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बाद में यह बात भी सामने आई कि कुछ दिनों पहले तक ऐंथनी मारक एडवर्ड का क्वींसलैंड के मैंटल अस्पताल में इलाज चल रहा था. अब फिर से उसे इसी तरह के इलाज की आवश्यकता है.
यह मामला अभी बीच में ही था कि लंदन में रहने वाली 30 वर्षीया भारतीय महिला प्रदीप कुमार अपने घर से गायब हो गई. 2 हफ्ते बाद उस का शव हीथ्रो एयरपोर्ट के पास से बरामद हुआ. ऐसे ही बहादुर सिंह पिछले 40 वर्षों से अमेरिका में रह रहे थे. 8 नंवबर, 2016 को जब वह अपने नौकर के साथ अपने स्टोर पर मौजूद थे तो काले रंग के कुछ लोगों ने आ कर उन की दुकान लूट कर उन्हें व उन के नौकर को गोली मार दी. दोनों की मौके पर ही मौत हो गई.
15 नवंबर को भारतीय मूल के 17 वर्षीय गुरनूर सिंह नाहल को कैलिफोर्निया में उस वक्त गोली मार दी गई, जब वह कहीं से अपने घर लौट रहा था. 23 नवंबर को भारतीय प्रवासी भगवंत सिंह अपनी पत्नी जसविंदर कौर के साथ मनीला के शहर रगाई में अपनी कार से कहीं जा रहे थे कि रास्ते में बाइक सवार अंगरेज लड़कों ने गोलियां बरसा कर पतिपत्नी दोनों की हत्या कर दी. इसी तरह लंदन के साउथहाल में गुरिंदर सिंह, कनाडा के शहर रेगिना में इकबाल सिंह व कुछ अन्य भारतीयों की हत्याएं हुईं.
25 दिसंबर, 2016 को न्यूजीलैंड के शहर औकलैंड में 24 वर्षीय हरदीप सिंह देओल की एक युवती ने चाकुओं के वार से उस वक्त हत्या कर दी, जब वह एक पार्क में सैर करने गया था.
पुलिस के अनुसार युवती को गिरफ्तार कर लिया गया. वह नशे की इस कदर आदी थी कि पिनक में आ कर कुछ भी कर बैठती थी. 30 दिसंबर, 2016 को अफगानिस्तान के अशांत शहर कुंदूज में सिख समुदाय के एक प्रमुख को मार डाला गया. पिछले 3 महीनों में यह एक ही तरह की दूसरी घटना थी.
सन 2017 की शुरुआत होते ही 2 जनवरी को मनीला के शहर सनजागो सिटी में गुरमीत सिंह, 6 जनवरी को अमेरिका के शिकागो के नजदीक पड़ने वाले शहर मिलवाकी में पैट्रोल स्टेशन पर नौकरी करने वाले हरजिंदर सिंह खटड़ा, 7 जनवरी को साइप्रस में सरबजीत सिंह, 12 जनवरी को रियाद में अमृतपाल सिंह, 21 जनवरी को अमेरिका में इंजीनियर श्रीनिवास और 25 जनवरी को कैलिफोर्निया के वुडलैंड क्षेत्र में एक अन्य भारतीय की हत्याएं कर दी गईं.
इन में कुछ मामलों में सीधेसीधे हेट क्राइम का मुद्दा सामने आया है. कई केसों में प्रवासी भारतीयों पर हमला करते वक्त हमलावरों द्वारा सीधेसीधे कहा गया था- ‘गैट आउट औफ माई कंट्री’ यानी दफा हो जाओ मेरे देश से.
इन अपराधों की चर्चा विश्वस्तर पर हो रही थी, लेकिन काररवाई के नाम पर किसी भी मामले में कुछ खास नहीं हो पाया.
