विवाद की वजह पता लग जाने के बाद एसपी (सिटी) को भी सतीश पर ही शक हुआ, इसलिए उन्होंने सतीश, उस की पत्नी और बेटे को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. पुलिस टीम ने उन तीनों से ध्रुव के बारे में कई तरह से पूछताछ की. लेकिन वे तीनों खुद को बेकुसूर बताते रहे.
उधर पुलिस ने गौरव से कह दिया था कि जब भी अपहर्त्ताओं का फोन आए तो वह उन से प्यार से बात करें. इस के बाद गौरव रात में भी अपहर्त्ताओं के फोन काल का इंतजार करता रहा. रात डेढ़ बजे अपहर्त्ता ने गौरव के फोन पर काल कर के पूछा कि पैसों का इंतजाम हुआ या नहीं. गौरव ने कह दिया कि वह इंतजाम कर रहा है. इस के बाद फोन कट गया. गौरव ने यह जानकारी पुलिस को दे दी.
शिखा बारबार इस बात पर ही जोर देती रही कि उस के बेटे के अपहरण के पीछे सतीश मामा का हाथ है. पुलिस रात भर सतीश व उस के बेटे से पूछताछ करती रही, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.
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पुलिस ने गौरव और उस की पत्नी शिखा के फोन को सर्विलांस पर लगा रखा था. एसएसपी सारी जानकारी से आईजी रमित शर्मा को बराबर अवगत करा रहे थे.
8 अगस्त को सुबह गौरव के मोबाइल पर अपहर्त्ता ने फोन कर के कहा, ‘‘कल पैसों का इंतजाम कर लो. जैसे ही पैसे मिलेंगे, ध्रूवको बस में बिठा कर भेज देंगे.’’
इस बार भी काल इंटरनेट से की गई थी. जिस ऐप से काल की गई थी, वह एक चीनी ऐप था. इस संबंध में प्रदेश स्तर के पुलिस अधिकारी ने चीनी कंपनी से उस ईमेल आईडी की जानकारी मांगी जो उस ऐप को इंस्टाल करते समय उपभोक्ता को देनी होती है. यह जानकारी मिलने पर पुलिस अपहर्त्ता तक पहुंचने का रास्ता तैयार कर सकती थी.
अपहर्त्ताओं तक पहुंचने के अलावा पुलिस की प्राथमिता ध्रूवको सकुशल बरामद करने की भी थी. इस काम में 300 पुलिसकर्मी अलगअलग तरीके से जांच कार्य में जुटे थे.
8 अगस्त को ही सुबह करीब 9 बजे गौरव के मोबाइल पर ऐसी काल आई, जिस ने गौरव की हताशा में आशा का दीप जला दिया. फोन करने वाले ने कहा, ‘‘भाई, मैं बस का कंडक्टर दीपक सिंह बोल रहा हूं. बस चलने वाली है और आप का बेटा ध्रूवबस में बैठा रो रहा है. आप जल्दी आ जाइए.’’
यह सुन कर गौरव चौंकते हुए बोला, ‘‘भाईसाहब, मैं तो मुरादाबाद में हूं. आप मेरे बेटे से वीडियो काल कराइए.’’
ड्राइवर कंडक्टर की समझदारी
कंडक्टर ने गौरव को वीडियो काल कर के बस की सीट पर बैठे ध्रूवको दिखाया. ध्रूवने गौरव को बताया कि एक अंकल उसे बस में बिठा कर कहीं चले गए. ध्रूवको सकुशल देख कर गौरव की आंखों में आंसू छलक आए. गौरव ने कंडक्टर को बताया कि 7 अगस्त को ध्रूवका किसी ने अपहरण कर 30 लाख रुपए की फिरौती मांगी थी.
यह जानकारी मिलने के बाद कंडक्टर ने ध्रूवको अपनी सुरक्षा में ले लिया. वह बस गाजियाबाद के कौशांबी से मुरादाबाद जाने वाली थी. बस में उस समय 18 सवारियां बैठी थीं. मामला बहुत ही संवेदनशील था, इसलिए कंडक्टर दीपक सिंह और ड्राइवर विकल भाटी बस को करीब 100 मीटर दूर महाराजपुर पुलिस चौकी ले गए.
यह पुलिस चौकी गाजियाबाद के लिंक थाना के अंतर्गत आती है. उन्होंने ध्रूवको पुलिस को सौंपते हुए उस के अपहरण होने की जानकारी दे दी. अपहर्त्ता ध्रूवकी जेब में एक परची रख गए थे, जिस पर ध्रूवलिखा था. साथ ही 2 फोन नंबर भी लिखे थे. उन में से पहले फोन नंबर पर बस कंडक्टर ने बात की तो वह ध्रूवके पिता गौरव का निकला.
एसएसपी प्रभाकर चौधरी को अपहृत ध्रूवके सकुशल बरामद होने की जानकारी मिल गई थी. उन्होंने बच्चे को लाने के लिए एक पुलिस टीम गाजियाबाद रवाना कर दी. इस के अलावा कौशांबी डिपो की जिस बस संख्या यूपी78 एफएन4762 को चालक विकल भाटी और परिचालक दीपक सिंह मुरादाबाद ला रहे थे, वह बस उन्होंने मुरादाबाद के थाना पाकबड़ा के बाहर ही रुकवा ली.
