लेखक- रमेश चंद्र सिंह
हितेश अपनी मोटरसाइकिल से औफिस जा रहा था कि तभी एक लड़की, जिस का नाम रजनी था, ने उसे हाथ दे कर रोका.
हितेश ने अपने सिर से हैलमैट उतार कर पूछा, ‘‘क्या बात है?’’
‘‘मुझे अपोलो अस्पताल जाना है. मेरी बड़ी दीदी को ब्रेन हैमरेज हो गया है. वे आईसीयू में भरती हैं. मैं काफी देर से आटोरिकशा का इंतजार कर रही हूं. अब तक कोई नहीं मिला. मेरा वहां तुरंत पहुंचना जरूरी है. प्लीज, क्या तुम मुझे वहां तक छोड़ दोगे?’’
‘‘लेकिन, मेरा औफिस दूसरे रास्ते पर है. तुम्हें अपोलो अस्पताल छोड़ने में मुझे औफिस पहुंचने में देर हो जाएगी.’’
रजनी कुछ न बोली, सिर्फ गुजारिश भरी नजरों से उसे देखती रही. तब हितेश ने कहा, ‘‘अच्छा चलो, छोड़ देता हूं.’’
सच तो यह था कि रजनी इतनी खूबसूरत थी कि उस के निराश और उदास चेहरे पर भी एक गजब का खिंचाव था और उस ने जब हितेश को देखा तो वह कुछ पलों तक एकटक देखता ही रह गया. वह उसे मना नहीं कर पाया.
जब हितेश अपोलो अस्पताल के गेट पर पहुंचा, तो रजनी उस से बोली, ‘‘तुम मुझे यहीं पर छोड़ दो, अब मैं खुद ही चली जाऊंगी.’’
‘‘अब मैं अस्पताल तक तो आ ही गया हूं, तो तुम्हारी बीमार बहन से मिल भी लेता हूं,’’ हितेश बोला और मोटरसाइकिल को स्टैंड पर लगाने लगा.
‘‘रहने दो, तुम्हें औफिस जाने में देर हो जाएगी.’’
‘‘बौस के किसी रिश्तेदार की तबीयत खराब है. वे आजकल रोज लेट से औफिस आते हैं, इसलिए लेट होने से डांट नहीं पड़ने वाली,’’ कह कर हितेश मुसकराया और रजनी के साथ हो लिया.
दोनों पूछते हुए आईसीयू के दरवाजे के पास पहुंचे. बाहर बैंच पर अपने बौस नीलेश को बैठा देख हितेश घबरा गया.
हितेश को एक लड़की के साथ देख कर पहले तो नीलेश कुछ पल चुप रहा, फिर पूछा, ‘‘हितेश, औफिस छोड़ कर तुम यहां क्या कर रहे हो? साथ में यह लड़की कौन है?’’
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हितेश को अचानक कोई बहाना न सूझा, तो उस ने सबकुछ सचसच बता दिया. अब वह कर भी क्या सकता था.
सच नहीं बताता तो नीलेश औफिस से उसे गैरहाजिर मान कर उस की एक दिन की तनख्वाह काट सकता था, पर यह भी माफी के काबिल नहीं था, क्योंकि औफिस छोड़ कर इस तरह किसी अनजान लड़की के साथ उस के यहां आने का कोई मतलब नहीं था.
रजनी को भले ही थोड़ी और देर होती, लेकिन उसे कोई न कोई साधन जरूर मिल जाता. यह दिल्ली का एक सुनसान सा रास्ता जरूर था, लेकिन ऐसा भी नहीं कि कोई सवारी ही न मिले.
हितेश यह भी सोच रहा था कि ऐसे हालात का जिम्मेदार वह खुद भी है. रजनी ने तो उसे नीचे से ही लौट जाने के लिए कहा था, पर उस की खूबसूरती और स्मार्टनैस से प्रभावित हो कर और उस का कुछ देर तक और साथ पाने और इसी बहाने उस से संबंध बनाने की मंशा से उस के साथ वह आईसीयू के दरवाजे तक आ गया था. उसे क्या पता था कि जिस बौस की गैरहाजिरी का फायदा उठा कर वह यहां आया था, वह यहीं मिल जाएगा.
हितेश को हैरत में देख रजनी बोली, ‘‘यहां मेरी बहन आईसीयू में भरती हैं. मुझे आने का कोई साधन नहीं मिल रहा था, तो मैं ने इन से लिफ्ट मांगी थी.’’
‘‘तुम्हारी बहन का क्या नाम है?’’ हितेश के बदले रजनी को बोलते देख नीलेश ने उस की ओर मुखातिब होते हुए पूछा.
‘‘संध्या,’’ रजनी ने कहा, तो नीलेश ने पूछा, ‘‘तो तुम्हीं रजनी हो?’’
‘‘जी.’’
‘‘अभी कहां से आ रही हो?’’
‘‘कानपुर से.’’
‘‘तुम्हारी बहन अभी कोमा में?हैं. वह कभीकभी तुम्हारी चर्चा करती थी. उस के मोबाइल में तुम्हारा नंबर देखा, तो मैं ने ही तुम्हें फोन किया था.’’
दीदी को कोमा में जान कर रजनी रोने लगी.
‘‘अब तुम औफिस जाओ. मेरे नहीं रहने से सभी लोग मनमाने हो गए हैं, पर तुम्हें आज माफ करता हूं, क्योंकि तुम ने किसी जरूरतमंद की मदद के लिए ऐसा किया है. आज मैं छुट्टी पर रहूंगा,’’ नीलेश ने हितेश से कहा.
हितेश कुछ न बोला और वहां से लौट आया.
‘‘अब रोने से तो तुम्हारी बहन ठीक हो नहीं जाएंगी. चल कर देख लो. डाक्टर का कहना है कि अब पहले से हालत अच्छी है. समय पर अस्पताल आ गई थीं, इसलिए ज्यादा हालत नहीं बिगड़ी. कुछ दिनों के बाद कोमा से बाहर आ जाएंगी. लेकिन दिक्कत यह है कि उन की देखभाल के लिए कोई है नहीं,’’ नीलेश ने निराश हो कर कहा.
‘‘मैं सब संभाल लूंगी. आप चिंता मत कीजिए.’’
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‘‘लेकिन, संध्या तो कहती थी कि तुम कानपुर में किसी कालेज से एमए कर रही हो, फिर यहां कैसे?’’
‘‘हां, लेकिन अभी मेरी छुट्टियां हैं. 10 दिनों के बाद कालेज खुलेगा, तब तक दीदी की हालत में सुधार हो जाएगा.’’
इस के बाद रजनी नीलेश के साथ आईसीयू में गई. उस की दीदी अभी भी कोमा में थीं. दीदी को इस हालत में देख कर वह फिर रोने लगी.
‘‘अब तो चुप हो जाओ. तुम्हारे गालों पर बहते आंसू मुझे अच्छे नहीं लग रहे हैं,’’ नीलेश ने रूमाल से उस के आंसू पोंछे, तो उस ने भरी आवाज में पूछा, ‘‘तुम्हारे बारे में दीदी ने कभी नहीं बताया. आप से दीदी का क्या रिश्ता?है?’’
रजनी के इस सवाल का जवाब नीलेश टाल गया.
‘‘अभी चल कर होटल में फ्रैश हो कर कुछ खापी लो, फिर सारी बातें बताऊंगा,’’ नीलेश बोला और अस्पताल की सीढि़यां उतरने लगा.
