हीरालाल जिला बरेली के गांव पैगानगरी के रहने वाले थे. उन का परिवार सुखीसंपन्न था. गांव में उन की करीब 60 बीघा जुतासे की जमीन थी. उन की 3 बेटियां थीं.
लीलावती उर्फ लवली, पार्वती और सब से छोटी दुर्गा. पत्नी हेमवती सहित घर में कुल 5 सदस्य थे. हीरालाल की एक ही परेशानी थी कि उन का कोई बेटा नहीं था.
हीरालाल ने बेटे की चाह में काफी हाथपांव मारे. वह कई डाक्टरों और तांत्रिकों से मिले, लेकिन उन की बेटा पाने की इच्छा पूरी न हो सकी.
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अंतत: उन्होंने अपना पूरा ध्यान बेटियों की परवरिश में लगा दिया. बेटियां समझदार हुईं तो हीरालाल ने सोचा कि उन्हें अच्छी शिक्षा दिलानी चाहिए. लेकिन गांव में रहते यह संभव नहीं था.
सोचविचार के बाद हीरालाल ने सन 2007 में अपनी खेती की जमीन में से 44 बीघा जमीन बेच दी. उस पैसे को ले कर वह अपने परिवार के साथ रुद्रपुर की राजा कालोनी में आ बसे. वहीं उन्होेंने अपना मकान बना लिया.
रुद्रपुर आ कर हीरालाल ने अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए तीनों बेटियों का अच्छे स्कूल में दाखिला करा दिया था.
बेटियों की तरफ से निश्चिंत हो कर हीरालाल ने बाकी बचे पैसों से प्रौपर्टी डीलिंग का काम शुरू कर दिया. जमीन के पैसों से उन्होंने घर के आसपास कई प्लौट खरीद कर डाल दिए. उसी दौरान हीरालाल की मुलाकात नरेंद्र गंगवार से हुई.
नरेंद्र रामपुर जिले के गांव खेड़ासराय का रहने वाला था. वह उसी मोहल्ले में किराए के मकान में रहता था और सिडकुल की एक फैक्ट्री में काम करता था. उस ने हीरालाल से एक प्लौट खरीदने की इच्छा जाहिर की.
हीरालाल ने उसे अपने घर के सामने पड़ा प्लौट दिखाया तो वह नरेंद्र को पसंद आ गया. नरेंद्र ने वह प्लौट खरीद लिया. प्लौट लेने के बाद नरेंद्र की हीरालाल से जानपहचान हो गई. वह उन के संपर्क में रहने लगा. इसी बहाने वह हीरालाल के घर भी आनेजाने लगा.
इसी बीच नरेंद्र की नजर हीरालाल के बड़ी बेटी लीलावती पर पड़ी. लीला देखनेभालने में सुंदर थी और उस समय पढ़ रही थी. वह जब भी हीरालाल के घर जाता तो उस की निगाहें लीला पर टिकी रहती थीं.
लीला नरेंद्र के बारे में पहले ही सब कुछ जान चुकी थी. जब उस ने नरेंद्र को अपनी ओर आकर्षित होते देखा तो उस के दिल में भी चाहत पैदा हो गई. जल्दी ही दोनों प्रेम की राह पर चल निकले.
लीला स्कूल जाती तो नरेंद्र घंटों उस की राह तकता रहता. उस के स्कूल जाने का फायदा उठा कर वह घर के बाहर ही मिलने लगा. प्रेम बेल फलीफूली तो मोहल्ले वालों की नजरों में किरकरी बन कर चुभने लगी.
दोनों की प्रेम कहानी हीरालाल के सामने जा पहुंची तो बेटी की करतूत सुन कर उन्हें बहुत दुख हुआ. हीरालाल ने लीला को समझाया और नरेंद्र के घर आने पर पाबंदी लगा दी. लेकिन मोबाइल फोन के होते नरेंद्र और लीला के मिलने में किसी तरह की अड़चन नहीं आई. दोनों चोरीछिपे मिलते रहे.
प्रेम कहानी के चलते लीला ने सन 2008 में घर वालों को बिना बताए नरेंद्र से लव मैरिज कर ली. नरेंद्र के साथ शादी करने के बाद लीला उस के साथ किराए के मकान में रहने लगी.
