबी चेहरा पीला पड़ गया.

‘‘ऐसी बात नहीं है. आजकल विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है. तुम जैसी औरतें भी मां बन सकती हैं,’’ डाक्टर ने कहा, तो बिंदु को चेहरा खिल उठा.

गांव आ कर उस ने बिरजू को सारी बात बताई और कहा, ‘‘तुम्हें मेरे साथ कुछ दिनों के लिए शहर चलना होगा.’’

‘‘शहर तो हम लोग बाद में जाएंगे, पहले तुम आज शाम को बंगाली बाबा के आश्रम में जा कर चमत्कारी भभूत का प्रसाद ले आना. सुना है कि उस के प्रसाद से कई बांझ औरतों के बच्चे हो गए हैं,’’ बिरजू बोला.

‘‘यह तुम कैसी अनपढ़ों वाली बातें कर रहे हो? तुम्हें ऐसा करने को किस

ने कहा?’’

‘‘मां ने.’’

बिंदु ने कहा, ‘‘देखिए, मांजी तो पुराने जमाने की हैं, इसलिए वे इन बातों पर भरोसा कर सकती हैं, पर हम तो जानते हैं कि ये बाबा वगैरह एक नंबर के बदमाश होते हैं. भोलीभाली औरतों को चमत्कार के जाल में फंसा कर…

‘‘नहीं, मैं तो नहीं जाऊंगी किसी के पास,’’ बिंदु ने बहुत आनाकानी की, पर उस की एक न सुनी गई.

बिंदु समझ गई कि अगर उस ने सूझबूझ से काम नहीं लिया, तो उस का घरसंसार उजड़ जाएगा. उस ने मजबूती से हालात का सामना करने की ठान ली.

बाबा के आश्रम में पहुंच कर बिंदु ने 2-3 औरतों से बात की, तो उस का शक सचाई में बदल गया.

उन औरतों में से एक ने उसे बताया, ‘‘बाबा मुझे अपने आश्रम के अंदरूनी हिस्से में ले गया, जहां घना अंधेरा था.’’

‘‘फिर क्या हुआ तुम्हारे साथ?’’

‘‘पहले तो बाबा ने मुझे शरबत जैसा कुछ पीने को दिया. शरबत पी कर मैं बेहोश हो गई और जब मैं होश में आई, तो ऐसा लगा जैसे मैं ने बहुत मेहनत का काम किया हो.’’

‘‘और भभूत?’’

‘‘वह पुडि़या यह रही,’’ कहते हुए महिला ने हाथ आगे बढ़ा कर भभूत की पुडि़या दिखाई, तो बिंदु पहचान गई कि वह केवल राख ही है.

अगले दिन बिंदु फिर आश्रम में गई, तभी एक सास अपनी जवान बहू को ले कर वहां आई. उसे भी बच्चा नहीं ठहर रहा था.

बाबा ने उसे अंदर आने को कहा. उस के बाद बिंदु की बारी थी, पर जैसे ही वह औरत बाबा के साथ अंदर गई, बिंदु भी नजर बचा कर अंदर घुस गई.

बाबा ने उस औरत को कुछ पीने को दिया. जब वह बेहोश हो गई, तो बाबा ने उस के कपड़े हटा कर…

बिंदु यह सब देख कर हैरान रह गई. उस ने इरादे के मुताबिक अपने कपड़ों में छिपाया हुआ कैमरा निकाला और कई फोटो खींच लिए.

वह औरत तो बेहोश थी और बाबा वासना के खेल में मदहोश था. भला कैमरे की फ्लैश पर किस का ध्यान जाता.

कुछ दिनों बाद बिंदु ने भरी पंचायत में थानेदार के सामने वे फोटो दिखाए. इस से पंचायत में खलबली मच गई.

बाबा को उस के चेलों समेत हवालात में बंद कर दिया गया, पर तब तक अपने झूठे चमत्कार के बहाने वह न जाने कितनी ही औरतों की इज्जत लूट चुका था. खुद संरपच की बेटी विमला भी

उस पाखंडी के हाथों अपनी इज्जत लुटा चुकी थी.

पूरे गांव में बिंदु के हौसले और उस की सूझबूझ की चर्चा हो रही थी. जिस ने न केवल अपनी इज्जत बचा ली थी, बल्कि गांव की बाकी मासूम युवतियों की जिंदगी बरबाद होने से बचा ली थी.

शहर जा कर बिंदु ने डाक्टर से अपना इलाज कराया और महीनेभर बाद गांव लौटी.

तीसरे महीने जब वह उलटी करने के लिए गुसलखाने की तरफ दौड़ी, तो बिरजू की मां व पूरे घर वालों का चेहरा खुशी से खिल उठा. Hindi Kahani

Hindi Family Story: पाबंदी – एक जवान विधवा का दर्द

Hindi Family Story: मेरा नाम आरती है. मेरे औफिस में केशवजी की फेयरवैल पार्टी थी. सुबहसुबह ही सरलाजी का फोन आया था, जो मेरे औफिस में ही सीनियर स्टाफ थीं. वे कह रही थीं, ‘‘आज केशवजी की फेयरवैल पार्टी है, अच्छे से तैयार हो कर आना.’’

मैं इस बात के लिए मना कर रही थी, लेकिन सरलाजी की बात को टाल भी नहीं सकती थी, क्योंकि वे मु?ो अपनी बेटी की तरह प्यार देती थीं और मैं भी उन्हें मां जैसी इज्जत देती थी. एक वे ही थीं, जिन से मैं अपना हर सुखदुख साझ करती थी.

जब मैं पार्टी में पहुंची और अपनी नजर दौड़ा कर देखा, तो लगा कि शायद सरलाजी अभी तक आई नहीं थीं.

मैं एक तरफ सोफे पर जा कर बैठ गई, पर मुझे बड़ा अजीब लग रहा था कि पार्टी में आए कुछ लोगों की नजरें सिर्फ मुझे ही घूर रही थीं.

मैं अपनेआप को असहज महसूस कर रही थी और सोच रही थी कि इतनी जल्दी यहां नहीं आना चाहिए था.

तभी मेरे करीब विनोद आ कर बैठ गया, जो मेरा ही कलीग था. वह कहने लगा, ‘‘अरे वाह, आज तो आप गजब ढा रही हैं इस नीले रंग की साड़ी में. ऊपर से ये बिंदी, चूड़ी… पहना कीजिए, अच्छी लग रही हैं… अब यह सब कौन मानता है.’’

तभी उधर से माधवजी कहने लगे, जो औफिस के ही सीनियर स्टाफ थे, ‘‘सच में आप को देख कर कोई नहीं कह सकता कि अभी 2 साल पहले ही आप के पति का देहांत हो चुका है.’’

जब मैं ने अपनी कड़ी नजर उन पर डाली, तो वे हकलाते हुए कहने लगे, ‘‘म… मेरा मतलब है कि आप अच्छी लग रही हैं.’’

पार्टी में आए सब लोग मुझे ऐसे देखने लगे, जैसे मैं ने कितना बड़ा अपराध कर डाला हो. सब की खा जाने वाली नजरों और बातों को झेलना अब मेरे नए नामुमकिन हो गया था. फफक कर मेरी आंखों से आंसू निकल पड़े. मुझे लगा कि अब यहां रुकना सही नहीं है.

मैं पलट कर जाने लगी कि तभी पीछे से सरलाजी के स्पर्श ने मुझे चौंका दिया. शायद वे सब सुन चकी थीं.

‘‘अरे आंटी, आप आ गईं,’’ मुझे जैसे बल मिल गया.

सरलाजी बोलीं, ‘‘हां, मैं जाम में फंस गई थी. पर तुम कहां जा रही हो… घर?’’

मैं बोली, ‘‘जी आंटी, वे बच्चे घर पर अकेले हैं, तो…’’

‘‘पर बेटा, पार्टी तो अभी शुरू ही हुई है. एंजौय करो न, घर ही तो जाना है. कहीं तुम इन सब की बातों से डर कर तो घर नहीं जा रही हो? अगर ऐसी बात है तो जाओ, लेकिन एक बात सुनती जाओ. ऐसे टुच्चे और बेशर्म लोग तो तुम्हें हर जगह मिल जाएंगे, फिर कहांकहां और किसकिस से भागती फिरोगी. अरे, भागना तो इन्हें चाहिए यहां से, क्योंकि ये सब दिल और दिमाग दोनों से बीमार हैं…

‘‘शर्म नहीं आती आप लोगों को ऐसी बातें करते हुए. और विनोद आप, क्या मुझे पता नहीं कि आप की नजर कितनी गंदी है इस को ले कर. घर में बीवी होते हुए भी बाहर की औरतों को कैसी गंदी नजरों से देखते हैं आप, क्या यह मुझे बताना पड़ेगा.

‘‘और माधवजी आप, कम से कम अपनी उम्र का तो लिहाज कर लिया होता. अरे, यह तो आप की बेटी जैसी है. बड़े समाज के ठेकेदार बनते फिरते हैं आप, तो फिर वह औरत कौन है, जिसे को आप ने अपने घर में रखा हुआ है, क्योंकि जहां तक मुझे पता है, आप की पत्नी को तो मरे हुए सालों हो चुके हैं.

‘‘क्यों, मैं सच बोल रही हूं न? बोलती बंद हो गई आप की…. घटिया इनसान, खुद में हजारों छेद हैं और ?झांक रहे हैं दूसरे की जिंदगी में…’’

सरलाजी आगे कहने लगीं, ‘‘ऐसा क्या गुनाह कर दिया इस ने, जो सब मिल कर इस की खिल्ली उड़ा रहे हैं. कल तक तो आप सब को कोई एतराज नहीं था इस के पहननेओढ़ने से, तो फिर आज क्या हो गया? क्योंकि अब इस का पति नहीं रहा इसलिए? इसलिए अब यह अपने मन का पहनओढ़ नहीं सकती? हंसबोल नहीं सकती? अपनी पसंद का खा नहीं सकती?

‘‘क्या इस के पति के साथ इस के अरमान भी मर गए? और अब इसे वही सबकुछ करना चाहिए, जो आप सब को ठीक लगे?

‘‘कहने को तो यह हमारी दुनिया, हमारा समाज, हमारा परिवार है, पर जब एक पति न हो तो यही दुनिया, समाज और परिवार एक अकेली औरत के लिए पराया हो जाता है.

‘‘कल तक जो औरत अपने मनमुताबिक जीती रही, आज उसी औरत की खुशियों पर पाबंदियां लगा दी जाती हैं, क्योंकि अब उस का पति नहीं रहा इसलिए. तो क्या इस की सजा उन मातापिता, भाईबहन और रिश्तेदारों को नहीं देनी चाहिए, जो उस के पति के रिश्ते में हैं? पत्नी को ही इस की सजा क्यों दी जाती है?’’यह सुन कर सभी लोगों के सिर शर्म से झक गए. Hindi Family Story

Hindi Family Story: मुझे यकीन है – शौहर को तरसती गुलशन

Hindi Family Story: पढ़ीलिखी गुलशन की शादी मसजिद के मुअज्जिन हबीब अली के बेटे परवेज अली से धूमधाम से हुई. लड़का कपड़े का कारोबार करता था. घर में जमीनजायदाद सबकुछ था.

गुलशन ब्याह कर आई तो पहली रात ही उसे अपने मर्द की असलियत का पता चल गया. बादल गरजे जरूर, पर ठीक से बरस नहीं पाए और जमीन पानी की बूंदों के लिए तरसती रह गई. वलीमा के बाद गुलशन ससुराल दिल में मायूसी का दर्द ले कर लौटी.

खानदानी घर की पढ़ीलिखी लड़की होने के बावजूद सीधीसादी गुलशन को एक ऐसे आदमी को सौंप दिया गया, जो सिर्फ चारापानी का इंतजाम तो करता, पर उस का इस्तेमाल नहीं कर पाता था.