दीदी की हालत देख कर अभी भी रजनी की आंखें नम थीं. उस ने कहा, ‘‘मुझे अभी भूख नहीं है.’’
‘‘लेकिन, न खाने से तो तुम कमजोर हो जाओगी. अब दीदी के साथ तुम्हें तो बीमार नहीं होना है न.’’
‘‘लेकिन, अस्पताल में कौन रहेगा?’’ रजनी ने पूछा, तो नीलेश ने एक नौजवान की ओर इशारा किया.
‘‘यह मेरे औफिस के चपरासी का भाई?है… अभी बेरोजगार है. चपरासी से कह कर मैं ने इसे यहां रख दिया?है, क्योंकि मुझे भी दिनभर औफिस में रहना पड़ता है.’’
‘‘होटल में क्यों… मैं तुम्हारे घर क्यों नहीं चल सकती?’’ रजनी ने पूछा, तो नीलेश बोला, ‘‘मेरा घर यहां से काफी दूर है, फिर मैं ने आज छुट्टी भी ली हुई?है. डाक्टर का कहना है कि आज कभी भी तुम्हारी दीदी को होश आ सकता?है.’’
लेकिन नीलेश के बारे में पूरा जाने बिना रजनी उस के साथ होटल में नहीं जाना चाहती थी. जमाने को देखते हुए सावधानी बरतना जरूरी था.
अनजान मर्दों का क्या भरोसा. पता नहीं अकेली लड़की को देख कर इन के मन में कब क्या विचार आ जाए, इसलिए उस ने पूछा, ‘‘आप के घर में कौनकौन रहता है?’’
नीलेश ने रजनी की दीदी से अपना रिश्ता नहीं बताया था. आखिर इस में ऐसी क्या बात थी, जिस को बताने के लिए उस को समय की जरूरत पड़ रही थी? दीदी ने भी तो कभी उस के संबंध में नहीं बताया था.
रजनी के पिता एक कालेज में लैक्चरर थे, जिन की मौत उस समय हो गई थी, जब वह और उस की दीदी बच्ची थीं. मां ने पैंशन और चपरासी की नौकरी से उन दोनों को पालापोसा और पढ़ायालिखाया.
रजनी की मां घरेलू औरत थीं. मुश्किल से मैट्रिक पास, इसलिए कालेज प्रशासन ने पति की मौत के बाद उन्हें कालेज में चपरासी की नौकरी दी थी. वे भी अब रिटायर हो गई थीं.
अभी 2 साल पहले रजनी की दीदी की दिल्ली के एक कालेज में लैक्चरर की नौकरी लगी थी. उधर उस की दीदी की नौकरी लगी, इधर उस की मां की मौत हुई, मानो वे अपनी बेटी के अपने पैरों पर खड़े होने का ही इंतजार कर रही थीं.
रजनी के पिता ने कानपुर में ही एक छोटा सा घर बनवाया था, जिस में अब रजनी रह कर वहीं के एक कालेज से एमए कर रही थी.
चूंकि रजनी अकेले रहती थी, इसलिए उस ने अपने मकान के एक हिस्से में पढ़ने वाली 2 लड़कियों को रख लिया था. इस से उसे कुछ आमदनी हो जाती थी. साथ ही, कहीं जाने पर घर अकेला नहीं छोड़ना पड़ता था, क्योंकि घर खाली छोड़ने पर चोरी होने का डर बना रहता था.
इस का एक फायदा यह भी था कि मन बहलाने के लिए उन लड़कियों का साथ भी मिल जाता था. इधर कई महीनों से उन लड़कियों के साथ रजनी का खाना भी बनता था. उस का खर्च मकान के किराए से पूरा नहीं होता था, दीदी ही बाकी खर्चा भेजती थीं.
‘‘मेरी पत्नी सुधा और एक बच्ची,’’ नीलेश ने कहा.
‘‘फिर मुझे अपने घर ले चलो, मैं भाभीजी से मिलना चाहती हूं,’’ रजनी बोली.
‘‘तुम बेवजह इतना परेशान हो रही हो. बोला न, मेरा घर यहां से बहुत दूर है. वहां जा कर लौटने में काफी वक्त बरबाद होगा. फिर तुम्हारी दीदी को पता नहीं कब होश आ जाए. यह तो मैं ही जानता हूं कि कैसे ब्रेन हैमरेज के बाद मैं ने तुम्हारी दीदी को संभाला और रात में 3 बजे अस्पताल पहुंचाया.’’
फिर रजनी को लगा कि शायद नीलेश ठीक ही कह रहा है. इस हालत में वह झूठ बोलता भी हो, तब भी उस के साथ कोई बदतमीजी तो नहीं ही करेगा, इसलिए उस ने तय किया कि नीलेश के साथ वह होटल में जा कर पहले फ्रैश होगी और खाने के बाद सीधे अस्पताल आ जाएगी.
अब इतना तो तय था कि दीदी नीलेश की पत्नी नहीं थीं, फिर दीदी से उस का क्या रिलेशन हो सकता है? इस वक्त इतनी खोजबीन करने का समय नहीं था और रजनी रातभर जाग कर बिना रिजर्वेशन कराए आई थी. ऊपर से जब वह स्टेशन से अपोलो अस्पताल के लिए चली थी, तब उस का आटोरिकशा वाले से झगड़ा भी हो गया था.
आटोरिकशा के चलने के बाद उस ने कहा था कि उस के आटोरिकशा का मीटर काम नहीं कर रहा है, इसलिए वह 500 रुपए से कम नहीं लेगा. यह किराया रजनी को ज्यादा लगा था. उस ने उस से आटोरिकशा रोकने को कहा, तो उस ने रजनी को एक सुनसान सी जगह पर छोड़ दिया था, जहां हितेश मिल गया था.
नीलेश रजनी को बगल के एक छोटे से होटल में ले गया, जहां पहले से ही उस ने एक कमरा बुक करा रखा था, ताकि अस्पताल से मौका मिलने पर यहां आ कर थोड़ी देर आराम कर सके.
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रजनी ने बाथरूम में जल्दी से स्नान किया और होटल के वेटर से नीलेश द्वारा मंगाए खाने के लिए बैठी, तो नीलेश ने कहा, ‘‘इधर कई दिनों से सुबह ही घर से अस्पताल के लिए चल पड़ता हूं, इसलिए मैं भी लंच यहीं लेता हूं.’’
लंच लेते समय रजनी ने एक बार फिर नीलेश का दीदी के साथ संबंध पूछने के बारे में सोचा, लेकिन जब नीलेश खुद कुछ न बोला, तो उस ने भी इस वक्त इस बारे में ज्यादा कुरेदना सही नहीं समझा. सोचा, अब दीदी के होश आने पर ही वह इस बारे में उन्हीं से पूछ लेगी.
लंच खत्म करने के बाद वे दोनों थोड़ी देर आराम करने के लिए बैठे ही थे कि नीलेश को उस के चपरासी के भाई ने फोन पर बताया कि उस की दीदी को अब होश आ गया है. यह सुनते ही रजनी का चेहरा खुशी से चमक उठा.
नीलेश खुश हो कर बोला, ‘‘तुम्हारे आने से संध्या को एक नई जिंदगी मिली?है, रजनी. तुम्हारी बहन जितनी तुम्हारे लिए खास हैं, उतनी ही मेरे लिए भी हैं. चलो, चल कर उन से मिलें. तुम्हें देख कर वे बहुत खुश होंगी.’’