इस बीच डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए थे. 22 फरवरी, 2017 को उन्होंने अपने बयान में कहा कि अमेरिका में इस वक्त 1.10 करोड़ अप्रवासी अवैध रूप से रह रहे हैं, जिन में 3 लाख भारतवंशी हैं. इन के खिलाफ काररवाई करने में कड़ा रुख अपना कर इन्हें वापस उन के देश भेज दिया जाएगा. उन्होंने अपनी नई आव्रजन नीति जारी करने की भी घोषणा की. इस का नतीजा यह हुआ कि 24 फरवरी को यूएस में घुसते ही न केवल 5 भारतीयों को, बल्कि उन की मदद करने वाले 1 कनाडाई नागरिक को भी गिरफ्तार कर लिया गया.
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इसी दिन एक दर्दनाक खबर यह भी सामने आई कि 26 वर्षीय संदीप सिंह बब्बू को अमेरिका के स्ट्रीमवुड इलाके में उस समय एक वाहन ने कुचल कर मौत के घाट उतार दिया, जब वह अपनी गाड़ी पार्क कर के सड़क क्रौस कर रहा था. मूलरूप से लुधियाना के नगर समराला का रहने वाला यह युवक अपने 3 भाइयों व 3 बहनों में सब से छोटा था. अच्छाखासा कर्ज ले कर उसे बड़ी कठिनाई से विदेश भेजा गया था. वहां उसे एक कंपनी का ट्रक चलाने की नौकरी मिली थी.
ऊपर जिस इंजीनियर श्रीनिवास की हत्या का जिक्र है, उस का मामला विश्वस्तर पर उछला था. श्रीनिवास की पत्नी सुनयना दुमाला ने ह्यूस्टन में मीडिया के माध्यम से जो कहा, वह काबिलेगौर है.
‘हम ने कनसास को अपना घर माना, ओलेथा में हमें अपने सपनों का शहर मिला, हम दोनों का पहला घर. श्रीनिवास ने इसी जनवरी में खुद अपने हाथों से इस का पूरा लिविंग एरिया पेंट किया था. वह काफी जुनूनी थे. एविएशन उन का जुनून था. वह इस इंडस्ट्री में सफल व्यक्ति बनना चाहते थे.
‘श्रीनिवास अमेरिका के लिए बहुत कुछ करना चाहते थे. निस्संदेह वह ऐसी मौत के लायक नहीं थे. जिंदा रहते तो 9 मार्च, 2017 को अपना 33वां जन्मदिन मनाते. समझ नहीं आ रहा, मैं क्या करूं. अमेरिका में होने वाली फायरिंग की खबरें हम अकसर पढ़ते थे.
‘हमेशा चिंता होती थी कि यहां पर हम कितने सुरक्षित हैं. क्या हमारा अमेरिका में रहना सही है? लेकिन वह हमेशा दिलासा देते थे कि अच्छे लोगों के साथ अच्छा ही होता है. हमेशा अच्छे रहो, अच्छा सोचो तो आप के साथ भी सब अच्छा होगा.
‘उस रात काम की थकान उतारने के लिए वह बार में अपने दोस्त के साथ बीयर पी रहे थे. इसी बीच एक हमलावर आ कर उन्हें भलाबुरा कहने लगा. उस ने खुल कर नस्लीय नफरत दिखाई. श्रीनिवास ने उस के इस तरह के व्यवहार पर ध्यान नहीं दिया. बार के लोगों ने उसे हल्ला करने से रोका और पकड़ कर बाहर निकाल दिया. मेरे पति को भी उसी वक्त वहां से चले आना चाहिए था. लेकिन उन्होंने सोचा होगा कि मैं क्यों जाऊं? मैं ने तो कुछ गलत नहीं किया है.
‘मैं उन्हें जानती हूं. कह सकती हूं कि वह सिर्फ इसलिए बैठे रहे कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया था. लेकिन थोड़ी ही देर में वह व्यक्ति लौट कर आया और उस ने मेरे पति श्रीनिवास की जान ले ली. मेरा ट्रंप सरकार से सवाल है कि नफरत की बुनियाद पर हो रही इस तरह की हत्याओं को आखिर कब रोका जाएगा और कैसे?’