गुलशन को एक हफ्ते बाद हबीब अली ससुराल ले कर आए. उस ने सोचा कि अब शायद जिंदगी में बहार आए, पर उस के अरमान अब भी अधूरे ही रहे.

मौका पा कर एक रात को गुलशन ने अपने शौहर परवेज को छेड़ा, ‘‘आप अपना इलाज किसी अच्छे डाक्टर से क्यों नहीं कराते?’’

‘‘तुम चुपचाप सो जाओ. बहस न करो. समझी?’’ परवेज ने कहा.

गुलशन चुपचाप दूसरी तरफ मुंह कर के अपने अरमानों को दबा कर सो गई. समय बीतता गया. ससुराल से मायके आनेजाने का काम चलता रहा. इस बात को दोनों समझ रहे थे, पर कहते किसी से कुछ नहीं थे. दोनों परिवार उन्हें देखदेख कर खुश होते कि उन के बीच आज तक तूतूमैंमैं नहीं हुई है.

इसी बीच एक ऐसी घटना घटी, जिस ने गुलशन की जिंदगी बदल दी. मसजिद में एक मौलाना आ कर रुके. उन की बातचीत से मुअज्जिन हबीब अली को ऐसा नशा छाया कि वे उन के मुरीद हो गए. झाड़फूंक व गंडेतावीज दे कर मौलाना ने तमाम लोगों का मन जीत लिया था. वे हबीब अली के घर के एक कमरे में रहने लगे.

‘‘बेटी, तुम्हारी शादी के  2 साल हो गए, पर मुझे दादा बनने का सुख नहीं मिला. कहो तो मौलाना से तावीज डलवा दूं, ताकि इस घर को एक औलाद मिल जाए?’’ हबीब अली ने अपनी बहू गुलशन से कहा.

गुलशन समझदार थी. वह ससुर से उन के बेटे की कमी बताने में हिचक रही थी. चूंकि घर में ससुर, बेटे, बहू के सिवा कोई नहीं रहता था, इसलिए वह बोली, ‘‘बाद में देखेंगे अब्बूजी, अभी मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’

हबीब अली ने कुछ नहीं कहा.

मुअज्जिन हबीब अली के घर में रहते मौलाना को 2 महीने बीत गए, पर उन्होंने गुलशन को देखा तक नहीं था. उन के लिए सुबहशाम का खाना खुद हबीब अली लाते थे.

दिनभर मौलाना मसजिद में इबादत करते. झाड़फूंक के लिए आने वालों को ले कर वे घर आते, जो मसजिद के करीब था. हबीब अली अपने बेटे परवेज के साथ दुकान में रहते थे. वे सिर्फ नमाज के वक्त घर या मसजिद आते थे.

मौलाना की कमाई खूब हो रही थी. इसी बहाने हबीब अली के कपड़ों की बिक्री भी बढ़ गई थी. वे जीजान से मौलाना को चाहते थे और उन की बात नहीं टालते थे.

एक दिन दोपहर के वक्त मौलाना घर आए और दरवाजे पर दस्तक दी.

‘‘जी, कौन है?’’ गुलशन ने अंदर से ही पूछा.

‘‘मैं मौलाना… पानी चाहिए.’’

‘‘जी, अभी लाई.’’

गुलशन पानी ले कर जैसे ही दरवाजा खोल कर बाहर निकली, गुलशन के जवां हुस्न को देख कर मौलाना के होश उड़ गए. लाजवाब हुस्न, हिरनी सी आंखें, सफेद संगमरमर सा जिस्म…

मौलाना गुलशन को एकटक देखते रहे. वे पानी लेना भूल गए.

‘‘जी पानी,’’ गुलशन ने कहा.

‘‘लाइए,’’ मौलाना ने मुसकराते हुए कहा.

पानी ले कर मौलाना अपने कमरे में लौट आए, पर दिल गुलशन के कदमों में दे कर. इधर गुलशन के दिल में पहली बार किसी पराए मर्द ने दस्तक दी थी. मौलाना अब कोई न कोई बहाना बना कर गुलशन को आवाज दे कर बुलाने लगे. इधर गुलशन भी राह ताकती कि कब मौलाना उसे आवाज दें.

एक दिन पानी देने के बहाने गुलशन का हाथ मौलाना के हाथ से टकरा गया, उस के बाद जिस्म में सनसनी सी फैल गई. मुहब्बत ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया था.

ऊपरी मन से मौलाना ने कहा, ‘‘सुनो मियां हबीब, मैं कब तक तुम्हारा खाना मुफ्त में खाऊंगा. कल से मेरी जिम्मेदारी सब्जी लाने की. आखिर जैसा वह तुम्हारा बेटा, वैसा मेरा भी बेटा हुआ. उस की बहू मेरी बहू हुई. सोच कर कल तक बताओ, नहीं तो मैं दूसरी जगह जा कर रहूंगा.’’

मुअज्जिन हबीब अली ने सोचा कि अगर मौलाना चले गए, तो इस का असर उन की कमाई पर होगा. जो ग्राहक दुकान पर आ रहे हैं, वे नहीं आएंगे. उन को जो इज्जत मौलाना की वजह से मिल रही है, वह नहीं मिलेगी.

इस समय पूरा गांव मौलाना के अंधविश्वास की गिरफ्त में था और वे जबरदस्ती तावीज, गंडे, अंगरेजी दवाओं को पीस कर उस में राख मिला कर इलाज कर रहे थे. हड्डियों को चुपचाप हाथों में रख कर भूतप्रेत निकालने का काम कर रहे थे.

बापबेटे दोनों ने मौलाना से घर छोड़ कर न जाने की गुजारिश की. अब मौलाना दिखाऊ ‘बेटाबेटी’ कह कर मुअज्जिन हबीब अली का दिल जीतने की कोशिश करने लगे.

नमाज के बाद घर लौटते हुए हबीब अली ने मौलाना से कहा, ‘‘जनाब, आप इसे अपना ही घर समझिए. आप की जैसी मरजी हो वैसे रहें. आज से आप घर पर ही खाना खाएंगे, मुझे गैर न समझें.’’

मौलाना के दिल की मुराद पूरी हो गई. अब वे ज्यादा वक्त घर पर गुजारने लगे. बाहर के मरीजों को जल्दी से तावीज दे कर भेज देते. इस काम में अब गुलशन भी चुपकेचुपके हाथ बंटाने लगी थी. तकरीबन 6 महीने का समय बीत चुका था. गुलशन और मौलाना के बीच मुहब्बत ने जड़ें जमा ली थीं.

एक दिन मौलाना ने सोचा कि आज अच्छा मौका है, गुलशन की चाहत का इम्तिहान ले लिया जाए और वे बिस्तर पर पेट दर्द का बहाना बना कर लेट गए.

‘‘मेरा आज पेट दर्द कर रहा है. बहुत तकलीफ हो रही है. तुम जरा सा गरम पानी से सेंक दो,’’ गुलशन के सामने कराहते हुए मौलाना ने कहा.

‘‘जी,’’ कह कर वह पानी गरम करने चली गई. थोड़ी देर बाद वह नजदीक बैठ कर मौलाना का पेट सेंकने लगी. मौलाना कभीकभी उस का हाथ पकड़ कर अपने पेट पर घुमाने लगे.

थोड़ा सा झिझक कर गुलशन मौलाना के पेट पर हाथ फिराने लगी. तभी मौलाना ने जोश में गुलशन का चुंबन ले कर अपने पास लिटा लिया. मौलाना के हाथ अब उस के नाजुक जिस्म के उस हिस्से को सहला रहे थे, जहां पर इनसान अपना सबकुछ भूल जाता है.

आज बरसों बाद गुलशन को जवानी का वह मजा मिल रहा था, जिस के सपने उस ने संजो रखे थे. सांसों के तूफान से 2 जिस्म भड़की आग को शांत करने में लगे थे. जब तूफान शांत हुआ, तो गुलशन उठ कर अपने कमरे में पहुंच गई.

‘‘अब्बू, मुझे यकीन है कि मौलाना के तावीज से जरूर कामयाबी मिलेगी,’’ गुलशन ने अपने ससुर हबीब अली से कहा.

‘‘हां बेटी, मुझे भी यकीन है.’’

अब हबीब अली काफी मालदार हो गए थे. दिन काफी हंसीखुशी से गुजर रहे थे. तभी वक्त ने ऐसी करवट बदली कि मुअज्जिन हबीब अली की जिंदगी में अंधेरा छा गया.

एक दिन हबीब अली अचानक किसी जरूरी काम से घर आए. दरवाजे पर दस्तक देने के काफी देर बाद गुलशन ने आ कर दरवाजा खोला और पीछे हट गई. उस का चेहरा घबराहट से लाल हो गया था. बदन में कंपकंपी आ गई थी.

हबीब अली ने अंदर जा कर देखा, तो गुलशन के बिस्तर पर मौलाना सोने का बहाना बना कर चुपचाप मुंह ढक कर लेटे थे.

यह देख कर हबीब अली के हाथपैर फूल गए, पर वे चुपचाप दुकान लौट आए.

‘‘अब क्या होगा? मुझे डर लग रहा है,’’ कहते हुए गुलशन मौलाना के सीने से लिपट गई.

‘‘कुछ नहीं होगा. हम आज ही रात में घर छोड़ कर नई दुनिया बसाने निकल जाएंगे. मैं शहर से गाड़ी का इंतजाम कर के आता हूं. तुम तैयार हो न?’’

‘‘मैं तैयार हूं. जैसा आप मुनासिब समझें.’’

मौलाना चुपचाप शहर चले गए. मौलाना को न पा कर हबीब अली ने समझा कि उन के डर की वजह से वह भाग गया है.

सुबह हबीब अली के बेटे परवेज ने बताया, ‘‘अब्बू, गुलशन भी घर पर नहीं है. मैं ने तमाम जगह खोज लिया, पर कहीं उस का पता नहीं है. वह बक्सा भी नहीं है, जिस में गहने रखे हैं.’’

हबीब अली घबरा कर अपनी जिंदगी की कमाई और बहू गुलशन को खोजने में लग गए. पर गुलशन उन की पहुंच से काफी दूर जा चुकी थी, मौलाना के साथ अपना नया घर बसाने. Hindi Family Story

Social Story In Hindi: काशी वाले पंडाजी – अंधविश्वास का कुचक्र

Social Story In Hindi: रबी की फसल तैयार होने के बाद काशी वाले पंडाजी का इलाके में आना हुआ. लेकिन इस बार पंडाजी के साथ एक पहलवान चेला भी था, जिस की उम्र तकरीबन 35 साल के आसपास थी. पर देखने में वह 21-22 साल का ही लगता था.

हाथ में कई अंगूठियां, छोटेछोटे काले बाल, प्रैस

की हुई खादी की धोती और पैर में कोल्हापुरी चप्पल उस पर खूब फबती थी.

पंडाजी बांस की बनी एक छोटी डोलची ले कर चलते थे. डोलची के हैंडिल के सहारे 2 छोटीछोटी गोल रंगीन शीशियां बंधी रहती थीं.

पंडाजी बड़ी सावधानी से शीशी खोलते और बहुत ही थोड़ा जल निकाल कर यजमान के बरतन में डालते. इस के बाद पहलवान चेला शुरू हो जाता, ‘‘यह प्रयाग का गंगाजल है. पंडाजी ने नवरात्र के समय मंदिर में इसे कठिन साधना के साथ मंत्रों से पढ़ा है.

‘‘इस गंगाजल में शुद्ध जल मिला कर घर के चारों तरफ छिड़क दें. इस के बाद सारा उपद्रव शांत हो जाएगा. बालबच्चे खुश रहेंगे और यजमान का कल्याण होगा.’’