‘‘लेकिन, मुझे अब तक यह समझ में नहीं आया कि तुम मेरी दीदी के लिए इतना कुछ क्यों कर रहे हो?’’
‘‘तुम सब्र रखो. कुछ दिनों के बाद तुम खुद ही सबकुछ जान जाओगी. अभी हमें जल्द से जल्द चल कर संध्या से मिलना चाहिए. ब्रेन हैमरेज के दिन से ही वह कोमा में है.’’
रजनी आगे कुछ न बोली. वैसे भी उस ने तय किया था कि दीदी से ही वह इस बारे में जानने की कोशिश करेगी.
संध्या रजनी को नीलेश के साथ देख कर कमजोर और बीमार होने के बाद भी घबरा सी गई.
अचानक कई सवाल उस के जेहन में कौंधने लगे. इतना तो उसे याद था कि अचानक उस के सिर में बहुत दर्द उठा था और उलटी होने लगी थी. घबरा कर संध्या ने बाहर का दरवाजा खोला था, ताकि किसी पड़ोसी की मदद ले सके. इस के फौरन बाद उस ने नीलेश को फोन किया था. इस के बाद क्या हुआ, उसे पता नहीं था.
‘‘मैं यहां कब से हूं?’’ नीलेश को देख कर संध्या ने पूछा, फिर रजनी से मुखातिब हुई, ‘‘तुम यहां कब आई?’’
‘‘पिछले हफ्ते अचानक तुम्हें ब्रेन हैमरेज हुआ था. यह तो गनीमत थी कि बेहोश होने के पहले तुम ने मुझे फोन कर दिया था और उस समय फोन की रिंग सुन कर मेरी नींद टूट गई थी. जब मैं ने तुम्हारा फोन नंबर देखा तो घबरा गया. समझ गया कि कोई न कोई खास बात जरूर है, वरना इतनी रात को तुम मुझे फोन क्यों करोगी.
‘‘सुधा से बहाना कर के मैं गाड़ी ले कर तुम्हारे अपार्टमैंट्स में पहुंच गया था. वहां के गार्ड को सोते से जगा कर जब तुम्हारे फ्लैट के पास पहुंचा, तब तुम्हारी हालत देख कर मेरे तो होश ही उड़ गए थे. तुम दरवाजे पर बेहोश हो कर गिरी पड़ी थी. अगलबगल कोई नहीं था. शायद लोगों को आवाज लगाने के पहले ही तुम बेहोश हो गई थी.
‘‘घर से निकलने के पहले मैं ने कई बार तुम्हें फोन किया, लेकिन जब तुम ने फोन रिसीव नहीं किया, तब किसी अनहोनी के डर से मैं बहुत घबरा गया था.
‘‘खैर, मेरी और गार्ड की आवाज सुन कर तब तक अगलबगल वाले पड़ोसी भी अपनाअपना दरवाजा खोल कर बाहर आ गए थे. उन की मदद से मैं तुम्हें नीचे लाया और अस्पताल में भरती करा दिया. समय से इलाज हो जाने के चलते…’’
‘‘शुक्रिया नीलेश. सच में तुम न रहते, तो आज मैं तुम से बात करने के लिए जिंदा न बचती…’’ नीलेश की बात बीच में ही काट कर संध्या बोली, ‘‘लेकिन, यह रजनी यहां कब आई? इस के बारे में तो मैं ने तुम्हें कभी बताया नहीं था.’’
‘‘दीदी, मैं आज सुबह ही आई हूं. नीलेश ने ही फोन कर के आप के बारे में मुझे बताया था.’’
‘‘तुम्हारे मोबाइल फोन की कौंटैक्ट लिस्ट से मुझे रजनी का फोन नंबर मिला था. उस में उस के नाम की जगह तुम ने ‘छोटी’ लिखा था. मुझे लगा कि यही तुम्हारी छोटी बहन होगी.’’
‘‘सही अंदाजा लगाया था तुम ने नीलेश. बचपन से ही मैं इसे छोटी कह कर ही पुकारती आई हूं. अब क्या बताऊं तुम्हें. अब हमारे मांबाप नहीं रहे, छोटी की जिम्मेदारी भी मुझ पर ही है.’’
‘‘लेकिन, तुम ने तो मुझे इस के बारे में ज्यादा बताया नहीं?’’ नीलेश ने कहा.
‘‘तुम ने मुझे इस के लिए कभी मौका ही कहां दिया. जब कभी अपनी बात कहना चाहती, तो टोक देते थे. कहते कि रहने दो, मुझे तुम्हारा अतीत नहीं जानना, वर्तमान में ही सिर्फ जीना चाहता हूं मैं.’’
‘‘अच्छा दीदी, अब आप आराम करो. घर लौट कर बातें करेंगे,’’ रजनी बोली, तो संध्या चुप हो गई.
‘‘हां, ठीक कहती है रजनी. अभी तुम पूरी तरह ठीक नहीं हो. डाक्टर बोल रहा था कि अभी तुम्हें एक हफ्ता और अस्पताल में ही रहना होगा. पूरी तरह आराम की जरूरत है. इतनी भी बातें इसलिए कर पाई, क्योंकि अस्पताल वालों ने तुम्हें आईसीयू से वार्ड में शिफ्ट कर दिया है.’’
ध्या चुप तो हो गई लेकिन कई सवाल उस के दिमाग में अब घूमने लगे थे. क्या रजनी उस के और नीलेश के संबंधों को जानती है? रजनी नीलेश के बारे में क्या सोच रही होगी? क्या नीलेश ने रजनी से उस के अपने संबंधों के बारे में बता दिया? अगर बता दिया तो उस के मन में उस के प्रति किस तरह के विचार आ रहे होंगे? क्या रजनी जानती है कि उस का नीलेश से नाजायज रिश्ता है? नीलेश पहले से ही शादीशुदा ही नहीं बल्कि एक बेटी का पिता भी है.
नीलेश ने अपनी पत्नी से उस से अपने संबंधों को छिपाया है. अस्पताल का इतना भारी खर्च नीलेश क्यों उठा रहा है? अगर उस ने समय पर उसे अस्पताल न पहुंचाया होता तो क्या वह बचती? फिर कौन रजनी की पढ़ाईलिखाई का क्या होता? क्या वह अपनी पढ़ाई बिना किसी दबाव के पूरा कर पाती?
कुछ देर बाद नीलेश अपने घर लौट गया, क्योंकि वह सुबह से ही अस्पताल में था. रजनी के आ जाने के बाद से वह थोड़ा रिलैक्स हो गया था. फिर अब संध्या होश में भी आ गई थी और उस की हालत में काफी सुधार भी था.
नीलेश का संध्या पर इतना बड़ा एहसान लद चुका था कि उसे चुकाना उस के लिए इस जिंदगी में मुमकिन नहीं था. अगर वह अस्पताल का खर्चा चुका भी देती है तब भी क्या नीलेश का एहसान खत्म हो जाता? नहीं, कभी नहीं, क्योंकि पैसे से उस की जान नहीं बची थी नीलेश के उस के प्रति लगाव से बची थी. क्या वह इस बात को कभी भूल पाएगी?
