Story in Hindi

Story in Hindi
‘‘मैं शादी नहीं करना चाहती हूं,’’ अंजलि रुंधी आवाज में बोली.
‘‘तो मत करना, पर घर आए मेहमान का स्वागत करने तो चलो,’’ और अरुण उस का हाथ पकड़ कर ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ा. अंजलि की आंखों में चिंता और बेचैनी के भाव और बढ़ गए थे.
ड्राइंगरूम में नीरज को तीनों छोटे बच्चों ने घेर रखा था. उस के सामने उन्होंने कई पैंसिलें और ड्राइंगपेपर रखे हुए थे. नीरज चित्रकार था. वे सब अपनाअपना चित्र पहले बनवाने के लिए शोर मचा रहे थे. उन के खुले व्यवहार से यह साफ जाहिर हो रहा था कि नीरज ने उन तीनों के दिल चंद मिनटों की मुलाकात में ही जीत लिए थे.
अरुण की 6 वर्षीय बेटी महक ने चित्र बनवाने के लिए गाल पर उंगली रख कर इस अदा से पोज बनाया कि कोई भी बड़ा व्यक्ति खुद को हंसने से नहीं रोक पाया.
अंजलि ने हंसतेहंसते महक का माथा चूमा और फिर हाथ जोड़ कर नीरज का अभिवादन किया.
‘‘यह तुम्हारे लिए है,’’ नीरज ने खड़े हो कर एक चौड़े कागज का रोल अंजलि के हाथ
में पकड़ाया.
‘‘आप की बनाई कोई पेंटिंग है इस में?’’ अरुण की पत्नी मंजु ने उत्सुकता से पूछा.
‘‘जी, हां,’’ नीरज ने शरमाते हुए जवाब दिया.
‘‘हम सब इसे देख लें, दीदी?’’ अंजलि के छोटे भाई अजय की पत्नी शिखा ने प्रसन्न लहजे में पूछा.
अंजलि ने रोल शिखा को पकड़ा दिया.
वह अपनी जेठानी की सहायता से गिफ्ट पेपर खोलने लगी.
नीरज ने अंजलि को उसी का रंगीन पोर्ट्रेट बना कर भेंट किया था. तसवीर बड़ी सुंदर बनी थी. सब मिल कर तसवीर की प्रशंसा करने लगे.
अंजलि ने धीमी आवाज में नीरज से प्रश्न किया, ‘‘यह कब बनाई आप ने?’’
‘‘क्या तुम्हें अपनी तसवीर पसंद नहीं आई?’’ नीरज ने मुसकराते हुए पूछा.
‘‘तसवीर तो बहुत अच्छी है… पर आप ने बनाई कैसे?’’
‘‘शिखा ने तुम्हारा 1 पासपोर्ट साइज फोटो दिया था. कुछ उस की सहायता ली और बाकी काम मेरी कल्पनाशक्ति ने किया.’’
‘‘कलाकार को सत्य दर्शाना चाहिए, नीरजजी. मैं तो बिलकुल भी सुंदर नहीं हूं.’’
‘‘मैं ने इस कागज पर सत्य ही उतारा है… मु झे तुम इतनी ही सुंदर नजर आती हो.’’
नीरज की इस बात को सुन कर अंजलि ने कुछ घबरा और कुछ शरमा कर नजरें झुका लीं.
सब लोग नीरज के पास आ कर अंजलि की तसवीर की प्रशंसा करने लगे. अंजलि ने कभी अपने रंगरूप की वैसी तारीफ नहीं सुनी थी, इसलिए असहज सी हो कर नीरज के लिए चाय बनाने रसोई में चली गई.
नीरज से उस की पहली मुलाकात शिखा ने अपनी सहेली कविता के घर पर करीब
2 महीने पहले करवाई थी.
42 वर्षीय चित्रकार नीरज कविता के जेठ थे. उन्होंने शादी नहीं की थी. घर की तीसरी मंजिल पर 1 कमरे के सैट में रहते थे और वहीं उन का स्टूडियो भी था.
उस दिन नीरज के स्टूडियो में अपना पैंसिल से बनाया एक चित्र देख कर वह चौंकी थी. नीरज ने खुलासा करते हुए उन सब को जानकारी दी थी, ‘‘अंजलि पार्क में 3 छोटे बच्चों के साथ घूमने आई थीं. बच्चे खेलने में व्यस्त हो गए और ये बैंच पर बैठीबैठी गहरे सोचविचार में खो गईं. मैं ने इन की जानकारी में आए बिना इस चित्र में इन के चेहरे के विशेष भावों को पकड़ने की कोशिश की थी.’’
‘‘2 दिन पहले अंजलि दीदी का यह चित्र यहां देख कर मैं चौंकी थी. मैं ने भाई साहब को दीदी के बारे में बताया, तो इन्होंने दीदी से मिलने की इच्छा जाहिर की. तभी मैं ने 2 दिन पहले तुम्हें फोन किया था, शिखा,’’ कविता के इस स्पष्टीकरण को सुन कर अंजलि को पूरी बात सम झ में आ गई थी.
कुछ दिनों बाद कविता उसे बाजार में मिली और अपने घर चाय पिलाने ले गई. अपने बेटे की चौथी सालगिरह की पार्टी में भी उस ने अंजलि को बुलाया. इन दोनों अवसरों पर उस की नीरज से खूब बातें हुईं.
इन 2 मुलाकातों के बाद नीरज उसे पार्क में कई बार मिला था. अंजलि वहां अपने भतीजों व भतीजी के साथ शाम को औफिस से आने के बाद अकसर जाती थी. वहीं नीरज ने उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया था. अब वे फोन पर भी बातें कर लेते थे.
फिर कविता और शिखा ने एक दिन उस के सामने नीरज के साथ शादी करने की
चर्चा छेड़ी, तो उस ने उन दोनों को डांट दिया, ‘‘मु झे शादी करनी होती तो 10 साल पहले कर लेती. इस झं झट में अब फंसने का मेरा रत्ती भर इरादा नहीं है. मेरे सामने ऐसी चर्चा फिर कभी मत करना,’’ उन्हें यों डपटने के बाद वह अपने कमरे में चली आई थी.
उस दिन के बाद अंजलि ने नीरज के साथ मिलना और बातें करना बिलकुल कम कर दिया. उस ने पार्क में जाना भी छोड़ दिया. फोन पर भी व्यस्तता का झूठा बहाना बना कर जल्दी फोन काट देती.
उस की अनिच्छा को नजरअंदाज करते हुए उस के दोनों छोटे भाई और भाभियां अकसर नीरज की चर्चा छेड़ देते. उस से हर कोई कविता के घर या पार्क में मिल चुका था. सभी उसे हंसमुख और सीधासादा इंसान मानते थे. उन के मुंह से निकले प्रशंसा के शब्द यह साफ दर्शाते कि उन सब को नीरज पसंद है.
अंजलि की कई बार की नाराजगी उन की इस इच्छा को जड़ से समाप्त करने में असफल रही थी. किसी को यह बात नहीं जंची थी कि अंजलि ने नीरज से बातें करना कम कर दिया है.
उन के द्वारा रविवार को नीरज को लंच पर आमंत्रित करने के बाद ही इस बात की सूचना अंजलि को पिछली रात को मिली थी.
कुछ देर बाद जब अंजलि चाय की ट्रे ले कर ड्राइंगरूम में दाखिल हुई, तो वहां बहुत शोर मचा था. नीरज ने तीनों बच्चों के पैंसिल स्कैच बड़े मनोरंजक ढंग से बनाए थे. नन्हे राहुल की उन्होंने बड़ीबड़ी मूंछें बना दी थीं. महक को पंखों वाली परी बना दिया था और मयंक के चेहरे के साथ शेर का धड़ जोड़ा था.
इन तीनों बच्चों ने बड़ी मुश्किल से नीरज को चाय पीने दी. वे उस के साथ अभी और खेलना चाहते थे.
‘‘बिलकुल मेरी पसंद की चाय बनाई है तुम ने, अंजलि. चायपत्ती तेज और चीनी व दूध कम. थैंक्यू,’’ पहला घूंट भरते ही नीरज ने अंजलि को
धन्यवाद दिया.
‘‘कविता ने एक बार दीदी को बताया था कि आप कैसी चाय पीते
हैं. दीदी ने उस के कहे को याद रखा और आप की मनपसंद चाय बना दी,’’ शिखा की इस बात को सुन कर अंजलि पहले शरमाई और फिर बेचैनी से भर उठी.
‘‘चाय मेरी कमजोरी है. एक वक्त था
जब मैं दिन भर में 10-12 कप चाय पी लेता था,’’ नीरज ने हलकेफुलके अंदाज में बात
आगे बढ़ाई.
‘‘आप जो भी तसवीर बनाते हैं, उस में चेहरे के भाव बड़ी खूबी से उभारते हैं,’’ शिखा ने उस की तारीफ की.
‘‘इतनी अच्छी तसवीरें भी नहीं बनाता हूं मैं.’’
‘‘ऐसा क्यों कह रहे हैं?’’
‘‘क्योंकि मेरी बनाई तसवीरें इतनी ही ज्यादा शानदार होतीं तो खूब बिकतीं. अपने चित्रों के बल पर मैं हर महीने कठिनाई से 5-7 हजार कमा पाता हूं. मेरा अपना गुजारा मुश्किल से चलता है. इसीलिए आज तक घर बसाने की हिम्मत नहीं कर पाया.’’
‘‘शादी करने के बारे में क्या सोचते हैं अब आप?’’ अरुण ने सवाल उठाया तो नीरज सब की दिलचस्पी का केंद्र बन गया.
‘‘जीवनसाथी की जरूरत तो हर उम्र के इंसान को महसूस होती ही है, अरुण. अगर मु झ जैसे बेढंगे कलाकार के लिए कोई लड़की होगी, तो किसी दिन मेरी शादी भी हो जाएगी,’’ हंसी भरे अंदाज में ऐसा जवाब दे कर नीरज ने खाली कप मेज पर रखा और फिर से बच्चों के साथ खेल में लग गया.
नीरज वहां से करीब 5 बजे शाम को गया. तीनों बच्चे उस के ऐसे प्रशंसक बन गए थे कि उसे जाने ही नहीं देना चाहते थे. बड़ों ने भी उसे बड़े प्रेम और आदरसम्मान से विदाई दी थी.
उस के जाते ही अंजलि बिना किसी से कुछ कहेसुने अपने कमरे में चली आई. अचानक उस का मन रोने को करने लगा, पर आंसू थे कि पलकें भिगोने के लिए बाहर आ ही नहीं रहे थे.
