Best Hindi Story : 5 प्रेमियों वाली प्रेमिका

Best Hindi Story : जानकी को मैं इसलिए भी ‘जानकीजी’ कह कर संबोधित करता था, क्योंकि वे मुझ से उम्र में 20 साल बड़ी थीं यानी मैं 35 साल का था और वे 55 साल की थीं. प्यार की पहल भी जानकीजी ने खुद की थी. उन्होंने ही मुझ से कहा था कि वे मुझे पसंद करती हैं और मैं जानकीजी के प्रेमजाल में फंस गया.

जानकीजी से मेरी पहली मुलाकात शहर के एक अस्पताल में तब हुई थी, जब मेरे पापा वहां कुछ दिनों के लिए भरती हुए थे. पापा की हालत काफी सीरियस थी, इसलिए मेरा मन बहुत अशांत था. मन को शांत करने की गरज से मैं वार्ड से बाहर वेटिंगरूम में आ कर बैठ गया.

वेटिंगरूम में पहले से बहुत सारे लोग मौजूद थे, जिन के मरीज वहां भरती थे. वेटिंगरूम के शोरशराबे के बीच मैं भी एक सीट पर जा कर बैठ गया. मन बहुत परेशान था, इतना परेशान कि कोई भी चेहरा देख कर मेरी परेशानी को पढ़ सकता था.

जानकीजी मेरे बगल वाली सीट पर बैठी थीं, इस का मुझे कोई अंदाजा नहीं था. मेरी बेचैनी को उन्होंने अच्छी तरह मेरे चेहरे से पढ़ लिया था.

‘‘आप का कोई भरती है यहां क्या?’’ जानकीजी ने मुझ से बात करने का सिलसिला शुरू किया.

‘‘जीहां, मेरे पापा भरती हैं. वे वार्ड नंबर 4 में हैं,’’ मैं ने पहली बार जानकीजी को नजर भर के देखा था.

‘‘घर से और कोई नहीं आया?’’

‘‘जी नहीं, घर में ज्यादा लोग नहीं हैं. जो हैं, उन के पास फुरसत नहीं है.’’

‘‘कोई नहीं, आजकल सभी का यही हाल है. मेरा पेशेंट वार्ड नंबर 5 में है. अगर आप को मेरी कैसी भी कोई हैल्प चाहिए, तो प्लीज बेझिझक मुझ से कह दीजिएगा,’’ जानकीजी ने मुझ से हमदर्दी जताई.

‘‘जी शुक्रिया.’’

‘‘शुक्रिया की कोई बात नहीं है. इनसान ही इनसान के काम आता है.’’

‘‘जी हां, यह तो है,’’ मेरे और जानकीजी के बीच बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ता, इस से पहले वार्डबौय ने आ कर जानकीजी को बताया कि उन्हें डाक्टर बुला रहे हैं.

जानकीजी वार्डबौय के साथ वहां से चली गईं. 10-15 मिनट बाद वे फिर वेटिंगरूम में आईं और मुझ से बोलीं कि उन का मन चाय पीने का है.

इतना कह कर जानकीजी मुझे भी अपने साथ अस्पताल की कैंटीन में ले गईं.

हम दोनों ने एकएक चाय पी और साथ में एकएक समोसा भी खाया. चाय पीने के बाद मैं चाय का पेमेंट करने लगा, तो जानकीजी बोलीं, ‘‘यहां टोकन से चाय मिलती है और टोकन की पेमेंट मैं कर चुकी हूं.’’

मैं जानकीजी को ऐसे देखने लगा, जैसे मुझे उन का चाय पिलाना अच्छा नहीं लगा. उन्होंने जैसे मेरे मन को पढ़ा और मुसकरा कर बोलीं, ‘‘कोई बात नहीं, अगली बार चाय का बिल तुम चुका देना.’’

मैं फिर कुछ नहीं बोला और चुपचाप जानकीजी के साथ कैंटीन से बाहर आ गया. उस के बाद हम दोनों अकसर साथ ही कैंटीन जाते और जोकुछ खानापीना होता, साथ ही खातेपीते.

मेरे पापा एक हफ्ते तक अस्पताल में रहे और जानकीजी का पेशेंट 5 दिनों में ही ठीक हो गया था.

जानकीजी ने मुझे कभी यह नहीं बताया कि उन का उन के मरीज से क्या रिश्ता है और मरीज औरत है या मर्द. मैं ने भी उन से इस बारे में कभी कुछ नहीं पूछा. वे मुझ से 2 दिन पहले अपने घर चली गईं. जाते समय मैं उन से नहीं मिल पाया था, क्योंकि उस समय मैं अस्पताल में नहीं था.

इन बीते 5 दिनों में मेरे और जानकीजी के बीच औपचारिक बातों के अलावा कोई दूसरी बात नहीं हुई. न हम ने अपने मोबाइल नंबर आपस में बदले और न ही एकदूसरे से यह जानने की कोशिश की कि कौन कहां रहता है या कौन क्या करता है.

जानकीजी का बरताव तो बढि़या था ही, रंगरूप, कदकाठी से भी वे सब को अपनी तरफ खींच लेती थीं. कुदरत ने उन्हें दरमियाने कद, गोरेचिट्टे और छरहरे बदन, काली कजरारीनशीली आंखें, होंठों तक पहुंचती पतलीलंबी नाक और गुलाब की पंखुडि़यों जैसे खूबसूरत होंठों के अलावा मधुर आवाज से भी नवाजा था.

अस्पताल से पापा को घर ले आने के बाद भी मैं जानकीजी को कभीकभी मन में याद कर लेता था.

समय अपनी रफ्तार से दौड़ रहा था और जानकीजी धीरेधीरे मेरे दिलोदिमाग और खयालों से ओझल हो रही थीं कि अचानक एक दिन उन से मेरा दोबारा आमनासामना हो गया.

मैं शहर के एक मौल से खरीदारी कर के अपनी बाइक लेने के लिए मौल की पार्किंग की तरफ आया कि सामने से आती जानकीजी ने अपनी चिरपरिचित मुसकान से मेरा स्वागत किया.

उस दिन वे बला की खूबसूरत लग रही थीं. जवान लड़कियों की तरह उन के चेहरे पर चमक थी. मुझे पहचानने में उन्होंने एक मिनट का भी समय नहीं लगाया.

‘‘हैलो, पहचाना मुझे?’’ चिडि़यों की तरह चहकती हुई आवाज में जानकीजी बोलीं.

‘‘क्यों नहीं, आप को कैसे भूल सकता हूं,’’ मेरा जवाब सुन कर वे जवान लड़कियों की तरह खिलखिला कर हंस पड़ीं और बोलीं, ‘‘हम ऐसे ही हैं. हम से जो एक बार मिल लेता है, वह हमेशा हमें याद रखता है. खैर, छोड़ो और यह बताओ कि कैसे हो?’’

‘‘मैं अच्छा हूं और आप…?’’

‘‘मैं भी अच्छी हूं. आप को देख कर और अच्छी हो गई,’’ जानकीजी के बात करने का लहजा मुझे अच्छा लगा.

‘‘खरीदारी करने निकले हो, वह भी अकेले ही?’’

‘‘आप भी तो अकेली हैं,’’ इस बार मैं ने भी मजाक कर दिया.

‘‘अकेले तुम, अकेले हम,’’ जानकीजी ने फिल्मी डायलौग बोल कर फिर मजाक किया, तो मेरी हंसी छूट गई.

वे बात बदल कर बोलीं, ‘‘अभी मेरे पास तकरीबन 45 मिनट हैं. उस के बाद मेरी किसी से मीटिंग है.

चलिए, तब तक साथ बैठ कर एकएक कप कौफी पीते हैं. इसी बहाने हमारी पहचान कुछ और गहरी हो जाएगी.’’

जानकीजी ने जितने अपनेपन से मुझे कौफी औफर की, उतनी ही शिद्दत से मैं ने उन के औफर को स्वीकार भी कर लिया.

म दोनों मौल की दूसरी मंजिल पर बने कौफीहाउस में आ गए. सीट पर बैठने से पहले ही जानकीजी ने मुझ से कहा, ‘‘यह कौफी मेरी तरफ से होगी, इस की पेमेंट मैं करूंगी.’’

जानकीजी की बात पर मैं कुछ न बोल कर बस मुसकरा दिया. वे सामने काउंटर पर चली गईं. उन्होंने 2 कौफी और स्नैक्स का और्डर दे कर गूगल पे से पेमेंट कर दी.

जानकीजी जब तक काउंटर पर रहीं, तब तक मैं उन्हें पीछे से देखता रहा. वे बहुत ही खूबसूरत दिखाई दे रही थीं. पतलेदुबले सुडौल जिस्म पर उन्होंने लाइट ग्रीन कुरता और डार्क ग्रीन प्लाजो पहना हुआ था, जो उन की खूबसूरती को और निखार रहा था.

मैं ने महसूस किया कि जानकीजी को पीछे से देख कर कोई यह अंदाजा नहीं लगा सकता कि वे अपनी उम्र के 55 साल पूरे कर चुकी होंगी. उन के चेहरे का गुलाबीपन, उन की चंचल शोख अदाएं, झील सी गहरी आंखें और चेहरे के हावभाव से वे अपनी उम्र को 1-2 नहीं, तकरीबन 12 से 15 साल कम कर चुकी थीं.

कुलमिला कर उन की चंचलता और फुरतीलापन मुझे बरबस ही उन की तरफ खींच रहा था और उन की सादगी दूसरे लोगों को अपनी तरफ मुड़ कर देखने के लिए मजबूर कर रही थी.

मैं देख रहा था, जो भी उन के करीब से गुजर रहा था, वह उन्हें एक बार नजर भर के जरूर देख रहा था. मैं तो पहले से ही उन की सादगी का कायल था, क्योंकि मुझे औरत का जरूरत से ज्यादा सजनासंवरना और क्रीमपाउडर लगाना बिलकुल भी पसंद नहीं था.

जानकीजी खुद ही छोटी ट्रे में 2 कप कौफी और स्नैक्स ले कर आईं और मेरे सामने वाली सीट पर बैठ गईं. वे मुझे देख कर मुसकरा रही थीं. बदले में मैं भी मुसकरा रहा था.

अस्पताल के बजाय मौल में मिलने का जानकीजी का अंदाज और तौरतरीका एकदम जुदा था. अस्पताल में वे जितनी शालीन और सरल नजर आ रही थीं, मौल में उतनी ही चंचल और शोख दिख रही थीं. उन के बात करने का अंदाज भी जुदा था.

‘‘कितना अजीब इत्तिफाक है कि हम दोनों की यह दूसरी मुलाकात है, पर अभी तक हम एकदूसरे का नाम भी नहीं जान पाए. मेरा नाम जानकी है, जानकी माथुर. मैं दीपांशा हाइट में रहती हूं. समाजसेवा का शौक है, कविताएं भी लिख लेती हूं. एक बेटी और एक बेटा है. दोनों की शादी कर दी है. दोनों विदेश में रहते हैं,’’ जानकीजी ने एक सांस में ही अपने बारे में मुझे सबकुछ बता दिया.

‘‘और आप के हसबैंड….?’’

हसबैंड का नाम सुनते ही जानकीजी का चेहरा एकदम फक्क पड़ गया. जैसे उन्हें उम्मीद नहीं थी कि मैं उन से उन के हसबैंड के बारे में पूछ लूंगा.

इस से पहले कि उन के मन के भाव उभर कर उन के चेहरे पर ठहरते, उन्होंने खुद को संभाल लिया और मुसकरा कर बोलीं, ‘‘हसबैंड का होना या न होना मेरे लिए कोई माने नहीं रखता है. कहने के लिए मेरे हसबैंड बिजनैसमैन हैं, पर मैं ने खुद अपनेआप को बनाया है.’’

जानकीजी के मन को पढ़ना या समझना इतना मुश्किल नहीं था. मैं समझ गया कि वे अपने हसबैंड के बारे में कोई बात नहीं करना चाहती हैं, इसलिए मैं ने बात बदलते हुए कहा, ‘‘मेरा नाम गणेश है. मैं एक प्राइवेट कंपनी में असिस्टैंट हूं. पत्नी ने 5 साल पहले मुझ से तलाक ले लिया है. 4 साल का एक बेटा है, जो अपनी मां के साथ ही रहता है.’’

मेरे बारे में जान कर जानकीजी के चेहरे पर अफसोस की क्षणिक लकीरें खिंची हुई दिखाई दीं. उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा, ‘‘बीवी ने तलाक ले लिया, पर क्यों?’’

‘‘क्योंकि, मैं निहायत ही सरल और सादगीपसंद हूं, इसलिए मैं उन के फ्रेम में कहीं फिट नहीं हुआ. उन्हें आजकल के लड़कों की तरह तड़कभड़क से रहने वाला इनसान चाहिए था.

‘‘इसी बात को ले कर हमारे बीच आएदिन कहासुनी होती थी. इस बीच उन्होंने मुझ से तलाक मांगा. मैं भी रोजरोज की किचकिच से तंग आ गया था, इसलिए मैं ने भी उन्हें तलाक दे दिया.’’

‘‘पत्नी ने आप से तलाक ले लिया, फिर आप अपनी जरूरतों को कैसे मैनेज करते हैं?’’ अपनी बात कह कर जानकीजी हंसने लगीं. जरूरतों से जानकीजी का मतलब फिजिकल रिलेशन से था, जो मैं अच्छी तरह समझा रहा था.

मैं जानकीजी के इस सवाल का जवाब देने ही वाला था कि उन का फोन आ गया और वे फोन पर कुछ पल के लिए बिजी हो गईं.

जानकीजी की बातों से समझ में आ रहा था कि फोन उसी शख्स का है, जिस के साथ उन की मीटिंग थी. जानकीजी की बात खत्म होते ही मैं भी उठ कर खड़ा हो गया.

‘‘अच्छा जानकीजी, आप अपनी मीटिंग कीजिए, मैं चलता हूं.’’

जानकीजी ने एक बार भी मुझे रुकने को नहीं कहा. बस, इतना कहा, ‘‘ठीक है, मैं ने अपना नंबर आप को दे दिया है. आप मुझे कभी भी फोन कर सकते हैं.’’

‘‘ओके,’’ इतना कह कर मैं वहां से चला आया.

नीचे आ कर मेरी मुलाकात राघव से हो गई. वह मेरा पुराना परिचित था.

‘‘यहां कैसे राघव…?’’ मैं ने पूछा.

‘‘किसी के साथ मीटिंग है.’’

‘‘ओके,’’ मैं ने राघव को ज्यादा कुरेदना नहीं चाहा, इसलिए हम दोनों अपनेअपने रास्ते चले गए.

पार्किंग से बाइक निकाल कर मैं अपने घर की तरफ चल दिया. बाइक पर चलते हुए मेरे जेहन में फिर से राघव का चेहरा घूम गया. दिमाग में एक ही सवाल गूंजने लगा कि मौल में राघव की मीटिंग किस से हो सकती है? कहीं उस की मीटिंग जानकीजी से ही तो नहीं है?

अगर राघव की मीटिंग जानकीजी से है, तो फिर जानकीजी राघव को कैसे जानती हैं और उन दोनों के बीच किस बात को ले कर मीटिंग होगी?

मेरे मन में यह भी खयाल आया, लेकिन अगले ही पल मैं ने उस खयाल को मन से छिटक दिया और अपना ध्यान बाइक चलाने में लगा दिया.

अगली सुबह एक खूबसूरत इमोजी के साथ जानकीजी का ‘गुड मौर्निंग’ लिखा मैसेज मेरे ह्वाट्सएप पर तैरने लगा. बदले में मैं ने भी उन्हें ‘वैरी गुड मौर्निंग’ का मैसेज भेज दिया. दिनभर हमारे बीच कोई बात नहीं हुई, लेकिन रात को तकरीबन 9 बजे जानकीजी का ‘गुड नाइट’ लिखा मैसेज मुझे मिला. तो मैं ने भी उन्हें ‘वैरी गुड नाइट’ का मैसेज लिख कर भेज दिया.

‘गुड मौर्निंग’ और ‘गुड नाइट’ के मैसेज के साथ धीरेधीरे जानकीजी अपनी निजी बातें भी मेरे साथ शेयर करने लगीं, जैसे उन्होंने आज नाश्ते में, लंच में और डिनर में क्या बनाया और क्या खाया. वे आज कहां गई थीं, किस के साथ गई थीं. आज उन्होंने कौन सी और किस रंग की ड्रैस पहनी है या उन के हसबैंड से उन की किस बात पर कहासुनी हुई.

धीरेधीरे मुझे भी जानकीजी की आदत लगने लगी. मैं भी उन्हें दिन में 1-2 बार किसी न किसी बहाने फोन कर लेता था. जिस दिन मैं उन्हें फोन नहीं कर पाता, उस दिन वे खुद मुझे फोन कर लेतीं.

फिर एक दिन जानकीजी का मन टटोलने के लिए कि उन के मन में मेरे लिए क्या है, मैं ने उन को फोन कर के कहा, ‘‘कल मेरा आप के घर की तरफ आना होगा. अगर आप की इजाजत हो तो…’’

मेरी बात पूरी होने से पहले ही जानकीजी बोल पड़ीं, ‘ओह, तो हमारे घर आने के लिए तुम्हें हमारी इजाजत चाहिए. अरे, यह आप का घर है जनाब, आप शौक से आइए,’ उन्होंने शायराना अंदाज में कहा.

अगले दिन मैं जानकीजी के घर उन से मिलने पहुंच गया. इतना बड़ा घर और जानकीजी घर में बिलकुल अकेली थीं. उन्हें अकेला देख कर मुझे हैरानी इसलिए नहीं हुई, क्योंकि वे पहले ही मुझे बता चुकी थीं कि उन के दोनों बच्चे विदेश में रहते हैं और पति बिजनैस के सिलसिले में ज्यादातर शहर से बाहर
रहते हैं.

उस दिन जानकीजी बला की खूबसूरत लग रही थीं. धानी रंग की सूती साड़ी में लिपटा उन का छरहरा सुडौल जिस्म और उस में से झांकता गोरा रंग मानो ऐसा लग रहा था, जैसे हरियाली की ओट से उगते सूरज की लालिमा झांक रही हो.

‘‘गणेशजी, क्या पीना पसंद करोगे? चाय या फिर कौफी?’’ जानकीजी ने मेरे ध्यान को अपनी तरफ से भटकाते हुए मुझ से पूछा.

‘‘कुछ भी, जो आप को पसंद हो.’’

उन्होंने 2 कप कौफी बनाई और मेज पर रख कर वे मेरे बराबर में बैठ गईं.

‘‘आप इतने बड़े घर में अकेली कैसे रह लेती हैं? आप को अकेलापन कचोटता नहीं है?’’ मैं ने ऐसे ही पूछ लिया.

‘‘जैसे आप अकेले रह लेते हैं, वैसे ही हम भी अकेले रह लेते हैं,’’ मेरे सवाल के जवाब में जानकीजी ने कहा.

हमारे बीच कुछ पल के लिए चुप्पी छाई रही, जिसे तोड़ते हुए जानकीजी बोलीं, ‘‘आप 5 साल से अकेले हैं. आप ने दूसरी शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘बस, ऐसे ही. कोई पसंद ही नहीं आया.’’

‘‘अच्छा, एक बात बताओ कि तुम्हें कैसी लेडी पसंद है?’’

जानकीजी के इस सवाल पर मैं कुछ पल के लिए चुप रहा, फिर बोला, ‘‘मुझे सादगी में लिपटी हुई औरत पसंद है.’’

जानकीजी खिलखिला कर हंस पड़ीं और बोलीं, ‘‘अच्छा… कहीं तुम्हें हम से प्यार तो नहीं हो गया ?’’

‘‘मतलब…?’’

‘‘मतलब यही कि हम भी तो तुम्हारी पसंद की तरह साधारण, सहज और शालीन हैं. हमें भी तो ज्यादा सजनेसंवरने का शौक नहीं है.’’

जानकीजी के इस जवाब के सामने मेरे मन का प्रेमी चोर बस मुसकरा कर रह गया. यही उन के लिए मेरे प्यार की मानो रजामंदी थी.

हमारी कौफी खत्म हो चुकी थी. बस, मैं वहां से जाने की सोच ही रहा था कि अचानक जानकीजी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और भावुक हो कर मेरी आंखों में आंखें डाल कर बोलीं, ‘‘तुम अच्छे लगते हो. हमें तुम से प्यार हो गया है,’’ कहते हुए जानकीजी ने बच्चों की तरह मेरा सिर अपनी गोद में रख लिया, जो मुझे अच्छा लगा.

वे अपने हाथों की उंगलियों से कंघे की तरह मेरे सिर के बालों को सहलाने लगीं, फिर उन्होंने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. फिर क्या था, मैं ने भी अपना प्यार जानकीजी पर लुटा दिया.

मुझे याद नहीं कि हम कितने मिनट तक एकदूसरे के आगोश में सिमटे रहे. प्यार की कहानियां और किस्से सुने और पढ़े जरूर थे, लेकिन प्यार का मतलब क्या होता है, यह मैं पहली बार महसूस कर रहा था.

हालांकि, मेरी शादी हो चुकी थी, पर वह एक सामाजिक बंधन था, जिस में बिना कोशिश, बिना जोरजबरदस्ती और बिना शर्त सबकुछ अपना होता है. लेकिन किसी से प्यार कर के उसे पा लेने का अलग ही मजा होता है.

प्यारमुहब्बत के नाम पर जानकीजी मेरा पहला प्यार थीं. खुशी के मारे मैं फूला नहीं समा रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे जानकीजी के रूप में दुनिया की सब से नायाब चीज मुझे मिल गई हो.

मैं जानकीजी के प्यार की गहराई में डूबता चला गया. उन के सिवा मुझे अब कुछ भी अच्छा नहीं लगता था. मेरे खयालों में सिर्फ और सिर्फ वे ही रहने लगी थीं.