रातभर जगी रहने के चलते संध्या को दवा और खाना दे कर रजनी उस के बगल में पड़ी एटैंडैंट के लिए रखे बैड पर सो गई, लेकिन संध्या को नींद कहां. वह यादों में खोने लगी थी.
नीलेश और संध्या कानपुर के एक कालेज में पढ़ते थे. उस समय नीलेश के पिताजी जिले में एक औफिस में सरकारी अफसर थे. उन की आमदनी अच्छी थी, इसलिए नीलेश कालेज में भी काफी ठाटबाट से रहता.
संध्या कालेज में सब से खूबसूरत लड़की थी. कालेज के कई लड़के उस के पीछे भागते थे, पर वह किसी को भी घास नहीं डालती. लेकिन नीलेश कहां हार मानने वाला था. वह लगातार कई महीनों तक उस का पीछा करता रहा और एक दिन संध्या उस की दीवानगी के आगे झुक ही गई, लेकिन इसी बीच नीलेश के पिताजी का ट्रांसफर इलाहाबाद हो गया. इस के बावजूद नीलेश ने रजनी का पीछा नहीं छोड़ा. वह उस से फोन और सोशल मीडिया पर हमेशा संपर्क में रहा.
इसी बीच नीलेश ने बीकौम किया, फिर बिजनैस मैनेजमैंट का कोर्स कर के वह दिल्ली की एक कंपनी में मैनेजर बन गया.
इधर संध्या ने कानपुर से ही एमए किया और डाक्टरेट करने के लिए दिल्ली आ गई.
नीलेश से उस का पहले से तो परिचय था ही, यहां आते ही उस से मिलनाजुलना भी शुरू हो गया. उस समय संध्या एक गर्ल्स होस्टल में रहती थी. नीलेश को कंपनी की ओर से एक बंगला मिला था.
कभीकभी जब मन नहीं लगता तो संध्या नीलेश के बंगले पर आ जाती. समय के साथ उन के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं.
बंगले में जब वे दोनों अकेले होते तो नीलेश कभीकभी संध्या के काफी करीब आ जाता और उस की खूबसूरती की तपती आंच से अपने को नहीं बचा पाता. नतीजा यह होता कि वह उस के शरीर को छूने करने की कोशिश करने लगता. संध्या किसी अनजाने आकर्षण के चलते उसे मना नहीं कर पाती.
जब ज जबां दिल एकसाथ हों और वह भी अकेले, तो खुद को हवस की आग से कब तक संभाल पाते. नतीजा हुआ कि एक दिन रात में नीलेश की जिद पर संध्या उस के बंगले में रुक गई और 2 तपती देह आपस में मिलने से अपने को न रोक पाई जब उन के बीच एक बार मर्यादा का बांध टूटा तो फिर टूटता ही चला गया.
शुरू में तो संध्या इस से काफी नर्वस हुई. होती भी क्यों नहीं. जिस समाज और संस्कार के पेड़ तले उस का पालनपोषण हुआ था, वह शादी के पहले शारीरिक संबंध बनाने की इजाजत नहीं देता था.
इस तरह की लड़कियों को समाज बदचलन कहता था, लेकिन संध्या जानती थी कि जो समाज ऐसे सैक्स संबंधों को नकारता था वही परदे के पीछे इस तरह की घिनौनी हरकतों के लिए जिम्मेदार भी था.
समाज के इस दोहरे मापदंड से उसे गुस्सा आता था, इसलिए वह अंदर से इस अपराधबोध से परेशान थी.
एक दिन जब संध्या नीलेश के बंगले पर आई हुई थी और नीलेश उस से प्यार पाने की जिद कर रहा था, तब उस ने उस से कहा, ‘हमलोग जो यह कर रहे हैं, क्या वह तुम्हें अच्छा लगता है नीलेश? बोलो क्या यह एक सही कदम है?’
नीलेश हवस का मारा हो रहा था, इसलिए इस समय वह संध्या से इस मुद्दे पर बहस के मूड में न था. वह बोला, ‘अब इन दकियानूसी बातों से बाहर आओ संध्या. तुम किस जमाने में जी रही हो? अब ऐसी बातें घिसीपिटी हो गई हैं. जिस तरह शरीर को भूख लगती है और उस को मिटाने के लिए खाने की जरूरत होती है कुछ इसी तरह की जरूरत है सैक्स, इसलिए इस पर सोचना करना बंद करो और जिंदगी का मजा लो.’
‘फिर इनसान ने और जानवर में क्या फर्क रह जाएगा नीलेश? संध्या बोली थी, ‘सभ्य समाज में सभी लोग यही करेंगे तो क्या अराजकता न फैल जाएगी?’
‘कुछ नहीं होगा, सदियों से होता आया है ऐसे. थोड़ी अपनी सोच को बड़ा बनाओ. अब सभ्य समाज में ये सब आम बातें हैं. हां, यह जरूर है कि लोग खुलेतौर पर इस से बचते हैं.
‘क्या पहले यह सब नहीं होता था? क्या राजाओं और सामंतों के यहां पत्नी के अलावा जरूरी औरतों को रखैल बना कर रखने का रिवाज नहीं था?’
संध्या चुप हो गई. वह जानती थी कि नीलेश पर अब हवस हावी है. उसे बस उस का शरीर चाहिए.
संध्या ने नीलेश से कहा, ‘नहीं नीलेश, अब बहुत हुआ. अब तुम वादा करो कि मुझ से शादी करोगे, तभी मैं तुम्हारे साथ रह सकती हूं.’
नीलेश बोला था, ‘तुम चिंता मत करो. मैं शादी कर लूंगा लेकिन अभी नहीं. इतनी जल्दी मैं शादी के बंधन में नहीं बंधना चाहता. अभी तो मैं एकदम फ्री जिंदगी का लुफ्त उठाना चाहता हूं.’
संध्या समझ गई थी कि नीलेश उस का शारीरिक शोषण कर रहा था और भावनात्मक ब्लैकमेलिंग. अब उस को नीलेश से नफरत होने लगी थीं. आखिर नीलेश औरत को समझता क्या है, केवल भोग्या. नीलेश ही नहीं, ऐसी सोच अनेक मर्दों की थी. सदियों से मर्द औरतों को भोग्या ही तो समझते आया है. वह उठी और उस के बंगले से बाहर निकल आई.
नीलेश ने उसे रोकने की काफी कोशिश की. लेकिन वह नहीं रुकी.
वहां से लौटने के बाद संध्या ने नीलेश को फोन करना बंद कर दिया और एक प्रोफैसर के अंडर रिसर्च करने लगी. रातदिन की लगन का नतीजा यह हुआ कि उस को डाक्टरेट की डिगरी मिल गई और उस के बाद एक कालेज में लेक्चरर की नौकरी भी.
इसी बीच संध्या की मां की मौत हो गई. मां के जाने के बाद अब वह अकेली पड़ गई थी. जमीन तो पिता ने ही खरीदी थी. उन की मौत के बाद उन के जीपीएफ के पैसे और अपने जिंदगीभर की कमाई से मां ने किसी तरह एक छोटा घर बनवा दिया था, वरना उन्हें सिर ढकने के लिए किसी किराए के मकान की शरण लेनी पड़ती.
मां की मौत के बाद संध्या ने एक अपार्टमेंट खरीद लिया और अकेलापन की जिंदगी बिताने लगी. रजनी कानपुर में ही रह कर एक कालेज से एमए करने लगी.
