Hindi Story: अनोखा मिलन

Hindi Story: शाम का समय था. मैं ग्राहकों की भीड़ में उलझ हुआ था कि अचानक एक लाल रंग की चमचमाती कार मेरी दुकान के सामने आ कर रुकी. मैं ने ग्राहकों को पिज्जा देते हुए जब उस गाड़ी पर नजर डाली, तो मेरी आंखें कुछ देर के लिए वहां टिकी रह गईं.

मेरी नजरें वहां टिकती भी क्यों न, उस गाड़ी में से 3 लड़कियां जींसटीशर्ट में बाहर निकली थीं, तो वहीं एक खूबसूरत हसीना सलवारसूट पहने उन के साथ मेरी दुकान की तरफ बढ़ती हुई आ रही थी.

उस लड़की की बड़ीबड़ी नीले रंग की आंखें, लहराते हुए सुनहरे घने लंबे बाल, सुर्ख गाल और पतलेपतले गुलाबी होंठ देख कर तो मैं पागल ही हो गया था.

यों तो मेरी दुकान पर रोजाना दर्जनों लड़कियां पिज्जा खाने आती रहती थीं, पर उन के चेहरे पर मैं ने कभी ऐसी कशिश नहीं देखी थी, जो इस लड़की के चेहरे में थी.

लाल रंग के सलवारसूट में तो वह लड़की कयामत ही ढा रही थी. उस ने भले ही अपने उभारों पर दुपट्टा डाल रखा था, पर उस की उठी हुई मदमस्त छाती उस के हुस्न पर चार चांद लगा रही थी.

मैं ने अपनी जिंदगी में इतनी हसीन और कमसिन लड़की आज तक नहीं देखी थी. उसे देख कर ऐसा लग रहा था मानो आसमान से कोई हूर उतर कर जमीन पर आ गई हो.

मैं न चाहते हुए भी उस के ऊपर से अपनी नजरें नहीं हटा पा रहा था. मैं अभी उसे एकटक देख ही रहा था कि अचानक उस लड़की ने बड़ी मीठी आवाज में कहा, ‘‘ऐ मिस्टर, जरा 4 तीखी चटनी वाले पिज्जा जल्दी से दो.’’

जैसे वह लड़की खूबसूरती की मलिका थी, उस से कहीं ज्यादा उस की मीठी आवाज थी.

मैं उस लड़की की खूबसूरती और मीठी आवाज में इतना खो गया था कि मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि कब मेरा हाथ ओवन के चिमटे से टकरा गया और मैं ने ‘आह’ करते हुए अपना हाथ झटका.

तभी वह खूबसूरती की मलिका हंसते हुए बोली, ‘‘ऐ मिस्टर, जितना ध्यान तुम मेरे ऊपर दे रहे हो, उतना ध्यान अगर अपने काम पर देते तो यह हाथ नहीं जलता.’’

हंसते हुए उस लड़की के मोती जैसे दांत उस की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे.

मैं तो पहली ही नजर में उस का दीवाना हो गया था. अब उस की हंसी ने मुझे और भी उस का दीवाना बना दिया था.

उस लड़की ने मुझ से क्या कहा था, मुझे इस का कोई होश ही नहीं रहा था.

मैं अपने काम में बिजी हो कर भी उसे अपनी तिरछी नजरों से देख रहा था, जो अपनी सहेलियों से हंसहंस कर बातें कर रही थी.

तभी वह लड़की उठी और मेरे पास आई और बोली, ‘‘ऐ मजनू की औलाद, पहले कभी लड़की नहीं देखी क्या?’’

मैं शरमा कर कर बोला, ‘‘जी मैडम, देखी तो बहुत हैं, पर आप जैसी खूबसूरत आज तक देखने को नहीं मिली. आप को देख कर तो ऐसा लग रहा है जैसे परियों के देश से कोई परी जमीन पर उतर कर मेरी दुकान में आ गई हो.’’

तभी वह लड़की गुस्से में बोली, ‘‘मैं कोई परीवरी नहीं हूं और न ही मेरा नाम मैडम है. हिना नाम है मेरा… हिना… समझे…’’

हिना के गुस्से में भी मुसकराहट शामिल थी. मैं ने भी मुसकरा कर कहा, ‘‘जी हिनाजी, नाम बताने का शुक्रिया…’’

‘‘मैं नाम बताने नहीं आई हूं. हमारा और्डर दो जल्दी… मुझे बहुत तेज भूख लगी है.’’

मैं ने फौरन 4 पिज्जा बनाए और उन में कुछ ज्यादा ही मक्खन डाल कर फौरन उन की टेबल पर सर्व कर दिया.

वे चारों पिज्जा खाने लगीं और आपस में मेरे बनाए पिज्जा की तारीफ करती रहीं.

हिना पिज्जा खा रही थी और अपनी तिरछी निगाहों से मुझे देख रही थी. जब भी मेरी निगाह उस से टकराती, मैं मुसकरा कर उसे अपने प्यार का इजहार करने की कोशिश करता.

कुछ देर बाद हिना अपनी एक सहेली के साथ उठ कर मेरे पास आई और बोली, ‘‘कितना पैसा हुआ मिस्टर?’’

मैं हंसते हुए बोला, ‘‘हिनाजी, मेरा नाम मिस्टर नहीं, बल्कि शान है. आप मुझे इसी नाम से पुकारें.’’
हिना ने कहा, ‘‘अच्छा शानजी, कितना पैसा हुआ?’’

मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘400 रुपए.’’

हिना ने पर्स से 500 का नोट निकाला और बोली, ‘‘रख लो… तुम्हारे पिज्जा का तो जवाब ही नहीं… यह हमें बहुत पसंद आया.’’

मैं बोला, ‘‘शुक्रिया. पर, मैं वही कीमत लेता हूं, जो मेरा हक है. ये लीजिए आप के 100 रुपए.’’

जब मैं ने हिना के हाथ में 100 रुपए दिए, तो उस के नाजुक हाथ की छुअन पा कर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा. दूध की तरह सफेद हाथ… इतने कोमल कि दिल किया चूम लूं.

जब हिना अपनी गाड़ी में बैठ रही थी, तो उस ने एक नजर फिर से मेरे ऊपर डाली, तो मैं ने मुसकराते हुए अपने उस हाथ को चूम लिया.

यह देख कर हिना भी मुसकराते हुए गाड़ी में बैठ कर चली गई.

रातभर हिना का खूबसूरत चेहरा मेरी आंखों के सामने घूमता रहा. मैं नींद से कोसों दूर करवट बदलता रहा और इस उम्मीद में सुबह होने का इंतजार करता रहा कि आज फिर हिना मेरी दुकान पर पिज्जा खाने जरूर आएगी, पर सुबह से शाम हो गई और मैं हिना का इंतजार करता रहा, पर वह नहीं आई.

मैं उदास हो कर एक तरफ बैठ गया. न जाने क्यों आज दुकान पर ग्राहकी भी कम थी और मेरा मन भी दुकान पर नहीं लग रहा था.

मैं हिना के बारे में सोचसोच कर मायूस हो रहा था कि तभी हिना की गाड़ी मेरी दुकान के सामने आ कर रुकी.

मैं खुशी से झूम उठा और खड़े हो कर हिना का गाड़ी से बाहर निकलने का इंतजार करने लगा.

तभी कुछ देर बाद हिना गुलाबी रंग का सलवारसूट पहन कर मेरे सामने आई और बोली, ‘‘मुझे 3 पिज्जा जल्दी से पार्सल कर दो.’’

हिना के कहते ही मैं पिज्जा बनाने में लग गया. तब तक वह मेरे काउंटर के सामने खड़ी रही.

कुछ देर बाद वह खुद ही बोली, ‘‘लगता है कि आज रात तुम सो नहीं पाए. तुम्हारी आंखें सूजी हुई सी लग
रही हैं.’’

मैं हंसते हुए बोला, ‘‘क्या बताऊं हिनाजी… जब से तुम्हें देखा है, चारों तरफ तुम्हारा ही चेहरा दिखाई देता है.

मैं ने पूरी रात करवट बदलते हुए गुजारी है.’’

हिना ने धीरे से पूछा, ‘‘ऐसा क्या है मेरे चेहरे में…?’’

मैं बोला, ‘‘क्या नहीं है आप के चेहरे में… जिस ने मुझे आप का दीवाना बना दिया है. आप जैसी खूबसूरत

हसीन लड़की मैं ने अपनी जिंदगी में नहीं देखी है. मैं तो आप के हुस्न का दीवाना हो गया हूं.’’
हिना हंसते हुए बोली, ‘‘तुम पागल हो गए हो…’’

मैं ने कहा, ‘‘आप ने मुझे पागल बना दिया है. आप की आवाज, आप की खूबसूरती, आप का हुस्न… आप को देख कर ऐसा लगता ही नहीं कि आप कोई इनसान हो. मुझे तो आप परी देश से आई हुई कोई परी लगती हो.’’

हिना हंसते हुए बोली, ‘‘आप की बातों को सुन कर तो यहां से जाने का ही दिल नहीं करता.’’

मैं ने भी फौरन जवाब देते हुए कहा, ‘‘आप मत जाओ. मेरे दिल में तो बस चुकी हो, मेरी जिंदगी में भी आ जाओ.’’

हिना ने कहा, ‘‘अच्छा, तो आप मुझे अपनी जिंदगी में शामिल करना चाहते हो… पर, उस के लिए तुम्हें मुझ से निकाह करना पड़ेगा… समझे?’’

‘‘मैं आप से निकाह करने को तैयार हूं. बस, आप की हां का इंतजार था.’’

‘‘ठीक है, मैं सोच कर बताती हूं.’’

मैं ने हिना का मोबाइल नंबर ले लिया. अब हम दोनों घंटों प्यारभरी बातें करते, शादी के सपने देखते और खूब घूमतेफिरते.

मेरी और हिना की प्रेम कहानी खूब चल रही थी, फिर एक दिन वह वक्त भी आ गया, जब हमारे प्यार की खबर हिना के अब्बू को लग गई.

हिना के अब्बू उस इलाके के अमीर लोगों में शुमार थे और वे किसी भी कीमत पर हिना की शादी मुझ से करने को तैयार नहीं थे.

हिना मुझ से बहुत मुहब्बत करती थी, इसलिए उस ने मुझ से वादा किया कि वह शादी करेगी तो सिर्फ मुझ से, वरना अपने अब्बू का घर छोड़ कर मेरे पास आ जाएगी.

आज हिना अपने अब्बू से हमारी शादी की बात करने वाली थी. मेरा दिल बहुत घबरा रहा था, क्योंकि हिना के अब्बू कभी भी मुझ जैसे गरीब लड़के से अपनी बेटी की शादी के लिए राजी न होते और हिना उन का सामना कैसे करेगी, यह सोच कर मैं बहुत परेशान था.

मुझे हिना और उस के अब्बू के बीच क्या बात हुई, इस का तो कुछ पता न चला, पर 3 दिन बाद हिना के अब्बू ने दुकान मालिक से कह कर मेरी दुकान जरूर खाली करा दी और मेरा कामधंधा बंद हो गया.

उस के कुछ दिन बाद हिना के अब्बू एक सुनसान जगह पर 4-5 लोगों के साथ आए और मुझ से बोले, ‘‘तेरी भलाई इसी में है कि तू यह शहर छोड़ कर कहीं दूसरी जगह चला जा.’’

मैं ने इनकार किया, तो उन के साथ आए लोगों ने मेरी जम कर पिटाई की, फिर वे बोले, ‘‘देख, हिना ने अपनी मरजी से शादी कर ली है.’’

वे मुझे हिना की शादी का फोटो दिखाते हुए बोले, ‘‘अब उसे भूल जा और उस की जिंदगी से दूर चला जा. वैसे भी तुझे इस एरिया में कोई दुकान नहीं देगा और तू ने अगर हिना से मिलने की कोशिश की तो तेरे लिए अच्छा नहीं होगा.’’

हिना की शादी की तसवीर देख कर मैं पूरी तरह टूट चुका था. मैं हताश हो कर अपने एक दोस्त के पास दूसरे शहर चला गया और उस के कमरे पर रहने लगा.

मेरा अब कुछ काम करने में दिल नहीं लगता था. जिंदगी थम सी गई थी. न किसी से बोलना, न कोई काम और न हंसी… सब गायब हो चुका था.

मेरे दोस्त ने मुझे काफी समझाया और कहा, ‘‘अगर तुम यों ही अपनी जिंदगी बरबाद करते रहोगे, तो फिर
कैसे चलेगा…

‘‘मेरे दोस्त, हिम्मत मत हारो. जिंदगी में तो सुखदुख लगा ही रहता है. अगर तुम्हारा यहां काम करने को मन नहीं करता, तो मेरा एक दोस्त दुबई में रहता है. तुम उस के पास चले जाओ. मैं सब इंतजाम कर देता हूं. तुम अपनी मुहब्बत को अब भूल जाओ. वह अब किसी और की अमानत बन चुकी है.’’

उस की ये बातें सुन कर मेरी आंखों से खुद ब खुद आंसू बहने लगे और मैं ने उस से कहा, ‘‘ठीक है, मैं दुबई चला जाता हूं, पर मेरे दोस्त, मुझे मेरी मुहब्बत को भूलने के लिए मत कहो.’’

मेरे दोस्त ने मेरे लिए अपने एक खास दोस्त से बातचीत कर ली. उस का दुबई में होटल था, जहां उस ने मेरी नौकरी की बात पक्की कर ली.

दुबई के लिए एक हफ्ते बाद की टिकट हो चुकी थी. मैं ने अब दुबई जाना ही बेहतर समझा.

अगले दिन मैं जब सो कर उठा, तो मेरे दोस्त को तेज बुखार था. मैं उसे सहारा दे कर पास के दवाखाने पर ले गया. डाक्टर ने कुछ जांच करने के बाद मेरे दोस्त को एक हफ्ता आराम करने की हिदायत दी.

हम दवा ले कर घर आ गए. अभी एक दिन ही हुआ था कि उस की तबीयत में कुछ सुधार हुआ, तो वह काम पर जाने के लिए उठा. यह देख कर मैं ने उसे काम पर जाने से रोक लिया और बोला, ‘‘तुम्हारी हालत सही नहीं है. तुम अभी आराम करो.’’

मेरा दोस्त बोला, ‘‘यार, अगर मैं काम पर नहीं जाऊंगा, तो उस से मेरे ग्राहक तो टूटेंगे ही, साथ ही एक बेवा, जो अपने एक साल के बेटे के साथ टूटेफूटे घर में रहती है, उस की भी कमाई नहीं होगी.’’

मैं हैरान हो कर बोला, ‘‘क्या मतलब…? कौन बेवा…?’’

‘‘अरे भाई, यहां पास की ही एक बस्ती में एक बेवा घर पर खाना बना कर औनलाइन बेचती है, जिस की डिलीवरी मैं करता हूं.’’

मैं उस से बोला, ‘‘ठीक है, आज मैं डिलीवरी करता हूं. बस, तुम अच्छी तरह से आराम करो.’’

मैं ने उस से वह पता लिया, जहां से मुझे खाना लेना था और जहां खाना पहुंचाना था.

मैं जब खाना लेने वाले पते पर पहुंचा और कुंडी खटखटाई तो अंदर से एक औरत फटेपुराने कपड़े पहने बाहर आई और बोली, ‘‘जी, आप कौन…?’’

मैं ने जैसे ही उस औरत पर नजर डाली, मैं हैरान रह गया. वह औरत कोई और नहीं, मेरी हिना थी.

हिना ने भी मुझे पहचान लिया था और बोली, ‘‘शान, तुम यहां कैसे…? आओ, अंदर आओ.’’

मैं हिना के साथ उस के घर के अंदर पहुंच गया और उस से पूछने लगा, ‘‘तुम ने तो अपनी मरजी से किसी अमीर लड़के से शादी कर ली थी, फिर तुम्हारी यह हालत कैसे हुई?’’

हिना ने रोते हुए बताया, ‘‘मैं तुम से शादी करने के लिए अपने अब्बू से लड़ कर जैसे ही घर से बाहर निकली कि अचानक उन के सीने में तेज दर्द शुरू हो गया और वे ‘धड़ाम’ से जमीन पर गिर पड़े.

‘‘मैं ने जल्दी से उन्हें उठाया और एंबुलैंस बुला कर उन्हें अस्पताल ले गई, जहां डाक्टर ने कुछ देर उन का ट्रीटमैंट करने के बाद मुझे बताया, ‘तुम्हारे अब्बू को हार्टअटैक आया है. इन की तबीयत काफी नाजुक है.

हालांकि, अब वे खतरे से बाहर हैं, पर यह ध्यान रखना कि उन्हें किसी भी तरह की कोई तकलीफ न हो और न ऐसी बात करना, जिसे सोच कर उन की तबीयत फिर से खराब हो जाए. वैसे, आप उन से मिल सकती हैं.’

