Sad Story : सांवली

शहर से काफी दूर बसा सज्जनपुर गांव पुराने समय से ही 3 हिस्सों में बंटा था. इस गांव के राजामहाराजा और बड़ेबड़े जमींदार एक जगह बसे थे. उन के सारे मकान पक्के थे. पैसे की कोई कमी नहीं थी, इसलिए उन के बच्चे अपना ज्यादा समय ऐशोआराम में बिताते थे. दूसरे हिस्से में ब्राह्मण और राजपूत थे. कुछ मुसलिम भी थे.

तीसरा हिस्सा पिछड़ी जाति या दलित तबके का था. उन लोगों की बस्ती अलग पहाड़ीनुमा टीले पर थी. उन के घर फूस के बने थे. वे लोग पैसे वाले जमींदारों, राजामहाराजाओं की मेहरबानी पर गुजरबसर कर रहे थे.

उस गांव में एक प्राइमरी स्कूल था. 30-40 गांवों के बीच महज एक ही स्कूल था. आसपास की सारी सड़कें कच्ची और बड़ेबड़े गड्ढों वाली थीं.

उन सभी गांवों से स्कूल को जोड़ने वाली सड़कें जब पक्की हो गईं, तो स्कूल भी चल निकला और 2-3 साल में हाईस्कूल बन गया. फिर वहां इंटर तक की पढ़ाई शुरू हो गई थी. दलित झोपड़पट्टी का कोई बच्चा वहां पढ़ने नहीं आता था.

कहा जाता है कि महात्मा गांधी और भीमराव अंबेडकर भी एक बार वहां गए थे. दलितों के पक्के मकान बनवाने के वादे भी किए गए थे, पर महात्मा गांधी की हत्या के बाद उन दलितों की सुध लेने वाला कोई नहीं था.

एक बार कलक्टर साहब का वहां दौरा हुआ. उन्होंने वहां के लोगों को सम?ाया कि आप अपने बच्चों को स्कूल क्यों नहीं भेजते हैं? अपने हक की जानकारी होने पर ही आप उस की मांग कर सकते हैं. सरकार बच्चों की सुविधा का खयाल करेगी, पहले उन्हें स्कूल में तो भेजिए.

बहुत समझने के बाद एक निषाद की बेटी स्कूल जाने को तैयार हुई. फिर उस झोंपड़पट्टी के दूसरे बच्चे भी स्कूल जाने लगे.

उस स्कूल के सारे मास्टर ऊंची जाति के थे. उन्हें दलित तबके के बच्चों से नफरत होने लगी, क्योंकि उन के कपड़े अच्छे नहीं होते थे. पैरों में जूते नहीं होते थे. शिष्टाचार की कमी भी थी.

स्कूल जाने वाली पहली दलित लड़की का नाम सांवली था. उसे शुरू से ही अपने कपड़ों का खयाल था. वह शिष्टाचार का पालन भी करती थी. एक तरह से वह सभी दलित बच्चों की हैड गर्ल बन गई थी. धीरेधीरे वह पढ़ने में भी होशियार हो गई.

बड़ीबड़ी आंखें, घुंघराले घने बाल, शरीर भी गठा हुआ. न दुबली और न मोटी. स्कूल में सब की चहेती थी सांवली.

अपने महल्ले में भी सांवली का बहुत आदर होता था. लोग आपस में बात करते हुए कहते थे कि सांवली बड़ी हो कर अफसर बनेगी. कार में घूमेगी.

सांवली के पिता मंगरू मल्लाह से लोग कहते, ‘देखो मंगरू, सांवली की पढ़ाई बंद मत करना. रुपएपैसे की किल्लत होगी, तो हम लोग आपस में चंदा कर के पैसे जुटाएंगे.’

जैसेजैसे सांवली बड़ी होती गई, वैसेवैसे उस की खूबसूरती भी बढ़ती गई. 9वीं जमात में आने पर सांवली के बदन पर जवानी भी दस्तक देने लगी थी.

जब सांवली 7वीं जमात में थी, तब ऊंची जाति के एक मास्टर ने उस के अंकों को जानबू?ा कर घटा दिया था, जिस से एक राजपूत की बेटी क्लास में फर्स्ट आ गई थी.

सांवली इस बात पर उस मास्टर से लड़ बैठी थी और उस ने हैडमास्टर से शिकायत भी कर दी थी. उन्होंने सांवली के साथसाथ सभी मास्टरों को बुलवा कर कहा था कि जो बच्चे जैसा लिखते हैं, उन्हें उतने ही अंक मिलने चाहिए. इस में जाति का फर्क नहीं होना चाहिए.