इधर नीलेश की शादी हो गई. फिर एक बेटी भी पैदा हो गई. वह संध्या को भूलने लगा था. अब उसे उस को याद करने की जरूरत भी क्या थी. जिस की उसे चाह थी उस का स्वाद वह ले चुका था.
अचानक एक दिन नीलेश की मुलाकात संध्या से हो गई. वह अपनी पत्नी और बच्चों को ले कर लाल किला घूमने आया था. उस दिन संध्या भी अपनी कुछ सहेलियों के साथ लाल किला घूमने आई थी.
नीलेश ने अपनी पत्नी से उस का परिचय यह कह कर कराया कि वह कानपुर में उस के कालेज में पढ़ती थी. दिल्ली में आज उस से पहली बार मुलाकात हो रही है. वह सारी बातें छिपा गया. संध्या क्या बोलती, वह चुप रही.
संध्या को अब नीलेश में कोई दिलचस्पी अब तक जो कुछ हुआ था. उसे एक बुरा सपना समझ कर भूल जाने में ही उस की भलाई थी. लेकिन जब नीलेश ने उस से उस का फोन नंबर मांगा तो वह इनकार भी न कर पाई. बातोंबातों में ही नीलेश ने यह भी जान लिया कि वह किस अपार्टमैंट में कहां रहती?है.
उस के बाद जो कुछ हुआ वह पहले से भी ज्यादा गलत था. उस अकेला समझ कर नीलेश उस के फ्लैट में आने लगा.
कहते हैं न कि एक बार बांध की मेंड़ टूट जाती है तो वह कमजोर पड़ जाती है. संध्या को नीलेश के साथ हमबिस्तर होने की आदत तो पहले से ही थी. जब नीलेश उस के संपर्क में फिर आया तब वह यह जानते हुए भी कि यह गलत है. उस के झांसे में आ गई, क्योंकि अब उसे भी सैक्स की आदत लग गई थी. अब नीलेश उस पर खुल कर खर्च करने लगा.
इस संबंध के बारे में संध्या ने रजनी से कुछ भी नहीं बताया था. अब बताती भी कैसे. यह बताने वाली बात तो थी नहीं.
उधर नीलेश की पत्नी भी नीलेश के इस नाजायज रिश्ते से अनजान थी. जब संध्या को ब्रेन हैमरेज हुआ तो रात में नीलेश ने बहाना बनाया था कि उस के एक औफिस के साथ की अचानक तबीयत खराब हो गई है और जब वह संध्या को भरती करा कर काफी देर बाद घर लौटा तब भी बात छिपा ली. बोला, उस के साथी को ब्रेन हैमरेज हो गया है, वह अकेला रहता?है, इसलिए उस की देखरेख के लिए उसे रोज अस्पताल जाना होगा.
सुधा बहुत ही सरल स्वभाव की लड़की थी. जिस से नीलेश ने पिता के बहुत जोर देने पर शादी की थी. सुधा उस के पिता के एक दोस्त की एकलौती बेटी थी. जिन की एक अच्छीखासी प्रोपर्टी थी. उसी पर नीलेश के पिता की निगाह थी. इसी प्रोपर्टी के लालच में उस के पिता ने सुधा से नीलेश की शादी पर इतना जोर दिया था.
इधर संध्या से नीलेश का संबंध टूट गया था. सुधा देखने में रखरखाव थी और नीलेश की कोई गर्लफ्रैंड भी नहीं थी. इसलिए उस ने इस शादी से इनकार नहीं किया था. सरल और सादे स्वभाव सुधा ने नीलेश की बातों पर यकीन कर लिया.
अब चाहे जितनी भी सरल स्वभाव की पत्नी क्यों न हो वह पति के नाजायज रिश्ते को स्वीकार तो करेगी नहीं. इस बात को नीलेश अच्छी तरह जानता था और वह घर में किसी तरह का तनाव नहीं लेना चाहता था, इसलिए उस ने सुधा से अपने इस रिश्ते को छिपा लिया था.
वह इस बात को रजनी से भी नहीं बताना चाहता था. इसलिए रजनी कहने के बाद भी वह उसे अपने घर ले कर नहीं गया.
संध्या इन्हीं घटनाओं के भंवर में न जाने कब तक फंसी रही. उसे नींद भी न आ रही थी. रजनी थकीमांदी होने के चलते गहरी नींद में थी, लेकिन उसे नीलेश से अपने संबंधों के बारे में कभी न कभी तो बताना ही होगा, इस की चिंता भी उसे खाए जा रही थी.
अगर नीलेश कुंआरा होता और उस से संध्या का प्रेम संबंध होता तो वह खुल कर रजनी से अपने मन की बात कह देती, क्योंकि इस में शर्मिंदगी वाली कोई बात नहीं थी लेकिन अब नीलेश उस का प्रेमी नहीं. रसिक भर था जो तभी तक उस के साथ था जब तक उस का मन उस से भर न जाता और वह यह भी जानती थी कि हवस के ऐसे संबंध बहुत दिनों तक नहीं टिकते, एक न एक दिन उन्हें टूटना ही है.
इन्हीं विचारों में खोई हुई संध्या काफी उदास हो गई. अभी तक उस के इलाज में जो भी खर्च हुआ था उस का भुगतान नीलेश ही कर रहा था और उस के इस एहसान तले वह अपने को दबी हुई महसूस कर रही थी.
संध्या नौकरी करते हुए तकरीबन एक वर्ष हो गया था. अकेले होने के चलते उस का खर्चा सीमित था. रजनी का खर्चा तो उस से भी कम था क्योंकि वह स्वभाव से ही कम खर्च करती थी और मकान किराए से भी कुछ न कुद आमदनी हो जाती थी.
फिर पारिवारिक हालात ऐसी कभी नहीं रहे कि उसे फुजूलखर्ची की आदत लगे. उस की मां चपरासी थी और पारिवारिक पैंशेन ऐसे भी मूल पैंशेन की आधी होती?है. सीमित आमदनी से ही उसे 2-2 बेटियों को पढ़ाना था, साथ ही घर बनाने में भी बहुत खर्च आ रहा था.
संध्या का ज्यादातर खर्च नीलेश ही संभाल लेता, इसलिए उस के अकाउंट में अच्छीखासी रकम जमा हो गई थी. उस ने तय किया कि वह अस्पताल का सारा खर्चा नीलेश को लौटा देगी और आगे से खुद इस को वहन करेगी.
संध्या ने सोचा कि रजनी को वह अपने क्वार्टर से चैक बुक लाने के लिए कहेगी, चाबी नीलेश के पास ही होगी, क्योंकि उसी ने आते वक्त उस का फ्लैट लौक किया होगा.
यही सब सोचते हुए शाम हो गई. नीलेश औफिस बंद कर सीधे अस्पताल पहुंचा. तब तक रजनी भी जाग गई थी.
‘‘अब कैसी हो, संध्या,’’ आते ही नीलेश ने पूछा.
‘‘ठीक हूं, सिर में थोड़ा दर्द?है,’’ संध्या ने कहा तो नीलेश बोला, ‘‘डाक्टर से नहीं कहा?’’
‘‘कहा था. दवा लिख कर दे गया है.’’
‘‘परचा मुझे दो, मैं दवा ला देता हूं,’’ नीलेश ने कहा तो रजनी ने दीदी के हाथ से परचा लेते हुए कहा, ‘‘तुम क्यों परेशान होते हो. मैं ला देती हूं न.’’