करीब 15 मिनट बाद अंजलि के दोनों छोटे भाई और भाभियां उस से मिलने कमरे में आ गए. उन के गंभीर चेहरे देखते ही अंजलि उन के आने का मकसद सम झ गई और किसी के बोलने से पहले ही भड़क उठी, ‘‘मैं बिलकुल शादी नहीं करूंगी. इस टौपिक पर चर्चा छेड़ कर कोई मेरा दिमाग खराब करने की कतई कोशिश न करे.’’
अजय उस के सामने घुटने मोड़ कर फर्श पर बैठ गया और उस का दूसरा हाथ
प्यार से पकड़ कर भावुक स्वर में बोला, ‘‘दीदी, 12 साल पहले पापा के असमय गुजर जाने के बाद आप ही हमारा मजबूत सहारा बनी थीं. आप ने अपनी खुशियों और सुखसुविधाओं को नजरअंदाज कर हमें काबिल बनाया… हमारे घर बसाए. हम आप का वह कर्ज कभी नहीं चुका पाएंगे.’’
‘‘पागल, मेरे कर्तव्यों को कर्ज क्यों सम झ रहा है? आज तुम दोनों को खुश और सुखी देख कर मु झे बहुत गर्व होता है,’’ झुक कर अजय का सिर चूमते हुए अंजलि बोली.
अरुण ने भरे गले से बातचीत को आगे बढ़ाया, ‘‘दीदी, आप के आशीर्वाद से आज हम इतने समर्थ हो गए हैं कि आप की जिंदगी में
भी खुशियां और सुख भर सकें. अब हमारी
बारी है और आप प्लीज इस मौके को हम दोनों से मत छीनो.’’
‘‘भैया, मु झ पर शादी करने का दबाव न बनाओ. मेरे मन में अब शादी करने की इच्छा नहीं उठती. बिलकुल नए माहौल में एक नए इंसान के साथ नई जिंदगी शुरू करने का खयाल ही मन को डराता है,’’ अंजलि ने कांपती आवाज में अपना भय पहली बार सब को बता दिया.
‘‘लेकिन…’’
‘‘दीदी, नीरजजी बड़े सीधे, सच्चे और नेकदिल इंसान हैं. उन जैसा सम झदार जीवनसाथी आप को बहुत सुखी रखेगा… बहुत प्यार देगा,’’ अरुण ने अंजलि को शादी के विरोध में कुछ बोलने ही नहीं दिया.
‘‘मैं तो तुम सब के साथ ही बहुत सुखी हूं. मु झे शादी के झं झट में नहीं पड़ना है,’’ अंजलि
रो पड़ी.
‘‘दीदी, हम आप की विवाहित जिंदगी में झं झट पैदा ही नहीं होने देंगे,’’ उस की बड़ी भाभी मंजु ने उस का हौसला बढ़ाया, ‘‘हमारे होते किसी तरह की कमी या अभाव आप दोनों को कभी महसूस नहीं होगा.’’
‘‘मैं जानता हूं कि नीरजजी अपने बलबूते पर अभी मकान नहीं बना सकते हैं. इसलिए हम ने फैसला किया है कि अपना नया फ्लैट हम तुम दोनों के नाम कर देंगे,’’ अरुण की इस घोषणा को सुन कर अंजलि चौंक पड़ी.
अजय ने अपने मन की बात बताई, ‘‘भैया से उपहार में मिले फ्लैट को सुखसुविधा की हर चीज से भरने की जिम्मेदारी मैं खुशखुशी उठाऊंगा. जो चीज घर में है, वह आप के फ्लैट में भी होगी, यह मेरा वादा है.’’
‘‘आप के लिए सारी ज्वैलरी मैं अपनी तरफ से तैयार कराऊंगी,’’ मंजु ने अपने मन की इच्छा जाहिर की.
‘‘आप के नए कपड़े, परदे, फ्लैट का नया रंगरोगन और मोटरसाइकिल भी हम देंगे आप को उपहार में. आप बस हां कर दो दीदी,’’ आंसू बहा रही शिखा ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की तो अंजलि ने खड़े हो कर उसे गले से लगा लिया.
‘‘दीदी ‘हां’ कह दो,’’ अंजलि जिस की तरफ भी देखती, वही हाथ जोड़ कर यह प्रार्थना दोहरा देता.
‘‘ठीक है, लेकिन शादी में इतना कुछ मु झे नहीं चाहिए. तुम दोनों कोई करोड़पति नहीं हो, जो इतना कुछ मु झे देने की कोशिश करो,’’ अंतत: बड़ी धीमी आवाज में अंजलि ने अपनी स्वीकृति दे दी.
‘‘हुर्रा,’’ वे चारों छोटे बच्चों की तरह खुशी से उछल पड़े.
अंजलि के दिलोदिमाग पर बना तनाव का बो झ अचानक हट गया और उसे अपनी जिंदगी भरीभरी और खुशहाल प्रतीत होने लगी.
‘‘सर, मुझे लगता है कि अनुभव लेने के लिए विपुल नौकरी कर रहा है. साल दो साल के बाद नौकरी छोड़ कर वह अपने व्यापार में पिता का हाथ बटाएगा.’’
‘‘मेरा अनुभव यह कहता है कि अमीर घराने के बच्चे कभी नौकरी नहीं करते हैं, पढ़ाई के बाद अपने घर के व्यापार में जुट जाते हैं. आई.ए.एस. की नौकरी या मैनेजमेंट डिगरी के बाद किसी मैनेजर के पद पर नौकरी तो समझ में आती है, लेकिन एक क्लर्क की नौकरी कोई बड़ा व्यापारी अपने बच्चों से नहीं करवाता है.’’
‘‘आप के कहने में वजन है, सर,’’ महेश बोला, ‘‘लेकिन हमें इस से क्या मतलब, अपन तो दावत का मजा लेते हैं.’’
महेश के जाने के बाद मेरी नजर रिसेप्शन पर गई तो देखा, विपुल श्वेता और सुषमा के साथ हंसहंस कर अपनी दी हुई पार्टी के मजे ले रहा था. मैं सोचने लगा कि कहीं यह दावत लड़कियों को प्रभावित करने के लिए तो नहीं कर रहा.
एक दिन आफिस से घर जाते हुए सामान खरीदने के लिए बाजार गया. शाम के समय बाजार में बहुत भीड़ रहती है, बाजार में सामान खरीदते समय मुझे एहसास हुआ कि विपुल श्वेता के साथ हंसता हुआ हाथ में हाथ डाले टहल रहा था. दोनों एकदूसरे से चिपके हुए अपने में मस्त दुनिया से बेखबर मुझे भी नहीं देख सके. 2 हंसों का जोड़ा पे्र्रम की गहराई में उतर चुका था. युवा प्रेमी को डिस्टर्ब करना मैं ने उचित नहीं समझा. मैं सामान खरीद कर घर आ गया.
घर आ कर मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि विपुल कब नवगांव जाता होगा और कैसे टाइम मैनेज करता होगा. आफिस में विपुल और श्वेता की नजदीकियां अधिक बढ़ने लगीं. चाय ब्रेक में दोनों एकसाथ चाय पीते नजर आते और लंच टाइम में एकसाथ खाना खाते. काम के बीच में विपुल झट से किसी न किसी बहाने श्वेता से चंद बातें कर आता. धीरेधीरे विपुल और श्वेता का प्रेम परवान चढ़ गया. आफिस में सब की जबान पर सिर्फ विपुल और श्वेता के प्रेम प्रसंग के चर्चे थे.
एक दिन लंच में मैं आराम कर रहा था. महेश केबिन में आ कर सामने कुरसी खींच कर बैठ गया.
‘‘सर, आप ने नई खबर सुनी?’’
‘‘मुझे पुरानी की खबर नहीं, तुम नई की बात कर रहे हो. तुम्हारी शक्ल से लगता है कि कोई सनसनीखेज खबर है.’’
‘‘सर, आप के लिए सनसनी होगी. आप आफिस आते हैं, काम कर के चले जाते हैं. आप को दीनदुनिया की कोई खबर नहीं होती है. हम तो परदा उठने की फिराक में कब से टकटकी लगाए बैठे हैं.’’
‘‘लेखकों की तरह भूमिका मत बांधो, महेश, सीधे बात पर आओ.’’
‘‘सीधी बात यह है सर कि विपुल और श्वेता का प्रेम एकदम परवान चढ़ चुका है. बस, अब तो शहनाई बजने की देरी है. सर, आप को मालूम नहीं, विपुल आजकल नवगांव न जा कर श्वेता के घर पर ही रह रहा है. हफ्ते में 1 या 2 दिन ही नवगांव जाता है. अंदर की खबर बताता हूं कि शादी की घोषणा होते ही श्वेता नौकरी छोड़ देगी. इतने अमीर घर जा रही है. नौकरी की क्या जरूरत है, सर.’’
‘‘क्या श्वेता के घर वाले एतराज नहीं करते? शादी से पहले घर आनाजाना तो आजकल आम बात है, लेकिन रात को सोना क्या वाकई हो सकता है? कहीं तुम लंबी तो नहीं छोड़ रहे हो?’’
‘‘कसम लंगोट वाले की, एकदम सच बोल रहा हूं.’’
‘कसम लंगोट वाले की,’ यह महेश का तकिया कलाम था. मैं समझ गया कि बात में कुछ सचाई तो है, ‘‘महेश, लगता है आजकल हम लोग आफिस में काम कम और इधरउधर की बातों में अधिक ध्यान दे रहे हैं,’’ मैं ने बात पलटते हुए कहा.
‘‘सर, आप ऐसी बातें मुझ से नहीं कर सकते हैं. आप को मालूम है कि सारा काम समाप्त करने के बाद ही मैं आप से गपशप करता हूं,’’ महेश मेरी बात का बुरा मान गया.
‘‘महेश, मैं तुम्हारी बात नहीं कर रहा हूं. मैं विपुल की सोच रहा हूं कि आजकल जब देखो, वह श्वेता के इर्दगिर्द ही मंडराता नजर आता है. अपना काम कब करता है?’’ मैं ने कुछ हैरान हो कर पूछा.
महेश हंसते हुए बोला, ‘‘सर, आप इस बात की फिक्र मत कीजिए. उस का काम जब तक समाप्त नहीं हो जाता, उसे शाम को घर जाने नहीं देता हूं, श्वेता के प्यार से उस के काम की रफ्तार गोली की तरह हो गई है. शाम तक सारा काम निबटा देता है.’’
