सौजन्य- मनोहर कहानियां

उत्तर प्रदेश के शहर बिजनौर की साकेत कालोनी में अपने मातापिता के साथ रह रही डा. प्रिया शर्मा 29 अक्तूबर की सुबह जल्दीजल्दी घरेलू काम निपटा रही थी. इसी बीच उस की मां ने आवाज दी, ‘‘बेटी प्रिया, मैं ने पूजा कर ली है, तुम भी नहाधो लो. बाथरूम खाली है.’’

‘‘जी मम्मी, बस 2 रोटियां और सेंकनी है. पापा के लिए चाय का पानी चढ़ा दिया है. आ कर देख लेना.’’ प्रिया बोली.

‘‘और हां, देखो आज लाल रंग वाली साड़ी पहन कर ही कालेज जाना. शुक्रवार है, माता रानी का दिन. मैं ने लाल वाली साड़ी निकाल कर तुम्हारे बैड पर रख दी है.’’ प्रिया की मां बोलीं.

‘‘क्या मम्मी, तुम भी अंधविश्वास में पड़ी रहती हो. जमाना कहां से कहां चला गया और तुम लालपीली करती रहती हो.’’

‘‘अरे, तुम नहीं समझती हो बेटी. यह अंधविश्वास नहीं है, मेरा विश्वास है. आज के दिन लाल रंग के कपड़े पहनने से माता रानी की कृपा बनी रहती है और पूरा दिन शुभ रहता है.’’

‘‘कुछ नहीं होता उस से,’’ प्रिया बोली.

‘‘होता है... बहुत कुछ होता है. मातारानी की कृपा बनी रहती है. वैसे भी तुम्हारे लिए यह जरूरी है. मैं तुम्हारे रिश्तों के लिए ही कह रही हूं, ऐसा करने से तुम्हारे पति के साथ बिगड़े संबंध सुधर जाएंगे.’’ प्रिया की मां ने समझाने की कोशिश की.

‘‘तुम भी न मम्मी, बात को कहां से कहां ले कर चली जाती हो. हर बात को उस के साथ जोड़ देती हो, जो नाकारानिठल्ला है.’’ प्रिया चिढ़ती हुई बोली.

‘‘अरे बेटी, ऐसा नहीं कहते. वह तुम्हारा पति है. आज नहीं तो कल कमाने लगेगा. तब सब ठीक हो जाएगा बेटी.’’

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