‘‘तुम दवा के पैसे लेते जा, फार्मेंसी वाले नकद भुगतान लेते?हैं,’’ नीलेश ने कहा तो संध्या कुछ न बोली, क्योंकि उस के पास पैसे नहीं थे और रजनी तो अभी दूसरों की मुहताज थी.
‘‘रहने दो, मैं पैमेंट कर दूंगी.’’
‘‘अभी तुम्हें पैसे की बहुत जरूरत है.’’ संभाल कर रखो, ‘‘कहते हुए नीलेश रजनी को 2,000 रुपए का एक नोट थमा दिया.
रजनी ने दवा ला कर संध्या को दी और कहा, ‘‘अगर दीदी ठीक रहती हैं तो मैं नीलेश के घर जा कर भाभी से मिलूंगी मैं यह जानना चाहती हूं कि वे अब तक दीदी से मिलने कभी अस्पताल क्यों नहीं आई.’’
यह सुनते ही वहां सन्नाटा सा पसर गया. न संध्या ने कुछ कहा नीलेश ने. अब वे कहते भी क्या उन्हें अचानक रजनी से इस तरह के प्रस्ताव की उम्मीद नहीं थी.
दोनों को चुप देख कर रजनी बोली, ‘‘दीदी, क्या मैं ने कुछ गलत कह दिया.’’
‘‘नहीं, लेकिन अभी तुम्हारा वहां जाना ठीक नहीं है. तुम मुझे देखने आई हो, इसलिए अभी अस्पताल में ही रहो. जब मैं यहां से डिस्चार्ज हो जाऊंगी तब तुम्हें खुद साथ ले कर चलूंगी.’’
‘‘लेकिन दीदी, मुझे वहां रहना थोड़े है, मैं तो मिल कर तुरंत नीलेश के साथ ही लौट जाऊंगी.’’
‘‘मैं बोल रही हूं न, अभी तुम्हारा वहां जाना ठीक नहीं?है,’’ संध्या ने कुछ नाराजगी भरे तेवर में कहा तो रजनी ने आगे कुछ नहीं कहा.
नीलेश ने इस समय कुछ भी बोलना उचित नहीं समझा और 1-2 घंटे रह कर तथा डाक्टर से मिल कर और फोन पर जरूरत पड़ने पर बात करने के लिए कह कर घर लौट गया.
उस रात रजनी संध्या के साथ ही रही. दूसरे दिन नीलेश आया तो उस ने पूछने पर बताया कि उस के फ्लैट की चाबी उसी के पास?है. संध्या नीलेश से बोली, ‘‘मेरी अलमारी की चाबी मेरे बैडरूम में बिस्तर के नीचे रखी है. तुम रजनी को साथ ले कर जाओ. उसे चाबी दे देना, वह अलमारी से मेरी चैकबुक और एटीएम निकाल कर ले आएगी. वह मेरे फ्लैट में एक बार पहले आ चुकी है. उसे पता है.
संध्या के कहने पर रजनी नीलेश के साथ चाबी लेने उस के फ्लैट में गई. वहां उस ने देखा कि फ्लैट के बैडरूम में कंडोम का एक डब्बा और शराब की 2 बोतलें फर्श पर गिरी थीं और बैडरूम के बिस्तर पर सलवटें पड़ी हुई थीं.
रजनी यह सब देख कर हैरान होती हुई बोली, ‘‘दीदी के बैडरूम में कंडोम और शराब की बोतलें… समझ में नहीं आता ये सब यहां कहां से आए.’’
नीलेश चुप रहा. अब बोलता भी क्या. यह सब उस की ही कारिस्तानी थी. वह संध्या की गैरहाजिरी में अपने औफिस के एक नई लेडी असिस्टैंट को इसी फ्लैट में बुलाता था.
अचानक रजनी को संध्या ने चाबी लाने के लिए भेजा. उस ने सोचा, रजनी संध्या की गैरहाजिरी में उस के बैडरूम में थोड़े ही जाएगी. वह उसे ड्राइंगरूम में बैठा कर चाबी लाने जाएगा. इसी बीच बैड को झाड़ कर वहां से वे चीजें हटा देगा, लेकिन रजनी ने उसे ऐसा करने का मौका ही नहीं दिया. आते ही सीधे संध्या के बैडयम में घुस गई.
अब नीलेश चारों ओर से घिर गया था. कई सवाल उस के चारों ओर मंडराने लगे थे.
खास कर यह सवाल उसे सब से ज्यादा परेशान कर रहा था कि उस का और संध्या के बीच क्या संबंध है. दूसरे सवाल भी थे जिस का उस के पास कोई जवाब नहीं था. मसलन वह रजनी को अपने घर ले जाने से न यों बच रहा है, जबकि रजनी अब तक इस बारे में उस से 2 बार कह चुकी है. उस से अब तक किसी ने पूछा तो नहीं था लेकिन यह सवाल भी उठ सकता था कि वह संध्या पर इस तरह क्यों पैसे खर्च कर रहा है, जबकि संध्या अब खुद एक कालेज में नौकरी कर रही है, लेकिन इस का उस के पास जवाब था. वह कह सकता था कि अचानक संध्या बीमार हुई थी, इसलिए उस ने ऐसा इनसानियत के तौर पर किया.
आज के सवाल का नीलेश के पास कोई जवाब नहीं था. फिर भी उसे अपनी चुप्पी तो तोड़नी ही थी, इसलिए वह झूठ बोला, ‘‘इस का जवाब तो तुम्हारी दीदी ही दे सकती है, मैं तो तुम्हारी दीदी के अस्पताल जाने के बाद पहली बार यहां आया हूं.’’
नीलेश ने सोचा कि अब ऐसी बातों के बारे में रजनी अपनी बहन से तो पूछेगी नहीं, इसलिए इस से बढि़या बहाना कोई दूसरा हो नहीं सकता था. अब रजनी क्या बोलती. उस ने सोचा कि दीदी अकेली रहती है, हो सकता?है किसी से उन का संपर्क हो, लेकिन दीदी को तो उस ने कभी शराब पीते नहीं देखा.
हो सकता है कि उन का कोई बौयफ्रैंड हो जो शराब का लती हो और यहां भी साथ में शराब की बोतलें ले कर आ गया हो. लेकिन ये बातें उसे संतुष्ट न कर पा रही थीं. दीदी कभी ऐसी न थी. अगर ऐसा होता तो भी ये चीजें वे कमरे में यों ही न छोड़ती. वे जरूर इन्हें साफ कर देतीं.
नीलेश जरूर झूठ बोलता?है, यह इसी की कारिस्तानी हैं, लेकिन बिना किसी ठोस प्रश्न के वह यह भी तो नहीं कह सकती थी कि नीलेश उस से कुछ छिपा रहा है.
नीलेश एक आशिकमिजाज आदमी था, इसलिए उस की नजर रजनी पर भी टिकी हुई थी लेकिन संध्या बुरा न मान जाए और रजनी कोई बखेड़ा न खड़ा कर दे, यह सोच कर वह कोई ऐसा काम नहीं करना चाहता था जिस से संध्या की नजरों में वह गिर जाएं.
संध्या नीलेश के लिए एक सौफ्ट टारगेट थी जिस का वह मनचाहा इस्तेमाल कर रहा था और जिस से वह बिछड़ना भी न चाहता था. रजनी ने भी कई बार महसूस किया कि नीलेश की कामुक निगाहें उस को भेद रही हैं. सच तो यह था कि वह नीलेश के साथ अकेले दीदी के फ्लैट में भी न आना चाहती थी लेकिन दीदी ने जब कह दिया तो वह उन की बात को टाल भी न सकी.
