
‘‘तुम्हें तो पता ही होगा कि मेरे पिताजी जब तक जिंदा रहे, तब तक वे लोगों को सांपों के बारे में जानकारी देते रहे, ताकि लोगों के मन में बैठा डर और अंधविश्वास दूर हो सके, पर वे इस बात से हमेशा दुखी ही रहे कि हमारे देश के लोग या तो डर कर सांप को मार डालते हैं या फिर उस की पूजा करने लगते हैं. हालांकि, लोगों द्वारा की जाने वाली पूजा भी हमारे मन में बैठे डर के चलते ही जन्म लेती है,’’ माधव अपने दोस्त राज से कह रहा था.
‘‘लेकिन यार… बुरा मत मानना, पर मैं ने तो सुना है कि तुम्हारे पिताजी सांपों को पकड़ कर उन्हें बेचने का कारोबार किया करते थे,’’ राज ने दबी जबान से कहा. ‘‘गलत सुना है तुम ने… दरअसल, ऐसी बातें उन लोगों ने फैलाई हैं, जो खुद सांप पकड़ कर बेचने का काम करते थे. ‘‘मेरे पिताजी तो सांप पकड़ कर उन्हें किसी जंगल में छोड़ आते थे, ताकि कुदरत का बैलेंस बरकरार रह सके और इस के लिए उन्हें कभी सरकार की तरफ से कोई बढ़ावा या अवार्ड भी नहीं मिला. मेरे पिताजी ने अपने खर्चे पर ही यह सब किया,’’ माधव ने एक लंबी सांस छोड़ते हुए राज को बताया.
‘‘अच्छा तो इतनी पढ़ाईलिखाई कर के अब तुम गांव में क्यों जाना चाहते हो?’’ राज ने पूछा. ‘‘मैं गांवगांव जा कर लोगों को जागरूक करूंगा, ताकि समाज में सांपों के प्रति फैले अंधविश्वास को खत्म कर पाना मुमकिन हो सके… और यही मेरे पिताजी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी,’’ माधव ने फख्र से कहा. अपने पिताजी की तरह माधव भी कुदरत और सांप प्रेमी था.
वह विज्ञान में एमएससी था और शहर में नौकरी न कर के लोगों में चेतना की अलख जगाना चाहता था और इसीलिए उस ने अपने घर को छोड़ कर जंगलों के किनारे बसे गांवों में जाना शुरू किया था. इस गांव में जब माधव आया तो उस ने सीधे गांव के प्रधान से मुलाकात की और उन्हें अपने आने का मकसद बताया. प्रधान को उसे कुछ दिन गांव में रुकने की इजाजत देने में कोई खास मुश्किल नहीं हुई और उन्होंने गांव में ही माधव के रहनेखाने का इंतजाम करा दिया.
इस गांव में माधव को रुके हुए 2 दिन हो गए थे. बरसात का मौसम था. माधव को आसानी से सांप पकड़ने में महारत हासिल थी. वह उन्हें पकड़ता और लोगों को समझाता कि हमें इन से डरने की नहीं, बल्कि जागरूक रहने की जरूरत है. एक दिन हलकी बरसात हो रही थी. माधव नदी के किनारे टहलने चल दिया. बरसात के चलते नदी भी उफान पर थी. माधव ने अपना मोबाइल निकाला और नदी के तेज बहाव की फोटो लेने लगा, पर अच्छी फोटो लेने के चक्कर में माधव का पैर फिसल गया और वह नदी में जा गिरा. नदी के तेज बहाव में बहते माधव को तैरना तो आता था, मगर शहर के स्विमिंग पूल में. नदी के तेज बहाव में हाथपैर मारने के बाद भी उसे किनारा नहीं मिल पा रहा था.
माधव ने हिम्मत तो नहीं हारी थी, पर उसे लगने लगा था कि अगर वह जल्दी ही किनारे नहीं लगा, तो आज यह उस का आखिरी दिन होगा. तभी माधव को पानी में तैरती हुई एक रस्सी दिखाई दी, जिस के आगे एक बांस का टुकड़ा लगा हुआ था. माधव के कान सुन सकते थे कि ‘रस्सी पकड़ो’ की आवाज किनारे से आ रही थी, पर आंखें ठीकठीक कुछ देख नहीं पा रही थीं. माधव ने उस बांस पर लगी हुई रस्सी को मजबूती से पकड़ लिया और अब वह किनारे की तरफ खिंचता जा रहा था. किनारे पर एक अनजान हाथों ने माधव को बाहर खींच निकाला. वे 2 लड़कियां थीं, जिन की उम्र तकरीबन 20-22 साल की होगी, जो बारिश में भीगी हुई थीं. उन में से एक लड़की काले रंग की थी, तो दूसरी दूध जैसी गोरी. उन दोनों की काया बारिश का पानी पड़ने से धुलीधुली सी नजर आ रही थीं.
‘‘जब पानी में तैरना नहीं आता, तो नदी में क्यों कूदते हो…’’ उस गोरी लड़की ने पूछा. ‘‘नहीं, मैं गलती से गिर गया था, तैरने नहीं आया था,’’ माधव की इस बात पर गोरी लड़की अपने मुंह पर हाथ रख कर तेजी से हंसने लगी. उस का इस तरह से हंसना माधव को अच्छा नहीं लग रहा था, पर वह कुछ कह नहीं पा रहा था, क्योंकि इन्हीं दोनों लड़कियों के चलते ही उस की जान बची थी. ‘‘चलो अब हटो यहां से, नहीं तो दोबारा गिर जाओगे नदी में,’’ इतना कह कर वे दोनों लड़कियां हंसते हुए वहां से चली गईं. चेहरे पर मीठी सी मुसकराहट लिए माधव आगे बढ़ रहा था कि तभी गांव के 3-4 लड़कों ने उसे घेर लिया.
‘‘तुम हमारे गांव के प्रधान को बेवकूफ बना कर जागरूकता फैलाने के नाम पर यहां रुक तो गए हो, पर अपनी नौटंकी कहीं और जा कर दिखाओ. यहां लोगों को तुम बेवकूफ नहीं बना पाओगे,’’ एक दाढ़ी वाले नौजवान ने कहा. अभी तक माधव कुछ समझ नहीं पाया था कि उस दाढ़ी वाले नौजवान ने दोबारा बोलना शुरू किया, ‘‘वैसे भी तुम हमारी धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे हो…
हम लोग बरसों से सांपों को संतान देने वाले देवता के रूप में पूजते आ रहे हैं और तुम हमारे गांव के लोगों की आस्था को नुकसान पहुंचा रहे हो, इसलिए कल सुबह होते ही यह गांव छोड़ कर चले जाओ, नहीं तो इस का अंजाम खुद ही भुगतना,’’ माधव को घूरते हुए वे सब वहां से चले गए. माधव वहां से सीधा प्रधान के घर पहुंचा और सारी आपबीती उन्हें कह सुनाई.
‘‘अब मैं क्या बताऊं तुम्हें… उस लड़के का नाम अगाली है और इस गांव में उस की तूती बोलती है, क्योंकि वह गांव के लड़कों को शराब और मांस खिलापिला कर अपने साथ घुमाता रहता है, इसलिए वे निठल्ले उस के एक इशारे पर कुछ भी करने को राजी रहते हैं. ‘‘और दूसरा सिक्का चलता है कपाला नाम के तांत्रिक का, जिस ने यहां के लोगों की बुद्धि को अंधविश्वास के चक्कर में ऐसा बांध रखा है कि लोगों का उस से बाहर आना नामुमकिन सा है.
‘‘कपाला पहले गांव में किसी भी तरह का नकली संकट पैदा कराता है, जैसे फर्जी बीमारियां, नजर लगना, जादूटोना वगैरह… और जब गांव के लोग हल पूछने उस के पास जाते हैं, तो वह उन से पैसे लेता है और दूसरे कई तरीकों से उन का शोषण भी करता है. प्रधान चाहे कोई भी हो, इस गांव में सिक्का तो अगाली और तांत्रिक का ही चलता है.’’ वैसे तो माधव खुद ही इस गांव से जाने वाला था, पर अब उसे यहां रुकना एक चैलेंज लगने लगा था, क्योंकि उस का मानना था कि आसान काम तो कोई भी कर सकता है, पर मजा तो तब है जब मुश्किल काम को किया जाए, इसलिए उस ने अगाली के बारे में प्रधानजी से और ज्यादा जानकारी मांगी. अगली सुबह जैसे ही माधव सो कर उठा, तो उस ने देखा कि सामने से अगाली अपने साथ गांव के 2-4 लड़कों के साथ चला आ रहा था.