बेटी की इस करतूत से हीरालाल और उन की पत्नी हेमवती दोनों को ही आघात पहुंचा था. उन्होंने बेटी लीला से संबंध खत्म कर दिए.
लेकिन हेमवती मां थी. बच्चों के लिए मां का दिल कोमल होता है. लीलावती ने नरेंद्र से शादी कर भले ही अपनी दुनिया बसा ली थी, लेकिन मां होने के नाते हेमवती उस के लिए परेशान रहने लगी थी. जब उस से बेटी के बिना नहीं रहा गया तो वह पति को बिना बताए उस से मिलने लगी.
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जब कभी वह घर में कुछ अच्छा बनाती, तो चुपके से लीला को दे आती थी. साथ ही वह उस की आर्थिक मदद भी करने लगी थी. यह बात हीरालाल को भी पता चल गई थी. शुरूशुरू में तो इस बात को ले कर मियांबीवी में विवाद होने लगा. लेकिन हीरालाल भी दिल के कमजोर थे. बेटी की परेशानी को देखते हुए उन का दिल भी पसीज गया.
शादी के कुछ समय बाद ही हीरालाल ने नरेंद्र को अपने दामाद के रूप में स्वीकार कर लिया. हीरालाल और हेमवती दोनों को अपने घर ले आए. इस के बाद नरेंद्र और लीला हीरालाल के मकान में रहने लगे.
उसी दौरान नरेंद्र कई बार हीरालाल के साथ उन के गांव पैगानगरी भी गया था. गांव में हीरालाल का मकान था. साथ ही उन की 16 बीघा जमीन भी थी, जिसे उन्होंने बंटाई पर दे रखा था. उस जमीन से उन्हें हर साल इतना रुपया मिल जाता था कि उन के परिवार की जरूरतें पूरी हो जाती थीं, प्रौपर्टी खरीदबेच कर जो कमाते थे वह अलग था.
ससुर के साथ रहते हुए नरेंद्र उन की एकएक बात अपने दिमाग में बैठा लेता था. मातापिता के घर पर रहते हुए लीलावती 2 बेटियों और 2 बेटों की मां बनी.
हीरालाल के घर पर रहते हुए नरेंद्र नौकरी के साथसाथ उन के काम में भी हाथ बंटाने लगा था. हालांकि नरेंद्र के चारों बच्चों का खर्च हीरालाल ही उठाते थे. इस के बावजूद वह अपने खर्च के लिए हीरालाल से पैसे ऐंठता रहता था.
अभी हीरालाल की 2 बेटियां शादी के लिए बाकी थीं. वह चाहते थे कि दोनों बेटियां बड़ी की तरह कोई कदम न उठाएं. यही सोच कर वह टाइम से उन की शादी कर देना चाहते थे.
लेकिन जब से नरेंद्र दामाद बन कर घर में आया था, सालियों को फूटी आंख नहीं देखना चाहता था. वह तेजतर्रार और चालाक था. लीला से शादी कर के उस की निगाह हीरालाल की संपत्ति पर जम गई थी.
उसी दौरान उस ने हीरालाल पर दबाव बनाना शुरू किया कि उस के हिस्से की संपत्ति उस के नाम करा दें. लेकिन हीरालाल ने साफ कह दिया कि जब तक दोनों बेटियां विदा नहीं हो जातीं, वह अपनी संपत्ति का बंटवारा नहीं करेंगे.
हीरालाल जब नरेंद्र की हरकतों से परेशान हो गए तो उन्होंने नरेंद्र के प्लौट पर मकान बनवा दिया. इस के बाद नरेंद्र अपने बीवीबच्चों को साथ ले कर नए मकान में चला गया.
हीरालाल ने सोचा था कि नरेंद्र अपने घर जाने के बाद सुधर जाएगा. लेकिन घर आमनेसामने होने की वजह से उस के बीवीबच्चे तो हीरालाल के घर पर पड़े ही रहते थे, वह भी आ कर बदतमीजी पर उतर आता था. लेकिन ससुर होने के नाते हीरालाल सब कुछ सहन करते रहे.
उसी दौरान नरेंद्र ने अपने मकान में विजय नाम का एक किराएदार रख लिया. विजय गंगवार जिला बरेली के गांव दमखोदा का रहने वाला था. नरेंद्र विजय गंगवार से पहले से ही परिचित था. सो दोनों में खूब पटने लगी. विजय गंगवार कुंवारा था.