उस दिन से सांवली पढ़ने में ज्यादा मन लगाने लगी थी. उस की बस्ती में बिजली नहीं थी, इसलिए वह लालटेन की रोशनी में पढ़ती थी. तेल नहीं रहने पर महल्ले के कई लोग सांवली को तेल भरी लालटेन दे जाते थे.

इधर सांवली का पिता मंगरू मल्लाह दिनभर मछली पकड़ता और शाम को नजदीक के बाजार में उन्हें बेचता था. अगर कुछ मछलियां बच जाती थीं, तो जमींदार को भी दे आता था. जमींदार मंगरू को कभी पैसे देते, कभी नहीं भी देते थे.

सांवली 9वीं जमात में स्कूलभर में फर्स्ट आई थी. हर जगह उस की चर्चा होने लगी. राज्य सरकार ने अव्वल आने वाली लड़कियों को साइकिल देने का ऐलान किया था. सांवली को भी लाल रंग की साइकिल मिल गई थी. अब वह साइकिल से ही स्कूल आनेजाने लगी थी.

क्लास में लड़कियों की तरफ ताकझांक करने की हिम्मत लड़कों में नहीं थी, पर लंच टाइम में सभी लड़के अपनेअपने ढंग से मनोरंजन करते थे. सभी अपनीअपनी पसंद की लड़की बताते थे.

मनोज नाम का लड़का कहता, ‘‘नाम भी सांवली और रंग भी सांवला. सांवली होने के बावजूद यह कितनी अच्छी लगती है. जी करता है कि चूम लूं इसे. लेकिन इशारा करने पर भी नहीं देखती है.’’

यह सुन कर दिनेश ने कहा, ‘‘साइकिल पर घंटी बजाती हुई जब वह हम सब लड़कों के बीच से गुजरती है, तो दिल पर छुरी चला देती है.’’

जमींदार राय साहब के बेटे मधुरेश ने कहा, ‘‘सांवली कहीं अकेले में मिल जाए, तो कसम से मैं इसे सीने से लगा कर चूम लूंगा.’’

अब सांवली 10वीं जमात में थी. बोर्ड के इम्तिहान भी नजदीक आ रहे थे. सांवली का मन पढ़ाई में ज्यादा लग रहा था. इधर लड़कों का मन पढ़ने से उचट रहा था. उस स्कूल में ही नहीं, आसपास के सभी गांवों में सांवली की चर्चा होने लगी थी.

मधुरेश के पिता राय साहब को मालूम हो गया था कि उन का बेटा पढ़ाई में जीरो है और सांवली हीरो.

एक दिन राय साहब ने मधुरेश से पूछा, ‘‘क्या तुम्हारे स्कूल में दलित की बेटी पढ़ाई में फर्स्ट आती है?’’

‘‘सांवली पहले से ही पढ़ाई में तेज है,’’ मधुरेश का जवाब था.

एक दिन शाम को जब मंगरू राय साहब के यहां मछली देने आया, तो वे बोल पड़े,  ‘‘मंगरू, मु?ो तु?ा से जरूरी काम है. इधर आ.’’

जब मंगरू उन के नजदीक पहुंचा, तो राय साहब ने कहा  ‘‘देखो मंगरू, तुम्हारे खानदान का मेरे खानदान से आज का नाता नहीं है.’’

‘‘हां, सो तो है,’’ मंगरू ने कहा.

‘‘क्या सांवली तुम्हारी बेटी है?’’

‘‘हां सरकार, आप लोगों की दुआ से,’’ मंगरू बोला.

‘‘वह पढ़ाई में बहुत तेज है न?’’

‘‘जी हां मालिक?’’

फिर राय साहब बोल उठे, ‘‘मेरा एक बेटा है और 2 बेटियां हैं. बड़ी बेटी की शादी की बात चल रही है. दूसरी बेटी तो बहुत छोटी है. चिंता है तो सिर्फ मधुरेश की. वह 10वीं जमात में आ गया है, पर उसे आताजाता कुछ नहीं है. अगर तुम्हारी बेटी सांवली उसे थोड़ा पढ़ा दे, तो वह जरूर 10वीं पास कर जाएगा.’’

मंगरू ने कहा, ‘‘अब हम क्या बताएं मालिक, यह तो सांवली ही जाने. वह क्या पढ़ती है, क्या लिखती है, मु?ो नहीं मालूम.’’