एनएच-24 पर स्थित थाना पाकबड़ा में बस के कंडक्टर और ड्राइवर से विस्तार से पूछताछ की गई. दोनों कर्मचारियों ने पुलिस को सारी बात बता दी.
बस में बैठी सवारियों ने पुलिस को बताया कि मास्क बांधे एक युवक बच्चे को बस में बिठा कर गया था.
उधर मुरादाबाद से गाजियाबाद गई पुलिस टीम ध्रूवको सकुशल वहां से ले आई. अपने लाडले को देख कर शिखा खुशी से उछल पड़ी. एसएसपी ने 8 अगस्त को ही एक प्रैस कौन्फ्रैंस कर बताया कि उन्होंने बच्चे की बरामदगी के लिए चारों तरफ पुलिसकर्मी तैनात कर दिए थे. पुलिस का बढ़ता दबाव देख कर अपहर्त्ता ध्रूवको बस में बिठा कर फरार हो गए. यह पुलिस की बड़ी उपलब्धि थी.
ध्रूवउस समय सहमा हुआ था. जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि एक लंबे से अंकल मुझे मोटरसाइकिल पर बिठा कर ले गए थे.
इस के बाद वह एक कार से एक होटल में ले गए. वहां उन्होंने खाना खिलाया फिर कार से बहुत दूर ले गए.
अपहर्त्ता की पहचान के लिए मुरादाबाद पुलिस ने कौशांबी बस डिपो में लगे सीसीटीवी की फुटेज देखी लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. सारी औपचारिकताएं पूरी कर के पुलिस ने ध्रूवको उस के मांबाप के हवाले कर दिया. बेटे के सहीसलामत मिलने पर गौरव के घर में त्यौहार जैसा माहौल था. गौरव और शिखा ने इस खुशी में मोहल्ले में हलवापूरी बंटवाई.
बच्चे के बरामद होने के बाद पुलिस का अगला मकसद अपहर्त्ताओं तक पहुंचना था. इस के लिए एक ही जरिया था, इंटरनेट काल का 13 अंकों का वह नंबर, जिस से फिरौती की काल की गई थी. आईजी रमित शर्मा ने इस बारे में डीजीपी हितेश अवस्थी से बात की. डीजीपी ने संबंधित कंपनियों से इस संबंध में संपर्क किया.
इधर सर्विलांस टीम अपने काम में जुटी हुई थी. टीम ऐसे फोन नंबरों की जांच में जुट गई जो 7 अगस्त को मुरादाबाद के लाइन पार क्षेत्र में स्थित मोबाइल टावर के संपर्क में आए थे. ये नंबर हजारों की संख्या में थे. इसे डंप डाटा कहा जाता है. पुलिस ने इस डंप डाटा की जांच की. कई दिनों की जांच के बाद कई फोन नंबर पुलिस टीम की रडार पर चढ़ गए. उन फोन नंबरों को सर्विलांस टीम ने फिल्टर किया तो एक फोन नंबर 9100263333 शक के दायरे में आ गया.
जांच में पता चला कि यह फोन नंबर मोहम्मद अशफाक पुत्र मोहम्मद उस्मान, गांव जलालपुर, थाना वर्नी, जिला निजामाबाद, तेलंगाना के नाम पर लिया गया था. एसएसपी ने एक पुलिस टीम तेलंगाना रवाना कर दी. टीम ने थाना वर्नी पुलिस के सहयोग से मोहम्मद अशफाक के घर दबिश दी तो अशफाक घर पर ही मिल गया.
थाना वर्नी में पुलिस ने अशफाक से सख्ती के साथ पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही ध्रूवका अपहरण किया था. लेकिन उस ने यह काम अपनी प्रेमिका और ध्रूवकी मम्मी शिखा के कहने पर किया था.
यह सुन कर पुलिस चौंकी. यह सवाल छोटा नहीं था कि क्या एक मां खुद अपने एकलौते बेटे का अपहरण करा सकती है. अशफाक ने यह भी बताया कि बच्चे का अपहरण करने के लिए वह निजामाबाद से ही टाटा टिगोर गाड़ी नंबर एमएच26बीसी 4145 किराए पर ले कर मुरादाबाद गया था. गाड़ी को यहीं का ड्राइवर इमरान खान चला कर ले गया था. पुलिस टीम ने अशफाक की निशानदेही पर ड्राइवर इमरान खान को भी हिरासत में ले लिया और टाटा टिगोर गाड़ी भी बरामद कर ली.
अब केस पूरी तरह खुल चुका था. चूंकि इस मामले में अपहृत हुए बच्चे की मां शिखा के भी शामिल होने की बात सामने आ चुकी थी, इसलिए तेलंगाना में मौजूद मुरादाबाद पुलिस ने यह बात मुरादाबाद के कप्तान प्रभाकर चौधरी को बता दी. उन्होंने एसपी (सिटी) को शिखा को हिरासत में लेने के निर्देश दिए ताकि वह फरार न हो सके.
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