आंखें इस शरीर का वह हिस्सा है, जिस के बिना इस रंगबिरंगे संसार में आना खाने में नमक न होने के बराबर है. आंखोंका न होना या तो जन्मजात होता है या फिर किसी बीमारी या हादसे के चलते ऐसा होता है.
आजकल आंखों की बीमारियां, खासतौर पर दृष्टि दोष, आंखों का कमजोर होना वगैरह जैसे कारण बच्चे हों या जवान या फिर बूढ़े, किसी में भी पाए जा सकते हैं. आंखों की बीमारी मोतियाबिंद एक आम समस्या बन चुकी है. इस का इलाज भी आसान है, पर थोड़ा खर्चीला है.
मोतियाबिंद आंखों की एक ऐसी बीमारी है, जिस में या तो आंखों से धुंधला दिखाई देने लगता है या फिर दिखना बंद भी हो जाता है. इस बीमारी से एक या दोनों आंखें एकसाथ भी प्रभावित हो सकती हैं. इस की वजह आंख के लैंस का धुंधला हो जाना है, जिस से चीजों का साफ प्रतिबिंब नहीं बन पाता और आंख कमजोर हो जाती है.
* आंखों के लैंस घुलनशील प्रोटीन के बने होते हैं. जब किसी वजह से यह प्रोटीन अघुलनशील अवस्था ले लेता है, तो मोतियाबिंद बन जाता है.
* सफेद मोतिया उम्र के साथ होने वाली एक बीमारी (आम बदलाव) है, जबकि काला मोतिया आमतौर पर 40 साल के बाद होने की संभावना रहती है. काले मोतिया में आंखों का लाल होना, पानी आना और दर्द आम बातें हैं. किंतु सफेद मोतिया में आंखों की रोशनी धीरेधीरे कम होती है और दर्द या लाली नहीं होती.
* सफेद मोतिया में आपरेशन के बाद आंखों की रोशनी दोबारा वापस आ जाती है, पर काले मोतिया में जो रोशनी चली जाती है, वह फिर वापस नहीं आती, इसलिए काले मोतिया को खतरनाक बताया जाता है.
* आमतौर पर सफेद मोतियाबिंद उम्र के साथ लैंस की पारदर्शिता खत्म होने पर होता है. इस में लैंस का पूरी तरह खराब होना जरूरी नहीं है. लैंस का कौन सा भाग खराब हुआ, उस के मुताबिक ही दृष्टि में बाधा आती है. आमतौर पर यह 60 साल की उम्र के आसपास ही होता है.
* बच्चों में सफेद मोतिया जन्मजात हो सकता है और जवानों में आंखों में चोट लगने या आंखों की कई बीमारियों में स्टेरौयड के ज्यादा सेवन से हो सकता है.
* मोतियाबिंद सूरज की रोशनी आंख पर सीधे पड़ना, दूसरे किसी कारण से आंख में रेडियो थैरेपी होना, आंख में सूजन पैदा करने वाली बीमारी होना, आंख में चोट लगना, गर्भावस्था में संक्रमण व कुछ बीमारियों जैसे मधुमेह से भी हो सकता है.
* सफेद मोतिया आमतौर पर उम्र के साथ बढ़ता है. इस संबंध में कई मिथ हैं. जैसे बाजार में कई देशीविदेशी दवाएं हैं, जिन्हें डालने पर सफेद मोतिया रुक जाता है.
* जब मरीज को काफी कम दिखने लगे, रोजमर्रा का काम करने में उसे असुविधा होने लगे, तो मोतियाबिंद आपरेशन करा लेना चाहिए.
* सफेद मोतिया का आपरेशन में आंख को सुन्न कर के एक छोटा सा चीरा डाल कर, उस में प्राकृतिक लैंस को जिस की पारदर्शिता खत्म हो चुकी होती है, निकाल देते हैं और उस की जगह एक कृत्रिम लैंस आंख में लगा देते हैं.
* अगर इस में आपरेशन के बाद आंखों के अंदर लैंस न डालें, तो मरीज को 10 नंबर के आसपास का मोटा चश्मा पहनना पड़ता है और बगैर चश्मे के उसे खास कुछ दिखाई नहीं देता. लैंस लगाने के बाद मरीज रोजमर्रा के काम बगैर चश्मे के ही कर सकता है.
* आपरेशन के बाद आमतौर पर केवल पढ़नेलिखने या दूर के बारीक काम के लिए चश्मे की जरूरत पड़ती है.
* बिना टांकों का आपरेशन, एक सूक्ष्म चीरा डाल कर (स्माल इंसीशन केटारेक्ट सर्जरी एसकेएस) या फिर फैकोमल्सीफिकेशन मशीन से हो सकता है.
* फैकोमल्सीफिकेशन मशीन में एक छोटे छेद (माइक्रोस्कोपिक कट) द्वारा मोतिया को अल्ट्रासाउंड से आंख के अंदर गला देते हैं और उसी यंत्र (प्रोब) से गले हुए लैंस को सोख लेते हैं. उसी छेद से हम दूसरा पारदर्शी लैंस आंख के अंदर डाल देते हैं, जिस से मरीज को तुरंत दिखने लगता है.
* सफेद मोतिया का आपरेशन लेजर सर्जरी से नहीं हो सकता. हां, कई बार आपरेशन के बाद वह ?िल्ली, जिस पर लैंस टिका होता है, अगर मोटी हो जाए, तो लेजर से उस ?िल्ली को आसानी से काटा जा सकता है.