‘‘क्या रे… तुम अभी तक गांव से गए नहीं?’’ अगाली ने पूछा. ‘‘दरअसल, बात ऐसी है कि मुझे एक खास सांप का जहर निकालना है और इसीलिए मैं यहां रुका हुआ हूं. मैं आप से वादा करता हूं कि उस सांप का जहर मिलते ही मैं यहां से चला जाऊंगा,’’ माधव ने चाल चली. ‘‘अच्छा… तो जहर से दवा बनाएगा… हम ने सुना है कि सांप के जहर से लंबे समय तक सैक्स में टिके रहने वाली दवा बनती है… मैं तुझे इस शर्त पर ही गांव में रहने दूंगा कि तू मुझे वह दवा देगा…
बोल मंजूर है?’’ अगाली बोल रहा था. ‘‘बिलकुल मंजूर है.’’ अगले हफ्ते ही अगाली को नया प्रधान चुन लिया गया. उस ने शराब की नदियां बहा दीं. पूरे गांव में पकते हुए मांस की गंध फैली हुई थी. कपाला भी अगाली के साथ खुशियां मना रहा था. ‘‘सुनो…’’ एक मीठी सी आवाज माधव के कानों में पड़ी. यह तो वही गोरी लड़की थी. वह बोली, ‘‘अरे, अपनी जान क्यों जोखिम में डाल रहे हो… अगाली बहुत खतरनाक आदमी है. मेरी मानो तो यहां से चले जाओ.’’ ‘‘चला जाऊंगा, पर पहले अपना नाम तो बताओ?’’ माधव ने पूछा. ‘‘चांदी नाम है मेरा,’’ शरमाते हुए उस लड़की ने कहा.
राइटर- रामचरन हर्षाना
इस मोहल्ले में मैं यानी गोविंद दूध की थैली दिया करता था, जहां एक लेखक महोदय भी रहा करते थे. उन का नाम सुमंत जैन था. वे बड़े जानेमाने लेखक थे. हालांकि मुझे इस बात का कतई पता नहीं था. वह तो उन के पड़ोस में रह रहे मेरे ही एक ग्राहक दिनकरजी ने मुझे इस बारे में बताया था.
एक दिन दूध की थैली दरवाजे पर रख कर मेरे द्वारा कुछ देर दरवाजा खटखटाने पर भी जब सुमंत जैन नहीं जागे, तब अपने घर से बाहर आए दिनकरजी ने मुझ से कहा, ‘‘कोई बात नहीं. वे अपनेआप जाग कर दूध ले लेंगे. रातभर लिखते रहे होंगे और फिर देर से सोए होंगे.’’
‘‘वे रातभर लिखते रहते हैं?’’ मैं ने अचंभे से पूछा, ‘‘आखिर वे ऐसा क्या लिखते हैं?’’
‘‘वे एक बड़े लेखक हैं…’’ दिनकरजी ने बड़े गर्व से कहा, ‘‘कई पत्रिकाओं में वे लेख, कविताएं और कहानियां लिखते रहते हैं. यही तो उन का पेशा है. वे नौकरी थोड़े ही करते हैं.’’
‘‘नौकरी नहीं करते…’’ मैं और भी हैरान हो गया. पूछने लगा, ‘‘सिर्फ लिखने से उन का गुजारा कैसे चलता है?’’
‘‘बिलकुल चलता है. आखिर वे कलम के सिपाही जो ठहरे,’’ दिनकरजी ने दोबारा गर्व से कहा.
तब से मेरे दिल में सुमंतजी के प्रति और ज्यादा आदर भावना जाग उठी थी. मुझे भी गर्व हुआ कि मैं एक जानेमाने लेखक को दूध की थैली पहुंचाता हूं.
फिर मैं उन में और ज्यादा दिलचस्पी लेने लगा. कई बार सवेरे दूध पहुंचाते हुए जब मैं देखता कि वे जाग उठे हैं, तो उन से दुआसलाम कर के बातचीत कर लिया करता था.
दिनकरजी भी कभीकभार मुझे उन पत्रिकाओं के बारे में बताते थे, जिन में सुमंतजी की रचनाएं छपती थीं. पत्रिका में उन के फोटो के साथ उन की रचना छपी देख कर मैं बहुत ज्यादा खुशी महसूस करता था.
दिनकरजी तो मुझे सुमंतजी के विचित्र किस्से भी सुनाया करते थे. सुमंतजी बड़े सरल, भोले, कुछकुछ सनकी और बेपरवाह इनसान थे. वे कई बार बाजार में खरीदारी के लिए जाते थे, लेकिन कुछ याद आते ही बिना कुछ खरीदे घर लौट जाया करते थे और फिर लिखने बैठ जाते थे.
सुना था कि उन के इसी सनकी स्वभाव के चलते उन की अपनी पत्नी से भी नहीं बनती थी और अब वे उन से अलग रह रही थीं. भोलेभाले लेखक सुमंतजी अपनी लेखन की कमाई में से कुछ हिस्सा पत्नी के लिए भेज दिया करते थे.
एक सवेरे इच्छा हुई कि आज अपने प्रिय लेखक से मिल लिया जाए. मैं ने दरवाजा खटखटाया. फिर इंतजार किया. कोई आहट नहीं हुई.
मैं ने दरवाजा जोर से खटखटाया. फिर देखा कि खिड़की भी बंद थी. मैं ने उसे खोल कर अंदर झांका. लगा कि अंदर कोई नहीं था.
तभी हमेशा की तरह दिनकरजी बाहर आए और बोले, ‘‘अरे, क्यों दरवाजा खटखटा रहे हो?’’
‘‘यों ही… सुमंतजी से मिलना था. दूध का बिल भी देना था,’’ मैं ने जवाब दिया.
‘‘अरे, क्या तुम्हें नहीं पता, वे तो चल बसे. 3-4 हफ्ते हो गए,’’ इतना कह कर दिनकरजी ने मुझे चौंका दिया.
‘‘यह कैसे हो सकता है…’’
‘‘कुछ दिन पहले वे अपनी पत्नी से मिलने के लिए जौनपुर गए थे, फिर वापस नहीं आए,’’ दिनकरजी ने खुलासा किया.
यह सुन कर मुझे धक्का सा लगा. इतने अच्छे लेखक का यों अचानक चले जाना मुझे नागवार गुजरा. मेरी आंखों के सामने उन का चेहरा घूमने लगा.
‘‘लेकिन, मैं तो पिछले कई दिनों से रोजाना दूध की थैली उन के दरवाजे पर रख जाता हूं. फिर वे सारी थैलियां जाती कहां थीं?’’ मैं ने सवाल किया.
दिनकरजी ने शक की निगाह से मेरी तरफ देखा. उन्हें लगा कि शायद मैं उन पर दूध की थैली चुराने का आरोप लगा रहा हूं. वे थोड़े खिसियाने हो गए और कुछ भी कहे बगैर अंदर चले गए.
मैं यह सोच कर हैरान था कि दिनकरजी जैसे पड़ोसी ने मुझे सुमंत जैन जैसे नामी लेखक की मौत के बारे में क्यों नहीं बताया? शहर में पड़ोसी क्या इतने मतलबी हो सकते हैं कि उन्हें अपने बगल में रह रहे इनसान की मौत के बारे में भी पता न चले? इतना ही नहीं, उन्हें सब्जी पहुंचाने वाले को भी इस की जानकारी देने की जहमत नहीं उठाई?
खैर, मुझे अपनी दूध की थैली के पैसे गंवाने से ज्यादा अपने चहेते लेखक को गंवाने का दुख था. अपने प्रिय लेखक की अचानक हुई मौत के शोक से मैं अभी संभल नहीं पाया था कि एक दिन सवेरे मैं ने दिनकरजी का दरवाजा बंद देखा.
न जाने क्यों मुझे लगा कि दिनकरजी को जगाना चाहिए.
मैं ने उन का दरवाजा बारबार खटखटाया, लेकिन अंदर से कोई आवाज नहीं आई. फिर मैं ने और जोर से दरवाजा खटखटाया. यह सिलसिला मैं ने तब तक चालू रखा, जब तक अंदर से कोई आहट न आई.