‘‘मैं जैसे ही अपने अब्बू से मिली, उन्होंने मुझे देख कर मुंह फेर लिया. मैं सम?ा गई कि मेरी ही वजह से उन की यह हालत हुई है. उन्हें खुश रखने के लिए मैं ने उन से कहा कि आप नाराज मत होना, मैं वही करूंगी जो आप कहोगे.

‘‘मेरी बात सुन कर उन का चेहरा खिल उठा और मुसकराते हुए वे बोले, ‘तो फिर मैं जहां तुम्हारी शादी करूंगा, तुम्हें मंजूर होगा.’

‘‘मैं ने ‘हां’ में सिर हिला दिया और अपनी खुशी को अपने अब्बू की खुशी की खातिर बलिदान कर दिया.

‘‘उस के कुछ ही दिन बाद मेरे अब्बू ने मेरी शादी इस उम्मीद में कर दी कि बड़े घराने में उन की बेटी को सारी खुशियां मिलेंगी.

‘‘पर, उन का ऐसा सोचना गलत साबित हुआ. शादी के एक साल बाद ही एक हादसे में मेरे शौहर इस दुनिया से चल बसे.

‘‘सुसराल वालों ने यह कह कर मुझे और मेरे मासूम बेटे को घर से निकाल दिया कि इस मनहूस औरत की वजह से ही उन के जवान बेटे की मौत हुई है.

‘‘वहां से निकाले जाने के बाद मैं ने अपने अब्बू के घर जाना बेहतर नहीं समझा, क्योंकि मेरी बरबादी की वजह कुछ हद तक वे ही थे, जिन्होंने पैसे के लालच में मेरे प्यार को मुझ से जुदा कर दिया था.

‘‘उस के बाद मैं ने यह घर किराए पर ले लिया और जोकुछ बचत थी, उस से खाने का छोटा सा औनलाइन बिजनैस शुरू कर लिया.’’

मुझे हिना की बातें सुन कर बहुत दुख हुआ. तभी उस का छोटा सा बेटा मेरी गोद में आ कर बैठ गया, जिसे मैं प्यार करने लगा. यह देख कर हिना की आंखों के आंसू रुक गए और उस के चेहरे पर एक मुसकान दिखाई दी.

फिर हिना ने मुझ से पूछा, ‘‘तुम कहां थे इतने दिन और शादी वगैरह की या नहीं? कितने बच्चे हैं तुम्हारे?’’

मैं ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे सिवा मैं भला किसी और से शादी कैसे कर सकता था? मेरे रोमरोम में तो तुम बसी थी.’’

‘‘तुम्हारी शादी के बाद तुम्हारे अब्बू ने मेरी पिज्जा की दुकान बंद करा दी और अपनी ताकत के बल पर मुझे वहां कोई दुकान न लेने दी. उन का इस पर भी पेट न भरा, तो उन्होंने कुछ गुंडों से मेरी पिटाई कराई और तुम्हारा शादी का फोटो दिखाते हुए मु?ो यह शहर छोड़ कर जाने की धमकी दे डाली.

‘‘उस के बाद मैं इस शहर में अपने एक दोस्त के पास आ गया. कामधंधा करने को मन नहीं करता था, बस यों ही घर में पड़ा रहता और तुम्हें याद करता रहता, तुम्हारी यादों में तड़पता रहता था.

‘‘इसी तरह 2 साल निकल गए. मेरे दोस्त ने दुबई में मेरे लिए काम तलाश लिया और अब मैं ने वहां जाने का इरादा कर लिया है.

‘‘पिछले 2 दिन से उस दोस्त की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब थी. उसे डाक्टर ने आराम के लिए बोला था, पर वह जबरदस्ती काम पर आना चाहता था, तो मैं ने उसे आराम करने के लिए कहा और खुद उस के काम के लिए निकल पड़ा.

‘‘आज पहली बार मैं काम के लिए निकला, तो मेरी मुलाकात तुम से हो गई और हमारा यह मिलन एक अनोखा मिलन बन गया.’’

मैं ने हिना का हाथ अपने हाथ में पकड़ते हुए कहा, ‘‘अब तो तुम भी गरीब हो गई हो, अब तुम भी मेरे जैसी बन गई हो, अब तो तुम से शादी करने से मुझे कोई नहीं रोक सकेगा. अब हमारे बीच की अमीरी की दीवार ढह गई है.’’

इतना सुनते ही हिना मेरे गले से लग गई और बोली, ‘‘वाकई, यह मिलन एक अनोखा मिलन है.’’

मैं ने उसे अपनी बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘अब तुम्हारी और तुम्हारे बेटे की जिम्मेदारी मेरी हुई.’’

यह सुन कर हिना की आंखों में आंसू आ गए और वह मेरे गले से लगते हुए बोली, ‘‘शादी के बाद तुम्हें मेरे लिए पिज्जा बनाना पड़ेगा… समझे?’’ कहते हुए हिना हंसने लगी.

हिना की बात सुन कर मुझे भी हंसी आ गई. मैं ने उस से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे लिए पिज्जा की पूरी दुकान ही खोल लूंगा.’’

इस तरह हिना का और मेरा अनोखा मिलन हो गया और हम दोनों ने शादी कर ली.

Hindi Story: मोची का बेटा

Hindi Story: ‘‘कहो राजप्रसाद, कैसे हो?’’

‘‘आओ दिनेश भैया, बैठो. इस बार तो बहुत दिनों के बाद आए हो. बताइए भैया, कैसे आना हुआ?’’ राजप्रसाद ने मुसकराते हुए पूछा.

मैं ने उस की सामान की पेटी पर बैठते हुए कहा, ‘‘राजप्रसाद, तुम्हारे पास कोई किस काम के लिए आ सकता है? देखना, जरा इस सैंडल पर पौलिश कर देना.’’

राजप्रसाद ने सैंडल ले ली और मु झे पहनने के लिए चप्पल दे दी.

‘‘बस भैया, ये जूते टांक दूं और फिर मैं आप की सैंडल पर पौलिश करता हूं.’’

‘‘हां, राजप्रसाद, मु झे कोई जल्दी नहीं है. आराम से कर देना,’’ मैं ने सहजता से कहा.

राजप्रसाद उस जूते को गांठने में लग गया और मैं अपने विचारों में खो गया.

राजप्रसाद को मैं कई सालों से जानता था. वह न जाने कितने सालों से सड़क के किनारे इसी नीम के पेड़ के नीचे बैठा अपना मोची का काम करता आ रहा है.

बिना दीवारों और बिना छत की पेड़ की छांव ही उस की खुली दुकान है. इस दुकान पर कोई भी बिना रोकेटोके आ सकता है.

पेड़ की छांव पृथ्वी की घूर्णन गति से घूमती हुई सुबह से शाम तक अपना पाला बदल देती है, इसलिए राजप्रसाद ने एक लोहे की छड़ को धरती के सीने में गाड़ रखा है और उस पर एक बड़ी छतरी को बांध कर अपनी दुकान का शामियाना तान रखा है. चेहरे पर हरदम मुसकान उस की खुशहाल जिंदगी की गवाह है.

मेहनत के पसीने से भीगी उस की बनियान उस की श्रमशक्ति की खास पहचान है. उस की ईमानदारी और मेहनत देख कर मन में अपनेआप ही इज्जत का भाव पैदा होता है.

थोड़ी देर के बाद दिनेश ने पूछा, ‘‘राजप्रसाद, यहां बैठते हुए तुम्हें कितने साल हो गए?’’

‘‘अरे भैया, बस ये ही तकरीबन 30-35 साल.’’

‘‘एक लंबा अरसा हो गया फिर तो राजप्रसाद. तुम ने तो यहां की दुनिया को खूब बदलते देखा होगा, क्यों?’’

‘‘हां भैया, इतने अरसे में तो यहां की पूरी दुनिया ही बदल गई. सामने एकमंजिला दुकानें थीं, अब देखो, यहां बहुमंजिला इमारत खड़ी है. किराएदार, मकान मालिक, दुकान मालिक सब बदल गए.

‘‘पहले यह दुकान अखबारों और पत्रिकाओं की दुकान हुआ करती थी. यहां नौकरी के फार्म खूब बिका करते थे. जब से चीजें औनलाइन हुई हैं, यह दुकान स्टेशनरी और स्कूल की किताबों की दुकान बन कर रह गई.’’

दुनियादारी की बातों से हट कर कुछ सोचते हुए मैं ने कहा, ‘‘अच्छा राजप्रसाद, अगर बुरा न मानो तो एक बात पूछ लूं तुम से…’’

‘‘अरे भैया, बुरा क्यों मानेंगे? आप एक नहीं, दो बातें पूछो,’’ राजप्रसाद ने बड़े विश्वास के साथ कहा.
तब मैं ने थोड़ा हिचकिचाते हुए पूछा, ‘‘क्या इस मोचीगीरी के काम से तुम्हारा घरखर्च निकल जाता है?’’

‘‘अरे भैया, आप खर्चे की बात कर रहे हो, इसी की आमदनी से मैं ने अपना मकान बना लिया है. 2 बेटियों को पढ़ालिखा कर उन की अच्छे परिवारों में शादी कर दी है.

‘‘मेरी एक बेटी तो सरकारी मास्टरनी है, सरकारी. दूसरी बेटी भी शादी के बाद पीएचडी कर रही है.’’

‘‘अरे वाह राजप्रसाद. तुम ने तो कमाल कर दिया. मैं तो सोचता था कि इस काम से तुम्हारे घर का खर्चा भी बड़ी मुश्किल से निकलता होगा.’’

‘‘नहीं भैया, ऐसा कुछ नहीं है. मोचीगीरी में इतना काम है कि संभाले नहीं संभलता. लोग तो यह सम झते हैं कि हमारे पास केवल जूतेचप्पल टांकने और उन पर पौलिश करने का काम भर है, लेकिन हमारे पास इस के अलावा भी किसानों, दुकानदारों और यहां तक कि फैक्टरियों तक से चमड़े का सामान सिलाई के लिए आता है.’’

‘‘ये सब चीजें तो राजप्रसाद हम जैसों के खयाल में ही नहीं आती हैं,’’ दिनेश बोला.

‘‘भैया, दुनिया की सोच बदलने में जमाने गुजर जाते हैं. आज भी हमें सदियों पुराने मोची की ही नजर से देखा जाता है. वही फटेपुराने कपड़ों वाला, टूटेफूटे मकान में रहने वाला,’’ राजप्रसाद की बात को सुन कर मैं भी सोच में पड़ गया.

मैं ने भी वही सदियों पुरानी सोच पाल रखी थी. मैं ने सच स्वीकारते हुए कहा, ‘‘राजप्रसाद, तुम ने तो आज मेरी भी सोच बदल दी. मेरी सोच भी दूसरों की ही तरह थी. अच्छा, तुम्हारे क्या कोई बेटा भी है?’’

‘‘हां भैया, एक बेटा भी है. उस ने कुछ दिन पहले ही एमबीए किया है और नोएडा में एक कंपनी में उस की नईनई नौकरी लगी है. अभी उस का 3 लाख रुपए से कुछ ज्यादा का सालाना पैकेज है. इतना तो मैं यहां बैठेबैठे कमा लेता हूं.’’

‘‘तो फिर राजप्रसाद, तुम ने अपने बेटे को इसी काम में क्यों नहीं लगाया?’’

‘‘अब देखो भैया, मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूं, हमारे यहां कामधंधे को ले कर लोगों की सोच बड़ी खराब है. मोचीगीरी के काम को सब छोटा काम सम झते हैं. खुद मैं भी इसी सोच का शिकार हूं.

‘‘वह कंपनी में नौकरी कर रहा है, तो उस की इज्जत है. लेकिन दुनिया वाले नहीं सम झते हैं कि वह दूसरों की नौकरी ही कर रहा है. मैं खुद के धंधे का मालिक हूं, लेकिन मेरा कोई सम्मान नहीं. भैया, मैं तो बस मोची हूं, मोची.’’

राजप्रसाद की बात सच्ची, पर दमदार थी. उस की पते की बात पर मैं ने कहा, ‘‘राजप्रसाद, तुम बिलकुल सही कहते हो. कोई कुछ भी कहे, अपना काम अपना होता है और दूसरों की नौकरी बजाने से लाख बेहतर होता है.’’

‘‘है न भैया, मैं ने तो अपने बेटे से भी यही कहा था कि इसी जमेजमाए काम को संभाल ले. अगर यहां बैठने में लाज आती है, तो दुकान खुलवाए देता हूं, वहीं 2 लड़के रख लेना.’’

‘‘तो फिर उस ने क्या जवाब दिया राजप्रसाद?’’

‘‘कहने लगा, पापा, आप भी कैसी बातें करते हो? मैं एमबीए कर के दूसरों की जूतियां टांकूंगा क्या? आज छोटी पोस्ट पर हूं, कल बड़ी पोस्ट मिलेगी. आज छोटा पैकेज है, कल बड़ा पैकेज मिलेगा. मु झे भी लगा, बेटा कह तो सही रहा है.’’

‘‘हां, राजप्रसाद. तुम्हारे बेटे ने एमबीए किया है, उस की भी अपनी सोच, अपना स्वाभिमान है.’’

अब तक राजप्रसाद ने मेरी सैंडल पौलिश कर दी थी. मैं ने उस से विदा ली.

फिर बहुत लंबे समय तक उधर जाना नहीं हुआ. इस के बाद जब एक दिन उधर जाना हुआ तो मु झे अचानक से राजप्रसाद की याद आई. उस से मिलने को न जाने क्यों मन आतुर था. बहाना वही पुराना, लेकिन इस बार सैंडल नहीं जूतों पर पौलिश कराना था.

लेकिन आज नीम अकेला था. कुछ उदास. उस के नीचे की दुनिया गायब थी. उस जगह को देख कर लगता था, यहां से कोई बहुत पहले अपना तंबू उखाड़ कर ले जा चुका है.

एकबारगी लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि राजप्रसाद इस दुनिया से ही चला गया हो. आज की दुनिया में इस शरीर और सड़क हादसों पर कोई भरोसा नहीं… कब क्या हो जाए.

अब तो दिल की धड़कनों के साथ जिज्ञासा भी बढ़ गई. सामने वाले दुकानदार से पता किया तो उस ने अपने चमकीले दांतों से मुसकान बिखेरते हुए बड़े सम्मान के साथ कहा, ‘‘अच्छा, आप राजप्रसादजी के बारे में पूछ रहे हो.’’

उस के मुंह से ‘राजप्रसाद’ की जगह ‘राजप्रसादजी’ सुन कर तो मैं भी कुछ अचकचाया.

मैं ने सोचा कि कोई गलतफहमी न हो, इसलिए कहा, ‘‘हां, वह राजप्रसाद मोची ही है.’’

‘‘हां जी, हां. मैं भी उन्हीं की बात कर रहा हूं. अब तो उन की जिंदगी बदल चुकी है. वह देखो, वह रहा उन का शोरूम, जिस पर लिखा है ‘राजप्रसाद बूट्स ऐंड शूज’. अब वे वहीं बैठते हैं मालिक बन कर.’’

मैं ने हैरानी से कांच का दरवाजा खोल कर जैसे ही शोरूम में प्रवेश किया, तो मेरी नजर सामने रखे चमचमाते जूतों और चप्पलों पर पड़ी. तभी काउंटर से किसी जानीपहचानी आवाज ने पुकारा, ‘‘अरे भैया, इधर आओ. कितने दिनों के बाद दिखाई दिए हो. आओ बैठो. अरे गुड्डू जाओ, जरा भैया के लिए चाय बोल कर आओ.’’

‘‘अरे नहीं, राजप्रसादजी,’’ मैं उन का रुतबा और शानोशौकत देख कर उन के नाम में ‘जी’ लगाने से खुद को रोक नहीं पाया.

‘‘अरे भैया, हम कोई ‘जी’ नहीं हैं. हम वही पुराने वाले राजप्रसाद हैं. हमें ‘राजप्रसाद’ ही बोलिए, आप के मुंह से सुन कर अच्छा भी लगता है और प्रेम की मिठास भी आती है. पुराने दिन याद आते हैं.’’

मैं ने सोफे पर बैठते हुए कहा, ‘‘लेकिन, यह तो बताओ कि यह सब हुआ कैसे?’’

‘‘भैया, यह सब तो बेटा देव ही बताएगा. उसी की जबान से सुनना. बड़ा मजा आएगा. बड़ी रोचक कहानी है. बस, कुछ ही देर में वह आने वाला है.’’

यह सुन कर मैं उस रोचक किस्से को सुनने के लिए उतावला हो उठा.

कुछ ही देर बाद उस शोरूम के सामने एक चमचमाती कार आ कर रुकी. उस में से बनाठना एक स्मार्ट नौजवान उतरा. वही हमारे मोची का बेटा था. ऐसा लगता था कुदरत ने जैसे उसे फुरसत के पलों में गढ़ा था, बेहद हैंडसम.

राजप्रसाद ने उस का और मेरा परिचय कराया. उस ने पैर छू कर मेरा आशीर्वाद लिया.