हमारे प्यार की दुनिया अभी पूरी तरह से बस भी नहीं पाई थी कि एक दिन अचानक राघव से मुलाकात हो गई.

राघव ने मुझ से लंबीचौड़ी बातें न कर के सीधेसीधे कहा, ‘‘गणेश, आप जानकीजी को कितना जानते हैं?’’

मैं ने राघव के सवाल का जवाब देने के बजाय उलटा उस से ही सवाल कर दिया कि वह किस जानकीजी की बात कर रहा है?

इस पर राघव ने कहा, ‘‘मैं उन्हीं जानकीजी की बात कर रहा हूं, जिन जानकीजी से तुम कुछ दिन पहले मौल में मिले थे. उस के बाद तुम उन के घर भी गए थे.’’

‘‘यह बात तुम से किस ने कही कि मैं जानकीजी से मिला था?’’

‘‘जानकीजी ने मुझे खुद बताया है कि आप की उन से बातचीत और मुलाकात होती रहती है.’’

राघव की बात सुन कर मैं हक्काबक्का रह गया.

मुझे खामोश देख कर राघव ने कहा, ‘‘गणेशजी, अगर जानकीजी के साथ आप का प्यारव्यार का कोई चक्कर चल रहा है, तो सावधान हो जाइए, क्योंकि जानकीजी अच्छी औरत नहीं हैं. वे किसी एक की नहीं हैं. उन्होंने हमारे जैसे कइयों को अपने प्रेमजाल में फंसा रखा है.’’

‘‘कइयों का मतलब…?’’

‘‘मतलब यही कि जानकीजी जितनी सीधी, सहज और सरल लगती हैं, उतनी सीधी वे हैं नहीं. वे दिलफेंक और आशिकमिजाज औरत हैं.

‘‘मैं भी उन की मीठीमीठी बातों में आ कर उन्हें दिल दे बैठा था. लेकिन जब मेरी मुलाकात जानकीजी के एक और प्रेमी आशुतोष से हुई, तो पहले तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ था.

‘‘मुझे लगा कि आशुतोष झूठ बोल कर जानकीजी को बदनाम कर रहा है, लेकिन जब उस ने मुझे जानकीजी के साथ अपने प्यार के कुछ सुबूत दिखाए, तो मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई.

‘‘फिर मैं ने एक दिन खुद जानकीजी को एक दूसरे लड़के के साथ एक रैस्टोरैंट में देखा, तो मेरा दिमाग खराब हो गया. मैं ने जानकीजी से कहा, ‘इस उम्र में यह सब क्या चल रहा है? यह लड़का कौन है? क्या रिश्ता है इस से आप का?’

‘‘तब उन्होंने कहा कि वह उन का दोस्त है. मैं ने उन से फिर पूछा कि ऐसे उन के और कितने दोस्त हैं?

‘‘मेरी इस बात पर वह लड़का मेरे ऊपर भड़क गया और मुझे उलटासीधा बोलने लगा. हम दोनों के बीच जब कहासुनी बढ़ गई, तब जानकीजी मुझ से बोलीं कि मुझे इस तरह उन से नहीं बोलना चाहिए था. बस, उसी दिन से मुझे जानकीजी से नफरत हो गई और मैं ने उन से किनारा कर लिया.’’

‘‘लेकिन, जानकीजी तो पढ़ीलिखी सभ्य, सुशील और शादीशुदा औरत हैं, फिर वे ऐसा क्यों करेंगी?’’ मैं ने पूछा, तो राघव बोला, ‘‘यह तो मैं भी नहीं समझ पाया, क्योंकि कोई भी इनसान प्यार करता भी है, तो किसी एक से करता है. लेकिन जानकीजी के तो 2-3 प्रेमियों से मैं खुद मिल चुका हूं. और उन के अगले प्रेमी शायद आप होंगे.’’

राघव की बातें सुन कर मेरा दिमाग चकरा गया. जानकीजी को ले कर मैं जो भी सपने देख रहा था, वे सब टूट कर चकनाचूर हो गए. मैं ने 2 दिनों तक जानकीजी को फोन ही नहीं किया.

इन 2 दिनों में जानकीजी ने मुझे कई मैसेज भेजे और 2-3 बार फोन भी किया, पर मैं ने उन के किसी मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया और न ही उन का फोन रिसीव किया, क्योंकि उन के लिए मेरे अंदर नाराजगी भरी हुई थी.

तीसरे दिन जानकीजी ने जब मुझे लगातार 3-4 बार फोन किया, तो मैं ने उन का फोन रिसीव कर लिया.

‘लगता है कि आप हम से नाराज हो?’ जानकीजी ने फोन पर कहा, पर मैं चुपचाप उन का फोन सुनता रहा. जवाब में कुछ नहीं बोला.

‘लगता है कि तुम्हें राघव ने हमारे खिलाफ भड़काया है, क्योंकि हम ने राघव से तुम्हारा जिक्र किया था. क्या कहा राघव ने तुम से?’

‘‘यही कि आप उस से प्यार करती हो,’’ जो मेरे मन में भरा हुआ था, मैं ने बिना भूमिका बनाए जानकीजी से बोल दिया.

जानकीजी बनावटी हंसी हंस कर बोलीं, ‘राघव ने जो कहा, उसे तुम ने सच मान लिया.’

‘‘जानकीजी, प्लीज… आप बात को घुमाइए मत. बस, बता दीजिए कि सच क्या है?’’

‘गणेशजी, हमें अफसोस है कि तुम्हें हमारे प्यार पर भरोसा नहीं है. रही बात राघव की, तो राघव ने हमारे बारे में तुम से क्या कहा, उस के लिए तुम कुछ भी सोचने के लिए आजाद हो, हमारे बारे में तुम्हें जो सोचना है सोच लो, जो भी राय बनानी हो बना लो, पर हम आप को अपनी सफाई नहीं देंगे,’ इतना कह कर जानकीजी ने फोन काट दिया.

पहली बार जानकीजी ने मेरे साथ ऐसा गलत बरताव किया कि उन्होंने दोटूक बात कह कर फोन काट दिया, जो मुझे अच्छा नहीं लगा, इसलिए मैं ने भी उन्हें वापस फोन नहीं किया.

मुझे उम्मीद थी कि जानकीजी का गुस्सा जब शांत हो जाएगा, तब वे मुझे फोन कर के अपनी गलती की माफी मांगेंगी, लेकिन उन्होंने ऐसा किया नहीं.

एक हफ्ते बाद जब मेरा मन नहीं माना, तो मैं ने जानकीजी को फोन किया. उन्होंने मेरा फोन तो रिसीव कर लिया, पर उन्होंने कोई खुशी जाहिर नहीं की. मैं ने उन से कहा कि मैं उन से मिलना चाहता हूं, वह भी उन के घर पर.

पर जानकीजी ने यह कह कर कि वे अभी मुझ से मिल नहीं पाएंगी, क्योंकि वे कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर आई हुई हैं, फोन काट दिया.

मैं भी अपना फोन काटने ही वाला था कि जानकीजी की आवाज सुन कर चौंक गया.

‘और बताओ, रितेश कैसे हो?’

रितेश नाम सुन कर मैं समझ गया कि भूलवश उन का फोन कट नहीं पाया है. मैं जानकीजी की बातें सुनने लगा. वे किसी रितेश नाम के लड़के से बात कर रही थीं.

मुझे एक और झटका लगा. मैं समझ गया कि जानकीजी ने मुझ से झूठ बोला है. वे कहीं बाहर नहीं गई हैं, बल्कि अपने घर पर ही हैं.

मैं उन की और रितेश की सचाई जानने के लिए उन के घर चला गया. अचानक ही मुझे अपने घर में देख कर जानकीजी के हाथ के तोते उड़ गए.

‘‘क्या हुआ…? आप मुझे ऐसे क्यों देख रही हैं? और यह कौन है? इस का नाम रितेश है न?’’

जानकीजी की बगल में बैठे एक लड़के को देख कर मैं ने पूछा, तो वे नाराजगी जताते हुए बोलीं, ‘‘गणेशजी, आप बिना फोन किए आ गए. यहां आने से पहले फोन तो करना चाहिए था न.’’

‘‘फोन करता तो आप की हकीकत का पता कैसे चलता.’’

‘‘तुम कहना क्या चाहते हो?’’ जानकीजी मेरे ऊपर एकदम भड़क गईं.

‘‘जानकीजी, चोर कितना भी शातिर क्यों न हो, पर वह अपनी चोरी का एक न एक सुबूत छोड़ ही देता है. आप ने एक गलती कर दी. मुझ से फोन पर बात करने के बाद आप अपना फोन काटना भूल गईं, जिस से आप का शहर से बाहर जाने वाला झूठ पकड़ा गया. आप के फोन ने बता दिया कि आप अपने नए दोस्त रितेश के साथ अपने ही घर में रोमांस कर रही हैं.

‘‘जानकीजी, नफरत हो गई है आप से और आप की इस घिनौनी हकीकत से. आखिर आप के इस मासूम चेहरे के पीछे प्यार के नाम पर और कितने लोगों को बेवकूफ बनाने का सच छिपा हुआ है? क्यों कर रही हैं इस उम्र में यह सब? आखिर क्या चाहिए आप को? किस चीज की कमी है आप के पास?’’

मेरे किसी भी सवाल का जानकीजी के पास कोई जवाब नहीं था. हां, उन के चेहरे की हवाइयां जरूर उड़ गई थीं. पर, मुझे नहीं लगता कि उन के ऊपर मेरी किसी बात का कोई असर हुआ होगा, क्योंकि प्यार करना उन की आदत नहीं फितरत थी.

Hindi Crime Story : हत्या

Hindi Crime Story : ‘‘हाय नंदू, यह तू ने क्या कर दिया?’’ हरकली रोते हुए चिल्लाई.

नंदप्रकाश, जिसे उस की मां हरकली नंदू कह कर पुकारती थी, बिलकुल हैरान खड़ा था. भौंचक्का. नासमझ सा. लाल खून से सना गंडासा अभी भी उस के हाथ में था. उस के पिता सोमप्रकाश की लाश टुकड़ेटुकड़े में उस की मां हरकली के सामने कच्चे फर्श पर पड़ी थी.

हरकली बैठेबैठे रो रही थी. उस का सुहाग उजड़ चुका था. नंदू को अपनी करतूत पर अब पछतावा हो रहा था. उस के हाथ से गंडासा छूट कर नीचे गिर गया. वह भी अपनी मां के पास बैठ गया और पछताते हुए बोला, ‘‘मां, मुझ से यह कांड हो गया. अब क्या होगा मां?’’

हरकली ने सुबकते हुए कहा, ‘‘बेटा, तू ने इतना बड़ा कांड कर दिया है, इस की सजा जेल तो है ही, मौत की सजा भी हो सकती है.’’

‘‘नहीं मां, मैं जेल नहीं जाना चाहता, मुझे पुलिस से बचा ले मां.’’

अपने पल्लू से आंसू पोंछते हुए मां हरकली ने कहा, ‘‘नंदू, तू ने अपराध ही ऐसा किया है, इस से तू कैसे बच सकता है? सुबह होते ही पुलिस आएगी और तुझे हथकड़ी पहना कर ले जाएगी. हम तो बरबाद हो गए.’’

‘‘नहीं मां, कुछ भी कर, मुझे बचा ले. पुलिस बहुत बेरहमी से मारती है. रूह कांप जाती है.’’

‘‘यह तो बेटा तुझे पहले ही सोचना चाहिए था,’’ मां ने गुस्से में कहा.

‘‘मां, बहुत बड़ी गलती हो गई. अब किसी तरह से बचा ले,’’ इतना कह कर नंदू रोता हुआ अपनी मां के पैरों में बैठ गया. नंदू के तीनों छोटेछोटे बच्चे पहले ही सो चुके थे.

नंदू की पत्नी सुरेखा घबराई हुई सी उन के पीछे आ कर खड़ी हो गई थी. यह भयानक सीन देख कर उस के भी होश उड़े हुए थे.

नंदू का पिता सोमप्रकाश भांग के नशे का आदी हो गया था. भांग के पौधे जटपुर गांव में बहुतायत में मिलते थे. गोबर के ढेर के पास वे खुद ही उग आते थे. गांव के ज्यादातर लोग इस का नशा करते थे.

सोमप्रकाश को तो इस की लत बचपन से ही पड़ गई थी. वह भांग के पौधों की फुंगियों और मुलायम पत्तों को अपने दोनों हाथों से रगड़ता और हाथों पर लगे उस के मैल को तंबाकू में मिलाता. फिर सुल्फिया में भर कर उस के सुट्टे खींचता.

वाह, क्या नशा था भांग का. आह, क्या सुरूर चढ़ता था और फिर क्या ख्वाब आते थे. भांग के नशेड़ी कहते
थे कि और तो मरने के बाद स्वर्ग देखते हैं, वे तो जिंदा ही भांग के नशे में स्वर्ग देख लेते हैं. यह नशा ऐसा था, जिस में किसी की एक पाई खर्च नहीं होती थी.

शादी के बाद जब हरकली को सोमप्रकाश के इस शौक का पता चला, तो उस ने उसे लाख समझाया, पर सोमप्रकाश के कान पर जूं तक न रेंगी. सच है, नशा करने वाला किसी की सुन ले, तो फिर वह नशा ही क्यों करे?

भांग के नशे में सोमप्रकाश अपनी अंधेरी कोठरी में पड़ा रहता. धीरेधीरे हरकली को घर, घेर और जंगल का ज्यादातर काम अपने हाथ में लेना पड़ा. वह ट्रैक्टर से किराए पर खेतों को जुतवा लेती. खुद ही भैंसाबुग्गी जोड़ कर मवेशियों के लिए चारा भी ले आती.

ऐसा नहीं था कि सोमप्रकाश कुछ करता ही नहीं था. बिना नशे के वह बहुत काम करता था. फिर तो वह खेत के किसी काम में हरकली को हाथ भी न लगाने देता. शहर के काम भी निबटा आता और हरकली को खूब प्यार भी करता. हरकली को भी अब उस से कोई शिकायत नहीं थी. गृहस्थी का पहिया सही लुढ़क रहा था.

इसी बीच हरकली 5 बच्चों की मां बन गई थी. 4 बेटियां और एक बेटा नंदप्रकाश उर्फ नंदू. नंदू अकेला लड़का था, इसलिए सब का लाड़ला बन गया. लाड़ला इतना बना कि आवारा और निकम्मा बन गया.

हरकली ने अपनी चारों बेटियों की शादी की और नंदप्रकाश भी जब 21-22 साल का हुआ, तो उस के भी फेरे फिरवा दिए. नंदप्रकाश खेतीबारी खुद संभालने लगा. हरकली को लगा कि अब वह सब जिम्मेदारियों से छुटकारा पा गई है.

नंदप्रकाश भी जल्दी ही 3 बच्चों का बाप बन गया और हरकली इन बच्चों को संभालने में लग गई. बहू सुरेखा घर का कामधाम देखती.

एक दिन नंदप्रकाश शराब पी कर देर से घर लौटा. घर में घुसते ही सोमप्रकाश ने उसे टोक दिया, ‘‘कहां से आ रहे हैं लाट साहब?’’

नंदप्रकाश का मूड उस समय ठीक नहीं था. उस को यह टोकाटोकी अच्छी न लगी. उस ने उलटा तंज कस दिया, ‘‘भंगडि़यों में से, जहां तुम ने अपनी सारी जिंदगी गुजार दी.’’

यह तंज सोमप्रकाश की सहनशक्ति से बाहर था. वह उठा और नंदप्रकाश के गाल पर झापड़ रसीद करते हुए कहा, ‘‘बड़ों से बात करने की तमीज भी भूल गया क्या?’’

नंदप्रकाश के लिए यह काफी था. नशे में तो वह पहले से ही था, अब उस के गुस्से का ज्वालामुखी फट पड़ा. इस से पहले कि हरकली और सुरेखा उस को संभालतीं या कुछ समझा पातीं, नंदप्रकाश ने वहीं पड़ा गंडासा उठाया और उस के कितने ही वार सोमप्रकाश पर कर डाले. अब उस के खुद के बाप की लाश के टुकड़े उस के सामने पड़े थे.

हरकली सोच रही थी कि उस का सुहाग तो उजड़ ही गया है, किसी तरह बेटे को बचा कर घर बचाया जाए. न जाने उस में कहां से हिम्मत आई. उस ने रोना बंद किया और नंदप्रकाश से कहा, ‘‘बेटा, अब तो जो होना था सो हो गया. अब सब से पहले लाश ठिकाने लगाने की सोच.’’

नंदप्रकाश का अब तक नशा उतर चुका था. उस ने कहा, ‘‘मां, मेरी तो मति मारी गई. मुझे तो कुछ सूझ नहीं रहा. तू ही बता कि क्या करूं?’’

‘‘देख बेटा, अभी रात का समय है. तुझे मेरे सिवा और किसी ने हत्या करते देखा नहीं,’’ मां ने दिलासा देते हुए कहा.

‘‘इस का क्या मतलब है मां?’’

‘‘मतलब बाद में समझाऊंगी, पहले लाश को ठिकाने लगाने की सोच. देर मत कर. किसी को पता चल गया, तो कहीं के नहीं रहेंगे.’’

‘‘तो क्या करूं मां?’’

‘‘जा, जल्दी से टिन की छत के नीचे से 3-4 खाद के खाली कट्टे उठा ला.’’

‘‘उन का क्या करेगी मां?’’

‘‘तू उठा कर तो ला. तुम बापबेटे को नशा करने के सिवा कुछ दुनियादारी करना आया है क्या?’’

नंदू ने वैसा ही किया, जैसा मां ने कहा. वह खाद के 3 खाली कट्टे उठा लाया.

हरकली अपने बेटे और घर को बचाने के लिए कुछ देर के लिए पिशाचनी बन गई. सही है, एक औरत अपने परिवार को बचाने के लिए कुछ भी कर सकती है. हरकली कोई जुदा न थी. आखिरकार वह भी एक औरत थी.

वह अपने सुहाग के खून टपकते लोथड़ों को खाली कट्टों में भरने लगी. हाथपैर, हड्डी समेत लोथड़े को एक कट्टे में भर दिया. दूसरे कट्टे में धड़ रख दिया. तीसरे कट्टे में सिर और बचेखुचे लोथड़े रख दिए, फिर खून से सनी मिट्टी खुरपे से खुरचखुरच कर तीनों कट्टों में डाल दी. उस के बाद कच्चे फर्श को राख से ढक दिया.

जब हरकली दोनों हाथों को भरभर कर सोमप्रकाश के शरीर के खून टपकते लोथड़ों को उठा रही थी, तो नंदू ने इस भयंकर सीन से बचने के लिए दूसरी तरफ मुंह कर लिया. सुरेखा तो उलटी करने के लिए रसोई की ओर भाग गई.

फिर हरकली ने तीनों कट्टों के मुंह सूए से सिल दिए. उन तीनों कट्टों को एक खाली पड़े धान के बोरे में भर दिया और बोरे का मुंह सन की मजबूत रस्सी से बांध दिया.

जिस गंडासे से नंदू ने अपने बाप की हत्या की थी, उस गंडासे पर सब जगह अपने खून से सने हाथ पोंछ दिए, जिस से नंदू के हाथ का कोई निशान गंडासे पर न रह जाए, फिर उस ने उस खून सने गंडासे को ऐसे ही लकडि़यों के एक ढेर में छिपा दिया. वह आगे की सोच कर चल रही थी. आधी रात को जब पूरा गांव
सोया हुआ था, तब हरकली ने नंदू से मोटरसाइकिल स्टार्ट कराई. नंदू के पीछे लाश वाले बोरे को रखा.

फिर 2 फावड़े ले कर उस के पीछे बैठ गई.

हरकली ने नंदू से कहा, ‘‘बेटा, मोटरसाइकिल को सुक्खा नदी के किनारे ले चल और कोई कितना भी रोके, मोटरसाइकिल को रोकना मत.’’

कुछ ही देर में वे मोटरसाइकिल ले कर नदी के किनारे पहुंच गए. एक महफूज जगह देख कर मांबेटे गड्ढा खोदने में जुट गए, लेकिन हरकली पहले से ही थकी हुई थी, वह फावड़ा चलाते ही हांफ गई. नंदू ने अकेले ही गड्ढा खोदा.

मिट्टी रेतीली और नमीदार थी. लिहाजा, जल्दी ही गहरा गड्ढा खुद गया. फिर दोनों ने उन बोरे को उस गड्ढे में दफन कर दिया.

गड्ढे का मुंह बंद कर उस के ऊपर नंदू ने नदी किनारे उगी एक झाड़ी उखाड़ कर रख दी, जिस से कोई आसानी से गड्ढे को पहचान न सके.

सब काम हरकली ने बड़ी सफाई से किया. घर आ कर खून से सने सभी कपडों को पैट्रोल छिड़क कर जला दिया. नहाधो कर दोनों ने साफ कपड़े पहन लिए.

सुबह के 4 बज चुके थे. हरकली काफी थकान महसूस कर रही थी. उस ने सुरेखा से चाय बनवाई.

नंदू अब भी घबरा रहा था, जबकि हरकली के लिए घर में कोई मौत जैसी चीज नहीं रह गई थी.

‘‘मां, मुझे तो अब भी डर लग रहा है,’’ नंदू बोला.

‘‘बेटा, जब मैं नहीं घबरा रही हूं, तो तू क्यों घबरा रहा है? तू तो वैसे भी मरद है. तू चिंता मत कर. जब तक तेरी मां जिंदा है, तेरा कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता.’’

कोई कितना भी शातिर क्यों न हो, कोई न कोई सुबूत तो जानेअनजाने में छोड़ ही देता है. खून की कुछ बूंदें बोरे से रास्ते में टपकती चली गई थीं.

गांव के आवारा कुत्ते उन खून की बूंदों को सूंघते हुए लाश दबे गड्ढे तक पहुंच गए. उन्होंने पंजों से गड्ढे को खोद कर बोरा बाहर खींच लिया.