आखिरकार दिनकरजी जाग गए थे, क्योंकि अंदर से उन की आवाज आई थी, ‘‘आता हूं भई…’’
मुझे तसल्ली हुई. फिर दिनकरजी ने अपनी आंखें मसलते हुए दरवाजा खोला, ‘‘अरे, क्या बात है गोविंद? क्यों दरवाजा खटखटा रहे हो? रोज तो दरवाजे पर ही दूध की थैली रख जाते हो, तो आज मुझे क्यों जगा रहे हो?’’
‘‘दिनकरजी, मैं ने सोचा कि आप के पड़ोसी लेखक सुमंतजी को न जगा कर मैं ने बड़ी गलती कर दी थी. मुझे उन के चले जाने की भनक तक नहीं लगी थी. कहीं ऐसा न हो कि मेरी दूध की थैली आप के दरवाजे पर कई दिनों तक पड़ी रहे और उसे कोई दूसरा इस्तेमाल कर ले,’’ मैं ने तपाक से जवाब दिया.
मैं ने गरम लोहे पर सही समय पर हथौड़ा मार दिया था. दिनकरजी को यह समझते देर न लगी कि मैं ने उन की दूध की थैली की चोरी पकड़ ली थी. उन का चेहरा शर्म से लाल हो चुका था. उन्होंने चुपचाप दूध की थैली ले कर दरवाजा बंद कर लिया.
राइटर- नम्रता सरन ‘सोना’
रुपाली को बिलकुल अच्छा नहीं लगा कि मिस्टर रोहित गोयनका ने उसे नोटिस नहीं किया. उसे एक नजर उठा कर भी नहीं देखा. वह कैसे बरदाश्त कर लेती यह अनदेखी, जबकि उस की तो आदत थी कि उसे देख कर हर कोई ऐक्स्ट्रा कमैंट्स जरूर करे, लेकिन इस नए मैनेजिंग डायरैक्टर ने उसे कोई तवज्जुह ही नहीं दी.
रुपाली अपनी जुल्फें अपने खुले हुए कंधों से बारबार हटा कर अपने चमकते गालों से ले कर सुराहीदार चिकनी गरदन पर अपनी पतलीपतली लंबी सी उंगलियां फिरा कर बराबर ध्यान खींचने की कोशिश करती रही, लेकिन मिस्टर रोहित गोयनका स्क्रीन पर नए प्रोडक्ट को लौंच करने का प्रोजैक्ट समझाने में ही बिजी रहे.
‘‘मिस दिव्या छजलानी, आप इस प्रोजैक्ट को हैंडल करेंगी. आप इस असाइनमैंट की हैड होंगी… ओके… आल क्लियर… आज की मीटिंग खत्म हुई… बाय,’’ कह कर रोहित गोयनका बोर्डरूम से निकल गया.
रुपाली का चेहरा गुस्से और जलन से तमतमा रहा था. इतनी बेइज्जती, एक जूनियर को प्रोजैक्ट का हैड बना दिया, उस से यह बात बिलकुल भी सहन नहीं हो रही थी.
‘बधाई हो दिव्या,’ सभी मिस दिव्या छजलानी को प्रोजैक्ट हैड बनने पर बधाई दे रहे थे, लेकिन रुपाली के सीने पर सांप लोट रहे थे.
एकएक कर के सभी बोर्डरूम से बाहर निकल गए.
‘‘रुपालीजी, क्या बात है? आप कुछ डिस्टर्ब लग रही हैं. लगता है, आप खुश नहीं हैं दिव्याजी की अचीवमैंट से. आप ने उन्हें बधाई भी नहीं दी,’’ एक साथी ने आग में घी डालते हुए कहा.
‘‘मेरी बला से… अब तो हद हो गई है… कल बात करती हूं,’’ कह कर पैर पटकते हुए रुपाली वहां से निकल गई.
अगले दिन रुपाली बहुत ही सैक्सी ड्रैस पहन कर औफिस में दाखिल हुई. उसे देख कर कई सीटियां एकसाथ बज उठीं.
रुपाली बहुत ही आत्मविश्वास से रोहित गोयनका के केबिन में घुस गई.
‘‘ऐसा कैसे हो सकता है सर, आप ने एक जूनियर को इतनी बड़ी जिम्मेदारी दे दी, जबकि मैं इतनी सीनियर हूं,’’ रुपाली ने बिलकुल रोहित गोयनका के चेहरे पर अपने खुले सीने की नुमाइश करते हुए कहा.
रोहित गोयनका ने नजर उठा कर देखा और सीट से उठ गया, फिर बोला, ‘‘आराम से मिस रुपाली, तुम पहले बैठो,’’ कहते हुए वह रुपाली के नजदीक आया. रुपाली सीट पर बैठ गई.
‘‘तुम्हें काम दे देता तो मेरा काम कौन करता,’’ रोहित गोयनका ने रुपाली की संगमरमरी पीठ को जोर से दबाते हुए कहा.
रुपाली का अंगअंग फड़कने लगा, उस की तेज सांसों से ऊपरनीचे होते सीने पर टिकी रोहित गोयनका की भूखी निगाहें रुपाली को और उत्तेजित करने लगीं. पहली ही मुलाकात में रोहित गोयनका का यह बिंदास अंदाज उसे अपनी जीत का एहसास करा रहा था.
‘‘अभी जाओ, शाम को मिलते हैं,’’ रोहित गोयनका ने उस के खुले कंधों को दबाते हुए कहा.
‘‘ओके सर,’’ रुपाली ने किसी विजेता की तरह कहा और केबिन से बाहर निकल आई.
‘‘बधाई हो डियर दिव्या, तुम इस प्रोजैक्ट को डिजर्व करती हो,’’ रुपाली ने गर्मजोशी से दिव्या छजलानी को बधाई दी.
देर रात रोहित गोयनका ने रुपाली को उस के घर छोड़ा. वह बहकते कदमों से लड़खड़ाते हुए रोहित गोयनका को ‘बाय’ करते हुए चली गई.
एक बड़े शहर में न जाने कितनी रुपालियां इसी तरह खुद को नोटिस करवाती हैं और खुद को विजेता मानने के भरम में सबकुछ हार जाती हैं, लेकिन उन के लिए यही बहुत होता है कि ‘इस ने भी मुझे नोटिस किया…’
यह बड़े शहरों का एक बहुत ही कड़वा सच है.
‘ताऊजी डीजे लगवा दो… ताऊ…’ के नारे लगाते हुए युवकों के शोर से ताऊजी की तंद्रा भंग हुई और वे उचक कर बाहर देखने लगे. बाहर का दृश्य अचंभित करने वाला था. ढोलक की ताल पर संग में हाथों में लट्ठ लिए गांव के कई युवक उन के दरवाजे पर खड़े नारे लगा रहे थे और अगुआई कर रहा था उन का अपना भतीजा कपिल, जो होने वाला दूल्हा था. हां भई, अगले महीने उस का विवाह जो था.
पंचों के पंचायती फरमानों ने युवाओं के हितों पर सदा से कुठाराघात किया है. आज समाज भले ही विकसित हो गया हो पर इन के तुगलकी फरमानों में बरसों पुरानी दकियानूसी सोच दिखती है. कभी युवतियों के कपड़ों पर आपत्ति जताएंगे तो कभी जातिधर्म के नाम पर प्रेम करने वालों को हमेशाहमेशा के लिए जुदा करते दिखेंगे.
युवाओं को कभी न भाने वाले इन के तुगलकी फरमानों की फेहरिस्त काफी लंबी है, लेकिन हाल में हरियाणा के 100 गांवों में डीजे पर लगाई गई पाबंदी युवाओं को नागवार गुजरी. इसी के विरोध में युवा नारे लगा रहे थे.
आज शादीविवाह में डीजे का उतना ही महत्त्व है जितना बैंडबाजे, बरात का या फूलमालाओं से सजी नवविवाहित जोड़े की गाड़ी का, जयमाला या फिर लजीज खाने का, भले ही विवाह में खाने में सौ व्यंजन परोस दें, तरहतरह के स्नैक्स से ले कर चाइनीजमुगलई खाने और अंत में जातेजाते तरहतरह के हाजमिक पान का स्वाद चखने के बावजूद युवकयुवतियों का विवाह का सारा मजा तब तक अधूरा रहता है जब तक कि उन्हें डीजे पर थिरकने का मौका न मिले.