उस पहलवान चेले की बात खत्म होते ही लाल और पीले धागे वाले

2 तावीज वह पंडाजी की ओर बढ़ा देता और कुछ क्षण बाद तावीजों को ले कर यजमान के हाथों में रखते हुए कहता, ‘‘पंडाजी बता रहे हैं कि लाल धागे वाला तावीज यजमान बाएं हाथ में मंगलवार को पहनें और पीले धागे वाला तावीज बुधवार को यजमान दाहिने हाथ में पहनें. इस के बाद सब तरह की बाधा दूर हो जाएगी और हर काम में तरक्की होगी.’’

यजमान दोनों हथेलियों पर 2 रंगों वाले तावीजों को इस तरह देखने लगता, मानो वह तावीज नहीं, कुबेर के खजाने की कुंजी और दवा हो.

चेला दक्षिणा उठा कर गिनता. अगर वह 51 रुपए होती, तो चुपचाप पंडाजी की दाहिनी जेब से पर्स निकाल कर उस में रख देता और अगर पैसा इस से कम होता, तो कहता, ‘‘यह तो नवरात्र का खर्च भी नहीं है. लौट कर भी तो अनुष्ठान करना होगा.’’

तब यजमान कुछ रुपए निकाल कर चेले को बढ़ा देता. चेला नोटों की गिनती किए बिना पर्स के हवाले कर देता.

पंडाजी यजमानों द्वारा दी गई दक्षिणा के हिसाब से ही अपना कीमती समय देते थे. पर वे माई के घर पर घंटों आसन जमाते. माई बहुत दिनों तक परदेश में रही थीं और उन की तीनों कुंआरी बेटियां भी देखने में खूबसूरत थीं.

पंडाजी के गांव में पधारते ही माई के दरवाजे पर उन के आसन का इंतजाम हो गया था. तीनों बेटियां भी अच्छी तरह सजसंवर कर तैयार हो चुकी थीं.

पंडाजी के पहुंचते ही माई ने उन की आवभगत की. पंडाजी आसन पर बैठने ही वाले थे कि एक लड़की ने आ कर उन के पैर छुए. उन्होंने पूछा, ‘‘हां, क्या नाम है?’’

‘‘जी… संजू.’’

‘‘कुंभ राशि. कन्या के लक्षण तो अति विलक्षण हैं. यह तो पिछले जन्म में राजकन्या थी. कुछ चूक हो जाने के चलते इसे इस कुल में आना पड़ा, तभी तो यह इतनी सुंदर और चंचला है.’’

सुंदर और चंचला शब्द सुनते ही संजू के गाल और भी लाल हो उठे और वह रोमांचित हो कर पंडाजी के और करीब होने लगी.

तभी दूसरी लड़की रंजू ने कहा, ‘‘पंडाजी, इस को घरवर कैसा मिलेगा? इस की शादी कब तक होगी? हम तो इसी चिंता में परेशान रहते हैं. इस साल ही इस के हाथ पीले होने का कोई जतन बताइए न.’’

रंजू की बातें सुन कर पंडाजी चेले की ओर देखने लगे. संजू के यौवन में भटकता चेला अचकचा कर पंडाजी की ओर देखता हुआ कुछ पल चुप रहने के बाद बोला, ‘‘बीते सावन में इस के हाथ से जो सांप मर गया, वह कुलदेवता था. कुलदेवता इस पर बहुत गुस्सा हैं. इस के लिए मंत्र और तंत्र दोनों की साधनाएं करनी होंगी.

‘‘अच्छा है कि आज मंगलवार है. आज रात यह अनुष्ठान हो जाए, तो सब बिगड़ा काम बन सकता है.’’

चेले का यह सु?ाव माई को डूबते को तिनके का सहारा जैसा लगा.

सभी समस्याओं का समाधान निकल आने से माई की जान में जान आई. ठीक 5 बजे अनुष्ठान शुरू करने की बात कह कर पंडाजी चेले के साथ कैथीटोला गांव की ओर चल पड़े.

रात 9 बजे से माई के आंगन में अनुष्ठान का काम पंडाजी और चेले ने शुरू किया. हर तरह से सजीसंवरी तीनों बहनें भी आ कर लाइन से बैठ गईं.

कुछ देर तक मंत्र पढ़ने के बाद आग जला कर उन्होंने माई के साथसाथ संजू, रंजू और मंजू को भभूत मिला प्रसाद खाने को दिया. इस के बाद चेले ने वहां मौजूद पासपड़ोस के लोगों को बाहर जाने का इशारा किया.

इशारा पाते ही सभी वहां से चले गए. फिर उस के बाद रात में क्या हुआ, गांव वालों को इस का क्या पता…

अगली सुबह माई के घर में हाहाकार मचा हुआ था. माई और उस की छोटी बेटी मंजू छाती पीटपीट कर चिल्ला रही थीं, ‘‘कोई हमारी संजू… रंजू को वापस ला दो. वह पंडा पुरोहित नहीं, ठग था.

‘‘हम दोनों को बेहोश कर के पंडा और चेला मेरी दोनों बेटियों को उठा

कर कहां ले गए… कुछ मालूम नहीं. हमारी बेटियों को वापस ला दो. उन्हें बचा लो.’’

गांव वालों को माजरा समझते देर नहीं लगी.

राजमणि काका ने तुरंत रेलवे स्टेशन और बसस्टैंड के लिए कुछ लोगों को भेजा, लेकिन वे सभी खाली हाथ निराश लौट आए. तब पुलिस में मामले को ले जाया गया. लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात.

माई के पास कलेजे पर पत्थर रख कर संजू और रंजू को भूलने के अलावा कोई चारा नहीं था.

इधर उन दोनों बहनों ने समझदारी से काम लिया. पंडा और चेले की गलत मंसा भांपते हुए चालाकी से संजू ने पंडाजी से और रंजू ने चेले से ब्याह कर मौजमस्ती से जिंदगी बिताने का प्रस्ताव रखा.

पंडा और चेला इस प्रस्ताव को सुन कर बहुत खुश हुए. रंजू ने कहा, ‘‘लेकिन, इस के लिए जरूरी है कि हमारे घरपरिवार, गांव के लोग आगे आएं. कोई कानूनी दांवपेंच नहीं लगाएं और हमें पुलिस के चक्कर में नहीं पड़ना पड़े, सो हम लोग बिना समय गंवाए कोर्ट मैरिज कर लें.’’

संजू और रंजू के रूपजाल में फंसे पंडा और चेला कोर्ट मैरिज के कागजात के साथ अदालत में जज के सामने हाजिर हुए.

जब जज ने संजू और रंजू से उन की रजामंदी के बारे में पूछा, तो संजू कहने लगी, ‘‘जज साहब, ये दोनों हमारे गांव में पंडापुजारी बन कर आए थे. भोलेभाले गांव वालों के सामने तंत्रमंत्र का मायाजाल फैला कर इन ढोंगियों ने उन्हें खूब लूटा.

‘‘हम तीनों बहनों पर तो ये लट्टू बने थे. माई को घरपरिवार पर देवी का प्रकोप बता कर तांत्रिक अनुष्ठान कराने के लिए इन दोनों ने इसलिए मजबूर किया, ताकि उस की आड़ में हमें भोग सकें.

‘‘इन की खराब नीयत को भांप कर हम दोनों बहनों ने आपस में विचार किया और इन दोनों को कानून के हवाले करने के लिए यह नाटक खेला है, ताकि कानून इन ढोंगियों को ऐसी सजा दे, ताकि फिर कभी इस तरह की घटना न होने पाए.’’

संजू और रंजू के बयान को दर्ज करते हुए अदालत ने पंडा और चेले को जेल भेजने का आदेश दिया.

संजू और रंजू ने जब गांव वालों को यह दास्तान सुनाई, तो सभी कहने लगे, ‘सचमुच, तुम्हारी दोनों बेटियां बड़ी बहादुर हैं माई. इन दोनों ने वह कर दिखाया है, जो बहुत कम लोग ही कर पाते हैं. पूरे गांव को इन पर नाज है.’

माई की आंखों में भी खुशी और संतोष के आंसू छलछला रहे थे. Social Story In Hindi

Best Hindi Kahani: मरहम – गुंजन का अनकहा दर्द

Best Hindi Kahani: गुंजन जल्दीजल्दी काम निबटा रही थी. दाल और सब्जी बना चुकी थी. बस, फुलके बनाने बाकी थे. तभी अभिनव किचन में दाखिल हुआ और गुंजन के करीब रखे गिलास को उठाने लगा. उस ने जानबू झ कर गुंजन को हौले से स्पर्श करते हुए गिलास उठाया और पानी ले कर बाहर निकल गया.

गुंजन की धड़कनें बढ़ गईं. एक नशा सा उस के बदन को महकाने लगा. उस ने चाहत भरी नजरों से अभिनव की तरफ देखा जो उसे ही निहार रहा था. गुंजन की धड़कनें फिर से ठहर गईं. उसे लगा, जैसे पूरे जहान का प्यार लिए अभिनव ने उसे आगोश में ले लिया हो और वह दुनिया को भूल कर अभिनव में खो गई हो.

तभी अम्माजी अखबार ढूंढ़ती हुई कमरे में दाखिल हुईं और गुंजन का सपना टूट गया. नजरें चुराती हुई गुंजन फिर से काम में लग गई.

गुंजन अभिनव के यहां खाना बनाने का काम करती है. अम्माजी का बड़ा बेटा अनुज और बहू सारिका जौब पर जाते हैं. छोटा बेटा अभिनव भी एक आईटी कंपनी में काम करता है. उस की अभी शादी नहीं हुई है और वह गुंजन की तरफ आकृष्ट है.

22 साल की गुंजन बेहद खूबसूरत है और वह अपने मातापिता की इकलौती संतान है. मातापिता ने उसे बहुत लाड़प्यार से पाला है. इंटर तक पढ़ाया भी है. मगर घर की माली हालत सही नहीं होने की वजह से उसे दूसरों के घरों में खाना बनाने का काम करना पड़ा.

गुंजन जानती है कि अभिनव ऊंची जाति का पढ़ालिखा लड़का है और अभिनव के साथ उस का कोई मेल नहीं हो सकता. मगर कहते हैं न कि प्यार ऐसा नशा है जो अच्छेअच्छों की बुद्धि पर ताला लगा देता है. प्यार के एहसास में डूबा व्यक्ति सहीगलत, ऊंचनीच, अच्छाबुरा कुछ भी नहीं सम झता. उसे तो बस किसी एक शख्स का खयाल ही हरपल रहने लगता है और यही हो रहा था गुंजन के साथ भी. उसे सोतेजागते हर समय अभिनव ही नजर आने लगा था.

धीरेधीरे वक्त गुजरता गया. अभिनव की हिम्मत बढ़ती गई और गुंजन भी उस के आगे कमजोर पड़ती गई. एक दिन मौका देख कर अभिनव ने उसे बांहों में भर लिया. गुंजन ने खुद को छुड़ाने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘अभिनवजी, अम्माजी ने देख लिया तो क्या सोचेंगी?’’

‘‘अम्मा सो रही हैं, गुंजन. तुम उन की चिंता मत करो. बहुत मुश्किल से आज हमें ये पल मिले हैं. इन्हें बरबाद न करो.’’

‘‘मगर अभिनवजी, यह सही नहीं है. आप का और मेरा कोई मेल नहीं,’’ गुंजन अब भी सहज नहीं थी.

‘‘ऐसी बात नहीं है गुंजन. मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. प्यार में कोई छोटाबड़ा नहीं होता. बस, मु झे इन जुल्फों में कैद हो जाने दो. गुलाब की पंखुड़ी जैसे इन लबों को एक दफा छू लेने दो.’’

अभिनव किसी भी तरह गुंजन को पाना चाहता था. गुंजन अंदर से डरी हुई थी मगर अभिनव का प्यार उसे अपनी तरफ खींच रहा था. आखिर गुंजन ने भी हथियार डाल दिए. वह एक प्रेयसी की भांति अभिनव के सीने से लग गई. दोनों एकदूसरे के आलिंगन में बंधे प्यार की गहराई में डूबते रहे. जब होश आया तो गुंजन की आंखें छलछला आईं. वह बोली, ‘‘आप मेरा साथ तो दोगे न? जमाने की भीड़ में मु झे अकेला तो नहीं छोड़ दोगे?’’

