कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. यह बात जापान में एक जुलाहे के यहां चरितार्थ हुई. 5 मार्च, 1955 को दक्षिण जापान के कीसुशयु क्षेत्र में रहने वाले उस गरीब जुलाहे के यहां एक बेटे ने जन्म लिया. वह कोई साधारण बच्चा नहीं था. एक अजीब सा तेज था उस के चेहरे पर. बच्चे की दाईं आंख से न दिख पाने की बात को भी लोगों ने असाधारण बताया था.
लोगों की तारीफें सुनसुन कर जुलाहा भी अपनी किस्मत पर इठलाने लगा. बच्चे का नाम रखा गया शोको उर्फ चीजू. जुलाहे को क्या मालूम था कि उस का यह बेटा दौलत और शोहरत की बुलंदियों तक तो पहुंचेगा, लेकिन अमानवीयता और वीभत्सता की सीढ़ी पर चढ़ कर.
गरीब जुलाहे ने किसी तरह शोको को पालपोस कर नक्काशी के काम पर लगा दिया. नक्काशी का काम कर के किसी तरह दो जून की रोटी भर कमाने वाले जुलाहे का बेटा शोको उर्फ चीजू बचपन से ही महत्त्वाकांक्षी था. गरीबी के फर्श और बेबसी की छत के नीचे लेटा शोको बस दौलत के सपने देखा करता था. मुफलिसी के चलते पढ़ना तो दूर, वह स्कूल का दरवाजा भी नहीं देख पाया था. पर यह उस का आत्मविश्वास ही था कि वह दुनिया को अपनी मुट्ठी में कैद कर रखने का दम भरता था.
शोको को गरीबी की चादर से बेहद नफरत थी. गरीबी ही वह शब्द था, जो उस के मन में टीस बन कर रिसता रहता था. किसी के आगे हाथ फैलाना उसे गवारा नहीं था. वह तो बलात छीन कर सब कुछ हासिल करना चाहता था.