किसी पार्टी, फंक्शन, बर्थडे, शादीविवाह की शान डीजे भले ही समारोह में एक कोने की शोभा बढ़ाता हो, लेकिन पार्टी में शिरकत करते युवकयुवतियों के लिए समारोह का मुख्य आकर्षण यही कोना रहता है. डीजे की आवाज जितनी अधिक कानफोड़ू होगी मस्ती उतनी ही अधिक होती है और उतने ही अधिक मदहोश हो कर युवकयुवतियां थिरकते हैं.
डीजे पर एक भी गाना पूरा नहीं बजाया जाता बल्कि रीमिक्स कर कई गानों की खासकर पहली लाइन ही बजाई जाती है, जिस से हर किसी का पसंदीदा गाना एकाध मिनट के अंतराल में बज ही उठता है जिस से मनोरंजन का मजा दोगुना हो जाता है. यह गाने अधिकतर लेटैस्ट और प्रचलित होते हैं.
डीजे सिर्फ युवकयुवतियों को ही आनंदित नहीं करता बल्कि अधेड़ और बुजुर्गों में भी नया जोश भर देता है. इस की कानफोड़ू आवाज मदमस्त नाचते बूढ़ों में जवानी का संचार कर देती है वहीं जलतीबुझती लाइटों से डीजे पर थिरकने का मजा दोगुना हो जाता है और युवकयुवतियों संग उम्रदराज भी मदहोश हो कर अपने पसंदीदा गानों पर थिरक उठते हैं.
किसी यारदोस्त की शादी हो और नाचगाने का समां न बंधे, डीजे पर थिरकने को न मिले, तो मन में यही मलाल रहता है कि फलां की शादी में रूखासूखा भात खा कर आ गए. डीजे नहीं होने से न नाचगाना हुआ, न रौनक रही. दूसरी ओर डीजे पर थिरकते क्षणों की अपने कैमरे या मोबाइल द्वारा बनाई वीडियो क्लिपिंग्स सालोंसाल उस मस्ती को तरोताजा बनाए रखती हैं.
लेकिन हर पार्टीफंक्शन की शान बन चुके डीजे पर पाबंदी की बात बरदाश्त से बाहर थी. युवकयुवतियां सब बरदाश्त कर सकते हैं पर अपनी मौजमस्ती में खलल नहीं, सो वे ‘ताऊजी डीजे लगवा दो…‘ की नारेबाजी के साथ पंचों के फैसले के विरुद्ध खड़े थे.
असमंजस में पड़े ताऊजी ने कारण पूछा तो पता चला कि वे जिस डीजे वाले को कपिल की शादी में डीजे बजाने को मना कर आए हैं वे उसी से खफा हैं.
ताऊजी ने अपनी असमर्थता जताई और बताया कि यह पाबंदी गांव के हित में है, लेकिन युवा नहीं माने. ‘अगर शादीविवाह में डीजे नहीं बजेगा तो क्या मातम पर बजेगा,’ युवाओं ने दलील दी और ‘ताऊजी डीजे…’ का पुरजोर नारा लगाया.
बात न बनती देख ताऊजी ने गांव के पंचों के पास चलने को कहा तो सभी नारे लगाते हुए सरपंच के पास जा धमके. ऐसा पहली बार हुआ था कि गांव के युवा अपने बुजुर्गों के सामने तन कर खड़े थे और डीजे पर पाबंदी हटवाने का हरसंभव प्रयत्न कर रहे थे.
सरपंच सभी को शांत करता हुआ बोला, ‘‘भई, इतने उग्र होने से अच्छा है अपनी बात बताओ?’’
बल्लू ने अपना पक्ष रखा, ‘‘सरपंचजी, अगले महीने कपिल की शादी है और हमें नाचनेगाने की भी आजादी नहीं. आप ही बताइए, शादी में डीजे न बजे और रौनक न हो तो क्या मजा आएगा भला.’’
‘‘ओह, तो यह बात है, भाई, तुम लोग तो जानते ही हो कि हरियाणा के 100 गांवों में डीजे पर पाबंदी है, हम तुम्हें यह आजादी कैसे दे दें?’’ सरपंचजी बोले, तो उन की बात पुख्ता करते हुए एक पंच बोला, ‘‘डीजे बजने से बहुत नुकसान होता है. तुम जानते हो डीजे की कानफोड़ू आवाज से विचलित हो कर भैंसें दूध नहीं देतीं और डीजे की धमक से गर्भधारण किए भैंसों के गर्भ भी गिर रहे हैं.’’
अब झबरू ने युवाओं का पक्ष रखा, ‘‘सरपंचजी, सारा दूध हमारे ही गांव का तो नहीं पहुंचता देश में, अगर एकदिन भैंस दूध नहीं देगी तो कौन सी मुसीबत आ जाएगी. शादीब्याह तो जीवन में एक ही बार होता है वह भी इस पाबंदी के कारण दिल में मलाल रह जाए तो क्या फायदा, हमेशा यारदोस्त यही बात कहेंगे कि फलां की शादी में न डीजे बजा और न नाचगाना हुआ, बस, रूखासूखा भात खा आए. पेट तो घर में भी भरते हैं फिर शादी की पार्टी का क्या फायदा?’’
बल्लू ने साथ दिया, ‘‘और जो यह भैंसों के गर्भ गिरने की बात है यह बेकार की बात है. आज तक किसी औरत का इस से गर्भ गिरा क्या? वे भी तो डीजे पर नाचतीगाती हैं और फिर एकाध दिन गर्भधारण की भैंस को विवाह वाले घर से दूर भी तो रखा जा सकता है. हमारी खुशी पर पाबंदी क्यों?’’
अब तीसरा बोला, ‘‘भाई, बात इतनी ही नहीं है. इस से बड़ेबुजुर्गों के सिर में दर्द भी हो जाता है जिस से उन का शादी का सारा मजा किरकिरा हो जाता है. तुम लोग नाचतेगाते हो और वे खाट पर सिर बांध कर पड़े रहते हैं.’’
‘‘वाह, पंचों ने क्या नुक्ता निकाला है. भई, पहले भी तो शादियां होती थीं. महीना पहले से ही जश्न शुरू हो जाता था. आप को तब नहीं खयाल आया अपने बुजुर्गों का. हमारा समय आया तो सिरदर्द होने लगा,’’ बल्लू ने अपना पक्ष रखा.
ताऊजी बोले, ‘‘देख लो पंचो, इन्हें ऐसी बातें करते शर्म भी नहीं आती.’’
‘‘भई, ताऊजी की शर्म वाली बात से एक और बात याद आई. जब युवकयुवतियां डीजे पर नाचते हैं तो बेशर्म हो कर नाचते हैं, भौंड़ी और फूहड़ हरकतें करते हैं जो देखने में भी अच्छी नहीं लगती हैं.’’ चौथे पंच ने कहा, तो 5वां पंच उन की हां में हां मिलाता हुआ बोला, ‘‘हां भई, डीजे पर थिरकते तुम लोग सिर्फ फूहड़ हरकतें ही नहीं करते बल्कि युवतियों से छेड़छाड़ भी करते हो और अश्लील गाने चलवाते हो जो बिलकुल अच्छा नहीं लगता.’’
कपिल आक्रोश में बोला, ‘‘आप हमें नाचते देखते हो या युवतियों के कपड़े और उन के थिरकते अंगों को.’’
झबरू आगे आया और सब को शांत करता हुआ बोला, ‘‘अगर युवकयुवतियां इस उम्र में फैशनेबलकपड़े नहीं पहनेंगे तो क्या बुढ़ापे में पहनेंगे. रही बात अश्लील गानों की तो ताऊजी आप अपना समय याद करो जब आप ने मदनू काका की शादी में गाना चलवाया था, ‘चोली के पीछे क्या है… चुनरी के नीचे क्या है…’ क्या वह फूहड़ अश्लील गाना नहीं था और जो आप ने अपने साथ नाचती युवती के साथ गलत हरकत की थी, सब जानते हैं. वह अलग बात है कि आप की शादी बाद में उसी से हो गई.’’