‘‘पागल हो क्या? प्यार करता हूं. छोड़ कैसे दूंगा?’’ कह कर उस ने फिर से गुंजन को चूम लिया. गुंजन फिर से उस के सीने में दुबक गई. वक्त फिर से ठहर गया.

अब तो ऐसा अकसर होने लगा. अभिनव प्यार का दावा कर के गुंजन को करीब ले आता.

दोनों ने ही प्यार के रास्ते पर बढ़ते हुए मर्यादाओं की सीमारेखाएं तोड़ दी थीं. गुंजन प्यार के सुहाने सपनों के साथ सुंदर घरसंसार के सपने भी देखने लगी थी.

मगर एक दिन वह देख कर भौचक्की रह गई कि अभिनव के रिश्ते की बात करने के लिए एक परिवार आया हुआ है. मांबाप के साथ एक आधुनिक, आकर्षक और स्टाइलिश लड़की बैठी हुई थी.

अम्माजी ने गुंजन से कुछ खास बनाने की गुजारिश की तो गुंजन ने सीधा पूछ लिया, ‘‘ये कौन लोग हैं अम्माजी?’’

‘‘ये अपने अभि को देखने आए हैं. इस लड़की से अभि की शादी की बात चल रही है. सुंदर है न लड़की?’’ अम्माजी ने पूछा तो गुंजन ने हां में सिर हिला दिया.

उस के दिलोदिमाग में तो एक भूचाल सा आ गया था. उस दिन घर जा कर भी गुंजन की आंखों के आगे उसी लड़की का चेहरा नाचता रहा. आंखों से नींद कोसों दूर थी.

अगले दिन जब वह अभिनव के घर खाना बनाने गई तो सब से पहले मौका देख कर उस ने अभिनव से बात की, ‘‘यह सब क्या है अभिनव? आप की शादी की बात चल रही है? आप ने अपने घर वालों को हमारे प्यार की बात क्यों नहीं बताई?’’

‘‘नहीं गुंजन, हमारे प्यार की बात मैं उन्हें नहीं बता सकता.’’

‘‘मगर क्यों?’’

‘‘क्योंकि हमारा प्यार समाज स्वीकार नहीं करेगा. मेरे मांबाप कभी नहीं मानेंगे कि मैं एक नीची जाति की लड़की से शादी करूं,’’ अभिनव ने बेशर्मी से कहा.

‘‘तो फिर प्यार क्यों किया था आप ने? शादी नहीं करनी थी तो मु झे सपने क्यों दिखाए थे?’’ तड़प कर गुंजन बोली.

‘‘देखो गुंजन, सम झने का प्रयास करो. प्यार हम दोनों ने किया है. प्यार के लिए केवल हम दोनों की रजामंदी चाहिए थी. मगर शादी एक सामाजिक रिश्ता है. शादी के लिए समाज की अनुमति भी चाहिए. शादी तो मु झे घर वालों के कहेनुसार ही करनी होगी.’’

‘‘यानी प्यार नहीं, आप ने प्यार का नाटक खेला है मेरे साथ. मैं नहीं केवल मेरा शरीर चाहिए था. क्यों कहा था मु झे कि कभी अकेला नहीं छोड़ोगे?’’

‘‘मैं तुम्हें अकेला कहां छोड़ रहा हूं गुंजन? मैं तो अब भी तुम ही से प्यार करता हूं मेरी जान. यकीन मानो, हमारा यह प्यार हमेशा बना रहेगा. शादी भले ही उस से कर लूं मगर हम दोनों पहले की तरह ही मिलते रहेंगे. हमारा रिश्ता वैसा ही चलता रहेगा. मैं हमेशा तुम्हारा बना रहूंगा,’’ गुंजन को कस कर पकड़ते हुए अभिनव ने कहा.

गुंजन को लगा जैसे हजारों बिच्छुओं ने उसे जकड़ रखा हो. वह खुद को अभिनव

के बंधन से आजाद कर काम में लग गई. आंखों से आंसू बहे जा रहे थे और दिल तड़प रहा था.

घर आ कर वह सारी रात सोचती रही. अभिनव की बेवफाई और अपनी मजबूरी उसे रहरह कर कचोट रही थी. अभिनव के लिए भले ही यह प्यार तन की भूख थी मगर उस ने तो हृदय से चाहा था उसे. तभी तो अपना सबकुछ समर्पित कर दिया था. इतनी आसानी से वह अभिनव को माफ नहीं कर सकती थी. उस के किए की सजा तो देनी ही होगी. वह पूरी रात यही सोचती रही कि अभिनव को सबक कैसे सिखाया जाए.

आखिर उसे सम झ आ गया कि वह अभिनव से बदला कैसे ले सकती है. अगले दिन से ही उस ने बदले की पटकथा लिखनी शुरू कर दी.

उस दिन वह ज्यादा ही बनसंवर कर अभि के घर खाना बनाने पहुंची. अभि शाम

4 बजे की शिफ्ट में औफिस जाता था. अम्माजी हर दूसरे दिन 12 से 4 बजे तक के लिए घर से बाहर अपनी सखियों से मिलने जाती थीं. पिताजी के पैर में तकलीफ थी, इसलिए वे बिस्तर पर ही रहते थे.

12 बजे अम्माजी के जाने के बाद वह अभिनव के पास चली आई और उस का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘अभिनव, आप की शादी की बात सुन कर मैं दुखी हो गई थी. मगर अब मैं ने खुद को संभाल लिया है. शादी से पहले के इन दिनों को मैं भरपूर एंजौय करना चाहती हूं. आप की बांहों में खो जाना चाहती हूं.’’

अभिनव की तो मनमांगी मुराद पूरी हो रही थी. उस ने  झट गुंजन को करीब खींच लिया. दोनों एकदूसरे की आगोश में खोते चले गए. बैड पर अभि की बांहों में मचलती गुंजन ने सवाल किया, ‘‘कल आप सच कह रहे थे अभिनव, शादी के बाद भी आप मु झ से यह रिश्ता बनाए रखोगे न?’’

‘‘हां गुंजन, इस में तुम्हें शक क्यों है? शादी एक चीज होती है और प्यार दूसरी चीज. हम दोनों का प्यार और शरीर का यह मिलन हमेशा कायम रहेगा. शादी के बाद भी यह रिश्ता ऐसा ही चलता रहेगा,’’ कह कर अभिनव फिर से गुंजन को बेतहाशा चूमने लगा.

शाम को गुंजन अपने घर लौट आई. उसे खुद से घिन आ रही थी. वह बाथरूम में गई और नहा कर बाहर निकली. फिर मोबाइल ले कर बैठ गई. आज के उन के शारीरिक मिलन का एकएक पल इस मोबाइल में कैद था. उस ने बड़ी होशियारी से मोबाइल का कैमरा औन कर के ऐसी जगह रखा था जहां से दोनों की सारी हरकतें कैद हो गई थीं.

काफी देर तक का लंबा अंतरंग वीडियो था. 10 दिन के अंदर उस ने ऐसे

3-4 वीडियो और शूट कर लिए. फिर वीडियोज एडिट कर के बड़ी चतुराई से उस ने अपने चेहरे को छिपा दिया.

कुछ दिनों में अभिनव की शादी हो गई. 8-10 दिनों के अंदर ही उस ने अभिनव की पत्नी से दोस्ती कर ली और उस का मोबाइल नंबर ले लिया. अगले दिन उस ने अम्माजी को कह दिया कि उस की मुंबई में जौब लग गई है और अब काम पर नहीं आ पाएगी. उस दिन वह अभिनव से मिली भी नहीं और घर चली आई.

अगले दिन सुबहसुबह उस ने अपने और अभिनव के 2 अंतरंग वीडियो अभिनव की पत्नी को व्हाट्सऐप कर दिए. 2 घंटे बाद उस ने 2 और वीडियो व्हाट्सऐप किए और चैन से घर के काम निबटाने लगी.

शाम 4 बजे के करीब अभिनव का फोन आया. गुंजन को इस का अंदाजा पहले से था. उस ने मुसकराते हुए फोन उठाया तो सामने से अभिनव का रोता हुआ स्वर सुनाई दिया, ‘‘गुंजन, तुम ने यह क्या किया मेरे साथ? मेरी शादीशुदा जिंदगी की अभी ठीक से शुरुआत भी नहीं हुई थी और तुम ने ये वीडियोज भेज दिए. तुम्हें पता है, माया सुबह से ही मु झ से लड़ रही थी और अभीअभी सूटकेस ले कर हमेशा के लिए अपने घर चली गई. गुंजन, तुम ने यह क्या कर दिया मेरे साथ? अब मैं…’’

‘‘…अब तुम न घर के रहोगे न घाट के. गुडबाय मिस्टर अभिनव,’’ गुंजन ने कहा और फोन काट दिया.

उस ने आज अभिनव से बदला ले लिया था. खुद को मिले हर आंसुओं का बदला. आज उसे महसूस हो रहा था जैसे उस के जख्मों पर किसी ने मरहम लगा दिया हो. Best Hindi Kahani

Best Hindi Story: आखिर कब तक – धर्म बना दीवार

Best Hindi Story: रामरहमानपुर गांव सालों से गंगाजमुनी तहजीब की एक मिसाल था. इस गांव में हिंदुओं और मुसलिमों की आबादी तकरीबन बराबर थी. मंदिरमसजिद आसपास थे. होलीदीवाली, दशहरा और ईदबकरीद सब मिलजुल कर मनाते थे.

रामरहमानपुर गांव में 2 जमींदारों की हवेलियां आमनेसामने थीं. दोनों जमींदारों की हैसियत बराबर थी और आसपास के गांव में बड़ी इज्जत थी.

दोनों परिवारों में कई पीढि़यों से अच्छे संबंध बने हुए थे. त्योहारों में एकदसूरे के यहां आनाजाना, सुखदुख में हमेशा बराबर की सा  झेदारी रहती थी.

ब्रजनंदनलाल की एकलौती बेटी थी, जिस का नाम पुष्पा था. जैसा उस का नाम था, वैसे ही उस के गुण थे. जो भी उसे देखता, देखता ही रह जाता था. उस की उम्र नादान थी. रस्सी कूदना, पिट्ठू खेलना उस के शौक थे. गांव के बड़े   झूले पर ऊंचीऊंची पेंगे लेने के लिए वह मशहूर थी.

शौकत अली के एकलौते बेटे का नाम जावेद था. लड़कों की खूबसूरती की वह एक मिसाल था. बड़ों की इज्जत करना और सब से अदब से बात करना उस के खून में था. जावेद के चेहरे पर अभी दाढ़ीमूंछों का निशान तक नहीं था.

जावेद को क्रिकेट खेलने और पतंगबाजी करने का बहुत शौक था. जब कभी जावेद की गेंद या पतंग कट कर ब्रजनंदनलाल की हवेली में चली जाती थी, तो वह बिना  ि झ  झक दौड़ कर हवेली में चला जाता और अपनी पतंग या गेंद ढूंढ़ कर ले आता.

पुष्पा कभीकभी जावेद को चिढ़ाने के लिए गेंद या पतंग को छिपा देती थी. दोनों में खूब कहासुनी भी होती थी. आखिर में काफी मिन्नत के बाद ही जावेद को उस की गेंद या पतंग वापस मिल पाती थी. यह अल्हड़पन कुछ समय तक चलता रहा. बड़ेबुजुर्गों को इस खिलवाड़ पर कोई एतराज भी नहीं था.