तब राजप्रसाद ने उस से कहा, ‘‘बेटा देव, ये मेरे बहुत पुराने परिचित हैं, लेखक भी हैं. ये तुम से कुछ जानना चाहते हैं. इन से कुछ भी मत छिपाना.’’

देव मुझे अपने केबिन में ले गया. तब उस ने मुझे अपना रोचक किस्सा सुनाना शुरू किया.

‘‘जी अंकल, एमबीए करने के बाद मेरी नौकरी एक बड़ी कंपनी में लग गई. जब मैं पहले दिन अपने औफिस गया, तो वहां बेला को देख कर चौंक गया.’’

‘‘यह बेला कौन है बेटा?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अंकल, बेला से मेरी जानपहचान बचपन से थी. वह मेरे ही महल्ले में रहती थी. बेला को पहले से ही पता था कि मेरी नौकरी वहां लगने वाली है.

‘‘जैसे ही मैं अपने औफिस में पहुंचा, बेला खटाक से वहां आई और बोली, ’’आ गया चिकने. क्या तु झे पता नहीं था कि मैं यही पर हूं? चल, अब देखती हूं तुझे.’’

‘‘अरे बाप रे, कोई लड़की ऐसे बोलती है क्या?’’ मैं ने हैरानी से कहा.

‘‘अंकल, उस की बात मत पूछो. वह बचपन से ही मुंह भरभर कर गालियां बका करती थी. जैसे उस का मुंह न हो, गालियों की खान हो. मांबहन की गालियां तो हरदम उस के होंठों पर ही रहती थीं.

‘‘खैर, उस समय तो बेला वहां से चली गई, लेकिन मेरे दिल में सिहरन पैदा कर गई, क्योंकि वह क्या कर सकती है, इस का अंदाजा लगाना भी मुश्किल था.’’

‘‘अरे देव, ऐसा क्यों कहते हो? क्या बेला इतनी बुरी थी?’’

‘‘अंकल, आप आगे का किस्सा सुनो, फिर आप ही फैसला करना कि वह कैसी थी.’’

‘‘अच्छा सुनाओ, अब तो तुम ने इस किस्सागोई में मेरी दिलचस्पी और बढ़ा दी. आखिर कैसी थी बेला, यह जानने को मैं उतावला हो उठा हूं.’’

‘‘अंकल, मु झे भी अपना बचपन याद आ गया, जब बेला और मैं बचपन में साथसाथ खेला करते थे. जैसेजैसे हमारा बचपन पीछे छूटा और हमें लड़कालड़की के फर्क का पता चला, तो धीरेधीरे हमारा साथसाथ खेलनाकूदना भी छूट गया.

‘‘वह कदकाठी में भी मेरे से बड़ी लगती थी. आप को तो मालूम ही होगा कि लड़कियां लड़कों से पहले बड़ी हो जाती हैं.’’

‘‘हां बेटा, आगे सुनाओ.’’

‘‘अंकल, बेला अलग ही मिजाज की थी. उसे लड़कों से दोस्ती करना खूब पसंद था. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उस ने कई बौयफैं्रड बना लिए थे. बातबात पर आंख मारना उस की आदत बन गई थी.

वह मु झे भी अपना बौयफ्रैंड बनाना चाहती थी, लेकिन मु झे तो पढ़नेलिखने से ही फुरसत नहीं थी.’’

इस कहानी में मुझे रस आ रहा था. मैं ने कहा, ‘‘देव, बड़ी अजीब और रसीली लड़की थी बेला.’’

‘‘हां अंकल, वह ऐसी ही थी रोमांटिक टाइप. बेला ने 12वीं क्लास तक आतेआते सारी हदें पार कर दी थीं.

वह अपने यारों के साथ खूब इधरउधर घूमा करती थी. उस के बारे में बहुतकुछ सुनने को मिलने लगा था.

‘‘ऐसा लगता था कि अब वह खुल कर खेलने लगी है. लेकिन एक दिन मेरे साथ कुछ अलग हुआ.’’

‘‘क्या हुआ था देव? क्या तुम ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया था?’’

‘‘नहीं अंकल, मै इन बातों में था ही नहीं. हुआ यह कि एक दिन बेला ने मु झे किसी लड़की से बातें करते देख लिया.’’

‘‘तो इस में कौन सी बड़ी बात थी. आजकल तो यह बड़ी सामान्य सी बात है.’’

‘‘अंकल, यह किसी और के लिए सामान्य बात हो सकती थी, लेकिन बेला के लिए नहीं. अगले दिन कालेज से लौटते वक्त बेला ने मु झे एक सुनसान सी जगह पर रोक लिया और छूटते ही गाली दे कर बोली, ‘क्यों बे, बहन के… चिकने. उस लौंडिया से बहुत हंसहंस कर बातें कर रहा था. मु झ से बातें करते हुए तेरी… में आग लग जाती है. तु झे मजा चाहिए तो यह ले…’ कह कर उस ने मु झे दोनों हाथों से पकड़ लिया और जबरदस्ती मेरे होंठ और गाल चूम लिया.

मैं अपनेआप को उस से छुड़ा कर जाने लगा, तो वह मुसकराई और कहा, ‘जा बेटा, आज तो सड़क पर था छोड़ दिया, लेकिन तू बचने वाला नहीं. और अगर आज के बाद किसी और लौंडियाफौंडिया से बात की, तो फिर देख लेना…’’

‘‘अरे देव, बेला की इतनी हिम्मत?’’

‘‘अंकल, मेरे मन में बेला ने दहशत पैदा कर दी थी. इस के बाद किसी लड़की से बात करने से पहले मैं हजार बार सोचता था और पहले चारों तरफ नजरें घुमा कर देख लेता था कि कहीं आसपास बेला तो नहीं है.’’

‘‘ओह, पर वह लड़की थी ही ऐसी. न शर्म, न लिहाज.’’

‘‘लेकिन अंकल, वह पढ़ाई में भी बहुत काबिल थी, तभी तो औफिस में भी वह मेरे से ऊंचे ओहदे पर थी. फिर भी मैं सबकुछ भूल कर अपने काम में लग गया.

‘‘बाद में बेला के बारे में बहुतकुछ सुनने को मिलने लगा था. लेकिन औफिस में दिखावे के लिए बड़ी सतीसावित्री बनी घूमती थी और अपने काम में कोई चूक नहीं होने देती थी.’’

‘‘फिर भी देव, वह चैन से तो न बैठी होगी…’’

‘‘अंकल, कुछ दिन तो वह ऐसे ही मु झ से मिलने की नाकाम कोशिश करती रही, लेकिन बेला जैसी लड़की ऐसी अनदेखी को बरदाश्त नहीं कर पाती है. एक दिन बेला सीधे मेरे औफिस में पहुंच गई और उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. मु झे उस के इरादे का जरा सा भी अहसास नहीं था.’’

‘‘आखिर क्या था उस का इरादा देव?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अंकल, मु झे बताते हुए भी शर्म आती है. पहले वह मेरे पास आ कर मु झ से सट कर खड़ी हुई. मैं ने बचने की कोशिश की, तो मेरे गालों पर चिकोटी काटते हुए गंदी गाली दे कर बोली, ‘बच कर कहां भागता है. ले ले न तू भी जवानी के मजे.’

‘‘अंकल, तभी मैं ने उसे डपटते हुए कहा, ‘बेला, तुम पागल हो गई हो क्या? दूर हटो.’

‘‘लेकिन, ऐसा लगता था, जैसे वह आज हवस की पुजारिन बन कर आई हो. उस ने अपनी शर्ट के ऊपर के
2 बटन खोले, अपनी ब्रा ऊपर की और बोली, ‘ले ले जवानी का मजा.’’’

‘‘ओह देव, यह तो हद हो गई. कोई लड़की ऐसा करती है भला. यह तो सीधेसीधे जबरदस्ती की कोशिश थी.’’

‘‘अंकल, मैं ने खुद को बचाते हुए उसे जोर से धक्का दिया. उस का सिर दीवार में जा कर लगा. वह चिल्लाई, ‘बाहर जा कर बताऊंगी सब को. तू मु झ से जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहा था. आज भी दुनिया ऐसे मामलों में औरतों की बातों पर यकीन करती है मर्दों की नहीं.’

‘‘वह तो अपने कपड़े ठीक कर के मेरे औफिस से बाहर चली गई, लेकिन उस की बात सुन कर मैं घबरा गया. तभी मेरी नजर सामने सीसीटीवी कैमरे पर पड़ी.

कुछ देर के लिए मु झे तसल्ली हुई कि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. फिर भी अपना शक दूर करने के लिए चपरासी को बुला कर पूछा कि सीसीटीवी कैमरा काम कर रहा है कि नहीं. उस ने बताया कि यह खराब है और इस को बदला जाना है. अब मेरा पक्ष रखने वाला कोई नहीं था.’’

‘‘फिर तो तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ होगा?’’

‘‘हां अंकल, मु झे बहुत जलील कर के औफिस से निकाला गया. मेरी एक न सुनी गई. तब मु झे समाज में ऐसे मामलों में आदमी और औरत के होने का फर्क सम झ में आया.’’

‘‘क्या कोई पुलिस कंप्लैंट हुई तुम्हारे खिलाफ?’’

‘‘बस अंकल, यही एक मेहरबानी हुई. कंपनी ने किसी बखेड़े में न पड़ते हुए मु झे नौकरी से बरखास्त कर दिया. जब मैं कंपनी के औफिस से बाहर निकल रहा था, तब बेला के कड़वे करेले से शब्द मेरे कानों में पड़े, ‘मोची का बेटा है, मोची का बेटा ही रहेगा. अब जिंदगीभर उस नीम के पेड़ के नीचे बैठ कर दूसरों की जूतियां गांठ…’

‘‘मैं बेला के इन कड़वे शब्दों को सुन कर तिलमिला उठा.’’

‘‘यह सुन कर कोई भी तिलमिला जाता देव. यह तुम्हारा सब्र और सम झदारी थी, जो तुम ने इस जहर के प्याले को पी लिया. कोई और होता तो बखेड़ा खड़ा कर देता… फिर?’’

‘‘इस घटना के बाद मेरा मन नौकरी से भी उचट गया. मैं ने पापा से बात की, तो उन्होंने मु झे घर बुला लिया और मोची की दुकान खोलने की बात कही. लेकिन मेरे मन में कुछ और ही चल रहा था.

‘‘मैं जूतों का एक शोरूम खोलने के मूड में था. कुछ पैसा पापा के पास था, कुछ बैंक से लोन लिया और कानपुर की एक जूता कंपनी 20 फीसदी रकम पहले देने पर शोरूम के लिए माल उठवाने के लिए तैयार हो गई. बाकी पापा का अनुभव और मेरी मेहनत थी. बस, यही मेरी कहानी थी अंकल.’’

‘‘लेकिन देव, मेरी नजर में तो कहानी अभी अधूरी है. आखिर बेला का क्या हुआ?’’

तब देव ने हंसते हुए कहा, ‘‘अंकल, आप ने भी कैसा सवाल पूछ लिया? वह जो चाहती थी, उसे वह मिला. मैं जो चाहता था, मुझे वह मिला.’’

‘‘मतलब…?’’ मैं ने हैरानी से पूछा. मु झे लगा कि कहानी में अभी भी कोई मोड़ है.

‘‘मतलब यह कि कंपनी को जल्दी ही बेला की असलियत पता चल गई. सुनने में आया कि उसे कंपनी से धक्के मार कर बाहर निकाला गया. उस की गंदी हरकतों की वजह से उस का अपने परिवार से पहले ही नाता टूट चुका था, किसी और ने भी उस का साथ नहीं दिया. उस का जोड़ा हुआ पैसा कब तक चलता?’’

‘‘फिर, क्या किया उस ने?’’

‘‘फिर उसे कहीं नौकरी न मिली. उस ने शहर तक बदले, लेकिन अपनी हरकतें न बदलीं. उस के बदनाम किस्से उस से पहले दूसरी जगह पहुंच जाते. वह जलील होती और उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता.

काश, उस ने कंपनी और शहर बदलने के बजाय अपनी हरकतें बदली होतीं.’’

‘‘अब कहां पर है वह देव?’’

‘‘अंकल सुना है कि वह अब मेरठ की बदनाम गली का हिस्सा बन चुकी है. वही दलदल, जिस में गिर कर कभी कोई औरत बाहर नहीं आती.’’

मेरी कहानी पूरी हो चुकी थी. मैं चाय पी कर और बापबेटे से विदा ले कर बाहर आया. मैं एक नजर कामयाबी की उस सीढ़ी पर डालने से खुद को रोक न सका, जिस पर एक मोची के बेटे का फलसफा लिखा था ‘राजप्रसाद बूट्स ऐंड शूज’.

Hindi Story: नाटक छोटा सा

Hindi Story: आसमानी रंग की प्लेन साड़ी में कितनी खूबसूरत लग रही थी वह. उस की खुली हुई काली जुल्फें बारबार चेहरे पर गिरी जा रही थीं, जिन्हें वह बड़े नाज से फिर से संवारने की नाकाम कोशिश करती थी. खिड़की से अंदर आती हुई धूप की चमक से उस का सांवला चेहरा सुनहरी आभा से चमक उठता था.

अपने ही काम में तल्लीन वह 40 साल की औरत आज औफिस में सब की नजरों का केंद्र बनी हुई थी. लंचटाइम में मैनेजर साहब ने आ कर स्टाफ के सभी लोगों से उस का परिचय कराया था.

‘‘इन से मिलिए, ये हैं काजल. आज से ये भी हमारे साथ ही काम करेंगी और आप सब इन का सपोर्ट कीजिए,’’ बौस ने इशारोंइशारों में यह भी बता दिया था कि काजल के पति की पिछले साल एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी और इसीलिए अब काजल को नौकरी करने की जरूरत पड़ रही है.

बौस के चले जाने के बाद सभी लोग काजल से ‘हायहैलो’ करने लगे थे. इन में सब से आगे समीर था, जो अपनी तीखी नजरों से काजल के जिस्म का अच्छी तरह मुआयना कर रहा था काजल का रंग भले ही सांवला था, पर उस के नैननक्श बहुत तीखे थे, जो उस की खूबसूरती को और भी बढ़ा देते थे. वह समीर को पहली ही नजर में जंच गई थी. वैसे भी समीर की दिलफेंक नजरों को तो हर लड़की और हर औरत जंच ही जाती है.

समीर का पूरा नाम समीर सिंह था. वह अपनी जाति को बड़ा बताता था और सामने वाले की जाति में कमियां निकालना उस का फेवरेट काम था. वह नौकरी में रिजर्वेशन के भी खिलाफ था.

उस के मुताबिक, ऊंची जाति का हक दलितों ने छीन लिया है, इसीलिए ज्यादातर अगड़े आज बेरोजगार हैं. अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल पर उस ने ‘कट्टर क्षत्रिय’ वाली तसवीर लगा रखी थी.

समीर की उम्र 28 साल थी और उस के घर में सिर्फ उस की मां और 20 साला बहन रुचि थी, जो अभी पढ़ाई कर रही थी.

रात को समीर बिस्तर पर लेटा, तो उस से उम्र में पूरे 12 साल बड़ी, पर बेहद आकर्षक काया वाली काजल की याद सता रही थी.

औफिस में अगले दिन से ही समीर ने काजल पर डोरे डालने शुरू कर दिए थे. कभी वह काजल के पास जा कर काम के बारे में कुछ बात करता, तो कभी उस की तारीफ करने लगता.

काजल भी समीर को एक अच्छा इनसान सम झ बैठी थी. तभी तो उस दिन जब काजल औफिस का काम निबटा कर थके कदमों से रोड के किनारे खड़ी हो कर कैब का इंतजार कर रही थी कि तभी समीर अपनी बाइक ले कर आ गया और ठीक काजल के सामने आ कर खड़ी कर दी.

‘‘आइए, मैं आप को छोड़ देता हूं,’’ समीर ने यह बात इतने नाटकीय अंदाज में कही थी कि काजल कुछ कह नहीं सकी और मुसकराते हुए उस की बाइक पर बैठ गई.

थोड़ी देर के बाद ‘सिल्वेस्टर कैफे’ के सामने समीर ने अपनी बाइक रोक दी और काजल की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘यह शहर का फेमस कैफे है, इसलिए एक कौफी पीना तो बनता ही है.’’

काजल ने भी कोई एतराज नहीं जताया और दोनों जा कर कौफी टेबल पर बैठ गए.

समीर ने अपनी कौफी में थोड़ी ऐक्स्ट्रा शुगर ली, जबकि काजल ने शुगर फ्री कौफी लेना ही पसंद किया.

कौफी के घूंट भरते समय समीर काजल को जीभर कर देख रहा था, पर जैसे ही काजल ने नजर उठाई तो समीर फिर से मासूम बनने का दिखावा सा करने लगा और इधरउधर की बातें करने लगा.

कौफी पीने के बाद समीर ने काजल को उस के अपार्टमैंट्स की बिल्डिंग के बाहर छोड़ दिया. काजल शालीमार अपार्टमैंट्स के फ्लैट नंबर 102 में अपने 22 साल के भाई गौतम के साथ रहती थी.