चूंकि आफिस के काम में मुझे कोई शिकायत नहीं मिली, इसलिए विपुल और श्वेता के आपसी रिश्तों में मैं ने विशेष महत्त्व देना छोड़ दिया. दिन बीतते गए और विपुल और श्वेता के प्रेमप्रसंग के किस्से कुछ और अधिक सुनाई देने लगे. एक दिन लंच टाइम में मैं कौफी पी रहा था. तभी विपुल और महेश ने केबिन में प्रवेश किया.
‘‘सर, बधाई हो, विपुल की बहन की शादी है. आप का निमंत्रणपत्र,’’ महेश ने शादी का कार्ड मुझे दिया.
‘‘विपुल, बहुतबहुत बधाई हो,’’ मैं ने विपुल से हाथ मिलाते हुए कहा.
‘‘सर, सूखी बधाई से काम नहीं चलेगा. शादी में आप को अवश्य आ कर रौनक करनी है,’’ विपुल ने आग्रह किया.
‘‘जरूर शादी में रौनक करेंगे,’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.
शादी से 1 दिन पहले महेश ने लंच समय में कहा, ‘‘सर, कल विपुल की बहन की शादी है, पूरा स्टाफ शादी में जाएगा, कल लंच के बाद आफिस की छुट्टी. आप ने भी चलना है, कोई बहाना नहीं चलेगा.’’
‘‘देखो, महेश, शादी नवगांव में है, रात को वापस आने में देर हो सकती है, वहां से आने के लिए कोई सवारी भी नहीं मिलेगी,’’ मैं ने आशंका जताई.
‘‘सर, इस की चिंता आप मत कीजिए, वापसी का सारा प्रबंध विपुल ने कर दिया है. नवगांव के सब से अमीर परिवार में विवाह बहुत ही भव्य तरीके से हो रहा है, इसीलिए तो सारा स्टाफ जा रहा है. वहां पहुंचते ही एक चमचमाती कार हमारे और सिर्फ हमारे लिए होगी. हम उसी कार से वापस आएंगे. इसलिए आप बिलकुल चिंता न कीजिए,’’ महेश ने बहुत आराम से कहा, ‘‘ऐसी शादी देखने का मौका जीवन में केवल एक बार मिलता है, पूरे नवगांव में कारपेट बिछे होंगे, एक पुरानी हवेली में शादी का भव्य समारोह होगा.’’
विवरण सुन कर मैं ने हामी भर दी. मना किस तरह करता, आखिर इतनी भव्य शादी हम जैसे मध्यम वर्ग के लोगों को नसीब से ही देखने का मौका मिलेगा.
सुख देने व मनोरंजन करने वाली आदतों को बदलना और छोड़ना आसान नहीं होता. मम्मीपापा ने शुरू में कुछ कोशिश की, पर घूमनेफिरने की आदतें बदलने में दोनों ही नाकाम रहे.
उन्हें घर से बाहर घूमने जाने का कोई न कोई बहाना मिल ही जाता. कभी बोरियत व तनाव दूर करने तो कभी खुशी का मौका होने के कारण वे बाहर निकल ही जाते.
मैं उन के साथ नहीं जाता, पर चिढ़ और कुढ़न के कारण मुझ से पीछे पढ़ाई भी नहीं होती. मन की शिकायतें उसे पढ़ाई में एकाग्र नहीं होने देतीं.
चढ़ाई मुश्किल होती है, ढलान पर लुढ़कना आसान. वे दोनों नहीं बदले, तो मेरा संकल्प कमजोर पड़ता गया. मैं ने भी धीरेधीरे उन के साथ हर जगह आनाजाना शुरू कर दिया.
इस कारण मुझे वक्तबेवक्त मम्मीपापा की डांट व लैक्चर सुनने को मिलते. उन की फटकार से बचने के लिए मैं उन के सामने किताब खोले रहता. वे समझते कि मैं कड़ी मेहनत कर रहा हूं, पर आधे से ज्यादा समय मेरा ध्यान पढ़ने में नहीं होता.
अपनी लापरवाही के परिणामस्वरूप मैं पढ़ाई में पिछड़ने लगा. टैस्टों में नंबर कम आने पर मम्मीपापा से खूब डांट पड़ी.
‘‘अपनी लापरवाही की वजह से कल को अगर तुम डाक्टर नहीं बन पाए, तो हमें दोष मत देना. अपना जीवन संवारने की जिम्मेदारी सिर्फ तुम्हारी है, क्योंकि अब तुम बड़े हो गए हो,’’ मारे गुस्से के मम्मी का चेहरा लाल हो गया था.
यही वह समय था जब अपने मम्मीपापा के प्रति मेरे मन में शिकायत के भाव जनमे.
‘मेरे उज्ज्वल भविष्य की खातिर मम्मीपापा अपने शौक व आदतों को कुछ समय के लिए बदल क्यों नहीं रहे हैं? सुखसुविधाओं की वस्तुएं जुटा देने से ही क्या उन के कर्तव्य पूरे हो जाएंगे? मेरे मनोभावों को समझ मेरे साथ दोस्ताना व प्यार भरा वक्त गुजारने का महत्त्व उन्हें क्यों नहीं समझ आता?’ मन में उठते ऐसे सवालों के कारण मैं रातदिन परेशान रहने लगा.
तब तक क्रैडिट कार्ड का जमाना आ गया. यह सुविधा मम्मीपापा के लिए वरदान साबित हुई. जेब में रुपए न होने पर भी वे मौजमस्ती की जिंदगी जी सकते थे.
उन की दिनचर्या व उन के व्यवहार के कारण मेरे मन में नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती. उन से कुछ कहनासुनना बेकार जाता और घर में ख्वाहमख्वाह का तनाव अलग पैदा होता.
मैं सचमुच डाक्टर बनना चाहता था. मैं ने इस नकारात्मक ऊर्जा का उपयोग पढ़नेलिखने के लिए करना आरंभ किया. मम्मीपापा के साथ ढंग से बातें किए हुए कईकई दिन गुजर जाते. मन के रोष व शिकायतों को भुलाने के लिए मैं रात को देर तक पढ़ता. मुझे बहुत थक जाने पर ही नींद आती वरना तो मम्मीपापा के प्रति गलत ढंग के विचार मन में घूमते रह कर सोने न देते.
मेरी 12वीं कक्षा की बोर्ड की परीक्षाओं के दौरान भी मम्मीपापा ने अपने घूमनेफिरने में खास कटौती नहीं की. वे मेरे पास होते भी, तो मुझे उन से खास सहारा या बल नहीं मिलता, क्योंकि मैं ने उन से अपने दिल की बातें कहना छोड़ दिया था.
बोर्ड की परीक्षाओं के बाद मैं ने कंपीटीशन की तैयारी शुरू की. अपनी आंतरिक बेचैनी को भुला कर मैं ने काफी मेहनत की.
बोर्ड की परीक्षा में मुझे 78% अंक प्राप्त हुए, लेकिन किसी भी सरकारी मैडिकल कालेज के लिए हुए कंपीटीशन की मैरिट लिस्ट में मेरा नाम नहीं आया.
मेरी निराशा रात को आंसू बन कर बहती. मम्मीपापा की निराशा कुछ दिनों के लिए उदासी के रूप में और बाद में कलेजा छलनी करने वाले वाक्यों के रूप में प्रकट हुई.
मेरा डाक्टर बनने का सपना अब प्राइवेट मैडिकल कालेज ही पूरा कर सकते थे. उन में प्रवेश पाने को डोनेशन व तगड़ी फीस की जरूरत थी. करीब 15-20 लाख रुपए से कम में डाक्टरी के कोर्स में प्रवेश लेना संभव न था.
हमारे रहनसहन का ऊंचा स्तर देख कर कोई भी यही अंदाजा लगाता कि मेरी उच्च शिक्षा पर 15-20 लाख रुपए खर्च करने की हैसियत मेरे मम्मीपापा जरूर रखते होंगे, पर यह सचाई नहीं थी. तभी मैं ने निराश और दुखी अंदाज में मम्मीपापा के सामने प्राइवेट मैडिकल कालेज में प्रवेश लेने की अपनी इच्छा जाहिर की.
पहले तो उन दोनों ने मेरे नकारापन के लिए मुझे खूब जलीकटी बातें सुनाईं. फिर गुस्सा शांत हो जाने के बाद उन्होंने जरूरत की राशि का इंतजाम करने के बारे में सोचविचार आरंभ किया. इस सिलसिले में पापा पहले अपने बैंक मैनेजर से मिले.
‘‘मिस्टर राजीव, मैं आप की सहायता करना चाहता हूं, पर नियमों के कारण मेरे हाथ बंधे हैं,’’ मैनेजर की प्रतिक्रिया बड़ी रूखी थी, ‘‘अपनी जीवन बीमा पालिसी पर आप ने पहले ही हम से लोन ले रखा है. किसी जमीनजायदाद के कागज आप के पास होते, तो हम उस के आधार पर लोन दे देते. आप को अपने बेटे को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए बहुत पहले से कुछ प्लानिंग करनी चाहिए थी. मुझे अफसोस है, मैं आप की कोई सहायता नहीं कर सकूंगा.’’
क्लब में पापा के दोस्त राजेंद्र उन के ब्रिज पार्टनर भी हैं. काफी लंबाचौड़ा व्यवसाय है उन का. पापा ने उन से भी रुपयों का इंतजाम करने की प्रार्थना की, पर बात नहीं बनी.
राजेंद्र साहब के बेटे अरुण से मुझे उन के इनकार का कारण पता चला.
‘‘लेकिन, पिछले गांव में वह भी जवाब दे गई और बारिश भी अचानक तेज हो गई. अब तो आगे जंगल पड़ता है और बारिश में जोकटी (चीड़ की तेल वाली लकड़ी, जिसे पहाड़ के लोग मशाल बना कर रात में भी सफर कर लेते हैं) भी नहीं जल सकती. जंगल में बाघभालू का डर लग रहा है,’’ बात तो रामू ही कर रहा था, जो हमारी गली का चौकीदार था. बाकी के 2 लोग चुपचाप खड़े थे.
‘‘हम तुम्हें कहां रखेंगे, हमारे तो सारे कमरे सेबों से भरे पड़े हैं. हमारे अपने लिए भी जगह मुश्किल हो गई है. गांव में कहीं दूसरे घर में चले जाओ,’’ हरीश बोला.
‘‘ठीक है साहब, आप तो जानपहचान के हो. जब आप ही घर में जगह नहीं दे सकते, तो और कौन देगा?’’ रामू बहुत ही उदास हो कर कहने लगा, ‘‘अगर हो सके, तो एक टौर्च दे दीजिए. रामपुर में मैं आप के घर में दे दूंगा. कुछ तो आसरा हो जाएगा.’’