अब सब पंचों का मुंह देखने वाला था तभी कपिल बोला, ‘‘आप सब जानते हैं कि शादी का माहौल खुशी का होता है ऐसे में युवतियां स्वयं सजधज कर डीजे की धुनों पर नाचती हैं. कोई युवक अगर उन से टकरा जाए या वह टशन मारता हुआ उन के साथ नाचने लगे तो वे आंखें तरेरती हैं. भला, आप ही बताइए युवकों का इस में क्या कुसूर है, वे तो अपने ही नशे में चूर होते हैं.’’
अब सभी पंचों के मुंह पर ताला लग गया था. थोड़ी देर वातावरण में सन्नाटा रहा. सभी पंच और बुजुर्ग आपस में विचारविमर्श करने लगे. उन के भी मन के किसी कोने में विवाह जैसे अवसर पर ठुमकने की चाह थी. फिर सन्नाटा तोड़ते हुए सरपंच बोले, ‘‘भई, हम ने आप की सब दलीलें सुन लीं. हमें आप लोगों से हमदर्दी है और हम भी चाहते हैं कि आप नाचोगाओ, जश्न मनाओ, इसलिए कुछ शर्तों पर यह पाबंदी हटाते हैं.
‘‘युवकों को ध्यान रखना होगा कि शादीविवाह वाले घर के आसपास के घरों से सहमति ले कर ही डीजे लगवाएं. देर रात तक डीजे न बजे और कोई फूहड़ता या छेड़छाड़ की घटना न हो.’’
सरपंच की बात खत्म भी नहीं हुई थी कि युवक एकसाथ बोल पड़े, ‘‘हुर्रे… हमें आप की शर्तें मंजूर हैं पर डीजे तो बजेगा ही…’’
‘‘चलो, ताऊजी अपने घर और जातेजाते डीजे वाले को भी और्डर दे दो डीजे लगाने का,’’ कपिल ने कहा तो सभी युवक ताऊजी को साथ ले वापस चल दिए. पार्श्व में उन की ‘‘हुर्रे… पार्टी यों ही चालेगी… डीजे यों ही बाजेगा…’’ की आवाजें गूंज रही थीं और पंच भी खुश थे कि उन्होंने बीच का रास्ता निकाल कर युवकों के साथसाथ अपने मनबहलाव का रास्ता भी खोज लिया था.
गोंडू लुटेरा उस कसबे के लोगों के लिए खौफ का दूसरा नाम बना हुआ था. भद्दे चेहरे, भारी डीलडौल वाला गोंडू बहुत ही बेरहम था. वह लोफरों के एक दल का सरदार था. अपने दल के साथ वह कालोनियों पर धावा बोलता था. कहीं चोरी करता, कहीं मारपीट करता और जोकुछ लूटते बनता लूट कर चला जाता.
कसबे के सभी लोग गोंडू का नाम सुन कर कांप उठते थे. उसे तरस और दया नाम की चीज का पता नहीं था. वह और उस का दल सारे इलाके पर राज करता था.
पुलिस वाले भी गोंडू लुटेरा से मिले हुए थे. पार्टी का गमछा डाले वह कहीं भी घुस जाता और अपनी मनमानी कर के ही लौटता.
गोंडू का मुकाबला करने की ताकत कसबे वालों में नहीं थी. जैसे ही उन्हें पता चलता कि गोंडू आ रहा है, वे अपनी दुकान व बाजार छोड़ कर अपनी जान बचाने के लिए इधरउधर छिप जाते.
यह इतने लंबे अरसे से हो रहा था कि गोंडू और उस के दल को सूनी गलियां देखने की आदत पड़ गई थी.
बहुत दिनों से उन्होंने कोई दुकान नहीं देखी थी जिस में लाइट जल रही हो. उन्हें सूनी और मातम मनाती गलियों और दुकानों के अलावा और कुछ भी देखने को नहीं मिलता था.
एक अंधेरी रात में गोंडू और उस के साथी लुटेरे जब एक के बाद एक दुकानों को लूटे जा रहे थे तो उन्हें बाजार खाली ही मिला था.
‘‘तुम सब रुको…’’ अचानक गोंडू ने अपने साथियों से कहा, ‘‘क्या तुम्हें वह रोशनी दिखाई दे रही है जो वहां एक दुकान में जल रही है
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‘‘जब गोंडू लूटपाट पर निकला हो तो यह रोशनी कैसी? जब मैं किसी महल्ले में घुसता हूं तो हमेशा अंधेरा ही मिलता है.
‘‘उस रोशनी से पता चलता है कि कोई ऐसा भी है जो मुझ से जरा भी नहीं डरता. बहुत दिनों के बाद मैं ने ऐसा देखा है कि मेरे आने पर कोई आदमी न भागा हो.’’
‘‘हम सब जा कर उस आदमी को पकड़ लाएं?’’ लुटेरों के दल में से एक ने कहा.
‘‘नहीं…’’ गोंडू ने मजबूती से कहा, ‘‘तुम सब यहीं ठहरो. मैं अकेला ही उस हिम्मती और पागल आदमी से अपनी ताकत आजमाने जाऊंगा. ‘‘उस ने अपनी दुकान में लाइट जला कर मेरी बेइज्जती की है. वह आदमी जरूर कोई जांबाज सैनिक होगा. आज बहुत लंबे समय बाद मुझे किसी से लड़ने का मौका मिला है.’’
जब गोंडू दुकान के पास पहुंचा तो यह देख कर हैरान रह गया कि एक बूढ़ी औरत के पास दुकान पर केवल 12 साल का एक लड़का बैठा था.
औरत लड़के से कह रही थी, ‘‘सभी लोग बाजार छोड़ कर चले गए हैं. गोंडू के यहां आने से पहले तुम भी भाग जाओ.’’
लड़के ने कहा, ‘‘मां, तुम ने मुझे जन्म दिया, पालापोसा, मेरी देखभाल की और मेरे लिए इतनी तकलीफें उठाईं. मैं तुम्हें इस हाल में छोड़ कर कैसे जा सकता हूं? तुम्हें यहां छोड़ कर जाना बहुत गलत होगा.
‘‘देखो मां, मैं लड़ाकू तो नहीं??? हूं, एक कमजोर लड़का हूं, पर तुम्हारी हिफाजत के लिए मैं उन से लड़ कर मरमिटूंगा.’’
एक मामूली से लड़के की हिम्मत को देख कर गोंडू हैरान हो उठा. उस समय उसे बहुत खुशी होती थी जब लोग उस से जान की भीख मांगते थे, लेकिन इस लड़के को उस का जरा भी डर नहीं.
‘इस में इतनी हिम्मत और ताकत कहां से आई? जरूर यह मां के प्रति प्यार होगा,’ गोंडू को अपनी मां का खयाल आया जो उसे जन्म देने के बाद मर गई थी. अपनी मां के चेहरे की हलकी सी याद उस के मन में थी.
उसे अभी तक याद है कि वह किस तरह खुद भूखी रह कर उसे खिलाती थी. एक बार जब वह बीमार था तब वह कई रात उसे अपनी बांहों में लिए खड़ी रही थी. वह मर गई और गोंडू को अकेला छोड़ गई. वह लुटेरा बन गया और अंधेरे में भटकने लगा.
गोंडू को ऐसा महसूस हुआ कि मां की याद ने उस के दिल में एक रोशनी जला दी है. उस की जालिम आंखों में आंसू भर आए. उसे लगा कि वह फिर बच्चा बन गया है. उस का दिल पुकार उठा, ‘मां… मां…’
उस औरत ने लड़के से फिर कहा, ‘‘भाग जाओ मेरे बच्चे… किसी भी पल गोंडू इस जलती लाइट को देख कर दुकान लूटने आ सकता है.’’
तभी गोंडू दुकान में घुसा. मां और बेटा दोनों डर गए.
गोंडू ने कहा, ‘‘डरो नहीं, किसी में इस लाइट को बुझाने की ताकत नहीं है. मां के प्यार ने इसे रोशनी दी है और यह सूरज की तरह चमकेगा. दुकान छोड़ कर मत जाओ.
‘‘बदमाश गोंडू मर गया है. तुम लोग यहां शांति से रहो. लुटेरों का कोई दल कभी इस जगह पर हमला नहीं करेगा.’’
‘‘लेकिन… लेकिन, आप कौन हैं?’’ लड़के ने पूछा.
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वहां अब खामोशी थी. गोंडू बाहर निकल चुका था.