अभी वे बोरे को दांतों से खींच ही रहे थे, तभी सुबह के वक्त नदी किनारे शौच के लिए आए लोगों ने कुछ शक होने पर कुत्तों को वहां से भगा दिया और मंडावली थाने को सूचना दी.

पुलिस ने आते ही अपनी कार्यवाही शुरू की. तीनों कट्टों के मुंह खोले गए. यह पक्का हो गया था कि यह इनसानी शरीर है, लेकिन किस का…? एक कट्टे से खोपड़ी निकली, तो सब हैरान रह गए. सोमप्रकाश के चेहरे को पहचानने में गांव वालों से कोई गलती नहीं हुई.

पुलिस हरकली के घर पर आ धमकी. सब को यही शक था कि नंदप्रकाश ने ही अपने बाप की हत्या की होगी.

जैसे ही पुलिस ने नंदप्रकाश को पकड़ना चाहा, हरकली दहाड़ी, ‘‘खबरदार दारोगा, जो नंदू को हाथ भी लगाया. अपने आदमी को मैं ने मारा है, मुझे पकड़ो.’’

‘‘इस का क्या सुबूत है कि तुम ने ही अपने आदमी को मारा है?’’ दारोगा ने पूछा.

तभी वह लकडि़यों के ढेर में से खून से सना गंडासा ले कर आई और बोली, ‘‘लो दारोगा, यह रहा सुबूत. अभी तो इस पर लगा खून सूखा भी नहीं है. सबकुछ ताजाताजा है. जांच करने वालों को भी आसानी होगी.’’

यह सुन कर दारोगा सत्यवीर और गांव वाले दंग रह गए. सब के मन में एक ही सवाल था कि आखिर हरकली ने अपने आदमी को क्यों मारा? वह भी इतनी बेरहमी से, गंडासे से काट कर?

दारोगा सत्यवीर ने गंडासे को सीलबंद कराया और कानूनी कार्यवाही करते हुए थाने से 2 महिला कांस्टेबल बुलवाईं. हरकली को गिरफ्तार कर थाने लाया गया.

पूछताछ के लिए पुलिस नंदप्रकाश को भी थाने ले आई. फिर हरकली को बिजनौर जिला जेल भेज दिया गया. नंदप्रकाश को फिलहाल वकील ने जमानत पर छुड़वा लिया.

अदालत में पेशी वाले दिन वकील ने नंदप्रकाश को अच्छे से समझा दिया था कि उसे क्या बोलना है. सुरेखा को तो एकएक शब्द रटा दिया गया था.

हरकली ने अदालत में बयान दिया, ‘‘जज साहब, मेरा पति सोमप्रकाश नशेड़ी था. बहू सुरेखा उसे खाना देने गई थी. उस ने बहू की इज्जत पर हाथ डालने की कोशिश की. हरकत तो उस नशेड़ी की पहले से ही ऐसी थी, लेकिन उस रात तो उस ने सारी हदें पार कर दीं और बहू की धोती खींच ली.

‘‘मैं यह सब देख रही थी. मैं भी एक औरत हूं. औरत कुछ भी बरदाश्त कर सकती है, लेकिन अपनी इज्जत पर हाथ डालना नहीं, फिर वह चाहे कोई भी हो.

‘‘इस से पहले कि बहू कुछ करती, मैं ने वहीं पड़ा गंडासा उठाया और उस कलयुगी राक्षस पर गंडासे के कई वार कर दिए. उस का वहीं काम तमाम हो गया. बहू ने तो मुझे रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन मैं तो जैसे गुस्से से पागल हो गई थी.’’

‘‘क्या नंदप्रकाश उर्फ नंदू ने कुछ नहीं किया?’’ जज ने पूछा.

‘‘जज साहब, वह तो तब कुछ करता, जब वहां होता. वह तो इस घटना के तकरीबन आधे घंटे बाद नशे में चूर हो कर घर आया था.’’

बहू सुरेखा ने भी वही दोहरा दिया, जो वकील ने उसे रटाया था. नंदप्रकाश भी वकील की ही भाषा बोला. पुलिस ने भी सुबूत के तौर पर गंडासे पर हरकली के ही हाथों के निशान की रिपोर्ट पेश कर दी.

वकील और हरकली के हिसाब से सुनवाई सही दिशा में जा रही थी. सभी सोच रहे थे कि हरकली को सजा दे दी जाएगी और बात खत्म.

जज ने अपना फैसला सुनाना शुरू किया, ‘‘गवाहों के बयानों और सुबूतों के आधार पर हरकली…’’

‘‘रुकिए जज साहब, रुकिए. यह सच नहीं है.’’

सब की निगाहें चिल्लाने वाले शख्स की तरफ गईं. यह नंदप्रकाश था.

‘‘जज साहब, मेरी मां बेकुसूर है. यह हत्या मैं ने की है.’’

‘‘लेकिन, सुबूत और गवाह तो ऐसा नहीं कहते.’’

‘‘ जज साहब, मेरी मां मुझे बचाने के लिए ऐसा कर रही है. लेकिन जज साहब, मेरा दिल गवारा नहीं कर रहा है कि मेरी जगह मेरी मां जेल जाए.’’

‘‘जज साहब, मेरे बेटे की मत सुनिए. वह जज्बातों में बह रहा है. अदालत की कार्यवाही पूरी हो चुकी है. आप अपना फैसला सुना दीजिए जज साहब,’’ हरकली ने कठघरे से कहा.

‘‘नहीं जज साहब, सारे सुबूत और गवाह झूठे हैं. मैं आप को सब से बड़ा सुबूत देता हूं.’’

सब हैरान से नंदप्रकाश की ओर देखने लगे.

‘‘जज साहब, हत्या की बात तो छोडि़ए, इस उम्र में अगर मेरी मां इस गंडासे से 4 वार ही कर दे, तो मैं जानूं.’’

गंडासा मंगवाया गया, जो काफी वजनी था. उस गंडासे को देख कर कोई भी कह सकता था कि हरकली इस गंडासे से इतने ज्यादा भयंकर वार नहीं कर सकती.

अब तो जज भी उलझन में पड़ गया. वह भी समझ रहा था कि मांबेटे एकदूसरे को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. अब मुकदमे में एक नया मोड़ आ गया था. उस ने अपना फैसला टाल दिया और पुलिस को फिर से जांच करने के आदेश दिए. तब तक के लिए हरकली को भी जमानत मिल गई.

‘‘वाह नंदप्रकाश, तुम ने तो कमाल ही कर दिया,’’ वकील ने अदालत से बाहर आ कर कहा.

‘‘बस वकील साहब, आप की ही होशियारी है. आप ने हम दोनों को फिलहाल तो बचा लिया है,’’ नंदू
ने कहा.

‘‘फिलहाल ही नहीं नंदप्रकाशजी, अब आप दोनों समझ लेना जेल जाने से बच ही गए हो. इस मामले में अब पुलिस के हाथ हत्या का कोई सुबूत लगने वाला नहीं. बस, तुम पुलिस को खुश रखना.

‘‘बाकी भारतीय कानून व्यवस्था की लचरता को मैं अच्छी तरह समझाता हूं. यह प्याज के छिलके की तरह है, तारीख पर तारीख लगती चली जाती है, जिन का कोई अंत नहीं होता. अपराधी दुनिया से चला जाता है, लेकिन तारीखें खत्म नहीं होती हैं.

‘‘जहां तक सुबूत की बात है, बिना सुबूत के तो यहां कसाब को भी फांसी नहीं लगती, जो 26/11 के हमले में मुंबई के ताज होटल से रंगे हाथ पकड़ा गया था.’’

‘‘तो अब क्या करना है?’’

‘‘नंदप्रकाशजी, आप जरा भी चिंता मत करो. तारीख पर तारीख लगवाना मेरा काम है. अभी तो मामला निचली अदालत में है. अभी तो ऊपरी अदालतें अपील के लिए बची हुई हैं. मुझे इन अदालतों पर पूरा भरोसा है, आप बेफिक्र हो कर जिएं,’’ वकील ने मुसकराते हुए कहा.

हरकली जब जमानत पर बाहर आई, तो उस ने नंदप्रकाश को खूब डांटा. तब नंदप्रकाश ने हरकली की गोद में सिर रखते हुए कहा, ‘‘मां, मेरे रहते तू जेल जाए, ऐसा नहीं हो सकता. आखिर मेरी रगों में भी तो तेरा ही खून दौड़ रहा है, इसीलिए तो मैं ने तुझे बचाने के लिए जिले का सब से बढि़या वकील किया. उस ने हम दोनों को ही बचा लिया.’’

यह सुन कर हरकली मानो निहाल हो गई थी.

Social Story : करे कोई भरे कोई

Social Story : ‘जो लोग सिर्फ अपनी हवस मिटाने के लिए औलाद पैदा करते हैं, उन की औलाद में भी अपने मातापिता के ये गुण आते ही आते हैं और वह बच्चा आगे उसी रास्ते पर खुद ही चलने लगता है. उस बच्चे को यह पता ही नहीं चल पाता कि आखिर वह ऐसा क्यों बन गया, जबकि उस का टारगेट तो कुछ और था.

‘ठीक उसी तरह जो लोग मुहूर्त, तिथि, नक्षत्र आदि देखते हुए औलाद को जन्म देने का विचार रखते हैं, उन की औलाद में भी अपने मातापिता के अच्छे गुण साथ चलते हैं और ऐसी औलाद बुद्धिमान और संस्कारी होती है… संस्कारी होती है… संस्कारी होती है…’

ऐसी ही आवाजों की गूंज के साथ चौंक कर रमेश की नींद खुल गई वह घबराहट के मारे पसीनापसीना हो गया.

रमेश की नजर बगल में सो रहे अपने भाई नरेश पर पड़ी. उसे चैन से सोया देख कर रमेश के मन में यह विचार आया कि उसे कभी अपने भाई के जैसे चैन की नींद क्यों नहीं आती? वह क्यों हमेशा इतना बेचैन रहता है कि रातों को ठीक से सो भी नहीं पाता है?

रमेश ने अपने सिरहाने रखी पानी की बोतल खोल कर पानी पिया, पर कम पानी होने की वजह से उस की प्यास नहीं बुझी और वह पानी की बोतल लिए रसोईघर की ओर बढ़ गया.

पानी भरते हुए रमेश के दिमाग में कई बार रहरह कर यह खयाल आ रहा था कि क्या वह भी पहली श्रेणी वाले मांबाप की औलाद है और नरेश दूसरी श्रेणी वाले… कहीं इसलिए तो ऐसा नहीं है कि नरेश गुणी है और वह…

यही सब सोचतेसोचते रमेश वापस अपनी जगह पर आ कर अपने भाई को देखते हुए दोबारा सोने की नाकाम कोशिश करने लगा.

एक दिन रमेश के दोस्त देव ने अपने जन्मदिन पर एक पार्टी रखने का प्रस्ताव रखा, जिस में रमेश, अली, जस्सी, टीटू, टोनी के अलावा 4-6 लड़कियों को भी बुलाने का प्लान था.

रमेश ने कहा भी था, ‘‘यार, लड़कों की पार्टी में भला लड़कियों का क्या काम है?’’

लेकिन, बाकी सब ने कहा कि उन के बिना मजा भी तो नहीं आएगा. कैसी रूखीसूखी सी लगेगी पार्टी.

तभी अली ने कहा, ‘‘यार, वैसे भी रंग तो लड़कियों के जाने के बाद भी जमा रहेगा…’’ और सभी लड़के ठहाका लगा कर हंसने लगे.

टोनी ने कहा, ‘‘अगर वह वाला प्लान है, तो फिर पार्टी दिन में ही रखेंगे, ताकि लड़कियां जल्दी आएं और जल्दी ही चली जाएं और फिर हम सब अपनी रातें नीली कर सकें…’’ इतना सुनते ही वे सब जोरजोर से हंसने लगे.

एक देव का ही घर ऐसा था, जहां यह पार्टी बिना किसी रोकटोक के हो सकती थी, क्योंकि देव अकेला रहता था और उस के मातापिता विदेश में रहते थे.

पार्टी का होना देव के घर पर तय हुआ. किसी ने शराब का जिम्मा लिया, तो किसी ने खाने का, किसी ने सजावट और केक का, तो किसी ने संगीत और रोशनी का.

पार्टी में तेज संगीत और रंगबिरंगी गहरी रोशनी के साथ शराब बह रही थी. आने वाली लड़कियों में सिर्फ 4 ही लड़कियां दिखाई दे रही थीं. दिव्या, वंदना, कामिनी और रितु.

दिव्या ने बहुत ही कम कपड़े पहने हुए थे और वह नशे में चूर होने के साथसाथ सिगरेट के कश पर कश भी लगा रही थी.

दिव्या को देख कर अली का दिल मचल रहा था. उस ने उस के पास जा कर उसे ऊपर से नीचे तक कमीनों की नजर से देखते हुए कहा, ‘‘क्या कातिल जवानी है तेरी, मेरी जान… बस आज की रात मेरे नाम कर दे जानी… तो मजा ही आ जाएगा.’’

दिव्या ने भी टोनी को ऊपर से नीचे तक देखते हुए शराब का एक घूंट पिया और बोली, ‘‘अगर मैं ऐसा कर भी लूं, तो मुझे क्या मिलेगा छिछोरे…’’

‘‘कितना लेगी बोल…?’’

‘‘कितना नहीं, क्या लेगी पूछ…’’

‘‘अच्छा…’’ एक कुटिल मुसकान के साथ टोनी ने कहा, ‘‘तो चल, यही बता दे, क्या लेगी…?’’

दिव्या ने कहा, ‘‘शादी करेगा क्या मुझ से…?’’

टोनी कुछ कह पाता, उस के पहले ही अली ने आ कर कहा, ‘‘अबे जा… सड़क पर पड़े सामान से कोई घर नहीं सजाया करता…’’

इतना सुनने की देर थी कि दिव्या पीछे पलटी, उस ने अपनी सिगरेट का एक गहरा कश लिया और अली के गाल पर एक करारा तमाचा जड़ दिया.

तमाचा इतना जोरदार था कि एक ही झटके में अली का सारा नशा उतर गया और उस के गाल पर दिव्या की उंगलियों के निशान छप गए.

अली की ऐसी दशा देख कर वहां मौजूद बाकी सभी लोग हंस दिए. सब के सामने हुई अपनी बेइज्जती ने उस वक्त अली के अहम को एक ऐसी चोट पहुंचाई कि गुस्से में उस का सिर भन्ना गया और वह भी दिव्या के साथ हाथापाई करने को हुआ कि तभी रमेश ने बीच में आ कर किसी तरह समझाबुझा कर उस का गुस्सा शांत किया और दिव्या को भी वहां से जाने के लिए कहा.

दिव्या बाकी लड़कियों के साथ संगीत पर थिरकने लगी, तभी रितु ने वहां आ कर कोल्डड्रिंक की एक बोतल मांगी और पास ही खड़े लड़कों के इस समूह को देखते हुए ‘चीयर्स’ बोल कर संगीत पर थिरकने लगी.

यों तो रितु ने पूरे कपड़े पहने हुए थे, लेकिन उस के चुस्त कपड़ों में से उस के नाजुक अंगों के उतारचढ़ाव को देखते हुए फिर एक बार सब के दिल मचलने लगे.

जैसेजैसे शाम गहरा रही थी, वैसेवैसे नशे का माहौल भी बढ़ रहा था. अब वह समय आ चुका था, जब वहां मौजूद हर कोई नशे में चूर हो चुका था.

लड़कियां अब धीरेधीरे अपने घर जाने लगी थीं. दिव्या के साथ वंदना और कामिनी भी घर जा चुकी थीं, लेकिन एक रितु ही थी, जो अब तक पार्टी में रुकी हुई थी.

रमेश ने रितु के पास जा कर कहा, ‘‘पार्टी खत्म हो चुकी है, अब तुम भी अपने घर जाओ.’’

‘‘अरे, अगर ऐसा है, तो तुम लोग क्यों नहीं गए? तुम सब भी जाओ न…’’

‘‘हद हो गई… हम होस्ट हैं, हम ने कहा कि पार्टी इज ओवर, तो ओवर. तुम जाओ न अपने घर.’’

उस वक्त तो रितु ने कुछ नहीं कहा और जाने लगी. लेकिन जैसे ही रमेश पलटा, तो वह चुपके से जा कर छिप गई, क्योंकि उसे यह जानने की उत्सुकता हो रही थी कि आखिर ये लड़के पार्टी के बाद ऐसा क्या करने वाले हैं, जो लड़कियों के जाने के बाद ही हो सकता है.

लड़कों का प्लान तो पहले से ही तय था. सभी देव के कमरे में जा कर उस के लैपटौप को टीवी से जोड़ कर ब्लू फिल्म लगा कर बैठ गए. बात अगर ब्लू फिल्म तक होती तब भी ठीक था, लेकिन यह तो ऐसी ब्लू फिल्म थी, जिस में हैवानियत वाला सैक्स दिखाया जा रहा था.

फिल्म के दौरान जैसेजैसे हैवानियत बढ़ रही थी, वैसेवैसे लड़कों का जोश भी बढ़ता जा रहा था. किसीकिसी को तो जोश के साथसाथ गुस्सा भी भरपूर आ रहा था.

तभी अली को अपने गाल पर पड़ा दिव्या का तमाचा याद आ गया था. उस ने गुस्से में रमेश से कहा, ‘‘भाई, अगर तू बीच में नहीं आया होता न, तो मैं ने उसे वहीं का वहीं मजा चखा दिया होता. पहले ये लड़कियां खुद ही कम से कम कपड़े पहन कर हम लड़कों के आसपास मंडराती हैं और हमें उकसाती हैं और फिर जरा सा छू क्या लो, तुरंत ज्वालामुखी बन जाती हैं…

‘‘और इतना ही नहीं, मेरे ही घर पर, मेरी ही पार्टी में सब के सामने मेरी बेइज्जती कर के चली गई…’’

तभी देव ने कहा, ‘‘एक मिनट, एक मिनट, घर तो मेरा है न…? फिर तेरी पार्टी, तेरा घर…’’

‘‘भाई, क्या कह रहा है यार…? हम सब तो तेरे घर को अपना ही घर समझते हैं और अपना ही घर कहते हैं… यार, पहले ही बहुत बेइज्जती हो चुकी है, अब तू तो कम से कम दिल मत तोड़ यार…’’

‘‘ओह अच्छा, ऐसा है क्या…? चल, फिर ठीक है… कोई नहीं, जाने दे यार… लड़कियां होती ही ऐसी हैं.’’

इस सब में अली यह नहीं जानता था कि उस को तमाचा मारने वाली लड़की का नाम दिव्या है. यह सब देख कर और उन सब की बातें सुन कर रितु ने यह अंदाजा लगा लिया कि वह किस लड़की के बारे में बात कर रहा है.

रितु को लगा कि उसे जा कर दिव्या को आगाह करना चाहिए, क्योंकि कहीं न कहीं दिव्या ने अली के अहम को गहरी चोट पहुंचा दी है और अब अली उस से बदला ले कर ही रहेगा.

ऐसा सोच कर रितु डर गई और उस के मुंह से अनायास ही आवाज निकल गई.

लड़कों ने उसे देख लिया, तो रितु वहां से भागी, लेकिन सभी लड़कों ने जा कर उसे घेर लिया.

रमेश ने उसे देखते ही कहा, ‘‘तुम…? तुम से मैं ने कहा था न घर जाने के लिए. तुम को एक बार में बात समझ में नहीं आती है क्या?’’

रितु सभी लड़कों को नशे में चूर देख कर डर गई थी. उस ने कहा, ‘‘गलती हो गई. मैं जा रही हूं.’’

तभी टोनी ने कहा, ‘‘अब तो चिडि़या फंस गई जाल में. तुम ने हमारी बात न मान कर बहुत बड़ी गलती कर दी है. अब इस की सजा तो तुम्हें मिल कर ही रहेगी.’’

यह कहते ही पार्टी की बत्तियां और धीमी हो गईं. सभी लड़के रितु के आसपास गोलगोल घूमने लगे.

रितु को घबराहट होने लगी. वह सब से हाथ जोड़ कर कहने लगी, ‘‘मुझे जाने दो प्लीज… मुझे जाने दो…’’

लेकिन उस की किसी ने एक न सुनी और सभी लड़के बस एक अजीब सी हंसी में गोलगोल घूमे जा रहे थे.

रितु की घबराहट बढ़ती जा रही थी, तभी उन्हीं में से किसी ने उस के शर्ट की बांह फाड़ दी. अब तो वह बुरी तरह डर गई और घबराहट के मारेमारे थरथर कांपने लगी.

अंधेरा इतना गहरा चुका था कि हाथ को हाथ दिखाई न दे, ऊपर से अब रितु पर डर इतना हावी हो चुका था कि अब उसे न तो किसी की आवाज समझ में आ रही थी, न चेहरा ही समझ आ रहा था.

तभी उन्हीं लड़कों में से किसी ने उस की पूरी शर्ट फाड़ डाली. अपने दोनों हाथों से अपने बदन को छिपाने की नाकाम कोशिश करते हुए रितु जोरजोर से रोने लगी और बारबार यही कहने लगी, ‘‘मुझे माफ कर दो. यहां से मुझे जाने दो प्लीज.’’

तभी सभी लड़कों ने मिल कर रितु को एक पलंग के पाए से बांध दिया और उसे पूरा नंगा कर दिया. वह रोती रही, बिलखती रही, पर किसी को उस पर दया न आई.

फिर उन्हीं में से किसी एक ने रितु की आंखों पर पट्टी बांध दी और अपनेअपने मोबाइल की रोशनी से उस के बदन को गिद्धों की तरह आंखें फाड़फाड़ कर ताड़ने लगे.

अली ने रितु को चांटे ही चांटे मारे, फिर उस के होंठों से खून निकाल दिया, फिर उस की गरदन पर दांतों के निशान छोड़े, उस के सीने को अपने हाथों के नाखूनों से छील दिया और फिर उस के साथ रेप किया.