अगले दिन औफिस में लंच के समय समीर के एक दोस्त राघव ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘तू तो अपनेआप को ‘कट्टर क्षत्रिय’ कहता है, पर फिर इस दलित जाति वाली काजल पर क्यों डोरे डाल रहा है?’’

काजल दलित जाति की है, यह बात तो समीर अच्छी तरह जानता ही था. वह मुसकराया और उस ने राघव से फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘अरे, तु झे क्या पता कि ये दलित जाति की औरतें तो बिस्तर पर बहुत मजा देती हैं और अगर दलित औरत विधवा हो तो फिर तो कहने ही क्या?

‘‘और फिर इन के साथ मजे लेने से कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि दलित औरतें और तंबाकू वाली चिलम कभी जूठी नहीं होती.’’

समीर के चेहरे पर एक जहरीली मुसकराहट अब भी दौड़ रही थी. उस दिन पता नहीं क्यों, पर समीर औफिस में चुपचाप था. उस की चुप्पी काजल को अच्छी नहीं लगी, तो उस ने समीर की चुप्पी की वजह पूछी.

समीर ने उसे बताया कि उसे जुकाम है और सिर में भी दर्द हो रहा है. यह बात सुन कर काजल ने उसे दवा लेने की सलाह दी.

रोज की तरह ही औफिस से निकलते हुए समीर ने अपनी बाइक पर काजल को बिठाया और शालीमार अपार्टमैंट्स के सामने उतार दिया.

जैसे ही काजल आगे बढ़ी, तो समीर ने कहा, ‘‘कम से कम अपने फ्लैट पर बुला कर इस बीमार को एक कप चाय तो पिला दीजिए.’’

समीर की इस बात पर काजल थोड़ा सोच में पड़ गई थी, क्योंकि आज उस का भाई किसी सिलसिले में शहर सेबाहर गया हुआ था और ऐसे में वह किसी गैरमर्द को फ्लैट में बुलाना तो नहीं चाहती थी, पर समीर के चेहरे का भोलापन देख कर काजल ने मुसकराते हुए उसे अपने फ्लैट की तरफ चलने का इशारा किया.

काजल 2 कप चाय ले आई. अपनी चाय सिप करते ही समीर ने बुरा सा मुंह बनाया और काजल से चाय में और ज्यादा चीनी डाल कर लाने को कहा.

काजल किचन की ओर चीनी लेने गई, इतनी देर में समीर ने काजल के कप में नशे की गोली डाल दी.

काजल को कुछ पता नहीं चला. चाय पीने के बाद समीर बहाने से फोन करने लगा. काजल पर धीरेधीरे नशा हावी होने लगा था और कुछ देर बाद वह गहरी नींद के आगोश में चली गई.

समीर को इसी बात का इंतजार था. उस ने काजल को बिस्तर पर लिटाया और उस के जरूरी कपड़े हटा दिए और बेहोशी की सी हालत में काजल का रेप किया और एक वीडियो भी बना लिया.

जब काजल को होश आया, तो उस की दुनिया लुट चुकी थी. एक बार फिर दलित विधवा किसी ऊंची जाति वाले की हवस का शिकार हुई थी.

समीर जा चुका था. अपने साथ हुआ जुल्म काजल से सहन नहीं हो रहा था. वह बहुत रोई. अपनी जिंदगी को खत्म तक करने के बारे में सोचा, पर मर जाना किसी समस्या का हल तो नहीं और फिर उस का भाई भी तो उसे चरित्रहीन ही समझेगा.

काजल इसी उधेड़बुन में थी. जब कुछ सम झ नहीं आया, तो वह शावर के नीचे जा कर खड़ी हो गई. जब वह बाहर आई, तो खुद को तरोताजा महसूस करने लगी.

काजल की सम झ में इतना तो आ ही गया था कि हो न हो, बात इतने पर ही खत्म नहीं होगी और यही हुआ भी.

अगले दिन ही समीर का फोन आया. कांपते हाथों से काजल ने फोन रिसीव तो कर लिया, पर कुछ बोल न सकी.

उधर से समीर ने ही काजल को उस के पोर्न वीडियो के उस के मोबाइल में होने की बात बताई और दोबारा जिस्मानी संबंध बनाने की मांग की. ऐसा न करने पर वीडियो इंटरनैट पर और काजल के भाई और औफिस के लोगों के बीच वायरल कर देने की धमकी दे दी. अपनी इज्जत इस तरह से तारतार हो जाने की बात सोच कर काजल डर गई थी.

बेचारी काजल एक दलित जाति की ऐसी विधवा औरत थी, जिस को अपने भाई का कैरियर बनाना था. काजल के लिए नौकरी करना भी जरूरी था और फिर उसे तो समाज का भी डर था.

इसी तरह से न जाने कितनी बार समीर ने काजल को ब्लैकमेल कर के उस की इज्जत लूटी. पर उस दिन तो हद हो गई, जब समीर अपने साथ एक दोस्त को भी ले आया. वे दोनों काजल के साथ जिस्मानी संबंध बनाना चाहते थे, पर अब काजल का सब्र जवाब दे गया था.

इस तरह तो समीर उसे पूरी दुनिया में बदनाम कर देगा और न जाने कितने दिनों तक उसे यह सब सहना पड़ेगा, इसलिए आज वह नहीं झुकेगी. यह तय करते ही काजल ने अपना बैग उठाया और कमरे से बाहर निकल गई.

उसे जाता देख समीर बेफिक्र था, क्योंकि वह जानता था कि काजल के बेहूदा वीडियो उस के पास होने के चलते काजल को फिर से मजबूर करना मुश्किल नहीं होगा, पर यह सिर्फ उस का सोचना भर था. अगले कई दिनों तक काजल औफिस नहीं आई और काजल का फोन भी स्विच औफ आता रहा.

समीर बेचैन हो रहा था. हाथ आई एक मस्त दलित औरत, जिस के साथ वह जब चाहे मजे कर सकता था, पर अब तो उस का कोई अतापता नहीं था. अब वह क्या करता. उसे यही लगा था कि या तो काजल ने खुदकुशी कर ली है या वह शहर छोड़ कर बहुत दूर चली गई है.

यह सोच कर समीर मन मसोस कर रह जाता था, पर अब उसे और दुखी नहीं रहना पड़ेगा, क्योंकि काजल तो आज औफिस आ गई थी और यही नहीं, अब तो वह पहले से भी ज्यादा तरोताजा दिख रही थी और सब से मुसकरा कर बात भी कर रही थी.

समीर ने भी उस से बात करनी चाही तो भी काजल ने सामान्य ढंग से उस की बातों का जवाब दिया. समीर सम झ गया था कि यह चिडि़या तो अब पूरी तरह से उस के कब्जे में है ही, क्योंकि काजल एक सम झदार औरत है, जो समाज के सामने कभी बदनाम नहीं होना चाहेगी.

यही बात सोच कर शाम को औफिस से निकलते हुए समीर ने बेशर्मी दिखाते हुए काजल से कहा, ‘‘अरे मैडम, न जाने कहां चली गई थीं तुम. चलो, अब तो तुम आ ही गई हो, तो क्यों न आज रात रंगीन कर लें.’’

इस सवाल के बदले में काजल ने आंखें झुका लीं और समीर ने तुरंत ही अपनी बाइक काजल के सामने खड़ी कर दी. काजल बड़ी खामोशी से उस की पिछली सीट पर बैठ गई थी.

वे दोनों एक होटल के कमरे में थे. समीर महंगी वाली शराब की बोतल अपने साथ लाया था, जिसे खोल कर वह काजू की नमकीन के साथ पीने लगा और काजल को कपड़े उतारने का इशारा करने लगा.

काजल ने कहा कि वह कपड़े तो बाद में उतारेगी, पर पहले अपना मूड तो बना लिया जाए और इस के लिए काजल ने खुद ही एक पोर्न मूवी एलईडी की स्क्रीन पर चला दी.

समीर तो पहले से ही कहता था कि दलित औरतें बहुत गरम होती हैं, पर काजल को भी पोर्न देखने का शौक है, यह जान कर समीर को मजा ही आ गया था.

‘अब आज नए अंगरेजी ढंग से काजल के साथ रात गुजारूंगा…’ अभी समीर सोच ही रहा था कि स्क्रीन पर एक पोर्न मूवी के सीन आनेजाने लगे, जिन्हें देख कर समीर जोश से पागल हुआ जा रहा था. समीर ने काजल को फिर से पकड़ने की कोशिश की, पर तभी सामने की एलईडी स्क्रीन पर सीन बदल गया था.

समीर ने स्क्रीन पर देखा कि एक भारतीय लड़की बिस्तर पर बैठी हुई है और तभी एक लड़के ने बिस्तर पर आ कर उसे बांहों में जकड़ लिया और दोनों एकदूसरे को चूमने लगे और दोनों के हाथ एकदूसरे के जिस्म पर फिसलने लगे थे.

समीर अभी इस वीडियो में मजा ढूंढ़ ही रहा था कि उस की नजर लड़की के चेहरे पर गई, तो वह बुरी तरह चौंक गया. वह लड़की कोई और नहीं, बल्कि उस की सगी बहन रुचि ही तो थी.

समीर ने आंखें फाड़फाड़ कर देखा, पर उसे कुछ सम झ नहीं आया कि उस की बहन का यह वीडियो कैसे बना और यह लड़का कौन है.

समीर झुं झला गया था. उस ने काजल के चेहरे की ओर देखा, जो खड़ी मुसकरा रही थी और उस के हाथ में एक मोबाइल था.

समीर गुस्से में भर कर उसे मारने दौड़ा, तो काजल ने उसे हाथ के इशारे से रोकते हुए अपने मोबाइल की ओर इशारा किया और धमकी देते हुए कहा कि उस की एक क्लिक में उस की बहन का यह वीडियो अभी पूरे इंटरनैट पर वायरल हो जाएगा, इसलिए अब आगे से वह उसे ब्लैकमेल करना छोड़ दे और उस का वह वीडियो डिलीट कर दे.

समीर जहां का तहां रुक गया था. आखिरकार उस की बहन की इज्जत का मामला था और अपनी बहन को बदनामी से बचाने के लिए उस ने काजल की सारी बातें भी मान ली थीं.

काजल की आंखों में बदले की भावना थी. उस की आंखें मानो कह रही थीं कि एक दलित विधवा अब और शोषण नहीं सहेगी.

काजल वहां से तुरंत बाहर की ओर चल दी और कैब ले कर एक होटल में पहुंची, जहां पहले से ही उस का भाई और समीर की बहन रुचि काजल का इंतजार कर रहे थे.

काजल ने रुचि को गले लगा कर उस का धन्यवाद कहा, क्योंकि गौतम और रुचि के इस प्लान और खेले गए इस नाटक ने ही तो समीर के चंगुल से उसे बाहर निकालने में मदद की थी.

जब बारबार समीर के द्वारा ब्लैकमेल किए जाने के कारण काजल बिलकुल टूट गई थी, तो उस ने शर्म और हिचक छोड़ कर अपने भाई गौतम को ब्लैकमेलिंग वाली बात बता दी थी, तो गौतम ने आव देखा न ताव और समीर को मारने पहुंच गया.

पर जब समीर के साथ उस ने उस की सुंदर बहन को देखा, तो गौतम का प्लान बदल गया और अगले दिन से ही रुचि के कालेज जा कर उस के साथ प्यार का झूठा नाटक खेलने लगा, उस के इर्दगिर्द डोल कर प्यार की पेंगें बढ़ाने लगा.

सीधीसादी रुचि जल्दी ही गौतम की बातों में आ गई और रुचि ने भी अपने प्यार का इजहार गौतम से कर दिया.

गौतम रुचि के साथ सैक्स वीडियो बना कर उसे छोड़ देना चाहता था, ताकि अपनी बहन का बदला ले सके, पर गौतम को भी अब तक रुचि से सचमुच का प्यार हो गया था, इसलिए एक दिन गौतम ने रुचि को सारी बात बता दी.

रुचि नाराज नहीं हुई, बल्कि उस ने अपने भाई समीर को ही गलत ठहराते हुए एक प्लान बनाया, जो काजल को और ज्यादा ब्लैकमेल होने से बचा सके.

तभी रुचि और गौतम ने एकदूसरे के साथ किसी फिल्म हीरोहीरोइन के जैसी ऐक्टिंग की जो देखने में एकदम बेहूदा एमएमएस की तरह लगे और इस में रुचि के चेहरे को साफ दिखाया गया था, ताकि समीर जल्दी से उसे पहचान ले और यह ट्रिक काम कर गई. इस एक छोटे से नाटक ने समीर को उस की औकात दिखा दी थी.

अभी समीर इस सारे मामले से उबर भी नहीं पाया था कि उस के मोबाइल पर रुचि का वीडियो काल आया, जिस में वह समीर से कह रही थी कि समीर ने एक दलित विधवा के साथ जो कुकर्म किया है, वह जानने के बाद अब वह उस के साथ नहीं रह सकती, इसलिए वह घर से जा रही है और वैसे भी उस ने अपना जीवनसाथी चुन लिया है और वह कोई और नहीं, बल्कि काजल का भाई गौतम था.

वीडियो काल पर काजल के साथ गौतम को देख कर समीर ने अपना माथा पीट लिया था. एक विधवा को गलत ढंग से ब्लैकमेल करने का इतना बुरा अंजाम भुगतना पड़ेगा, यह तो उस ने कभी सोचा ही नहीं था.

समीर अब कुछ नहीं कर सकता था. उस ने भारी मन से काजल का वीडियो डिलीट कर दिया था और अब उस की सोशल मीडिया प्रोफाइल से ‘कट्टर क्षत्रिय’ नामक शब्द उसे लगातार मुंह चिढ़ा रहे थे.

Hindi Romantic Story: गरम सांसों की सरगम

Hindi Romantic Story, लेखिका – डा. आरती मंडलोई

शहर की हलचल से कोसों दूर पहाड़ों के बीच बसा हुआ यह रिसौर्ट किसी सपने की तरह लग रहा था. हरियाली से ढके ऊंचऊंचे पहाड़, हलकीहलकी बारिश और ठंडी हवा में घुली ताजगी… सबकुछ जैसे किसी पुराने रोमांटिक गीत की धुन में बंधा हुआ था.

अनिका बालकनी में खड़ी थी. उस के लंबे घने गीले बाल उस की पीठ पर लहरों की तरह बिखरे हुए थे. हलकी हवा उस के चेहरे को छू कर गुजर रही थी, लेकिन उस की बेचैनी कम नहीं हो रही थी.

यह वीकैंड उस ने बहुत सोचसम झ कर चुना था. कुछ दिनों के लिए खुद से मिलने के बहाने, लेकिन कहीं न कहीं वह जानती थी कि असल में यह वक्त आरव के साथ बिताने के लिए था.

आरव… उस की जिंदगी में किसी गहरी नदी की तरह उतरा था. उन का रिश्ता बहुत साधारण तरीके से शुरू हुआ था. एक कौरपोरेट औफिस में साथी मुलाजिम के रूप में. शुरुआत में काम के सिलसिले में बातचीत हुई, फिर हलकीफुलकी दोस्ती और धीरेधीरे यह दोस्ती एक अलग एहसास में ढल गई थी.

पहली बार जब वे दोनों बारिश में भीगे थे, तो अनिका ने महसूस किया था कि आरव की नजरें उसे बस यों ही नहीं देख रहीं. वह पहली बार उस के इतने करीब आया था कि उस की सांसों की गरमाहट तक महसूस हो रही थी. अब वह यहां थी आरव के साथ, इस पहाड़ी रिसौर्ट में.

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई.

अनिका ने दरवाजा खोला. सामने वही था, जिस की आहट तक उसे पहचानने लगी थी.

आरव भीगा हुआ था. सफेद टीशर्ट उस के बदन से चिपकी हुई थी. बालों से पानी टपक रहा था और आंखों में वही पुरानी बेचैनी थी, जो हर बार उसे बेचैन कर देती थी.

‘‘बहुत तेज बारिश हो रही है,’’ आरव ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘हां…’’ अनिका ने बड़ी ही धीमी आवाज में जवाब दिया.

आरव कमरे में भीतर आ गया था और अंदर से दरवाजा बंद कर दिया. कमरे में मोमबत्तियों की हलकी रोशनी फैली हुई थी. बाहर बारिश तेज हो गई थी और खिड़की के शीशों पर पानी की बूंदें धीमेधीमे फिसल रही थीं.

आरव ने जैकेट उतारी और उसे पास की कुरसी पर रख दिया. उस की नजरें अनिका पर टिकी थीं.

अनिका हलके नीले रंग की साटन की ड्रैस में थी, जो उस के बदन को छू कर फिसल रही थी.

‘‘क्या सोच रही हो?’’ आरव ने धीमे से पूछा.

‘‘कुछ नहीं,’’ अनिका ने मुसकरा कर कहा, लेकिन उस की आंखें कुछ और ही कह रही थीं.