समय तो किसी के रोकने से रुकता नहीं. पुष्पा अब सयानी हो चली थी और जावेद के चेहरे पर दाढ़ीमूंछ आने लगी थीं. अब जावेद गेंद या पतंग लेने हवेली के अंदर नहीं जाता था, बल्कि हवेली के बाहर से ही आवाज दे देता था.

पुष्पा भी अब बिना   झगड़ा किए नजर   झुका कर गेंद या पतंग वापस कर देती थी. यह   झुकी नजर कब उठी और जावेद के दिल में उतर गई, किसी को पता भी नहीं चला.

अब जावेद और पुष्पा दिल ही दिल में एकदूसरे को चाहने लगे थे. उन्हें अल्हड़ जवानी का प्यार हो गया था.

कहावत है कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. गांव में दोनों के प्यार की बातें होने लगीं और बात बड़ेबुजुर्गों तक पहुंची.

मामला गांव के 2 इज्जतदार घरानों का था. इसलिए इस के पहले कि मामला तूल पकड़े, जावेद को आगे की पढ़ाई के लिए शहर भेज दिया गया. यह सोचा गया कि वक्त के साथ इस अल्हड़ प्यार का बुखार भी उतर जाएगा, पर हुआ इस का उलटा.

जावेद पर पुष्पा के प्यार का रंग पक्का हो गया था. वह सब से छिप कर रात के अंधेरे में पुष्पा से मिलने आने लगा. लुकाछिपी का यह खेल ज्यादा दिन तक नहीं चल सका. उन की रासलीला की चर्चा आसपास के गांवों में भी होने लगी.

आसपास के गांवों की महापंचायत बुलाई गई और यह फैसला लिया गया कि गांव में अमनचैन और धार्मिक भाईचारा बनाए रखने के लिए दोनोंको उन की हवेलियों में नजरबंद कर दिया जाए.ब्रजनंदनलाल और शौकत अली को हिदायत दी गई कि बच्चों पर कड़ी नजर रखें, ताकि यह बात अब आगे न बढ़ने पाए. कड़ी सिक्योरिटी के लिए दोनों हवेलियों पर बंदूकधारी पहरेदार तैनात कर दिए गए.

अब पुष्पा और जावेद अपनी ही हवेलियों में अपने ही परिवार वालों की कैद में थे. कई दिन गुजर गए. दोनों ने खानापीना छोड़ दिया था. आखिरकार दोनों की मांओं का हित अपने बच्चों की हालत देख कर पसीज उठा. उन्होंने जातिधर्म के बंधनों से ऊपर उठ कर घर के बड़ेबुजुर्गों की नजर बचा कर गांव से दूर शहर में घर बसाने के लिए अपने बच्चों को कैद से आजाद कर दिया.

रात के अंधेरे में दोनों अपनी हवेलियों से बाहर निकल कर भागने लगे. ब्रजनंदनलाल और शौकत अली तनाव के कारण अपनी हवेलियों की छतों पर आधी रात बीतने के बाद भी टहल रहे थे. उन दोनों को रात के अंधेरे में 2 साए भागते दिखाई दिए. उन्हें चोर सम  झ कर दोनों जोर से चिल्लाए, पर वे दोनों साए और तेजी से भागने लगे.

ब्रजनंदनलाल और शौकत अली ने बिना देर किए चिल्लाते हुए आदेश दे दिया, ‘पहरेदारो, गोली चलाओ.’

‘धांयधांय’ गोलियां चल गईं और 2 चीखें एकसाथ सुनाई पड़ीं और फिर सन्नाटा छा गया.जब उन्होंने पास जा कर देखा, तो सब के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई. पुष्पा और जावेद एकदूसरे का हाथ पकड़े गोलियों से बिंधे पड़े थे. ताजा खून उन के शरीर से निकल कर एक नई प्रेमकहानी लिख रहा था.

आननफानन यह खबर दोनों हवेलियों तक पहुंच गई. पुष्पा और जावेद की मां दौड़ती हुई वहां पहुंच गईं. अपने जिगर के टुकड़ों को इस हाल में देख कर वे दोनों बेहोश हो गईं. होश में आने पर वे रोरो कर बोलीं, ‘अपने जिगर के टुकड़ों का यह हाल देख कर अब हमें भी मौत ही चाहिए.’

ऐसा कह कर उन दोनों ने पास खड़े पहरेदारों से बंदूक छीन कर अपनी छाती में गोली मार ली. यह सब इतनी तेजी से हुआ कि कोई उन को रोक भी नहीं पाया. यह खबर आग की तरह आसपास के गांवों में पहुंच गई. हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी. सवेरा हुआ, पुलिस आई और पंचनामा किया गया. एक हवेली से 2 जनाजे और दूसरी हवेली से 2 अर्थियां निकलीं और उन के पीछे हजारों की तादाद में भीड़.

अंतिम संस्कार के बाद दोनों परिवार वापस लौटे. दोनों हवेलियों के चिराग गुल हो चुके थे. अब ब्रजनंदनलाल और शौकत अली की जिंदगी में बच्चों की यादों में घुलघुल कर मरना ही बाकी बचा था.

ब्रजनंदनलाल और शौकत अली की निगाहें अचानक एकदसूरे से मिलीं, दोनों एक जगह पर ठिठक कर कुछ देर तक देखते रहे, फिर अचानक दौड़ कर एकदूसरे से लिपट कर रोने लगे.

गहरा दुख अपनों से मिल कर रोने से ही हलका होता है. बरसों का आपस का भाईचारा कब तक उन्हें दूर रख सकता था. शायद दोनों को एहसास हो रहा था कि पुरानी पीढ़ी की सोच में बदलाव की जरूरत है. Best Hindi Story

Story In Hindi: पटनिया – एडवैंचर आटोरिकशा ट्रिप

Story In Hindi: बचपन से ही मुझे एडवैंचर ट्रिप पर जाने का शौक रहा है. जान हथेली पर रख कर स्टंट द्वारा लाइफ के साथ लाइफ से खेलने या मजा लेने की इच्छाएं मेरे खून, दिल, गुरदे, फेफड़े वगैरह में उफान मारा करती थीं, लेकिन कमजोर दिल और कमजोर अर्थव्यवस्था के चलते अपने इस शौक को मैं डिस्कवरी चैनल, ऐक्शन हौलीवुड मूवी या रोहित शेट्टी की फिल्में देख कर पूरा कर लिया करता था.

कहते हैं कि जिस चीज की तमन्ना शिद्दत से की जाए तो सारी कायनात उसे मिलाने की साजिश करने लगती है. कुछ इसी तरह की घटना मेरे साथ भी हुई. कुदरत ने मेरी सुन ली और मुझे भी कम खर्च में नैचुरल एडवैंचर जर्नी का सुनहरा मौका मिल ही गया.

पहली बार बिहार की राजधानी पटना जाना हुआ. फिर क्या था, साधारण टिकट ले कर रेलवे के साधारण डब्बे में सेंध लगा कर घुस गया. सेंध लगाना मजबूरी थी, क्योंकि 103 सीट वाली अनारक्षित हर बोगी में तकरीबन 300 पैसेंजर भेड़बकरियों की तरह सीट, लगेज सीट, फर्श, टौयलैट और गेट पर बैठेखड़े, लटके या फिर टिके हुए थे.

मैं भी इमर्जैंसी विंडो के सहारे किसी तरह डब्बे में घुस कर अपने आयतन के अनुसार खड़ा रहने की जगह पर कब्जा कर बैठा. स्टेशनों पर चढ़नेउतरने वाले मुसाफिरों की धक्कामुक्की और गैरकानूनी वैंडरों की ठेलमठेल के बीच खुद को बैलेंस करते हुए 6 घंटे की रोमांचक यात्रा के बाद मैं आखिरकार पटना जंक्शन पहुंच ही गया.

इस के बाद मैं पटना जंक्शन से पटना सिटी के लिए आटोरिकशा की तलाश में बाहर निकला.पटना सिटी के लिए बड़ी आसानी आटोरिकशा मिल गया. ड्राइवर ने उस के पीछे वाली चौड़ी सीट पर 3 लोगों को बैठाया, जबकि आगे की ड्राइवर सीट वाली कम जगह पर अपने अलावा 3 दूसरे पैसेंजर को बड़ी ही कुशलता से एडजस्ट कर लिया.

कमोबेश सभी आटोरिकशा ड्राइवर तीनों पैसेंजर के साथ खुद को सैट कर  टेकऔफ करने के हालात में नजर आ रहे थे. कुछ ड्राइवर ड्राइविंग सीट पर बीच में बैठ कर तो कुछ साइड में शिफ्ट हो कर बैठे थे. समझ लो कि अपनी तशरीफ को 45 डिगरी के कोण पर सैट कर के आटोरिकशा हुड़हुड़ाने को तैयार था.

ड्राइवर समेत कुल 4 सीट वाले आटोरिकशा में 7 लोगों के सफर करने का हुनर देख कर मुझे समझते देर न लगी कि पटनिया आटोरिकशा ड्राइवर बेहतरीन मैनेजर होते हैं. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इस तरह का रोमांचक सीन आल इंडिया लैवल पर सिर्फ और सिर्फ पटना की सड़कों पर ही देखा जा सकता है.

पटना की सड़कों पर दोपहिया और चारपहिया के बीच तिपहिया की धूम के आगे रितिक रौशन और उदय चोपड़ा की ‘धूम’ भी फेल है.

पटनिया आटोरिकशा ड्राइवर समय का पक्का होता है. बसस्टैंड से पैसेंजर को बैठाने के चक्कर में ड्राइवर ने भले ही जितनी देरी की हो, पर पैसेंजर सीट फुल होने के बाद वह बाएंदाएं, राइट साइड, रौंग साइड, आटोरिकशा की मैक्सिमम स्पीड और तेज शोर के साथ राकेट की रफ्तार से मंजिल की ओर कूच कर गया.

भले ही इन लोगों के चलते सड़क पर जाम लग जाए, पर लाइन में रह कर समय बरबाद करने मे ये आटोरिकशा वाले यकीन नहीं रखते और अमिताभ बच्चन की तरह अपनी लाइन खुद तैयार कर लेते हैं.

शायद आगे सड़क पर जाम था या पेपर चैकिंग मुहिम चल रही थी, पता नहीं, पर इस बात का ड्राइवर को जैसे ही अंदाजा हुआ, फिर क्या था… उस ने हम सब को पटना की ऐसी टेढ़ीमेढ़ी गलियों में गोलगोल घुमाया, जिन गलियों को ढूंढ़ पाना कोलंबस के वंशज के वश से बाहर था. मुझे समझते देर न लगी कि यहां के आटोरिकशा ड्राइवर आविष्कारक या खोजी सोच के होते हैं.

हम राकेट की रफ्तार से सफर का मजा ले ही रहे थे कि फ्लाईओवर पर पीछे से हुड़हुड़ाता हुआ एक आटोरिकशा काफी तेजी से हमारे आगे निकल गया. शायद सवारियों से ज्यादा मंजिल तक पहुंचने की जल्दी ड्राइवर को थी. इसी मकसद को पूरा करने के लिए वह तीखे मोड़ पर टर्न लेने के दौरान तेज रफ्तार से बिना ब्रेक लिए पलटीमार सीन का लाइव प्रसारण कर बैठा.

हमारे खुद के आटोरिकशा की बेहिसाब स्पीड और रेस में आगे निकल रहे दूसरे आटोरिकशा का हश्र देख कर मेरे कलेजे के अंदर डीजे बजने लगा. समझते देर न लगी कि पटनिया सड़कों पर ड्राइवर के रूप में यमराज के दूत भी मौजूद हैं, जो अपनी हवाहवाई स्पीड और रेस से सवारियों को परिवार या परिचित तक पहुंचाने के साथसाथ अस्पताल से ऊपर वाले के दर्शन तक कराने में भी मास्टर होते हैं.