उस रात के बाद किसी ने गोंडू और उस के लुटेरे साथियों के बारे में कुछ नहीं सुना.
कहीं से उड़ती सी खबर आई कि गोंडू ने कोलकाता जा कर एक फैक्टरी में काम ले लिया था. उस के साथी भी अब उसी के साथ मेहनत का काम करने लगे थे.
Writer- Er. Asha Sharma
अवनि ने अपनी अलग ही दुनिया बसा रखी थी. उसे अपनी मौडल सी कदकाठी पर बहुत घमंड था. उसी के अनुरूप वह कपड़े भी पहना करती थी, जो उस पर बहुत फबते भी थे और अधिक आधुनिक बनने के चक्कर में उस ने सिगरेट भी पीना सीख लिया था. कभीकभी दोस्तों के साथ एकाध पैग भी लगाने लगी थी. जहां पूरा कालेज अवनि का दीवाना था वहीं अवनि का दिल विकास में आ कर अटक गया.
इन दिनों सरला निम्मो में अलग तरह का चुलबुलापन देख रही थी. हर समय बिना मेकअप के रहने वाली निम्मो आजकल न्यूड मेकअप करने लगी थी. सुबह जल्दी उठ कर कुछ देर योग व्यायाम भी करने लगी थी जिस का असर उस के चेहरे की बढ़ती चमक पर साफसाफ दिखाई देने लगा था. सरला बेटी में आए इस सकारात्मक परिवर्तन को देख कर खुश थी.
‘‘इस बहाने फालतू की बातों से दूर रहेगी,’’ सोच कर सरला मुसकरा देती.
उधव अवनि का विकास के प्रति झुकाव बढ़ने लगा था. पूरा कालेज उन दोनों के बीच होने वाली नोक झोंक के प्यार में बदलने की प्रतीक्षा कर रहा था. शीघ्र ही उन का यह इंतजार खत्म हुआ. इन दिनों अवनि और विकास साथसाथ देखे जाने लगे थे.
साल बीतने को आया. एक बार फिर से ऐजुअल फंक्शन की तैयारियां जोर
पकड़ने लगीं. यह वर्ष कालेज की स्थापना का स्वर्ण जयंती वर्ष था इसलिए नवाचार के तहत कालेज प्रशासन ने कालेज में 50 साल पहले मंचित नाटक ‘शकुंतलादुष्यंत’ के पुनर्मंचन का निर्णय लिया.
औडिशन के बाद विकास को जब दुष्यंत का पात्र अभिनीत करने का प्रस्ताव मिला तो सब ने स्वाभाविक रूप से अवनि के शकुंतला बनने का कयास लगाया, लेकिन तब सब को आश्चर्य हुआ जब कमेटी द्वारा अवनि को दरकिनार कर इस रोल के लिए निम्मो का चयन किया.
कमर तक लंबे घने बाल, बड़ीबड़ी बोलती आंखें और मासूम सौंदर्य, शायद यही पैमाना रहा होगा इस रोल के लिए निम्मो के चयन का.
कालेज के बाद देर तक नाटक का रिहर्सल करना और उस के बाद देर होने पर विकास का निम्मो को घर तक छोड़ना… रोज का नियम था. वैसे भी अवनि इस सदियों पुराने नाटक में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए कालेज में रुक कर विकास का इंतजार करना उसे बोरियत भरा महसूस होता था. हवा का झोंका भी कभी एक जगह ठहरा है भला जो अवनि ठहरती.
कई साथियों ने निम्मो और विकास को ले कर उसे छेड़ा भी, मगर आत्मविश्वास से भरी अवनि को अपने रूपसौंदर्य पर पूरा भरोसा था. क्या मजाल जो एक बार इस भूलभुलैया में भटका मुसाफिर बिना उस की इजाजत बाहर निकल सके.
रिहर्सल लगभग फाइनल हो चुका था. विकास की अगुआई में कालेज कैंटीन में बैठा छात्रों का दल चाय की चुसकियों के साथ गरमगरम समोसों का आनंद ले रहा था. निम्मो और अवनि भी अन्य लड़कियों के साथ इस गैंग में शामिल थीं.
‘‘यार विकास, इतने दिनों से तू दुष्यंत बना घूम रहा है, अब तो शकुंतला को अंगूठी पहना ही दे,’’ एक दोस्त ने उसे कुहनी मारी.
विकास की नजर लड़कियों के दल की तरफ घूम गई. सब ने अवनि की इतराहट देखी. निम्मो बड़े आराम से समोसा खा रही थी.
‘‘हांहां, यह तो होना ही चाहिए. कैसा रहेगा यदि फंक्शन वाले दिन नाटक मंचन के बाद वही अंगूठी असल वाली शकुंतला की उंगली में भी पहनाई जाए?’’ दूसरे दोस्त ने प्रस्ताव रखा तो शेष गैंग ने भेजें थपथपा कर उस का अनुमोदन किया. शरमाई अवनि अपनी उंगली सहलाने लगी. बेशक वह एक बोल्ड लड़की थी, लेकिन इस तरह के प्रकरण आने पर लड़कियों का संकुचित होना स्वाभाविक सी बात है.
‘‘तुम सब कहते हो तो चलो? मु झे भी यह चुनौती मंजूर है. तो तय रहा. फंक्शन वाले दिन… नाटक के बाद… डन,’’ विकास ने दोस्तों की चुनौती पर अपनी सहमति की मुहर लगाई और इस के साथ ही मीटिंग खत्म हो गई.
ऐनुअल फंक्शन की शाम… निम्मो का निर्दोष सौंदर्य देखते ही बनता था. श्वेत परिधान संग धवल पुष्पराशि के शृंगार में निम्मो असल शकुंतला का पर्याय लग रही थी. विकास और निम्मो के प्रणयदृश्य तो इतने स्वाभाविक लग रहे थे मानो स्वयं दुष्यंतशकुंतला इन अंतरंग पलों को साक्षात भोग रहे हों. औडिटोरियम में बारबार बजती सीटियां और मंचन के समापन पर देर तक गूंजता तालियों का शोर नाटक की सफलता का उद्घोष कर रहा था. परदा गिरने के बाद विकास जब निम्मो का हाथ थामे मंच पर सब का अभिवादन करने आया तो बहुत से उत्साही मित्र उत्साह के अतिरेक में नाचने लगे.
देर रात फंक्शन के बाद मित्रमंडली एक बार फिर से जुटी थी. सब लोग विकास और निम्मो को घेरे खड़े थे. दोनों विनीत भाव से सब की बधाइयां बटोर रहे थे.
‘‘अरे शकुंतला, वह अंगूठी कहां है जो दुष्यंत ने तुम्हें निशानी के रूप में दी थी,’’ अवनि के कहते ही मित्रों को विकास को दी गई चुनौती याद आई.
‘‘अरे हां, वह अंगूठी तो तुम आज अपनी असली शकुंतला को पहनाने वाले थे न. चलो भाई, जल्दी करो. देर हो रही है,’’ मित्र ने कहा.
अवनि अपनी योजना की सफलता पर मुसकराई. इसी प्रसंग को जीवित करने के लिए तो उस ने अंगूठी प्रकरण छेड़ा था. विकास भी मुसकराने लगा. उस ने अपनी जेब की तरफ हाथ बढ़ाया. जेब से हाथ बाहर निकला तो उस में एक सोने की अंगूठी चमचमा रही थी.
‘‘तुम ने उंगली की नाप तो ले ली थी न? कहीं छोटीबड़ी हुई तो?’’ मित्र ने चुहल की.
अवनि की निगाहें अंगूठी पर ठिठक गईं. विकास अंगूठी ले कर लड़कियों
की तरफ बढ़ा. सब की निगाहें विकास के चेहरे पर जमी थीं. अवनि शर्म के मारे जमीन में गढ़ी जा रही थी.
विकास ने निम्मो का बांयां हाथ पकड़ा और उस की अनामिका में सोने की अंगूठी पहना दी. यह दृश्य देख कर वहां मौजूद हर व्यक्ति हैरान खड़ा रह गया, क्योंकि किसी ने इस की कल्पना तक नहीं की थी. अपमान से अवनि की आंखें छलक आईं. निम्मो कभी अपनी उंगली तो कभी विकास के चेहरे की तरफ देख रही थी. पूरे माहौल को सांप सूंघ गया था.