बाकी दोनों लड़कों ने भी यही किया. सब से आखिर में रमेश की बारी आई. बहुत देर तक तो वह उसे देखता ही रहा, फिर उस ने लड़की के बदन को जैसे ही छुआ, लड़की पीड़ा से कांप उठी… उस के कराहने की आवाज सुन कर रमेश भी खुद को उस पाप का भागीदार बनाने से रोक न सका.

खैर, सभी नशे में चूर होने की वजह से अपनीअपनी हवस को शांत कर के वहीं पड़ेपड़े सो गए.

अगली सुबह जब देव की नींद खुली और उस ने रितु को ऐसी हालत में देखा, तो उस के पैरों तले जमीन निकल गई.

यह देख कर देव बुरी तरह घबरा गया. उस ने सब से पहले रितु को एक चादर से ढक दिया और उस के गालों को थपथपाते हुए कहने लगा, ‘‘उठो… जागो, प्लीज…’’

लेकिन, रितु तो मर चुकी थी. डर के मारे देव ने अपने सभी दोस्तों को जगाया. सभी रितु को देख कर डर गए. किसी ने पानी के छींटे मार कर उसे उठाना चाहा, तो किसी ने उस के हाथों और पैरों को मल कर उसे होश में लाना चाहा. लेकिन अब तो बहुत देर हो चुकी थी. ज्यादा खून बह जाने के चलते रितु अब इस दुनिया को छोड़ कर जा चुकी थी.

तब रमेश ने देव से कहा, ‘‘भाई, जो होना था हो चुका. अब यह सोचो कि आगे क्या करना है.’’

देव ने कहा, ‘‘करना क्या है, चलो, चल कर खुद को पुलिस के हवाले कर देते हैं, शायद हमारी सजा कुछ कम हो जाए.’’

‘‘पागल जैसी बातें मत करो देव…’’

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. सभी के चेहरे पर पसीना आ गया.

‘‘इस वक्त कौन हो सकता है?’’ रमेश ने देव से पूछा.

‘‘पता नहीं.’’

‘‘तो जा न, तुरंत जा कर देख कि कौन है.’’

‘‘मैं जा कर देखूं…? नहींनहीं, मैं नहीं जाऊंगा… तू जा.’’

‘‘पागल मत बन… घर तेरा है, तो तुझे ही जाना पड़ेगा न… हम में से अगर कोई गया, तो किसी पर कोई भी शक हो सकता है.’’

‘‘वाह… पार्टी करनी है, ऐयाशी करनी है, तो यह मेरा घर है, हमारा घर है और अब जब मुसीबत आन पड़ी, तो तेरा घर हो गया…’’

कोई कुछ कह पाता, तब तक दरवाजे पर दस्तक बढ़ने लगी. सभी ने किसी तरह समझाबुझा कर देव को दरवाजा खोलने के लिए कहा.

किसी तरह खुद को ठीक करते हुए सामान्य दिखने की नाकाम कोशिश करते हुए देव डरासहमा सा दरवाजे के पास पहुंचा. उस ने देखा कि बाहर कामवाली गंगूबाई आई है.

देव ने चैन की सांस लेते हुए दरवाजा खोल दिया.

गंगूबाई ने देव को ऊपर से नीचे तक देखते हुए पूछा, ‘‘साहब, आप… सब ठीक तो है न?’’

‘‘हां, मैं तो ठीक हूं. पर, तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो?’’ देव ने खुद को एक नजर नीचे से ऊपर की ओर देख कर पूछा.

‘‘नहीं, आप थकेथके से लग रहे हो न साहब, इसलिए पूछा. चलो, कोई बात नहीं, मैं आप के लिए गरमागरम कौफी बनाती हूं,’’ कहते हुए गंगूबाई ने अंदर आने की कोशिश की, तो देव ने उसे दरवाजे पर ही रोकते हुए कहा, ‘‘अरे नहीं, मुझे अभी कौफी पीने का मन नहीं है.’’

‘‘अच्छा तो कोई बात नहीं, आप जा कर आराम करो न. मैं तब तक घर की साफसफाई कर देती हूं. देखो न कल रात की पार्टी के बाद सब कितना गंदा पड़ा है.’’

‘‘आज तुम्हारी छुट्टी है. तुम अभी अपने घर जा सकती हो,’’ देव बोला.

‘‘क्यों…? अब जब मैं यहां आ ही गई हूं, तो काम कर ही लेती हूं न साहब.’’

गंगूबाई ने दोबारा अंदर आने की कोशिश की, तो इस बार देव की आवाज घबराहट की वजह से ऊंची हो गई, ‘‘तुम को एक बार में बात समझ नहीं आती है क्या? मुझे कुछ नहीं चाहिए. आज मैं आराम करना चाहता हूं.’’

‘‘अरे साहब, मैं तो आप के भले के लिए ही कह रही थी,’’ कहते हुए गंगूबाई की नजर रितु की फटी शर्ट पर पड़ी और फिर वह मुंह पर पल्लू रख कर हंसते हुए वहां से चली गई.

देव को कुछ समझ में नहीं आया. वह जल्दी से दरवाजा बंद कर वापस अपने दोस्तों के पास पहुंचा.

रमेश ने कहा, ‘‘इस से पहले कि कोई और आ जाए, हमें जल्द से जल्द इस की लाश को ठिकाने लगाना होगा.

‘‘देव, तू अपनी एक शर्ट निकाल और इसे पहना दे और इस के बाकी कपड़े कहां हैं?’’

सभी हड़बड़ाहट में कपड़े ढूंढ़ने लगे, तभी देव को बहुत सारा खून दिखाई दिया, तो वह बोला, ‘‘इतना सारा खून कैसे साफ होगा?’’

रमेश बोला, ‘‘सब हो जाएगा. हमें सारे सुबूत मिटाने होंगे, इसलिए हमें अभी पूरे घर को चमकाना होगा.’’

कुछ ही देर में सारा घर आईने की तरह चमक उठा जैसे मानो गई रात यहां कुछ हुआ ही नहीं था.

फिर वे लोग किसी तरह उस लाश को अपनी गाड़ी में डाल कर हाईवे की ओर निकल गए. पर वे यह नहीं जानते थे कि उन के खिलाफ पुलिस थाने में पहले ही शिकायत दर्ज हो चुकी है.

कुछ ही देर बाद पुलिस देव के मकान पर पहुंची. बहुत देर तक दरवाजा खटखटाने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला, तो पुलिस दरवाजा तोड़ कर अंदर घुस गई. घर इतना साफसुथरा देख कर पुलिस को भी यही लगा कि यहां कुछ हुआ ही नहीं है.

तभी इंस्पैक्टर के दिमाग में अचानक एक खयाल आया और उस ने अपने सभी सिपाहियों को घर के सारे कूड़ेदान चैक करने को कहा, मगर सभी कूड़ेदान एकदम खाली और साफसुथरे थे.

तभी पुलिस का ध्यान घर के फर्श पर गया. फर्श अभी भी गीला था और रूम फ्रैशनर की बहुत तेज खुशबू आ रही थी. इंस्पैक्टर समझ गया कि दाल में जरूर कुछ काला है.

पुलिस आसपास पूछताछ करने लगी और अपने कुछ खबरियों को काम पर लगा दिया, ताकि जैसे ही देव आए, उसे तुरंत पुलिस थाने बुला लिया जाए.

उधर देव अपने बाकी दोस्तों के साथ हाईवे पर तेज रफ्तार में गाड़ी भगा रहा था और एक खाई के पास पुलिया को देखते ही उस ने कुछ इस तरह से गाड़ी को पुलिया से ठोका, ताकि यह हादसा लगे. फिर उन्होंने एक नए सिमकार्ड से पुलिस को फोन कर के सड़क हादसे की जानकारी दी और वह सिमकार्ड वहीं तोड़ कर फेंक दिया.

पुलिस मौका ए वारदात पर पहुंची और गाड़ी को किसी तरह सावधानी से क्रेन की मदद से निकाल लिया गया. गाड़ी में रितु की लाश मिली, जिसे पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और इंस्पैक्टर ने रितु के घर वालों को इस बारे में जानकारी देने को कहा.

देव के घर आ कर उन चारों ने सोचा कि चलो जान छूटी, पर तभी एक बार फिर दरवाजे पर दस्तक हुई. उन सभी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.

इस बार रमेश ने दरवाजा खोला. पुलिस को सामने देख कर उन सभी की हवा खिसक गई.

एक सिपाही ने रमेश से पूछा, ‘‘देव तुम्हारा ही नाम है?’’

रमेश ने न में सिर हिलाया. पुलिस अंदर घुस गई और सिपाही ने दोबारा पूछा, ‘‘तुम में से देव कौन है?’’

देव ने घबराते हुए कहा, ‘‘जी, मैं ही हूं.’’

‘‘तुम्हें थाने बुलाया है.’’

यह सुन कर देव डर के मारे फूटफूट कर रोने लगा और एक ही एक बात दोहराने लगा, ‘‘मैं ने कुछ नहीं किया… मैं ने कुछ नहीं किया.’’

पर, सिपाही ने एक न सुनी और वे चारों थाने ले जाए गए.

थाने में कदम रखते ही रमेश ने अपने भाई नरेश को वहां बैठा हुआ पाया.

नरेश को वहां बैठा देख रमेश की आंखें हैरानी से चौड़ी हो गईं.

‘‘अरे नरेश, तू यहां कैसे?’’

नरेश रोता हुआ रमेश के गले लग गया और बोला, ‘‘भैया…’’

‘‘क्या हुआ? क्या बात है? सब ठीक तो है न?’’

‘‘भैया, रितु…’’

‘‘रितु क्या?

‘‘रितु अब इस दुनिया में नहीं रही भैया.’’

‘‘क्या… कैसे…’’

‘‘हां भैया, रितु की मौत की जांच के लिए उस के मांबाबा को यहां बुलाया गया है. मैं ने सोचा कि अगर यह सच हुआ, तो वे बेचारे यह सदमा कैसे सह पाएंगे, इसलिए मैं भी उन के साथ यहां चला आया.’’

‘‘पर, यह सब अचानक हुआ कैसे?’’

‘‘एक सड़क हादसे में हाईवे वाली पुलिया के पास. उस की मां का कहना है कि वह कल रात अपनी किसी सहेली के साथ एक पार्टी में गई थी, लेकिन रात को वापस आई ही नहीं.’’

पुलिया और हाईवे की बात सुनते ही रमेश के कान खड़े हो गए. नरेश कुछ कह पाता, उस के पहले ही पुलिस इंस्पैक्टर ने उसे लाश की पहचान करने के लिए अंदर भेज दिया और साथ ही, इन सब से पार्टी के बारे में पूछताछ होने लगी.

तभी रितु के पिताजी रोते हुए आए और हाथ जोड़ कर इंस्पैक्टर से कहने लगे, ‘‘मेरी बच्ची ने भला किसी का क्या बिगाड़ा था साहब… वह तो हमेशा सब से प्यार करने वाली लड़की थी. फिर उस के साथ ही यह दरिंदगी क्यों?’’

यह कहते हुए सदमे से उन के पैर लड़खड़ा गए, तभी नरेश और पुलिस इंस्पैक्टर ने मिल कर उन्हें संभाला और एक कुरसी पर बैठा दिया.

पुलिस ने उन चारों से पूछताछ कर के छोड़ दिया.

रितु के पिताजी हार मानने वालों में से नहीं थे. उन्होंने अपनी बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए कैंडल मार्च निकाला, सोशल मीडिया पर जा कर लोगों को अपनी मुहिम से जुड़ने की अपील की, ताकि वे अपनी बच्ची के लिए इंसाफ मिलने की मांग को और तेज कर सकें.

रितु के पिताजी की मेहनत बेकार नहीं गई. धीरेधीरे रितु को इंसाफ दिलाने के लिए सब से पहले उन का शहर, फिर उन का प्रदेश और फिर सारे देश में रितु के लिए इंसाफ की आवाजें उठने लगीं. जनता के दबाव में आ कर प्रदेश की सरकार ने केस सीबीआई के हवाले कर दिया.

फिर से केस की फाइल खुली और पूछताछ का सिलसिला फिर से शुरू हुआ. इस बार देव के घर काम करने वाली गंगूबाई से ले कर पार्टी में आई दूसरी सभी लड़कियों से गहराई से पूछताछ की गई. तब दिव्या ने अपना सच बताया कि उस ने अली को सब के सामने तमाचा मारा था.

देव के घर के आसपास के सभी लोगों और सीसीटीवी कैमरे वगैरह की पड़ताल बड़ी गहराई के साथ की गई, जिस में सीबीआई ने भी यही पाया कि सुबूतों को मिटाने की भरपूर कोशिश की गई थी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने यह साबित कर दिया कि उस मासूम के साथ रेप किया गया था, जिस के चलते यह पक्का हो गया कि इन्हीं लड़कों ने मिल कर यह कांड किया था, जिस के बाद उन चारों को पुलिस हिरासत में ले लिया गया.

लेखिका – पल्लवी सक्सेना

Short Story : निम्मो

Short Story : नैशनल हाईवे की उस सुनसान सड़क पर ट्रक ड्राइवर ने जब विजय को उस के गांव से 8 किलोमीटर पहले उतारा, तो विजय को इस बात की तसल्ली थी कि गांव न सही, लेकिन गांव के करीब तो पहुंच ही गया. लेकिन इस बात का मलाल भी था कि जहां किराएभाड़े के तौर पर पहले 400-500 रुपए लगा करते थे, वहीं आज उसे 4,000 रुपए देने पर भी अपने गांव पहुंचने के लिए 8 किलोमीटर पैदल चल कर जाना पड़ेगा.

अब विजय सुनसान दोपहर में गरम हवाओं के थपेड़े सहता हुआ नैशनल हाईवे से तेजी से अपने गांव की तरफ बढ़ रहा था. चारों तरफ सन्नाटा पसरा था. सामान के नाम पर साथ में बस एक बैग था, जिसे अपने कंधे पर लटकाए पसीने से तरबतर वह लगातार चल रहा था.

अभी गांव कुछ ही दूरी पर था कि एक ठंडी हवा के झोंके से उस का धूप से झुलस कर मुरझाया चेहरा खिल उठा.

गांव से पहले पड़ने वाले अपने खेत में लहलहाती फसल देख कर विजय के तेजी से चल रहे कदमों ने दौड़ना शुरू कर दिया. वह दौड़ते हुए ही अपने खेत में दाखिल हुआ और वहां काम कर रहे अपने बाबा से लिपट गया.

‘‘अरे, देखो तो कौन आया है…’’ विजय के बाबा ने खेत में बनी झोपड़ी में काम कर रही उस की मां को आवाज लगाई.

‘‘अरे विजय बेटा, कैसा है तू? और यह क्या हालत बना ली… देख, कितना दुबलापतला हो गया है,’’ कहते हुए विजय की मां झोपड़ी से भाग कर के पास आई.

‘‘इतने दिनों के बाद देखा है न मां, इसीलिए ऐसा लग रहा है तुम्हें. और वैसे भी अब तो गांव में तुम्हारे हाथों का ही बना खाना मिलेगा, खिलापिला कर कर मुझे कर देना मोटाताजा,’’ कहते हुए विजय ने मां को गले से लगा लिया.

‘‘धूप में चल कर आया है, देख कितना गरम हो गया है. यहां ज्यादा मत रुक, घर जा कर आराम कर ले… और हां, निम्मो को भी लेता जा साथ में, वह तुझे खाना बना कर खिला देगी.’’

‘‘निम्मो.. निम्मो यहां क्या कर रही है?’’ विजय ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘अरे, तुझे तो मालूम है कि निम्मो के मांबाबा हमारे गांव में बाहर से आ कर बसे हैं. उन का खुद का खेत तो है नहीं, इसलिए वे लोग काम करने किसी दूसरे के खेत में जाते हैं. निम्मो उन के साथ नहीं जाती.

‘‘निम्मो का भाई अपने मामा के यहां बिजली का काम सीखने शहर चला गया. यह बेचारी घर में बैठी बोर हो जाती है…’’

मां ने आगे कहा, ‘‘एक दिन मैं और तेरे बाबा खेत के लिए निकल रहे थे तो यह मुझ से बोली, ‘काकी, आते वक्त अपने खेत से बेर लेती आना, मुझे बेरी के बेर बहुत भाते हैं…’

‘‘तो मैं बोली, ‘खुद ही आ कर तोड़ ले और जितने मरजी ले जा…’

‘‘तब से जब भी मन करता है, यह हमारे खेत चली आती है,’’ कह कर मां ने निम्मो को आवाज लगाई.

बेर की गुठली थूकते हुए जैसे ही निम्मो झोपड़ी से बाहर आई, विजय हैरान रह गया. गांव के सरकारी स्कूल में उसी की क्लास में पढ़ने वाली निम्मो अब काफी बदल चुकी थी. पहले तो न कपड़ों का कोई अतापता था, न बालों की कोई सुधबुध होती थी.

लेकिन आज निम्मो की खूबसूरती देख कर विजय को यकीन नहीं हुआ. खुले बाल, गोरा रंग, भरापूरा बदन और बिना किसी मेकअप के चेहरे पर लाली दमक रही थी.

विजय भी यह सोच कर हैरान था कि इतने कम समय में इतना बदलाव कैसे आ सकता है. हालांकि पिछले 3 सालों में वह 2 बार गांव आया था, लेकिन दोनों बार ही निम्मो अपने मामा के यहां गई हुई थी.

‘‘हां काकी…’’ पास आ कर निम्मो विजय की मां से बोली.

‘‘तू विजय के साथ घर जा और इसे खाना बना कर खिला देना, फिर भले ही अपने घर चली जाना. हम लोग भी थोड़ा जल्दी आने की कोशिश करेंगे,’’ मां ने निम्मो से कहा, तो निम्मो ने हां में सिर हिलाया और इकट्ठा किए हुए बेरों से भरी अपनी थैली लेने झोपड़ी की ओर चली गई.

जब वह वापस आई तो विजय की ओर देख कर बोली, ‘‘चलिए.’’

मांबाबा को जल्दी घर आने की कह कर विजय निम्मो के साथ घर के लिए निकल पड़ा.

रास्ते में निम्मो बेर निकाल कर विजय की तरफ बढ़ाते हुए बोली, ‘‘ये लो बेर खाओ, रास्ते में अच्छा टाइमपास हो जाएगा.’’

विजय ने उस के हाथों से बेर ले लिए और चलते हुए उस की नजरों से बच कर उसे देखने लगा.

निम्मो थैली से बेर निकालती और उसे तब तक चूसती, जब तक उस का सारा रस न निकल जाता और फिर फीका पड़ने पर थूक देती.

विजय भी निम्मो के अंदाज में बेर खाते हुए उस के साथ चल रहा था. चलते वक्त निम्मो के सीने पर होने वाली हलचल बारबार उस का ध्यान खींच रही थी.

निम्मो की जब इस पर नजर पड़ी तो उस ने दुपट्टे से ढक लिया. लेकिन दुपट्टा भी विजय की नीयत की तरह बारबार फिसल रहा था.

‘‘लौकडाउन हुआ तो गांव की याद आ गई, वरना तुम्हारे तो दर्शन ही दुर्लभ थे,’’ बेर की गुठली थूकते हुए निम्मो बोली.

‘‘इस से पहले भी 2 बार आया था, लेकिन तू नहीं मिली. काकी से पूछा तो बोली मामा के यहां गई हुई है,’’ विजय ने भी शिकायती लहजे में कहा.

‘‘और जिस दिन मैं आई तो काकी बोली कि विजय आज सुबह ही शहर के लिए निकला है. मतलब, इस थोड़े से फासले की वजह से तुम्हारे दर्शन नहीं हो पाए,’’ निम्मो ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘हां, ऐसा ही समझ,’’ विजय ने कहा.

पूरे रास्ते निम्मो तीखे सवाल करती तो विजय उन का मीठा सा जवाब दे देता और विजय कोई मीठा सवाल करता तो निम्मो उस का खट्टामीठा जवाब दे देती.

बातों का यही स्वाद चलतेचलते एकदूसरे के दिलों में झांकने का जरीया बना और इसी की बदौलत दोनों एकदूसरे के दिल का हाल जान पाए.

बेरों से भरी थैली भी तकरीबन आधी हो चुकी थी और अब घर भी आ गया था.

घर पहुंच कर विजय नहाने चला गया और निम्मो रसोई में खाने की तैयारी करने लगी.

विजय नहाधो कर आया, तब तक खाना भी तैयार था. निम्मो ने उसे खाना खिलाया, फिर विजय ने उसे चाय बनाने को कह दिया और खुद कमरे में अपना बैग खोल कर उस में नीचे दबा कर लाए हुए कुछ रुपए अलमारी में रख कर निढाल हो कर बिस्तर पर गिर पड़ा. थकावट की वजह से कब उस की आंख लग गई और उसे पता ही नहीं चला.

निम्मो जब तक चाय ले कर आई, तब तक विजय को नींद आ चुकी थी. निम्मो ने उसे उठाना मुनासिब नहीं समझ और वापस रसोई की ओर मुड़ी. तभी उस की नजर विजय के बैग के पास बिखरे सामान पर पड़ी तो वह हैरान रह गई. उस के सामान के साथ कुछ गरमागरम पत्रिकाएं भी पड़ी थीं.

यह देख एक बार तो निम्मो को बहुत गुस्सा आया, लेकिन बाद में उस ने धीरे से चाय की ट्रे नीचे रखी और उन पत्रिकाओं को उठा कर देखने लगी.

उस ने बैग के अंदर हाथ डाला तो 2-4 पत्रिकाएं और निकलीं, जो कुछ हिंदी में तो कुछ इंगलिश में थीं.

निम्मो ने एक के बाद एक उन के पन्ने पलटने शुरू किए. हर पलटते पन्ने के साथ उस के सांसों की रफ्तार भी बढ़ने लगी. सांसों में गरमाहट महसूस करते हुए वह कभी बिस्तर पर लेटे विजय की ओर देखती, तो कभी मैगजीन में छपी बोल्ड तसवीरें.