‘‘हां…हां, टौर्च ले जाओ. मैं लाता हूं,’’ कह कर हरीश भीतर गया, तो चाची भी उस के पीछेपीछे चली आईं.
दरवाजे के पास ही उन्होंने हरीश को जाते देख लिया, ‘‘क्यों रे, इतना बड़ा हो गया, पर इनसानियत नाम की कोई चीज तेरे पास है या नहीं? देख नहीं रहा, वे बेचारे किस तरह सर्दी से ठिठुर रहे हैं. गरीब क्या इनसान नहीं होते?’’
‘‘तुम भी न मां. बेमतलब दया की मूर्ति मत बना करो. अरे, ये थर्ड क्लास लोग चोरउच्चके भी तो होते हैं. इधर पापा घर में नहीं हैं और उधर तुम इन्हें घर में घुसाने की बात कर रही हो. कुछ उलटासीधा हो गया, तो मुझे मत कहना.’’
‘‘ये लोग कोई भी हों, इनसान तो हैं न. घर आए को शरण देनी है. ये मेहमान हैं और कहीं नहीं जाएंगे.
‘‘बाहर के बरामदे में एक चारपाई पड़ी है, उसे उठा लाओ और इन्हें दे दो. मैं कुछ कपड़े निकाल देती हूं,’’ कह कर चाची अपने कमरे में चली गईं और बड़ा बक्सा खोल कर कुछ पुराने कंबल और 2 दरियां निकाल कर बाहर ले आईं.
हरीश को न चाहते हुए भी मां की बात माननी पड़ी, क्योंकि वह जानता था कि अगर चारपाई नहीं लाई गई, तो वे खुद जा कर ले आएंगी. इतने अंधेरे में कहीं गिरगिरा गईं, तो फिर सभी को ?ोलना पड़ेगा.
चारपाई बरामदे में पटक कर ‘तुम्हारे मन में जो आए करो’ कहता हुआ हरीश पैर पटकता हुआ वहां से चला गया.
‘‘मुन्नी, पिछवाड़े से अंगीठी और थोड़ी सी लकड़ी उठा लाओ. देखो तो बेचारे सर्दी से कैसे ठिठुर रहे हैं,’’ बाहर खड़े तीनों के कानों में भी सारी बातचीत जा रही थी. उन्हें कुछ हौसला हुआ
और वे बारिश से बचने के लिए बरामदे में आ गए.
नीचे के कमरों में सचमुच सेब भरे पड़े थे और वहां ताले भी लगा दिए गए थे. एक कमरे में बिना छंटाई किए सेबों का ढेर लगा हुआ था, जो आज ही मजदूरों ने बाग से तोड़े थे. दूसरे कमरे में छंटे हुए सेब थे.
एक कमरे में सेबों से भरी पेटियां थीं, जो चाचा का फोन आने के बाद दिल्ली भेजी जाएंगी, पर बाहर का बरामदा तो खाली था. हां, वहां सेब भरने के बाद बचा कूड़ाकचरा जरूर पड़ा था.
चाची ने आवाज लगाई, ‘‘रामू.’’
‘‘जी, मांजी,’’ रामू, जो अपना कुरता उतार कर निचोड़ रहा था, झट बाहर आ गया. चाची ने कंबल और दरियां ऊपर से फेंक दीं, ‘‘मैं चारपाई देती हूं, पर तुम
3 जने उस एक चारपाई पर कैसे सो सकोगे?’’
‘‘नहीं मांजी, चारपाई रहने दीजिए. यहां पर बहुत सारा चिलारू (चीड़ की सूखी पत्तियां, जो सेब की पेटियों में लगाई जाती हैं) पड़ा है, इस को बिछा लेंगे. आप परेशान न हों. सुबह होते ही हम चले जाएंगे.’’
पर चाची ने चारपाई नीचे लटका ही दी, जिसे उन्होंने नीचे ला कर बाहर बरामदे में खड़ी कर के सर्दी से बचने के लिए दीवार बना लिया. रामू के मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी. वह बराबर सर्दी से कांप रहा था.
तनु और मैं जलाने लायक लकड़ी, माचिस और अंगीठी उन्हें दे आए. उन्होंने हमारे लौटने का भी इंतजार नहीं किया. किसी भूखे भेडि़ए की तरह उस अंगीठी पर टूट पड़े और कुछ चिलारू जला कर उन्होंने आग सुलगा ली.
अब तक उन्होंने अपने कपड़े भी निचोड़ लिए थे और उन्हें बरामदे में खड़ी चारपाई पर फैला दिए.
हम जब तक लौट कर कमरे के अंदर आए, तब तक तो चाची खर्राटे भर रही थीं. पर मेरी नींद उड़ चुकी थी.
शायद तनु को भी नींद नहीं आ रही थी. उस ने उठ कर पानी पीया, तो मुझे भी याद आया कि मैं भी पानी पी ही लूं. हम दोनों बात करना चाह रही थीं, लेकिन चाची के जाग जाने का डर था.
हमें दहेज में सास मिली हैं. हम ने उन्हें मां की तरह स्वीकार कर लिया है, क्योंकि बचपन में हमारी एकलौती मां हमें दुनिया में अकेला छोड़ कर उड़नछू हो गई थीं.
हम जब दिल्ली से ट्रेन द्वारा लौटे और अभी कमर सीधी भी नहीं हो पाई थी कि मोबाइल फोन की घंटी बज उठी, ‘क्या आप झुमरूलालजी बोल रहे हैं?’
‘‘जी फरमाइए,’’ उधर से किसी औरत की मधुर आवाज आई थी, इसलिए हमारी कोमल भावनाएं जाग उठी थीं.
‘आप की सासूजी का नाम लक्ष्मी देवी है?’
‘‘जी हां.’’
‘बधाई हो.’
‘‘किस बात के लिए?’’
‘हमारी एयरवेज की ओर से उन्हें ‘शौर्य सम्मान’ दिया जा रहा है,’ उधर से आवाज आई.
मैं तो सकते में रह गया. तभी उधर से दोबारा आवाज आई, ‘झुमरूलालजी, एयरवेज की ओर से इस सम्मान में एक प्रमाणपत्र, एक शील्ड और एक लाख रुपए की राशि दी जाती है.’
‘‘एक लाख रुपए…’’ हम ने बात को फिर से दोहराने की कोशिश की.
‘क्या कम है?’ उधर से औरत की मधुर आवाज आई.
‘‘जी…जी…वह…’’ कहते हुए हमारे गले में आवाज फंस रही थी.
‘इसी के साथ एक दर्जन मल्टीनैशनल कंपनियों की ओर से भी उन्हें कई चीजें दी जाएंगी.’
‘‘जी… अच्छा.’’
‘जैसे टैलीविजन, सोफा सैट, वाशिंग मशीन, मोबाइल फोन, फ्रिज, प्रोजैक्टर वगैरह.’
हम ने सुना तो लगा कि हमें चक्कर आ जाएगा. हमारी सासूजी इस उम्र में भी इतने अवार्ड जीत रही हैं, लेकिन यह ‘शौर्य सम्मान’ उन्हें ही क्यों दिया जा रहा है, हम समझ नहीं पाए थे.
हम ने विचार किया कि अगर कुछ बात पूछूं, तो कहीं नाराज हो कर फोन न काट दें, इस से बेहतर तो यही है कि गुपचुप स्वीकार कर लो.
उधर से मैडमजी की आवाज आई, ‘आप को आनेजाने का किराया मिलेगा. आप को फाइवस्टार होटल में ठहराया जाएगा. मंत्रीजी यह सम्मान देंगे.’
हमारे दिल की धड़कनें तेज हो रही थीं. हम ने तारीख नोट कर ली. अपना ईमेल एड्रैस दे दिया और वह फोन कट गया.
हम सोच रहे थे कि यह बात घर में बताएं या नहीं?
थोड़ी ही देर बाद हमारे ईमेल एड्रैस पर ईमेल भी आ गया. हम ने उस का प्रिंट आउट निकाला और अपनी धर्मपत्नी को पास बुला कर प्यार से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें कपड़े धोने में दिक्कत आती है?’’
‘‘हां, आती तो है, तो क्या तुम कपडे़ धोओगे?’’ उस ने झन्ना कर हमें जवाब दिया. तबीयत तो हुई कि बात बंद कर दूं, लेकिन मां तो उसी की थीं.
हम ने झूठी हंसी हंस कर बात को उड़ा दिया और पूछा, ‘‘अगर हमारे घर में डबल डोर फ्रिज हो तो…’’
‘‘शेख चिल्ली की तरह बातें बंद करो, मुझे घर का काम करने दो.’’
‘‘कभी तो थोड़ी फुरसत निकाल कर हमारे पास बैठ जाया करो.’’
‘‘अब बकवास छोड़ो भी. मुझे काम करना है. आज मम्मी पापड़ बना रही हैं,’’ उस ने इतराते हुए हमें बताया.
‘‘मम्मी से काम मत लिया करो.’’
‘‘तो क्या मजदूर लगा लूं? आज यह तुम्हें हो क्या गया है, जो ऐसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो?’’ पत्नी ने तुनक कर कहा.
वह जाने को उठी, तो हम ने उस का हाथ थाम लिया और कहा, ‘‘एक पल ठहरो तो…यह पढ़ तो लो…’’
‘‘यह क्या है?’’ पत्नी ने पूछा.
‘‘देखो तो सही,’’ हम ने कहा, तो उस ने कागज उठा कर पढ़ना शुरू किया.
पत्नी को कुछ समझ ही नहीं आया. उस ने किसी बेवकूफ की तरह हमारे चेहरे पर नजर गड़ा दी और कहने लगी, ‘‘कोई मम्मी को ‘शौर्य सम्मान’ और एक लाख रुपए क्यों देगा? तुम मुझे पागल मत बनाओ.’’
‘‘यह मजाक नहीं सच है. हमें वहां परसों पहुंचना है.’’
‘‘हां…’’ कहतेकहते वह हमारे कंधे का सहारा लेतेलेते बेहोश होतेहोते बची.
हम ने उस के माथे को प्यार से सहलाया, तो वह थोड़ी देर में ठीक हुई. तब हम दोनों ने तय किया कि सासूजी को यह खबर देंगे.
सासूजी पापड़ का आटा पत्थर से ऐसे कूट रही थीं, मानो पापड़ का आटा न हो कर किसी पर गुस्सा निकाल रही हों.
हमारी पत्नीजी ने अपनी मम्मी को पीछे से गले लगाते हुए कहा, ‘‘मम्मीजी, हमें दिल्ली चलना है.’’
‘‘चल हट. मजाक मत कर. पापड़ के आटे को कूटने दे,’’ सासूजी ने आंखें तरेरते हुए कहा.