नीलेश ने बैडरूम में बिखरे समान को फेंकना चाहा तो रजनी ने मना कर दिया कहा, ‘‘मैं दीदी से पूछूंगी कि इतनी लापरवाह वे क्यों हैं, इसलिए इन चीजों को ऐसे ही छोड़ दो.’
रजनी के सख्त तेवर देख कर नीलेश ने कमरे को वैसे ही छोड़ दिया. अब वह कमरे को साफ करने की जिद करता तो शक उसी के प्रति गहराता. अब रजनी फ्लैट से जल्दी से जल्दी निकल जाना चाहती थी.
फिर उस के मन में जाने क्या आया कि बोली, ‘‘इधर से लौटते हुए भाभी से मिल कर अस्पताल लौटना चाहती हूं, इसलिए अपने घर से हो कर अस्पताल चलो.’’
यह सुन कर नीलेश घबराया, लेकिन बात को उस ने संभाल लिया और बोला, ‘‘मेरा घर यहां से काफी दूर है, जानती ही हो दिल्ली में कितना ट्रैफिक है, किसी दूसरे दिन चलेंगे.’’
संतेश अपनी मोटरसाइकिल से औफिस जा रहा था कि तभी एक लड़की, जिस का नाम रजनी था, ने उसे हाथ दे कर रोका.
हितेश ने अपने सिर से हैलमैट उतार कर पूछा, ‘‘क्या बात है?’’
‘‘मुझे अपोलो अस्पताल जाना है. मेरी बड़ी दीदी को ब्रेन हैमरेज हो गया है. वे आईसीयू में भरती हैं. मैं काफी देर से आटोरिकशा का इंतजार कर रही हूं. अब तक कोई नहीं मिला. मेरा वहां तुरंत पहुंचना जरूरी है. प्लीज, क्या तुम मुझे वहां तक छोड़ दोगे?’’
‘‘लेकिन, मेरा औफिस दूसरे रास्ते पर है. तुम्हें अपोलो अस्पताल छोड़ने में मुझे औफिस पहुंचने में देर हो जाएगी.’’
रजनी कुछ न बोली, सिर्फ गुजारिश भरी नजरों से उसे देखती रही. तब हितेश ने कहा, ‘‘अच्छा चलो, छोड़ देता हूं.’’
सच तो यह था कि रजनी इतनी खूबसूरत थी कि उस के निराश और उदास चेहरे पर भी एक गजब का खिंचाव था और उस ने जब हितेश को देखा तो वह कुछ पलों तक एकटक देखता ही रह गया. वह उसे मना नहीं कर पाया.
जब हितेश अपोलो अस्पताल के गेट पर पहुंचा, तो रजनी उस से बोली, ‘‘तुम मुझे यहीं पर छोड़ दो, अब मैं खुद ही चली जाऊंगी.’’
‘‘अब मैं अस्पताल तक तो आ ही गया हूं, तो तुम्हारी बीमार बहन से मिल भी लेता हूं,’’ हितेश बोला और मोटरसाइकिल को स्टैंड पर लगाने लगा.
‘‘रहने दो, तुम्हें औफिस जाने में देर हो जाएगी.’’
‘‘बौस के किसी रिश्तेदार की तबीयत खराब है. वे आजकल रोज लेट से औफिस आते हैं, इसलिए लेट होने से डांट नहीं पड़ने वाली,’’ कह कर हितेश मुसकराया और रजनी के साथ हो लिया.
दोनों पूछते हुए आईसीयू के दरवाजे के पास पहुंचे. बाहर बैंच पर अपने बौस नीलेश को बैठा देख हितेश घबरा गया.
हितेश को एक लड़की के साथ देख कर पहले तो नीलेश कुछ पल चुप रहा, फिर पूछा, ‘‘हितेश, औफिस छोड़ कर तुम यहां क्या कर रहे हो? साथ में यह लड़की कौन है?’’
हितेश को अचानक कोई बहाना न सूझा, तो उस ने सबकुछ सचसच बता दिया. अब वह कर भी क्या सकता था.
सच नहीं बताता तो नीलेश औफिस से उसे गैरहाजिर मान कर उस की एक दिन की तनख्वाह काट सकता था, पर यह भी माफी के काबिल नहीं था, क्योंकि औफिस छोड़ कर इस तरह किसी अनजान लड़की के साथ उस के यहां आने का कोई मतलब नहीं था.
रजनी को भले ही थोड़ी और देर होती, लेकिन उसे कोई न कोई साधन जरूर मिल जाता. यह दिल्ली का एक सुनसान सा रास्ता जरूर था, लेकिन ऐसा भी नहीं कि कोई सवारी ही न मिले.
हितेश यह भी सोच रहा था कि ऐसे हालात का जिम्मेदार वह खुद भी है. रजनी ने तो उसे नीचे से ही लौट जाने के लिए कहा था, पर उस की खूबसूरती और स्मार्टनैस से प्रभावित हो कर और उस का कुछ देर तक और साथ पाने और इसी बहाने उस से संबंध बनाने की मंशा से उस के साथ वह आईसीयू के दरवाजे तक आ गया था. उसे क्या पता था कि जिस बौस की गैरहाजिरी का फायदा उठा कर वह यहां आया था, वह यहीं मिल जाएगा.
हितेश को हैरत में देख रजनी बोली, ‘‘यहां मेरी बहन आईसीयू में भरती हैं. मुझे आने का कोई साधन नहीं मिल रहा था, तो मैं ने इन से लिफ्ट मांगी थी.’’
‘‘तुम्हारी बहन का क्या नाम है?’’ हितेश के बदले रजनी को बोलते देख नीलेश ने उस की ओर मुखातिब होते हुए पूछा.
‘‘संध्या,’’ रजनी ने कहा, तो नीलेश ने पूछा, ‘‘तो तुम्हीं रजनी हो?’’
‘‘जी.’’
‘‘अभी कहां से आ रही हो?’’
‘‘कानपुर से.’’
‘‘तुम्हारी बहन अभी कोमा में?हैं. वह कभीकभी तुम्हारी चर्चा करती थी. उस के मोबाइल में तुम्हारा नंबर देखा, तो मैं ने ही तुम्हें फोन किया था.’’
दीदी को कोमा में जान कर रजनी रोने लगी.
‘‘अब तुम औफिस जाओ. मेरे नहीं रहने से सभी लोग मनमाने हो गए हैं, पर तुम्हें आज माफ करता हूं, क्योंकि तुम ने किसी जरूरतमंद की मदद के लिए ऐसा किया है. आज मैं छुट्टी पर रहूंगा,’’ नीलेश ने हितेश से कहा.
हितेश कुछ न बोला और वहां से लौट आया.
‘‘अब रोने से तो तुम्हारी बहन ठीक हो नहीं जाएंगी. चल कर देख लो. डाक्टर का कहना है कि अब पहले से हालत अच्छी है. समय पर अस्पताल आ गई थीं, इसलिए ज्यादा हालत नहीं बिगड़ी. कुछ दिनों के बाद कोमा से बाहर आ जाएंगी. लेकिन दिक्कत यह है कि उन की देखभाल के लिए कोई है नहीं,’’ नीलेश ने निराश हो कर कहा.