कुछ तसवीरें देख कर तो वह ऐसे ठहर जाती मानो यह सब उसी के साथ हो रहा हो, जबकि कुछ तसवीरों ने तो उस के दिलोदिमाग में घर कर लिया था.

तभी अचानक विजय ने करवट बदली तो वह सहम गई, जिस से उस के हाथ से मैगजीन छूट कर चाय की ट्रे पर जा गिरी.

इस आवाज से विजय की आंख खुली और निम्मो के हाथ में मैगजीन देख वह चौंक कर खड़ा हो गया.

एक बार तो निम्मो भी शर्म से पानीपानी हो गई थी. विजय अपनी सफाई में कुछ कहता, उस से पहले निम्मो ने आगे बढ़ कर उसे अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘कमबख्त शहर में यही सब करते हो क्या तुम?’’ निम्मो ने पूछा.

खुद को निम्मो की बांहों में पा कर विजय हैरान तो था, साथ ही वह उस की मंशा जान चुका था.

विजय ने अपनी सफाई में कहा, ‘‘ये सब मेरी नहीं हैं, उस ट्रक ड्राइवर की हैं, जिस ने मुझे सड़क तक छोड़ा था. ट्रक में रखी इन पत्रिकाओं को देख कर मैं ने लौकडाउन में टाइमपास के लिए पढ़ने के लिए मांगी तो उस ने दे दीं.’’

‘‘जरा भी शर्म है तुम में? मेरे होते हुए इन से टाइमपास करोगे तुम? पता है, कितनी तरसी हूं मैं तुम्हारे लिए… हर दूसरे दिन काकी से तुम्हारे बारे में पूछती रहती थी. यह तो अच्छा हुआ कि मुझे मांबाबा ने फोन नहीं दिलाया वरना मैं फोन कर के रोज तुम्हें परेशान करती,’’ विजय को अपनी बांहों में जकड़ते हुए निम्मो ने कहा, तो विजय ने उसे बिस्तर पर धकेल दिया.

निम्मो के अंगों को प्यार से सहलाते हुए विजय ने कहा, ‘‘मैं भी तुझे बहुत चाहता हूं पगली, पर अब तक यह सोच कर चुप रहा कि न जाने तेरे मन में क्या होगा.’’

‘‘अब तो पता चल गया न कि मेरे मन में क्या है?’’ निम्मो ने पूछा, तो विजय पागलों की तरह उसे चूमने लगा और इस प्यार की सारी हदें पार करने के बाद विजय के साथ चादर में लिपटी निम्मो बोली, ‘‘विजय… आज तुम्हारा प्यार पा कर निम्मो विजयी हुई.’’

विजय ने निम्मो के माथे को चूमते हुए फिर से उसे अपनी बांहों में भर लिया.

लेखक – पुखराज सोलंकी

Social Story : पाखंडी तांत्रिक

Social Story : अचानक रिम्मी को पैरानौइड पर्सनालिटी डिसऔर्डर नाम की बीमारी के कुछ दौरे ही पड़े होंगे कि मां झट से गईं और चप्पल से रिम्मी पर अनगिनत वार करती चली गईं.

हालांकि उन्हें यह बहुत बाद में पता चला कि यह कोई बीमारी है, जिसे मैडिकल साइंस में पैरानौइड पर्सनालिटी डिसऔर्डर कहा जाता है. वरना उस दिन रिम्मी की मां ने तो किसी ऊपरी साए का चक्कर समझ कर उस साए पर चप्पलों की बरसात कर दी थी, जबकि दर्द रिम्मी को सहना पड़ रहा था.

रिम्मी की मां ने रिम्मी को दौरे पड़ने वाली बात को समाज से छिपाए रखी, शायद इसलिए क्योेंकि रिम्मी की शादी एक साल पहले ही विजय से तय हो चुकी थी.

विजय एक अच्छे परिवार और पढ़ेलिखे घर का सुशील और गुणवान लड़का था और पेशे से सीबीआई अफसर भी. रिम्मी और विजय दोनों ही एकदूसरे को कालेज से पसंद भी करते आए थे. ऐसे में मां नहीं चाहती थीं कि महल्ले वालों को रिम्मी की इस बीमारी के बारे में पता चले और इतनी अच्छी ससुराल हाथ से निकल जाए.

रिम्मी को जब कभी भी ऐसे दौरे पड़ते, उस के थोड़ी देर बाद ही वह अपनेआप शांत हो जाती. उसे बिलकुल भी याद नहीं रहता कि उस के साथ क्या हुआ और उस ने कैसीकैसी हरकतें कीं.

पर हुआ वही, जो रिम्मी की मां नहीं चाहती थीं. अब भला रिम्मी के घर से उस के चिल्लाने की अजीबोगरीब आवाज आना, रोनाबिलखना भला कोई कैसे अनसुना कर सकता था.

एक दिन ठेले पर सब्जी लेते समय सुनीता आंटी ने पूछ ही लिया, ‘‘अरे रिम्मी की मां, सुनो तो जरा. यह रिम्मी को क्या हो गया है? अगर कोई बात है तो बताओ?’’

सुनीता आंटी पड़ोस में ही रहती थीं और इसीलिए बाकियों से ज्यादा उन के साथ रिम्मी की मां के अच्छे संबंध थे.

मां ने अभी तक अपना यह दुख किसी के साथ नहीं बांटा था, शायद इसी वजह से सुनीता आंटी के जरा से पूछ लेने पर उन से रहा नहीं गया और दिल खोल कर सारी बात बता दी. उन्हें लगा कि शायद इन के पास इस मुसीबत का कोई हल हो.

‘‘अरे इतनी सी बात के लिए इतना घबरा रही थीं आप. एक बार मुझे पहले ही बता तो दिया होता, अब भला रिम्मी हमारी बेटी नहीं है क्या,’’ सुनीता आंटी के इतना कहने पर रिम्मी की मां को आशा की एक किरण दिखने लगी. मां को लगा कि शायद सुनीता आंटी के पास इस समस्या का कोई समाधान जरूर है.

‘‘अरे, मैं ने ऐसी कई लड़कियों को देखा है, जिन पर ऊपरी चक्कर या अन्य कोई दोष होता है और उस के चलते वे अजीबअजीब सी हरकतें करने लगती हैं.

‘‘डरो मत, मैं एक ऐसे तांत्रिक बाबा को जानती हूं, जो सिर्फ माथा छू कर सारी समस्याओं की जड़ बता देते हैं,’’ सुनीता आंटी ने रिम्मी की मां से कहा.

मां ने बिना कुछ सोचेसमझे सुनीता आंटी से तांत्रिक के यहां चलने की बात पक्की भी कर ली.

‘‘चलो रिम्मी उठो, जल्दी उठो और तैयार हो जाओ. हमें कहीं जाना है,’’ मां ने सुबहसुबह ही रिम्मी को नींद से जबरदस्ती उठा लिया.

‘‘क्या हुआ मां, कहां जाना है? बताओ पहले…’’ रिम्मी ने लेटेलेटे ही मां से पूछा.

‘‘वे सुनीता आंटी एक तांत्रिक बाबा को जानती हैं. वे बड़े ही पहुंचे हुए बाबा हैं. वे तुझे देखते ही बता देंगे कि क्या परेशानी है और फिर तेरा इलाज भी कर देंगे,’’ मां ने रिम्मी को समझाया.

‘‘मां, आप भी कैसेकैसे लोगों की बातों में आ जाती?हैं और वह भी आज के जमाने में. आप ने यह कैसे सोच लिया कि मैं आप के साथ चलने को तैयार हो जाऊंगी.’’

‘‘बेटी, एक बार चल कर देखने में क्या हर्ज है. और क्या पता, किस का तुक्का ठीक बैठ जाए. हमें तो बस तेरे ठीक होने से मतलब है. अभी तेरी शादी होने में सिर्फ 6 महीने ही बचे हैं न? उस से पहले ही ठीक होना है न तुझे?’’ पिताजी ने भी मां की तुक में तुक मिला कर रिम्मी को समझाया.

रिम्मी भी न नानुकुर करतेकरते मान ही गई और तांत्रिक के पास चलने के लिए राजी हो गई.

तांत्रिक का ठिकाना बड़ा ही घनचक्कर कर देने वाला था. पता नहीं कितनी पतलीपतली संकरी गलियों के अंदर उस ने अपना घर बना रखा था. सुनीता आंटी ने मां और रिम्मी को दरवाजे पर ही समझा दिया था कि जाते ही उन बाबा के पैर पकड़ कर आशीर्वाद ले लेना.

तांत्रिक के घर पर पहले से ही 4-5 लोग बैठे हुए थे. रिम्मी को बड़ी हैरत हुई कि आज भी इतने लोग डाक्टरों को छोड़ कर इन पाखंडियों के पास आते हैं. फिर सोचा कि अगर इतने लोग अपना इलाज कराने आए हैं, तो जरूर इस तांत्रिक में कोई तो बात होगी.

तकरीबन 2 घंटे के इंतजार के बाद रिम्मी का नंबर भी आ ही गया. रिम्मी ने इस से पहले कभी किसी तांत्रिक को रूबरू नहीं देखा था, सिर्फ टैलीविजन पर ही देखा था. उस को लगा था कि कोई काला कुरतापाजामा पहने खोपडि़यों की माला और ढेर सारी अंगूठियां पहने, काला टीका लगाए, आग जलाए बैठा होगा, पर अंदर जाते ही उस ने देखा कि तकरीबन 40-45 साल का एक आदमी फौर्मल कपड़ों में अपने सोफे पर बैठा हुआ था. हां, अंगूठियां तो उस ने भी पहनी थीं, पर इतनी नहीं. और माथे पर काला टीका भी लगाया हुआ था.

तांत्रिक सुनीता आंटी को जानता था, शायद इसलिए उस ने सब लोगों के लिए चाय और बिसकुट का भी इंतजाम किया.

रिम्मी से तांत्रिक ने उस की बीमारी के बारे में पूछा और अंदर बने एक कमरे में ले जा कर कुछ जादूटोना कर के कई तरह के प्रपंच करने लगा, जिन का रिम्मी पर कोई असर नहीं पड़ रहा था.

फिर रिम्मी को बाहर ले जा कर उस ढोंगी तांत्रिक ने मां को भरोसा दिलाते हुए कहा, ‘‘देखो, किसी भटकती आत्मा ने रिम्मी के शरीर को अपना वास बना लिया है, पर घबराने वाली कोई बात नहीं है…

‘‘ऐसे केस मेरे पास आएदिन आते रहते हैं. मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं,’’ तांत्रिक अपनी बड़ाई करते थक नहीं रहा था कि अगले ही पल असली मुद्दे पर आ गया.

‘‘देखिए, इस तरह की आत्माओं से निबटने के लिए अकसर खास तरह की पूजा कराने की जरूरत पड़ती है और एक बकरे की बलि भी देनी ही पड़ती है.

‘‘इस सब पर कम से कम 40,000 से 50,000 रुपए का खर्चा तो मान कर ही चलिए, लेकिन आप लोग चिंता मत कीजिए, सारी सामग्री का इंतजाम हम खुद ही कर लेंगे. अगर आप को ठीक लगे तो बताना. आगे की विधि मैं आप को उस के बाद ही बताऊंगा.’’

रिम्मी चालाकी दिखाते हुए बोली, ‘‘बाबाजी, आप बस अपना खर्च बता दीजिए, सामग्री का इंतजाम हम खुद कर लेंगे.’’

‘‘नहीं बेटी, यह कोई ऐसीवैसी सामग्री नहीं है, जो कहीं पर भी मिल जाए. यह सारी सामग्री हमारे सिद्ध गुरुजी की आज्ञा से विशेष विधि से लाई जाती है, इसलिए यह काम तुम हम पर ही छोड़ दो.’’

तांत्रिक अपना उल्लू सीधा करने के मकसद से बोल रहा था. सब ने तांत्रिक से अलविदा ली और जैसे ही जाने के लिए मुड़े, वैसे ही तांत्रिक ने टोकते हुए फीस के नाम पर पहली ही मुलाकात में रिम्मी की मां से 5,000 रुपए ऐंठ लिए.

रिम्मी को तांत्रिक द्वारा 5,000 रुपए मांगने वाली बात पर कुछ शक हुआ. वे समझ चुकी थीं कि यह तांत्रिक के नाम पर पाखंडी है, पर उस की मां तांत्रिक की बातें आंख बंद कर मानने लगी थीं.

घर पहुंचते ही रिम्मी के फोन पर विजय का फोन आया, तो वह चुपचाप अपने कमरे की ओर निकल गई और तांत्रिक की बात बताने लगी.

मां और पिताजी ने रिम्मी से कहा कि वे तांत्रिक बाबा से विशेष क्रियाकर्म करवाएंगे.

रिम्मी ने भी इस बात का कोई विरोध नहीं किया और बड़ी आसानी से मान गई.

मां ने तुरंत तांत्रिक को फोन लगाया और आगे की सारी विधि समझ ली.

तांत्रिक ने उन्हें बताया, ‘अमावस्या की रात को मैं जो पता बताने जा रहा हूं, वहां पहुंच जाना. हम रिम्मी के अंदर बैठी उस दुष्ट आत्मा को बोतल में कैद कर अपने साथ ले जाएंगे और रिम्मी को उस दुष्ट आत्मा से हमेशा के लिए मुक्त कर देंगे.’

अमावस्या की रात भी आ चुकी थी और रिम्मी की मां और पिताजी उसे ले कर तांत्रिक के बताए उस पते पर पहुंच गए थे.

तांत्रिक पहले ही रिम्मी के पिताजी से पूरे 50,000 रुपए की दक्षिणा मांग लेता है और रिम्मी को अपने साथ खुफिया कमरे में ले जा कर उस से कहता है, ‘‘रिम्मी, अब अपने सारे कपड़े उतार कर इस आसन पर बैठ जाओ. इस विशेष पूजा में तन पर कोई कपड़ा नहीं होना चाहिए, वरना वह आत्मा कभी तुम्हारे अंदर से नहीं निकल पाएगी.’’

इतना कहते ही रिम्मी ने एक जोरदार तमाचा तांत्रिक के गाल पर जड़ दिया, उतने में ही विजय अपने कई साथियों के साथ दौड़ता हुआ उस कमरे का गेट तोड़ कर अंदर जा घुसा.

रिम्मी के मां और पिताजी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह हो क्या रहा है और जमाई राजा यहां कैसे आ गए, वह भी इतने आदमी ले कर.

विजय ने अंदर पहुंचते ही उस तांत्रिक के हाथों में हथकड़ी डाली, तो पिताजी ने विजय से पूछा, ‘‘बेटा, यह सब क्या है?’’

‘‘पापाजी, शायद आप लोगों को यह नहीं मालूम कि यह तांत्रिक नहीं, बल्कि डकैत?है. इस ने लोगों को ठगने का नया तरीका ढूंढ़ लिया है. पिछले कई महीनों से हमारे डिपार्टमैंट को इस की तलाश थी. यह अब लोगों को लूटने उन के घर नहीं जाता, बल्कि लोग इस के पास खुद आते हैं अपनेआप को लुटवाने के लिए.

‘‘यह पाखंडी लोगों को ठीक करने का झूठा वादा कर के उन से हजारोंलाखों रुपए तक वसूल लेता है और फिर किसी दूसरे शहर में अपना शिकार ढूंढ़ने के लिए निकल जाता है.’’

विजय ने उस पाखंडी बाबा की सचाई रिम्मी के पिताजी को बताई, जिसे रिम्मी की मां भी सुन रही थीं.

‘‘पर बेटा, तुम्हें कैसे पता चला कि हम लोग रिम्मी को ले कर इस तांत्रिक के पास आए हुए हैं?’’ मां ने हैरान होते हुए विजय से पूछा.

‘‘मांजी, जिस दिन आप रिम्मी को पहली बार इस डकैत के पास ले कर गई थीं, उस दिन मैं ने रिम्मी से बात करने के लिए उसे फोन लगाया था. तब रिम्मी ने मुझ सारी बात बताई.

‘‘रिम्मी ने मुझे इस के बारे में जोकुछ बताया और वह फीस के 5,000 रुपए के बारे में बताया, तो मेरे दिमाग की बत्ती जली. मुझे याद आया कि कहीं यह वही तांत्रिक तो नहीं जिस की तलाश मैं और मेरे साथी कई महीनों से कर रहे हैं.

‘‘मैं ने तुरंत इस तांत्रिक का स्टिंग आपरेशन करने का प्लान बनाया और फोन पर ही सारी योजना रिम्मी को समझा दी.

‘‘और आज जब आप लोग अपने घर से निकले, तब हम ने आप लोगों का पीछा किया था, क्योंकि इस के अड्डे तक हमें सिर्फ आप ही पहुंचा सकते थे.

‘‘अपनी योजना के मुताबिक हम सारे अफसर अपना हुलिया बदल कर गाड़ी में बैठेबैठे रिम्मी की माला पर लगे स्पाई कैमरे से सबकुछ लाइव देख रहे थे और जैसे ही रिम्मी ने इसे तमाचा मारा, हम समझ गए कि कोई बात जरूर है और अंदर इसे दबोचने चले आए.’’

इतना कह कर रिम्मी की ओर देखते हुए विजय ने बताया, ‘‘मांजी, मैं ने रिम्मी की बीमारी के बारे में कुछ दिनों पहले ही अपने दोस्त से फोन पर पूछा था, जो लंदन में एक मनोचिकित्सक है.

‘‘उस ने बताया कि रिम्मी के अंदर किसी आत्मा का वास नहीं, बल्कि पैरानौइड पर्सनालिटी डिसऔर्डर की बीमारी है. इस की वजह से अकसर मरीज अजीबअजीब सी हरकतें करने लगता है, जैसे बहुत गुस्सा आने के चलते अपना आपा खो देना, किसी पर विश्वास न करना, अकेले रहना, पर यह बीमारी डाक्टर के इलाज से जल्दी ठीक भी हो जाती है.’’

विजय यह सब बातें बताते समय तांत्रिक को गुस्से भरी आंखों से घूरे जा रहा था.

इस के बाद विजय ने उस तांत्रिक से रिम्मी के 50,000 और उस दिन की फीस के 5,000 रुपए भी वसूल कर रिम्मी के पिताजी को दे दिए.

लेखक – हेमंत कुमार

Family Story : न्याय अन्याय

Family Story : कुंडी खड़कने की आवाज सुन कर निम्मी ने दरवाजा खोला, ‘‘जी कहिए…’’ निम्मी ने बाहर खड़े 2 लड़कों को नमस्ते करते हुए कहा.

‘‘जी, हम आप के महल्ले से ही हैं. आप को राशन की जरूरत तो नहीं…’’ उन में से एक ने निम्मी से कहा.

‘‘जी शुक्रिया, अभी घर में राशन है…’’ निम्मी ने जवाब दिया.

‘‘ठीक है… जब भी जरूरत होगी, तो इस मोबाइल नंबर पर फोन करना…’’ उन में से एक बड़ी मूंछों वाले लड़के ने निम्मी को एक कागज पर मोबाइल नंबर लिख कर देते हुए कहा.

लौकडाउन का तीसरा दिन था. पूरा शहर एक उदासी और सन्नाटे की ओर बढ़ रहा था. किसी को नहीं पता था कि कब बाजार खुलेगा, कब घर से बाहर निकल सकेंगे और कब हालात सही होंगे.

निम्मी का पति अमर किसी काम से दूसरे शहर गया हुआ था कि अचानक से ये कर्फ्यू से हालात हो गए.

निम्मी की शादी को अभी सालभर भी नहीं हुआ था. निम्मी बहुत खूबसूरत थी. न जाने कितने नौजवान निम्मी को किसी न किसी तरह पाना चाहते थे.

यह तालाबंदी भी निम्मी की जिंदगी में घोर अंधेरा ले कर आई थी. उसे अमर से मिलने की उम्मीद दिखने लगी थी कि लौकडाउन को आगे बढ़ा दिया गया. एक ओर राशन खत्म हो रहा था, तो वहीं दूसरी ओर अमर के खेत में गेहूं की खड़ी फसल. अब कौन फसल को काटे और कौन मंडी ले जाए.

निम्मी सोच ही रही थी कि अमर का फोन आया, ‘निम्मी, मु झे तो अभी वहां आना मुमकिन नहीं जान पड़ता… खेत का क्या हाल है… तुम गई क्या किसी दिन?’

‘‘बस एक दिन गई थी… फसल पक चुकी है, पर अमर अब यह कटेगी कैसे… मजदूर भी नहीं मिल रहे इस वक्त यहां,’’ निम्मी ने बताया.

कुछ देर इधरउधर की बात कर के निम्मी ने फोन रख दिया.

तभी उस के दरवाजे पर किसी ने आवाज दी, ‘‘अमर… बाहर आना.’’

महल्ले के धनी सेठ की आवाज सुन कर निम्मी बाहर आई.

‘‘अमर को बुलाओ तो बाहर. उस से कहो, अगर गेहूं की फसल जल्दी नहीं काटी तो सारी खराब हो जाएगी.’’

‘‘जी, वे तो शहर से बाहर गए थे किसी काम से और तालाबंदी के चलते वहीं फंस गए,’’ निम्मी ने बताया.

हालांकि धनी सेठ अच्छी तरह से जानता था कि अमर घर पर नहीं है, फिर भी अनजान बनने की अदाकारी बखूबी कर रहा था, ‘‘ओह, लेकिन अगर फसल नहीं कटेगी, तो भारी नुकसान उठाना पड़ेगा…’’

‘‘जी जरूर… जरूरत हुई तो आप के पास आ कर कह दूंगी. वैसे, इतनी खेती तो है नहीं कि मंडी तक पहुंचाई जाए. हमारा ही गुजर होने लायक अनाज होता है,’’ निम्मी ने हाथ जोड़ कर कहा.

धनी सेठ कई सवाल ले कर जा रहा था कि निम्मी मु झे बुलाएगी या नहीं, क्या कभी निम्मी के साथ गुफ्तगू मुमकिन है. वह खुद से ही बोलते जा रहा था कि पुजारी से सामना हो गया.