‘‘नहीं मम्मी, कसम से… आप को एक भव्य समारोह में सम्मानित किया जाना है.’’
‘‘अच्छा… अपनी बकवास बंद कर और आटा कूटने दे,’’ कह कर वे दोबारा अपने काम में जुट गईं.
यह देख कर हम ने मोरचा संभाला और कहा, ‘‘मम्मीजी, सच में हमें
परसों दिल्ली पहुंचना है. वहां एक भव्य कार्यक्रम है.’’
‘‘कब चलना है?’’ सासूजी ने पूछा.
‘‘आज शाम को ही निकलना है,’’ हम ने कहा, तो वे खुशी से चहक
उठीं, ‘‘दामादजी, मुझे हवाईजहाज की कलाबाजी पसंद नहीं है.’’
‘‘हम तो ट्रेन से जा रहे हैं मम्मीजी.’’
‘‘तो ठीक है,’’ सासूजी ने कहा. हम ने उन्हें सम्मान राशि और शौर्य सम्मान की कोई जानकारी नहीं दी थी.
तत्काल में टिकट बनवाया और रात में ही दिल्ली के लिए रवाना हो गए.
अगली दोपहर को हम लोग दिल्ली में थे. स्टेशन पर ही हमें लेने के लिए कार आई हुई थी. हम शान से उस में बैठे, होटल के कमरे क्या थे, मानो महल की सुविधा थी.
पत्नीजी तो मानो सपनों की दुनिया में आ गई थीं. सासूजी तो हैरानी में डूबी हुई थीं. नाश्ता, भोजन मुफ्त में था, जो चाहो खाओ. घंटी बजाओ नौकर हाजिर. वाह रे सुख, स्वर्ग इसी को कहते होंगे.
हमें अगले दिन का कार्यक्रम समझा दिया गया था. कार्यक्रम की जगह पर एक घंटे पहले पहुंचना था. एक कार अगले दिन आ गई. हमें ले कर कार्यक्रम की जगह पर ले गई. वहां पर बहुत ज्यादा भीड़ थी.
हमारी पत्नी सासूजी को ले कर मंच तक गई. सम्मान राशि का चैक, ट्रौफी, शाल, सम्मानपत्र मिला. खूब फोटो उतरे. सासू मां हैरान थीं कि आखिर यह ‘शौर्य सम्मान’ उन्हें क्यों दिया गया है?
कार्यक्रम के बाद पत्रकारों ने तमाम सवाल किए, सब का जवाब हम ने यह कह कर दिया, ‘‘सासू मां के गले में दर्द है, जिस के चलते वे बोल नहीं पाएंगी.’’
खूब फोटो उतरवा कर, तमाम कंपनियों के ढेर से उपहार के साथ हम घर लौटे. पूरा घर विदेशी चीजों से भर गया था.
अब आप लोग सोच रहे होंगे कि हमारी सासूजी को यह ‘शौर्य सम्मान’ क्यों मिला?
हम अब सारी बात बताते हैं, क्योंकि लेने के पहले बता देते तो शायद वह राशि और उपहार नहीं मिलते.
हम ने आप को बताया था कि सासूजी हमें दहेज में मिली थीं.
बात कुछ ऐसी हो गई थी कि पिछले दिनों सासूजी सीढि़यों से गिर गई थीं और उन के सिर में चोट आ गई थी, जिस के चलते उन्हें आंखों से कम और कानों से बिलकुल सुनाई देना बंद हो गया था.
हमारी पत्नी बहुत घबराई. हम से कहा कि इन्हें बड़े डाक्टर को दिखाओ.
हम एक बूढ़े डाक्टर के पास ले गए. उस ने कहा कि दिल्ली ले जाओ. हम ने हवाईजहाज का टिकट लिया और दिल्ली के लिए रवाना हो गए.
सासूजी थोड़ी घबराई हुई बैठी थीं, लेकिन जब आसमान में हवाईजहाज उड़ा तो उन्हें बहुत अच्छा लगा.
हम सोच रहे थे कि जल्दी से पहुंच कर इलाज करवा लेंगे, तभी घोषणा हुई कि सभी मुसाफिर सावधान रहें, हवाईजहाज का इंजन अचानक बंद हो गया है. हम इसे ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं.
सब लोग जोरजोर से चीखने लगे. सासूजी भी खुशी में लोगों के चीखने को देख कर हंसते हुए चीख रही थीं. तब ही हवाईजहाज ने एक गोता खाया. सासूजी खुशी में खड़ी हो गईं. उन्हें अंगरेजी झूले का मजा आ रहा था. वे खुशी के मारे ताली बजा रही थीं. कभी आगे, कभी पीछे, जबकि हम सब की हवा टाइट थी.
एयर होस्टेस ने जो घोषणा की थी, वह सासूजी सुन ही नहीं पाई थीं. वे तो खुश हो कर किलकारी मार रही थीं. तब ही घोषणा हुई कि हवाईजहाज का दूसरा इंजन भी बंद हो गया है. हम 6 हजार फुट ऊपर हैं. कृपया सावधान रहें, बैल्ट बांध लें. हम उसे ठीक करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.
हवाईजहाज तेजी से नीचे की ओर जा रहा था. हम जोरों से रो रहे थे. सासूजी हंस रही थीं.
हम जानते थे कि पलभर बाद हम सब मरे हुए होंगे, लेकिन सासूजी के चेहरे पर जरा भी डर नहीं था.
एयर होस्टेस उन्हें देख कर हैरान हो रही थी. तभी घोषणा हुई कि हवाईजहाज इमर्जैंसी लैंडिंग दिल्ली में कर रहा है. एक इंजन थोड़ा काम करने लगा है.
कुछ ही देर में हवाईजहाज जमीन पर तेजी से चलने लगा और थोड़ी देर में खड़ा हो गया. सब खुशी के मारे चीख रहे थे. हमारी सासूजी ने पूछा, ‘‘ये लोग चीख क्यों रहे हैं?’’
‘‘मतलब? क्या आप को सुनाई देने लगा है?’’
‘‘सुनाई क्या दिखाई भी साफ दे रहा है कि सब खुश हैं,’’ सासूजी ने कहा.
हम खुशी के मारे कबड्डी खेलने का मन बनाने लगे थे. एयर होस्टेस ने सासू मां को गले लगाया और ताली बजा कर स्वागत कर के विदाई दी.
इस के बाद का किस्सा आप को मालम ही है. दिल्ली के डाक्टर ने चैक कर के कहा कि खुशी से चीखनेचिल्लाने के चलते जिस नस में खून का बहना बंद हो गया था, वह खुल गई है. आप की सास अब पूरी तरह से ठीक हैं.’’
हम घर लौट आए. अब आप ही बताएं कि मैं क्या पत्रकारों को बताता कि उस समय मेरी सासू मां बहरी थीं, कम दिखाई देने की बीमारी से पीडि़त थीं. अगर वे ठीक होतीं तो खिड़की तोड़ कर कूद जातीं, लेकिन जो होता है, अच्छा होता है. हम आज आदरणीय सासूजी पर गर्व कर के खुश हैं.
‘‘बिलकुल मेरी पसंद की चाय बनाई है तुम ने, अंजलि. चायपत्ती तेज और चीनी व दूध कम. थैंक्यू,’’ पहला घूंट भरते ही नीरज ने अंजलि को
धन्यवाद दिया.
‘‘कविता ने एक बार दीदी को बताया था कि आप कैसी चाय पीते
हैं. दीदी ने उस के कहे को याद रखा और आप की मनपसंद चाय बना दी,’’ शिखा की इस बात को सुन कर अंजलि पहले शरमाई और फिर बेचैनी से भर उठी.
‘‘चाय मेरी कमजोरी है. एक वक्त था
जब मैं दिन भर में 10-12 कप चाय पी लेता था,’’ नीरज ने हलकेफुलके अंदाज में बात
आगे बढ़ाई.
‘‘आप जो भी तसवीर बनाते हैं, उस में चेहरे के भाव बड़ी खूबी से उभारते हैं,’’ शिखा ने उस की तारीफ की.
‘‘इतनी अच्छी तसवीरें भी नहीं बनाता हूं मैं.’’
‘‘ऐसा क्यों कह रहे हैं?’’
‘‘क्योंकि मेरी बनाई तसवीरें इतनी ही ज्यादा शानदार होतीं तो खूब बिकतीं. अपने चित्रों के बल पर मैं हर महीने कठिनाई से 5-7 हजार कमा पाता हूं. मेरा अपना गुजारा मुश्किल से चलता है. इसीलिए आज तक घर बसाने की हिम्मत नहीं कर पाया.’’
‘‘शादी करने के बारे में क्या सोचते हैं अब आप?’’ अरुण ने सवाल उठाया तो नीरज सब की दिलचस्पी का केंद्र बन गया.
‘‘जीवनसाथी की जरूरत तो हर उम्र के इंसान को महसूस होती ही है, अरुण. अगर मु झ जैसे बेढंगे कलाकार के लिए कोई लड़की होगी, तो किसी दिन मेरी शादी भी हो जाएगी,’’ हंसी भरे अंदाज में ऐसा जवाब दे कर नीरज ने खाली कप मेज पर रखा और फिर से बच्चों के साथ खेल में लग गया.
नीरज वहां से करीब 5 बजे शाम को गया. तीनों बच्चे उस के ऐसे प्रशंसक बन गए थे कि उसे जाने ही नहीं देना चाहते थे. बड़ों ने भी उसे बड़े प्रेम और आदरसम्मान से विदाई दी थी.
उस के जाते ही अंजलि बिना किसी से कुछ कहेसुने अपने कमरे में चली आई. अचानक उस का मन रोने को करने लगा, पर आंसू थे कि पलकें भिगोने के लिए बाहर आ ही नहीं रहे थे.
करीब 15 मिनट बाद अंजलि के दोनों छोटे भाई और भाभियां उस से मिलने कमरे में आ गए. उन के गंभीर चेहरे देखते ही अंजलि उन के आने का मकसद सम झ गई और किसी के बोलने से पहले ही भड़क उठी, ‘‘मैं बिलकुल शादी नहीं करूंगी. इस टौपिक पर चर्चा छेड़ कर कोई मेरा दिमाग खराब करने की कतई कोशिश न करे.’’
अजय उस के सामने घुटने मोड़ कर फर्श पर बैठ गया और उस का दूसरा हाथ
प्यार से पकड़ कर भावुक स्वर में बोला, ‘‘दीदी, 12 साल पहले पापा के असमय गुजर जाने के बाद आप ही हमारा मजबूत सहारा बनी थीं. आप ने अपनी खुशियों और सुखसुविधाओं को नजरअंदाज कर हमें काबिल बनाया… हमारे घर बसाए. हम आप का वह कर्ज कभी नहीं चुका पाएंगे.’’