‘‘देखो मंगरू, सांवली बहुत अच्छी लड़की है. वह तुम्हारी बात नहीं टालेगी. साइकिल से आएगीजाएगी. तुम जितना कहोगे, हम उस को फीस दे दिया करेंगे.’’

‘‘ठीक है मालिक,’’ मंगरू ने कहा.मंगरू रात को घर पहुंचा, तो उस ने सांवली को राय साहब की बातें बता दीं.सांवली का कहना था, ‘‘हम दोनों तो 10वीं जमात में ही पढ़ते हैं, फिर मैं कैसे उसे पढ़ा सकती हूं?’’ लेकिन बहुत नानुकर के बाद सांवली राय साहब के यहां जा कर पढ़ाने को राजी हो गई.

स्कूल से छूटती, तो सांवली सीधे राय साहब के यहां अपनी साइकिल से पहुंच जाती. मधुरेश को बिन मांगी मुराद पूरी होती नजर आई.

2-3 महीनों के बाद मधुरेश सम?ा गया कि सांवली बहुत भोली है, घमंड तो उस में बिलकुल नहीं. वह सांवली के गदराए बदन को देखदेख कर मजा उठाता रहा. लेकिन जब मधुरेश की हिम्मत बढ़ती गई, तो सांवली ने पूछ लिया, ‘‘ऐसे क्यों घूरते हो मु?ो?’’

यह सुन कर मधुरेश बहुत डर गया.

‘‘मधुरेश, तुम मेरी तरफ घूरघूर कर क्यों देखते हो? बोलो न?’’ सांवली ने फिर पूछा.

‘‘जी करता है कि मैं तुम्हें चूम लूं,’’ मधुरेश धीरे से बोला.

सांवली ने कहा, ‘‘तो चूम लो मु?ो, पर दूसरी चीज मत मांगना.’’ मधुरेश चुप रहा. सांवली अपने गालों को उस की तरफ बढ़ाते हुए बोली,  ‘‘तो चूम लो न.’’ मधुरेश उस को चूमने लगा, तो सांवली उस के सीने से चिपक गई.इस तरह मधुरेश और सांवली का एकदूसरेके प्रति खिंचाव बढ़ता गया.

मैट्रिक बोर्ड का रिजल्ट आ गया था. सांवली का नंबर पूरे राज्य में पहला था और मधुरेश भी सैकंड डिविजन से पास हो गया था.रिजल्ट के बाद जब वे दोनों मिले, तो सांवली बोली, ‘‘मधुरेश, तुम मु?ो चाहते हो न? शादी करोगे न मु?ा से?’’ मधुरेश का जवाब था, ‘‘मैं वादा करता हूं.’’ ‘‘तो अपने पिताजी को सम?ाओ.’’ मधुरेश ने कहा, ‘‘पिताजी तो मु?ा से ज्यादा तुम से खुश रहते हैं.’’ रात को सांवली ने अपने मातापिता को मधुरेश की बात बता दी.

मंगरू उसे सम?ाते हुए बोला, ‘‘देखो सांवली, प्यार सिर्फ बड़े लोगों के लिए है, पैसे वालों के लिए है, हम जैसे गरीब को यह सुहाता नहीं है.

‘‘क्या राय साहब अपने बेटे की शादी हम जैसे गरीब निषाद से करेंगे? नामुमकिन. वैसे, राय साहब तुम्हारी जी भर कर तारीफ करते हैं. देखता हूं कि वे क्या कहते हैं.’’

एक शाम को मंगरू मछली ले कर राय साहब के यहां पहुंचा और उन से हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘सरकार, मैं आप से एक भीख मागने आया हूं.’’

‘‘कैसी भीख? ’’

‘‘आप का बेटा मधुरेश मेरी बेटी से शादी करना चाहता है,’’ मंगरू ने डरतेडरते कहा.

यह सुनते ही राय साहब अपना आपा खो बैठे और मंगरू पर गरज पड़े, ‘‘तुम्हारी बेटी की हिम्मत कैसे हुई मेरे बेटे पर डोरे डालने की…’’ फिर वे एक मोटा सा डंडा ले आए और जानवरों की तरह मंगरू पर बरसाने लगे.