आरव उस के करीब आया. उस की उंगलियां धीरे से अनिका की कलाई पर टिकीं. यह छुअन कोई नई नहीं थी, लेकिन फिर भी हर बार की तरह इस में कुछ नया था.

‘‘तुम्हें ठंड लग रही होगी,’’ अनिका ने कहा, लेकिन उस की आवाज में हलकी कंपकंपी थी.

आरव ने उस की उंगलियों को थाम लिया. उस की पकड़ थोड़ी हलकी थी, लेकिन फिर भी उस में एक अनदेखी ताकत थी.

‘‘मु झे ठंड नहीं लगती… लेकिन, तुम्हारे करीब आने की चाह जरूर लगती है,’’ उस के शब्द जैसे किसी गरम लहर की तरह अनिका के जिस्म को छू गए.

आरव ने धीरे से उस के चेहरे को अपनी हथेलियों में लिया. उस की उंगलियां उस के गालों को छू रही थीं. अनिका की पलकों में हलकी कंपन थी.

कमरे में हलकी धुंध थी. बारिश की खुशबू हवा में घुल गई थी. आरव ने धीरे से उस की हथेलियां फिर अपने हाथों में लीं. उन की उंगलियां आपस में उल झ गईं. जैसे बारिश की बूंदें पत्तों से लिपट जाती हैं. जैसे नदी किसी किनारे से मिल कर उस में समा जाना चाहती है.

आरव और करीब आया. उस की सांसों की गरमी अब अनिका की गरदन पर महसूस हो रही थी. अनिका ने अपनी आंखें बंद कर लीं.

आरव के होंठों की हलकी छुअन उस की कनपटी से होते हुए उस के गालों तक उतर आई. अनिका का दिल तेजी से धड़कने लगा था.

बाहर बरसात और भी तेज हो गई थी. आरव ने धीरेधीरे अपनी उंगलियां उस की पीठ पर फिराईं. उस के रेशमी बालों में अपनी उंगलियां उल झा दीं. फिर जैसे दो बेचैन लहरें आपस में समा गईं.

बरसात की बूंदें खिड़की से टकरा रही थीं. मोमबत्तियों की लौ भी कांप रही थी. अब दो धड़कनें एक लय में बंध रही थीं. उस रात बारिश बहुत देर तक यों ही बरसती रही.

Funny Hindi Story: साष्टांग प्रणाम

Funny Hindi Story: आदरणीय और परमादरणीय सरकारजी को मेरा प्यार भरा प्रणाम, टांग और जांघ प्रणाम, साष्टांग प्रणाम.

मैं सरकारी साहब भक्ति विभाग से महीना नवंबर, साल 2018 में चपरासी के पद से ससम्मान रिटायर होने वाला एक्स चपरासी भोलाराम, सुपुत्र श्री मांगेराम, गांव-अबस, तहसील-अबस, जिला-अबस, प्रदेश-अबस, मोबाइल नंबर-अबस, भारत देश का असली आधारकार्डधारक हूं. मेरे पास नकली हंसीखुशी के सिवा और कुछ भी नकली नहीं है.

सरकारजी, जब भी मैं बहुत परेशान हो जाता हूं, तो आप को चिट्ठी लिख देता हूं, ताकि मुझे भी लगे कि मैं ने भी अपना रोना किसी के आगे रो दिया.

मेरे बच्चे औफिशियल प्रोसीजर का पालन करते हुए मेरी बीवी के सामने अपना रोना रोते हैं. मेरी बीवी थू्र प्रोपर चैनल उन का रोना मेरे आगे रखती है. वह भी रोती है, पर कभी कहती नहीं.

चपरासी भोलाराम की बीवी है न सरकारजी. उस ने अब लोकतंत्र में रोने को स्वीकार कर लिया है… और मैं अपना रोना थू्र प्रोपर चैनल पहले आप के सामने रखता हूं, बाद में अपने ऊपर वाले के आगे, क्योंकि मुझे ऊपर वाले से पावरफुल आप लगते हो सरकारजी.

पर, लगता है कि अब हम सब की तरह ऊपर वाला भी बहरा हो गया है. यहां किसी की सुनता ही कौन है सरकारजी. लगता है कि ऊपर वाले ने जो कान हमारे सुनने को लगाए थे, वे सब अब बहरे हो गए हैं. बस, बची जबान, सो चलाए रहते हैं.

बहुत बधाई हो सरकारजी आप को. अखबार में पढ़ कर अच्छा नहीं, बहुत अच्छा लगा, जब पढ़ा कि आप सब ने जो बातबात पर संसद में हमें दिखाने को लड़ते रहते हैं, मिलमिला कर अपने वेतन भत्तों में इजाफा कर लिया है और बाहर आप ने हमें दो चार सौ पर दिन के हिसाब से दे कर किसी न किसी बहाने चौबीसों घंटे आपस में लड़ामरवा कर रखा. बधाई हो सरकारजी. किसी के वेतन भत्ते तो बढ़े.

बुरा मत मानिएगा सरकारजी. अमीरों के पेट में तो सोएसोए भी जाता ही रहता है सरकारजी. अब तनिक हम जैसों के पेट में भी कुछ डलवा दीजिए न प्लीज. आप जोकुछ हमारे पेटों के लिए भेजते हैं, वह तो ऊपरऊपर ही खत्म हो जाता है सरकारजी. इसे आप शिकायत नहीं, सच मानिएगा जनाब.

सरकारजी, आप ने तर्क दिया है कि मुद्रास्फीति बढ़ गई थी, इसलिए उस दिन से नहीं, 2 साल पीछे से आप के वेतन भत्ते बढ़ने चाहिए थे कायदे से. चलो सरकारजी, खुशी हुई कि देश में कायदे से कुछ तो हो रहा है.

आप के वेतन भत्ते बढ़ने जरूरी, नहीं बहुत जरूरी थे. जनता भी मान रही थी. न बढ़ते तो सरकारजी आप को खानेपीने में तंगी हो जाती.

देश में जनता तंगी में रहे तो रहे, पर जनता का लोकप्रिय नेता कभी तंगी में नहीं रहना चाहिए. देश की जनता तंगी में रहे तो रहे, पर जनता के नेता तंगी में रहें, यह कहां का लोकतंत्र है सरकारजी.

सरकारजी, आप ने अपना वेतन बढ़ाया, बधाई हो जी. आप ने अपने भत्ते बढ़ाए, बधाई हो सरकारजी. आप को इस का एरियर भी मिलेगा, बधाई हो जी. आप ने अपना दैनिक भत्ता बढ़ाया, बधाई हो जी. आप ने अपना तो वेतन बढ़ाया ही बढ़ाया, अपने पास अपने कंप्यूटर का काम करने वाले को भी तार दिया, बधाई हो जी.

सबकुछ पेपरलैस करने की कवायद करने वाले सरकारजी, आप ने हर महीने जनता के काम करने के लिए प्रयोग होने वाले कागजस्याही का भुगतान भी बढ़ाया, बधाई हो जी. आप ने पहले ही देश को चरा चुके अपने बंधुबांधवों की पैंशन भी बढ़ाई, बधाई हो सरकारजी. खुद टिकाऊ न होने के बाद भी जनाबजी अपने लिए पहले से महंगी टिकाऊ कुरसीमेज ले सकेंगे, इस के लिए बधाई हो सरकारजी.

हम जनता तंगियों में रहे तो रहे, पर हम सब की हरदम यह दिली इच्छा रहती है कि आप तंगी में सोएसोए भी न रहें सरकारजी. जो आप तंगियों में रहें, तो हमारे तंग रहने का क्या फायदा?

सरकारजी, बुरा मत मानिएगा. सच कह रहा हूं कि जो आप अपनी पगार न भी बढ़ाएं तो भी आप के पास कमानेखाने के हजारों साधनसंसाधन हैं, पर मेरे जैसों के पास तो सब खाने ही खाने वाले हैं. कमा कर देने वाला एक भी नहीं. माना कि मैं तो 4 चपातियों से 2 पर आ गया हूं, पर मेरे पास मेरा भरापूरा परिवार खाने वाला है, रिश्तेदार खाने वाले हैं, यारदोस्त खाने वाले हैं.

जैसा कि मैं ने पहले भी आप से दोनों हाथ जोड़ कर विनती की है कि मैं सरकारी साहब भक्ति विभाग से बरस 2018, महीना नवंबर, चपरासी के पद से रिटायर हुआ जीव हूं सरकारजी, हालांकि मैं अपने जमाने का 10वीं पास था फर्स्ट डिवीजन, पर मेरी प्रमोशन न हो सकी, जबकि मेरे साथ वाले 10वीं फेल मेरे चपरासी रहते आप के साथ हो कर कहां से कहां निकल गए, अब उन्हें भी पता नहीं.

सरकारजी, महंगाई सिर से ऊपर हो जाने के बाद भी 2 साल से डीए तो मिला नहीं, पर मेरा बचा एरियर भी आज तक नहीं मिला. मेरे से बाद वालों को मिल गया. मेरी ही रोटी में से मेरे आगे कभीकभार एक टुकड़ा तोड़ कर फेंका जा रहा है. उस टुकड़े को अपने पेट में डालने की तो बारी ही नहीं आती.

एरियर का टुकड़ा मिलने से पहले ही घर में उस एरियर के टुकड़े को ले कर बहुत बहसबाजी शुरू हो जाती है. कोई कहता है कि मेरे पेट में डालो, तो कोई कहता है कि मेरे पेट में. एरियर से मिलने वाले उस टुकड़े को अब आप ही कहो कि किसकिस के पेट में डालूं सरकारजी?

एरियर के टुकड़े को ले कर हुई लड़ाई को जैसेतैसे शांत करने के बाद जिस के पेट में वह एरियर का टुकड़ा डालता हूं, वह और ‘भूखभूख’ चिल्लाने लगता है. इतने बड़े परिवार के पेटों के बीच एरियर का 10वां टुकड़ा क्या माने रखता है सरकारजी… आप ही बताओ.

एक बार फिर आप से गुजारिश है कि आप मेरा बचा एरियर मेरे जीतेजी एकमुश्त देने की कृपा करें, ताकि मुझे लगे कि किसी से तो मेरा लेनदेन जिंदा रहते खत्म हुआ. शेषों, अवशेषों से तो मरने के बाद भी हिसाबकिताब चलते रहेंगे सरकारजी.

Family Story: बोझ

Family Story: महज 30 साल की उम्र में पंकज ने अपनी कारोबारी हैसियत का लोहा मनवा लिया था. पिता के टैंट हाउस के काम को वह नई ऊंचाई पर ले जा चुका था.

‘पंकज टैंट हाउस’ का नाम अब शहर से बाहर भी अपना डंका बजाने लगा था. बड़े आयोजन के लिए उस के काम का कोई सानी नहीं था. जहां उस के पिता 25 लोगों के स्टाफ के साथ अपना कारोबार चलाते थे, वहीं पंकज ने पिछले तकरीबन डेढ़ साल में 200 लोगों का स्टाफ अपने नीचे काम करने के लिए रख लिया था.

पैसों की बारिश के साथ सामाजिक इज्जत में भी भारी इजाफा हुआ था, पर इस शानशौकत, इज्जत, पैसे के एवज में पंकज न तो चैन की नींद ले पाता था, न ही ढंग से भोजन कर पाता था.

पंकज की शादी हुए भी 2 साल हो चुके थे, पर 3 दिन के हनीमून के अलावा उस के पास बीवी के लिए भी समय नहीं था. मातापिता और पत्नी उसे काम के फैलाव को समेटने के लिए समझाते, पर उस का जुनून उसे अपने काम के नशे से सरोबार रखता.

सारा दिन औफिस और साइट के बीच भागदौड़ और साथ ही मोबाइल पर लगातार बातचीत पंकज को एक पल के लिए भी अपने या परिवार के बारे में सोचने का मौका नहीं देता था. सुबह जल्दबाजी में नाश्ता कर घर छोड़ता, दिन में जो मिल जाता खा लेता और देर रात घर लौट कर जो भी उसे परोस दिया जाता, अपना ध्यान फोन पर उंगली फिराते हुए खा लेता.

ज्यादा मेहनत करने से पंकज की सेहत पर बुरा असर पड़ने लगा था. कभी सिरदर्द, तो कभी बदनदर्द, एयरकंडीशंड औफिस में भी काम करते समय कभी माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आती थीं.

एक दिन ऐसे ही बेचैनी में पंकज औफिस से उठ कर अपने गोदाम की ओर चल दिया. 4-5 मजदूर सामान को जमातेजमाते भोजन करने जमीन पर घेरा बना कर बैठे थे. कोई डब्बे में तो कोई थैली में से भोजन निकाल रहा था और हंसीठिठोली से माहौल में मस्ती घोल रहा था.

पंकज चुपचाप उन को निहारता रहा और उसे उन को देख कर ही सुकून मिलने लगा था.

‘‘ले… मेरे कटहल के अचार का स्वाद चख, मेरी नानी ने बना कर भिजवाया है,’’ एक मजदूर ने दूसरे को मनुहार से अपना खाना साझा किया, तो दूसरा मजदूर बोला, ‘‘मेरी बीवी भी प्याजपरवल की सब्जी बहुत अच्छी बनाती है, सब चख लो.’’

अचानक एक मजदूर की नजर पंकज पर पड़ी, तो सब चुप हो गए. वह धीरे से चल कर उन के पास आया, तो एक मजदूर सकपका कर बोला, ‘‘हम बस अभी खाना खाने बैठे हैं. जल्दी खा लेते हैं. कोई काम है, तो आप बताइए?’’

पंकज झिझकते हुए बोला, ‘‘क्या मैं भी आप लोगों के साथ बैठ कर भोजन कर सकता हूं?’’

कुछ देर की शांति के बाद एक जना अटकते हुए बोला, ‘‘हमारा भोजन शायद आप को पसंद न आए और फिर आप कहां बैठ कर खाएंगे? यहां तो बरतन भी नहीं हैं.’’

‘‘अरे, मैं यहीं तुम्हारे साथ बैठ कर भोजन करना चाहता हूं, अगर आप को एतराज न हो तो…?’’ एक मुसकराहट के साथ पंकज ने कहा, तो खुशीखुशी सभी लोगों ने सरक कर घेरा बड़ा कर लिया और उस के लिए जगह बना दी.

पंकज पूरे मजे के साथ एकएक कौर खाते हुए सोच रहा था कि इतनी दौलत होने के बाद भी उस ने जिंदगी में पिछली बार कब इतने शौक से भोजन किया था?

बहुत सोचने के बाद भी पंकज याद नहीं कर पाया. इस समय तो बारबार बजते फोन को भी उस ने साइलैंट मोड पर कर दिया था. उस के कारोबार के लिए मेहनत करने वाले कामगारों को वह पहली बार जाननेसमझने का मौका पा रहा था, जो सब मिल कर उसे अपनी बातों से अनोखा मजा दे रहे थे.

वहां से खाना खा कर जाते हुए पंकज यह सोच रहा था कि वह अपने सभी कामगारों को एक शानदार तोहफा देगा और काम से छुट्टी ले कर अपने परिवार के लिए भी रोज समय जरूर निकालेगा.

पंकज की चिंता और दर्द अब काफूर हो चुके थे और उसे लग रहा था कि उस ने अपने ऊपर जबरदस्ती का लादा हुआ बोझ उतार फेंका है.

News Story: सैकंड क्लास सिटीजन का अव्वल कारनामा

News Story: आज से तकरीबन 10 महीने पीछे चलते हैं. शहर दिल्ली और महीना जुलाई का. बारिश का मानो कहर सा बरपा था. ओल्ड राजेंद्र नगर इलाके के एक आईएएस कोचिंग सैंटर के बेसमेंट में बहुत से छात्र वहां बनी लाइब्रेरी में पढ़ाई कर रहे थे.

शाम के साढ़े 6 बजे थे कि वहां बैठे छात्रों को महसूस हुआ कि कुछ तो गड़बड़ है. अचानक से ही बेसमेंट में पानी भरने लगा. पानी का बहाव इतना तेज था कि यह देख कर छात्रों के मानो हाथपैर फूल गए.

‘‘यार, अब यह क्या नौटंकी है… यहां हर साल ऐसे ही पानी भरता है,’’ रजनी ने पूछा.

‘‘पर, आज का मामला कुछ और ही है. यह सिर्फ पानी भरना नहीं है, बल्कि कोई बड़ी समस्या है,’’ अनामिका बोली.

अनामिका एक पढ़ाकू लड़की थी. उम्र 23 साल. भरा बदन और सांवला रंग. वह ज्यादातर सूटसलवार पहनती थी और अपना ज्यादातर समय लाइब्रेरी में ही बिताती थी.

‘‘मुझे तो बड़ा डर लग रहा है. यह पानी तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है,’’ जब घुटने से ऊपर पानी चला गया, तब विजय ने टेबल पर चढ़ते हुए कहा.

विजय का डर जायज था. चंद ही सैकंड में वहां बाढ़ का सा नजारा था. उसे तैरना नहीं आता था.