‘‘पागल, मेरे कर्तव्यों को कर्ज क्यों सम झ रहा है? आज तुम दोनों को खुश और सुखी देख कर मु झे बहुत गर्व होता है,’’ झुक कर अजय का सिर चूमते हुए अंजलि बोली.
अरुण ने भरे गले से बातचीत को आगे बढ़ाया, ‘‘दीदी, आप के आशीर्वाद से आज हम इतने समर्थ हो गए हैं कि आप की जिंदगी में
भी खुशियां और सुख भर सकें. अब हमारी
बारी है और आप प्लीज इस मौके को हम दोनों से मत छीनो.’’
‘‘भैया, मु झ पर शादी करने का दबाव न बनाओ. मेरे मन में अब शादी करने की इच्छा नहीं उठती. बिलकुल नए माहौल में एक नए इंसान के साथ नई जिंदगी शुरू करने का खयाल ही मन को डराता है,’’ अंजलि ने कांपती आवाज में अपना भय पहली बार सब को बता दिया.
‘‘लेकिन…’’
‘‘दीदी, नीरजजी बड़े सीधे, सच्चे और नेकदिल इंसान हैं. उन जैसा सम झदार जीवनसाथी आप को बहुत सुखी रखेगा… बहुत प्यार देगा,’’ अरुण ने अंजलि को शादी के विरोध में कुछ बोलने ही नहीं दिया.
‘‘मैं तो तुम सब के साथ ही बहुत सुखी हूं. मु झे शादी के झं झट में नहीं पड़ना है,’’ अंजलि
रो पड़ी.
‘‘दीदी, हम आप की विवाहित जिंदगी में झं झट पैदा ही नहीं होने देंगे,’’ उस की बड़ी भाभी मंजु ने उस का हौसला बढ़ाया, ‘‘हमारे होते किसी तरह की कमी या अभाव आप दोनों को कभी महसूस नहीं होगा.’’
‘‘मैं जानता हूं कि नीरजजी अपने बलबूते पर अभी मकान नहीं बना सकते हैं. इसलिए हम ने फैसला किया है कि अपना नया फ्लैट हम तुम दोनों के नाम कर देंगे,’’ अरुण की इस घोषणा को सुन कर अंजलि चौंक पड़ी.
अजय ने अपने मन की बात बताई, ‘‘भैया से उपहार में मिले फ्लैट को सुखसुविधा की हर चीज से भरने की जिम्मेदारी मैं खुशखुशी उठाऊंगा. जो चीज घर में है, वह आप के फ्लैट में भी होगी, यह मेरा वादा है.’’
‘‘आप के लिए सारी ज्वैलरी मैं अपनी तरफ से तैयार कराऊंगी,’’ मंजु ने अपने मन की इच्छा जाहिर की.
‘‘आप के नए कपड़े, परदे, फ्लैट का नया रंगरोगन और मोटरसाइकिल भी हम देंगे आप को उपहार में. आप बस हां कर दो दीदी,’’ आंसू बहा रही शिखा ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की तो अंजलि ने खड़े हो कर उसे गले से लगा लिया.
‘‘दीदी ‘हां’ कह दो,’’ अंजलि जिस की तरफ भी देखती, वही हाथ जोड़ कर यह प्रार्थना दोहरा देता.
‘‘ठीक है, लेकिन शादी में इतना कुछ मु झे नहीं चाहिए. तुम दोनों कोई करोड़पति नहीं हो, जो इतना कुछ मु झे देने की कोशिश करो,’’ अंतत: बड़ी धीमी आवाज में अंजलि ने अपनी स्वीकृति दे दी.
‘‘हुर्रा,’’ वे चारों छोटे बच्चों की तरह खुशी से उछल पड़े.
अंजलि के दिलोदिमाग पर बना तनाव का बो झ अचानक हट गया और उसे अपनी जिंदगी भरीभरी और खुशहाल प्रतीत होने लगी.उसदिन पहली बार नीरज उन के घर सब के साथ लंच लेने आ रहा था. अंजलि के दोनों छोटे भाई और उन की पत्नियां सुबह से ही उस की शानदार आवभगत करने की तैयारी में जुटे हुए थे. उस के दोनों भतीजे और भतीजी बढि़या कपड़ों से सजधज कर बड़ी आतुरता से नीरज के पहुंचने का इंतजार कर रहे थे.
अंजलि की ढंग से तैयार होने में उस की छोटी भाभी शिखा ने काफी सहायता की थी. और दिनों की तुलना में वह ज्यादा आकर्षक और स्मार्ट नजर आ रही थी. लेकिन यह बात उस के मन की चिंता और बेचैनी को कम करने में असफल रही.
‘‘तुम सब 35 साल की उम्र में मु झ पर शादी करने का दबाव क्यों बना रहे हो? क्या मैं तुम सब पर बो झ बन गई हूं? मु झे जबरदस्ती धक्का क्यों देना चाहते हो?’’ ऐसी बातें कह कर अंजलि अपने भैयाभाभियों से पिछले हफ्ते में कई बार झगड़ी पर उन्होंने उस के हर विरोध को हंसी में उड़ा दिया था.
कुछ देर बाद अंजलि से 2 साल छोटे उस के भाई अरुण ने कमरे में आ कर सूचना दी, ‘‘दीदी, नीरजजी आ गए हैं.’’
अंजलि ड्राइंगरूम में जाने को नहीं उठी, तो अरुण ने बड़े प्यार से बाजू पकड़ कर उसे खड़ा किया और फिर भावुक लहजे में बोला, ‘‘दीदी, मन में कोई टैंशन मत रखो. आप की मरजी के खिलाफ हम कुछ नहीं करेंगे.’’
Story in Hindi
अपने मम्मी पापा की शादी की 10वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में हुई भव्य पार्टी की यादें आज भी मेरे दिलोदिमाग में तरोताजा हैं. वह पार्टी लंबे समय तक हमारे परिचितों के बीच चर्चा का विषय बनी रही थी.
पार्टी क्लब में हुई थी. करीब 500 मेहमानों की आवभगत वरदीधारी वेटरों की पूरी फौज ने की थी. अपनीअपनी रुचि के अनुरूप मेहमानों ने जम कर खाया, और देर रात तक डांस करते रहे. इतने सारे गिफ्ट आए कि पापा को उन्हें कारों से घर पहुंचाने के लिए अपने 2 दोस्तों की सहायता लेनी पड़ी.
मेरे लिए वे बेहद खुशी भरे दिन थे. हम ने एक बड़े घर में कुछ महीने पहले शिफ्ट किया था. मेरी छोटी बहन शिखा और मुझे अपना अलग कमरा मिला. मम्मी ने उसे बड़े सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया था.
अपने नए दोस्तों के बीच मेरी धाक शुरू से ही जम गई. मेरी साइकिल हो या जूते, कपड़े हों या स्कूल बैग, हर चीज सब से ज्यादा कीमती और सुंदर होती.
‘‘मेरे मम्मी पापा दोनों सर्विस करते हैं और मेरी हर इच्छा को फौरन पूरा करना उन्हें अच्छा लगता है. तुम सब मुझ से जलो मत. मैं बहुत खुशहाल हूं,’’ अपने दोस्तों के सामने ऐसी डींगें मारते हुए मेरी छाती गर्व से फूल जाती.
अपने दोस्तों की ईर्ष्याभरी प्रतिक्रियाएं मैं मम्मी पापा को बताता तो वे दोनों खूब हंसते.
‘‘मेरे बच्चों को सुख सुविधा की हर चीज मिलेगी और वह भी ‘बैस्ट क्वालिटी’ की,’’ ऐसा आश्वासन पापा से बारबार पा कर मेरा चेहरा फूल सा खिल जाता.
‘‘रवि बेटे, हमारे ठाटबाट देख कर हम से जलने वालों में तुम्हारे दोस्त ही नहीं, बल्कि रिश्तेदार और पड़ोसी भी शामिल हैं. इन की बातों पर कभी ध्यान मत देना. कुत्तों के भूंकने से हाथी अपनी मस्त चाल नहीं बदलता है,’’
मां के मुंह से अकसर निकलने वाला आखिरी वाक्य अपने ईर्ष्यालु दोस्तों को सुनाने का मैं कोई अवसर नहीं चूकता.
मम्मी पापा दोनों अच्छी पगार जरूर लेते, पर फिर भी उन की मासिक आय थी तो सीमित ही. घर के खर्चों में कटौती वे करते नहीं थे. बाजार में सुखसुविधा की आई कोई भी नई चीज हमारे घर अधिकतर पड़ोसियों के यहां आने से पहले आती. हर दूसरेतीसरे दिन बाहर होटल में खाना खाने का चाव हम सभी को था. महंगे स्कूल की फीस, कार के पैट्रोल का खर्चा, सब के नए कपड़े, मम्मी की महंगी प्रसाधन सामग्री इत्यादि नियमित खर्चों के चलते आर्थिक तंगी के दौर से भी अकसर हमें गुजरना पड़ता.
मम्मीपापा के बीच तनातनी का माहौल मैं ने सिर्फ ऐसे ही दिनों में देखा. अधिकतर तो वे हम भाईबहन के सामने झगड़ने से बचते, पर फिर भी एकदूसरे पर फुजूलखर्ची का आरोप लगा कर आपस में कड़वे, तीखे शब्दों का प्रयोग करते मैं ने कई बार उन्हें देखासुना था.
‘‘मम्मीपापा, मैं बड़ा हो कर डाक्टर बनूंगा. अपना नर्सिंगहोम बनाऊंगा. ढेर सारे रुपए कमा कर आप दोनों को दूंगा. तब हमें पैसों की कोई तंगी नहीं रहेगी. खूब दिल खोल कर खर्चा करना आप दोनों,’’ वे दोनों सदा ऐशोआराम की जिंदगी बसर करें, ऐसा भाव बचपन से ही मेरे दिल में बड़ी मजबूती से कायम रहा.
सब से छोटी बूआ की शादी पर पापा ने 21 हजार रुपए दिए, जबकि दादा दादी 50 हजार की आशा रखते थे. इस बात को ले कर काफी हंगामा हुआ.
‘‘मैं अपने किसी दोस्त से कर्जा ले कर 50 हजार रुपए ही दे देता हूं,’’ पापा की इस पेशकश का मम्मी ने सख्त विरोध किया.
