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कई सवालों की बेल मेरा सवाल था— ‘‘नताशा, यदि निरंजन मर चुका होता तो उस की पूरी संपत्ति तुम्हारी होती. क्योंकि उस की पहली बीवी का कोई अतापता नहीं है. तो अचानक निरंजन को जिंदा देख कर तुम्हें लगा नहीं कि मुसीबत वापस कैसे आई?

‘‘क्योंकि तुम तो यही जानती थी कि वह मर चुका था. जिस

किसी ने भी मारा हो, आखिर लाश तो पुलिस तुम्हारे घर से ले गई थी. दूसरे क्या तुम अब खुश हो कि तुम हत्या के आरोप से छूट सकती हो?’’

‘‘मैं ने किसी की भी हत्या तो की नहीं थी, इसलिए मेरे छूट जाने का मुझे पूरा विश्वास था. लेकिन उस के आने से मेरी पुरानी मुसीबत के दोहराव की पूरी संभावना न हो, इस का डर था.’’

‘‘कौन सी मुसीबत?’’

‘‘गुलामी.’’

मैं दूसरे सवाल पर आ गई, ‘‘नताशा क्या तुम जानती हो कि हम ने जान लिया है कि पिछले दिनों तुम ने ही उन खूनियों को निरंजन की इस कोठी में आसरा दिया और पुलिस को इस बारे में इत्तला भी नहीं दी? जबकि तुम जानती हो हत्या उस ने की है.’’

‘‘उसे पैसे और रहने के लिए सुरक्षित आसरा चाहिए था. वह आसानी से मुझे अपनी कोठी और दुकान नहीं देना चाहता था. वैसे भी इस के बिना 30 साल की जहरा भला उस के साथ कितने दिन रहती? फिर अली बाबर भी पैसे के लिए अपनी बीवी को निरंजन के हवाले करने से गुरेज नहीं करता था. तो इसे अली बाबर को भी पैसे देने होते थे.’’

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