‘‘मैं सब संभाल लूंगी. आप चिंता मत कीजिए.’’
‘‘लेकिन, संध्या तो कहती थी कि तुम कानपुर में किसी कालेज से एमए कर रही हो, फिर यहां कैसे?’’
‘‘हां, लेकिन अभी मेरी छुट्टियां हैं. 10 दिनों के बाद कालेज खुलेगा, तब तक दीदी की हालत में सुधार हो जाएगा.’’
इस के बाद रजनी नीलेश के साथ आईसीयू में गई. उस की दीदी अभी भी कोमा में थीं. दीदी को इस हालत में देख कर वह फिर रोने लगी.
‘‘अब तो चुप हो जाओ. तुम्हारे गालों पर बहते आंसू मुझे अच्छे नहीं लग रहे हैं,’’ नीलेश ने रूमाल से उस के आंसू पोंछे, तो उस ने भरी आवाज में पूछा, ‘‘तुम्हारे बारे में दीदी ने कभी नहीं बताया. आप से दीदी का क्या रिश्ता?है?’’
रजनी के इस सवाल का जवाब नीलेश टाल गया.
‘‘अभी चल कर होटल में फ्रैश हो कर कुछ खापी लो, फिर सारी बातें बताऊंगा,’’ नीलेश बोला और अस्पताल की सीढि़यां उतरने लगा.
दीदी की हालत देख कर अभी भी रजनी की आंखें नम थीं. उस ने कहा, ‘‘मुझे अभी भूख नहीं है.’’
‘‘लेकिन, न खाने से तो तुम कमजोर हो जाओगी. अब दीदी के साथ तुम्हें तो बीमार नहीं होना है न.’’
‘‘लेकिन, अस्पताल में कौन रहेगा?’’ रजनी ने पूछा, तो नीलेश ने एक नौजवान की ओर इशारा किया.
‘‘यह मेरे औफिस के चपरासी का भाई?है… अभी बेरोजगार है. चपरासी से कह कर मैं ने इसे यहां रख दिया?है, क्योंकि मुझे भी दिनभर औफिस में रहना पड़ता है.’’
‘‘होटल में क्यों… मैं तुम्हारे घर क्यों नहीं चल सकती?’’ रजनी ने पूछा, तो नीलेश बोला, ‘‘मेरा घर यहां से काफी दूर है, फिर मैं ने आज छुट्टी भी ली हुई?है. डाक्टर का कहना है कि आज कभी भी तुम्हारी दीदी को होश आ सकता?है.’’
लेकिन नीलेश के बारे में पूरा जाने बिना रजनी उस के साथ होटल में नहीं जाना चाहती थी. जमाने को देखते हुए सावधानी बरतना जरूरी था.
अनजान मर्दों का क्या भरोसा. पता नहीं अकेली लड़की को देख कर इन के मन में कब क्या विचार आ जाए, इसलिए उस ने पूछा, ‘‘आप के घर में कौनकौन रहता है?’’
नीलेश ने रजनी की दीदी से अपना रिश्ता नहीं बताया था. आखिर इस में ऐसी क्या बात थी, जिस को बताने के लिए उस को समय की जरूरत पड़ रही थी? दीदी ने भी तो कभी उस के संबंध में नहीं बताया था.
रजनी के पिता एक कालेज में लैक्चरर थे, जिन की मौत उस समय हो गई थी, जब वह और उस की दीदी बच्ची थीं. मां ने पैंशन और चपरासी की नौकरी से उन दोनों को पालापोसा और पढ़ायालिखाया.
रजनी की मां घरेलू औरत थीं. मुश्किल से मैट्रिक पास, इसलिए कालेज प्रशासन ने पति की मौत के बाद उन्हें कालेज में चपरासी की नौकरी दी थी. वे भी अब रिटायर हो गई थीं.
अभी 2 साल पहले रजनी की दीदी की दिल्ली के एक कालेज में लैक्चरर की नौकरी लगी थी. उधर उस की दीदी की नौकरी लगी, इधर उस की मां की मौत हुई, मानो वे अपनी बेटी के अपने पैरों पर खड़े होने का ही इंतजार कर रही थीं.
रजनी के पिता ने कानपुर में ही एक छोटा सा घर बनवाया था, जिस में अब रजनी रह कर वहीं के एक कालेज से एमए कर रही थी.
चूंकि रजनी अकेले रहती थी, इसलिए उस ने अपने मकान के एक हिस्से में पढ़ने वाली 2 लड़कियों को रख लिया था. इस से उसे कुछ आमदनी हो जाती थी. साथ ही, कहीं जाने पर घर अकेला नहीं छोड़ना पड़ता था, क्योंकि घर खाली छोड़ने पर चोरी होने का डर बना रहता था.
इस का एक फायदा यह भी था कि मन बहलाने के लिए उन लड़कियों का साथ भी मिल जाता था. इधर कई महीनों से उन लड़कियों के साथ रजनी का खाना भी बनता था. उस का खर्च मकान के किराए से पूरा नहीं होता था, दीदी ही बाकी खर्चा भेजती थीं.
‘‘मेरी पत्नी सुधा और एक बच्ची,’’ नीलेश ने कहा.
‘‘फिर मुझे अपने घर ले चलो, मैं भाभीजी से मिलना चाहती हूं,’’ रजनी बोली.
‘‘तुम बेवजह इतना परेशान हो रही हो. बोला न, मेरा घर यहां से बहुत दूर है. वहां जा कर लौटने में काफी वक्त बरबाद होगा. फिर तुम्हारी दीदी को पता नहीं कब होश आ जाए. यह तो मैं ही जानता हूं कि कैसे ब्रेन हैमरेज के बाद मैं ने तुम्हारी दीदी को संभाला और रात में 3 बजे अस्पताल पहुंचाया.’’
फिर रजनी को लगा कि शायद नीलेश ठीक ही कह रहा है. इस हालत में वह झूठ बोलता भी हो, तब भी उस के साथ कोई बदतमीजी तो नहीं ही करेगा, इसलिए उस ने तय किया कि नीलेश के साथ वह होटल में जा कर पहले फ्रैश होगी और खाने के बाद सीधे अस्पताल आ जाएगी.
अब इतना तो तय था कि दीदी नीलेश की पत्नी नहीं थीं, फिर दीदी से उस का क्या रिलेशन हो सकता है? इस वक्त इतनी खोजबीन करने का समय नहीं था और रजनी रातभर जाग कर बिना रिजर्वेशन कराए आई थी. ऊपर से जब वह स्टेशन से अपोलो अस्पताल के लिए चली थी, तब उस का आटोरिकशा वाले से झगड़ा भी हो गया था.
आटोरिकशा के चलने के बाद उस ने कहा था कि उस के आटोरिकशा का मीटर काम नहीं कर रहा है, इसलिए वह 500 रुपए से कम नहीं लेगा. यह किराया रजनी को ज्यादा लगा था. उस ने उस से आटोरिकशा रोकने को कहा, तो उस ने रजनी को एक सुनसान सी जगह पर छोड़ दिया था, जहां हितेश मिल गया था.
नीलेश रजनी को बगल के एक छोटे से होटल में ले गया, जहां पहले से ही उस ने एक कमरा बुक करा रखा था, ताकि अस्पताल से मौका मिलने पर यहां आ कर थोड़ी देर आराम कर सके.