मंगरू बेहोश हो कर जमीन पर गिर पड़ा. राय साहब के लोगों ने उसे उठा कर सड़क के किनारे पटक दिया. मंगरू के पीटे जाने की खबर चारों ओर फैल गई थी. दलित बस्ती के लोग उग्र हो चुके थे. जल्दी ही मंगरू को अस्पताल पहुंचाया गया. उस की हालत चिंताजनक थी. सांवली यह खबर सुन कर बेहोश हो गई थी. 2 दिनों के बाद दलित बस्ती के टीले पर गांव वालों की सभा बुलाई गई. तय हुआ कि कोई भी दलित किसी भी काम के लिए ऊंची जाति की बस्ती में कभी कदम नहीं रखेगा.

एक महीने बाद राय साहब की बेटी की शादी थी. घर में चहलपहल थी. सारे सामान दूसरे शहर से मंगवाए गए थे.आज राय साहब का घर जश्न में डूबा हुआ था, उधर दलित बस्ती में हाहाकार मचा था, क्योंकि मंगरू दम तोड़ चुका था. दाह संस्कार के बाद सारे गांव वाले थाने पर टूट पड़े. वहां आग लगा दी गई. थानेदार भाग कर राय साहब के घर में छिप गया था. अगले दिन से धीरेधीरे माहौल शांत हो गया, पर राय साहब का घमंड ज्यों का त्यों बना हुआ था.

बरसात का मौसम आ गया था. सज्जनपुर गांव के बगल का बांध अचानक टूट गया और ऐसी भयंकर बाढ़ आई कि पूरा गांव बह गया. दलितों की बस्ती बहुत ऊंची थी, इसलिए महफूज थी. वहां के लोगों ने अपनीअपनी नावों से बहुत से लोगों को बह जाने से बचाया था.

सांवली निषाद की बेटी थी, इसलिए वह अच्छी तैराक भी थी. वह किनारे पर नाव ले कर खड़ी थी कि एक टूटीफूटी नाव में राय साहब का पूरा परिवार खुद को बचा रहा था.

नाव में पानी भर गया था. उस में से ‘सांवली बचाओ’, ‘सांवली बचाओ’ की आवाजें आ रही थीं. सांवली का चाचा चिल्ला उठा, ‘‘उन्हें मत बचाओ सांवली.’’ इतने में राय साहब की नाव पानी से पूरी तरह भर गई थी.

सांवली का दिल पिघल कर मोम हो गया. वह ?ाट से अपनी नाव को बड़ी तेजी से उन की ओर बढ़ाने लगी. राय साहब के परिवार के सारे लोग सांवली की नाव को पकड़ने लगे.

कुछ देर बाद कोई चिल्लाया, ‘‘मधुरेश डूब गया है.’’ सांवली ?ाट से पानी में कूद गई. एक डुबकी के बाद उसे मधुरेश का कुछ पता नहीं चला, तो उस ने दूसरी बार डुबकी लगाई.

इधर किनारे पर खड़े राय साहब के परिवार के सदस्य रो रहे थे. जब सांवली ने तीसरी बार डुबकी लगाई, तो वह मधुरेश को खींचती हुई पानी से बाहर निकाल लाई. एक नाव में मधुरेश को अस्पताल ले जाया गया. राय साहब का पूरा परिवार वहां था.

जैसे ही मधुरेश की आंखें खुलीं, सामने सांवली को देख कर उस ने उस के पैरों में सिर ?ाका दिया और रोने लगा.मधुरेश को बिलखता देख कर सांवली भी उसे अपनी छाती से लगा कर रोने लगी. राय साहब सिर ?ाकाए खड़े रहे… वे अपने किए पर शर्मिंदा लग रहे थे.

गरीबों का मसीहा : चापलूसों की चालबाजी

शाम होतेहोते पूरी बस्ती में काफी जोरों का हंगामा मच गया था. 2 दिनों के बाद मान्यवर नेताजी बस्ती का दौरा करने वाले थे. नेताजी के करकमलों द्वारा ही उस बस्ती को गैरकानूनी रूप से बसाया गया था. नेताजी की यह तुरुप की चाल सौलिड वोटबैंक साबित हो रही थी.

गरीबों की इस बस्ती में हर तरह का गैरकानूनी काम होता था. ‘गरीब’ बस्ती वालों को नेताजी का पूरा साथ मिला था. इस वजह से पुलिस वाले भी बस्ती के अंदर घुसने में घबराते थे.

बेरोकटोक ‘गरीब’ बस्ती वाले सत्कर्म करते रहते थे. न पानी, न सड़क, फिर भी वहां एक इंच जगह खाली नहीं थी. सांप जैसी बनी झोपड़ियां, जहां एक बार कोई बाहर का आदमी घुस जाए, तो शायद ही जिंदा वापस लौटे.