‘‘प्रणाम पुजारीजी… कैसे हैं आप?’’ धनी सेठ पुजारी से बोला.

‘‘चिरंजीवी रहो धनी सेठ… तरक्की तुम्हारे कदम चूमे,’’ दोनों हाथों से आशीष देते हुए पुजारी ने कहा.

‘‘इस दोपहरी में कहां से आ रहे हैं और कहां जा रहे हैं?’’ धनी सेठ ने पुजारी से पूछा.

पुजारी ने सकपकाते हुए जवाब दिया, ‘‘बस, एक यजमान के घर से आ रहा हूं… तो सोचा, थोड़ा नदी किनारे टहल आऊं.’’

‘‘अच्छा… नमस्ते,’’ कह कर धनी सेठ आगे बढ़ गया. इधर निम्मी ने अमर को फोन पर धनी सेठ के प्रस्ताव के बारे में बताया, तो अमर ने साफ इनकार करने को कहा, क्योंकि वह उसे अच्छी तरह जानता था और इस सहयोग के पीछे की मंशा पर भी उसे शक था.

निम्मी ने फोन रखा ही था कि किसी ने घर का दरवाजा खटखटाया. निम्मी ने दरवाजा खोल कर सामने खड़े पुजारी को प्रणाम किया.

पुजारी ने भी धनी सेठ की तरह हमदर्दी और सहयोग का प्रस्ताव दिया. इसी तरह हैडमास्टर किशोर कश्यप ने भी सहयोग का प्रस्ताव निम्मी के सामने रखा.

निम्मी असमंजस में थी. एक ओर उस की शुगर की दवा खत्म हो रही थी, वहीं दूसरी ओर राशन भी खत्म होने को था.

अगले दिन मुंह पर चुन्नी लपेटे निम्मी महल्ले की दुकान तक गई. वहां से जरूरी सामान ले कर वह वापस आ रही थी कि सामने से उसी मूंछ वाले लड़के ने उसे पहचान लिया. उस का नाम अनूप शुक्ला था. उस ने निम्मी से कहा, ‘‘अरे निम्मीजी, आप को किसी चीज की जरूरत थी, तो मु झ से कहती… आप क्यों इस धूप में बाहर निकलीं…’’

‘‘जी, इस में परेशानी की कोई बात नहीं… बस टहल भी ली और सामान भी ले लिया,’’ इतना कह कर निम्मी तेजी से घर की ओर बढ़ गई. पर एक परेशानी उस के सामने खड़ी हो गई कि उस की शुगर की दवा खत्म हो गई और मैडिकल स्टोर बहुत दूर था.

तभी निम्मी को अनूप के मोबाइल नंबर वाला कागज भी दिख गया, तो उस ने उसे फोन कर ही दिया. अनूप ने भी उसे दवा ला कर दे दी.

इसी तरह कुछ दिन बीत गए, पर गेहूं की फसल का कुछ तो करना था, निम्मी यह सोच ही रही थी कि धनी सेठ और पुजारी कुछ मजदूरों के साथ उस के घर पर आ गए.

‘‘आप तो संकोच करेंगी निम्मीजी, पर हमारा भी तो फर्ज बनता है कि नहीं?’’

‘‘मैं कुछ सम झी नहीं,’’ निम्मी बोली.

‘‘इस में न सम झने जैसा क्या है. बस तुम हां कह दो, तो खेत से गेहूं ले आएं.’’

निम्मी कुछ सम झती, इस से पहले ही उन दोनों ने मजदूरों को खेत में जाने का आदेश दे दिया. निम्मी ने उन को चाय पीने को कह दिया.

दोनों चाय पी कर चले गए. उसी शाम धनी सेठ फिर निम्मी के घर आया.

‘‘तुम ठीक हो न निम्मी… मेरा मतलब, खुश तो हो न?’’

‘‘जी, मैं ठीक हूं.’’

धीरेधीरे सेठ निम्मी की ओर बढ़ने लगा और पास आ कर बोला, ‘‘तुम इतनी खूबसूरत और कमसिन हो…’’ इतना कह कर उस ने निम्मी की कमर को अपने आगोश में ले लिया.

निम्मी कुछ रोकती या कहती, उस ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया और उसे बेहिसाब चूमने लगा.

निम्मी रोती, कभी मिन्नत करती, पर जिस्म के भूखे सेठ को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. उस ने उसे हर तरीके से भोगा और वहां से चला गया.

निम्मी जोरजोर से रो रही थी, पर उस की चीख सुनने वाला कोई न था. अचानक उसे याद आया कि उस के महल्ले का देवेंद्र सिंह पुलिस में नौकरी करता है. किसी तरह निम्मी ने उस का पता लगाया और फोन किया.

‘हैलो, कौन बोल रहा है?’ देवेंद्र सिंह ने फोन रिसीव कर के पूछा.

‘‘जी, मैं आप के ही महल्ले से बोल रही हूं… मु झे आप की मदद चाहिए,’’ निम्मी ने जवाब दिया.

‘आप को अगर कोई भी परेशानी है, तो आप थाने में आ कर रिपोर्ट लिखा सकती हैं,’ देवेंद्र सिंह ने यह कह कर फोन रख दिया.

निम्मी ने फिर से फोन किया, ‘‘हैलो… प्लीज, फोन मत काटना… मैं निम्मी बोल रही हूं. आप के ही महल्ले में रहती हूं. मेरे पति अमर इस वक्त यहां नहीं हैं और मैं मुसीबत में हूं.’’

अमर का नाम सुनते ही वह निम्मी को पहचान गया, ‘अच्छाअच्छा, मैं सम झ गया. आप चिंता न करें. मैं शाम को आप के पास आता हूं.’

निम्मी अब निश्चिंत थी कि उसे मदद मिल जाएगी और वह धनी सेठ की रिपोर्ट लिखा सकेगी.

शाम को देवेंद्र सिंह उस के पास आया. निम्मी ने सारी बात बताई और मदद मांगी.

‘‘तुम घबराओ मत, मैं तुम्हारी पूरी मदद करूंगा,’’ देवेंद्र सिंह ने कहा.

चाय पी कर जब वह जाने लगा, तो अचानक तेज आंधी और बारिश होने लगी. अब तो देवेंद्र को वहीं रुकना पड़ा.

छत पर सूख रहे कपड़े उतारने के लिए निम्मी भागी, तो उस की साड़ी ही उड़ने लगी.
देवेंद्र सिंह ने उस से कहा, ‘‘मैं ले आता हूं कपड़े. आप बैठ जाइए.’’

बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी, इधर देवेंद्र सिंह अपने पर काबू नहीं कर पाया और जो उस की शिकायत सुनने आया था, उसी निम्मी को दबोच बैठा और एक लाचार को अपनी जिस्म की भूख मिटाने को मसलता रहा.

उस के जाने के बाद निम्मी मर जाना चाहती थी, पर जहर भी कहां से लाए इस तालाबंदी में.

थोड़ी देर में निम्मी को याद आया कि बीती सुबह एक ट्रेन यहां से गुजरी थी और उस ने सुना था कि श्रमिक ट्रेन इन दिनों चल रही है. उसे अब यही एक रास्ता दिखा.

निम्मी ने किसी तरह वह रात काटी और तड़के उठ कर घर से चल दी, पास ही पटरियों की ओर.
पौ फटने का समय था और निम्मी बदहवास जा रही थी. सामने से आते पुजारी ने उसे देख लिया. निम्मी पटरी पर लेट गई और ट्रेन की आवाज सुनाई दी. पुजारी ने भाग कर उसे पटरी से खींच लिया और सम झाबु झा कर घर ले आया. उस ने निम्मी की मजबूरी और अकेलेपन का फायदा उठाया और दबोच लिया.

निम्मी कुछ समझ पाती. इस से पहले ही उसे लूट लिया गया था. तालाबंदी खत्म होने का आदेश भी जारी हो गया. अब अमर के आने की भी उम्मीद होने लगी.

इधर निम्मी अमर की राह देख रही थी, उधर निम्मी के दीवाने दुखी हो रहे थे. निम्मी की मजबूरी का खूब फायदा उठा चुके ये लोग अभी संतुष्ट नहीं हुए थे. अनूप तो सोचने लगा कि अमर घर आता ही नहीं तो अच्छा था, क्योंकि उसे निम्मी के शरीर की मादक खुशबू से अभी तक मन नहीं भरा था. उस के साथ बिताया हर पल उसे याद आ रहा था.

एक शाम जब निम्मी चीनी लेने घर से बाहर निकली, तो वह जबरन उस के साथ अंदर आ गया. निम्मी ने उस से घर से बाहर जाने को कहा, तो उस ने मना कर दिया.

निम्मी मदद के लिए चिल्लाने लगी, तो उस ने उस का मुंह बंद कर दरवाजे की अंदर से कुंडी लगा दी.

निम्मी रोती रही, पर उस की मदद को भला कौन आता. पुलिस पर भरोसा भी कैसे करे. अनूप उसे अपनी हवस की आग में जला रहा था और वह रोए जा रही थी.

तभी वहां से कश्यप मास्टर गुजर रहे थे, तो उन्होंने उस की चीख सुनी तो फौरन घर की ओर मुड़े.

‘क्या हुआ बेटी… क्यों चीख रही हो. दरवाजा खोलो बेटी,’ बेटी सुनते ही निम्मी को न जाने कैसी ताकत आ गई और उस ने अनूप के बालों को खींच कर उस के अंग पर वार कर दिया.

अनूप दर्द से चीखने लगा और मौका पा कर निम्मी ने दरवाजा खोल दिया.

सामने कश्यप मास्टर खड़े थे. उन्होंने अपना अंगोछा निम्मी को ओढ़ा दिया. इस बीच अनूप भाग गया.

‘‘रो मत बेटी,’’ मास्टर साहब उसे दिलासा दे रहे थे. निम्मी रोतेरोते मास्टर साहब की गोद में ही सो गई.

मास्टर साहब ने अपनी बेटी को बुला कर निम्मी की देखभाल करने को कहा और चले गए.

अगले दिन अमर घर आ गया, तो वह बहुत खुश थी. अमर ने देखा कि गेहूं गोदाम में भरे हुए हैं, तो उस ने पूछा, ‘‘निम्मी, ये गेहूं किस ने काटे?’’

निम्मी ने उत्तर देते हुए कहा, ‘‘पुजारी और धनी सेठ ने.’’

अमर सम झ रहा था कि निम्मी कुछ कहने की कोशिश कर रही है, पर कुछ कह नहीं पा रही.

कुछ दिन बीते ही थे कि अमर की तबीयत खराब हो गई. उसे लोगों की मदद से अस्पताल ले जाया गया, जहां उस के टैस्ट चल रहे थे…

इधर निम्मी भी एक रोज चक्कर खा कर गिर पड़ी. पड़ोस की सुधा उसे अस्पताल ले गई. डाक्टर ने तुरंत उसे दवा दे कर कहा कि घबराने की बात नहीं है… कुछ कमजोरी है.

उधर, अमर के टैस्ट की रिपोर्ट आ चुकी थी. उसे डाक्टर ने एचआईवी पौजिटिव की पुष्टि की, तो उस के पैरों के तले से जमीन ही निकल गई. उसे याद नहीं आ रहा था कि उस ने ऐसा क्या किया. वह सोचसोच कर परेशान था.

वह जैसेतैसे घर आया, तो निम्मी की तबीयत और ज्यादा खराब हो रही थी. उस की शुगर भी बढ़ रही थी.

अमर ने उसे तुरंत दवा दी, तो थोड़ा आराम हुआ. इस तरह दिन बीत रहे थे. अमर निम्मी को कैसे बताए, यह सोच रहा था. उधर निम्मी परेशान थी कि कैसे बताए कि कैसे उस के जिस्म के टुकड़ेटुकड़े हुए.

अमर ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘निम्मी, तुम मु झ पर भरोसा करती हो न?’’

‘‘यह पूछने की जरूरत है अमर?’’

‘‘तो सुनो… मेरी एचआईवी पौजिटिव की रिपोर्ट आई है,’’ अमर ने एक ही सांस में कह दिया, ‘‘पर, यकीन मानो कि मेरा किसी से कोई संबंध नहीं है. मु झे याद आ रहा है, जब पिछली बार मैं शहर काम से गया था, तो एक सैलून में मैं ने अपनी दाढ़ी बनवाई थी, क्योंकि मु झे मीटिंग के लिए देर हो रही थी, इसलिए मैं ने ही नाई को जल्दी शेव करने को कहा था… शायद उस ने ब्लेड बदला नहीं था,’’ गहरी सांस लेते हुए अमर ने कहा.

निम्मी चुप थी, बस आंखों से आंसू बहाए जा रही थी. कुछ देर बाद अचानक उस के चेहरे पर एक जीत की जैसी मुसकान दौड़ गई.

अमर अपनी बीमारी के चलते ही अधमरा हुआ जा रहा था और निम्मी मुसकरा रही थी.

निम्मी बोली, ‘‘अभी चलो, मु झे भी यह टैस्ट करवाना है.’’

‘‘कल बुलाया है तुम को डाक्टर ने,’’ अमर ने कहा. दोनों के लिए पूरी रात काटनी मुश्किल हो रही थी. निम्मी ने अमर को सब बता दिया था. दोनों बस रोए जा रहे थे.

अगले दिन निम्मी का भी टैस्ट किया गया, तो वह भी एचआईवी पौजिटिव निकली.

निम्मी दुखी होने के बजाय खुश थी. पर दोनों के लिए जीना आसान न था. दोनों अपनी मजबूरियों पर रो रहे थे. जैसेतैसे संभलते हुए दोनों घर आए और एकदूसरे को दिलासा दे ही रहे थे कि अनूप, धनी सेठ, पुजारी सब निम्मी के घर आए और अमर का हालचाल पूछने लगे. इन सब को निम्मी ने ही फोन कर के बुलाया था.

पहले तो अमर को बहुत गुस्सा आ रहा था, पर जैसेतैसे संभल कर उस ने सब को निम्मी का साथ देने के लिए धन्यवाद दिया और निम्मी से चाय बनाने को कहा.

अमर और निम्मी को गुस्सा तो बहुत आ रहा था, पर दोनों ने खुद को संभाल लिया.

‘‘आप लोगों का मैं जितना भी धन्यवाद करूं कम ही होगा,’’ अमर ने कहा, तो धनी सेठ ने कहा, ‘‘इस में धन्यवाद कैसा अमर साहब… हम अगर एकदूसरे के काम नहीं आएंगे तो और कौन आएगा.’’

‘‘जी, कह तो आप सही रहे हैं… पर आप तो हमारे दुखसुख के सचमुच भागीदार हैं और इतना ही नहीं हमारी बीमारी के भी…’’ एक कुटिल हंसी के साथ अमर ने कहा.

‘‘हम कुछ सम झे नहीं… बीमारी के भागीदार कैसे?’’ पुजारी ने चौंकते हुए पूछा. वह घबरा गया था.

अमर ने राज खोला, तो सब के सब सकपका कर रह गए और एकदूसरे का मुंह ताकने लगे.

उधर निम्मी और अमर चैन की सांस ले रहे थे, एकदूसरे को हिम्मत दे रहे थे और कुदरत के इस न्यायअन्याय को सम झने की कोशिश कर रहे थे.

लेखिका – आरती लोहनी

Funny Story : एक अंधसमर्थक से मुलाकात

Funny Story : आज सौभाग्य या कहें दुर्भाग्य से, सत्ता के एक “अंध समर्थक” से मुलाकात हो गई.

हमने छुटते ही कहा,- आपके “आलाकमान” और पार्टी नेताओं को  सोशल मीडिया ने बड़ी बुरी तरह घेरा है .

उन्होंने कहा- यह सब षड्यंत्र है .

हमने कहा- षड्यंत्र ? क्या विदेशी….

अंध समर्थक- नहीं, सत्ता की लालच में विपक्षी दल .

हमने कहा- मगर हमने सुना है, वे तो विपक्षियों की पोल भी खोल  रहे हैं .

अंध समर्थक- अरे! आप नहीं समझेंगे . बड़ी ऊंची राजनीति और खेल चल रहा है .

हमने कहा- खैर! छोड़िए हम आपकी प्रतिक्रिया चाहते हैं, आप क्या कहेंगे .

अंध समर्थक- मैं सोशल मीडिया के बारे में यही कहूंगा की पहले अपना गिरेबां झाके . यह लोग खुद करप्ट हैं और सम्मानीय नेताओं पर आक्षेप लगाते हैं.

हमने कहा- मगर उनकी बात में दम तो है . सारा देश चर्चा करने लगा है, यह उनकी विश्वसनीयता का परिचायक नहीं है क्या ?

अंघ समर्थक- अरे! आप बहुत भोले हैं . यह स्वयं पार्टी बनाकर, सत्ता का उपभोग करने की रणनीति के तहत काम कर रहे हैं . यह लोग, कोई महान देशभक्त पैदा नहीं हुए हैं .

हमने कहा- मगर यह तो देखिए उनकी बात में,सबूतों में कितना दमखम है . उनकी बात, आप काट नहीं सकते.

अंध समर्थक- मेरी निगाह में उनके पास कोई खास साक्ष्य नहीं है .

हमने कहा- क्या बात करते हो, आपकी पार्टी के दांए जी के सुपुत्र  50 लाख से 500 करोड़ रुपए की संपत्ति के मालिक बन गए और कहते हो कोई साक्ष्य नहीं है .इस देश में दूसरा कोई है जो रातों-रात इस तरह करोड़पति हो गया….

अंध समर्थक- आप हमारे आलाकमान के बारे में कहिए, नाते रिश्तेदार अगर कमा रहे हैं तो पार्टी दोषी नहीं है, यह उनका व्यक्तिगत मामला है .

हमने कहा- मगर यह भी सत्य है कि अगर वे “सुपुत्र” नहीं होते तो अरबों रुपए कतई नहीं कमा सकते थे. उन्हें निःसंदेह सत्ता का लाभ मिला है.

अंध समर्थक- नो कॉमेंट्स . मै आप की सोची हुई अवधारणा कल्पना पर, कोई टिप्पणी नहीं कर सकता.

हमने कहा- सच को नकारने से, सच झूठ नहीं हो जाता . आप जानते हैं पार्टी की कितनी साख गिरी है .यही हाल रहा तो आपके नेता और आप जमीन पर होंगे .

अंध समर्थक- हमने देश सेवा का व्रत लिया है. जनता जिस भूमिका में रखेगी, हम रहेंगे.हम तो जनता के सेवक हैं .सेवा करते रहेंगे .

हमने कहा- अर्थात देश का पिंड नहीं छोड़िएगा .

अंध समर्थक- भाई क्या कहते हो .बापू जी ने कहा था -नि:स्वार्थ सेवा करते रहो, सो हम करते रहेंगे…

हमने कहा- मगर नि:स्वार्थ भावना कहां है, आपकी प्रत्येक सेवा का कर्ज, देश की जनता को बेतरह उतारना पड़ता है.

अंध समर्थक- ही ही ही ( हंसते हुए ) क्या बात कर रहे हो . अगर हम पर कोई उंगली भी उठाए तो हम सर झुका कर विनम्रता पूर्वक प्रतिउत्तर करते हैं .हमारे खून में ईमानदारी और सच्ची भावना समाई हुई है .

हमने कहा- अर्थात भ्रष्टाचार को आपने ईमानदारी का समनार्थी बना  दिया है .कोई गंभीर आरोप लगता है तो आप तब भी सहज रहते हैं .

अंध समर्थक- तो क्या करें ? हाथ तो चला नहीं सकते, सरे राह तो उठवा नहीं सकते, पिटवा नहीं सकते, इसलिए हमने सहजता को अंगीकार कर लिया है .हमारे आलाकमान और वरिष्ठ नेताओं का यही प्रेम भरा संदेश है. किसी भी हालत में आपा नहीं खोना है .

हमने कहा- मगर हमारी बात तो वहीं की वहीं रह गई. हम जानना चाहते हैं  निजी करण की आड़ में देश को लूटने का संगीन आरोप आप के नेताओं और पर लग रहे हैं . आप दो टूक शब्दों में बताइए आरोप सही मानते हैं या गलत .

अंध समर्थक- गलत! में हमेशा गलत ही कहूंगा. अगर मुझे पार्टी में रहना है तो गलत ही कहूंगा . क्योंकि यह पार्टी लाइन है.

हमने अंध समर्थक को हाथ जोड़े और दीर्ध नि:श्वास लेकर यह कहते आगे बढ़ गए-” इस “देश” को भगवान ही बचा सकता है.”

Love Story : शब्बो

Love Story : मजहब की दीवारें कितनी भी ऊंची और मजबूत क्यों न हों, प्यार का बुलडोजर उन्हें आसानी से गिरा ही देता है. प्यार अंधा नहीं होता, बल्कि वह सबकुछ देखता है और यकीन की पटरी पर अपनी रफ्तार पकड़ता है.

जटपुर का बाशिंदा लाखन जाट 42 साल का हट्टाकट्टा किसान था. उस का हंसताखेलता परिवार था. 2 जवान होते बेटे नरेंद्र और सुरेंद्र और एक 15 साल की बेटी थी, जिस का नाम माधवी था.

लाखन दूध पीने का बड़ा शौकीन था. इस के लिए उस ने मुर्रा नस्ल की एक नई भैंस खरीदी थी. लाखन की पत्नी सुलोचना उस भैंस की खूब सेवा किया करती थी.

एक दिन सुलोचना उस भैंस को नहला रही थी, तभी उस भैंस का पैर पानी से भरी बालटी से टकराया और वह हड़बड़ा गई. इसी हड़बड़ाहट में सुलोचना भैंस से टकरा कर फिसल गई और उस के कूल्हे में गंभीर चोट लग गई.

लाखन ने सुलोचना का खूब इलाज कराया, लेकिन केस बिगड़ने के चलते उसे बचाया न जा सका.