ऐसा नहीं है कि बिना सैंसर बोर्ड वाले वाहियात भोजपुरी गीत इंडस्ट्री की तरह पटनिया परिवहन बिना ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम वाली है. सौ से सवा सौ मीटर पर यातायात पुलिस वाले मौजूद रहते हैं.

ये पटनिया आटोरिकशा ड्राइवर की औकात से ज्यादा सवारी ढोने और जिगजैग ड्राइविंग जैसे साहसिक कारनामे के दौरान धृतराष्ट्र मोड में, जबकि हैलमैट, सीट बैल्ट, कागजात वगैरह चैक करने के दौरान संजय मोड में अपनी जिम्मेदारी पूरी करते नजर आते हैं.

बातोंबातों में एक बात बताना भूल ही गया कि यहां के आटोरिकशा ड्राइवर किराया मीटर या दूरी के बजाय पैसेंजर की मजबूरी के मुताबिक तय कर लेते हैं. घटतेबढ़ते पैट्रोल के कीमत की तरह समय, स्टैंड पर आटोरिकशा की तादाद और मुसाफिरों के मंजिल तक पहुंचने की जरूरत के हिसाब से ड्राइवर को किराया तय करते देख और सफर के दौरान ब्लूटूथ स्पीकर से सवारियों को भोंड़े भोजपुरी गीत सुनवाने की इन की आदत से मुझे समझते देर न लगी कि यहां के आटोरिकशा ड्राइवर कुशल अर्थशास्त्री और संगीत प्रेमी भी हैं.

अगर आप भी रोहित शेट्टी के प्रोग्राम ‘खतरों के खिलाड़ी’ में नहीं जा सके हों और महंगाई के आलम में जान हथेली पर वाले एडवैंचर ट्रिप के शौक को पूरा करने से चूक गए हैं, तो महज 10 से 20 रुपए में पटनिया टैंपू ट्रैवल एडवैंचर ट्रिप का मजा किसी भी सीजन में ले सकते हैं. मेरी गारंटी है कि इस शानदार ट्रिप में आप को हर पल यादगार रोमांच हासिल होगा. Story In Hindi

Hindi Kahani: अनोखा सबक – सिपाही टीकाचंद ने सीखा कैसा सबक

Hindi Kahani: सिपाही टीकाचंद बड़ी बेचैनी से दारोगाजी का इंतजार कर रहा था. वह कभी अपनी कलाई पर बंधी हुई घड़ी की तरफ देखता, तो कभी थाने से बाहर आ कर दूर तक नजर दौड़ाता, लेकिन दारोगाजी का कहीं कोई अतापता न था. वे शाम के 6 बजे वापस आने की कह कर शहर में किसी सेठ की दावत में गए थे, लेकिन 7 बजने के बाद भी वापस नहीं आए थे.

‘शायद कहीं और बैठे अपना रंग जमा रहे होंगे,’ ऐसा सोच कर सिपाही टीकाचंद दारोगाजी की तरफ से निश्चिंत हो कर कुरसी पर आराम से बैठ गया.

आज टीकाचंद बहुत खुश था, क्योंकि उस के हाथ एक बहुत अच्छा ‘माल’ लगा था. उस दिन के मुकाबले आज उस की आमदनी यानी वसूली भी बहुत अच्छी हो गई थी.

आज उस ने सारा दिन रेहड़ी वालों, ट्रक वालों और खटारा बस वालों से हफ्ता वसूला था, जिस से उस के पास अच्छीखासी रकम जमा हो गई थी. उन पैसों में से टीकाचंद आधे पैसे दारोगाजी को देता था और आधे खुद रखता था.

सिपाही टीकाचंद का रोज का यही काम था. ड्यूटी कम करना और वसूली करना… जनता की सेवा कम, जनता को परेशान ज्यादा करना.

सिपाही टीकाचंद सोच रहा था कि इस आमदनी में से वह दारोगाजी को आधा हिस्सा नहीं देगा, क्योंकि आज उस ने दारोगाजी को खुश करने के लिए अलग से शबाब का इंतजाम कर लिया है.

जिस दिन वह दारोगाजी के लिए शबाब का इंतजाम करता था, उस दिन दारोगाजी खुश हो कर उस से अपना आधा हिस्सा नहीं लेते थे, बल्कि उस दिन का पूरा हिस्सा उसे ही दे देते थे.

रात के तकरीबन 8 बजे तेज आवाज करती जीप थाने के बाहर आ कर रुकी. सिपाही टीकाचंद फौरन कुरसी छोड़ कर खड़ा हो गया और बाहर की तरफ भागा.

नशे में चूर दारोगाजी जीप से उतरे. उन के कदम लड़खड़ा रहे थे. आंखें नशे से बु?ाबु?ा सी थीं. उन की हालत से तो ऐसा लग रहा था, जैसे उन्होंने शराब पी रखी हो, क्योंकि चलते समय उन के पैर बुरी तरह लड़खड़ा रहे थे. उन के होंठों पर पुरानी फिल्म का एक गाना था, जिसे वे बड़े रोमांटिक अंदाज में गुनगुना रहे थे.

दारोगाजी गुनगुनाते हुए अंदर आ कर कुरसी पर ऐसे धंसे, जैसे पता नहीं वे कितना लंबा सफर तय कर के आए हों.

सिपाही टीकाचंद ने चापलूसी करते हुए दारोगाजी के जूते उतारे. दारोगाजी ने सामने रखी मेज पर अपने दोनों पैर रख दिए और फिर पैरों को ऐसे अंदाज में हिलाने लगे, जैसे वे थाने में नहीं, बल्कि अपने घर के ड्राइंगरूम में बैठे हों.

दारोगाजी ने अपनी पैंट की जेब में से एक महंगी सिगरेट का पैकेट निकाला और फिल्मी अंदाज में सिगरेट को अपने होंठों के बीच दबाया, तो सिपाही टीकाचंद ने अपने लाइटर से दारोगाजी की सिगरेट जला दी.

‘‘साहबजी, आज आप ने बड़ी देर लगा दी?’’ सिपाही टीकाचंद अपनी जेब में लाइटर रखते हुए बोला.

दारोगाजी सिगरेट का लंबा कश खींच कर धुआं बाहर छोड़ते हुए बोले, ‘‘टीकाचंद, आज माहेश्वरी सेठ की दावत में मजा आ गया. दावत में शहर के बड़ेबड़े लोग आए थे. मेरा तो वहां से उठने का मन ही नहीं कर रहा था, लेकिन मजबूरी में आना पड़ा.

‘‘अच्छा, यह बता टीकाचंद, आज का काम कैसा रहा?’’ दारोगाजी ने बात का रुख बदलते हुए पूछा.

‘‘आज का काम तो बस ठीक ही रहा, लेकिन आज मैं ने आप को खुश करने का बहुत अच्छा इंतजाम किया है,’’ सिपाही टीकाचंद ने धीरे से मुसकराते हुए कहा, तो दारोगाजी के कान खड़े हो गए.

‘‘कैसा इंतजाम किया है आज?’’ दारोगाजी बोले.

‘‘साहबजी, आज मेरे हाथ बहुत अच्छा माल लगा है. माल का मतलब छोकरी से है साहबजी, छोकरी क्या है, बस ये सम?ा लीजिए एकदम पटाखा है, पटाखा. आप उसे देखोगे, तो बस देखते ही रह जाओगे. मु?ो तो वह छोकरी बिगड़ी हुई अमीरजादी लगती है,’’ सिपाही टीकाचंद ने कहा.

उस की बात सुन कर दारोगाजी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई.

‘‘टीकाचंद, तुम्हारे हाथ वह कहां से लग गई?’’ दारोगाजी अपनी मूंछों पर ताव देते हुए बोले.

दारोगाजी के पूछने पर सिपाही टीकाचंद ने बताया, ‘‘साहबजी, आज मैं दुर्गा चौक से गुजर रहा था. वहां मैं ने एक लड़की को अकेले खड़े देखा, तो मुझे उस पर कुछ शक हुआ.

‘‘जिस बस स्टैंड पर वह खड़ी थी, वहां कोई भला आदमी खड़ा होना भी पसंद नहीं करता है. वह पूरा इलाका चोरबदमाशों से भरा हुआ?है.

‘‘उस को देख कर मैं फौरन समझ गया कि यह लड़की चालू किस्म की है. उस के आसपास 2-4 लफंगे किस्म के गुंडे भी मंडरा रहे थे.

‘‘मैं ने सोचा कि क्यों न आज आप को खुश करने के लिए उस को थाने ले चलूं. ऐसा सोच कर मैं फौरन उस के पास जा पहुंचा.

‘‘मुझे देख कर वहां मौजूद आवारा लड़के फौरन वहां से भाग लिए. मैं ने उस लड़की का गौर से मुआयना किया.

‘‘फिर मैं ने पुलिसिया अंदाज में कहा, ‘कौन हो तुम? और यहां अकेली खड़ी क्या कर रही हो?’

‘‘मेरी यह बात सुन कर वह मुझे घूरते हुए बोली, ‘यहां अकेले खड़ा होना क्या जुर्म है?’

‘‘उस का यह जवाब सुन कर मैं समझ गया कि यह लड़की चालू किस्म की है और आसानी से कब्जे में आने वाली नहीं.

‘‘मैं ने नाम पूछा, तो वह कहने लगी, ‘मेरे नाम वारंट है क्या?’

‘‘वह बड़ी निडर छोकरी है साहब. मैं जो भी बात कहता, उसे फौरन काट देती थी.

‘‘मैं ने उसे अपने जाल में फंसाना चाहा, लेकिन वह फंसने को तैयार ही नहीं थी.

‘‘आसानी से बात न बनते देख उस पर मैं ने अपना पुलिसिया रोब झड़ना शुरू कर दिया. बड़ी मुश्किल से उस पर मेरे रोब का असर हुआ. मैं ने उस पर

2-4 उलटेसीधे आरोप लगा दिए और थाने चलने को कहा, लेकिन थाने चलने को वह तैयार ही नहीं हुई.

‘‘मैं ने कहा, ‘थाने तो तुम्हें जरूर चलना पड़ेगा. वहां तुम से पूछताछ की जाएगी. हो सकता है कि तुम अपने दोस्त के साथ घर से भाग कर यहां आई हो.’

‘‘मेरी यह बात सुन कर वह बौखला गई और मुझे धमकी देते हुए कहने लगी, ‘‘मुझे थाने ले जा कर तुम बहुत पछताओगे, मेरी पहुंच ऊपर तक है.’

‘‘छोकरी की इस धमकी का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ. ऐसी धमकी सुनने की हमें आदत सी पड़ गई है…

‘‘पता नहीं, आजकल जनता पुलिस को क्या सम?ाती है? हर कोई पुलिस को अपनी ऊंची पहुंच की धमकी दे देता है, जबकि असल में उस की पहुंच एक चपरासी तक भी नहीं होती.

‘‘मैं धमकियों की परवाह किए बिना उसे थाने ले आया और यह कह कर लौकअप में बंद कर दिया कि थोड़ी देर में दारोगाजी आएंगे. पूछताछ के बाद तुम्हें छोड़ दिया जाएगा.

‘‘जाइए, उस से पूछताछ कीजिए, बेचारी बहुत देर से आप का इंतजार कर रही है,’’ सिपाही टीकाचंद ने अपनी एक आंख दबाते हुए कहा.

दारोगाजी के होंठों पर मुसकान तैर गई. उन की मुसकराहट में खोट भरा था. उन्होंने टीकाचंद को इशारा किया, तो वह तुरंत अलमारी से विदेशी शराब की बोतल निकाल लाया और पैग बना कर दारोगाजी को दे दिया.

दारोगाजी ने कई पैग अपने हलक से नीचे उतार दिए. ज्यादा शराब पीने से उन का चेहरा खूंख्वार हो गया था. उन की आंखें अंगारे की तरह लाल हो गईं.