श्रीनिवास का मामला अभी विश्वस्तर पर पूरी तरह से गर्म था कि 4 मार्च को साउथ कैरोलिना के लैंसेस्टर शहर में हरनिश पटेल नाम के भारतीय को गोली से उड़ा दिया गया. हमलों के छिटपुट अपराधों के चलते 24 मार्च को अमेरिका में न्यूजर्सी के बर्लिंग्टन स्थित अपने आवास पर 38 वर्षीया शशिकला अपने 7 साल के बेटे अनीश के साथ मृत पाई गईं. उन की हत्या गला रेत कर की गई थी. अमेरिकी पुलिस इस मामले की जांच घृणा अपराध के नजरिए से कर रही थी, साथ ही पुलिस ने शशिकला के पति हनुमंत राव को भी संदेह के दायरे में रखा हुआ था. मगर सुलझने के बजाय यह रहस्य अभी गहराता जा रहा था.
25 मार्च, 2017 को घटी एक घटना में भले ही किसी की जान न गई हो, लेकिन नस्लभेदी अपराध पूरी तरह उभर कर सामने आ गया था.
लेबनान में रहने वाली सिख लड़की राजप्रीत हीर उस दिन सबवे टे्रन से अपने एक दोस्त की बर्थडे पार्टी में मैनहट्टन जा रही थी. उसे देखते ही एक अमेरिकी चिल्लाने लगा, ‘क्या तुम जानती हो कि मरीन लुक क्या होता है? क्या तुम जानती हो कि वो लोग कैसे दिखते हैं? उन्होंने इस देश के लोगों के लिए क्या किया है? यह सब तुम्हारे जैसे लोगों के चलते होता है. लेबनान लौट जाओ, तुम इस देश की नहीं हो.’ इस के बाद उस व्यक्ति ने खूब अपशब्द बोले.
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राजप्रीत हीर ने बाद में इस घटना का वीडियो सोशल साइट पर डालते हुए इसे नाम दिया- ‘दिस वीक इन हेट.’ उल्लेखनीय है कि इस वीडियो में ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिका में बढ़ते नस्लभेदी अपराधों के बारे में बताया गया है.
26 मार्च को एक भारतीय जौय पर नौर्थ होबार्ट स्थित मैकडोनाल्ड रेस्त्रां में 5 लोगों के ग्रुप ने नस्लीय टिप्पणियां करते हुए उन से मारपीट की. इन में एक लड़की भी थी, जिस ने उन्हें ब्लैक इंडियंस कहते हुए बुरी तरह जलील किया.
7 अप्रैल को 26 वर्षीय भारतीय विक्रम जरथाल की अमेरिका के शहर वाशिंगटन में उस वक्त गोली मार कर हत्या कर दी गई, जब वह एक पैट्रोल स्टेशन के स्टोर में अपनी ड््यूटी दे रहा था.
25 वर्षीय प्रदीप सिंह आस्ट्रेलिया में रहते हुए न केवल हौस्पिटैलिटी की पढ़ाई कर रहा था, बल्कि गुजारे के लिए पार्टटाइम टैक्सी भी चलाता था. 22 मई की रात में उस ने मैकडोनाल्ड्स ड्राइव थू्रले जाने के लिए एक लड़के व लड़की को पिक किया. महिला सवारी को उल्टी आने लगी तो प्रदीप ने उन लोगों से उतर जाने को कहा. इस पर उन्होंने भड़कते हुए न केवल प्रदीप की जम कर पिटाई की, बल्कि उसे यह कह कर धमकाया भी कि तुम भारतीयों के साथ इधर ऐसा ही किया जाना चाहिए.
इस के बाद भी विदेशों में रह रहे भारतीयों के जलील होने अथवा मारे जाने के समाचार लगातार आ रहे हैं, जिन में ताजा मामला 26 जुलाई, 2017 को मोहाली निवासी सिमरन सिंह भंगू के अमेरिका में मारे जाने का है.