सुलोचना के गुजरने पर लाखन के सामने बड़ी समस्या पैदा हो गई. जब तक सुलोचना थी, लाखन को घर की कोई चिंता न थी, पर अब घर कौन संभाले?

माधवी ने रसोई संभालने की कोशिश की, लेकिन अभी वह इस काम में इतनी कुशल नहीं थी. अभी उस की पढ़नेलिखने की उम्र थी और लाखन माधवी को और आगे पढ़ाना चाहता था.

लाखन ने बड़े बेटे नरेंद्र का ब्याह करने का फैसला किया, पर घर में नईनवेली बहू के आने पर लाखन का
घर के अंदर आनाजाना तकरीबन बंद सा हो गया. वह अपनी बैठक तक सिमट कर रह गया. वहीं उस का भोजनपानी आ जाता. इस से वह अपनेआप को अलगथलग और अकेला महसूस करने लगा.

लाखन के गांव का ही शकील धोबी के घर उस का उठनाबैठना था. वह अपने कपड़े वहीं धुलवाता था.

शकील से उस की पुरानी जानपहचान थी. शकील पहले से ही गांवभर के कपड़े धोता आ रहा था.

नए जमाने में वाशिंग मशीन आने पर भी शकील अब भी गांव की जरूरत बना हुआ था. भारी कपड़े अभी भी उस के पास धुलने के लिए लाए जाते थे. उस ने घर में ही कपड़े इस्तरी करने की दुकान भी खोल ली थी.

शकील के इस काम में उस की बेटी शबनूर भी हाथ बंटाती थी. शबनूर से बड़ी 3 बेटियों की शादी शकील पहले ही कर चुका था. शबनूर को सब ‘शब्बो’ कह कर पुकारते थे. वह भी शादी के लायक हो चुकी थी.

शकील की बेटियां लाखन को चाचा कहती थीं. जब से सुलोचना नहीं रही थी, तब से लाखन का अकेलापन उस को भीतर ही भीतर कचोटता था.

हालांकि, लाखन का अपना परिवार था, लेकिन इस उम्र में पत्नी के गुजर जाने का अहसास और उस की कमी वही जानता है, जिस ने यह दर्द झेला हो.

इस उम्र में विधुर होने पर आदमी न इधर का रहता है और न उधर का. शादी की उम्र निकल चुकी होती है और पत्नी के बिना काम भी नहीं चलता. पका आम या तो गिरता है या फिर सड़ता है.

शब्बो भी जानती थी कि लाखन चाचा अब अपनेआप को अकेला सा महसूस करते हैं. उस की उम्र भी किसी साथी की चाहत में थी. दोनों ही कुदरत की मांग के मुताबिक जरूरतमंद थे. दोनों की आंखें कब लड़ गईं, कब दोनों के दिलों में प्यार का बीज फूट गया, पता ही नहीं चला.

अब लाखन और शबनूर को एकदूसरे का इंतजार रहता था. एकदूसरे से मिले बिना उन्हें चैन नहीं मिलता था.

लाखन उम्रदराज होने के चलते समुद्र सा शांत था, लेकिन शब्बो का मन तो चंचल था. वह अपने प्यार को ले कर नदी की तरह मचलती, उस का भावुक मन लहरों की तरह ऊंची उछाल मारता. वह चाहती थी कि लाखन उसे अपनी मजबूत बांहों में जकड़ कर खूब प्यार करे. दिन तो किसी तरह से कट जाता, लेकिन रातभर शब्बो लाखन की याद में करवटें बदलती रहती.

लाखन को अपनी इज्जत का डर था, इसलिए वह चाह कर भी शब्बो से संबंध नहीं बना पा रहा था.

आखिरकार शब्बो की शादी का भी समय आ गया. उस की शादी जलालाबाद के दानिश से तय हुई.
दानिश की एक टांग पोलियो से खराब हो गई थी.

शब्बो को जब यह पता चला तो वह बहुत रोई, लेकिन शब्बो को समझा दिया गया कि दानिश जरा सा लंगड़ाता है और एक प्राइवेट फर्म में कोई छोटीमोटी नौकरी करता है.

शब्बो ने लाखन से भी कहा, ‘‘आप तो अब्बू को समझ सकते हैं कि वह लंगड़े आदमी से मेरा निकाह न पढ़वाएं.’’

लाखन शब्बो को दिल से बहुत चाहता था और वह भी इस बात से दुखी था कि शब्बो की शादी किसी लंगड़े से की जा रही है, लेकिन वह शब्बो के घर की माली हालत जानता था और किसी के घर के मामले में दखलअंदाजी नहीं करना चाहता था.

लाखन ने शब्बो से कहा, ‘‘शब्बो, जो तुम्हारे अब्बू कर रहे हैं, सोचसमझ कर ही कर रहे होंगे. क्या पता, दानिश तुम्हारी ?ाली खुशियों से भर दे? वह तुम्हें बेइंतहा चाहेगा.’’

‘‘लेकिन, इस का उलटा हुआ, तो क्या आप मुझे संभालोगे? ’’ शब्बो ने आंखों में आंखें डाल कर पूछा.

शब्बो के दिल की बात होंठों तक आ गई थी. लाखन कहना तो बहुतकुछ चाहता था, लेकिन अपनी उम्र का लिहाज कर उस ने चुप्पी साध ली. उस का दिल कह रहा था कि शब्बो कहीं न जाए. वहीं रहे, उसी के पास.
शब्बो लाखन के कंधे से लग कर खूब रोई. आंसू तो लाखन की आंखों में भी आए. शब्बो लाखन की मजबूरी समझ कर शांत हो गई.

हर बार की तरह लाखन ने इस बार भी शकील की बेटी शब्बो की शादी में खूब मदद की, बल्कि इस बार तो कुछ ज्यादा ही की. वह शब्बो को खुश देखना चाहता था.

शब्बो अपनी ससुराल चली गई. लाखन को लगा जैसे उस की दुनिया उजड़ गई, लेकिन लाखन की तो केवल भावनाओं का संसार ही उजड़ा था, शब्बो की तो पूरी जिंदगी ही तबाह हो गई थी.

शब्बो को ससुराल जा कर पता चला कि दानिश लंगड़ा ही नहीं है, शराब पीने का टैंकर भी है. सुहागरात को भी वह बिस्तर पर नशे में चूर पड़ा रहा और शब्बो ने रात रोरो कर गुजारी. उस के बाद जो उस पर बीती, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता.

शब्बो ने अपनी आपबीती अब्बू और अम्मी को बताई, लेकिन वे शब्बो को हालात से समझौता करने की बात कह कर चुप हो गए.

लेकिन शब्बो के लिए एक आस बची थी और वह आस थी लाखन. एक दिन मौका पा कर शब्बो ने लाखन से फोन पर बात की.

‘‘कैसी हो शब्बो?’’

‘नरक भोग रही हूं, नरक. ऐसा सुलूक तो किसी के साथ जहन्नुम में भी नहीं होता होगा.’

‘‘यह क्या कह रही हो शब्बो?’’

‘जो कह रही हूं, सच कह रही हूं. याद करो, मैं ने शादी से पहले आप से कहा था कि इस का उलटा हो जाए, तो क्या आप मुझे संभालोगे? समझ लो, उलटे से भी उलटा हो गया. अब अपना वादा पूरा करो.’

‘‘हुआ क्या है, यह तो बताओ?’’

‘जो नहीं होना चाहिए था, वह सब हुआ है. एक ब्याहता के साथ इस से बुरा और क्या हो सकता है.’

‘‘शब्बो, पहेलियां मत बुझाओ, सब साफसाफ बताओ?’’

‘मेरा शौहर दानिश किसी काम का नहीं है. वह नकारा तो है ही, शराबी और बेवकूफ भी एक नंबर का है. उसे इस दुनिया में शराब के सिवा कुछ नहीं चाहिए.’

‘‘क्या दानिश तुम्हारा जरा भी खयाल नहीं रखता?’’

‘खयाल तो वह तब रखे, जब उसे जरा सा होश हो. हर समय नशे में चूर रहता है. उसे शौहर कहने में भी मुझे शर्म आती है.’

‘‘तुम्हारे तीनों देवर और सासससुर… क्या वे भी तुम्हारा खयाल नहीं रखते?’’

तभी लाखन ने फोन पर शब्बो के रोने की आवाज सुनी. शब्बो ने जोकुछ सिसकते हुए कहा, उस से लाखन पर बिजली सी गिरी.

शब्बो ने बताया, ‘खूब खयाल रखते हैं, पर मेरा नाड़ा खोलने का. न दिन देखते हैं, न रात और न ही सुबह या शाम. बस भेडि़ए बन कर नोचने को आ जाते हैं बारीबारी से.’

यह सुनते ही लाखन दहल गया. गुस्से से उस का पूरा शरीर कांप गया. वह बोला, ‘‘यह क्या कह रही हो तुम शब्बो? क्या वह सब से छोटा देवर भी? अभी तो उस की दाढ़ीमूंछ भी ठीक से नहीं आई.’’

‘पता है, क्या कहता है वह?’

‘‘क्या कहता है?’’ लाखन ने बड़े अचंभे से पूछा.

‘कहता है कि भाभी, कल बड़ा मजा आया था. आज और ज्यादा चाहिए.’

यह सुन कर लाखन का दिल मिचला गया. उस का मन हुआ कि अभी जा कर शब्बो के छोटे देवर का टेंटुआ दबा दे. उस ने बड़ी कड़वाहट से कहा, ‘‘क्या तुम ने अपने ससुर से इस की शिकायत नहीं की?’’

अब तो शब्बो फफकने लगी थी. वह रोते हुए बोली, ‘बताने में भी शर्म आती है. मैं उन से क्या शिकायत करूं. वे मेरे बाप की उम्र के और इस उम्र में भी इतने रंगीले और शैतान हैं कि मुझ से चाहते हैं कि मैं उन्हें भी…’

‘‘बस कर शब्बो, बस कर. किन जालिमों में फंस गई हो तुम. किसी को अगर यह सब बताओगी, तो कोई तुम्हारा यकीन भी नहीं करेगा.’’

‘जिस पर बीतती है, वही जानता है,’ शब्बो ने कहा.

‘‘तुम यह सब कैसे सहन कर रही हो? क्या तुम ने कभी इस का विरोध नहीं किया?’’

‘किया था. पहले मुझे कमरे में बंद कर सब ने मुझ पर लट्ठ तुड़ाई की और फिर सब ने जबरदस्ती… मैं तो इन सब को जहर दे कर मार डालना चाहती थी, लेकिन इन कंगलों के यहां तो गेहूं में रखने वाली सल्फास भी नहीं. रोज मजदूरी कर के शाम को राशनपानी ले कर आते हैं.’

लाखन शब्बो के दर्द की हद जान चुका था. मर्दों का जुल्म सुन चुका था. अब उस ने सोचा कि मुसीबत में एक औरत दूसरी औरत के लिए क्या करती है, यह भी जान ले.

लाखन ने कहा, ‘‘शब्बो, क्या तुम्हारी सास भी तुम्हारी कोई मदद नहीं करतीं, वे भी तो एक औरत हैं?’’

‘वह बहरी बस मुरगियों को दाना डालने और उन के दड़बे साफ करने का काम करती है. वह अपने बेटों और आदमी के साथ है. अच्छा है वह औरत है, नहीं तो मुझे एक और मर्द को झेलना पड़ता.’

लाखन को समझ में आ गया था कि नरक कहीं आसमान में नहीं होता, बल्कि धरती पर ही फैला है. शब्बो जो भोग रही है, वह नरक ही तो है.

तब कुछ सोच कर लाखन ने कहा, ‘‘शब्बो, तुम चिंता मत करो. अब चाहे कुछ भी हो जाए, मैं तुम्हें उस नरक से निकाल कर ही रहूंगा. मैं कुछ करता हूं. तुम मुझे कुछ दिन बाद फिर फोन करना. मेरा फोन करना ठीक नहीं रहेगा.’’

‘ठीक है, मैं वैसे ही करूंगी, जैसा आप कहते हैं. बस, मुझे अब न जाने क्यों आप पर ही भरोसा है? मैं तो मौका देख कर यहां से भाग जाती, लेकिन मुझे पनाह देने वाले तो मेरे मांबाप भी नहीं. मैं क्या करूं… आप को मैं अलग से मुश्किल में डाल रही हूं,’ कह कर शब्बो फिर से सिसकने लगी.

‘‘शब्बो, अब तुम्हें किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है. तुम ने मुझे किसी मुश्किल में नहीं डाला है, बल्कि तू ने अपना समझ कर मुझ से अपने दिल की बात कही है. अपना ही अपनों के काम आता है. मैं तुम्हें पनाह भी दूंगा और अपनाऊंगा भी. अब फोन रखो और बेफिक्र हो जाओ.’’

यह सुन कर शब्बो को बड़ी तसल्ली हुई. उसे लाखन पर पूरा यकीन था. आखिर प्यार भरोसे का ही तो नाम है.

लाखन ने बहुत सोचविचार किया. उसे पता था कि शब्बो को बचाने के लिए उसे कई कुरबानियां देनी पड़ेंगी. उसे अपना घरपरिवार, गांव सब छोड़ना पड़ेगा. बिरादरी वाले उस पर थूथू करेंगे, लेकिन वह जानता था कि प्यार कुरबानी मांगता ही है और इस से भी बड़ी बात तो यह थी कि वह जालिमों के चंगुल से एक अबला को बचाने जा रहा था.

अगर शब्बो खुश रहती तो लाखन को यह सब करना ही क्यों पड़ता? उस ने तो खुशीखुशी शब्बो की शादी करा दी थी. वह यह भी जानता था कि कुछ कट्टरपंथी इसे सांप्रदायिक रंग देने की भी कोशिश करेंगे, लेकिन लाखन ने भी अब कठोर फैसला कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह शब्बो को उस नरक से निकाल कर ही दम लेगा. वह किसी भी कीमत पर शब्बो का भरोसा टूटने नहीं देगा.

इस के लिए लाखन ने एक काबिल वकील से बात की. वकील ने कहा, ‘‘लाखन साहब, यह बड़ा रिस्की मामला है. अगर शबनूर ने आप का साथ न दिया और उस ने अदालत में गलत बयानबाजी कर दी, तो आप को लेने के देने पड़ जाएंगे. आप को जेल भी हो सकती है.’’

‘‘वकील साहब, अब जो होगा देखा जाएगा. मैं ने शब्बो से जो वादा किया है, उस को निभा कर रहूंगा. उस ने मुझ पर भरोसा किया है, तो मैं उस भरोसे पर खरा उतर कर दिखाऊंगा.’’

‘‘देख लो, लाखन साहब. भावनाओं में मत बहो. इस मामले में आप जीत भी गए, तो आप को बहुतकुछ गंवाना पड़ेगा. परिवार, इज्जत, सबकुछ.’’

‘‘वकील साहब, आप तो बस अपनी कार्यवाही को अंजाम देना. और हां, इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील साहब से भी बात कर के रखना. बाकी मुझ पर छोड़ दो.’’

‘‘कानूनी कार्यवाही की चिंता मत करो. वह तो सब मैं संभाल लूंगा. बस, मैं तो आप को आगाह कर रहा था.’’

वकील और लाखन ने अपनीअपनी कमान संभाल ली थी. इस के बाद जैसे ही शब्बो का फोन लाखन के पास आया, तो लाखन ने कहा, ‘‘शब्बो, इस जुम्मे की दोपहर की नमाज के वक्त, जब तुम्हारे देवर मसजिद में नमाज पढ़ने जाएं, तब तुम बुरका पहन कर सरकारी स्कूल के पास मिलना. मैं वहीं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

जुम्मे के दिन नमाज के बाद शब्बो के गायब होने की खबर पूरे गांव में आग की तरह फैल गई. शब्बो के देवरों और ससुर ने उस को खूब तलाशा, फिर जटपुर में उस के मायके फोन किया गया, लेकिन शब्बो का कहीं अतापता नहीं था. तब पुलिस को सूचना दी गई.

अगले दिन पता चला कि लाखन भी गायब है. कडि़यां से कडि़यां जुड़ती चली गईं. पुलिस को दोनों की लोकेशन प्रयागराज में मिली, फिर लोकेशन मिलनी बंद हो गई.

हफ्तेभर बाद दोनों को पुलिस ने बिजनौर बसस्टैंड से गिरफ्तार कर लिया. उन दोनों को मंडावली थाने लाया गया.

जैसे ही गांव वालों को इस की खबर मिली, माहौल गरमा गया. कुछ कट्टरपंथी मुल्लामौलवियों ने इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की. गांव में पंचायत करने की योजना बनाई गई, लेकिन पुलिस की सख्ती से ऐसा नहीं हो पाया.

तब भीड़ मंडावली थाने का घेराव करने पहुंच गई. मंशा यही थी कि किसी भी तरीके से शब्बो को थाने से छुड़ा लिया जाए, लेकिन थानेदार सत्यपाल होशियार निकला. वह जानता था कि ऐसे मामलों में क्या किया जाना चाहिए.

थानेदार सत्यपाल ने अपनी कागजी कार्यवाही पूरी करने के बाद शब्बो को बुरके में ही छिपा कर भीड़ के बीच से ही सादा वरदी में 2 महिला पुलिस कांस्टेबल की मदद से थाने से बाहर निकलवा दिया. पुलिस की गाड़ी शब्बो को ले कर मुरादाबाद नारी निकेतन पहुंच गई और कट्टरपंथी हाथ मलते रह गए.

शब्बो ने पहले ही पुलिस से बोल दिया था कि उसे किसी से नहीं मिलना है. शब्बो की मां तो उस से मिलने के लिए बहुत गिड़गिड़ाई थी.

लाखन का परिवार उसी के खिलाफ खड़ा हो गया था. सब यही कह रहे थे कि लाखन को इस मामले में नहीं पड़ना चाहिए था. लाखन उम्रदराज है और शब्बो अभी जवान है, कैसे निभेगी दोनों में?

लेकिन लाखन ने सबकुछ सोचसमझ कर किया था, इसलिए इन बातों की उसे कोई चिंता नहीं थी.

सब के मन में अभी भी यह बात थी कि शब्बो मजिस्ट्रेट के सामने बयान क्या देगी? कहीं वह पलट न जाए, फिर तो लाखन को पक्का जेल होगी.

लाखन की बिरादरी और मुसलिम कट्टरपंथी तो लाखन को जेल भिजवाने पर तुले हुए थे. वे यही सोच कर खुश हो रहे थे कि कुछ भी हो जाए, शब्बो उस के हक में बयान नहीं देगी और अपने परिवार के पास वापस आ जाएगी. लाखन को तो वह चाचा कहती है, फिर उस के साथ कैसे रहेगी? फिर वह कहां रहेगी? ऐसे कई सवाल लोगों के जेहन में उठ रहे थे.

कुछ दिन बाद मजिस्ट्रेट के सामने शब्बो के कलमबंद बयान होने थे. तहसील में सुबह से ही चहलपहल बढ़ गई थी. मामला अपनेआप ही 2 समुदायों का बन गया था.

कुछ हिंदू संगठन लाखन के हक में बिन बुलाए आ गए थे. उन्हें अपनी रोटी सेंकनी थी. गोल टोपी वाले तो पहले से ही बड़ी तादाद में भीड़ लगाए हुए थे. इन सब हालात को देखते हुए पुलिस बंदोबस्त भी चाकचौबंद था.

दोपहर के ठीक 12 बजे शब्बो को कड़ी पुलिस कस्टडी में मजिस्ट्रेट के सामने लाया गया. गोल टोपी वालों ने आगे बढ़ने की कोशिश की, तो पुलिस ने डंडा फटकार दिया.

इधर मजिस्ट्रेट के सामने शब्बो के कलमबंद बयान हो रहे थे, उधर बाहर खड़े लोगों की धड़कनें बढ़ रही थीं.

शब्बो ने अपने बयान में खुद के बालिग होने और अपनी मरजी से लाखन के साथ जाने की इच्छा जताई. यह सुन कर कट्टरपंथियों के मुंह लटक गए.

मजिस्ट्रेट के आदेश से शब्बो को लाखन के साथ जाने की छूट दे दी गई.

पुलिस कस्टडी में दोनों को उन के द्वारा बताई गई जगह पर छोड़ दिया गया. प्यार की जीत हुई. लाखन और शब्बो साथसाथ रहने लगे.

लाखन ने बिजनौर में किराए का मकान ले लिया और एक पैट्रोलपंप पर नौकरी करने लगा. दोनों वहीं सुख से रहने लगे.

डेढ़ साल बाद शब्बो ने एक बेटी को जन्म दिया और उस का नाम लखनूर रखा गया, जिसे दोनों प्यार से ‘लक्खो’ बुलाते हैं.

Romantic Story : रसीली बेवफा

Romantic Story : आसिफ अपनी बीवी सना के साथ 10 साल से बड़े प्यारमुहब्बत से मुंबई में रह रहा था. उस के 4 बच्चे थे, 2 बेटियां और 2 बेटे, जिन की उम्र महज 9 साल, 7 साल, 3 साल और एक साल थी. घर में सभी तरह की खुशहाली थी. किसी बात की कोई कमी न थी. आसिफ की सास साजिदा भी अपनी बेटी सना के साथ मुंबई में ही रह रही थी.

आसिफ एक मेहनती इनसान था. यही वजह थी कि उस ने बहुत कम समय में मुंबई में अपना खुद का कारोबार और घर बना लिया था.

आसिफ की सास साजिदा एक खर्चीली औरत थी, जबकि आसिफ की बीवी सना एक घर संभालने वाली जिम्मेदार औरत थी. यही वजह थी कि आसिफ ने काफी तरक्की की, क्योंकि सना फालतू के खर्च से हमेशा बचती थी, जिस से आसिफ को काफी बचत होती थी और धीरेधीरे वह बचत एक मोटी रकम बन जाती थी.