इस बस्ती में सभी कलाकार रहते थे. कोई ड्रग्स का धंधा करता, तो कोई कच्ची शराब बेचता, तो कोई चोरी की गाडि़यों के पुरजे बेचता था. बस्ती के अंदर बीसियों रद्दी वालों की दुकानें थीं. लोहे के सामान और तांबे के तार खूब बिकते थे.

बस्ती की ‘गरीब’ औरतें पास के औद्योगिक क्षेत्र में बनी कंपनियों में ?ाड़ू मारने और पैकिंग करने का काम किया करती थीं. 20-30 फीसदी कम पगार लेने के चलते उन्हें आसानी से काम मिल जाया करता था, पर कम पगार की भरपाई वे कंपनियों में से सामान चोरी कर के किया करती थीं.

चौकीदार को धमका कर या फिर मुफ्त की दारू का लालच दे कर या फिर चोरी के माल में हिस्सा दे कर मिला लिया जाता था. कुछ शातिर औरतें जासूसी भी करती थीं. उन से मिली सूचना के आधार पर ही कंपनियों में रात में चोरियां होती थीं. कई औरतें, जिन के पति दारूबाज थे, वे नौकरी के साथसाथ जिस्मफरोशी का धंधा कर के अपना घर चलाती थीं.

महीनेभर बाद ही ये लोग अपने हाथ का कमाल दिखाते थे. अगर कभी सुपरवाइजर ने पकड़ लिया तो रोधो कर, छाती पीट कर, गरीबी का गाना गा कर, औरत होने की दुहाई दे कर या फिर पहली गलती है आगे से कभी नहीं होगी कह कर बच निकलती थीं. ऐसे मौकों पर ज्यादातर सुपरवाइजर को ही नौकरी से हाथ धोना पड़ता था.

‘‘शिंदे साहब, अब आप ही बताओ कि एक दिन में 6 महीनों की गंदगी कैसे साफ करें?’’ इतना कह कर बनसोडे के माथे पर बल पड़ गए.

तभी अकबर, जो ड्रग्स का धंधा किया करता था, बोल पड़ा, ‘‘सफाई गई तेल लेने. अरे, बस्ती में जो एकमात्र सुलभ शौचालय था, उसे भी लोगों ने बंद करवा दिया.’’

शिंदे ने पूछा, ‘‘वह क्यों भला?’’

अकबर ने बताया, ‘‘लोग कहते हैं कि हम गरीब हैं और संडास का 5 रुपया भी बहुत ज्यादा है. इसे मुफ्त करो, नहीं तो पहले की तरह हम लोग डब्बा ले कर पहाड़ी पर जाएंगे.’’

शिंदे बोला, ‘‘इन को सब चीजें मुफ्त में चाहिए. हर घर में 2-2 डिश एंटीना लगे हैं, पैसे बरस रहे हैं, पर 5 रुपया भी नहीं निकालेंगे.’’

तभी शबनम, जिस का आदमी गैरकानूनी रूप से गाय के बछड़े काटता था और शबनम, जो टिफिन में मांस भर कर आसपास के होटलों में दे कर आती थी, ने बीच में ही टोका, ‘‘अरे अकबर भाई, तुम क्या रोना ले कर बैठ गए. असली मुद्दा तो नेताजी के बस्ती के दौरे को कामयाब बनाना है.’’

शिंदे ने कहा, ‘‘यह बात सही कही शबनम बहन ने. हमें इधरउधर ध्यान नहीं भटकाना है.’’

अकबर और शबनम के बीच गहरा संबंध था. दोनों मौका देख कर यूसुफ के रूम में आधी रात को मिलते थे, जबजब यूसुफ की नाइट ड्यूटी रहती थी. पड़ोसी सबकुछ जानते थे, पर पिटाई के डर से या खुद का भेद खुलने के डर से वे चुप रहना ही पसंद करते थे.

अफसाना और सुलेखा, जो कि मानवाधिकार संगठन की सदस्या थीं, ने अचूक रास्ता निकाला.

‘‘देखो, अपने नेताजी को बस्ती के अंदरूनी हिस्सों का दौरा कराओ ही मत. नेताजी गाड़ी से उतर कर 50-60 मीटर चल लेंगे. सब लोग नेताजी की जयजयकार कर देंगे. कुछ बच्चे उन के पैर छू लेंगे. लड़कियां उन पर फूलों के पंखुडि़यों की वर्षा कर देंगी. बस्ती के कर्ताधर्ता उन्हें फूलों की माला पहना देंगे,’’ अफसाना ने कहा.