वह लुंगीबनियान पहन लड़खड़ाते कदमों से लौकअप में चले गए. सिपाही टीकाचंद ने फुरती से दरवाजा बंद कर दिया और वह बैठ कर बोतल में बची हुई शराब खुद पीने लगा.

दारोगाजी को कमरे में घुसे अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि उन के चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं.

सिपाही टीकाचंद ने हड़बड़ा कर दरवाजा खोला, तो दारोगाजी उस के ऊपर गिर पड़े. उन का हुलिया बिगड़ा हुआ था.

थोड़ी देर पहले तक सहीसलामत दारोगाजी से अब अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. इस से पहले कि सिपाही टीकाचंद कुछ सम?ा पाता, उस के सामने वही लड़की आ कर खड़ी हो गई और बोली, ‘‘देख ली अपने दारोगाजी की हालत?’’

‘‘शर्म आनी चाहिए तुम लोगों को. सरकार तुम्हें यह वरदी जनता की हिफाजत करने के लिए देती है, लेकिन तुम लोग इस वरदी का नाजायज फायदा उठाते हो,’’ लड़की चिल्लाते हुए बोली.

लड़की एक पल के लिए रुकी और सिपाही टीकाचंद को घूरते हुए बोली, ‘‘तुम्हारी बदतमीजी का मजा मैं तुम्हें वहीं चखा सकती थी, लेकिन उस समय तुम ने वरदी पहन रखी थी और मैं तुम पर हाथ उठा कर वरदी का अपमान नहीं करना चाहती थी, क्योंकि यह वरदी हमारे देश की शान है और हमें इस का अपमान करने का कोई हक नहीं. पता नहीं, क्यों सरकार तुम जैसों को यह वरदी पहना देती है?’’

लड़की की इस बात से सिपाही टीकाचंद कांप उठा.

‘‘जातेजाते मैं तुम्हें अपनी पहुंच के बारे में बता दूं, मैं यहां के विधायक की बेटी हूं,’’ कह कर लड़की तुरंत थाने से बाहर निकल गई.

सिपाही टीकाचंद आंखें फाड़े खड़ा लड़की को जाते हुए देखता रहा.

दारोगाजी जमीन पर बैठे दर्द से कराह रहे थे. उन्होंने लड़की को परखने में भूल की थी, क्योंकि वह जूडोकराटे में माहिर थी. उस ने दारोगाजी की जो धुनाई की थी, वह सबक दारोगाजी के लिए अनोखा था. Hindi Kahani

Hindi Story: कर्मयोगी – जैसा कर्म वैसा फल

Hindi Story: धीरज को मैनेजर कुलकर्णी ने अपने केबिन में बुलाया. लिहाजा, मशीन रोक कर वह उसी ओर चल दिया. लेकिन अंदर चल रही बातचीत को सुन कर उस के कदम केबिन के बाहर ही ठिठक गए.

‘‘देख फकीरा…’’ मैनेजर कुलकर्णी अंदर बैठे हुए फकीरा को समझ रहे थे, ‘‘अगर तू ने ऐसा कर लिया, तो समझा ले कि 2 ही दिन में तेरी सारी गरीबी दूर हो जाएगी.’’

‘‘लेकिन साहब…’’ फकीरा हकलाने लगा, ‘‘यह तो धोखाधड़ी होगी.’’

‘‘युधिष्ठिर न बन फकीरा,’’ कुलकर्णी की आवाज में कुछ झंझालाहट थी, ‘‘कारोबार में यह सब चलता रहता है. सभी तो मिलावट किया करते हैं.’’

धीरज उलटे पांव अपनी मशीन के पास लौट आया. मैनेजर और फकीरा में आगे क्या बात हुई होगी, उस ने इस का अंदाजा लगा लिया. वह सोच में पड़ गया, ‘तो क्या कुलकर्णी मालिक की आंखों में धूल झोंकना चाहता है?’

धीरज फिर से मशीन पर काम करने लगा. मशीन के मुंह से लालपीले कैप्सूल उछलउछल कर नीचे रखी ट्रे में गिरते जा रहे थे.

ओखला में कपूर की उस लेबोरेटरी में जिंदगी को बचाने वाली बहुत सारी दवाएं बनती हैं. 60-70 मजदूरों की देखरेख मैनेजर कुलकर्णी करता है. कपूर साहब तो कभीकभार ही आते हैं. कारोबार के संबंध में वह ज्यादातर दिल्ली से बाहर ही रहते हैं. धीरज उन का बहुत ही भरोसेमंद मुलाजिम था.

2 साल पहले धीरज ओखला की किसी फैक्टरी में तालाबंदी होने से बेरोजगार हो गया था. उस दिन वह निजामुद्दीन के क्षेत्रीय रोजगार दफ्तर के बाहर खड़ा था, तभी सामने दौड़ती हुई कार के तेज रफ्तार में मुड़ने से एक फाइल सड़क पर आ गिरी.

धीरज ने फाइल उठा कर जोरजोर से आवाजें दीं, ‘साहबजीसाहबजी, आप के कागजात गिर गए हैं.’ आगे के चौराहे पर वह कार तेजी से रुक गई.

धीरज भागता हुआ वहीं पहुंचा. वह हांफने लगा था.

फाइल लेते हुए कपूर साहब ने उस से पूछा था, ‘क्या करते हो तुम?’

‘बस साहब, इन दिनों तो ऐसे ही सड़कें नाप रहा हूं,’ कह कर वह सिर खुजलाने लगा.

‘नौकरी करोगे?’ उन्होंने पूछा था.

‘मेहरबानी होगी साहबजी,’ उस ने हाथ जोड़ दिए.

‘आओ, गाड़ी में बैठो,’ उन्होंने गाड़ी का पिछला दरवाजा खोल दिया, तो धीरज कार में जा बैठा.

धीरज के बैठते ही कार तेजी से ओखला की तरफ दौड़ने लगी थी. बस, तभी से वह उन की लेबोरेटरी में काम कर रहा है.

पिछले महीने मजदूरों की एक मीटिंग हुई थी. उस में कई लोकल कामरेड आए हुए थे. वे लोग बोनस के मसले पर बात कर रहे थे. धीरज ने भी कुछ कहना चाहा था.

एक कामरेड उस की ओर देख कर बोला था, ‘आप शायद कुछ कहना चाहते हैं?’

‘बोनस का मामला आपसी बातचीत से ही सुलझाना ठीक रहेगा,’ धीरज ने अपना सु?ाव दिया था, ‘घेरावों और हड़तालों से अपने ही लोगों की हालत खराब होती है.’

‘ठीक कहते हो कामरेड,’ कह कर एक मजदूर नेता मुसकरा दिया.

‘हड़ताल तो हमारा आखिरी हथियार होता है. इस से तालाबंदी की नौबत तक आ जाती है,’ धीरज बोला था.

‘जानते हैं, अच्छी तरह से जानते हैं,’ सिर हिला कर कामरेड ने अपनी सहमति जताई थी.

खाली मशीन खड़खड़ की आवाज करने लगी थी. धीरज ने उस में दवा का पाउडर डाल दिया था. लालपीले कैप्सूल फिर से ट्रे में गिरने लगे.

‘‘अरे…’’ फकीरा ने धीरज के पास आ कर उस के कंधे पर हाथ रख

कर कहा, ‘‘तु?ो मैनेजर साहब याद कर रहे थे?’’

यह सुन कर धीरज मुसकरा दिया और पूछा, ‘‘क्यों?’’

फकीरा ने उस की मुसकान का राज जानना चाहा.

‘‘वह मु?ो भी चोर बनाना चाहते होंगे,’’ धीरज उसी तरह मुसकराते हुए बोला.

‘‘तो तू हमारी बातचीत सुन चुका है?’’ फकीरा चौंक गया.

‘‘हां…’’ धीरज ने गहरी सांस ली, ‘‘सुन कर मैं वापस चला आया था.’’

‘‘हमारे न करने से कुछ नहीं होता धीरज…’’ फकीरा उसे सम?ाने लगा, ‘‘हमारे यहां मिलावट का धंधा पिछले 2-3 साल से हो रहा है. घीसू, मातंबर, सांगा सभी तो मिलावट करते हैं.’’

‘‘यह तो बहुत गलत किया जा रहा है,’’ धीरज गंभीर हो गया और उस के माथे पर चिंता की लकीरें दिखने लगीं, ‘‘ये लोग तो मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं.’’

‘‘ज्यादा न सोचा कर मेरे यार,’’ फकीरा ने उस का हाथ अपने हाथों में ले लिया, ‘‘हम मजदूरों को ज्यादा नहीं सोचना चाहिए. हम लोगों का काम केवल मजदूरी करना होता है.’’

‘‘नहीं फकीरा, यहां मैं तुम से सहमत नहीं हूं,’’ धीरज ने उस की बात काट दी, ‘‘मजदूर होने के साथसाथ हम इनसान भी तो हैं.’’

‘‘तो फिर सोचतेसोचते अपना शरीर सुखाता रह,’’ झंझाला कर फकीरा अपनी मशीन की तरफ चल दिया.

शाम को लेबोरेटरी में छुट्टी हो गई, तो सभी मजदूर घर जाने लगे. धीरज भी अपनी साइकिल उठा कर चल दिया. आगे चौराहे पर वह रुक गया. उस के मन में खलबली मच रही थी. वह तय नहीं कर पा रहा था कि किधर जाए?

अगले ही मिनट उस की साइकिल मेन रोड की ओर मुड़ गई.

पैडल मारता हुआ वह डिफैंस कालोनी की ओर चल दिया. आज वह मालिक को सबकुछ सचसच बता देना चाहता था.

कपूर साहब की कोठी आ गई. उस ने साइकिल कोठी के बाहर खड़ी कर दी. उस समय कपूर साहब क्यारी में पानी दे रहे थे. उसे देख कर वह मुसकरा कर बोले, ‘‘आओ धीरज, अंदर आ जाओ.’’

वह सिर खुजलाता हुआ बोला, ‘‘सर, मैं आज आप से जरूरी बात करने आया हूं.’’

‘‘शीला…’’ कपूर साहब ने अपनी पत्नी को आवाज दी, ‘‘जरा 2 कप चाय तो भेजना.’’

धीरज संकोच से सिकुड़ता ही जा रहा था. आज तक उस ने जितनी भी नौकरियां कीं, कपूर साहब जैसा मालिक कहीं नहीं देखा.

‘‘वो सर,’’ धीरज ने कुछ कहना चाहा.

‘‘अच्छा, पहले यह बता कि तेरी बेटी कैसी है?’’ कपूर साहब ने उस की बात बीच में ही काट दी.

धीरज ठगा सा रह गया. उस की बेटी के बारे में उन्हें कैसे मालूम? तभी उसे याद हो आया कि पिछले महीने शरबती बेटी के बीमार होने पर उस ने एक हफ्ते की छुट्टी ली थी. हो सकता है कि उस की अरजी मालिक तक पहुंची हो. तभी उस ने हाथ जोड़ दिए, ‘‘पहले से ठीक है, सर.’’

कपूर साहब की पत्नी लान में 2 कप चाय ले आईं. धीरज ने उठ कर उन्हें नमस्कार किया. कपूर साहब ने पत्नी को उस का परिचय दिया, ‘‘यह अपनी लेबोरेटरी में काम करता है.’’

मालकिन मुसकरा कर अंदर चली गईं. कपूर साहब ने चाय की चुसकी ले कर पूछा, ‘‘हां, तो धीरज अब बताओ कि कैसे आना हुआ?’’

‘‘लोगों की जान बचाइए मालिक,’’ कहते हुए धीरज ने सहीसही बात बता दी.

‘‘ठीक है धीरज…’’ कपूर साहब ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘इस बारे में मैं पूरी छानबीन करूंगा.’’

कपूर साहब को नमस्कार कर धीरज घर की ओर चल पड़ा. रास्तेभर वह उसी मामले पर सोचता रहा, ‘कहीं मैं ने मजदूरों के साथ गद्दारी तो नहीं की?’

