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(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

लेखक- निखिल अग्रवाल

बिलाड़ा से करीब 10 किलोमीटर दूर अटबड़ा के पास सड़क पर सुनसान जगह देख कर कार में पीछे बैठे प्रभु और अर्जुन ने गमछे से वकील साहब का गला दबा दिया. आगे ड्राइविंग सीट पर बैठे उमेश ने उन के दोनों हाथ पकड़ लिए. गमछे से दबा होने के कारण वकील साहब के मुंह से आवाज भी नहीं निकल सकी. कुछ देर छटपटाने के बाद उन के प्राण निकल गए. यह दोपहर करीब साढ़े 3-4 बजे के बीच की बात थी.

जब तीनों को विश्वास हो गया कि वकील साहब जीवित नहीं हैं, तब उन्होंने उन के गले में पहना हार और साफे पर लगी कलंगी सहित सोने का पट्टा उतार कर अपने पास रख लिए.

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अभी दिन का समय था, इसलिए लाश को ठिकाने लगाना भी मुश्किल था. इसलिए तीनों दोस्त वकील साहब की कार में उन की लाश को ले कर सड़क के किनारे पेड़ों की ओट में छिप कर खड़े रहे. शाम को जब अंधेरा होने लगा, तब कार में पड़ी वकील साहब की लाश की निगरानी के लिए अर्जुन को छोड़ कर उमेश और प्रभु किसी वाहन से बिलाड़ा आ गए. वजह यह थी कि नैनो कार में पैट्रोल कम था.

बिलाड़ा से उमेश ने अपनी इंडिका कार ली. साथ ही एक जरीकेन में 5 लीटर पैट्रोल भी रख लिया. लौट कर उमेश और प्रभु वापस वहां पहुंच गए, जहां अर्जुन को छोड़ा था. तब तक शाम के करीब साढ़े 7 बज गए थे. इन लोगों ने जरीकेन से वकील साहब की कार में पैट्रोल भरा.

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