‘‘वाहवाह, क्या दिमाग पाया है,’’ कह कर भालेराव ने जोर से तालियां बजाईं.

अब भालेराव ने बोलना शुरू किया, ‘‘इस के बाद नेताजी को बस्ती के एक घर में ले जाएंगे, जहां औरतें थाल में पानी भर कर तैयार रहेंगी. नेताजी को एक कुरसी पर बैठा कर उन के पैर थाल में रखे जाएंगे. 2 औरतें उन के पैर धोएंगीं.’’

शिंदे ने कहा, ‘‘फिर उन्हें ताजमहल होटल से लाई गई चाय पिलाएंगे.’’

बनसोडे ने बताया, ‘‘इसी बीच कुछ बूढ़ी औरतें उन से कुछ बेकार सी शिकायत करेंगी, जिन का हल निकालने के लिए नेताजी उन्हें अगले हफ्ते अपने ‘जनता दरबार’ में बुलाएंगे. इस बात पर हम सब जोरजोर से ‘नेताजी जिंदाबाद’ के नारे लगाएंगे.’’

‘‘वाह बनसोडे, लगता है कि तू आजकल हिंदी फिल्में खूब देखता है’’

‘‘ऐ माने, तू मेरा मजाक तो नहीं उड़ा रहा है न कहीं?’’

माने ने कहा, ‘‘नहीं यार, तू मेरा यार है, यारों का यार है.’’

‘‘अच्छा, अब मस्काबाजी बंद कर.’’

बनसोडे बोला, ‘‘ओ शिंदे साहब…’’

शिंदे ने कहा, ‘‘बोलो बनसोडे, मैं सुन रहा हूं.’’

‘‘शिंदे साहब, चाय के साथसाथ ताजमहल होटल से ही उन के लिए नाश्ता भी मंगा लेना.’’

‘‘हां, यह अच्छा आइडिया है,’’ शिंदे ने बनसोडे की बात का समर्थन किया.

अफसाना ने कहा, ‘‘अबे बेवड़ो, बस्ती की औरतों से ढंग से नाटक नहीं हो पाएगा. क्यों न मंदा को बोल कर उस की नाटक कंपनी में से कुछ लड़कियों को बुलवा लें? तुम सब लोग क्या बोलते हो?’’

सब ने अफसाना के विचार का जोरदार समर्थन किया. बात तो पते की कही थी अफसाना ने. देर रात तक चली इस बैठक में आखिरकार सभी समस्याओं का हल निकाल लिया गया. सब ने दारू पी और मुरगा खाया.

शबनम बोली, ‘‘रात जवां है, हम भी जवां हैं. लाइट बंद करो और सब चालू हो जाओ.’’

तुरंत लाइट बंद हुई और सभी काम पर लग गए. पूरा कमरा मुगलों का हरम बन गया था. डेढ़ 2 घंटे बाद सभी इज्जतदार लोग अपनेअपने घरों की तरफ चल पड़े. इसी बीच उन के घरों में लीला रचा चुके उन के पड़ोसी भी अपनेअपने घरों की तरफ रवाना हो चुके थे. आखिर वे भी तो इज्जतदार थे. उन्होंने भी ‘इज्जत’ का मुखौटा जो लगा रखा था.

सुबह होने के बाद बस्ती की सड़क की तरफ के 10 झपड़ों को चुना गया. उन घरों में रहने वालों को नेताजी के भावी दौरे की सूचना दे दी गई. उन्हें अपनेअपने घरों की सफाई के अलावा घर के सामने की सफाई करने को कहा गया. जिस ने ढंग से सफाई नहीं की, उस के घर पर बुलडोजर चल सकता है.

बुलडोजर का नाम सुनते ही सब बेचारे गरीब लोग डर से गए. सभी ने अपनी औरतों से कहा और सफाई में जुट गए. कोई नहीं चाहता था कि बस्ती में बुलडोजर आए, वरना उन के सभी गैरकानूनी काम बंद हो जाएंगे. इन्हीं कामों में तो वन टू का फोर खुलेआम होता था.

