आदमी को जब कोई मुसीबत अचानक आ घेरे तो उसे ऐसे में किसी अपने की याद आती है जो उस का मददगार या सहारा बन सके. फूलचंद्र की पत्नी मुन्नी अचानक बीमार हुई तो उसे अनुपम की याद आई. अनुपम और फूलचंद्र की उम्र में दोगुने का अंतर था. फूलचंद्र 40 वर्ष का था तो अनुपम 20 वर्ष का. पहले दोनों में जानपहचान हुई, फिर गहरी दोस्ती हो गई.
फूलचंद्र ने तुरंत अनुपम को फोन किया, ‘‘अनुपम, तुम्हारी भाभी मुन्नी की तबियत बहुत खराब है, अस्पताल ले जाना पड़ेगा. मैं बच्चों को संभालूं या मुन्नी को. इस वक्त मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है, आ जाओ.’’
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‘‘मुसीबत हो या परेशानी, दोस्त ही दोस्त के काम आता है. तुम चिंता न करो, मैं आ रहा हूं.’’ अनुपम बोला.
अनुपम से जितना जल्दी संभव हो सकता था, फूलचंद्र के घर पहुंच गया. वे दोनों मुन्नी को अस्पताल ले गए. मुन्नी के उपचार के लिए जिन दवाओं व संसाधनों की जरूरत थी, वे उस अस्पताल में नहीं थे. उसे समुचित इलाज के लिए शहर जाने को कहा.
मुन्नी की जिंदगी और मौत का सवाल था, इसलिए वे दोनों उसे शहर ले गए. शहर के अस्पताल में मुन्नी का सही एवं बेहतर इलाज हुआ. समय तो लगा, पर पैसा काफी खर्च हो गया.
मुन्नी ठीक हो कर घर आ गई, मगर फूलचंद्र को आर्थिक अभावों ने घेर लिया. जो पैसा था, उस ने मुन्नी के इलाज में लगा दिया था. इस के अलावा भी उस ने कुछ लोगों से पैसा उधार लिया था. फूलचंद्र तनाव में रहने लगा कि कैसे वह घर का खर्च उठाएगा और उधार लिया पैसा कैसे वापस करेगा.
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