अनामिका समझ गई. उस ने हिम्मत नहीं खोई और जल्दी से विजय के पास तैर कर पहुंची और पीछे से कौलर पकड़ कर उसे खींचने लगी. उस का सिर भी पानी के ऊपर रखा और बेसमेंट के दरवाजे की तरफ उसे ले गई.

वहां ऊपर से कुछ लोगों ने रस्सियां फेंकी हुई थीं. अनामिका ने एक रस्सी विजय को पकड़ाई और बोली, ‘‘आप इसे मत छोड़ना. वे लोग आप को ऊपर खींच लेंगे.’’

पर विजय बहुत ज्यादा घबराया हुआ था. वह पानी में डुबकी लगाने लगा. लेकिन ऊपर खड़े लोगों ने उसे बहुत जल्दी ऊपर खींच लिया. अनामिका भी तब तक तैर कर ऊपर आ चुकी थी.

बाहर लोगों की भीड़ जमा थी. तब तक विजय बेहोश हो चुका था. शायद उस के पेट में पानी भर गया था, पर किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए.

इतने में अनामिका बोली, ‘‘सब लोग पीछे हो जाएं. थोड़ी हवा आने दें. मैं इन्हें देखती हूं.’’

इस के बाद अनामिका ने विजय के कपड़े ढीले कर दिए. उस की ठोढ़ी ऊपर उठा कर सिर पीछे झुकाया और फिर उस की नाक बंद कर मुंह पूरा खोल दिया. फिर उस ने अपना मुंह ढक्कन की तरह उस के मुंह पर फिट कर पूरी हवा मुंह में छोड़ दी. उस ने ऐसा हर 5 सैकंड बाद किया और तब तक करती रही, जब तक कि विजय की नाड़ी या धड़कन काम न करने लगी.

इस के बाद विजय के मुंह से पानी निकलने लगा. अनामिका ने उस की गरदन टेढ़ी कर के पानी निकाल दिया और फिर से उसे सांस देने लगी.

थोड़ी देर में ही विजय को थोड़ा होश आने लगा. इस के बाद उसे आननफानन ही पास के एक अस्पताल में ले जा कर भरती कराया गया.

अनामिका भी साथ में ही थी. वह सारी रात गीले कपड़ों में विजय के पास रही. उस के कपड़ों से बदबू तक आने लगी थी, पर वह विजय की ढाल की तरह वहीं जमी रही.

सुबह जब बारिश का जोर कम हुआ, तब विजय के मांबाप अस्पताल में आए. तब तक विजय को पूरी तरह होश आ चुका था.

विजय ने बताया, ‘‘मां, यह अनामिका है. इस ने ही मुझे डूबने से बचाया है.’’

मां कुछ बोलतीं, इस से पहले ही अनामिका ने कहा, ‘‘अरे, यह सब बताने की क्या जरूरत है. तुम ठीक हो, यही काफी है.’’

‘‘नहीं अनामिका, आप ने वाकई बड़ी बहादुरी दिखाई. डूबते को तिनके का सहारा होता है और आप तो एक ऐसी इनसान हैं, जिस ने अपनी जान की परवाह न करते हुए हमारे बेटे को न सिर्फ बचाया है, बल्कि सारी रात यहां अस्पताल में बिता दी,’’ विजय के पापा अमरनाथ बोले.

‘‘अनामिका, हम तुम्हारे लिए क्या कर सकते हैं,’’ विजय की मां लक्ष्मी देवी ने कहा.

‘‘मुझे कुछ नहीं चाहिए. यह तो मेरा फर्ज था. विजय अब ठीक है, यही मेरे लिए काफी है,’’ अनामिका बोली.

इस हादसे को बीते 10 महीने हो गए थे. अनामिका और विजय गहरे दोस्त बन गए थे. दोस्त से ज्यादा ही. उन में प्यार के बीज फूट पड़े थे. उन का यह दोस्ती का रिश्ता विजय के मांबाप भी जानते थे.

एक शाम को विजय और अनामिका एक कैफे में बैठे कौफी पी रहे थे. विजय ने पूछा, ‘‘यार, एक बात बताओ कि उस दिन तुम ने मुझे इतनी आसानी से कैसे बचा लिया था?’’

‘‘क्योंकि, मैं बहुत अच्छी तैराक हूं,’’ अनामिका ने झट से जवाब दिया.

‘‘तुम ने स्विमिंग कहां से सीखी?’’

‘‘नदी में. मैं तो 4 मिनट तक सांस रोक कर पानी के भीतर तैर सकती हूं.’’

‘‘वाह, पर ऐसा करने की जरूरत ही क्या है?’’

‘‘हमारा काम ही ऐसा है गांव में.’’

‘‘कैसा काम…? मैं अभी तक कुछ समझा नहीं,’’ विजय ने पूछा.

‘‘मैं मछुआरा जाति से हूं… हम मल्लाह हैं और बिहार के वैशाली जिले में रहते हैं. मेरे पिता केशवराम का यही पुश्तैनी कारोबार है. उन के पास 10 बड़ी नाव हैं. कई कोल्ड स्टोरेज हैं और वे मछली का होलसेल काम करते हैं.’’

‘‘तुम मछुआरा जाति से हो…?’’ विजय ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘हां, जनाब. इस समाज का होना कोई गुनाह है क्या?’’ अनामिका ने पूछा.

‘‘गुनाह तो है. तुम ने मुझ से यह बात क्यों छिपाई?’’ विजय गुस्सा होते हुए बोला.

‘‘मैं ने कुछ भी नहीं छिपाया है. तुम ने आज पूछा, तो मैं ने सब सच बता दिया है.’’

‘‘पर, यह हम दोनों के रिश्ते के लिए अच्छी बात नहीं है. मुझे सोचना पड़ेगा हम दोनों के बारे में,’’ विजय बोला.

‘‘यह तुम कैसी बातें कर रहे हो? हम दोनों यूपीएससी का प्रिलिमिनरी ऐग्जाम क्लियर कर चुके हैं. एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी भी करेंगे. तुम्हारे मांबाप हम दोनों की दोस्ती के बारे में जानते हैं और आज तुम मेरी जाति पर सवाल उठा रहे हो. मेरी जाति से मुझे जज कर रहे हो,’’ अनामिका बोली.

‘‘यार, तुम मछुआरा जाति की हो और मैं ब्राह्मण लड़का हूं. मेरे मांबाप जब यह सुनेंगे, तब हंगामा मच जाएगा,’’ विजय बोला.

‘‘तुम ने आज जता और बता दिया कि एक पढ़ेलिखे लड़के के मन में भी जातिवाद का जहर किस कदर दिमाग में भरा हुआ है. तुम जानते हो कि यूपीएससी के प्रिलिमिनरी ऐग्जाम में मेरी रैंक कितनी अच्छी आई है. जनरल कैटेगरी वालों से भी अच्छी है.

‘‘मुझे यकीन है कि मैं आईएएस जरूर बनूंगी. तुम भी बनोगे, पर आज यह कितने शर्म की बात है कि तुम अपने मांबाप से हम दोनों के रिश्ते के बारे में बताने से हिचक रहे हो, जबकि वे जानते हैं कि हम कितने गहरे दोस्त हैं.’’

‘‘मेरा वह मतलब नहीं है. तुम मुझे पसंद हो, पर मम्मीपापा को मनाना बहुत पेचीदा काम है,’’ विजय ने कहा.

‘‘पता है, आज जब तुम ने मेरी जाति के बारे में सुनने के बाद जो रिऐक्शन दिया है, उस से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की एक बात को बहुत ज्यादा बल मिला है और उन्हें सच साबित करने में तुम ने कोई कोरकसर नहीं छोड़ी है,’’ अनामिका बोली.

‘‘कौन सी बात?’’ विजय ने पूछा.

‘‘अभी बिहार में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि अगर आप अपर कास्ट नहीं हैं, तो इस देश में सैकंड क्लास सिटीजन हैं. दलित, पिछड़े, आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिलाएं और ओबीसी सब इस में शामिल हैं. सिस्टम ने आप को घेर कर रखा है.’’

‘‘पर, यह तो बिहार विधानसभा चुनाव में वोट हासिल करने की कोई रणनीति भी हो सकती है,’’ विजय ने शक जाहिर किया.

‘‘यह सच है. राहुल गांधी ने इन सैकंड क्लास लोगों को संबोधित करते हुए आगे कहा कि जाति जनगणना समाज का एक्सरे है, जिस से आप को वंचित रखा जा रहा है. यह क्रांतिकारी कदम है, इसलिए आरएसएस और भाजपा इसे रोकना चाहती है, मगर अब दुनिया की कोई ताकत इसे नहीं रोक सकती है.

‘‘उन्होंने आगे कहा था कि तेलंगाना में जाति जनगणना हुई, आंकड़े आए तो हम ने आरक्षण बढ़ा दिया. यह डाटा मोदीजी आप को नहीं देना चाहते हैं. मैं मोदीजी से कहना चाहता हूं कि यह जो आप ने 50 फीसदी आरक्षण की झूठी दीवार बनाई है इसे हटाइए, नहीं तो हम इसे गिरा कर फेंक देंगे.’’

इस पर विजय बोला, ‘‘पर, यह तो एक सियासी भाषण है. राहुल गांधी ने पटना के श्रीकृष्ण मैमोरियल हाल में आयोजित संविधान सुरक्षा सम्मेलन में यह सब कहा था और उन्होंने माना कि पूर्व में कांग्रेस से गलती हुई है.

‘‘राहुल गांधी ने आगे कहा कि मैं पहला व्यक्ति हूं, जो यह कहेगा कि बिहार में कांग्रेस को जो काम करने चाहिए थे, जिस मजबूती और गति से करने चाहिए थे, वह हम ने नहीं किए. हम अपनी गलती को समझे हैं.

‘‘अब हम बिना रुके, पूरे शक्ति से कमजोर, गरीब, दलित, वंचितों, महिलाओं को ले कर आगे बढ़ेंगे.

‘‘बिहार में कांग्रेस और गठबंधन की यही भूमिका है कि वह गरीब, दलित, ओबीसी, ईबीसी को आगे बढ़ाए. मैं ने और अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बिहार की टीम को साफसाफ बता दिया है कि गरीब व पिछड़ी जनता को प्रतिनिधित्व दीजिए.

‘‘हम दलितों और महिलाओं के लिए राजनीति का दरवाजा खोल कर बिहार का चेहरा बदलना चाहते हैं. हाल ही में हम ने कांग्रेस जिलाध्यक्षों की नई सूची जारी की है. पहले जिलाध्यक्षों की सूची में दोतिहाई अपर कास्ट के लोग थे, मगर अब जिलाध्यक्षों की नई सूची में दोतिहाई ईबीसी, ओबीसी, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज के लोग हैं.’’

‘‘तुम मेरी बात को ठीक से नहीं समझ रहे हो. यहां राहुल गांधी के सियासी भाषण की बात नहीं हो रही है, बल्कि मैं यह बताना चाहती हूं कि आजादी के इतने साल के बाद भी किसी नेता को यह कहना पड़ रहा है कि अगर आप अपर कास्ट नहीं हैं, तो इस देश में सैकंड क्लास सिटीजन हैं.

‘‘बिहार के अपने इस दौरे पर राहुल गांधी ने संविधान की प्रति दिखाते हुए कहा था कि अंबेडकर ने सचाई के लिए लड़ाई लड़ी. उन्होंने देश के गरीबों के लिए लड़ाई लड़ी. वे देश के दलितों को समझ पाए. वे उन के दुख को, उन की सचाई को समझ पाए. बाद में वे उसी सचाई को ले कर लड़े.

‘‘हम सचाई से दूर नहीं जा सकते. संविधान ही देश की सचाई का रक्षक है. हम सचाई की लड़ाई लड़ रहे हैं. अंबेडकर की विचारधारा हमारे खून के भीतर है और इसे कोई नहीं मिटा सकता.

‘‘राहुल गांधी ने आगे कहा कि देश में 95 फीसदी लोग दलित, पिछड़े, ईबीसी, ओबीसी और अति दलित हैं. लेकिन 5 फीसदी लोग इस पूरे देश को चला रहे हैं. बस, 10 से 15 लोग हैं, जिन्होंने पूरे कौरपोरेट इंडिया को पकड़ रखा है. आप का लाखोंकरोड़ों रुपया सीधा इन की जेबों में जा रहा है. इन लोगों ने पूरे सिस्टम को घेर कर रखा हुआ है.’’

विजय समझ गया था कि जाति की बात छेड़ कर उस ने गलत किया है, पर अब तो कमान से तीर निकल चुका था. अनामिका को यह कतई बरदाश्त नहीं था कि विजय उस की जाति पर सवाल उठाए, जबकि वह अपनी जाति पर गर्व महसूस करती थी.

अनामिका को अपने पिता के काम पर किसी तरह की कोई शर्म नहीं थी, क्योंकि उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर यह सब कारोबार जमाया था. खुद कम पढ़ालिखा होने के बावजूद उन्होंने अपनी बेटी को पढ़ाया और उस की काबिलीयत को पहचाना.

विजय अब दोराहे पर खड़ा था. एक तरफ उसे अनामिका का गुस्सा शांत करना था, तो वहीं दूसरी तरफ उसे अपने मांबाप को यह कड़वी हकीकत बतानी थी. अनामिका कैफे से जा चुकी थी.

अगले दिन से ही अनामिका ने विजय को इग्नोर करना शुरू किया, पर विजय पर तो प्यार का रंग भी उतना ही चढ़ा था, जितना जाति का. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे अनामिका को भरोसा दिलाए. उस ने मां से तो बात नहीं की, पर अपनी बड़ी बहन सुधा को फोन पर सब बता दिया, जो अनामिका से मिल चुकी थी और विजय की जान बचाने के किस्से को जानती थी.

सुधा के कहने पर विजय ने एक दिन अनामिका से प्यार जताने का फैसला कर लिया. अनामिका गर्ल्स होस्टल में रहती थी. विजय स्विगी डिलीवरीमैन की ड्रैस पहन कर उस के दरवाजे पर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘मैडम, आप का केक…’’

Hindi Story: अजीब जिंदगी

Hindi Story: आंगन में बैठा प्रीतम ध्यान से हरी दूब और रंगबिरंगे फूलों में खो जाना चाहता था. मोना के इंतजार में दोपहर से शाम होने को आई थी. कभीकभार एकाध बादल आसमान पर आ जाता, तो उसे यों लगने लगता जैसे बादल उसे ही खिजा रहा है. कभीकभार हवा भी सरसराती कोई सवाल पूछती थी. शाम ने काजल लगा लिया था.

चश्मा उठा कर प्रीतम भी भीतर आ गया. बत्ती जलाई और टैलीविजन देखने लगा. किसी सीरियल में एक रोमांटिक सीन चल रहा था. प्रीतम ने चैनल नहीं बदला, मगर वह सीन गौर से देखा भी नहीं. उसे मोना याद आ रही थी. 4 बजे स्कूल की छुट्टी हो जाती है. अब 7 बजने को आए हैं, मगर उस का कुछ अतापता नहीं.

प्रीतम ने पिछले हफ्ते बुखार और जुकाम होने पर डाक्टर की सलाह ली थी.

‘यह इंफैक्शन भी हो सकता है. आप घर पर भी मास्क लगाओ. दफ्तर मत जाओ. औरों को भी मुसीबत में मत डालो. 7 दिन बाद एक दफा मिल लेना. अगर मैं ठीक समझूंगा तो दफ्तर चले जाना,’ डाक्टर ने अपना फैसला सुनाया.

सचमुच वह राय नहीं फैसला ही हुआ करता था. पिछले 8 साल से प्रीतम उन डाक्टर की ही शरण में जाता था. प्रीतम पर उन का इलाज तुरंत असर करता था.

न जाने किधर खोया हुआ प्रीतम अभी भी आशा की ज्योति जलाए हुए था कि मोना फोन तो करेगी कम से कम.

प्रीतम मन ही मन गुस्सा हो रहा था कि तभी अचानक मोना आई और कुरसी पर पसर गई. प्रीतम का जुकामबुखार कुछ नहीं पूछा. सीधा बोली, ‘‘अभी बाहर से खाना मंगवा लेती हूं. तुम में तो अब सुधार है. दाल मंगवा रही हूं. खा तो लोगे न…?’’ जवाब सुने बगैर उस ने खाना और्डर कर दिया.

कमाल की बात यह है कि प्रीतम और मोना उस के बाद 20 मिनट तक चुपचाप ही बैठे रहे. वहीं मेज पर पानी की बोतल रखी थी. मोना ने 2 बार पानी उसी बोतल से गले में उतार लिया था.

खाना आ गया था. मोना ने पूछा, तो प्रीतम ने खुद ही दूध में कौर्नफ्लैक्स मिला लिया. मोना ने थाली ली. रोटी और दाल मिला कर खाने लगी.

2 चम्मच दूध और कौर्नफ्लैक्स प्रीतम ने भी गले से नीचे उतार लिया. पेट में जरा भोजन गया, तो उन दोनों को तब जा कर कुछ दम आया शायद.