एनआरआई सभा, पंजाब के एक वरिष्ठ सदस्य के बताए अनुसार, यह निहायत ही गंभीर मसला बनता जा रहा है. इस के मद्देनजर वे लोग विदेशों में बसे भारतीयों की सुरक्षा के लिए इस तरह का तालमेल बैठाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं कि भारतीयों को किसी भी देश में विदेशियों के मुकाबले पिछड़ा हुआ अथवा कमजोर न समझा जाए.
इस वक्त 50 लाख से अधिक भारतीय अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, जर्मनी, बैल्जियम, स्कौटलैंड, फिलीपींस व यूरोप के अन्य कई देशों में बसे हुए हैं. इन लोगों की सुरक्षा का पूरा जिम्मा उस देश की सरकार व सुरक्षा एजेंसियों पर है, जिन्होंने उन्हें नागरिकता दी है.
3 दर्जन से अधिक देशों की यात्रा कर चुके चंडीगढ़ के समाजसेवी आलमजीत सिंह मान के बताए अनुसार, सवाल केवल पनाह देने या सुरक्षा प्रदान करने का नहीं है, भारतीयों का भी यह फर्ज बनता है कि वे जब दूसरों पर आश्रित हो कर रह रहे हैं तो उन्हें अपनी सीमाएं निर्धारित कर के चलना चाहिए.
विदेशों में भारतीयों के मारे जाने के ज्यादातर मामले लड़ाईझगड़े अथवा लूटपाट के वक्त विरोध करने के रहे हैं. हम लोग अपनी मानसिकता नहीं बदल पाते, स्वयं पर काबू नहीं रख पाते. वहां की सरकार कहती है कि अगर कोई लूटने आ जाए तो हाथ खड़े कर दो. नुकसान की भरपाई सरकार की ओर से होगी. हम लोगों के लिए इस तरह की बातें पचा पाना कठिन है.’
पंजाब के डायरेक्टर जनरल औफ पुलिस (डीजीपी) पद से रिटायर्ड चंद्रशेखर घई का इस विषय पर कहना है, ‘पश्चिमी देशों की सोच और वहां की संस्कृति हम लोगों से पूरी तरह भिन्न है. जहां भारतीय उन के बाहरी तौरतरीकों को बेझिझक अपना लेते हैं, वहीं हमारे लोग उन के भीतर की सोच और जीवन के प्रति उन के नजरिए को आत्मसात करना तो दूर, उस सब का विश्लेषण करते हुए गहराई में जाने तक का प्रयास नहीं करते.
‘यहां से जो लोग विदेश जाते हैं, उन में से ज्यादातर पहले से खुशहाल नहीं होते, बल्कि अपने को खुशहाल बनाने के लिए वहां जाते हैं. फिर भारत के अनुपात में उन्हें जब अपनी मेहनत का प्रतिफल कहीं ज्यादा मिलने लगता है तो घर में पैसे की नदियां बहती दिखाई देने लगती हैं. लिहाजा अपनी सोच न बदल कर खुद को उन लोगों के सिर पर बैठने की कोशिश करते हैं. तब आधार बनता है झगड़े का.
‘आप तमाम रिकौर्ड निकाल कर देख लें, भारतीयों के विदेशों में होने वाले कत्ल के मामलों में 95 प्रतिशत मामले इसी तरह के झगड़ों के हैं, 4 प्रतिशत लूटपाट के वक्त अकेले विरोध कर बैठने के और केवल एक प्रतिशत मामले ऐसे हैं, जिन में हत्या का कारण व्यक्तिगत रहा. अब रेशियल अटैक की भी शुरुआत हो गई है, इस मुद्दे पर सभी देशों के रहनुमाओं को बात कर के इस स्थिति पर काबू पाना चाहिए.’
एक वरिष्ठ राजनेता ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर कहा, ‘दरअसल, विदेशियों के सामने उन के देश में हम लोग आज भी गुलाम हैं. अव्वल तो हमें अपना देश छोड़ कर विदेश जाना ही नहीं चाहिए. अगर गए हो तो भई गुलाम बन कर ही रहना होगा. यह सोचने वाली बात है कि दूसरे देश में गुलामी की जिंदगी बेहतर है या अपने देश में अपनों के बीच आजादी की जिंदगी.’