‘‘पहली दोनों ननदों की शादियों में हम बहुत कुछ दे चुके हैं. क्या आप के दोनों छोटे भाई मिल कर यह एक शादी भी नहीं करा सकते? हमारा हाथ पहले ही तंग चल रहा है. ऊपर से कर्जा लेने की आप सोचो भी मत,’’ मम्मी को गुस्से में देख कर पापा ने चुप्पी साध ली थी.
मेरे दादा दादी, दोनों चाचाओं और तीनों बूआओं ने तब हम से सीधे मुंह बात करना ही बंद कर दिया. सारी शादी में हम बेगानों से घूमते रहे थे.
‘‘राजीव, देख ले, अपनी जिम्मेदारी ढंग से न निभा पाने के कारण कितनी बदनामी हुई है तेरी,’’ दादी ने बूआ की विदाई के बाद आंखों में आंसू भर कर पापा से कहा, ‘‘सब से अच्छी माली हालत होने के बावजूद बहन की शादी में तेरा सब से कम रुपए देना ठीक नहीं था.’’
‘‘मेरी सहूलियत होती तो मैं ज्यादा रुपए जरूर देता. जो मैं ने पहले किया उसे तुम सब भूल गए. जिस तरह से इस शादी में मुझे बेइज्जत किया गया है, उसे मैं भी कभी नहीं भूलूंगा,’’ पापा की आवाज में गुस्सा भी था और दुख भी.
‘‘पुरानी बातों को कोई नहीं याद रखता, बेटे. तुम दोनों इतना कमाने के बावजूद तंगी में फंस जाते हो, तो अपना जीने का ढर्रा बदलो. ऐसी शानोशौकत व तड़कभड़क का क्या फायदा, जो जरूरत के वक्त दूसरों का मुंह देखो या किसी के सामने हाथ फैलाओ,’’ दादी की इस नसीहत का बुरा मान पापा उन से जोर से लड़ पड़े थे.
उस शादी के बाद हमारा दादादादी, चाचा और बूआओं से मिलनाजुलना न के बराबर रह गया. मम्मीपापा के सहयोगी मित्रों के परिवारों से हमारे संबंध बहुत अच्छे थे. उन से क्लब में नियमित मुलाकात होती और एकदूसरे के घर में आनाजाना भी खूब होता.
कक्षा 8 तक मैं खुद पढ़ता रहा और खूब अच्छे नंबर लाता रहा. इस के बाद पापा ने ट्यूशन लगवा दी. विज्ञान और गणित की ट्यूशन फीस 1,500 रुपए मासिक थी.
‘‘रवि बेटा, पढ़ने में जीजान लगा दो. तुम्हारी पढ़ाई पर हम दिल खोल कर खर्चा करेंगे, मेहनत तुम करो. तुम्हें डाक्टर बनना ही है,’’ मेरे सपने की चर्चा करते हुए मम्मीपापा भावुक हो उठते.
मैं ने काफी मेहनत की भी थी, पर 10वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में मेरे सिर्फ 75% नंबर आए. पापामम्मी को इस कारण काफी निराशा हुई.
‘‘मेरी समझ से तुम ने यारीदोस्ती में ज्यादा वक्त बरबाद किया था, रवि. उन के साथ सजसंवर कर बाहर घूमने के बजाय तुम्हें पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए था. अगर अच्छा कैरियर बनाना है, तो आगामी 2-3 सालों के लिए सब शौक छोड़ कर सिर्फ पढ़ने में मन लगाओ,’’ पापा की कठोरता व रूखापन मुझे बहुत बुरा लगा था.
11वीं कक्षा में मैं ने साइंस के मैडिकल ग्रुप के विषय लिए. अंगरेजी को छोड़ कर मैं ने बाकी चारों विषयों की ट्यूशन पढ़ने को सब से बढि़या व महंगे कोचिंग संस्थान में प्रवेश लिया. वहां की तगड़ी फीस मम्मीपापा ने माथे पर एक भी शिकन डाले बिना कर्जा ले कर भर दी.
कड़ी मेहनत करने का संकल्प ले कर मैं पढ़ाई में जुट गया. दोस्तों से मिलना और बाहर घूमनाफिरना काफी कम कर दिया. क्लब जाना बंद कर दिया. बाहर घूमने जाने के नाम से मुझे चिढ़ होती.
‘‘मम्मीपापा, मैं जो नियमित रूप से पढ़ने का कार्यक्रम बनाता हूं, वह बाहर जाने के चक्कर में बिगड़ जाता है. आप दोनों मुझे अकेला छोड़ कर जाते हो, तो खाली घर में मुझ से पढ़ाई नहीं होती. मेरी खातिर आप दोनों घर में रहा करो, प्लीज,’’ एक शनिवार की शाम मैं ने उन से अपनी परेशानी भावुक अंदाज में कह दी.
‘‘रवि, पूरे 5 दिन दफ्तर में सिर खपा कर हम दोनों तनावग्रस्त हो जाते हैं. अगर शनिवारइतवार को भीक्लब नहीं गए, तो पागल हो जाएंगे हम. हां, बाकी और जगह जाना हम जरूर कम करेंगे,’’ उन के इस फैसले को सुन कर मैं उदास हो गया.
झाड़ूपोंछा करने वाली लड़की और कैसे रह सकती थी. कपड़े धोने के बाद तो वह खुद गीली हो जाती थी और तब बिना अंदरूनी कपड़ों के उस के बदन के अंग शीशे की तरह चमकने लगते थे.
ऐसे मौके पर चोगले की नजरों में एक प्यास उभर आती और उस के पास आ कर पूछता था, ‘‘मालती, तुम तो गीली हो गई हो, भीग गई हो. पंखे के नीचे बैठ कर कपड़े सुखा लो,’’ और वह पंखा चला देता.
मालती बैठती नहीं खड़ेखड़े ही अपने कपड़े सुखाती. चोगले उस के बिलकुल पास आ कर सट कर खड़ा हो जाता और अपने बदन से उसे ढकता हुआ कहता, ‘‘तुम्हारे कपड़े तो बिलकुल पुराने हो गए हैं.’’
‘‘जी…’’ वह संकोच से कहती.
‘‘अब तो तुम्हें कुछ और कपड़ों की भी जरूरत पड़ती होगी?’’ मालती उस का मतलब नहीं समझती. बस, वह उस को देखती रहती.
वह एक कुटिल हंसी हंस कर कहता, ‘‘संकोच मत करना, मैं तुम्हारे लिए नए कपड़े ला दूंगा. वे वाले भी…’’
मालती की समझ में फिर भी नहीं आता. वह अबोध भाव से पूछती, ‘‘कौन से कपड़े…’’
चोगले उस के कंधे पर हाथ रख कर कहता, ‘‘देखो, अब तुम छोटी नहीं रही, बड़ी और समझदार हो रही हो. ये जो कपड़े तुम ने ऊपर से पहन रखे हैं, इन के नीचे पहनने के लिए भी तुम्हें कुछ और कपड़ों की जरूरत पड़ेगी, शायद जल्दी ही…’’ कहतेकहते उस का हाथ उस की गरदन से हो कर मालती के सीने की तरफ बढ़ता और वह शर्म और संकोच से सिमट जाती. इतनी समझदार तो वह हो ही गई थी.
चोगले की मेहनत रंग लाई. धीरेधीरे उस ने मालती को अपने रंग में रंगना शुरू कर दिया.
चोगले की मीठीमीठी बातों और लालच में मालती बहुत जल्दी फंस गई. घर का सूनापन भी चोगले की मदद कर रहा था और मालती की चढ़ती हुई जवानी. उस की मासूमियत और भोलेपन ने ऐसा गुल खिलाया कि मालती जवानी के पहले ही प्यार के सारे रंगों से वाकिफ हो गई थी.
तब मालती की मां ने उस में होने वाले बदलाव के प्रति उसे सावधान नहीं किया था, न उसे दुनियादारी समझाई थी, न मर्द के वेष में छिपे भेडि़यों के बारे में उसे किसी ने कुछ बताया था.
भेद तब खुला था जब उस का पेट बढ़ने लगा. सब से पहले उस की मां को पता चला था. वह उलटियां करती तो मां को शक होता, पर वह इतनी छोटी थी कि मां को अपने शक पर भी यकीन नहीं होता था. यकीन तो तब हुआ जब उस का पेट तन कर बड़ा हो गया.
मां ने मारपीट कर पूछा, तब बड़ी मुश्किल से उस ने चोगले का नाम बताया. बड़े लोगों की करतूत सामने आई, पर तब चोगले ने भी उस की मदद नहीं की थी और दुत्कार कर उसे अपने घर से भगा दिया था. बाद में एक नर्सिंगहोम में ले जा कर मां ने उस का पेट गिरवाया था.
अपना बुरा समय याद कर के मालती रो पड़ी. डर से उस का दिल कांप उठा. क्या समय उस की बेटी के साथ भी वही खिलवाड़ करने जा रहा था, जो उस के साथ हुआ था? गरीब लड़कियों के साथ ही ऐसा क्यों होता है कि वे अपना बचपन भी ठीक से नहीं बिता पातीं और जवानी के तमाम कहर उन के ऊपर टूट पड़ते हैं?
मालती ने अपनी बेटी पूजा को गले से लगा लिया. जोकुछ उस के साथ हुआ था, वह अपनी बेटी के साथ नहीं होने देगी. अपनी जवानी में तो उस ने बदनामी का दाग झेला था, मांबाप को परेशानियां दी थीं. यह तो केवल वह या उस के मांबाप ही जानते थे कि किस तरह उस का पेट गिरवाया गया था. किस तरह गांव जा कर उस की शादी की गई थी. फिर कई साल बाद कैसे वह अपने मर्द के साथ वापस मुंबई आई थी और अपने मांबाप के बगल की खोली में किराए पर रहने लगी थी.
आज उस का मर्द इस दुनिया में नहीं था. 4 बच्चे उस की और उस की बड़ी बेटी की कमाई पर जिंदा थे. पूजा के बाद 3 बेटे हुए थे, पर तीनों अभी बहुत छोटे थे. पिछले साल तक उस का मर्द फैक्टरी में हुए एक हादसे में जाता रहा.
पति की मौत के बाद ही मालती ने अपनी बेटी को घरों में काम करने के लिए भेजना शुरू किया था. उसे क्या पता था कि जो कुछ उस के साथ हुआ था, एक दिन उस की बेटी के साथ भी होगा.
जमाना बदल जाता है, लोग बदल जाते हैं, पर उन के चेहरे और चरित्र कभी नहीं बदलते. कल चोगले था, तो आज कांबले… कल कोई और आ जाएगा. औरत के जिस्म के भूखे भेडि़यों की इस दुनिया में कहां कमी थी. असली शेर और भेडि़ए धीरेधीरे इस दुनिया से खत्म होते जा रहे थे, पर इनसानी शेर और भेडि़ए दोगुनी तादाद में पैदा होते जा रहे थे.