पहले मोना ही बताने लगी, ‘‘सुनो, आज मैडम जुत्सी का विदाई समारोह था. बहुत ही बढि़या हुआ, मगर ये प्रिंसिपल भी खूब पाखंड करते हैं. मैडम जुत्सी आज तक स्कूल में एक घंटा ऐक्स्ट्रा नहीं रुकीं, तो उन्होंने भी मैडम जुत्सी को ऐक्स्ट्रा भाव नहीं दिया.

5 मिनट में ही उठ कर चल दिए और बहाना बना दिया कि आज डीईओ के पास खास मीटिंग है. वहां जाना है.’’

प्रीतम मोना को सुन रहा था.

‘‘फिर मैं ने और बानी ने मिल कर सब संभाला. कमाल की बात तो यह कि हम को ही न चाय मिली, न समोसे. ऐसा ही होता है न,’’ कह कर मोना दो पल के लिए ठहर गई.

‘‘प्रीतम, तुम जरा सी दाल चख लो. एकदम सादा है. पेट को कुछ न होगा,’’ कह कर मोना ने स्नेह दिखाया और प्रीतम भी पिघल गया. उस ने मोना की ही थाली में से दाल और चपाती चख ली.

अब प्रीतम को मनुहार भरी परवाह से देखते हुए मोना ने उस से कौर्नफ्लैक्स की कटोरी और चम्मच ले लिया.

झूठे बरतन रसोई में सिंक के हवाले कर मोना हथेली में गुड़ के 2 टुकड़े रख कर लाई और बोली, ‘‘लो, एक खा लो यार. अच्छा लगेगा.’’

प्रीतम ने हथेली से उठा कर एक डली को मुंह में रख लिया.

‘‘कल से शायद दफ्तर जाना शुरू कर दूं,’’ प्रीतम ने गुड़ की मिठास में घुलते हुए बताया.

‘‘ओह, एक हफ्ता निकल गया यार, मैं ने तो एक दिन भी तुम्हारी सेवा नहीं की. कितना थका दिया स्कूल की नौकरी ने. कभी मन होता है कि इसी पल यह नौकरी छोड़ दी जाए, फिर लगता है कि काम के बिना चैन भी तो नहीं मिलता है न.’’

मोना यों ही उठ कर प्रीतम का सिर दबाने लगी और बोली, ‘‘इतने दिन बच्चों का पेपर सैट करना था. कोई होश ही नहीं था मुझे. ऊपर से 2 दिन बाद एक कंपीटिशन कराना है. उस का भी मुझे ही इंचार्ज बना दिया है.

‘‘मन तो करता है कि मैडम जुत्सी बन कर सब टाल कर चैन से रहा जाए, मगर जिन बच्चों को पढ़ाते हैं, उन के लिए कोई अच्छा काम नजरअंदाज नहीं किया जाता…’’

मोना प्रीतम के बाल जांचने लगी, ‘‘प्रीतम, मैं बालों में नारियल का तेल और कपूर मिला कर लगा देती हूं.

बहुत रूखे बाल हो रहे हैं. दवा का असर हो रहा है. चेहरा भी कैसा सुस्त सा हो गया है,’’ कहते हुए वह नारियल का तेल और कपूर की टिकिया ले आई. हाथ से ताली सी बजा कर उस ने दोनों को मिलाया.

‘‘गरदन जरा ढीली रखो यार,’’ कह कर मोना बालों की जड़ों को देख कर उन में तेल लगाने लगी.

कुछ सैकंड बाद पूरे माहौल में नारियल और कपूर की महक फैल गई थी. प्रीतम को मोना शुरू से ही बेहद पसंद थी. मोना का मन बेहद सच्चा है, कालेज के जमाने से ही. ऐसे ही प्रेम विवाह थोड़े ही न किया था उन दोनों ने.

खिड़की से चांद चमक रहा था. इस समय प्रीतम का घर दुनिया का सब से सुखी घर था.

Emotional Story: मां

Emotional Story: ऐसा शब्द मां, जिसे पुकारने के लिए बच्चा तड़प उठता है. मां के बिना जिंदगी अधूरी है. यों तो हर इनसान जी लेता है, पर मां की कमी उसे जिंदगी के हर मोड़ पर खलती है. हर इनसान को मां की ममता नसीब नहीं होती.

मां की कमी का दर्द वह ही बयां कर सकता है, जो मां की ममता से दूर रहा हो. हम दुनिया में भले ही कितनी तरक्की कर लें, पर मां की कमी हमें कभी न कभी किसी न किसी मोड़ पर रुला ही देती है. किसी दिन का कोई लम्हा ऐसा गुजरता होगा, जब हम अपनी मां को याद न करते हों.

यह भी इत्तिफाक ही है कि किस्मत से मेरे पापा का बचपन बिन मां के गुजरा. उस के बाद मेरा और मेरे बच्चों को भी मां का प्यार नसीब न हुआ.

हम सब छोटीछोटी तमन्नाओं को मार कर जीए. खानेपहनने, घूमने या फिर जिद करने की, वह मेरे पापा मुझ से और मेरे बच्चों से कोसों दूर रही, क्योंकि मेरे पापा, मैं और मेरे बच्चे ही क्या दुनिया में लाखों इनसान बिन मां के जिंदगी गुजारते हैं.

लेकिन मां की कमी का दर्द वह ही समझ सकता है, जिस के पास उस की मां न हो. जिन की मां बचपन में ही उन्हें छोड़ दे, उस पर क्या बीतती है, वह मुझ से बेहतर कौन जानता होगा.

मेरे पापा की मम्मी तो बचपन में ही इस दुनिया से चली गई थीं. उस के बाद मेरी मां भी बचपन में ही मुझे छोड़ कर चली गईं.

लेकिन मेरे बच्चों का नसीब देखो कि उन की मां अभी इस दुनिया में हैं, पर वह अपनी जिंदगी बेहतर और अपनी मरजी से जीने के लिए इन मासूम बच्चों को रोताबिलखता छोड़ कर चली गई, जिस से इन मासूमों का बचपना भी छिना, प्यार भी छिना और उन का भविष्य भी अंधकारमय हो कर रह गया.

दुनिया में कोई कितना भी मुहब्बत का दावा कर ले, लेकिन मां की ममता कोई नहीं दे सकता. वह सिर्फ सगी मां ही दे सकती है, जो बच्चों की एक आह पर तड़प उठती है.

आज से 30 साल पहले मैं ने अपनी मां को खोया था. मां को खोने के बाद मैं कितना तड़पा था, यह मैं ही जानता हूं. मेरी छोटीछोटी तमन्नाएं अधूरी रह गईं. मेरा खेलना, मेरा बचपना सबकुछ खामोशी में तबदील हो कर रह गया.

मां के गुजर जाने के बाद मेरे पापा ने दूसरी शादी नहीं की. उन्हें डर था कि कहीं सौतेली मां बच्चों के साथ फर्क न करे, उन्हें मां की ममता से दूर रखा, उन की पढ़ाई बंद करवा दी और उन्हें बचपन से ही मजदूरों की तरह काम करना पड़ा, वह भी भूखेप्यासे, क्योंकि नई बीवी के आने से दादाजी तो उन के पल्लू से बंध कर रह गए और वह अपने इन नए बच्चे जो मेरे पापा की नई मां से पैदा हुए थे, उन पर ही अपना प्यार लुटाने लगे और अपनी पहली बीवी के बच्चों को भूल गए.

नई मां ने उन का बचपन मजदूर में तबदील कर दिया. उन की पढ़ाई जहां की तहां रुक गई. खेलनेकूदने की उम्र में उन्हें उन की औकात से ज्यादा काम दिया जाने लगा.

यही वजह थी कि मेरे पापा की उम्र उस वक्त महज 40 साल थी, लेकिन फिर भी उन्होंने दूसरी शादी नहीं की, क्योंकि वे अपने बच्चों पर दूसरी मां का साया नहीं डालना चाहते थे.

पापा के इस बलिदान से हम सब भाई पढ़े भी और जिंदगी में कामयाबी भी हासिल की, पर मैं एक ऐसा शख्स था, जो मां की ममता के लिए हमेशा तड़पता रहा. मुझे न पढ़ाई अच्छी लगी और न ही घर में रहना. वैसे, जैसेतैसे मैं ने एमकौम कर लिया था, पर मां के जाने के बाद मैं मां की ममता के लिए एक साल अपनी चाची के पास रहा. वहां मुझे प्यार तो मिला, लेकिन सिर्फ इतना जितना मैं उन के घर का काम करता था. उन के घर का झाडूपोंछा, उन के छोटेछोटे बच्चों को खिलाना ही मेरी जिंदगी का हिस्सा बन कर रह गया था.

खाना उतना मिल जाता था, जिस से मैं जी सकता था. पत्राचार द्वारा ही मैं पढ़ा. उस का खर्च मेरे पापा उठाते रहे और समझाते रहे कि बेटा, अपने घर आ जाओ, लेकिन मां की मुहब्बत की चाह में मैं ने अपनी चाची के घर एक साल निकाल दिया.

इस एक साल में मैं अच्छी तरह समझ चुका था कि मां की ममता सिर्फ सगी मां ही दे सकती है और कोई नहीं. इस एक साल में मैं छोटीबड़ी हर बीमारी, हर जरूरत से खुद ही लड़ा. किसी को मेरी फिक्र नहीं थी. सब अपने सगे बच्चों को ही अहमियत देते हैं, दूसरों की औलाद को तो यतीम होने का ताना देते हैं और यतीम होने के नाते ही खाना देते हैं.

ये शब्द मैं ने कई बार अपनी चाची से सुने. उन्होंने तो बस सिर्फ अपने घर का काम करने और बच्चों की देखभाल के लिए मुझे रखा था. यही वजह थी कि मैं अपना गांव छोड़ कर मुंबई आ गया और सब रिश्तों से दूर हो गया.

यहां आ कर मैं ने एक बेकरी में काम किया. मेहनत बहुत थी, पर मैं ने हिम्मत नहीं हारी. भूख के वक्त या ज्यादा थक जाने के बाद मैं तन्हा बैठ कर रोता था और अपनी मां को याद करता था, लेकिन मेहनत करता रहा. यही वजह थी कि मैं जल्दी ही कामयाबी के रास्ते पर बढ़ता गया और कुछ ही साल में अपनी बेकरी ले ली और मुंबई यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन ऐंड जर्नलिज्म का कोर्स कर लिया. कहानी लिखना मेरा शौक था, जो मैं ने जारी रखा.

कई साल बाद मैं अपने गांव गया और वहां मैं ने भी शादी कर ली. मुझे काफी खूबसूरत बीवी मिली. उस की खूबसूरती की जितनी तारीफ की जाए, कम थी. उस की और मेरी उम्र में 10 साल का फर्क था. उस की खूबसूरती ऐसी थी, मानो जन्नत से कोई हूर उतर कर जमीन पर आ गई हो. उस की बड़ीबड़ी आंखें, गुलाबी गाल, सुर्ख होंठ और काले घने लंबे बाल किसी भी इनसान को अपना दीवाना बनाने के लिए काफी थे.

यही वजह थी कि पहली ही नजर में मैं उस का दीवाना हो गया था और उस का हर हुक्म मानने के लिए हर वक्त तैयार रहता था. इस वजह से शादी के एक महीने बाद ही मैं उसे अपने साथ मुंबई ले आया और शादी के एक साल बाद ही मैं एक बच्ची का बाप बन गया.

हम दोनों एकदूसरे से काफी मुहब्बत करते थे. यही वजह थी कि शादी के हर एक साल बाद वह मां बनती रही और इस तरह मैं 3 बेटी और एक बेटे यानी 4 बच्चों का बाप बन गया.

शादी के 7 साल कैसे गुजर गए, हमें पता ही नहीं चला. मेरी बीवी और मैं अपने बच्चों से बेहद प्यार करते थे, लेकिन मेरी बीवी मुझ से ज्यादा बच्चों से प्यार करती थी. किसी के अंदर इतनी हिम्मत न थी कि कोई उस के बच्चों को तू भी कह सके. वह अपने बच्चों की हर छोटीबड़ी जरूरत का ध्यान रखती थी और अपने बच्चों को अपनी जान से ज्यादा प्यार करती थी.

वक्त गुजरता गया. फिर आखिर वह वक्त भी आ गया, जिस ने हमारी जिंदगी में तूफान ला खड़ा किया था और मेरे बच्चे तिनकों की तरह बिखर गए थे. उन की मां उन्हें तन्हा छोड़ कर चली गई थी. उन का बचपन, उन की पढ़ाई, सब अंधकारमय हो कर रह गया था और वे मां की ममता के लिए तड़पतड़प कर जीने को मजबूर हो गए.

इन बच्चों की इस तड़प के लिए जिम्मेदार कोई और नहीं, बल्कि वह मां थी, जिसे ममता की देवी कहा जाता है. जिस के साए में बच्चे अपनेआप को सुरक्षित महसूस करते हैं. जिस का प्यार पाने के लिए बच्चे बेचैन हो उठते हैं.

वह ‘मां…’ शब्द को शर्मसार कर के बच्चों को तन्हा छोड़ कर अपनी जिंदगी बनाने या यह समझ कि वह अपनी जवानी और खूबसूरती का फायदा उठा कर अकेले जीने के लिए चली गई.

कभीकभी इनसान गलत संगत में पड़ कर अपना घर बरबाद तो कर ही लेता है, लेकिन वह यह नहीं सोचता कि उस की इस गलती का खमियाजा कितने लोगों को भुगतना पड़ेगा, कितने लोगों की जिंदगी तबाह हो कर रह जाएगी.

मेरे और मेरे बच्चे के साथ भी यही हुआ था. हमारी खुशहाल जिंदगी में मेरी बीवी की दोस्त और उस की चचेरी बहन ने ऐसा ग्रहण लगाया कि मेरे बच्चे मां के लिए तरस कर रह गए.

दरअसल, हुआ यह कि मेरी बीवी की चचेरी बहन मुंबई घूमने आई थी और हमारे ही घर पर रुकी थी. मैं उस के बारे में ज्यादा नहीं जानता था और न ही मुझे जानने का वक्त था, क्योंकि मैं अपने कामों में बिजी रहता था.

मेरी बीवी की चचेरी बहन बिंदास, खुले विचारों वाली एक मौडर्न लड़की थी. उस ने कई बौयफ्रैंड बना रखे थे.

30 साल की होने के बावजूद उस ने अभी तक शादी नहीं की थी, क्योंकि वह अपनी मरजी की जिंदगी जीने वाली लड़की थी.

उसे शादी के बंधन में बंध कर अपनी आजादी खत्म नहीं करनी थी. वह जिंदगी के हर लम्हे का मजा लेना चाहती थी. उस का यह कहना था कि जिंदगी बारबार नहीं मिलती, एक बार मिलती है तो क्यों न उस का मजा लिया जाए. अपने हिसाब से जिया जाए, क्यों शादी के बंधन में बंध कर अपनी जिंदगी के मजे खराब कर के बच्चे पैदा किए जाएं और किचन में जा कर अपनी खूबसूरती पति और बच्चों के लिए बरबाद की जाए.

उस की इस मौडर्न जिंदगी ने मेरी बीवी को इतना प्रभावित किया कि वह यह भूल गई कि वह 4 बच्चों की मां है और किसी की बीवी भी है.

वह चचेरी बहन मेरी बीवी के सामने ही अपने बौयफ्रैंड से बातें करती रहती थी और जल्द ही उस ने मुंबई में भी कई बौयफ्रैंड बना लिए थे और उन के साथ होटलों में खाना, घूमना और उन से महंगेमहंगे गिफ्ट लेना और मेरी बीवी को दिखाना, उसे रिझाना और यह कहना कि तुम इतनी खूबसूरत हो कर क्या जिंदगी जी रही हो, कह कर ताने मारना शुरू कर दिया था.

बस, उस चचेरी बहन की बातें सुन कर मेरी बीवी ने पहले तो जिम ज्वाइन किया, उस के बाद उस ने भी जींस और टौप पहनना शुरू कर दिया, लेकिन वह इस पर भी न रुकी और जल्द ही उस ने घर का काम करना बंद कर दिया. वह अपनी चचेरी बहन के साथ देर रात आने लगी. उस का बच्चों से भी लगाव कम होता गया.

यहां तक कि वह डिस्को भी जाने लगी और अब उसे मुझ में भी कोई रुचि न रही. उसे तो अब मौडर्न बनने का भूत सवार हो चुका था. उस के जिम की कई मौडर्न सहेली भी घर पर ही आने लगीं, जो बारबार मेरी बीवी को भी यह तंज कसतीं कि तुम इतनी मौडर्न, इतनी खूबसूरत और तुम्हारा पति तो तुम्हारी पैर की जूती के बराबर भी नहीं.

मैं यह सुन कर चुप रहता, क्योंकि अपनी बीवी के सामने बात करने या कोई शिकायत करने की हिम्मत मैं आज तक न जुटा पाया था.