बस्ती के कुछ डरपोक किस्म के लोग शाम के समय बस्ती के बाहर स्टौल लगा कर तरहतरह के खानेपीने के सामान मसलन पानीपूरी, आलू टिक्की, नूडल्स, आमलेट वगैरह बेचा करते थे. शाम को काम से छूट कर घर जाने वाले लोग सस्ते के चक्कर में इन चीजों को खूब खाते थे. सस्ते के नाम पर लोगों को जहर खिलाया जाता था.

बस्ती वाले मार्केट से ऐक्सपायरी डेट का सामान ले कर आते थे. इसी तरह फूटे हुए अंडे, मरी हुई मुरगियां, काला पड़ गया खाने का तेल काम में लाया जाता था. कबूतरों को हलाल कर के उन का मांस मुरगियों के मांस के साथ मिला दिया जाता था.

कांदाबटाटा मार्केट से चोरी का प्याजआलू एकचौथाई रेट पर खरीदा जाता था. भाजीपाला मार्केट से चोरी की हुई या फेंकी हुई सब्जी खरीदी जाती थी. इन सस्ती चीजों को खा कर अनगिनत लोगों बीमार पड़ चुके थे, पर सस्ते का लालच सोचने की ताकत को दबा देता है.

वैसे, अगर बनसोडे की बात मानें, तो वह यही कहा करता था, ‘‘इस बस्ती में धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी विचारधारा के लोग रहते हैं. इन लोगों का एकदूसरे की बीवियों के साथ कुछ ज्यादा ही गहरा संबंध है. भंडारे में हर कोई शामिल होता है. कुछ लोग तो ऐसे भी हैं, जो गूगल पर सर्च करते हैं कि आज कहां भंडारा है.’’

मोरे, जो दलित पैंथर ग्रुप से संबंध रखता था, ने एक बहुत बड़ी बात कही थी, ‘‘बस्ती वालों की यह एकता ही उन की कामयाबी का राज है. अगर गलती से भी कोई पुलिस की टीम बस्ती के अंदर घुस गई तो क्या बूढ़े, क्या बच्चे, क्या जवान और क्या औरतें… सभी मिलजुल कर पत्थरबाजी करते थे.

‘‘शाम को जब चैनल वाले आते तो उन्हें देख कर औरतें और लड़कियां ऐसे बिलखबिलख कर रोतीं, छाती पीटतीं और जमीन पर ऐसे लोटतीं, मानो पता नहीं क्या हो गया.

‘‘गरीबी, दलित और अल्पसंख्यक का इतना जोरदार विक्टिम कार्ड खेला जाता था कि चैनल वाले इसे मुख्य समाचार बना देते थे.’’

तभी बनसोडे, जो पास में ही खड़ा पान चबा रहा था, थूक निगल कर बोला, ‘‘मोरे, यह दुनिया अपने मतलब की है. आखिर चैनल वालों को भी तो गरमागरम खबरें चाहिए अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए. कई बार तो सम?ादार चैनल वाले पैसा दे कर भी नाटक करवाते हैं. सब पैसों का खेल है. ढंग से पैसे मिलें तो कपड़े भी फाड़ डालें.’’

वैसे, सब से बड़ी बात तो शिवबदन ने बताई. शिवबदन का गांव उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में था. कहने को तो वह बिजली मिस्त्री था, पर सुबहशाम अपनी मकान मालकिन की टपरी पर समोसे, भजिया और वडे तलता था. रात को अपनी मकान मालकिन के कमरे में ही सोता था.

‘‘साहब, इन बस्ती वालों की असली कमाई तो चुनाव के समय में होती है.’’

नेताजी के बहुचर्चित ?ांपड़पट्टी के दौरे से एक दिन पहले एक खास टीम आई. उस टीम में कुछ सिक्योरिटी अफसर, मीडिया वाले और पार्टी के कुछ खास लोग थे. इन्होंने बस्ती वालों के साथ बस्ती का मुआयना किया और नेताजी के बस्ती दौरे को कामयाब बनाने पर सोचविचार किया.

अगले दिन नेताजी धूमधड़ाके के साथ बस्ती का दौरा करने आए. उन के स्वागत में 15 मिनट तक आतिशबाजी हुई. बच्चे, बूढ़े और औरतों ने नेताजी की जयजयकार की. फिर नेताजी को सिक्कों से तोला गया. नेताजी ने उन सिक्कों को हाथों से छू कर गरीबों में बांटने का हुक्म दिया. सब बस्ती वाले तुरंत ?ाली फैला कर खड़े हो गए.