निम्मो धीरेधीरे चलती हुई आई और अवनि के सामने खड़ी हो गई. अवनि निरंतर जमीन को देख रही थी. सब ने देखा कि अपमान की कुछ बूंदें उस की आंखों से गिर कर घास पर जमी ओस का हिस्सा बन गई थीं.
निम्मो ने अपनी उंगली से अंगूठी उतारी और अवनि की हथेली पर रख दी. बोली, ‘‘तुम चाहो तो यह अंगूठी रख सकती हो. यू नो, निम्मो को भी किसी की इस्तेमाल की हुई चीजें पसंद नहीं,’’ कहती हुई आत्मविश्वास से भरी निम्मो सब को हैरानपरेशान छोड़ कर कालेज के मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ गई.
Writer- Er. Asha Sharma
सरला के लिए यह बड़ी मुश्किल घड़ी थी. एक तरफ बेटी थी और दूसरी तरफ भतीजी. धर्मसंकट में फंसी सरला को कोई उपाय नहीं सू झ रहा था. रोती हुई निम्मो को सीने से लगाने के अलावा उस के पास कोई और उपाय था भी नहीं.
अवनि जहां स्वभाव में तेजतर्रार और स्मार्ट थी वहीं निम्मो शांत और सहनशील. अवनि उस की सहनशीलता का पूरा फायदा उठाती थी. वह अकसर निम्मो पर हावी हो जाती. कई बार तो अपना होमवर्क भी निम्मो से करवा लेती थी. धीरेधीरे अवनि के खुद से बेहतर होने का भाव निम्मो के भीतर जड़ें जमाने लगा. वह स्कूल में तो अवनि का विरोध नहीं कर पाती थी, मगर घर आ कर रोने लगती थी. अवनि के सामने निम्मो का व्यक्तित्व दबने लगा. अवनि निम्मो के लिए उस बरगद के पेड़ जैसी हो गई थी जिस के नीचे निम्मो पनप नहीं पा रही थी.
सरला उसे बहुत सम झाया करती थी कि इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति परफैक्ट नहीं होता. हर किसी में कोई न कोई कमी होती ही है. लेकिन वे लोग बहुत बहादुर होते हैं जो उसे स्वीकार कर लेते हैं और वे तो विरले ही होते हैं, जो उस पर विजय पा लेते हैं. वे भी कुछ कम नहीं होते जो अपनी कमियों के साथ जीना सीख लेते हैं. मगर निम्मो का बालमन शायद अभी इन बातों को सम झने के लिए परिपक्व नहीं था.
एक दिन निम्मो स्कूल से आई और आते ही घर में बने मंदिर में हाथ जोड़ने लगी.
सरला को बड़ा आश्चर्य हुआ, उस ने पूछा, ‘‘आज हमारी निम्मो क्या मांग रही है कुदरत से?’’
निम्मो ने मासूमियत से कहा, ‘‘मां, मैं कुदरत से प्रे कर रही हूं कि वह अगले जन्म में मु झे अवनि जैसी सुंदर और स्मार्ट बना दे.’’
उस के मुंह से ऐसी बात सुन कर सरला हैरान रह गई. उस ने निम्मो से कहा, ‘‘बिट्टो, अगलापिछला कोई जन्म नहीं होता. जो कुछ है सब यही है. कुदरत ने हर इंसान को अपनेआप में बहुत ही खास बनाया है और एकदूसरे से अलग भी. इसीलिए तुम दोनों बहनें भी एकदूसरे से अलग हैं. तुम दोनों की अपनीअपनी खासीयत है. हां, इस जन्म में अगर तुम अच्छे काम करोगी तो बहुत अच्छी इंसान जरूर बन जाओगी.’’
मगर निम्मो को मां की बातें ज्यादा सम झ में नहीं आईं उस के दिमाग में तो हर वक्त अपने आप को अवनि से बेहतर साबित करने की तरकीबें ही चलती रहतीं.
सैकंडरी स्कूल के रिजल्ट वाले दिन प्रिंसिपल मैम ने असैंबली में उन सब बच्चों के लिए तालियां बजवाई, जिन्हें 80% से ज्यादा नंबर मिले थे. निम्मो और अवनि को भी स्टेज पर बुलाया गया.
मार्क शीट देख कर टीचर ने कहा, ‘‘यहां भी हमेशा की तरह अवनि ने ही बाजी मारी. उसे निम्मो से 4 नंबर अधिक मिले हैं.’’
बस फिर क्या था, निम्मो ने घर आ कर रोरो कर बुरा हाल कर लिया. खुद को कमरे में बंद कर लिया और स्कूल छोड़ने की जिद पर अड़ गई. यह देख कर सरला ने सैकंडरी स्कूल के बाद निम्मो का स्कूल चेंज करवा दिया.
भाई ने कारण पूछा तो सरला ने सब्जैक्ट चेंज करने का बहाना बना कर उसे टाल दिया. चूंकि अवनि पहले ही आर्ट्स सब्जैक्ट चुन चुकी थी, इसलिए निम्मो ने इंटरैस्ट न होते हुए भी कौमर्स सब्जैक्ट चुना और इस बहाने से अपना स्कूल बदल लिया.
अवनि से दूर होते ही निम्मो का मानसिक तनाव छूमंतर हो गया और सालभर में ही उस का व्यक्तित्व निखर आया. बेटी का बढ़ता हुआ आत्मविश्वास देख कर सरला उस के स्कूल बदलने के अपने निर्णय पर खुश थी.
2 साल में ही निम्मो ने अपना कद निकाल लिया. हालांकि निम्मो की शारीरिक बनावट अवनि जैसी सांचे में ढली हुई नहीं थी, मगर उस की सादगी में भी एक कशिश थी. जहां अवनि को देख कर कामुकता का एहसास होता था वहीं निम्मो की सुंदरता में शालीनता और गरिमा थी.
मेरी आंखों के कोर भीग गए थे. ऐसा लगा मेरा अहं किसी कोने से जरा सा संतुष्ट
हो गया है. सोचती थी, पति की जिंदगी में मेरी जरूरत ही नहीं रही.मगर मांबेटी का यह सुख सिर्फ 2 साल से ज्यादा कायम नहीं रह सका. स्कूल खत्म होते ही अवनि ने भी निम्मो के ही कालेज में एडमिशन ले लिया. फिर से वही पुरानी कहानी दोहराई जाने लगी. फिर से वही दोनों बहनों में तुलना. मगर अब सरला के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था, क्योंकि कसबे में एक ही कालेज था और इसी कालेज में पढ़ना दोनों की मजबूरी थी.
‘‘अब तुम बच्ची नहीं हो निम्मो. अपनी लड़ाई अपने हथियारों से लड़ना सीखो. तुम्हारा आत्मविश्वास ही तुम्हारा सब से पैना हथियार है.’’ सरला बेटी को आने वाले कल के लिए तैयार करने में जुटी थी.
यह उन के कालेज का पहला ही साल था यानी दोनों में ही अभी स्कूल का लड़कपन बाकी था. जब ऐनुअल फंक्शन के रैंप शो में निम्मो की जगह अवनि को शो स्टौपर बना दिया गया तो निम्मो का स्वाभिमानी मन बहुत आहत हुआ और उस ने शो में मौडलिंग करने से ही मना कर दिया.
‘‘तुम चाहो तो अपना यह आउटफिट ले कर जा सकती हो. यू नौ अवनि किसी की इस्तेमाल की हुई चीजें नहीं लेती. मैं ने अपने लिए दूसरा आउटफिट मंगवा लिया है,’’ प्रैक्टिस रूम छोड़ कर बाहर आती निम्मो ने अवनि का ताना सुना, लेकिन कुछ बोली नहीं. चुपचाप रूम से बाहर निकल आई.
अवनि जब अदा से अपने जलवे बिखेरती रैंप पर आई तो औडिटोरियम में बैठी सभी लड़कियां तालियां बजाने लगीं और लड़के सीटियां. निम्मो फंक्शन बीच में ही छोड़ कर औडिटोरियम से बाहर आ गई.
औडिटोरियम से बाहर निकलती निम्मो के कदमों की दृढ़ता और चाल का आत्मविश्वास बता रहा था कि उस के मन के भीतर चल रहे संघर्ष को विराम लग गया है. विचारों की उफनती नदी में डगमगाती नाव निर्णय के तट पर आ लगी है.