मैं उसे जितनी इज्जत दे रहा था, उतना ही वह मुझ से नफरत कर रही थी, क्योंकि उस के दिमाग में तो अब आजादी का भूत सवार हो चुका था. मैं इतना समझ गया था कि जब तक इस की चचेरी बहन यहां से नहीं जाएगी और इस का जिम जाना बंद नहीं होगा, तब तक इस का बच्चों पर न ध्यान रहेगा और न ही यह मुझे तवज्जुह देगी.

मैं यही दुआ कर रहा था कि इस की चचेरी बहन अपने घर चली जाए. उसे आए हुए एक महीना हो गया था, जल्द ही मेरी यह दुआ कबूल हो गई और उस ने घर जाने की तैयारी कर ली.

मैं यह सोच रहा था कि अब मेरी बीवी में जरूर कुछ बदलाव आएगा, पर मेरा यह सोचना गलत साबित हुआ. अब वह अपनी नई मौडर्न सहेलियों के साथ ज्यादातर वक्त बाहर गुजारने लगी. उसे न बच्चों की चिंता थी और न ही मेरी. आएदिन कोई न कोई फोटोग्राफर घर पर आने लगा. वह अपनी मौडलिंग की तैयारी में कभी बेहूदा फोटो खिंचवाती, तो कभी उन के साथ बाहर शूट करने चली जाती.

एक दिन अचानक मेरी बीवी घर छोड़ कर चली गई. मैं ने उसे फोन किया, तो उस ने नहीं उठाया. काफी
देर बाद उस का ही फोन आया और उस ने कहा कि मुझे ढूंढ़ने की कोशिश मत करना. अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती.

मैं ने रोते हुए उस से कहा कि इन बच्चों का क्या होगा?

उस ने दोटूक जवाब दिया कि बच्चे तुम्हारे हैं, तुम समझ. मैं इन्हें अपने साथ घर से थोड़े ही लाई थी. अगर तुम ने थाने में रिपोर्ट की या किसी से भी मेरे लौट आने की सिफारिश की, तो मैं सब के सामने एक ही जवाब दूंगी कि मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना. इस से पहले कि मैं तुम पर कोई आरोप लगाऊं या तुम्हें नामर्द बोल कर बेइज्जत करूं, तुम खुद समझदार हो. मुझे ऐसा कुछ करने पर मजबूर मत करना. तुम अपनी मरजी की जिंदगी जीओ और मुझे भी अपनी जिंदगी जीने दो. तुम दूसरी शादी कर लो, मुझे कोई एतराज नहीं है. यह मेरी तुम से आखिरी बातचीत है. इस के बाद न मैं भविष्य में कभी तुम से बात करूंगी और न ही तुम्हारी जिंदगी में दखल दूंगी.

एक साल तक उस का इंतजार करने के बाद मैं पुलिस थाने में जा कर रिपोर्ट दर्ज कराने गया कि मेरी बीवी मेरे साथ नहीं रहती. एक साल से मुझे उस की कोई खबर भी नहीं है.

पुलिस ने मेरी बात सुनी और कहा कि तुम उसे ढूंढ़ना चाहते हो या नहीं. मैं ने उन से कहा कि ऐसी हालत में मुझे क्या करना चाहिए?

पुलिस ने कहा कि जब वह तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती तो उसे ढूंढ़ना बेकार है. वह अब नहीं आएगी. तुम अपनी शिकायत दर्ज करा दो कि उस के किसी भी गलत कदम का मैं जिम्मेदार नहीं हूं, क्योंकि वह एक साल से मुझ से अलग है.

मैं ने यह शिकायत लिख कर उस की एक कौपी अपने पास रख ली और मैं अपने बच्चों की परवरिश में लग गया.

मेरे लिए बच्चों की अकेले देखभाल करना बड़ा ही मुश्किल था, क्योंकि कामकाज का भी ध्यान रखना जरूरी था, ताकि बच्चों की अच्छी परवरिश हो सके.

मेरे दोस्तों ने मुझे दूसरी शादी करने की सलाह दी. बीवी के जाने के 2 साल बाद मैं ने एक बेवा से दूसरी शादी कर ली. उस के भी 2 बच्चे थे और मेरे भी 4 बच्चे थे.

इस तरह मेरे बच्चों को नई मां मिल गई. उस ने मेरे बच्चों का अच्छा खयाल रखा, लेकिन मेरे बच्चों को वह मां की मुहब्बत न मिल सकी, जो एक सगी मां से मिलती है. उन की पढ़ाई की जिम्मेदारी, उन के खानेपीने की जिम्मेदारी उन्हें नई मां से तो मिल गई, पर वह मां न मिल सकी, जो और बच्चों को मिलती है. दोष भी किस को दूं, जब सगी मां ने ही उन की परवाह न की तो किसी और से उम्मीद क्या की जाए.

मैं अपने बच्चों को दिल से लगाना चाहता हूं. पर अफसोस, मैं अब ऐसा नहीं कर पाता हूं. मैं उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहता हूं, पर अब मेरे लिए यह मुमकिन नहीं. मैं उन्हें अच्छा खिलाना चाहता हूं, पर अफसोस, मैं उन्हें नहीं खिला सकता.

मैं उन बच्चों की जिद पूरी करना चाहता हूं, पर नहीं कर सकता, क्योंकि बाप और बच्चों में कुछ फासले पैदा हो गए, जिन्हें लांघना मेरे बस में नहीं और मेरे बच्चे ऐसे बदनसीब बन कर रह गए, जिन की सगी मां ने ही उन का साथ न दिया तो किसी और से क्या उम्मीद की जाए. कम से कम उन्हें दो वक्त का खाना तो मिल ही जाता था.

वह छोटीमोटी जिद तो अपनी इस नई मां से कर ही लेते हैं. उन की नई मां उन की पसंद का खाना तो बना ही देती है. उन की पढ़ाई का कुछ ध्यान तो रखती ही है. उन की सेहत का कुछ ध्यान तो रखती ही है.

बच्चे तो सहमे हुए हैं ही, क्योंकि उन्हें अपनी सगी मां की याद तो आती ही होगी. कभीकभार बंद कमरे में अपनी मां को याद कर के रोते ही हैं. भले ही वे मना करते हैं कि उन्हें अपनी सगी मां की याद नहीं आती.

पर, मैं बाप हूं, उन की आंखों की लाली और उस से टपकते हुए आंसू से इतना तो मालूम चल ही जाता है कि उन के बेवजह रोने की वजह क्या है? चुपचाप, शांत गुमसुम रहने की वजह क्या है? कभी खाना न खाने की वजह क्या है? होलीदीवाली या फिर ईद के त्योहार पर उन के गुमसुम रहने की वजह क्या है? वह अपनी मां की मुहब्बत को दिल में छिपाए रहते हैं. उन की हंसी कहां गायब हो गई, यह मैं बेहतर जानता हूं. उन का पढ़ाई में मन न लगना मैं अच्छी तरह सम?ाता हूं. यह सब 2 बड़े बच्चों में मिलता है, जो 7 और 8 साल के हैं. जो छोटे 4 और बच्चे हैं, जो 2 साल के हैं, उन्हें अपनी मां की याद नहीं आती और न ही उस की सूरत पहचानते होंगे, इसलिए वे खुश रहते हैं.

आज उन का भविष्य अधर में है, क्योंकि नई मां उन्हें समझ नहीं पाती. उन्हें अच्छी तालीम नहीं दे पाती. वह समझती है कि अगर वह कुछ कहेगी, तो मुझे बुरा लगेगा, इसलिए उस ने उन के खानेपीने, पढ़ाईलिखाई, अच्छाबुरा सब उन के ऊपर छोड़ दिया है. कोई खाए या नहीं, कोई पढ़े या नहीं, उसे सिर्फ मुझ से ताल्लुक है. वह सिर्फ मुझे खुश रखने की कोशिश करती है. पर, उसे क्या मालूम कि मेरी खुशी कहां है, मेरा सुकून कहां है, मेरी जिंदगी का मकसद क्या है. बच्चे ही मेरी जिंदगी हैं. काश, वह बीवी के साथसाथ एक जिम्मेदार मां भी बन जाए.

मुझे आज भी वह वक्त याद है, जब बच्चों की मां गलत संगत में नहीं पड़ी थी. किस तरह बच्चों की पढ़ाईलिखाई, उन के खानेपीने का ध्यान रखती थी. घर में कितनी खुशहाली थी, बच्चे कितने खुश थे, कितने साफसुथरे रहते थे.

मां के जाने के बाद बच्चों की जिंदगी थम सी गई. वे गुमसुम हो कर रह गए. ऐसा लगता जैसे उन का सबकुछ तबाह हो गया हो. वे सिसकसिसक कर जी रहे हैं. असल में तो वे उसी वक्त मर गए थे, जब उन की मां उन्हें बेसहरा छोड़ कर चली गई थी.

मां तो मां ही होती है, पर समझ में नहीं आता कि ऐसी भी मां होती है, जो सिर्फ अपने लिए जीती है.
फिर भी मेरे बच्चों के पास मां तो है, जो उन का खयाल रखती है. मेरे बच्चे तन्हा तो नहीं हैं. कोई तो है उन की फिक्र करने वाला. हर बच्चे को सबकुछ तो नहीं मिलता, फिर भी मेरे बच्चे हजारों से बुरे हैं तो लाखो से बेहतर भी हैं, क्योंकि उन के पास उन की नई मां जो है.

Hindi Story: रैन बसेरा

Hindi Story, लेखक – ए. सिन्हा

महीनों नहीं, सालों गुजर गए थे, उसे इसी तरह इंतजार करते हुए. वह सोचता था कि शायद किसी दिन रंजू मेम साहब का खत आ जाए. लेकिन इंतजार का मीठा फल उसे अभी तक नहीं मिला था. वह अब उसी होटल का मालिक हो गया था, जिस में कभी वह नौकर हुआ करता था.

उन दिनों रंजू अपनी सहेलियों के साथ इम्तिहान देने आई थी. वे सब उसी होटल में नाश्ता करती थीं, जहां वह बैरा था.

जब रंजू पहली बार होटल में आई थी, तो वही और्डर लेने गया था. वह दिन उसे अच्छी तरह याद था. उस के दिलोदिमाग पर उस दिन की सभी बातें जैसे अपनी अनोखी छाप छोड़ गई थीं.

‘‘जी मेम साहब,’’ वह मेज के पास जा कर बोला था.

‘‘4 जगह समोसे और कौफी,’’ सब से खूबसूरत लड़की बोली थी.

वह सामान मेज पर रख कर पास में ही खड़ा हो गया था. फिर तो यह रोज का काम हो गया था.

रंजू के आते ही वह सभी ग्राहकों को छोड़ कर उस की मेज के पास पहुंच जाता था. जाने क्यों, उसे वह बहुत अच्छी लगती थी.

उस के दिल की बात शायद रंजू के साथसाथ उस की सहेलियां भी भांप गई थीं. तभी तो एक दिन एक लड़की ने पूछा था, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘अनु,’’ …छोटा सा जवाब उस ने दिया था.

‘‘अनु… वाह, क्या बात है. रंजू, तुम्हारे आशिक का नाम तो लाजवाब है. बहुत प्यारा है तुम्हारा आशिक,’’ एक दूसरी लड़की बोली थी.

इस बात पर सभी लड़कियां हंस दी थीं. तब अनु को ऐसा महसूस हुआ, मानो पायलों की झंकार गूंज उठी हो. तभी उस ने देखा कि रंजू भी तिरछी निगाहों से उस की ओर देख रही थी.

उस दिन बिल देने के बाद रंजू ने बाकी बचे पैसे लेने से इनकार कर दिया.

‘‘रख लो अनु… अपनी महबूबा के खत का जवाब कैसे दोगे?’’ एक लड़की बोली थी, तभी दूसरी लड़की ने कहा, ‘‘क्यों रंजू, खत लिखोगी न अपने भोले आशिक को?’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं… अपने भोले आशिक को हम कैसे भूल सकते हैं,’’ रंजू ने मुसकराते हुए जवाब दिया था.
इसी मुसकुराहट पर तो वह दीवाना था.

पर उस दिन के बाद रंजू फिर कभी नहीं आई. कई साल गुजर गए, लेकिन उस का कोई खत नहीं आया. अनु सोचता, ‘रंजू मेमसाहब ने कहा था कि वे खत लिखेंगी. फिर अभी तक क्यों नहीं लिखा?’

एक रात वह खुद खत लिखने बैठ गया. पर चंद लाइनें लिखने के बाद ही उस ने वह खत फाड़ डाला. 2-3 बार कोशिश करने के बाद आखिर में वह एक शानदार खत लिखने में कामयाब हो गया. लेकिन तब उसे खयाल आया कि उस के पास तो रंजू मेमसाहब का पता ही नहीं है. तब मायूस हो कर उस ने वह खत भी फाड़ दिया.

अकसर वह डाकिए को देखता तो दौड़ कर उस के पास चला जाता, एक हसरत लिए हुए. एक दिन डाकिए ने उसे देखते ही डांट दिया, ‘‘तुम्हारे आगेपीछे कोई है ही नहीं… तब कौन लिखेगा तुम्हें खत? मेरा दिमाग मत चाटा करो… जाओ यहां से.’’

उस घड़ी वह बहुत मायूस हो गया था. उस का सिर शर्म से झुक गया था. भारी कदमों से वह अपने कमरे की तरफ लौट गया था.

कुछ दूर जाने पर डाकिए के मन में पछतावा हुआ कि उस ने क्यों बेचारे को बेकार में डांट दिया. पता नहीं, किस के खत का उसे इंतजार है? कल उस से पूछेगा. नहीं होगा, तो वह खुद लिख कर उसे दे देगा. कम से कम उस के दिल को ठंडक तो मिलेगी.

उसी रात अनु अपने पलंग पर लेटा था. कमरे का दरवाजा खुला था. बत्ती बुझी हुई थी. कमरा अंधेरे में डूबा हुआ था. इस वक्त भी वह रंजू के खयालों में खोया था. तभी एक साया तेजी से कमरे में दाखिल हुआ और उसी तेजी से पलंग के नीचे छिप गया, तभी और 4 साए कमरे में आए.

अनु ने बत्ती जला दी थी. वे चारों साए अब खतरनाक गुंडों की शक्ल में दिखाई देने लगे.

‘‘ऐ… इधर तू ने कोई लड़की देखी है क्या…?’’

‘‘धीरे बोलो भाई साहब, कोई सुनेगा तो हंसेगा. हम ने सालों से कोई लड़की नहीं देखी है.’’

‘‘ज्यादा होशियारी नहीं मारने का बच्चे… वरना हड्डीपसली एक कर दूंगा,’’ एक गुंडा बोला.

‘‘ऐ… धमकी किसी और को देना, अनु को नहीं… समझा क्या?’’

फिर तो वहां कुरुक्षेत्र का मैदान बन गया. अनु की आवाज सुन कर 7-8 पड़ोसी भी वहां पहुंच गए. सब ने मिल कर उन गुंडों की खूब धुनाई की. वे गालियां बकते हुए भाग गए.

अनु ने अब कमरे का दरवाजा अंदर से बंद किया और पलंग के पास झुक कर बोला, ‘‘आप जो भी हैं, बाहर आ जाइए… वे लोग चले गए हैं.’’

पलंग के नीचे से निकलने वाले साए को देख कर वह चौंका, क्योंकि उस के सामने रंजू मेमसाहब खड़ी थीं.

‘‘रंजू… मेमसाहब, आप?’’

‘‘मुझे छूना मत अनु, मैं किसी के काबिल नहीं रही.’’

‘‘किसी के काबिल रही हो या न रही हो, लेकिन अनु के काबिल तो तुम हमेशा ही रहोगी.’’

‘‘मैं मुजरिम हूं. मैं ने तुम्हारे मासूम प्यार का मजाक उड़ाया है… एक अमीरजादे से ब्याह रचा लिया, जिस का नतीजा यह मिला. मेरे मर्द ने मुझे तबाह कर दिया.’’

‘‘अब आगे कुछ मत कहो रंजू. मेरे लिए तुम अब भी वही चुलबुली रंजू मेमसाहब हो,’’ इतना कह कर अनु ने अपनी बांहें फैला दी थीं. कुछ सोचते हुए उन फैली हुई बांहों में रंजू समा गई.

अगले दिन डाकिया दरवाजे पर अनु को न पा कर बहुत दुखी हुआ. उस ने दरवाजा खटखटाया, तो अनु बाहर आया.

‘‘तुम खत के बारे में पूछते थे न… तुम्हें किस के खत का इंतजार है?’’ डाकिए ने पूछा.

‘‘चाचा, तुम्हारी एक ही फटकार ने मेरी जिंदगी बदल डाली. अब खत की जरूरत ही नहीं है… खत लिखने वाली मेरी महबूबा रंजू मेमसाहब खुद ही चली आई हैं. मेरा उजड़ा हुआ रैन बसेरा बस गया है चाचा.’’

पास ही रंजू खड़ी मन ही मन मुसकरा रही थी.

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