इस के उलट आसिफ की सास साजिदा दिनरात अपनी बेटी सना के कान भरती रहती थी कि क्यों इतने साधारण कपड़े पहनती हो, क्यों सीधीसादी बन कर रहती हो, जेवर खरीदो, अच्छे महंगे कपड़े पहनो. शौहर को बस में करना है, तो अपनी खूबसूरती में हर वक्त चार चांद लगाए लगाए रखो.

अपनी मां साजिदा की यें बात सुन कर सना बोलती, ‘‘अम्मी, मैं ऐसे ही इतनी खूबसूरत हूं. मुझे और क्या बननेसंवरने की जरूरत है. आसिफ मुझे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता है. वह एक सीधासादा इनसान है और उसे खुद सीधीसादी बीवी पसंद है.’’इस पर साजिदा बोलती, ‘‘तू नहीं जानती मर्दों की असलियत. जहां खूबसूरत औरत देखी नहीं, बस उन के दीवाने हो जाते हैं. आजकल मौडर्न जमाना है. मौडर्न बन कर रहा कर सना. इसी में तेरी भलाई है.’’

वक्त गुजरता गया. साजिदा अपनी बेटी सना को भड़काती रही. सना आखिर कब तक अपनी मां की बातों में न आती. आखिर एक दिन सना ने मां साजिदा की बातों में आ कर उन के बताए रास्ते को अपना ही लिया.

आसिफ ने जब सना का यह बदला रूप देखा, तो उसे बहुत हैरानी हुई. वह सना से बोला, ‘‘क्या तुम ब्यूटीपार्लर भी जाने लगी हो?’’

सना बोली, ‘‘हां, अम्मी वहां जबरदस्ती ले गई थीं और उन्होंने मेरी आईब्रो बनवा दीं, फिर बाल स्ट्रेट करवाए. अब कैसी लग रही हूं मैं?’’

आसिफ ने कहा, ‘‘अच्छी लग रही हो. पर बुरा मत मानना कि तुम तो वैसे ही जन्नत की हूर लगती हो. तुम्हें यह सब करने की क्या जरूरत है?’’

सना ने पूछा, ‘‘क्या तुम मुझे देख कर खुश नहीं हो?’’

आसिफ बोला, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और मैं तुम से हमेशा खुश रहता हूं. मैं ने तो बस यही कहा कि तुम बिना ब्यूटीपार्लर जाए ही इतनी हसीन लगती हो कि मैं तुम्हारे हुस्न का दीवाना हो उठता हूं.’’

सना ने जब आसिफ से यह सुना, तो बड़े प्यार से उसे गले लगा कर एक प्यारा सा चुम्मा रसीद कर दिया.

आसिफ ने भी सना के प्यार का जवाब प्यार से दिया.

अगले दिन सना की अम्मी बोलीं, ‘‘सना, चलो बाजार चलते हैं. तुम्हारे लिए मैं ने कुछ कपड़े पसंद किए हैं. वहां तुम वे कपड़े पहनना, बिलकुल अंगरेजी मेम लगोगी.’’

सना ने बाजार जाने से मना कर दिया, ‘‘मुझे इन सब चीजों की कोई जरूरत नहीं है.’’

इस पर साजिदा बोली, ‘‘कल आसिफ ने तुम से कुछ कहा था क्या?’’

सना ने कहा, ‘‘उन्हें यह सब पसंद नहीं है. वे बोलते हैं कि तुम ऐसे ही बहुत खूबसूरत हो. तुम्हें इन सब चीजों की क्या जरूरत है?’’

‘‘हर औरत इस होड़ में लगी रहती है कि वह दूसरी औरत से ज्यादा खूबसूरत लगे. जब तुम खूबसूरत हो तो क्यों एक घरेलू औरत की तरह सादगी से जिंदगी गुजार रही हो?

‘‘आसिफ तो पागल है. न तो वह खुद बनसंवर कर रहता है और न ही स्मार्ट दिखता है. बस, पैसा कमाने के पीछे इतना पागल हो गया है कि उसे अपनेआप को फिट और स्मार्ट रखने का ध्यान ही नहीं. अभी से उस ने कैसी बूढ़ों वाली दाढ़ी रख ली है.

‘‘जब तुम उस के साथ कहीं बाहर जाती हो, तो तुम दोनों को देख कर ऐसा लगता है जैसे बापबेटी जा रहे हो.’’

सना ने कहा, ‘‘क्या अम्मी, तुम भी कुछ भी बोलती हो. मेरा वे कितना खयाल रखते हैं, मुझे कितना प्यार
करते हैं.’’

‘‘प्यार तो करेगा ही न. जब कोई और औरत उसे घास नहीं डालती तो वह तेरा ही दीवाना बनेगा न. पता नहीं, मेरी क्या मति मारी गई थी, जो ऐसे बूढ़े से तेरी शादी कर दी.’’

सना अपनी अम्मी के मुंह से ऐसी बातें सुन कर सोच में पड़ गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अम्मी ने ऐसा क्यों बोला.

सना को आज भी वह बात याद है, जब आसिफ का रिश्ता उस के लिए आया था. तब सना की अम्मी ने आसिफ को देखते ही इस रिश्ते के लिए मना कर दिया था, पर उस के अब्बू और भाई की जिद थी कि आसिफ एक मेहनती इनसान है, इसलिए अब्बू और भाई ने अम्मी की एक न चलने दी और सना की शादी आसिफ से हो गई.

हालांकि, साजिदा को आसिफ से सना की शादी करना अच्छा नहीं लग रहा था, क्योंकि वे उस की शादी अपनी बहन के बेटे से करवाना चाहती थीं, जो कि बहुत ही खूबसूरत, स्मार्ट और कमउम्र था.

शादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी सना आसिफ के साथ बहुत खुश थी, मगर साजिदा उसे ऐसी सीख दे रही थी, जिस से उस के घर में कभी भी बड़ा तूफान आ सकता था.

साजिदा ने अपनी चालाकियों से सना को उस रास्ते पर ले जाना शुरू कर दिया, जिस की वजह से आसिफ और सना के रिश्ते में दरार पड़ने लगी.

हुआ यों था कि साजिदा ने सना को मौडर्न कपड़े पहनने का शौक डाल दिया. अब वह जींसटौप पहनने लगी थी, जिस से आसिफ को बुरा लगने लगा. उस ने उसे समझाने की कोशिश की, तो फौरन साजिदा बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘तुम सना के मौडर्न बनने से जलते हो. उस के ब्यूटीपार्लर जाने से तुम्हें नफरत है.’’

आसिफ बोला, ‘‘अम्मी, मुझे कोई जलन नहीं है. हमारी शादी को इतने साल हो गए हैं. हमारे 4 बच्चे हैं.
2 बेटियां हैं. अगर सना इस तरह के कपड़े पहनेगी, तो उन सब पर क्या असर पड़ेगा.’’

‘‘आजकल कौन परदे में रहना पसंद करता है. तुम लोग तो औरत को चारदीवारी में कैद कर के रखना चाहते हो. औरत को भी जीने का हक है. पर तुम लोग तो औरत को घर की नौकरानी बना कर रखना चाहते हो.’’

अपनी सास साजिदा के मुंह से ये अल्फाज सुन कर आसिफ खामोश हो गया, पर सना को अपनी अम्मी की बातों में दम लगा और उस ने भी अपनी अम्मी का साथ दिया.

आसिफ चुप रहा. वह सोचता रहा कि सना नादान है. एक न एक दिन उसे अपनी गलती का अहसास होगा.

आसिफ का यह सोचना उस की भूल था. अब सना बिना परदे के बाहर घूमने जाने लगी और उस ने अपनेआप को पूरी तरह मौडर्न बना लिया था.

उधर साजिदा ने अपनी बहन के बेटे सनी को मुंबई बुला लिया था. वह मुंबई के एक इलाके में रहने लगा, जहां साजिदा सना को उस से मिलवाने ले जाने लगी.

सनी सना को घुमानेफिराने लगा, तो सना को एक नई खुशी मिलने लगी. अब वह कोई न कोई बहाना बना कर अपना ज्यादातर वक्त सनी के साथ गुजारने लगी.

दोनों का एकदूसरे से मिलनाजुलना शुरू हुआ, तो उन के बीच जिस्मानी ताल्लुकात भी जल्दी ही बन गए.

धीरेधीरे सना का लगाव सनी की तरफ बढ़ता गया और आसिफ से दूरियां बनने लगीं. वह बातबात पर आसिफ को नीचा दिखाने लगी, जिस से उन में ?ागड़ा होने लगा.

एक दिन मौका देख कर सना और उस की अम्मी साजिदा ने आसिफ के 7 लाख रुपए और जेवर घर से गायब कर दिए.

जब आसिफ को इस बात का पता चला, तो वह उन से इस बारे में पूछने लगा. पर उन्होंने साफ इनकार कर दिया कि उन्हें इस बारे में कुछ भी नहीं पता.

आसिफ चाह कर भी कुछ नहीं कर पाया, क्योंकि वह सना से बहुत मुहब्बत करता था. वह नहीं चाहता था कि उस की किसी हरकत से सना नाराज हो जाए और उस का घर टूट जाए.

आसिफ का यह सोचना ही उस की सब से बड़ी भूल थी. अब सना के पास काफी पैसा हो गया था. उस ने सनी के साथ मिल कर उन पैसों से और ज्यादा घूमनाफिरना शुरू कर दिया. अब तो वह रातरातभर गायब रहने लगी थी.

आसिफ ने सना की इस हरकत का विरोध किया, तो उस ने साफसाफ कह दिया, ‘‘मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना है. तुम अब मेरे काबिल नहीं हो.’’

आसिफ सना की यह बात सुन कर दंग रह गया. उस ने उसे सम?ाने की काफी कोशिश की, पर वह नहीं मानी.

आसिफ ने उसे अपने बच्चों का वास्ता दिया, तो सना की अम्मी साजिदा बोल पड़ी, ‘‘तेरे बच्चे हैं, तू पाल इन्हें.’’

आसिफ की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उस ने इन सब बातों की जानकारी अपने ससुर को दी, तो वे अगले ही दिन मुंबई के लिए चल दिए.

यह खबर सुन कर सना और साजिदा घर छोड़ कर गायब हो गईं.

एक दिन इंतजार करने के बाद आसिफ और उस के ससुर ने उन दोनों के गायब होने की सुचना पुलिस को दी.

तकरीबन 3 दिन बाद पुलिस ने सना से बात कर के उसे पुलिस स्टेशन बुलाया. साथ ही, आसिफ और उस के ससुर को भी पुलिस स्टेशन आने को कहा.

अगले दिन आसिफ और उस के ससुर पुलिस स्टेशन पहुंचे, तो देखा कि सना और उस की अम्मी साजिदा पहले से ही वहां मौजूद थीं.

पुलिस के पूछने पर सना बोली, ‘‘मुझे इस आदमी के साथ बिलकुल नहीं रहना. यह मेरे साथ मारपीट करता है. मुझ पर शक करता है. मुझे जानवरों की तरह मारता है, इसलिए मैं अपनी अम्मी के साथ अपने एक रिश्तेदार के यहां चली गई थी.’’

पुलिस इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘अगर तुम्हारे शौहर ने तुम पर जुल्म किया था, तो तुम्हें थाने में इस की रिपोर्ट दर्ज करानी चाहिए थी.’’

सना रोते हुए बोली, ‘‘इस के पास पैसा है, ताकत है. अगर मैं कुछ करती तो यह मुझे जान से भी मार सकता था, इसलिए मुझे जो अच्छा लगा, मैं ने वह किया.’’

पुलिस इंस्पैक्टर को उस पर तरस आया और वह आसिफ को डांटते हुए बोला, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती, जो एक लाचार औरत पर जुल्म करते हो. अगर चार डंडे पड़ेंगे, तो तुम्हारे होश ठिकाने आ जाएंगे.’’

जब पुलिस इंस्पैक्टर ने आसिफ को हड़काया, तो सना की मां साजिदा बोली, ‘‘हम कभी इस के साथ नहीं जाएंगे और न ही कोई शिकायत दर्ज करेंगे. कुछ दिनों अकेला रहने और बच्चों की देखभाल करने पर इसे खुद ही पता चल जाएगा कि बच्चे कैसे पलते हैं.’’

पुलिस ने उन दोनों मांबेटी को छोड़ दिया और आसिफ को सख्त हिदायत दी, ‘‘आइंदा कुछ ऐसावैसा किया, तो जेल में बंद कर दूंगा.’’

आसिफ का घर टूट चूका था. उस के ससुर कुछ दिन वहां रहे और बाद में अपने घर लौट गए.

आसिफ अपने बच्चों को ले कर मुंबई से अपने गांव आ गया. अब उस के ऊपर अकेले बच्चों को पालने की जिम्मेदारी थी.

आसिफ का घर देखते ही देखते एक कब्रिस्तान की तरह बन गया. आज उस की मदद करने वाला कोई न था, पर आसिफ अभी भी सना की याद में तड़पता रहता था. उसे उम्मीद थी कि एक न एक दिन सना लौट आएगी.

आसिफ ने नशा करना शुरू कर दिया. अपनी बीवी के गम में वह रातरातभर सो नहीं पाता था. उस ने खुद को एक कमरे में कैद कर लिया था. उस के बच्चे भूखेप्यासे इधरउधर फिरते रहते थे. उन को देखने वाला अब कोई न था.

धीरेधीरे आसिफ को कई बीमारियों ने घेर लिया. वह शराब पीने के चक्कर में पहले से ही जिस्म से कमजोर था, फिर मन से भी कमजोर होता चला गया. सना के बिना उस की जिंदगी उजड़ गई थी.

आसिफ और उस के बच्चों की ऐसी बदहाली देख कर उस की बहन को उस पर तरस आया और उस के बच्चों को अपने साथ ले गई. इन सब के बावजूद आसिफ को कोई फर्क नहीं पड़ा.

आज इस घटना को पूरे 3 साल हो गए थे. न सना वापस आई और न ही आसिफ को होश रहा.

Family Story : सस्ते का चक्कर पड़ा महंगा

Family Story : गौतम की नासिक में नईनई नौकरी लगी थी. अब नासिक में घर जमाना था. दफ्तर की ओर से क्वार्टर तो मिलता था, पर इस के लिए इंतजार करना पड़ता था. हो सकता है कि 6 महीने लग जाएं क्वार्टर मिलने में, इसलिए गौतम ने किराए पर एक मकान ले लिया था.

पर, घर के लिए सामान तो चाहिए था. अपने घर में सुविधाओं के बीच रहा हुआ आदमी था गौतम, इसलिए बैड, सोफा, एसी, फ्रिज तो चाहिए ही उसे, पर इस के लिए तो उसे एक से डेढ़ लाख रुपए चाहिए. घर वाले एकसाथ सभी सुविधा नहीं देना चाहते थे. उन का कहना था कि हर महीने कुछकुछ सामान लेते रहना, पर उस का मन तो शुरू से ही सारी सुविधाओं के लिए उतावला था.

जौइन करने के बाद लगातार 3 दिनों की छुट्टियां थीं, इसलिए गौतम अपने घर मेरठ वापस आ गया था. उस के दिमाग में हमेशा यही बात चलती रहती थी कि कैसे सारी सुविधाएं जल्द से जल्द ले ले. उस ने औनलाइन मार्केट के बारे में सुना था, जहां सस्ते में सामान खरीदेबेचे जाते हैं.

गौतम ने एक अनुरोध डाल दिया सभी सामानों की लिस्ट के साथ. एक घंटे के अंदर उस के पास ह्वाट्सएप पर एक प्रस्ताव आ गया. सभी सामान के फोटो के साथ बताया गया था कि उस आदमी का ट्रांसफर मुंबई में हो गया है. उस की कंपनी जितना पैसे उसे सामान के परिवहन के लिए देगी, उस में वह जा नहीं पाएगा और जितना खर्च लगेगा उतने में नया सामान आ जाएगा, इसलिए वह औनेपौने दाम पर अपना सभी सामान बेच रहा है.

गौतम को सामान बहुत पसंद आया. इन सामानों को खरीदने में एक लाख रुपए खर्च होते, पर वह सिर्फ 30,000 रुपए में दे रहा था.

गौतम ने उस नंबर पर फोन किया.

‘हैलो…’ दूसरी तरफ से किसी आदमी की आवाज आई.

‘‘मैं गौतम बोल रहा हूं मेरठ से. आप का सामान मुझे पसंद है. मैं 1 तारीख को नासिक आ रहा हूं. वहां भुगतान कर के सामान ले लूंगा.’’

‘असल में मुझे 30 तारीख को ही मुंबई जाना है. मेरा ट्रांसफर हो गया है. आप अपना पता बता दें, मैं उस पते पर सामान भेज दूंगा. आप पेटीएम से भुगतान कर देना,’ बड़ी ही मीठी आवाज में उस ने जवाब दिया.

‘‘मैं चाहता था कि सामान मैं खुद देखूं, फिर बात करूं. फोटो में तो वैसे ठीक लग रहा है,’’ गौतम ने कहा.

‘सामान के लिए आप जरा भी चिंता मत करो. बिलकुल ब्रांड न्यू है. अगर मेरा ट्रांसफर नहीं हुआ होता या मुझे सामान ले जाने के पैसे सही मिलते, तो मैं ले जाता. अभी 6 महीने भी नहीं हुए हैं इन्हें खरीदे हुए,’ उस आदमी ने समझते हुए कहा.

‘‘अगर मुझे कोई सामान पसंद नहीं आएगा, तो फिर…?’’ गौतम ने शक जाहिर किया.

‘पसंद न आने का तो सवाल ही नहीं है भाई साहब. बिलकुल नया सामान है और इस्तेमाल भी न के बराबर हुआ है.’

‘‘फिर कैसे करें, बताइए? मेरा रिजर्वेशन पहली तारीख का है और आप कह रहे हैं कि आप को 30 तारीख को ही निकलना है,’’ गौतम चिंतित हो गया.

‘आप तो फिलहाल सिर्फ 5,000 रुपए पेटीएम कर दो, बाकी पैसा आप आने के बाद दे देना. मैं सामान अपने किसी दोस्त से कह कर आप के बताए पते पर भिजवा दूंगा. और कुछ…?’ उस ने प्रस्ताव रखा.

‘‘आजकल इतने फ्रौड होते हैं कि यकीन करना मुश्किल होता है,’’ गौतम के मन में अभी भी थोड़ा शक था.

‘मैं डिफैंस में हूं और डिफैंस वाले फ्रौड नहीं करते. हम किसी को अपना आईडी कार्ड नहीं देते. पर, आप के यकीन के लिए अपना आईडी कार्ड ह्वाट्सएप कर रहा हूं. अगर यकीन हो, तो फिर पेमेंट करना, वरना कोई बात नहीं,’ उस ने जवाब दिया.

थोड़ी ही देर में गौतम के मोबाइल फोन पर उस का आईडी कार्ड का फोटो भी आ गया. गोविंद शर्मा नाम था उस का. अब शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी. उस ने 5,000 रुपए उस के खाते में भेज दिए और अपना पता उसे बता दिया. जवाब में भी ‘ओके’ आ गया.

गौतम निश्चिंत हो गया. अब जरूरत की सारी चीजें उस के पास हो जाएंगी. जब दफ्तर से क्वार्टर मिलेगा, तो शिफ्ट करना ही एक काम रहेगा.

अगले दिन जब गौतम अपने दोस्तों के बीच बैठा गपें मार रहा था, तभी गोविंद का फोन आया. गौतम ने फोन उठा लिया और बोला, ‘‘हैलो.’’

‘अरे गौतमजी, एकाएक मुझे और्डर मिला है कि 29 तारीख को ही मुंबई जाना है. आप 5,000 रुपए और पेटीएम कर दो प्लीज,’ गोविंद ने कहा.

‘‘कैसी बातें कर रहे हैं, 5,000 रुपए तो मैं पहले ही आप को दे चुका हूं, बाकी पैसे जैसे ही सामान कब्जे में ले लूंगा, तब दे दूंगा,’’ गौतम बोला.

‘हम डिफैंस वाले आप लोगों की हिफाजत के लिए कितनी मुसीबतें झेलते हैं और आप हैं कि 5,000 रुपए के लिए मुझ पर यकीन नहीं कर रहे हैं,’ गोविंद ने कहा.

‘‘देखिए, मेरे पास अभी पैसे हैं भी नहीं. 1 तारीख को आ कर मैं आप को पूरे पैसे दे दूंगा,’’ गौतम ने कहा.
इस तरह गोविंद गौतम को पैसे भेजने के लिए कहता रहा और गौतम इस बात पर अड़ा रहा कि सामान मिलते ही वह पैसे दे देगा.

‘फिर, मैं ऐसा करता हूं कि सामान किसी और को बेच देता हूं और आप के पैसे वापस कर देता हूं,’ इतना कह कर गोविंद ने फोन काट दिया.

‘‘क्या बात है… किस से इतना उलझ रहे थे?’’ गौतम के दोस्त सिद्धार्थ ने पूछा.

गौतम ने उसे सारी बात बता दी.

‘‘तुम किसी ठग के चक्कर में पड़ चुके हो. चलो, उस का नंबर बताओ, मैं ट्रू कौलर पर देख कर बताता हूं,’’ सिद्धार्थ ने कहा.

गौतम ने उसे गोविंद का नंबर बताया, जिसे सिद्धार्थ ने ट्रू कौलर पर सर्च कर के देखा. ट्रू कौलर उस नंबर को फ्रौड बता रहा था.

गौतम ने उसी समय गोविंद को फोन लगाया और बोला, ‘‘मुझे तुम्हारी असलियत का पता चल चुका है. मैं पुलिस में शिकायत करने जा रहा हूं.’’

‘ठीक है, ऐसी कई शिकायतें हो चुकी हैं मेरे खिलाफ, एक और सही. चलो, फोन रखो, मुझे दूसरे लोगों को भी फंसाना है,’’ इतना कह कर गोविंद ने फोन काट दिया.

गौतम ने दोबारा फोन किया, तो नंबर स्विच औफ आ रहा था.

‘सस्ते का चक्कर बड़ा महंगा पड़ा,’ गौतम ने सोचा.

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