या तो निम्मो ने इस बात को स्वीकार कर लिया था कि तुलना करना मानव स्वभाव मात्र है, इसे दिल पर लेना सम झदारी नहीं है या फिर यह हवाओं में तेज बरसात से पहले वाली चुप्पी है.
सुबह 9 बजे नंदिनी ने खाने की मेज पर अपने पति विपिन और युवा बच्चों सोनी और राहुल को आवाज दी, ‘‘जल्दी आ जाओ सब, नाश्ता लग गया है.’’
नंदिनी तीनों के टिफिन भी पैक करती जा रही थी. तीनों लंच ले जाते थे. सुबह निकल कर शाम को ही लौटते थे. विपिन ने नाश्ता शुरू किया. साथ ही न्यूजपेपर पर भी नजर डालते जा रहे थे. सोनी और राहुल अपनेअपने मोबाइल पर नजरें गड़ाए नाश्ता करने लगे. नंदिनी तीनों के जाने के बाद ही आराम से बैठ कर नाश्ता करना पसंद करती थी.
सोनी और राहुल को फोन में व्यस्त देख कर नंदिनी झुंझला गई, ‘‘क्या आराम से नाश्ता नहीं कर सकते? पूरा दिन बाहर ही रहना है न, आराम से फोन का शौक पूरा करते रहना.’’
विपिन शायद डिस्टर्ब हुए. माथे पर त्योरियां डाल कर बोले, ‘‘क्यों सुबहसुबह गुस्सा करने लगती हो? कर रहे होंगे फोन पर कुछ.’’
नंदिनी चिढ़ गई, ‘‘तीनों अब शाम को ही आएंगे… क्या शांति से नाश्ता नहीं कर सकते?’’
विपिन ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हम तो शांति से ही नाश्ता कर रहे हें. शोर तो तुम मचा रही हो.’’
बच्चों को पिता की यह बात बहुत पसंद आई. दोनों एकसाथ बोले, ‘‘वाह पापा, क्या बात कही है.’’
नंदिनी ने तीनों के टिफिन टेबल पर रखे और चुपचाप उदास मन से वहां से हट गई. सोचने लगी कि पूरा दिन अब अकेले ही रहना है… इन तीनों को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि कुछ देर हंसबोल लें. शाम को सब थके आएंगे और फिर बस टीवी और फोन. किसी के पास क्यों आजकल कोई बात नहीं रहती करने के लिए?
बच्चों के हर समय फोन पर रहने ने तो घर में ऐसी नीरसता भर दी है कि खत्म होने को नाम ही नहीं लेती है. अगर मैं तीनों से अपना मोबाइल, टीवी, लैपटौप बंद कर के थोड़ा सा समय अपने लिए चाहती हूं, तो तीनों को लगता है पता नहीं मुझे क्या हो गया है.
जबरदस्ती दोस्त बनाने में, सोशल नैटवर्किंग के पागलपन में समय बिताने में, पड़ोसिनों से निरर्थक गप्पें मारने में अगर मेरा मन नहीं लगता तो क्या यह मेरी गलती है? ये तीनों अपने फेसबुक मित्रों की तो छोटी से छोटी जानकारी भी रखते हैं पर इन के पास मेरे लिए कोई समय नहीं.
तीनों चले गए. घर में फिर अजीब सी खामोशी फैल गई, मन फिर उदास सा था. नाश्ता करते हुए नंदिनी को जीवन बहुत नीरस और बोझिल सा लगा. थोड़ी देर में काम करने वाली मेड श्यामा आ गई. नंदिनी फिर रूटीन में व्यस्त हो गई.
उस के जाने के बाद नंदिनी इधरउधर घूमती हुई घर ठीक करती रही. सोचती रही कि वह कितनी खुशमिजाज हुआ करती थी, कहेकहे लगाती रोमानी सपनों में रहती थी और अब रोज शाम को टीवी, फोन और लैपटौप के बीच घुटघुट कर जीने की कोशिश करती रह जाती है.
पता नहीं क्याक्या सोचती वह अपने फ्लैट की अपनी प्रिय जगह बालकनी में आ खड़ी हुई. उसे लखनऊ से यहां मुंबई आए 1 ही साल हुआ था. यहां दादर में ही विपिन का औफिस और बच्चों का कालेज है, इसलिए यह फ्लैट उन्होंने दादर में ही लिया था.
रजनीगंधा की बेलों से ढकी हुई बालकनी में वह कल्पनाओं में विचरती रहती. यहां इन तीनों में से कोई नहीं आता. यह उस का अपना कोना था. फिर वह यों ही अपने छोटे से स्टोररूम में जा कर सामान ठीक करने लगी. काफी दिन हो गए थे यहां का सामान संभाले. वह सब कुछ ठीक से रखने लगी. अचानक उस ने बच्चों के खिलौनों का एक बड़ा डब्बा यों ही खोल लिया. ऐसे ही हाथ डाल कर खिलौने इधरउधर कर देखने लगी. 3 साल पहले चारों नैनीताल घूमने गए थे, वहीं बच्चों ने यह दूरबीन खरीदी थी.
वह दूरबीन ले कर डब्बा वापस रख कर अपनी बालकनी में आ कर खड़ी हो गई. सोचा ऐसे खड़े हो कर देखना अच्छा नहीं लगेगा. कोई देखेगा तो गड़बड़ हो जाएगी. अत: फूलों की बेलों के पीछे स्टूल रख कर अपनी दूरबीन संभाले आराम से बैठ गई.
आंखों पर दूरबीन रख कर देखा. थोड़ी दूर स्थित बिल्डिंग बने ज्यादा समय नहीं हुआ था, यह वह जानती ही थी. अभी काफी फ्लैट्स में काम हो रहा था. एक फ्लैट की बालकनी और ड्राइंगरूम उसे साफ दिखाई दे रहा था. उस की उम्र की एक महिला ड्राइंगरूम में दिखाई दी.
उस घर में शायद म्यूजिक चल रहा था. वह महिला काम करतेकरते सिर को जोरजोर से हिला रही थी. अचानक उस की बेटी भी आ गई. दोनों मिल कर किसी गाने पर थिरकीं और फिर खिलखिलाईं. नंदिनी भी मुसकरा उठी. मांबेटी के स्टैप से नंदिनी को लगा शायद ‘बेबी डौल’ गाना चल रहा है. नंदिनी अकेली ही खिलखिला दी. अचानक उस ने मन में ताजगी सी महसूस हुई. आसपास फूलों की खुशबू और सामने मांबेटी के क्रियाकलाप देख कर नंदिनी बिलकुल मस्ती के मूड में आ गई और गुनगुनाने लगी. फिर मांबेटी शायद घर के दूसरे हिस्से में चली गईं.
नंदिनी ने अंदर जा कर घड़ी देखी. 12 बज रहे थे. आज टाइम का पता ही नहीं चला. वह वापस स्टूल पर आ बैठी. दूरबीन से इधरउधर देखती रही. कहीं कुछ खास नहीं दिखा. ज्यादातर फ्लैट्स बंद थे या फिर परदे खिंचे थे.
फिर अचानक उस की नजर एक फ्लैट की बालकनी पर अटक गई. झटका सा लगा. दूरबीन उस के हाथों से गिरतेगिरते बची.
एक लंबाचौड़ा, जिम में तराशी सुगठित देह वाला हैंडसम लड़का तौलिए से अपने बाल पोंछ रहा था. शायद नहा कर निकला था. बस शौर्ट्स पहले तौलिया तार पर टांग ही रहा था कि उस की खूबसूरत नवविवाहिता पत्नी उस लड़के की कमर में पीछे से हाथ डाल दिया. लड़के ने पलट कर उसे वहीं किस कर लिया और फिर उस की कमर में हाथ डाल कर अंदर जा कर ड्राइंगरूम में सोफे पर लेट सा गया.
एकदूसरे का भरपूर चुंबन लेते दोनों साफ दिख रहे थे. नंदिनी की कनपटियां तक लाल हो गईं. उस का दिल तेज धड़कने लगा. ठंडे पसीने से पूरा शरीर भीग गया. बहुत दिनों बाद तनमन की यह हालत हुई थी. नंदिनी ने देखा फिर वह जोड़ा सोफे से उठ कर घर के किसी और हिस्से में चला गया. शायद बैडरूम में. नंदिनी यह सोच कर हंस पड़ी.
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