उस के कानों में फकीरा के शब्द गूंजते जा रहे थे, ‘मजदूरों को ज्यादा नहीं सोचना चाहिए.’

धीरज दिमागी रूप से बहुत परेशान हो गया था. पत्नी ने कारण पूछा, तो उस ने सारी बात बता दी.

पत्नी हंस कर बोली, ‘‘शरबती के पापा, तुम ने जो भी किया है, अच्छा ही किया है. अपने सही काम पर पछतावा कैसा?’’

‘‘तो अच्छा ही किया, है न?’’ धीरज ने कहा.

‘‘तुम ने तो अपना फर्ज निभाया है,’’ पत्नी ने धीरज के कंधे पर अपना हाथ रख कर कहा.

कपूर साहब को कुलकर्णी पर बहुत ज्यादा भरोसा था. उन्हें कुलकर्णी से इस तरह की उम्मीद नहीं थी. कपूर साहब ने लेबोरेटरी में बने कैप्सूलों व दूसरी दवाओं की किसी भरोसे की प्रयोगशाला से जांच कराई.

पता चला कि उन में 20 फीसदी मिलावट है. ऐसे में उन्हें सारी दुनिया घूमती नजर आने लगी. इस से उन्हें गहरा धक्का लगा.

एक दिन कपूर साहब ने कुलकर्णी को मैनेजर के पद से हटा दिया. उस की जगह पर वह खुद ही मैनेजर का काम देखने लगे. लेबोरेटरी में फिर से बिना मिलावट के दवाएं बनने लगीं. उन की बिगड़ी साख फिर से लौट आई.

एक दिन कपूर साहब ने धीरज को अपने केबिन में बुलाया. धीरज एक तरफ हाथ बांधे खड़ा हो कर बोला,

‘‘जी मालिक.’’

‘‘हम तुम्हारे बहुत आभारी हैं धीरज,’’ कपूर साहब आभार जताने लगे, ‘‘अगर तुम न होते, तो हम पूरी तरह से तबाह ही हो जाते. हमारी सारी साख मिट्टी में मिल जाती.’’

‘‘यह तो मेरा फर्ज था मालिक,’’ धीरज ने कहा.

‘‘हर कोई तो फर्ज नहीं निभाता न,’’ कपूर साहब बोले. धीरज चुप रहा.

‘‘आज से तुम हमारी लेबोरेटरी के सुपरवाइजर बन गए हो,’’ कपूर साहब ने धीरज को उसी समय तरक्की दे दी.

‘‘ओह मालिक,’’ कह कर धीरज उन के पैरों पर गिर गया. कपूर साहब ने उसे दोनों हाथों से उठाया. वह उस की पीठ थपथपाने लगे और कहने लगे, ‘‘यह तरक्की मैं ने नहीं दी है, बल्कि यह तो तुम्हें तुम्हारी काबिलीयत से मिली है.’’

अब धीरज के रहनसहन में बदलाव आने लगा. इस बीच उस की बेटी शरबती भी ठीक हो गई. कपूर साहब की उस लेबोरेटरी में वह और भी लगन व ईमानदारी के साथ काम करने लगा था. Hindi Story

Hindi Family Story: एहसान फरामोश – औलाद से मिली बेरुखी

Hindi Family Story: अकीला ने कभी सोचा भी नहीं था कि जिस औलाद के लिए उस ने अपनी जवानी तबाह कर दी, अपनी आरजू का गला घोंट दिया, उन्हें काबिल बनाने के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर दिया, वही औलाद काबिल बनते ही उसे तिलतिल कर मरने के लिए मजबूर छोड़ देगी. ऐसी एहसान फरामोश औलाद के होने से तो न होना ही अच्छा था. अकीला शादी के महज 7 साल बाद ही बेवा हो गई थी.

जिस समय अकीला के शौहर का इंतकाल हुआ था, तब अकीला की उम्र सिर्फ 26 साल थी और तब तक वह 3 बच्चों की मां बन चुकी थी, फिर भी उस की शादी के कई रिश्ते आ रहे थे और दूरदराज के ही नहीं, बल्कि आसपास के भी कई नौजवान उस से शादी करने के लिए बेकरार थे. रिश्ते आएं भी क्यों नहीं, अकीला थी ही ऐसी बला की खूबसूरत कि जो उसे एक बार देख ले, बस देखता ही रह जाए.

गदराया बदन, गोरा रंग, सुर्ख होंठ, लंबेकाले और घने बाल उस की खूबसूरती में चार चांद लगाए हुए थे. हुस्न की मलिका होने के बाद भी अकीला ने अपने इन 3 मासूम बच्चों की खातिर दूसरी शादी करना मुनासिब  नहीं समझा और उन के अच्छे भविष्य  के लिए दिनरात आसपड़ोस के कपड़े सिल कर उन की परवरिश में बिजी हो कर रह गई.

अकीला का एक ही सपना था कि वह अपने बच्चों को खूब पढ़ाएलिखाए, ताकि उन का भविष्य अच्छा बन सके और वे कामयाब इनसान बन जाएं, इसलिए उस ने दिनरात मेहनत की, ताकि बच्चों की परवरिश अच्छी से अच्छी  हो सके. अकीला की मेहनत रंग लाई. उस के तीनों बच्चे पढ़ने में काफी तेज थे और वे हर क्लास में फर्स्ट आया करते थे. इस तरह अच्छी पढ़ाई कर के उस का सब से बड़ा बेटा गुड़गांव में प्रोफैसर बन गया, दूसरा बेटा सरकारी डाक्टर बना और तीसरा बेटा इटावा में लैक्चरर बन गया.

अकीला खुश थी. भले ही उस की आंखों की रोशनी दिनरात काम करने  से कमजोर हो गई थी, जवानी अब ढल चुकी थी, लेकिन उस की औलाद कामयाब इनसान बन चुकी थी. सब से बड़े बेटे प्रोफैसर की शादी एक बहुत बड़े वकील की बेटी से हो गई थी, जो शादी के एक महीने बाद ही अपने शौहर के साथ गुड़गांव चली गई थी. दूसरा बेटा, जो मेरठ में डाक्टर था, की शादी एक बहुत बड़े बिजनैसमैन की बेटी से हुई, जो महज 2 हफ्ते बाद अपने शौहर के साथ मेरठ शिफ्ट हो गई.

एक दिन खबर मिली कि उस के सब से छोटे बेटे, जो इटावा में लैक्चरर था, ने भी वहीं शादी कर ली और अकीला घर में अकेली रहने के लिए मजबूर हो गई. अकीला की तबीयत खराब रहने लगी थी. जब उस की औलाद को यह पता चला तो समाज के डर से तीनों बेटे घर आए और यह तय किया कि वे तीनों 4-4 महीने अम्मी को अपने पास रखेंगे.

सब से पहले बड़े बेटे का नंबर  आया और वह अकीला को अपने साथ गुड़गांव ले गया. कुछ दिन तो सब ठीक चला, पर जल्द ही उस की बीवी ने घर में लड़ाई शुरू कर दी और एक दिन बोली, ‘‘मेरे बस की बात नहीं है इस बुढि़या की सेवा करना.’’ बेटे ने उसे समझाया, ‘‘4 महीने की तो बात है. बस तुम इन्हें यहां रहने दो और अपने साथ काम में लगाए रखो. तुम्हारी भी मदद हो जाएगी.’’

अब तो घर का सारा काम अकीला के जिम्मे हो गया. वह रातदिन घर  के काम में लगी रहती. उस की हालत नौकरानी से भी बदतर हो गई. खाना  भी उसे रूखासूखा दिया जाने लगा. जैसेतैसे अकीला ने 4 महीने वहां गुजारे. 4 महीने पूरे होने के बाद दूसरा बेटा वादे के मुताबिक अपनी मां को लेने आया और अपने साथ मेरठ ले गया.

वहां पर रहते हुए अभी 2 महीने ही गुजरे थे कि एक दिन उन के घर में पार्टी चल रही थी. मेहमानों का आनाजाना लगा था.  अकीला को अपने कमरे से बाहर न निकलने के लिए बोला गया था कि यहां पर बड़ेबड़े लोग आएंगे, कोई पूछ लेगा तो बेइज्जती होगी. पार्टी देर रात तक चलती रही. अकीला भूख से बेहाल हो चुकी थी. अब उस से बरदाश्त करना मुश्किल था.

उस ने अपने कमरे का दरवाजा खोला और कमरे के बाहर पड़े जूठे बरतनों में से खाना उठा कर खाने लगी. अकीला ने जैसेतैसे अपना पेट भरा. अभी वह पानी पीने के लिए किचन की तरफ जा ही रही थी कि उस की बहू, जो अपनी सहेलियों के साथ वहां से गुजर रही थी, की एक सहेली ने पूछा, ‘‘यह कौन है?’’ तभी अकीला का बेटा वहां आ गया और झट से बोला, ‘‘यह हमारी नई नौकरानी है.’’ ये अल्फाज जैसे ही अकीला के कानों में पड़े, तो उस के होश उड़ गए कि आज एक बेटा अपनी मां को मां कहने में भी शर्मिंदगी महसूस कर रहा है.

अब सब से छोटे बेटे का नंबर था. अकीला ने सोचा कि चलो, इसे भी देख लेते हैं. यह भी बेटा रहा या नहीं या फिर अमीरी ने इस की भी आंखों पर परदा डाल दिया है. कुछ दिन बाद अकीला अपने सब से छोटे बेटे के साथ इटावा चली गई. वहां गए हुए अभी एक ही दिन हुआ  था कि उस के बेटे ने साफसाफ बोल दिया, ‘‘मेरी बीवी को बच्चा होने वाला है.

तुम्हें यहां सब काम खुद करना पड़ेगा और अपनी बहू का भी ध्यान रखना पड़ेगा.’’ अकीला रोज सवेरे उठती, नाश्ता बनाती, कपड़े धोती, फिर दोपहर का खाना बनाने में जुट जाती. उस के बाद घर की साफसफाई का काम करना  होता था.  अकीला की बहू आराम से अपनी सहेली के साथ गपशप में मसरूफ रहती थी. बीचबीच में उन के लिए भी चायनाश्ते का इंतजाम करना पड़ता था. अभी एक महीना ही गुजरा था कि अकीला की तबीयत बहुत खराब हो गई.

उसे सरकारी अस्पताल में भरती कराया गया, जहां उस की देखभाल करने वाला कोई न था.  3-3 बेटेबहू होने के बावजूद अकीला एक लावारिस की तरह अपनी जिंदगी की बची सांसें ले रही थी और सोच रही थी कि उस की परवरिश में ऐसी कौन सी कमी रह गई थी, जो ऐसी एहसान फरामोश औलाद मिली. इसी कशमकश में अकीला ने अपनी जिंदगी की आखिरी सांस ली और इस दुनिया से विदा ले ली. उस के मरने के बाद भी कोई उसे देखने वाला न था.

1-2 दिन इंतजार करने के बाद अस्पताल के कुछ लोगों ने मिल कर उस का कफनदफन किया. कुछ दिनों बाद जब अकीला का बेटा अस्पताल में उसे देखने आया तो सब को बड़ा अचंभा हुआ, क्योंकि आज एक हफ्ते बाद उसे अकीला की याद आई थी. उस ने अपना मोबाइल नंबर भी गलत दिया था, जो पता लिखवाया  था वहां भी ताला लगा था, क्योंकि वह अपनी बीवी के साथ घूमने गया था.

बेटा अस्पताल से चुपचाप चला गया. हमारे समाज में अभी भी ऐसी एहसान फरामोश औलाद मौजूद हैं, जो कामयाब होने के बाद अपने मांबाप की उस मेहनत को भूल जाती हैं, जो उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं. ऐसी निकम्मी औलादें उन्हें तिलतिल कर मरने के लिए छोड़ देती हैं. Hindi Family Story

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