मोरे चिल्लाया, ‘‘बनसोडे, एक लट्ठ ला कर बजा इन पर. गांव बसा नहीं और भिखारी चले आए.’’

नौजवानों ने आगे बढ़ कर नेताजी के पैर छुए. नेताजी खुश हो गए. पर नेताजी को असली खुशी तब हुई, जब लड़कियों ने उन के पैर छुए. नेताजी खुश हो कर उन की पीठ पर हाथ फेरे जा रहे थे.

गहमागहमी बढ़ते ही जा रही थी. फिर फोटो सैशन हुआ. नेताजी पर जम कर फूलों की वर्षा की गई. कुछ बूढ़ी औरतें, जिन्हें डेटौल मिले पानी से रगड़रगड़ कर नहलाया गया था, ताकि उन के करीब जाने से नेताजी को कहीं इंफैक्शन न हो जाए, ने नेताजी को अपना माईबाप बताया.

तभी नेताजी के निजी सचिव ने कहा, चूंकि नेताजी बिजी होने के बावजूद बस्ती वालों की खास गुजारिश पर बस्ती में आए हैं, इसलिए आगे का कार्यक्त्रम तेजी से निबटाया जाए. जैसा कि सभी को पता है, नेताजी लोक नेता हैं, इसलिए उन्हें और काम भी हैं, समय की बेहद कमी है.’’

अब नेताजी की सवारी धीरेधीरे सरकनी शुरू हुई. 150 फुट चली होगी कि 2 भाई लोगों ने निजी सचिव की जेब में 500 रुपयों के नोटों की 4 गड्डियां डालीं. निजी सचिव ने कारवां को वहीं रुकने का इशारा किया. सामने बनी ?ांपड़ी में नेताजी ने प्रवेश किया. निजी सचिव ने धीरे से नेताजी के कान में कहा कि चायनाश्ता ताजमहल होटल का है.

अंदर 2 डाइटिशियन टैस्ट कर के खाना परोस रही थीं, फिर भी नेताजी ने दो घूंट चाय पी. उन के निजी सचिव ने कहा कि नेताजी ने बस्ती वालों के लिए उपवास रखा है, इसलिए नाश्ता नहीं करेंगे. सभी बस्ती वाले यह सुन कर खुश हो गए. फिर से सभी ने नेताजी की जयजयकार की.

तभी एक भाई ने मौका देख कर नेताजी को एक बैग भेंट में दिया.

नेताजी ने पूछा, ‘‘कितने हैं?’’

भाई बोला, ‘‘10 लाख हैं दादा. बाकी के 20 लाख अगले हफ्ते औफिस में पहुंचा दूंगा.’’

नेताजी ने बैग अपने निजी सचिव को पकड़ाया और हाथ जोड़ कर सभी बस्ती वालों से कहा, ‘‘आप लोगों का अपनापन देख कर बेहद खुशी हो रही है. आप सभी का कल्याण हो. अच्छा, अब इजाजत दीजिए. जय हिंद.’’

इतना कह कर नेताजी चल पड़े. साथ में बस्ती वालों का हुजूम चल पड़ा. कुछ बूढ़ी औरतें रोने लगीं. नेताजी का काफिला देखते ही देखते आंखों से ओ?ाल हो गया.

एक बुजुर्ग दूसरे बुजुर्ग से बोला, ‘‘जब यह नेतवा मार्केट में घूमघूम कर नीबू बेचता था, तब नहीं थकता था. पर, अभी तो तुरंत ही थक जाता है.’’

बनसोडे ने कहा, ‘‘चचा, यह नीबू बेचताबेचता गरीबों का मसीहा बन गया और तुम हमाल के हमाल ही रह गए.’’

बनसोडे की बातें बुजुर्ग को अच्छी नहीं लगीं, पर फिर भी उन्होंने चुप रहने में ही अपनी भलाई सम?ा.

बनसोडे ने कहा, ‘‘अरे भालेराव, नेताजी तो गए. अब चलो हम ही लोग चायनाश्ता कर लें.’’

भालेराव बोला, ‘‘नाश्ता, अरे वह तो सब प्रैस वाले ले गए. अपने घर जा कर नाश्ता करो.’’

‘‘हे देवा, अब क्या होगा. घरवाली तो ड्यूटी पर गई है.’’

‘‘अबे घोंचू, जब्बार की कैंटीन में चल कर खाते हैं फ्री में.’’

दोनों एकदूसरे का हाथ पकड़े मुसकराते हुए चल पड़े.

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