मालती के पास आमदनी का कोई और जरीया नहीं था. मांबेटी की कमाई से 5 लोगों का पेट भरता था. क्या करे वह? पूजा का काम करना छुड़वा दे, तो आमदनी आधी रह जाएगी. एक अकेली औरत की कमाई से किस तरह 5 पेट पल सकते थे?
मालती अच्छी तरह जानती थी कि वह अपनी बेटी की जवानी को किसी तरह भी इनसानी भेडि़यों के जबड़ों से नहीं बचा सकती थी. न घर में, न बाहर… फिर भी उस ने पूजा को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटी, अगर तू मेरी बात समझ सकती है तो ठीक से सुन… हम गरीब लोग हैं, हमारे जिस्म को भोगने के लिए यह अमीर लोग हमेशा घात लगाए रहते हैं. इस के लिए वे तमाम तरह के लालच देते हैं. हम लालच में आ कर फंस जाते हैं और उन को अपना बदन सौंप देते हैं.
‘‘गरीबी हमारी मजबूरी है तो लालच हमारा शाप. इस की वजह से हम दुख और तकलीफें उठाते हैं.
‘‘हम गरीबों के पास इज्जत के नाम पर कुछ नहीं होता. अगर मैं तुझे काम पर न भेजूं और घर पर ही रखूं तब भी तो खतरा टल नहीं सकता. चाल में भी तो आवाराटपोरी लड़के घूमते रहते हैं.
‘‘अमीरों से तो मैं तुझे बचा लूंगी. पर इस खोली में रह कर इन गली के आवारा कुत्तों से तू नहीं बच पाएगी. खतरा सब जगह है. बता, तुझे दुनिया की गंदी नजरों से बचाने के लिए मैं क्या करूं?’’ और वह जोर से रोने लगी.
पूजा ने अपने आंसुओं को पोंछ लिया और मां का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मां, तुम चिंता मत करो. अब मैं किसी की बातों में नहीं आऊंगी. किसी का दिया हुआ कुछ नहीं लूंगी. केवल अपने काम से काम रखूंगी.
‘‘हां, कल से मैं कांबले के घर काम करने नहीं जाऊंगी. कोई और घर पकड़ लूंगी.’’
‘‘देख, हमारे पास कुछ नहीं है, पर समझदारी ही हमारी तकलीफों को कुछ हद तक कम कर सकती है. अब तू सयानी हो रही है. मेरी बात समझ गई है. मुझे यकीन है कि अब तू किसी के बहकावे में नहीं आएगी.’’
पूजा ने मन ही मन सोचा, ‘हां, मैं अब समझदार हो गई हूं.’
मालती अच्छी तरह जानती थी कि ये केवल दिलासा देने वाली बातें थीं और पूजा भी इतना तो जानती थी कि अभी तो वह जवानी की तरफ कदम बढ़ा रही थी. पता नहीं, आगे क्या होगा? बरसात का पानी और लड़की की जवानी कब बहक जाए और कब किधर से किधर निकल जाए, किसी को पता नहीं चलता.
पूजा अभी छोटी थी. जवानी तक आतेआते न जाने कितने रास्तों से उसे गुजरना पड़ेगा… ऐसे रास्तों से जहां बाढ़ का पानी भरा हुआ है और वह अपनी पूरी होशियारी और सावधानी के साथ भी न जाने कब किस गड्ढे में गिर जाए.
वे दोनों ही जानती थीं कि जो वे सोच रही थीं, वही सच नहीं था या जैसा वे चाह रही हैं, उसी के मुताबिक जिंदगी चलती रहेगी, ऐसा भी नहीं होने वाला था.
दिन बीतते रहे. मालती अपनी बेटी की तरफ से होशियार थी, उस की एकएक हरकत पर नजर रखती. उन दोनों के बीच में बात करने का सिलसिला कम था, पर बिना बोले ही वे दोनों एकदूसरे की भावनाओं को जानने और समझने की कोशिश करतीं.
पर जैसेजैसे बेटी बड़ी हो रही थी, वह और ज्यादा समझदार होती जा रही थी. अब वह बड़े सलीके से रहने लगी थी और उसे अपने भावों को छिपाना भी आ गया था.
इधर काफी दिनों से पूजा के रंगढंग में काफी बदलाव आ गया था. वह अपने बननेसंवरने में ज्यादा ध्यान देती, पर इस के साथ ही उस में एक अजीब गंभीरता भी आ गई थी. ऐसा लगता था, जैसे वह किन्हीं विचारों में खोई रहती हो. घर के काम में मन नहीं लगता था.
मालती ने एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘बेटी, मुझे डर लग रहा है. कहीं तेरे साथ कुछ हो तो नहीं गया?’’
पूजा जैसे सोते हुए चौंक गई हो, ‘‘क्या… क्या… नहीं तो…’’
‘‘मतलब, कुछ न कुछ तो है,’’ उस ने बेटी के सिर पर हाथ रख कर कहा.
पूजा के मुंह से बोल न फूटे. उस ने अपना सिर झुका लिया. मालती समझ गई, ‘‘अब कुछ बताने की जरूरत नहीं है. मैं सब समझ गई हूं, पर एक बात तू बता, जिस से तू प्यार करती है, वह तेरे साथ शादी करेगा?’’
पूजा की आंखों में एक अनजाना सा डर तैर गया. उस ने फटी आंखों से अपनी मां को देखा. मालती उस की आंखों में फैले डर को देख कर खुद सहम गई. उसे लगा, कहीं न कहीं कोई बड़ी गड़बड़ है.
डरतेडरते मालती ने पूछा, ‘‘कहीं तू पेट से तो नहीं है?’’
पूजा ने ऐसे सिर हिलाया, जैसे जबरदस्ती कोई पकड़ कर उस का सिर हिला रहा हो. अब आगे कहने के लिए क्या बचा था.
मालती ने अपना माथा पीट लिया. न वह चीख सकती थी, न रो सकती थी, न बेटी को मार सकती थी. उस की बेबसी ऐसी थी, जिसे वह किसी से कह भी नहीं सकती थी.
जो मालती नहीं चाहती थी, वही हुआ. उस की जिंदगी में जो हो चुका था उसी से बेटी को आगाह किया था. ध्यान रखती थी कि बेटी नरक में न गिर जाए. बेटी ने भी उसे भरोसा दिया था कि वह कोई गलत कदम नहीं उठाएगी, पर जवानी की आग को दबा कर रख पाना शायद उस के लिए मुमकिन नहीं था.
मरी हुई आवाज में उस ने बस इतना ही पूछा, ‘‘किस का है यह पाप…?’’
पूजा ने पहले तो नहीं बताया, जैसा कि आमतौर पर लड़कियों के साथ होता है. जवानी में किए गए पाप को वे छिपा नहीं पातीं, पर अपने प्रेमी का नाम छिपाने की कोशिश जरूर करती हैं. हालांकि इस में भी वे कामयाब नहीं होती हैं, मांबाप किसी न किसी तरीके से पूछ ही लेते हैं.
पूजा ने जब उस का नाम बताया, तो मालती को यकीन नहीं हुआ. उस ने चीख कर पूछा, ‘‘तू तो कह रही थी कि कांबले के यहां काम छोड़ देगी?’’
‘‘मां, मैं ने तुम से झूठ बोला था. मैं ने उस के यहां काम करना नहीं छोड़ा था. मैं उस की मीठीमीठी और प्यारी बातों में पूरी तरह भटक गई थी. मैं किसी और घर में भी काम नहीं करती थी, केवल उसी के घर जाती थी.
‘‘वह मुझे खूब पैसे देता था, जो मैं तुम्हें ला कर देती थी कि मैं दूसरे घरों में काम कर के ला रही हूं, ताकि तुम्हें शक न हो.’’
‘‘फिर तू सारा दिन उस के साथ रहती थी?’’
पूजा ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. ‘‘मरी, हैजा हो आए, तू जवानी की आग बुझाने के लिए इतना गिर गई. अरे, मेरी बात समझ जाती और तू उस के यहां काम छोड़ कर दूसरों के घरों में काम करती रहती, तो शायद किसी को ऐसा मौका नहीं मिलता कि कोई तेरे बदन से खिलवाड़ कर के तुझे लूट ले जाता. काम में मन लगा रहता है, तो इस काम की तरफ लड़की का ध्यान कम जाता है. पर तू तो बड़ी शातिर निकली… मुझ से ही झूठ बोल गई.’’
पूजा अपनी मां के पैरों पर गिर पड़ी और सिसकसिसक कर रोने लगी, ‘‘मां, मैं तुम्हारी गुनाहगार हूं, मुझे माफ कर दो. एक बार, बस एक बार… मुझे इस पाप से बचा लो.’’
मालती गुस्से में बोली, ‘‘जा न उसी के पास, वह कुछ न कुछ करेगा. उस को ले कर डाक्टर के पास जा और अपने पेट के पाप को गिरवा कर आ…’’
‘‘मां, उस ने मना कर दिया है. उस ने कहा है कि वह पैसे दे देगा, पर डाक्टर के पास नहीं जाएगा. समाज में उस की इज्जत है, कहीं किसी को पता चल गया तो क्या होगा, इस बात से वह डरता है.’’
‘‘वाह री इज्जत… एक कुंआरी लड़की की इज्जत से खेलते हुए इन की इज्जत कहां चली जाती है? मैं क्या करूं, कहां मर जाऊं, कुछ समझ में नहीं आता,’’ मालती बोली.
मालती ने गुस्से और नफरत के बावजूद भी पूजा को परे नहीं किया, उसे दुत्कारा नहीं. बस, गले से लगा लिया और रोने लगी. पूजा भी रोती जा रही थी.
दोनों के दर्द को समझने वाला वहां कोई नहीं था… उन्हें खुद ही हालात से निबटना था और उस के नतीजों को झेलना था.
मन थोड़ा शांत हुआ, तो मालती उठी और कपड़ेलत्ते व दूसरा जरूरी सामान समेट कर फटेपुराने बैग में भरने लगी. बेटी ने उसे हैरानी से देखा. मां ने उस की तरफ देखे बिना कहा, ‘‘तू भी तैयार हो जा और बच्चों को तैयार कर ले. गांव चलना है. यहां तो तेरा कुछ हो नहीं सकता. इस पाप से छुटकारा पाना है. इस के बाद गांव में रह कर ही किसी लड़के से तेरा ब्याह कर देंगे.’’