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आखिर जब लालमणि से नहीं रहा गया तो एक रोज उस ने प्यार का इजहार कर ही दिया, ‘‘वंदना, मैं तुम से बेहद प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना अब मैं खुद को अधूरा समझता हूं. तुम मेरे दिल में रचबस गई हो. तुम्हारे अलावा मुझे कुछ सूझता ही नहीं.’’

वंदना कुछ क्षण मौन रही फिर बोली, ‘‘लल्लू, प्यार तो मैं भी तुम से करती हूं, पर हम दोनों के बीच ऊंचनीच, बिरादरी का मतभेद है. पता नहीं मेरे मांबाप इस रिश्ते को स्वीकार करेंगे भी या नहीं. मुझे इस बात का डर सता रहा है.’’

‘‘तुम डरो नहीं वंदना, हम चाचाचाची को मना लेंगे. मुझे उम्मीद है वह मेरी बात मान जाएंगे. क्योंकि चाचा राममिलन जानते हैं कि अब मैं कमाने लगा हूं. मुझ में नशाखोरी जैसा कोई ऐब भी नहीं है. सब से बड़ी बात हम दोनों हमउम्र हैं और दोनों एकदूसरे को प्यार करते हैं.’’ लालमणि बोला.

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इस के बाद वंदना और लालमणि का प्यार परवान चढ़ने लगा. उन के बीच की दूरियां कम होने लगीं. फिर उन का शारीरिक मिलन भी होने लगा. लालमणि ऐसे समय पर घर आता जब राममिलन घर के बाहर होता.

वंदना मां की आंखों में धूल झोंक कर प्रेमी से मिलन कर लेती. उन्हें घर में मौका न मिलता तो खेतखलिहान, बागबगीचे में भूख मिटा लेते. इस मिलन का परिणाम यह हुआ कि गांव भर में दोनों के अवैध संबंधों की चर्चा होने लगी.

वंदना के बहकते कदमों की खबर जल्द ही उस के पिता राममिलन और मां राजकुमारी के कानों तक जा पहुंची. दोनों को जमीन घूमती हुई नजर आई. इज्जत ही गरीब की दौलत होती है और उसी दौलत को उन की बेटी नीलाम करने पर उतारू थी. यह बात उन्हें भला कैसे गवारा होती.

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