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इश्कइश्क की अठखेलियां खेलती हुई कनिका पिता के दोस्त के साथ प्यार के अनोखे रिश्ते का जो धागा बुन रही थी, वह निहायत ही घटिया और बदबूदार रिश्तों का धागा था, जिस की कोई उम्र नहीं थी. उस में दोष कनिका का नहीं बल्कि उस की उम्र का था, जिस उम्र के दौर से वह गुजर रही थी.
पिता का दोस्त पिता जैसा ही होता है. कनिका ने इस रिश्ते की मर्यादा को तो भुला ही दिया था, इस से कमतर गुनहगार कनिका के पिता का दोस्त वेदप्रकाश आंतिल भी नहीं था. जो सामाजिक मानमर्यादा को ताख पर रख बेटी समान कनिका से इश्क की गोटियां खेल रहा था.

भ्रष्ट मानसिकता के उस कमबख्त इंसान ने यह भी नहीं सोचा कि जब उन के इश्क के परदे उठेंगे तो उन की समाज में कितनी बदनामी हो सकती है. लोग उन के बारे में कैसीकैसी धारणाएं रखेंगे. क्या सामाजिक तिरस्कार और बहिष्कार की मार से वे जिंदा रह सकेंगे. दोनों ने इस बारे में कभी नहीं सोचा, बस नीले आसमान के तले अपने प्यार की पींगें भरते रहे.बहरहाल, कनिका और वेदप्रकाश का रिश्तों की आड़ वाला यह खेल ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं रहा. आखिरकार, एक दिन विजयपाल के सामने यह भेद खुल ही गया. जब उस के सामने बेटी और वेदप्रकाश के बीच चल रहे नाजायज रिश्तों से परदा उठा तो उसे ऐसा लगा जैसे उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई हो.

वेदप्रकाश की हरकतों से उस के तनबदन में आग लग गई थी. वह इस सोच में डूब गया था कि माना बेटी नादान थी, नादानी में उस के पांव बहक गए लेकिन वह तो नादान नहीं था. बेटी को समझाने या ऊंचनीच का आईना दिखाने जैसा काम कर सकता था. फिर भी वह न मानती तो मुझ से आ कर कहता, मुझे बताता. मैं उस का सही तरीके से इलाज करता.बजाय इस के वह खुद उस पर लट्टू हो गया और उस से नाजायज रिश्ता जोड़ लिया. वेदप्रकाश ने ऐसी गिरी और घिनौनी हरकत कर के अच्छा नहीं किया. विजयपाल ने तय कर लिया कि वह उसे कभी माफ नहीं करेगा.

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